प्रेम की कोई सीमाएँ नहीं होतीं

10 दिसम्बर, 2019

लेखिका, झू किंग, शेनडोंग प्रांत

मैंने इस जीवन में बहुत से दुख झेले हैं। मेरी शादी को ज़्यादा साल नहीं हुए थे जब मेरे पति का निधन हो गया, और उस समय से परिवार की देखभाल का भारी बोझ मेरे ही कंधों पर पड़ गया। एक छोटा बच्चा साथ होने के कारण, मेरा जीवन कठिन था। मैं हमेशा दूसरों के उपहास और अवमानना के निशाने पर रहती थी; कमजोर और असहाय, मैं हर दिन आँसू बहाती थी, मुझे ऐसा लगता था जैसे इस दुनिया में जीवन बहुत कठिन है। बस जब मैं निराशा और पस्‍ती की गहराई में डूबी थी, तभी एक बहन ने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के अंत के दिनों के कार्य के सुसमाचार को मेरे साथ साझा किया। जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के इन वचनों को पढ़ा तो मेरा दिल स्नेह से भर गया: "जब तुम थके हो और इस संसार में खुद को तन्हा महसूस करने लगो तो, व्याकुल मत होना, रोना मत। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, रखवाला, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "सर्वशक्तिमान का आह भरना")। परमेश्‍वर ने मुझे एक प्यार करने वाली माँ की तरह पुकारा और मुझे ऐसा लगा जैसे आखिरकार मुझे मेरा घर मिल गया, मुझे मेरा सहारा मिल गया, और मेरी आत्मा को आराम की जगह मिल गई। तब से, मैं हर दिन परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ती रही, और मैंने जाना कि परमेश्‍वर समस्त जीवन का स्रोत है, परमेश्‍वर हर व्यक्ति के भाग्य पर शासन करता है, और यह कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर मानवजाति का एकमात्र सहारा और उद्धार है। मुझे और अधिक सच्चाई समझ में आ सके, इसलिए मैंने कलीसिया की बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लिया और, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कलीसिया में, मैंने देखा कि सभी भाई-बहन एक दूसरे के साथ सरल और खुले रहते हैं। जब मैं उनके साथ होती थी तो मुझे सहजता महसूस होती थी, मुझे अपने दिल का बोझ हल्‍का होने का अहसास होता था, और मैंने ऐसी खुशी और उल्‍लास का अनुभव किया जैसा मैंने पहले कभी नहीं महसूस किया था। इसलिए मैं अपने भविष्य के प्रति आत्मविश्वास और आशा से भर गई। मैंने परमेश्‍वर के प्रेम के प्रतिदान के लिए कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया। लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ कि, सीसीपी सरकार किसी को भी सच्चे परमेश्‍वर पर विश्वास करने या सही मार्ग का अनुसरण करने की अनुमति नहीं देती है, और मुझे केवल मेरे विश्वास के कारण सीसीपी सरकार के हाथों क्रूर और अमानवीय हिरासत और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।

दिसंबर 2009 की एक दोपहर, मैं घर पर कुछ कपड़े धो रही थी, जब अचानक सादी वर्दी में पाँच या छह पुलिसवाले मेरे आँगन में घुस आए। उनमें से एक चिल्लाया, "हम क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड से हैं जिसे विशेष रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर पर विश्वास करने वालों की धरपकड़ का काम दिया गया है!" इससे पहले कि मैं संभल पाती, उन्होंने लुटेरों के गिरोह की तरह मेरे घर में सब कुछ उलट-पलट करना शुरू कर दिया। उन्होंने मेरे घर के अंदर, बाहर दोनों जगह चीज़ों को उथलपुथल कर डाला, और परमेश्‍वर में विश्‍वास के बारे में कुछ किताबें, एक डीवीडी प्लेयर, और दो सीडी प्लेयर जो उन्‍हें मिले, उनको ज़ब्‍त कर लिया। फिर वे मुझे एक पुलिस की गाड़ी में पुलिस स्टेशन ले गए। भाई-बहनों ने दुष्ट पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने और क्रूर यातनाएं देने का जैसा वर्णन किया था, मैं रास्ते में उसी पर सोचती रही, और मेरा कलेजा मुंह को आ गया; मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं बुरी स्थिति में थी, और मैंने तुरंत परमेश्‍वर से प्रार्थना की: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! मैं इस समय अपने आपको बेहद कमजोर महसूस कर रही हूं। यातना दिए जाने के विचार से मुझे बहुत डर लगता है। कृपया मुझे विश्वास और शक्ति दें और मेरे भय को दूर करें।" प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्‍वर के वचनों के दो अंशों के बारे में सोचा: "सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है तुम सब का विश्वास बहुत कम है। जब तक तुम सभी का विश्वास बढ़ता है, तब तक कुछ भी मुश्किल नहीं होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 75")। "मेरी सभी योजनाओं में, बड़ा लाल अजगर मेरी विषमता, मेरा शत्रु, और मेरा सेवक भी है; वैसे तो, मैंने उससे अपनी 'अपेक्षाओं' को कभी भी शिथिल नहीं किया है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 29")। जब मैंने परमेश्‍वर के वचनों पर विचार किया, तो मेरी समझ में आया कि मैं शैतान की क्रूर यातनाओं से डरती थी क्योंकि मुझे परमेश्‍वर में सच्चा विश्वास नहीं था। मैंने सोचा, "शैतान वास्तव में एक विषमता है जो परमेश्‍वर के काम के लिए सेवा प्रदान करता है,"। "चाहे वह जितना भी निर्दयी और क्रूर क्यों न हो, वह अभी भी परमेश्‍वर के हाथों में है, और उसके पास परमेश्‍वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इतना ही नहीं, शैतान जितना अधिक निर्दयी और क्रूर होगा, उतना ही अधिक मुझे परमेश्‍वर के वास्‍ते गवाही देने के लिए अपने विश्वास पर भरोसा करना होगा। इस महत्वपूर्ण क्षण में, मैं शैतान की निरंकुश शक्ति द्वारा कतई डर नहीं सकती, बल्कि मुझे उस विश्वास और ताकत पर निर्भर रहना होगा जो परमेश्वर मुझे शैतान को हराने के लिए देता है।" यह सोचते हुए, अब मुझे अब ज़्यादा डर नहीं महसूस हो रहा था।

