जिम्मेदारी से कर्तव्य निभाने का अर्थ है ज़मीर का होना

05 अप्रैल, 2022

सोंग यू, नीदरलैंड

पिछले साल जुलाई में एक दिन, बहन ली ने मुझे रिपोर्ट की कि टीम अगुआ, भाई चेन कुछ ज़्यादा ही अहंकारी हैं। बातचीत करते समय, वे हमेशा चाहते थे कि दूसरे उनकी सुनें, जब अन्य भाई-बहन कोई उचित सुझाव देते, वो सुनने या मानने से इनकार कर देते। इसी वजह से, स्पेशल इफेक्ट के काम में देरी हो गई। बहन ली की बात से याद आया, मैं भी पहले भाई चेन के संपर्क में थी। वे वाकई बहुत दंभी थे, अपने तरीके से काम करना पसंद करते थे। जब उन्हें दूसरों के सुझाव सही नहीं लगते, तो वे स्वीकार नहीं करते थे। मुझे नहीं लगा था कि वे अब भी वैसे ही होंगे। अगर वे अपने तरीके से काम करते रहे और खुद को नहीं बदला, तो वे टीम अगुआ होने के काबिल नहीं हैं। इसलिए, मैंने बहन ली से कहा, इस मामले की जाँच करूंगी। फिर मन-ही-मन सोचा, "स्पेशल इफेक्ट की ज़्यादा जिम्मेदारी तो मेरी साथी, बहन झांग पर है। टीम अगुआ काबिल है या नहीं, काम कैसा चल रहा है, ये तय करना मेरा काम नहीं। अगर मैंने ज़्यादा दखल दिया, तो शायद विवेकहीन कहलाऊँ, इसलिए, इस मामले को बहन झांग पर छोड़ दूँगी। मैं अपना समय और ऊर्जा सुसमाचार कार्य में लगाऊँगी, जो मेरी मुख्य जिम्मेदारी है।" मैंने बहन झांग को भाई चेन की समस्याओं के बारे में बता दिया, उसे भाई चेन के काम पर ध्यान देने की याद दिलाई। उसके बाद, मुझे लगा मैंने अपनी जिम्मेदारी निभा दी, अब काम की खोज-खबर लेने या पूछताछ करने की कोई ज़रूरत नहीं।

कुछ दिनों बाद, मैंने देखा कि स्पेशल इफेक्ट का प्रोडक्शन अब भी बहुत धीमे चल रहा है। भाई-बहनों से पता चला कि भाई चेन न सिर्फ अपने तरीके से काम करते और दूसरों की सलाह नहीं मानते, बल्कि वे अपने काम में गैरजिम्मेदार भी हैं। मुश्किलें आते ही वे पीछे हट जाते हैं, उनका सामना करने से इनकार कर देते हैं। उन्होंने अपने काम में भी बहुत कम प्रगति की है। मैंने सोचा, "उन जैसे इंसान को टीम अगुआ कैसे बनने दिया गया? क्या हमें उनकी जगह किसी और को ढूंढना चाहिए?" मैंने इस मामले पर अपने विचार बहन झांग को बताए। कुछ महीनों बाद, मुझे हैरानी हुई जब अन्य भाई-बहनों ने मुझे भाई चेन की समस्याओं की रिपोर्ट की। वे अब भी अहंकारी और दंभी थे, अपने तरीके से काम करना चाहते थे। जब भाई-बहन कोई सलाह देते, तो वे उनके सुझावों को ठुकराने के बहाने ढूंढते, जैसे "मुझे नहीं लगता ये कोई समस्या है" या "मुझमें वो काबिलियत नहीं", जिसकी वजह से भाई-बहन बेबस महसूस करते, सलाह देने की हिम्मत नहीं करते। उन्होंने ये भी कहा कि स्पेशल इफेक्ट का काम बहुत धीमे चल रहा है, इसके कुछ आसान काम इतना समय बीत जाने पर भी पूरे नहीं हुए। उनकी रिपोर्ट सुनकर मुझे थोड़ा झटका-सा लगा। इतने समय बाद भी, भाई चेन की वजह से हुई समस्याओं का हल क्यों नहीं हुआ? मैंने फौरन इस बारे में बहन झांग को एक संदेश भेजा। उसने यह पक्का कर लिया कि वे सही टीम अगुआ नहीं हैं, तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।

कुछ दिनों के बाद बहन ली ने मुझसे कहा, भाई चेन की बर्खास्तगी में काफी देर हो गई। मैंने तो महीनों पहले उनकी समस्याओं की रिपोर्ट की थी, फिर उन्हें अब क्यों हटाया गया? मैंने फौरन जवाब दिया, "मैं भाई चेन के काम के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं थी। पहले मुझे उनकी समस्याओं के बारे में बहन झांग को बताना पड़ा, फिर ये उसका फैसला था कि उन्हें बर्खास्त किया जाये या नहीं। मैं उन्हें बर्खास्त नहीं कर सकती थी। अगर मैं ऐसा करती, तो मुझे विवेकहीन समझा जाता। हालांकि, तब मैंने बहन झांग को बस इन समस्याओं के बारे में बताया था, पर आगे जानकारी नहीं ली, निगरानी नहीं की, तो दोष मेरा भी है। हालांकि, बहन झांग भाई चेन के काम के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार थी, वो अक्सर उनके संपर्क में रहती थी। भाई चेन की समस्याएं जगजाहिर थीं, और मेरे कई बार कहने पर भी उसने उन्हें बर्खास्त नहीं किया, तो अब, काम में देरी की मुख्य वजह तो वही हुई।" मुझे ऐसा कहते सुनकर बहन ली चुप ही रही। बाद में, मुझे थोड़ा अपराध बोध हुआ। मुझे भाई चेन की समस्याओं की पूरी जानकारी थी, भाई-बहनों ने कई बार मुझे उनकी समस्याओं की रिपोर्ट की थी। हालांकि मैंने कभी जानने या देखने की कोशिश नहीं की। साफ तौर पर, मैं गैर-जिम्मेदार थी, फिर भी खुद को इन पचड़ों से बचाने के लिए मैंने कई बहाने बनाये, सारा दोष बहन झांग पर मढ़ दिया, ताकि दूसरों को लगे कि वो ही गैर-जिम्मेदार है, स्पेशल इफेक्ट के काम में देरी का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं बहुत स्वार्थी और कपटी थी! परमेश्वर की अनुमति से ही लोगों, बातों और चीज़ों से हमारा सामना होता है। बहन ली का मेरे पास आकर ये सवाल पूछना परमेश्वर की इच्छा थी। भाई चेन की बर्खास्तगी के मामले में, मैंने ये खोज और चिंतन नहीं किया कि मुझे क्या सबक सीखना चाहिए। क्या मैंने ऐसा कोई भ्रष्ट स्वभाव दिखाया है जिसका मुझे एहसास तक नहीं। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, आत्मचिंतन करके खुद को जानने के लिए राह दिखाने की विनती की।

