मौत की कगार पर
2008 में, मुझ पर कलीसिया के साहित्य को लाने-ले जाने की जिम्मेदारी थी। किसी भी धार्मिक स्वतंत्रता वाले देश में यह एक बहुत ही सामान्य-सा कर्तव्य है, लेकिन चीन में ऐसा करना खतरनाक है। कम्युनिस्ट पार्टी के कानून के अनुसार, धार्मिक साहित्य को लाते-ले जाते समय पकड़े जाने पर सात साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है। इस वजह से, भाई-बहन और मैं, हम सभी अपने कर्तव्य के दौरान अत्यंत सतर्क रहते थे। लेकिन 26 अगस्त को, जब मैं सड़क पर जा रही थी, तो अचानक मुझे पुलिस की कई गाड़ियों ने घेर लिया और पुलिस मुझे एक गाड़ी में ठूँस कर ले गई। मैं बहुत घबरा गई थी। मुझे वह बहन याद आ गई जिसे पुलिस इसी कारण गिरफ्तार करके ले गई थी। उसे 10 साल की सजा हुई थी। क्या मुझे भी 10 साल की सजा होगी? अगर इतने साल जेल में बिताने पड़े, तो क्या मैं जिंदा वापस आ पाऊँगी? यह सोचकर ही मेरा दिल बैठ गया और मैंने तुरंत परमेश्वर को पुकारा : “हे परमेश्वर! पता नहीं पुलिस मुझे कैसी-कैसी यातनाएँ देगी। मेरी रक्षा करना, मुझे विश्वास और शक्ति प्रदान करना।” प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। इससे मेरा विश्वास और हौसला बढ़ा। परमेश्वर सभी चीजों का शासक है और संपूर्ण ब्रह्मांड उसके हाथों में है। तो क्या पुलिस भी उसके हाथों में नहीं होगी? परमेश्वर की अनुमति के बिना, कोई मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकता। परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए दमन और कठिनाई का उपयोग कर रहा है, इसलिए मुझे प्रार्थना कर उसी पर निर्भर रहना होगा और उसकी गवाही देनी होगी। मैं इस बात पर दृढ़ थी कि भले ही मुझे 10 साल की सजा हो जाए, लेकिन मैं कभी भी अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगी, कभी परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूंगी।
पुलिस मुझे शहर के बाहर दो मंजिला इमारत में ले गई। एक लंबा, भारी-भरकम अधेड़ उम्र का एक अधिकारी पानी की एक ठंडी बोतल लेकर मेरी तरफ लपका, उसकी आँखें डरावनी थीं, उसने चिल्लाते हुए जोर से मेज पर हाथ मारा, “नाम क्या है? कलीसिया में क्या करती है? किसके संपर्क में है? तेरी कलीसिया का अगुआ कौन है?” मेरे जवाब न देने पर उसने बोतल उठाकर मेरे सिर पर मारी, मेरा सिर चकराने लगा। वह गाली-गलौज की भाषा में मुझसे सवाल करता रहा। मैंने उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया, बस आँखें झुकाए प्रार्थना करती रही। अब की बार उसने बोतल मेरे माथे पर मारी—एक पल के लिए मेरी आँखें धुंधला गईं और लगा जैसे अभी सिर फट जाएगा। दर्द के कारण आँखों में आंसू आ गए। फिर वह जोर से चिल्लाया, “अगर जबान नहीं खोलेगी तो हम तुझे सताते रहेंगे, अगर फिर भी जबान नहीं खोली, तो यहाँ से ज़िंदा बाहर जाने की तो सोचना भी मत!” मैं काफी डर गई थी और सोच रही थी कि अगर वह मुझे ऐसे ही मारता रहा, तो भले ही मेरा सिर न फटे, मेरा दिमाग तो खराब हो ही जाएगा। हो सकता है कि पीट-पीटकर मार ही डालें। मैंने सुरक्षा के लिए तुरंत परमेश्वर को पुकारा और यह संकल्प लिया कि चाहे वह मुझे कितना भी मारे, लेकिन कभी परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगी, कभी यहूदा नहीं बनूँगी। तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी और वह बाहर निकल गया। एक दूसरे अधिकारी ने आकर मेरे सिर पर कैनवास की एक बोरी डाल दी, फिर रस्सी से कसकर उसे बांधा और मुझे घसीटकर एक खाली कमरे में ले गया। बोरी में बँधकर मुझे गर्मी और उमस महसूस हो रही थी। फिर मुझे दूसरी मंजिल पर ले जाया गया, पता नहीं इस