उत्पीड़न और कष्टों के बीच प्रबोधन
—17 बरस के ईसाई बालक का उत्पीड़न का सच्चा अनुभव
लेखक वांग ताओ, शैन्डॉन्ग प्रांत
मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का ईसाई हूँ। अपनी उम्र के बच्चों के बीच मैं सबसे अधिक भाग्यशाली था, क्योंकि मैंने आठ वर्ष की उम्र से ही अपने माता-पिता के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया था। हालांकि उस समय मैं बहुत छोटा था, फिर भी परमेश्वर में विश्वास करके और परमेश्वर के वचन पढ़ कर मैं बहुत खुश था। कई वर्षों तक, परमेश्वर के वचन पढ़ कर और अपने से बड़े कलीसिया के सदस्यों साथ सहभागिता को जारी रख कर मैं सत्य को थोड़ा-थोड़ा समझने लग। विशेष रूप से जब मैंने अपने भाइयों और बहनों को सत्य की तलाश करते और ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए काम करते हुए देखा और सभी को शांति के साथ एक दूसरे के साथ रहते हुए देखा तो मैंने महसूस किया कि वे सबसे अधिक खुशहाल, सबसे अधिक आनंद के पल थे। बाद में मैंने एक उपदेश में सुना, "मुख्य-भूमि चीन में परमेश्वर में विश्वास करना, सत्य का अनुसरण करना और परमेश्वर का पालन करना वास्तव में अपने जीवन को संकट में डालना है। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है" (जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति)। उस समय मुझे इसका अर्थ समझ में नहीं आया, लेकिन अपने भाइयों और बहनों की सहभागिता से मैंने जाना कि परमेश्वर में विश्वास करने वालों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है, और ऐसा इसलिए क्योंकि चीन एक नास्तिक देश है जिसमें धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता नहीं है। हालांकि, उस समय मैंने इन शब्दों पर विश्वास नहीं किया था। मुझे लगा कि मैं बच्चा हूँ, अगर मैं गिरफ्तार होता भी हूँ तो पुलिस मेरे साथ कुछ भी नहीं करेगी। यह विचार उस दिन बदल गया जब मुझे खुद गिरफ्तारी और पुलिस की निर्दयता का अनुभव हुआ; मैंने अंततः यह स्पष्ट रूप से देखा कि वह पुलिस जिसे मैं अपना सगा समझा करता था, दरअसल शातिर शैतानों का समूह था!
मैं 17 वर्ष का था जब 05 मार्च 2009 की शाम को एक बड़े भाई और मैं सुसमाचार सुनाने के बाद अपने घर जा रहे थे कि तभी पुलिस की गाड़ी ने हमारा रास्ता रोक लिया। उस कार में से पांच पुलिस अधिकारी तेजी से बाहर निकले और बिना किसी चेतावनी के उन्होंने लुटेरों की तरह हमारी इलेक्ट्रिक स्कूटर छीन ली और हमें ज़मीन पर गिरा कर ज़बरदस्ती हथकड़ियों से जकड़ दिया। यह सब कुछ इतना अचानक हुआ था कि मैं भौचक्का रह गया था। मैंने अपने भाइयों और बहनों से परमेश्वर के विश्वासियों की गिरफ्तारी के बारे में अक्सर सुना था, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे साथ भी ऐसा किसी दिन होगा। घबराहट से मैं स्तब्ध रह गया था; मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि लगा जैसे वह मेरी छाती से बाहर निकल जाएगा। मैं दिल ही दिल में लगातार परमेश्वर को पुकार रहा था, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर! पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया है और मैं बहुत डरा हुआ हूँ। मुझे नहीं पता कि मुझे क्या करना चाहिए या वे लोग मेरे साथ क्या करने का इरादा रखते हैं, इसलिए मेरी आपसे विनती है कि मेरे हृदय की रक्षा करें।" प्रार्थना करने के बाद मुझे काफी शांति का एहसास हुआ। मुझे लगा कि पुलिस मेरे जैसे बच्चे के साथ कुछ नहीं करेगी, इसलिए मुझे बहुत घबराहट नहीं हुई। लेकिन यह स्थिति मेरी अपेक्षा जितनी सरल नहीं थी। जब पुलिस को परमेश्वर में हमारे विश्वास से संबंधित किताबें मिली तो हमें पुलिस स्टेशन ले जाने के लिए उन्होंने इसे साक्ष्य के रूप में उपयोग किया।
उत्तरी चीन में यह वसंत की शुरुआत का समय था, और मौसम में अभी भी काफी ठंडक थी, रात के समय तापमान शून्य से 3-4 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता था। उस पुलिस स्टेशन के प्रमुख ने ज़बरदस्ती हमारे कोट और जूते और यहां तक कि हमारे बेल्ट भी उतरवा लिए, और हमारे हाथों को पीछे कर कस कर हथकड़ी लगा दी। यह बहुत ही दर्द भरा था। उसने कई अफसरों को हमें नीचे फर्श पर पकड़ कर रखने को कहा जिसके बाद हमारे चेहरों और सिर पर बेरहमी से चमड़े के पट्टों से चाबुक चलाए गए, जिससे मेरे सिर में तुरंत तेज़ दर्द होने लगा—ऐसा लगा जैसे यह फटने वाला है और मेरे आँसू अपने आप ही बहने लगे। मुझे उस समय बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योंकि "मामले निबटाने में सभ्य बनें", ये नारा साफ तौर पर दीवार पर लिखा हुआ था, लेकिन वे हमारे साथ बर्बर लुटेरों और हत्यारों की तरह पेश आ रहे थे! यह कतई सभ्य नहीं था! गुस्से में मैंने पूछा, "हमारा अपराध क्या है? तुम लोग हमें गिरफ्तार करके पीट क्यों रहे हो?" हम पर चाबुक बरसाते हुए, उन दुष्ट पुलिस वालों में से एक ने बेरहमी से कहा, "कमीने, मुझसे इस लहजे में बात मत कर! हम यहां पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वालों को पकड़ने के लिए हैं! तुम तो नौजवान हो जो बहुत कुछ कर सकता था, फिर ये क्यों? तुम्हारा अगुवा कौन है? ये किताबें तुम्हें कहां से मिलीं? जवाब दो! अगर तुम उत्तर नहीं दोगे तो पीट-पीट कर मैं तुम्हारी जान निकाल लूंगा!" फिर मैंने ध्यान दिया कि मेरा बड़ा भाई अपने दांत भींचे हुए था और एक भी शब्द कहने से इंकार कर रहा था, इसलिए मैंने भी अपने आप से एक प्रण किया: "मैं भी यहूदा होने से इंकार करता हूँ! भले ही वे मुझे पीटते हुए मार डालें, मैं मुँह नहीं खोलूंगा! मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है, और शैतान व दुष्टात्माओं का मुझ पर कोई जोर नहीं है।" जब उसने देखा कि हममें से कोई भी बोल नहीं रहा तो स्टेशन प्रमुख ने गुस्से में हमारी ओर उंगली नचाते हुए कहा, "ठीक है फिर! तुम दिखाना चाहते हो कि बहुत मजबूत हो? तुम लोग मुंह नहीं खोल रहे हो? इनको अच्छी तरह से पीटो! इनको दिखाओ कि इनका किससे पाला पड़ा है और इनको मजबूत होने का असली स्वाद चखाओ!" वो बदमाश पुलिस वाले हम पर फौरन टूट पड़े, उन्होंने हमें ठोढ़ी से पकड़ कर, हमारे चेहरे पर इतनी बुरी तरह मुक्के बरसाए कि मुझे दिन में तारे दिखने लगे और मेरे चेहरे में चुभन भरा दर्द होने लगा। बचपन से ही मेरे मापा-पिता ने मुझे बड़े लाड़-प्यार से पाला था; मुझे ऐसी हिंसा का कोई भी अनुभव नहीं था। मुझे इतनी शर्मिंदगी हुई कि मैं खुद को रोने से रोक ना सका, और मुझे लगा, "ये पुलिस वाले कितने क्रूर और अन्यायी हैं! स्कूल में हमारे शिक्षकों ने हमें हमेशा बताया था कि जब भी किसी मुसीबत में हो तो पुलिस के पास जाओ। उन्होंने बताया था कि पुलिस 'लोगों की सेवा के लिए है' और वे 'हीरो थे जो अच्छे लोगों की हिंसा से सुरक्षा करते थे,' लेकिन अभी वे हमें मनमाने ढ़ंग से गिरफ्तार करके बेरहमी से सिर्फ इसलिए पीट रहे हैं कि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं और जीवन में सही मार्ग का अनुसरण करते हैं। ये लोग किस तरह से 'जनता की पुलिस' हो सकते हैं? वे तो बस दुष्टात्माओं का झुंड भर हैं! आश्चर्य नहीं है कि एक उपदेश में कहा गया है कि, 'कुछ लोग कहते हैं कि बड़ा लाल अजगर एक दुष्टात्मा है, कुछ लोग कहते हैं कि यह बुरे कर्म करने वाले लोगों का समूह है, लेकिन बड़े लाल अजगर की प्रकृति और सार क्या है? उसका सार और प्रकृति एक दुष्ट दानव की है। वे एक ऐसे दुष्ट दानवों का समूह हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और उन पर हमला करते हैं! ये लोग शैतान का शारीरिक प्रतिरूपण हैं, हाड़-मास का शैतान, बुरे दानवों का अवतार! ये लोग शैतान और बुरे दानव ही हैं' (जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति)। अतीत में, मैं उनके झूठ से धोखा खा गया था, यह मानता था कि पुलिस ऐसे 'अच्छे लोग' थे जो आम लोगों के हित में काम करते थे। मुझे इस बात का एहसास ना था कि वह झूठी छवि थी, लेकिन आज मैंने देख ही लिया कि वह वाकई बुरे लोगों का ऐसा समूह है जो परमेश्वर का विरोध करते हैं।" उनसे तहे दिल से घृणा करने से मैं खुद को रोक ना सका। जब स्टेशन प्रमुख ने देखा कि हम फिर भी ज़बान नहीं खोल रहे तो वो चिल्लाया, "एक बार और इनकी अच्छी तरह से पिटाई करो!" उसके दो प्यादे हमारी ओर आए। उन्होंने हमसे फर्श पर अपने दोनों पैर बाहर निकालते हुए बैठने का आदेश दिया और फिर उन्होंने अपने चमड़े के जूतों से हमारे पैरों पर बेरहमी से प्रहार किए और फिर हमारे पैरों पर खड़े होकर अपनी पूरी ताकत से उनको कुचला। मेरे पैरों में इतना दर्द हो रहा था कि लगता था जैसे वे टूटने वाले हैं। मैं चीखता जा रहा था, लेकिन मैं जितनी जोर से चीख रहा था वे उतनी ही बेरहमी से मुझे मार रहे थे। मेरे पास दर्द सहने के अलावा कोई चारा नहीं था। मैं परमेश्वर को अपने दिल में आवाज़ लगा रहा था, "परमेश्वर! ये बुरे लोग बहुत क्रूर हैं! मैं इसे सह नहीं सकता हूँ। कृपया मुझे विश्वास दें और मेरी रक्षा करें जिससे कि मैं आपको धोखा ना दूँ।" ठीक उसी समय, परमेश्वर के वचनों का यह अंश मेरे दिमाग में कौंध गया, "तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे परिवेश में सभी चीज़ें मेरी अनुमति से हैं, मैं इन सभी की व्यवस्था करता हूँ। स्पष्ट रूप से देखो और तुम्हें दिए गए वातावरण में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो नहीं, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे है और तुम्हारा रक्षक है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 26")। परमेश्वर के ये वचन मेरे लिए बड़े विश्वास और शक्ति के स्रोत