प्रभु से फिर से मिलना

02 दिसम्बर, 2018

जियांदिंग, यू.एस.ए.

मेरा जन्म एक कैथलिक परिवार में हुआ था। छोटी उम्र से ही मेरी माँ ने मुझे बाइबल पढ़ना सिखाया था। उस समय, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी गृहयुद्ध के बाद राष्ट्र का पुनर्निर्माण कर रही थी, और चूँकि सीसीपी सभी धर्मों का दमन कर रही थी, इसलिए 20 साल का होने के बाद ही मुझे कलीसिया जाने और उपदेश सुनने का मौका मिला। पुरोहित हमसे अक्सर कहा करते थे: "हम कैथलिकों को हमारे पापों को सही तरीक़े से स्वीकार करना और पश्चाताप करना चाहिए। हमें भलाई करनी चाहिए, बुराई नहीं, और हमेशा मिस्सा में भाग लेना चाहिए। अंत के दिनों के दौरान, प्रभु आने वाला है, वह सभी का न्याय करेगा और लोगों ने पृथ्वी पर जैसा व्यवहार किया होगा, उसके अनुसार वह उन्हें स्वर्ग में या नरक में भेजेगा। सबसे बड़े पापियों को नरक में हमेशा के लिए दंडित किया जाएगा, जबकि छोटे पाप करने वाले लोग स्वर्ग जा सकते हैं यदि वे अपने पापों को प्रभु के सामने कबूल करें और पश्चाताप करें। जो प्रभु में विश्वास नहीं करता है वह कभी भी स्वर्ग तक नहीं पहुँच पाएगा, चाहे वह कितना भी अच्छा क्यों न हो।" जब भी मैं यह सुनता था, तो जन्म से कैथलिक समुदाय का एक सदस्य होने के सौभाग्य को पाने पर मैं आनंदित हुआ करता था। मैं हमेशा स्वयं से और अधिक परिश्रमपूर्वक खोज करने, मिस्सा में अक्सर भाग लेने और पापों को कबूल कर प्रभु के सामने पश्चाताप करने के लिए कहा करता था, जिससे मैं स्वर्ग में जा पाऊँ और नरक में पीड़ित नहीं होऊं। तब से मैंने नियमित रूप से कलीसिया जाने और मिस्सा में भाग लेने का दृढ़ संकल्प विकसित किया। उस समय, पुरोहित ने हमें यह भी बताया था कि वर्ष 2000 में प्रभु वापस आएगा, और इस ख़बर से हम बहुत उत्साहित थे। तो हम सभी ने, प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा करते हुए, नेकी से खोज करना शुरू कर दिया था। लेकिन वर्ष 2000 आया और चला गया और हमें प्रभु की वापसी का कोई संकेत नहीं मिला। हमारी कलीसिया के बहुत से लोगों ने अपनी आस्था खो दी, और मिस्सा में भाग लेने वाले लोग लगातार कम होते गए। मुझे भी कुछ निराशा महसूस हुई, लेकिन मुझे अब भी लगता था कि प्रभु में मेरा विश्वास नहीं डोलेगा, चाहे दूसरे लोग जो भी करें। ऐसा इसलिए था क्योंकि ऐसा कई बार हुआ था जब मैं ख़तरे में पड़ गया था और प्रभु ने मुझे बचाया था और मैं उससे सुरक्षित निकल पाया था। प्रभु की सुरक्षा के बिना मैं बहुत पहले मर गया होता, इसलिए मैं इतना कृतघ्न होने वाला नहीं था कि प्रभु में विश्वास ही खो दूँ।

कुछ सालों बाद मैंने अपने आस-पास के लोगों से सुना कि अमेरिका "धरती पर स्वर्ग" था, और इसलिए यहाँ आने की एक तीव्र इच्छा मुझमें पनपने लगी। दिसंबर 2014 में मैं अपने पूरे परिवार के साथ अमेरिका में आकर बस गया, लेकिन यहाँ जीवन की वास्तविकता बिलकुल भी उस खूबसूरत तस्वीर जैसी नहीं थी जो कि मैंने अपने मन में बनाई थी। शुरुआत में, वहाँ सब कुछ अपरिचित लगता था और हम एक अनजान देश में अजनबियों जैसे थे। पर्यावरण और जलवायु उनसे बहुत अलग थे जिनसे हम चीन में अभ्यस्त थे, और मुझे जल्द ही शारीरिक शिकायतों का सामना करना पड़ा। मुझे अक्सर कमज़ोर और निरुत्साहित महसूस होता था, ज़रा भी ताकत का एहसास नहीं होता था, लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों की जाँच से किसी भी समस्या का पता नहीं चला। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, इसलिए मैंने प्रभु से इस उम्मीद में और भी ज़्यादा गंभीरता से प्रार्थना करना शुरू कर दिया कि वो मेरी रक्षा करेगा। प्रार्थना करते हुए मैं एक ऐसी कलीसिया की तलाश करने लगा जहाँ मैं मिस्सा में भाग ले सकूँ और मैंने अंततः चीनी ईसाइयों की एक कलीसिया को ढूँढ लिया। लेकिन कलीसिया में कुछ बार जाने के बाद मैंने पाया कि वहां का परिवेश साधारण समाज से कुछ ख़ास अलग नहीं था: मंडली के सदस्य ऊपर से मित्रवत थे लेकिन उनका आपसी व्यवहार ताक़त और धन द्वारा शासित था। कलीसिया में इस तरह की स्थिति का सामना कर, मैं बहुत निराश हो गया। मैंने मन ही मन सोचा: "हे प्रभु, तुम कब वापस आओगे? जब तुम लौटोगे, अच्छे लोगों को दुष्ट लोगों से अलग किया जाएगा और संसार को शुद्ध किया जाएगा।" हालांकि मैंने अभी भी मिस्सा में जाना जारी रखा, फिर भी मैं कलीसिया में परमेश्वर की उपस्थिति महसूस करने में सक्षम नहीं हो पाया, और इसने मुझे निराश तथा उदास कर दिया और इससे परमेश्वर में मेरा विश्वास प्रभावित हुआ।

लेकिन फिर एक दिन जुलाई 2015 में, जब मैं राज्य से बाहर काम के लिए गया था, तब मेरी पत्नी का फोन आया। उसने मुझसे बहुत उत्साह से कहा: "प्रभु वापस आ गया है। वह वचनों को व्यक्त कर रहा है और अंत के दिनों के न्याय का कार्य कर रहा है! जल्दी लौट आओ ताकि हम परमेश्वर के नए कार्य को एक साथ स्वीकार कर सकें।" यह सुनकर, मैं कुछ संदेह किये बिना न रह सका: प्रभु वापस आ गया है? वह कैसे संभव है? जब प्रभु वापस आएगा तो वह दुनिया का न्याय करने के लिए लौटेगा, अच्छे लोगों को बुरे लोगों से अलग करेगा। लेकिन अच्छे और बुरे अभी भी एक साथ मिश्रित हैं, तो मेरी पत्नी क्यों कह रही है कि प्रभु वापस आ चुका है? क्या मेरी पत्नी किसी और आस्था पद्धति को अपना लिया है? हम अपने अधिकांश जीवन कैथलिक रहे हैं, अब हमारे लिए इससे हटने का कोई सवाल ही नहीं उठता है! जितनी जल्दी हो सके मैंने अपना काम खत्म किया और मैं घर लौट आया।

जब मैं घर गया तो मैंने अपनी पत्नी से पूछा: "तुम कैसे जानती हो कि प्रभु वापस आ गया है? तुम हमारी पथ से विचलित तो नहीं हुई हो ना? तुम कह रही हो कि प्रभु न्याय के कार्य को करने के लिए लौट आया है, लेकिन अभी भी अच्छे और बुरे लोग मिश्रित हैं, तो यह कैसे हो सकता है कि प्रभु पहले ही लौट आया है? हम प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा कर सकते हैं, लेकिन हम उसके प्रति विश्वासघात नहीं कर सकते!" मेरी पत्नी ने मेरी बात सुनी और फिर धैर्यपूर्वक जवाब दिया: "सब ठीक है, इतने चिंतित मत हो। मैंने खुद ही अभी प्रभु की वापसी के बारे में सुना है। वर्तमान में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया प्रभु की वापसी की गवाही दे रही है और परमेश्वर के घर से शुरू हो चुके न्याय के कार्य को करने के लिए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य को व्यक्त कर रहा है। मैं इस पर बहुत स्पष्ट नहीं हूँ, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के द्वारा व्यक्त किये गए कई वचनों को मैंने ऑनलाइन पढ़ा है और मुझे यकीन है कि वे सब परमेश्वर की ही आवाज़ हैं। प्रभु ने एक बार कहा था 'मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं' (यूहन्ना 10:27)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में जाँच के लिए जाकर हम यह पता लगा सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु है या नहीं, ठीक है ना?" मेरी पत्नी ने जो कहा वह तर्कसंगत लगा, और न्याय के कार्य को करने के लिए प्रभु की वापसी की बाइबल में भविष्यवाणी के अनुसार है, इसलिए अपनी पत्नी के साथ जाकर कलीसिया पर एक नज़र डालने में कोई नुकसान नहीं था, फिर मैं निर्णय ले पाउँगा।