दौरान कितना समय बीता होगा। प्रांतीय सार्वजनिक सुरक्षा विभाग के डिवीजन प्रमुख, गोंग ने अपने दाँत पीसते हुए मुझे धमकी दी : “हम तुझे केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण 10 साल की सजा दे सकते हैं। जो कुछ तुझे पता है बता दे, नहीं तो फिर तुझे कोई नहीं बचा सकता!” उसने यह भी कहा कि जहाँ मैं काम करती हूँ, वहाँ के मालिक से कहकर वह मेरा वेतन रुकवा देगा। जब मैंने इस पर भी कुछ नहीं कहा, तो उसने किसी से कहकर मेरी गिरफ्तारी का पिछला रिकॉर्ड ढूँढ़ने को कहा। इस ने मेरी परेशानी बढ़ा दी, क्योंकि मुझे 2003 में सुसमाचार फैलाने के लिए गिरफ्तार करके पांच महीने के लिए हिरासत में रखा गया था। अगर उन्हें मेरा रिकॉर्ड मिल गया, तो निश्चित रूप से मुझे और कड़ी सजा दी जाएगी। लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला—मैं जानती थी कि यह परमेश्वर की सुरक्षा है। मैंने मन ही मन उसे धन्यवाद दिया। पुलिस आधी रात को मुझे एक नजरबंदी गृह में ले गई, जहाँ एक सुधार अधिकारी ने कुछ कैदियों से मेरे कपड़े उतारवाए और मुझे हाथ सीधे करके तीन बार बैठक मारने को कहा। उन्होंने मेरे ऊपर के सारे कपड़े बाहर फिंकवा दिए, जब मैंने देखा कि वे मेरे अंडरगारमेंट्स भी फेंकने जा रहे हैं, तो मैंने लपककर वो कपड़े उठाए और पहन लिए। वहाँ बिना कपड़े पहने, दीवार पर लगे चार सुरक्षा कैमरों को देखते हुए, बैठक मारना मुझे बेहद अपमानजनक लगा। सुबह कैदियों के उठने पर, तन ढकने के लिए मैंने चादर ले ली। फिर एक कैदी ने मुझे कुछ कपड़े दिए और फुसफुसाकर बोली, “इन्हें पहन लो, जल्दी।” दूसरी ने मुझे पैंट दे दी। मुझे पता था कि यह सारी व्यवस्था परमेश्वर ने की है—मैंने उसका आभार माना। उसी सुबह, एक सुधार अधिकारी ने मेरे कपड़े कोठरी में फेंक दिए, लेकिन देखा तो सारे कपड़ों की जिप और बटन काट दिए गए थे। पहनने के बाद, मैंने एक हाथ से पैंट को पकड़ा और दूसरे हाथ से आगे के खुले हुए हिस्से को संभाला और बाकी सबके साथ किसी तरह झुक-झुककर चलने लगी। मुझे इस तरह चलते देख, बाकी कैदी मेरा मजाक उड़ाने लगे और मुझे काम करने का हुक्म देने लगे। उनमें से कुछ जानबूझकर मेरी पैंट नीचे खींचते हुए तरह-तरह के भद्दी मजाक करने लगे। किसी तरह प्रार्थना के सहारे मैंने वह दिन गुजारा।
तीसरे दिन दोपहर को, पुलिस मुझे फिर से पूछताछ के लिए लेने आई। वे मुझे एक हल्की रोशनी वाले खाली कमरे में ले गए, जहाँ दीवार पर लोहे का एक यातना उपकरण टँगा हुआ था। उसके चारों ओर गहरे खून के धब्बे थे। देखकर ही खौफ पैदा होने लगा। उन्होंने मेरे हाथों को पीछे कर हथकड़ी लगा दी, फिर राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के एक कैप्टन यांग और कुछ आपराधिक पुलिस अधिकारियों ने मुझे घेर लिया और भूखे भेड़ियों की तरह घूरने लगे। कैप्टन यांग ने मुझे कुछ बहनों की तस्वीरें दिखाकर उन्हें पहचानने को कहा और पूछा कि कलीसिया का पैसा कहाँ रखा है। उसने मुझे जंगलियों की तरह धमकाते हुए कहा, “सब उगल दे! अगर जबान नहीं खोली, तो तुझे पीट-पीट कर मार डालेंगे!” मैंने सोचा अगर मुझे मार भी डाला, तो भी मैं यहूदा नहीं बनूँगी। एक मोटे पुलिस वाले ने कहा, “आज सब बता देगी तो अच्छा होगा! अगर मुँह नहीं खोला, तो बता रहा हूँ, मेरा घूँसा तेरा कीमा बना देगा। मैंने पुलिस अकादमी में चार साल मुक्केबाजी और ‘हथौड़ा घुमाना’ नाम की तकनीक सीखी है। कंधे पर ऐसी जगह घूँसा मारूँगा कि तेरी हड्डियों के साथ-साथ तेरा सारा अस्थि-पंजर बिखर जाएग। ऐसा कोई नहीं है जिसने मेरे आगे जबान न खोली हो।” बात करते-करते उसकी अकड़ बढ़ती जा रही थी। फिर कैप्टन यांग ने अपने बैग से