जीवन के चमत्कार

30 अगस्त, 2020

यंग ली, चीन

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी अन्य शक्ति से जीत सकती है; इससे भी अधिक, यह किसी भी शक्ति से बढ़कर है। उसका जीवन अनंत है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसकी जीवन शक्ति को किसी भी सृजित प्राणी या शत्रु शक्ति द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है। समय और स्थान चाहे जो हो, परमेश्वर की जीवन शक्ति विद्यमान रहती है और अपने देदीप्यमान तेजस्व से चमकती है। स्वर्ग और पृथ्वी बड़े बदलावों से गजर सकते हैं, परंतु परमेश्वर का जीवन हमेशा एक समान ही रहता है। हर चीज का अस्तित्व समाप्त हो सकता है, परंतु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा, क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत और उनके अस्तित्व का मूल है। मनुष्य का जीवन परमेश्वर से उत्पन्न होता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य से उत्पन्न होता है। प्राणशक्ति से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर की प्रभुसत्ता से बाहर नहीं हो सकती, और ऊर्जा से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकती। इस प्रकार, वे चाहे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पित होना ही होगा, प्रत्येक को परमेश्वर की आज्ञा के अधीन रहना ही होगा, और कोई भी उसके हाथों से बच नहीं सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। परमेश्वर के इन वचनों ने मेरे दिल को छू लिया। जब सुसमाचार का प्रचार करने के कारण सीसीपी की पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर बेरहमी से यातना दी, तब परमेश्वर के वचनों ने ही उन शैतानों की तबाही पर विजय पाकर उनके चंगुल से पीछा छुड़ाने में मेरा मार्गदर्शन किया। मैंने परमेश्वर के वचनों के अधिकार का अनुभव किया और मेरे अंदर उसका अनुसरण करने की आस्था और गहरी हो गई।

बात 23 नवंबर, 2005 की है। शाम को 7 बजे के बाद मैं दो बहनों के साथ एक सभा में थी जब अचानक पाँच अफसर अंदर घुस आये और हमें घेर लिया। उन्होंने डाकुओं की तरह उस जगह को तहस-नहस कर दिया, हमारे बैग और परमेश्वर के वचनों की किताबें जब्त कर लीं, फिर हमें हथकड़ी पहनाकर पुलिस थाने ले गए। मैं बहुत डरी हुई थी। मैं बार-बार परमेश्वर को पुकार रही थी कि वो आकर हमें बचाये। मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और अपने को मेरे द्वारा दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। मैं जानती थी सब कुछ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के हाथों में है, इसलिए जब तक परमेश्वर मेरे साथ है, भला मुझे क्या डर? इससे मुझे परमेश्वर पर भरोसा करके उसकी गवाही देने का विश्वास मिला। थाने पहुँचने पर, पुलिसवालों ने हमें मेटल की कुर्सियों पर बिठाकर हथकड़ियाँ पहना दीं। वहाँ करीब बारह अफसर बारी-बारी से हमसे सवाल-जवाब करने लगे। वो कलीसिया के अगुआ का नाम और पता जानना चाहते थे। उन्होंने जितने भी सवाल पूछे, मैंने मुँह नहीं खोला। अगले दिन शाम को वे लोग हम तीनों को एक नज़रबंदी केंद्र लेकर गये। उस रात बहुत बर्फ़ पड़ रही थी, मगर उन्होंने हमारे कोट छीन लिए। हमारे पास सिर्फ़ तन ढकने के कपड़े थे। हम पूरे रास्ते ठंड से कांपते रहे।

