झूठे मसीहों को लेकर सतर्क रहने से मैंने ये सबक सीखे
मैं एक गृह कलीसिया में सहकर्मी था। सन 2000 में एक दिन उच्च-स्तरीय अगुआओं ने सहकर्मियों की बैठक बुलाई। उन्होंने कहा, "अंत के दिनों में झूठे मसीह लोगों को धोखा देने आए हैं। कुछ चमकती पूर्वी बिजली का प्रचार कर रहे हैं, उनका उपदेश बहुत ऊँचे दर्जे का लगता है। वे यह भी कहते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आए प्रभु यीशु है। न तो उनकी सुनें और न ही उनसे संपर्क रखें। आप सावधानी बरतें कि चमकती पूर्वी बिजली के लोग भेड़ चुराने के लिए कलीसिया में न घुसने पाएं। बाइबल साफ कहती है, 'उस समय यदि कोई तुम से कहे, "देखो, मसीह यहाँ है!" या "वहाँ है!" तो विश्वास न करना क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें' (मत्ती 24:23-24)। ये पद प्रभु यीशु के आने का संकेत हैं। ये विश्वासियों को भी चेतावनी देते हैं कि अंत के दिनों में झूठे मसीह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को धोखा देने के लिए बड़े चमत्कार दिखाएंगे, इसलिए हमें आस्था की मजबूत नींव रखनी चाहिए और चमकती पूर्वी बिजली के उपदेश नहीं सुनने चाहिए। वरना यदि आप झूठे मसीहों के पीछे जाते हैं, तो प्रभु का स्वागत नहीं कर पाएंगे।" सभी सहकर्मियों ने इस मामले पर चर्चा की, कहा कि वे प्रभु के आने तक झुंड की रक्षा करना चाहते हैं। मैंने यह भी सोचा कि हम प्रभु के स्वागत में जल्दबाजी न करें, हम झूठे मसीहों से सावधान रहें, कहीं ऐसा न हो कि हम धोखा खा जाएं। अगले दिन मैंने अगुआओं के निर्देशों का पालन किया, उन सभा-स्थलों पर गया जिनका मैं प्रभारी था और विश्वासियों से आग्रह किया कि वे झूठे मसीहों से सावधान रहें, और अजनबियों को न बुलाएं, खासकर चमकती पूर्वी बिजली के प्रचारकों को न बुलाएं। भले ही वे उच्च-स्तरीय सहकर्मी हों, यदि वे प्रचार करते हैं कि परमेश्वर नया कार्य करने आया है तो उनका स्वागत न करें। नहीं तो झूठे मसीहों के बहकावे में आने वालों का प्रभु में विश्वास व्यर्थ जाएगा। तब सभी ने कहा कि वे कभी भी चमकती पूर्वी बिजली के उपदेश नहीं सुनेंगे।
कुछ महीने बाद, अगुआओं ने बताया कि उच्च-स्तरीय सहकर्मी भाई ली और भाई काओ ने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार लिया है, और हमें कहा कि हम उन्हें न स्वीकारें, वरना धोखा खाएंगे। मैंने सोचा, "वे उच्च-स्तरीय सहकर्मी हैं जो बाइबल से बहुत परिचित हैं। उन्होंने हमें चमकती पूर्वी बिजली से संपर्क करने से मना किया है। वे इसे कैसे स्वीकार सकते थे?" मुझे समझ नहीं आया, लेकिन फिर मैंने सोचा, चाहे वो जो करें, मुझे प्रभु के मार्ग पर चलना था और झुंड की रक्षा करनी थी। बाद में मैंने भाई-बहनों से एक सभा में कहा कि वे भाई ली और भाई काओ का स्वागत न करें। एक दिन सहकर्मी शियाओ एक भाई के साथ मेरे घर आया, तो मैं तुरंत सावधान हो गया। उच्च-स्तरीय अगुआओं ने कहा था कि सहकर्मी शियाओ ने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार कर लिया है। उसकी चाल में आकर मैं प्रभु को धोखा नहीं दे सकता था, फिर चाहे उस दिन उन्होंने जो भी संगति की, मैंने दुखी चेहरा बनाकर उनकी उपेक्षा की। आखिर उनके पास चले जाने के सिवा कोई चारा नहीं था। उन्हें जाते देखकर मैंने राहत की सांस ली। मुझे खुशी थी कि मुझे वो धोखा नहीं दे पाए। बाद में हमारी कलीसिया के भाई झांग भी सुसमाचार का प्रचार करने आए, पर मैं छिप गया और पत्नी से उनसे निपटने को कहा, उसे कहा कि धोखे से बचने के लिए वह उनकी संगति न सुने। हमारी कलीसिया की हालत बद से बदतर होती गई। हमारे उपदेशक घिसी-पिटी बातें ही दोहराते थे, कोई नई रौशनी नहीं डाल पाते थे, और हमारे पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं था। भाई-बहनों को जीवन