204 चाटुकार का जागना
1
मैं चाटुकार बनकर, शैतान के जीवन-दर्शन का अनुसरण किया करता था,
शांति और सहिष्णुता को सबसे ज़्यादा महत्व देता था, कभी किसी से बहस नहीं करता था।
कोई काम करते वक्त या लोगों से बातचीत करते समय, मैं अपने अभिमान, आत्म-सम्मान और रुतबे का ख़्याल रखता था।
मैंने सच्चाई की तरफ़ से आँखें मूँद रखी थीं, मैं साफ़ तौर से देखकर भी कुछ नहीं बोलता था।
अगर किसी चीज़ से मेरा वास्ता न हो, तो मैं अपने सिद्धांतों को त्याग कर उन्हें अनदेखा कर देता था।
मैं ख़ुद को बचाता था, अपनी अंतरात्मा को धोखा देता था ताकि लोग नाराज़ न हों।
मैंने विपरीत परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया, मैंने एक निराशाजनक जीवन जिया और अपनी इंसानियत गँवा दी।
बिना चरित्र या गरिमा के, मैं इंसान कहलाने लायक नहीं रहा।
2
परमेश्वर के वचनों के न्याय का अनुभव करते हुए, मैं एकदम से जाग गया।
सच्चाई को समझकर, मैंने इंसान की दुष्टता और भ्रष्टता की सच्चाई को साफ़ तौर पर देखा।
मैं परमेश्वर के आगे गिर गया, मुझे दिल में बहुत अफ़सोस हुआ।
मुझे अपने स्वार्थ और नीचता से घृणा हो गई, और अपनी सत्यनिष्ठा और गरिमा को खोने कारण मैं अपने आपसे नफ़रत करने लगा।
आखिरकार यह चाटुकार उजागर हो गया: मैंने लोगों का दिल दुखाया, खुद को नुकसान पहुंचाया, परमेश्वर को मुझसे नफ़रत हो गई।
चालाक, धोखेबाज, पाखंडी, मैं परमेश्वर के फैसले से बच नहीं सकता।
परमेश्वर के वचन सत्य हैं, जीवन में उच्चतम सूत्र-वाक्य हैं।
ईमानदार लोग परमेश्वर का आज्ञापालन करते हैं, वे सच्चाई और खुले दिल से कार्य करते हैं।
वे सत्य का अभ्यास करते हैं, परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करते हैं और प्रकाश में रहते हैं।
मैं ईमानदार बनने और परमेश्वर के वचनों के सहारे जीने का,
अपनी कुटिलता और कपट को दूर करने का, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का संकल्प लेता हूँ।
मैं अपना कर्तव्य वफ़ादारी से निभाऊंगा और परमेश्वर का गौरव बढ़ाने के लिए एक सच्चे इंसान की तरह जिऊंगा।