एक सरकारी लाल रंग का लेटरहेड निकाला और मेरे सामने लहराते हुए बोला, “इसे केंद्रीय समिति ने विशेष रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में जारी किया है, यह एक गोपनीय दस्तावेज है। एक बार तुम लोग हमारी गिरफ्त में आ गए, तो हम तुम्हें मौत के घाट उतार सकते हैं, तुम लोग मर भी गए तो किसी को कोई परवाह नहीं होगी! हम लोग तुम्हें मार कर, पहाड़ी से नीचे फेंक देते हैं और किसी को कानोंकान खबर नहीं होती। तुम जैसे विश्वासियों से निपटने के लिए हमारे पास यातना देने का हर सामान है। हमारे पास तार के चाबुक भी हैं जिन्हें ठंडे पानी में डुबोकर कोड़े मारते हैं तो जिस्म से मांस उधड़ जाता है। उस इंसान की हड्डियाँ झाँकने लगती हैं।” ऐसी खौफनाक बातें सुन-सुनकर मेरा दिल काँप उठा और मुझे लगा अगर ये लोग मुझे इन उपकरणों से यातना देंगे, तो हो सकता है मेरी जान ही चली जाए। और अगर उन्होंने मेरे शरीर को पहाड़ी से फेंक दिया, तो जंगली कुत्ते खा जाएंगे। कैसी त्रासदी होगी! डरकर मैंने जल्दी से परमेश्वर को पुकारा, “हे परमेश्वर, मुझे बहुत डर लग रहा है कि पुलिस वाले मुझे यातना देंगे। मेरी आस्था बहुत मजबूत नहीं है—मेरी रक्षा कर, मुझे आस्था और हौसला दे ताकि वे चाहे जो करें, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान भी देनी पड़े, तो मैं गवाही दे सकूं।” यह देखकर कि मैं अभी भी कुछ नहीं बता रही, कैप्टन यांग ने अपने हाथ से मेरा सिर दबोचा और दाएँ-बाएँ दर्जनों थप्पड़ मारे। मैं खड़ी भी नहीं रह पा रही थी। मैं आँखें बंद कर रोने लगी। मेरी बाईं ओर खड़े उस मोटे पुलिसवाले ने जिसने कहा था कि वह “हथौड़ा घुमाकर” मारेगा पूरी ताकत से मेरे कंधे पर अपना मुक्का मारा। एक पल को लगा जैसे मेरी सारी हड्डियाँ टूट गई हों और फिर गिन-गिनकर मारता चला गया। मेरी दाहिनी ओर खड़े पुलिसवाले ने मेरे दाहिने घुटने में लात मारी और मैं फर्श पर गिर पड़ी। दोनों चिल्लाकर मुझे खड़े होने को बोलने लगे। दर्द के बावजूद, मैं हथकड़ी लगे हाथों से किसी तरह उठकर खड़ी हुई। उन्होंने फिर से मुझे लात मारकर गिरा दिया। “हथौड़ेबाज” पुलिसवाले ने लगातार मेरे कंधे पर मारते हुए पूछना जारी रखा, “तू किसके संपर्क में है? कलीसिया का पैसा कहां रखा है? अभी भी बता दे, वरना जान से हाथ धो बैठेगी!” मैंने गुस्से से पूछा, “मैंने कौन-सा कानून तोड़ा है जो मुझे इस तरह मार रहे हो? हमें संविधान ने आस्था रखने की आजादी दी है न?” कैप्टन ने बेरहमी से कहा, “तेरा नाटक बहुत हो गया! अब अगर जान बचानी है, तो अपना मुँह खोल दे! कलीसिया का पैसा कहां रखा है? हमें सिर्फ पैसा चाहिए। अगर तूने नहीं बताया तो हम आज ही तुझे पीट-पीट कर मार डालेंगे!” यह कहते हुए वह पहले से ज्यादा ताकत से मेरे सिर पर लगातार मुक्कों से वार किए जा रहा था। फर्श पर गिराकर मुझ पर लात-घूसों की बारिश की जा रही थी और बीच-बीच में मुझे फिर से खड़े होने का कहा जाता था। पता नहीं वो मुझे कब तक पीटते रहे। मुझे बस इतना समझ आ रहा था कि मेरा सिर और कान भन्ना रहे थे और मैं आँखें नहीं खोल पा रही थी, लगता था जैसे फट कर बाहर निकल आएँगी। चेहरा सूजकर नीला पड़ चुका था और मुंह के कोनों से खून बह रहा था। दिल ऐसे धड़क रहा था जैसे उछलकर सीने से बाहर आ जाएगा और कंधे की हड्डियाँ तो जैसे चूर-चूर हो गई थीं। मैं फर्श पर बेजान-सी पड़ी थी और मेरे पूरे बदन में दर्द हो रहा था, मानो टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया हो। मैं लगातार परमेश्वर से सुरक्षा के लिए गुहार लगा रही थी। मेरे मन में बस एक ही विचार था : भले ही मैं मर जाऊं, लेकिन मैं यहूदा नहीं बनूंगी!