का पोषण नहीं मिल रहा था, आध्यात्मिक रूप से वे सभी निराश, निष्क्रिय और कमजोर थे और सभाओं में नहीं आना चाहते थे। जो आए भी तो उनमें से ज्यादातर बस नियमों का पालन कर रहे थे, बातचीत का मुद्दा परिवार, काम और दूसरे विषय होते थे। मैं भ्रमित था। मुझे नहीं पता था कि ऐसी कलीसिया जिसमें पहले पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन था, ऐसी कैसे हो गई, पर मुझे इसका मूल कारण या समाधान नहीं पता था। मैं बस यह जानता था कि मुझे प्रभु की शिक्षा का पालन कर उसके आने की प्रतीक्षा करनी है।
दो साल बाद बहुत से लोगों ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। उन्होंने संगति की, "प्रभु यीशु ने कहा था, 'ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा' (मत्ती 7:7)। सत्य खोजने और जाँचने पर ही हम जान सकते हैं कि कोई सच्चा मार्ग है। अगर नहीं खोजते तो हम प्रभु का स्वागत कैसे कर पाएंगे?" उस समय मैंने सोचा कि वे सही थे, पर मुझे झूठे मसीहों से धोखा खाने का डर था, तो मैंने तय किया, "मैं ऐसे किसी की नहीं सुनूँगा जो यह प्रचार करता है कि प्रभु नया काम करने आया है।" इस तरह मैं हर दिन चोरों से बचाव करने जैसा बिताता था। प्रचारकों को आते देख मैं छिप जाता था, पर वे हमेशा की तरह मेरे घर में सुसमाचार का प्रचार करने आते थे। मैं सोचता, "मैं कितना भी मना करूँ, फिर भी वो आते हैं। उनमें इतना विश्वास और प्यार कैसे हो सकता है?" मुझे थोड़ी आत्मग्लानि हुई। उन्हें लोगों से इतना प्यार था, फिर भी मैंने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया। यह प्रभु की इच्छा के अनुरूप नहीं था। लेकिन फिर, अगुआओं ने बार-बार कहा था कि हम चमकती पूर्वी बिजली के उपदेश नहीं सुन सकते। अगर धोखा मिलता, तो प्रभु में आस्था के लिए वर्षों तक सहा गया मेरा कष्ट बेकार हो जाता। मुझे प्रभु के मार्ग पर चलना था और कोई दूसरा सुसमाचार स्वीकार नहीं करना था। प्रचार करने चाहे जो भी आए, मैं उसे सुन नहीं सकता था। तो मैंने कभी चमकती पूर्वी बिजली के उपदेशों की खोज या जाँच नहीं की।
बाद में मेरी कलीसिया के कई भाई-बहनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारा, मेरी पत्नी भी उनमें थी। वे अक्सर मुझसे कहते थे कि प्रभु यीशु में आस्था का अर्थ केवल परमेश्वर के छुटकारे का कार्य स्वीकारना है। यदि हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते तो असल में उसमें आस्था नहीं रखते, और हम मेमने के नक्शेकदम पर नहीं चलते। मैं हिल गया था। इन वर्षों में कलीसिया और ज्यादा उजाड़ हो गई थी, बहुत से लोग निराश और कमजोर थे, उनका विश्वास ठंडा पड़ गया था, यहां तक कि सहकर्मी भी सभाओं में नहीं आते थे, और कलीसिया में अब पवित्र आत्मा का कार्य नहीं था। मगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोग मुझे सुसमाचार का प्रचार कर रहे थे, चाहे मैं उन्हें जितना भी मना करूँ, फिर भी वे आते थे। यदि पवित्र आत्मा का कार्य नहीं होता तो उनमें इतना प्रेम और धैर्य कैसे हो सकता था? क्या चमकती पूर्वी बिजली सचमुच परमेश्वर का कार्य था? चीजों की तह तक जाने के लिए मैंने पत्नी की गैरमौजूदगी में चुपके से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े। एक दिन मैंने इस अंश को पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बड़ाई न करो। परमेश्वर के लिए अपने हृदय में इतना थोड़ा-सा आदर रखकर तुम बड़े प्रकाश को प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर मेरे दिल में हलचल मच गई। यह सच था। प्रभु के विश्वासी के नाते मेरे पास तर्क के साथ-साथ सत्य खोजने की विनम्रता भी होनी चाहिए। मैं किसी पर राय देने या निंदा करने लायक नहीं था। इन वर्षों में बहुत से लोगों ने मुझे सुसमाचार