परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है
मानवजाति के एक सदस्य और मसीह के समर्पित अनुयायियों के रूप में अपने मन और शरीर परमेश्वर के आदेश की पूर्ति करने के लिए समर्पित करना हम सभी की जिम्मेदारी और दायित्व है, क्योंकि हमारा संपूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और वह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश और मानवजाति के न्यायसंगत कार्य को समर्पित नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के सामने शर्मिंदा महसूस करेंगी, जो परमेश्वर के आदेश के लिए शहीद हुए थे, और परमेश्वर के सामने तो और भी अधिक शर्मिंदा होंगी, जिसने हमें सब-कुछ प्रदान किया है।
परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि की, उसने इस मानवजाति को बनाया, और इतना ही नहीं, वह प्राचीन यूनानी संस्कृति और मानव-सभ्यता का वास्तुकार भी था। केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की संप्रभुता से जुड़ी है, मानव का इतिहास और भविष्य परमेश्वर के हाथों बनी योजनाओं से अलग नहीं किया जा सकता। यदि तुम एक सच्चे ईसाई हो, तो तुम निश्चित ही इस बात पर विश्वास करोगे कि किसी भी देश या राष्ट्र का उत्थान या पतन परमेश्वर की योजनाओं के अनुसार होता है। केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति की दिशा नियंत्रित करता है। यदि मानवजाति अच्छा भाग्य पाना चाहती है, यदि कोई देश अच्छा भाग्य पाना चाहता है, तो मनुष्य को परमेश्वर की आराधना में झुकना होगा, पश्चात्ताप करना होगा और परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करने होंगे, अन्यथा मनुष्य का भाग्य और गंतव्य एक अपरिहार्य विभीषिका बन जाएँगे।
पीछे मुड़कर उस समय को देखो, जब नूह ने नाव बनाई थी : मानवजाति गहराई से भ्रष्ट थी, लोग परमेश्वर के आशीषों से भटक गए थे, परमेश्वर द्वारा अब और उनकी देखभाल नहीं की जा रही थी, और वे परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ खो चुके थे। वे परमेश्वर की रोशनी के बिना अंधकार में रहते थे। फिर वे स्वभाव से व्यभिचारी बन गए, और उन्होंने स्वयं को घृणित चरित्रहीनता में झोंक दिया। ऐसे लोग अब और परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ प्राप्त नहीं कर सकते थे; वे परमेश्वर का चेहरा देखने या परमेश्वर की वाणी सुनने के अयोग्य थे, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को त्याग दिया था, उन सब चीजों को किनारे कर दिया था, जो परमेश्वर ने उन्हें प्रदान की थीं, और वे परमेश्वर की शिक्षाओं को भूल गए थे। उनका हृदय परमेश्वर से अधिकाधिक दूर भटक गया था, जिसका परिणाम यह हुआ कि वे विवेक और मानवता से वंचित होकर पतित हो गए और अधिक से अधिक बुरे होते गए। फिर वे मृत्यु के और भी निकट पहुँच गए, और परमेश्वर के कोप और दंड के अधीन हो गए। केवल नूह ने परमेश्वर की आराधना की और बुराई से दूर रहा, और इसलिए वह परमेश्वर की वाणी और निर्देशों को सुनने में सक्षम था। उसने परमेश्वर के वचन के निर्देशानुसार जहाज बनाया, और सभी प्रकार के जीवित प्राणियों को उसमें एकत्र किया। और इस तरह, जब एक बार सब-कुछ तैयार हो गया, तो परमेश्वर ने संसार पर अपनी विनाशलीला शुरू कर दी। केवल नूह और उसके परिवार के सात अन्य लोग इस विनाशलीला में जीवित बचे, क्योंकि नूह ने यहोवा की आराधना की थी और बुराई से दूर रहा था।
