अनुशासन का विशेष अनुभव

19 जुलाई, 2022

क्षीयो हाँ, चीन

मुझे शोहरत और रुतबे की जबरदस्त चाह थी, मैंने ईर्ष्या के कारण ऐसे भी कुछ काम किए, जिनसे भाई-बहनों का दिल दुखा। बाद में, मुझे एक विशेष तरीके से अनुशासित किया गया, जिससे आखिरकार मैं जागकर बदल पाई।

2019 में मैंने कलीसिया में पाठ्य सामग्री लिखने का काम किया। एक दिन, सुपरवाइजर ने हमारे साथ काम करने के लिए बहन वांग की व्यवस्था की। लंबे समय से यह काम करने और कुछ सिद्धांतों में महारत होने के कारण, सुपरवाइजर ने मुझसे बहन वांग की मदद करने को कहा। मेरी सुपरवाइजर ने यह भी कहा कि एक कलीसिया में पाठ्य सामग्री का काम करने वाले कर्मी नहीं हैं, अगर बहन वांग को तैयार किया जा सका, तो वह अपना कर्तव्य निभाने के लिए उस कलीसिया में जा सकती है। यह सुनकर मैंने सोचा, "फिर मुझे बहन वांग को बहुत जल्द प्रशिक्षित करना होगा।" मैं बड़े सब्र से बहन वांग की मदद करने लगी। अपने कर्तव्य में उसके सामने जो भी समस्याएँ या मुश्किलें आतीं, उन्हें सुलझाने में उसकी मदद के लिए मैं समय पर उसके साथ संगति करती, धीरे-धीरे बहन वांग ने थोड़ी तरक्की की। पहले-पहल मैं उसका विकास देखकर खुश थी, मगर बाद में, मैंने पाया कि वह तेजी से तरक्की कर रही थी। कभी-कभी, मुझे काम में छोटी-मोटी समस्याएँ ही दिखाई देतीं, मगर उसे कुछ गंभीर समस्याएं मिल जातीं, और समूह की दूसरी बहनें भी उसके नजरिए से सहमत होतीं। तब मैं थोड़ी परेशान हो जाती। मैं सोचती, "यह इतनी तेजी से तरक्की कर रही है। इस रफ़्तार से तो वह यकीनन मुझसे आगे निकल जाएगी। फिर मुझे कौन आदर से देखेगा?" मैंने यह भी देखा कि सुपरवाइजर बहन वांग को अहमियत देती थीं। सुपरवाइजर जब भी समूह से मिलने आतीं, तो वे संगति के लिए ज्यादातर बहन वांग से पूछतीं, और अक्सर मेरे सामने उसकी काबिलियत और तेजी से तरक्की करने पर उसकी तारीफ करतीं, मगर मुझे इस पर खुशी नहीं होती। मैं सोचती, "हद है! अब मेरी सुपरवाइजर और सहभागी मुझ पर पहले की तरह ध्यान नहीं देती हैं, मेरी कद्र नहीं करती हैं। उन्होंने देखा है कि आने के बाद से बहन वांग ने कितनी तरक्की की है। मैं समूह में बहुत लंबे समय से हूँ, मगर उतनी तेजी से तरक्की नहीं कर रही हूँ। क्या उन्हें लगता है कि मेरी काबिलियत बहन वांग से कम है?" मैं जितना सोचती उतना ही परेशान होती, यहाँ तक कि मैं गुस्से से सोचती, "बहन वांग ने वाकई बड़ी तरक्की की है, लेकिन इसके पीछे, किसी को उसकी मदद के लिए समय और ऊर्जा लगानी पड़ी होगी। अब वह नाम कमा रही है, तो क्या कोई मेरी ओर ध्यान देगा, जिसने उसकी मदद की? मैं बहन वांग की छाया में ही क्यों रहूँ?" इस बारे में मैंने जितना सोचा, मुझे उतनी ही बेचैनी हुई। मैं बहन वांग को देखना भी नहीं चाहती थी। मुझे पता था कि मेरी हालत ठीक नहीं है, और अपनी बहन से ईर्ष्या करती हूँ। कभी-कभी मैं खुद को रोकती, लेकिन अब भी मैं उससे होड़ लगाने की चाह को रोक नहीं पाती थी, मैं अब उससे बात भी नहीं करना चाहती थी।

मुझे याद है, एक बार, मुझे बहन वांग के काम में कुछ समस्याएं दिखीं, तो मैंने उन्हें सुलझाने में मदद की। बाद में, सुपरवाइजर ने कहा कि बहन वांग ने अच्छा काम किया है, और उसने हाल में अच्छी तरक्की की है। इस पर, मेरे सहभागी उसे ईर्ष्या से देखने लगे। सुपरवाइजर की बात सुनकर मेरा दिल बैठ गया। मैंने सोचा, "क्या उसका अच्छा काम मेरी मदद के कारण नहीं है? जाहिर तौर पर, यह काम मेरा किया हुआ है, लेकिन अब सब लोग उसे आदर से देखकर उससे ईर्ष्या करते हैं।" मैंने इस बारे में जितना सोचा, मन में उतनी ही कड़वाहट आई। मैं बहन वांग को दोष दिए बिना नहीं रह सकी। जाहिर था कि वह मेरी सहायता से ही इतनी तरक्की कर पाई थी। जब वह बुरे हाल में थी, तो मैंने उससे संगति करने के लिए परमेश्वर के वचन के अंश ढूँढ़े थे। जब वह सिद्धांतों से अवगत नहीं थी, तो मैंने उसे बारीकियाँ समझाई थीं। उसे सहारा देने के लिए मैंने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी, तो ऐसा क्यों है कि वह सुपरवाइजर को यह बात नहीं बता सकी? मैंने सोचा, "लगता है अब मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊँगी, वरना तुम मुझसे आगे निकल जाओगी। फिर सुपरवाइजर या भाई-बहनों के दिलों में मेरी थोड़ी-सी भी जगह नहीं रह जाएगी।"

