शैतान को हराने के लिए परमेश्वर का सहारा
2 जुलाई 2009 को सुबह 5 बजे मैं सभा के लिए निकल रही थी कि मैंने सड़क के किनारे एक काली सेडान खड़ी देखी और चार पुलिसवाले अचानक उसमें से कूदे। उनमें से एक के पास मेरी फोटो थी, वह मेरा नाम लेकर चिल्लाया और फिर वे सब अचानक मेरे घर में आ घुसे। उनमें से एक दूसरे कमरे में मेरे पति को रोके रहा, जबकि बाकी पुलिसवाले सारा सामान इधर-उधर फेंकते हुए तलाशी लेने लगे, पूरा घर तहस-नहस कर दिया। मैंने उनसे पूछा कि वे तलाशी क्यों ले रहे हैं, तो एक ने मुझे जोर से धकेलकर घूरते हुए कहा, "किसी ने शिकायत की है कि तुम धार्मिक हो।" मैंने कहा, "आस्था तो सही और कुदरती चीज है और मैं सही रास्ते पर हूँ। मैंने कौन सा कानून तोड़ा है?" फिर उन्होंने तलाशी में मिली परमेश्वर के वचनों की किताब दिखाई और दहाड़ते हुए बोले, "तुम्हारी आस्था गैरकानूनी है और यह तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए सबूत है।" वे मुझे हाथ पकड़कर घसीटते हुए कार तक ले गए और जबरन उसमें बिठा दिया। पुलिस थाने के रास्ते में, मैं सोचने लगी कि अब मैं पुलिस के हाथ लग गई हूँ तो पता नहीं मुझे कैसी यातनाएँ दी जाएँ। मैं बहुत डर गई थी और लगातार परमेश्वर से प्रार्थना कर रही थी। मैंने कहा, "परमेश्वर, मुझे कैसी भी यातना दी जाए, मुझे संभाल लेना और रास्ता दिखाना। मैं तुम्हारे साथ विश्वासघात करके यहूदा नहीं बनूँगी।" प्रार्थना के बाद मेरा डर थोड़ा कम हो गया।
पुलिस थाने पहुँचकर वे मुझे एक कमरे में ले गए और धक्के देकर नीचे फर्श पर बिठा दिया, फिर वे मुझ पर लात-घूंसे बरसाने लगे। उनमें से एक बोला, "अगर तुमने हमें सारी जानकारी नहीं दी तो तुम्हारी जिंदगी खत्म समझो। मैं तुम्हें दिखा दूँगा मैं किस मिट्टी का बना हूँ।" उसने मेरे बाल पकड़कर मेरे चेहरे और सिर पर जोरदार घूंसे मारे जिससे मेरा सिर चकराने लगा और नाक-मुँह से खून बहने लगा। फिर मेरे बालों को बहुत ज़ोर से पकड़कर वह मेरे दोनों गालों पर थप्पड़ बरसाने लगा जब तक कि वह थक नहीं गया, और फिर मुझे फर्श पर धकेल दिया। कुछ ही देर बाद एक अधिकारी अंदर आया जो जन सुरक्षा का प्रमुख था, वह मेरे पास बैठकर मेरा कंधा थपथपाते हुए बोला, "यह जिद छोड़ दो। अपने बच्चे के भविष्य और परिवार के बारे में सोचो। तुम्हें पता है हम तुम्हारे घर पुलिस की गाड़ी में क्यों नहीं आए? तुम्हारे परिवार की खातिर, ताकि हम तुम्हें चुपचाप ले आएँ और गाँव में किसी को पता न चले। सिर्फ हमें वह सब बता दो जो तुम जानती हो और हम तुम्हें घर छोड़ आएंगे। फिर तुम आराम से अपनी जिंदगी गुजारना। बस हमें सब कुछ बता दो! तुम्हारी कलीसिया का पैसा कहाँ रहता है? अगुआ कौन है? तुम्हारा धर्म किसने बदला?" मैं समझ गई यह शैतान की चाल है और परमेश्वर के वचनों को याद करने लगी : "तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और हर समय प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे याद दिलाया कि वह मुझसे कलीसिया की जानकारी पाने के लिए नरमी बरत रहा था, मुझे लालच दे रहा था, ताकि मैं परमेश्वर से विश्वासघात करूं। मैं इस जाल में नहीं फँसने वाली थी। उस दोपहर वह दो घंटे तक बार-बार यही सवाल करता रहा, लेकिन मुझे खामोश देखकर वह अचानक उठ खड़ा हुआ और मुझे बड़े खूंखार चेहरे से देखते हुए उसने दो करारे झापड़ मेरे चेहरे पर