जब उद्धारकर्ता वापस आएगा, क्या वह तब भी यीशु ही कहलाएगा?

09 नवम्बर, 2021

अंत के दिनों में उद्धारकर्ता सर्वशक्तिमान परमेश्वर पहले ही पृथ्वी पर आ चुका है, वो सत्य व्यक्त करते हुए मानव-जाति को पूरी तरह से बचाने के लिए काम कर रहा है। जब से वचन देह में प्रकट होता है पुस्तक ऑनलाइन रखी गई है, दुनिया भर के लोगों ने देखा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और उन्होंने परमेश्वर की वाणी सुनी है। उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का चेहरा भले न देखा हो, पर वे निश्चित हैं कि उसके वचन पूरी तरह से पवित्र आत्मा के वचन हैं, यह परमेश्वर है जो मानव-जाति से बोल रहा है, और वचन देह में प्रकट हुआ है। उन्होंने अंततः मनुष्य के पुत्र का प्रकटन और कार्य देख लिया है, और परमेश्वर के पदचिह्न ढूँढ़ लिए हैं। रोमांचित होकर वे सभी समाचार साझा करने के लिए दौड़ पड़े हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को खुशी-खुशी स्वीकार कर वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने आ रहे हैं। वे रोजाना परमेश्वर के वर्तमान वचन खाते-पीते हैं, उन्हें पढ़कर अधिक प्रबद्धता प्राप्त करते हैं, परमेश्वर के वचनों के सिंचन और चरवाही का आनंद ले रहे हैं। वे कई सत्य सीखते हैं और उनका विश्वास बढ़ता है। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम फैलाने के लिए दौड़ रहे हैं, गवाही दे रहे हैं कि उद्धारकर्ता मनुष्य को बचाने के लिए संसार में आ गया है। वे विश्वास और शक्ति से ओतप्रोत हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से आराम पाते हैं। उनके पास अपनी खोज में उचित लक्ष्य और जीवन में दिशा है, वे परमेश्वर को अपना सब कुछ देते हुए उसकी गवाही दे रहे हैं। दुनिया भर में ज्यादा से ज्यादा लोग सच्चे मार्ग की पड़ताल कर रहे हैं। अब जबकि सभी प्रकार की आपदाएँ बरसने लगी हैं, हर व्यक्ति सच्चे मार्ग, पवित्र आत्मा के पदचिह्नों, उद्धारकर्ता के प्रकटन और कार्य की खोज करने के लिए बाध्य हो गया है। यह अपरिहार्य प्रवृत्ति है। दुनिया के हर देश के धार्मिक समुदायों में कई लोग सच्चे मार्ग को स्वीकार कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर मुड़ रहे हैं। कई देशों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया स्थापित की जा रही है, और यशायाह का यह पद साकार हो रहा है : “अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे(यशायाह 2:2)। जबकि कई लोग सच्चे मार्ग की पड़ताल कर रहे हैं, कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने पुष्टि तो की है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, अधिकार और शक्ति से भरे हैं, पर यह देखकर कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का रंग-रूप सामान्य है, वह प्रभु यीशु के आध्यात्मिक स्वरूप में प्रकट नहीं हुआ है और न ही उसने चिह्न और चमत्कार दिखाए हैं, वे इसी पर अटक कर उसे स्वीकारने से इनकार कर देते हैं। कुछ लोग को जरा-भी शक नहीं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, लेकिन चूँकि वे बाइबल में दर्ज नहीं हैं, इसलिए वे निश्चित नहीं हो पाते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु यीशु है। यहीं वे अटक जाते हैं और उसे स्वीकार नहीं करते। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो स्वीकार तो करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और परमेश्वर से आते हैं, लेकिन यह देखकर कि बाइबल कहती है “यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है” (इब्रानियों 13:8), वे मानते हैं कि यीशु नाम कभी नहीं बदलेगा। वे सोचते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम यीशु नहीं है, और बाइबल में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम का उल्लेख नहीं, इसलिए वे यह स्वीकार नहीं करते कि वह