मुश्किलें सहकर, परमेश्वर के लिए मेरा प्रेम और भी मज़बूत हुआ है

22 नवम्बर, 2019

लेखक: झोऊ रुई, जियांगशी प्रांत

मेरा नाम झोउ रुई है, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का ईसाई हूँ। जब से मैंने होश संभाला, तब से मैंने अपने माता-पिता को दो जून की रोटी कमाने के लिए दिन-रात खेतों में कड़ी मेहनत करते देखा। जी-तोड़ कोशिशों के बावजूद, वे साल भर में शायद ही कुछ कमा पाते थे, इसलिए हमारा परिवार हमेशा बेहद गरीबी में ही जीता था। मैं जब भी सम्पन्न और प्रभावशाली लोगों को देखता, जो बिना मेहनत किए बड़े आराम की ज़िंदगी जीते थे, तो मुझे उनसे ईर्ष्या होने लगती थी। मैंने एक संकल्प किया: बड़ा होकर मैं निश्चित रूप से एक कामयाब करियर बनाऊँगा या कोई सरकारी ओहदा हासिल करूँगा ताकि मेरे परिवार को गरीबी और पिछड़ेपन से निजात मिले और मेरे माता-पिता भी अमीरों का जीवन जी सकें। हालाँकि, मैंने कई वर्षों तक इस तरह के जीवन के लिए संघर्ष किया, फिर भी मैं जो चाहता था वह पाने में कामयाब नहीं हो पाया; मैं गरीबी की ज़िंदगी ही जीता रहा। मुझे यही चिंता सताती रहती कि मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है जो मैं लोगों को दिखा सकूँ कि मैं कितना व्यस्त रहता हूँ, धीरे-धीरे ज़िंदगी पर से मेरा भरोसा उठता चला गया। जिस पल मेरा दिल टूटा और मैं ज़िंदगी से मायूस हो गया, तभी मुझे अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उद्धार हासिल हुआ। उनके वचनों से मैंने कुछ सत्य ग्रहण किए, मुझे दुनिया में इंसान के दुखों का मूल समझ में आया। मुझे यह भी समझ में आया कि एक सार्थक और लाभप्रद जीवन जीने के लिए लोगों को अपनी ज़िंदगी किस तरह से जीनी चाहिए। हालाँकि अभी भी दुविधा और बेबसी के बादल छँटे नहीं थे, लेकिन मुझे अपने जीवन की एक दिशा मिल गई थी। निराशा और खिन्नता को पीछे छोड़ते हुए, मुझे एक नई ऊर्जा और जीवन-संचार की अनुभूति हुई। उसके बाद, मैंने जगह-जगह जाकर, पूरी ऊर्जा परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार के उपदेश देने लगा दी ताकि जो लोग अभी भी दुख और बेबसी में जी रहे थे, उन्हें भी अत्यंत दुर्लभ उद्धार की प्राप्ति हो सके। लेकिन सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के दौरान मुझे जिसकी उम्मीद नहीं थी वह हुआ, चीनी सरकार ने मुझे दो बार पकड़ा, मुझे बुरी तरह से सताया गया, मुझ पर अमानवीय अत्याचार किए गए... लेकिन इस भयानकता की काल-कोठरी में भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरा साथ नहीं छोड़ा; उनके वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी, मुझे शैतान की अंधेरी ताकतों पर विजय दिलाई और परमेश्वर के प्रति मेरे प्रेम को मज़बूत किया।

जून 2003 की बात है; मैं और दो भाई सुसमाचार के प्रचार के लिए एक गाँव में गए थे, तभी किसी दुष्ट व्यक्ति ने हमारी शिकायत कर दी। पांच-छह पुलिसकर्मी पुलिस की तीन गाड़ियों में भरकर आए और बिना कोई सवाल-जवाब किए उन्होंने हमारे हाथों में हथकड़ी डाल दी। धक्का-मुक्की करके उन्होंने हमें गाड़ी में ठूँस दिया और सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो में ले गए। गाड़ी में मुझे ज़रा भी डर नहीं लगा। मेरा हमेशा ऐसा मानना था कि सुसमाचार के प्रचार-प्रसार का मकसद लोगों का उद्धार करना है, इसलिए हम कोई गलत काम तो कर नहीं रहे थे; ब्यूरो पहुँचने के बाद, मैं उन्हें सारी बात बता दूँगा, और पुलिस हमें छोड़ देगी। लेकिन मुझे नहीं पता था कि चीनी सरकार की पुलिस गुंडे-बदमाशों और तानाशाहों से भी ज़्यादा क्रूर और बर्बर है। ब्यूरो पहुँचने के बाद, पुलिस ने हमें मौका ही नहीं दिया कि हम अपनी बात कह पाएँ, उससे पहले ही वे हमें पूछ-ताछ के लिए अलग-अलग ले गए। जैसे ही मैं पूछ-ताछ कक्ष में पहुँचा, एक पुलिसकर्मी मुझ पर चिल्लाया, "कम्युनिस्ट पार्टी की नीति है 'जो अपना अपराध स्वीकार कर ले, उसके साथ नरमी बरतो, और जो विरोध करे, उसके साथ सख़्ती।' बात समझ में आई?" और फिर वह मुझसे निजी जानकारी लेने लगा। जब वह मेरे जवाबों से संतुष्ट नज़र नहीं आया, तो एक दूसरा पुलिसकर्मी मेरे पास आकर गुर्राया, "हुँह। लगता है सीधी उंगली से घी नहीं निकलेगा। तुझे ज़रा दूसरे ढंग से समझाना पड़ेगा, फिर देखते हैं तू सच उगलता है या नहीं।" फिर उसने हवा में अपना हाथ लहराया और बोला, "कुछ ईंटें लाओ, अभी इसका दिमाग ठीक करते हैं!" जैसे ही उसने यह बात कही, दो पुलिसकर्मी लपककर आए, एक पुलिसकर्मी मेरे हाथ को झटका देकर कंधे से ऊपर ले गया और पीछे की तरफ़ मोड़ दिया, दूसरे पुलिसकर्मी ने मेरे दूसरे हाथ को ऊपर उठाया और पीछे करके ज़बर्दस्ती दोनों हाथों में हथकड़ी डाल दी। असह्य दर्द से मेरी चीख निकल गई, एक पल को लगा जैसे मेरे हाथ ही टूट जाएँगे। मेरे जैसे कमज़ोर इंसान के लिए ऐसी यातना बर्दाश्त करना कैसे संभव था? अगले ही पल मैं ज़मीन पर गिर पड़ा। यह देखकर उस दुष्ट पुलिसकर्मी ने मेरी हथकड़ी को ज़ोर से ऊपर की ओर खींचा, और मेरे हाथों और कमर के बीच ईंटें फँसा दी। अचानक, मेरे सीने में भयानक दर्द हुआ, लगा जैसे हज़ारों चींटियाँ मेरी हड्डियों को चबा रही हों। दर्द की इंतिहा में, मैंने पूरी शक्ति से परमेश्वर को पुकारा: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मुझे बचाइये। हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मुझे बचाइये...।" हालाँकि तब तक मुझे परमेश्वर के अंत के दिनों के उद्धार को स्वीकार किए हुए केवल तीन महीने ही हुए थे, मैंने उनके बहुत अधिक वचन आत्मसात नहीं किए थे, मैंने केवल कुछ ही सत्यों को समझा था, फिर भी मैं लगातार परमेश्वर से याचना करता रहा, उन्होंने मेरे अंदर एक दृढ़-संकल्प पैदा कर दिया: मुझे परमेश्वर की गवाही देनी है; मुझे किसी भी स्थिति में शैतान के आगे हार नहीं माननी है! उसके बाद, मैंने अपने दाँत कसकर भींच लिए और एक मैं शब्द नहीं बोला। घबराहट और उत्तेजना में, पुलिसकर्मी ने मुझे वश में करने के लिए, एक और चाल चली: उन्होंने फ़र्श पर दो ईंटें रखकर मुझे उन ईंटों पर घुटनों के बल बैठने को कहा; साथ ही, उन्होंने मेरी हथकड़ियों को ज़ोर से खींचा। मुझे लगा मेरी बाज़ुएँ उखड़ गई हैं। कुछ देर तक तो मैं उन ईंटों पर घुटनों के बल बैठा रहा और फिर बेजान-सा फ़र्श पर लुढ़क गया। पुलिसकर्मी