कहानी दो गिरफ्तारियों की

24 जनवरी, 2022

झोऊ यी, चीन

सितंबर 2002 की एक शाम, एक छोटा भाई और मैं सुसमाचार साझा करके घर लौट रहे थे, जब एकाएक खानकर्मियों की मशाल लिये दो लोग सड़क के दोनों तरफ से हमारी तरफ आये। हमारे चेहरे पर तेज़ रोशनी डालकर उन लोगों ने हमें अपने बीच फंसा लिया। उनमें से एक ने एक दस्तावेज़ बाहर निकालकर कहा, "हम पुलिसवाले हैं!" उन्होंने मेरी साइकिल की बास्केट से मेरा बैग निकाल लिया और तलाशी के लिए हमें ज़मीन पर उकडूं बैठने को कहा, मुझे बहुत घबराहट हुई कि न जाने पुलिस हमसे कैसे पेश आये। मैंने परमेश्वर से मन-ही-मन प्रार्थना की और उससे मुझे आस्था देने की विनती की। जो भी हो, मैं यहूदा नहीं बनना चाहता था परमेश्वर का एक वचन मुझे याद आया : "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मैं जानता था कि मुझे परमेश्वर पर भरोसाकर उसमें आस्था रखनी होगी, अपना जीवन त्याग देने को तैयार होना ही डटकर गवाही देने का एकमात्र तरीका है।

पुलिसवालों ने हमें धक्का देकर अपनी गाड़ी में चढ़ा दिया, फिर जब वे मेरी तरफ नहीं देख रहे थे, तब मैंने अपना पेजर सीट के बगल में जोर से दबाकर तोड़ दिया और सीट के नीचे छिपा दिया। थाने में, पुलिस हमें एक दफ़्तर के भीतर ले गयी, वहां एक आदमी मेरा टूटा हुआ पेजर उठाकर चीख पड़ा, "तुझे इसे तोड़ने की इजाज़त किसने दी?" फिर पाँच-छह लोगों ने मुझे घेरकर घूंसे-लात की बौछार कर दी। इस ज़बरदस्त हिंसक पिटाई के बाद, उन लोगों ने मुझे एक बेंच पर इतनी ज़ोर से पटक दिया, कि बेंच की ऊपरी परत वहीं टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गयी। उन्होंने मुझे उठाकर फिर एक बार ज़ोर से पटक दिया। मुझे दिन में तारे नज़र आने लगे थे, मेरा पूरा तन दर्द से कराह रहा था। मैंने परमेश्वर से लगातार प्रार्थना की, उससे दर्द सहने की ताकत देने की मिन्नत की। फिर, एक अफसर ने मेरा पहचान कार्ड दिखाकर मुझसे मेरा नाम पूछा, मैंने कहा कार्ड पर लिखा है। वह आँखें तरेर कर बोला, "सवाल का जवाब दे, वरना तेरा मुंह चीर के रख दूंगा!" मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया, तो उसने चॉपस्टिक जितना मोटा प्लास्टिक का रस्सा मंगाया, उस रस्से से उसने मेरे पैर से लेकर ऊपर तक पूरे शरीर को कस के लपेट दिया फिर उसने मेरे गले में ब्लैकबोर्ड का टुकड़ा लटकाया और बिना हिले सीधा खड़ा होने को कहा। मैं सांस नहीं ले पा रहा था—यह बहुत भयानक था। वे लोग मुझसे सवाल पूछते रहे : "तेरा अगुआ कौन है? तू अपना सुसमाचार कहाँ फैला रहा था? तू किन लोगों से बात कर रहा था?" जब मैंने कुछ नहीं कहा, तो उनमें से एक ने कपड़े का जूता उठाकर मेरे गले में टंगे ब्लैकबोर्ड पर ठोकना शुरू कर दिया, और दूसरे लोग ब्लैकबोर्ड पर छड़ियाँ मारकर मुझे धमकी देने लगे। मुझे अभी भी न बोलता देख, कुछ लोगों ने मुझे लतियाकर ज़मीन पर गिरा दिया, फिर जल्दी से आकर उन्होंने प्लास्टिक का रस्सा खोल दिया। एक अफसर, मेरे दाहिने हाथ को मेरे कंधे के ऊपर और बायें हाथ को मेरी पीठ के पीछे खींचकर, मेरी रीढ़ की हड्डी पर अपना घुटना दबाकर खड़ा हो गया, उन लोगों ने मेरे दोनों हाथों को जबरन पास खींचकर मुझे हथकड़ी लगा दी। मुझे अपने हाथों की हड्डियाँ चरमराती-सी लग रही थीं, दर्द के मारे मेरा पसीना छूट गया। फिर उन लोगों ने मेरे हाथ खींचकर मुझे बड़ी ज़ोर से घसीटा, रस्से को मेरी पीठ पर हथकड़ियों के साथ बांधकर जोर से पीछे खींच दिया, और मुझसे बोलने को कहा। वे कुछ और जूते ले आये और मेरी पीठ और हथकड़ियों के बीच ठूंस दिए। मेरे हाथों में भयानाक दर्द हो रहा था, लग रहा था जैसे उनके दो टुकड़े हो जाएंगे—चीरनेवाला दर्द था, मैं फ़र्श पर गिर पड़ा। वे मुझे पीछे खींचकर लगातार जानकारी मंगाते रहे। मैंने सोचा, "अगर वे मुझे ऐसी यातना देते रहेंगे, तो या तो मेरी मौत हो जाएगी, या मैं लूला-लंगड़ा हो जाऊंगा।" मेरा डर बढ़ता जा रहा था, अब मैं परमेश्वर को लगातार पुकार रहा था, "हे परमेश्वर, मुझे इसे सहने का संकल्प और आस्था दो। मैं शैतान के सामने तुम्हारी डटकर गवाही देना चाहता हूँ।" फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "जब तुम कष्टों का सामना करते हो तो तुम्हें देह पर विचार नहीं करने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत नहीं करने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। जब परमेश्वर अपने आप को तुमसे छिपाता है, तो तुम्हें उसका अनुसरण करने के लिए, अपने पिछले प्यार को लड़खड़ाने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए, तुम्हें विश्वास रखने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर क्या करता है, तुम्हें उसके मंसूबे के प्रति समर्पण अवश्य करना चाहिए, और उसके विरूद्ध शिकायत करने की अपेक्षा अपनी स्वयं की देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब तुम्हारा परीक्षणों से सामना होता है तो तुम्हें अपनी किसी प्यारी चीज़ से अलग होने की अनिच्छा, या बुरी तरह रोने के बावजूद तुम्हें अवश्य परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी, मैं जान गया कि परमेश्वर मुझे पूर्ण करने के लिए इस यातना का प्रयोग कर रहा है, इसलिए शैतान को नीचा दिखाने के लिए मुझे अपनी आस्था पर भरोसा करना होगा, परमेश्वर की गवाही देनी होगी। फिर परमेश्वर के अनेक दूसरे वचन मन में कौंध गये : "बस, अपने सिर उठाए रखो! डरो मत : मैं—तुम लोगों का पिता—तुम लोगों की सहायता के लिए यहाँ मौजूद हूँ, और तुम लोग पीड़ित नहीं होगे। जब तक तुम अकसर मेरे सामने प्रार्थना और अनुनय करते हो, तब तक मैं तुम लोगों पर पूरा विश्वास रखूँगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। यह सच है—मैं ब्रह्मांड और सभी चीज़ों के शासक सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, अगर परमेश्वर मुझे मरने न दे, तो पुलिस मेरी ज़िंदगी नहीं ले सकती। पुलिस ने मुझे सारी रात यातना दी, पर मेरे मुंह से एक भी शब्द नहीं निकाल पाये। एक पुलिसवाला गुस्से से चीख पड़ा, "तू सड़ा हुआ खच्चर है!" फिर वह चला गया। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर का धन्यवाद किया।