का प्रचार किया था और गवाही दी थी कि परमेश्वर कार्य का नया चरण पूरा कर रहा है, पर मैंने उसे नहीं स्वीकारा, और मुझमें सत्य खोजने की विनम्रता भी नहीं थी। यह मेरी धारणाओं के अनुकूल हो या न हो, मुझे विनम्रता से सत्य की तलाश करनी थी। भले ही इनमें से दस हजार शब्दों में से केवल एक बाइबल के अनुरूप होता, मुझे इस दस हजारवें हिस्से की खोज और जाँच करनी चाहिए थी और इसे अस्वीकार नहीं करना था। मैंने यह भी सोचा कि कैसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखने के बाद मेरी पत्नी की हालत में काफी सुधार हुआ। वह रोज सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ती, सक्रियता से सभाओं में भाग लेती और सुसमाचार का प्रचार करती थी। मैं सोचने लगा, कहीं मैं गलत तो नहीं था। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटकर आया प्रभु यीशु हो? अगली बार जब किसी ने मुझे सुसमाचार का प्रचार किया, तो मैंने मना न करने का फैसला किया।
एक दिन भाई लिन फिर से सुसमाचार का प्रचार करने आए। तब उन्होंने मुझसे पूछा, "अब आपकी आध्यात्मिक स्थिति कैसी है?" मैंने असहाय होकर कहा, "मेरी आत्मा अंधेरे में है, मैं उपदेश नहीं दे सकता, और मेरे भाई-बहनों को पोषण नहीं मिल रहा। हमारे पास स्वर्ग के राज्य में हमें ले जाने के लिए प्रभु की प्रतीक्षा के अलावा कोई विकल्प नहीं है।" भाई लिन ने कहा, "प्रभु यीशु ने कहा था, 'जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा' (यूहन्ना 4:14)। परमेश्वर जीवन का अंतहीन और अक्षय स्रोत है। प्रभु के विश्वासियों को बिना प्यास के, जीवन जल के फव्वारे से आपूर्ति होनी चाहिए, पर अब आपके उपदेश में कोई नई रोशनी नहीं है, भाई-बहन आध्यात्मिक रूप से प्यासे, निष्क्रिय और कमजोर हो गए हैं। साफ है कि कलीसिया में अब पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है। तो क्या प्रभु की वापसी की आपकी प्रतीक्षा प्रभु की इच्छा है? क्या आपको यकीन है कि प्रभु आपको नहीं त्यागेगा?" भाई लिन के सवालों ने मुझे अवाक कर दिया। इस तरह प्रभु की प्रतीक्षा करना ठीक नहीं लगा, पर मैं भी प्रभु यीशु की शिक्षाओं का पालन कर रहा था। इसलिए मैंने कहा, "बाइबल साफ कहती है, 'उस समय यदि कोई तुम से कहे, "देखो, मसीह यहाँ है!" या "वहाँ है!" तो विश्वास न करना क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें' (मत्ती 24:23-24)। ये दो पद साफ तौर पर हमें बताते हैं कि अंत के दिनों में झूठे मसीह प्रकट होते हैं और प्रभु के आने का हर दावा झूठा है। मैं प्रभु की शिक्षाओं का पालन कर रहा हूँ। जब अन्य लोग प्रभु के आगमन का प्रचार करते हैं तो उनकी जाँच न करने में क्या कोई समस्या है?" भाई लिन ने कहा, "प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अंत के दिनों में फिर से आएगा, पर आप कहते हैं कि प्रभु के आने का हर दावा झूठा है। क्या यह प्रभु के वचनों का खंडन और अंत के दिनों में उसकी वापसी को नकारना और निंदा करना नहीं है? आइए अंत के दिनों में प्रभु की वापसी के बारे में सोचें। चूँकि झूठे मसीह प्रकट होते हैं, यानी मसीह यकीनन आएगा। यदि हम झूठे मसीहों से आँख मूँदकर बचते फिरते हैं, प्रभु यीशु के देहधारण करके लौटने पर, हम उसकी वाणी सुनने या पढ़ने से इनकार करते हैं, तो क्या हम प्रभु यीशु के लिए रास्ते बंद नहीं कर रहे? हम इस तरह प्रभु का स्वागत कैसे कर सकते हैं? अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने के सामने, केवल धोखा खाने का डर होने से काम नहीं चलेगा। बस सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच अंतर करना सीखना मायने रखता है। यह आपको झूठे मसीहों के बहकावे में आने से बचाएगा।" यह बात पूरी तरह सही है। उन्हें पहचानना सीखना ही कुंजी है!