ने बुरी तरह से मेरी हथकड़ियाँ खींचीं और मुझे फिर से ज़बर्दस्ती बैठा दिया। इस तरह से वे लोग मुझे लगातार यातना देते रहे। बेइंतिहा गर्मी थी, मैं दर्द और गर्मी से परेशान था; चेहरे से लगातार पसीना टपक रहा था। इस सबको झेलना इतना मुश्किल हो रहा था कि मुझे साँस लेने में भी दिक्कत होने लगी, मुझे लगभग मूर्च्छा आ गई। उसके बावजूद, पुलिसकर्मियों का गिरोह मेरी बदकिस्मती के मज़े ले रहा था। "मज़ा आ रहा है?" एक ने कहा। "बेटा, अगर ज़बान नहीं खोली, तो उसे खुलवाने के हमारे पास और भी बहुत से तरीके हैं!" उन्होंने जब देखा कि मुझ पर उनकी किसी बात का असर नहीं हो रहा, तो वे कुंठा से भन्ना गए और बोले, "अच्छा, तो लगता है तुझे पूरी अभी खुराक मिली नहीं है? और ले!" ... दो-तीन घंटे के इस ज़ुल्म के बाद, मेरा पूरा बदन दर्द से कराहने लगा, मेरे जिस्म में ज़रा-सी भी ताकत नहीं बची थी। मैं फ़र्श पर गिर पड़ा, मेरे अंदर हिलने तक की शक्ति नहीं थी, मेरा मल-मूत्र का नियंत्रण भी जाता रहा। इन पुलिसकर्मियों के पाशविक अत्याचार के मद्देनज़र, मुझे अपने आप पर बहुत कोफ़्त हुई कि मैं पहले इतना अंधा और अज्ञानी था; मैं अनाड़ियों की तरह मान बैठा कि ब्यूरो (पीएसबी) ऐसी जगह होगी जहाँ विवेक-बुद्धि से काम लिया जाएगा, जहाँ पुलिसकर्मी इंसाफ़ करेंगे और मुझे छोड़ दिया जाएगा। मुझे यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि वे लोग इतने दुष्ट और क्रूर होंगे कि बिना किसी सबूत के मुझसे अपराध कुबूल करवाने की कोशिश करेंगे, मुझे यातना दे-देकर बिल्कुल मौत के मुहाने पर ले आएँगे। वाकई इनकी दुष्टता की कोई हद नहीं है! मैं फ़र्श पर बिखरा पड़ा था, चाहकर भी शरीर के किसी अंग को हिला नहीं पा रहा था। मुझे कोई अनुमान नहीं था कि ये लोग मुझे आगे और क्या यातनाएँ देंगे, न मैं यह जानता था कि मैं यह सब और कितनी देर तक झेल पाऊँगा। मैं उत्पीड़न और बेबसी में डूबा बस इतना कर सकता था कि मैं परमेश्वर से लगातार याचना करूँ कि वे मुझे यह सब बर्दाश्त करने की शक्ति दें। परमेश्वर ने मेरी याचना सुन ली, मुझ पर करुणा की, उनकी कृपा से मुझे उनके ये वचन याद आ गए: "अब एक महत्वपूर्ण समय है। निराश या हतोत्साहित न हो। तुम्हें हर चीज़ में आगे की ओर देखना चाहिए...। जब तक तुम में एक भी सांस बची हो, अंत तक दृढ़ रहो; केवल यही प्रशंसा के योग्य होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 20")। परमेश्वर के वचनों से मुझे अपार विश्वास और शक्ति मिली। कितनी सच्चाई थी उनमें! चूँकि मैं प्रकाश और धार्मिकता के मार्ग पर चल रहा था, मेरे अंदर उसी मार्ग पर चलते रहने का विश्वास होना चाहिए; अगर साँसों की डोर टूटने भी लगे, तो मुझे अंत तक डटे रहना चाहिए! परमेश्वर के वचनों में जीवन-शक्ति भरी थी, उन्होंने मुझे अंत तक इन दुष्ट शैतानों से लड़ने का विश्वास और हौसला दिया। धीरे-धीरे मेरी शारीरिक शक्ति थोड़ी-बहुत वापस आने लगी। लेकिन उन दुष्ट पुलिसकर्मियों की पूछ्ताछ जारी रही, वे लोग मेरे पैरों को क्रूरता से तब तक कुचलते रहे जब तक कि वो चकनाचूर नहीं हो गए। ख़ैर, फिर मुझे दर्द महसूस होना बंद हो गया। मैं जानता था कि यह परमेश्वर के अद्भुत कर्मों के कारण ही था; उन्होंने मुझ पर दया करके और मेरी दुर्बलता को देखते हुए, मेरी पीड़ा को कम कर दिया था। बाद में, उन दुष्ट पुलिसकर्मियों ने "आम जन-जीवन को अस्तव्यस्त करने" का इल्ज़ाम लगाकर हमें हिरासत में ले लिया। उस रात, उन्होंने हम में से हर एक को डेढ़-डेढ़, दो-दो किलो के सीमेंट के पत्थरों से बाँध दिया। हम लोग दूसरे दिन शाम तक उसी ज़ंजीर से बँधे रहे, और उसके बाद हमें ले जाकर एक स्थानीय कारावास में बंद कर दिया गया।

कारावास ऐसा था जैसे किसी ने हमें नरक में धकेल दिया हो। सुधार अधिकारियों ने मुझे लाइट बल्बों की लड़ियों को जोड़ने के लिए विवश किया। पहले दिन तो मुझे छ्ह हज़ार लड़ियों को जोड़ने का काम दिया गया, उसके बाद हर रोज़ बढ़ते-बढ़ते यह संख्या बारह हज़ार तक पहुँच गई। इतने ज़्यादा काम की वजह से मेरी उँगलियाँ इतनी घिस गईं कि उनमें से हड्डियाँ झाँकने लगीं, फिर भी काम था कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता था। लेकिन कोई विकल्प न होने की वजह से मैं दिन-रात काम जुटा रहता था। कभी-कभी तो यह बर्दाश्त के बाहर हो जाता था, मन करता था कि एक झपकी ले लूँ, लेकिन अगर उनकी नज़र पड़ जाती, तो वे बुरी तरह से पीटते। यहाँ तक कि ये सुधार अधिकारी वहाँ के बदमाश कैदियों को चिल्लाकर कहते, "अगर ये बंदी काम न करें या ठीक से काम न करें तो ज़रा इनको एक पेंसिलिन का डोज़ दे देना।" पेंसिलिन के डोज़ से इनका मतलब था कि इनके पेट के निचले हिस्से पर घुटने से मार देना, जब दर्द से दोहरे हो जाएँ, तो उनकी कमर के बीचोंबीच कोहनी से ठोक देना, और फिर ऐड़ी से इनके पाँव कुचल देना। इस क्रूर तरीके से कभी-कभी कोई उसी वक्त बेहोश हो जाता, यहाँ तक कि कोई-कोई तो ज़िंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाता। इस राक्षसी जेल में, मैं हर रोज़ जी-तोड़ मेहनत करता, उसके बावजूद क्रूर मार सहनी पड़ती थी। ऊपर से, तीन वक्त का खाना ऐसा कि सूअर-कुत्ते भी न खाएँ: हम जो सब्ज़ी खाते थे वो बिना पकी मूली और दलदली पत्ता गोभी की बनी होती थी (उनमें भी सड़ी हुई पत्तियाँ, जड़ें और कीचड़-मिट्टी मिली रहती थी), साथ में डेढ़ सौ ग्राम चावल और एक कप वही पानी जिसका इस्तेमाल चावल धोने के लिए किया गया था। दिन भर मैं भूख से तड़पता रहता था। ऐसे में, बस सर्वशक्तिमान परमेश्वर का ही आसरा था; जब कभी मुझे पीटा जाता, तो मैं तुरंत परमेश्वर से याचना करता कि वे मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान करें ताकि मैं शैतान के प्रलोभनों पर काबू पा सकूँ। बीस दिनों के भयंकर अत्याचार और उत्पीड़न के बाद, मेरा शरीर इतना कृशकाय हो गया था कि पहचान में भी नहीं आता था: हाथ-पाँव में ताकत नहीं बची थी, मैं सीधा खड़ा नहीं हो पाता था, हाथों में इतनी शक्ति भी शेष नहीं थी कि उन्हें फैला सकूँ। फिर भी, वहाँ के सुरक्षाकर्मियों को मेरी हालत से कोई लेना-देना नहीं था, मेरे परिजनों ने मुझे जो कुछ युआन भेजे थे, उन्हें भी वे लोग खा गए। जैसे-जैसे वक्त गुज़रता गया, मेरी हालत और भी खराब होती गई; मैं इतना कमज़ोर हो गया कि