वो हमें किसी भूमिगत कैदखाने में लेकर आये जहाँ मुझे कैदियों की पिटाई और चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनायी दे रही थीं। ये सब देखकर मैं सुन्न हो गयी। ये धरती पर नर्क जैसा था। पुलिस ने हमें एक कोठरी में धकेल दिया और दूसरे कैदियों से हमारी "अच्छी खातिरदारी" करने को कहा। इससे पहले कि मुझे कुछ पता चलता, मुख्य कैदी ने मुझे ठोकर मारकर ज़मीन पर गिरा दिया, और फिर मुझे लातों से मारती रही। इतनी पीड़ा हुई कि मैं ज़मीन पर लुढ़कती चली गई और रोने लगी। फिर वो हमारे सारे कपड़े फाड़कर हमें घसीटते हुए बाथरूम में ले आये और ठंडे पानी का शॉवर चला दिया। हड्डियों को जमा देने वाला पानी मुझ पर डाला गया। मैं लगातार कांप रही थी और मेरे दांत किटकिटा रहे थे। वो वाकया बहुत दर्दनाक था। लग रहा था जैसे मेरी खाल उधेड़ी जा रही हो। जल्दी ही मैं बेहोश होकर गिर गयी। फिर होश में आने पर वो तब तक मुझे पीटते रहते जब तक थक न गये। मेरी हालत खराब होने लगी, मैंने सोचा पता नहीं ये लोग मेरे साथ और क्या-क्या करेंगे, क्या मैं ये सब सह भी पाऊँगी? जब मैं पीड़ा में थी, तब परमेश्वर ने मुझे अपने वचनों के इस भजन को याद करने के लिए प्रबुद्ध किया: "तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। ... तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। मैं मन ही मन ये भजन गाती रही, इससे मुझे काफ़ी प्रोत्साहन मिला। शैतान मुझे चोट तो पहुँचा सकता है, लेकिन अगर मैंने परमेश्वर पर भरोसा रखा, तो वो मुझे इन राक्षसों के अत्याचारों पर विजय दिलाएगा और डटे रहने की शक्ति देगा। ये मुझे परमेश्वर को ठुकराने और उसका विरोध करने पर मजबूर करने के लिए शैतान की चाल थी। मैं जानती थी मुझे न सिर्फ़ उसकी चाल को नाकाम करना है, बल्कि परमेश्वर के लिए गवाही देकर शैतान को शर्मिंदा करना है।