लौटा हुआ उद्धारकर्ता है। उन्हें लगता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारना प्रभु यीशु के साथ विश्वासघात होगा, इसलिए वे इस पर अटक कर उसे स्वीकार नहीं करते। इन तीनों स्थितियों की जड़ में एक ही समस्या है : सर्वशक्तिमान परमेश्वर किसी सामान्य व्यक्ति की तरह दिखता है, और वह जो कुछ भी कहता है, वह सत्य है, और शक्ति और अधिकार से युक्त है, लेकिन उसे यीशु नहीं कहा जाता और वह यीशु के आध्यात्मिक स्वरूप में प्रकट नहीं हुआ है, इसलिए वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को लौटा हुआ प्रभु यीशु नहीं मानेंगे। सिर्फ इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर इसे समझा जा सकता है, लेकिन परमेश्वर के प्रकटन और कार्य में ऐसे बड़े रहस्य हैं, जिनकी मनुष्य थाह नहीं पा सकता। सत्य की खोज किए बिना और परमेश्वर के वचनों और कार्य के तथ्यों के अनुसार चीजें निर्धारित किए बिना व्यक्ति सही उत्तर नहीं पा सकता। बाइबल के शब्दों और अपनी धारणाओं से आँख मूँदकर चिपके रहने, सत्य व्यक्त करने वाले मसीह को स्वीकारने से इनकार करने के अकल्पनीय परिणाम होंगे। यह ठीक उन यहूदियों की तरह है, जिन्होंने प्रभु यीशु के छुटकारे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और शापित हुए। यह दर्दनाक सबक लंबे समय से हमारे सामने है। अब जब उद्धारकर्ता आ गया है, तो हम कल्पना कर सकते हैं कि सत्य खोजने में विफल रहने के क्या परिणाम होंगे। क्या उद्धारकर्ता के वापस आने पर भी उसे “यीशु” ही कहा जाएगा? मैं इस विषय पर अपनी थोड़ी समझ साझा करूँगा।

सबसे पहले हमें यह समझना है कि कैसे इसकी पुष्टि की जाए कि यह उद्धारकर्ता का आगमन है। हम सिर्फ इससे तय नहीं कर सकते कि उसका नाम प्रभु यीशु है या नहीं, वह प्रभु यीशु की तरह दिखता है या नहीं। मुख्य है कि क्या वह सत्य व्यक्त कर सकता है, क्या वह परमेश्वर का कार्य कर सकता है, क्या वह मानव-जाति को शुद्ध कर बचा सकता है। अगर वह सत्य और परमेश्वर की वाणी व्यक्त कर सकता है, मानव-जाति को बचाने का कार्य कर सकता है, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे किस नाम से पुकारा जाता है या वह कितना साधारण दिखाई देता है। हम सुनिश्चित हो सकते हैं कि यह देहधारी परमेश्वर है, वापस लौटा प्रभु यीशु है। वह पृथ्वी पर आया उद्धारकर्ता है। अगर हम सिर्फ उसके नाम या बाहरी रूप से तय करते हैं, तो आसानी से गलती कर सकते हैं। हम सभी जानते हैं कि परमेश्वर व्यवस्था के युग में यहोवा के नाम से और अनुग्रह के युग में यीशु के नाम से जाना जाता था। उसे फिर यहोवा नहीं कहा गया, बल्कि यीशु के नाम से पुकारा गया, लेकिन प्रभु यीशु देहधारी यहोवा परमेश्वर ही था। वह मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी यहोवा परमेश्वर था, जो मनुष्यों के बीच प्रकट होकर कार्य करने आया था। प्रभु यीशु और यहोवा परमेश्वर का एक ही आत्मा था, और वे एक ही परमेश्वर थे। प्रभु यीशु द्वारा प्रकट किए गए पश्चात्ताप के तरीके और राज्य के रहस्यों ने, साथ ही उसके छुटकारे के कार्य ने भी, पूरी तरह से साबित कर दिया कि वह देहधारी परमेश्वर था, एक सच्चे परमेश्वर और उद्धारकर्ता का प्रकटन था। यहूदी धर्म के लोग उस समय इसे नहीं देख पाए। हालाँकि उनमें से कई लोगों ने माना कि प्रभु यीशु का मार्ग शक्ति और अधिकार से युक्त है, लेकिन चूँकि उसे “मसीहा” नहीं कहा जाता था और वह आम इंसान जैसा दिखता था, इसलिए उन्होंने उसे नकार दिया और उनकी निंदा की। प्रभु यीशु का मार्ग बहुत उत्कृष्ट होने पर भी उन्होंने उसकी खोज या पड़ताल नहीं की, बल्कि उस पर ईशनिंदा का आरोप लगाया, यहाँ तक कि उसे सूली पर चढ़ा दिया। उन्हें परमेश्वर ने शापित और दंडित किया था। उनसे कहाँ गलती हुई? वे नहीं जानते थे कि देहधारण क्या होता है और देहधारी परमेश्वर की दिव्यता सत्य की अभिव्यक्ति के जरिये दिखाई जाती है, इसलिए मनुष्य के