धार्मिक कार्यों के दौरान, मैंने मसीह-विरोधियों के स्वार्थी, नीच पहलुओं को उजागर करते वचन पढ़े, जिससे मैं अपनी हालत को थोड़ा समझ सकी। परमेश्वर के वचन कहते हैं : "मसीह-विरोधियों की मानवता की स्वार्थपरता और नीचता कैसे प्रकट होती हैं? जब कोई चीज उनकी हैसियत या प्रतिष्ठा से संबंधित होती है, तो वे अपना दिमाग इस बात पर लगा देते हैं कि क्या करना है या क्या कहना है, वे इधर-उधर दौड़ने-भागने से नहीं कतराते, बल्कि खुशी-खुशी बड़ी मुश्किल का सामना करते हैं। लेकिन जो चीज परमेश्वर के घर के कार्य और सिद्धांत से संबंधित होती है—यहाँ तक कि जब बुरे लोग बाधा डाल रहे होते हैं, हस्तक्षेप कर रहे होते हैं, सभी प्रकार की बुराई कर रहे होते हैं और कलीसिया के कार्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे होते हैं—तब भी वे उसके प्रति आवेगहीन और उदासीन बने रहते हैं, जैसे उनका उससे कोई लेना-देना ही न हो। और अगर कोई इस बारे में जान जाता है और इसे उजागर कर देता है, तो वे कहते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं देखा, और अज्ञानता का ढोंग करने लगते हैं। ... मसीह-विरोधी व्यक्ति चाहे जो भी कार्य करें, वे कभी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में विचार नहीं करते। वे केवल इस बात पर विचार करते हैं कि कहीं उनके अपने हित तो प्रभावित नहीं हो रहे, और केवल उन्हीं कामों के बारे में सोचते हैं जो उनके सामने होते हैं। परमेश्वर के घर और कलीसिया के काम ऐसी चीजें हैं जिन्हें वे अपने खाली समय में करते हैं, और उनसे हर काम कह-कहकर करवाना पड़ता है। अपने हितों की रक्षा करना ही उनका असली काम होता है, यही उनका मनपसंद असली धंधा होता है। उनकी नजर में परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश से जुड़ी किसी भी चीज का कोई महत्व नहीं होता। अन्य लोगों को अपने काम में क्या कठिनाइयाँ आ रही हैं, उन्होंने किन मुद्दों की पहचान कर उन्हें रिपोर्ट किया है, उनके शब्द कितने ईमानदार हैं, मसीह-विरोधी इन बातों पर कोई ध्यान नहीं देते, वे उनमें शामिल ही नहीं होते, मानो इन मामलों से उनका कोई लेना-देना ही न हो। वे कलीसिया के मामलों से पूरी तरह से उदासीन होते हैं, फिर चाहे वे मामले कितने भी गंभीर क्यों न हों। अगर समस्या उनके ठीक सामने भी हो, तब भी वे अनिच्छा से और लापरवाही से ही उसमें हाथ डालते हैं। जब ऊपर वाला सीधे उनसे निपटता है और उन्हें किसी समस्या को सुलझाने का आदेश देता है, तभी वे बेमन से थोड़ा-बहुत काम करके ऊपर वाले को दिखाते हैं; उसके तुरंत बाद वे फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। कलीसिया के काम के प्रति, व्यापक संदर्भ की महत्वपूर्ण बातों के प्रति वे उदासीन और बेखबर बने रहते हैं। जिन समस्याओं का उन्हें पता लग जाता है, उन्हें भी वे नजरअंदाज कर देते हैं और पूछने पर टालमटोल करते हैं, और बहुत ही बेमन से उस समस्या की तरफ ध्यान देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता का प्रकटीकरण है, है न?" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव के सार का सारांश (भाग एक)')। "जहाँ भाई-बहन होते हैं, और जहाँ परमेश्वर काम करता है, ऐसे स्थान परमेश्वर का घर कैसे नहीं कहे जा सकते? किस प्रकार वे कलीसियाएँ नहीं हैं? लेकिन मसीह-विरोधी केवल अपने प्रभाव-क्षेत्र के भीतर की चीजों के बारे में ही सोचते हैं। वे अन्य जगहों की परवाह नहीं करते। अगर उन्हें किसी समस्या का पता चल भी जाता है, तो भी वे परवाह नहीं करते। इससे भी बुरी बात यह है कि जब कुछ गलत हो जाता है और नुकसान होता है, तो वे उस पर ध्यान नहीं देते। यह पूछे जाने पर कि वे इसे अनदेखा क्यों करते हैं, वे यह कहते हुए बेतुकी भ्रांतियाँ पेश करते हैं, 'दूसरे के फटे में टाँग मत अड़ाओ।' उनकी बातें तर्कसंगत लगती हैं, वे जो कुछ करते हैं उसमें वे सीमाओं को समझते प्रतीत होते हैं, और वे बाहरी तौर पर कुछ नैतिकता रखते जान पड़ते हैं, लेकिन उनका सार क्या होता है? यह ऐसे लोगों की स्वार्थी और नीच प्रकृति का प्रकटीकरण है। वे केवल अपने लिए, अपनी प्रसिद्धि, भाग्य और हैसियत के लिए ही काम करते हैं। वे अपने कर्तव्यों का पालन बिलकुल नहीं कर रहे होते। यह मसीह-विरोधियों की मानवता की एक और ठेठ विशेषता है—वे स्वार्थी और नीच होते हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव के सार का सारांश (भाग एक)')