इसके बाद, जब कभी मुझे उसके काम में गलतियाँ नजर आतीं, तो मैं सिद्धांतों पर उससे संगति नहीं करती थी, और उन चीजों के बारे में बात नहीं करती थी जो वह नहीं समझती थी। मैं बस दूसरे कमरे में चली जाती और उसकी अनदेखी करती थी। मैंने सुपरवाइजर को यह दिखाने के लिए ऐसा किया कि बहन वांग की तरक्की पूरी तरह से मेरे प्रयास के कारण थी, मेरी मदद और संगति के बिना, वह उस मुकाम पर नहीं पहुँच पाती जहां आज वह है। मुझे याद है, एक बार, जब मैं उसकी अनदेखी करने के लिए दूसरे कमरे में जा रही थी, तो मैंने कनखियों से देखा, उसकी आँखों में दिल दुखने का भाव था। मुझे लगा जैसे मेरे दिल पर हथौड़े चल गए हों। मुझे मालूम था, मैं भ्रष्ट स्वभाव के कारण ऐसा कर रही हूँ, और मुझे अपना हित छोड़ देना चाहिए, मगर फिर सोचा, मैंने इस पर कितना प्रयास किया और समय लगाया है, आखिर में कैसे उसने मेरी चमक-दमक और श्रेय चुरा लिया, और कैसे सुपरवाइजर अक्सर उसकी सराहना करती थी। यह सब बड़ा अनुचित लगा और मुझे जो थोड़ा अफसोस हुआ था, वह काफूर हो गया। जल्दी ही, मुझसे दबी हुई महसूस करने के कारण वह ज्यादा-से-ज्यादा उदास रहने लगी, उसकी तरक्की थम गई, और वह पिछड़ने भी लगी। उस दौरान, समूह में बहन लियू, बहन वांग के साथ ठीक से काम नहीं कर पा रही थी, और उसके मन में उसके खिलाफ कुछ पूर्वाग्रह थे। जब बहन लियू ने बहन वांग की प्रभाविता कम होते देखी, तो उसे शक हुआ कि बहन वांग पाठ्य सामग्री के काम के लिए सही नहीं है। उसने जब मुझे यह बताया, तो उसका पूर्वाग्रह दूर करना तो दूर रहा, मैं मन-ही-मन खुश हो गई। मैंने सोचा, "अब सभी लोग आखिरकार बहन वांग का असली आध्यात्मिक कद देख सकते हैं। अगर शुरुआत में, मैंने उसकी मदद न की होती, तो उसे इतनी सराहना कैसे मिल पाती?" मैंने अर्थपूर्ण लहजे में बहन लियू से कहा, "हमारे दिल स्नेही होने चाहिए। बहन वांग को हमारे साथ काम करने के लिए लाया गया था, इसलिए हम कुछ नहीं कर सकते। हमें बस पालन करना होगा।" मेरे यह कहने पर, बहन वांग के प्रति उसका पूर्वाग्रह सिर्फ कायम ही नहीं रहा, बल्कि और भी गहरा हो गया। उसे लगा, बहन वांग ने ही काम में देर की, और हमारे कर्तव्य को कम प्रभावी बना दिया था। कभी-कभी, जब वह बहन वांग से बात करती, तो आक्रामक होकर उसे धक्का दे देती थी। बहन वांग और ज्यादा दब गई, वह ज्यादा कुछ बोली नहीं। मुझे हल्का-सा पता था कि जो मैंने कहा, उससे दोनों बहनों के बीच का पूर्वाग्रह बदतर हो गया था, मुझे थोड़ा डर भी लगा, लेकिन जब मैंने बहन वांग को इतनी अहमियत और स्वीकृति मिलने के बारे में सोचा, तो परवाह करना छोड़ दिया। सहयोग न कर सकने के कारण हम अपने कर्तव्य में कम-से-कम प्रभावी हो गए। सुपरवाइजर ने हमसे संगति करके कर्तव्य के प्रति हमारे रवैये पर आत्मचिंतन करने को कहा। इन हालात का सामना कर मुझे थोड़ा अपराध-बोध हुआ। दरअसल, मुझे बस अपने निजी हितों को थोड़ा-सा छोड़ना भर था, दूसरों के दिलों में अपने रुतबे की इतनी अधिक परवाह करना छोड़ देना था, और सबके साथ सहयोग करना था, ताकि काम सामान्य रूप से चल सके। लेकिन जब मैंने सोचा कि मेरे इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बावजूद कोई इस बारे में नहीं जानता था, तो मैंने बड़ी कड़वाहट महसूस की, मैं अब भी बहन वांग की अनदेखी करना चाहती थी।

जल्दी ही, एक बैठक में पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। शुरू में, मैंने सोचा कम्युनिस्ट पार्टी एक दानव है जो परमेश्वर का प्रतिरोध करती है, और अगर चीन में आप परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो देर-सवेर आपको गिरफ्तार कर लिया जाएगा, इसलिए मैंने आत्मचिंतन नहीं किया। मगर मैं इस भावना को छोड़ नहीं पाई कि यह गिरफ्तारी सिर्फ उत्पीड़न नहीं है, इसमें परमेश्वर की इच्छा निहित है। मैंने सोचा, "मुझे एकाएक गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है? मैंने कहीं परमेश्वर का अपमान तो नहीं किया?" तो मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की। सत्य खोजते समय, मुझे एक अनुभव की गवाही याद आई जो मैंने पहले पढ़ी थी। उसमें लेखिका रुतबे के पीछे भाग कर सराहना पाना चाहती थी, और अड़ियल होकर गलत रास्ते पर चल रही थी, उसने ऐसा छल-कपट किया कि परमेश्वर के घर का कार्य बाधित हो गया। जल्दी ही, उसे गिरफ्तार कर सताया गया। अपनी हिरासत के दौरान, उसने आत्मचिंतन किया, उसे एहसास हुआ कि परमेश्वर उसका दुराचार रोकने के लिए बड़े लाल अजगर का इस्तेमाल कर रहा था। बाद में, उसने शोहरत और रुतबे के पीछे भागने की प्रकृति और परिणामों के बारे में ज्ञान हासिल किया, और उसने अनुसरण पर अपना गलत नजरिया बदल लिया। अब मुझे गिरफ्तार किया गया था। क्या गलत राह पर चलने के कारण मुझे परमेश्वर का अनुशासन मिल रहा था? मैं अपने कर्तव्य में घटी बातों को याद किए बिना नहीं रह सकी। मुझे स्पष्ट रूप से मालूम था कि परमेश्वर के घर को पाठ्य सामग्री के काम का हुनर रखने वालों की शीघ्र जरूरत थी, लेकिन बहन वांग को मुझसे आगे बढ़ने से रोकने के लिए, उसके निष्क्रिय होने पर मैं बस देखती रही, उसकी मदद नहीं की, परमेश्वर के घर के कार्य की पूरी तरह से अनदेखी की, और नतीजा यह हुआ कि पाठ्य सामग्री का काम बाधित हो गया। इस बारे में सोचकर मैं पीड़ा और दुख महसूस किए बिना नहीं रह सकी। मैंने खुद से पूछा, "पहले, मेरे दिन, शोहरत और रुतबे के पीछे भागते हुए, और उन्हें हासिल कर कायम रखने के बारे में सोचते हुए बीतते थे। अब मैं गिरफ्तार हो चुकी