ढूँढो और तुम पाओगे

27 फ़रवरी, 2025

मेरी बेटी मिर्गी के साथ पैदा हुई थी। मेरे पति और मैंने हर जगह उसका इलाज करवाने की कोशिश की और वह सब कुछ किया जो कर सकते थे, लेकिन उसकी हालत नहीं सुधरी। जब मैं दुखी थी और सब कुछ करके हार चुकी थी तो किसी ने मुझे सुसमाचार सुनाया, और मैंने प्रभु यीशु में विश्वास करना शुरू कर दिया। मेरी बेटी की हालत जल्द ही सुधर गई और मेरे पति और उसकी माँ ने भी प्रभु में विश्वास करना शुरू कर दिया। मेरा पति बाद में प्रचारक बन गया, जबकि मैं घर पर कलीसिया के सहकर्मियों की सभाओं की मेजबानी करती थी।

लगभग 1997 में, कुछ लोग हमारे घर आए और मेरे पति और मेरे सामने गवाही दी कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देहधारी हुआ है और नया कार्य कर रहा है और उसका नाम सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। मैंने सोचा यह कैसे संभव हो सकता है। बाइबल कहती है : “किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें” (प्रेरितों 4:12)। “यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक-सा है” (इब्रानियों 13:8)। प्रभु यीशु का नाम हमेशा के लिए अपरिवर्तनीय है, तो उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर कैसे कहा जा सकता है? वह नया कार्य कैसे कर सकता है? उस समय, मैं इसे स्वीकार नहीं कर पाई और मैं उस पर कोई ध्यान देने के लिए तैयार नहीं थी। कुछ समय बाद, वे फिर से सुसमाचार का प्रचार करने हमारे पास आए, लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ी रही और उनकी नहीं सुनी। बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है कि प्रभु यीशु का नाम हमेशा के लिए अपरिवर्तनीय रहेगा और फिर भी वे कह रहे थे कि प्रभु लौट आया है और उसका नाम सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। यह बात बाइबल के अनुसार नहीं थी। वे चाहे कुछ भी कहें, मैं इसे स्वीकार नहीं करूँगी। मेरे पति ने भी उनकी बात नहीं सुनी।

साल 2002 में, मेरे पति प्रचार करने गए। जब वे वापस आए, तो वे उत्साहित दिख रहे थे और मुझसे कहने लगे, “मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है। जिस प्रभु यीशु की हम प्रतीक्षा कर रहे थे, वह लौट आया है! चमकती पूर्वी बिजली द्वारा जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही दी गई है वह वही लौटकर आने वाला प्रभु यीशु है! देखो, परमेश्वर की छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना तीन चरणों में विभाजित है : पहला व्यवस्था के युग का कार्य था, जब यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन में मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था की घोषणा की। दूसरा था अनुग्रह का युग, जब प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया गया और उसने मानवजाति का छुटकारा दिलाने का कार्य किया। तीसरा है राज्य का युग। सर्वशक्तिमान परमेश्वर बहुत सारे सत्य व्यक्त कर रहा है और न्याय और ताड़ना का कार्य कर रहा है, मनुष्य की पापी प्रकृति को हल कर रहा है, मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध कर रहा है और बचा रहा है, और अंत में मनुष्य को एक सुंदर गंतव्य की ओर ले जा रहा है। कार्य के ये तीन चरण मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर का संपूर्ण कार्य हैं और इनमें से हर एक चरण अनिवार्य है।” मेरे पति ने मुझे कई बातें बताईं। लेकिन मुझे यह सब बातें अविश्वसनीय लगीं। मैंने सोचा, “तुमने चमकती पूर्वी बिजली को कैसे स्वीकार कर लिया? तुमने इतने वर्षों तक प्रचार किया है, तो तुम उनके द्वारा कैसे गुमराह हो सकते हो? हमने दिन-रात बाइबल पढ़ी। गलातियों, अध्याय 1, पद 6 से 7 में लिखा है : ‘मुझे आश्‍चर्य होता है कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह में बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं : पर बात यह है कि कितने ऐसे हैं जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।’ हमने इब्रानियों, अध्याय 13, श्लोक 8 भी पढ़े : ‘यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक-सा है।’ ये पद स्पष्ट रूप से बताते हैं कि प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं बदलेगा। चमकती पूर्वी बिजली कहती है कि परमेश्वर का नाम सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। क्या यह प्रभु यीशु का नाम बदलना नहीं है? क्या वे मसीह के सुसमाचार को नहीं बदल रहे हैं? तुम इस पर कैसे विश्वास कर सकते हो? हमें अपनी आस्था में हमेशा प्रभु के नाम को बनाए रखना चाहिए। प्रभु का नाम नहीं बदल सकता!” मुझे पता था कि मेरा पति बाइबल में निपुण है और उपदेश देने में माहिर है, मैं उसे मना नहीं पाऊँगी और यह कि जब वह किसी बात के लिए प्रतिबद्ध हो जाता है, तो फिर कोई भी उसका मन नहीं बदल सकता। इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने सोचा, “तुम चाहे जितना भी अच्छा बोलो, मैं इसे स्वीकार नहीं करूँगी। प्रभु यीशु ने हमें इतना अनुग्रह दिया है; मैं कभी भी उसके साथ विश्वासघात नहीं कर सकती। मैं अंत तक प्रभु का अनुसरण करूँगी, भले ही हमें तलाक क्यों न लेना पड़े!” आखिर में, मैंने उससे कहा, “अगर तुम प्रभु यीशु के बारे में प्रचार करते रहे, तो मैं तुम्हारी बात सुनूँगी। हम अभी भी एक परिवार हैं। लेकिन अगर तुम चमकती पूर्वी बिजली के बारे में प्रचार करते हो, तो तुम अपने रास्ते जाओ, और मैं अपने रास्ते जाऊँगी और हम बस अपने रास्ते जाएँगे।” मेरे पति ने असहाय होकर सिर हिलाया और देखा कि मैं हठपूर्वक उसकी बात सुनने से इनकार कर रही हूँ और आगे कुछ नहीं कहा।

चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार करने के बाद, उसने हमारे कलीसिया के लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया। अप्रत्याशित रूप से, कलीसिया में उसके सबसे करीबी सहकर्मी फेंग ने उसे बाहर निकाल दिया। उसके बाद फेंग और अन्य लोगों ने सभा स्थलों को बंद करना शुरू कर दिया और विश्वासियों को मेरे पति की बातें सुनने की अनुमति देने से मना कर दिया। उन्होंने मुझसे कहा, “तुम्हारे पति ने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार कर लिया है। उसकी बात मत सुनो। वह आस्था के मामले में भटक चुका है!” मैंने कहा, “मैंने इसे स्वीकार नहीं किया है, लेकिन कुछ बातें जो वह कहता है, वे बाइबल के अनुरूप हैं।” चूँकि मैंने ऐसा कहा, तो वे मेरे खिलाफ भी सतर्क हो गए। उन्होंने मेरे पीठ पीछे यह बात करनी शुरू कर दी, कहा कि “उसका पति अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता है, इसलिए हमें उससे कोई संबंध नहीं रखना चाहिए। समय बीतने के साथ उसका प्रभावित होना तय है। वह निश्चित रूप से इसे स्वीकार कर लेगी।” यह सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा। चाहे मैंने अपने निर्दोष होने का कैसा भी दावा किया और कसम खाई कि मैंने पूर्वी बिजली को स्वीकार नहीं किया है, उन्होंने मुझ पर विश्वास नहीं किया। जब भी मैं किसी सभा स्थल पर जाती, उनके चेहरे के भाव बदल जाते थे। वे मुझसे सावधान रहते, डरते थे कि कहीं मैं विश्वासियों को गुमराह न कर दूँ। अगर मैं सभाओं में बिल्कुल भी नहीं आती तो वे खुश होते थे, और वे मुझसे बात करने की हिम्मत भी नहीं करते थे, मानो जैसे मुझे कोई संक्रामक बीमारी हो। मुझे बहुत दुख हुआ और मैं अपने पति से नाराज हो गई। मुझे लगा कि उनका मुझे अस्वीकार करना सब मेरे पति के कारण हुआ है। मैं बहुत दुखी और दबाव में थी, इसलिए मैंने प्रभु से प्रार्थना की, “हे प्रभु, भाई-बहनों ने मुझे अस्वीकार कर दिया है। मुझे बहुत दुख हो रहा है। मैं जानना चाहती हूँ कि तुम्हारा इरादा क्या है।” यह साबित करने के लिए कि मैंने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार नहीं किया है, जब सभाएँ आयोजित करने वाली एक बहन बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो गई, तो मैं जानबूझकर उसके लिए एक उपहार खरीदकर उससे मिलने गई ताकि वह मेरी सच्चाई को समझ सके। लेकिन जैसे ही वह अस्पताल से छुट्टी पाकर वापस आई, उसने फिर से मुझे अनदेखा करना शुरू कर दिया। इसलिए बाद में, मैंने सभाओं में जाना बंद कर दिया और मैं बस घर पर प्रार्थना करती और बाइबल पढ़ती थी। मेरे पति ने देखा कि मैं कितनी दुखी हूँ, तो उसने मेरे सामने फिर से परमेश्वर के नए कार्य की गवाही दी। मैंने गुस्से में आकर उसे डाँटा, “अगर तुमने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार नहीं किया होता, तो क्या कलीसिया ने मुझे अस्वीकार किया होता? क्या हर किसी ने मुझे छोड़ दिया होता? भले ही वे मुझे सभाओं में न जाने दें, लेकिन मैं तुम्हारी तरह चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार नहीं करने वाली! मैं प्रभु का नाम बनाए रखूँगी और कभी भी इनकार नहीं करूँगी कि मसीह ही मेरा प्रभु है!” जब उन्होंने देखा कि मेरा मूड खराब है, तो वह मुझ पर गुस्सा नहीं हुए, बल्कि बस चिंतित और परेशान हो गए। बाद में, उन्होंने दो भाइयों को संगति करने के लिए बुलाया। उनमें से एक भाई ने बहुत ही ईमानदारी से कहा, “बहन, प्रभु यीशु सचमुच लौट आया है और उसने लाखों वचन व्यक्त किए हैं। ये सभी वचन सत्य हैं। तुम्हारी सारी उलझनें परमेश्वर के वचनों से सुलझ सकती हैं। बस सुनो, और फिर तुम्हें पता चल जाएगा।” उस समय, मैं केवल इस बात से चिंतित थी कि मैं क्या कर रही थी और उन पर ध्यान देने को तैयार नहीं थी। भाइयों ने देखा कि मैं सुन नहीं रही हूँ, तो उनके पास वहाँ से चले जाने के अलावा कोई और चारा नहीं था। मैंने देखा कि चमकती पूर्वी बिजली के लोग कितने सम्मानजनक और ईमानदार थे और कितने प्यार करने वाले थे। भले ही मैंने उन्हें इस तरह से नकार दिया था, लेकिन वे नाराज नहीं हुए, और उन्होंने बहुत धैर्य से मेरे साथ संगति की। वे स्पष्ट रूप से सच्चे विश्वासी थे लेकिन वे चमकती पूर्वी बिजली में कैसे विश्वास कर सकते थे? मैं यह समझ नहीं पा रही थी। इसके बाद, मेरे पति सुसमाचार का प्रचार करने के लिए यात्रा पर चले गए। जब वह दूर थे, तो लोग बार-बार मेरे साथ परमेश्वर के नए कार्य की गवाही देते रहे, लेकिन मैं सुनने के लिए तैयार नहीं थी। जब भी कोई आता, तो मैं दरवाजा बंद करके एक तरफ छिप जाती। वे देखते कि दरवाजा बंद है और चले जाते। उन दिनों, जब भी मैं इस बारे में सोचती कि कलीसिया के लोगों ने मुझे गलत समझा और अस्वीकार किया, तो मुझे बहुत दुख होता था। मैं रोती और प्रभु से बार-बार अपनी पीड़ा व्यक्त करती। एक बार, मुझे अचानक ख्याल आया कि, “कलीसिया मुझे सभाओं में शामिल नहीं होने देगी, तो अगर मैं उन अच्छे भेड़ों को वापस कलीसिया में ले आऊँ जिन्हें चमकती पूर्वी बिजली ने ले लिया है, तो वे मान लेंगे कि मैंने प्रभु के साथ विश्वासघात नहीं किया है।” यह सोचते ही मेरे दिल में एक प्रकाश की किरण आई और मैंने तुरंत प्रभु से प्रार्थना की, “हे प्रभु, तुम हमारे दिल के सबसे गहरे भावों की पड़ताल करते हो और जानते हो कि मैं तुम्हारे प्रति सच्ची हूँ। मैंने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार नहीं किया है। हे प्रभु, कलीसिया अब मुझे नहीं चाहती और मैं बहुत आहत हूँ। मैं इस तरह घर पर रहकर अन्याय और उपेक्षा नहीं महसूस करना चाहती। हे प्रभु, कृपया मुझे बुद्धि और ताकत दो ताकि मैं उन अच्छे भेड़ों को तुम्हारे नाम पर वापस ला सकूँ जो चमकती पूर्वी बिजली ने चुरा ली हैं। हे प्रभु, कृपया मेरी मदद करो!” प्रार्थना के बाद, मैंने पहल करने और चमकती पूर्वी बिजली के लोगों से संपर्क करने की योजना बनाई। मैंने तय किया कि मैं उनसे सीधे सामना करूँगी, बाइबल का उपयोग कर उनकी बातों को खारिज करूँगी और परमेश्वर की भेड़ों को वापस लाऊँगी। इसके लिए मैं हर दिन काफी समय बाइबल पढ़ने में बिताती थी।