परमेश्वर के वचन से समझ आया कि मसीह-विरोधी अपने रुतबे और पद को बचाने के लिए सिर्फ वही काम करते हैं जिनकी जिम्मेदारी उन पर है, उसके लिए वे कितनी भी पीड़ा सह सकते और कीमत चुका सकते हैं। पर समग्र कार्य की वे बिल्कुल परवाह नहीं करते। अगर ये उनकी जिम्मेदारी नहीं है या उनके हितों से अलग है, तो परमेश्वर के घर के कार्य को कितना भी नुकसान क्यों न पहुँचे, वे इसे गंभीरता से नहीं लेंगे, समस्या हल करने की कोशिश नहीं करेंगे। मसीह-विरोधी स्वार्थी और नीच होते हैं, उनमें ज़मीर और समझ नहीं होती, उन्हें सिर्फ अपनी इज़्ज़त और रुतबे की परवाह है, परमेश्वर के घर के हितों की नहीं। मैं भी ऐसी ही थी। मैंने सोचा स्पेशल इफेक्ट का काम मेरी जिम्मेदारी नहीं थी, इसलिए, जब भाई-बहनों ने भाई चेन की समस्याओं की रिपोर्ट की, मैंने इसे हल करने का वादा तो किया, पर मेरा "हल" बस बहन झांग को इस बारे में याद दिलाना और उसे समस्या हल करने को कहना था। जहां तक अंतिम नतीजे की बात है, भाई चेन के तबादले या हटाए जाने से मुझे फ़र्क नहीं पड़ा, मैंने कोई खोज-खबर नहीं ली। जब मैंने देखा स्पेशल इफेक्ट के काम में नतीजे नहीं मिल रहे, तो मैंने ज़्यादा से ज़्यादा बस बहन झांग को मेसेज भेजे, पर मुझे इसकी चिंता नहीं हुई कि काम में नतीजे नहीं मिले। बीती बातों पर सोचूँ तो, मैं सुसमाचार कार्य पर पूरा ध्यान देती थी जो मेरी जिम्मेदारी थी। मैं हमेशा भाई-बहनों की हालत पर ध्यान दिया करती थी कि सुसमाचार के प्रचार में उन्हें कोई परेशानी या समस्या तो नहीं आ रही। समस्याओं का पता चलते ही, फौरन उनके हल के लिए सुपरवाइजर को ढूंढती। जब गैर जिम्मेदार टीम अगुआओं और सुपरवाइजर का पता चलता, या वे समस्याओं या परेशानियों का सामना करते, तो मैं फौरन उनके साथ सहभागिता करती, क्योंकि मुझे डर था, उनकी हालत ठीक न हुई, तो सुसमाचार कार्य में रुकावट आएगी, इससे मेरे अगुआ सोचेंगे कि मुझमें काबिलियत और योग्यता नहीं है, व्यावहारिक कार्य नहीं कर सकती, जिससे मेरा पद खतरे में पड़ जाएगा। दोनों परमेश्वर के घर के कार्य थे, पर मेरे लिए दोनों की अहमियत में बहुत बड़ा फ़र्क था। मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी! इतना ही नहीं, "दूसरे के फटे में टांग मत अड़ाओ" का बहाना बनाते हुए, मैंने स्पेशल इफेक्ट के काम को बहन झांग की जिम्मेदारी मान लिया। सोचा मुझे कर्मियों के ट्रांसफर को लेकर समझदार होना चाहिए, कोई समस्या दिखने पर उसे ही छानबीन करके हल करने देना चाहिए। उसके काम में सीधे दखल दिया, तो लगेगा मुझमें विवेक नहीं है, मेरे पास इसे अनदेखा करने का उचित कारण है। ज़ाहिर है, न मैंने अपना काम जिम्मेदारी से किया, न व्यावहारिक समस्याएँ हल कीं, जिससे कलीसिया के काम पर असर पड़ा। आखिर में, जिम्मेदारी से बचने के लिए "विवेक" का बहाना बनाया। मैं बहुत शातिर और कपटी थी! मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आये, "जहाँ भाई-बहन होते हैं, और जहाँ परमेश्वर काम करता है, ऐसे स्थान परमेश्वर का घर कैसे नहीं कहे जा सकते? किस प्रकार वे कलीसियाएँ नहीं हैं?" बिल्कुल। कार्य की प्रकृति जैसी भी हो, यह परमेश्वर के घर का कार्य है और उसके हित से जुड़ा है। हालांकि मैंने उसके घर के कार्य या इसके हितों की परवाह नहीं की। मैंने सिर्फ इज्ज़त और रुतबे का ख्याल रखा। मुझमें ज़रा भी इंसानियत नहीं थी!

फिर मैंने परमेश्वर के वचन के दो अंश पढ़े। "कुछ लोग बात करते समय हमेशा 'हमारा घर' शब्द कहना पसंद करते हैं। यह सुनने में कितना प्यारा लगता है, लेकिन 'हमारा घर' है क्या? यह परमेश्वर का घर है, यह कलीसिया है और इसे 'हमारा घर' के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता। आज के बाद तुम इसे 'हमारा घर' नहीं कह सकते। जिन लोगों में सत्य की वास्तविकता होती है और जो कलीसिया के कार्य को कायम रखते हैं, अगर वे 'हमारा घर' कहें, तो यह स्वीकार्य है। अगर तुम वास्तव में परमेश्वर के घर को अपना घर समझते हो और सच्ची जिम्मेदारी की भावना के साथ परमेश्वर के घर के भीतर अपने कर्तव्यों का पालन करते हो, तो परमेश्वर के घर को 'हमारा घर' के रूप में वर्णित करना उचित है, उस हालत में यह नाम जरा भी नकली नहीं है। अगर तुम परमेश्वर के घर के काम में पूरी तरह से गैर-जिम्मेदार हो, और अपना कर्तव्य जैसे-तैसे निपटाते हो, अगर तुम गिरे हुए तेल की बोतल तक नहीं उठाते, गंदा होने पर घर साफ नहीं करते, और सर्दियों में बर्फबारी होने पर बेलचे से अहाते की बर्फ नहीं हटाते, तो क्या तुम फिर भी परमेश्वर के घर को 'हमारा घर' कहने योग्य हो? ऐसे व्यक्ति के मन में, यह स्पष्ट रूप से किसी और का घर है और इससे उसका कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन वह अक्सर ढिठाई से 'हमारा घर' कहता है, जिससे लोगों को लगे कि वह वास्तव में परमेश्वर के घर का सदस्य है। क्या यह धोखा नहीं है? क्या यह पाखंड नहीं है? सबसे महत्वपूर्ण चीज जो परमेश्वर में विश्वास करने वाले व्यक्ति में होनी चाहिए, वह है अंत:करण और विवेक। अगर तुम में अंत:करण और विवेक तक नहीं है, तो तुम्हें कैसे लगता है कि तुम 'हमारा घर' कहने लायक हो? तुम तुम हो, परमेश्वर परमेश्वर है, और तुम्हारा परमेश्वर के घर से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन सत्य का अनुसरण बिल्कुल नहीं करते। वे परमेश्वर के परिवार के मामलों के प्रति उदासीन रहते हैं, वे जो