सलाखों के पीछे झेली गई यातना
नवंबर 2004 की एक सुबह मैं एक सभा में भाग लेने के लिए एक एल्डर बहन के घर गया। मैं दरवाजा खटखटाने ही वाला था कि अचानक वह खुला और एक जोड़ी हाथों ने मुझे पकड़कर अंदर घसीट लिया। मुझे घूरते हुए गंभीर, गुर्राहट भरे स्वर में एक आदमी ने मुझे धमकी देते हुए कहा, “बोलने की हिम्मत मत करना!” दूसरे आदमी ने मुझे गले से पकड़ लिया और मेरी पिंडली में लात मारकर पूछा कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ और कितने लोग आने वाले हैं। मैं समझ गया कि ये लोग पुलिस वाले हैं, और थोड़ा चिंतित होकर बोला, “मैं यहाँ सिर्फ पानी देने और पानी का बिल वसूलने आया हूँ।” उनमें से एक ने कहा, “तुम चेन हाओ हो, है न?” मैं भौचक्का रह गया—इन्हें मेरा नाम कैसे पता चला? इससे पहले कि मैं कोई प्रतिक्रिया देता, उन्होंने मेरी तलाशी लेनी शुरू कर दी, मेरी जेबों से एक नोटबुक और 600 से ज्यादा युआन जब्त कर लिए, और फिर मुझे हथकड़ी लगा दी। मैंने किसी को यह कहते सुना, “आखिर एक महीने तक इस जगह पर नजर रखना बेकार नहीं गया।” मैं समझ गया कि वे काफी समय से घर पर नजर रख रहे थे। करीब पाँच मिनट बाद सादे कपड़ों में तीन पुलिस अधिकारी आ पहुँचे। उनमें से एक ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और कहा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम इन लोगों के साथ घुल-मिलकर क्या कर रहे हो?” इस आदमी का नाम लियू था और उसकी छोटी बहन मेरी एक सहकर्मी थी, जब मैंने प्रभु यीशु में विश्वास किया था। वह खास तौर से शातिर और कपटी था और उसने अपने मातहतों से मुझे ले जाने के लिए कहा। मैंने सोचा कि पहले अन्य भाई-बहनों को गिरफ्तार करके कैसे उन्हें अक्सर तमाम तरह की यातना दी गई थी और कुछ को तो पीट-पीटकर मार ही डाला गया था, और यह सोचकर मुझे बहुत डर लगा। मुझे नहीं पता था कि पुलिस मुझे यातना देगी या मार ही डालेगी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरी रक्षा करे और मुझे अपनी गवाही में दृढ़ रहने के लिए आस्था और शक्ति प्रदान करे। फिर मैंने सोचा कि कैसे प्रभु यीशु ने कहा था : “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है” (मत्ती 10:28)। यह सही है, पुलिस मुझे सिर्फ शारीरिक रूप से खत्म कर सकती है—वह मेरी आत्मा नहीं छीन सकती। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से मेरा डर थोड़ा कम हो गया।
इसके बाद वे मुझे स्थानीय थाने ले आए। एक ईमानदार लहजा अपनाने का ढोंग करते हुए लियू नामक उस व्यक्ति ने मुझे लेकर आए पुलिसकर्मियों से कहा, “इसके साथ ज्यादा सख्ती मत करना। यह एक ईमानदार इंसान है और हम लंबे समय से एक-दूसरे को जानते हैं।” फिर नकली ईमानदारी के साथ उसने मुझसे कहा, “बस जो तुम जानते हो, हमें बता दो। थोड़ा-बहुत धार्मिक अभ्यास कोई बड़ी बात नहीं है। अगर तुमने कुछ नहीं छिपाया, तो तुम घर जा सकोगे। तुम्हें घर गए एक साल से ज्यादा हो गया है, है न? अच्छी तरह सोच लो। जब समय आए, तो बस हमें वह बता देना जो हम जानना चाहते हैं, और मैं गारंटी देता हूँ कि तुम ठीक रहोगे।” जब मैंने उसे यह कहते सुना, तो मैं थोड़ा डगमगा गया और सोचा : “यह देखते हुए कि हम अच्छी तरह से परिचित हैं और यह विशेष जाँच दल का प्रमुख है, अगर मैं कुछ कम महत्वपूर्ण जानकारी प्रकट करके इसका विश्वास हासिल कर लूँ, तो शायद यह मुझे जाने दे।” मैं इस पर विचार कर ही रहा था कि अचानक मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “मेरे लोगों को शैतान के कुटिल कुचक्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए ... ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। मैं समझ गया कि मैं शैतान की कपट भरी साजिश में लगभग फँस गया था। यह अधिकारी लियू एक चालाक और धूर्त व्यक्ति है—मैं इसकी बात पर यकीन कैसे कर सकता हूँ? यह सिर्फ मुझसे कलीसिया के बारे में जानकारी पाना और मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाना चाहता है। यह एहसास कर मैंने अपना मुँह बंद ही रखा। तब एक अन्य अधिकारी ने मुझसे पूछा, “तुम कहाँ प्रचार कर रहे थे? तुम किनके साथ सभा कर रहे थे? तुम्हारा अगुआ कौन है? कलीसिया अपना पैसा कहाँ रखती है?” लेकिन उसने मुझसे चाहे जैसे भी गहन पूछताछ की, मैं एक शब्द नहीं बोला।