जड़ दिए। मेरा चेहरा सुलगने लगा। एक दूसरे अधिकारी के पास चमचमाता हुआ छुरा था, एक-डेढ़ फुट लंबा। बिना कुछ बोले मुझे घूरते हुए वह मेरे आस-पास चक्कर काटने लगा। यह देखकर मैं बहुत डर गई और मेरा कलेजा मेरे हलक में आ अटका। मुझे लग रहा था, अगर उसने मुझे वह छुरा भोंक दिया तो मैं बचूँगी नहीं। मैं प्रार्थना करके परमेश्वर को पुकारती रही और फिर मुझे परमेश्वर की कही एक बात याद आई। परमेश्वर कहते हैं, "सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। परमेश्वर के वचनों से मुझे आस्था और शक्ति मिली। पुलिसवाले कितने ही जालिम क्यों न हों, वे खुद और मेरी जिंदगी परमेश्वर के हाथ में थी। वे परमेश्वर की अनुमति के बिना मेरे साथ कुछ नहीं कर सकते। मुझे गवाही देने के लिए अपनी जान देने को भी तैयार रहना होगा, पर परमेश्वर से धोखा करके यहूदा बनने के लिए नहीं। मेरी हिम्मत लौट आई। मैं अब भी खामोश रही तो वह गुस्से में अपने दाँत पीसने लगा, और छुरे को मेज पर जोर से मारकर मुझे घूरते हुए बाहर निकल गया।
जन सुरक्षा प्रमुख अगले दिन भी मुझसे सवाल करता रहा, और मुझे खामोश देखकर मुझ पर चिल्लाने लगा, "अगर तुमने जुबान न खोली तो हमारे पास तुम्हारा मुँह खुलवाने की दूसरी जगह भी है।" इसके बाद वे तीन दूसरे लोगों के साथ मुझे जन सुरक्षा ब्यूरो में ले गए, और फिर मुझे एक बंदीगृह में भेज दिया। उस रात एक दूसरी कैदी ने मुझसे कुछ कहा। एक अधिकारी ने निगरानी चौकी से यह देखकर मुझे पूछताछ के कमरे में बुलाया और पूछा कि क्या मैं सुसमाचार का प्रचार कर रही थी। मैंने इनकार किया तो उसने मेरी कनपटी पर एक घूंसा जमाया और मैं नीचे गिर पड़ी। मेरा सिर चकराने लगा और दिन में तारे नजर आने लगे। मुझे बहुत दर्द हो रहा था। फिर कुछ दूसरे लोग भी मुझ पर लात-घूंसे बरसाने लगे। आधे घंटे तक यही होता रहा, मेरे नाक-मुंह से खून बहने लगा, मैं अपनी टांगें या कमर भी नहीं हिला पा रही थी। मैं बहुत गुस्से में थी, और मैं परमेश्वर के वचनों को याद करने लगी : "प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़ को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहां है? लोगों की स्वागत की भावना कहां है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। सीसीपी आस्था की आजादी की बात करती है, पर यह कोरा झूठ है। मुझे अपनी आस्था की वजह से बोलने की आजादी भी नहीं थी। परमेश्वर का अनुसरण करना बिल्कुल सही और कुदरती बात है। वे परमेश्वर की बनाई चीजें भोगते हैं, और उसी के खिलाफ जाकर विश्वासियों को गिरफ्तार करते हैं। उन्हें लगता है वे परमेश्वर के कार्य को नष्ट कर सकते हैं। वे परमेश्वर विरोधी राक्षसों का झुंड हैं! इसलिए मैं कम्युनिस्ट पार्टी से नफरत करने लगी।
4 जुलाई की दोपहर दो पुलिसवालों ने आकर मुझे हथकड़ी और जंजीरें पहना दीं और मेरी आँखों पर पट्टी बांधकर मुझे एक कार में ले गए। मैंने पूछा मुझे कहाँ ले जाया जा रहा है, तो एक ने कुटिलता से कहा, "जिंदा गाड़ने के लिए।" मैं सचमुच डर गई और मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी। "परमेश्वर, मुझे आस्था और हिम्मत दो ताकि वे मेरे साथ जो कुछ भी करें, मैं तुम्हारे साथ धोखा न करूँ, भले ही मैं मर जाऊँ।" प्रार्थना के बाद मुझे बाइबल का यह पद याद आया : "जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है" (मत्ती 