एक दिन, जब मैं पूरे जोश के साथ शास्त्र पढ़ रही थी, तो अचानक मैंने पढ़ा : “क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ(लूका 17:24-25)। मैं हैरान रह गई। ऐसा कैसे हुआ कि जब मैंने इस पद को अब पढ़ा, तो यह पहले जैसा महसूस नहीं हुआ? मैंने इन वचनों पर विचार किया “परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।” मैं हमेशा सोचती थी कि यह प्रभु यीशु के बारे में है, क्योंकि अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह के रूप में देह धारण किया और उस पीढ़ी के द्वारा उसे तुच्छ ठहराया गया, सूली पर चढ़ाया गया और उसने बहुत दुःख सहा। प्रभु ने ऐसा क्यों कहा कि, “और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ” जब उसने मनुष्य के पुत्र के लौटने की भविष्यवाणी की? क्या यह बात अभी भी 2000 साल पहले के प्रभु यीशु के बारे में है? जितना मैंने इस पर विचार किया, उतना ही मुझे लगा कि चमकती पूर्वी बिजली के लोगों की बात बाइबल के अनुसार है। मैंने यह भी सोचा कि चमकती पूर्वी बिजली के लोग गवाही देते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर परमेश्वर का दूसरा देहधारण है और कैसे सभी संप्रदायों के लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की आलोचना, विरोध और निंदा कर रहे हैं और कैसे सीसीपी की सत्ताधारी पार्टी बेहद कड़ाई से चमकती पूर्वी बिजली के पीछे पड़ी है और उसे प्रताड़ित करती है—क्या यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर बहुत सी चीजों को नहीं झेल रहा है और इस पीढ़ी द्वारा ठुकराया जा रहा है? क्या “परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ” का मतलब सर्वशक्तिमान परमेश्वर हो सकता है? क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर वापस लौटा प्रभु यीशु है? यह सोचकर मैं डर गई, “अरे नहीं! क्या मैं वास्तव में प्रभु का विरोध कर रही थी?” लेकिन फिर मैंने सोचा, “बिलकुल भी नहीं! प्रभु का नाम तो अपरिवर्तनीय है!” फिर दुबारा मैंने सोचा, “यह इतनी गंभीर बात है, मैं चमकती पूर्वी बिजली की निंदा बस यूँ ही नहीं कर सकती। मुझे सच में प्रभु का विरोध नहीं करना चाहिए।” फिर मैंने प्रभु के वचनों के बारे में सोचा : “क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा(मत्ती 7:8)। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आँखें खुल गई हों, और मैंने सोचा, “हाँ, मुझे जरूर खोज करनी चाहिए।”