उसी दिन दोपहर करीब 3 बजे उन्होंने मुझे प्रांतीय बंदीगृह पहुँचा दिया। वहाँ एक अधिकारी मुझे एक कमरे में ले गया और मुझे सारे कपड़े उतारने, बाँहें ऊपर उठाने और फिर गोल-गोल घूमने का आदेश दिया। जब मैंने घूमना शुरू नहीं किया, तो उसने मुझे तेज लात मारी और फिर मुझे तीन बार उठक-बैठक लगाने को कहा। मैंने क्रोधित और अपमानित महसूस किया। इसके बाद मुझे 20 वर्ग मीटर से कम के क्षेत्र में तीस से ज्यादा कैदियों से भरी जेल की कोठरी में ले जाया गया। जैसे ही मैंने कोठरी में प्रवेश किया, दो कैदियों ने मेरी बाँहें पकड़कर मेरी कमर के पीछे मोड़ दीं, मुझे कमरे में चारों ओर परेड कराने के लिए खींचकर आगे धकियाया, और फिर मुझे लात मारकर फर्श पर गिरा दिया। मेरा माथा जमीन से जा लगा और उससे खून बहने लगा। यह देख कैदी हँस पड़े और उनमें से एक ने कहा, “लगता है, हवाई जहाज ने ब्रेक नहीं लगाया।” दूसरा बोला, “हमारे पास तुम्हें सिखाने के लिए बहुत-कुछ है। तुम समय पर सीख जाओगे।” मैंने मन ही मन सोचा : “मैं अभी आया ही हूँ और ये मुझे इस तरह सताने भी लगे। मैं यहाँ जीवित कैसे रह पाऊँगा? क्या मैं इसे सहन कर पाऊँगा?” अंदर ही अंदर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरी रक्षा करे, ताकि मैं अपनी गवाही में दृढ़ रह सकूँ। तभी मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में सोचा, जिनमें कहा गया है : “परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी काबिलियत के माध्यम से, और इस गंदे देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर मैंने महसूस किया कि परमेश्वर इस परिवेश का उपयोग मेरी आस्था पूर्ण करने के लिए कर रहा है। परमेश्वर की अनुमति से ही पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया था। उसे आशा थी कि मैं शैतान को अपमानित करने के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा। परमेश्वर के लिए गवाही देने का अवसर पाना वाकई सम्मान की बात थी। मैंने सोचा कि कैसे प्रभु यीशु मानव-जाति को छुड़ाने के लिए सूली पर चढ़ाया गया था और कैसे हमें बचाने के लिए अंत के दिनों में देहधारण करने के बाद से परमेश्वर का शासक दल द्वारा पीछा और उत्पीड़न किया जा रहा था, उसे धार्मिक दुनिया द्वारा अपमानित और अस्वीकृत किया जा रहा था और वह हर तरह की कठिनाई और अपमान झेल रहा था। लेकिन फिर भी परमेश्वर सत्य व्यक्त कर हमारा पोषण करता है। परमेश्वर का अनुसरण करने, सत्य का अनुसरण करने, और उसके द्वारा बचाए जाने के अवसर की तुलना में यह थोड़ा-सा दुख क्या है? इसे महसूस कर मैंने थोड़ा मजबूत महसूस किया और सोचा : “ये चाहे मुझे कितनी भी यातना दें, मैं कलीसिया के बारे में कोई जानकारी नहीं दूँगा, न ही परमेश्वर से विश्वासघात करूँगा।”
चौथे दिन सुबह पुलिस फिर मुझसे पूछताछ करने आई। उन्होंने मुझसे कलीसिया से संबंधित विभिन्न विवरणों के बारे में पूछताछ की और मुझे लोगों की कई फोटो दिखाईं और यह कहते हुए मुझे उन्हें पहचानने के लिए कहा कि इन लोगों ने मुझे पहले ही पहचान लिया है। मुझे पता था कि यह उनकी एक और कपट भरी साजिश है—वे मुझे मेरे भाई-बहनों को धोखा देने के लिए फँसाना चाहते थे—इसलिए मैंने उन्हें बस नजरअंदाज किया। आखिरकार यह देखकर कि मैं कुछ नहीं कहने वाला, उन्होंने मुझे वापस भेज दिया और एक अलग कोठरी में रख दिया। जैसे ही मैंने उसमें प्रवेश किया, अधिकारी को कोठरी के कैदियों से यह कहते सुना, “यह एक विश्वासी है। इसकी ‘अच्छी देखभाल’ करना।” फिर एक युवा कैदी मेरे पास आया और बोला कि वह “मेरे कान साफ करने” जा रहा है। उसने और एक अन्य कैदी ने विपरीत दिशाओं में मेरे कान खींचे। मैं उन्हें पीछे धकेलने की कोशिश करने लगा, लेकिन उन्होंने अचानक मुझे छोड़ दिया और मैं जमीन पर गिर पड़ा। जैसे ही मैं उठने को हुआ, किसी ने कंधों से दबाकर मुझे खड़े होने से रोक दिया। फिर एक दूसरा कैदी मेरे पास आया और बोला कि वह “पेड़ से छाल