169 भ्रष्ट मानवता को आवश्यकता है देहधारी परमेश्वर के उद्धार की

1

परमेश्वर देह बना क्योंकि उसके काम का लक्ष्य

है देह वाला इंसान, शैतान की आत्मा नहीं।

इंसान की देह भ्रष्ट की शैतान ने,

तो इंसान बना ईश-कार्य का लक्ष्य।

ईश्वर के उद्धार का लक्ष्य है इंसान।


इंसान नश्वर प्राणी है, हाँड़-माँस का बना,

केवल ईश्वर उसे बचा सके।

ईश्वर को इंसानी देह को धारण करना होगा,

अपना काम करने, सबसे अच्छे नतीजे पाने के लिए।


ईश्वर को देह बनना होगा, क्योंकि इंसान देह है,

जो पाप पर विजय न पा सके।

इंसान खुद को देह-बंधन से छुड़ा न सके।


2

देह में काम करे जब ईश्वर, तब वो शैतान से लड़े।

आत्मा के क्षेत्र में उसका काम व्यावहारिक हो जाता,

ये असल है धरती पर, देह में।

ईश्वर इंसान को जीते जो आज्ञा न माने,

शैतान का मूर्त रूप इंसान हारे,

और अंत में वो इंसान है जो बचाया जाए।


ईश्वर के लिए जरूरी था देह बनना,

एक प्राणी का खोल पहनना,

शैतान से लड़ने के लिए

और इंसान को जीतने के लिए।

ईश्वर के लिए जरूरी था देह बनना,

इंसान को बचाने के लिए

जिसका बाहरी रूप ईश्वर की देह जैसा है,

लेकिन जिसे शैतान ने नुकसान पहुँचाया है।


इंसान ईश्वर का शत्रु है, ईश्वर को उसे जीतना होगा।

इंसान ईश्वर के उद्धार का लक्ष्य है;

इसलिए देहधारण कर ईश्वर को इंसान बनना होगा।

इस तरह उसका काम आसान हो जाता है।

ईश्वर शैतान को हरा सकता है,

इंसान को जीत सकता है,

जीत सकता है, जीत सकता है,

इंसान को बचा सकता है।

इंसान को बचा सकता है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है से रूपांतरित

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