हूँ, तो क्या शोहरत और रुतबा मेरी आस्था बढ़ा सकेंगे? क्या ये मेरी कायरता दूर कर सकेंगे? क्या इनसे मुझे गवाही देने में मदद मिलेगी? आखिर शोहरत और रुतबे का क्या फायदा है?" मुझे अचानक एहसास हुआ कि शोहरत और रुतबे के पीछे मेरा निरंतर भागना आखिर एक मजाक बन कर रह गया था। मुझे बहुत पछतावा हुआ, तो मैंने आँखों में आँसू लिए परमेश्वर से यह कहकर प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मुझे शोहरत और रुतबे के पीछे नहीं भागना था। मैंने सत्य का अनुसरण करने के अपने मौके गँवा दिए। अगर मुझे अपना कर्तव्य निभाने का दोबारा मौका मिला, तो मैं शोहरत और रुतबे के पीछे नहीं भागना चाहती। हे परमेश्वर, मुझे रास्ता दिखाओ, मेरी अगुआई करो।" परमेश्वर ने मेरी कमजोरी पर दया दिखाई। जल्द ही मेरे माता-पिता को मेरी गिरफ्तारी की खबर मिली, उन्होंने मुकदमे से पहले 140,000 आरएमबी चुकाकर मेरी जमानत कराई, मुझे रिहा कर दिया गया।

घर लौटने के बाद, मैंने बार-बार परमेश्वर के वचन पढ़े और आत्मचिंतन किया। एक दिन, अपने धार्मिक कार्यों के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "जब उन चीजों की बात आती है जिन्हें परमेश्वर सुरक्षित रखना चाहता है, तो अगर तुम हमेशा उन्हें अस्त-व्यस्त, बाधित और विघटित करते रहते हो, और अगर तुम हमेशा उनसे घृणा करते रहते हो और अपनी धारणाएँ और विचार रखते हो, तो इसका तात्पर्य यह है कि तुम परमेश्वर के साथ बेकार की बहस करना चाहते हो, उससे अलग पक्ष लेना चाहते हो। तुमने उसके घर के काम और हितों को महत्व नहीं दिया है। तुम हमेशा उसे नष्ट करने की कोशिश करते हो, हमेशा विनाशकारी ढंग से कार्य करना चाहते हो, या लाभ उठाना चाहते हो और धोखा देकर गबन करना चाहते हो। ऐसे में, क्या परमेश्वर तुमसे रुष्ट नहीं होगा? (होगा।) और परमेश्वर के रोष का परिणाम क्या होगा? (दंड।) यह तय है। परमेश्वर तुम्हें माफ नहीं करेगा; इसकी बिल्कुल संभावना नहीं है। इसका कारण यह है कि तुम्हारे द्वारा किए गए कामों ने कलीसिया के काम को कमजोर किया और बिगाड़ा है, परमेश्वर के घर के काम और हितों के साथ उनका टकराव था, वे भयंकर बुराई थे, वे परमेश्वर के विरुद्ध थे, और परमेश्वर के स्वभाव के प्रति एक प्रत्यक्ष अपराध थे—तो परमेश्वर तुमसे रुष्ट कैसे नहीं हो सकता था? अगर कुछ लोग अपनी खराब क्षमता के कारण कार्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, और वे गलती से कुछ विघटन और अव्यवस्था पैदा कर देते हैं, तो उसे नजरंदाज किया जा सकता है। लेकिन अगर अपने व्यक्तिगत हितों की खातिर तुम ईर्ष्या और विवादों में लिप्त होते हो, और जानबूझकर ऐसा कुछ करते हो जो परमेश्वर के कार्य को बाधित, अस्त-व्यस्त और नष्ट करे, तो इसका अर्थ है कि तुमने जानबूझकर पाप किया है। इससे परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचती है। क्या वह तुम पर दया करेगा? परमेश्वर ने अपना सारा खून, पसीना और आँसू यहीं अपनी छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन-योजना के कार्य में लगा दिए हैं। अगर तुम उसके खिलाफ काम करते हो, जानबूझकर उसके घर के हितों को नुकसान पहुँचाते हो और उसके घर के हितों की कीमत पर अपने हित साधते हो, व्यक्तिगत प्रसिद्धि और हैसियत पाने की कोशिश करते हो, परमेश्वर के घर के काम को नष्ट करने या उसे बाधित और बरबाद करने, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर को बड़ा भौतिक और वित्तीय नुकसान पहुँचाने की परवाह नहीं करते, तो क्या तुम लोग कहोगे कि तुम जैसे व्यक्ति को क्षमा कर दिया जाना चाहिए? (नहीं।) ... तुम्हारे उपद्रव, व्यवधान और विनाश के कारण, लापरवाही या कर्तव्यों की उपेक्षा के कारण या स्वार्थी इच्छाओं के कारण और अपने हितों के पीछे भागने के कारण, तुमने परमेश्वर के घर के हितों को, कलीसिया के हितों को और कई अन्य पहलुओं को नुकसान पहुँचाया है, यहाँ तक कि तुम परमेश्वर के घर के कार्य में भी गंभीर व्यवधान और विनाश का कारण बने हो। तो, तुम्हारी जीवन पुस्तक के पन्नों में, परमेश्वर को तुम्हारे परिणाम का आकलन कैसे करना चाहिए? उसे तुम्हारे बारे में क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? न्यायसंगत तो यह है कि तुम्हें दंडित किया जाना चाहिए; इसी को जैसी करनी वैसी भरनी कहते हैं। अब तुम लोग क्या समझे? लोगों के हित क्या हैं? वास्तव में, वे केवल फालतू की इच्छाएँ हैं; सीधे शब्दों में कहें तो, वे सभी प्रलोभन हैं, वे सभी झूठ हैं, इंसान को फँसाने के लिए सब शैतान के बहकावे हैं। अपने हितों के पीछे भागने का अर्थ है शैतान के बुरे साधनों में सहायक होना; इसका मतलब है परमेश्वर के खिलाफ जाना। परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने के लिए, शैतान लोगों को लुभाने और परेशान करने के लिए हर तरह का परिवेश तैयार करता है। परमेश्वर का अनुसरण करते समय तुम परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं करते, बल्कि शैतान के साथ साँठ-गाँठ कर लेते हो और जानबूझकर परमेश्वर के घर के काम में विनाश और गड़बड़ी पैदा करते हो। परमेश्वर का घर चाहे जैसे तुम्हारी काट-छाँट करे और तुमसे निपटे, तुम सत्य नहीं स्वीकारते, परमेश्वर को तुमसे जो अपेक्षाएँ हैं, तुम उनके प्रति समर्पित नहीं होते। बल्कि, तुम जानबूझकर अकेले कार्य करते हो और मनमर्जी करते हो। परिणामस्वरूप, तुमने परमेश्वर के घर के काम में बाधा डाली है और उसके हितों को नुकसान पहुँचाया है, जिससे परमेश्वर के घर के काम की प्रगति गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। यह एक बहुत बड़ा पाप है और परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हें दंडित करेगा" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक)')। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं डर से काँपने लगी। मैं अपने लिए परमेश्वर का क्रोध महसूस कर सकी। खास तौर पर जब मैंने परमेश्वर को कहते सुना कि वह उन लोगों को कभी माफ नहीं करता, जो उससे होड़ लगाते हैं और अपने निजी हित बचाने के लिए परमेश्वर के घर के कार्य की अनदेखी करते हैं, और जो गंभीर अपराध करते हैं, उन्हें परमेश्वर दंड देगा, तो मेरे दिल में तेज चुभन वाली पीड़ा हुई। इतने वर्षों में, परमेश्वर ने पाठ्य सामग्री का काम देकर मुझे ऊंचा उठाया था। अपने कर्तव्य में, पवित्र आत्मा ने मुझे रास्ता दिखाया था, परमेश्वर के वचन ने मुझे सहारा और पोषण दिया था। भले ही मेरा गंभीर रूप से न्याय, काट-छाँट या निपटान किया गया हो, यह मुझे शुद्ध करने और बदलने के लिए था। मैंने परमेश्वर के अगाध प्रेम का आनंद उठाया था, और मुझे उसका प्रतिफल चुकाने के लिए अपना कर्तव्य ठीक से निभाना चाहिए। जब सुपरवाइजर ने मुझे बहन वांग की मदद करने का मौका दिया, तो मुझे भरसक प्रयास करना था, लेकिन मैंने परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान नहीं दिया, परमेश्वर के घर के कार्य की परवाह नहीं की। मैंने सारा वक्त ईर्ष्या और दूसरों से होड़ करने में लगा दिया। खास तौर से जब मैंने बहन वांग की तेज रफ़्तार तरक्की देखी, उसे सुपरवाइजर और हमारे सहभागियों की स्वीकृति पाते देखा, तो मुझे ईर्ष्या हुई, गुस्सा आया, और मैंने उसे दुख पहुँचाने के लिए खुल्लम-खुल्ला और चोरी-छिपे कई करतूतें की। मुझे साफ तौर पर पता था कि सिद्धांत के कई पहलुओं को वह अभी भी नहीं समझ पाई थी, लेकिन मैंने उसे राह दिखाने के लिए उन पर संगति नहीं की। जब मैंने उसे बुरे हाल में देखा, तो उसे सहारा नहीं दिया, उसकी मदद नहीं की। बहन लियू के मन में बहन वांग के प्रति पूर्वाग्रह और आलोचना भरे विचार थे, लेकिन इन्हें दूर करने के बजाय मैंने मजे लिए, जानबूझ कर अपनी बातों की चिनगारी से आग भड़काई। नतीजतन, बहन वांग के प्रति बहन लियू के पूर्वाग्रह गहरे हो गए। बहन वांग को अलग-थलग कर देने के कारण वह परेशान और उदास हो गई, अपना कर्तव्य सामान्य रूप से नहीं निभा सकी। बहन वांग के साथ मैंने जो किया, और अपनी बहन को जो दुख और दर्द मैंने दिया, इन सबके बारे में सोचकर, मैं इंसानियत रखने का दावा कैसे कर सकती थी? परमेश्वर के न्याय और प्रकाशन से मैंने साफ तौर पर देखा कि मुझे बहन वांग से ईर्ष्या थी। मैं नहीं चाहती थी कि वह मुझसे आगे निकले, मैं नहीं चाहती थी कि मेरी शोहरत और रुतबा खराब हो। यह सिर्फ उसके साथ मिल-जुल कर न रहने की नहीं, बल्कि परमेश्वर के खिलाफ जाने की बात थी। पाठ्य सामग्री का काम कलीसिया का अहम काम होता है, अपनी शोहरत और रुतबे के लिए मैं काम पर अपना गुस्सा निकालने की हेकड़ी दिखा रही थी। जब मैंने देखा कि वह बुरे हाल में है, अपने काम में प्रभावी नहीं है, समूह में लोग मिल-जुलकर काम नहीं कर रहे हैं, और हमारे काम की प्रभाविता गिर गई है, तब भी मैंने आत्मचिंतन या परमेश्वर से पश्चाताप नहीं किया, ईर्ष्या और संघर्ष के बीज बोने में आगे रही। मैं शैतान के नौकर की तरह, दुराचार करके परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित कर रही थी। परमेश्वर की इच्छा का सही मायनों में ध्यान रखनेवाले लोग, जब किसी को अपने से बेहतर होते या ज्यादा प्रभावी ढंग से काम करते हुए देखते हैं, तो वे खुश होते हैं, लेकिन अपनी शोहरत और रुतबे के कारण मैं बहन वांग से ईर्ष्या करती थी, उसे बढ़िया काम करते हुए नहीं देख सकती थी, और मैंने परमेश्वर के घर के कार्य का जरा भी ध्यान नहीं रखा। यह शैतानी स्वभाव के सिवाय कुछ नहीं था! जब शैतान ने देखा कि अय्यूब परमेश्वर का भय मानता है और दुराचार से दूर रहता है, तो वह परेशान हो गया। उसने अय्यूब को सताना चाहा और उसके मरने की कामना की। मैंने जैसा बर्ताव किया, क्या उसका सार यही नहीं था? मैंने बहन वांग को दुखी और अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ देखने की कामना की। मैं इतनी दुष्ट और दुराचारी थी!

फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा, "शैतान मनुष्य को मजबूती से अपने नियंत्रण में रखने के लिए किसका उपयोग करता है? (प्रसिद्धि और लाभ का।) तो, शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। पहले मुझे परमेश्वर के वचनों के इस अंश की ज्यादा समझ नहीं थी। अब मैं समझ पाई कि शोहरत और फायदे की होड़ ने मुझे कितनी दुष्ट और डरावनी बना दिया था। शैतान लोगों को कितनी गहराई तक भ्रष्ट कर देता है! "लोगों को हमेशा अपने समकालीनों से बेहतर होने का प्रयत्न करना चाहिए," "बाकी सबसे ऊपर खड़े हो," और "दूसरों की अपेक्षा बेहतर होने की चाहत करना," जैसी बातें, लोगों से धोखा देने वाले शैतानी फलसफे हैं। जब मैं इन शैतानी फलसफों के अनुसार जी रही थी, तो मेरे मन में गलत विचार थे। मुझे शोहरत और रुतबा पसंद था, और मैं लोगों के किसी भी समूह में सबसे अच्छी होना चाहती थी। मैं सबसे शानदार इंसान बनना चाहती थी, दूसरों का ऊंचा सम्मान पाना चाहती थी। मुझे यकीन था कि बढ़िया और सार्थक जीवन जीने का यही एकमात्र तरीका है। इन शैतानी विचारों के काबू में, मैं खास तौर पर अकेली और नकचढ़ी हो गई थी, अपने कर्तव्य को भी शोहरत और रुतबे की होड़ का साधन मानती थी, जिससे परमेश्वर के घर का पाठ्य सामग्री का काम गंभीर रूप से पिछड़ गया, मेरी बहन को भी पीड़ा और दुख सहना पड़ा। मैंने देखा कि अपनी शोहरत और रुतबे के लिए मैंने बहुत-से बुरे काम किए और इतनी चालें चलीं, सब-कुछ परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचाने की कीमत पर, और अपने भाई-बहनों की जिंदगियाँ दाँव पर लगाकर! यह सब सोच कर मैं बहुत डर गई। सिर्फ इस मुकाम पर मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी दुष्ट और स्वार्थी थी। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के कार्य को बाहर से बाधित करता है, भाई-बहनों को गिरफ्तार करता है, फिर भी मैंने वह किया जो बड़ा लाल अजगर करना चाहता था, मगर कलीसिया में कर नहीं पाया था। मैं इतनी घिनौनी कैसे हो सकती थी? मसीह-विरोधी रुतबे के लिए लोगों को दंड दे सकते हैं, मैं भी शोहरत और रुतबे के लिए लोगों को अलग-थलग कर दबा सकती थी। मैं मसीह-विरोधी की राह पर चल रही थी। इस विफलता के बाद, मैंने समझ लिया कि शोहरत और रुतबे के पीछे भागना सही अनुसरण नहीं है। यह परमेश्वर के प्रतिरोध और तबाही का रास्ता है। तभी, मैंने परमेश्वर की सुरक्षा महसूस की। अगर परमेश्वर ने इतनी सख्ती से ताड़ना देकर मुझे अनुशासित न किया होता, और मेरे बुरे कर्मों को रोकने के ऐसे हालात न बनाए होते, तो मेरा कुंद पड़ा और पथराया हुआ दिल कभी जागा नहीं होता। मैं गलत रास्ते पर चल रही होती, और अंत में, परमेश्वर ने मेरे बुरे कर्मों के कारण मेरी निंदा कर मुझे निकाल दिया होता। तब मैंने बचाए जाने का अपना मौक़ा पूरी तरह खत्म कर लिया होता। इसके बाद, मैंने प्रायश्चित करने की इच्छा लेकर परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरे दिल की देखभाल करने की विनती की, ताकि अगर मैंने फिर से शोहरत और रुतबे का पीछा किया और मसीह-विरोधी का रास्ता पकड़ा, तो परमेश्वर मेरा खुलासा कर मुझे ताड़ना दे, मुझे अनुशासित करे।

जल्दी ही, मैंने अपना पाठ्य सामग्री का काम फिर से शुरू कर दिया। समूह में, बहन शाओ ने हाल ही में काम शुरू किया था, और सुपरवाइजर ने मुझसे उसे प्रशिक्षण देने और उसकी मदद करने को कहा। अपनी पुरानी विफलता पर विचार करके मैं वही गलती नहीं दोहराना चाहती थी, इसलिए मैंने उसकी मदद करने की भरसक कोशिश की। कुछ समय बाद, बहन शाओ ने थोड़ी तरक्की की। फिर, मैंने सुपरवाइजर को कहते सुना कि बहन शाओ की काबिलियत अच्छी है और वह तेजी से सीख लेती है, इसलिए वह पोषण के लायक थी। यह सुनकर लगा, मानो मेरे दिल में कोई सूई चुभा दी गई हो। मैं फिर से अपना आपा खो बैठी, मैं अब उसकी मदद नहीं करना चाहती थी। यह ख्याल आने पर, मेरे मन में अपनी गिरफ्तारी की यादें कौंध गईं। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरे दिल की रक्षा करने की विनती की, ताकि मैं गलत रास्ते पर न चलूँ। फिर, मैंने अपनी हालत के हिसाब से परमेश्वर के वचनों को खाया और पीया, मैंने परमेश्वर के वचन का एक वीडियो पाठ भी देखा जो मेरे लिए बहुत मददगार था। परमेश्वर के वचन कहते हैं : "सुनिश्चित करो कि तुम ऐसे व्यक्ति न बनो जिससे परमेश्वर घृणा करता है; बल्कि ऐसे इंसान बनो जिसे परमेश्वर प्रेम करता है। तो इंसान परमेश्वर का प्रेम कैसे प्राप्त कर सकता है? आज्ञाकारिता के साथ सत्य को ग्रहण करके, सृजित प्राणी के स्थान पर खड़े होकर, परमेश्वर के वचनों का पालन करते हुए व्यावहारिक रहकर, अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह निर्वहन करके, सच्चा इंसान बनने का प्रयास करके और मनुष्य की तरह जीवन जी कर। इतना काफी है, परमेश्वर संतुष्ट होगा। लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे मन में किसी तरह की