करीब दो घंटे बीत गये। मैं इतनी देर से इसी तरह हथकड़ियों में बंधा हुआ था, मेरी कलाइयां सूज गयी थीं, मेरे हाथों में संवेदना ही नहीं बची थी। वे हथकड़ी छुड़ाने आये, पर हथकड़ियां सख्ती से मेरे मांस में घुसी हुई थीं। एक आदमी ने मुझे स्थिर रखा, और दूसरे ने मेरे हाथों को जबरन पकड़कर खींचा। दर्द के मारे मेरा पसीना छूट रहा था। मेरी दसों उंगलियाँ इतनी सूज गयी थीं कि मैं उन्हें अलग भी नहीं कर पा रहा था। वे पके हुए बैंगन के पौधे की तरह बैंगनी और काली हो गयी थीं। इसके बाद वे मुझे धातु के पिंजरों की एक कतार के पास ले गये। मैं सुन्न रह गया। मैंने देखा कि बड़ी बहन जो मेरी मेज़बान थीं और उनके पति, जो एक अविश्वासी थे, दोनों पिंजरों में बंद थे। वे बेहद कमज़ोर लग रही थीं, उनमें ज़रा-सी भी ताकत नहीं थी, उनके पति की आँखों में जान नहीं थी, पराजय भाव था। सत्तर वर्ष से ज़्यादा उम्रवाले इन दोनों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार देखना, बहुत दर्दनाक था, मैं अपने आंसू नहीं रोक सका। उन्होंने मुझसे चड्डी छोड़कर बाकी सारे कपड़े उतार देने को कहा, फिर मुझे एक पिंजरे में धकेल कर ताला लगा दिया, मुझे आँखें बंद किये बिना सीधे खड़े रहने और दीवार का सहारा न लेने का आदेश दिया। चार पुलिसवालों ने जोड़ियों में बारी-बारी से मुझ पर नज़र रखी। वे सलाखों पर लगातार धातु के डंडे मारते रहे, तेज़ ठनक की आवाज़ से मेरा दिल कांपने लगा। मैं टूटकर बिखरने के कगार पर था, मुझे लगा कि मैं नरक में दानवों से घिरा हुआ हूँ। मैंने सोचा, "अगर मुझे यहाँ दो-चार दिन से ज़्यादा रखा गया, तो वे मुझे न भी पीटें, तो भी इस यातना से मैं पागल हो जाऊंगा। क्या मैं यहीं मर जाऊंगा? अगर मैं मर गया, तो मेरी पत्नी और बच्चों का क्या होगा?" इस बारे में मैंने जितना ज़्यादा सोचा, उतना ही दर्द हुआ। मैं अपने आंसू नहीं रोक सका। यह एहसास करके कि मेरा दिल परमेश्वर से भटक गया है, मैंने तुरंत प्रार्थना करते हुए कहा : "हे परमेश्वर! मुझे आस्था और शक्ति दो। मैं तुम्हारे लिए इस दौर में भी डटकर खड़ा रहूँगा।" मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया : "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ। आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। ... जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'परीक्षणों की पीड़ा एक आशीष है')। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को मज़बूती दी, मैं समझ गया कि परमेश्वर मेरे इस कष्ट की इजाज़त दे रहा है, और इसमें उसकी सदिच्छा निहित है। मेरी आस्था और प्रेम को इस प्रकार की मुश्किलों और कष्टों के जरिये ही पूर्ण किया जा सकता है। यह परमेश्वर का वरदान है। शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही देने का मौक़ा मिलना परमेश्वर का मुझे उन्नत करना है। इस विचार ने मेरे डर को भगा दिया और मुझे कष्ट सहने और परमेश्वर को संतुष्ट करने का संकल्प दिया।

अगली दोपहर, पुलिस ने मुझे पूछताछ कक्ष में धकेल दिया, अंदर जाते ही सात-आठ लोगों ने मुझे घेर लिया, मेरे हाथों को हथकड़ियों से लोहे की सलाखों के साथ अलग-अलग बाँध कर मेरे शरीर को हवा में लटका दिया। उनमें से एक ने मुझसे डरावने ढंग से पूछा, "तेरा अगुआ कौन है? वे लोग कहाँ रहते हैं? तूने किन लोगों में सुसमाचार का प्रचार किया है? बोल! जैसे ही तू अपनी कलीसिया के बारे में सब उगल देगा, हम तुझे नीचे उतार देंगे। वरना, तेरी मुश्किलें ख़त्म नहीं होंगी। हम तेरे जैसे परमेश्वर के विश्वासियों को पीट सकते हैं, और इसे अपराध भी नहीं माना जाता।" फिर एक पुलिसवाले ने जबरन मेरी आँखों को फैला दिया, बेरहमी से सीधे उसमें थूक दिया, फिर वह बेतहाशा हंसने लगा। लगा जैसे कि उसकी हंसी नरक से आ रही है। बहुत डरावनी थी। अब भी मैं नहीं बोला, तो एक मरियल-से अफसर ने प्लास्टिक की एक मीटर लंबी बेलन जितनीमोटीछड़ी उठाकर, मेरे पेट पर बुरी तरह मारता रहा। मेरा शरीर उस ज़ोर से पीछे चला गया, फिर ठीक मेरे पीछे खड़ा पुलिसवाला मेरी पीठ पर लात मारता रहा, मेरा शरीर आगे-पीछे होकर लोहे की सलाखों से टकराता रहा। हथकड़ियाँ मेरे मांस में फिर से गड़ चुकी थीं—इतना चुभनेवाला दर्द था कि मैं चीख पड़ा। एक पुलिसवाला मुझ पर चिल्लाया, "बोलेगा या नहीं? बोल!" मैं चुप रहा। मरियल पुलिसवाले ने अपने हाथ की प्लास्टिक की छड़ ऊपर उठाकर मेरे सिर पर दे मारी, मेरा सिर चकरा गया। आँखों में अंधेरा छा गया, मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं फर्श पर पड़ा हूँ और कोई लगातार मेरे चेहरे पर पानी छिड़क रहा है। पुलिस ने देखा कि मुझे होश आ गया है, तो वे मुझे घसीटकर पिंजरे में ले गये, और ताला बंद कर दिया। मैं फर्श पर पड़ा हुआ था, दर्द से कराहता, हिलने-डुलने से बिल्कुल लाचार। मेरा सिर चकरा रहा था, भयंकर दर्द हो रहा था। मैंने हाथ से छूकर देखा, सिर पर एक बहुत-बड़ा गोला बन गया था, मैंने परमेश्वर से मन-ही-मन प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, तुम्हारी महान शक्ति के कारण आज मैं ज़िंदा हूँ। तुम्हें मेरा धन्यवाद!"