मुझे याद आया कि मेरे पति के पास एक सुसमाचार पुस्तिका थी। उन्होंने मुझसे कहा था, “तुम्हारी सभी उलझनों का समाधान इस किताब से हो सकता है।” मैं जल्दी से उस किताब को ढूँढ़ने के लिए दौड़ी, लेकिन उसे पढ़ने से पहले मैंने प्रार्थना की, “हे प्रभु, कृपया मुझे प्रबुद्ध करो और इस किताब की सामग्री का भेद पहचानने दो। मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है और मैं गुमराह होने से डरती हूँ, लेकिन मैं तुम्हारा विरोध करने से भी डरती हूँ। हे प्रभु, कृपया इस किताब को पढ़ते समय मेरी रक्षा करो।” प्रार्थना करने के बाद, मैंने किताब खोली और एक नजर डाली। उसमें सच में कुछ ऐसे सवाल थे जो मैं पूछना चाहती थी। पहला परमेश्वर के नाम के बारे में था। किताब में लिखा था : “बाइबल में लिखा है कि, ‘किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें’ (प्रेरितों 4:12)। यह बिल्कुल सच है। लेकिन इससे यह साबित नहीं हो सकता कि परमेश्वर को केवल यीशु ही कहा जा सकता है और उसका नाम कभी नहीं बदल सकता। हम सब को याद है कि पुराने नियम में, यहोवा ने कहा था कि : ‘मैं ही यहोवा हूँ और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्ता नहीं(यशायाह 43:11)। ‘यहोवा ... सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा(निर्गमन 3:15)। और नए नियम में, प्रेरितों के काम, अध्याय 4, पद 12 में लिखा है : ‘किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें।’ ‘किसी दूसरे’ का मतलब यीशु के अलावा कोई और है। तो परमेश्वर का एकमात्र नाम कौन सा है—यहोवा या यीशु? परमेश्वर का नाम मूल रूप से यहोवा था, लेकिन बाद में यह यीशु हो गया। तो क्या परमेश्वर का नाम नहीं बदला? और जब प्रभु यीशु अंत के दिनों में लौटता है, तो उसका नाम भी इसी तरह बदलता है। चलो प्रकाशित वाक्य में इस भविष्यवाणी को पढ़ते हैं और फिर हम समझ जाएँगे। प्रकाशित वाक्य, अध्याय 3, पद 12 में लिखा है : ‘जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्वर का नाम और अपने परमेश्वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा।’ यह स्पष्ट रूप से इस बात की भविष्यवाणी है कि जब परमेश्वर अंत के दिनों में लौटेगा, तो उसका एक नया नाम होगा। तो क्या यह नया नाम अब भी ‘यीशु’ हो सकता है? अगर उसे अब भी ‘यीशु’ ही कहा जाए, तो इसे एक नया नाम कैसे कह सकते हैं?” मुझे लगा कि ये वचन बहुत तर्कसंगत हैं, और ये बाइबल के अनुरूप हैं। जो वे प्रचार कर रहे थे, वह बाइबल से अलग नहीं था। मैंने इन पदों को कई बार पढ़ा था, फिर भी मैंने इसे कैसे नहीं समझा? यहोवा व्यवस्था के युग में परमेश्वर का नाम था। यीशु अनुग्रह के युग में परमेश्वर का नाम था। यहोवा और यीशु दोनों ही परमेश्वर के नाम थे। अलग-अलग युगों में उन्हें अलग-अलग नामों से बुलाया गया। इन दोनों युगों में उसके अलग-अलग नाम थे। जब मैंने पहले कहा था कि परमेश्वर का नाम अपरिवर्तनीय है, तो यह तथ्यों के साथ असंगत था। प्रकाशित वाक्य में लिखा है कि प्रभु का एक “नया नाम” होगा। यह पता चलता है कि यह “नया नाम” प्रभु यीशु को संदर्भित नहीं करता।

इस प्रश्न के उत्तर में, सुसमाचार पुस्तिका ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का भी हवाला दिया है : “प्रत्येक युग में परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है; वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है? वह पुराने से कैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्य के वास्ते लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा, तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा? क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं है, क्योंकि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? ऐसा होने पर, परमेश्वर को भिन्न युग में भिन्न नाम से ही बुलाया जाना चाहिए, और उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए उस नाम का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, और प्रत्येक नाम केवल एक दिए गए युग में परमेश्वर के स्वभाव के उस समय से संबंधित पहलू का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है; उसे केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व ही करना है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। “‘यहोवा’ वह नाम है, जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोगों) का परमेश्वर, जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन कर सकता है; वह परमेश्वर, जिसके पास बड़ा सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है। ‘यीशु’ इम्मानुएल है, जिसका अर्थ है वह पाप-बलि, जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा दिलाता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबंधन-योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। ... यीशु का नाम अनुग्रह के युग से आया, और अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य के कारण विद्यमान रहा। यीशु का नाम अनुग्रह के युग के लोगों को पुनर्जन्म दिए जाने और बचाए जाने के लिए अस्तित्व में आया, और वह पूरी मानवजाति के उद्धार के लिए एक विशेष नाम है। इस प्रकार, ‘यीशु’ नाम छुटकारे के कार्य को दर्शाता है और अनुग्रह के युग का द्योतक है। ‘यहोवा’ नाम इस्राएल के उन लोगों के लिए एक विशेष नाम है, जो व्यवस्था के अधीन जिए थे। प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में मेरा नाम आधारहीन नहीं है, बल्कि प्रातिनिधिक महत्व रखता है : प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है। ‘यहोवा’ व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह सम्मानसूचक शब्द है, जिससे इस्राएल के लोग उस परमेश्वर को पुकारते थे जिसकी वे आराधना करते थे। ‘यीशु’ अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है और उन सबके परमेश्वर का नाम है, जिन्हें अनुग्रह के युग के दौरान छुटकारा दिया गया था। यदि मनुष्य अब भी अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्ता यीशु के आगमन की अभिलाषा करता है, और उसके अब भी उसी छवि में आने की अपेक्षा करता है जो उसने यहूदिया में अपनाई थी, तो छह हज़ार सालों की संपूर्ण प्रबंधन-योजना छुटकारे के युग में रुक गई होती, और आगे प्रगति न कर पाती। इतना ही नहीं, अंत के दिनों का आगमन कभी न होता, और युग का समापन कभी न किया जा सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)। इसे पढ़ने के बाद मुझे कुछ हद तक समझ आ गई। परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे बढ़ता रहता है और परमेश्वर का नाम उसके कार्य के साथ बदलता रहता है। परमेश्वर अलग युग में अलग कार्य करता है और उसे अलग नामों से पुकारा जाता है। अपने नाम से, वह युग को बदलता है, और उसका नाम उस युग का प्रतिनिधित्व करता है। अलग-अलग युगों में परमेश्वर को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है ताकि वे प्रत्येक युग में उसके द्वारा व्यक्त किए गए विभिन्न स्वभावों का प्रतिनिधित्व कर सकें। व्यवस्था के युग में, परमेश्वर ने इस्राएलियों के पृथ्वी पर जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए घोषणा की। और यहोवा नाम परमेश्वर के प्रतापी, क्रोधी, दयालु और यहाँ तक कि लोगों को शाप देने वाले स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह के रूप में देह धारण किया। उसे सूली पर चढ़ाया गया और वह मनुष्य के लिए पाप-बलि बन गया। यीशु नाम परमेश्वर के दयालु और प्रेमपूर्ण स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है। मैंने देखा कि हर युग में परमेश्वर के लिए गए नाम का अर्थ होता है और फिर भी मैं तो यह कहती थी कि परमेश्वर का कार्य और उसका नाम कभी नहीं बदल सकते—क्या मैंने परमेश्वर पर निर्णय नहीं सुनाया था?