10:28)। इससे मुझे कुछ आस्था और हिम्मत मिली। सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है, वे मेरी आत्मा को नहीं, सिर्फ शरीर को मार सकते हैं। इसके बाद मेरा डर कम हो गया। कार रुकी तो एक पुलिसवाले ने मेरे पाँवों की जंजीर को पकड़ते हुए मुझे किसी कंक्रीट के फर्श पर खींच लिया। मेरा सिर फर्श से टकराते ही चकराने लगा और मुझे कोई होश न रहा। पता नहीं कितनी देर तक मैं बेहोश रही, मगर फिर मैंने किसी को मुझसे बात करते पाया। मेरी आँख खुली तो मैं उसी कंक्रीट के फर्श पर पानी से तरबतर पड़ी हुई थी। फिर मुझे हल्का-सा याद आया कि वे मुझे होश में लाने के लिए मुझ पर पानी छिड़क रहे थे। मुझे होश आते देखकर पुलिसवाले ने मुझे पूछताछ के कमरे में ले जाकर लोहे की कुर्सी पर बिठा दिया, और उससे मेरे हाथ-पाँव बहुत कसकर बांध दिए। वे पाँच-छह लोग दाँत पीसते हुए एक बार फिर मुझ पर लात-घूंसे बरसाने लगे। और कहते रहे, "यह खुफिया पूछताछ का कमरा है। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वाले तुम लोगों को मारकर दफना भी सकते हैं और किसी को पता भी नहीं चलेगा। हम तुम्हें पीट-पीटकर मार सकते हैं।" मेरे नाक-मुंह से लगातार खून बह रहा था और मेरा पूरा शरीर दर्द से तड़प रहा था। मैं उस कुर्सी पर बस आगे झुककर बैठ पा रही थी। उनमें से एक फिर से पूछने लगा, "कलीसिया का पैसा कहाँ है? अगुआ कौन है? तुम्हारा धर्म किसने बदला? तुमने मुंह नहीं खोला तो हम तुम्हारी चमड़ी उतार कर रख देंगे!" मैंने कहा, "मैं कुछ नहीं जानती।" उसने गुस्से से एक मुक्का बनाया और मेरे चेहरे और सिर पर बरसाने लगा। मैं कुर्सी पर बेहोश हो गई। किसी दूसरे ने मेरे बाल पकड़कर मेरे चेहरे पर पानी छिड़का, मेरे सिर से खून और पानी साथ-साथ बहने लगा। मुझे चक्कर आ रहा था और मेरा सिर फटा जा रहा था—मुझे लगा मैं मौत के कगार पर हूँ। मैं प्रार्थना करके परमेश्वर को पुकार रही थी। तभी मुझे यह याद बात याद आई : परमेश्वर कहते हैं, "ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे तुम डरो। शैतान हमारे पैरों के नीचे हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। जीना-मरना परमेश्वर के हाथ में था, इसलिए शैतान चाहे कितना ही जालिम क्यों न हो, वह परमेश्वर के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकता। इससे मुझे कुछ आस्था मिली। इसके बाद सचमुच ही मुझे पिटाई से इतना दर्द नहीं हुआ। मुझे लगा मैं कपास के गोले में लिपटी हुई हूँ। मैं जानती थी यह परमेश्वर की निगरानी थी, और मैं उसके प्रति कृतज्ञता से भर गई।
इसके बाद 10 पुलिसवाले दो-दो की टीम बनाकर मुझसे शिफ्टों में सवाल करते रहे, वे रात-दिन न मुझे सोने देते थे और न खाने देते थे। मैं आँखें बंद करने लगती तो वे मुझे मारने लगते। और कुछ तो मेरे चेहरे से सटकर गंदी बातें करके मुझे जलील करते। एक बोला, "तुम्हारे कपड़े उतारकर तुम्हारे शरीर की खूबसूरती देखने का मन कर रहा है।" यह घिनौनी बात सुनकर मैं बिफर उठी और मैंने उसकी तरफ मुड़कर उस पर थूक दिया। वे सचमुच ही बर्बर जानवरों का झुंड थे। फिर दूसरा मुझसे बोला, "तुमने जुबान न खोली तो हम तुम्हारे कपड़े उतारकर तुम्हें सड़कों पर घुमाएंगे। तुम शर्म से डूब मरोगी!" मैं गुस्से में भी थी और डर भी रही थी, अपनी रक्षा के लिए मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करती