वहां तीसरे दिन, मुझे थका देने के लिए पुलिस ने पारियों में यातना देना शुरू किया। वे दिन-रात मुझे पिंजरे में खड़ा ही रखते, न सोने देते, न आँखें बंद करने देते, और हर दिन सिर्फ गर्म पानी में डूबे हुए कटोरा भर भात देते। शारीरिक रूप से इतने लंबे समय से यातना दिये जाने के कारण मैं पूरी तरह से पिस चुका था, जब मैं नींद को नहीं रोक पाता, तो बस खड़े-खड़े ही सो जाता। फिर पुलिसवाले अपनी धातुई छड़ी से सलाखों पर जोर से ठोकते, मुझे बार-बार डराकर जगा देते, और मुझे निरंतर होश में रखते। उन्होंने मुझे तीन मीटर लंबे बांस के खंभे से भी पीटा। उस पिंजरे में छिपने की कोई जगह नहीं थी—मेरे पूरे शरीर पर काले-नीले निशान पड़ गए। मेरा पूरा शरीर दर्द से कराह रहा था, मेरे पाँव सूजे हुए और सुन्न थे। पूरा समय मैं नंगे पाँव टाइलों पर खड़ा रहता, इसलिए मेरी एड़ियाँ फट गयी थीं और उनमें भयंकर दर्द हो रहा था। एक बार तो मुझे इतनी नींद आयी कि मैं रोक नहीं सका, और अनजाने ही फर्श पर गिरकर सो गया, तब पुलिसवाले झाड़ू लेकर अंदर घुसे, और उससे मेरी अंधाधुंध पिटाई की, एक दर्जन बार या उससे भी ज़्यादा। मैंने सहज बुद्धि से अपने हाथ सिर पर रख लिये, इससे पिटाई के कारण मेरे हाथ छिलकर सूज गये, मेरा सिर तो जैसे फटने ही वाला था। उन्होंने तब तक पिटाई की जब तक वे थक नहीं गये, फिर उन्होंने मुझे खड़े हो जाने का आदेश दिया। मेरी हालत बहुत ज़्यादा खराब थी, मुझे डर था कि यातना देकर मुझे मार डाला जाएगा। मैं वहां एक मिनट भी नहीं रहना चाहता था। इस उम्मीद से कि जल्द-से-जल्द मैं उस ज़िंदा नरक से आज़ाद हो जाऊंगा, मैं हर गुज़रे दिन के लिए दीवार पर नाखून से एक रेखा खींच देता। मैंने सोचा, "अगर मैं उन्हें एक भी बात न बताऊँ, और इसी तरह समय बेकार करता रहूँ, तो मैं और कितने समय जी पाऊंगा? मुझे यातना देने के लिए वे और क्या-क्या करेंगे? अगर मैं उन्हें कुछ बातें बता दूं, तो शायद मुझे जाने दें, फिर मुझे यह सब नहीं भुगतना पड़ेगा। लेकिन अगर मैं उन्हें बता दूं, तो यहूदा बन जाऊंगा, जो परमेश्वर के साथ सरासर धोखा होगा, फिर मुझे उसका श्राप मिलेगा।" मुझे बहुत बुरा लगा, मैं रोये बिना नहीं रह पाया। मैंने रोते-रोते प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मैं अब यह सब नहीं सह सकता, लेकिन मैं भाई-बहनों को या तुम्हें धोखा नहीं दे सकता। मुझे आस्था और शक्ति दो, ताकि इस माहौल में मैं गवाही दे सकूं।" फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा जिन्होंने गहरी पीड़ा के दिनों में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई है, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी ही दूर तक है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं है जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे व्यक्ति जो भी हो, मेरा स्वभाव यही है। मुझे तुम लोगों को अवश्य बता देना चाहिए कि जो कोई भी मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई भी मेरे प्रति निष्ठावान रहा है वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया कि परमेश्वर के स्वभाव को अपमान सहन नहीं होगा, चाहे जो हो, मैं यहूदा नहीं बन सकता, परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकता। फिर मेरे मन में आया कि जब मेरी गिरफ़्तारी हुई थी, तब मेरे बैग में एक नोटबुक के साथ परमेश्वर के वचनों की एक किताब थी। ये सब पुलिस के हाथ लग गया था। अगर मैंने हामी नहीं भरी, तो वे क्रूरता से मुझे अंधाधुंध यातना देंगे, हो सकता है ऐसा करते हुए वे मुझे मार भी डालें। इस बारे में सोचकर मैं और ज़्यादा दुखी हो गया। मैं बड़े पशोपेश में था। एकाएक मेरे मन में आया कि अगर मैं विश्वासी होने से ही इनकार कर दूँ, तो वे शायद मुझसे पूछताछ न करें, मुझे यातना न दें। फिर मुझे इतना ज्यादा कष्ट नहीं झेलना पड़ेगा, हो सकता है वे मुझे छोड़ भी दें।