ख़ुद से ही शिकायत करने लगा, "इस देश में परमेश्वर में आस्था रखने वाले व्यक्ति को इतने दुख क्यों उठाने पड़ते हैं? मेरा सुसमाचार के प्रचार का कारण बस इतना ही तो है कि लोग परमेश्वर की शरण में आएँ और परमेश्वर से उद्धार प्राप्त करें। मैंने तो कोई अपराध भी नहीं किया...।" मैं इस पर जितना सोचता, मेरे लिए इसे सहन करना उतना ही मुश्किल होता, मुझे लगता मेरे साथ नाइंसाफ़ी हुई है। मैं बस परमेश्वर से निरंतर प्रार्थना और याचना ही कर सकता था कि वे मुझ पर दया करें और मुझे बचाएँ। मेरी दुर्दशा और बेबसी के बीच, परमेश्वर की कृपा से मुझे उनके कथनों का एक भजन याद आया: "संभवतः तुम सबको ये वचन स्मरण होंगे: 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' ये वही वचन हैं जिन्हें परमेश्वर अंतिम दिनों में पूरा करेगा। और ये वचन उन लोगों में पूरे होंगे जो बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक पीड़ित किये गए हैं, उस देश में जहां वह रहता है। यह बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, इसलिए इस देश में, जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें अपमानित किया जाता और सताया जाता है। इस कारण ये वचन तुम्हारे समूह के लोगों में वास्तविकता बन जाएंगे। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना बहुत कठिन है, परन्तु ऐसी कठिनाइयों के बीच में अपनी बुद्धि और अद्भुत कामों को प्रकट करने के लिए परमेश्वर अपने कार्य के एक चरण को पूरा करता है। परमेश्वर इस अवसर के द्वारा इस समूह के लोगों को पूर्ण करता है। इस अशुद्ध देश में लोगों की पीड़ा, उनकी क्षमता और उनके पूरे शैतानी स्वभाव के कारण परमेश्वर अपना शुद्धिकरण का कार्य करता और जीतता है ताकि इससे वह महिमा प्राप्त करे और उन्हें भी प्राप्त करे जो उसके कार्यों के गवाह बनते हैं। परमेश्वर ने इस सूमह के लोगों के लिए जो बलिदान किये हैं, यह उन सभी का संपूर्ण महत्व है" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "परमेश्वर ने बनाया चीन में एक विजयी समूह")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अपार ढाँढ़स और हौसला दिया, उनकी मदद से मैं परमेश्वर की इच्छा को समझ पाया। चूँकि हम एक ऐसे देश में परमेश्वर में आस्था रखते हैं जो नास्तिक है, इसलिए हमारी नियति यही है कि हम दुष्ट शैतान के दमन और उत्पीड़न को झेलें; लेकिन इस पीड़ा से गुज़रने की अनुमति स्वयं परमेश्वर ने दी है, इसलिए इसका एक मोल है, एक सार्थकता है। इन्हीं उत्पीड़न और कष्टों के ज़रिए परमेश्वर हमारे अंदर सत्य का आरोपण करते हैं, जिसके फलस्वरूप हम उनकी प्रतिज्ञा को ग्रहण करने के काबिल बन सकें। यह "कष्ट" परमेश्वर का आशीष है, इस कष्ट के ज़रिए परमेश्वर के प्रति निष्ठावान रहना शैतान पर परमेश्वर की विजय की गवाही है, और यह एक दमदार गवाही भी है कि मैं परमेश्वर को प्राप्त हो गया हूँ। "चूँकि" मैंने सोचा, "आज मैं परमेश्वर का अनुसरण करता हूँ, इसलिए मुझे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों ऐसा उत्पीड़न सहना पड़ता है, यह परमेश्वर का मुझ पर विशेष उपकार है, इसलिए उचित यह है कि मुझे परमेश्वर के आयोजन के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए, मुझे अटल मन की शांति के साथ प्रसन्नतापूर्वक इसका सामना और इसे स्वीकारना चाहिए।" मुझे परमेश्वर का एक और कथन याद आया जो उन्होंने अनुग्रह के युग में बोला था: "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:10)। उस पल, मेरे अंदर और भी अधिक विश्वास और शक्ति पैदा हो गई: शैतान और उसके गुर्गे मुझे चाहे जितना सताएँ, लेकिन मैं उनके आगे हार नहीं मानूँगा, मैंने शपथ ली कि मैं परमेश्वर की गवाही दूँगा और उन्हें संतुष्ट करूँगा! अधिकार और सामर्थ्य से सम्पन्न, परमेश्वर के वचनों ने मेरे अंदर की वीरानी और बेबसी को दूर कर दिया था, और मैं जिस भयंकर शारीरिक कष्ट से गुज़र रहा था, उसे कम कर दिया। उन वचनों ने मुझे अंधकार में रोशनी दिखाई, मेरा जोश और भी बढ़ गया जो अब झुकने को तैयार नहीं था।

बाद में, कोई सबूत न होने के बावजूद, चीनी सरकार ने मुझे एक साल की सश्रम पुनर्शिक्षा की सज़ा दी। जब पुलिस मुझे लेबर कैम्प में लेकर गई, तो कारावास के सुरक्षाकर्मियों ने देखा कि मैं सिर्फ हड्डियों का ढाँचा रह गया हूँ, और कहीं से भी मैं इंसान नज़र नहीं आ रहा हूँ, तो उन्होंने इस डर से कि कहीं मैं मर न जाऊँ, मुझे स्वीकार करने की उनकी हिम्मत नहीं दिखाई, उसके बाद मुझे नज़रबंदी गृह वापस ले जाने के अलावा पुलिसकर्मियों के पास और कोई चारा नहीं था। तब तक दुष्ट पुलिस मुझे इस हद तक यातना दे चुकी थी कि मैं खाना भी नहीं खा पाता था, लेकिन उसके बावजूद उन्होंने मेरा इलाज नहीं कराया, बल्कि वे बोले कि मैं नाटक कर रहा हूँ। जब उन्होंने देखा कि मैं खाना नहीं निगल पा रहा हूँ, तो उन्होंने मेरे मुँह को खुलवाया, और ज़बर्दस्ती उसमें खाना ठूँसना शुरू कर दिया। जब उन्होंने देखा कि मुझे निगलने में दिक्कत हो रही है, तो उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया। कुल मिलाकर तीन बार उन्होंने मेरे मुँह में ज़बर्दस्ती खाना ठूँसा और मुझे कपड़े की गुड़िया की तरह पीटा। जब उन्होंने देखा कि वे लोग किसी भी तरह मुझे और खाना नहीं खिला पा रहे हैं, तो मुझे हस्पताल ले जाने के अलावा उनके पास और कोई विकल्प नहीं था। जब जाँच हुई तो पता चला कि मेरी नसें सख़्त हो गई हैं; खून गाढ़ा होकर लेई बन गया है, और ठीक से उसका प्रवाह नहीं हो पा रहा है। डॉक्टर ने कहा, "अगर इस आदमी को और ज़्यादा हिरासत में रखा गया, तो यह पक्का मर जाएगा।" उसके बावजूद, घिनौनी दुष्ट पुलिस मुझे छोड़ने को तैयार नहीं थी। बाद में, जब दूसरे कैदियों ने देखा कि मेरी ज़िंदगी एक तिनके के सहारे अटकी हुई है, तो उन्होंने कहा कि मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं है, मैं मृतप्राय हो गया हूँ। तब तक मैं भयंकर यंत्रणा से गुज़र रहा था; मुझे लगा कि अभी मेरी उम्र ही क्या है, अभी हाल ही में मैंने परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार किया है, अभी तो आनंद लेने के लिए बहुत कुछ है, अभी तो मैंने परमेश्वर की महिमा के दिन को भी नहीं देखा है। मैंने सचमुच अपने आपको यातना दे-देकर मार दिए जाने के