अब वर्तमान युग को देखो : नूह जैसे धर्मी मनुष्य, जो परमेश्वर की आराधना कर सके और बुराई से दूर रह सके, होने बंद हो गए हैं। फिर भी परमेश्वर इस मानवजाति के प्रति अनुग्रही है, और इस अंतिम युग में अभी भी उन्हें दोषमुक्त करता है। परमेश्वर उनकी खोज कर रहा है, जो उसके प्रकट होने की लालसा करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके वचनों को सुनने में सक्षम हैं, जो उसके आदेश को नहीं भूले और अपना तन-मन उसे समर्पित करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके सामने शिशुओं के समान समर्पित हैं और उसका विरोध नहीं करते। यदि तुम किसी भी ताकत या बल से बाधित हुए बिना खुद को परमेश्वर के प्रति समर्पित करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे ऊपर अनुग्रह की दृष्टि डालेगा और तुम्हें अपने आशीष प्रदान करेगा। यदि तुम उच्च पद वाले, सम्मानजनक प्रतिष्ठा वाले, प्रचुर ज्ञान से संपन्न, विपुल संपत्तियों के मालिक हो, और तुम्हें बहुत लोगों का समर्थन प्राप्त है, तो भी ये चीज़ें तुम्हें परमेश्वर के आह्वान और आदेश को स्वीकार करने, और जो कुछ परमेश्वर तुमसे कहता है, उसे करने के लिए उसके सम्मुख आने से नहीं रोकतीं, तो फिर तुम जो कुछ भी करोगे, वह पृथ्वी पर सर्वाधिक सार्थक होगा और मनुष्य का सर्वाधिक न्यायसंगत उपक्रम होगा। यदि तुम अपनी हैसियत और लक्ष्यों की खातिर परमेश्वर के आह्वान को अस्वीकार करोगे, तो जो कुछ भी तुम करोगे, वह परमेश्वर द्वारा श्रापित और यहाँ तक कि तिरस्कृत भी किया जाएगा। शायद तुम कोई अध्यक्ष, कोई वैज्ञानिक, कोई पादरी या कोई एल्डर हो, किंतु इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा पद कितना उच्च है, यदि तुम अपने उपक्रमों में अपने ज्ञान और योग्यता के भरोसे रहते हो, तो तुम हमेशा असफल रहोगे, और हमेशा परमेश्वर के आशीषों से वंचित रहोगे, क्योंकि परमेश्वर ऐसा कुछ भी स्वीकार नहीं करता जो तुम करते हो, और वह नहीं मानता कि तुम्हारे उपक्रम न्यायसंगत हैं, या यह स्वीकार नहीं करता कि तुम मानवजाति के भले के लिए कार्य कर रहे हो। वह कहेगा कि जो कुछ भी तुम करते हो, वह मानवजाति के ज्ञान और ताकत का इस्तेमाल कर इंसान से परमेश्वर की सुरक्षा छीनने और उसके आशीषों को नकारने के लिए किया जाता है। वह कहेगा कि तुम मानवजाति को अंधकार की ओर, मृत्यु की ओर, और एक ऐसे अंतहीन अस्तित्व के आरंभ की ओर ले जा रहे हो, जिसमें मनुष्य ने परमेश्वर और उसके आशीष खो दिए हैं।
मानवजाति द्वारा सामाजिक विज्ञानों के आविष्कार के बाद से मनुष्य का मन विज्ञान और ज्ञान से भर गया है। तब से विज्ञान और ज्ञान मानवजाति के शासन के लिए उपकरण बन गए हैं, और अब मनुष्य के पास परमेश्वर की आराधना करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश और अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं रही हैं। मनुष्य के हृदय में परमेश्वर की स्थिति सबसे नीचे हो गई है। हृदय में परमेश्वर के बिना मनुष्य की आंतरिक दुनिया अंधकारमय, आशारहित और खोखली होती है। बाद में मनुष्य के हृदय और मन को भरने के लिए