तबाही के बीच जीवन का गीत
1999 में, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारने का सौभाग्य मिला। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैंने उनमें मौजूद अधिकार और सामर्थ्य को जाना, और महसूस किया कि वे वचन परमेश्वर की वाणी हैं। परमेश्वर ने जो वचन मानवता के लिए व्यक्त किए, उन्हें सुनने पर मैं इतनी द्रवित हो गयी कि बयाँ नहीं कर सकती, और पहली बार, मैंने अपनी आत्मा की गहराइयों में उस सुकून और आनंद को महसूस किया जो पवित्र आत्मा इंसान के लिए लाता है। उस पल से, मैं उत्तरोत्तर परमेश्वर के वचनों की उत्साही पाठक बनती चली गयी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में शामिल होकर, मैंने देखा कि कलीसिया एक बिल्कुल ही नयी दुनिया है, समाज के एकदम अलग। सभी भाई-बहन बहुत ही सीधे-सादे, दयालु, निर्मल और जीवन से भरपूर हैं। हालाँकि हमारा कोई ख़ून का रिश्ता नहीं था, हम लोग अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए थे, हमारी अपनी पहचान थी, लेकिन हम एक ही कुटुम्ब की आत्माएँ थे जिनमें परस्पर प्रेम था, जो एक-दूसरे का सहारा थे, और आनंद में एक-साथ थे। यह देखकर मुझे वाकई महसूस हुआ कि परमेश्वर की आराधना में जीवन बिताना कितनी प्रसन्नता और आनंद की बात है, यह कितना सुंदर और मधुर है। बाद में, मैंने परमेश्वर के ये वचन देखे: "एक इंसान और सच्चे ईसाई होने के नाते, अपने मन और शरीर को परमेश्वर के आदेश को पूरा करने के लिए समर्पित करना हम सभी की ज़िम्मेदारी और दायित्व है, क्योंकि हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और यह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश के लिए समर्पित नहीं हैं और मानवजाति के धार्मिक कार्य के लिए नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के योग्य नहीं हैं जो परमेश्वर के आदेश के लिए अपना जीवन त्याग चुके हैं, परमेश्वर के लिए तो और भी अधिक अयोग्य हैं, जिसने हमें सब कुछ प्रदान किया है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है")। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि एक सृजित प्राणी के नाते, मुझे सृष्टिकर्ता के लिए जीना चाहिए, मुझे अपना सर्वस्व अंत के दिनों के परमेश्वर के सुसमाचार को फैलाने और उसकी गवाही देने के लिए अर्पित कर देना और खपा देना चाहिए—यही परम मूल्यवान और सार्थक जीवन है। और इसलिए, जब मैंने सुना कि दूर-दराज़ के इलाकों में रहने वाले लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के सुसमाचार को नहीं सुना है, तो मैंने अपने गृह-नगर में भाई-बहनों को निश्चयपूर्वक अलविदा कहा और राज्य सुसमाचार का प्रचार-प्रसार करने निकल पड़ी।
2002 में, सुसमाचार का प्रचार-प्रसार करने के लिए मैं मैं गुइझू प्रांत में दूर-दराज़ के पिछड़े पहाड़ी इलाके में पहुँची। सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के लिए मुझे हर रोज़ आँधी-तूफ़ान और बर्फ़ का सामना करते हुए, पहाड़ी रास्तों से मीलों पैदल चलना पड़ता था। चूँकि परमेश्वर मेरे साथ था, इसलिए मुझे किसी तरह की थकान या कोई कठिनाई महसूस नहीं होती थी। पवित्र आत्मा के कार्य के मार्गदर्शन में, सुसमाचार कार्य तेज़ी से चल पड़ा, अधिक से अधिक लोग परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारने लगे और कलीसिया जीवन में प्राण-शक्ति का प्रवाह उमड़ने लगा। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में, मैंने उस जगह पर छ: साल गुज़ारे जो ख़ुशी और आत्म-संतुष्टि से भरे हुए थे। लेकिन 2008 में, अचानक कुछ असाधारण घटा, कुछ ऐसा जिसने मेरे जीवन की खुशियों और शांति को भंग कर दिया।
15 मार्च, 2008 को सुबह करीब 11.00 बजे की घटना है। दो भाई और मैं एक सभा में भाग ले रहे थे, तभी अचानक चार पुलिसवाले दरवाज़े से धड़धड़ाकर घुसे और तेज़ी से हम लोगों को फ़र्श पर ही दबा दिया। बिना कुछ बोले, उन्होंने हमें हथकड़ियाँ लगा दीं, और हमें घसीटकर पुलिस की गाड़ी में ठूँस दिया। गाड़ी के अंदर, वे लोग कुटिलता से भद्दी हँसी हँसने लगे, हमारी ओर बिजली का झटका देने वाली छड़ियाँ लहराते हुए उनसे हमारे सिर और धड़ पर प्रहार करने लगे। उन्होंने जंगलियों की तरह हमें गालियाँ दीं, "कुतिया के पिल्लो! तुम इतने जवान हो, कुछ भी कर सकते थे, लेकिन नहीं, तुम्हें तो परमेश्वर में ही आस्था रखनी है! तुम्हारे पास कुछ और अच्छा करने को नहीं है क्या?" अचानक हुई इस गिरफ़्तारी से मैं बहुत घबरा गई, मुझे समझ में नहीं आया कि आगे क्या होने वाला है। मैं बस मन ही मन बार-बार परमेश्वर को पुकार सकती थी: "हे परमेश्वर! तेरी अनुमति से आज मुझ पर यह स्थिति आ पड़ी है। मैं तुझसे केवल यह गुज़ारिश करती हूँ कि तू हमें विश्वास दे और हमारी रक्षा कर ताकि हम तेरी गवाही दे सकें।" प्रार्थना के बाद, मेरे मन में परमेश्वर के ये वचन आए: "मेरे प्रति विश्वासयोग्य रहो, सबसे बढ़कर, बहादुरीसे आगे बढ़ो; मैं तुम्हारी चट्टान हूँ, मुझ पर भरोसा रखो!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 10")। "हाँ!" मैंने सोचा। "परमेश्वर मेरा सहारा है, वही मेरा मज़बूत और सशक्त आश्रय है। मैं चाहे किसी भी स्थिति में रहूँ, जब तक मैं परमेश्वर के प्रति निष्ठावान रहकर उसके साथ खड़ी रह सकती हूँ, तब तक मैं निश्चित तौर पर शैतान को पराजित करके उसे शर्मिंदा कर सकती हूँ।" परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता ने मुझे शक्ति और आस्था पाने योग्य बनाया, मैंने मन ही मन संकल्प किया: सत्य मार्ग का त्याग करने और परमेश्वर की गवाही न देने के बजाय मैं मर जाना पसंद करूँगी!