लिए चीनी सरकार के हवाले नहीं किया था। मुझे इस पत्थर-दिल, दुष्ट पुलिस से घृणा हो गई थी, इस विकृत, स्वर्ग-विरोधी, दुष्कर्मी, शैतानी चीनी सरकार के शासन से और भी ज़्यादा नफ़रत हो गई थी। इसने मुझे सच्चे परमेश्वर का अनुसरण करने की मेरी आज़ादी से वंचित किया था, मुझे मौत के मुँह में धकेल दिया था और मुझे सच्चे परमेश्वर की आराधना नहीं करने दे रही थी। कम्युनिस्ट पार्टी बुरी तरह से परमेश्वर का विरोध करती है, ईसाइयों को क्रूरता से यातना देती है, परमेश्वर के हर विश्वासी को ख़त्म करके, चीन को एक परमेश्वर-विहीन क्षेत्र बना देना चाहती है। यह दुष्ट शैतान इस हद तक परमेश्वर की विरोधी है जिसके सुधार की कोई गुँजाईश नहीं। मैं इसे कभी माफ़ नहीं कर सकता। मैंने यह शपथ ले ली कि अगर इनके अत्याचारों से मेरी मौत भी हो जाए, तो भी मैं इस शैतान से न तो कोई समझौता करूँगा, न ही उससे हार मानूँगा! दुख और रोष की स्थिति में, मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए: "दिल में हज़ारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, पापमयता की सहस्राब्दियाँ दिल पर अंकित हैं—यह कैसे घृणा को प्रेरित नहीं करेगा? परमेश्वर का बदला लो, अपने शत्रु को पूरी तरह समाप्त कर दो, उसे अब अनियंत्रित ढंग से फैलने की अनुमति न दो, और उसे अपनी इच्छानुसार परेशानी पैदा मत करने दो! यही समय है: मनुष्य अपनी सभी शक्तियों को लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए अपने सभी प्रयासों को समर्पित किया है, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे को तोड़ सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अनुमति दे कि वे अपने दर्द से उठें और इस दुष्ट प्राचीन शैतान को अपनी पीठ दिखाएं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके, मैंने चीनी सरकार का भयानक शैतानी चेहरा और भी साफ़ तौर पर देखा, और इस बात को जाना कि उस पल, मैं ज़िंदगी और मौत, अच्छाई और बुराई के दरम्यान एक आध्यात्मिक संघर्ष का सामना कर रहा था। चीनी सरकार का इस तरह से मुझ पर अत्याचार करने का मकसद था मुझे परमेश्वर को त्यागने और उनसे धोखा करने के लिए मजबूर करना, लेकिन परमेश्वर ने मुझे याद दिलाया था कि इस सबके बीच मुझे मज़बूती से खड़े रहना है, मौत के पँजे से छूटना है, और परमेश्वर के लिए विजयी गवाही देनी है। मैं नकारात्मकता में नहीं जा सकता था; मुझे पूरी कर्मठता के साथ परमेश्वर से सहयोग करना था, उनके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना था। मुझे पतरस की तरह, मौत तक समर्पित रहना था, आख़िरी साँस तक अडिग रहना था, परमेश्वर के लिए शानदार गवाही देनी थी और उनके दिल को सुकून पहुँचाना था। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में था, शैतान भले ही मेरे शरीर को हानि पहुँचाए, टुकड़े- टुकड़े कर दे, लेकिन वो मेरी आत्मा को नष्ट नहीं कर सकता, परमेश्वर में मेरी आस्था रखने के निश्चय में बाधा पहुँचाने और मुझे सत्य का अनुसरण करने से रोकने की तो बात ही क्या। मैं उस दिन ज़िंदा रहता या न रहता, लेकिन मेरी इच्छा थी कि मैं अपना जीवन परमेश्वर को सौंप दूँ और उनके आयोजनों को स्वीकार कर लूँ; मुझे बोटी-बोटी करके मार भी दिया जाता, तो भी मैं शैतान के आगे समर्पण न करता! जब मैं अपनी जान देने को तैयार हुआ और परमेश्वर की गवाही देने का निश्चय किया, तो परमेश्वर ने मुझे खाना खिलाने के लिए दूसरे कैदियों को उकसाकर मेरे लिए रास्ता निकाला। जब ऐसा हुआ, तो मैं जोश से भर गया; दिल की गहराई में मुझे पता था कि परमेश्वर मेरे साथ हैं। वे लगातार मुझ पर निगाह रखे हुए थे, मेरी रक्षा कर रहे थे, मेरी कमज़ोरियों के प्रति सहानुभूति दिखा रहे थे, मेरे लिए हर चीज़ की व्यवस्था कर रहे थे। मेरे जिस्म के तहस-नहस हो जाने के बावजूद, शैतानों की उस अंधेरी मांद में, अब मुझे अपने दिल के अंदर उतनी भयंकर पीड़ा और तकलीफ़ महसूस नहीं हो रही थी। उसके बाद, उन दुष्ट पुलिसकर्मियों ने मुझे पंद्रह दिन और कारावास में रखा, लेकिन जब उन्होंने देखा कि मैं ज़िंदगी की आख़िरी साँसें गिन रहा हूँ, और किसी भी पल मुझे मौत आ सकती है, तो मुझे रिहा करने के अलावा अब उनके पास और कोई चारा नहीं था। मेरा वज़न पहले पचास किलो था, लेकिन दो महीने के कारावास में, मैं यातनाएँ सह-सहकर मात्र हड्डियों का ढाँचा रह गया था। अब मेरा वज़न मुश्किल से पच्चीस-तीस किलो था, और मेरी ज़िंदगी अधर में लटक रही थी। उसके बावजूद, ये दरिंदे मुझ पर दस हज़ार युआन का जुर्माना ठोकना चाहते थे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि इतनी बड़ी रकम चुकाने की मेरे घरवालों की हैसियत नहीं है, तो मेरे खाने के खर्चे के तौर पर उन्होंने छह सौ युआन माँगे, वो रकम चुकाने के बाद ही उन लोगों ने मुझे रिहा किया।

चीनी सरकार के हाथों इस अमानवीय अत्याचार और क्रूर व्यवहार के कारण मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं मुश्किल से नरक के द्वार से बच पाया हूँ। मैं परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा की बदौलत ही जेल से ज़िंदा वापस आ पाया; इसके ज़रिए परमेश्वर मुझे अपना महान उद्धार दिखा रहा था। परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचते हुए, मैं बहुत ज़्यादा भावुक हो गया, मैंने परमेश्वर के अनमोल वचनों को और भी गहराई से समझा। उसके बाद, मैंने रोज़ाना उनके कथनों को पढ़ा, और अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना की। धीरे-धीरे, मैंने परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में इंसान को बचाने के लिए किए जा रहे कार्य की अधिक से अधिक समझ हासिल की। थोड़े समय के बाद, परमेश्वर की देखरेख में, मेरा शरीर धीरे-धीरे ठीक हो गया, और मैंने फिर से सुसमाचार का प्रसार करना शुरू कर दिया और परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देने लगा। लेकिन जब तक शैतानी शासन कायम है, तब तक यह परमेश्वर के कार्य को बाधित और नष्ट करने की कोशिश करना बंद नहीं करेगा। बाद में, चीनी सरकार की पुलिस फिर से पागलों की तरह मेरा पीछा करने और गिरफ्तार करने की कोशिश करने में लग गई।