यह देखकर कि मैं एक शब्द भी नहीं बोल रही, कैप्टन ने मुझे मनाने की कोशिश की : “हम तुमसे ये सवाल पूछ जरूर रहे हैं, लेकिन सच यह है कि जवाब हम पहले से जानते हैं। हम तो सिर्फ पुष्टि कर रहे हैं। तुम्हें कोई पहले ही धोखा दे चुका है, तो जरा सोचो, क्या किसी और का अपराध अपने सिर लेने का कोई मतलब है? इस उम्र में, यह सब कष्ट क्यों झेल रही हो? क्या जरूरत है? सिर्फ एक धर्म का ही तो मामला है, है न? जो कुछ तुम्हें पता है, हमें बता दोगी तो हम तुम्हें फौरन छोड़ देंगे। फिर तुम इन तमाम मुसीबतों से बच जाओगी।” फिर उन्होंने ईशनिंदा की। उनकी गंदी बातें सुनकर और उनके चेहरों पर बर्बरता देखकर मुझे गुस्सा आ रहा था। और भी भाई-बहनों को गिरफ्तार करने और कलीसिया का पैसा अपने कब्जे में लेने के लिए, उन्होंने मुझे लुभाने की चाल चली। वे सच में कुटिल और नीच थे! भले ही किसी ने मुझे धोखा दिया हो, लेकिन मैं अपनी बात पर अडिग थी, मैं न तो परमेश्वर को और न ही भाई-बहनों को धोखा देने वाली थी। फिर कैप्टन ने धमकाने के लिए मेरी बेटी का इस्तेमाल किया। नकली मुस्कान बिखेर कर मेरी ओर देखते हुए बोला, “तुम्हारी बेटी बीजिंग में है न? हम उसे गिरफ्तार करके ठीक तुम्हारे सामने उसे प्रताड़ित कर सकते हैं। अगर तुमने जबान नहीं खोली, तो तुम दोनों को मर्दों की जेल में डाल देंगे और मौत आने तक उन्हें मनमानी करने देंगे। यह करना मेरे बाएँ हाथ का खेल है, और मैं जो कहता हूँ वो करता हूँ।” मुझे पता था कि कम्युनिस्ट पार्टी कुछ भी कर सकती है, मुझे अपनी मौत का डर नहीं था, लेकिन मेरी बेटी को और मुझे मर्दों की जेल में डाल दिए जाने का ख्याल मुझे डरा रहा था। इस तरह अपमानित होने के बजाय मैं पिट-पिटकर मर जाना चाहूँगी। यह विचार ही मेरे लिए भयावह था, मैंने तुरंत परमेश्वर को पुकारा, “हे परमेश्वर, मेरे मन पर निगरानी रख, वो लोग चाहे मुझे कितनी भी यातनाएँ दें या अपमानित करें, मैं यहूदा नहीं बन सकती।” मेरी प्रार्थना के बाद, मुझे दानिय्येल का ख्याल आया जिसे शेरों की मांद में फेंक दिया गया था। लेकिन शेरों ने दानिय्येल को नहीं खाया क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें उसे चोट पहुँचाने की अनुमति नहीं दी थी। मुझे भी परमेश्वर में विश्वास रखना चाहिए। ये दुष्ट पुलिसवाले भी तो परमेश्वर के हाथ में हैं, अगर परमेश्वर ने अनुमति नहीं दी तो ये मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। चूँकि मैं अभी भी जबान नहीं खोल रही थी, तो उनमें से एक पुलिसवाला गुस्से से फनफनाता हुआ मुझ पर चिल्लाया, “अब अगर तूने मुँह नहीं खोला, तो हम आज ही तेरा खेल खत्म कर देंगे!” यह कहते हुए, वह दो कदम पीछे हटा, फिर मुट्ठी कसकर, आँखों में शैतानी चमक लिए सीधे मुझ पर झपटा और मेरे सीने में मुक्का मारा। मैं सिर के बल जमीन पर गिरी और काफी देर तक मुझे साँस नहीं आई। लगा जैसे मेरे सारे अंग-प्रत्यंग और हड्डियाँ चकनाचूर हो गईं और कलेजा जैसे सरौते से खींचकर निकाल दिया गया हो। दर्द के कारण मैं जोर से साँस नहीं ले पा रही थी। मैं पसीने में तर-बतर फर्श पर पड़ी थी। मैं चीखना चाहती थी लेकिन मेरी आवाज नहीं निकल रही थी, लगा जैसे गले में कुछ अटक गया हो। रोना चाह रही थी लेकिन आँसू नहीं निकल रहे थे। उस पल लगा कि इससे तो मौत ही बेहतर है। मैं इतनी कमजोर महसूस कर रही थी कि लगा जैसे शारीरिक क्षमता पूरी तरह