उतारने” जा रहा है। उसने अपने एक हाथ से मेरा पैर जोर से पकड़ा, उससे पतलून ऊपर उठाई और फिर दूसरे हाथ परकपड़े धोने वाला डिटर्जेंट बैग लपेटकर मेरी पिंडली को पुरजोर ढंग से रगड़ने लगा। वह इतनी तेजी से रगड़ रहा था कि मेरा पैर बेहद लाल होने में देर नहीं लगी और मैं दर्द से बिलबिलाने लगा। दूसरा कैदी जो मुझे दबाए हुए था, मेरे कान मरोड़ता रहा। उन्होंने मुझे बीस मिनट से ज्यादा समय तक इसी तरह प्रताड़ित किया। दर्द मेरे कान में दौड़ गया और मेरी पिंडली बुरी तरह जख्मी हो गई और उसमें से खून बहने लगा। इसके बाद एक नौजवान कैदी ने मेरी पीठ पर जोर से लात मारी, जिससे मैं लड़खड़ा गया। फिर उसने मेरे पेट में इतनी जोर से लात मारी कि मेरी पीठ दर्द से दोहरी हो उठी। ऐसा लगा, जैसे मेरे भीतरी अंग टूटकर अलग होने वाले हैं। एक और कैदी ने आकर मेरी पीठ पर लात मारी, जिससे मैं फर्श पर जा गिरा, जिसके बाद उन्होंने मेरे ऊपर एक कंबल फेंक दिया और मुझे लात-घूँसे मारने शुरू कर दिए। मेरा पूरा शरीर दर्द से तड़प रहा था—मेरे माथे पर चोट का निशान था और मेरी नाक से खून टपक रहा था। उन्होंने मेरे बालों में कपड़े धोने का डिटर्जेंट रगड़ा और मुझे अपने सारे कपड़े उतारकर ठंडे पानी से नहाने के लिए मजबूर किया। दिसंबर का समय था और बाहर बर्फ पड़ रही थी। कोठरी का पानी, पानी के टावरों की बर्फ से पिघलकर आया हुआ था और ठंड से हड्डी कँपा देने वाला था। मैं ठंडे पानी से ठिठुर रहा था और बुरी तरह से काँप रहा था। इसके बाद एक कैदी ने आधा गिलास पानी में घुला कपड़े धोने का डिटर्जेंट लिया और बोला, “तुम ठंड से जमते दिख रहे हो। हमने तुम्हारे लिए आधा गिलास ‘बीयर’ बचाई है। लो, इसे पी लो।” जब मैंने उसे नहीं पिया, तो उसने कहा, “क्या हुआ? क्या यह तुम्हारे लिए काफी नहीं है?” और उसमें थोड़ा और ठंडा पानी डाल दिया। डिटर्जेंट का झाग गिलास से नीचे लुढ़क गया। मुझे अभी भी गिलास से पीने से इनकार करते देख उसने कहा : “अगर तुम इसे नहीं पियोगे, तो हम तुम्हारे ‘पटाखे कैसे फोड़ेंगे’?” फिर दो कैदियों ने मुझे जबरन एक बिस्तर पर लिटा दिया, मेरी नाक बंद कर दी और मेरे गले में डिटर्जेंट का पानी डाल दिया। “पटाखे फोड़ने” से उनका मतलब किसी व्यक्ति को डिटर्जेंट का पानी पीने के लिए मजबूर करना और फिर उसे पीटकर वह पानी वापस उगलवाना था। मैंने बहुत संघर्ष किया और चिल्लाया, “क्या तुम मुझे मार डालना चाहते हो? क्या यहाँ कानून नहीं चलता?” एक पुलिस स्टैंडिंग गार्ड ने मुझे चिल्लाते हुए सुना, तो चिल्लाकर बोला : “तुम किसलिए चिल्ला रहे हो? ये तुम्हें बस थोड़ा स्नान ही तो करा रहे हैं—इससे तुम मरोगे नहीं! अगर फिर चिल्लाए, तो कल तुम्हें बिजली का डंडा मिलेगा!” उसकी बातों से मुझे बेहद गुस्सा आया। बर्फ के ठंडे पानी से मेरा पूरा शरीर काँप रहा था और मेरी त्वचा पर ठंड से छोटी-छोटी गिलटियाँ उभर रही थीं। मैं अपने कपड़े लेने और उन्हें पहनने के लिए हाथ बढ़ा ही रहा था कि एक कैदी ने मुझे लात मारकर जमीन पर गिरा दिया। पीठ-दर्द से दोहरा होने के बाद मैंने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की, लेकिन दो अन्य कैदियों द्वारा मुझे तुरंत दीवार के साथ अड़ा दिया गया, जिसके बाद तेरह कैदियों ने मेरे पास आकर मुझे पंचिंग बैग की तरह पीटना शुरू कर दिया। मौत की सजा पाए एक कैदी ने पुकारा, “ठीक है, तुम में से हर एक इसे दस बार घूँसा मारे।” फिर वह बगल में खड़ा हो गया और हर कैदी द्वारा मारे जाने वाले घूँसे गिनने लगा। मैं इतनी पीड़ा में था कि मेरी पीठ झुककर दोहरी हो गई थी, मेरी छाती और पेट में असहनीय दर्द हो रहा रहा था और मैं मुश्किल से साँस ले पा रहा था। इसके बाद एक और कैदी आया और उसने मेरे सिर के पीछे दो बार अपनी हथकड़ी से जोर से मारा। मुझे चक्कर और मिचली आने लगी, कमरा घूमने लगा, मेरे कान बजने लगे और फिर मैं काफी देर तक उलटी करता रहा। आखिर मैं पीले पानी की उलटी कर रहा था। मैंने हाथ अपनी छाती पर रख लिए और गहरी साँस तक नहीं ले पाया, क्योंकि साँस लेने में भी दर्द हो रहा था। अंततः, मुझे खून की उलटी होने लगी और ऐसा लगा जैसे मेरा शरीर सीवन से उधड़ रहा हो। मैंने मन ही मन सोचा : “ये कैदी मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे और न तो मेरा परिवार जानता है कि मुझे गिरफ्तार किया गया है, न ही मेरे भाई-बहन यह जानते हैं किमुझे कहाँ ले जाया गया है। अगर इन्होंने सच में मुझे मार दिया और पुलिस ने मेरी लाश कहीं फेंक दी, तो किसी को कभी पता नहीं चलेगा कि क्या हुआ था।” यह सोचकर मुझे बहुत डर और कमजोरी महसूस हुई, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “ओह परमेश्वर! अब मैं इसे ज्यादा देर नहीं सह सकता। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वे मुझे मौत के घाट उतार देंगे। मैं तुम्हारी सुरक्षा माँगता हूँ, ताकि मैं यह पीड़ा और यातना सह सकूँ।” तभी मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में सोचा, जिनमें कहा गया है : “अब्राहम ने इसहाक को बलिदान किया—तुमने किसे बलिदान किया है? अय्यूब ने सब-कुछ बलिदान किया—तुमने क्या बलिदान किया है? इतने सारे लोगों ने अपना जीवन दिया है, अपने सिर कुर्बान किए हैं, अपना खून बहाया है, सही राह तलाशने के लिए। क्या तुम लोगों ने वह कीमत चुकाई है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ)। इन सवालों का सामना करके मैं शर्म से पानी-पानी हो गया। मैंने पिछले युगों के संतों के बारे में सोचा। चूँकि उन्होंने सुसमाचार फैलाया था और परमेश्वर की गवाही दी थी, इसलिए उनमें से कुछ की पत्थर मारकर जान ले ली गई थी, कुछ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया, और कुछ को घोड़ों से घसीटकर मार डाला गया था। उन्होंने परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रहने के लिए अपना बहुमूल्य जीवन बलिदान कर दिया था। लेकिन गिरफ्तार कर पीटे जाने, प्रताड़ित किए जाने और अपना जीवन खतरे में पड़ने के बाद मैं कमजोर और नकारात्मक हो गया था और मौत के डर से जीवन से चिपक गया था। मैं कितना कायर था! मैंने सोचा कि परमेश्वर के वचनों के सिंचन और पोषण का इतना आनंद लेने के बावजूद इस नाजुक घड़ी में परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रहने में विफल होना मेरे लिए कितना अनुचित था। मुझे बहुत ही ग्लानि हुईऔर मैंने शैतान के आगे कभी हार न मानने की कसम खाई, चाहे आगे मुझे कोई भी यातना क्यों न दी जाए। मुझे जमीन पर बेसुध पड़ा देखने के बाद ही कैदियों ने आखिरकार मुझे पीटना बंद किया।
हफ्ते भर बाद अधिकारी लियू मुझसे फिर से पूछताछ करने आया। नकली नेकनीयती का लहजा अपनाते हुए उसने मुझसे कहा : “पुराने दोस्त, हमने तुम्हारे रिकॉर्ड देखे हैं और तुम्हारा गैरकानूनी व्यवहार का कोई इतिहास नहीं है। तुम्हारे माता-पिता अब बूढ़े हो रहे हैं और तुम्हारा बच्चा तुम्हारे लिए रो रहा है। सभी को उम्मीद है कि तुम नए साल के जश्न के लिए घर आओगे। इस बारे में थोड़ा और सोचो। अगर तुम हमें वह बता दो, जो हम कलीसिया के बारे में जानना चाहते हैं, तो हम तुम्हें तुरंत जाने देंगे।” जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसने अपना रुख बदल लिया और कहा, “तुम जानते हो, तुम्हारे हमसे एक शब्द न कहने पर भी हम तुम्हें 3-5 साल की सजा दे सकते हैं। तुम्हें समझना चाहिए कि चीजें ऐसी ही हैं—इतने जिद्दी मत बनो।” जब मैं उसे नजरअंदाज करता रहा, तो उसने मुझे अपने प्रस्ताव पर विचार करने के लिए वापस कोठरी में भेज दिया। कोठरी में वापस जाकर मैंने सोचा कि मेरी माँ कितनी बूढ़ी है और कैसे उसकी सेहत अच्छी नहीं है। अगर मुझे वाकई 3-5 साल की सजा हो गई, यहाँ तक कि जेल के अंदर ही मेरी मृत्यु हो गई, तो मेरी माँ की देखभाल कौन करेगा? जितना ज्यादा मैंने इस बारे में सोचा, मुझे उतना ही ज्यादा बुरा लगा। आखिर मैं सोचने लगा कि कोई ऐसी बेकार-सी बात बता दूँ, जो मुझे जेल जाने से रोक सके। तभी मैंने परमेश्वर के उन वचनों के बारे में सोचा, जिनमें कहा गया है : “मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कोई अपराध सहन नहीं करता। परमेश्वर उन लोगों से पूरी तरह घृणा करता है जो यहूदा बन जाते हैं, कलीसिया को धोखा देते हैं और परमेश्वर के साथ विश्वासघात करते हैं, और वह ऐसे लोगों को कभी माफ नहीं करेगा। मैं स्पष्ट रूप से समझ गया था कि अधिकारी लियू एक शातिर और कपटी आदमी है और अगर मैंने उसे थोड़ी-सी भी जानकारी दी, तो वह मुझे और ज्यादा जानकारी देने के लिए मजबूर करने का तरीका खोज लेगा। फिर भी मैंने असल में उसकी राक्षसी बातों पर विश्वास किया। मैं कितना मूर्ख था! अपने परिवार की चिंता करने के कारण मैंने परमेश्वर को धोखा देने की बात सोच ली थी। मैंने देखा कि परमेश्वर में मेरी आस्था सच में कमजोर थी। हम सबकी किस्मत परमेश्वर के हाथों में है। मुझे यातना देकर मारा जाएगा या नहीं और मेरे परिवार का क्या होगा, इस बारे में परमेश्वर का निर्णय अंतिम होगा। मुझे सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में सौंप देना चाहिए और इस कठिन परीक्षा से निकलने के लिए उस पर भरोसा करना चाहिए। जब मैं समर्पित होने के लिए तैयार हुआ, तो कोठरी नंबर 8 के कैदियों ने मुझे पीटना बंद कर दिया। कैदियों को मेरे प्रति अपना रवैया बदलते देख अधिकारियों ने मुझे कोठरी नंबर 10 में स्थानांतरित कर दिया।
कोठरी नंबर 10 के कैदियों ने मुझे वैसे ही पीटा, जैसे कोठरी नंबर 8 के कैदियों ने पीटा था। इससे पहले कि मुझे प्रतिक्रिया व्यक्त करने का मौका मिलता, उन्होंने मेरे ऊपर एक कंबल डाल दिया और मुझे लात-घूँसे मारने लगे। उन्होंने इसे “पकौड़ी बनाना” कहा। जब भी कैदियों का मूड खराब होता, वे उसे मुझ पर उतार देते। मैंने उस माहौल में बहुत कष्ट सहा और बहुत दमित महसूस किया। एक-एक दिन संघर्ष से गुजरता था, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे आस्था देने के लिए कहा। एक हफ्ते बाद मौत की सजा पाए एक कैदी ने मुझसे कहा : “मुझे प्रभु पर अपने विश्वास के बारे में बताओ और मुझे अपने भजन गाकर सुनाओ। अगर तुम मेरे कहने के अनुसार नहीं करोगे, तो मैं तुम्हारे सिर पर यह हथकड़ी दे मारूँगा। रुकने की हिम्मत मत करो, तुम्हारा काम अब बोलना और गाना है।” तो मेरे मन में जो आया, मैंने गा दिया, और बिना सोचे-समझे मैंने परमेश्वर के वचनों का एक भजन गाना शुरू कर दिया “क्या अपने लिये परमेश्वर की आशाओं को महसूस किया है तुम लोगों ने?” : “तुम लोगों के बीच अय्यूब कौन है? पतरस कौन है? मैंने बार-बार अय्यूब का उल्लेख क्यों किया है? मैंने इतनी अधिक बार पतरस का उल्लेख क्यों किया है? क्या तुम लोगों ने कभी सुनिश्चित किया है कि तुम लोगों के लिए मेरी आशाएँ क्या हैं? तुम लोगों को ऐसी बातों पर विचार करते हुए अधिक समय बिताना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 8)। गाते हुए मैं भावुक होने लगा। मैंने सोचा कि कैसे अय्यूब अपनी सारी संपत्ति खोने और अपने पूरे शरीर पर फोड़े फूटने के बाद भी परमेश्वर के नाम की स्तुति करता रहा। मैंने पतरस के बारे में सोचा, जिसने अपना पूरा जीवन परमेश्वर से प्रेम करते हुए बिता दिया और असंख्य शोधन और कठिनाइयाँ झेलीं, और अंततः उलटा सूली पर चढ़ा दिया गया। वह परमेश्वर से अत्यधिक प्रेम करता था और मृत्युपर्यंत उसके प्रति समर्पित रहा। उन दोनों ने परमेश्वर के लिए सुंदर गवाही दी और उसकी प्रशंसा पाई। परमेश्वर कहता है : “तुम लोगों के बीच अय्यूब कौन है? पतरस कौन है?” परमेश्वर के वचनों से मुझे उसकी अपेक्षाओं का बोध हुआ। मैंने सोचा : “मुझे अय्यूब और पतरस के समान होना चाहिए और परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए।” वह भजन गाने से मुझे प्रेरणा की एक नई खुराक मिली। ऐसा लगा जैसे परमेश्वर मेरे साथ है और मैंने तमाम कष्ट सहने और अपनी गवाही में दृढ़ रहने के लिए एक नया दृढ़ संकल्प महसूस किया। इसके बाद मैंने उस कैदी को बताया कि कैसे परमेश्वर सभी पर संप्रभुता से शासन करता है, कैसे बुरे काम करने वालों को दंडित करता है और परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की गवाही देते हुए अच्छे काम करने वालों को पुरस्कृत करता है। मैंने उसे लाजर और अमीर आदमी की कहानी भी सुनाई। मैंने उसे बताया कि जो लोग बुराई करते हैं, उन्हें प्रतिफल भुगतना होगा और मृत्यु के बाद दंड पाने के लिए उन्हें नरक में डाल