नवंबर 2004 में एक बार, शीतलहर चल रही थी, हवा में मोटे-मोटे हिमकण तैर रहे थे। जब हम कुछ भाई-बहन सुसमाचार का प्रचार-प्रसार कर रहे थे, तो सीसीपी पुलिस गुप्त रूप से हमारा पीछा कर रही थी। उस शाम 8 बजे, हम एक सभा कर रहे थे, तभी हमने ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाने और चिल्लाने की आवाज़ सुनी: "दरवाज़ा खोलो! दरवाज़ा खोलो! हम लोग सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो से आए हैं! अगर तुम लोगों ने दरवाज़ा नहीं खोला, तो हम दरवाज़ा तोड़कर घुस जाएँगे! ..." हमें सोचने का भी वक्त नहीं मिला, हमने जल्दी-जल्दी वीसीडी प्लेअर, पुस्तकें और अन्य सामग्री छिपा दी। तभी, पांच-छह पुलिसकर्मी डाकू-लुटेरों की तरह दरवाज़ा तोड़कर धड़धड़ाते हुए अंदर घुसे। उनमें से एक चिल्लाकर बोला, "कोई हिलेगा नहीं! हाथ सिर के पीछे रखो और दीवार की तरफ़ मुँह करके खड़े हो जाओ!" कुछ पुलिसकर्मी तुरंत हर कमरे में जा-जाकर चीज़ों को उलटने-पलटने लगे। उन्होंने चार पोर्टबल वीसीडी प्लेअर और कुछ परमेश्वर की आस्था से जुड़ी किताबें ज़ब्त कर लीं। उसके बाद, हमें ज़बर्दस्ती पुलिस की गाड़ियों में ठूँसा और स्थानीय पुलिस चौकी ले गए। रास्ते भर मेरी आँखों के सामने पिछले साल की उन भयानक यातनाओं के दृश्य घूमते रहे जो मुझे उन दुष्ट पुलिसकर्मियों ने मुझे दी थीं, मुझे घबराहट महसूस हो रही थी, मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि यह शैतानी पुलिस अब की बार मुझे किस ढंग से यातना देगी। मुझे डर था कि मैं उनकी क्रूरता झेल नहीं पाऊँगा और परमेश्वर को धोखा देने वाला कोई काम कर बैठूँगा, मैंने सच्चे मन से परमेश्वर से प्रार्थना की। अचानक मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आ गए जो हमने कुछ दिन पहले ही एक सभा में पढ़े थे: "मैं अपने भाईयों और बहनों के लिए आशा से भरा हुआ हूँ, और मुझे विश्वास है कि तुम लोग निराश या हतोत्साहित नहीं हो, और परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम लोग आग से भरे एक घड़े की तरह रहोगे—तुम लोगों की गर्मी कभी कम नहीं होगी और तुम लोग अंत तक जारी रहोगे, जब तक कि परमेश्वर का कार्य पूरी तरह प्रकट नहीं होता ..." ("वचन देह में प्रकट होता है" में "मार्ग... (8)")। "हम सभी परमेश्वर के सामने यह क़सम खाएँ: 'मिलकर होकर कार्य करने की! अंत तक भक्ति की! कभी अलग न होने की, हमेशा एक साथ रहने की!' मेरे भाई और मेरी बहनें परमेश्वर के सामने इस दृढ़ संकल्प को निर्धारित करें ताकि हमारे हृदय न भटकें और हमारी इच्छाएँ अविचल हों!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "मार्ग... (5)")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अंदर तक हिला दिया। मैंने विचार किया कि स्वर्ग से धरती पर आकर परमेश्वर को लोगों का उद्धार करने के लिए अपने कार्य के दौरान कितने परीक्षणों और कष्टों से गुज़रना पड़ा था। उन्हें उम्मीद है कि इंसान हर परिस्थिति में उनके प्रति अंत तक पूरी निष्ठा से वफ़ादार रहेगा। परमेश्वर ने मुझे चुना और मैंने उनके कथनों के पोषण का आनंद लिया, इसलिए मेरे लिए यही योग्य है कि मैं उनके प्रति पूरी तरह से समर्पित रहूँ। "चाहे मुझे कितने भी कष्ट या मुसीबतें उठानी पड़ें", मैंने सोचा, "मेरा दिल पूरी तरह से आस्थावान रहना चाहिए; परमेश्वर के प्रति मेरे भाव बदलने नहीं चाहिए, मेरा संकल्प डगमगाना नहीं चाहिए। मुझे परमेश्वर की दमदार गवाही देनी है, और किसी भी सूरत में शैतान के आगे झुकना नहीं है या उससे हार नहीं माननी है। और फिर, मुझे परमेश्वर को धोखा देकर, एक निरर्थक और अधम जीवन को नहीं घसीटते रहना है। परमेश्वर ही मेरा आधार हैं, वही मेरा पक्का आश्रय हैं। अगर मैं परमेश्वर से पूरा सहयोग करूँगा, तो वे यकीनन शैतान पर विजय हासिल करने में मेरी अगुवाई करेंगे।" इस तरह, मैंने परमेश्वर के आगे मन ही मन संकल्प किया, "हे परमेश्वर! अगर मुझे अपनी जान भी देनी पड़ी, तो मैं आपकी गवाही दूँगा। मुझे चाहे जितने कष्ट उठाने पड़ें, मैं सत्य के मार्ग पर चलूँगा। मैं किसी भी स्थिति में शैतान से हार नहीं मानूँगा!" परमेश्वर के वचनों से बल पाकर, मेरा विश्वास सौ गुना बढ़ गया, मैंने परमेश्वर की गवाही देने के लिए हर चीज़ का त्याग करने का विश्वास और संकल्प हासिल कर लिया।

जैसे ही हम लोग पुलिस चौकी पहुँचे, सारे पुलिसकर्मी हाथ सेकने के लिए अंगीठी की तरफ़ लपके। सबने मेरी तरफ़ घूरा, उनके माथे पर बल पड़ गए, आँखों से अंगारे निकलने लगे, उन्होंने मुझसे सख्त आवाज़ों में सवाल किए: "ज़बान खोल! क्या नाम है तेरा? तूने कितने लोगों में सुसमाचार का प्रचार किया है? तू किसके संपर्क में है? तेरी कलीसिया का अगुवा कौन है?" जब उन्होंने देखा कि मैं ज़बान खोलने को तैयार नहीं हूँ, तो उनमें से एक दुष्ट पुलिसकर्मी मेरी तरफ़ बढ़ा और उसने मुझे गर्दन से बुरी तरह पकड़ा और मेरा सिर बार-बार दीवार से दे मारने लगा। मेरा सिर घूम गया, कानों में घंटियाँ-सी बजने लगीं। उसके बाद, वो मेरे चेहरे पर घूँसे बरसाने लगा और मैं चीखता रहा, "साले, तू ही अगुवा है, है न? ज़बान खोल! अगर ज़बान नहीं खोली न, तो मैं तुझे बिल्डिंग की छत से लटकाकर ठंड में मरने के लिए छोड़ दूँगा!" वो दुष्ट पुलिसकर्मी मुझे आधा-पौन घंटे तक बुरी तरह से कूटते रहे, मेरी आँखों के आगे तारे नाचने लगे, नाक से खून बहने लगा। जब उनको मुझसे मनचाहा जवाब नहीं मिला, तो वे मुझे सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो (पीएसबी) ले गए। मैं रास्ते भर, इन दुष्ट पुलिसकर्मियों द्वारा अभी-अभी की गई अपनी बेहरम पिटाई बारे में सोचता रहा, मेरे अंदर एक अनजाने भय की लहर दौड़ गई। मैंने सोचा, "जब ये लोग पुलिस चौकी में मेरे साथ इतनी बेरहमी से पेश आ रहे थे, तो पीएसबी में तो पता नहीं पुलिसकर्मी क्रूरता की कौन-सी हदें पार करेंगे? मुझे हालात ठीक नहीं लग रहे। शायद इस बार मैं ज़िंदा वापस बाहर न आ पाऊँ...।" इन सब बातों को सोच-सोचकर, मेरे अंदर कुछ ऐसी मायूसी और उदासी घर कर गई कि बयाँ नहीं कर सकता। पीड़ा और बेबसी के इस दौर से गुज़रते हुए अचानक मुझे पिछला दौर याद आया कि किस तरह परमेश्वर ने मुझे उस समय चमत्कारिक ढंग से बचाया था जब इन दुष्ट पुलिसकर्मियों ने मेरे जिस्म के पोर-पोर पर ज़ुल्म की इंतिहा कर दी थी। मेरी आँखें चमक उठीं, और मैंने सोचा, "मेरा जीना-मरना परमेश्वर के हाथों में है, है न? परमेश्वर की मर्ज़ी के बिना, शैतान