कई समाज-वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और राजनीतिज्ञों ने सामने आकर सामाजिक विज्ञान के सिद्धांत, मानव-विकास के सिद्धांत और अन्य कई सिद्धांत व्यक्त किए, जो इस सच्चाई का खंडन करते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की है, और इस तरह, यह विश्वास करने वाले बहुत कम रह गए हैं कि परमेश्वर ने सब-कुछ बनाया है, और विकास के सिद्धांत पर विश्वास करने वालों की संख्या और अधिक बढ़ गई है। अधिकाधिक लोग पुराने विधान के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों और उसके वचनों को मिथक और किंवदंतियाँ समझते हैं। अपने हृदयों में लोग परमेश्वर की गरिमा और महानता के प्रति, और इस सिद्धांत के प्रति भी कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वह सभी चीजों पर प्रभुत्व रखता है, उदासीन हो जाते हैं। मानवजाति का अस्तित्व और देशों एवं राष्ट्रों का भाग्य उनके लिए अब और महत्वपूर्ण नहीं रहे, और मनुष्य केवल खाने-पीने और भोग-विलासिता की खोज में चिंतित, एक खोखले संसार में रहता है। ... बहुत थोड़े लोग स्वयं इस बात की खोज करने का उत्तरदायित्व लेते हैं कि आज परमेश्वर अपना कार्य कहाँ करता है, या यह तलाशने का उत्तरदायित्व कि वह किस प्रकार मनुष्य के गंतव्य पर नियंत्रण और उसकी व्यवस्था करता है। और इस तरह, मनुष्य के बिना जाने ही मानव-सभ्यता मनुष्य की इच्छाओं के अनुसार चलने में और भी अधिक अक्षम हो गई है, और कई ऐसे लोग भी हैं, जो यह महसूस करते हैं कि इस प्रकार के संसार में रहकर वे, उन लोगों के बजाय जो चले गए हैं, कम खुश हैं। यहाँ तक कि उन देशों के लोग भी, जो अत्यधिक सभ्य हुआ करते थे, इस तरह की शिकायतें व्यक्त करते हैं। क्योंकि परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना अगर शासक और समाजशास्त्री मानव सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए अपना दिमाग खपा भी लें तो भी कोई फायदा नहीं होगा। मनुष्य के हृदय का खालीपन कोई व्यक्ति नहीं भर सकता, क्योंकि कोई भी व्यक्ति मनुष्य का जीवन नहीं बन सकता, और कोई भी सामाजिक सिद्धांत मनुष्य को खालीपन की परेशानियों से मुक्ति नहीं दिला सकता। ज्ञान, विज्ञान, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, मौज-मस्ती और आराम मनुष्य को केवल अस्थायी सांत्वना देते हैं। यहाँ तक कि इन चीजों के होते भी मनुष्य अनिवार्यतः पाप करता है और समाज के पक्षपात की शिकायत करता है। ये चीजें होना मनुष्य की खोजी लालसा और इच्छा को बाधित नहीं कर सकतीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर द्वारा बनाया गया था और मनुष्यों के बेतुके त्याग और अन्वेषण उनके लिए और अधिक कष्ट ही ला सकते हैं और मनुष्य को एक निरंतर घबराहट की स्थिति में रख सकते हैं, और वह यह नहीं जान सकता कि मानवजाति के भविष्य या आगे आने वाले मार्ग का सामना किस प्रकार किया जाए, इस हद तक कि मनुष्य ज्ञान-विज्ञान से भी डरने लगता है और खालीपन के एहसास से तो और भी घबराने लगता है। इस संसार में, चाहे तुम किसी स्वंतत्र देश में रहते हो या बिना मानवाधिकारों वाले देश में, तुम मानवजाति के भाग्य से बचकर भागने में सर्वथा असमर्थ हो। तुम चाहे शासक हो या शासित, तुम भाग्य, रहस्यों