मेरी पत्नी और मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के एक सदस्य के घर गए, जिनका नाम भाई झांग था। भाई वांग और बहन ली, और कुछ अन्य साथी कैथलिक भी आए। यह देखकर कि मेरे साथ काफी लोग थे, मेरे मन को तसल्ली हुई। कुछ शिष्टाचार के बाद, हम सब बैठे और मैंने भाइयों और बहनों से यह पूछा: "प्रभु की वापसी के बारे में मेरी समझ यह है: जब प्रभु न्याय के कार्य को करने के लिए लौटता है, तो अच्छे लोगों को दुष्ट लोगों से अलग किया जाएगा। तब लोग प्रभु द्वारा स्वर्ग में स्वीकार किए जाएँगे और वे उससे मिलेंगे, जबकि दुष्टों को नरक में दंडित होने भेजा जाएगा। आप कहते हैं कि प्रभु वापस आ गया है और वह न्याय का कार्य कर रहा है, तो क्यों हमने इन चीज़ों में से कुछ भी होते नहीं देखा है?" भाई वांग ने जवाब दिया: "भाई, मैं भी पहले ऐसा ही सोचा करता था। मुझे भी लगता था कि प्रभु की वापसी का मतलब था कि अच्छे लोग दुष्ट लोगों से अलग किए जाएँगे, अच्छे लोग स्वर्ग में हमेशा के लिए रहेंगे और दुष्टों को दंडित किया जाएगा, और यदि हम ऐसा होते हुए नहीं देखते हैं तो यह साबित करता है कि प्रभु लौटा नहीं है। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि ये तो केवल हमारी अवधारणाएँ और कल्पनाएँ हैं और यह परमेश्वर के कार्य की वास्तविकता नहीं है। अंत के दिनों में परमेश्वर न्याय का कार्य कैसे करता है, यह कुछ ऐसा है जिसकी केवल परमेश्वर ही योजना और व्यवस्था करता है। परमेश्वर का ज्ञान स्वर्ग से भी ऊँचा है, और परमेश्वर की नज़रों में इंसान धूल के कण जैसे छोटे होते हैं, तो हम कैसे परमेश्वर के कार्य की थाह पा सकते हैं? बाइबल में यह कहा गया है: 'किसने यहोवा के आत्मा को मार्ग बताया या उसका मन्त्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है?' (यशायाह 40:13)। 'देखो, जातियाँ तो डोल में की एक बूंद या पलड़ों पर की धूल के तुल्य ठहरीं; देखो, वह द्वीपों को धूल के किनकों सरीखे उठाता है' (यशायाह 40:15)। हममें से हर किसी के मन में विचार होते हैं, इसलिए हम परमेश्वर के कार्य के बारे में जैसा चाहें वैसा अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन परमेश्वर हमारी कल्पनाओं के अनुसार कभी भी अपना कार्य नहीं करता है। अगर हम परमेश्वर के कार्य को सीमित करने के लिए अपनी कल्पनाओं का उपयोग करते हैं तो क्या हम बेहद घमंड भरा व्यवहार नहीं है? तो परमेश्वर न्याय के अपने कार्य को कैसे करता है? वह बुरे से भले को अलग कैसे करता है? आइये, हम इसे समझने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कई अंश पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: 'न्याय का कार्य परमेश्वर का स्वयं का कार्य है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इसे परमेश्वर के द्वारा किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना न्याय है, इसलिए यह निर्विवाद है कि तब भी परमेश्वर मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होता है। अर्थात्, अंत के दिनों में, मसीह पृथ्वी के चारों ओर मनुष्यों को सिखाने के लिए और सभी सत्यों को उन्हें बताने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। 'अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं। सृष्टि की सभी चीज़ों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाएगा। यही वह क्षण है जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल को प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते हैं, तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को प्रकट करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी सृजनों का अंत प्रकट हो सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंगों को दिखाता है जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। दुष्ट को दुष्ट के साथ, भले को भले के साथ रखा जाएगा, और समस्त मानव जाति को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से, सभी सृजनों का अंत प्रकट किया जाएगा, ताकि दुष्ट को दंडित किया जा सके और अच्छे को पुरस्कृत किया जा सके, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन हो जाएँगे। यह समस्त कार्य धार्मिक ताड़ना और न्याय के माध्यम से अवश्य प्राप्त किया जाना चाहिए। क्योंकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर हो गई है, इसलिए केवल परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय से संयुक्त है और जो अंत के दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपान्तरित और पूर्ण बना सकता है। केवल यह स्वभाव ही दुष्टता को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधार्मिकों को गंभीर रूप से दण्डित कर सकता है' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। 