212 एक दिल से निकला प्रायश्चित
1
जब रात को नींद नहीं आती, तो यादें चली आती हैं।
प्रभु में मैंने इतने बरस विश्वास रखा, फिर भी मैं दुनिया की रवायत पर ही चलती रही।
मैं पाप में जीती रही, व्यभिचार में लिप्त, मैं देह के सुख में गोते लगाती थी।
मेरा ख़्याल था कि अगर मैंने कड़ी मेहनत की, तो मुझे प्रभु द्वारा अस्वीकार नहीं किया जाएगा।
मैंने परमेश्वर की वाणी को सुनकर पहचान लिया कि प्रभु प्रकट हो गए हैं।
इसलिए मैंने सोचा कि मुझे परमेश्वर के सामने उन्नत किया जाएगा और स्वर्ग के राज्य में मेरा हिस्सा होगा।
मैंने कभी परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन को स्वीकार करके आत्म-मंथन नहीं किया।
मैं अपनी ख़्वाहिशों के पीछे भागती रही और मनमर्ज़ी करती रही, मैंने परमेश्वर के वचनों का तिरस्कार किया।
परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता करते हुए, मैंने सिर्फ़ सिद्धांतों की बात की और मान बैठी कि मैंने अच्छा काम किया।
जब मेरी काट-छाँट और निपटारा हुआ, तो मैंने विरोध किया और बहाने बनाए।
जब भी मैं परीक्षणों से घिरी, मैंने हमेशा भागना चाहा; मुझे परमेश्वर के उद्धार का पता ही नहीं था।
अब, मैं देखती हूँ कि मैंने सत्य का बिल्कुल भी अनुसरण नहीं किया।
मैं परमेश्वर के वचनों से बहुत दूर भटक गई हूँ, मैं असीम अंधकार में गई हूँ।
परमेश्वर की उपस्थिति को न समझ पाने से, मेरे दिल में भय और बेचैनी समा गई है।
भयभीत और काँपती हुई, मैं परमेश्वर के सामने झुकती हूँ, मुझे उसे खो देने का डर है।
मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ती हूँ और उससे प्रार्थना करती हूँ, कामना करती हूँ कि उसका दिल बदल जाए।
2
हे परमेश्वर! क्या तू पश्चाताप से भरे मेरे दिल की पुकार सुन सकता है?
तेरी मौजूदगी को गँवा देना कितना अंधकारपूर्ण और पीड़ादायक है!
तेरे वचनों के बिना मेरे दिल में कोई रोशनी नहीं है।
मैं एक भ्रष्ट स्वभाव में जीती हूँ और शैतान मेरे साथ खिलवाड़ करता है।
हे परमेश्वर! मैं पश्चाताप करना चाहती हूँ, एक नई शुरुआत करना चाहती हूँ।
मैं चाहती हूँ कि तू मेरा न्याय करे, और ज़्यादा मुझे ताड़ना दे।
अगर परीक्षण और शुद्धिकरण और ज़्यादा कठोर होंगे तो भी कोई बात नहीं,
अगर मैं तेरे सामने रह सहूँ, तो मैं कुछ भी भुगतने को तैयार हूँ।
मैं बुरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी हूँ, मैं तेरे न्याय के बिना शुद्ध नहीं हो सकती।
केवल न्याय ही मुझे शैतान से बचा सकता है।
हे परमेश्वर! मैंने अनुभव कर लिया है कि न्याय और ताड़ना ही प्यार हैं।
तुम्हारे वचन सत्य हैं; केवल तुम ही मुझे बचा सकते हो।
मैं तुम्हारे वचन संजोना चाहती हूँ और उनके अनुसार जीवन जीना चाहती हूँ;
मैं फिर कभी तुम्हारे प्रेम और श्रमसाध्य प्रयासों के अयोग्य नहीं होऊँगी।
मैं सत्य का अभ्यास करूंगी, इंसान की तरह जियूँगी, तुम्हारे प्रेम की गवाही दूँगी!