21 दिन बीतने के बाद, पुलिस ने मुझे काउंटी पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो भेज दिया। उन्होंने सवाल-जवाब करने के लिए मुझे एक मेटल की कुर्सी पर बिठा दिया। ये देखकर कि मैं ज़बान नहीं खोलूँगी, उस दिन शाम को उन्होंने मुझे हथकड़ियाँ पहनाकर खिड़की की सलाखों से लटका दिया, मुझे इस तरह से बाँध दिया गया कि मेरे पैर ज़मीन तक न पहुंचें। उनमें से एक ने कहा, "मुझमें बहुत ज़्यादा सब्र है। मैं तुम्हें तुम्हारी कलीसिया के अगुआ का नाम बताने के लिए मजबूर कर दूँगा।" कुछ समय बाद मेरी कलाइयों में भयंकर दर्द होने लगा। मैं बार-बार परमेश्वर से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करती रही, ताकि मैं शैतान के सामने कभी आत्मसमर्पण न करूँ। मैं अब भी चुप थी, इसलिए वो मुझे एक पूछताछ वाले कमरे में ले गये। जैसे ही मैं अंदर गयी, मैंने देखा यातना देने वाले सभी तरह के उपकरण वहां मौजूद थे। दीवार पर हर साइज़ के पुलिसिया डंडे लटके थे, चमड़े के चाबुक, कोड़े, और दीवार के पास एक टाइगर बेंच भी थी। कुछ पुलिसवाले करीब बीस साल के एक लड़के को बिजली के डंडों और कोड़ों से मार रहे थे। पिटाई से उसकी खाल इतनी ज्यादा उधेड़ दी गयी थी कि उसे पहचानना मुश्किल हो गया था। तभी, एक महिला अफसर ने आकर बिना कुछ कहे मुझे क्रूरता से जोरदार लात मारी, फिर मेरे बाल पकड़कर मेरा सिर दीवार पर दे मारा। मेरा सिर घूम रहा था, लग रहा था जैसे मेरा सिर फटकर दो टुकड़े हो जाएगा। मुझे पीटते हुए, उसने क्रूरता से कहा, "अगर तुमने हमारे सवालों के जवाब नहीं दिये, तो तुम्हें मार दिया जाएगा!" मुझे डराने के लिए और दो अफसर कूद पड़े: "हमारे पास अलग-अलग थाने से लोग आते हैं। हमें समय की कोई कमी नहीं। एक महीना, दो महीने—चाहे जितना भी समय लगे। जब तक तुम जवाब नहीं दोगी, हम तुमसे सवाल करते रहेंगे।" उन्हें ऐसा कहते सुनकर, और मेरे ख़िलाफ़ उनके बर्बर इरादों को जानकर और जिस तरह वो उस लड़के पर अत्याचार कर रहे थे, उसे देखकर मैं काफ़ी डर गयी। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। मैं इतना डर गयी थी कि अपने ऊपर होने वाली यातनाओं को सहन करने की शक्ति खो दी। मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की। तभी, मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचनों से मुझे पता चला कि शैतान मौत से डर की हमारी कमजोरी का फ़ायदा उठाता है ताकि हम परमेश्वर को धोखा दें। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है, मेरी जिंदगी और मौत पर शैतान का वश कैसे हो सकता है? मुझे अपना जीवन समर्पित कर परमेश्वर के लिए गवाही देनी है और शैतान को नीचा दिखाना है! इस विचार ने मुझे विश्वास और हिम्मत दी। मेरी चुप्पी से चिढ़कर, एक अफसर मुझ पर चिल्लाया, "मैं अभी तुम्हें दिन में तारे दिखाता हूँ। तुम्हें लगता है मैं तुम्हें काबू नहीं कर सकता?" वो दोबारा मुझे उन हथकड़ियों से खिड़की पर लटकाकर बिजली वाले डंडे से पीटने लगे। बिजली के उन तेज़ झटकों के कारण मेरा शरीर पूरी तरह से अकड़ गया। मैं जितना संघर्ष करती, हथकड़ियाँ उतनी ही कड़ी होती जातीं, लगा जैसे मेरे हाथ टूट कर गिर जाएंगे। मेरा पूरा शरीर गहरी पीड़ा में था। दो अफसर बारी-बारी से मुझे डंडों से पीट रहे थे। मेरा शरीर अकड़ गया और मैं सुन्न पड़ गयी। मैं अपने होश खोने लगी और आखिर में बेहोश हो गयी। एक बार ठंड से मेरी आँख खुली, ठंडी हवा के कारण मेरा शरीर जम गया था। मैं दोबारा अपने होश खोने लगी, लेकिन मुझे विश्वास था: मैं हिम्मत नहीं हार सकती, मुझे गवाह बनना है, चाहे मेरी मौत ही क्यों न हो जाये। मैंने प्रभु यीशु के बारे में सोचा, जब वह मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए क्रूस पर चढ़ गया था। उस पर बहुत ज़्यादा अत्याचार किये गए, खून की आख़िरी बूँद गिरने तक उसे क्रूस पर जिंदा लटकाकर रखा गया। परमेश्वर ने मानवजाति के उद्धार के लिये कितना कुछ सहा है। परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचकर वाकई मेरा दिल भर आया। मैंने ये प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! तुमने मुझे ये जीवन दिया है। अगर तुम मुझसे मेरा जीवन मांगोगे, तो मैं ख़ुशी-ख़ुशी दे दूँगी। भले ही शैतान मुझे तकलीफ़ देकर मौत के दरवाज़े तक पहुँचा दे, मैं तुम्हारे लिए गवाही देकर उसे शर्मिंदा करूंगी!" मेरा मन थोड़ा शांत होने लगा, मैंने पतरस और स्टीफन जैसे प्रेरितों के बारे में सोचा जो परमेश्वर के लिए शहीद हो गए। मैं मन ही मन इस भजन को गाती रही, जो मुझे अच्छे से याद था : "परमेश्वर की इच्छा और व्यवस्था के कारण ही, मैं कर रही हूँ दुख और इम्तहान का सामना। हार नहीं मान सकती, छिप नहीं सकती। परमेश्वर की महिमा है सबसे पहले। दुख में, परमेश्वर के वचन मेरा मार्गदर्शन करते हैं, मेरी आस्था को पूर्ण बनाते हैं। परमेश्वर के लिए मैं हूँ पूरी तरह समर्पित, मर भी जाऊं तो क्या, परमेश्वर की इच्छा है सबसे महान। भविष्य और फ़ायदे-नुकसान की परवाह किये बिना, मैं सिर्फ़ परमेश्वर की संतुष्टि चाहती हूँ। शानदार गवाह बनूँगी और शैतान को शर्मिंदा करूंगी, परमेश्वर की महान महिमा के लिए" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। इस भजन को गाकर मेरे दिल को सुकून और मुझे साहस मिला। मैंने संकल्प लिया, चाहे मुझे कितनी भी यातना पहुँचाई जाये, मैं परमेश्वर के लिए गवाही दूँगी।