चौथे दिन दोपहर, पुलिसवाले मुझे पूछताछ कक्ष में ले गये और बोले, "तू जल्द हमें कुछ बता दे। जितनी जल्दी बतायेगा, उतनी जल्दी आज़ाद हो जाएगा।" उन लोगों ने यह भी कहा कि मेरे साथ जिस छोटे भाई को गिरफ़्तार किया गया था, उसने सब-कुछ उगल दिया है, और वे उसे घर जाने देंगे। फिर वे एक बाइबल, परमेश्वर के वचनों की एक किताब और मेरी नोटबुक ले आये, और पूछा कि क्या ये सब मेरी हैं। मैंने उन्हें जवाब नहीं दिया। उनमें से एक ने अपना दायाँ पैर उठाकर कई बार मेरी जांघ पर लात मारी, मेरे सीने पर ज़ोर से चिकोटी काटकर मुझसे नफ़रत से पूछता रहा। मैंने कहा, "मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ। मुझे उस बैग में ये चीज़ें मिली थीं। मैं विश्वासी नहीं हूँ।" उन्होंने मेरी बात पर बिल्कुल विश्वास नहीं किया, मुझे एक जोरदार तमाचा मारा, घूंसे मारे, और लतियाया। फिर उन्होंने मुझे वापस जबरन पिंजरे में बंद कर दिया और खड़ा ही रखा। मैं आग बबूला था, बहुत उत्तेजित था। मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि अगर मैंने विश्वासी होने की बात नहीं मानी, तो भी वे मुझे जाने नहीं देंगे। पूरा दिन, पूरी रात खड़े रहने के बाद, मुझे लगा अब ज़रा भी ताकत नहीं बची है, मैं नहीं जानता था कि कितने समय तक मैं इस तरह जी पाऊंगा। मैं भयंकर कष्ट झेल रहा था। यह महसूस करके कि मुझे हर पल परमेश्वर के साथ रहना है, मैं मन-ही-मन उससे प्रार्थना करता रहा। जिस समय मेरे कष्ट अपने चरम पर थे, तभी मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ की एक प्रति और एक नोटबुक पुलिस के हाथ लग गयी। उन्होंने "विजेताओं का गीत" का पन्ना खोला और उसका एक पद दिखाकर मुझसे पांच बार लिखने को कहा। मुझे पता था कि वे मेरी हस्तलिपि की जांच करके मुझे दंड देने के लिए साक्ष्य के रूप में उसे इस्तेमाल करना चाहते हैं, इसलिए नक़ल करते समय मैंने जान-बूझकर अपनी हस्तलिपि बदल दी। मैंने परमेश्वर के वचनों के जिस अंश की नक़ल की, वह यह था : "क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'विजेताओं का गीत')। इसकी नक़ल करते समय मैं मन-ही-मन वह भजन गा रहा था, मैंने जितना गाया मुझे उतनी ही प्रेरणा मिली। मेरे सबसे कमज़ोर पल में, परमेश्वर ने अपने वचन पुलिस के हाथों मेरे हाथ में दे दिये। मैंने परमेश्वर का बड़ा आभार माना। यह अंश खासतौर पर विशेष था : "तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे।" इसने वाकई मेरी आस्था को बहुत विशाल कर दिया, मुझे लगा कि मेरा सारा दुख गायब हो गया है। इसने बड़े लाल अजगर द्वारा क्रूर उत्पीड़न के दौरान परमेश्वर की गवाही देने के लिए मुझे भरपूर विश्वास दिया। उस वक्त मेरा चेहरा आंसुओं से तर था, मैंने मन-ही-मन यह प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, जब मैं बहुत बेसहारा था, तब तुमने अपने वचनों से मेरा पोषण कर मुझे सहारा दिया, मुझे आस्था और शक्ति दी। हे परमेश्वर, मैं सच में तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ! अब मैं जानता हूँ कि मेरे कष्टों में भी कोई अर्थ छिपा है। मैं अपने लिए तुम्हारे सच्चे इरादों को निराश नहीं करना चाहता, बल्कि शैतान के सामने तुम्हारी शानदार गवाही देना चाहता हूँ।"

9 सितंबर को, दो पुलिसवाले पिंजरे में आये, उन्होंने पारदर्शी तरल पदार्थ की एक शीशी मेरे सामने रख दी। वे मुस्कराकर बोले, "तेरा क्या हाल है? बहुत प्यासा है, है न? ले, ये पी ले।" उनकी खुशामदी मुस्कान देखकर, मुझे एहसास हुआ कि यह उनकी एक और चाल है। मुझे डर था कि इसे पीने से मैं अपने होश खो बैठूँगा, न चाहकर भी भाई-बहनों को धोखा दे बैठूँगा। मैंने इंकार में अपना सिर हिलाया। मुझे मना करता देख, उन्होंने सच में अपने ज़हरीले दांत दिखा दिये। मरियलवाले ने मेरे दायें हाथ को ऊपर से पकड़ कर मेरे बायें हाथ को मेरी पीठ के पीछे मरोड़ दिया, फिर वह अपने दूसरे हाथ से मेरा गला दबाकर मुझे पूछताछ कक्ष में ले गया। हमारे पीछे-पीछे पांच-छह दूसरे अफसर भी आ गये। उन्होंने मुझे पीठ के बल फर्श पर गिरा दिया। मैंने तुरंत परमेश्वर को पुकारा, "हे परमेश्वर! इन दुष्ट पुलिसवालों ने बोतल से मुझे कुछ पिलाने की कोशिश की, लेकिन मुझे डर है कि इसे पीने से मैं उन्हें अनजाने ही कलीसिया के बारे में जानकारी दे बैठूँगा। हे परमेश्वर, मुझे बचाओ। मैं अपने भाई-बहनों को या तुम्हें धोखा देने के बजाय मर जाना पसंद करूंगा।" प्रार्थना के बाद मैंने शक्ति के उफान का अनुभव किया। चार पुलिसवालों ने मिलकर मेरे दोनों हाथों और पैरों को अपने पैरों से दबा दिया, और एक मोटे पुलिसवाले ने दोनों हाथों से मेरा सिर पीछे की ओर दबा दिया। एक दूसरा अफसर बोतल का तरल पदार्थ मेरे मुंह में डालने लगा। मैं पीने को तैयार नहीं था, इसलिए उसने एक मोटी धातुई छड़ से मेरे मुंह को खोलकर रखा, और मेरे मुंह में जबरन डालने लगा। मैं पूरी ताकत से संघर्ष करता रहा, अंत में, सारा का सारा पदार्थ बाहर थूक दिया। यह देख मोटे पुलिसवाले ने मेरे चेहरे के दोनों तरफ कई बार थप्पड़ मारे, बाकी लोगों ने मेरे हाथों को पैरों से कुचला, फिर मेरे हाथों को ऊपरी भुजाओं से नीचे पंजों तक कुचला, ताकि सारा खून मेरे पंजों में जमा हो जाए। मेरे हाथों के पंजों में बहुत खून जमा हो गया था—वे सूजकर सुन्न हो गये थे, इतना भयानक दर्द था कि मैं सांस भी नहीं ले पा रहा था। मैं दांत पीसकर सहता रहा, मुझे बचाने के लिए मन-ही-मन सर्वशक्तिमान परमेश्वर को पुकारता रहा। जल्दी ही दर्द कम हो गया। पुलिस मुझे अंधाधुंध कुचलती रही, कूटती रही, लेकिन अब मुझे उतना ज़्यादा दर्द नहीं हो रहा था। मैंने वाकई बहुत सुकून महसूस किया। मैंने परमेश्वर का बहुत आभार माना। मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों को याद किया : "जब लोग दुःखी होते हैं, मैं उन्हें सांत्वता देता हूँ, और जब वे कमज़ोर होते हैं, उनकी सहायता के लिए मैं उनके साथ हो जाता हूँ। ... जब वे रोते हैं, मैं उनके आँसू पोंछता हूँ" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 27)। परमेश्वर मेरा दर्द दूर कर रहा था, मुझे सुकून दे रहा था।