इसके बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा, और मेरे दिल में और भी अधिक प्रकाश छा गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वह परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)। मुझे लगा कि ये वचन इतने अधिकारपूर्ण थे, कि ये परमेश्वर के ही वचन थे। मैंने यह भी समझा कि यहोवा, मसीह, यीशु, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर सभी परमेश्वर के ही नाम हैं, ये सब एक ही परमेश्वर हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में परमेश्वर का नाम है। यह इस भविष्यवाणी को पूरा करता है जो बाइबल में है : “प्रभु परमेश्वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्‍तिमान है, यह कहता है, ‘मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ’(प्रकाशितवाक्य 1:8)। जब मैंने ऐसा सोचा, तो मुझे बहुत बुरा लगा। पुराने समय के फरीसी बाइबल के शब्दों से चिपके रहते थे, और यह सोचते थे कि जो मसीहा नहीं कहलाता, वह परमेश्वर नहीं हो सकता। और उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया और उन्हें परमेश्वर द्वारा दंड दिया गया। क्या अब मैं फरीसियों जैसी ही नहीं थी? मैं बाइबल के शब्दों से चिपकी हुई थी और अपनी धारणाओं और कल्पनाओं में जी रही थी, और यह सोच रही थी कि अगर परमेश्वर यीशु नहीं कहलाता, तो वह परमेश्वर नहीं है। जब प्रभु का स्वागत करने की बात आई, तो न तो मैंने कोई खोज की, न जाँच-पड़ताल की, बल्कि जिद्दी होकर अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से चिपकी रही। मैं यह सोच रही थी कि मैं प्रभु के नाम की रक्षा कर रही हूँ और प्रभु के मार्ग पर चल रही हूँ, लेकिन मुझे यह एहसास ही नहीं था कि मैं परमेश्वर के नए कार्य का विरोध कर रही थी। मुझे इतना पछतावा हुआ कि मैं रो पड़ी।

मैंने जल्दी से पढ़ना जारी रखा और सुसमाचार पुस्तिका में यह लिखा देखा : “बहुत से लोगों में यह धारणा होती है। वे मानते हैं कि बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है कि जो कोई उनसे अलग कुछ भी प्रचार करता है वह शापित होगा। वे यह मानते हैं कि चमकती पूर्वी बिजली द्वारा जो प्रचार किया जा रहा है, वह उनके प्रचार से भिन्न है, कि यह एक अलग सुसमाचार है और इसलिए वे इसे स्वीकार करने की हिम्मत नहीं करते।” मैं भी इस बात को लेकर उलझन में थी। किताब में लिखा था : “गलातियों की किताब लगभग 60 ईसवी में प्रेरित पौलुस द्वारा लिखी गई थी, जो गलातिया की कलीसिया को लिखी गई एक पत्री है। उस समय, प्रभु यीशु का सुसमाचार अद्भुत रूप से फैल चुका था और गलातिया में भी कई लोगों ने प्रभु यीशु के नए कार्य को स्वीकार किया था और कलीसियाएँ भी स्थापित की थीं। यह वह समय था जब व्यवस्था का युग अनुग्रह के युग में बदल रहा था और उस समय यहूदियों में दो प्रकार के प्रचारक थे : एक समूह ने व्यवस्था के युग के पुराने कार्य का प्रचार किया, लोगों को यहोवा की व्यवस्थाओं का पालन करने को कहा, जैसे खतना करना, सब्त का पालन करना, मंदिर में प्रवेश करना आदि। दूसरे समूह (यीशु के 12 शिष्यों के नेतृत्व में) ने अनुग्रह के युग के नए कार्य का प्रचार किया, लोगों को प्रभु यीशु पर विश्वास कर बचाए जाने के लिए कहा, प्रभु यीशु ने जो कहा उसका पालन करने के लिए कहा, जैसे पाप स्वीकार करना, पश्चात्ताप करना, बपतिस्मा लेना, साथ में भोजन करना, एक-दूसरे से प्रेम करना, सहनशील और धैर्यवान होना आदि। पुराने नियम की व्यवस्था पर अडिग फरीसियों ने कहा कि यीशु के शिष्यों द्वारा प्रचारित सुसमाचार उनके द्वारा प्रचारित सुसमाचार से अलग था। कि यीशु का मार्ग बाइबल से परे है और उसने व्यवस्था को त्याग दिया है। उन्होंने यीशु के नए कार्य की निंदा की और उन लोगों को परेशान किया जिन्होंने यीशु के सूली पर चढ़ने से मिले उद्धार को स्वीकारा था। उन्होंने कहा कि यीशु में विश्वास करने से लोग नहीं बचाए जा सकते, कि यह यहोवा की शिक्षाओं के खिलाफ है और उन्हें सब्त मानते रहना होगा, खतना कराना होगा, आदि। हालाँकि, उस समय गलातियों को भेद की पहचान नहीं थी और वे पौलुस द्वारा प्रचारित यीशु के सुसमाचार से विमुख होकर यहूदियों का अनुसरण करने लगे जो पुराने नियम की व्यवस्था का प्रचार करते थे। जब पौलुस ने सुना कि गलातीया की कलीसिया के भाई-बहनों ने प्रभु यीशु के सुसमाचार को ठुकरा दिया है और वे मंदिर लौट गए हैं, तो उसने गलातीया की कलीसिया को लिखा और कहा कि : ‘मुझे आश्‍चर्य होता है कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह में बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं : पर बात यह है कि कितने ऐसे हैं जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं’ (गलातियों 1:6-7)। उसने गलातियों को सच्चे मार्ग पर लौटने की प्रेरणा देने के लिए यह लिखा। हम सभी जानते हैं कि फरीसी व्यवस्था से चिपके रहे और प्रभु यीशु की निंदा की, और पवित्र आत्मा के नए कार्य से हटा दिए गए और आखिरकार परमेश्वर द्वारा उन्हें दंड और शाप दिया गया। तो, हमें आज परमेश्वर के नए कार्य को कैसे देखना चाहिए?” इस संगति को पढ़ने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मुझे बाइबल की सही समझ नहीं थी। यह जाने बिना कि पौलुस ने जो कहा वह क्यों कहा, मैंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप इसे अपनी पसंद से व्याख्यायित कर लिया था। पौलुस द्वारा उल्लेखित “एक और सुसमाचार” का तात्पर्य उन लोगों से था जो व्यवस्था युग के दौरान यहोवा के सुसमाचार का प्रचार करते थे और लोगों को पुराने नियम की व्यवस्था का पालन करने के लिए कहते थे और यह उन लोगों का उल्लेख नहीं करता जो राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते हैं। क्योंकि जब पौलुस ने यह पत्र लिखा था, तब परमेश्वर ने अंत के दिनों का अपना कार्य अभी किया ही नहीं था और कोई भी परमेश्वर के अंत के दिनों के सुसमाचार का प्रचार नहीं कर रहा था। मैंने राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने वालों को कोई और सुसमाचार प्रचारित करने वाला समझ लिया था। मैंने सब कुछ गड़बड़ कर दिया था और शास्त्रों की एक विकृत समझ बना ली थी! मैं कितनी गरीब, दयनीय और अंधी थी। मुझे सच में बहुत शर्म महसूस हुई! मैंने पहले बेशर्मी से कहा था कि मैं चमकती पूर्वी बिजली द्वारा चुराई गई भेड़ों को वापस कलीसिया में लाना चाहती हूँ। अब जाकर मुझे समझ में आया कि वे तो गुमराह ही नहीं हुए थे। उन्होंने देखा था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं वे सुनिश्चित थे कि वे परमेश्वर की वाणी हैं, और इसीलिए उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना शुरू कर दिया था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार करने के बाद उनकी आस्था इतनी मजबूत हो गई कि जंगली घोड़े भी उन्हें वापस खींचकर नहीं ला सकते थे। यह बात सामने आई कि उन्होंने प्रभु का स्वागत किया था। मैंने सोचा था कि मैं बाइबल अधिक पढ़कर और अच्छी भेड़ों को वापस लाऊँगी जो चमकती पूर्वी बिजली ने चुराई थीं। मैंने कभी भी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि परमेश्वर इस विशेष स्थिति का उपयोग मेरे सुन्न और दुराग्रही दिल को पुनर्जीवित करने के लिए करेगा। मैं बहुत उत्साहित महसूस कर रही थी!