अगली सुबह एक अफसर ने धमकाते हुए कहा, "तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो पिछली रात तुम ठंड से मरी नहीं। अगर तुमने आज हमें सब कुछ नहीं बताया, तो तुम्हारा परमेश्वर भी तुम्हें नहीं बचा सकेगा!" इस पर, मैंने सोचा, "सब कुछ परमेश्वर ने बनाया है और ये सब उसके हाथों में है। हमारी किस्मत भी उसी के हाथों में है। मेरे जीवन पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं—ये परमेश्वर के हाथों में है!" एक अफसर ने फिर मुझे अपने बिजली वाले डंडे से मारा, मुझे बिजली का जोरदार झटका लगा। मैं असहनीय पीड़ा में थी, छटपटाने और रोने के सिवा कुछ नहीं कर पा रही थी, और वो बकवास करते जा रहे थे, ईशनिंदा की बातें कर रहे थे। मुझे गुस्सा आ रहा था। वो वाकई परमेश्वर‌ विरोधी शैतान के पागल राक्षस थे! वो मुझे बिजली के झटके देते रहे। मैं अपनी सहनशक्ति खोती जा रही थी और कमज़ोर महसूस करने लगी थी, इसलिए मैंने अपनी सुरक्षा के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। तभी, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : "परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी अन्य शक्ति से जीत सकती है; इससे भी अधिक, यह किसी भी शक्ति से बढ़कर है। उसका जीवन अनंत है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसकी जीवन शक्ति को किसी भी सृजित प्राणी या शत्रु शक्ति द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है। समय और स्थान चाहे जो हो, परमेश्वर की जीवन शक्ति विद्यमान रहती है और अपने देदीप्यमान तेजस्व से चमकती है। स्वर्ग और पृथ्वी बड़े बदलावों से गजर सकते हैं, परंतु परमेश्वर का जीवन हमेशा एक समान ही रहता है। हर चीज का अस्तित्व समाप्त हो सकता है, परंतु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा, क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत और उनके अस्तित्व का मूल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे बहुत हिम्मत दी। प्रभु यीशु ने अपने एक वचन से लाज़र को जीवनदान दिया और वह अपने मकबरे से बाहर निकल आया। अगर परमेश्वर नहीं चाहता कि मैं उस दिन मरूं, तो शैतान चाहे कितनी भी बर्बरता कर ले, वो मुझे छू नहीं सकता। मैं परमेश्वर की महिमा के लिए कुछ भी करने को तैयार थी, फिर चाहे मेरी मौत ही क्यों न हो जाये। जब मैंने जीने-मरने की सारी चिंता छोड़ दी, तभी एक चमत्कार हुआ। उनके लगातार बिजली के झटकों के बावजूद, मुझे कोई पीड़ा या कष्ट नहीं हुआ। मैं बहुत सजग भी महसूस कर रही थी। मैं अच्छी तरह जानती थी कि परमेश्वर मेरी देखभाल और सुरक्षा कर रहा है। मैंने परमेश्वर के वचनों के अधिकार का अनुभव किया जिससे मेरी आस्था और भी पक्की हो गयी।

