मौत के मुंह से बच निकलना
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर मनुष्य के हृदय से कभी अनुपस्थित नहीं होता, और हर समय मनुष्य के बीच रहता है। वह मनुष्य के जीवनयापन की प्रेरक शक्ति, मनुष्य के अस्तित्व का आधार, और जन्म के बाद मनुष्य के अस्तित्व के लिए समृद्ध भंडार रहा है। वह मनुष्य के पुनः जन्म लेने का निमित्त है, और उसे प्रत्येक भूमिका में दृढ़तापूर्वक जीने के लिए समर्थ बनाता है। उसकी सामर्थ्य और उसकी कभी न बुझने वाली जीवन शक्ति की बदौलत, मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रहा है, इस दौरान परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य मनुष्य के अस्तित्व का मुख्य आधार रही है, और जिसके लिए परमेश्वर ने वह कीमत चुकाई है जो कभी किसी साधारण मनुष्य ने नहीं चुकाई। परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी अन्य शक्ति से जीत सकती है; इससे भी अधिक, यह किसी भी शक्ति से बढ़कर है। उसका जीवन अनंत है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसकी जीवन शक्ति को किसी भी सृजित प्राणी या शत्रु शक्ति द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है। समय और स्थान चाहे जो हो, परमेश्वर की जीवन शक्ति विद्यमान रहती है और अपने देदीप्यमान तेजस्व से चमकती है। स्वर्ग और पृथ्वी बड़े बदलावों से गजर सकते हैं, परंतु परमेश्वर का जीवन हमेशा एक समान ही रहता है। हर चीज का अस्तित्व समाप्त हो सकता है, परंतु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा, क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत और उनके अस्तित्व का मूल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। जब यह अंश पहले मैंने पढ़ा था, तो मैंने उसे सिर्फ एक सिद्धांत के रूप में समझा था, मगर मैं इसे कभी भी सचमुच समझ नहीं पाया। बाद में, मुझे सीसीपी द्वारा गिरफ़्तार कर उत्पीड़ित किया गया और बर्बरता से यातना दी गयी, जब शैतान मुझे तबाह कर रहा था, तब परमेश्वर के वचनों ने ही मुझे बार-बार मौत के मुंह से बच निकलने का रास्ता दिखाया। मैंने परमेश्वर के अद्भुत कार्य देखे और अनुभव किया कि उसके वचनों का अधिकार सबसे बढ़-चढ़ कर है। मैंने परमेश्वर के बारे में थोड़ी समझ हासिल की और मेरी आस्था बढ़ी।
सन् 2006 की बात है, जब कलीसिया में मुझे परमेश्वर के वचनों की क़िताबें छपवाने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी। मुझे याद है, एक बार क़िताबें पहुँचाने के दौरान, क़िताबें पहुँचाने के लिए ज़िम्मेदार कुछ भाई-बहनों और हमारे द्वारा नियुक्त प्रिंटिंग प्रेस के एक ड्राइवर को सीसीपी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था। उस कार में रखी क़िताब वचन देह में प्रकट होता है की दस हज़ार प्रतियां ज़ब्त कर ली गयी थीं। उस ड्राइवर ने हमसे गद्दारी की, इसलिए दर्जन भर और भाई-बहन भी गिरफ़्तार कर लिये गये थे। उस मामले से दो प्रांतों में हलचल मच गयी और तब केंद्रीय समिति ने उसकी निगरानी शुरू कर दी। सीसीपी की सरकार को बाद में पता चला कि मैं एक कलीसिया का अगुआ हूँ, तब उन्होंने मेरे काम के दायरे की खोज-बीन के लिए सशस्त्र पुलिस को रवाना करने तक का कदम उठाया। उस वक्त, हम जिस प्रिंटिंग प्रेस में काम कर रहे थे, वहां से उन्होंने दो कारों और एक ट्रक को, और साथ ही उनमें से 65,500 युवान नकद भी ज़ब्त कर लिया। जो भाई-बहन क़िताबें पहुँचाने में मदद कर रहे थे, उनसे भी उन्होंने 3,000 युवान छीन लिये। उसके बाद पुलिस खोजबीन के लिए दो बार मेरे घर आयी, उन्होंने हर बार मेरे घर के दरवाज़े को तोड़ कर खोला। जो भी चीज़ उन्होंने उठायी, उसे तोड़ कर चूर-चूर कर दिया, घर को पूरी तरह से तबाह कर दिया। सीसीपी मुझे गिरफ़्तार कर लेने के बाद रुकी नहीं, बल्कि उन लोगों ने मेरे पड़ोसियों और मुझसे संबंधित लोगों को भी हिरासत में ले लिया, और कोशिश की कि वे ज़ोर-जबरदस्ती करके उनसे मेरा पता-ठिकाना उगलवा लें।