हमारे पुलिस स्टेशन पहुँचने पर, पुलिसवालों ने हमें बुरी तरह से घसीटकर गाड़ी से बाहर निकाला और हमारे साथ धक्का-मुक्की करते हुए हमें स्टेशन में ले गए। उन्होंने हमारी पूरी तलाशी ली, उन्हें कलीसिया के मेरे दो भाइयों के बैग से सुसमाचार सामग्री और मोबाइल फ़ोन मिला। लेकिन जब उन्हें बैग में पैसे नहीं मिले, तो उनमें से एक दुष्ट पुलिसवाले ने एक भाई को घसीटा और उस पर लात-घूँसों की बौछार कर दी। वह उसे तब तक पीटता रहा, जब तक कि वह ज़मीन पर नहीं गिर पड़ा। उसके बाद, हमें अलग-अलग कमरों में ले जाकर, हमसे अलग-अलग पूछताछ की गई। मुझसे पूरी दोपहरी पूछताछ की जाती रही, लेकिन वे मुझसे एक भी शब्द नहीं उगलवा सके। रात को आठ बजे के बाद उन्होंने हम तीनों को अज्ञात नज़रबंदियों के तौर पर हमारा नाम दर्ज किया और हमें स्थानीय नज़रबंदी गृह में भेज दिया गया।
जैसे ही हम लोग नज़रबंदी गृह पहुँचे, दो महिला सुधार अधिकारियों ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए। मेरे कपड़ों से उन्होंने धातु की सारी चीज़ें काट दीं, मेरे जूते के फीते और बेल्ट ले ली। मैं नंगे पैर अपनी पतलून संभाले, काँपती हुई अपनी कोठरी तक पहुँची। मुझे आते देख, महिला कैदी मुझ पर पागलों की तरह झपटीं और मुझे घेर लिया, सबकी सब एक साथ मुझसे सवाल-जवाब करने लगीं। वहाँ रोशनी इतनी धीमी थी कि उनकी आँखें तश्तरी जितनी बड़ी लग रही थीं; वे मुझे घूर रही थीं और ऊपर से नीचे तक देख रही थीं, जबकि कुछ मेरे बाज़ू खींच रही थीं, इधर-उधर छू रही थीं और चिकोटी काट रही थीं। मैं भौंचक्की-सी, अपनी जगह पर जड़ हो गई थी, मैं इतनी डर गई थी कि मुँह से एक शब्द नहीं निकल रहा था। इस ख़्याल से ही कि मुझे इस नारकीय जगह में इन महिलाओं के साथ रहना पड़ेगा, मेरा मन हुआ कि मैं इस अन्याय पर फूट-फूटकर रोऊँ। तभी, एक ईंट के बिस्तर पर बैठी एक कैदी जो अब तक एक शब्द नहीं बोली थी, अचानक चिल्लाई, "बस बहुत हो गया! यह अभी आई है, इसे अभी किसी चीज़ के बारे में कुछ पता नहीं है। इसे डराओ मत।" फिर उसने मुझे अपने आपको ढकने के लिए एक रज़ाई दी। उस पल मुझे स्नेह का एहसास हुआ, मैं जानती थी कि यह उस कैदी की अच्छाई नहीं थी, बल्कि परमेश्वर मेरे आस-पास के लोगों का इस्तेमाल करके, मेरी मदद और देखभाल कर रहा था। परमेश्वर लगातार मेरे साथ था, मैं अकेली बिल्कुल नहीं थी। चूँकि इस मनहूस और धरती पर भयावह सपने जैसे इस नरक में परमेश्वर का प्रेम मेरे साथ था, इसलिए मैंने बहुत सुकून महसूस किया। गहरी रात में सारे कैदी सो रहे थे, लेकिन मेरी आँखों से नींद गायब थी। मुझे ख़्याल आया कि इस सुबह, मैं अपने भाई-बहनों के साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपना कर्तव्य निभा रही थी, और इसी रात मैं इस कब्र जैसी नारकीय जगह में पड़ी हूँ, पता नहीं कब इससे छुटकारा मिलेगा—मुझे जो दुख और परेशानी हुई उसे बयाँ नहीं किया जा सकता। मैं इन्हीं विचारों में खोयी थी कि तभी ठंडी हवा का एक झोंका अचानक कहीं से आकर चाबुक की तरह लगा और मैं न चाहते हुए भी सिहर उठी। मैंने सिर उठाकर आसपास देखा, तब मुझे समझ में आया कि कोठरी इन चीज़ों के लिए खुली हुई है। सोने की जगह के ऊपर छत के अलावा, बाकी कोठरी के ऊपर एक जाली लगी है जो धातु की मोटी छड़ों से बनी है जिन्हें वेल्डिंग से जोड़ा गया है, ठंडी हवा वहीं से आयी है। बीच-बीच में, मुझे छत के ऊपर पहरा दे रहे पुलिसवालों के चलने की आवाज़ भी सुनाई दे रही थी। मुझे हड्डियों को कँपा देने वाला डर महसूस हो रहा था, मेरा डर, मेरी बेबसी, और मेरे साथ जो नाइंसाफ़ी हुई है, ये सब मेरे दिल में समा गए; अनायास ही मेरी आँखों से आँसू बह निकले। उसी पल, मेरे मन में स्पष्ट तौर पर परमेश्वर के वचनों का यह अंश उभरा: "तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे परिवेश में सभी चीज़ें मेरी अनुमति से हैं, मैं इन सभी की व्यवस्था करता हूँ। स्पष्ट रूप से देखो और तुम्हें दिए गए वातावरण में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो नहीं, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे है और तुम्हारा रक्षक है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 26")। "हाँ," मैंने सोचा। "सीसीपी सरकार को मुझे पकड़ने की अनुमति परमेश्वर ने दी है। हालाँकि यह जगह अंधेरी और भयावह है, और मुझे यह भी अंदाज़ा नहीं है कि आगे मेरे साथ क्या होने वाला है, लेकिन परमेश्वर मेरा सहारा है, इसलिए भय की कोई बात नहीं है! या तो पूरा विश्वास या बिल्कुल नहीं, और मैं अपना सर्वस्व परमेश्वर के हाथों में सौंपती हूँ।" परमेश्वर की इच्छा को समझकर, मुझे बड़ी राहत मिली, मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! अपनी प्रबुद्धता और प्रकाशन के ज़रिए मुझे यह समझाने के लिए तेरा धन्यवाद कि यह जो कुछ हो रहा है, उसमें तेरी अनुमति शामिल है। मैं तेरे आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहती हूँ, इस विपदा में तेरी इच्छा जानना चाहती हूँ, और मैं वह सत्य पाना चाहती हूँ जो तू मुझे देना चाहता है। हे परमेश्वर! चूँकि मेरा कद बहुत छोटा है, इसलिए मैं चाहती हूँ कि तू मुझे आस्था और मज़बूती दे, मेरी रक्षा करे ताकि हर तरह की यातना से गुज़रकर भी मैं तुझे कभी धोखा न दूँ।" प्रार्थना के बाद, मैंने अपने आँसू पोंछे और परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, और मैं शांत रहकर एक नई सुबह का इंतज़ार करने लगी।