वे मुझे फिर से घसीट कर पिंजरे में ले गये, चेहरा ऊपर की तरफ करके मैं फर्श पर पड़ा रहा। थोड़ी देर बाद, मुझे चक्कर आ गया, मेरे पेट में जलन होने लगी, और मैं गुमराह-सा महसूस करने लगा। मगर मेरे दिल में पूरी स्पष्टता थी। मैंने अंदाज़ा लगाया कि जो भी दवा उन्होंने मुझे दी थी, उसका असर होने लगा है। उसी पल, मुझे कोई अंदर आता-सा लगा, मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोलीं, मैंने देखा कि एक मोटा अफसर हथकड़ियों से मेरे सिर को इधर-उधर सरका रहा था, उसने कहा, "मैं पुलिस चीफ हूँ, कम्युनिस्ट पार्टी में हम सब, लोगों की परवाह करते हैं। मैं तुझे बताना चाहता हूँ कि तेरी बेटी कार दुर्घटना में घायल होकर अस्पताल में बड़ी नाज़ुक हालत में पड़ी है। एक पिता होने के नाते, क्या तू उसे देखने नहीं जाएगा? हमें अपनी कलीसिया के बारे में बता दे, हम तुझे वहां ले जाएंगे। अगर तू अपने परिवार को छोड़, जगह-जगह जाकर सुसमाचार का प्रचार करेगा, तो तेरे बीवी-बच्चे का ख्याल कौन रखेगा? हम जो जानना चाहते हैं, वो बता दे, फिर तू अपने परिवार के साथ रहने के लिए वापस जा सकेगा।" मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, अब पुलिसवाले मुझे पशोपेश में डालने के लिए अच्छे बन रहे हैं, अपनी बेटी के लिए मेरी भावनाओं के साथ खेलकर मुझे तुम्हें धोखा देने का प्रलोभन दे रहे हैं। हे परमेश्वर, मुझे शैतान के इस प्रलोभन पर विजय पाने का रास्ता दिखाओ।" मुझे अब भी बोलता न देख, पुलिस चीफ आगे बोला : "तेरी बेटी की इमरजेंसी देखभाल हो रही है, वहां तेरी तुरंत ज़रुरत है। बस हमें बता दे! बस हमें कुछ दूसरे विश्वासियों के नाम दे दे, हम तुझे अपनी बेटी से मिलाने ले जाएंगे ..." वह आधा घंटा बोलता रहा, मुझे उलझन होने लगी। अगर मैंने मुंह नहीं खोला, तो क्या वे यातना देकर मुझे मार डालेंगे? क्या किसी ऐसे का नाम बता दूं जो उतना महत्वपूर्ण न हो? मुझे लगा कि तब वे मुझे जाने देंगे। फिर परमेश्वर के ये वचन एकाएक मेरे मन में कौंधे : "मैं तुम लोगों को बता दूँ : तुम्हारी देह भले ही खत्म हो जाए, पर तुम्हारी शपथ खत्म नहीं हो सकती। अंत में, मैं तुम लोगों की शपथ के आधार पर तुम्हें दंड दूंगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!)। मुझे याद आया कि मैंने परमेश्वर के सामने शपथ ली थी कि मैं उसे कभी धोखा नहीं दूंगा। थोड़े-से शारीरिक कष्ट के कारण मेरा संकल्प कमज़ोर होने लगा था। क्या यह परमेश्वर को धोखा देना नहीं था? उस पल परमेश्वर मुझसे चाहता था कि मैं शैतान के सामने डटकर गवाही दूं, शैतान भी देख रहा था कि मैं क्या करता हूँ। मैं परमेश्वर को निराश नहीं कर सकता था। मैंने उससे प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मैं यहूदा नहीं बनूंगा, भले ही इसका अर्थ मेरी मौत हो!" जब मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपनी जान देने को तैयार हो गया, तो शैतान शर्मिंदा होकर फिर से हार गया। पुलिस चीफ घंटों बोलता रहा, मगर मैं चुप रहा, वह धीरे से सरक गया।

जब साम दाम दंड भेद नाकामयाब हो गये, तब पुलिस ने मुझे नीचा दिखाने और सताने की एक नयी चाल चली। एक दिन, तीन अफसर पिंजरे के बाहर खड़े हो गये, और एक ने बहुत ही अजीब ढंग से मुझसे कहा, "तू जानता है किसी इंसान की ज़िंदगी में सबसे दर्दनाक बात क्या होती है? मैं तुझे बताता हूँ—अपनी थोड़ी-सी बची-खुची आज़ादी भी गँवा देना।" उसके बाद से, उन्होंने मुझे पेशाब भी नहीं करने दिया। मुझे तुरंत बाथरूम जाना था, लेकिन वे मुझे जाने नहीं दे रहे थे, जब मैं बिल्कुल भी रोक नहीं पाया, तो मुझे अपने कपड़ों के अंदर ही करना पड़ा। यह देखकर, दो अफसर झाड़ू लेकर आये और चीखते हुए मेरे सिर पर दे मारा, "अगर तूने फिर से पेशाब किया, तो तुझे ही पीना पड़ेगा!" मैंने सोचा, "यूं ही चलता रहा तो मैं पागल हो जाऊंगा। अगर मैं पागल होने का नाटक करूँ, तो शायद वे मुझसे सवाल करना बंद कर दें, और मुझे इतनी यातना न दें।" मैंने पागल होने का नाटक शुरू कर दिया। कभी मैं किसी बिंदु को भावशून्य होकर ताकता रहता, कभी पुलिसवालों को ताकता रहता। जब वे मेरा नाम ज़ोर से चिल्लाते, तो मैं सुनाई न देने का नाटक करता। पेशाब करने के लिए मैंने प्रसाधन कक्ष जाने के लिए पूछना छोड़ दिया, वहीं खुद पर करने लगा। वे मेरी झलक लेते रहते कि मेरे चेहरे-मोहरे का भाव क्या है, मैं किस तरह हिल-डुल रहा हूँ, ये जानने की कोशिश करते कि मैं नाटक तो नहीं कर रहा। वे मेरा एकमात्र अंडरवियर निकालकर ले गये, मुझे बाहर बरामदे में बिल्कुल नंगा खड़ा कर दिया, जब महिला अफसर मेरे पास से गुज़रीं, क्योंकि यह उनके जाने का रास्ता था, तो वे थोड़ा बाजू में खड़ी होकर मुझ पर हँसीं। मैंने बहुत अपमानित महसूस किया, मुझे बहुत गुस्सा आया। इंसानी शक्ल के इन सूअरों से मुझे सच में नफ़रत हो गयी! करीब 20 मिनट बाद, उन्होंने मुझे फिर से पिंजरे में तालाबंद कर दिया। मैं बेहद दुखी था, मुझे लगा मुझमें ज़रा भी इज्ज़त बाकी नहीं है। मैं वाकई उन लोगों से दंगल करना चाहता था। बुरे-से-बुरा क्या होगा, वे मुझे मार डालेंगे, अगर मैं मर गया तो यह अपमान तो नहीं सहना पड़ेगा। फिर मैंने उस वक्त को याद किया जब प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया गया था, जिस बारे में परमेश्वर ने कहा : "यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापमय देह के सदृश बन गया। वह मृत्यु एवं अधोलोक की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए। ... जीवन भर उसने परमेश्वर के लिए अपरिमित कष्ट सहा, उसे शैतान द्वारा अनगिनत बार प्रलोभन दिया गया, किंतु वह कभी भी निरुत्साहित नहीं हुआ" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें)। परमेश्वर के प्रेम ने मेरे दिल को छू लिया। मैंने रोमन सिपाहियों द्वारा प्रभु यीशु का मज़ाक उड़ाने और उसे नीचा दिखाने को याद किया। उन्होंने उस पर कोड़े बरसाये, सिर पर काँटों का ताज पहनाया। उन्होंने उसकी पीठ पर भारी सलीब का बोझ लादकर उसे गुलगुता की ओर चलने को मजबूर किया, और अंत में उन्होंने उसी सलीब पर उसे कीलों से लटका दिया। सारे इंसानों को हमारे पाप से छुटकारा दिलाने के लिए, शिकायत का एक भी शब्द बोले बिना उसने बहुत ज़्यादा अपमान सहा, वह खुद को शैतान के हवाले करने के लिए पूरी तरह तैयार था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट होकर, अंत के दिनों में कार्य कर रहा है, सरकार उसका पीछा कर रही है, धार्मिक जगत उसकी निंदा और तिरस्कार कर रहा है, यह युग उसे ठुकरा रहा है। वह हर तरह का अपमान सह रहा है, और मनुष्य को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम महान है! परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचकर मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना स्वार्थी और नीच हूँ। मैं एक भ्रष्ट इंसान हूँ, जो उद्धार के लिए परमेश्वर का अनुसरण कर रहा है, थोड़ी-सी शर्मिंदगी उठाकर मौत की इच्छा करने लगा हूँ। यह तो कोई गवाही नहीं हुई! मैंने प्रभु यीशु का यह कथन याद किया "जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, तुम पीओगे" (मरकुस 10:39)। मुझे एहसास हुआ कि इस अँधेरे बुरे युग में, परमेश्वर का अनुसरण करने का अर्थ, थोड़ा अपमान सहना नहीं है, बल्कि यह मसीह की तकलीफों और उसके राज्य में साझेदार बनना है। मुझे नीचा दिखाकर, मुझे यातना देकर पुलिस यह दिखा रही थी कि वह कितनी दुष्ट और जानवरों जैसी है। वह दरअसल खुद को शर्मिंदा कर रही थी। अगले दिन, पुलिस ने मेरे पागलपन की जांच करने के लिए एक डॉक्टर बुला लिया। पिंजरे में आकर वह लकड़ी के एक तख्ते पर बैठ गया, उसने सीधे मेरी आँखों में करीब पांच सेकंड तक उंगली जितनी मोटी रोशनी डाले रखी, फिर उसे जल्दी से सरकाकर देखा कि क्या मेरी आँखों की पुतलियों में कोई हलचल हो रही है। उसने दो-तीन बार ऐसा किया। फिर उसने मेरे एक हाथ को पकड़कर ऊपर उठाया, मेरे बाजुओं में एक कैंची आगे-पीछे रगड़ी। आमतौर पर, ऐसी गुदगुदी से मैं हँसे बिना नहीं रह पाता, लेकिन अचरज की बात थी कि ठीक उस वक्त मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ। उन्होंने एक-दूसरे को देखा, फिर डॉक्टर सिर हिलाकर चला गया। उसके बाद उन लोगों ने मुझसे पूछताछ नहीं की, मगर वे मुझे यातना देते रहे और दिन भर में दो-तीन घंटे ही सोने देते।