भी समस्या पाते हैं उसे अनदेखा कर देते हैं, और उन चीजों की परवाह नहीं करते जिनके लिए उन्हें जिम्मेदार होना चाहिए, वे भाई-बहनों की समस्याओं से खुद को दूर रखते हैं, जब कुकर्मी कोई गलत कार्य करते हैं तो उन्हें नफरत नहीं होती, सिद्धांत के महत्वपूर्ण मामले सामने आने पर उन्हें विवेक का कोई बोध नहीं होता, और परमेश्वर के घर में जो कुछ भी होता है उसका उनसे कोई लेना-देना नहीं होता। क्या ऐसे लोग परमेश्वर के घर को अपना मानते हैं? स्पष्टत: नहीं। ये लोग परमेश्वर के घर को 'हमारा घर' कहने के योग्य नहीं हैं, और जो ऐसा कहते हैं वे पाखंडी हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अजीब और रहस्यमय तरीके से व्यवहार करते हैं, वे स्वेच्छाचारी और तानाशाह होते हैं, वे कभी दूसरों के साथ संगति नहीं करते, और वे दूसरों को अपने आज्ञापालन के लिए मजबूर करते हैं')। "कुछ लोग बहुत-से सत्यों को नहीं समझते। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें सिद्धांतों को नहीं समझते, और समस्याओं से सामना होने पर वे उन्हें सँभालने का उचित तरीका नहीं जानते। इस मामले में क्या करना है? न्यूनतम मापदंड है विवेक के अनुसार कार्य करना—यह आधार-रेखा है। तुम्हें विवेक के अनुसार कार्य कैसे करना चाहिए? इसका विवरण यह है कि जब तुम कार्य करते हो, तो तुम्हें वह सच्चे दिल पर निर्भर रहते हुए करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के अनुग्रह और दया के योग्य होना चाहिए, परमेश्वर द्वारा दिए गए इस जीवन के योग्य होना चाहिए, और उद्धार प्राप्त करने के इस परमेश्वर-प्रदत्त अवसर के योग्य होना चाहिए। क्या यह विवेक के अनुसार कार्य करना है? जब तुम यह न्यूनतम मापदंड पूरा कर लेते हो, तो तुम एक सुरक्षा प्राप्त कर लेते हो और तुम गंभीर त्रुटियां नहीं करोगे। फिर तुम इतनी आसानी से परमेश्वर की अवज्ञा करने वाले काम नहीं करते या अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भागते, न ही तुम्हारे द्वारा बेमन से काम किए जाने की उतनी संभावना होगी। तुम अपने पद, प्रसिद्धि, धन-दौलत और भविष्य के लिए षड्यंत्र करने में भी इतने प्रवृत्त नहीं होगे। चेतना यही भूमिका निभाती है। विवेक और सूझ-बूझ दोनों ही व्यक्ति की मानवता के घटक होने चाहिए। ये दोनों सबसे बुनियादी और सबसे महत्वपूर्ण हैं। वह किस तरह का व्यक्ति है जिसमें विवेक नहीं है और सामान्य मानवता की सूझ-बूझ नहीं है? सीधे शब्दों में कहा जाये तो, वह ऐसा व्यक्ति है जिसमें मानवता का अभाव है, वह बहुत ही खराब मानवता वाला व्यक्ति है। अधिक विस्तार में जाएँ तो ऐसा व्यक्ति किस लुप्त मानवता का प्रदर्शन करता है? विश्लेषण करो कि ऐसे लोगों में कैसे लक्षण पाए जाते हैं और वे कौन-से विशिष्ट प्रकटन दर्शाते हैं। (वे स्वार्थी और निकृष्ट होते हैं।) स्वार्थी और निकृष्ट लोग अपने कार्यों में लापरवाह होते हैं और अपने को उन चीजों से अलग रखते हैं जो व्यक्तिगत रूप से उनसे संबंधित नहीं होती हैं। वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते हैं और परमेश्वर की इच्छा का लिहाज नहीं करते हैं। वे परमेश्वर की गवाही देने या अपने कर्तव्य को करने की कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेते हैं और उनमें उत्तरदायित्व की कोई भावना होती ही नहीं है। जब कभी वे कोई काम करते हैं तो किस बारे में सोचते हैं? उनका पहला विचार होता है, 'अगर मैं यह काम करूंगा तो क्या परमेश्वर को पता चलेगा? क्या यह दूसरे लोगों को दिखाई देता है? अगर दूसरे लोग नहीं देखते कि मैं इतना ज्यादा प्रयास करता हूँ और मेहनत से काम करता हूँ, और अगर परमेश्वर भी यह न देखे, तो मेरे इतना ज़्यादा प्रयास करने या इसके लिए कष्ट सहने का कोई फायदा नहीं है।' क्या यह स्वार्थ नहीं है? साथ-ही-साथ, यह एक बहुत नीच किस्म का इरादा है। जब वे ऐसी सोच के साथ कर्म करते हैं, तो क्या उनकी अंतरात्मा कोई भूमिका निभाती है? क्या इसमेंउनकी अंतरात्मा पर दोषारोपण किया जाता है? नहीं। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो चाहे कोई भी कर्तव्य निभाएँ पर कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। वे अपने वरिष्ठों को पता चलने वाली समस्याओं की रिपोर्ट भी नहीं करते। जब वे लोगों को दखलंदाजी करते और उपद्रवी होते देखते हैं, तो वे आँखें मूँद लेते हैं। जब वे दुष्ट लोगों को बुराई करते देखते हैं, तो वे उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते। वे परमेश्वर के घर के हितों पर थोड़ा-सा भी ध्यान नहीं देते, न ही इस बात पर कि उनका कर्तव्य और जिम्मेदारी क्या है। जब ऐसे लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते; वे हाँ में हाँ मिलाने वाले लोग होते हैं जो सुविधा के लालची होते हैं; वे केवल अपने घमंड, साख, हैसियत और हितों के लिए बोलते और कार्य करते हैं, और अपना समय और प्रयास निश्चित रूप से किसी भी ऐसी चीज में लगाते हैं, जिससे उन्हें लाभ होता है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो')