मेरे पास सीसीपी की गिरफ़्तारी और उत्पीड़न से बचने के लिए बहुत दूर एक रिश्तेदार के घर भाग जाने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं था। मुझे बड़ी हैरानी हुई कि तीसरे दिन शाम होते-होते, मेरे गाँव की पुलिस ने यहाँ की सशस्त्र पुलिस और अपराध पुलिस के साथ समन्वय किया, और 100 से भी ज़्यादा लोगों ने मेरे रिश्तेदार के घर को इतनी सख्ती से घेर लिया कि कोई भी चीज़ आ-जा नहीं सकती थी। तब पुलिस घर के अंदर घुस आयी। लगभग दर्जन भर पुलिसवालों ने मेरे सिर पर अपनी पिस्तौल से निशाना साधा, और उनमें से एक चिल्लाया, "ज़रा-सा भी हिले-डुले तो मारे जाओगे।" वे सब एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते मुझे हथकड़ी लगाने को आगे बढे, मेरे दाहिने हाथ को मेरे कंधे पर मोड़ कर और बायें हाथ को झटके से पीछे घुमा दिया। वे मुझे हथकड़ी नहीं लगा पाये, तो उन्होंने मेरी पीठ पर पैर रख कर हाथ को ऊपर खींचा, और दोनों कलाइयों में जबरन हथकड़ी लगा दी। भयानक दर्द हो रहा था। मेरे पास जो 650 युवान थे, उन्होंने ले लिये और पूछा कि कलीसिया का पैसा कहाँ रखा है, फिर मुझसे कहा कि वो सब उन्हें दे दूं। इससे मैं आग बबूला हो गया। यह किस किस्म की "जनता की पुलिस" थी? मैंने सभाओं में भाग लिया, परमेश्वर के वचन पढ़े और अपनी आस्था में अपना कर्तव्य निभाया, लेकिन उन्होंने इतनी बड़ी ताकत जमा कर सिर्फ मुझे गिरफ़्तार करने के लिए इतनी मशक्कत की, और अब वे चाहते थे कि कलीसिया की निधियों की लूट-पाट और गबन करें। यह मज़ाक से भी बढ़ कर था! मुझे बोलता न देख एक अधिकारी मेरे पास आया और उसने मुझे दो बार ज़ोर से चांटा मारा, फिर लात मार कर ज़मीन पर गिरा दिया। फिर वे लोग मुझे फुटबॉल की तरह लात मारते रहे। मैं दर्द के मारे बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया, तो मैं पुलिस की गाड़ी में अपने शहर ले जाया जा रहा था। कार में, पुलिस ने मुझे भारी ज़ंजीरों से बांध रखा था, एक तरफ मेरी गर्दन में ज़ंजीर थी तो दूसरी तरफ मेरे पैर ज़ंजीरों से बंधे हुए थे। मैं सिर्फ कुंडली बना पड़ा रह सकता था, चेहरा नीचे किये, अपने सीने और सिर पर झुके हुए ताकि मैं नीचे न गिर जाऊं। मेरा कष्ट देख कर, पुलिसवाले मुझ पर हंसते रहे और हर प्रकार की अपमानजनक बातें कहते रहे। मैं बखूबी जानता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था की वजह से वे मेरे साथ इस तरह पेश आ रहे थे। अनुग्रह के युग में परमेश्वर द्वारा बोली ये पंक्तियाँ मुझे याद आयीं: "यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा" (यूहन्ना 15:18)। उन्होंने मुझे इस तरह जितना अपमानित किया, उतनी ही स्पष्टता से मैं उनकी कुरूपता को देखता रहा और उनकी शैतानी, परमेश्वर से घृणा करने वाली दुष्ट प्रकृतियों को देखता रहा। मैं उनसे और भी ज़्यादा घृणा करने लगा। मैं मन-ही-मन निरंतर परमेश्वर से प्रार्थना कर उसे पुकारता रहा, उससे अपने दिल को मजबूत करने को कहता रहा, ताकि मुझे जैसी भी यातना का सामना करना पड़े, मैं परमेश्वर की गवाही दे सकूं और शैतान को अपमानित कर सकूं। प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया: "मेरे भीतर शांत रहो, क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ, तुम लोगों का एकमात्र उद्धारक। तुम लोगों को हर समय अपने हृदय शांत रखने चाहिए और मेरे भीतर रहना चाहिए; मैं तुम्हारी चट्टान हूँ, तुम्हारा पुश्ता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। ये सच है। इंसान का सब-कुछ परमेश्वर की समझ और व्यवस्था के दायरे में है, और यह परमेश्वर ही तय करता है कि इंसान जियेगा या मरेगा। जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरे साथ हो, तो मुझे डर कैसा? इस विचार ने मेरी आस्था को नयी ऊर्जा दी, और जो बर्बर यातना आगे आने वाली थी उसका सामना करने के लिए मैं परमेश्वर का सहारा लेने को तैयार हो गया।
लगभग 18 घंटे के सफ़र के दौरान, जाने कितनी बार मैं दर्द के मारे बेहोश हुआ। मुझे बस इतना याद है कि रात दो बजे के बाद ही मुझे अपने शहर के हिरासत केंद्र पहुंचाया गया। लगा जैसे मेरे शरीर का सारा खून जम गया है। मेरे हाथ-पैर बुरी तरह सूज गये थे, सुन्न हो गये थे, उनमें जैसे जान ही नहीं थी, और मैं उन्हें हिला ही नहीं पा रहा था। मैंने कुछ अफसरों को मेरे बारे में कहते सुना, "ये बंदा मर तो नहीं गया?" उसके बाद, वे लोग मेरी बेड़ियाँ खींच कर मुझे घसीटते हुए नीचे ले आये। मैंने हथकड़ियों के दांतों को अपने हाथों में गहरा घाव करता महसूस किया, उन लोगों ने मुझे कार से बाहर घसीटा और उछाल कर ज़मीन पर फेंक दिया। दर्द के मारे मैं बेहोश हो गया। इसके तुरंत बाद, एक अफसर ने मुझे ज़ोर से लात मारकर जगाया, फिर बेदर्दी से घसीट कर मुझे मौत की कोठरी में ले आया। अगले दिन, बंदूकों से लैस करीब एक दर्जन पुलिसवाले मुझे हिरासत केंद्र से उठा कर, शहर की सरहद से बाहर के इलाके में किसी दूर की जगह पर ले गये। वहां ऊंची दीवारों से घिरा एक बहुत विशाल प्रांगण था। मुझे लगा, यह ढेरों सुरक्षाकर्मियों की निगरानी में है। सशस्त्र पुलिस सुरक्षा में लगी हुई थी, और दरवाज़े पर "पुलिस डॉग ट्रेनिंग बेस" लिखा हुआ था। कमरे में पहुँचने के बाद मैंने देखा कि यहाँ तरह-तरह की यातना सामग्री रखी हुई है। ये देख कर मेरा खून सर्द हो गया। पुलिस ने पहले मुझे प्रांगण के बीचोबीच खड़ा कर ज़रा भी न हिलने-डुलने का आदेश दिया। उन्होंने एक पिंजड़ा खोल कर चार खूंख्वार कुत्तों को बाहर छोड़ दिया, फिर मेरी ओर इशारा कर कुत्तों को हुक्म दिया, "दौड़ो, मार डालो!" वे चारों कुत्ते भयानक तरीके से मुंह बाये मेरी तरफ दौड़ पड़े और मैंने डर के मारे तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं। मैं भौंचक्का हो गया, मेरे सिर में कुछ भिनभिनाने लगा। मन में एक ही ख़याल था: "हे परमेश्वर! मुझे बचाओ! मुझे बचाओ!" मैंने मन-ही-मन बार-बार परमेश्वर को पुकारा। थोड़ी देर बाद, मैंने अचानक महसूस किया कि वे कुत्ते मेरे कपड़ों को काट रहे थे, उन्होंने मुझे बिल्कुल भी ज़ख़्मी नहीं किया था। एक ऐसा कुत्ता भी था जो मेरे कंधों पर सिर लगाये, मुझे सूंघते हुए मेरे चहरे को चाट रहा था। इससे भी मुझे कोई दर्द नहीं हो रहा था। एकाएक मैंने बाइबल के नबी दानिय्येल के बारे में सोचा। परमेश्वर की आराधना करने के कारण उसे शेर के पिंजड़े में फेंक दिया गया था, लेकिन परमेश्वर उसके साथ था। उसने फ़रिश्ते भेज कर शेरों के मुंह बंद करा दिये, जिससे भूखे शेर दानिय्येल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सके। इस विचार ने मेरा विश्वास बढ़ाया। मुझे सचमुच लगा कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है, मेरा ज़िंदा रहना या मर जाना उसी के हाथ में