महत्वाकांक्षा न पालें या बेकार के सपने न देखें, प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के पीछे न भागें या भीड़ से अलग दिखने की कोशिश न करें। इसके अलावा, उन्हें ऐसे महान या अलौकिक व्यक्ति बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो लोगों में श्रेष्ठ हो और दूसरों से अपनी पूजा करवाता हो। यही भ्रष्ट इंसान की इच्छा होती है और यह शैतान का मार्ग है; परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं बचाता। अगर लोग लगातार प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के पीछे भागते हैं और पश्चाताप नहीं करते, तो उनका कोई इलाज नहीं है, उनका केवल एक ही परिणाम होता है : त्याग दिया जाना। आज, अगर तुम लोग शीघ्रता से पश्‍चात्ताप करो, तो अभी भी समय है; लेकिन जब वह दिन आएगा और परमेश्वर का काम समाप्त होगा, आपदाएँ बढ़ती जाएंगी, और तुम पश्चात्ताप करने का मौका खो चुके होगे। जब वह समय आएगा, तब जो लोग यश, लाभ और प्रतिष्ठा के पीछे भाग रहे होंगे और पश्चात्ताप करने से इनकार करेंगे, वे सब निकाल दिए जाएँगे। तुम सब लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि परमेश्वर का कार्य किस तरह के लोगों को बचाता है, और उसके द्वारा मनुष्य के उद्धार का क्या अर्थ है। परमेश्वर लोगों को अपने वचन सुनने, सत्य को स्वीकारने, भ्रष्ट स्वभाव को त्यागने के लिए अपने सामने आने, और परमेश्वर के कथन और उसकी आज्ञा का अभ्यास करने को कहता है, अर्थात उसके वचनों के अनुसार जीना, न कि इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं या शैतानी दर्शनों के अनुसार जीना और इंसानी 'आनंद' का अनुसरण करना। अगर कोई परमेश्वर के वचन नहीं सुनता या सत्य स्वीकार नहीं करता, और अभी भी शैतान के फलसफों और स्वभावों के अनुसार जीता है, और पश्चात्ताप करने से इनकार करता है, तो इस तरह के व्यक्ति को परमेश्वर नहीं बचा सकता। जब तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, तो बेशक यह भी इसलिए है कि तुम परमेश्वर द्वारा चुने गए हो—तो परमेश्वर द्वारा तुम्हें चुने जाने का क्या अर्थ है? यह तुम्हें ऐसा व्यक्ति बनाना है, जो परमेश्वर पर भरोसा करता है, जो वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करता है, जो परमेश्वर के लिए सब-कुछ त्याग सकता है, और जो परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में सक्षम है, जिसने अपना शैतानी स्वभाव त्याग दिया है, और अब शैतान का अनुसरण नहीं करता या शैतान के प्रभुत्व के अधीन नहीं जीता। अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो और परमेश्वर के घर में कोई न कोई कर्तव्य निभाते हो, फिर भी हर मामले में सत्य का उल्लंघन करते हो, और हर मामले में उसके वचनों के अनुसार कार्य या अनुभव नहीं करते, यहाँ तक कि परमेश्वर के विरुद्ध खड़े हो सकते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें स्वीकार कर सकता है? बिलकुल नहीं। इससे मेरा क्या आशय है? कर्तव्य निभाना वास्तव में कठिन नहीं है, और न ही उसे निष्ठापूर्वक और स्वीकार्य मानक तक करना कठिन है। तुम्हें अपने जीवन का बलिदान या कुछ भी खास या मुश्किल नहीं करना है, तुम्हें केवल ईमानदारी और दृढ़ता से परमेश्वर के वचनों और निर्देशों का पालन करना है, इसमें अपने विचार नहीं जोड़ने या अपना खुद का कार्य संचालित नहीं करना, बल्कि सत्य के अनुसरण के रास्ते पर चलना है। अगर लोग ऐसा कर सकते हैं, तो उनमें मूल रूप से एक मानवीय सदृशता है। जब उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आज्ञाकारिता होती है, और वे ईमानदार व्यक्ति बन जाते हैं, तो उनमें एक मनुष्य की सदृशता होगी" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग')। परमेश्वर के वचन से मैंने समझा कि परमेश्वर उम्मीद रखता है कि लोग अपने कर्तव्य व्यावहारिक तरीके से निभाएंगे, उसके वचन के अनुसार बर्ताव करेंगे, और अब शैतान के प्रभुत्व में नहीं जियेंगे या अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार काम नहीं करेंगे। मुझे परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार अपनी आकांक्षाओं को छोड़ देना चाहिए, इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए कि लोग मुझे ऊंची नजर से देखते हैं या नहीं, मुझे सत्य के अनुसरण और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने पर ध्यान देना चाहिए। यही मेरा उचित काम और सही मार्ग है। साथ ही, मैं अपने कर्तव्य के कुछ सिद्धांतों को परमेश्वर के मार्गदर्शन के कारण समझ पाई, यह परमेश्वर के घर में वर्षों के पोषण का नतीजा था। अगर मैं इन चीजों के साथ अपनी निजी संपत्तियों की तरह पेश आई, अपनी शोहरत और रुतबा बचाने के लिए चीजें छिपाईं और दूसरों से दूर रखीं, अड़ियल बनकर परमेश्वर के प्रतिरोध के मार्ग पर चलती रही, तो परमेश्वर मुझसे जरूर घृणा करेगा। लेकिन अगर मैं जो कुछ भी जानती हूँ, वह दूसरों को बता सकूँ, तो भले ही वे तरक्की कर सराहना पाएँ, और मेरी अनदेखी हो, मगर मैं सत्य का अभ्यास करती रहूँगी, ईमानदार जीवन जियूंगी, सुरक्षा और सुकून महसूस करूँगी। यह बुरी चीज कहाँ हुई? जब मुझे गिरफ्तार कर हिरासत में रखा गया, और मैंने पुलिस के उत्पीड़न का सामना किया, तब शोहरत, रुतबा और दूसरों की सराहना से मुझे जरा भी मदद नहीं मिली। जब मुझे शैतान ने घेर रखा था, तब परमेश्वर के वचन ने ही मुझे डटकर खड़े रहने का रास्ता दिखाया, परमेश्वर के वचन ने ही मुझे आस्था और शक्ति दी थी। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास रखूँ, लेकिन सत्य हासिल न कर पाऊँ, और परमेश्वर मुझे ठुकरा दे, फिर लोग मुझे ऊंची नजर से देखें भी, तो क्या फायदा? मैं बचाई जाऊंगी या नहीं, इसका फैसला इस बात से नहीं होता कि लोग मुझे ऊँची नजर से देखते हैं या नहीं, बल्कि इससे होता है कि क्या परमेश्वर की नजरों में मैं एक योग्य सृजित प्राणी हूँ, क्या मेरा भ्रष्ट स्वभाव बदल गया है, और क्या मुझे सत्य हासिल है। परमेश्वर ने लोगों से कभी महान बनने या मशहूर होने को नहीं कहा। इसके बजाय परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है, जो शांत रहकर और व्यावहारिक तरीके से अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। सिर्फ ऐसे लोग ही सही मायनों में इंसान होते हैं। एक बार ये चीजें समझ लेने के बाद, मेरा दिल रोशन हो गया, मैं जान गई कि मुझे कैसे अभ्यास करना है। इसके बाद, मैं जो कुछ भी समझती थी, उन सबके बारे में बहन शाओ के साथ संगति की। उसकी काबिलियत सच में बहुत ऊंची थी। जब हम मिल-जुलकर समस्याओं पर चर्चा करतीं, तो वह हमेशा ऐसी चीजें सामने रखती जिन पर मेरा ध्यान नहीं गया था, और इससे मेरी कमियाँ पूरी होतीं, कभी-कभार, जब मैं सुनती कि सुपरवाइजर उससे सहमत हैं, तो अब मुझ पर उसका असर नहीं होता।

बाद में, जब भाई-बहनों ने मेरा अनुभव सुना, तो उन्हें परमेश्वर के वचनों का वह अंश मिला, जिसमें दूसरों की तरक्की के लिए मुझे श्रेय मिलने के मेरे नजरिए का समाधान था। "जब परमेश्वर किसी को प्रबुद्ध करता है, तो यह परमेश्वर का अनुग्रह होता है। और तुम्हारी ओर से वह छोटा-सा सहयोग क्या है? क्या वह कोई ऐसी चीज है, जिसके लिए तुम्हें श्रेय दिया जाए—या वह तुम्हारा कर्तव्य, तुम्हारी जिम्मेदारी है? (कर्तव्य और जिम्मेदारी।) जब तुम मानते हो कि यह कर्तव्य और जिम्मेदारी है, तो यह सही मन:स्थिति है, और तुम श्रेय लेने की कोशिश करने का विचार नहीं करोगे। अगर तुम हमेशा यह मानते हो, 'यह मेरी योगदान है। क्या परमेश्वर का प्रबोधन मेरे सहयोग के बिना संभव होता? उसके लिए लोगों के सहयोग की जरूरत होती है; वह मुख्य रूप से लोगों के सहयोग की बदौलत होता है,' तो यह गलत है। अगर पवित्र आत्मा ने तुम्हें प्रबुद्ध न किया होता, और अगर किसी ने तुम्हारे साथ सत्य के सिद्धांतों पर संगति न की होती, तो तुम सहयोग कैसे कर पाते? तुम्हें पता न होता कि परमेश्वर की क्या अपेक्षा है, न ही तुम्हें अभ्यास का मार्ग पता होता। अगर तुम परमेश्वर की आज्ञा का पालन और सहयोग करना भी चाहते, तो भी तुम यह न जानते कि कैसे करें। क्या तुम्हारा यह 'सहयोग' खोखले शब्द नहीं हैं? सच्चे सहयोग के बिना, तुम केवल अपने विचारों के अनुसार कार्य कर रहे होते हो—उस स्थिति में, तुम जो कर्तव्य निभाते हो, क्या वह मानक के अनुरूप हो सकता है? बिल्कुल नहीं, और यह एक समस्या का संकेत देता है। यह किस समस्या का संकेत देता है? व्यक्ति चाहे जो भी कर्तव्य करे, उसमें क्या वह परिणाम प्राप्त करता है, क्या मानक के अनुरूप अपना कर्तव्य निभाता है और परमेश्वर का अनुमोदन पाता है या नहीं, यह परमेश्वर के कार्यकलापों पर निर्भर करता है। अगर तुम अपनी जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य पूरे कर भी दो, तो भी अगर परमेश्वर कार्य न करे, अगर वह तुम्हें प्रबुद्ध कर तुम्हारा मार्गदर्शन न करे, तो तुम अपना मार्ग, अपनी दिशा या अपने लक्ष्य नहीं जान पाओगे। अंतत: इसका क्या परिणाम होता है? लगातार परिश्रम करने के बाद, तुमने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया होगा, न ही तुमने सत्य या जीवन प्राप्त किया होगा—यह सब व्यर्थ हो गया होगा। इसलिए, तुम्हारे कर्तव्य का मानक अनुरूप होना, इससे तुम्हारे भाइयों और बहनों को लाभ मिलना, और परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करना, ये सब परमेश्वर पर निर्भर करता है! लोग केवल वही चीजें कर सकते हैं, जिन्हें करने में वे व्यक्तिगत रूप से सक्षम होते हैं, जिन्हें उन्हें करना चाहिए और जो उनकी अंतर्निहित क्षमताओं के भीतर होती हैं—इससे ज्यादा कुछ नहीं। इसलिए, अंतत: प्रभावशाली ढंग से कर्तव्य निभाना परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन और पवित्र आत्मा के प्रबोधन और अगुआई पर निर्भर करता है; केवल तभी तुम सत्य को समझ सकते हो और परमेश्वर द्वारा तुम्हें दिए गए मार्ग और उसके