यह सुनते ही मेरा दिल खिल उठा। उनकी संगति समझ में आई। यदि मैं आँख बंद करके झूठे मसीहों से बचता और डरता, और उपदेश सुनने, सत्य खोजने, या जाँच करने से इनकार करता, और यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटकर आए प्रभु यीशु होते तो क्या मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश का अवसर नहीं खो देता? इसलिए मैंने फौरन पूछा, "फिर हम झूठे मसीहों को कैसे पहचानें?" भाई लिन ने कहा, "बाइबल की भविष्यवाणी लोगों को प्रभु यीशु की चेतावनी है। अंत के दिनों में झूठे मसीह लोगों को धोखा देने निकलेंगे, लेकिन प्रभु यीशु ने हमें उनकी पहचान के सबसे अहम सिद्धांतों में से एक बताया है कि झूठे मसीह संकेत और चमत्कार दिखाकर लोगों को धोखा देंगे। तब यह साफ होना चाहिए कि अंत के दिनों में मसीह चमत्कारों के बिना आता है, क्योंकि परमेश्वर का कार्य हमेशा नया होता है, कभी पुराना नहीं होता और कभी दोहराया नहीं जाता। यह हमेशा नया, ऊँचा कार्य होता है। मसीह अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त करने, और मानवजाति को पूरी तरह स्वच्छ कर बचाने के लिए आता है। मगर झूठे मसीह और झूठे पैगंबरों में परमेश्वर का सार नहीं होता। वे सभी बुरी आत्माएं हैं। इसलिए उनके पास बिल्कुल भी सत्य नहीं है और वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते। वे केवल प्रभु की नकल कर लोगों को धोखा देने के लिए चमत्कार दिखा सकते हैं। यदि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ें, तो समझ जाएंगे। 'यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। ... मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए'" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)। भाई लिन कहते गए, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत साफ हैं। जो लोग चमत्कार करते, बीमारों को चंगा करते, और राक्षसों को निकालते हुए लौटकर आए प्रभु यीशु होने का दावा करते हैं, वे यकीनन झूठे मसीह हैं, क्योंकि प्रभु यीशु पहले ही वैसा काम कर चुके हैं, और परमेश्वर का कार्य दोहराया नहीं जाता है। जब प्रभु यीशु कार्य करने आया तो उसने व्यवस्था के युग के कार्य को नहीं दोहराया। इसके बजाय, उद्धार कार्य के लिए परमेश्वर की योजना के अनुसार और मानवजाति की जरूरतों के आधार पर उसने छुटकारे का कार्य किया। उसे मानवजाति के लिए अनन्त पापबलि के रूप में सूली पर चढ़ाया गया, जिससे मानवजाति को पाप से छुटकारा मिला, व्यवस्था का युग समाप्त हुआ और अनुग्रह के युग की शुरुआत हुई। अंत के दिनों में परमेश्वर प्रकट होकर देह में कार्य करता है, कोई संकेत और चमत्कार नहीं होते। प्रभु यीशु के कार्य के आधार पर, वह कार्य का एक चरण पूरा करता है जो ऊँचा और गहरा है, अंत के दिनों में न्याय का कार्य, जिसमें वह लोगों के पापों का न्याय करने और उन्हें स्वच्छ करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, हमें पूरी तरह पाप से बचाता है ताकि हम परमेश्वर के पास लौटकर उसके राज्य में लाए जा सकें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य अनुग्रह के युग को समाप्त करता है और राज्य का युग शुरू करता है। यह कार्य प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य से अलग है और यह दोहराया नहीं जाता। हम देख सकते हैं कि परमेश्वर का कार्य सदा नया होता है, कभी पुराना नहीं होता। नयापन परमेश्वर के कार्य की सबसे अहम विशेषता है। अपने कार्य के हर चरण में परमेश्वर नए वचन व्यक्त करता है, नया युग शुरू करता है और लोगों को उस युग के मुताबिक अभ्यास का मार्ग और दिशा बताता है, ताकि कदम दर कदम लोग पूरी तरह पाप से बच सकें और परमेश्वर के राज्य में लाए जा सकें। इसके उलट झूठे मसीह सत्य व्यक्त नहीं कर पाते या बिल्कुल भी नया कार्य नहीं कर पाते, और यकीनन लोगों को स्वच्छ नहीं कर सकते या बचा नहीं सकते। वे केवल प्रभु यीशु के किए कार्य की नकल कर सकते हैं, लोगों को धोखा देने के लिए मामूली संकेत और चमत्कार दिखा सकते हैं। एक बार जब हम सत्य का यह पहलू समझ लेते हैं और इस सिद्धांत में महारत पा लेते हैं, तो हमें झूठे मसीहों से धोखा होने का डर नहीं रह जाता।"