है। मैंने सोचा, "अगर आज परमेश्वर मेरी आस्था के लिए मुझे शहीद होने देता है, तो यह मेरा सम्मान होगा और मैं शिकायत नहीं करूंगा।" मैं मौत के ख़याल से बेबस नहीं था, और जब मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपना जीवन देने को तैयार हो गया, तब मैंने परमेश्वर का एक और अद्भुत कार्य देखा। मैंने उन पुलिस वालों को चिल्लाते हुए सुना, "मार डालो! मार डालो!" लेकिन कुत्तों ने मेरे पास आकर सिर्फ मेरे कपड़ों को काटा, मुझे सूंघा, चाटा और फिर वापस मुड़ कर दूर भाग गये। पुलिस ने कुत्तों को रोका और कोशिश की कि वापस आकर वे मुझ पर हमला करें, लेकिन कुत्ते भयभीत होकर इधर-उधर छितरा कर भाग गये, उन्होंने अब भी मुझे नहीं काटा। पुलिस वाले समझ नहीं पा रहे थे और बोले, "कितनी अजीब बात है कि कुत्ते इसे काट नहीं रहे हैं!" यह सुन कर मैं परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचने लगा: "मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। पुलिस के कुत्तों के जत्थे के बीच सुरक्षित और ठीक रह पाना परमेश्वर द्वारा चुपचाप मेरी रक्षा करना था, मुझे उसकी सर्वशक्तिमत्ता और अद्भुत कार्य दिखाना था। परमेश्वर में मेरी आस्था और ज़्यादा बढ़ गयी।
जब पुलिस वालों ने देखा कि चीज़ें उनकी उम्मीदों के मुताबिक़ नहीं हो रही हैं, तो वे मुझे एक यातना कक्ष में ले आये और हथकड़ियों से जकड़ कर दीवार पर टांग दिया। मेरी कलाइयों में फ़ौरन चुभने वाला तीखा दर्द शुरू हो गया जैसे कि वे टूट गयी हों। वे फिर भी चुप नहीं बैठे, बल्कि मुझे हाथों और लातों से मारने लगे। जब एक थक जाता तो दूसरा शुरू हो जाता। मुझे कूट-पीट कर नीला-काला कर दिया गया, मेरा बहुत-सा खून बह गया। शाम हो जाने के बाद भी उन लोगों ने मुझे नहीं छोड़ा। मैं ज़रा भी आँखें मूंदता, तो वे अपनी लाठियों से मुझे कोंचते, मुझे मारते हुए एक पुलिस वाला बोला, "जब कोई तुम्हें बेहोश करेगा, उसी पल ठीक उसी तरह मैं तुम्हें होश में लाऊंगा!" जब मैंने उसे यह कहते हुए सुना, तो समझ गया कि शैतान मेरा हौसला तोड़ने के लिए हर तरह की यातना देने की कोशिश कर रहा है, ताकि टूटने की कगार तक लाने के लिए जब मुझे यातना दे दी जाए और मैं ठीक से सोच न पाऊँ, और वे मुझसे कलीसिया के बारे में जानकारी उगलवा लें। तब वे भाई-बहनों को गिरफ़्तार कर कलीसिया का पैसा ज़ब्त कर पायेंगे। मैंने दर्द सहने के लिए अपने जबड़े भींचे, और खुद को आगाह किया: "मुझे फांसी भी दे दी जाए, तो भी मैं शैतान के आगे नहीं झुकूंगा!" वे लोग मुझे दूसरे दिन सुबह होने तक इसी तरह यातना देते रहे। मुझे लगा मेरी ताकत निचुड़ चुकी है, अब मौत ही आराम देगी, अब सहते रहने की ताकत नहीं बची है। मैं मन-ही-मन परमेश्वर को लगातार पुकार रहा था: "हे परमेश्वर! मेरी देह कमज़ोर है, और अब मैं यह सब बिल्कुल नहीं सह सकता। जब तक सांस चल रही है, जब तक मैं होश में और चौकस हूँ, मेरी विनती है कि तुम मेरी आत्मा ले लो। मैं यहूदा बन कर तुम्हें धोखा नहीं दूंगा।" अपनी प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा: "चूँकि परमेश्वर के कार्य के इस चक्र में परमेश्वर देह में आता है और इतना ही नहीं, बड़े लाल अजगर के निवास-स्थान में पैदा होता है, इसलिए इस बार धरती पर आकर वह पहले से भी अधिक बड़े ख़तरे का सामना करता है। वह चाकुओं, बंदूकों, लाठियों और डंडों का सामना करता है; वह प्रलोभन का सामना करता है; वह हत्या के इरादे से भरे चेहरों वाली भीड़ का सामना करता है। वह किसी भी समय मारे जाने का जोख़िम उठाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (4))। परमेश्वर