थे। मैं समझ गया कि मैं जिन परिस्थितियों का सामना कर रहा था वे परमेश्वर के सिंहासन की आज्ञा से घट रही थीं, और यही वह समय था जब मुझे मजबूती के साथ डटा रहना था और परमेश्वर की गवाही देनी थी। हालांकि मैं छोटा था, लेकिन मेरे पास परमेश्वर का मजबूत सहारा था, इसलिए डरने का मेरे पास कोई कारण ना था! मैं मजबूती के साथ डटा रहने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए, कतई कायर ना बनने के लिए और शैतान के सम्मुख ना झुकने के लिए दृढ़ निश्चय किए हुए था। परमेश्वर के वचनों में शामिल निर्देशों और मार्गदर्शन के माध्यम से मैंने पीड़ा को सहने और परमेश्वर की गवाही देने का आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प पाया।
उस शाम 7 बजे के बाद, स्टेशन प्रमुख मुझसे फिर से पूछताछ करने आया। उसने मुझे जानबूझकर ठंड से जमा देने के लिए बर्फ से ठंडे सीमेंट के फर्श पर बैठने का आदेश दिया। जब मैं इतना ठंडा पड़ गया कि मेरे दोनों पैर सुन्न हो गए और मेरा पूरा बदन कंपकंपा रहा था तो उसने अपने प्यादों को मुझे उठा कर दीवार से टिकाने का आदेश दिया, जिसके बाद उसने बेरहमी से मेरे हाथ और ठोढ़ी पर बिजली के डंडे से बिजली के झटके दिए। इन झटकों से मेरे हाथों पर छाले पड़ गए और दर्द से मेरे दांत सुन्न पड़ गए (आज भी चबाते समय मेरे दांतों में दर्द होता है)। लेकिन फिर भी, गुस्से से पागल इस बुरे आदमी का मन नहीं भरा; उसने अपने बिजली के डंडे को मेरे पेड़ू पर झोंक दिया। इस यातना से मुझे असहनीय दर्द हुआ, लेकिन वो ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगा रहा था। उस पल, मानवताविहीन इस राक्षस के प्रति मेरा रोम-रोम घृणा से भर गया। लेकिन इन दुष्टात्मा पुलिस वालों के मुझे बहुत प्रताड़ित करने के बाद भी, मैंने अपने दांत भींचे रखे और एक भी शब्द कहने से इंकार कर दिया। यह रात दो या तीन बजे तक चलता रहा, जिस समय तक मेरा पूरा शरीर सुन्न हो चुका था—मुझे किसी भी तरह की संवेदना नहीं हो रही थी। अंततः मुझे मार-मार कर थक जाने के बाद उन्होंने मुझे वापस एक छोटे से कमरे में डाल दिया और मुझे उस बड़े भाई के साथ हथकड़ियों में जकड़ दिया जिसे मेरे साथ गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने मुझे बर्फीले फर्श पर बैठने का आदेश दिया और फिर उनमें से दो को हम पर यह निगरानी रखने का काम सौंपा गया कि हम सोने ना पाएं। जिस पल हमारी आँखें बंद होती थी वे हमें मारते और पीटते थे। बाद में उस रात जब मुझे पेशाब जाने की इच्छा हुई तो इन दुष्ट पुलिस वालों ने मुझसे चीख कर कहा, "घटिया इंसान, जब तक तुम हमें हमारी ज़रूरत की जानकारी नहीं दे देते तब तक तुम कहीं नहीं जा सकते हो! अपनी पैंट में ही निबट लो!" अंत में जब मैं काफी समय तक नहीं रोक सका तो मुझे अपनी पैंट में ही निबटना पड़ा। उस ठिठुरते मौसम में मेरी मोटी पैंट मेरे पेशाब से भीग गयी, जिससे मुझे इतनी ठंड लगने लगी कि मैं लगातार कांपता रहा।
इन बुरे लोगों द्वारा इतनी क्रूर प्रताड़ना के बाद, मुझे पूरे बदन में असहनीय दर्द हो रहा था, और मैं बेहद कमज़ोर और निराश महसूस कर रहा था, "मुझे नहीं पता कि कल वो मुझे प्रताड़ित करने के लिए क्या तरीके अपनाएंगे। क्या मैं उसे झेल पाउंगा?" लेकिन उस समय बड़े भाई चिंतित थे कि मैं निराशा महसूस कर रहा हूँ और उत्पीड़न और पीड़ा सहन नहीं कर पाउंगा। उन्होंने मेरे कान में कहा, "ताओ आज इन बुरे लोगों द्वारा इस तरह से हमें प्रताड़ित करने के बारे में कैसा महसूस कर रहे हो? क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने और अपने कर्तव्य निभाने का तुम्हें पछतावा हो रहा है?" मैंने कहा, "नहीं, मुझे बस इन बुरे लोगों द्वारा पीटे जाने पर शर्मिंदगी महसूस हो रही है। मुझे लगा था कि मेरे छोटा होने कारण वे मुझे कुछ नहीं करेंगे। मुझे इस बात का कतई एहसास ना था कि वे मुझे मार डालने को भी तैयार होंगे।" मेरे बड़े भाई ने गंभीरता से संगति करते हुए कहा, "हमने परमेश्वर में विश्वास करने का रास्ता चुना है और परमेश्वर के मार्गदर्शन की कृपा से हम जीवन में सही रास्ते पर चल रहे हैं, लेकिन शैतान नहीं चाहता है कि हम परमेश्वर का पालन करें और पूरी तरह से बचाए जाएँ। चाहे कुछ भी हो, हमें अपने विश्वास पर मजबूती से कायम रहना है। हमें शैतान के सामने कतई समर्पण नहीं करना है; हम परमेश्वर के दिल को तोड़ नहीं सकते हैं।" भाई के इन शब्दों ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। इससे मुझे सांत्वना मिली और मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार करना शुरु कर दिया, "एक विजेता क्या है? मसीह के अच्छे सैनिकों को बहादुर होना चाहिए और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होने के लिए मुझ पर निर्भर होना चाहिए; उन्हें योद्धा बनने के लिए लड़ना होगा और शैतान का सामना मौत तक करना होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 12")। उस समय मैंने परमेश्वर की इच्छा को समझा और अपने भीतर शक्ति को महसूस किया। अब मुझे शर्मिंदगी या लाचारगी महसूस नहीं हो रही थी, बल्कि मैं इस परीक्षा का बहादुरी के साथ सामना करने को तैयार हो गया। भले ही वो दुष्ट शैतान मुझे कितनी ही निर्दयता से प्रताड़ित करे, मैं शैतान से पार पाने के लिए परमेश्वर का सहारा लूँगा; मैं शैतान को दिखाउंगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वाले सभी लोग उसके कुलीन सैनिक हैं, अंत तक ना टूटने वाले योद्धा हैं।
