535 जो सत्य की तलाश नहीं करते वो अफ़सोस करेंगे
1 आज, तू उन वचनों पर विश्वास नहीं करता है जो मैं कहता हूँ, और तू उन पर कोई ध्यान नहीं देता है; जब इस कार्य को फैलाने का दिन आएगा, और तू उसकी सम्पूर्णता को देखेगा, तब तू अफसोस करेगा, और उस समय तू भौंचक्का हो जाएगा। आशीषें हैं, फिर भी तू नहीं जानता है कि उसका आनन्द कैसे लेना है, और सत्य है, फिर भी तू उसका अनुसरण नहीं करता है। क्या तू अपने ऊपर घृणा लेकर नहीं आता है? इतना सारा कार्य है, इतने सारे सत्य हैं; क्या वे इस योग्य नहीं हैं कि उन्हें तेरे द्वारा जाना जाए? क्या परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय तेरी आत्मा को जागृत करने में असमर्थ है? क्या परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय तुझे इस योग्य नहीं बना सकता है कि तू स्वयं से नफरत करे? क्या तुम शैतान के प्रभाव में, शांति, आनन्द, और थोड़ा बहुत देह के सुकून के साथ जीवन बिताकर संतुष्ट हो? क्या तुम सभी लोगों में सब से अधिक निम्न नहीं हो?
2 उन से ज़्यादा मूर्ख और कोई नहीं है जिन्होंने उद्धार को देखा किन्तु उसे प्राप्त करने के लिए अनुसरण नहीं किया: वे ऐसे लोग हैं जो देह से स्वयं को भरपूर कर लेते हैं और शैतान का आनंद लेते हैं। तुम आशा करते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करने से तुम्हें चुनौतियाँ और क्लेश, या थोड़ी बहुत कठिनाई विरासत में नहीं मिलेगी। तुम हमेशा ऐसी चीज़ों का अनुसरण करते हो जो निकम्मी हैं, और तुम अपने जीवन में कोई मूल्य नहीं जोड़ते हो, उसके बजाय तुम अपने फिजूल के विचारों को सत्य से ज़्यादा महत्व देते हो। तुम कितने निकम्मे हो! तुम एक सूअर के समान जीते हो—तुममें, और सूअर और कुत्तों में क्या अन्तर है? क्या वे जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, और उसके बजाय शरीर से प्रेम करते हैं, सब के सब जानवर नहीं हैं? क्या वे मरे हुए लोग जिनमें आत्मा नहीं है, चलती फिरती हुई लाशें नहीं हैं?
3 तुम लोगों के बीच में कितने सारे वचन बोले गए हैं? क्या तुम लोगों के बीच में केवल थोड़ा सा ही कार्य किया गया है? मैंने तुम लोगों के बीच में कितनी आपूर्ति की है? तो फिर तुमने इसे प्राप्त क्यों नहीं किया? तुम्हारे पास शिकायत करने के लिए क्या है? क्या मामला ऐसा नहीं है कि तुमने कुछ भी इसलिए प्राप्त नहीं किया है क्योंकि तुम देह से बहुत अधिक प्रेम करते हो? और क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि तुम्हारे विचार बहुत ज़्यादा फिजूल हैं? क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि तुम बहुत ही ज़्यादा मूर्ख हो? यदि तुम इन आशीषों को प्राप्त करने में असमर्थ हो, तो क्या तुम परमेश्वर को दोष दोगे कि उसने तुम्हें नहीं बचाया? मैंने तुम्हें सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तुमने उसे प्राप्त नहीं किया है: तुम्हारे हाथ खाली हैं। क्या तुम इस जीवन में, इस सूअर के जीवन में, निरन्तर बने रहना चाहते हो? ऐसे लोगों के ज़िन्दा रहने का क्या महत्व है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" से रूपांतरित