'विजय का कार्य करने का मेरा उद्देश्य केवल विजय के वास्ते विजय प्राप्त करना नहीं है, बल्कि मैं धार्मिकता और अधार्मिकता को प्रकट करने, मनुष्य के दण्ड के लिए प्रमाण प्राप्त करने, और दुष्ट को दोषी ठहराने के लिए विजयी होता हूँ, और उससे भी बढ़कर, उन लोगों को सिद्ध बनाने के वास्ते विजयी होता हूँ जो स्वेच्छा से आज्ञापालन करते हैं। अंत में, सभी को प्रकार के अनुसार पृथक किया जाएगा, और वे सभी जिन्हें सिद्ध बनाया जाता है उन्होंने अपनी सोच और विचारों को आज्ञाकारिता से भरा हुआ है। यही वह कार्य है जो अंत में पूर्ण किया जाना है। किन्तु जो विद्रोही तरीकों से भरे हुए हैं उन्हें दण्डित किया जाएगा, आग में जलने के लिए भेज दिया जाएगा और वे अनन्त शाप की वस्तु बन जाएँगे' ("वचन देह में प्रकट होता है" में "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे")। हमारी सोच यह है कि परमेश्वर का न्याय का कार्य सीधे गेहूँ को टेआस से, भेड़ों को बकरियों से, अच्छे सेवकों को दुष्ट सेवकों से अलग करने का है। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक को उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करना है। लेकिन अगर हम इसके बारे में सोचें, तो इस समय दुनिया भर में दो अरब से अधिक ईसाई हैं—और वे सभी कहते हैं कि उन्हें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है और परमेश्वर से प्यार है—तो हम कैसे भले को बुरे से, और धर्मी को दुष्ट से अलग करें? अगर परमेश्वर निर्धारित करता है कि तुम भले हो और मैं बुरा हूँ, तो मैं निश्चित रूप से मैं इसे नहीं मानूँगा क्योंकि मुझे लगता है कि मैं भी एक अच्छा इंसान हूँ। अगर परमेश्वर निर्धारित करता है कि मैं अच्छा हूँ और कोई और बुरा है, तो वह व्यक्ति भी निश्चित रूप से इसे मानना नहीं चाहेगा। तो आखिर हम कैसे जान सकते हैं कि कौन भला है और कौन बुरा? हम नहीं जान सकते, क्योंकि हम इंसानों के पास इसे मापने के लिए सिद्धांत या मानक नहीं हैं। अगर परमेश्वर इस तरह से हमारा आकलन करता तो हम निश्चित रूप से इसे नहीं मानते और इसके बारे में अवधारणाएँ बनाते, मानते कि परमेश्वर अन्यायी और अधर्मी है। तो प्रत्येक को उसकी श्रेणी में रखने का कार्य कैसे आगे बढ़ सकता है? प्रभु जो अंत के दिनों के दौरान लौटता है, अर्थात अंत के दिनों का मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर—न्याय के कार्य को करने के लिए सत्यों का उपयोग करता है। सभी ईसाइयों के लिए, यह प्रकट करना कि कौन गेहूँ हैं और कौन टेआस, कौन भेड़ें हैं और कौन बकरियाँ, कौन अच्छे सेवक हैं, और कौन दुष्ट, कौन बुद्धिमान कुंवारियाँ हैं और कौन मूर्ख, ये सब सत्यों द्वारा, परमेश्वर के वचनों द्वारा किया जाता है। बुद्धिमान कुंवारियाँ वो लोग हैं जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य से प्यार करते हैं। जब वे सुनते हैं कि कोई परमेश्वर के आने की गवाही दे रहा है तो वे इसका स्वागत करने के लिए बाहर जाते हैं और सक्रिय रूप से परमेश्वर के वचनों और कार्य की जाँच करते हैं। वे परमेश्वर की आवाज़ को पहचान लेते हैं और अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं, और अंत में वे परमेश्वर के न्याय के माध्यम से शुद्धिकरण और पूर्ण उद्धार प्राप्त करते हैं। बड़ी आपदाओं के दौरान उनके पास परमेश्वर की सुरक्षा होगी और वे बचे रहने में सक्षम होंगे, और अंत में उन्हें परमेश्वर के राज्य