189 न्याय के माध्यम से एक जागृति
1 प्रभु में विश्वास करने के उन वर्षों में, मैंने केवल बाइबल के सिद्धांतों की व्याख्या करने पर ध्यान दिया था। प्रभु के वचनों और आदेशों का मैंने कभी पालन नहीं किया। मैंने कड़ी मेहनत तो की, पर यह केवल प्रतिष्ठा और पुरस्कार के लिए थी। मैं पाप में जीता था, फिर भी प्रभु के आने के बाद मैं स्वर्ग के राज्य में आरोहित किए जाने की आशा करता था। परमेश्वर के वचनों के न्याय का अनुभव करने के बाद, मैं अपने सपनों से जाग गया। मैं अब देख सकता हूँ कि मैं बदसूरत, घृणास्पद और बहुत भ्रष्ट हूँ। मैं ठोस सिद्धांत की बात कर हर जगह डींग मारता हूँ। दूसरों को और स्वयं को धोखा देने के लिए, मैं अपने को सिद्धांतों से सजा लेता हूँ। मैं परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता को नहीं जीता हूँ, मुझ में मानव की कोई सदृशता नहीं है। मैं फरीसियों की राह पर चलता हूँ, फिर भी स्वयं को वफ़ादार मानता हूँ। मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि परमेश्वर के वचनों के न्याय ने मुझे जगा दिया है! अंतिम दिनों में मसीह के न्याय को स्वीकार किये बिना, मैं कभी भी परमेश्वर को देखने के योग्य न हो पाता।
2 परमेश्वर का न्याय मुझे मानवजाति की भ्रष्टता की सच्चाई को स्पष्ट देखने देता है। मैं परमेश्वर के बारे में अवधारणाओं और कल्पनाओं से भरा हुआ हूँ, हो सकता है कि मैं कभी भी उसके साथ विश्वासघात कर बैठूँ। यदि परीक्षणों द्वारा किसी की प्रकृति को उजागर न किया जाए, तो कोई भी इसे स्पष्ट न देख पाएगा। मानवजाति बहुत गहराई से भष्ट है, और न्याय से गुज़रे बिना वे शुद्ध नहीं हो पाएँगे। परमेश्वर के न्याय के भीतर उसका धर्मी स्वभाव पूरी तरह प्रकट होता है। मनुष्य के अंत का निर्धारण परमेश्वर इस बात से करता है कि उसके पास सत्य है या नहीं। चाहे लोग कितना भी कष्ट उठाएँ, अगर उन्होंने सत्य को हासिल नहीं किया है, तो इसका कोई अर्थ नहीं है। केवल न्याय का अनुभव और सत्य को हासिल करके ही मनुष्य एक सच्चा मानवीय जीवन जी सकता है। मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर द्वारा न्याय और ताड़ना का उपयोग करना, बहुत ही अर्थपूर्ण है। परमेश्वर की धर्मिता और पवित्रता को जानना कितने सम्मान की बात है! यह परमेश्वर का न्याय ही है जो मुझे बचाता और मेरे दिल को जगाता है। परमेश्वर की गवाही और उसे महिमा देने के लिए, मैं सत्य की तलाश करने और वास्तविकता को जीने का संकल्प लेता हूँ।