जा रही थी। मुझे मुंह न खोलते देखकर, उनमें से छह पुलिसवाले मुझ पर लातें-घूंसे बरसाने लगे, मेरा चेहरा और नाक बुरी तरह सूज गया। मेरे आगे के कुछ दाँत हिल गए थे और उनसे खून बह रहा था। एक तो टूटकर निकलने ही वाला था। वे जलती सिगरेटों से मेरी बाहें भी जलाते रहे। मैं हर बार दर्द से बिलबिला उठती थी। उन्होंने मक्खी मारने के रैकेट से भी मेरे चेहरे पर करारे वार किये, और जब वह टूट गया तो उसके हत्थे से भी मुझे मारते रहे। मेरा चेहरा लहूलहान हो चुका था। इसके बाद उनमें से दो ने मेरे बाल पकड़कर, मेरे सिर को तेज झटके दिए, और फिर जबरन मेरा मुंह खोलकर उसमें दस मिनट तक पानी डालते रहे। मेरी सांस बुरी तरह अटक रही थी, लगता था मेरी आँखें बाहर निकल आएंगी। मैं लगातार चीख-चिल्ला रही थी दिल में बार-बार परमेश्वर को पुकार रही थी, "परमेश्वर, मैं और नहीं सह सकती। मुझे आस्था और शक्ति दो, मेरी रक्षा करो।" तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। परमेश्वर कहते हैं, "डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी नेक इच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। इस पर विचार करते ही मेरी आस्था और शक्ति लौट आई। परमेश्वर मेरा स्तंभ था, जिसके सहारे मैं टिकी थी। मैं सिर्फ अपने भरोसे यह यातना नहीं सह सकती थी, पर परमेश्वर की मदद से यह संभव था। वे कई घंटों तक मुझे यातना देते रहे। फिर एक पुलिसवाला बोला, "दूसरे लोग इस कुर्सी पर ज्यादा से ज्यादा तीन दिन में बोलना शुरू कर देते हैं। पर पाँच दिन बाद भी हम तुम्हारा मुंह नहीं खुलवा पाए हैं। देखते हैं तुम्हारे मुंह में ज्यादा ताकत है या मेरे मुक्के में।" इसके बाद वह मेरे सिर और मुंह पर मुक्के बरसाने लगा। मैं कुछ देख नहीं पा रही थी, बस चारों ओर तारे नज़र आ रहे थे। उन्होंने मुझे पाँच दिन-रात तक न सोने दिया और न खाने दिया, मुझे तेज बुखार था, पूरा बदन काँप रहा था और दाँत किटकिटा रहे थे। मेरी यह हालत देखकर उन्होंने जानबूझकर ए-सी चालू कर दिया। ठिठुरन की वजह से मुझे कुछ भी महसूस होना बंद हो गया और मैं सोचने लगी क्या मैं जमकर मर जाऊँगी। तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया। परमेश्वर कहते हैं, "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मेरी नियति परमेश्वर के हाथ में थी, अंतिम फैसला उसी को करना था। मैं शैतान के हाथों में पड़ गई थी और मुझे जिंदा बचकर निकलने की उम्मीद नहीं थी। मेरी कोई अपनी पसंद या जरूरतें नहीं थीं, मैं परमेश्वर के शासन के आगे सिर झुकाने और गवाही देने को तैयार थी, चाहे इसका मतलब मौत ही क्यों न हो। फिर धीरे-धीरे मेरे हाथों और टांगों में जान लौटने लगी तो उन्होंने अपनी बर्बर पूछताछ फिर से शुरू कर दी। तीस-पैंतीस साल के एक पुलिसवाले ने मेरे सिर पर तीन घूंसे मारे और बोला, "तुमने मुंह नहीं खोला तो हम पीट-पीटकर तुम्हें जान से मार देंगे। और यहीं पीछे दफना देंगे, किसी को पता तक नहीं चलेगा। हम तुम लोगों को मार दें तो भी कोई कुछ नहीं कहेगा, कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा।" वह हँसते हुए बोला, "तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हो? तो वह आकर तुम्हें बचाता क्यों नहीं? कहाँ है तुम्हारा परमेश्वर?" मैं खामोश रही पर यह सोचती रही कि परमेश्वर के लिए यह कितना आसान होगा। वह एक विचार से ही कुछ भी कर सकता था, पर वह इस तरह काम नहीं करता। परमेश्वर ने मुझे इसे सहन करने की अनुमति दी थी, ताकि मैं भले-बुरे में भेद कर सकूँ और यह देख सकूँ कि पुलिस सिर्फ ऊपर से ही ईमानदार लगती है, पर वे असल में इंसान के रूप में राक्षस हैं! वे कभी मुझसे परमेश्वर को धोखा नहीं दिलवा सकते।