जब हम पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो दो पुलिसकर्मियों ने बिना कुछ कहे, मुझे हथकड़ी लगा दी, और मुझे लातें मारते और धकियाते हुए दूसरी मंजिल पर ले गए और फिर गुर्राते हुए कहा, "तुम जैसों को मज़ा चखाने के लिए हम कुछ 'विशेष उपचार' करते हैं!" मैं जानती थी कि इस "विशेष उपचार" का मतलब यातना था। बस, मैं अपने हृदय में परमेश्‍वर से प्रार्थना करती रही, और मैंने एक पल के लिए भी परमेश्‍वर को छोड़ने की हिम्मत नहीं की, इस डर से कि मैं उसकी देखभाल और सुरक्षा को खो दूंगी और शैतान की धूर्त योजनाओं का शिकार बन जाऊंगी। जैसे ही मैंने पूछताछ कक्ष में प्रवेश किया, दुष्ट पुलिसकर्मियों में से एक ने मुझे घुटने टेकने के लिए कहा। जब मैंने ऐसा नहीं किया, तो उसने मेरे घुटने के पीछे जोर से लात मारी, और मैं अनायास ही घुटनों के बल गिर गई। फिर उन्होंने मुझे घेर लिया और तब तक मुझे पीटते और लातें मारते रहे जब तक कि मेरा सिर घूमने न लग गया और मेरी आँखें न धुंधली हो गईं, मेरी नाक और मुँह से खून बहने लगा। मगर उनका काम अभी पूरा नहीं हुआ था, क्योंकि उन्होंने मुझे फर्श पर बैठने का आदेश दिया और मेरे सामने एक कुर्सी रख दी। फिर दुष्ट पुलिसकर्मियों में से एक ने मेरी पीठ पर जोरदार प्रहार करना शुरू कर दिया, और हर प्रहार से मेरा चेहरा और सिर कुर्सी से टकरा जाता। मेरा सिर झनझना रहा था, और दर्द असहनीय था। एक पुलिसवाले ने मुझे देखकर धूर्तता से मुस्‍कुराते हुए कहा, "कोई तेरा राज़ पहले ही खोल चुका है। अगर तू बोलना नहीं शुरू करेगी, तो हम तुझे पीट-पीट कर मार देंगे।" यह कहने के बाद, उसने सीधे मेरी छाती में मुक्का मारा, जिससे मुझे इतनी बुरी तरह से चोट लगी कि मैं बहुत देर तक सांस नहीं ले सकी। फिर एक अन्य पुलिसकर्मी चिल्लाया, "क्या तू वाकई सोचती है कि तू कोई ल्यू हुलान है? देर-सबेर हम तुझे पीटकर सच्चाई उगलवा ही लेंगे!" दुष्ट पुलिसकर्मियों के गिरोह ने मुझे हर तरह से यातनाएं दीं, वे तभी रुकते जब वे थक जाते। जब मैं सोच ही रही थी कि मुझे सांस लेने के लिए कुछ समय दिया जा सकता है, तो करीब 50 वर्ष की उम्र का एक पुलिसकर्मी अच्छी पुलिस की छवि दिखाकर मुझे चकमा देने की कोशिश करने के लिए आया। "अभी किसी ने हमें बताया है कि आप कलीसिया की एक नेता हैं। क्या आपको लगता है कि अगर आप बात नहीं करेंगी तो हम आप पर कोई भी आरोप नहीं लगा पाएंगे? हम लंबे समय से आपका पीछा कर रहे हैं, और हमने आपको अभी केवल इसलिए गिरफ्तार किया है क्योंकि हमारे पास अब पर्याप्त सबूत हैं। तो बात करना शुरू कर दीजिए!" उसकी यह बात सुनकर मैं चौंक गई: "क्या यह सच हो सकता है?" मैंने सोचा। "अगर कोई वास्तव में यहूदा बन गया है और मेरा भेद खोल दिया है, तो क्या ये लोग पहले से ही मेरे बारे में सब कुछ नहीं जानते होंगे? क्या इन्हें कुछ न बताकर मैं बच सकती हूं? मुझे क्या करना चाहिए?" हताशा में, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का ध्यान आया: "तुमने जो भी अनुग्रह प्राप्त किया है, जो भी तुमने सुना है, तुम उसके बारे में सोचते हो, क्या तुम उन्हें व्यर्थ में सुन सकते हो? चाहे और कोई भाग जाए, तुम नहीं भाग सकते। अन्य लोग विश्वास नहीं करते, लेकिन तुमको करना ही होगा। अन्य लोग परमेश्वर का त्याग करते हैं, लेकिन तुम्हें परमेश्वर का अनुमोदन करना होगा और उनके बारे में गवाही देनी ही होगी। दूसरे परमेश्वर की बदनामी करते हैं, लेकिन तुम यह नहीं कर सकते। चाहे परमेश्वर तुम्हारे प्रति कितना भी कठोर हो, फिर भी तुम्हें उसके साथ सही व्यवहार करना चाहिए। तुम्हें उसके प्रेम का प्रतिदान देना चाहिए और तुम्हारा एक जमीर होना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर निर्दोष है। उसका स्वर्ग से पृथ्वी पर मानवता के बीच कार्य करने के लिए आना पहले से ही एक महान अपमान था। वह पवित्र है, उसमें जरा-सी भी गंदगी नहीं। गंदी भूमि पर आकर—उसने कितने अपमान का सामना किया है? तुम लोगों में कार्य करना तुम लोगों की खातिर ही है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "मोआब के वंशजों को बचाने का महत्व")। परमेश्‍वर के हर एक वचन ने मेरे सुन्न दिल पर दस्‍तक दी और मेरी अंतरात्मा को बहुत पश्चाताप हुआ। मैंने सोचा कि मैंने किस तरह वर्षों तक सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का अनुसरण किया, किस तरह मैंने परमेश्‍वर से अनंत प्रेम और गर्मजोशी प्राप्त की, परमेश्‍वर की भरपूर जीवन आपूर्ति प्राप्त की, ऐसे सत्यों को समझा जिन्‍हें पूरे इतिहास में कोई भी समझ नहीं सका था, जीवन के अर्थ और मूल्य को महसूस किया, और दर्द, अकेलेपन और निराशा के अपने पिछले अंधेरे जीवन से छुटकारा पाया। परमेश्‍वर