पुत्र ने चाहे कितना भी सत्य व्यक्त किया हो या उसका कार्य कितना भी महान क्यों न हो, उन्होंने उसे परमेश्वर के रूप में स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उसे मनुष्य कहा; वे इस बारे में पूरी तरह निश्चित थे और उन्होंने विश्वास करने से इनकार कर दिया। नतीजतन, वे परमेश्वर के उद्धार से चूक गए और दंडित और शापित हुए। क्या यह मनुष्य की मूर्खता और अज्ञानता नहीं? और अब, हालाँकि धार्मिक दुनिया में बहुत-से लोग मानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और परमेश्वर से आते हैं, फिर भी वे अपनी धारणा और कल्पना अनुसार शाब्दिक पवित्रशास्त्र से चिपके रहते हैं, और इस पर अड़े हैं कि परमेश्वर का नाम यीशु है जो कभी नहीं बदलेगा, और जब वह लौटेगा तो उसे इसी नाम से पुकारा जाएगा। चूँकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम यीशु नहीं है, और वह यीशु की छवि में बादल पर नहीं आया, इसलिए वे यह मानने से एकदम इनकार कर देते हैं कि वह लौटा हुआ प्रभु यीशु है। क्या वे यहूदियों वाली गलती ही नहीं कर रहे? नतीजतन, उन्होंने अभी तक प्रभु का स्वागत नहीं किया है, इसलिए वे बड़ी आपदाओं में पड़ेंगे, अपनी छाती पीटेंगे, रोएँगे और अपने दाँत पीसेंगे। प्रभु का स्वागत करने और आपदाओं से पहले स्वर्गारोहित होने की उनकी आशा चूर हो जाएगी। क्या यह दुखद नहीं है? क्या यह सच है कि परमेश्वर का यीशु नाम कभी नहीं बदलेगा? क्या बाइबल, परमेश्वर के वचन इसका समर्थन करते हैं? असल में, बाइबल ने बहुत पहले भविष्यवाणी कर दी थी कि प्रभु एक नए नाम से आएगा। यशायाह स्पष्ट भविष्यवाणी करता है : “तब जाति जाति के लोग तेरा धर्म और सब राजा तेरी महिमा देखेंगे, और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा जो यहोवा के मुख से निकलेगा(यशायाह 62:2)। और प्रकाशितवाक्य कहता है : “जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्‍वर का नाम और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्‍वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा(प्रकाशितवाक्य 3:12)। इन दोनों पदों में स्पष्ट रूप से परमेश्वर का एक नया नाम होने का उल्लेख है। चूँकि यह एक नया नाम है, जो उसने पहले कभी नहीं रखा था, यह निश्चित है कि जब प्रभु लौटेगा तो उसे यीशु नहीं कहा जाएगा। फिर उसका नया नाम क्या है? यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। यह पूरी तरह से प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी के अनुरूप है : “प्रभु परमेश्‍वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्‍तिमान है, यह कहता है, ‘मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ’(प्रकाशितवाक्य 1:8)। “हल्‍लिलूय्याह! क्योंकि प्रभु हमारा परमेश्‍वर सर्वशक्‍तिमान राज्य करता है(प्रकाशितवाक्य 19:6)। और प्रकाशितवाक्य 4:8, 11:17 और 16:7 जैसे अन्य कई पदों में “सर्वशक्तिमान” नाम का उल्लेख किया गया है। स्पष्ट है जब प्रभु अंत के दिनों में लौटता है, तो उसे सर्वशक्तिमान, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाता है। इसमें कोई शक नहीं है। यह विश्वास कि परमेश्वर का यीशु नाम कभी नहीं बदलेगा, कि अंत के दिनों का हमारा उद्धारकर्ता यीशु कहलाएगा, पूरी तरह से एक इंसानी धारणा है जो वास्तविकता के जरा भी अनुरूप नहीं है।