ये वचन पढ़कर, पीड़ा मेरे दिल को भेद गई। विवेकशील और समझदार इंसान परमेश्वर के दायित्व पर विचार करता है, परमेश्वर की चिंताओं को बाँटता है, अपना सब कुछ परमेश्वर के घर के हितों के लिए देता है। उसके घर के कार्य में रुकावट आने या इसके हितों का नुकसान होने पर, वे आगे बढ़कर, कलीसिया के हितों की रक्षा के लिए अपने हित दांव पर लगा देते हैं। यही सचमुच परमेश्वर के घर का सदस्य होना है। पर मैं क्या थी? ये जानकर कि भाई चेन सही नहीं हैं और कार्य-प्रगति प्रभावित हुई है, मैंने बहन झांग के साथ समस्या हल करने की कोशिश नहीं की और काम में देरी होने दी। भाई-बहनों ने दोबारा काम पर बुरा असर पड़ने की रिपोर्ट नहीं की होती, तो मैं बहन झांग से फौरन भाई चेन को बर्खास्त करने नहीं कहती। भाई चेन को बर्खास्त किया गया, पर कई महीनों की देरी के बाद, ऐसे में कर्मियों और संसाधनों के नुकसान की भरपाई कैसे होगी? परमेश्वर ने मुझे अगुआ की भूमिका में कर्तव्य निभाने का मौक़ा दिया। उसने मुझे ये काम दिया ताकि मैं सत्य का अनुसरण कर सकूँ, काम में जिम्मेदार और वफ़ादार बनूँ, कलीसिया के काम की समस्याओं का समय पर पता लगाकर हल करूं, व्यावहारिक कार्य करूं। मगर मैं इन शैतानी विषों के अनुसार जीती रही, जैसे "चीजों को प्रवाहित होने दें यदि वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों," "अपना काम करो, दूसरों के मामले में दखल न दो," और "जितनी कम परेशानी, उतना ही बेहतर।" मैंने सिर्फ उस काम पर ध्यान दिया जिसकी जिम्मेदारी मुझ पर थी। जब बात मेरे हितों, इज़्ज़त और रुतबे से जुड़ी न होती, तो मैं उनकी परवाह बिल्कुल नहीं करती। मुझे लगता इसमें समय देने और कीमत चुकाने पर भी आखिर में मुझे कोई फायदा नहीं होगा। मैंने सिर्फ अपनी इज़्ज़त और रुतबे की रक्षा की, परमेश्वर के परिवार के कार्य की नहीं, परमेश्वर के घर के हितों का नुकसान होते देखकर भी मैंने ध्यान नहीं दिया, मदद नहीं की। मैं बहुत स्वार्थी, घटिया और विवेकहीन थी! असल में, मैंने वही किया जो साफ तौर पर मेरा काम था, अपनी जिम्मेदारियाँ भी निभाई, पर मैंने जो भी किया वो सत्य पर अमल करने, परमेश्वर को संतुष्ट करने या सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी इज़्ज़त, रुतबे और निजी हितों की रक्षा के लिए किया। आखिर में, परमेश्वर इसे मंजूरी या स्वीकृति नहीं देगा कि मैं उसके घर की सदस्य हूँ। अगर मैं देर-सवेर पश्चाताप करके नहीं बदली, तो परमेश्वर अपने विरोध के कारण मुझे ठुकराकर हटा देगा। ये एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके पश्चाताप करना चाहा, कहा कि अब मैं स्वार्थी और नीच बनकर अपने काम में सिर्फ अपने हितों की नहीं सोचूंगी।

फिर मैंने अगुआओं की जिम्मेदारी पर परमेश्वर की सहभागिता के बारे में सोचा। उनमें से एक है, "विभिन्न कार्यों के निरीक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कर्मियों की परिस्थितियों से अवगत रहो, और आवश्यकतानुसार तुरंत उनका काम या उन्हें बदलो, ताकि लोगों का गलत उपयोग करने से होने वाला नुकसान रोका या कम किया जा सके, और कार्य की दक्षता और सुचारु प्रगति की गारंटी दी जा सके" (नकली अगुआओं की पहचान करना (1))। परमेश्वर के वचन के दो और अंशों ने मुझ पर गहरा असर डाला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "महत्वपूर्ण कार्य के लिए जिम्मेदार विभिन्न कार्य-निरीक्षक और कर्मचारी : क्या उनमें सत्य की वास्तविकता है, क्या वे अपने कार्यों में सिद्धांतवादी हैं, और क्या वे परमेश्वर के घर का नाजुक और अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं? अगर अगुआ और कार्यकर्ता विभिन्न कार्यों के प्रभारी मुख्य निरीक्षकों की स्थिति की सटीक समझ प्राप्त करते हैं और कर्मियों में उपयुक्त समायोजन करते हैं, तो यह प्रत्येक कार्य के कार्यक्रम पर पहरा देने जैसा है। यह अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य पूरा करने के बराबर है। अगर इन कर्मियों को सही ढंग से व्यवस्थित नहीं किया जाता और कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो कलीसिया का कार्य बहुत प्रभावित होगा। अगर ये कर्मी अच्छी मानवता के हैं, आस्था में एक आधार रखते हैं, मामले सँभालने में जिम्मेदार हैं, और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य की तलाश करने में सक्षम हैं, तो उन्हें कार्य का प्रभार देने से बहुत-सी परेशानियों से बचा जा सकेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्य सुचारु रूप से आगे बढ़ सके। लेकिन अगर टीमों के निरीक्षक भरोसेमंद नहीं हैं, खराब मानवता के हैं, सदाचारी नहीं हैं और सत्य को व्यवहार में नहीं लाते—इसके अलावा, उनके द्वारा गड़बड़ी पैदा किए जाने की संभावना है—तो वे निश्चित रूप गड़बड़ी कर देंगे और इससे कलीसिया का पूरा काम खटाई में पड़ जाएगा। इसका कोई मामूली प्रभाव नहीं पड़ेगा। अगर वे अपने दायित्वों के प्रति केवल अगंभीर या लापरवाह