उस रात पुलिसवालों ने मुझे यातना देने का नया तरीका ढूँढा। उन्होंने मुझे एक खिड़की के सामने हथकड़ियों से लटका दिया और बारी-बारी से देखते रहे कहीं मैं सो तो नहीं गई। जैसे ही मेरी आँख लगती, वो मुझे थप्पड़ मारकर जगा देते। मैंने दो दिन तक न कुछ खाया, न पिया। मुझमें बिल्कुल भी ताकत नहीं थी और मेरी आँखें सूज गयी थीं। ठंडी हवा के कारण मेरा शरीर पूरी तरह काँप रहा था। मुझे क्रूरता से घूरते हुए, पैर पर पैर चढ़ाये पुलिसवालों को सामने देखकर, मुझे लगा जैसे मेरे सामने नर्क के राक्षस बैठे हों। मेरा खून खौल रहा था। परमेश्वर ने इंसान को बनाया है, इसलिये उसकी आराधना करना सही और स्वाभाविक है, मगर सीसीपी इसकी इजाज़त नहीं देती। वो पागलों की तरह परमेश्वर का विरोध करती है और विश्वासियों पर बुरी तरह से क्रूर अत्याचार करती है। मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश को याद किया : "हज़ारों सालों से यह भूमि मलिन रही है। यह गंदी और दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए,[1] क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर ज़बर्दस्त पहरेदारी[2] है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? ... धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों ने मेरे सामने सीसीपी के परमेश्वर विरोधी दुष्ट सार को और भी स्पष्ट कर दिया। मैंने कसम खाई कि मैं इसे त्याग दूँगी। अंदर ही अंदर, मैं चीख रही थी, "राक्षसो! तुमने सोचा भी कैसे कि मैं परमेश्वर को धोखा दूँगी?" पाँचवी रात तक, मेरे हाथ खून से लथ-पथ, पूरी तरह से सूज कर सुन्न पड़ गये थे। जैसे मेरा पूरा शरीर टूट कर बिखर गया हो। मुझे लगा जैसे असंख्य कीड़े मुझे अंदर से काटकर खोखला कर रहे हैं। मैं बता नहीं सकती वो कितना दर्दनाक था। इतने दिनों तक खाना-पीना न मिलने के कारण मैं भूख से सूखी पड़ गई थी। मुझमें बिल्कुल भी ताकत नहीं थी और मैं ठंड से काँप रही थी। मुझसे अब और नहीं सहा जा रहा था। मुझे लगा अगर ऐसे ही चलता रहा तो मैं भूख या प्यास से दम तोड़ दूँगी। मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, ताकि मुझे शैतान की बेरहम यातना पर विजय पाने की हिम्मत मिले। तभी, परमेश्वर ने मुझे इन वचनों से प्रबुद्ध किया : "मनुष्य का जीवन परमेश्वर से उत्पन्न होता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य से उत्पन्न होता है। प्राणशक्ति से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर की प्रभुसत्ता से बाहर नहीं हो सकती, और ऊर्जा से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकती" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। मैंने सोचा, "ये सच है। मेरा जीवन परमेश्वर की देन है और वही मुझसे इसे छीन सकता है। शैतान की यातना मुझे मार नहीं सकती।" इस ख्याल के आते ही, मुझे खुद पर शर्म आई कि परमेश्वर को लेकर मेरी आस्था और ज्ञान कितना कम है। मुझे ये भी पता चला कि परमेश्वर चाहता था मैं इस कठिन हालात से सीख लूँ "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा" (मत्ती 4:4)। मैंने मन ही मन प्रार्थना की : "सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मेरा जीवन तुम्हारे हाथों में है। मैं तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के अनुरूप चलना चाहती हूँ, चाहे मेरी मौत ही क्यों न हो जाये!" प्रार्थना करके मुझे थोड़ी हिम्मत मिली, अब मुझे भूख-प्यास नहीं लग रही थी। उस दिन शाम को 8 बजे पुलिसवाले फिर आये। ये देखकर कि मैं अब भी कुछ नहीं बोल रही हूँ, वो मुझे तब तक मारते रहे जब तक थक नहीं गए। इसके बाद वो बारी-बारी से मुझ पर और भी ज़्यादा कड़ी नज़र रखने लगे, ताकि मैं हमेशा उनकी नज़रों के सामने रहूँ। जैसे ही मेरी आँख लगती, वो मुझे मुड़ी हुई मैगज़ीन से मारकर जगा देते