ने मुझे इतना जबरदस्त प्यार दिया है—मैं इसे कैसे भूल सकती हूं? मैं किंकर्तव्‍यविमूढ़ कैसे हो सकती हूं और किसी ने उसे धोखा दिया है यह सुनते ही परमेश्‍वर को धोखा देने के विचार भी मेरे मन में कैसे आ सकते हैं? इन विचारों को सोचकर, मैं लगातार रोने लगी, और अपने भीतर विवेक और मानवता की इतनी कमी होने के लिए खुद से नफरत करने लगी। जब भी कोई मुझ पर कृपा करता, तो मैं उस दयालुता का प्रतिदान देने के हर संभव तरीके के बारे में सोचती थी। हालाँकि, परमेश्‍वर ने मुझ पर इतनी कृपा की और इतने आशीर्वाद दिए थे, मेरा इतना बड़ा उद्धार किया था, फिर भी मेरा विवेक सुन्न रहा। न केवल परमेश्‍वर को प्रतिदान देने का विचार मेरे मन में नहीं आया, बल्कि जब मैंने अपने आप को बुरी स्थितियों में पाया, तो मैं परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करने तक के बारे में सोच रही थी। मैं परमेश्‍वर के दिल को बहुत दुःख पहुँचा रही थी! उस पल में, मुझे बहुत गहरा पश्चाताप हुआ। यदि किसी और ने वास्तव में परमेश्‍वर से विश्‍वासघात किया है, तो परमेश्‍वर निश्चित रूप से अब बहुत पीड़ा और दुख महसूस कर रहे होंगे, और मुझे अब अपनी निष्ठा के साथ परमेश्‍वर के दिल को आराम देने की कोशिश करनी चाहिए। फिर भी मैं इतनी स्वार्थी और नीच बन रही थी कि न केवल मैं परमेश्‍वर के पक्ष में नहीं खड़ी हुई थी, बल्कि मैंने परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करने के बारे में सोचा था ताकि मैं एक दयनीय और निराशाजनक जीवन को जीती रह सकूं। मैंने केवल अपने बारे में सोचा था, बिना किसी विवेक या कारण के—मैं परमेश्‍वर के दिल को बहुत दुःख पहुँचा रही थी और उनमें मेरे प्रति घृणा भर रही थी! अपने आत्म-तिरस्कार और पश्चाताप में, मैंने चुपचाप परमेश्‍वर से प्रार्थना की: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! मुझमें विवेक और मानवता की बहुत कमी है! आपने मुझे केवल प्यार और आशीर्वाद दिया है, फिर भी मैंने आपको बदले में सिर्फ पीड़ा और दर्द दिया है। हे परमेश्‍वर! मेरा मार्गदर्शन करने के लिए आपका धन्यवाद जिससे कि मैं यह जान सकूँ कि अब मुझे क्या करना है। मैं अब आपको एक बार वास्तविक काम से संतुष्ट करना चाहती हूं। शैतान मुझे चाहे जैसे भी सताए, मैं आपके लिए गवाही न देने के बजाय मर जाऊंगी, और मैं आपसे कभी विश्‍वासघात नहीं करूंगी!" धूर्त पुलिसवाले ने देखा कि मैं कितना रो रही हूँ, उसने सोचा कि शायद मेरा अंदर से टूटना शुरू हो गया है, इसलिए वह मेरे पास आया और दिखावटी सौम्यता के साथ कहा, "हम जो जानना चाहते हैं वह बता दे और फिर तू घर जा सकती है।" मैंने उस पर निगाहें गड़ा दीं और गुस्से से कहा, "मैं परमेश्‍वर से किसी भी हालत में विश्‍वासघात नहीं करूंगी!" मुझे यह कहते हुए सुनकर उसे बहुत गुस्सा आया; उसने मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारना और पागलों की तरह चिल्लाना शुरू कर दिया, "तो तुम ईनाम के बजाय मार खाना ही पसंद करेगी, हूँ? मैंने तुम्‍हें थोड़ी इज्‍जत के साथ बच निकलने का रास्ता देने की कोशिश की, लेकिन तुमने इसे उल्‍टे मेरे चेहरे पर वापस फेंक दिया। क्या तुम्‍हें लगता है कि हम तुम्‍हारे साथ कुछ नहीं कर सकते हैं? अगर तुम सुधरी नहीं और बताना शुरू नहीं किया, तो हम तुम्‍हें पांच साल के लिए जेल में बंद कर देंगे और तुम्‍हारे बच्चे को स्कूल जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।" मैंने जवाब दिया, "अगर मुझे पाँच साल जेल में बिताने हैं, तो इस चीज़ को मुझे सहना ही होगा। आप मेरे बच्चे को स्कूल जाने से रोक सकते हैं, लेकिन उसकी किस्मत तो उसकी किस्मत ही रहेगी। मैं परमेश्‍वर की प्रभुता के आगे समर्पण करूंगी।" शैतानों का गिरोह और भी नाराज हो गया, और उनमें से एक ने मेरा कॉलर पकड़ लिया और मुझे घसीटकर कंक्रीट के एक चबूतरे पर ले गया। फिर उन्होंने मुझे पैर फैलाकर फर्श पर बैठने को मजबूर कर दिया। एक पुलिसकर्मी ने मेरे एक पैर को अपने पैर से कुचलते हुए वार किया, जबकि दूसरे ने अपना घुटना मेरी पीठ में धंसा दिया और मेरी दोनों बाहों को पीछे की ओर खींचा। मेरी बाहों में तुरंत असहनीय दर्द हुआ, जैसे कि वे दोनों टूट गई हों, और मेरा सिर अनायास ही आगे झुककर कंक्रीट के चबूतरे से टकरा गया, जिससे तुरंत एक बड़ी गांठ बन गई। वह सर्दियों का समय था, जिसमें हाड़ गलाने वाले ठंडी हवाएं चलती थीं और पानी की हर बूंद जमकर बर्फ बन जाती थी, और फिर भी ये दुष्ट पुलिसकर्मी मुझे इस हद तक यातना दे रहे थे कि मुझे बुरी तरह पसीना आ रहा था जिससे मेरे कपड़े पूरे भीग जा रहे थे। यह देखते हुए कि मैं अभी भी हार नहीं मान रही हूँ, उन्होंने मेरी मोटी जैकेट को उतार डाला और मुझे केवल अंदर के पतले कपड़ों में ठंडे फर्श पर मुंह के बल लिटा दिया, और मुझसे सवाल करना जारी रखा। जब मैंने अब भी उनके किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने मुझे फिर से लातों से मारा। शैतानों के इस गिरोह ने मुझे तब तक प्रताड़ित किया जब तक कि शाम न हो गई और वे सभी थककर चूर न हो गए, लेकिन उन्‍हें अब भी मुझसे कुछ नहीं मिला था। जब वे अपने शाम के भोजन के लिए गए, तो उन्होंने मुझे धमकी देते हुए कहा, "अगर तुम आज रात भी अपना मुंह