हैं, तो इससे कार्य में विलंब हो सकता है; प्रगति की रफ्तार कुछ धीमी होगी, और कार्य कुछ कम कुशल होगा। लेकिन अगर वे मसीह-विरोधी हैं, तो समस्या गंभीर है : यह कार्य के थोड़े अकुशल और अप्रभावी होने की समस्या नहीं है—वे उन सभी कार्यों को नुकसान पहुँचाएँगे, उन्हें बाधित करेंगे और पंगु बना देंगे, जिनके लिए वे जिम्मेदार हैं। इसलिए, प्रत्येक परियोजना के निरीक्षक और अन्य महत्वपूर्ण कर्मियों की स्थिति से अवगत रहना, और समय पर समायोजन और बरखास्तगी करना कोई ऐसा दायित्व नहीं है, जिससे अगुआ और कार्यकर्ता बच सकें—यह बहुत गंभीर, बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता विभिन्न निरीक्षकों और प्रमुख कर्मचारियों की मानवता, और सत्य के प्रति उनके दृष्टिकोण के साथ-साथ हर चरण में उनकी अवस्था और स्थिति की अद्यतन जानकारी रख सकें और परिस्थितियों के अनुसार इन चीजों का तुरंत समायोजन या समाधान कर सकें, तो काम व्यवस्थित रूप से चल सकता है। इसके विपरीत, अगर ये लोग कलीसियाओं में उन्मत्त होकर कार्य करते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते, और अगुआ और कार्यकर्ता इसे पहचानने और समायोजन करने में तत्परता नहीं दिखाते, और समस्याएँ पहचानने से पहले तब तक प्रतीक्षा करते हैं, जब तक कि काम बिगड़ नहीं जाता, जिसका अर्थ है कि समस्याओं को गंभीर होने के बाद सँभालना और उसके बाद ही धीरे-धीरे स्थिति को समायोजित करने, सुधारने और बचाने की कोशिश करना, तो ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता अपने दायित्वों में पूरी तरह विफल हो गए हैं। वे नकली अगुआ हैं" (नकली अगुआओं की पहचान करना (3))। "नकली अगुआ कभी भी खुद को समूह-पर्यवेक्षकों की वास्तविक स्थिति के बारे में सूचित नहीं रखते, या उन पर नजर नहीं रखते, न ही वे जीवन-प्रवेश से संबंधित स्थिति का कोई हिसाब-किताब रखने या उसे समझने की कोशिश करते हैं, इसके साथ ही, वे महत्वपूर्ण कार्य के लिए जिम्मेदार समूह-पर्यवेक्षकों और कार्मिकों के अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति और परमेश्वर और उसमें विश्वास को लेकर उनके विभिन्न दृष्टिकोणों से खुद को अवगत रखने, उन पर नजर रखने या उन्हें समझने का प्रयास करते हैं; नकली अगुआ उनके रूपांतरणों, उनकी प्रगति या उनके काम के दौरान उभरने वाले विभिन्न मुद्दों के बारे में भी खुद को अवगत नहीं रखते, खासकर जब बात कार्य के विभिन्न चरणों के दौरान होने वाली गलतियों और व्यतिक्रमों के कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर प्रभाव की हो। नकली अगुआ इसके बारे में कुछ नहीं जानते। इन विवरणों के बारे में कुछ न जानने के कारण, समस्याएँ आने पर वे निष्क्रिय हो जाते हैं। जब नकली अगुआ काम करते हैं, तो वे इन विवरणों की परवाह नहीं करते। वे बस समूह-पर्यवेक्षकों की व्यवस्था कर देते हैं, और फिर मान लेते हैं कि कार्य सौंपने के बाद उनका काम समाप्त हो गया है। वे मानते हैं कि इसके साथ ही उनका काम खत्म हो गया है और बाद में होने वाली किसी भी समस्या का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। चूँकि वे हर समूह के पर्यवेक्षकों के पर्यवेक्षण, मार्गदर्शन और आगे की कार्रवाई में विफल रहते हैं, चूँकि वे इन क्षेत्रों में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में विफल रहते हैं, इसलिए कार्य बरबाद जाता है। अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में लापरवाह होने का यही अर्थ है। परमेश्वर के पास लोगों के दिलों में झाँकने की शक्ति होती है, लेकिन मनुष्यों के पास नहीं होती, इसलिए अपना काम करते समय तुम्हें सावधान रहना चाहिए। तुम्हें अकसर निरीक्षण, मार्गदर्शन और आगे की कार्रवाई के लिए साइट पर जाना चाहिए, और तुम्हें आलसी नहीं होना चाहिए। तुम्हें शुरू से आखिर तक काम पर नजर रखनी चाहिए; यह उसके अच्छी तरह से किए जाने की गारंटी देने का एकमात्र तरीका है। निस्संदेह, झूठे अगुआ अपने काम में गैरजिम्मेदार होते हैं। वे शुरू से ही गैर-जिम्मेदार होते हैं, जब वे काम की व्यवस्था करते हैं। वे कभी निरीक्षण नहीं करते, आगे की कार्रवाई नहीं करते, और मार्गदर्शन प्रदान नहीं करते। परिणामस्वरूप, कुछ निरीक्षक समस्त प्रकार की समस्याएँ सामने आने और मामले सँभालने में अक्षम होने के बावजूद निरीक्षक बने रहने दिए जाते हैं। अंत में, कार्य में बार-बार विलंब होता है, समस्त प्रकार की समस्याएँ अनसुलझी रह जाती हैं और कार्य बरबाद हो जाता है। यह नकली अगुआओं द्वारा निरीक्षकों की स्थिति समझने और आगे की कार्रवाई करने में विफलता का परिणाम है। यह पूरी तरह से नकली अगुआओं द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा करने के कारण होता है। जहाँ तक इस बात का सवाल है कि क्या पर्यवेक्षक अपना काम ठीक से कर रहे हैं और क्या उन्होंने वास्तविक काम किया है, चूँकि नकली अगुआ निरीक्षण नहीं करते और अकसर खुद को इस बात से अवगत नहीं रखते कि क्या हो रहा है, और स्थिति की ताजा जानकारी