चुक गई है। मैंने सोचा अगर वे मुझे ऐसे ही पीटते रहे, तो मर जाना ही बेहतर होगा, इस सबसे छुटकारा तो मिलेगा। फिर न यातना होगी और न कोई पूछताछ, मैं आजाद हो जाऊँगी। सोचा इन्हें थोड़ी-बहुत मामूली जानकारी दे देती हूँ, लेकिन अगर इन्हें उँगली पकड़ा दी तो ये लोग पहुँचा पकड़ना चाहेंगे, फिर और भी कड़ाई से पूछताछ करना शुरू कर देंगे। नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए मैं भाई-बहनों को धोखा देकर इस तरह की यातना के मुँह में नहीं धकेल सकती। मैंने मन ही मन सुरक्षा के लिए परमेश्वर को पुकारा। तभी मेरे मन में परमेश्वर के कुछ वचन आए : “मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे सही समय पर याद दिलाया कि उसका धार्मिक स्वभाव किसी भी मानवीय अपराध को बर्दाश्त नहीं करता। परमेश्वर को उन लोगों से घृणा और नफरत है जो उसके साथ विश्वासघात करते हैं, ऐसा व्यक्ति शरीर और आत्मा से चिर-काल तक दंड भुगतता है। अपने बरसों की आस्था में, मैंने परमेश्वर के प्रेम और उसके वचनों के पोषण का भरपूर आनंद लिया है, और अब जब मेरे लिए परमेश्वर की गवाही देने का समय आया है, तो क्या उसे धोखा देकर अपने जीवन से चिपके रहने का लालच अनुचित नहीं होगा? मैं इंसान कहलाने लायक भी नहीं रहूँगी! इसलिए मैंने कसम खाई कि अगर इन सबका मतलब मेरी मौत है, तो भी मैं यहूदा नहीं बनूंगी। परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूंगी, बल्कि पूरी तरह से गवाही दूंगी!
तभी उस शैतान कैप्टन ने चिल्लाते हुए मुझे लात मारी, “उठ! कमीनी, मरने का नाटक मत कर!” लेकिन मुझमें उठने की ताकत भी नहीं बची थी। दो पुलिसवालों ने मुझे खड़ा किया। मुझे धुँधला दिख रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था और सिर चकरा रहा था; सीने में इतना दर्द था कि मुझे सांस लेने में भी डर लग रहा था। सबकुछ दो-दो दिखाई दे रहा था। वो लोग अब भी सवाल पर सवाल दागे जा रहे थे। मेरे अंदर क्रोध उफन रहा था, मैंने किसी तरह अपनी सारी शक्ति समेटकर कहा, “मुझे मरना मंजूर है! मार डालो मुझे पीट-पीटकर!” सब सन्न रह गए और एकटक मुझे घूरकर देखने लगे। मैं जानती थी कि यह सब कहने की शक्ति और साहस मुझे परमेश्वर ने दिया है, मैंने मन ही मन उसे धन्यवाद दिया। उनकी योजना यह थी कि अलग-अलग शिफ्ट में मुझे यातना देकर पूछताछ की जाए, लेकिन शाम 5 बजे के आस-पास उनके पास प्रांतीय लोक सुरक्षा विभाग से एक फोन आया कि वे अपनी पूछताछ के परिणामों की रिपोर्ट दें, तो उन्होंने पूछताछ रोक दी। दीवार का सहारा लेकर, मैं सुन्न बैठी रही और परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता में आँसू बहाने लगी। मैं परमेश्वर की सुरक्षा के कारण ही जिंदा थी, वरना मेरा शरीर इतना कमजोर है कि कब का जवाब दे गया होता। बाद में, “हथौड़ाबाज” पुलिसवाले को छोड़कर बाकी सब चले गए। उसने मेरी तरफ देखकर कहा, “आंटी, मैंने पहले कभी किसी औरत पर हाथ नहीं उठाया, आप पहली औरत हैं। बड़े से बड़ा पहलवान भी मेरे 30 घूंसे नहीं झेल सकता। पता है मैंने आपको कितने घूँसे मारे? 30 से ज्यादा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि आपकी उम्र की कोई औरत इन्हें झेल पाएगी, लेकिन उसके बावजूद आपने हमारे सवालों के जवाब नहीं दिए। मैं एक दशक से पुलिस के आपराधिक विभाग में हूँ, मगर पूछताछ में आप जैसा व्यक्ति कभी नहीं टकराया।” यह सुनकर मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। इतना पिटकर भी जिंदा रहना परमेश्वर की सुरक्षा का परिणाम था।