और मानवजाति के गंतव्य की खोज करने की इच्छा से बचकर भागने में सर्वथा अक्षम हो, और खालीपन की व्याकुल करने वाली भावना से बचकर भागने में तो और भी ज्यादा अक्षम हो। इस प्रकार की घटनाएँ, जो समस्त मानवजाति के लिए आम हैं, समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक घटनाएँ कही जाती हैं, फिर भी कोई महान व्यक्ति इस समस्या का समाधान करने के लिए सामने नहीं आ सकता। मनुष्य आखिरकार मनुष्य है, और परमेश्वर के स्थान और जीवन की जगह कोई मनुष्य नहीं ले सकता। मानवजाति को केवल एक ऐसे न्यायपूर्ण समाज की ही आवश्यकता नहीं है जिसमें हर व्यक्ति को भरपेट भोजन मिले, सभी समान और स्वतंत्र हों; मानवजाति को जिस चीज की जरूरत है वह है परमेश्वर का उद्धार और मनुष्य के लिए उसके जीवन का प्रावधान। जब मनुष्य परमेश्वर का उद्धार और जीवन प्रावधान प्राप्त करता है, केवल तभी उसकी आवश्यकताओं, अन्वेषण की इच्छा और दिल के खालीपन का समाधान हो सकता है। यदि किसी देश या राष्ट्र के लोग परमेश्वर के उद्धार और उसकी रखवाली प्राप्त करने में अक्षम हैं तो वह देश या राष्ट्र पतन के मार्ग पर बढ़ेगा, अंधकार की ओर चला जाएगा, और नतीजे में परमेश्वर द्वारा जड़ से मिटा दिया जाएगा।
शायद तुम्हारा देश वर्तमान में समृद्ध हो रहा है, किंतु तुम अपने लोगों को परमेश्वर से भटकने दोगे तो तुम्हारा देश स्वयं को उत्तरोत्तर परमेश्वर के आशीषों से वंचित होता हुआ पाएगा, इसकी सभ्यता उत्तरोत्तर मनुष्य के पैरों तले रौंदी जाएगी और जल्दी ही इसके लोग परमेश्वर के विरुद्ध उठ खड़े होंगे और स्वर्ग को कोसने लगेंगे। इस तरह से देश का भाग्य अनजाने में ही नष्ट हो जाएगा। परमेश्वर शक्तिशाली देशों को उन देशों का मुकाबला करने के लिए ऊपर उठाएगा जिन्हें परमेश्वर द्वारा श्राप दिया गया है, यहाँ तक कि वह पृथ्वी से उनका अस्तित्व भी मिटा सकता है। किसी देश की समृद्धि और अंत के लिए यह बात महत्वपूर्ण होती है कि क्या उसके शासक परमेश्वर की आराधना करते हैं, और क्या वे अपने लोगों की अगुआई परमेश्वर के निकट लाने और उसकी आराधना करने में करते हैं। लेकिन इस अंतिम युग में चूँकि ईमानदारी से परमेश्वर को खोजने और उसकी आराधना करने वाले लोग तेजी से दुर्लभ होते जा रहे हैं, इसलिए परमेश्वर उन देशों पर अपना विशेष अनुग्रह बरसाता है जिनमें ईसाइयत एक राज्य धर्म है। वह संसार में एक अपेक्षाकृत न्यायसंगत शिविर बनाने के लिए उन देशों को इकट्ठा करता है, जबकि नास्तिक देश और सच्चे परमेश्वर की आराधना न करने वाले देश न्यायसंगत शिविर के विरोधी बन जाते हैं। इस तरह से परमेश्वर का मानवजाति के बीच न केवल एक स्थान होता है, जिसमें वह अपना कार्य करता है, बल्कि साथ ही वह उन देशों को भी प्राप्त करता है जो न्यायसंगत अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं, और उन देशों पर अंकुश और प्रतिबंध लगाने देता है जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। इसके बावजूद परमेश्वर अभी भी अपनी आराधना करने के लिए और अधिक लोगों को हासिल करने में समर्थ नहीं है, क्योंकि मनुष्य परमेश्वर से बहुत दूर भटक गया है और बहुत समय से उसे भूल बैठा है, और इस पृथ्वी पर केवल वही देश हैं जो न्याय को लागू करते हैं और अन्याय को रोकते