में ले जाया जायेगा। इसके विपरीत, चूँकि मूर्ख कुंवारियों जैसे लोग सत्य से प्यार नहीं करते हैं, इसलिए वे अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं को थामे रहने या अफवाहों पर विश्वास करने पर ज़ोर देते हैं। वे अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की खोज या जाँच नहीं करते हैंऔर उनमें से कुछ धार्मिक अगुआओं का अनुपालन करते हुए परमेश्वर का विरोध और निंदा भी करते हैं और अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार से इनकार भी करते हैं और वे अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार को नकार देते हैं। इन सबके के कारण, वे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य द्वारा बुराई करने वालों के रूप में उजागर किए जाएँगे और वे हटा दिए जाएँगे। बड़ी आपदाओं के दौरान दंड भुगतना उनका नसीब होगा। इससे, हम देख सकते हैं कि अंत के दिनों के दौरान प्रत्येक को उनकी श्रेणी में रखने का परमेश्वर का कार्य हमारी अवधारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार नहीं किया जाता है। इसके बजाए, परमेश्वर लोगों को उजागर करने के कार्य के लिए न्याय की विधि का उपयोग करता है। अंत में परिणाम यह होता है कि हर किसी को पूरी तरह से इस आधार पर उजागर किया जाता है कि वे सत्य को स्वीकार करते हैं या सत्य का विरोध करते हैं, उसके अनुसार उन्हें उनकी श्रेणी में रखा जाता है। क्या यह वास्तव में परमेश्वर का ज्ञान, परमेश्वर की निष्पक्षता, और परमेश्वर की धार्मिकता नहीं है?"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और भाई वांग की सहभागिता को सुनने के बाद, मैंने याद किया कि हमारी कलीसिया के पुरोहित ने, "जब परमेश्वर आता है, तो भले लोगों को बुरे लोगों से अलग किया जाएगा" के बारे में क्या कहा था और मैंने महसूस किया कि वह धारणा बहुत अस्पष्ट, बहुत अव्यवहारिक है, और परमेश्वर के कार्य की वास्तविकता से मेल नहीं खाती है। हम सभी पाप में रहते हैं, हम लगातार पाप और पश्चाताप करते हैं लेकिन इस कुचक्र से बच नहीं पाते हैं, तो वास्तव में भले लोग कौन हैं? जब प्रभुवापस आता है, तब यदि हम अपने पापों से शुद्ध नहीं हुए हैं, तो क्या हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी? इस बारे में सोचना मेरे दिल में प्रकाश डालने जैसा था, और मैंने प्रभु की अगुआई के लिए उसका धन्यवाद किया। मेरा सभा में जाना व्यर्थ नहीं गया था, क्योंकि अब मैं समझ गया था कि परमेश्वर भले-बुरे का अंतर इस बात से करता है कि लोग सत्य के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। दूसरे शब्दों में, लोगों का भला या बुरा होना इस बात पर निर्भर करता है कि वे परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार और उसका पालन करते हैं या नहीं, और यह परमेश्वर की धार्मिकता का पूरी तरह से प्रकट होना है। परमेश्वर गेहूँ को टेआस से, भेड़ों को बकरियों से, बुद्धिमान कुंवारियों को मूर्ख कुंवारियों से, सच्चे विश्वासियों को नकली विश्वासियों से, और सत्य के प्रेमियों को सत्य से नफ़रत करने वालों से अलग करने के लिए अपने वचनों और कार्य का उपयोग करता है। परमेश्वर अविश्वसनीय रूप से बुद्धिमान है! बहरहाल, मुझे पुरोहित की यह बात भी याद आई कि जब प्रभु लोगों का न्याय करने के लिए लौटता है तो इससे पहले कि वह यह फैसला करे कि कोई व्यक्ति स्वर्ग में जाएगा या नरक में, वह एक-एक करके लोगों का न्याय करता है, और प्रत्येक व्यक्ति के पापों को भी एक-एक करके सूचीबद्ध किया और आँका जाता है। लेकिन अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर कह रहा है कि परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय का कार्य उसके वचनों के माध्यम से किया जा रहा है, तो आखिर कैसे इन वचनों का इस्तेमाल लोगों का न्याय करने के लिए किया जा रहा है?