मैंने उत्सुकता से परमेश्वर के वचन पढ़ना शुरू किया और यह पढ़ा : “यहोवा के कार्य के बाद, यीशु मनुष्यों के मध्य अपना कार्य करने के लिए देहधारी हो गया। उसका कार्य अलग से किया गया कार्य नहीं था, बल्कि यहोवा के कार्य के आधार पर किया गया था। यह कार्य एक नए युग के लिए था, जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था का युग समाप्त करने के बाद किया था। इसी प्रकार, यीशु का कार्य समाप्त हो जाने के बाद परमेश्वर ने अगले युग के लिए अपना कार्य जारी रखा, क्योंकि परमेश्वर का संपूर्ण प्रबंधन सदैव आगे बढ़ रहा है। जब पुराना युग बीत जाता है, तो उसके स्थान पर नया युग आ जाता है, और एक बार जब पुराना कार्य पूरा हो जाता है, तो परमेश्वर के प्रबंधन को जारी रखने के लिए नया कार्य शुरू हो जाता है। यह देहधारण परमेश्वर का दूसरा देहधारण है, जो यीशु का कार्य पूरा होने के बाद हुआ है। निस्संदेह, यह देहधारण स्वतंत्र रूप से घटित नहीं होता; व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के बाद यह कार्य का तीसरा चरण है। हर बार जब परमेश्वर कार्य का नया चरण आरंभ करता है, तो हमेशा एक नई शुरुआत होती है और वह हमेशा एक नया युग लाता है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव, उसके कार्य करने के तरीके, उसके कार्य के स्थल, और उसके नाम में भी परिवर्तन होते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के लिए नए युग में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना कठिन होता है। परंतु इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य द्वारा उसका कितना विरोध किया जाता है, परमेश्वर सदैव अपना कार्य करता रहता है, और सदैव समस्त मानवजाति का प्रगति के पथ पर मार्गदर्शन करता रहता है। जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु मनुष्यों के बीच आया और अधिकतर कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे का कार्य ही पूरा किया और मनुष्य की पाप-बलि के रूप में सेवा की; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिए जाने के बाद, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए देह में वापस आ गया, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। जितना मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ती गई, मेरा दिल उतना ही उज्ज्वल होता गया। मुझे समझ में आया कि परमेश्वर का कार्य और उसका नाम अपरिवर्तनीय नहीं है। परमेश्वर का कार्य आगे बढ़ता रहता है और हर युग का कार्य पिछले युग के कार्य पर आधारित होता है। चूँकि परमेश्वर का कार्य हर युग में अलग होता है, इसलिए उसका नाम और जो स्वभाव वह व्यक्त करता है, वह भी अलग होते हैं। अगर यह वैसा ही होता जैसा मैं मानती थी कि परमेश्वर का नाम और कार्य कभी नहीं बदलते, तो परमेश्वर हमेशा “यहोवा” कहलाता और “यीशु” में परिवर्तित नहीं हो पाता। परमेश्वर का कार्य भी आगे नहीं बढ़ पाता और वह व्यवस्था के युग पर ही रुक जाता। तब मनुष्य परमेश्वर द्वारा छुटकारा नहीं पा सकता था और व्यवस्था के अधीन ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता। अगर मैं केवल “यीशु” के नाम को ही थामे रखती और अंत के दिनों में परमेश्वर के नए कार्य और नए नाम को स्वीकार नहीं करती, तो मैं कभी प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं कर पाती और अंत में, मैं आपदाओं में गिर जाती, आँसू बहाती और दाँत पीसती, क्योंकि मैं परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को चूक गई होती।

मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ा : “शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बड़ाई न करो। परमेश्वर का भय मानने वाले अपने थोड़े-से हृदय से तुम अधिक रोशनी प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सीधे मेरे दिल तक पहुँचे : यही मेरी स्थिति थी। मेरे पति ने पहले मेरे साथ जो संगति की थी, उसका बहुत सा हिस्सा बाइबल के साथ मेल खाता था, लेकिन मैं बहुत खुदगर्ज और अज्ञानी थी, मुझमें पूरी तरह से परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं था। बाइबल के अपने थोड़े-से ज्ञान के आधार पर परमेश्वर के कार्य पर निर्णय सुना रही थी यहाँ तक कि परमेश्वर के नए नाम और नए कार्य को नकारने के लिए बाइबल में और आधार ढूँढ़ना चाहती थी। मैं सचमुच बहुत हठी थी और मेरी सोच बहुत विकृत थी! मैं अपनी धारणाओं को छोड़ना चाहती थी, आगे खोज और जाँच करना चाहती थी, और परमेश्वर के सामने अपने पापों को स्वीकार करना और पश्चात्ताप करना चाहती थी। मैंने हमेशा अपने पति को परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य के बारे में संगति करते हुए सुनने से इनकार किया था, लेकिन अब मैं इसे सुनने के लिए बहुत इच्छुक थी। हालाँकि, मेरे पति सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बाहर गए हुए थे और मुझे नहीं पता था कि वह कब वापस आएँगे। इसलिए मैं हर दिन मुख्य द्वार खोलती और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से भाई-बहनों के आने का इंतजार करती थी, चाहती थी कि कोई बहन आए और मेरे साथ संगति करे।