दूसरे दिन सुबह-सुबह, धड़ाक की आवाज़ के साथ कोठरी का दरवाज़ा खुला। एक सुधार अधिकारी चिल्लाई, "जेन डो, चलो बाहर!" मैं वहीं खड़ी रही, लेकिन फिर मुझे समझ में आया कि उसका इशारा मेरी ओर है। पूछताछ कक्ष में, पुलिसवालों ने फिर से मेरा नाम और पता पूछा, और मुझे कलीसिया के बारे में बताने को कहा। मैं कुछ नहीं बोली, और सिर झुकाकर कुर्सी पर बैठ गई। वे लोग एक हफ़्ते तक मुझसे हर रोज़ पूछताछ करते रहे, आख़िरकार एक दिन उनमें से एक मुझ पर उंगली का प्रहार करते हुए चिल्लाई, "कुतिया! हम तेरे साथ कई दिनों से हैं और तूने अब तक एक शब्द नहीं बोला। ठीक है, देख अब तू। हम तुझे अभी कुछ दिखाते हैं!" यह कहकर, दो पुलिसवाले दरवाज़ा भड़भड़ाते हुए तूफ़ानी गति से बाहर निकल गए। एक दिन रात के वक्त, मुझे बुलाने के लिए पुलिसवाले आए। उन्होंने मुझे हथकड़ी लगाई और पुलिस की गाड़ी में ठूँस दिया। मैं पीछे की सीट पर बैठी, अंदर ही अंदर ख़ौफ़ महसूस कर रही थी, मैंने सोचा: "ये लोग मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं? क्या ये लोग मेरे साथ कुछ गलत करने के लिए मुझे किसी अज्ञात जगह पर ले जा रहे हैं? क्या ये मुझे बोरी में ठूँस कर मछलियों का चारा बनाने के लिए नदी में फेंक देंगे?" मैं बहुत डरी हुई थी, लेकिन तभी कलीसिया भजन "राज्य" की ये पँक्तियाँ मेरे कानों में गूँजने लगीं: "परमेश्वर मेरा सहारा है, मैं किससे डरूं? अंत तक शैतान के साथ लड़ने के लिए अपने जीवन को सौंपने की मैं प्रतिज्ञा करता हूं। परमेश्वर हमें उठाता है, हमें सब कुछ पीछे छोड़कर मसीह के लिए गवाही देने के लिए लड़ना चाहिए। परमेश्वर पृथ्वी पर अपनी इच्छा पूरी करेगा। मैं अपना प्यार और वफ़ादारी तैयार करूंगा और परमेश्वर को ये सब समर्पित करूंगा। जब वह महिमा में उतरेगा, तो मैं ख़ुशी से परमेश्वर की वापसी का स्वागत करूंगा" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना)। पल भर में मेरे अंदर शक्ति का संचार हुआ। मैंने मन ही मन भजन पर चिंतन करते हुए, सिर उठाकर खिड़की से बाहर झाँक कर देखा। पुलिसवालों ने जैसे ही मुझे बाहर झाँकते हुए देखा, उन्होंने फ़ौरन पर्दा खींच दिया, और मुझ पर चिल्लाए, "बाहर क्या देख रही है? सिर नीचा कर!" अचानक चिल्लाने की आवाज़ सुनकर मैं भय से काँप गयी, और मैंने तुरंत ही अपना सिर नीचे कर लिया। चारों पुलिसवाले लगातार सिगरेट पीते हुए धुएँ के छल्ले उड़ा रहे थे, थोड़ी ही देर में गाड़ी के अंदर की हवा इतनी दूषित हो गई कि बर्दाश्त नहीं हो रही थी; मैं खाँसने लगी। मेरे सामने बैठे एक पुलिसवाले ने घूमकर अपनी उंगलियों से मेरा निचला जबड़ा दबोचा और सिगरेट का धुआँ ठीक मेरे चेहरे पर छोड़ दिया और चिढ़े हुए अंदाज़ में बोला, "तुझे जो कुछ पता है, हमें बता दे, तुझे कोई परेशानी नहीं होगी; तू आराम से घर जा सकती है। तू जवान औरत है, और ख़ूबसूरत भी है...।" यह कहते हुए वह अपनी उँगलियाँ मेरे चेहरे पर फेरने लगा और कामुक अंदाज़ में मेरी ओर आँख मारी, फिर कुटिलता से हँसकर बोला, "शायद हम तेरे लिए कोई बॉयफ्रेंड भी ढूँढ़ दें।" मैंने अपना चेहरा घुमाया और उसके हाथ को अलग करने के लिए अपने हथकड़ियों में बंधे हाथ उठाए। वह शर्मिदगी और गुस्से से बोला, "अच्छा, तो तू इतनी ताकतवर है। थोड़ा रुक जा, हमें वहाँ पहुँचने दे जहाँ हम जा रहे हैं, तब तेरी अक्ल ठिकाने आएगी।" गाड़ी चलती रही। मुझे कोई अनुमान नहीं था कि आगे क्या होने वाला है, इसलिए मैं बस परमेश्वर से मन ही मन प्रार्थना ही कर सकती थी: "हे परमेश्वर! अब मैं हर चीज़ का जोखिम उठाने को तैयार हूँ। ये दुष्ट पुलिसवाले मेरे ख़िलाफ़ कोई भी चाल चलें, जब तक मेरे अंदर एक भी साँस बाकी है, मैं शैतान के सामने तेरी मज़बूत और शानदार गवाही दूँगी!"
आधा घंटे से ज़्यादा के बाद, गाड़ी रुकी। पुलिसवालों ने मुझे घसीटकर बाहर निकाला; मैं लड़खड़ाई और फिर अपने चारों ओर देखा। अंधेरा हो चुका था, आसपास कुछ खाली भवन थे जिनमें कोई रोशनी नहीं जल रही थी—सब-कुछ मनहूस और भयानक लग रहा था। मुझे एक भवन में ले जाया गया। अंदर, एक मेज़ और सोफ़ा पड़ा हुआ था, एक बल्ब छत से लटक रहा था, जिससे एक डरावनी पीली रोशनी चारों ओर बिखर रही थी। फ़र्श पर रस्सी और लोहे की ज़ंजीरें पड़ी थीं, और कमरे के दूसरी ओर मोटी धातु की छड़ों से बनी एक कुर्सी पड़ी थी। इस भयानक दृश्य को देखकर, मैं डरने लगी। मेरे पैरों में ताकत नहीं बची थी, मैं सोफ़े पर बैठ गई ताकि चैन मिले। कमरे के अंदर कई लोग आ गए, और वे मुझे ज़ोर-ज़ोर से डाँटने लगे। "उस कुर्सी पर बैठी क्या कर रही हो? यह क्या तेरे बाप की कुर्सी है? चल उठ!" कहते हुए वह व्यक्ति मेरे पास आकर मुझ पर लात-घूँसे बरसाने लगा, उसके बाद उसने सामने से मेरे टॉप को पकड़ लिया, मुझे सोफ़े से खींचा और घसीटकर धातु की कुर्सी पर पटक दिया। एक दूसरा पुलिसवाला बोला, "यह जो कुर्सी हैं न, कमाल की है। बस थोड़ी देर के लिए इस पर बैठना होता है और ज़िंदगी भर का 'मज़ा' आ जाता है। यह कुर्सी खास तौर से तुम जैसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों के लिए ही बनवायी गयी है। हम लोग इस पर ऐसे ही किसी को भी नहीं बैठने देते। तू एक अच्छी लड़की बनकर, ईमानदारी से हमारे सवालों के जवाब दे दे, फिर तुझे इस पर बैठने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अच्छा तो बता, तू गुइझू क्यों आई? अपने सुसमाचार का उपदेश देने आयी थी क्या?" मैं कुछ नहीं बोली। एक तरफ़ खड़ा एक सख्त-सा दिखने वाला पुलिसवाला गाली बकते हुए बोला, "यह तेरा गूँगी का नाटक बहुत हुआ, समझी! अगर तूने ज़बान नहीं खोली ना, तो तुझे इस कुर्सी का मज़ा चखा दूँगा!" मैं फिर भी चुप रही।
तभी, कामोत्तेजक कपड़े पहने एक महिला कमरे में आई, पता चला कि पुलिसवालों के गिरोह ने इस महिला को यहाँ बुलाया है ताकि वह मुझे मनाकर मुझसे अपराध स्वीकार करवा ले। वह झूठी शिष्टता दिखाकर मुझे नसीहत दे रही थी, "देखो, तुम यहाँ एक अजनबी हो, यहाँ आसपास न तुम्हारे सग-संबंधी हैं, न दोस्त हैं। हम जो जानना चाहते हैं, तुम हमें बता दो, ठीक है? हम जो जानना चाहते वह तुम हमें बता दोगी, तो मैं तुम्हें कोई काम दिलवा दूँगी, और यहीं गुइझू में तुम्हारे लिए एक पति ढूँढ़ दूँगी। मैं तुमसे वादा करती हूँ कि मैं तुम्हारे लिए एक अच्छा इंसान ढूँढ़ दूँगी। लेकिन अगर तुम्हें यह सब नहीं चाहिए, तो तुम मेरे यहाँ एक आया का काम कर सकती हो। मैं तुम्हें हर महीने तन्ख़्वाह दूँगी। इस तरह, तुम यहाँ बस सकती हो और अपनी एक पहचान बना सकती हो।" मैंने सिर उठाकर उसे एक नज़र देखा, लेकिन मैं कुछ बोली नहीं। मैंने सोचा: "शैतान शैतान ही रहेंगे। ये लोग परमेश्वर के अस्तित्व को नहीं मानते, पैसे और मुनाफ़े के लिए भयानक से भयानक काम करते हैं। अब ये लोग मुझे घूस देने के लिए मुनाफ़े का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ। मैं