इसलिए मैंने इस सवाल को उठाया और उत्तर में भाई झांग ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़कर सुनाये: "कुछ लोग विश्वास करते हैं कि परमेश्वर किसी भी समय पृथ्वी पर आ सकता है और लोगों को दिखाई दे सकता है, जिसके बाद वह संपूर्ण मनुष्यजाति का न्याय करेगा, किसी को छोड़े बिना एक-एक करके उनकी परीक्षा लेगा। जो इस तरह से सोचते हैं वे देहधारण के इस चरण के कार्य को नहीं जानते हैं। परमेश्वर एक-एक करके मनुष्य का न्याय नहीं करता है, और एक-एक करके मनुष्य की परीक्षा नहीं लेता है; ऐसा करना न्याय का कार्य नहीं होगा। क्या समस्त मनुष्यजाति की भ्रष्टता एक समान नहीं है? क्या मनुष्य का सार पूरी तरह से समान नहीं है? जिसका न्याय किया जाता है वह मनुष्य का भ्रष्ट सार है, शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया मनुष्य का सार, और मनुष्य के समस्त पाप हैं। परमेश्वर मनुष्य के छोटे-मोटे और मामूली दोषों का न्याय नहीं करता है। न्याय का कार्य प्रतिनिधिक है, और किसी निश्चित व्यक्ति के लिए कार्यान्वित नहीं किया जाता है। इसके बजाए, यह ऐसा कार्य है जिसमें समस्त मनुष्यजाति के न्याय का प्रतिनिधित्व करने के लिए लोगों के एक समूह का न्याय किया जाता है। लोगों के एक समूह पर व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को कार्यान्वित करने के द्वारा, देह में प्रकट परमेश्वर अपने कार्य का उपयोग संपूर्ण मनुष्यजाति के कार्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए करता है, जिसके पश्चात् यह धीरे-धीरे फैलता जाता है। न्याय का कार्य भी इस प्रकार ही है। परमेश्वर किसी निश्चित किस्म के व्यक्ति या लोगों के किसी निश्चित समूह का न्याय नहीं करता है, बल्कि संपूर्ण मनुष्यजाति की अधार्मिकता का न्याय करता है—उदाहरण के लिए, परमेश्वर के प्रति मनुष्य का विरोध, या उसके विरुद्ध मनुष्य का अनादर, या परमेश्वर के कार्य में व्यवधान, इत्यादि। जिसका न्याय किया जाता है वह परमेश्वर के प्रति मनुष्य के विरोध का सार है, और यह कार्य अंत के दिनों के विजय का कार्य है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है")। "अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, हर व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को करता है, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; बल्कि वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

फिर भाई झांग ने मेरे साथ यह सहभागिता की: "हमारी यह अवधारणा है कि अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय के कार्य के दौरान वह प्रत्येक व्यक्ति को अपने सफ़ेद सिंहासन के सामने बुलाएगा और फिर उसका न्याय करेगा। प्रत्येक व्यक्ति को उसके सामने जमीन पर घुटने टेकने होंगे और फिर अपने पूरे जीवनकाल में किए गए पापों में से प्रत्येक को कबूल करना होगा। तब पापों की गंभीरता के आधार पर परमेश्वर यह तय करेगा कि वह व्यक्ति स्वर्ग में जाएगा या नरक में। हम सोचते हैं कि परमेश्वर लोगों का उनके पापों के अनुसार न्याय करता है, जैसे कि शारीरिक या मौखिक रूप से दुर्व्यवहार करना, माता-पिता के साथ संतानोचित व्यवहार न करना, चोरी और लूट-फ़साद करना, इत्यादि। लेकिन वास्तव में परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय का कार्य हमारे इन बाहरी व्यवहारों या त्रुटियों से संबंधित नहीं है, बल्कि इसके बजाय, वह मानव जाति की परमेश्वर-विरोधी शैतानी प्रकृति और हर भ्रष्ट स्वभाव का न्याय