भाई लिन की संगति सुनने के बाद मुझे अचानक लगा : "परमेश्वर के कार्य की विशेषता उसका नयापन है। बिल्कुल। व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने जो कार्य किया वह पूरी तरह से अलग था। एक में उसने पृथ्वी पर रहने के लिए लोगों की अगुआई की, उन्हें व्यवस्थाओं और आज्ञाओं का पालन करना सिखाया, दूसरे में उसे पूरी मानवजाति के छुटकारे के लिए सूली पर चढ़ाया गया। अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य यकीनन प्रभु यीशु के किए कार्य से भिन्न है। यह नए शुरुआती बिंदु से किया गया नया काम है। यह संगति बहुत व्यावहारिक है।" फिर मैंने उनके सामने खुलकर कहा, "आपकी संगति बहुत व्यावहारिक है और मैं इसे पूरी तरह समझ सकता हूँ। झूठे मसीह नए कार्य नहीं कर सकते, वे लोगों को धोखा देने के लिए संकेत और चमत्कार दिखाकर परमेश्वर के पिछले कार्य की केवल नकल कर सकते हैं। मगर एक बात अभी भी मुझे समझ में नहीं आ रही है। हम कैसे तय करें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों का मसीह यानी लौटकर आया प्रभु यीशु है?"
भाई लिन ने खुशी से कहा, "आपका सवाल अच्छा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमारे सभी भ्रम दूर कर सकते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ेंगे तो हम समझ जाएंगे।" सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "ऐसी चीज़ की जाँच-पड़ताल करना कठिन नहीं है, परंतु इसके लिए हममें से प्रत्येक को इस सत्य को जानने की ज़रूरत है: जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। "देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसके कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से सँभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद भाई लिन ने संगति की, "यह पता लगाने के लिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है, हमें उसके बाहरी रूप के बजाय सार देखना चाहिए। मसीह तब है जब स्वर्ग का परमेश्वर पृथ्वी पर आकर साधारण देहधारण करता है, इंसान बन जाता है, और लोगों के बीच प्रकट होकर काम करता है। बाहर से मसीह एक साधारण और आम व्यक्ति है, उसमें सामान्य व्यक्ति के जीवन की लय के साथ ही सामान्य व्यक्ति के सुख-दुख भी हैं। हर्ष देने वाली चीजें उसे खुश करती हैं और दुखदायी बातें दुखी करती हैं। मगर मसीह चाहे जितना भी साधारण और सामान्य दिखे, उसके जीवन का सार मनुष्यों से बिल्कुल अलग होता है। मसीह परमेश्वर का आत्मा है जिसने देह्धारण किया है, परमेश्वर का आत्मा मसीह के भीतर रहता है और मसीह पूरी तरह से दिव्य है, इसलिए वह कभी भी सत्य व्यक्त कर इंसान की भ्रष्टता को उजागर और विश्लेषण कर सकता है, वह लोगों को अपने पाप त्यागने और परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मार्ग और दिशा बता सकता है, और वह मानवजाति को पूरी तरह शुद्ध कर बचा सकता है। मसीह जो व्यक्त और प्रकट करता है वह परमेश्वर का स्वभाव है और जो उसके पास है, और जो वह करता है वह परमेश्वर का अपना कार्य है। ये चीजें किसी इंसान में नहीं हो सकतीं, न ही वह इन्हें पा सकता है। अनुग्रह के युग में जब परमेश्वर ने पहली बार देहधारण किया, बाहर से वह साधारण