अगली सुबह, वे बुरे पुलिस वाले मुझे वापस पूछताछ वाले कमरे में ले गए और उस दुष्टात्मा स्टेशन प्रमुख ने फिर से ज़बरदस्ती मुझसे अपराध कबूल करवाने की कोशिश की। मेरी आँखों में देखते हुए उसने मेज पर ज़ोर से मारा और कहा, "क्या तुमने पिछली रात फिर से विचार किया, लड़के? तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में कितने समय से विश्वास कर रहे हो? तुमने कितने लोगों को उपदेश दिया है? हमारे सवालों के उत्तर दो अन्यथा तुम्हें और दर्द झेलना होगा!" मैंने सोचा, "मैं शैतान से और भयभीत नहीं हो सकता हूँ। मुझे अब एक साहसी मर्द बनना होगा!" इसलिए, मैंने दृढ़तापूर्वक कहा, "मुझे कुछ भी नहीं मालूम!" वह दुष्ट स्टेशन प्रमुख गुस्से से भर कर चिल्ला उठा, "लड़के, क्या तुम मरना चाहते हो? क्योंकि हमारा काम खत्म होने से पहले मैं तुमको मार डालूंगा और फिर तुम्हारा मुंह वाकई बंद हो जाएगा!" चिल्लाते हुए वो मेरी ओर बढ़ा, फिर वहशी तरीके से उसने मेरे बाल पकड़े और मेरा सिर दीवार से दे मारा। मेरे कानों में सीटियाँ बजने लगीं और इतना अधिक दर्द हुआ कि मैं चीख पड़ा और मेरे आँसू बहने लगे। आखिर में जब उन बुरे लोगों को एहसास हो गया कि वे मुझसे वो हासिल नहीं कर सकते हैं जो वो चाहते हैं तो मुझे उस छोटे से कमरे में वापस भेजने के अलावा उनके पास कोई और चारा ना था। इसके बाद वे बड़े भाई को पूछताछ के लिए ले गए। जल्दी ही, मैंने उसको दर्द में चीखते सुना।मुझे पता था कि उन्होंने उसके साथ कुछ भयानक किया है। उस छोटे से कमरे में मैं, भूखे भेड़ियों से घिरे एक भेड़ सरीखा पड़ा था। मुझे दिल के टूटने और असहाय होने का एहसास हो रहा था और आँसुओं की धारा बहती जा रही थी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और इन दुष्टात्माओं से अपने भाई की रक्षा करने के लिए कहा, क्योंकि वे उसे प्रताड़ित करके अपराध स्वीकार करवाने की कोशिश कर रहे थे। हमें खाने का एक निवाला और पानी की एक भी बूंद दिए बिना, इसी तरह से उन लोगों ने तीन दिन और तीन रात तक हमसे पूछताछ की। मैं ठंड और भूख से मरा जा रहा था, मैं सदमें में था और मेरा सिर सूजा हुआ व दर्द से टपक रहा था। उनके पास हमें यातना न देने के अलावा कोई और विकल्प अब नहीं था क्योंकि उनको डर था कि कहीं हम मर ना जाएं।
चीन की सरकार के इस क्रूर और अमानवीय अत्याचार के बाद, मैंने सही मायने में वह अनुभव किया जिसके बारे मैंने एक उपदेश में सुना था: "बड़े लाल अजगर की जेलों में वे आपके साथ अपनी इच्छानुसार कितना भी बुरा बरताव कर सकते हैं, फिर आप चाहे पुरुष हों या महिला। वे नीच और जानवर हैं। वे बिजली के डंडों से लोगों को बुरी तरह मारते हैं, और आपके साथ हर वो बरताव करते हैं जिससे कि आप भयभीत हो जाएं। बड़े लाल अजगर के शासन में लोगों से मानव होने का अधिकार छीन लिया जाता है और उनकी स्थिति जानवरों से भी बदतर हो जाती है। बड़ा लाल अजगर बहुत क्रूर और अमानवीय है। वे जानवर, शैतान और विवेक-शून्य हैं। आप उनसे किसी भी तरह की विवेकपूर्ण बात नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उनमें विवेक होता ही नहीं है" (जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति)। उस पल, अंततः मैंने चीन की सरकार का परमेश्वर के शत्रु के रूप में प्रतिक्रियात्मक सार स्पष्ट रूप देखा। यह शैतान का एक असली प्रत्यक्ष रूप है, एक दानव जो बिना पलक झपकाए हत्या कर देता है! उनमें न कोई नैतिकता है और न कोई संकोच है, उन्होंने मुझ जैसे एक कम उम्र बच्चे को भी नहीं छोड़ा। बल्कि वे सिर्फ़ इतनी-सी बात पर मेरी हत्या करने को तैयार हैं कि मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ और जीवन में सही मार्ग पर चलता हूँ। वे तो बस सिद्धांत, नैतिकता या मानवता विहीन क्रूर राक्षस हैं। मुझे अब ऐसी झूठी आशाएं नहीं थीं कि मेरी उम्र का लिहाज करते हुए पुलिस मेरे साथ दयालुता भरा बरताव करेगी; मैंने केवल यही प्रार्थना की कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरी रक्षा करें और शैतान व दानवों के क्रूर अत्याचार से उबरने का मार्ग दिखाएं, जिससे कि ये सारी पीड़ा सहन कर सकूं और परमेश्वर के लिए शानदार गवाह बन सकूं।