यहाँ कुछ लोग पूछ सकते हैं कि परमेश्वर अपना नाम क्यों बदलेगा। इसके पीछे क्या अर्थ है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य के ये सभी रहस्य प्रकट किए हैं। इसे बेहतर समझने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को देखें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर का नाम नहीं बदलता, तो फिर यहोवा का नाम यीशु क्यों हो गया? यह भविष्यवाणी की गई थी मसीहा आएगा, तो फिर यीशु नाम का एक व्यक्ति क्यों आ गया? परमेश्वर का नाम क्यों बदल गया? क्या इस तरह का कार्य काफी समय पहले नहीं किया गया था? क्या परमेश्वर आज नया कार्य न करे? कल का कार्य बदला जा सकता है, और यीशु का कार्य यहोवा के कार्य के बाद आ सकता है। तो क्या यीशु के कार्य के बाद कोई अन्य कार्य नहीं हो सकता? यदि यहोवा का नाम बदल कर यीशु हो सकता है, तो क्या यीशु का नाम भी नहीं बदला जा सकता? इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है; बात केवल इतनी-सी है कि लोग बहुत सरल दिमाग के हैं। परमेश्वर हमेशा परमेश्वर ही रहेगा। चाहे उसका काम कैसे भी बदले, चाहे उसका नाम कैसे भी बदल जाए, लेकिन उसका स्वभाव और बुद्धि कभी नहीं बदलेगी। यदि तुम्हें लगता है कि परमेश्वर को केवल यीशु के नाम से ही पुकारा जा सकता है, तो फिर तुम्हारा ज्ञान बहुत सीमित है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?)

प्रत्येक युग में परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है; वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है? वह पुराने से कैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्य के वास्ते लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा, तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा? क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं है, क्योंकि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? ऐसा होने पर, परमेश्वर को भिन्न युग में भिन्न नाम से ही बुलाया जाना चाहिए, और उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए उस नाम का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, और प्रत्येक नाम केवल एक दिए गए युग में परमेश्वर के स्वभाव के उस समय से संबंधित पहलू का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है; उसे केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व ही करना है। इसलिए, समस्त युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए परमेश्वर ऐसे किसी भी नाम को चुन सकता है, जो उसके स्वभाव के अनुकूल हो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))

‘यहोवा’ वह नाम है, जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोगों) का परमेश्वर, जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन कर सकता है; वह परमेश्वर, जिसके पास बड़ा सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है। ‘यीशु’ इम्मानुएल है, जिसका अर्थ है वह पाप-बलि, जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा दिलाता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबंधन-योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। ... केवल यीशु ही मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाला है, और वह वो पाप-बलि है, जिसने मानवजाति को पाप से छुटकारा दिलाया है। कहने का तात्पर्य यह है कि यीशु का नाम अनुग्रह के युग से आया, और अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य के कारण विद्यमान रहा। यीशु का नाम अनुग्रह के युग के लोगों को पुनर्जन्म दिए जाने और बचाए जाने के लिए अस्तित्व में आया, और वह पूरी मानवजाति के उद्धार के लिए एक विशेष नाम है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)

यदि मनुष्य अब भी अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्ता यीशु के आगमन की अभिलाषा करता है, और उसके अब भी उसी छवि में आने की अपेक्षा करता है जो उसने यहूदिया में अपनाई थी, तो छह हज़ार सालों की संपूर्ण प्रबंधन-योजना छुटकारे के युग में रुक गई होती, और आगे प्रगति न कर पाती। इतना ही नहीं, अंत के दिनों का आगमन कभी न होता, और युग का समापन कभी न किया जा सकता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उद्धारकर्ता यीशु सिर्फ मानवजाति के छुटकारे और उद्धार के लिए है। ‘यीशु’ नाम मैंने अनुग्रह के युग के सभी पापियों की खातिर अपनाया