बंद रखती हो, तो हम तुमको टाइगर बेंच पर हथकड़ी से बांध देंगे और तुम्‍हें मरने के लिए छोड़ देंगे!" यह कहकर, वे गुस्से से भरे हुए वहां से चले गए। मुझे तब ही डर लगने लगा था, और मैंने मन में सोचा: "ये दुष्ट पुलिसवाले मुझे और क्या यातनाएँ देंगे? क्या मैं सह पाऊंगी?" खासतौर पर जब मैंने उनके वहशी चेहरों और उनके द्वारा मुझे प्रताड़ित करने के दृश्यों के बारे में सोचा, तो मैं और भी व्यथित और असहाय महसूस करने लगी। मुझे डर था कि मैं क्रूर यातना नहीं सह पाऊंगी और मैं परमेश्‍वर को धोखा दे दूंगी, इसलिए मैं परमेश्‍वर से प्रार्थना करती रही। उस समय, परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे याद दिलाया: "अगर हम में कायरता और भय के विचार हैं तो जान लें कि शैतान हमें मूर्ख बना रहा है जो कि इस बात से डरता है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर जायेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 6")। परमेश्‍वर के वचनों ने मेरे दिमाग में स्‍पष्‍टता ला दी और मैं जान गई कि मेरा डर इसलिए है क्योंकि शैतान ने मुझे धोखा दिया था, और इसलिए मैंने परमेश्‍वर में अपना विश्वास खो दिया था। मुझे यह भी एहसास हुआ कि मुझे ऐसी स्थिति का अनुभव करने की आवश्यकता है ताकि मैं मज़बूत होकर सन्‍मार्ग पर आ जाऊं, वरना मैं हमेशा परमेश्‍वर में सच्चा विश्वास विकसित करने में असमर्थ रहूँगी। इससे भी अधिक, मुझे एहसास हुआ कि मैं इस प्रतिकूल परिस्थिति से अकेले नहीं लड़ रही थी, बल्कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर मेरे पक्‍के सहारे के रूप में मेरे साथ थे। फिर मैंने उस समय के बारे में सोचा जब इस्राएलियोंको मिस्र से निकाला गया था और मिस्र के सैनिकों द्वारा लाल सागर तक उनका पीछा किया जा रहा था। उस समय तक, वापसी संभव नहीं रह गई थी, और उन्होंने परमेश्‍वर के वचन का पालन किया और लाल सागर को पार करने के लिए अपने विश्वास पर भरोसा किया। उन्‍हें देखकर आश्चर्य हुआ कि परमेश्‍वर ने लाल सागर को दो भागों में बांट दिया और उसे सूखी जमीन में बदल दिया; वे सुरक्षित उसमें से गुजर गए और खतरे से बच गए, और इस तरह मिस्र के सैनिकों द्वारा पीछा करने और मार दिए जाने से बच गए। इस समय मेरा सीसीपी पुलिस की क्रूर यातना का सामना करना वैसा ही था। जब तक मुझे परमेश्‍वर पर विश्वास होगा और मैं उन पर भरोसा करूंगी, मैं निश्चित रूप से शैतान को हरा दूंगी! और इसलिए, मेरे हृदय में मज़बूती लौट आई और मैं अब इतनी कायर और भयभीत महसूस नहीं कर रही थी। मैंने अपने दिल में परमेश्‍वर से एक प्रार्थना की: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! मैं चाहती हूं कि आप पर भरोसा करते हुए शैतान के साथ लड़ूं और दुष्ट पुलिस की निरंकुश शक्ति से कभी भी भयभीत न हूं! मैं आपके लिए गवाह बनूंगी!" खतरे के ऐसे समय में, न केवल सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर मेरे शक्तिशाली सहारे बने, बल्कि उन्होंने मेरी कमजोरी के प्रति दया और करुणा भी दिखाई। पुलिस उस शाम मुझसे फिर पूछताछ करने नहीं आई, और मैंने रात सुरक्षित रूप से गुजार दी।

अगली सुबह, हिंसक निगाहों से देखते हुए कई पुलिसकर्मी आए और मुझे डराने के लिए कहने लगे, "यदि तुम बात नहीं मानोगी, तो तुम इसकी कीमत चुकाओगी! हम तुम्‍हें मौत का स्वाद चखाएंगे! तुम्‍हारा सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर अब तुमको नहीं बचा सकता। अगर तुम ल्‍यू हुलान होती, तो भी तुम इससे पार नहीं पा सकती थी! अगर तुम बात करना शुरू नहीं करोगी, तो यहां से जिंदा बाहर निकलने की उम्मीद मत करना।" उन्होंने मुझे फिर से अपनी मोटी जैकेट उतार कर बेहद ठंडे फर्श पर लेटने को कहा और मुझसे पूछताछ करते रहे। उनमें से हर एक की दुष्‍टता से भरी नजरों को देखकर, मैं बस बेतहाशा परमेश्‍वर को पुकार सकती थी और उनसे मुझे मेरी गवाही में दृढ़ बनाए रखने की याचना कर सकती थी। मुझे चुप देखकर उन्हें बेइज्ज़ती महसूस हुई जिससे वे और भी गुस्‍सा हो गए। एक पुलिसवाले ने मुझे फ़ाइल की दफ़्ती से सिर पर बुरी तरह से मारना शुरू कर दिया, जिसके कारण मुझे चक्कर आने लगे और मूर्छा-सी लगने लगी। मुझे मारते हुए उसने मुझे गंदी गालियां दीं और मुझे धमकी देते हुए कहा, "चलो आज इसे फांसी का स्वाद चखाते हैं। उसका बेटा स्कूल कहाँ जाता है? स्कूल के प्रिंसिपल को सूचित करके उसके बेटे को यहां ले आओ। हम कुछ ऐसा करेंगे कि वह खुद मरने की इच्छा करेगी।" फिर उन्होंने मुझसे मेरे घर पर मिली चीजों के बारे में पूछताछ की, लेकिन क्योंकि मैंने उनको संतोषजनक जवाब नहीं दिया, उन्‍होंने मेरे मुंह पर फ़ाइल की दफ़्ती से मारना शुरू कर दिया जब तक कि मेरे होठों के कोनों से खून नहीं बहने लगा। फिर उन्होंने मेरे पूरे शरीर पर वार करना शुरू कर दिया, वे बस अपनी सांस थामने को रुकते थे। तभी, एक पुलिसकर्मी कमरे में आया और उसने देखा कि मैंने कुछ कबूल नहीं किया है, फिर उनमें से चार-पांच लोग मेरे पास आए और मेरी हथकड़ी को खोल दिया, फिर मेरे हाथों को मेरी पीठ के पीछे करके हथकड़ी लगा दी। उन्होंने मुझे एक बड़े डेस्क के सामने बैठा दिया, मेरा सिर डेस्क के किनारे के बराबरी में था और मेरे पैर बाहर फैले हुए थे। जब उन्हें