थे। मैं जानती थी वो मेरा विश्वास तोड़ना चाहते हैं, ताकि मैं घबराहट में कलीसिया के बारे में कुछ बातें उगल दूँ। पूरी तरह कमज़ोर पड़ने के कारण मेरा दिमाग नहीं चल रहा था। मुझे नहीं पता था कि मैं कितनी देर और ये सब सह सकूँगी। मैं इतनी डरी हुई थी कि मुझसे और सहा नहीं जा रहा था, लगा जैसे मैं न चाहकर भी परमेश्वर को धोखा दे दूँगी। मैंने मन ही मन ये प्रार्थना की : "परमेश्वर, शायद ये सब मैं अब और न सह पाऊँ। मुझे डर है कहीं मैं तुम्हें धोखा न दे दूँ। मेरी रक्षा करो। मैं यहूदा बनने के बजाय मरना पसंद करूँगी।" मेरे मस्तिष्क में धुंध छाने लगी। पता नहीं मैं जिंदा भी थी या मर गयी थी। उसी धुंध में, मुझे लगा जैसे मेरा शरीर हल्का हो गया और हथकड़ियाँ ढीली पड़ गईं। छठे दिन सुबह को पुलिसवालों ने मुझे थप्पड़ मारकर जगाया और चिल्लाने लगे, "तुमने हमारा दिमाग खराब कर रखा है। तुम पर नज़र रखने के चक्कर में खुद हम ठीक से नहीं सो पा रहे। अगर तुमने आज अपना मुँह नहीं खोला, तो मैं हमेशा के लिए तुम्हारा मुँह बंद कर दूँगा। मैं तुम्हें पागल बना दूँगा। सबको बता दूँगा कि परमेश्वर में विश्वास करने से तुम्हें दौरे पड़ते हैं, ताकि सभी उसका साथ छोड़ दें!" उस पापी राक्षस के मुँह से ऐसे झूठ सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था! वो तुरंत काले द्रव से भरा एक कटोरा मेरे पास लेकर आये, ये देखकर मेरा कलेजा मुँह को आ गया। वो मुझे पागल करने वाली दवा देना चाहते थे। मैंने अपनी सुरक्षा के लिए परमेश्वर को बेतहाशा पुकारा। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "उसके कर्म सर्वव्यापी हैं, उसकी सामर्थ्य सर्वव्यापी है, उसकी बुद्धि सर्वव्यापी है, और उसका अधिकार सर्वव्यापी है। ... सभी चीज़ें उसकी निगाह के नीचे मौजूद हैं, और इतना ही नहीं, सभी चीज़ें उसकी संप्रभुता के अधीन रहती हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों ने दोबारा मुझे विश्वास और हिम्मत दी। सभी चीज़ों पर परमेश्वर का राज है। ब्रह्मांड की हर चीज़ उसके हाथों में है। शैतान हमारे शरीर को चोट पहुँचा सकता है, लेकिन हमारे जीवन पर उसका कोई अधिकार नहीं। अय्यूब के इम्तहान में, शैतान सिर्फ़ उसके शरीर को ही नुकसान पहुँचा सका। परमेश्वर ने अय्यूब के जीवन को खतरे में नहीं पड़ने दिया। शैतान मुझे पागल करने के लिए वो दवा खिलाना चाहता था, ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ, उसे ठुकराऊं और उसके नाम को शर्मिंदा करूं। लेकिन ये परमेश्वर की अनुमति के बिना मुमकिन नहीं था। यह सोचकर मुझे सुकून मिला। एक पागल अफसर ने मेरी ठुड्डी पकड़कर उस खट्टे और कड़वे घोल का पूरा कटोरा मेरे मुँह में डाल दिया। वो तुरंत असर करने लगा। मुझे लगा जैसे मेरे अंगों को निचोड़कर चीरा जा रहा हो। बहुत अधिक पीड़ा हो रही थी। मैं सांस भी नहीं ले पा रही थी, मेरा दम घुटने लगा। मेरी आँखें सुन्न पड़ गईं। मुझे सब कुछ दो-दो दिखने लगा था। तभी मैं बेहोश हो गयी। मुझे समय का कुछ पता नहीं चला, मगर मैंने बेहोशी में किसी को कहते सुना, "इसे पीने के बाद वो पक्का पागल हो जायेगी।" मैं जानती थी मैं बिल्कुल ठीक हूँ। ये मेरे लिए एक खुशनुमा एहसास था कि मुझे दौरे नहीं पड़ रहे थे और दिमाग भी काम कर रहा था। वो वास्तव में परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और चमत्कार था। परमेश्वर ने एक बार फिर खतरे से मेरी रक्षा की! मैंने वाकई परमेश्वर की निष्ठा का अनुभव किया। परमेश्वर हमेशा मेरे साथ है। उस काले राक्षस के चंगुल में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरा मार्गदर्शन किया और हर बार मौत के मुँह से मुझे बचाया। मैंने मन ही मन परमेश्वर की प्रशंसा में एक भजन गया। अब परमेश्वर की गवाही देने का मेरा संकल्प और भी ज़्यादा दृढ़ हो गया।