करने की ओर लक्षित है। इनमें हमारा अहंकार और दंभ, हमारी कुटिलता और धूर्तता, हमारी स्वार्थपरता और नीचता, हमारा लालच और हमारी बुराई इत्यादि शामिल हैं। हमारे पास ऐसे कई दृष्टिकोण, पुरानी हो चुकी धार्मिक धारणाएँ और सामंती सोच भी हैं जो परमेश्वर के साथ सुसंगत नहीं हैं। ये सभी चीज़ें परमेश्वर के प्रति हमारे प्रतिरोध की स्रोत हैं। वे ऐसी समस्याएँ हैं जो पूरी भ्रष्ट मानव जाति में समान रूप से उपस्थित हैं, और साथ ही चीजें भी उपस्थित हैं जिन्हें शुद्ध करना और बदलना परमेश्वर के न्याय के कार्य का लक्ष्य है। इसलिए, जिन वचनों को परमेश्वर व्यक्त करता है, वे मानव जाति की प्रकृति और सार को प्रकट करते हैं और पृथ्वी पर हर भ्रष्ट व्यक्ति, बिना किसी अपवाद के, इसका एक हिस्सा है। अन्य शब्दों में कहें तो, परमेश्वर के न्याय के वचन पूरी मानव जाति की ओर निर्देशित हैं और इसलिए व्यक्तिगत रूप से लोगों का न्याय करने की कोई आवश्यकता नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर और परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करके हम कई सत्यों को समझ सकते हैं और हमारी प्रकृति, हमारे सार और शैतान द्वारा भ्रष्ट हुई हमारी वास्तविक स्थिति को हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। ऐसा करने से हम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को भी पहचान सकते हैं और परमेश्वर की श्रद्धा से भरे दिलों को विकसित कर सकते हैं और हम खुद को तुच्छ मानना शुरू कर सकते हैं, ताकि हम अपनी देह-वासना को छोड़ने और सत्य का अभ्यास करने के इच्छुक हो सकें। इस तरह, हमारे भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को धीरे-धीरे शुद्ध किया जाएगा और जीवन पर हमारे दृष्टिकोण और परिप्रेक्ष्य भी बदल जाएँगे। जब हम परमेश्वर के वचनों से जीना शुरू करते हैं, जब हम परमेश्वर का विरोध और प्रतिरोध करना बंद कर देते हैं और इसके बजाय वास्तव में परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं और उसका सम्मान करते हैं, बुराई को छोड़ देते हैं, तो हम परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करेंगे और हम वो लोग बनेंगे जो परमेश्वर के इरादों के अनुकूल हों। अंत के दिनों के दौरान न्याय के कार्य को करने के लिए सत्य व्यक्त करने के पीछे यही परमेश्वर का उद्देश्य है, यही इसकी वास्तविकता है।"

भाई झांग की फैलोशिप को सुनने के बाद, मुझे यह महसूस हुआ कि परमेश्वर का न्याय का कार्य अत्यंत व्यावहारिक है और वास्तविक है! उसने जो कुछ भी कहा, उसे मैं स्वीकार करने में सक्षम था, और यह मेरे दिल में मेरे साथ समस्वर होकर गहराई से गूंज गया। हाँ, लोग घमंडी हैं, वे प्रसिद्धि, धन और प्रतिष्ठा चाहते हैं, और वे अपने विभिन्न प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव में डूबे रहकर जीते हैं। परमेश्वर हमारे अंदर की सारी गंदगी और भ्रष्टता से हमें छुटकारा दिलाने के लिए अपने न्याय के वचनों का उपयोग करता है। परमेश्वर का विरोध करने वाली हमारी प्रकृति इस प्रकार हल हो जाती है और हमारे भ्रष्ट स्वभाव को बदल दिया जाता है, और हम वास्तव में भले लोग बन जाते हैं। इसे इस तरह से समझकर, मैं यह देख सकता था कि पुरोहित की यह बात कि जब प्रभु मानव जाति का न्याय करने के लिए लौटता है, तब लोगों का व्यक्तिगत रूप से और पापों का एक-एक करके न्याय किया जाता है, केवल मानवीय अवधारणा और कल्पना है। परमेश्वर वास्तव में जिस तरीक़े से अपना कार्य करता है, उससे इसका कोई लेना-देना नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में वास्तव में सत्य है; वे वास्तव में परमेश्वर की आवाज़ हैं! तब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की पूरी तरह से जाँच करने का निर्णय लिया।