इनकी धूर्त साज़िशों की शिकार होकर, बेशर्म यहूदा कैसे बन सकती हूँ?" उसने देखा कि उसके "दयालुतापूर्ण" शब्दों का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ है, और उसे पुलिसवालों के सामने लज्जित होना पड़ा है, तो उसने तुरंत अपना मुखौटा उतारा और अपने असली रंग में आ गयी। उसने अपने बैग में से एक पट्टी निकाली और बेदर्दी से मुझ पर बरसाने लगी, फिर गुस्से से उसने अपना बैग सोफ़े पर पटक दिया। उसने झुँझलाहट में अपना सिर झटका और एक ओर जाकर खड़ी हो गई। जो कुछ हुआ उसे देखकर, एक मोटा-सा दुष्ट पुलिसवाला मुझ पर झपटा, मुझे बालों से पकड़ा और मेरा सिर कई बार दीवार से दे मारा, और दाँत पीसते हुए चिल्लाया, "जब कोई तेरे हित की बात कर रहा हो तो क्या तुझे समझ में नहीं आता? हुँह? नहीं आता? अच्छा बता, ज़बान खोलेगी या नहीं?" उसने मेरे सिर को दीवार से इतनी बार दे मारा था कि मेरी आँखों के सामने तारे नाचने लगे, मेरा सिर भन्ना रहा था, पूरा कमरा घूम रहा था, और मैं फर्श पर गिर पड़ी। उसने मुझे घसीटा और धातु की कुर्सी पर पटक दिया जैसे कि मैं कोई कपड़े की गुड़िया हूँ। जब मुझे थोड़ा-बहुत होश आया, तो मैं धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलने लगी—मैंने देखा कि उसके हाथ में अभी भी मेरे टूटे हुए बाल हैं। मुझे ऊपर से नीचे तक कुर्सी से बाँध दिया गया, और मेरी छाती के आगे स्टील की एक मोटी प्लेट लगा दी गयी। मेरी हथकड़ियों को कुर्सी से कस दिया गया, मेरे पैरों में दसियों पौंड की बेड़ियाँ डाल दी गईं, और उन्हें भी कुर्सी से बाँध दिया गया। हाथ-पैर हिलाने में असमर्थ, मैं अपने आपको किसी बुत की तरह महसूस कर रही थी। ठंडी और भारी ज़ंजीरों, ताले और हथकड़ियों ने मुझे धातु की कुर्सी से जकड़ रखा था—मैं अपनी पीड़ा को बयाँ नहीं कर सकती। मुझे कष्ट में देखकर, दुष्ट पुलिसवाले ख़ुश हुए और यह कहकर मेरा मज़ाक उड़ाने लगे, "क्या जिस परमेश्वर में तू विश्वास रखती है, वह सर्वशक्तिमान नहीं है? वह तुझे बचाने क्यों नहीं आता? वह तुझे इस टाइगर कुर्सी से बचाता क्यों नहीं? बेहतर होगा कि अब तू ज़बान खोल दे। तेरा परमेश्वर तुझे बचा नहीं सकता, सिर्फ़ हम तुझे बचा सकते हैं। हम जो जानना चाहते हैं, वह तू हमें बता दे, हम तुझे छोड़ देंगे। तू एक अच्छा जीवन जी सकती है। परमेश्वर में आस्था रखना, समय की बर्बादी है!" मैंने उन दुष्ट पुलिसवालों की व्यंग्यात्मक टिप्पणियों को शांत भाव से सुना, क्योंकि परमेश्वर के वचन कहते हैं: "अंत के दिनों में, मनुष्य को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर वचनों का उपयोग करता है, न कि चिह्नों और चमत्कारों का। वह मनुष्य को उजागर करने, उसका न्याय करने, उसे ताड़ित करने और पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करता है, ताकि परमेश्वर के वचनों में, मनुष्य परमेश्वर की बुद्धि और सुन्दरता को देख ले, और परमेश्वर के स्वभाव को समझ जाए, ताकि परमेश्वर के वचनों के माध्यम से, मनुष्य परमेश्वर के कार्यों को निहार ले" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)। परमेश्वर अब जो कार्य कर रहा है, वह व्यवहारिक है, अलौकिक नहीं। परमेश्वर इंसान को पूर्ण बनाने के लिए वचनों का प्रयोग करता है जिससे कि उसके वचन हमारी आस्था और जीवन बन जाएँ। वह हमारे जीवन स्वभावों को बदलने के लिए अपने वचनों का प्रयोग करता है, इस प्रकार के व्यवहारिक कार्यों से ही परमेश्वर का सामर्थ्य और बुद्धि बेहतर ढंग से प्रकट हो सकते हैं, और शैतान हमेशा के लिए परास्त हो सकता है। सीसीपी सरकार ने मुझे गिरफ़्तार करके क्रूर यातनाएँ दीं क्योंकि परमेश्वर मेरी आस्था का इम्तहान लेना चाहता था और देखना चाहता था कि मैं उसके वचनों के सहारे जीते हुए उसकी गवाही दे सकती हूँ या नहीं। इस बात को समझते हुए, मेरी इच्छा हुई कि मैं परमेश्वर द्वारा पैदा की गई हर स्थिति के प्रति अपने आपको समर्पित कर दूँ। मेरी खामोशी ने दुष्ट पुलिसवालों को क्रोधित कर दिया और वे मेरी ओर इस तरह झपटे जैसे सबके सब पागल हो गए हों। उन्होंने मुझे घेरकर बुरी तरह से पीटना शुरू कर दिया। कुछ ने मेरे सिर पर ज़ोर से घूँसा मारा, कुछ ने मेरी टाँगों पर बुरी तरह से प्रहार किया, बाकी लोगों ने मेरे कपड़े फाड़ दिए और मेरे चेहरे को ज़बर्दस्ती छूने लगे। उनकी बेरहम पिटाई और गुंडागर्दी से मैं अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रही थी। अगर मुझे उस टाइगर कुर्सी से कसकर बाँधा न गया होता, तो मैं उनका ज़बर्दस्त मुकाबला करती! उस कुटिल अपराधी संगठन, सीसीपी सरकार के प्रति मेरी घृणा मेरे रोम-रोम में भर गई, मैंने मन ही मन एक संकल्प किया: ये लोग मुझे जितना सताएँगे, मेरी आस्था उतनी ही मज़बूत होगी, और मैं अपनी आख़िरी साँस तक परमेश्वर में विश्वास रखूँगी! ये मुझे जितनी ज़्यादा यातना देंगे, उससे यह बात उतनी ही ज़्यादा साबित होगी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही एक सच्चा परमेश्वर है, यह बात और ज़्यादा प्रमाणित होगी कि मैं सच्चे मार्ग का अनुसरण कर रही हूँ! इन तथ्यों के मद्देनज़र, मुझे अच्छी तरह से एहसास हो गया कि यह अच्छाई और बुराई की लड़ाई है, जीवन और मृत्यु के बीच का मुकाबला है, मेरा काम है परमेश्वर के नाम को कायम रखना और उसकी गवाही देना, व्यवहारिक कार्रवाई से शैतान को शर्मिंदा करना, इस प्रकार परमेश्वर को महिमा दिलाना। कई दिन तक यातना और पूछताछ के ज़रिए वे दुष्ट पुलिसवाले मुझसे अपराध स्वीकार करवाना चाहते थे, लेकिन मैंने उन्हें कलीसिया के बारे कुछ भी नहीं बताया। अंत में जब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा, तो वे बोले, "ये औरत टेढ़ी खीर है। हम लोग कई दिनों से इससे सवाल-जवाब कर रहे हैं, लेकिन इसने एक शब्द भी नहीं बोला।" उनकी बातचीत सुनकर, मैं समझ गई कि परमेश्वर के वचनों ने मुझे हर उस नारकीय दरवाज़े से निकलने में मेरी मदद की है जो इन शैतानों ने मेरे सामने खड़े किए थे, परमेश्वर ने मेरी रक्षा की ताकि मैं उसकी गवाही दे सकूँ। मैंने मन ही मन सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उसकी स्तुति की!