सृजनकर्ता है। वह सर्वोच्च है, बहुत सम्माननीय है। वह दो बार देहधारी हुआ है, सत्य को व्यक्त करने और इंसान को बचाने के लिए उसने बहुत ज़्यादा तिरस्कार सहा है, शैतान द्वारा निरंतर खदेड़ा और उत्पीड़ित किया गया है, धार्मिक जगत द्वारा निंदा करके अस्वीकार किया गया है, दोनों पीढ़ियों द्वारा ठुकराया गया है। परमेश्वर की वेदना बहुत अधिक रही है। परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचने से मुझे बहुत प्रेरणा मिली, और मैंने संकल्प लिया, "जब तक मुझमें एक भी सांस बाकी है, मैं गवाही दूंगा और शैतान को अपमानित करूंगा!" यह देख कर कि बहुत देर से न तो मैं कुछ बोल रहा हूँ और न ही दया की भीख मांग रहा हूँ, पुलिस वालों को डर लगा कि अगर उन्होंने मार-मार कर मेरी जान ले ली, तो रिपोर्ट दाखिल नहीं कर पायेंगे। इसलिए उन्होंने मुझे मारना बंद कर दिया, लेकिन दो दिन-दो रात और मुझे दीवार पर लटका रहने दिया।
उस समय मौसम बहुत ठंडा था। मेर कपड़े तंग थे और मैं पसीने से लथ-पथ था, इतना ही नहीं, कई दिनों से मैंने कुछ भी नहीं खाया था। मुझे लगा कि मैं ज़्यादा समय तक टिक नहीं पाऊंगा। इस मुकाम पर पुलिस ने अपनी एक और चाल चली, मेरी सोच को प्रभावित करने और मेरे मत-परिवर्तन की कोशिश के लिए उन्होंने एक मनोवैज्ञानिक को बुलाया। मनोवैज्ञानिक ने कहा, "तुम अभी जवान हो, तुम्हारे माता-पिता हैं, खुद के बच्चे भी हैं। तुम्हारी गिरफ़्तारी के बाद से, तुम्हारे अगुआ सहित दूसरे विश्वासियों ने तुम्हारे लिए कोई फ़िक्र नहीं जताया है। क्या तुम उन लोगों की खातिर कष्ट उठाने की बेवकूफी नहीं कर रहे हो?" यह झूठ सुन कर, मैंने सोचा, "अगर मेरे भाई-बहन मुझसे मिलने आये, तो क्या वे आकर सीधे एक फंदे में फंस नहीं जाएंगे? तुम मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहे हो, और इन चालों के जरिये फंसाने की कोशिश कर रहे हो, भाई-बहनों के साथ मेरे रिश्तों से खेल रहे हो, जिससे मैं परमेश्वर को ग़लत समझ कर उसे दोष दूं और उसे ठुकरा दूं। मैं तुम्हें कामयाब नहीं होने दूंगा।" परमेश्वर की रक्षा की वजह से मैं शैतान की चाल को समझ पाया और उसमें नहीं फंसा। हार कर, मनोवैज्ञानिक ने सिर हिलाते हुए कहा, "इस बंदे का कुछ नहीं हो सकता। हम कुछ भी कर लें, इससे कुछ नहीं उगलवा सकेंगे। यह टस से मस नहीं होने वाला।" यह कह कर उसने सिर हिलाया और हार मान कर चला गया।
लेकिन जब पुलिस ने देखा कि नर्म तरीके से काम नहीं हो रहा है, तो उन्होंने तुरंत फिर से अपना असली रंग दिखाया और मुझे एक और दिन के लिए लटका दिया। उस शाम तक, मैं इतना ठंडा पड़ गया था कि सिर से पैर तक काँप रहा था, मेरे हाथ मानो टूट कर गिरने वाले थे। बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा था। मेरे दिमाग में धुंधलका छा गया, और मुझे लगा मैं अब ज़िंदा नहीं रह सकूंगा। उसी वक्त, अफसरों का एक झुंड अंदर आ गया, हरेक के हाथ में करीब एक मीटर लंबी लाठी थी। उन सबने मेरे घुटनों और एड़ियों पर ज़ोर-ज़ोर से मारना शुरू कर दिया, और कुछ दूसरे अफसरों ने कोंचना शुरू कर दिया। मुझे इतना दर्द हो रहा था कि मैं मर जाना चाहता था। उस वक्त, मैं वाकई पूरा टूट चुका था। आखिरकार मैं सहन नहीं कर सका, और मैंने रोना शुरू कर दिया। मन में परमेश्वर को धोखा देने का ख़याल आया। मैंने सोचा कि अगर मैं अपने भाई-बहनों को न खींचूँ तो शायद अपनी आस्था के बारे में बता सकता हूँ। मुझे रोता देख, पुलिस ने मुझे ज़मीन पर डाल दिया। उन्होंने मुझे वहीं लेटे रहने दिया, मेरे मुंह में थोड़ा