और सामान्य व्यक्ति था, साधारण परिवार में जन्मा था, जिसकी सामाजिक हैसियत या ऊँची और महान छवि नहीं थी, लेकिन प्रभु यीशु का सार परमेश्वर ही था। उसने हमें स्वर्गिक राज्य का सुसमाचार और पश्चात्ताप का मार्ग दिया, उसने लोगों के पोषण और चरवाही के लिए कभी भी और कहीं भी सत्य व्यक्त किया, अंत में उसे मानवजाति के लिए सूली पर चढ़ा दिया गया और सभी लोगों का छुटकारा हुआ। ऐसा इसलिए था ताकि लोगों के पाप क्षमा किए जाएं और वो जीवित रहकर अपना विकास जारी रख सकें। प्रभु यीशु के वचनों और कार्य से हम पूरी तरह निश्चित हो सकते हैं कि वह देहधारी परमेश्वर यानी मसीह था। यह तय करने के लिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है, हमें उसके वचन और कार्य भी देखने चाहिए। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के आधार पर लाखों वचन व्यक्त करने आया है, वह बाइबल के उन रहस्यों को प्रकट करेगा जो हजारों साल से छिपे हैं, जैसे देहधारण के रहस्य, कार्य के तीन चरण, परमेश्वर के नाम आदि। सर्वशक्तिमान परमेश्वर शैतान के हाथों भ्रष्ट किए गए इंसान के सार और सत्य का खुलासा कर उसका न्याय करता है, पश्चात्ताप और परिवर्तन का मार्ग बताता है, जैसे कि सच्चा पश्चात्ताप कैसे हासिल करें, सामान्य मानवता को कैसे जिएं, परमेश्वर किसे पसंद करता और किससे नफरत करता है, किस तरह के लोग बचाए जाते हैं और किन्हें त्यागा जाता है, मानवजाति का अंत और गंतव्य और राज्य की सुंदरता क्या है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए जरूरी सभी सत्यों की व्याख्या करता है ताकि लोगों के पास एक मार्ग हो, वो पाप के बंधन से छूट सकें, स्वभाव में परिवर्तन लाएं और परमेश्वर उन्हें बचा सके। यह पूरी तरह से प्रभु यीशु के इन वचनों को पूरा करता है, 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। और प्रकाशितवाक्य में भी भविष्यवाणी है, 'जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है' (प्रकाशितवाक्य अध्याय 2, 3)। आइए इस पर विचार करें। पूरी भ्रष्ट मानवजाति में से कौन इन सत्यों और रहस्यों को व्यक्त कर सकता है? लोगों को पूरी तरह स्वच्छ कर बचाने के लिए न्याय का कार्य कौन कर सकता है? लोगों के परिणाम तय करने और उन्हें एक सुंदर गंतव्य देने की क्षमता किसमें है? परमेश्वर के अलावा किसी के पास यह अधिकार या सामर्थ्य नहीं है। एक दिल और एक आत्मा वाले लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर की व्यक्त की गई बातें पढ़कर आश्वस्त होते हैं, उन्हें पूरा यकीन होता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। इसमें कोई संदेह नहीं।" सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य पूरी तरह साबित करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों के मसीह का प्रकटन है।
ये बातें सुनने के बाद मेरा दिल खिल उठा और मन भर आया, मैंने अपने भाई से कहा, "आपकी संगति के बाद मैं सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच अंतर कर सकता हूँ, और मैं जानता हूँ कि कैसे तय करेंगे कि मसीह कौन है। मसीह में परमेश्वर का सार है, वह सत्य व्यक्त कर परमेश्वर का काम कर सकता है, और लोगों को स्वच्छ कर बचा सकता है। लेकिन झूठे मसीह परमेश्वर के देहधारण नहीं हैं और उनके पास दिव्य सार नहीं है, तो वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते या लोगों को नहीं बचा सकते। वे केवल परमेश्वर के पिछले कार्य की नकल करके, संकेत और चमत्कार दिखाकर लोगों को धोखा दे सकते हैं।" मुझे यह कहते सुनकर भाई लिन ने ईमानदारी से कहा, "परमेश्वर का धन्यवाद! आपका इस तरह समझना असल में परमेश्वर की दया और अनुग्रह है। जब देहधारी परमेश्वर प्रकट होकर कार्य करता है, चाहे कितने भी लोग उसे अस्वीकार करें या उसकी निंदा करें, भले ही पूरी मानवजाति उसे ठुकरा दे, फिर भी वह परमेश्वर और मसीह है। चाहे झूठे मसीह खुद की कैसी भी गवाही दें, वे झूठे हैं और टिक नहीं सकते।" असली झूठा नहीं हो सकता, झूठा असली नहीं हो सकता। इस तथ्य को कोई नहीं बदल सकता।