उसी शाम 7 बजे के बाद, वे लोग मुझे वापस नजरबंदी गृह ले गए और चेतावनी दी, “खबरदार जो वहां किसी को बताया कि हमने तेरे साथ मार-पीट की है। अगर मुँह खोला, तो अगली बार की पूछताछ ज्यादा भयानक होगी।” यह कहते-कहते उन्होंने एक तौलिये से मेरी पैंट से धूल झाड़ी, मेरे कपड़े और बाल ठीक किए और गीले तौलिए से मेरा चेहरा साफ किया। वहाँ ले जाकर उन्होंने गार्ड से झूठ बोला, कहा कि दिल की बीमारी की वजह से मेरी तबियत ठीक नहीं थी। मुझे बहुत गुस्सा आया। वे बहुत ही नीच और निर्लज्ज लोग थे! कालकोठरी में मैं कटे पेड़ की तरह बिस्तर पर गिर गई, हिलने-डुलने की ताकत भी नहीं थी। मेरा सिर इतना दुख रहा था कि छूने की हिम्मत नहीं हो रही थी और बाएं कान से एकदम सुनाई देना बंद हो गया था। मुंह इतना सूज गया था कि खुल नहीं पा रहा था और गालों पर नील पड़ गई थी। पूरा शरीर जख्मी था, पैरों पर चोट के निशान थे और सीने पर घूँसों के बहुत गहरे निशान थे। मेरा बायां कंधा उतर जाने के कारण मुझे उसे दाहिने हाथ का सहारा देना पड़ रहा था। जाँच में पता चला कि मेरे सीने की कई हड्डियां टूट गई हैं और रीढ़ की हड्डियाँ भी अपनी जगह से हिल गई हैं। सीधा लेटना-बैठना मुश्किल हो रहा था; गहरी सांस लेने पर लगता था जैसे दिल और सीने में कांच के टुकड़े चुभाए जा रहे हों। बहुत धीरे-धीरे सांस लेने पर दर्द में थोड़ी राहत मिलती थी। जेल के डॉक्टर ने मेरी हालत देखकर रात को पहरा देने वाले कैदियों से कहा कि वे हर दो घंटे में मेरी नाक की जाँच करें, यह देखने के लिए कि कहीं मेरी साँसें रुक तो नहीं गई हैं। सुधार अधिकारी रोज सुबह काम पर आते ही पहले यह पूछते कि मैं मर गई या जिंदा हूँ। मैंने दो दिनों तक कुछ खाया-पिया नहीं, कोठरी के बाकी लोगों को लगता कि मैं बचूँगी नहीं। मैंने रात को पहरा देने वाले कुछ कैदियों को आपस में फुसफुसाते सुना। एक कैदी कह रहा था, “ये लोग न तो इसका इलाज करवा रहे हैं और न ही इसके परिवार को सूचित कर रहे हैं। शायद यह यहाँ मौत का इंतज़ार कर रही है।” दूसरा कह रहा था, “सुधार अधिकारी बता रहे थे कि हत्यारे, आगजनी करने वाले, और वेश्याएं तो सब ले-देकर छूट जाते हैं, बस ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग ही बाहर नहीं निकल पाते। यह बस कुछ ही दिनों की मेहमान है।” उनकी बातें सुन-सुनकर मन में खौफ पैदा हो रहा था। “क्या सचमुच मेरी मौत यहाँ इस तरह होने वाली है? मैंने अभी तक परमेश्वर की महिमा का दिन नहीं देखा। अगर मैं यहाँ मर गई, तो न तो भाई-बहनों को पता चलेगा और न ही मेरी बेटी को।” बेटी का ख्याल आते ही मन दुख से भर गया और आँसू छलक पड़े। मैं मौत के दरवाजे पर खड़ी थी, लेकिन मेरे साथ न तो मेरा परिवार था और न ही कोई भाई-बहन। सोच-सोचकर मेरा दुख बढ़ने लगा। मैं बस परमेश्वर को ही पुकार सकती थी। फिर मैंने दो कैदियों की बातचीत सुन ली, “अगर यह सच में यहाँ मर गई तो?” जिस पर दूसरे ने जवाब दिया, “तो इसे सबसे मैले-कुचैले चादर में लपेटकर, किसी गड्ढे में फेंककर दफना देंगे।” यह सुनकर मेरी आत्मा बुझ गई। एक तो पहले ही मेरे शरीर में सहने की शक्ति नहीं बची थी, उस पर इतनी तीव्र भावनात्मक वेदना और निराशा, मेरे दिल की हालत और भी ज्यादा खराब हो गई—मुझे अब मौत ही बेहतर