दिया जाएगा। परमेश्वर सत्य व्यक्त करने और मानव-जाति के उद्धार का कार्य करने के लिए पहले ही आ चुका है, और लोगों को शुद्ध होकर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए खुद को पाप से मुक्त करने हेतु सत्य स्वीकारना चाहिए। यह सब सुनने के बाद कैदी ने आह भरी और कहा, “अब बहुत देर हो चुकी है! अगर मैं तुम जैसे किसी व्यक्ति से पहले मिला होता, तो इस मुकाम तक कभी नहीं पहुँचता।” एक अन्य साथी कैदी, जो एक सेवानिवृत्त शिक्षक था, ने भी अनुमोदन करते हुए कहा : “मैं तुम जैसे विश्वासियों से पहले भी मिल चुका हूँ। मैंने उन्हें कभी कोई गैरकानूनी काम करते हुए नहीं सुना।” फिर उसने गुस्से से टिप्पणी की, “चीन में न्याय या कानून के शासन जैसी कोई चीज नहीं है।” इसके बाद उस कोठरी के कैदियों ने मुझे पीटना बंद कर दिया। मैं जान गया कि यह परमेश्वर की दया का संकेत है और वह मेरी कमजोरी में मुझ पर रहम कर रहा है। परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता को कार्य करते देख मेरा विश्वास दोगुना हो गया।
दिसंबर 2004 में सीसीपी ने मुझे “सामाजिक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने वाला अवैध धर्मांतरण करवाने” का दोषी ठहराया और मुझे श्रम के माध्यम से तीन साल की पुनर्शिक्षा की सजा सुनाई। अपनी सजा पढ़कर सुनाए जाने पर मुझे बहुत गुस्सा आया—एक विश्वासी के रूप में मैं सही मार्ग पर चल रहा था और मैंने कभी कोई गैरकानूनी काम नहीं किया था, फिर भी सीसीपी ने मुझ पर तीन साल की सजा थोप दी थी। वह वास्तव में बुरी है! बाद में परमेश्वर के वचनों का एक अंश मेरे दिमाग में आया : “इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। गुप्त रूप से ईसाइयों का दमन और उत्पीड़न करते हुए, परमेश्वर के विश्वासियों को पीटते, यातना देते और कैद करते हुए सीसीपी धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का दावा करती है। वह धोखाधड़ी के जरिये यश पाना चाहती है और पूरी तरह से बुरी है! व्यक्तिगत रूप से सीसीपी द्वारा गिरफ्तारी और उत्पीड़न का अनुभव करके मैं उसका शैतानी, परमेश्वर-विरोधी सार पहचानने में सक्षम हो गया। इसने अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा संकल्प और भी मजबूत कर दिया।
जनवरी 2005 में मुझे एक श्रम-शिविर में ले जाया गया और छपाई-कार्यशाला में नियुक्त कर दिया गया। हमें प्रतिदिन लगभग 15 घंटे काम करना पड़ता था और अक्सर प्रतिदिन लगभग 3-4 घंटे ही आराम मिलता था। हर महीने हमें 10-15 दिन ओवरटाइम करना होता था और कभी-कभी तो रात भर काम करना पड़ता था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमारा छपाई का कोटा 3,000 से बढ़कर 15,000 शीट से ज्यादा हो गया। इस वजह से मुझे पूरे दिन छपाई की प्लेटें लानी-ले जानी पड़ती थीं और अक्सर एक दिन में 10 से बीसियों किलोमीटर तक की दूरी तय करनी होती थी। मैं अपने बाएँ हाथ में पेंट पकड़े हुए दाएँ हाथ से लगातार रंग लगाया करता था। पेंट की गंध से मुझे चक्कर आने लगे, आँखों में जलन होने लगी, नजर धुँधली हो गई और साँस फूलने लगी। पूरे दिन मैं अपने हाथों, पैरों और कंधों में लगातार असहनीय दर्द झेलता रहता, और इतना थक जाता कि खड़े-खड़े ही सो जाता। मुझे याद है, एक बार जब मुझे सर्दी लगने से बुखार हो गया था, तो मुझे इतना चक्कर आया कि मैं लगभग गिर ही गया। जब मैनेजिंग सुपरवाइजर ने यह देखा, तो यह कहते हुए कि मैं बस सुस्ताने की कोशिश कर रहा हूँ, वह बोला : “मेरे बिजली के डंडे के एक ही वार से तुम गति पकड़ लोगे।” मैंने एक सत्रह साल के लड़के के बारे में सोचा, जिसे कड़ी मेहनत न कर पाने के कारण बिजली का झटका दिया गया था। उसके कानों पर कई छाले हो गए थे और त्वचा के कई हिस्से दूसरे छालों से काले पड़ गए थे। आखिर जब यह उसकी सहन-शक्ति की सीमा से बाहर हो गया, तो उसने कीलें निगलकर खुद को मारने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मरा और उसे एक महीने के अतिरिक्त श्रम की सजा सुना दी गई। मुझे पता था कि ये लोग राक्षस हैं, जो हमें बेरहमी से मार डालेंगे और ये हमें कभी आराम नहीं करने