जब दुष्टात्मा पुलिस ने देखा कि वे हमसे कुछ हासिल नहीं कर सकेंगे, तो 9 मार्च की दोपहर को उन्होंने जबरदस्ती हमारे हाथों को पकड़ कर जाली अपराध-स्वीकृति पर हस्ताक्षर कराए, जिसमें हम पर, "राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने, सामाजिक शांति भंग करने और राज्य की सत्ता को चुनौती देने" के अपराधों के आरोप लगाए गए और फिर हमें नज़रबंदी गृह में डाल दिया गया। हम जैसे ही वहां पर पहुंचे उन्होंने हमें गंजा कर दिया, हमारे सारे कपड़े उतरवा लिए और उनको लगभग रिबन जैसे टुकड़ों में काट कर हमें वापस कर दिया। मेरे पास अब बेल्ट नहीं थी, इसलिए अपनी पैंट को संभालने के लिए मुझे प्लास्टिक के बैगों की रस्सी बनानी पड़ी। ठिठुरते मौसम में भी, हमें नहलाने के लिए पुलिस ने दूसरे बंदियों को हमारे सिर पर एक के बाद एक बाल्टी भर-भर कर ठंडा पानी डालने का आदेश दिया। मुझे इतनी ज़्यादा ठंड लग रही थी कि मैं सिर से पैर तक ठिठुर रहा था, मुझे ऐसा लग रहा था मानो मेरा खून नसों में जम गया हो। उसके बाद तो मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। उस जेल में रखे गए कैदी बलात्कारी, चोर, लुटेरे और हत्यारे थे... हर कैदी दूसरे से ज़्यादा खूखार दिखाई देता था, और ऐसे लोगों के साथ उस नर्क जैसी जगह पर फंसने के विचार से ही मैं डर से काँपने लगा। रात को, हमारे जैसे 30 से भी अधिक लोग कंक्रीट के एक कठोर प्लेटफार्म पर एक साथ सोते थे, और कंबल दुर्गंध से भरे होते थे जिसके कारण सोना लगभग असंभव हो जाता था। वे दुष्ट पुलिस वाले खाने के लिए हमें बस छोटी पावरोटी और थोड़ा सा मक्की का पतला दलिया दिया करते थे, जो कि हमारा पेट भरने के लिए कतई पर्याप्त नहीं था, और दिन के समय हमें काफी सारा शारीरिक श्रम करना होता था। अगर हम दिन का दिया गया अपना काम पूरा नहीं करते थे तो वे हमें रात की चौकीदारी वाली शिफ्ट में पूरी रात खड़ा रखते थे, जिसका मतलब था कि हम चार घंटे खड़े रहते थे और केवल दो घंटे सोने के लिए मिलते थे। कभी-कभार तो मैं इतना थका होता था कि खड़े-खड़े ही सो जाता था। उन दुष्ट पुलिस वालों ने जेल के मुख्य कैदी को मुझे पीड़ा पहुंचाने के तरीकों को तलाशने के लिए कह रखा था, जैसे मुझे कोटे से अधिक काम देना या पूरी रात संतरी ड्यूटी पर खड़ा रखना। मुझे लगा जैसे मैं बस टूटने ही वाला हूँ। उन राक्षसों द्वारा मुझे इतनी बार सताया और तड़पाया गया था कि मुझे ऐसा महसूस होता था मानो मुझे सड़क के आवारा कुत्ते से भी कम आज़ादी हासिल है, और मेरा खान-पान किसी सुअर या कुत्ते से भी गया गुज़रा था। इन बातों को सोचते हुए, मुझे अपना घर और माता-पिता बहुत ज़्यादा याद आ रहे थे, मुझे लगा यह नज़रबंदी गृह इंसानों के रहने लायक जगह नहीं है। मैं अब वहां पर एक पल भी और नहीं रहना चाहता था। मैं उस डरावनी जगह को तुरंत छोड़ देना चाहता था। अपने दुख और कमजोरी की चरम स्थिति में, मैं परमेश्वर से केवल सच्चे मन से प्रार्थना कर सकता था, और इसी समय सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया और मेरा मार्गदर्शन किया: "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे सामने प्रकट करूंगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है, कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएं, हैं न? आज हर किसी को कड़वे परीक्षणों का सामना करना होगा, अन्यथा तुम लोगों के पास जो मुझे प्यार करने वाला दिल है वह मजबूत नहीं होगा...। जो लोग मेरी कड़वाहट को बांटेंगे वे निश्चित रूप से मेरी मिठास भी साझा करेंगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 41")। परमेश्वर के वचन सांत्वना और प्रोत्साहन के विशाल स्रोत थे। उन्होंने मुझे यह समझने में सहायता की कि जिन पीड़ा और कठिनाइयों का मैं सामना कर रहा हूँ, वे परमेश्वर का आशीर्वाद हैं। परमेश्वर इन कठिन परिस्थितियों का उपयोग मुझे परिशुद्ध व पूर्ण करने के लिए, और एक ऐसा व्यक्ति बनाने के लिए कर रहे थे, जिसका परमेश्वर के प्रति प्रेम और सत्यनिष्ठा परमेश्वर के वादे के योग्य है। मैंने विचार किया कि किस तरह मुझे बचपन से ही लाड़-प्यार से पाला गया था, मैंने कभी किसी तरह की तकलीफ़ या मामूली-सा अपमान भी नहीं सहा, लेकिन अगर मुझे सत्य और जीवन हासिल करना है, तो मेरे अंदर कष्ट सहने का दृढ़ संकल्प और दृढ़ विश्वास होना चाहिए। इस कष्ट का अनुभव किए बिना, मेरे भीतर का भ्रष्टाचार कभी भी शुद्ध नहीं हो सकता था। मेरी पीड़ा वाकई परमेश्वर का आशीर्वाद थी, इसलिए मुझे विश्वास कायम रखना था, परमेश्वर के साथ सहयोग करना था, और परमेश्वर को मेरे भीतर उनके सत्य पर काम करने देना था। एक बार जब मैंने परमेश्वर की इच्छा को समझ लिया तो तत्काल मेरे अंदर से एक प्रार्थना निकली, "परमेश्वर! मैं