आठवें दिन की सुबह पुलिसवालों ने मुझे उस कुर्सी से उठाया। मैं अधमरी-सी उठकर खड़ी हुई, मगर फिर मेरे सामने अंधेरा छा गया और मैं नीचे गिर पड़ी। मुझे नहीं पता मैं कितनी देर बेहोश रही, फिर दो पुलिसवाले मुझे एक बंदीघर में ले गए। कार से उतरते समय मैंने ध्यान दिया कि मेरी बाईं टांग बहुत सूजी हुई है, और वह पाँव भी। मेरे पाँवों में तब भी दस पाउंड की जंजीरें थीं। थोड़ा-सा हिलाते भी दर्द होता था, और मैं तेज नहीं चल पा रही थी। मुझे धीमे चलते देख एक पुलिसवाले ने मुझे ठोकर मारकर नीचे गिरा दिया। मैं किसी तरह वापस उठी और दीवार के सहारे एक-एक कदम आगे चलने लगी। बड़ी मुश्किल से ही जेल की कोठरी तक पहुँच पाई। कुछ कैदी तो मेरी खस्ता हालत देखकर रोने लगीं और कहने लगीं, "कितने जालिम हैं ये लोग!" मेरा नाक जख्मी था और पूरा चेहरा सूजा हुआ था, मैं पूरी आँखें भी नहीं खोल पा रही थी। मेरा मुंह इतना सूजा हुआ था कि मैं खुद भी देख सकती थी, आगे के दाँत भी टेढ़े हो गए थे। मेरी बायीं टांग इतनी सूजी हुई थी कि वॉशरूम में अपने कपड़े भी नहीं उतार पाती थी। मुझे पैंट में ही सू-सू करना पड़ता था। बाएँ पाँव में सूजन के कारण मैं जूता भी नहीं पहन सकती थी और लंबर डिस्क में हर्निया के कारण चल नहीं पा रही थी। कुछ दिन बाद, पुलिस मुझे अस्पताल ले गई क्योंकि मेरे जख्म बहुत गंभीर थे और उन सबके फँसने का डर था। डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि मेरी बाईं टांग की एक धमनी फट गई थी, और यह जल्दी ही मेरे फेफड़ों तक पहुँच सकती थी। फौरन ऑपरेशन करना जरूरी था। मगर पुलिसवालों ने डॉक्टर से सिर्फ दवा लिखकर देने के लिए कहा और मुझे कार में बिठाकर वापस बंदीघर ले आए। बंदीघर में जाते ही मैं फर्श पर लेट गई, मैं हिल तक नहीं पा रही थी। कुछ दिन की दवा के बाद मेरी हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ गई। टांग और पाँव की सूजन और बढ़ गई, और मेरा पेट भी सूज गया। साथी कैदी मेरी ऐसी हालत देख नहीं पा रही थीं, उन्होंने गुस्से से कहा, "ये लोग जालिम और बेरहम हैं। उन्होंने तुम पर समाज विरोधी होने का आरोप लगाया है, मगर दरअसल वे खुद समाज विरोधी हैं।" मेरी हालत दिनोंदिन बिगड़ रही थी और मेरी टांग में भयंकर दर्द था। मुझे याद आया कि डॉक्टर ने कहा था बिना इलाज के यह तेजी से बढ़ता जाएगा और मेरी कभी भी मौत हो सकती है। मैं कुछ कमजोर पड़ गई और सोचने लगी, "क्या ये लोग मुझे मौत आने तक तड़पाते रहेंगे?" तभी मुझे यह अंश याद आया : परमेश्वर कहते हैं, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक सर्वशक्तिशाली चिकित्सक है! बीमारी में रहने का मतलब बीमार होना है, परन्तु आत्मा में रहने का मतलब स्वस्थ होना है। जब तक तुम्हारी एक भी सांस बाकी है, परमेश्वर तुम्हें मरने नहीं देगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मेरा जीना-मरना परमेश्वर के हाथ में था, मैं उसकी अनुमति के बिना नहीं मर सकती थी। अगर परमेश्वर मेरी मौत की अनुमति देता है तो मुझे यह स्वीकार है, और मैं उसकी गवाही दूँगी।