लगता कि मेरे पैर बिल्कुल सीधे नहीं हैं, तो वे उन्‍हें कुचलते और मेरे कंधों को नीचे दबाते थे। देर तक, उन्होंने मेरी बाहों और हथकड़ियों को मेरे पीछे उठाकर पकड़ रखा था और मुझे बिल्‍कुल उसी मुद्रा में रहने के लिए बाध्‍य किया जो उन्होंने मेरे लिए निर्धारित की थी। अगर मैं आगे जाती, तो मेरा सिर डेस्क से टकराता, अगर मैं बाएं, दाएं, या पीछे की ओर जाती, तो मुझे बुरी तरह सजा दी जाती। उनकी इस घृणित चाल से मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं बस मरना चाहती थी और मैं लगातार दर्दनाक ढंग से चीखती रही। जब उन्होंने देखा कि मैं मृत्यु के करीब थी केवल तभी उन्होंने मुझे छोड़ा और मुझे फर्श पर लेट जाने दिया। थोड़ी देर बाद, अमानवीय शैतानों के उस गिरोह ने मुझ पर फिर से अत्याचार करना शुरू कर दिया। चार-पाँच दुष्ट पुलिसकर्मी मेरे पैरों और बाँहों पर खड़े हो गए ताकि मैं हिल न सकूँ, फिर उन्होंने मेरी नाक दबाई और मेरे गालों को निचोड़कर मेरा मुँह खुलवा दिया और उसमें लगातार ठंडे पानी की धार डालने लगे। मेरा दम घुटने लगा और मैं बुरी तरह हाथ-पैर मारने लगी, लेकिन उन्‍होंने मुझे छोड़ा नहीं, और मैं धीरे-धीरे बेहोश हो गई। मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक होश खोए रही, लेकिन मुझे अचानक होश आया, पानी से मेरा दम घुट रहा था, और मैं बुरी तरह खांसने लगी। मेरे मुंह, नाक और कानों से पानी निकल रहा था और मेरी छाती में बहुत अधिक दर्द था। मैं बस अपने चारों ओर घोर अंधेरे को महसूस कर पा रही थी और ऐसा लग रहा था कि मेरी आंखें कोटरों से बाहर निकल रही हैं। मेरा इतना दम घुट रहा था कि मैं केवल साँस छोड़ सकती थी, साँस ले नहीं सकती थी। मेरी आँखें भावशून्‍य थीं, और मुझे लग रहा था जैसे मौत जल्द ही आ जाएगी। मेरा जीवन मानो एक धागे से लटका हुआ था, कि अचानक मुझे खांसी और ऐंठनों का एक और भीषण दौरा पड़ा, और मैं कुछ पानी बाहर निकाल पायी। मैंने उसके बाद थोड़ा बेहतर महसूस किया। फिर एक दुष्ट पुलिसकर्मी ने मुझे बालों से खींचकर बैठा दिया मेरी हथकड़ी को बुरी तरह झटके से खींचा। फिर उसने अपने एक मातहत को आदेश दिया कि मुझ पर बिजली का झटका देने वाले डंडे का प्रयोग करे। मुझे आश्चर्य हुआ कि जब मातहत वापस आया, तो उसने कहा, "मुझे केवल चार ही मिले। उनमें से दो काम नहीं करते और बाकी दो को चार्जिंग की जरूरत है।" यह सुनकर, अधिकारी गुस्से में दहाड़ते हुए बोला, "तुम्‍हारे जैसे बेवकूफ़ से कोई काम नहीं होता! मिर्ची का पानी ले के आओ!" मैं अपने हृदय में लगातार परमेश्‍वर से प्रार्थना कर रही थी कि वह मेरी रक्षा करें, ताकि मैं उन दुष्ट पुलिसवालों द्वारा मुझ पर किए जाने वाले सभी क्रूर अत्याचारों पर विजय पा सकूं। बस उसी क्षण, कुछ ऐसा हुआ जिसकी आशा नहीं थी: एक पुलिसवाले ने कहा, "अब बहुत हो गया। हम पहले ही उसे बुरी तरह से यातना दे चुके हैं। अब ऐसा मत करो।" उस पुलिसकर्मी ने दूसरे की बात माननी ही पड़ी। उस समय मैंने वास्तव में परमेश्‍वर की संप्रभुता और सभी चीजों पर उसके शासन को मान लिया, क्योंकि परमेश्‍वर ही मेरी रक्षा कर रहे थे और मुझे यह राहत दे रहे थे। लेकिन ये दुष्ट पुलिसवाले मुझे अभी भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने मेरे हाथों को फिर से मेरी पीठ के पीछे करके हथकड़ी लगा दी, मेरे पैरों पर खड़े हो गए और अपनी पूरी ताकत के साथ मेरे बंधे हुए हाथों को ऊपर की ओर खींचा। मैं बस यह महसूस कर सकती थी कि मेरे हाथ टूट रहे थे और मैं लगातार चिल्ला रही थी। अपने दिल में, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर को पुकारती रही, और अनजाने में मेरे मुंह से निकल पड़ा, "सर्वश ..." लेकिन फिर मैंने तुरंत अपनी आवाज धीमी कर दी और बस इतना कहा, "जो कुछ मुझे पता है ... जो कुछ मुझे पता है वह सब मैं तुम्हें बताऊंगी।" गिरोह ने सोचा कि मैं वास्तव में उन्हें सबकुछ बताना चाहती हूं, और इसलिए उन्होंने मेरे हाथ खोल दिए और चिल्लाकर कहा, "हम सभी पेशेवर जांचकर्ता हैं। हमसे चालबाज़ी करने के बारे में सोचना भी मत। अगर तुम अभी कायदे से पेश नहीं आती और हमें सब कुछ बताती नहीं, तो तुम ज़्यादा दिनों तक जिन्‍दा रहने या इस जगह से बाहर निकलने की उम्‍मीद मत करना। हम तुम्‍हें इसके बारे में सोचने के लिए कुछ समय देंगे!" मैं उनकी यातना और धमकियां सहते हुए बेहद व्यथित थी, और मैंने मन में सोचा: "मैं यहाँ मरना नहीं चाहती, लेकिन मैं परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करना या कलीसिया के बारे में भेद बताना भी नहीं चाहती। मुझे क्या करना चाहिए? अगर मैं उन्हें सिर्फ एक भाई या बहन के बारे में बता दूं तो कैसा रहेगा?" लेकिन मुझे अचानक एहसास हुआ कि मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती, उन्हें कुछ भी बताना परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करना होगा, यह मुझे यहूदा बना देगा। दर्द सहते हुए, मैंने परमेश्‍वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्‍वर! मुझे क्या करना चाहिए? कृपया मुझे प्रबुद्ध करें और मेरा मार्गदर्शन करें, और कृपया मुझे शक्ति दें!" प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्‍वर के वचनों के बारे में