विकल्प लग रही थी। समझ नहीं आया परमेश्वर से क्या कहूँ, मैंने तुरंत परमेश्वर को पुकारा, “हे परमेश्वर, मुझे बचा! मेरी मदद कर! मुझे विश्वास और साहस दे ताकि इस मुसीबत से पार पा सकूँ। परमेश्वर, पता नहीं आगे क्या होने वाला है, लेकिन इतना जानती हूँ कि मेरी जिंदगी और मौत तेरे हाथों में है।” तभी मेरे दिमाग में परमेश्वर के वचनों का एक उद्धरण आया : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। मुझे हौसला मिला और लगा कि परमेश्वर स्वयं मेरे साथ है, मुझे दिलासा दे रहा और प्रोत्साहित कर रहा है। मैंने उन सभी संतों के बारे में भी विचार किया जो युगयुगांतर तक परमेश्वर के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए थे और आज भी इतने सारे भाई-बहनों ने परमेश्वर के राज्य सुसमाचार को फैलाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है। उनकी मृत्यु का अर्थ और मूल्य है और वे परमेश्वर द्वारा स्मरण किए जाते हैं। मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए गिरफ्तार किया गया था। अगर मुझे सताकर मार भी डाला गया, तो भी यह धार्मिकता के लिए होगा और महिमा की बात होगी। मैं चाहे मरूँ या जिऊँ, मैं परमेश्वर की गवाही दूंगी, मर भी गई तो मेरा जीवन निरर्थक नहीं होगा। इस सोचकर मेरे मन को बहुत शांति मिली, मन में अब उतना सूनापन या बेबसी नहीं थी। मैंने एक और प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मेरे सामने मौत का साया मंडरा रहा है। अगर मौत आती है, तो मैं तेरे व्यवस्थाओं को समर्पित होने को तैयार हूँ। और अगर मैं बच गई, तो भी मैं तुझे संतुष्ट करने के लिए एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाऊंगी। मैं अपने आपको पूरी तरह से तेरे हवाले कर दूंगी और अंत तक समर्पित रहूँगी।” इस प्रार्थना के बाद मुझे शांति की अनुभूति हुई। फिर मुझे मौत के ख्यालों ने बेबस नहीं किया और मेरे तन की पीड़ा भी कम हो गई। इस तरह, एक दिन बीता, फिर दूसरा दिन और फिर तीसरा...। मैं अभी भी जिंदा थी! मुझे दिल से पता था कि यह पूरी तरह से परमेश्वर की कृपा और सुरक्षा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के लोग तीन दिन बाद मुझसे और ज्यादा पूछताछ के लिए आए। मैंने कोठरी का दरवाजा खुलने से पहले ही सुधार अधिकारी को मेरा नाम पुकारते सुना। उस समय मेरी हालत सबसे ज्यादा खराब थी। बाकी कैदियों ने जैसे ही यह सुना, वे खड़े होकर शोर-गुल करने लगे और चिल्लाकर बोले, “इसकी हालत खराब है और आप लोग इससे पूछताछ करने आए हैं? आप लोग पूरे जंगली हैं। पीट-पीटकर इसकी ये हालत कर दी और अब सवाल-जवाब के लिए इसे अपने साथ ले जाने आए हो?” वहाँ करीब साठ लोग थे और उनमें से आधे से अधिक गुस्से में मेरे पक्ष में चिल्ला रहे थे। पूरी कोठरी में अफरातफरी मच गई। यह देख पुलिस ने मुझसे पूछताछ का इरादा छोड़ दिया। भावुकतावश मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, मैं परमेश्वर की सुरक्षा के लिए बहुत आभारी थी। बाद में तो मुख्य कैदी ने भी कहा, “मैं यहां दो साल से हूँ लेकिन मैंने ऐसा कभी नहीं देखा।” मैं जान गई कि परमेश्वर पर्दे के पीछे से मुझ पर निगरानी रखकर काम कर रहा है, मेरी मदद करने के लिए लोगों, घटनाओं और चीजों की व्यवस्था कर रहा है, वही मुझे इन सदमों से बचा रहा है। मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया!