दस दिन से भी ज़्यादा की पूछताछ के दौरान, मैं दिन-रात ठंडी टाइगर कुर्सी पर ही बैठी रही, और मुझे ऐसा महसूस होता जैसे मुझे किसी बर्फ़ की कंदरा में डाल दिया गया हो। मेरी हड्डियों और जोड़ों में ठंड इस कदर समा गई थी मानो इनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए हों। एक जवान दुष्ट पुलिसवाले ने मुझे ठिठुरते देखा, तो उस स्थिति का फायदा उठाते हुए बोला, "अच्छा हो कि तू ज़बान खोल दे! हट्टे-कट्टे लोग भी इस कुर्सी पर ज़्यादा नहीं टिक पाते। अगर तूने अपना यही रवैया रखा, तो ज़िंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाएगी।" यह सुनकर मैं कमज़ोर और बेचैन होने लगी, लेकिन फिर मैंने परमेश्वर को पुकारा, और प्रार्थना की कि वह मुझे इस अमानवीय अत्याचार को सहने की और ऐसा कुछ न करने की शक्ति दे जो परमेश्वर को धोखा दे। प्रार्थना के बाद, परमेश्वर ने उस कलीसिया भजन के ज़रिए मुझे प्रबुद्ध किया जिसे मैं प्रेम से गाया करती थी: "मुझे परवाह नहीं कि परमेश्वर में विश्वास करने का रास्ता कितना कठिन है, मैं अपने उद्यम के रूप में केवल परमेश्वर की इच्छा को पूरा करता हूं; मुझे इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है कि भविष्य में मुझे आशीष मिलते हैं या मैं दुख उठाता हूँ। अब जबकि मैंने परमेश्वर से प्रेम करने का संकल्प ले लिया है, मैं अंत तक निष्ठावान रहूँगा। मेरे पीछे कितने भी ख़तरे या मुश्किलें घात लगाए बैठी हों, मुझे परवाह नहीं है, मेरा अंत चाहे कुछ भी हो, परमेश्वर के गौरवमय दिन का स्वागत करने के लिए, मैं परमेश्वर के पदचिह्नों के नज़दीक चलता हूँ और आगे बढ़ने का प्रयास करता हूँ" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "परमेश्वर को प्रेम करने के मार्ग पर चलना")। उस भजन के हर अंतिम शब्द ने मुझे प्रेरित किया, मैं मन ही मन उसे बार-बार गाती रही। मैं अपने आपको उस शपथ पर विचार करने से रोक न पायी जो मैंने परमेश्वर के सामने ली थी, कि मुझे कितने ही दुख और मुश्किलों का सामना करना पड़े, लेकिन मैं फिर भी परमेश्वर के लिए अपना जीवन खपाऊँगी और उसके प्रति मैं अंत तक निष्ठावान रहूँगी। लेकिन थोड़ा-सा दुख आते ही मैं कमज़ोर पड़ने लगी थी और डर गई थी—यह निष्ठावान होना कैसे हुआ? क्या मैं शैतान की धूर्त चालों का शिकार नहीं हो रही थी? शैतान चाहता था कि मैं अपनी देह और परमेश्वर को धोखा देने के बारे में सोचूँ, लेकिन मैं जानती थी कि मुझे उसकी बातों से मूर्ख नहीं बनना है। परमेश्वर में आस्था रखने के कारण दुख उठाना बहुत ही सार्थक और मूल्यवान है, यह गौरव की बात है, मैं चाहे जितने दुख उठाऊँ, लेकिन मैं अपने आपको ऐसा दयनीय तुच्छ इंसान बनने की इजाज़त नहीं दे सकती थी जो आस्था से मुँह मोड़कर परमेश्वर को धोखा दे। परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए एक बार यह संकल्प कर लेने के बाद, मुझे ठंड लगनी बंद हो गई और मेरे दिल का दर्द गायब हो गया। एक बार फिर, मैंने परमेश्वर के अद्भुत कर्म देखे और उसके प्रेम का अनुभव किया। हालाँकि पुलिसवाले अभी तक अपना मकसद हासिल नहीं कर पाए थे, लेकिन उन्होंने भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा था। वे लोग बारी-बारी से मुझे यातना देते, और दिन-रात जगाए रखते। अगर मैं पल भर के लिए भी आँखें झपकती, तो वे लोग मुझे बेंत के बने स्विच से मारते, या फिर बिजली के झटके देने वाली छड़ से मेरे शरीर को कोंचते। वे जब भी ऐसा करते, मुझे ऐसा लगता जैसे मेरे अंदर बिजली का करंट दौड़ रहा है, मेरा पूरा शरीर ऐंठने और मरोड़ खाने लगता। दर्द इतना भयानक होता कि मन करता जान दे दूँ। वे मुझे मारते जाते और चिल्लाते जाते, "तू अभी भी हमें सब-कुछ नहीं बताएगी कमीनी, और सोना चाहती है! आज देख तू, हम मार-मार के तेरी जान ले लेंगे!" उनकी मार की तीव्रता बढ़ती गई, और ज़्यादा क्रूर होती गई, और मेरी बेबस चीखें कमरे में चारों ओर गूँजती रहीं। चूँकि मैं टाइगर कुर्सी से इतनी कसकर बँधी हुई थी कि ज़रा-सी भी हिल नहीं पाती थी, इसलिए मैं उनके जंगलीपन के आगे समर्पित होने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। यह सब देखकर वे दुष्ट पुलिसवाले बहुत ख़ुश होते और बीच-बीच में अट्टहास करते। मुझे इतने ज़्यादा समय तक कोड़ों से मारा गया और बिजली के झटके दिए गए कि मेरे शरीर पर जगह-जगह मार के निशान पड़ गए, मेरे चेहरे, गर्दन, बाज़ुओं और हाथों पर ज़ख्म के नीले दाग पड़ गए, और मेरा पूरा शरीर सूज गया। लगा जैसे मेरा पूरा जिस्म सुन्न पड़ गया, लेकिन अब मुझे उतनी पीड़ा नहीं हो रही थी। मुझे पता था कि परमेश्वर मेरा ध्यान रख रहा है और मेरे दर्द को कम कर रहा है, मैंने मन ही मन बार-बार परमेश्वर को धन्यवाद दिया।