पानी उड़ेल कर थोड़ा आराम करने दिया। वे कुछ लिखने के लिए पहले से तैयार कागज़-कलम ले आये। ठीक जब मैं शैतान के प्रलोभन में धंसता हुआ परमेश्वर को धोखा देने ही वाला था, कि परमेश्वर के वचन एकाएक मेरे दिमाग में कौंधे: "मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा जिन्होंने गहरी पीड़ा के दिनों में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई है, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी ही दूर तक है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं है जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। ... मेरा स्वभाव यही है। ... जो कोई भी मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी..." (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। इन वचनों ने मुझे महसूस कराया कि परमेश्वर का स्वभाव कोई अपमान बरदाश्त नहीं करता, और जो कोई परमेश्वर को धोखा देता है उसे उसकी दया फिर कभी नहीं मिलती। मेरा मन अचानक साफ़ हो गया और मैंने चांदी के 30 सिक्कों के लिए यहूदा द्वारा प्रभु यीशु को धोखा देने की बात याद की। क्या मैं कुछ पल के शारीरिक आराम के लिए परमेश्वर को सचमुच धोखा दूंगा? अगर परमेश्वर के वचनों ने ठीक समय पर मुझे रास्ता दिखा कर मुझे प्रबुद्ध न किया होता, तो शायद मैं परमेश्वर को धोखा दे देता और हमेशा के लिए दंडित हो गया होता! उसी पल मैंने एक स्तुति-गान की इन पंक्तियों को याद किया: "चाहे सिर फूट जाए, खून बह जाए, मगर परमेश्वर के लोगों का जोश न हो कम कभी। परमेश्वर का प्रबोधन दिल को छुए, मैं दानव शैतान को अपमानित करने का संकल्प करूं अभी" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। मैंने मन-ही-मन ये भजन धीमे-धीमे गुनगुनाया और अपनी आस्था को बढ़ता हुआ महसूस किया। मेरा जीना-मरना परमेश्वर के हाथ में था, और मैं जानता था कि मुझे उसकी व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए। जब तक एक भी सांस बाकी है, मुझे गवाही देनी चाहिए और सीसीपी के दानवों के आगे नहीं झुकना चाहिए!
जब उन्होंने देखा कि मैं फ़र्श पर यूं ही बिना हिले-डुले पड़ा हूँ, तो वे मुझे फुसलाते रहे। एक ने कहा, "क्या इस हद तक कष्ट सहना मुनासिब है? हम तुम्हारी गलतियों की भरपाई का मौक़ा दे रहे हैं, जो-कुछ जानते हो, हमें बता दो। वैसे हमें पहले से सब-कुछ पता है, तुम बोलो या न बोलो। तुम्हें दोषी साबित कर सज़ा दिलवाने के लिए हमारे पास बहुत सारे गवाह और साक्ष्य हैं।" मैं परमेश्वर को धोखा दूं और दूसरे विश्वासियों से गद्दारी करूं, इसके लिए उन्हें हर तरह की चाल चलने की कोशिश करते देख, मैं अपना गुस्सा दबा नहीं पाया और उन पर ज़ोर से चिल्ला पड़ा, "तुम सब-कुछ जानते हो, इसलिए मुझसे पूछने की कोई ज़रूरत नहीं? वैसे अगर मुझे पता होता, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं बताता!" हताश होकर एक अफसर ने कहा, "अगर आज तुम नहीं बोले, तो तुम्हारी मौत सामने होगी। यहाँ से ज़िंदा बच कर जाने की सोचना भी मत!" जवाब में, मैंने कहा, "तुम लोगों के हाथ आने के बाद, वैसे भी मुझे उम्मीद नहीं थी कि यहाँ से ज़िंदा बाहर जाऊंगा!" गुस्से में एक अफसर ने मेरे पेट पर लात दे मारी, लगा जैसे मेरी अंतड़ियां निकल गयी हों। उन लोगों ने फिर से मुझे घेर लिया और मुझे लात-घूंसे मारने लगे, मैं दर्द के मारे फिर से बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया, तो देखा, पहले की तरह मुझे फिर से लटका दिया गया था, इस बार थोड़ा और ऊपर। मुझे लगा कि मेरा पूरा शरीर फूल गया है