कुछ दिनों तक मेरे पूरे शरीर में इतना भयंकर दर्द होता रहा कि मैं रात को सो नहीं पाती थी, ऐसे में मैं बस परमेश्वर के वचनों का चिंतन करती रहती थी। एक बार मुझे एक भजन याद आया “परमेश्वर के लिए पतरस का प्रेम” जो कि पतरस के अपने दुर्बलतम समय में परमेश्वर से प्रार्थना करने के बारे में है : “हे परमेश्वर! तू जानता है कि मैंने समय और स्थान की परवाह न करते हुए, हमेशा तुझे याद किया है। तू जानता है कि चाहे कोई भी समय और स्थान हो, मैं तुझसे प्रेम करना चाहता हूँ, परंतु मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, मैं बहुत कमजोर और शक्तिहीन हूँ, मेरा प्रेम बहुत सीमित है, और तेरे प्रति मेरी सत्यनिष्ठा बहुत कम है। तेरे प्रेम की तुलना में, मैं जीने के योग्य भी नहीं हूँ। मैं केवल यही कामना करता हूँ कि मेरा जीवन व्यर्थ न हो, और मैं न केवल तेरे प्रेम का प्रतिफल दे सकूँ, बल्कि, इसके अतिरिक्त जो कुछ भी मेरे पास है वह सब तुझे समर्पित कर सकूँ। यदि मैं तुझे संतुष्ट कर सकूँ, तो एक प्राणी के नाते, मेरे मन में शांति होगी, और मैं कुछ और नहीं मांगूंगा। यद्यपि अभी मैं कमजोर और शक्तिहीन हूँ, फिर भी मैं तेरे उपदेशों को नहीं भूलूंगा, और मैं तेरे प्रेम को नहीं भूलूंगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। उस भजन ने मुझे अंदर तक छू लिया। बेरहमी से प्रताड़ित किए जाने के उस पूरे अनुभव के दौरान, जब भी मैंने प्रार्थना की, कमजोरी और पीड़ा के पलों में परमेश्वर का आश्रय लिया, तो उसने मुझे प्रबुद्ध कर अपने वचनों से मेरा मार्गदर्शन किया और मेरे लिए बचने का रास्ता निकाला। परमेश्वर मेरे साथ रहकर मुझ पर नजर रखे हुए था और मेरी रक्षा कर रहा था। उस तरह के वातावरण का अनुभव करने से मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और शासन का पता चला, इससे परमेश्वर में मेरी आस्था और भी बढ़ गई। मैंने परमेश्वर का विरोध करने और लोगों को तबाह करने का बड़े लाल अजगर का शैतानी सार भी देखा—मैंने दिल से उसे नकारा और उसका त्याग कर दिया और अपने हृदय को परमेश्वर की ओर मोड़ दिया। परमेश्वर ने मुझे ऐसे व्यावहारिक तरीकों से शैतान की ताकतों से बचाया। परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता से भरकर, मैंने प्रार्थना की कि मरूँ या जिऊँ, मैं पूरा जीवन उसे देकर उसकी हर व्यवस्था को स्वीकारने के लिए तैयार हूँ। अगर मौत भी आए, तो भी मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूंगी! उसी क्षण से, मैंने महसूस किया कि मुझे कुछ भी न मिले तो भी चलेगा—बस परमेश्वर से अलग नहीं रह सकती। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर, मैंने महसूस किया कि मेरा हृदय उसके और करीब आता जा रहा है। परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा के तहत, चोटों के आसपास की सूजन बहुत जल्दी कम होने लगी, साँस लेते समय दिल के दर्द में भी कमी आई, हफ्ते भर बाद तो मैं दीवार का सहारा लेकर चलने भी लगी। जेल में हर कोई हैरान था, “देखो तो जरा, ये जरूर सच्चे परमेश्वर में विश्वास करती होगी!” मैं जानती थी कि यह सब परमेश्वर की महान शक्ति की कृपा है जिसने मौत के मुँह से वापस खींचकर मुझे दूसरा जीवन दिया है। मैंने परमेश्वर के उद्धार के लिए हृदय से धन्यवाद दिया!
चार महीने तक नजरबंदी गृह में रखने के बाद, कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे सामाजिक व्यवस्था को भंग करने के अपराध में एक साल की सश्रम पुनर्शिक्षा की सजा दी। रिहाई के वक्त पुलिस ने मुझे चेतावनी दी, “अगर तुम फिर से धार्मिक गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण गिरफ्तार की गई, तो भयंकर सजा मिलेगी।” लेकिन उनकी चेतावनी का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “ये लोग मुझ पर चाहे कितना भी अत्याचार करें या कितनी भी मुश्किलें आएँ, मैं हमेशा तेरा अनुसरण करूँगी!”
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