अब कमजोर और नकारात्मक महसूस नहीं कर रहा हूँ। मैं मजबूती से खड़ा रहूंगा और आप पर पूरी तरह से भरोसा करूंगा, अंत तक शैतान से लड़ूंगा, और आपसे प्रेम की कामना करते हुए आपको संतुष्ट करूंगा। मैं आपसे विश्वास और धैर्य की याचना करता हूँ।" जिन दिनों मैं नज़रबंदी गृह में दुर्व्यवहार और अपमान झेल रहा था, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपने विश्वास को हासिल करने के बाद से सबसे अधिक प्रार्थना और भरोसा किया। उस दौरान मेरे दिल ने परमेश्वर को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ा, मैंने हमेशा उनको अपने साथ ही पाया। चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा हुई हो, मुझे पीड़ित होने का एहसास तक नहीं हुआ, मैंने साफ तौर पर समझ लिया कि यह सब परमेश्वर की परवाह और सुरक्षा है।
एक महीने के बाद एक दिन सुबह, जेल के गार्डों ने बड़े भाई और मुझे बुलाया। उस बुलावे को सुनते ही मैं उत्साहित हो गया, मैंने सोचा कि वे शायद हमें छोड़ रहे हैं और अब मुझे उस नर्क में और पीड़ा नहीं झेलनी होगी। सत्य मेरे विश्वास के बिल्कुल ही विपरीत था। उस पुलिस स्टेशन के मुखिया ने कुटिल मुस्कान और लिखित निर्णयों के साथ हमसे कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए तुम दोनों को एक साल की सश्रम पुनर्शिक्षा की सजा दी गयी है। बावजूद इसके कि तुमने अपना मुंह नहीं खोला, हम तुमको सजा दे सकते हैं। इस देश में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, और मुकदमा करके भी तुम्हारा कुछ नहीं होने वाला!" हमारे दुर्भाग्य पर उसको बेहद खुश देख कर मुझे क्रोध आ रहा था: चीन की सरकार किसी कानून या नैतिकता का पालन नहीं करती, और मुझ जैसे कम उम्र के बच्चे का क्रूर उत्पीड़न करने से और दो कदम आगे जा कर यह मुझे बिना किसी अपराध के सजा दे रही है! उस दिन दूसरे भाई को और मुझे प्रांतीय लेबर कैम्प में लाया गया। हमारी स्वास्थ्य जांच के दौरान, डॉक्टर ने देखा कि भाई को उच्च रक्तचाप का रोग, दिल संबंधी परेशानी, और दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं हैं। इससे लेबर कैम्प के गार्डों को यह डर लगा कि कहीं वे वहां पर मर ना जाएं, इसलिए उन्होंने उनको लेने से इंकार कर दिया; उनको वापस ले जाने के अलावा कोई चारा पुलिस के पास ना था, इसका अर्थ था कि मैं वहां अकेला रह गया। फिर मैं रोने लगा—मैं बड़ी बुरी तरह से रोया। मुझे अपना घर और माता-पिता याद आ रहे थे, अब जबकि मैं अपने भाई के साथ संगति भी नहीं कर पाऊँगा, मैं किस तरह से इतना लंबा साल गुजारूंगा? उन दुष्टों द्वारा सताये और तड़पाये जाने के दौरान पिछले महीने में, उनकी क्रूरता ना सह पाने के कारण मैं जब भी नकारात्मक या कमजोर महसूस करता, तो वो मेरे साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति करके मुझे प्रोत्साहित करते, सांत्वना देते, जिससे परमेश्वर की इच्छा को समझ कर मुझे शक्ति हासिल करने में सहायता मिलती। साथ ही, उनकी दृढ़ता को देखकर मुझे उनके साथ मिलकर उन दानवों से लड़ने व उनसे पार पाने के लिए विश्वास और शक्ति मिलती थी। लेकिन उस समय, उस युद्ध को लड़ने के लिए मैं अकेला रह गया था। क्या मैं वाकई मज़बूती से खड़ा रह पाऊँगा? ... मैं जितना अधिक सोचता था उतना अधिक दुखी हो जाता था, मेरे दिल में नकारात्मकता, एकाकीपन, कटुता और अपमान और गहरे जड़ें जमाने लगते थे। जब मेरे दुख ने मुझे निराशा के चरम पर ढकेल दिया तो मैंने फौरन ही परमेश्वर को को पुकारा, "परमेश्वर! मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। मैं ऐसी गहन परीक्षा का सामना किस तरह से कर पाऊँगा? मैं इस सश्रम पुनर्शिक्षा के एक साल के लंबे समय को कैसे काटूँगा? परमेश्वर! मैं आपसे, मुझे मार्ग दिखाने और सहायता करने की विनती करता हूँ, मुझे विश्वास और शक्ति दें...।" बिना आवाज किए रोते हुए, मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। जब मैं प्रार्थना कर रहा था, तो मुझे अचानक ही सत्रह बरस की उम्र में यूसुफ को मिस्र में बेच दिए जाने का अनुभव याद आया। हालांकि मिस्र में वह अकेले थे और उन्होंने पीड़ा और अपमान को सहा, लेकिन उन्होंने सच्चे परमेश्वर का कभी त्याग नहीं किया और न ही शैतान के आगे समर्पण किया। भले ही अभी मुझे जेल में दानवों द्वारा पीड़ित किया जा रहा है, लेकिन यह परमेश्वर की अनुमति से हो रहा है, और जब तक मैं परमेश्वर पर वाकई भरोसा और शैतान के सामने हार मानने से इंकार करता रहूंगा, शैतान से पार पाने और दानवों की मांद से निकलने में परमेश्वर भी मुझे मार्ग दिखाते रहेंगे। उस पल मैंने फिर से परमेश्वर के वचनों को याद किया, "अपने आप को इसलिए कम मत समझो क्योंकि तुम कम उम्र हो; तुम्हें अपने आप को मुझे अर्पित करना चाहिए। मैं नहीं देखता कि लोग सतही