मेरी जाँच के दौरान, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा उत्पादित कई सुसमाचार फिल्में देखीं, जिनमें नूह का समय आ चुका है, प्रभुत्व का रहस्य और पकड़ ली आखिरी गाड़ी के साथ ही परमेश्वर के वचन के कुछ स्तुतिगीत वीडियो जैसे कि कितना अहम है प्यार परमेश्वर का इंसान के लिये, शामिल थे। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत सारे वचनों को भी पढ़ा और भाइयों और बहनों को सत्य के सभी पहलुओं के बारे में सहभागिता करते हुए सुना। इससे मुझे यह निर्णय लेने में मदद मिली कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटा हुआ प्रभु यीशु है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक सच्चा परमेश्वर है और वह वो लौटा हुआ प्रभु है जिसका हम इंतजार करते रहे हैं! मैंने सहर्ष सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के बाद से मैं अक्सर भाइयों और बहनों के साथ सभा करता रहा हूँ, उनके साथ उपदेशों को सुनता रहा हूँ। मैं अब हर दिन खुश रहता हूँ और यह महसूस करता हूँ कि मैं आध्यात्मिक पोषण प्राप्त कर रहा हूँ। पवित्र आत्मा के कार्य से मिलने वाले सुकून का मैं आनंद ले रहा हूँ, और मैं अधिक से अधिक सत्यों को समझने लगा हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में, सभी भाई-बहन एक-दूसरे के साथ स्नेहमयी और ईमानदार हैं, और कोई भी किसी और को धोखा देने की, या अपनी सतर्कता को बनाए रखने की, कोशिश नहीं करता है। हर कोई सरल, खुले दिल का और निष्कपट है, और जब वे अपने भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करते भी हैं, तो उनमें से प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के वचनों के माध्यम से खुद को जानने में सक्षम होता है और अपने भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करने के लिए सत्यों की तलाश करता है। मेरे लिए, बस वे ही सच्चे ईसाई भाई और बहनें हैं। मैं विशेष रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया द्वारा उत्पादित स्तुतिगीत वीडियो, संगीत वीडियो, नृत्य और गीत वीडियो, सुसमाचार फिल्मों से प्रभावित हूँ, जो सभी सत्य को सर्वोच्च सम्मान देते हैं और अंत के दिनों के परमेश्वर की और उसके कार्य की गवाही देते हैं। इन सभी प्रस्तुतियों का उद्देश्य लोगों को परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और परमेश्वर की आराधना करने में मदद करना है, और कलीसिया वास्तव में एक ऐसे स्थान की तरह महसूस होती है जहाँ परमेश्वर अपना कार्य करता हो! मैंने जो देखा, सुना और अनुभव किया है वह मेरे दिल में इसका सबूत है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया एक सच्ची कलीसिया है जहाँ स्वयं परमेश्वर व्यक्तिगत रूप अपने झुंड का पोषण करता है, और उसकी चरवाही करता है। मैं परमेश्वर के घर में प्रवेश करने और परमेश्वर के साथ उसके आमने-सामने रहते हुए एक जीवन जीने में सक्षम हूँ, इस तथ्य का मतलब यह है कि मैं परमेश्वर द्वारा असाधारण रूप से ऊँचा उठाया गया हूँ। मैं वास्तव में बहुत भाग्यशाली हूँ! तुम्हारा धन्यवाद, हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर!

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