नहीं रखते, इसलिए उन्हें इस बात की कोई भनक ही नहीं होती कि पर्यवेक्षक कितनी अच्छी तरह से काम कर रहे हैं, वे क्या प्रगति कर रहे हैं, और क्या वे व्यावहारिक कार्य कर रहे हैं या ऊपरवाले को जैसे-तैसे सँभालने के लिए सिर्फ मंत्रों का जाप कर रहे हैं और कुछ सतही उपक्रमों का उपयोग कर रहे हैं। किसी पर्यवेक्षक के काम के बारे में पूछे जाने पर और यह कि वह विशेष रूप से किस काम में संलग्न हैं, वे जवाब देते हैं, 'मुझे नहीं पता, अलबत्ता वह हर बैठक में शामिल होता है, और जब भी मैं उससे काम के बारे में बात करता हूँ, तो वह यह नहीं कहता कि कोई समस्या या कठिनाई है।' यह है नकली अगुआओं के ज्ञान की सीमा; वे यह मान लेने की भूल करते हैं कि यदि पर्यवेक्षक ने अपनी जिम्मेदारियों से जी नहीं चुराया है और वह लगातार उपलब्ध है, तो यह इस तथ्य का व्यावहारिक प्रदर्शन है कि उसके साथ कोई समस्या नहीं है। इस तरह काम करते हैं नकली अगुआ। क्या यह उनके नकली होने का संकेत है? वे अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल हो रहे हैं या नहीं? यह कर्तव्य में भारी चूक है" (नकली अगुआओं की पहचान करना (3))

परमेश्वर के वचन से समझ आया कि अगुआओं के मुख्य कामों में से एक है कार्य के हर क्षेत्र का प्रभारी सही इंसान को बनाना। जब सही व्यक्ति प्रभारी होगा, तभी कार्य का हर क्षेत्र निर्बाध तरीके से बढ़ेगा। जिम्मेदारी और कर्तव्य निभाने का यही मतलब है। अगर प्रभारी इंसान में काबिलियत नहीं है, वो व्यावहारिक समस्याएं हल नहीं कर सकता, या उसमें थोड़ी काबिलियत तो हो पर वो अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह हो, सही मार्ग पर न चले, अपना काम ठीक से न करे, तो परमेश्वर के घर का काम रुक जाएगा, उसकी जिम्मेदारी के दायरे में आने वाले भाई-बहनों पर भी असर पड़ेगा। अगर प्रभारी इंसान कुकर्मी या मसीह-विरोधी है और उसे समय पर नहीं बदला गया, तो अंत में, वो परमेश्वर के घर के काम में गंभीर रुकावट आएगी और नुकसान होगा, वो काम को पूरी तरह रोक भी सकता है। इसलिए, जब अगुआ और कर्मी किसी इंसान को प्रभारी बनाते हैं, तो नियमित रूप से उसकी खोज-खबर लेना और निगरानी करना, प्रभारी इंसान के कामों की समस्याओं और भटकावों के बारे में जानना और समय पर सहभागिता करके समस्या हल करना ज़रूरी है, ताकि काम पर समस्या और भटकाव के असर को कम किया जा सके। जिस प्रभारी में काबिलियत नहीं है, जो व्यावहारिक कार्य नहीं कर सकता, उसे भी फौरन ट्रांसफर और बर्खास्त कर देना चाहिए, ताकि काम सामान्य रूप से आगे बढ़ सके। यही एक अगुआ की जिम्मेदारी है। अगर हम अनुपयुक्त प्रभारी के काम पर बुरा असर डालने, भारी नुकसान पहुँचाने का इंतज़ार करते रहे, तो ये कर्तव्य से पल्ला झाड़ना होगा, हम झूठे अगुआ कहलाएंगे। मैं भाई चेन के काम के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं थी, पर कलीसिया अगुआ होने के नाते, जब भाई-बहनों ने मुझे समस्याएँ बताईं, तो परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा के लिए छानबीन करके निगरानी रखना मेरी जिम्मेदारी थी, पर मैंने गैर-जिम्मेदार रवैया अपनाते हुए इसे अनदेखा कर दिया, जिससे समस्या देर से हल हुई और काम का नुकसान हुआ। क्या ये एक झूठे अगुआ वाला बर्ताव नहीं था? साथ ही, मैंने बहन झांग के बारे में सोचा। वो भाई चेन के कार्य की प्रभारी है, हमेशा उनके संपर्क में रहती है। इस दौरान, मैंने कई बार उसे भाई चेन की समस्याएँ याद दिलाईं। क्या उसने उनके हालात की खोज-खबर ली या पूछताछ की? उसने ऐसा किया होता, तो पता चल जाता कि वो टीम अगुआ बने रहने लायक नहीं हैं, तो उसने भाई चेन को क्यों नहीं बदला? अगर उसे पता था कि भाई चेन में समस्या है और उसे नहीं बदला, तो क्या वो उन झूठे अगुआओं में से नहीं जिन्हें परमेश्वर ने उजागर किया? इसलिए, मैंने संदेश भेजकर बहन झांग से पूछा। उसने कहा कि वो भाई चेन को पहचान ही नहीं पाई, मेरी बात उसने गंभीरता से नहीं ली, और भाई चेन के प्रदर्शन की जांच-पड़ताल नहीं की। उसने व्यावहारिक कार्य नहीं किया, असली समस्याएं हल नहीं कीं। क्या ये गंभीर लापरवाही नहीं थी? इसी समय मेरी अगुआओं ने बहन झांग के बारे में दो मूल्यांकन भेजे। उनमें लिखा था कि बहन झांग में दायित्व की भावना नहीं है, समय पर काम की खोज-खबर नहीं लेती है, जिससे काम की प्रगति पर बहुत बुरा असर पड़ा था। ये समस्याएं देखकर भी उसने आत्मचिंतन नहीं किया, वो अक्सर बैठकों में ऊंघती है। इन्हें पढ़कर मुझे और भी लगा कि बहन झांग एक झूठी अगुआ थी, मुझे पता था, भाई चेन के मामले में, मैं स्वार्थी, नीच और गैरजिम्मेदार थी, उन्हें समय पर बर्खास्त न करने से स्पेशल इफेक्ट के काम में देरी हुई। अब बहन झांग की स्पष्ट समस्याओं को मैं अनदेखा नहीं कर सकती।