था, और यह वह नाम नहीं है जिसके द्वारा मैं पूरी मानवजाति को समापन पर ले जाऊँगा। यद्यपि यहोवा, यीशु और मसीहा सभी मेरे पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं, किंतु ये नाम केवल मेरी प्रबंधन-योजना के विभिन्न युगों के द्योतक हैं, और मेरी संपूर्णता में मेरा प्रतिनिधित्व नहीं करते। पृथ्वी पर लोग मुझे जिन नामों से पुकारते हैं, वे मेरे संपूर्ण स्वभाव और स्वरूप को व्यक्त नहीं कर सकते। वे मात्र अलग-अलग नाम हैं, जिनके द्वारा मुझे विभिन्न युगों के दौरान पुकारा जाता है। और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं—मुझे सामर्थ्यवान स्वयं सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के तहत ही मैं समस्त युग का समापन करूँगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)

अब मुझे लगता है कि हम परमेश्वर के नाम बदलने का महत्व समझ सकते हैं। परमेश्वर हमेशा नया रहता है, कभी पुराना नहीं होता, और उसका कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है। जैसे-जैसे युग और उसका कार्य बदलता है, उसका नाम भी बदल जाता है। अपने कार्य के प्रत्येक चरण के साथ, प्रत्येक नए युग के साथ, परमेश्वर विशेष अर्थ वाला एक नाम अपनाता है, जो उसके द्वारा किए जा रहे कार्य और उस युग के लिए व्यक्त उसके स्वभाव को दर्शाता है। यह समझकर, हम परमेश्वर को केवल यहोवा और यीशु दो नामों में सीमित नहीं करेंगे। हम परमेश्वर को अपनी धारणाओं और कल्पनाओं में सीमित नहीं करेंगे। हम जानते हैं कि परमेश्वर के स्वरूप में सभी चीजें समाहित हैं। वह पूरी तरह से बुद्धिमान और सर्वशक्तिमान है! कोई इंसानी भाषा इसे व्यक्त नहीं कर सकती, तो एक या दो नाम कैसे कर सकते हैं? कोई भी नाम पूरी तरह से परमेश्वर के स्वरूप को नहीं दर्शा सकता। इसीलिए परमेश्वर हर युग के लिए अलग नाम अपनाता है। व्यवस्था के युग में परमेश्वर को यहोवा कहा गया, और उसने उसी नाम से व्यवस्था और आज्ञाएँ जारी कीं। उसने पृथ्वी पर मानव-जाति के जीवन का मार्गदर्शन किया, उन्हें बताया कि पाप क्या है, उन्हें कैसे जीना चाहिए, कैसे यहोवा परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए। परमेश्वर ने व्यवस्था के युग के लिए यहोवा नाम निर्धारित किया था, और यह केवल उस युग के उसके कार्य, और उसके द्वारा उस युग में व्यक्त दया, प्रताप और कोप के उसके स्वभावों को दर्शाता था। व्यवस्था के युग के अंत में लोग शैतान द्वारा अधिकाधिक भ्रष्ट होते गए, अधिकाधिक पापी होते गए। कोई व्यवस्था का पालन नहीं कर सकता था। अगर ऐसा चलता रहता, तो उन सभी की निंदा की जाती और व्यवस्था के तहत मौत के घाट उतार दिया जाता। मानव-जाति को छुटकारा दिलाने के लिए परमेश्वर मनुष्य के पुत्र के रूप में स्वयं देह बना, उसने यीशु के नाम से छुटकारे का कार्य किया। उसने अनुग्रह के युग की शुरुआत की और व्यवस्था के युग का अंत किया। प्रभु यीशु ने मानव-जाति को पश्चात्ताप का मार्ग दिया और हमारे पाप क्षमा किए, हमें शांति, आनंद और अविश्वसनीय अनुग्रह प्रदान किया। अंतत: पूरी मानव-जाति को छुटकारा दिलाते हुए उसे सूली पर चढ़ा दिया गया। यीशु अनुग्रह के युग के लिए परमेश्वर का निर्धारित नाम था, जो उसके प्रेम और दया के स्वभाव के साथ-साथ उस युग के लिए उसके छुटकारे के कार्य को दिखाता था। परमेश्वर के कार्य के इन दो चरणों से हम देख सकते हैं कि उसके प्रत्येक नाम का एक विशेष महत्व है। वे उस युग के लिए परमेश्वर के कार्य और स्वभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। आइए, इसके बारे में सोचें। अगर प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में यहोवा नाम रखा होता, तो परमेश्वर का कार्य अनुग्रह के युग में ही रुक जाता। तब भ्रष्ट मानव-जाति ने कभी छुटकारा न पाया होता, और व्यवस्था के तहत हमारे पापों के लिए हमें दोषी ठहराकर मौत के घाट उतार दिया जाता। हम आज तक कभी न आ पाए