और मैं बोल नहीं पा रहा था। मगर परमेश्वर की रक्षा के कारण मुझे ज़रा भी दर्द महसूस नहीं हुआ। शाम हुई, तो चार पुलिस अधिकारी मुझ पर निगरानी के लिए रुक गये और वे जगह-जगह फ़ैल कर सो गये। अचानक मेरी हथकड़ियां अपने आप खुल गयीं और मैं हल्के-से फ़र्श पर गिर गया, मानो नीचे से मुझे कुछ सहारा मिल गया हो। अगर मैंने खुद ऐसा अनुभव नहीं किया होता, तो मैं कभी इस पर यकीन नहीं करता! तब मैंने उस वक्त को याद किया जब पतरस कैद में था और प्रभु के एक फ़रिश्ते ने उसे बचाया। उस समय, पतरस की बेड़ियाँ अपने-आप खुल कर गिर गयीं और उसकी कोठरी का दरवाज़ा अपने-आप खुल गया। मैं यकीन करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था कि मैं भी पतरस की ही तरह परमेश्वर के अद्भुत कार्य का अनुभव कर रहा था। उस पल मुझे लगा मानो मुझे परमेश्वर ने सच में उन्नत कर आशीष दिया है! गज़ब की प्रेरणा से, मैं परमेश्वर के सामने घुटने टेक कर आभार में प्रार्थना करने लगा। "हे परमेश्वर, मेरे लिए तुम्हारी दया और देखभाल के लिए धन्यवाद! शैतान ने मुझे मौत के मुहाने तक लाकर बहुत बार यातना दी है, और तुमने हर बार मुझे चुपचाप बचाया है, अपनी सर्वशक्तिमत्ता और अपने अद्भुत कार्यों को देखने दिया है।" इस प्रार्थना से मुझमें एक आश्चर्यजनक प्रेरणा और जोश की भावना जगी। मैं सचमुच में खड़ा होकर बाहर जाना चाहता था, लेकिन मैं हाथ-पाँव नहीं हिला पा रहा था, इसलिए नहीं गया। फिर मैं अगले दिन तक फर्श पर ही लेटा रहा, जब पुलिस ने मुझे लात मार कर जगाया। उन दुष्ट पुलिसवालों ने तब मुझे नये ढंग से यातना देना शुरू किया। वे मुझे एक दूसरे कमरे में ले गये और मुझे बिजली वाली एक टाइगर कुर्सी पर बिठा दिया। उन्होंने मेरी गर्दन और मेरे सिर को लोहे के शिकंजों से जकड़ दिया और मेरे दोनों हाथों को तालाबंद कर दिया ताकि मैं ज़रा भी न हिल सकूं। मैं सिर्फ चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता था। उस पल एक अफसर ने बिजली का बटन दबा दिया, बाकी करीब दर्जन भर पुलिस वालों की नज़र मुझ पर टिकी हुई थी, यह देखने के लिए कि बिजली से मरते वक्त मैं कैसा लगूंगा। उन्हें यह देख कर झटका लगा कि मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। उन्होंने बिजली के तमाम तारों की जांच की, और कुछ देर बाद, जब मैंने फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी, तो उनमें से एक ने कहा, "टाइगर कुर्सी टूटी हुई तो नहीं है? बिजली क्यों नहीं आ रही है?" बिना सोचे, उसने अपने हाथ से मुझे थपथपा कर देखा और एक झटके के साथ वह एक मीटर दूर जा गिरा जहां वह फर्श पर दर्द से रोता हुआ पड़ा रहा। दूसरे सभी अफसर इतना डर गये थे कि सब बाहर भाग गये, उनमें से एक बाहर भागने की जल्दी में लड़खड़ा कर गिर पड़ा। काफी समय के बाद दो अफसर बिजली का झटका लगने के डर से कांपते हुए, मुझे तालाबंदी से छुड़ाने के लिए आये। मैं उस टाइगर कुर्सी पर पूरे आधे घंटे तक बैठा रहा, लेकिन मुझे ज़रा भी बिजली महसूस नहीं हुई। किसी आम कुर्सी पर बैठे होने जैसा ही लग रहा था। परमेश्वर के शानदार कार्यों में से यह भी एक था। इसने मेरे दिल को गहराई से छू लिया था। उस वक्त मुझे ऐसा लगा जैसे मैं सब-कुछ खो देने को तैयार हूँ, अपनी ज़िंदगी भी। अगर परमेश्वर मेरे साथ है, तो यही काफी है।