इसके बाद भाई लिन ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का अंश पढ़ा जिसने मुझे परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के रहस्य की कुछ समझ दी, और मुझे कहीं ज्यादा आश्वस्त किया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यहोवा के कार्य के बाद, यीशु मनुष्यों के मध्य अपना कार्य करने के लिए देहधारी हो गया। उसका कार्य अलग से किया गया कार्य नहीं था, बल्कि यहोवा के कार्य के आधार पर किया गया था। यह कार्य एक नए युग के लिए था, जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था का युग समाप्त करने के बाद किया था। इसी प्रकार, यीशु का कार्य समाप्त हो जाने के बाद परमेश्वर ने अगले युग के लिए अपना कार्य जारी रखा, क्योंकि परमेश्वर का संपूर्ण प्रबंधन सदैव आगे बढ़ रहा है। जब पुराना युग बीत जाता है, तो उसके स्थान पर नया युग आ जाता है, और एक बार जब पुराना कार्य पूरा हो जाता है, तो परमेश्वर के प्रबंधन को जारी रखने के लिए नया कार्य शुरू हो जाता है। यह देहधारण परमेश्वर का दूसरा देहधारण है, जो यीशु का कार्य पूरा होने के बाद हुआ है। निस्संदेह, यह देहधारण स्वतंत्र रूप से घटित नहीं होता; व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के बाद यह कार्य का तीसरा चरण है। हर बार जब परमेश्वर कार्य का नया चरण आरंभ करता है, तो हमेशा एक नई शुरुआत होती है और वह हमेशा एक नया युग लाता है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव, उसके कार्य करने के तरीके, उसके कार्य के स्थल, और उसके नाम में भी परिवर्तन होते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के लिए नए युग में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना कठिन होता है। परंतु इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य द्वारा उसका कितना विरोध किया जाता है, परमेश्वर सदैव अपना कार्य करता रहता है, और सदैव समस्त मानवजाति का प्रगति के पथ पर मार्गदर्शन करता रहता है। जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। भाई लिन ने संगति की, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से हमें पता है कि मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के कार्य के तीन चरण हैं। ये चरण एक दूसरे से अलग नहीं हैं। हरेक कार्य पिछले कार्य के आधार पर किया जाता है, और कदम दर कदम वे गहरे और ऊँचे होते जाते हैं, ताकि अंत में लोगों को पूरी तरह पाप से बचाकर परमेश्वर के राज्य में लाया जा सके। व्यवस्था के युग में परमेश्वर ने पृथ्वी पर मानवजाति के जीवन की अगुआई करने के लिए व्यवस्थाएं बनाईं, लोगों को बताया कि पाप क्या है और यहोवा परमेश्वर की आराधना कैसे करें। अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने लोगों को पश्चात्ताप का मार्ग देने के लिए देहधारण किया, सूली पर चढ़कर पूरी मानवजाति को छुटकारा दिलाया, हमारे पाप माफ किए, हमें अनुग्रह कर बचाया ताकि हम व्यवस्था से दोषी न साबित हों। मगर प्रभु यीशु का कार्य केवल छुटकारे का कार्य है, मनुष्य के पापों की क्षमा है। हमारा पापी स्वभाव अभी भी अनसुलझा है, हम अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन पाप में जीते हैं। राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट होकर कार्य करता है, सत्य