मैंने ये यातनाएँ करीब एक महीने तक झेलीं लेकिन उसके बाद वाकई बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया। पल भर के लिए ही सही, मैं सोना चाहती थी। मगर उन दरिंदों में नाम-मात्र की भी इंसानियत नहीं थी। जैसे ही मैं अपनी आँखें बंद करती, वे लोग तुरंत मेरे चेहरे एक गिलास पानी मार कर मुझे चौंकाकर जगा देते, और फिर से मुझे मजबूरन अपनी आँखें खुली रखनी पड़तीं। मेरी सारी शक्ति जवाब दे चुकी थी—मुझे लगा जैसे मेरा जीवन अपने अंत पर पहुँच चुका है। लेकिन परमेश्वर लगातार मेरी रक्षा कर रहा था, मेरे दिमाग को एकदम स्पष्ट और सजग रख रहा था, मेरी आस्था को मज़बूत बनाए हुए था ताकि मैं उसे धोखा न दूँ। यह देखते हुए कि वे मुझसे कोई भी जानकारी नहीं उगलवा सके थे और इस बात से भयभीत थे कि कहीं मैं मर न जाऊँ, उनके पास एकमात्र विकल्प यही बचा था कि वे मुझे वापस नज़रबंदी गृह ले जाएँ। पाँच-छ: दिन के बाद भी मैं उनके उत्पीड़न से उबर नहीं पायी थी, लेकिन उन लोगों ने एक बार फिर मुझे घसीटकर और ज़ंजीरों से बाँधकर टाइगर कुर्सी पर बैठा दिया। उन्होंने फिर से मेरे पैरों में भारी-भरकम बेड़ियाँ डाल दीं, वे मार, यातना और दुर्व्यवहार के ज़रिए एक बार फिर मुझसे अपराध स्वीकार करने की दिशा में आगे बढ़े। मुझ पर करीब दस दिन तक अत्याचार किए गए, लेकिन जब उन्होंने देखा कि अब मैं और ज़्यादा उत्पीड़न सहन नहीं कर पाऊँगी, तो वे मुझे नज़रबंदी गृह ले गए। पाँच-छ: दिन और गुज़र गए और उन्होंने फिर वही सब दोहराया। इस तरह छ: महीने बीत गए, मुझे पता भी नहीं कि कितनी बार उन लोगों मेरे साथ यही सब किया—वही उत्पीड़न बार-बार दोहराया गया। मुझे इस हद तक यातना दी गई कि मेरे टूटने की इंतिहा हो गई, और मैंने दिल से अपने आगामी जीवन की सारी उम्मीदें छोड़ दीं। मैंने खाना खाने से इंकार करना शुरू कर दिया, कई दिनों तक पानी की एक बूंद नहीं पी। तब उन्होंने मुझे ज़बर्दस्ती पानी पिलाना शुरू कर दिया; एक जन मेरा चेहरा पकड़ लेता, और दूसरा मेरा मुँह खोलकर उसमें पानी डाल देता। पानी मेरे मुँह और गर्दन के आसपास बह जाता, मेरे कपड़े पानी को सोख लेते। मुझे ठंड लगती और मैं अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करती, लेकिन मेरे अंदर इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मैं अपना सिर भी हिला पाती। यह देखते हुए कि खाने को नकारना भी बेकार की कोशिश है, मैंने तय किया कि शौचालय जाने का मौका तलाश कर मैं वहाँ जाकर अपना सिर दीवार से दे मारूँगी और मर जाऊँगी। अपनी भारी-भरकम बेड़ियों को घसीटते हुए, मैं एक-एक कदम लड़खड़ाते हुए शौचालय की ओर बढ़ी, और पूरे रास्ते दीवार का सहारा लेकर चली। चूँकि मैंने इतने दिनों से कुछ खाया नहीं था, इसलिए मेरी आँखें धुँधला रही थीं और मैं ठीक से देख भी नहीं पा रही थी कि मैं कहाँ जा रही हूँ; रास्ते में मैं कई बार गिरी। धुंध में ही मैंने देखा कि लोहे की बेड़ियों के कारण मेरे टखने का माँस उधड़ गया है और उससे बुरी तरह खून बह रहा है, मैं खिड़की के पास पहुँची, तो मैंने सिर उठाकर बाहर की ओर देखा। मैंने देखा कि थोड़ी दूरी पर लोग अपने-अपने काम से इधर-उधर आ-जा रहे हैं। तभी अचानक मेरे अंदर एक हलचल-सी हुई, और मैंने सोचा: "इन लाखों लोगों में से कितने लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखते हैं? उनमें से मैं एक खुशकिस्मत इंसान हूँ, क्योंकि परमेश्वर ने मुझे चुना है—भीड़ में एक साधारण-सा इंसान, उसने अपने वचनों से मुझे सींचा है, मेरा पोषण किया है, अब तक हर कदम पर मुझे राह दिखाई है। परमेश्वर ने मुझे कितने आशीष दिए हैं, तो मैं क्यों अपनी जान देना चाहती हूँ? क्या ऐसा करके मैं परमेश्वर को आहत नहीं करूँगी?" तभी, मेरे मन में परमेश्वर के वचन आए: "इन अंतिम दिनों में, तुम्हें परमेश्वर के प्रति गवाही देनी है। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे कष्ट कितने बड़े हैं, तुम्हें अपने अंत की ओर बढ़ना है, अपनी अंतिम सांस तक भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य बने रहना आवश्यक है, और परमेश्वर की कृपा पर रहना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है और केवल यही मजबूत और सामर्थी गवाही है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। उत्साह और प्रत्याशा से परिपूर्ण प्रत्येक वचन ने मेरे दिल को गर्मजोशी से भर दिया, प्रेरणा दी जिसने मुझे और भी ज़्यादा झकझोर दिया—मुझे ज़िंदा रहने का हौसला मिला। मैंने मन ही मन अपने आपको समझाया: "ये दरिंदे मेरे शरीर को नष्ट कर सकते हैं, लेकिन परमेश्वर को संतुष्ट करने की मेरी चाहत को नष्ट नहीं कर सकते। मेरा दिल सदा परमेश्वर से ही जुड़ा रहेगा। मैं सशक्त बन जाऊँगी; मैं कभी हार नहीं मानूँगी!" मैं वापस चल पड़ी, कदम-दर-कदम, अपनी भारी-भरकम बेड़ियों को घसीटते हुए। मदहोशी की स्थिति में ही, मैंने प्रभु यीशु के बारे में सोचा, जो अपना ज़ख्मों से भरा जिस्म लिए, बलिदान-स्थल की ओर जा रहा था, बुरी तरह थका हुआ था, पीठ पर भारी सलीब था, और उस समय मेरे मन में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन आए: "यरूशलेम जाने के मार्ग पर, यीशु ने संताप में महसूस किया, मानो कि कोई एक नश्तर उसके हृदय में भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की थोड़ी सी भी इच्छा नहीं थी; हमेशा से एक सामर्थ्यवान ताक़त थी जो उसे लगातार उस ओर आगे बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें)। उस पल, मैं अपने आँसू न रोक पायी, जो बेरोक-टोक गालों को भिगो रहे थे। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! तू कितना पवित्र है, तू सर्वोच्च है, फिर भी तूने हमें बचाने के लिए देहधारण किया। तूने भयंकर अपमान और पीड़ा सही, हमारे लिए ही तू सूली पर चढ़ा। हे परमेश्वर! कौन है जिसने तेरे दुख-दर्द को जाना है? कौन है जिसने तेरी उस श्रमसाध्य कीमत को समझा या सराहा है जो तूने हमारी खातिर चुकायी है? अब मैं इस मुश्किल को झेल रही हूँ ताकि मैं उद्धार पा सकूँ। इसके अलावा, मैं इन दरिंदों के हाथों क्रूरता को झेलते हुए, सीसीपी सरकार के दुष्ट सार को अच्छी तरह से देखने के लिए कष्ट झेल रही हूँ, ताकि मैं फिर कभी इनके हाथों धोखा न खाऊँ या मूर्ख न बनूँ, और इसके अंधकारपूर्ण असर से बाहर निकल सकूँ। फिर भी मैं तेरी इच्छा के प्रति कभी विचारशील नहीं हुई, अपनी देह के बारे में ही सोचती रही, मरने की इच्छा करती रही ताकि इस यातना और पीड़ा का अंत हो। मैं कितनी कायर और घृणित हूँ! हे परमेश्वर! तू हर समय हमारे लिए स्वयं को खपाता है, दुख उठाता है, अपना सारा प्रेम हम पर लुटाता है। हे परमेश्वर! मैं और तो कुछ कर नहीं सकती, लेकिन मैं अपना दिल पूरी तरह से तुझे अर्पित करना चाहती हूँ, मैं अंत तक तेरा अनुसरण करना चाहती हूँ, चाहे मुझे कितने भी दुख उठाने पड़ें और तुझे संतुष्ट करने के लिए तेरी गवाही देना चाहती हूँ!" मैंने कई महीनों तक क्रूर मार और यातना सहकर, एक भी आँसू नहीं बहाया, इसलिए जब मैं वापस पूछताछ कक्ष गयी, तो आँसुओं से भीगे मेरे चेहरे को देखकर दुष्ट पुलिसवालों को लगा कि मैं सब-कुछ उगलने के लिए तैयार हो गई। उनमें से मोटा पुलिसवाला बड़ा खुश हुआ और मेरी ओर देखकर मुस्कराते हुए बोला, "तूने इस पर सोच लिया? तू सहयोग करने को तैयार है?" मैंने उसे पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया तो तुरंत ही उसका चेहरा तमतमा गया। उसने अचानक हाथ उठाया और मेरे चेहरे पर तड़ातड़ इतने तमाचे जड़ दिए कि मैं गिन भी नहीं पायी। मैं दर्द से तिलमिला उठी, मुँह की कोर से फ़र्श पर खून टपकने लगा। एक दूसरे पुलिसवाले ने पानी से भरा गिलास मेरे चेहरे पर फेंका और दाँत पीसकर चिल्लाया, "अगर तू हमारे साथ सहयोग नहीं करती, तो हमें परवाह नहीं है। अब इस दुनिया पर कम्युनिस्ट पार्टी का राज है, अगर तू सहयोग नहीं भी करेगी, तो भी हम तुझे जेल में डाल देंगे!" डराने-धमकाने की उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद, मैंने अपनी ज़बान नहीं खोली।
हालाँकि मुझे दोषी सिद्ध करने के लिए पुलिस के पास कोई सबूत नहीं थे, लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी, बल्कि मुझसे मेरा अपराध स्वीकार करवाने के लिए मुझे यातना देती रही। एक दिन देर रात को, कई पुलिसवाले नशे में धुत लड़खड़ाते हुए, पूछताछ कक्ष में दाखिल हुए। उनमें से एक, मुझे कामुक नज़रों से घूर रहा था, लगा उसके दिमाग में कोई साज़िश चल रही है, वह बोला, "इसके कपड़े उतारकर इसे लटका दो। तब देखते हैं कि यह सहयोग करती है या नहीं।" उसकी यह बात सुनकर मैं डर गई, हताश होकर मैं मन ही मन परमेश्वर को पुकारने लगी कि वो इन जानवरों की खबर ले और इनके कामुक षडयंत्रों को नाकाम करे। उन्होंने मुझे टाइगर कुर्सी से आज़ाद कर दिया, लेकिन टखनों पर बंधी भारी बेड़ियों के कारण मैं मुश्किल से खड़ी हो पा रही थी। वे मुझे घेरकर मेरे साथ फुटबॉल की तरह खेलने लगे, मेरे चेहरे पर खरबूजे के बीज थूकने लगे और बार-बार चिल्लाने लगे, "बोल सहयोग करेगी? अगर तू हमारे साथ ढंग से पेश नहीं आएगी, तो हम तेरी ज़िंदगी दूभर कर देंगे! अब तेरा परमेश्वर कहाँ है? क्या वह सर्वशक्तिमान नहीं है? बोल उसे वो हमें मार दे!" दूसरा बोला, "वांग को बीवी की ज़रूरत है, अगर हम इसे उसके हवाले कर दें तो? हा हा ..." उनके शैतानी चेहरों को देखकर, मैं क्रोध की भट्ठी में जल उठी जिससे मेरे सारे आँसू सूख गए। मैं बस परमेश्वर से प्रार्थना ही कर सकती थी कि वह मेरे दिल की रक्षा करे ताकि मैं उसे धोखा न दूँ, मैं उसके आयोजनों के प्रति समर्पित रहूँ, फिर चाहे मैं जिऊँ या मरूँ। अंत में, उन दुष्ट पुलिसवालों ने सारे हथकंडे आज़मा लिए, लेकिन वे मेरे मुँह से एक शब्द भी नहीं उगलवा सके। जब कोई चारा न रहा, तो उन्होंने अपने वरिष्ठों को फोन करके सूचित कर दिया। "यह औरत चट्टान की तरह अडिग है। यह आधुनिक ल्यू हूलन है। अगर हम इसकी जान भी ले लें, तो भी यह ज़बान नहीं खोलेगी। अब हम कुछ नहीं कर सकते!" उनकी मायूसी देखकर, मैंने मन ही मन परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दिया। यह परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन ही था जिसने मुझे लगातार उनके क्रूर अत्याचारों को सहने योग्य बनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की महिमा बनी रहे।
इसके बावजूद कि अनगिनत पूछताछ से भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ, सीसीपी सरकार ने मुझ पर कानून-व्यवस्था भंग करने का इल्ज़ाम लगाया और मुझे पूरे सात साल के कारावास की सज़ा दी। मेरे साथ जो दो भाई गिरफ्तार हुए थे, उन्हें भी उसी तरह पाँच-पाँच साल की जेल की सज़ा हुई। आठ महीनों के अमानवीय अत्याचार से गुज़रकर, सात सालों की जेल की सज़ा सुनकर, मुझे न तो कोई पीड़ा हुई, न ही कोई दुख, बल्कि मुझे राहत मिली, इससे भी ज़्यादा, मैंने सम्मानित महसूस किया। क्योंकि पिछले आठ महीनों के दौरान, मैंने हर कदम पर परमेश्वर के मार्गदर्शन का अनुभव किया था, और परमेश्वर के असीम प्रेम और सुरक्षा का आनंद लिया था। इसी के कारण मैं चमत्कारिक रूप से उस क्रूर अत्याचार को झेल पायी वरना उसे बर्दाश्त कर पाना मेरी क्षमता से बाहर की बात थी, उसी के कारण मैं गवाही दे पायी। यह सबसे बड़ा सुख था जो परमेश्वर ने मुझे प्रदान किया था। मैंने तहेदिल से परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उसकी स्तुति की!