एक सुबह, मैंने अभी नाश्ता किया ही था कि किसी ने मुझे पुकारा। जब मैंने देखा कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की बहनें थीं, तो मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने उन्हें खुशी-खुशी अंदर बुलाया। उनमें से एक ने “वचन देह में प्रकट होता है” किताब खोली। मैंने इस किताब के अंदर एक शीर्षक देखा : “परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है।” बहन ने इसे जोर से पढ़ा और मैं बड़ी उत्सुकता से सुनती रही थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कार्य के तीनों चरण परमेश्वर के प्रबंधन का मुख्य केंद्र हैं और उनमें परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप अभिव्यक्त होते हैं। जो लोग परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों के बारे में नहीं जानते हैं वे यह जानने में अक्षम हैं कि परमेश्वर कैसे अपने स्वभाव को अभिव्यक्त करता है, न ही वे परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता को जानते है। वे उन अनेक मार्गों से, जिनके माध्यम से परमेश्वर मानवजाति को बचाता है, और संपूर्ण मानवजाति के लिए उसके इरादों से भी अनभिज्ञ रहते हैं। कार्य के तीनों चरण मानवजाति को बचाने के कार्य की पूर्ण अभिव्यक्ति हैं। जो लोग कार्य के तीन चरणों के बारे में नहीं जानते, वे पवित्र आत्मा के कार्य के विभिन्न तरीकों और सिद्धांतों से अनभिज्ञ रहेंगे; और वे लोग जो सख्ती से केवल उस सिद्धांत से चिपके रहते हैं जो कार्य के किसी एक चरण से बचा रह जाता है, ऐसे लोग होते हैं जो परमेश्वर को केवल सिद्धांत तक सीमित कर देते हैं, और परमेश्वर में जिनका विश्वास अस्पष्ट और अनिश्चित होता है। ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार को कभी भी प्राप्त नहीं करेंगे। केवल परमेश्वर के कार्य के तीन चरण ही परमेश्वर के स्वभाव की संपूर्णता को पूरी तरह से अभिव्यक्त कर सकते हैं और संपूर्ण मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के ध्येय को, और मानवजाति के उद्धार की संपूर्ण प्रक्रिया को पूरी तरह से अभिव्यक्त कर सकते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि परमेश्वर ने शैतान को हरा दिया है और मानवजाति को जीत लिया है, यह परमेश्वर की जीत का प्रमाण है और परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव की अभिव्यक्ति है। जो लोग परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से केवल एक चरण को ही समझते हैं, वे परमेश्वर के स्वभाव को केवल आंशिक रूप से ही जानते हैं। मनुष्य की धारणा में, कार्य के इस अकेले चरण का सिद्धांत बन जाना आसान है, इस बात की संभावना बन जाती है कि मनुष्य परमेश्वर के बारे में निश्चित नियम स्थापित कर लेगा, और परमेश्वर के स्वभाव के इस अकेले भाग का परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव के प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करेगा। इसके अलावा, यह विश्वास करते हुए कि यदि परमेश्वर एक बार ऐसा था तो वह हर समय वैसा ही बना रहेगा, और कभी भी नहीं बदलेगा, मनुष्य की अधिकांश कल्पनाएँ अंदर-ही-अंदर इस तरह से मिश्रित रहती हैं कि वह परमेश्वर के स्वभाव, अस्तित्व और बुद्धि, और साथ ही परमेश्वर के कार्य के सिद्धांतों को, सीमित मापदंडों के भीतर कठोरता से कैद कर देता है। केवल वे लोग ही जो कार्य के तीनों चरणों को जानते और समझते हैं, परमेश्वर को पूरी तरह से और सही ढ़ंग से जान सकते हैं। कम से कम, वे परमेश्वर को इस्राएलियों या यहूदियों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित नहीं करेंगे और उसे ऐसे परमेश्वर के रूप में नहीं देखेंगे जिसे मनुष्यों के वास्ते सदैव के लिए सलीब पर चढ़ा दिया जाएगा। यदि कोई परमेश्वर को उसके कार्य के केवल एक चरण के माध्यम से जानता है, तो उसका ज्ञान बहुत अल्प है और समुद्र में एक बूँद से ज्यादा नहीं है। यदि नहीं, तो कई पुराने धर्म-रक्षकों ने परमेश्वर को जीवित सलीब पर क्यों चढ़ाया होता? क्या ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को निश्चित मापदंडों के भीतर सीमित कर देता है? क्या बहुत से लोग इसलिए परमेश्वर का विरोध नहीं करते और पवित्र आत्मा के कार्य में इसलिए बाधा नहीं डालते क्योंकि वे परमेश्वर के विभिन्न और विविधतापूर्ण कार्यों को नहीं जानते हैं, और इसके अलावा, क्योंकि वे केवल चुटकीभर ज्ञान और सिद्धांत से संपन्न होते हैं जिससे वे पवित्र आत्मा के कार्य को मापते हैं? यद्यपि इस प्रकार के लोगों का अनुभव केवल सतही होता है, किंतु वे घमंडी और आसक्त प्रकृति के होते हैं और वे पवित्र आत्मा के कार्य को अवमानना से देखते हैं, पवित्र आत्मा के अनुशासन की उपेक्षा करते हैं और इसके अलावा, पवित्र आत्मा के कार्यों की ‘पुष्टि’ करने के लिए अपने पुराने तुच्छ तर्कों का उपयोग करते हैं। वे दिखावा भी करते हैं, और अपनी शिक्षा और पांडित्य को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त होते हैं, और उन्हें यह भी भरोसा रहता है कि वे संसार भर में यात्रा करने में सक्षम हैं। क्या ये ऐसे लोग नहीं हैं जो पवित्र आत्मा द्वारा तिरस्कृत कर दिए गए हैं और क्या ये नए युग के द्वारा निकाल नहीं दिए जाएँगे? क्या ये वही अज्ञानी और अल्पज्ञानी घृणित लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के सामने आते हैं और खुलेआम उसका विरोध करते हैं, जो केवल यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि वे कितने मेधावी हैं? बाइबल के अल्प ज्ञान के साथ, वे संसार के ‘शैक्षणिक समुदाय’ में निरंकुश आचरण करने की कोशिश करते हैं, और केवल एक सतही सिद्धांत के साथ लोगों को सिखाते हुए, वे पवित्र आत्मा के कार्य को पलटने का प्रयत्न करते हैं, और इसे अपने खुद के विचारों की प्रक्रिया के इर्दगिर्द घुमाने का प्रयास करते हैं। अपनी अदूरदर्शिता के कारण वे एक ही झलक में परमेश्वर के 6,000 सालों के कार्यों को देखने की कोशिश करते हैं। इन लोगों के पास समझ नाम की कोई चीज ही नहीं है! वास्तव में, परमेश्वर के बारे में लोगों को जितना अधिक ज्ञान होता है, वे उसके कार्य का आकलन करने में उतने ही धीमे होते हैं। इसके अलावा, वे परमेश्वर के आज के कार्य के बारे में अपने ज्ञान की बहुत कम बात करते हैं, लेकिन वे अपने निर्णय में जल्दबाज़ी नहीं करते हैं। लोग परमेश्वर के बारे में जितना कम जानते हैं, वे उतने ही अधिक घमंडी और अति आत्मविश्वासी होते हैं और उतनी ही अधिक बेहूदगी से परमेश्वर के अस्तित्व की घोषणा करते हैं—फिर भी वे केवल सिद्धांत की बात ही करते हैं और कोई भी वास्तविक प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते। इस प्रकार के लोगों का कोई मूल्य नहीं होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। जब मैंने परमेश्वर के ये वचन सुने, तो मुझे लगा कि परमेश्वर ने वास्तव में मेरे हृदय में झाँककर मेरी धारणाओं को बहुत स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया है। मुझे परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से केवल एक चरण का ही ज्ञान था और मैं उस कार्य के चरण से जुड़े बाइबल के शब्दों को पकड़े हुए थी। मैंने परमेश्वर को विनियमों तक सीमित कर दिया था और मुझे विश्वास था कि परमेश्वर का नाम यीशु है और वह कभी नहीं बदला जा सकता। मैंने यहाँ तक कह दिया था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार करना, प्रभु यीशु को धोखा देना और धर्मत्याग करना है। मुझे एहसास हुआ कि मैं परमेश्वर के कार्य के बारे में कुछ नहीं जानती और परमेश्वर में मेरा विश्वास कितना अस्पष्ट था। कार्य के तीन चरण, मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के कार्य की पूरी अभिव्यक्ति हैं। तीन चरणों में से केवल एक चरण के बारे में जानकर, मुझे परमेश्वर के स्वभाव का केवल एक हिस्सा ही पता था, फिर भी मैंने परमेश्वर के स्वभाव, उसके अस्तित्व, उसकी बुद्धि और उसके कार्य को इतने सीमित दायरे में बाँध दिया था, यह मानते हुए कि अगर परमेश्वर एक बार ऐसा था, तो वह हमेशा ऐसा ही रहेगा। मैं अदूरदर्शी थी, परमेश्वर को नहीं जानती थी, और फिर भी मैंने परमेश्वर के नाम और कार्य पर फैसला सुनाया। मैं सच में बहुत घमंडी थी!

बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और भी वचन पढ़े और यह पक्का हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। इसलिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में शामिल हो गई और भाई-बहनों के साथ इकट्ठे होकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने लगी। मुझे लगता है कि मुझे बहुत मिला है। मुझ पर दया और कृपा करने के लिए परमेश्वर तुम्हारा धन्यवाद जिससे मैं इस तरह चमत्कारिक रूप से परमेश्वर के अंतिम दिनों के उद्धार को स्वीकार कर सकी और प्रभु के प्रकटन का स्वागत कर सकी!

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