व्यक्त करता है और लोगों को पूरी तरह शुद्ध कर बचाने के लिए न्याय का कार्य करता है, ताकि हम शैतान के प्रभाव से बचें और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें। इससे हम देख सकते हैं कि परमेश्वर के कार्य का हर चरण मानवजाति की जरूरतों के मुताबिक है। वे कभी एक दूसरे को दोहराते या विरोध नहीं करते, वे सभी हमें पाप से पूरी तरह बचाने के लिए हैं ताकि परमेश्वर हमें पूरी तरह हासिल करे। कार्य के ये तीन चरण मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना हैं। अंत के दिनों में न्याय का कार्य परमेश्वर की प्रबंधन योजना का अंतिम चरण है। यदि लोग अंत के दिनों के मसीह के न्याय और स्वच्छता को स्वीकार नहीं करते, तो वे कभी भी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने लायक नहीं होंगे।"
उनकी संगति सुनने के बाद मेरा दिल और खिल गया था। अब मुझे पता था कि मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर तीन चरणों में कार्य करता है। कार्य का हर चरण पिछले चरण से गहरा होता है और वे आखिर लोगों को पाप से बचाते हैं। ऐसी संगति बाइबल और तथ्यों के मुताबिक थी। इतने साल तक प्रभु में विश्वास के बावजूद मैंने ऐसा उपदेश कभी नहीं सुना था। किसी भी पादरी या प्रचारक ने मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के कार्य को इतनी अच्छी तरह नहीं समझाया था। मुझे अपने अहंकार के साथ-साथ अपने अगुआओं और सहकर्मियों की भ्रांतियों में अंधविश्वास से घृणा हुई। मैं कई साल से अंत के दिनों के परमेश्वर के सुसमाचार को ठुकरा रहा था। मैं कितना अज्ञानी था! इस तरह मैं प्रभु का स्वागत करने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का मौका खो देता। इसलिए मैंने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जाँच जारी रखने का फैसला किया। जाने से पहले भाई लिन ने मुझे परमेश्वर के वचन की एक किताब दी।
उसके बाद मैंने पूरे मन से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े, मुझे कई सत्य और रहस्य समझ में आए, जितना मैंने पढ़ा उतना ही मुझे यकीन होता गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु की वापसी यानी अंत के दिनों के मसीह का प्रकटन है। तब से मैंने आधिकारिक तौर पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार कर लिया है। मैं प्रभु का स्वागत करने से खुश भी था और शर्मिंदा भी। पिछले कुछ साल में भाई-बहनों ने मुझे बार-बार सुसमाचार का प्रचार किया था, पर मैं जिद्दी था। मैंने न तो सत्य खोजा, न जाँच की, बल्कि मैंने उन्हें दुश्मन माना। मैंने कलीसिया को बंद कर दूसरों को प्रभु की वाणी सुनने और उनका स्वागत करने से रोक दिया। मैं दुष्टता कर रहा था! जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया, तो फरीसियों ने प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करने के लिए सभी तरह की भ्रांतियां फैलाईं ताकि विश्वासियों को प्रभु का अनुसरण करने से रोका जा सके। मैंने जो किया वह फरीसियों से अलग नहीं था। मैं सच में परमेश्वर से शापित और दंडित होने लायक था। मगर परमेश्वर ने मेरे अपराध याद नहीं रखे और बार-बार उसने भाई-बहनों को मेरे पास सुसमाचार का प्रचार करने भेजा, जब तक कि मैंने अंत में परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी। मुझ पर परमेश्वर का बहुत प्यार और दया थी! मुझे विवेक और समझदारी के साथ, उन लोगों के बीच परमेश्वर का सुसमाचार पहुँचाना था जो प्रभु के आगमन को तरसते थे पर अफवाहों के धोखे में थे, ताकि मैं उन्हें परमेश्वर के घर ला सकूँ और परमेश्वर के दिल को सुकून दे सकूँ।
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