मुझे परमेश्वर के वचन याद आये, "तुम चाहे जो भी कर्तव्य निभा रहे हो, अगर तुम सत्य के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते रहते हो, केवल तभी माना जाएगा कि तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है; मानवीय तरीके के अनुसार बेमन से कार्य करना लापरवाह और जल्दबाज होना है; केवल सत्य के सिद्धांतों का पालन करना ही अपने कर्तव्य का ठीक से पालन करना और अपनी जिम्मेदारी पूरी करना है—जो कि अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा की अभिव्यक्तियों में से एक है। जब तुममें जिम्मेदारी का यह भाव होगा, यह इच्छा और अभिलाषा होगी, जब तुममें अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा की अभिव्यक्ति पाई जाएगी, तो ही परमेश्वर तुम पर कृपा करेगा, और स्वीकृति के साथ तुम्हें देखेगा। अगर तुममें जिम्मेदारी का यह भाव भी नहीं है, तो परमेश्वर तुम्हें आलसी और मूर्ख समझेगा और तुमसे घृणा करेगा। मानवीय दृष्टिकोण से इसका अर्थ है तुम्हारा अनादर करना, तुम्हें गंभीरता से न लेना और तुम्हें हिकारत से देखना" (नकली अगुआओं की पहचान करना (8))। "अगर अगुआ और कार्यकर्ता जोश के साथ और सक्रिय रूप से काम कर सकें, थोड़ा और कर्मठ हो सकें, और थोड़ी तेज गति से काम कर सकें, तो क्या दुष्कर्मियों द्वारा किए जाने वाले व्यवधानों और गड़बड़ियों की समस्याओं का समाधान पहले नहीं हो जाएगा? क्या उन्हें हल किए जाने की गति तेज होगी? अगर गति तेज हो और समय पहले हो, तो क्या इन लोगों द्वारा परमेश्वर के घर को पहुँचाए जाने वाले विभिन्न नुकसान कुछ हद तक कम नहीं किए जा सकेंगे? क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसा ही नहीं करना चाहिए? (हाँ।) परमेश्वर का घर यह अपेक्षा नहीं करता कि तुम समस्याओं से तुरंत, तत्काल और उसी क्षण निपटो, जब वे उत्पन्न होती हैं। वह तुमसे ऐसा करने की अपेक्षा नहीं करता। वह तो यह कहता है कि जब ऐसी स्थितियाँ बनने लगें, जब संकेत दिखाई दें, जब चीजें रिपोर्ट की जाएँ, तो तुम कार्रवाई करो, कुछ करो, और उनका कोई समाधान निकालो। इस समाधान में स्थिति को समझने के लिए संबंधित भाई-बहनों से पूछताछ करना, उस कलीसिया के प्रभारी लोगों, समूह-प्रमुखों, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा और बातचीत करना जहाँ समस्या उत्पन्न होती है, और फिर योजना बनाना कि इससे कैसे निपटा जाए। अगर तुम्हें किसी अंतिम समाधान पर पहुँचने या मामले को सँभालने के लिए सटीक सिद्धांत समझने में परेशानी हो रही हो, तो तुम ऊपर वाले से मदद ले सकते हो" (नकली अगुआओं की पहचान करना (26))। परमेश्वर के वचन बिल्कुल स्पष्ट हैं। जो अपने कर्तव्य के प्रति गंभीर और जिम्मेदार रवैया रखते हैं, जो कड़ी मेहनत करते हैं, सिर्फ वे ही अपना कर्तव्य वफ़ादारी से निभाते हैं, भरोसेमंद होते हैं। कुछ लोग अगुआ का कर्तव्य निभाते हैं, पर व्यावहारिक कार्य नहीं करते, हर काम में गैर-जिम्मेदार होते हैं, लापरवाही और ढिलाई के साथ जैसे-तैसे काम करते हैं। ऐसे लोगों में न तो अच्छी इंसानियत होती है, न ही वे भरोसेमंद होते हैं। वे विश्वास के लायक नहीं, परमेश्वर को ऐसे लोगों से नफ़रत है। परमेश्वर के वचनों से, मुझे अभ्यास का मार्ग भी मिला। कलीसिया के काम में समस्याओं से सामना होने पर, फौरन छानबीन करते हुए अच्छे से समझकर सिद्धांतों के अनुसार काम करना चाहिए, आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारियां और कर्तव्य निभाना चाहिए। यही परमेश्वर की इच्छा है। अब, भाई-बहनों ने बहन झांग के झूठे अगुआ वाले बर्ताव की रिपोर्ट की है। अगर ये सही है, तो कलीसिया के काम की उसकी जिम्मेदारी से काम की प्रगति पर ही असर नहीं पड़ेगा, ये भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को भी नुकसान पहुंचाएगा, बहन झांग कैसे काम करती है, इसकी फौरन जानकारी लेनी होगी, सिद्धांतों के आधार पर मूल्यांकन करना होगा कि वो अगुआ होने लायक है या नहीं। मामले पर चर्चा करने मैं अपने अगुआओं के पास गई, उन्हें भी बहन झांग के बर्ताव के बारे में अभी-अभी पता चला था। हमने मिलकर रिपोर्ट की पुष्टि की तो पता चला कि उसकी समस्याओं की रिपोर्ट सही थी। वो झूठी अगुआ थी जो लगातार व्यावहारिक काम करने में विफल रही, हमने उसी दिन उसे काम से बर्खास्त कर दिया। इस तरह अभ्यास करके, मुझे काफी सुकून मिला।

इस अनुभव से मैंने जाना कि मेरी प्रकृति बहुत स्वार्थी थी। अपने कामों में, मैं परमेश्वर के साथ एकचित्त नहीं थी, हर चीज़ में अपने हितों की सोचती थी, मैं अब भी परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने से कोसों दूर थी। परमेश्वर के वचन के न्याय और उजागर किये गए तथ्यों के बिना, मैं कभी अपनी कमियों और खामियों को नहीं जान पाती, कभी सच्चा पश्चाताप करके खुद को बदल नहीं पाती। साथ ही, मुझे यह भी समझ आया कि अपने कर्तव्य में जिम्मेदार और वफ़ादार होते हुए परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करना ही जमीर, इंसानियत और परमेश्वर की मंज़ूरी पाने का तरीका है, इससे ही हम सच्ची खुशी और शांति महसूस कर सकते हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!

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