बाद में वे मुझे हिरासत केंद्र में ले गये। मेरे पूरे शरीर पर ज़ख्म थे और मेरे हाथ-पाँव का दर्द बरदाश्त के बाहर था। मेरा पूरा बदन ढीला और कमज़ोर था। मैं न बैठ सकता था, न खड़ा हो सकता था और न ही कुछ खा सकता था। बस, वहां औंधे मुँह पड़ा रह सकता था। मौत की कोठरी में, मैं जिस इंसान के साथ रहा था, उसे जब पता चला कि मैंने किसी से गद्दारी नहीं की है, तो उसने मेरी तारीफ़ की और कहा, "तुम विश्वासी लोग सचमुच के हीरो हो!" मन-ही-मन मैंने परमेश्वर का गुणगान करते हुए प्रार्थना की। बाद में पुलिस ने दूसरे कैदियों से मुझे पिटवाने और कष्ट पहुंचाने की कोशिश की, मगर अचरज, कि वे लोग मेरे साथ खड़े थे और मेरा बचाव कर रहे थे। उन लोगों ने कहा, "यह आदमी परमेश्वर में विश्वास करता है, इसने कोइ ग़लत काम नहीं किया है। तुम इसे यातना देकर इसकी जान ले रहे हो।" मामला हाथ से निकलता देख पुलिस वालों ने कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं की, बल्कि हार कर शर्म से चले गये।
कुछ भी हासिल होता न देख पुलिस ने एक दूसरी चाल चली, और हिरासत केंद्र में जेल-रक्षकों के साथ साँठ-गाँठ कर मुझसे मेहनत-मशक्कत वाला बहुत सारा काम करवाने लगे। हर दिन वे मृतकों की आत्मा की शांति के लिए जलाने वाले कागज़, जॉस पेपर के दो पुलिंदे बनवाते, हर पुलिंदे में टिनफॉयल और फ्लैश पेपर के अलग-अलग 1600 पन्ने होते। बाकी कैदियों के मुकाबले यह दोगुना काम था। मेरे हाथों में भयानक दर्द था और मैं कुछ भी उठा नहीं पा रहा था, और रात भर काम करके भी मैं यह सब पूरा नहीं कर सकता था। मुझे शारीरिक दंड देने के लिए पुलिस ने इस बहाने का इस्तेमाल किया, शून्य से 20 डिग्री कम वाले बेहद ठंडे पानी का शॉवर लेने को मजबूर किया, या रात-रात भर काम करवाया या लंबे वक्त तक खड़े होकर नज़र रखने को कहा। हर रात मुझे तीन घंटे से कम की नींद मिल रही थी। उस हिरासत केंद्र में, मैं एक साल आठ महीने तक कष्ट झेलता रहा। सीसीपी ने बाद में बिना किसी भी साक्ष्य के मुझ पर "क़ानून के प्रवर्तन को कमज़ोर करने के लिए शी जियाओ संगठन का इस्तेमाल करने" का आरोप लगा दिया, और तीन साल की कैद की सज़ा सुना दी। सज़ा पूरी कर बाहर आने के बाद भी मुझे स्थानीय पुलिस थाने की कड़ी निगरानी में रखा गया। मैं जहां चाहूँ वहां नहीं जा सकता था, और जब कभी वे बुला भेजें उसी पल मुझे हाज़िर होना पड़ता। मुझे किसी भी तरह की निजी आज़ादी नहीं थी। मैं न तो कलीसिया की सभाओं में भाग ले सकता था, न ही अपना कर्तव्य निभा सकता था। यह मेरे लिए वाकई बहुत मुश्किल था, मैंने सोचा कि अगर मुझे निरंतर सीसीपी की निगरानी में रखा गया और मैं एक सृजित प्राणी का अपना कर्तव्य नहीं निभा पाया, तो यह मेरे लिए ज़िंदा मौत के अलावा कुछ और कैसे हो सकता है? इसलिए, मैंने एक दूसरे इलाके में जाकर अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपना शहर छोड़ दिया।
सीसीपी का बर्बर उत्पीड़न मेरी यादों में गहराई से अंकित है। मैंने इसका दुष्ट रूप देखा है, परमेश्वर का दानवी विरोध करते देखा है, और जाना है कि कैसे यह लोगों को नुकसान पहुंचाता है, मैं इससे अपने दिल की गहराइयों से नफ़रत करता हूँ। मैंने परमेश्वर के अद्भुत कार्य, उसकी सर्वशक्तिमत्ता और उसकी प्रभुता भी देखी। परमेश्वर के अद्भुत कार्यों ने ही मेरी रक्षा की जिससे मैं शैतान की पकड़ से बच कर निकल सका और इसी ने मुझे मौत के जबड़ों से छीन कर बाहर निकाला। सीसीपी के बर्बर उत्पीड़न के दौरान, परमेश्वर के वचनों ने ही मुझे मार्गदर्शन दिया और उसकी जीवन शक्ति ने ही मुझे सहारा दिया जिससे मैं ज़िंदगी पर अपनी पकड़ बनाये रह सका, और इससे परमेश्वर का अनुसरण करने की मेरी आस्था मज़बूत हुई। परमेश्वर का धन्यवाद! सर्वशक्तिमान परमेश्वर की महिमा कायम रहे!
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