713 स्वभाव में बदलाव के लक्षण

1 स्वभाव में बदलाव की एक विशेषता होती है। जो सत्य को स्वीकारने और उन चीज़ों को मानने में सक्षम होना है जो सही हैं और सत्य के अनुरूप हैं। चाहे कोई भी तुम्हें सुझाव दे—चाहे वे युवा हों या बूढ़े, चाहे तुम्हारी उनसे अच्छी तरह से पटती हो—जब तक कि वे कुछ ऐसा कहते हैं जो सही है, सत्य के अनुरूप है, और परमेश्वर के परिवार के कार्य के लिए भी फायदेमंद है, तब तक तुम इसे ग्रहण और स्वीकार कर सकते हो, और किन्हीं भी अन्य कारकों से प्रभावित नहीं हो सकते हो। यह उस विशेषता का पहला पहलू है। दूसरा यह है कि किसी समस्या का सामना होने पर सत्य की खोज करने में सक्षम होना। यदि तू किसी नई समस्या का सामना करता है जिसे कोई भी नहीं समझ सकता है, तो तू सत्य की तलाश कर सकता है, यह देख सकता है कि बातों को सत्य के सिद्धांतों के अनुरूप बनाने के लिए और परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए तुझे किस चीज़ का अभ्यास करना चाहिए।

2 एक और विशेषता है परमेश्वर की इच्छा के बारे में मननशील होने की योग्यता पाना। अपना कर्तव्य परमेश्वर की अपेक्षानुसार पूरा करना चाहिए, और इसे परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए करना चाहिए। तुझे ज़िम्मेदारी और आस्थापूर्ण रूप से कार्य करना चाहिए। ये सभी परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील होने के तरीके हैं। यदि तू यह नहीं जानता है कि जो तू कर रहा है, उसमें परमेश्वर की इच्छा पर कैसे मननशील हुआ जाए, तो उसे पूरा करने के लिए, और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए तुझे कुछ खोज अवश्य करनी चाहिए। अगर तुम सब इन तीन सिद्धांतों को अमल में ला सको, तुम उनके सहारे वास्तव में कितनी अच्छी तरह जी रहे हो, उसे माप सको, और अभ्यास के मार्ग को खोज सको, तो फिर तुम सैद्धांतिक तरीके से मामलों को संभाल रहे होगे। चाहे तुम्हारा सामना जिस किसी भी बात से हो, या चाहे तुमको जिस किसी भी समस्या से निपटना पड़ रहा हो, यदि तुम अभ्यास के सिद्धांतों का पता लगा सको, तो तुम स्वाभाविक रूप से सत्य पर अमल कर पाओगे।

— "अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'केवल सत्य को अभ्यास में ला कर ही तू भ्रष्ट स्वभाव के बंधनों को त्याग सकता है' से रूपांतरित

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