3 नवम्बर, 2008 को, सज़ा काटने के लिए मुझे प्रथम महिला जेल भेज दिया गया, और इस तरह मेरा जेल का लम्बा जीवन आरंभ हुआ। जेल के नियम-कानून बहुत कठोर थे; हम सुबह छ: बजे उठकर काम शुरू कर देते थे, और रात तक काम करते रहते थे। खाने और शौचालय जाने के अवकाश का समय युद्ध-क्षेत्र की तरह बहुत ही कसा हुआ होता था, और उसमें कैदियों को ज़रा-सी भी ढिलाई बरतने की इजाज़त नहीं दी जाती थी। जेल के सुरक्षाकर्मी हम पर काम का कई गुना बोझ लाद देते थे ताकि वे लोग हमारी मेहनत के ज़रिए ज़्यादा से ज़्यादा कमाई कर सकें, और जो परमेश्वर के विश्वासी होते थे, उनके साथ वे और भी ज़्यादा निर्दयता से पेश आते थे। ऐसे माहौल में रहकर, मैं हमेशा तनाव में जीती थी। एक-एक दिन एक-एक साल के बराबर लगता था। जेल में मुझे सबसे मुश्किल और सबसे भारी काम दिया दिया जाता था, और जो खाना दिया जाता था, वह कुत्तों के लायक भी न था—आधी कच्ची, काली, छोटी-सी रोटी और पीली, सूखी हुई पुरानी पत्तागोभी की पत्तियाँ। मैं अक्सर सुबह से लेकर शाम तक जी-तोड़ मेहनत करती, ताकि अच्छे बर्ताव के कारण मेरी सज़ा कम हो जाए, यहाँ तक कि अपनी शारीरिक क्षमता से परे जाकर मैं रात-रात भर उत्पादन कोटा पूरा करती। मैं वर्कशॉप में 15-16 घंटे खड़े रहकर स्वेटर बनाने की सेमी-ऑटोमैटिक मशीन पर लगातार काम करती। मेरे पैर सूज जाते, अक्सर उनमें दर्द होता और मुझे कमज़ोरी महसूस होती। फिर भी, मैं काम को कभी धीमा न पड़ने देती, क्योंकि वर्कशॉप में बिजली की छड़ लिए सुरक्षा कर्मी हमेशा पहरा देते रहते थे। अगर वे किसी को काम करते न देखते, तो तुरंत ही उसे सज़ा देते थे, लेकिन अच्छे बर्ताव के लिए प्राप्त अंकों को वे कैदियों से छुपाकर रखते थे। लगातार थका देने वाली मेहनत ने मेरे शरीर और दिमाग को तोड़कर रख दिया। हालाँकि मैं अभी युवा थी, लेकिन मेरे बाल सफ़ेद हो गए थे, कितनी बार तो ऐसा हुआ कि मैं मशीन पर काम करते-करते ही बेहोश हो गयी। अगर परमेश्वर ने मुझ पर निरंतर निगाह न रखी होती, तो शायद मैं ज़िंदा न बचती। आख़िरकार, परमेश्वर की देखभाल के तहत, मुझे अपनी सज़ा कम करवाने के दो अवसर मिले, और मैं धरती के उस नरक से दो साल पहले ही रिहा होने में कामयाब हो गयी।
सीसीपी सरकार के हाथों आठ महीनों के क्रूर अत्याचार और पाँच साल की कैद काटने के बाद, मेरे तन-मन को बुरी तरह से नुकसान पहुँचा था। रिहा होने के बाद भी, मैं काफ़ी समय तक अजनबियों का सामना करने से भय खाती रही। ख़ास तौर पर, जब कभी मैं किसी व्यस्त जगह पर बहुत सारे लोगों की चहल-पहल देखती, तो मेरी आँखों के सामने उन दुष्ट पुलिसकर्मियों द्वारा उत्पीड़न के दृश्य आ जाते, और मुझे अंदर ही अंदर खौफ़ और बेचैनी का एहसास होने लगता। इतने लम्बे समय तक उस धातु की कुर्सी से बँधे रहने की वजह से, मेरा मासिक धर्म बिल्कुल गड़बड़ा गया था, मुझे दुनिया भर की बीमारियाँ हो गईं। जब मैं उन अंतहीन, पीड़ादायक महीनों के बारे में सोचती हूँ, जिस दौरान मैंने भयंकर दुख और कष्ट सहे, तो मुझे साफ नज़र आता है कि सीसीपी सरकार जिस "धार्मिक आस्था की आज़ादी" और "नागरिकों के न्यायसम्मत अधिकारों और हितों" की शेखी बघारती है, वह सब अपने पापों और दुष्ट सार को छिपाने का उसका षडयंत्र-मात्र है। साथ ही, मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता, संप्रभुता, अधिकार और सामर्थ्य का भी सच्चा अनुभव किया, मैं परमेश्वर की चिंता और करुणा को भी महसूस कर पायी। ये सभी चीज़ें परमेश्वर द्वारा मुझे प्रदान की गईं जीवन की बहुमूल्य और प्रचुर धरोहर हैं। परमेश्वर का कार्य व्यवहारिक और सामान्य है, वही शैतान और हैवान को हमारे उत्पीड़न की इजाज़त देता है। जब हैवान पागलों की तरह हम पर ज़ुल्म कर रहा होता है, तो उस समय परमेश्वर हमारे साथ होता है, और गुप्त रूप से हमारी देखभाल कर रहा होता है, अपने वचनों के अधिकार और शक्ति से हमें प्रबुद्ध और हमारा मार्गदर्शन कर रहा होता है। परमेश्वर हमें आस्था और प्रेम प्रदान करता है, और शत्रु शैतान पर विजय प्राप्त करता है, उसे पराजित करता है, इस प्रकार गौरव हासिल करता है। मैं तहेदिल से परमेश्वर की बुद्धि और मनोहरता की स्तुति करती हूँ!
अब फिर से अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करने के लिए मैं वापस कलीसिया लौट आयी हूँ। परमेश्वर के प्रेम के मार्गदर्शन में, मैं कलीसियाई जीवन जी रही हूँ, और हम सब भाई-बहन मिलकर पूरे तालमेल से राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते हैं। मेरा जीवन पूरे जोश और प्राण-शक्ति से लबालब है। अब मेरे अंदर परमेश्वर के कार्य के लिए भरपूर आस्था है। मैं यथार्थ में परमेश्वर के राज्य के सुंदर दृश्य को धरती पर साकार होते देख सकती हूँ, मैं अपने आपको परमेश्वर का स्तुति-गान करने से रोक नहीं पा रही हूँ! "मसीह के राज्य का अवतरण हुआ है धरती पर, परमेश्वर के वचन जीतते (हैं) सभी को, हुकूमत करते (हैं) दुनिया पर। हम देख सकते हैं ये सब अपनी आँखों से अब, परमेश्वर के वचन से सब बना है, पूर्ण हुआ है। हम जय-जयकार करते! गुणगान करते! हम उत्सव मनाते मसीह के राज्य के आगमन का धरती पर। हम जय-जयकार करते! गुणगान करते! हम उत्सव मनाते, परमेश्वर के वचन शासन करते धरती पर। परमेश्वर का वचन हम सब के बीच रहता है, हर कदम, हर ख़्याल में ये हमारे संग रहता है। ... राज्य का सौंदर्य उज्ज्वल है, अनंत है, हर कोई जयघोष करता परमेश्वर के वचनों का धरती पर, समर्पित होता वचनों को, आराधना करता परमेश्वर की। आनंद-उत्सव है कायनात में। उत्सव मनाते हम पूरा हुआ कार्य उसका, कि वो पवित्र है, सर्वशक्तिमान है, धार्मिक है, बुद्धिमान है। हमें ख़ुद ले जाता है कनान में परमेश्वर, ताकि उसकी विपुलता, समृद्धि का आनंद ले सकें हम" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना में "मसीह के राज्य का अवतरण हुआ है धरती पर")।
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