हैं। किंतु यह परमेश्वर की इच्छाओं तक पहुँचने से दूर है, क्योंकि किसी भी देश का शासक अपने लोगों के ऊपर परमेश्वर को शासन नहीं करने देगा, और किसी भी देश का कोई राजनीतिक दल अपने लोगों को परमेश्वर का सम्मान करने के लिए इकट्ठा नहीं करेगा; परमेश्वर प्रत्येक देश, राष्ट्र, सत्तारूढ़ दल और यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अपना यथोचित स्थान खो चुका है। यद्यपि इस संसार में कुछ न्यायसंगत शक्तियों का अस्तित्व जरूर है, लेकिन ऐसा कोई भी शासन बहुत कमजोर है जिसमें मनुष्य के हृदय में परमेश्वर का स्थान न हो, और जिस राजनीतिक परिदृश्य में परमेश्वर का आशीष न हो वह अव्यवस्था की स्थिति में है और एक भी झटके के सामने टिक नहीं पाएगा। मानवजाति के लिए परमेश्वर के आशीष से रहित होना सूर्य से रहित होने के बराबर है। शासक अपने लोगों के लिए चाहे कितने भी परिश्रम से योगदान क्यों न करें, मानवजाति चाहे कितने भी न्यायसंगत सम्मेलन आयोजित क्यों न करे, इनमें से कोई भी होनी को या मानवजाति के भाग्य को नहीं बदलेगा। मनुष्य का मानना है कि वह देश, जिसमें लोगों को भोजन और वस्त्र मिलते हैं, जिसमें वे शांति से एक-साथ रहते हैं, एक अच्छा देश है, और उसका नेतृत्व अच्छा है। किंतु परमेश्वर ऐसा नहीं सोचता। उसका मानना है कि वह देश, जिसमें कोई उसकी आराधना नहीं करता, एक ऐसा देश है, जिसे वह जड़ से मिटा देगा। मनुष्य के विचार परमेश्वर के विचारों से हमेशा बहुत भिन्न होते हैं। इसलिए यदि किसी देश का मुखिया परमेश्वर की आराधना नहीं करता तो उस देश का भाग्य बहुत ही दुःखद होगा और उस देश का कोई गंतव्य नहीं होगा।
परमेश्वर मनुष्य की राजनीति में भाग नहीं लेता, फिर भी वह हर देश या राष्ट्र का भाग्य नियंत्रित करता है, वह इस संसार को और संपूर्ण ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है। मानवजाति का भाग्य और परमेश्वर की योजना घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं, और कोई भी व्यक्ति, देश या राष्ट्र परमेश्वर की संप्रभुता से बच नहीं सकता है। यदि मनुष्य अपने भाग्य को जानना चाहता है तो उसे परमेश्वर के सामने आना होगा। परमेश्वर उन लोगों को समृद्ध करेगा जो उसका अनुसरण और उसकी आराधना करते हैं, और वह उनका पतन और विनाश करेगा, जो उसका विरोध करते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं।
बाइबल के उस दृश्य का स्मरण करो, जब परमेश्वर ने सदोम पर तबाही बरपाई थी, और यह भी सोचो कि किस प्रकार लूत की पत्नी नमक का खंभा बन गई थी। वापस सोचो कि किस प्रकार नीनवे के लोगों ने टाट और राख में अपने पापों का पश्चात्ताप किया था, और याद करो कि 2,000 वर्ष पहले यहूदियों द्वारा यीशु को सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद क्या हुआ था। यहूदी इजराइल से निर्वासित कर दिए गए थे और वे दुनिया भर के देशों में भाग गए थे। बहुत लोग मारे गए थे, और संपूर्ण यहूदी राष्ट्र, किसी देश के विनाश की अभूतपूर्व पीड़ा का भागी हो गया था। उन्होंने परमेश्वर को सलीब पर चढ़ाया था—जघन्य पाप किया था—और परमेश्वर के स्वभाव को भड़काया था। उनसे उनके किए का भुगतान करवाया गया था, और उन्हें उनके कार्यों के परिणाम भुगतने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने परमेश्वर की निंदा की थी, परमेश्वर को अस्वीकार किया था, और इसलिए उनकी केवल एक ही नियति थी : परमेश्वर द्वारा दंडित किया जाना। यही वह कड़वा परिणाम और आपदा थी, जो उनके शासक उनके देश और राष्ट्र पर लाए थे।