दो-चार हफ्ते बीत गये। एक दिन, पुलिस मुझे एक दफ़्तर ले जाकर मुझसे एक कानूनी फैसले पर दस्तख़त करने को कहा, जिसमें मुझे गैरकानूनी सुसमाचार प्रचार और समाज व्यवस्था गड़बड़ करने के अपराध में, एक साल की कठोर पुनार्शिक्षा की सज़ा सुनायी गयी थी। मैंने दस्तख़त करने से इनकार कर दिया, तो दो पुलिसवालों ने मेरा हाथ पकड़कर मुझसे जबरन अंगूठे का निशान लगवाने की कोशिश की। मैंने एक प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मैंने सच में देख लिया है कि कम्युनिस्ट पार्टी कितनी दुष्ट और क्रूर है। मैं इन दानवों से घृणा करता हूँ, मैं अपने कसम खाता हूँ कि यह हमेशा-हमेशा मेरी जानी दुश्मन बनी रहेगी। हे परमेश्वर, जेल का जीवन चाहे जितना क्रूर क्यों न हो, मैं गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाऊंगा।" मैं भौंचक्का रह गया जब अगले ही दिन पुलिस ने बताया कि मुझे घर भेजा जा रहा है। इस खबर ने मेरे दिल को छू लिया। बाद में, मुझे पता चला कि लेबर कैंप मानसिक रोगियों को दाखिल नहीं देते, इसलिए उनके पास मुझे छोड़ देने के सिवाय कोई रास्ता नहीं था।

उस अनुभव के बाद, मुझे लगा कि भाई-बहनों को धोखा दिये बिना वह सारी यातना सहने का अर्थ मेरे आध्यात्मिक कद विशेष का होना है। ऐसा तब तक था जब तक मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश नहीं पढ़ लिया : "बात सिर्फ इतनी नहीं है कि मनुष्य मुझे मेरी देह में नहीं जानता; उससे भी ज़्यादा यह कि वह देह में निवास करने वाले निज रूप को भी समझने में असफल रहा है। कई वर्षों से, मनुष्य मेरे साथ एक मेहमान की तरह व्यवहार करते हुए, मुझे धोखा देते आ रहे हैं। कई बार उन्होंने मुझे 'अपने घर के दरवाज़े' पर रोक दिया है; कई बार उन्होंने मेरे सामने खड़े रह कर, मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया है; कई बार उन्होंने दूसरे लोगों के बीच मेरा परित्याग किया है; कई बार उन्होंने शैतान के सामने मुझे नकार दिया है; और कई बार उन्होंने अपने झगड़ालू मुँह से मुझ पर शाब्दिक हमला किया है। फिर भी मैं मनुष्य की कमज़ोरियों का हिसाब नहीं रखता और न ही मैं उसकी अवज्ञा के कारण उससे बदला लेता हूँ। मैंने बस उसकी लाइलाज बीमारियों के उपचार हेतु उसकी बीमारियों की दवा की है, जिससे उसका स्वास्थ्य पुनः बहाल हो जाए, ताकि वह मुझे जान सके" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 12)। खासतौर से, इन वचनों को पढ़कर कि "कई बार उन्होंने शैतान के सामने मुझे नकार दिया है" मैं जाग गया और बहुत बुरा महसूस करने लगा। मुझे लगा यह ठीक मैं ही हूँ। मैं वो शख्स था जिसने दानव के सामने परमेश्वर को ठुकरा दिया था। जब गिरफ़्तार करके मुझे क्रूरता से यातना दी गयी, तो मैंने थोड़े-से शारीरिक कष्ट से बचने के लिए इनकार किया कि मैं एक विश्वासी हूँ। मैंने इतने वर्षों तक आस्था रखी, मगर उस परमेश्वर को नहीं माना जिसमें विश्वास रखता था। बहुत दुखद बात थी। यह कैसी आस्था है? मैं खुद को एक ईसाई कैसे कह सकता हूँ? मैंने सच में खुद को नाकारा, बेहद स्वार्थी और नीच महसूस किया। मैंने उन परीक्षणों को याद किया जिनसे होकर अय्यूब गुज़रा था। उसने अपनी धन-दौलत और बच्चे गँवा दिये, उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गये। उसकी पत्नी भी उसका विरोध कर उससे आस्था छोड़ने की मांग करने लगी, लेकिन उसने यह कहकर यहोवा परमेश्वर के नाम का मान रखा, "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" (अय्यूब 1:21)। युगों-युगों से, जब संतों को सताया गया, तो उन्होंने शहीद हो जाने पर भी परमेश्वर की गवाही दी। लेकिन मैंने उत्पीड़न का सामना होने पर विश्वासी होने से इनकार कर दिया, खासतौर से मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम मानने से मना कर दिया। मैं कमज़ोर और बेकार था, लालच के साथ ज़िंदगी से चिपका हुआ था। प्रभु यीशु ने कहा था, "जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूँगा। पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा, उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूँगा" (मत्ती 10:32-33)। इस बारे में मैंने जितना सोचा, मुझे उतना ही पछतावा हुआ, उतना ही मैंने खुद को दोषी पाया, मुझे लगा कि मैं परमेश्वर के सामने जीने लायक नहीं हूँ। मैंने प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, जब पुलिस हिरासत में मुझे यातना दी गयी, तो दानव के सामने मैंने कभी नहीं माना कि मैं एक विश्वासी हूँ। मैंने समझ लिया कि मुझे ज़िंदगी से बड़ा प्रेम है, मैंने शैतान को हँसने दिया। मैं बेहद कमज़ोर और कायर हूँ। मैं तुम्हारा अनुसरण करने लायक नहीं हूँ, न ही तुम्हारे वचनों का खान-पान करने लायक हूँ।" यह मेरे लिए बहुत मुश्किल समय था। मुझे लगा कि मैंने अच्छी गवाही नहीं दी है, यह मुझ पर एक कलंक है, मैं परमेश्वर के सामने जीने लायक नहीं हूँ।