देंगे, इसलिए मुझे बस अपने दाँत पीसकर काम करते रहना था। काम के अत्यधिक बोझ के कारण मेरी उंगलियाँ विकृत हो गईं और मेरी कोहनी में गिल्टी बन गईं, जो अंडे की जर्दी जितनी बढ़ गईं। मुझे गंभीर राइनाइटिस भी हो गया और अक्सर चक्कर आने और साँस की तकलीफ होने लगी। ज्यादा काम और नींद की कमी के मेल से मुझे इतने चक्कर आने लगे कि जब मैं चलता, तो काँपते हुए लड़खड़ा जाता और ऐसा लगता जैसे मैं किसी भी क्षण गिर जाऊँगा। हमारे काम के अलावा हमें महीने में दो बार सीसीपी-प्रायोजित ब्रेनवाशिंग सत्रों में भाग लेने के लिए भी मजबूर किया जाता। मुझे सीसीपी की भ्रांतियाँ और धर्म-विरोधी विचार अरुचिकर लगते और मुझे उन्हें सुनने की कोई इच्छा न होती। मैंने उस श्रम-शिविर में बहुत कष्ट सहे और मुझे भाई-बहनों के साथ सभा करने और परमेश्वर के वचन पढ़ने के दिन याद आते। मैं उस नारकीय, अमानवीय स्थिति से जल्द से जल्द बाहर निकलना चाहता था। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर मुझे शक्ति देने और उस माहौल से पार पाने में मदद करने के लिए कहा। बाद में परमेश्वर के वचनों का एक भजन मेरे दिमाग में आया जिसका शीर्षक था “पूर्ण कैसे किए जाएँ” : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। जब मैंने वह भजन गाया, तो मुझे परमेश्वर का इरादा समझ आ गया और मैंने इस कठिन परिस्थिति के प्रति समर्पित होने और परमेश्वर और अपनी आस्था पर भरोसा करने के लिए अत्यधिक उत्साहित और इच्छुक महसूस किया। श्रम-शिविर में मेरे दो से ज्यादा वर्षों में मुझे राइनाइटिस, ब्रॉन्काइटिस, रुमेटॉइड आर्थराइटिस, हर्निया और पेट की समस्याएँ हो गईं। एक बार जब मेरा हर्निया बिगड़ने लगा और एक श्रम शिविर अधिकारी मुझे चिकित्सा-क्लिनिक ले गया, तो मैंने देखा कि वहाँ कार्यरत चिकित्सक ने एक कैदी के नितंब में सुई तोड़ दी और फिर उसे निकालने के लिए खून रोकने वाली चिमटी इस्तेमाल की। यह देखकर मैं घबरा गया और फिर मेरी उस क्लिनिक में जाने की हिम्मत नहीं हुई। उस समय कुछ कदम चलते ही मेरे पेट के निचले हिस्से में दर्द होने लगता था। जब मैं आगे बढ़कर कुछ काम करने की कोशिश करता, तो लगता जैसे मेरा दम घुट जाएगा। जेल अधिकारी चिंतित थे कि अगर मैं मर गया तो उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाएगा, इसलिए वे मुझे ज्यादा गहन चिकित्सा-परीक्षण के लिए नगर श्रम-शिविर के अस्पताल ले गए। मेरी चिकित्सा-जाँच पूरी करने के बाद डॉक्टर ने हैरानी से कहा : “तुम कैसी मेहनत करते जा रहे हो? चिकित्सा-सहायता के लिए तुमने अब तक इंतजार कैसे किया! तुम्हारे हर्निया की सर्जरी होनी जरूरी है। साथ ही तुम्हारा लीवर और पित्ताशय दोनों थोड़े बढ़े हुए हैं, इसलिए अब तुम शारीरिक श्रम के लिए उपयुक्त नहीं हो। अगर तुमने काम करना जारी रखा, तो मर जाओगे।” लेकिन अधिकारियों ने मेरे लिए बस कुछ दवा ली और मुझे वापस श्रम-शिविर पहुँचा दिया। मैं उस समय बहुत चिंतित था, क्योंकि मुझे पता था कि मेरी सजा में अभी एक साल बाकी है और मुझे यकीन नहीं था कि मैं उसे पूरा कर पाऊँगा। इसके बाद मैंने सोचा : “दो साल के कारावास में मुझे पुलिस ने यातना दी है और कैदियों ने पीट-पीटकर लगभग मार डाला था, लेकिन इतना सब सहने के बावजूद मैंने कभी परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं किया। तो फिर मुझे इतनी गंभीर बीमारी कैसे हो गई? क्या इस श्रम-शिविर में मरना सचमुच मेरी नियति है?” अपनी पीड़ा के बीच मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! अब मैं क्या करूँ? कृपया मेरा मार्गदर्शन करो।” कुछ समय बाद परमेश्वर के वचनों का एक अंश मेरे दिमाग में आया : “तुम्हें पता होना चाहिए कि क्या तुम्हारे भीतर सच्चा विश्वास और सच्ची वफादारी है, क्या परमेश्वर के लिए कष्ट उठाने का तुम्हारा कोई इतिहास है, और क्या तुमने परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से समर्पण किया है। यदि तुममें इन बातों का अभाव है, तो तुम्हारे भीतर विद्रोहीपन और कपट अभी शेष हैं। चूँकि तुम्हारा हृदय ईमानदार नहीं है, इसलिए तुमने कभी भी परमेश्वर से स्वीकृति प्राप्त