चाहे जितना ज़ोर लगा ले, वह मुझे मार नहीं सकता। मैंने पहले परमेश्वर के अद्भुत कर्मों को देख चुका हूँ, तो मैं उन बातों को भूल कैसे सकता हूँ? मैं इतना विश्वासहीन कैसे हो सकता हूँ?" उस पल मैंने देखा कि मेरा कद अभी भी बहुत अपरिपक्व है—जब मौत का इम्तहान करीब था, तो भी मैं परमेश्वर के साथ खड़ा नहीं हो पाया। मुझे परमेश्वर के ये कथन याद आ गए: "अपने मस्तिष्क में जीने का अर्थ है शैतान द्वारा कब्ज़ा और यह एक बंद गली है। अब यह बहुत सरल है: मुझे अपने दिल से देखो और तुम्हारी आत्मा तुरंत मजबूत हो जाएगी, तुम्हारे पास अभ्यास करने का मार्ग होगा और मैं हर कदम पर तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगा। मेरा वचन हर समय और हर स्थान पर तुम्हारे लिए प्रकट किया जाएगा। यदि तुम मुझे अपने दिल से देखते हो, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहां या कब, या वातावरण कितना प्रतिकूल है, मैं तुम्हें स्पष्टता से दिखाऊंगा और मेरा दिल तुम्हारे लिए प्रकट किया जाएगा; इस तरह तुम रास्ते में आगे निकल जाओगे और कभी अपने रास्ते से नहीं भटकोगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 13")परमेश्वर के वचन एक प्रकाश-स्तंभ बनकर मुझे राह दिखा रहे थे, मेरे दिमाग को ज़्यादा से ज़्यादा स्पष्ट कर रहे थे। मैं समझ गया कि परमेश्वर इन विकट हालात का इस्तेमाल करके मुझे शुद्ध करना चाहते हैं, ताकि संकट के समय, मैं अपनी धारणाओं, कल्पनाओं और अपने देह-सुख का त्याग कर दूँ, और परमेश्वर पर भरोसा करके आगे बढ़ूँ, उन्हीं के वचनों पर निर्भर रहूँ। यह एक निर्णायक पल था जिसमें परमेश्वर मेरी अगुवाई कर रहे थे जिससे कि मैं उनके कार्य का अनुभव कर सकूँ, मैं जानता था कि मुझे ज़रा भी विचलित नहीं होना है। मुझे अपना जीवन और मौत दोनों परमेश्वर के हाथों में सौंप देने हैं और शैतान के ख़िलाफ़ संघर्ष करते हुए अंत तक परमेश्वर पर ही भरोसा करना है!

जब हम पीएसबी पहुँचे, तो पुलिसकर्मियों ने फिर से हमें अलग-अलग कर दिया और सबसे अलग-अलग सवाल-जवाब करने लगे। जब वे लोग लगातार मुझे मजबूर कर रहे थे कि मैं उन्हें परमेश्वर में अपनी आस्था के बारे में बताऊँ, तो एक दुष्ट पुलिसकर्मी ने देखा कि मैं अपनी ज़बान नहीं खोल रहा हूँ, इस बात से वो बुरी तरह तैश में आ गया: "तुझे क्या लगता है तू गूँगा बनकर हमसे बच निकलेगा। मैं तेरी ये हरकत बर्दाश्त करने वाला नहीं हूँ!" यह कहते हुए उसने मुझे दोनों हाथों से कॉलर से पकड़ा और किसी गठरी की तरह ज़मीन पर दे पटका। फिर दूसरे पुलिसकर्मी भी आ गए और मुझ पर लात-घूँसे बरसाने लगे। मैं दर्द से दोहरा हो गया। उसके बाद, उन्होंने मेरे सिर को अपने जूतों से ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया, वो लोग मेरे सिर को आगे-पीछे करके कुचल रहे थे...। मैं अभी पिछले साल की दरिंदगी और यंत्रणा से पूरी तरह निकला भी नहीं था कि इस क्रूर पिटाई से अचानक मेरा सिर चकराने लगा और मुझे मतली आ गई। सिर से पाँव तक दर्द की इंतिहा से मेरा जिस्म सिकुड़कर एक गोला-सा बन गया। उसके बाद, उन दुष्ट पुलिसकर्मियों ने मेरे जूते-जुराब फाड़ दिए, मुझे फ़र्श पर ज़बर्दस्ती नंगे पाँव खड़ा कर दिया। कड़ाके की सर्दी में मेरे दाँत किटकिटाने लगे और मेरे पैर सुन्न पड़ गए। मुझे लगा मैं यह सब झेल नहीं पाऊँगा और किसी भी पल ज़मीन पर गिर पड़ूँगा। इन बदमाश पुलिसकर्मियों के क्रूर अत्याचार के चलते, मैं क्रोध और क्षोभ से अंदर ही अंदर सुलग रहा था। मुझे शैतान के इन हद दर्जे के चमचों से घृणा हो गई, इनकी और प्रतिक्रियात्मक चीनी सरकार की नीचता से नफ़रत हो गई। यह स्वर्ग की विरोधी है, परमेश्वर की शत्रु है, मुझे बेबस करने के लिये मुझ पर भयंकर ज़ुल्म और अत्याचार कर रही है ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ और उन्हें नकार दूँ, यह मुझे मौत के घाट उतारने पर तुली थी। परमेश्वर के प्रेम का मुझे और भी अधिक ख़्याल आया। मैंने इस बात पर विचार किया कि इंसान का उद्धार करने के लिए, हमारे भविष्य के अस्तित्व को बचाने के लिए, परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए इंसानों के बीच रहे और उन्होंने भयंकर उत्पीड़न सहे। उन्होंने हमारे लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया, और अब वे धैर्य और गंभीरता से वचन व्यक्त करके सत्य के मार्ग पर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं ताकि हमारा उद्धार हो सके...। जब मैंने उस कीमत का हिसाब लगाया जो इंसान के उद्धार के लिए परमेश्वर ने पीड़ा सहकर चुकाई थी, तो मुझे लगा कि परमेश्वर से अधिक मुझे और कोई प्रेम नहीं करता; मेरे जीवन को परमेश्वर से अधिक और कोई नहीं संजोता। शैतान केवल हमें नुक्सान पहुँचा सकता है, निगल सकता है और मुझे मार सकता है। तभी, मुझे महसूस हुआ कि परमेश्वर के प्रति मेरे दिल में और भी अधिक प्रीति और श्रद्धा बढ़ रही है। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्वर, इस तरह से मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे बचाने के लिए आपका धन्यवाद। आज शैतान जैसे चाहे मुझे सताए, लेकिन मैं आपके साथ सहयोग करने के लिए यकीनन पूरी मेहनत करूँगा। मैं कसम खाता हूँ कि मैं शैतान के आगे नहीं झुकूँगा, न ही उससे हार मानूँगा!" परमेश्वर के प्रेम के हौसले से, भले ही मेरा तन कमज़ोर और शक्तिहीन हो गया हो, मेरा दिल अडिग और मज़बूत है, मैं एक बार भी दुष्ट पुलिसकर्मियों के आगे नहीं झुका। वे लोग रात को एक बजे तक मुझ पर अत्याचार करते रहे, लेकिन जब उन्होंने देखा कि मैं किसी भी हालत में उनके सवालों का जवाब नहीं देने वाला, तो उनके पास मुझे नज़रबंदी गृह में ले जाने के अलावा कोई चारा नहीं था।