पुलिसवालों ने मुझ पर लगातार छह दिनों तक अत्याचार किया। बिना खाना-पानी के मेरा शरीर टूटकर बिखरने लगा था। ये देखकर कि मैं मरने वाली हूँ, उन्होंने मुझे एक कोठरी में बंद कर दिया। कुछ दिनों बाद उन्होंने दोबारा मुझसे कलीसिया की जानकारी पाने की कोशिश की, लेकिन मैंने मना कर दिया। एक अफसर गुस्से में चिल्लाया, "तुम हद से ज़्यादा जिद्दी हो! मैं छह दिनों तक एक पल भी नहीं सो पाया, मगर तुमने मुझे कुछ नहीं बताया।" उन्होंने मुझे वापस जेल में बंद कर दिया। मैं शैतान की हार देखकर बहुत ही ज़्यादा खुश थी। मैंने बार-बार परमेश्वर का धन्यवाद किया और उसकी स्तुति की। चार महीनों की नज़रबंदी के बाद, सीसीपी सरकार ने मुझ पर "कानून प्रवर्तन को कमज़ोर करने वाले शी जियाओ संगठन का इस्तेमाल करने" का आरोप लगाकर 18 महीनों के कारावास की सजा सुनाई।

मार्च 2006 में, मुझे अपनी सजा पूरी करने के लिए एक महिला कारावास में भेज दिया गया। मेरे लिए वो धरती का नर्क था। मुझ पर अमानवीय अत्याचार किए गए। मैंने जेल में वो मुश्किल दिन किसी तरह से गुज़ारे, फिर परमेश्वर की देखभाल, सुरक्षा और उसके वचनों के मार्गदर्शन के कारण ही उस नर्क से बाहर निकल पायी। सीसीपी की बेरहम यातनाओं के बाद, मैंने वाकई पागलों की तरह परमेश्वर का विरोध करने वाले इनके राक्षसी सार को देखा। मैंने परमेश्वर के वचनों के अधिकार और सामर्थ्य का भी अनुभव किया। पीड़ा और कमज़ोरी के दौरान, परमेश्वर के वचनों ने ही मुझे विश्वास और हिम्मत दी, उन राक्षसों के अत्याचार पर विजय पाकर गवाह बनने के लिए मेरा मार्गदर्शन किया। मैंने निजी तौर पर ये अनुभव किया कि परमेश्वर हमारे जीवन का सहारा है, वो हमेशा हमारी मदद के लिए मौजूद है, इस तरह परमेश्वर का अनुसरण करने की मेरी आस्था और मजबूत हो गयी!

फुटनोट :

1. "निराधार आरोप लगाते हुए" उन तरीकों को संदर्भित करता है, जिनके द्वारा शैतान लोगों को नुकसान पहुँचाता है।

2. "ज़बर्दस्त पहरेदारी" दर्शाता है कि वे तरीके, जिनके द्वारा शैतान लोगों को यातना पहुँचाता है, बहुत ही शातिर होते हैं, और लोगों को इतना नियंत्रित करते हैं कि उन्हें हिलने-डुलने की भी जगह नहीं मिलती।

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विगत मई 2004 में एक दिन मैं कुछ भाई-बहनों के साथ एक सभा में हिस्सा ले रही थी, तभी 20 से ज्यादा पुलिस अफसरों ने धावा बोल दिया। उन्होंने...

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