सोचा जो कहते हैं, "कलीसिया मेरा दिल है।" "मेरी गवाही की रक्षा के लिए तुम्हें सब कुछ बलिदान करना होगा। यह तुम्हारे कार्यों का लक्ष्य होगा, इसे मत भूलना" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 41")। "हाँ," मैंने सोचा। "कलीसिया परमेश्‍वर का दिल है। किसी एक भाई या बहन का भेद खोलने का मतलब कलीसिया पर कहर बरपाना होगा, और यही वह चीज है जो परमेश्‍वर को सबसे ज्यादा दुखी करती है। मुझे कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे कलीसिया को चोट पहुंचे। परमेश्‍वर हमें बचाने के वास्‍ते काम करने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर आए, और शैतान परमेश्‍वर द्वारा चुने गए हम लोगों पर अपनी लालची आँखें गड़ाए रखता है, हम सभी को एक बार में पकड़ने और परमेश्‍वर के कलीसिया को नष्ट करने की व्‍यर्थ उम्मीद करता है। अगर मैं अपने भाई—बहनों का भेद खोल दूं, तो क्या मेरे कारण शैतान की कपटी साजिश सफल नहीं हो जाएगी? परमेश्‍वर बहुत अच्छे हैं और वे जो मनुष्य पर कुछ भी करते हैं, प्रेम के कारण करते हैं। मुझे परमेश्‍वर का दिल नहीं दुखाना चाहिए। मैं आज परमेश्‍वर के लिए कुछ नहीं कर सकती, इसलिए मैं केवल इस बात इस बात में सक्षम होना चाहती हूँ कि मैं परमेश्‍वर के प्यार को चुकाने के लिए साक्षी बन सकूं—मैं बस यही कर सकती हूं।" जब मैं परमेश्‍वर की इच्छा को समझ गई, तो मैंने परमेश्‍वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्‍वर! मुझे नहीं पता कि वे अभी मुझे किस तरह की यातनाएं देने वाले हैं। आप जानते हैं कि मेरी आध्यात्मिक कद-काठी कितनी छोटी है और मुझे अक्सर डर लगता है। लेकिन मेरा मानना है कि आप अपने हाथों में सब कुछ रखते हैं, और मैं आपकी उपस्थिति में आपके लिए साक्षी बनने का संकल्‍प लेने की इच्छा रखती हूं, भले ही इसकी कीमत मुझे अपनी जान से चुकानी पडे़।" उसी समय, दुष्ट पुलिसकर्मियों में से एक गुस्से से मुझ पर चिल्लाया, "तय कर लिया या नहीं? अगर तुम ढंग से पेश नहीं आती और हमें सबकुछ नहीं बताती तो मैं यह पक्‍का करूँगा कि तुम आज ही यहाँ मर जाओ! सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर भी तुमको बचा नहीं सकता है!" मैंने अपनी आँखें ज़ोर से बंद कर लीं और अपनी जान की कीमत पर भी गवाही देने के अपने संकल्प पर दृढ़ रहते हुए मैंने एक शब्द नहीं कहा। पुलिसकर्मियों ने रोष में अपने दांत पीसे, मेरी ओर लपके, मुझे अपमानित किया और मुझे पहले की तरह यातनाएं दीं, मुझे लातों से कुचला और मेरी पिटाई की। उन्होंने मुझे सिर पर तब तक पीटा जब तक कि मुझे चक्‍कर नहीं आने लगे। मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और ऐसा लगा जैसे मेरा सिर फट गया हो। मुझे धीरे-धीरे लगने लगा कि मैं अपनी आँखें नहीं हिला पा रही हूँ, मेरा शरीर दर्द के प्रति सुन्न हो गया है, और मुझे कुछ साफ सुनाई नहीं दे रहा था। मैं बस यह महसूस कर सकती थी कि उनकी आवाज़ें बहुत दूर से आ रही थीं। लेकिन मेरा मन बिल्कुल स्पष्ट था, और मैं चुपचाप इन शब्‍दों को दोहराती रही: "मैं यहूदा नहीं हूँ। यहूदा बनने से पहले मैं मर जाऊंगी...।" मुझे नहीं पता कि कितना समय बीता, लेकिन जब मैं जागी, तो मैंने देखा कि मैं पानी में भीगी हुई थी, और चार-पांच दुष्ट पुलिसकर्मी मेरे चारों ओर बैठे थे, जैसे कि यह जांच रहे हों कि मैं जीवित थी या मर गई थी। अधिकारियों के इस गिरोह को देखकर, जो जानवरों से गए गुज़रे थे, मेरे भीतर बहुत आक्रोश पैदा हुआ: क्‍या ये "जनता की पुलिस" है जो "अपने बच्चों की तरह लोगों से प्यार करती है"? ये कानून के प्रवर्तक हैं जो "न्याय का पालन करते हैं, दुष्टों को दंडित करते और अच्छे लोगों की मदद करते हैं"? वे सब सिर्फ राक्षस और नरक पिशाच थे! तभी, मैंने एक धर्मोपदेश के एक अनुच्‍छेद के बारे में सोचा: "विशाल लाल अजगर सबसे क्रूर और भयावह रूप से परमेश्‍वर का विरोध और उन पर हमला करता है और यह परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों को सबसे अधिक उग्र और भयानक रूप से चोट पहुंचाता है—ये तथ्य हैं। विशाल लाल अजगर परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों को सताता है और उनके साथ ज़बर्दस्‍ती करता है, और ऐसा करने का उसका उद्देश्य क्या है? यह परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को पूरी तरह से समाप्त करने और परमेश्‍वर की वापसी को समाप्त करने की इच्छा रखता है। यह विशाल लाल अजगर की दुर्भावना है, और यह शैतान की धूर्त योजना है" (जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति)। इन वचनों के प्रकाश में अपने आस-पास के तथ्यों को देखते हुए, मैंने एकदम स्पष्टता के साथ देखा कि सीसीपी सरकार शैतान का अवतार है और यही वह दुष्‍ट शक्ति है जिसने शुरुआत से ही परमेश्‍वर का विरोध किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि केवल दुष्‍ट शैतान सच्चाई से नफरत करता है और सच्ची रोशनी से डरता है, और सच्चे परमेश्‍वर के आगमन को दूर भगाने की इच्छा रखता है, क्योंकि केवल यही परमेश्‍वर का अनुसरण करने वालों और सही रास्ते पर चलने वालों को क्रूरता से चोट पहुंचा सकता है और उनके साथ अमानवीय अत्याचार कर सकता है। परमेश्वर ने अब देह धारण