दो हफ्ते बाद, पुलिस ने बंदीघर में मेरी मौत की जिम्मेदारी से बचने के लिए मुझे रिहा कर दिया। उनमें से दो पुलिसवाले मुझे स्ट्रेचर पर लिटाकर गेट तक ले गए और बोले, "तुम्हारा केस बंद नहीं हुआ है, तुम्हें बस थोड़े समय के लिए इलाज की खातिर छोड़ा जा रहा है।" मेरा परिवार मुझे लेने आया, और मेरी ऐसी खस्ता हालत देखकर रोने लगा। उन्होंने पुलिसवालों से कहा, "सिर्फ परमेश्वर में विश्वास करने के कारण तुमने इसका ऐसा हाल कर दिया है? और तुम लुटेरों ने उसकी रिहाई के लिए 20,000 युआन भी झपट लिए हैं।" फिर मेरा परिवार मुझे अस्पताल ले गया और जांच से वही बात पता चली। मेरी बाईं टांग की धमनी फट गई थी। डॉक्टर ने यह भी कहा थोड़ा जल्दी आना अच्छा रहता, अब फौरन सर्जरी किए बिना जान का खतरा है। मगर सर्जरी का खर्च हमारे लिए बहुत ज्यादा था, इसलिए मेरे सामने सिर्फ पुराने इलाज को आजमाने का ही विकल्प था। हम कई अस्पतालों में गए, पर सबने मेरी हालत बहुत गंभीर बताकर मुझे भर्ती नहीं किया। आखिर मेरे परिवार ने कुछ लोगों की मदद ली और एक अस्पताल ने मुझे किसी तरह भर्ती कर लिया। मेरा इलाज दो चरणों में हुआ, हैरानी की बात है कि मेरी टांग और पेट की सूजन बहुत कम हो गई, मैं खड़ी होने और धीरे-धीरे चलने भी लगी। डॉक्टर ने मेरी हिम्मत बढ़ाई और कहा, "यह एक चमत्कार है कि बिना सर्जरी के तुम इतनी जल्दी ठीक हो गई हो।" अस्पताल में एक महीने तक इलाज के बाद मैं काफी ठीक हो गई, मगर समस्या के कुछ लक्षण बाकी रह गए। मेरी बाईं टांग अब भी सुन्न हो जाती है और उसमें सिहरन-सी होने लगती है, मुझे चक्कर भी आते हैं और सिर में सूं-सूं की आवाजें आती रहती हैं। मेरे कुछ दाँत ढीले हो गए थे, जिसके कारण मुझे डेंटल इंप्लांट करवाना पड़ा। मेरी पीठ के निचले हिस्से में भी कई फ्रेक्चर आए थे, इसलिए मैं कोई शारीरिक काम नहीं कर पाती हूँ। मैं ऊपर से ठीक दिखती हूँ, मगर दरअसल मैं अपंग हो चुकी हूँ।
गिरफ्तारी और यातनाओं के बाद मैंने पार्टी की दुष्ट और परमेश्वर विरोधी प्रकृति को पहचाना, मैंने देखा कि वे सब न्याय से लड़ने, बुराई को पूजने और लोगों की आत्माओं को निगलने वाले राक्षस हैं। पर बड़ा लाल अजगर कितना ही दुष्ट क्यों न हो, वह परमेश्वर के हाथ में सिर्फ एक मोहरा है। उसे परमेश्वर की सेवा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस अनुभव से मुझे अंतर्दृष्टि मिली, भले-बुरे की पहचान हुई। इससे मुझे परमेश्वर के सर्वशक्तिमान कर्मों का अनुभव करने का भी मौका मिला। जब वे मुझे बुरी तरह पीट रहे थे तो मुझे परमेश्वर के वचनों से ही आस्था और शक्ति मिली, उसी ने मुझे शैतान को हराने और चमत्कारिक ढंग से जीवित रहने की राह दिखाई थी। परमेश्वर ने मुझे दूसरी जिंदगी दी है, और मैं उसके प्रेम की आभारी हूँ। मुझे बड़े लाल अजगर के हाथों भयानक यातना से गुजरना पड़ा, पर मैं नकारात्मक या कमजोर महसूस नहीं करती—परमेश्वर के अनुसरण के लिए मेरा संकल्प और भी बढ़ गया है। अस्पताल से छुट्टी मिलने के दो महीने बाद ही मुझे दूसरा कर्तव्य मिल गया, फिर मैंने बड़े लाल अजगर को पूरी तरह त्यागने और परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने के लिए अपना कर्तव्य निभाने का संकल्प लिया।
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