नहीं की है और प्रकाश में जीवन नहीं बिताया है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मैंने आत्मचिंतन किया। बीमारी और दर्द के दौरान मैं नकारात्मक और कमजोर हो गया था, यहाँ तक कि परमेश्वर के साथ बहस करने की भी कोशिश की। मैंने अपनी शपथ छोड़ दी थी और शिकायत और विद्रोह कर रहा था। मेरा समर्पण कहाँ था? मेरी गवाही कहाँ थी? मुझे याद आया कि जब मुझे सीसीपी सता रही और प्रताड़ित कर रही थी और मैं पीड़ित और कमजोर था, तो परमेश्वर के वचन ही थे जिन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया था और मुझे आस्था और शक्ति प्रदान की थी। मेरे वास्ते एक मार्ग खोलने के लिए परमेश्वर ने लोगों, परिस्थितियों और चीजों के माध्यम से भी काम किया था। वह हमेशा मेरी तरफ था और मेरी देखभाल और रक्षा कर रहा था। मेरे लिए उसका प्रेम बहुत बड़ा था और मैं जान गया था कि मुझे उसे गलत समझना और शिकायत करना बंद करना होगा। आगे चाहे जो भी यातना या कष्ट आएँ, चाहे मैं जिऊँ या मरूँ, मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहना होगा! एक महीने बाद पुलिस ने मुझे एक अलग काम सौंपा, जिसमें मुझे उतना नहीं चलना पड़ता था और मेरे स्वास्थ्य में काफी सुधार हो गया। मैंने अपने दिल की गहराई से परमेश्वर को उसके प्रेम के लिए धन्यवाद दिया।
श्रम-शिविर में रहते हुए मैं अक्सर चुपचाप भजन गा लिया करता था। जिस भजन का मुझ पर विशेष रूप से गहरा प्रभाव पड़ा, उसका शीर्षक था “तुमने परमेश्वर के प्रति क्या समर्पित किया है?” यह इस तरह है : “अब्राहम ने इसहाक को बलिदान किया—तुमने किसे बलिदान किया है? अय्यूब ने सब-कुछ बलिदान किया—तुमने क्या बलिदान किया है? इतने सारे लोगों ने अपना जीवन दिया है, अपने सिर कुर्बान किए हैं, अपना खून बहाया है, सही राह तलाशने के लिए। क्या तुम लोगों ने वह कीमत चुकाई है? उनकी तुलना में तुम इस महान अनुग्रह का आनंद लेने के बिल्कुल भी योग्य नहीं हो। तुम लोग खुद को बहुत ऊँचा मत समझो। तुम्हारे पास शेखी बघारने के लिए कुछ नहीं है। ऐसा महान उद्धार, ऐसा महान अनुग्रह तुम लोगों को मुफ्त में दिया जा रहा है। तुम लोगों ने कुछ भी बलिदान नहीं किया है, फिर भी तुम अनुग्रह का मुफ्त आनंद उठा रहे हो। क्या तुम लोगों को शर्म नहीं आती?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ)। हर बार यह भजन गाने के बाद मैं कृतज्ञता से भरा हुआ महसूस करता। मेरी दुर्दशा सभी युगों के संतों की तुलना में कुछ भी नहीं थी। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके उन सभी ने परमेश्वर के लिए सुंदर गवाही दी और उसका अनुमोदन पाया। परमेश्वर अब मुझे गवाही देने का एक ऐसा ही अवसर दे रहा था—यह मेरे लिए उसका प्रेम था! परमेश्वर के वचन ही थे, जिन्होंने मुझे लगातार उत्साहित किया और श्रम-शिविर में उस लंबे और कठिन कारावास के दौरान मेरा मार्गदर्शन किया। ऐसी भयानक परिस्थितियों में परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के बिना मैं इसे झेल नहीं सकता था।
सितंबर 2007 में मैंने अपनी सजा पूरी कर ली और श्रम-शिविर से रिहा कर दिया गया। मेरे बाहर जाते समय उन्होंने मुझे निर्देश दिया कि घर लौटने के बाद मैं अपने स्थानीय थाने में रिपोर्ट करूँ, वरना मेरा आवासीय पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। उन्होंने मुझे धमकाते हुए कहा कि अगर मुझे दोबारा गिरफ्तार किया गया, तो मुझे और भी भारी सजा मिलेगी। रिहा होने के बाद मैं घर से दूर चला गया, ताकि परमेश्वर पर विश्वास करना और अपना कर्तव्य निभाना जारी रख सकूँ। सीसीपी द्वारा गिरफ्तार कर सताए जाने से मैंने उसका राक्षसी परमेश्वर-विरोधी सार स्पष्ट रूप से पहचान लिया था। जितना ज्यादा उन्होंने मुझे सताया, उतना ही ज्यादा मैं परमेश्वर का अनुसरण करने, एक सृजित प्राणी के रूप में अपनी जिम्मेदारी पूरी करने और परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने हेतु अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए दृढ़ हो गया। परमेश्वर का धन्यवाद!
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