तौर पर क्या हैं या वे कितने साल के हैं। मैं केवल यह देखता हूं कि वे मुझे ईमानदारी से प्यार करते हैं या नहीं, और वे मेरे रास्ते का पालन करते हैं या नहीं, और अन्य सभी चीज़ों को अनदेखा करके वह सत्य का अभ्यास करते हैं या नहीं। यह चिंता न करो कि कल कैसा होगा या भविष्य कैसा रहेगा। जब तक तुम हर दिन जीने के लिए मुझ पर निर्भर रहोगे, मैं निश्चित रूप से तुम्हारी अगुवाई करूंगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 28")। परमेश्वर के वचनों ने मेरे हृदय में प्रचंड सूर्य जैसी गर्माहट भर दी। उन्होंने मुझे यह देखने दिया कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं लेते हैं, हालांकि मैं युवा था, लेकिन जब तक मेरे दिल में परमेश्वर के लिए निष्कपट प्रेम है और मैं परमेश्वर के वचनों का पालन कर सकता हूँ, मुझे हमेशा परमेश्वर का मार्गदर्शन मिलेगा। मैंने विचार किया कि किस तरह से मेरी गिरफ्तारी के समय से परमेश्वर हर पल मेरे साथ रहे, कठिनाइयों से पार पाने में मेरी सहायता करते रहे और मेरे लिए मजबूत बना रहना संभव किया। परमेश्वर की उपस्थिति और मार्गदर्शन के बिना, मैं किस तरह से उन दानवों की क्रूर पिटाई और कठोर यातना सह पाता। परमेश्वर पर भरोसा करके मैंने ऐसी बड़ी कठिनाई को पार किया है, और मैं एक साल की सश्रम पुनर्शिक्षा का सामना कर रहा था, तो मुझमें विश्वास की कमी कैसे आयी? क्या मुझे सिर्फ़ परमेश्वर पर ही भरोसा नहीं करना चाहिए था? परमेश्वर मेरे साथ थे, और मुझे हर पल मार्गदर्शन दे रहे थे, तो फिर मुझे एकाकीपन और डर का एहसास क्यों हो? वे परिस्थितियां मेरे लिए, स्वतंत्र रूप से रहने और जीवन में परिपक्व होने का अभ्यास करने के लिए एक अवसर थीं। अब मैं खुद को एक बच्चे की तरह नहीं देख सकता था, न ही परमेश्वर में आस्था रखने के बजाय मैं हमेशा किसी दूसरे व्यक्ति पर भरोसा कर सकता था। मुझे अब बड़ा होना चाहिए, अपने मार्ग पर चलने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए, और विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर पर भरोसा करते हुए, उस मार्ग पर चलते रहने में निश्चय ही मैं सक्षम रहूंगा। शैतान उन लोगों को हराने में कभी भी सक्षम नहीं होगा जिनको परमेश्वर पर दृढ़ता के साथ भरोसा है और वे उससे प्रेम करते हैं! यह मेरे लिए एक मर्द की तरह साहसी बनने का, और अपने कर्मों के माध्यम से परमेश्वर को महिमा हासिल करने देने का समय था। एक बार जब मैंने परमेश्वर की इच्छा को समझ लिया तो मुझे ऐसा लगा कि कोई शक्तिशाली ताकत मुझे सहारा दे रही है, और मैंने अपने दिल की गहराई में जेल जीवन का सामना करने का संकल्प ले लिया।
जब लेबर कैम्प के गार्डों को पता चला कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ तो उन्होंने जानबूझ कर मुझे पीड़ित करना शुरु कर दिया। उन्होंने मुझे भारी शारीरिक श्रम वाले काम दिए, जिनमें सुबह पांच बजे से रात के ग्यारह बजे तक 50 किलो से अधिक के भारी-भारी बैगों को तीसरी मंजिल से पहली पर उठा कर ले जाना शामिल था, और अगर मैं अपने हिस्से का काम पूरा नहीं करता था तो मुझे रात में ओवरटाइम काम करना पड़ता था। मैंने शारीरिक श्रम पहले कभी नहीं किया था, और उस नज़रबंदी गृह में मैंने कभी भरपेट खाना नहीं खाया था, इसलिए मैं हमेशा थककर चूर रहता था। शुरुआत में तो मैं बैग उठा ही नहीं पाता था, लेकिन बाद में परमेश्वर पर अटूट विश्वास के कारण धीर-धीरे मैं उनको उठाने में सक्षम हो गया। वह भारी श्रम मुझे हर रोज़ थका कर चूर-चूर कर देता था, और मेरी कमर और टांगों में भारी दर्द होता था। वे गार्ड अक्सर दूसरे कैदियों को मुझे बुरी तरह पीटने का आदेश देते थे, जिस कारण मेरा शरीर घावों और चोटों से भर जाता था। एक बार उन गार्डों ने मुख्य कैदी को मुझे पीटने का आदेश दिया क्योंकि पानी निकाल कर लाने में मुझे देर हो गयी थी। इस पिटाई के दौरान मेरे कान के पर्दे फट गए और उनमें संक्रमण हो गया, जिससे मैं लगभग बहरा हो गया। इस तरह के दुर्व्यवहार और धमकियों से नाराज होकर मैंने अपने दांतों को भींच लिया, लेकिन इसका प्रतिरोध करने के लिए मैं निस्सहाय था। मैं दुखी था और शिकायतों से भरा हुआ था, लेकिन इसके निवारण के लिए मेरे पास कोई जगह न थी। मैं केवल परमेश्वर के सामने जाकर प्रार्थना में उनके साथ अपने दुख को साझा कर सकता था। उस जेल की अंधेरी कोठरी में, मैंने सभी चीजों में परमेश्वर की तलाश करना और उन पर भरोसा करना, परमेश्वर के नजदीक जाना सीखा, परमेश्वर को अपने मन की बातें बताने के लिए प्रार्थना करना मुझे अपने जीवन में सबसे अधिक आनंद देता था। मैं जब भी दुखी या कमजोर महसूस करता था, तो मेरा पसंदीदा भजन था "मैं परमेश्वर को प्रेम करने को दृढ़-संकल्पित हूँ": "हे परमेश्वर! मैं देख चुका हूँ कि आपकी धार्मिकता और पवित्रता बहुत ही मनोहर है। मैं सत्य के अनुपालन का संकल्प लेता हूँ, मैंने आपको प्रेम करने का निश्चय कर लिया है। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी आत्मा की आँखें खोलें, मैं चाहता हूँ कि आपका आत्मा मेरे हृदय को स्पर्श करे, ताकि मैं आपके समक्ष सारी निष्क्रिय स्थितियों से मुक्त हो जाऊँ, किसी भी व्यक्ति, बात, या वस्तु की पाबंदियों से आज़ाद हो जाऊँ; मैं अपना हृदय पूरी तरह खोलकर इस तरह आपके सामने रखता हूँ, कि मेरी पूरा अस्तित्व आपके समक्ष अर्पित है, आप जैसे चाहें मेरी परीक्षा ले लें। अब, मैं अपनी भविष्य की संभावनाओं पर विचार नहीं करता, न ही मैं अब मृत्यु से बँधा हूँ। आपको प्रेम करने वाला हृदय लेकर, मैं जीवन के मार्ग की खोज करना चाहता हूँ। सभी चीज़ें और घटनाएँ आपके हाथों में हैं, मेरी नियति आपके हाथों में है, यहाँ तक कि मेरा जीवन भी आप ही के हाथों में है। अब, मैं आपको प्रेम करना चाहता हूँ। इस बात से बेपरवाह कि आप मुझे स्वयं को प्रेम करने देंगे या नहीं, शैतान के हस्तक्षेप से बेपरवाह, मैं आपको प्रेम करने का निश्चय कर चुका हूँ" (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना)। गाते-गाते मैं आंसुओं से भर जाता, इससे मेरे दिल को असीम सांत्वना और प्रोत्साहन मिलता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बार-बार मुझे सहारा और समर्थन दिया, जिससे मुझे अपने प्रति परमेश्वर के सच्चे प्रेम का हकीकत में अनुभव हुआ। एक ममतामयी माँ की तरह परमेश्वर हर समय मेरे साथ खड़े हो कर नज़र रखते रहे, मुझे दिलासा देते रहे और मेरा समर्थन करते रहे, मुझे विश्वास और ताकत देते रहे, और उस पूरे साल मेरा मार्गदर्शन करते रहे, जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता।
जेल में रहने के दौरान अंधकार का अनुभव करने के बाद, मैं जीवन में और अधिक परिपक्व हो गया, और मुझे सत्य का भी और अधिक ज्ञान हासिल हुआ। मैं अब एक भोला, मासूम बच्चा नहीं था। ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ही थे जिन्होंने उस दुष्ट पुलिस की यातना और पीड़ा को बार-बार सहने में, और बार-बार मुझे कमजोरी और नकारात्मकता से बाहर आने में, उठ खड़े होने और मजबूत बने रहने में मेरा मार्गदर्शन किया। इसने मुझे यह समझने में सक्षम किया परमेश्वर के दिल को कैसे आराम दिया जाए और उसके प्रति विचारशील कैसे हों, साथ ही परमेश्वर पर कैसे भरोसा करें औरमज़बूती से खड़े रहें, तथा परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देने के लिए परमेश्वर की गवाही कैसे दें। इसने मुझे शैतान और दानवों की क्रूरता और कुटिलता के साथ-साथ परमेश्वर के शत्रुओं के रूप में उनकी प्रतिक्रिया के बुरे सार को भी स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम किया। इसने मुझे "जनता से प्रेम करने वाली जनता की पुलिस" की झूठी छवि की सच्चाई से भी परिचित कराया। मैंने उसके बाद कभी भी शैतान के झूठों से धोखा नहीं खाया। मैंने जिस उत्पीड़न और पीड़ा का सामना किया, वो न केवल मुझे तोड़ने में विफल रही बल्कि वे ऐसी नींव बन गयीं जिस के सहारे मैं विश्वास के मार्ग पर चलता हूँ। इस कठिन, पथरीले रास्ते पर मुझे मार्गदर्शन देने और इतनी कम उम्र में ऐसे क्रूर अत्याचार को सहन करना सीखने योग्य बनाने के लिए, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आभारी हूँ। इसके माध्यम से मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता को देखा और यह देखा कि यह मेरे लिए परमेश्वर का विशेष उद्धार था। मैंने गहराई से यह महसूस किया कि दानवों द्वारा शासित किसी बुरी दुनिया में, केवल परमेश्वर ही लोगों को बचा सकते हैं, केवल परमेश्वर हमारा सहारा बन सकते हैं और जब भी हमें उनकी जरूरत हो वे हमारी सहायता कर सकते हैं, और केवल परमेश्वर ही लोगों से सच्चा प्रेम करते हैं। मैंने जिन उत्पीड़नों और कठिनाइयों का सामना किया वो मेरे लिए जीवन में विकास का बहुमूल्य खजाना बन गयीं, और मेरे पूर्ण उद्धार को हासिल करने के लिए काफी लाभकारी रहीं। हालांकि उस दौरान मैं काफी पीड़ित रहा, लेकिन वह पीड़ा बेहद मूल्यवान और अर्थपूर्ण थी। यह ठीक परमेश्वर के वचनों के समान है, "यदि तुम इस वर्ग में रहने और इस न्याय और इस अतिबृहत उद्धार में रहने और इस आशीष, जो मानव संसार में कहीं भी पाई नहीं जा सकती, का पूर्णता से आनन्द उठाने, और इस प्रेम का आनन्द उठाने के इच्छुक हो, तो जीत लिए जाने के कार्य को स्वीकार करने के लिए अधीनता से इस वर्ग में बने रहो, जिससे तुम सिद्ध बन सकते हो। यद्यपि अभी तुम न्याय के कारण कुछ कष्ट और शुद्धिकरण से पीड़ित हो, यह कष्ट बहुमूल्य और अर्थपूर्ण है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (4)")।
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