आज परमेश्वर के कार्य को जानना (अंश II)

अंत के दिनों में परमेश्वर मुख्य रूप से अपने वचन बोलने के लिए आया है। वह आत्मा के दृष्टिकोण से, मनुष्य के दृष्टिकोण से, और तीसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण से कहता है; वह, कुछ समय के लिए एक प्रकार का उपयोग करते हुए, भिन्न-भिन्न तरीकों से कहता है, और बोलने के तरीकों का मनुष्य की अवधारणाओं को बदलने और मनुष्य के हृदय से अस्पष्ट परमेश्वर की छवि को हटाने के लिए उपयोग करता है। यही मुख्य कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया है। क्योंकि मनुष्य विश्वास करता है कि परमेश्वर चंगा करने, पिशाचों को निकालने, चमत्कारों को करने, और मनुष्य पर भौतिक आशीषें प्रदान करने के लिए आया है, इसलिए परमेश्वर कार्य के इस चरण को करता है—ताड़ना और न्याय का कार्य—ताकि मनुष्य की अवधारणाओं में से इस प्रकार की बातों को निकाल दिया जाए, ताकि मनुष्य परमेश्वर की वास्तविकता और सादगी को जान ले, और ताकि यीशु की छवि उसके हृदय से निकाल दी जाए और परमेश्वर की एक नई छवि से प्रतिस्थापित कर दी जाए। जैसे ही परमेश्वर की छवि मनुष्यों के हृदयों में पुरानी हो जाती है, तो वह एक प्रतिमा बन जाती है। जब यीशु ने आकर कार्य के चरण को किया, तो उसने परमेश्वर की सम्पूर्णता का प्रतिनिधित्व नहीं किया। उसने कुछ चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित किया, कुछ वचन बोले, और उन्हें अंत में सलीब पर चढ़ा दिया गया, और उसने परमेश्वर के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व किया। वह उस सम्पूर्ण को प्रकट नहीं कर सका जो परमेश्वर का है, बल्कि उसने परमेश्वर के कार्य के एक भाग को करने में परमेश्वर का प्रतिनिधित्व किया। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर बहुत महान है, और बहुत चमत्कारिक है, और अथाह है, और क्योंकि परमेश्वर प्रत्येक युग में अपने कार्य के एक भाग को करता है। इस युग के दौरान परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य मुख्य रूप से मनुष्य के जीवन के लिए वचनों का प्रावधान करना, मनुष्य की प्रकृति के सार और भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करना था, धार्मिक अवधारणाओं, सामन्ती सोच, पुरानी सोच, साथ ही मनुष्य के ज्ञान और संस्कृति को समाप्त करना था। यह सब कुछ परमेश्वर के वचनों के माध्यम से अवश्य सामने लाया जाना और साफ किया जाना चाहिए। अंत के दिनों में, मनुष्य को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर वचनों का उपयोग करता है, न कि चिह्नों और चमत्कारों का। वह मनुष्य को उजागर करने, मनुष्य का न्याय करने, मनुष्य को ताड़ित करने और मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करता है, ताकि परमेश्वर के वचनों में, मनुष्य परमेश्वर की बुद्धि और सुन्दरता को देख ले, और परमेश्वर के स्वभाव को समझ जाए, ताकि परमेश्वर के वचनों के माध्यम से, मनुष्य परमेश्वर के कार्यों को निहार ले। व्यवस्था के युग के दौरान, मूसा को यहोवा अपने वचनों के साथ मिस्र से बाहर ले गए, और कुछ वचन इज़राइलियों को बोले; उस समय, परमेश्वर के कर्मों के हिस्से को समझाया गया था, परन्तु क्योंकि मनुष्य की क्षमता सीमित थी और कोई भी चीज उसके ज्ञान को पूर्ण नहीं कर सकती थी, इसलिए परमेश्वर निरंतर बोलता और कार्य करता रहा। अनुग्रह के युग में, मनुष्य ने एक बार और परमेश्वर के कार्यों के हिस्से को देखा। यीशु चिह्नों और चमत्कारों को दिखाने, चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने में और सलीब पर चढ़ने में समर्थ था, जिसके तीन दिन बाद वह पुनर्जीवित हुआ था और देह में मनुष्य के सामने प्रकटहुआ था। परमेश्वर के बारे में, मनुष्य इससे अधिक और कुछ नहीं जानता है। मनुष्य उतना ही जानता है जितना उसे परमेश्वर के द्वारा दिखाया जाता है, और यदि परमेश्वर को मनुष्य को और अधिक नहीं दिखाना होता, तो यह परमेश्वर के बारे में मनुष्य के परिसीमन की सीमा होती। इस प्रकार, परमेश्वर कार्य करता रहता है, ताकि उसके बारे में मनुष्य का ज्ञान अधिक गहरा हो जाए, और ताकि वह धीरे-धीरे परमेश्वर के सार को जान जाए। परमेश्वर अपने वचनों को मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए उपयोग में लाता है। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव प्रकट होता है, और तुम्हारी धार्मिक अवधारणाएँ परमेश्वर की वास्तविकता के द्वारा प्रतिस्थापित होती हैं। अंत के दिनों का देहधारी परमेश्वर मुख्य रूप से अपने इन वचनों को पूरा करने आया है कि "वचन देहधारी होता है, वचन देह में आता है और वचन देह में प्रकट होता है।" और यदि तुम्हें इसका सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है, तो तुम तब भी दृढ़ता से खड़े रहने में असमर्थ रहोगे; अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर मुख्य रूप से कार्य के ऐसे चरण को पूरा करने का विचार रखता है जिसमें वचन देह में प्रकट होता है, और यह परमेश्वर के प्रबंधन की योजना का एक भाग है। इस प्रकार, तुम लोगों का ज्ञान स्पष्ट अवश्य होना चाहिए; इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर कैसे कार्य करता है, परमेश्वर स्वयं की सीमा निर्धारित करने की मनुष्य को अनुमति नहीं देते हैं। यदि परमेश्वर ने अंत के दिनों के दौरान इस कार्य को नहीं किया होता, तो मनुष्य का परमेश्वर के प्रति ज्ञान आगे नहीं बढ़ सकता है। तुम केवल यह जानोगे कि परमेश्वर को सलीब पर चढ़ाया जा सकता है और परमेश्वर सदोम को नष्ट कर सकता है, और कि यीशु मर कर भी जीवित हो सकता है और पतरस के सामने प्रकट हो सकता है... परन्तु तुम कभी भी नहीं कहोगे कि परमेश्वर के वचन सब कुछ निष्पादित कर सकते हैं, और मनुष्य को जीत सकते हैं। केवल परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने के द्वारा ही तुम इस प्रकार के ज्ञान के बारे में बोल सकते हो, और जितना अधिक तुम परमेश्वर के कार्य का अनुभव करोगे, उतना ही अधिक विस्त़ृत तुम्हारा ज्ञान हो जाएगा। केवल तभी तुम अपनी स्वयं की अवधारणाओं की सीमाओं में परमेश्वर को बाँधना समाप्त करोगे। मनुष्य परमेश्वर के कार्यों का अनुभव करने के द्वारा उसे जान लेता है, और परमेश्वर को जानने का कोई अन्य सही मार्ग नहीं है। आज, यहाँ कई लोग हैं जो कुछ नहीं करते हैं बल्कि चिह्नों और चमत्कारों तथा विनाश के समय को देखने की प्रतीक्षा करते हैं। क्या तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, अथवा क्या तुम विनाश पर विश्वास करते हो? यदि तुम विनाश तक इंतजार करोगे तो बहुत देर हो जाएगी, और यदि परमेश्वर विनाश को नहीं भेजता है, तो क्या तब वह परमेश्वर नहीं है? क्या तुम चिह्नों और चमत्कारों पर विश्वास करते हो, या तुम परमेश्वर स्वयं पर विश्वास करते हो? जब दूसरों के द्वारा यीशु का उपहास किया गया था तो उसने चिह्न और चमत्कार नहीं दिखाए; तो क्या वह परमेश्वर नहीं था? क्या तुम चिह्नों और चमत्कारों पर विश्वास करते हो, अथवा तुम परमेश्वर के सार में विश्वास करते हो? परमेश्वर में विश्वास के बारे में मनुष्य का दृष्टिकोण गलत है! यहोवा ने व्यवस्था के युग में बहुत से वचन कहे, बल्कि यहाँ तक कि आज भी उनमें से कुछ को अभी पूरा होना है। क्या तुम कह सकते हो कि यहोवा परमेश्वर नहीं था?

— "वचन देह में प्रकट होता है" से उद्धृत

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