बाद में मैंने गिरफ़्तार हुए कुछ भाई-बहनों के गवाही लेख पढ़े, उन्होंने भयंकर यातना के बावजूद न तो परमेश्वर को कभी नकारा, न ही धोखा दिया। मुझ पर जिस गवाही ने बहुत गहरी छाप छोड़ी, वह तीस वर्षीय एक बहन की थी। उसे दिन-रात नौ दिनों तक यातनाएँ दी गयीं, कभी पलक नहीं झपकते दी। उन्होंने हथकड़ियों से उसके मुंह पर मारा, उसका मुँह लहुलुहान कर दिया, मगर वह एक भी शब्द नहीं बोली। उसने जो यातना झेली, वह मेरी यातना से कहीं ज़्यादा बर्बर थी, मगर उसने कभी भी परमेश्वर के नाम को नहीं नकारा। तुलना करके मैंने शर्मिंदगी महसूस की। मैंने देखा कि मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, मैं बहुत कमज़ोर हूँ। मैंने सोचा कि यातना दिये जाने पर, मैं जिस परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, उसे क्यों नकारा। क्या यह इस डर के कारण नहीं था कि मुझे यातना देकर मार डाला जाएगा? बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों में यह अंश पढ़ा : "जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता। हालाँकि, 'देह' की परिभाषा में यह कहा जाता है कि देह शैतान द्वारा दूषित है, लेकिन अगर लोग वास्तव में स्वयं को अर्पित कर देते हैं, और शैतान से प्रेरित नहीं रहते, तो कोई भी उन्हें मात नहीं दे सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। मुझे एहसास हुआ कि शैतान ने मौत के मेरे डर को पकड़कर उसी से मुझ पर हमला किया, ताकि मैं परमेश्वर को नकार दूं और अपनी गवाही में असफल हो जाऊं। लेकिन सच तो यह है कि जीवन-मरण दोनों परमेश्वर के हाथ में हैं। पीटकर मुझे मार डाला जाएगा या नहीं यह परमेश्वर के शासन के अधीन है, मुझे उसकी योजना को स्वीकार करना होगा। भले ही मेरी जान चली जाए, मैं परमेश्वर की गवाही दूंगा, और परमेश्वर इसका उत्सव मनाएगा। ऐसी चीज़ के लिए मरना बड़ी बात है। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, अगर मुझे फिर से कभी गिरफ़्तार किया गया, तो मैं कैसी भी यातना झेलूँ, मैं तुम्हारी गवाही देने और तुम्हें सतुष्ट करने के लिए तैयार हूँ।"

फिर दिसंबर 2012 में सुसमाचार साझा करते समय पांच दूसरे भाई-बहनों के साथ मुझे दोबारा गिरफ़्तार कर लिया गया। पुलिस की गाड़ी में, मैंने परमेश्वर से लगातार प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मेरे दोबारा गिरफ़्तार होने के पीछे तुम्हारी सदिच्छा है। मैं शैतान के सामने तुम्हारी गवाही देने को तैयार हूँ।" पुलिस थाने पहुँचने पर, पुलिसवालों से हमसे पूछा कि ये किताबें किसकी हैं? मैंने याद किया कि किस तरह 10 साल पहले मैंने विश्वासी होने से इनकार कर दिया था और सच्ची गवाही नहीं दी थी। मैं जानता था कि इस बार मुझे अपने शर्मसार अस्तित्व से चिपके रहने के लिए परमेश्वर को नकारने के बजाय, सीधे तौर पर कहना होगा कि मैं एक ईसाई हूँ, रजिस्टर में नाम दर्ज करने के लिए पुलिस हम सबको एक-एक करके ले गयी। उन्होंने हमारी पहचान और पतों की जांच की, हमारे अंगूठों की छाप और पदचिह्न लिये। मैंने अपना असली नाम बताया, लेकिन उन्हें सिस्टम में मेरा कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। मेरी निजी जानकारी पाने के लिए उन्हें पुरानी फाइलें टटोलनी पड़ीं। मुझे एहसास हुआ कि मेरे आवासीय रजिस्ट्रेशन को पुलिस ने मिटा दिया था, इसलिए मेरी पहले की गिरफ़्तारी का कोई रिकॉर्ड नहीं था। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर को धन्यवाद दिया। उस वक्त लॉबी में एक अफसर था, जो परमेश्वर का लगातार तिरस्कार कर रहा था, यह कहकर कसम खाये जा रहा था, "वह दिव्य स्वरूप कहाँ है? वह परमेश्वर भला है कहाँ? अगर तुम्हें किसी चीज़ में विश्वास रखना है तो मुझमें रखो!" मैंने गुस्से से कहा, "आप परमेश्वर का तिरस्कार कर रहे हैं, यह एक ऐसा पाप है जिसे इस संसार में या दूसरी दुनिया में भी माफी नहीं मिलेगी!" वह एक घूँसा बनाकर मुझ पर झपटने लगा। मुझे बहुत घबराहट हुई, मैंने प्रार्थना की। तभी तीन-चार अफसर उसे पकड़कर बाहर ले गये। फिर मैंने साहस जुटाकर कहा, "पुराने ज़माने में, सब लोग स्वर्ग को मानते और उसकी आराधना करते थे। वे कहते, 'लोग कर्म करते हैं, स्वर्ग देखता है,' 'मेरे मन कुछ और है, कर्ता के कुछ और।' परमेश्वर ने स्वर्ग, पृथ्वी और तमाम चीज़ें बनायीं। परमेश्वर चारों मौसमों पर शासन करता है, वह हवा, वर्षा, बर्फ, सभी चीज़ों का प्रबंधन करता है। तमाम चीज़ें परमेश्वर के कारण ही बढ़ती हैं, हमारा जीवन उसके पोषण और देखभाल से नज़दीकी से गुंथा हुआ है। एक भी इंसान स्वर्ग के शासन से खुद को अलग नहीं कर सकता। यह एक सच्चाई है!" उन्होंने मेरी यह बात सुनी, फिर बिना एक भी शब्द बोले बाहर चले गये।