नज़रबंदी गृह आने के बाद, उन दुष्ट पुलिसकर्मियों ने जेल के गुंडों को फिर से भड़काना शुरू कर दिया, ताकि वे लोग कुछ न कुछ तरीका ढूँढ़कर मुझे सता सकें। तब तक मुझ पर इतने अत्याचार किए जा चुके थे कि मेरा पूरा शरीर कट-पिट गया था, जगह-जगह घाव हो गए थे; मैं पूरी तरह से लंगड़ा हो चुका था, जैसे ही मैं जेल की कोठरी में घुसा, मैं लड़खड़ाकर सीधा बर्फ़ीले ठंडे फ़र्श पर लुढ़क गया। ये देखकर, जेल के गुंडों ने बिना कुछ कहे, मुझे उठाया और मेरे मुँह पर तड़ातड़ घूँसे जड़ने लगे। पिटते-पिटते मेरा सिर चकरा गया, मैं फिर से धम्म से फ़र्श पर जा गिरा। उसके बाद, सारे कैदी आ-आकर मुझे चिढ़ाने लगे, मुझे मजबूर करने लगे कि मैं अपना एक हाथ ज़मीन पर रखूँ और दूसरे को अपने कान पर लगाऊँ, और फिर कम्पास की तरह गोल-गोल चक्कर लगाऊँ। मैं दो चक्कर भी पूरे नहीं कर पाया कि मेरा सिर घूमने लगा और मैं फ़र्श पर गिर पड़ा, यह देखकर उन्होंने फिर लात-घूँसों की बरसात शुरू कर दी। एक कैदी ने तो मेरे पेट में कसकर लात मारी जिससे कि मैं तुरंत बेहोश हो गया। उसके बाद, सुधार अधिकारियों ने उन कैदियों को निर्देश दिए कि हर रोज़ मुझे सताने और मेरे साथ दुर्व्यवहार करने के नए-नए तरीके खोजें, मुझसे बर्तन धुलवाने और शौचालय साफ़ करवाने जैसे गंदे काम करवाएँ। जिस दिन बर्फ़ पड़ती, उस दिन वे लोग मुझे ठंडे पानी से नहाने के लिए मजबूर करते। इसके अलावा, जब भी मैं नहाता, वे लोग मुझे ज़बर्दस्ती सिर से पाँव तक साबुन लगाने को कहते और फिर मुझे अपने पूरे शरीर पर धीरे-धीरे बर्फ़ीला पानी डालने को कहते। आधा घंटा बर्फ़ीले पानी से नहाकर, मेरा पूरा शरीर नीला पड़ जाता और मैं ठिठुरने लगता। इन अमानवीय और क्रूर यातनाओं को सहन करते हुए, मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करता, मैं इस बात से डरता कि अगर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करना छोड़ दिया, तो मैं पूरी तरह से शैतान का गुलाम बन जाऊँगा। प्रार्थना के ज़रिये, परमेश्वर के वचन निरंतर मेरे अंदर गूँजते और मुझे राह दिखाते: "जिन लोगों को परमेश्वर विजेताओं के रूप में संदर्भित करता है ये वे लोग हैं जो अभी भी गवाह बनने, और शैतान के प्रभाव में होने और शैतान की घेराबंदी में होने पर, अर्थात्, जब अंधकार की शक्तियों के भीतर हों, तो अपना आत्मविश्वास और परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखने में सक्षम हैं। यदि तुम अभी भी परमेश्वर के लिए पवित्र दिल और अपने वास्तविक प्यार को बनाए रखने में सक्षम हो, तो चाहे कुछ हो जाए, तुम परमेश्वर के सामने गवाह बनते हो, और यही वह है जिसे परमेश्वर एक विजेता होने के रूप में संदर्भित करता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति अवश्य बनाए रखनी चाहिए")। परमेश्वर के वचन एक प्रकाश थे, जो मेरे विचारों को प्रबुद्ध और शांत कर रहे थे। मैं जानता था कि शैतान की घेराबंदी एक ऐसा समय था जब मुझे परमेश्वर के प्रति निष्ठावान रहने और उनसे प्रेम करने की आवश्यकता थी। भले ही यह भयानक परिवेश मेरे शरीर को दुख दे रहा था, मेरा उत्पीड़न कर रहा था, लेकिन इस सब के पीछे परमेश्वर का विशाल प्रेम और आशीष छिपा था। परमेश्वर ने ही मुझे शैतान के सामने उनकी गवाही देने, शैतान को अपमानित और परास्त करने का अवसर दिया था। इसलिए, यातना सहने के दौरान, मैं बार-बार स्वयं को चेतावनी दे रहा था कि मुझे अंत तक सहनशील बने रहना है, दरिंदों की इस अंधकारपूर्ण माँद में परमेश्वर के मार्गदर्शन पर भरोसा करते हुए, उनकी गवाही देनी है, और एक विजेता बनने के लिए संघर्ष करना है। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से, मेरा दिल अडिग और मज़बूत हो गया। भले ही कमज़ोरी और उत्पीड़न मेरे भौतिक शरीर को कष्ट दे रहे थे, लेकिन मुझे विश्वास था कि शैतान के विरुद्ध ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ने के लिए मैं यह सब बर्दाश्त कर सकता हूँ और आख़िरी साँस तक मैं परमेश्वर की गवाही दे सकता हूँ।

बीस दिन जेल में रहने के बाद, अचानक मुझे भयंकर सर्दी हो गई। मेरे हाथ-पाँवों में घाव हो गए, मैं लंगड़ाने लगा, मैं बिल्कुल बेजान-सा हो गया, और मेरा दिमाग गड़बड़ा गया। एक तरफ़ तो मेरी हालत ख़राब होती जा रही थी, दूसरी तरफ़ कैदी मुझे लगातार पीट रहे थे, यतानाएँ दे रहे थे, इन सबसे मुझे लगा अब टिके रहना मुश्किल है। मन ही मन मैंने कमज़ोरी और दबाव महसूस किया, मैंने सोचा, "इस रोज़-रोज़ के उत्पीड़न और क्रूरता का अंत कब होगा? लगता है अब की बार मुझे सज़ा होगी, इसलिए इस बात की उम्मीद कम ही है कि मैं ज़िंदा बाहर निकल पाऊँगा...।" जैसे ही मेरे मन में यह विचार आया, अचानक मुझे दिल में ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं किसी अथाह गहरे समुद्र में गिर गया हूँ, एक ऐसे गहरी मायूसी और व्यथा में डूब गया हूँ जहाँ से मैं निकलने का कोई रास्ता नहीं ढूँढ़ पा रहा हूँ। अत्यंत निराशा के पलों में, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह भजन याद आया: "मैं नहीं चाहता कि तुम अधिक मर्मस्पर्शी वचनों को कहने, या बहुत सी रोमांचक कहानियों को कहने लायक बनो; बल्कि, मेरी अपेक्षा है कि तुम मेरी उत्तम गवाही देने में समर्थ बन जाओ, और यह कि तुम पूर्णतः और गहराई से वास्तविकता में प्रवेश कर सको। ... अपनी भविष्य की संभावनाओं का और अधिक विचार न करो, और तुम लोगों ने मेरे सम्मुख सभी चीज़ों में परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पित होने का जो संकल्प लिया है ठीक उसी के अनुरूप कार्य करो। वे सभी जो मेरे कुल के भीतर हैं उन्हें जितना अधिक संभव हो उतना करना चाहिए; पृथ्वी पर मेरे कार्य के अंतिम खण्ड में तुम्हें स्वयं का सर्वोत्तम अर्पण करना चाहिए। क्या तुम वास्तव में ऐसी बातों को अभ्यास में लाने के लिए तैयार हो" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "क्या तुम सचमुच परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण कर सकते हो?")