द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार परमेश्वर का आदेश पूरा कर सकते हो। ये परमेश्वर के अनुग्रह और आशीष हैं, अगर लोग यह नहीं देख पाते, तो वे अंधे हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत')। परमेश्वर का वचन पढ़कर मैं समझ गई कि मेरा यह मानना कि दूसरों की तरक्की मेरे प्रयासों के कारण थी, दरअसल परमेश्वर की महिमा छीनना था। परमेश्वर मुझे और दूसरों को भी प्रबुद्ध कर सकता है। मेरा अपने कर्तव्य के कुछ सिद्धांतों को समझ पाना मेरे अपने प्रयासों के कारण नहीं, बल्कि परमेश्वर की प्रबुद्धता और पवित्र आत्मा के कार्य के कारण था। मैं सिद्धांतों को तभी समझ पाई जब परमेश्वर के वचनों ने अभ्यास के मार्ग और सिद्धांतों की ओर इशारा किया। परमेश्वर की प्रबुद्धता और उसके वचनों के मार्गदर्शन के बिना, मैं किसी भी मामले या समस्या को नहीं समझ सकती थी। मैं कितनी भी रातें जागती रहूँ, कितने भी प्रयास करूँ, सब बेकार होंगे, और मैं कुछ भी ठीक से नहीं कर सकूँगी। लेकिन मैं सोचती थी कि उनकी तरक्की का श्रेय मुझे मिलना चाहिए, मेरी मदद के बिना, वे कोई तरक्की नहीं कर पाए होते। सारे ताज मैंने खुद पहन रखे थे, मैं बहुत घमंडी थी, खुद को बहुत ऊंचा समझती थी। मेरी मदद के बिना बहुत-से लोगों ने पाठ्य सामग्री का काम शुरू किया था और बड़े अहम सुधार किए थे। उनकी तरक्की, उनके भीतर परमेश्वर के कार्य का नतीजा थी। उनकी काबिलियत पैदाइशी है, एक बार जब वे सत्य और सिद्धांतों के तहत सच्चे मन से कीमत चुका देते हैं, और पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता पा लेते हैं, तो वे तरक्की कर सकते हैं। अब मैं भाई-बहनों की मदद कर सकती हूँ, यही वह कर्तव्य है, जो मुझे निभाना है, और यही परमेश्वर का अनुग्रह भी है। इसमें सराहना पाने या डींग हांकने जैसा कुछ भी नहीं है। बहन वांग के साथ बिताए उन दिनों को याद करने पर मैंने पाया, हालांकि शुरुआत में मैंने उसके साथ कुछ सिद्धांतों पर संगति की, मगर बाद में, उसने गंभीरता से काम किए और उन पर मनन किया, जिस कारण से उसे हमेशा परमेश्वर की आशीष और मार्गदर्शन मिला। बहन शाओ भी वैसी ही थी। उसके उठाए हुए विचार अक्सर ऐसे होते जिन पर मेरा ध्यान नहीं गया होता, और दरअसल उनसे मेरी सोच को विस्तार मिला। मैं समझ गई कि सभी में खूबियाँ होती हैं, अगर हम अपने कर्तव्य में कड़ी मेहनत करें और बारीकियों पर ध्यान दें, तो हम सभी परमेश्वर की प्रबुद्धता पा सकते हैं, और सत्य के कुछ सिद्धांत समझ सकते हैं, सिर्फ एक-दूसरे के पूरक बनकर ही हम अपना कर्तव्य ठीक ढंग से निभा सकते हैं।

इसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास किया। अपना कर्तव्य निभाते समय, मैंने परमेश्वर के सामने अपने दिल को स्थिर रखा, इस बात पर ध्यान दिया कि अपना कर्तव्य अच्छे से कैसे निभाऊँ और जिम्मेदारियाँ कैसे उठाऊँ। मैंने इस बात पर कम ही ध्यान दिया कि लोग मेरे बारे में ऊँचा सोचते हैं या नहीं, और दूसरों के दिलों में मेरे लिए जगह है या नहीं। जब मैं भाई-बहनों की मदद करती, उन्हें थोड़ी-थोड़ी तरक्की कर, धीरे-धीरे मुझसे आगे निकलते देखती, तो अब मुझे उतनी ईर्ष्या नहीं होती, हर वक्त अपनी शोहरत और हितों के बारे में नहीं सोचती। लगता, मैं परमेश्वर का निरीक्षण स्वीकार सकती हूँ, उसकी ओर मुड़कर अपना कर्तव्य निभा सकती हूँ। इस तरह अभ्यास करना व्यावहारिक और आसान लगा, और मुझे दूसरों की सराहना पाने के मुकाबले ज्यादा आनंद मिला। परमेश्वर के इस वचन का अर्थ मैं सही मायनों में समझ पाई, "कार्य समान नहीं हैं। एक शरीर है। प्रत्येक अपना कर्तव्य करता है, प्रत्येक अपनी जगह पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है—प्रत्येक चिंगारी के लिए प्रकाश की एक चमक है—और जीवन में परिपक्वता की तलाश करता है। इस प्रकार मैं संतुष्ट हूँगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 21)। भाई-बहनों और मेरे पास अलग-अलग अनुभव, काबिलियत, और खूबियाँ हैं। हमें एक-दूसरे का पूरक बनकर और मिलजुल कर सहयोग करना चाहिए, अपने-अपने कर्तव्य में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। इस तरह काम करना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होता है।

हालांकि शोहरत और रुतबे के पीछे भागने के कारण मुझे परमेश्वर की ताड़ना और अनुशासन से गुजरना पड़ा, मगर इस अनुभव से, मैंने शोहरत और रुतबे के पीछे भागने की प्रकृति और परिणामों की थोड़ी समझ हासिल की। मुझे यह भी एहसास हुआ कि परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित नहीं किया जा सकता, मैंने सीखा कि मेरा बर्ताव कैसा हो और व्यावहारिक रूप से अपना कर्तव्य कैसे निभाऊँ। यह थोड़ा-बहुत बदलाव जो मैं हासिल कर सकी, पूरी तरह से परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना का परिणाम है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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