होते। अंत के दिनों में भी ऐसा ही है—प्रभु यीशु अगर यीशु के नाम से ही लौटता, तो परमेश्वर का कार्य केवल छुटकारे के चरण में रहता, और लोग केवल प्रभु यीशु के छुटकारे और पापों की क्षमा ही प्राप्त कर पाते। हम सबकी पापी प्रकृति का समाधान नहीं हो पाता। हमारे पास पाप से बचने और शुद्ध होने का कोई रास्ता न होता, और हम कभी भी स्वर्ग के राज्य के योग्य न बन पाते। प्रभु यीशु ने कई बार अंत के दिनों में अपनी वापसी की भविष्यवाणी की थी, कि वह सत्य व्यक्त करेगा और मानव-जाति को शुद्ध करने न्याय का कार्य करेगा, मानव-जाति को पाप से पूरी तरह बचाएगा, और हमें परमेश्वर के राज्य में ले जाएगा। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, “यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा(यूहन्ना 12:47-48)। “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा(यूहन्ना 16:12-13)। तो अंत के दिनों में, जब परमेश्वर एक नए युग और अपने नए कार्य की शुरुआत करता है, क्या वह अभी भी यीशु कहलाएगा? हरगिज नहीं। प्रभु यीशु अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में कार्य करने लौटा है, उसने राज्य के युग की शुरुआत और अनुग्रह के युग का अंत किया है। वह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, ताकि मानव-जाति को पाप और शैतान की ताकतों से पूरी तरह से बचा सके, और विजेताओं का एक समूह बना सके। उसके बाद वह दुष्टों को दंडित करने और भलों को पुरस्कृत करने के लिए बड़ी आपदाएँ बरसाएगा, अंधकार और बुराई से युक्त पुराने युग को मिटा देगा, और तब पृथ्वी पर मसीह का राज्य साकार होगा। यह प्रकाशितवाक्य की इन भविष्यवाणियों को पूरा करता है : “प्रभु परमेश्‍वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्‍तिमान है, यह कहता है, ‘मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ’(प्रकाशितवाक्य 1:8)। “हल्‍लिलूय्याह! क्योंकि प्रभु हमारा परमेश्‍वर सर्वशक्‍तिमान राज्य करता है(प्रकाशितवाक्य 19:6)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वही परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन एकदम स्पष्ट हैं। यहोवा, यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक ही सच्चे परमेश्वर के नाम हैं। वह व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के लिए अलग-अलग नाम अपनाता है। हालाँकि उसका कार्य और उसका नाम युग के साथ बदलता है, और वह अलग-अलग तरीकों से प्रकट होता है, लेकिन उसका सार कभी नहीं बदलता, और उसका स्वभाव और स्वरूप कभी नहीं बदलेगा। वह हमेशा एक परमेश्वर, एक आत्मा है, जो मानव-जाति की अगुआई करने, उसे छुटकारा दिलाने और पूरी तरह से बचाने के लिए कार्य कर रहा है। अंत के दिनों में उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में देहधारण किया है, और हालाँकि उसे यीशु नहीं कहा जाता और वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह दिखता है, फिर भी उसने परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य के दौरान मानव-जाति को शुद्ध करने और बचाने वाले सभी सत्य व्यक्त किए हैं। वह अपने वचनों से लोगों का न्याय कर उन्हें उजागर करता है, शैतान द्वारा हमारी गहन भ्रष्टता और हमारी शैतानी प्रकृति उजागर करता है, हमें सत्य के वे सभी पहलू दिखाता है जिनकी हमें शुद्ध किए जाने और बचाए जाने के लिए जरूरत है। उसके चुने हुए लोग रोजाना उसके वचन खाते-पीते हैं, उसके वचनों द्वारा न्याय, ताड़ना, निपटान, परीक्षण और शोधन स्वीकार करते हैं, और उनके भ्रष्ट स्वभाव धीरे-धीरे शुद्ध और परिवर्तित किए जाते हैं। वे धीरे-धीरे बुराई और शैतानी ताकतों से बचते हैं, और पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा बचाए जाते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आपदाओं से पहले ही विजेताओं का एक समूह बना लिया है, जो पूरी तरह से परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता दर्शाता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के दौरान, कम्युनिस्ट पार्टी की शैतानी ताकतों द्वारा लगातार क्रूर उत्पीड़न और गिरफ्तारी के साथ-साथ धार्मिक दुनिया की मसीह-विरोधी ताकतों द्वारा निंदा और तिरस्कार के बावजूद सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार पूर्व से पश्चिम तक पूरे विश्व में फैल गया है। यह दर्शाता है कि परमेश्वर का महान कार्य पूरा हो रहा है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर पूरी तरह से शैतान पर विजय प्राप्त कर सारी महिमा हासिल कर रहा है! बड़ी आपदाएँ पहले ही शुरू हो चुकी हैं और धार्मिक दुनिया अस्त-व्यस्त हो चुकी है, लेकिन उनमें से बहुत-से लोग अभी भी प्रभु यीशु के नाम से हठपूर्वक चिपके हुए हैं और उसके बादल पर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर चाहे कितना भी सत्य व्यक्त करे, उसका कार्य कितना भी महान हो, वे उसे स्वीकारने से इनकार करते हैं। वे पागलों की तरह उसके प्रकटन और कार्य की निंदा और विरोध तक करते हैं। वे उन फरीसियों से कैसे अलग हैं जो मसीहा के नाम से चिपके रहकर पागलों की तरह प्रभु यीशु का विरोध कर रहे थे? क्या वे सभी मूल रूप से परमेश्वर को सूली पर चढ़ाने वाले लोग नहीं हैं? वे व्यर्थ ही प्रभु यीशु के नाम से चिपके रहकर पागलों की तरह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं। आपको क्या लगता है कि अंत में उनका क्या हश्र होगा?

अंत में, आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक वीडियो देखें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “क्या तुम लोग कारण जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन का सत्य अनुसरण नहीं किया। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के बस नाम के साथ चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या यह सोच हास्यास्पद और बेतुकी नहीं है? मैं तुम लोगों से आगे पूछता हूँ : क्या तुम लोगों के लिए वो ग़लतियां करना बेहद आसान नहीं, जो बिल्कुल आरंभ के फरीसियों ने की थीं, क्योंकि तुम लोगों के पास यीशु की थोड़ी-भी समझ नहीं है? क्या तुम सत्य का मार्ग जानने योग्य हो? क्या तुम सचमुच विश्वास दिला सकते हो कि तुम मसीह का विरोध नहीं करोगे? क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने योग्य हो? यदि तुम नहीं जानते कि तुम मसीह का विरोध करोगे या नहीं, तो मेरा कहना है कि तुम पहले ही मौत की कगार पर जी रहे हो। जो लोग मसीहा को नहीं जानते थे, वे सभी यीशु का विरोध करने, यीशु को अस्वीकार करने, उसे बदनाम करने में सक्षम थे। जो लोग यीशु को नहीं समझते, वे सब उसे अस्वीकार करने एवं उसे बुरा-भला कहने में सक्षम हैं। इसके अलावा, वे यीशु के लौटने को शैतान द्वारा किए गए धोखे की तरह देखने में सक्षम हैं और अधिकांश लोग देह में लौटे यीशु की निंदा करेंगे। क्या इस सबसे तुम लोगों को डर नहीं लगता? जिसका तुम लोग सामना करते हो, वह पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा होगी, कलीसियाओं के लिए कहे गए पवित्र आत्मा के वचनों का विनाश होगा और यीशु द्वारा व्यक्त किए गए समस्त वचनों को ठुकराना होगा। यदि तुम लोग इतने संभ्रमित हो, तो यीशु से क्या प्राप्त कर सकते हो? यदि तुम हठपूर्वक अपनी ग़लतियां मानने से इनकार करते हो, तो श्वेत बादल पर यीशु के देह में लौटने पर तुम लोग उसके कार्य को कैसे समझ सकते हो? मैं तुम लोगों को यह बताता हूँ : जो लोग सत्य स्वीकार नहीं करते, फिर भी अंधों की तरह श्वेत बादलों पर यीशु के आगमन का इंतज़ार करते हैं, निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा करेंगे और ये वे वर्ग हैं, जो नष्ट किए जाएँगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)

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