अगली दोपहर पुलिस मुझे एक सीलबंद पूछताछ कक्ष में ले गयी। उन्होंने मुझे एक टाइगर कुर्सी पर जबरन बिठा दिया, मेरे दोनों हाथों में अलग-अलग हथकड़ी लगाकर दोनों पैरों को अलग-अलग पट्टों से बाँध दिया। दो तेज दमकते प्रकाशपुंज दोनों ओर से मेरे चेहरे पर चमक रहे थे। कमरे में एक अशुभ-सी भावना थी। दोनों अफसर सीधे मुझे घूर रहे थे, मुझे बड़ी बेचैनी होने लगी थी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मुझे आस्था देने की विनती की। फिर उनमें से एक ने सीधे मुझे देखकर कहा, "तुम लोग हर जगह सुसमाचार फैला रहे हो, कहते हो कि महाविपत्ति आनेवाली है। क्या तुम लोग सामाजिक व्यवस्था में गड़बड़ी नहीं पैदा कर रहे हो?" मैंने कहा, "बाइबल में प्रकाशित-वाक्य की किताब में अंत के दिनों में एक महाविपत्ति के आने की भविष्यवाणी की गयी है, यह एक अकाट्य सत्य है। हम सुसमाचार साझा करते हैं, परमेश्वर की गवाही देते हैं, ताकि लोग सत्य को स्वीकार करें और परमेश्वर द्वारा बचाये जा सकें। यह लोगों को बचाने के लिए है। इसमें अपराध कहाँ है? महाविपत्ति बहुत जल्द आने वाली है। अगर आप समझदार होने से इनकार करेंगे, ईसाइयों को गिरफ़्तार कर उन्हें सताते रहेंगे, परमेश्वर के उद्धार कार्य में रोड़े अटकायेंगे, तो यह परमेश्वर के विरुद्ध काम करना होगा, उसके स्वभाव का अपमान करना होगा। आपको परमेश्वर द्वारा दंड दिया जाएगा।" उनके चेहरे के काठिया भाव को देखकर मैंने उन्हें परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जो परमेश्वर के कार्य की अवहेलना करता है, उसे नरक भेजा जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य का विरोध करता है, उसे नष्ट कर दिया जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है, उसे इस पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा, और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मैं सभी राष्ट्रों, सभी देशों, और यहाँ तक कि सभी उद्योगों के लोगों से विनती करता हूँ कि परमेश्वर की वाणी को सुनें, परमेश्वर के कार्य को देखें, और मानवजाति के भाग्य पर ध्यान दें, ताकि परमेश्वर को सर्वाधिक पवित्र, सर्वाधिक सम्माननीय, मानवजाति के बीच आराधना का सर्वोच्च और एकमात्र लक्ष्य बनाएँ, और संपूर्ण मानवजाति को परमेश्वर के आशीष के अधीन जीने की अनुमति दें" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। परमेश्वर के वचन सुनकर, उनमें से एक शख्स भावशून्य मुद्रा में बिना हिले खड़े-खड़े घूरता रहा, दूसरा अपना सिर झुकाकर बोला, "हमने बहुत-से भयानक काम किये हैं। तुम्हारे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमें नहीं चाहेंगे।" इसे देखकर मुझे परमेश्वर के वचनों की ताकत का आभास हुआ, इससे मेरी आस्था और ज्यादा बढ़ गयी। मैंने कहा, "आप बुरे काम छोड़ सकते हैं, ईसाइयों को गिरफ़्तार कर सताना छोड़ सकते हैं, इंसान को बचाने के परमेश्वर के कार्य की राह में रोड़े अटकाना छोड़ सकते हैं। परमेश्वर धार्मिक है, हमारे कर्मों के आधार पर वह हमसे निपटता है और प्रतिफल देता है।" इसके बाद पुलिस ने मुझे उनकी टिप्पणियों की जांच करने दी, मेरे हाथ-पैर की बेड़ियों को खोलकर मुझे जाने दिया। उन्होंने मुझे यूं ही जाने दिया। इस पूरी घटना पर मुझे यकीन नहीं हो रहा था, इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। मुझे फ़िक्र थी कि न जाने अब वे कौन-सी चालें चलने वाले हैं, इसलिए यह पक्का करने के लिए कि कोई घर तक मेरा पीछा तो नहीं कर रहा है, मैं बाहर निकलकर अपनी बाइक पर गोल-गोल घूमता रहा।

कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ़्तार होकर सताये जाने के कारण मुझे कोई शक नहीं था कि उसका सार विकृत और दुष्ट है, और इसमें पूरी तरह से परमेश्वर का विरोध करने वाले दानव भरे हुए हैं। यह इस पृथ्वी पर शैतान की सबसे दुष्ट, और अनैतिक ताकत है। मैंने उसे दिल से ठुकरा कर श्राप दिया। मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता, संप्रभुता और उसके अद्भुत कार्यों को भी स्वीकार किया। परमेश्वर की देखभाल और रक्षा के कारण ही मैं कम्युनिस्ट पार्टी के इस हमले में ज़िंदा बच पाया था। जब मैं बेसहारा था, तब परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध कर रास्ता दिखाया, मुझे सहते रहने की शक्ति दी। जब मैंने परमेश्वर की गवाही दी, तो शैतान शर्मसार होकर हार गया। इससे मैं परमेश्वर के वचनों की सामर्थ्य और अधिकार को समझ पाया और परमेश्वर में मेरी आस्था और बढ़ी। मैं समझ सका कि परमेश्वर की बुद्धि शैतान की चालों का इस्तेमाल करके व्यक्त होती है, बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के हाथों में बस एक प्यादा है, उसके चुने हुए लोगों को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर का एक औजार। इस प्रकार का अनुभव और समझ हासिल करना परमेश्वर का वरदान और अनुग्रह था। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ!

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