कर ली है और शैतान की खोह के भीतर काम करने के लिए आया है, और उसने मेरे लिए ऐसी स्थिति से गुजरने का इंतजाम किया ताकि मैं, जो शैतान के गहरे धोखे में थी, यह समझ सकूं कि दुष्‍ट शैतान ही है जो लोगों को सताता और खा जाता है, कि उसके अंधेरे राज से परे प्रकाश है, और यह कि एक सच्चे परमेश्‍वर हैं जो हम पर नज़र रखते हैं और दिन-रात हमारी जरूरतें पूरी करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के आगमन ने मुझ तक सच्चाई और प्रकाश को पहुंचाया है, और आखिरकार मैंने सीसीपी सरकार के राक्षसी चेहरे को देख लिया है जो हर दिन खुद को "महान, सम्मानजनक, और न्‍यायोचित" के रूप में पेश करती है, जिससे मेरे मन में सीसीपी सरकार के लिए गहरी घृणा पैदा हो गई है। उनके आने से मैं सत्य का अनुसरण करने के अर्थ और मूल्य को समझ सकी हूं और जीवन में प्रकाश के मार्ग को देख सकी हूं। जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा उतना ही मैं इसे समझ गई, और मैंने अपने भीतर एक ताकत को उदय होते हुए महसूस किया जिससे मुझे अधिकारियों की क्रूर यातना का सामना करने में मदद मिली। मेरा शारीरिक दर्द भी कम हो गया, और मैं गहराई से जान गई कि परमेश्‍वर मेरी रक्षा कर रहे थे और यातना देकर कुबूल करवाने के पुलिस के प्रयासों से बच निकलने में मेरी में मदद कर रहे थे।

अंत में, पुलिस ने देखा कि उन्हें मुझसे कुछ नहीं मिल सकता है, इसलिए उन्होंने मुझ पर "सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने" का आरोप लगाया और मुझे नज़रबंदी गृह ले गए। सीसीपी सरकार उन जगहों पर कैदियों से मशीनों की तरह काम करवाती है, उन्हें दिन भर बिना रुके काम करने के लिए मजबूर करती है। मैं रोज़ रात पाँच घंटे की नींद भी नहीं ले पाती थी, और हर दिन मुझे इतनी थकान हो जाती थी कि मुझे लगता था कि मेरा पूरा शरीर टूट रहा है। इसके बावजूद, सुधार अधिकारी कभी मुझे भरपेट नहीं खाने देते थे। मुझे खाने में केवल दो छोटी पावरोटियां और कुछ सब्जियां दी जाती थीं जिसमें तेल की एक बूंद भी नहीं होती थी। जितने समय मैं वहां बंद रही, उस दौरान कई बार दुष्‍ट पुलिस मुझसे पूछताछ करने आई। आखिरी बार जब उन्होंने मुझसे पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि वे मुझे श्रम के माध्यम से सुधार की दो साल की सजा देने जा रहे हैं। बेखटके, मैंने उनसे पूछा, "क्या राज्य के कानून में विश्वास की स्वतंत्रता का प्रावधान नहीं है? मुझे श्रम के माध्यम से सुधार की दो साल की सजा क्यों दी जा रही है? मै बीमार हूँ। अगर मैं मर गई, तो मेरे बच्चे और माता-पिता क्या करेंगे? उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है, वे तो भूखे मर जाएंगे।" करीब पचास की उम्र के एक पुलिसकर्मी ने कड़ाई से कहा,"तुम्हें सजा सुनाई जाएगी क्योंकि तुमने राज्य का कानून तोड़ा है, और इसके पुख्ता सबूत हैं!" मैंने कहा,"परमेश्‍वर में विश्वास करना अच्छी बात है। मैं हत्या नहीं करती, मैं आगजनी नहीं करती, मैं कुछ बुरा नहीं करती। मैं सिर्फ एक अच्छा इंसान बनना चाहती हूं। तो आप मुझे अपना विश्वास क्यों नहीं रखने देते?" वे मेरे मुंहतोड़ जवाब पर भड़क उठे, और उनमें से एक ने आकर मुझे एक तमाचा मारकर मुझे फर्श पर गिरा दिया। फिर उन्होंने मुझे ज़बरदस्ती फर्श पर लिटा दिया। उनमें से एक ने मेरे कंधों को नीचे दबाया, जबकि दूसरे ने मेरे पैरों को नीचे दबाया। एक दूसरे ने अपने चमड़े के जूतों से मेरे चेहरे को कुचला और बेशर्मी से कहा, "आज तो बाजार का दिन है। हम तुझे नंगा करके बाजार में चारों ओर घुमाएंगे!" यह कहते हुए, उसने मेरे निचले शरीर और मेरे सीने को कसकर पैरों से कुचला। वह एक पैर से मेरी छाती पर खड़ा हो गया और दूसरे पैर को खतरनाक ढंग से उठाया, और फिर ऐसा बार-बार किया, कभी-कभी मेरी जांघों को कुचल देता था। मेरी पतलून कुचले जाने से फट गई थी और मियानी भी फट गई थी। मैं इतना अपमानित महसूस कर रही थी कि मेरी आँखों से आंसू बह निकले और मुझे लगा जैसे मैं टुकड़ों में बिखर जाऊँगी। मैं उन शैतानों द्वारा इस तरह अपमानित होना सहन नहीं कर सकती। मैंने महसूस किया कि इस तरह से जीना बहुत मुश्किल था, और इससे तो अच्‍छा था कि मैं मर जाऊं। इस भयानक व्‍यथा को महसूस कर ही रही थी कि, मेरे मन में परमेश्‍वर के ये वचन आए: "हमारे लिए परमेश्वर का प्यार चुकाने का समय आ गया है। यद्यपि हम उपहास, अपयश और उत्पीड़न की किसी छोटी मात्रा के अधीन नहीं हैं क्योंकि हम परमेश्वर में विश्वास के मार्ग का अनुसरण करते हैं, किंतु मेरा मानना है कि यह एक सार्थक चीज है। यह महिमा की बात है, शर्म की नहीं, और कुछ भी हो, जिन आशीषों का हम आनंद लेते हैं वे बिल्कुल भी मामूली नहीं है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "मार्ग... (2)")। "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं" (मत्ती 5:10)। परमेश्‍वर के वचनों ने तुरंत मेरी स्मृति को जगा दिया। मैंने सोचा, "आज जो दर्द और अपमान मुझे झेलना पड़ रहा है, वह अत्यंत अर्थवान और मूल्यवान है। मैं यह कष्‍ट उठा रही हूं क्योंकि मैं परमेश्‍वर में विश्वास करती हूं और सही मार्ग पर चलती हूं, और यह कष्‍ट सत्यऔर जीवन पाने के लिए उठाया जा रहा है। यह कष्‍ट शर्मनाक