। परमेश्वर के वचनों की एक-एक पँक्ति मेरे दिल पर आघात कर रही थी, मुझे बुरी तरह से लज्जित कर रही थी। मैंने सोचा कि कितनी ही बार मैं फूट-फूटकर रोया था, हर चीज़ में मैंने परमेश्वर के प्रति श्रद्धानत होने का, और उनके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने का निश्चय किया था। मैंने उस बारे में भी सोचा, जब मेरी यातनाओं और उत्पीड़न के दौरान परमेश्वर के वचनों ने मुझे राह दिखाई थी, कैसे मैंने परमेश्वर के प्रति अपने जीवन को अर्पित करने की कसम खाई थी कि मैं उनकी गवाही दूँगा, तो एक बार परमेश्वर चाहते थे कि मैं उन्हें संतुष्ट करने के लिए असली कीमत अदा करूँ, उसके बजाय मैंने दीनतापूर्वक ज़िंदगी को अपनाया और मौत से डर गया, मैंने केवल इस बात की चिंता की कि मेरे भौतिक शरीर का क्या होगा। मैंने पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा को नज़रंदाज़ कर दिया था, मैंने केवल अपनी दुर्दशा से बचकर जल्दी से जल्दी सुरक्षित स्थान पर चले जाने के बारे में सोचा। मैंने देखा कि मैं सचमुच कितना अधम नाकारा हूँ; मेरे अंदर परमेश्वर के प्रति पर्याप्त आस्था नहीं थी, मैं छल-कपट से भरा हुआ था। मेरे अंदर परमेश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा नहीं थी, मेरे अंदर सच्ची आज्ञाकारिता नहीं थी। उस पल मुझे समझ में आया कि परमेश्वर अपने अंत के दिनों के कार्य में, इंसान से सच्चा प्रेम और निष्ठा चाहते हैं; ये परमेश्वर के आख़िरी अनुरोध और अंतिम कार्य हैं जो उन्होंने इंसान को सौंपे हैं। "एक इंसान के तौर पर जिसे परमेश्वर में विश्वास है," मैंने सोचा, "मुझे अपने आपको पूरी तरह से उनके हाथों में सौंप देना चाहिये। क्योंकि यह जीवन उन्हीं का दिया हुआ है, वही अंतिम निर्णय करेंगे कि मुझे जीना है या मरना है। चूँकि परमेश्वर को मैंने चुना है, मुझे स्वयं को उनके प्रति अर्पित कर देना चाहिये और उनके आयोजनों के प्रति समर्पित हो जाना चाहिये; चाहे मुझे किसी भी तरह की यातनाएँ और अपमान झेलना पड़े, लेकिन मुझे अपने कृत्यों के साथ परमेश्वर के प्रति समर्पित हो जाना चाहिये। मेरी अपनी कोई पसंद या माँग नहीं होनी चाहिये; यह मेरा कर्तव्य है, साथ ही विवेक-बुद्धि है जो मुझमें होनी चाहिये। अगर मैं अभी भी साँस ले पा रहा हूँ और ज़िंदा हूँ तो यह सब परमेश्वर की सुरक्षा और देखभाल की वजह से है; यह उनका जीवन-पोषण था—वरना, उन दरिंदों ने मुझे बहुत पहले ही कुचलकर नहीं मार डाला होता? जब पहली बार मुझे भयंकर यातनाओं और मुश्किलों से गुज़रना पड़ा, तो परमेश्वर ने ही मुझे राह दिखाई कि इस पर कैसे काबू पाना है। अब मेरे पास क्या कारण है कि मैं परमेश्वर में अपनी आस्था गँवा दूँ? मैं नकारात्मक और कमज़ोर होकर कैसे पीछे हटूँ और भाग जाऊँ?" जैसे ही मेरे मन में यह विचार आया, मैंने चुपचाप परमेश्वर के आगे अपने अपराध को स्वीकार कर लिया: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैं बहुत ही स्वार्थी और लालची हूँ; मैंने केवल आपके प्रेम और आशीषों का आनंद ही पाना चाहा, लेकिन कभी ईमानदारी से आपके प्रति समर्पित होना नहीं चाहा। जब मुझे लम्बे समय तक जेल की सज़ा भुगतने का ख़्याल आता है, तो मैं बस आज़ाद होना और इससे बचना चाहता हूँ। मैंने वाकई आपकी भावनाओं को बुरी तरह से आहत किया है। हे परमेश्वर! मैं अब और गहराई में नहीं डूबना चाहता; मैं बस आपके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो जाना चाहता हूँ और आपके मार्गदर्शन को स्वीकारना चाहता हूँ। अगर जेल में भी मेरी मौत हो जाए, तो भी मैं आपकी गवाही देना चाहता हूँ। हो सकता है कि मुझे इतनी यातना दी जाए कि मैं मर जाऊँ, फिर भी मैं अंत तक आपके प्रति निष्ठावान रहूँगा!" प्रार्थना करने के बाद, मैं और भी अधिक भावुक हो गया। हालाँकि मैं पहले की तरह अभी भी पीड़ा से गुज़र रहा था, लेकिन मेरे मन में यह विश्वास और निश्चय था कि जब तक मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने की अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर लूँ, मैं हार नहीं मानूँगा। जैसे ही मैंने यह संकल्प किया, और मुझे यह विश्वास हुआ कि मैं मृत्यु होने तक परमेश्वर की गवाही दूँगा, कुछ चमत्कारिक घटित हुआ। सुबह-सुबह, मैं बिस्तर से उठा, तो मैंने देखा कि मेरे पैरों में किसी तरह की कोई संवेदना नहीं है। मैं बिल्कुल उठ ही नहीं पा रहा था. चलने की तो बात ही दूर। पहले तो, पुलिसकर्मियों को यकीन ही नहीं हुआ; यह सोचकर कि मैं नाटक कर रहा हूँ, मैंने उठने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं उठ नहीं पाया। अगले दिन मेरी जाँच करने के लिए वे लोग फिर आए। जब उन्होंने देखा कि मेरे दोनों पैर बर्फ़ की तरह ठंडे पड़े हैं, उनमें खून का कोई प्रवाह नहीं हो रहा, तो उन्हें यकीन हो गया कि मुझे वाकई लकवा मार गया। उसके बाद, उन्होंने मेरे परिवार को सूचित कर दिया कि वे मुझे घर ले जा सकते हैं। जिस दिन मैं घर लौटा, चमत्कारिक रूप से मेरे पैरों की संवेदना लौट आई, और मुझे चलने-फिरने में कोई परेशानी नहीं हुई! मैं अपने मन में इस बात को अच्छी तरह जानता था कि यह सब सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कृपा थी, वे मेरी कमज़ोरी के प्रति अपनी करुणा दिखा रहे थे। स्वयं उन्होंने ही मेरे लिए यह रास्ता ढूँढ़ा था। जब चीनी सरकार ने मुझे गैर-कानूनी ढंग से एक महीने तक हिरासत में रखा, तो उन्होंने ही मुझे बेझिझक शैतान की माँद से आज़ाद कराया था।

दो बार हिरासत में रहकर चीनी सरकार की पाशविक, क्रूर यातनाओं को सहते हुए, हालाँकि मैं भयंकर शारीरिक उत्पीड़न झेलकर मौत के मुँह में पहुँच गया था, लेकिन ये दोनों असाधारण अनुभव दरअसल परमेश्वर में मेरी आस्था के मार्ग में एक मज़बूत बुनियाद बन गए थे। मेरे कष्टों और मुश्किलों के बीच, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे सत्य और जीवन-पोषण का सबसे व्यवहारिक सिंचन प्रदान किया था, परमेश्वर की कृपा से मैं न केवल चीनी सरकार को, सत्य के प्रति उसकी घृणा को, परमेश्वर के प्रति उसकी शत्रुता को, उसके शैतानी चेहरे को देख पाया, उसके कट्टर परमेश्वर-विरोध और परमेश्वर के विश्वासियों के उसके उत्पीड़न के संगीन अपराध से परिचित हो पाया, बल्कि परमेश्वर की कृपा से मैं उनके वचनों के सामर्थ्य और अधिकार को भी समझ और जान पाया। अगर मैं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के दुष्ट पंजों से दो बार बचा हूँ, तो पूरी तरह से परमेश्वर की देखभाल और करुणा की वजह से ही बचा हूँ। इसके अलावा, यह परमेश्वर की असाधारण जीवन-शक्ति का मूर्त रूप और पुष्टि है। अब मुझे अच्छी तरह से इस बात का एहसास हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर किसी भी समय, कहीं भी, मेरा सहारा और उद्धार हैं! इस जीवन में, मेरे सामने जो चाहे खतरे और मुसीबतें आएँ, लेकिन मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने, सक्रिय रूप से उनके वचनों का प्रचार-प्रसार करने, परमेश्वर के नाम की गवाही देने, सच्ची भक्ति से परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देने का संकल्प ले चुका हूँ!

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