895 इंसान के लिये परमेश्वर की इच्छा कभी नहीं बदलेगी
1
इस जगत में परमेश्वर बरसों से रहता है, कौन है मगर जो उसे जानता है?
आश्चर्य नहीं कि लोगों को परमेश्वर ताड़ना देता है।
लगता है इंसान को परमेश्वर अपना अधिकार
दिखाने के लिये इस्तेमाल करता है।
लगता है वे उसकी बंदूक की गोलियाँ हैं,
एक बार चलाई जो उसने, तो बच निकलेंगे वो सभी एक एक कर।
ये ख़्याल है उनका, हकीकत नहीं है मगर, हकीकत नहीं है मगर।
2
परमेश्वर ने सम्मान किया है सदा इंसानों का।
नहीं किया शोषण कभी या सौदेबाजी उनकी ग़ुलामों की तरह।
क्योंकि जुदा हो नहीं सकते कभी परमेश्वर और इंसान।
बन गया है जिंदगी और मौत का बंधन इस तरह।
दुलारता है और प्यार करता है इंसानों को सदा परमेश्वर।
हालांकि आपसी नहीं है ये जज़्बा, मेहनत करता है उन पर फिर भी परमेश्वर,
क्योंकि अभी भी इंसान परमेश्वर की ओर देखता है।
परमेश्वर प्यार करता है लोगों को अपने ख़ज़ाने की तरह,
क्योंकि वही “पूँजी” हैं उसके प्रबंधन की।
हटाएगा नहीं वो उन्हें।
अपनी इच्छा नहीं बदलेगा वो उनके लिए।
अपनी इच्छा नहीं बदलेगा वो उनके लिए।
3
क्या परमेश्वर की शपथ पर वाकई भरोसा कर सकता है इंसान?
परमेश्वर को कैसे संतुष्ट कर सकता है इंसान?
हर इंसान के लिए है ये काम,
"गृह कार्य" जो छोड़ा है परमेश्वर ने सभी के लिए।
है परमेश्वर को यही उम्मीद, सभी मेहनत करेंगे,
इसे पूरा करने के लिए, इसे पूरा करने के लिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 35 से रूपांतरित