आज परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए लोगों के बीच लौट आया है और उसके कार्य का पहला पड़ाव है तानाशाही का ठेठ नमूना : चीन, जो नास्तिकता का कट्टर गढ़ है। परमेश्वर ने अपनी बुद्धि और सामर्थ्य से लोगों का एक समूह प्राप्त कर लिया है। इस अवधि के दौरान चीन की सत्तारूढ़ पार्टी उसका हर तरह से पीछा करती आ रही है और उसे हर तरह से सताया जा रहा है, उसे अपना सिर टिकाने के लिए कोई जगह नहीं मिली है और वह कोई आश्रय पाने में असमर्थ रहा है। इसके बावजूद परमेश्वर अभी भी वह कार्य जारी रखे हुए है, जिसे करने का उसका इरादा है : वह बोल रहा है और अपने वचन सुना रहा है और सुसमाचार फैला रहा है। कोई व्यक्ति परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता की थाह नहीं पा सकता। चीन में, जो परमेश्वर को शत्रु माननेवाला देश है, परमेश्वर ने कभी भी अपना कार्य बंद नहीं किया है। बल्कि और अधिक लोगों ने उसके कार्य और वचनों को स्वीकार किया है, क्योंकि परमेश्वर मानवजाति के हर एक सदस्य को हरसंभव सीमा तक बचाता है। हम सबको विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ हासिल करना चाहता है उसे कोई भी देश या ताकत बाधित नहीं सकती और जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करने की कोशिश करते हैं, परमेश्वर के वचनों का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ने की कोशिश करते हैं वे अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे। जो भी व्यक्ति परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध करता है उसे परमेश्वर नरक भेजेगा; जो भी देश परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध करता है उसे परमेश्वर नष्ट कर देगा; जो भी राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है उसे परमेश्वर इस पृथ्वी से मिटा देगा और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मैं सभी राष्ट्रों, सभी देशों और यहाँ तक कि सभी उद्योगों के लोगों से विनती करता हूँ कि वे परमेश्वर की वाणी को सुनें, परमेश्वर के कार्य को देखें और मानवजाति के भाग्य पर ध्यान दें, और इस तरह परमेश्वर को मानवजाति के बीच सर्वाधिक पवित्र, सर्वाधिक सम्माननीय, सर्वोच्च और आराधना का एकमात्र लक्ष्य बनाएँ, और संपूर्ण मानवजाति को परमेश्वर के आशीष के बीच जीने में सक्षम बनाएँ, ठीक उसी तरह जैसे अब्राहम के वंशज यहोवा के वादों के अधीन रहे और ठीक उसी तरह जैसे आदम और हव्वा, जिन्हें परमेश्वर ने सबसे पहले बनाया था, अदन के बगीचे में रहे।
परमेश्वर का कार्य एक ज़बरदस्त लहर के समान आगे बढता है। उसे कोई नहीं थाम सकता, और कोई भी उसके प्रयाण को रोक नहीं कर सकता। केवल वे लोग ही उसके पदचिह्नों का अनुसरण कर सकते हैं और उसकी प्रतिज्ञा प्राप्त कर सकते हैं, जो उसके वचन सावधानीपूर्वक सुनते हैं, और उसकी खोज करते हैं और उसके लिए प्यासे हैं। जो ऐसा नहीं करते, वे ज़बरदस्त आपदा और उचित दंड के भागी होंगे।