नहीं है, बल्कि यह परमेश्‍वर का आशीर्वाद है। बस मैं परमेश्‍वर की इच्छा को नहीं समझती, और जब मुझे यह दर्द और अपमान सहना पड़ता है, तो मैं इसे समाप्त करने के लिए मरना चाहती हूं, मैं परमेश्‍वर के प्यार या आशीर्वाद को बिल्कुल नहीं देख पाती। क्‍या मैं परमेश्‍वर को दुख नहीं पहुंचा रही हूं?" इन बातों को सोचते हुए, मैंने परमेश्‍वर के प्रति बहुत ऋणी महसूस किया, और चुपचाप मैंने एक संकल्प किया: "ये शैतान मुझे चाहे जैसे भी लज्जित करें और सताएं, मैं कभी शैतान आगे नहीं झुकूंगी। यहां तक कि अगर मेरे पास केवल एक सांस बची रही, तो मैं इसका सही उपयोग करते हुए परमेश्‍वर के लिए गवाही दूंगी, और परमेश्‍वर को निराश नहीं करूंगी।" दो दिन और दो रात तक मुझे यातनाएं देने के बाद भी, उन्‍हें मुझसे कुछ नहीं मिला, और इसलिए उन्होंने मुझे नगर निगम के नज़रबंदी गृह में भेज दिया।

नजरबंदी गृह में, मैंने पिछले कुछ दिनों में अनुभव की गई हर चीज के बारे में सोचा और धीरे-धीरे, मैं समझ गई कि इस तरह के उत्पीड़न और प्रतिकूलता से गुजरना असल में मेरे प्रति परमेश्‍वर का अधिक गहरा प्रेम और उद्धार था। परमेश्‍वर कष्‍ट सहने की मेरी इच्छा और संकल्‍प को मज़बूत करने के लिए और मेरे अंदर सच्चा विश्वास और प्रेम पैदा करने के लिए इस स्थिति का उपयोग करना चाहते थे ताकि मैं ऐसी बुरी स्थितियों में आज्ञाकारी बनना सीख सकूं और उनके लिए साक्षी बन सकूं। परमेश्‍वर के प्यार के सामने, मुझे याद आया कि कैसे जब मुझे क्रूर यातनाएं दी जा रही थीं तो मैं बार-बार कमजोर और विद्रोही बन जाती थी, और इसलिए मैं पश्‍चाताप करते हुए परमेश्‍वर के समक्ष आई: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! मैं इतनी अंधी और अज्ञानी हूं। मैंने आपके प्यार और आशीर्वाद को नहीं पहचाना, लेकिन हमेशा यही सोचा कि शारीरिक कष्ट एक बुरी बात है। अब मैं समझ पा रही हूं कि अभी जो कुछ भी मेरे साथ हो रहा है वह आपका आशीर्वाद है। हालाँकि यह आशीर्वाद मेरी अपनी धारणाओं के विपरीत है, और बाहर से ऐसा लग सकता है, कि मेरी देह दर्द और अपमान सह रही है, पर वास्‍तव में आप मुझे जीवन का सबसे अनमोल खज़ाना दे रहे हैं, यह शैतान पर आपकी जीत का प्रमाण है, और इससे भी अधिक, इसके द्वारा आप मुझे सबसे सच्चा, सबसे वास्‍तविक प्यार दिखा रहे हैं। हे परमेश्‍वर! आपके प्यार और उद्धार का प्रतिदान देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं केवल आपको अपना दिल दे सकती हूँ और आपके लिए गवाही देने के वास्‍ते यह सब दर्द और अपमान सह सकती हूँ!"

पूरी तरह हैरान करने वाली बात यह थी कि, जब मैंने खुद को जेल जाने के लिए तैयार कर लिया था और परमेश्‍वर को संतुष्ट करने के लिए दृढ़ संकल्पि‍त हो गई थी, तभी परमेश्‍वर ने मेरे लिए बच निकलने एक रास्ता खोल दिया। नज़रबंदी गृह में मेरे 13 वें दिन, परमेश्‍वर ने ऐसा किया कि मेरे बहनोई ने पुलिस को बाहर बुलाकर उन्हें कुछ उपहार दिए, जिनकी कीमत 3,000 युआन थी। उन्होंने 5,000 युआन भी पुलिस को सौंप दिए ताकि वे मुकदमे तक मुझे जमानत पर छोड़ दें। जब मैं घर पहुंची, तो मैंने देखा कि मेरे पैरों का मांस दुष्‍ट पुलिस अधिकारियों द्वारा कुचले जाने से कड़ा और काला हो गया था और मुझे ठीक होने में तीन महीने लग गए। पुलिस द्वारा मुझ पर किए गए अत्याचार से मेरे मस्तिष्क और हृदय को भी काफी क्षति पहुंची थी और मुझे उनके प्रभाव सहने पड़े। मैं आज भी इस दर्द की तकलीफ़ सहती हूं। अगर परमेश्‍वर की सुरक्षा नहीं होती, तो मैं शायद लकवाग्रस्‍त होकर बिस्तर पर पड़ी होती। अब जो मैं एक सामान्य जीवन जी सकती हूँ, यह पूरी तरह परमेश्‍वर के महान प्रेम और संरक्षण के ही कारण है।

इस उत्पीड़न और प्रतिकूलता का अनुभव करने के बाद, मैंने वास्तव में सीसीपी सरकार के परमेश्‍वर-विरोधी, राक्षसी सार को देख लिया था। मैंने यह भी स्पष्ट रूप से समझ लिया कि यह दुष्‍ट है और परमेश्‍वर की कट्टर शत्रु है। मैं अपने दिल के भीतर इसके प्रति कभी खत्‍म न होने वाली घृणा रखती हूं। साथ ही, मैंने पहले की तुलना में परमेश्‍वर के प्रेम को अधिक गहराई से समझा, और मुझे यह समझ में आया कि परमेश्‍वर लोगों में जो भी काम करते हैं, वे उन्हें बचाने के लिए किए जाते हैं और उनसे प्रेम के कारण किए जाते हैं। न केवल परमेश्‍वर अनुग्रह और आशीर्वाद के माध्यम से हमारे लिए अपना प्यार दिखाते हैं, बल्कि इससे भी अधिक, वह इसे कष्ट और प्रतिकूलता के माध्यम से दिखाते हैं। पुलिस द्वारा मुझे दी गयीक्रूर यातनाओं और अपमान के दौरान दृढ़ बने रहने में सक्षम होकर और राक्षसों की खोह से बाहर निकलने में सक्षम होकर, मैं वास्तव में इस बात को समझ सकी कि यह सब मुझे विश्‍वास और ताकत देने वाले सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों के कारण हुआ। इससे भी अधिक, यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के प्रेम से प्रेरित थी, जिसने मुझे एक-एक करके शैतान पर विजय पाने और राक्षसों की खोह से मुक्त होने में सक्षम बनाया। मुझे प्यार करने और मुझे बचाने के लिए परमेश्‍वर का धन्यवाद, सारी महिमा और स्तुति सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की हो!

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