क्या धार्मिक अगुआओं का अनुसरण करना परमेश्वर का अनुसरण करना है?
2,000 वर्ष पहले, हमारा उद्धारकर्ता प्रभु यीशु छुटकारे का कार्य करने के लिए आया था और यहूदी धर्म के महायाजकों, शास्त्रियों और फरीसियों ने उन्मादपूर्वक उसकी निंदा की थी। चूँकि अधिकतर यहूदी अपने धार्मिक अगुआओं पर श्रद्धा रखते थे, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु की निंदा करने और उसे नकारने में उन मसीह-विरोधियों का साथ दिया, अंततः उसे सूली पर चढ़ाने में उनका हाथ रहा। यह एक भयंकर पाप था, जिससे वे परमेश्वर के शाप और दंड के भागी बने और इस्राएल राष्ट्र को 2,000 वर्षों तक बरबाद कर दिया। प्रभु यीशु अंत के दिनों में देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है, और इंसान को पूरी तरह शुद्ध करने और बचाने के लिए सत्य व्यक्त करते हुए न्याय का कार्य कर रहा है। वह धार्मिक अगुआओं की उन्मादभरी निंदा और प्रतिरोध भी झेल रहा है। वे अपनी कलीसियाएँ सील कर देते हैं, सच्चा मार्ग खोजने वाले विश्वासियों के रास्ते में खड़े हो जाते हैं, जिससे बहुत-से लोग इसकी पड़ताल करने और इसे स्वीकार करने से डरते हैं, जबकि उन्होंने देखा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य, सशक्त, अधिकारपूर्ण हैं और परमेश्वर से आते हैं। परिणामस्वरूप, कई लोग प्रभु का स्वागत करने का अवसर खो रहे हैं और आपदाओं में पड़ रहे हैं। जहाँ तक प्रभु का स्वागत करने की बात है, उनसे कहाँ गलती हुई है? गलती है अपने धार्मिक अगुआओं की चापलूसी करना! उनका मानना है कि धार्मिक अगुआ परमेश्वर द्वारा नियुक्त हैं और वह उनका उपयोग करता है, उनकी आज्ञा मानना परमेश्वर की आज्ञा मानना है, इसलिए वे पूरी तरह उनके पीछे चलते हैं, उनकी बातों के प्रति ऐसे समर्पित होते हैं मानो वे परमेश्वर से आई हों। कई लोग यह भी सोचते हैं कि प्रभु यीशु जब लौटेगा, तो पहले पादरियों को जरूर बताएगा, इसलिए उनसे ये न सुनना साबित करता है कि वह वापस नहीं आया है। फिर वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की पड़ताल करने का प्रयास तक नहीं करते, बल्कि उसकी निंदा करने में धार्मिक अगुआओं का अनुसरण करते हैं। और इसलिए वे आपदा में पड़कर स्वर्गारोहण का अवसर खो रहे हैं। यह किसका दोष है? इसका कोई आसान जवाब नहीं है। जिन फरीसियों ने बहुत पहले प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की थी, उन्हें परमेश्वर ने शाप दिया था, आज धार्मिक जगत में कई लोगों ने उनसे वो दर्दनाक सबक नहीं सीखा है। चूँकि वे आँख मूँदकर अपने पादरियों की आराधना करते हैं, इसलिए वे प्रभु यीशु की निंदा करने और परमेश्वर को फिर सूली पर चढ़ाने में उनका साथ दे रहे हैं। यह वाकई शर्म की बात है! तो क्या धार्मिक अगुआओं को वास्तव में परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया गया है? क्या उनके प्रति समर्पण करना परमेश्वर का अनुसरण करना है? इस पर स्पष्टता हासिल करना जरूरी है।
कई विश्वासी सोचते हैं कि धार्मिक अगुआ, धर्मगुरु जैसे कि पोप, बिशप, पादरी और एल्डर प्रभु यीशु द्वारा नियुक्त और इस्तेमाल किए जाते हैं और उन्हें विश्वासियों की अगुआई करने का अधिकार है, इसलिए उनकी आज्ञा मानना परमेश्वर की आज्ञा मानना है। इस विश्वास का आधार क्या है? क्या प्रभु यीशु ने कभी कहा था कि सभी धार्मिक अगुआ परमेश्वर द्वारा नियुक्त किए गए हैं? उसने कभी नहीं कहा। क्या उनके पास पवित्र आत्मा की गवाही या उसके कार्य का प्रमाण है? नहीं। इसका मतलब है कि यह विचार विशुद्ध मानवीय धारणा है। आइए, इसके बारे में सोचते हैं। इस मानवीय विचार के अनुसार कि सभी धार्मिक अगुआ परमेश्वर द्वारा नियुक्त किए गए हैं, क्या यहूदी मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों के बारे में भी यह सच हो सकता है, जिन्होंने प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की थी? क्या प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाने में उनके पीछे जाना भी परमेश्वर के प्रति समर्पण करना था? पादरियों से व्यवहार करना बिल्कुल बेतुका है! हम बाइबल से भी देख सकते हैं कि हर युग में परमेश्वर अपने कार्य में मदद के लिए लोगों को नियुक्त करता है। परमेश्वर उन सभी लोगों को व्यक्तिगत रूप से बुलाता और उनकी गवाही देता है, परमेश्वर के वचन यह दिखाते हैं। उन्हें कभी अन्य मनुष्यों द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता, न ही वे उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। व्यवस्था के युग के बारे में सोचें, जब परमेश्वर ने मूसा का उपयोग इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकालने के लिए किया था। यहोवा परमेश्वर के ही वचनों ने इसकी गवाही दी। यहोवा परमेश्वर ने मूसा से कहा, “इसलिये अब सुन, इस्राएलियों की चिल्लाहट मुझे सुनाई पड़ी है, और मिस्रियों का उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है। इसलिये आ, मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूँ कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए” (निर्गमन 3:9-10)। अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने कलीसियाओं की चरवाही करने में पतरस का इस्तेमाल किया, और उसने पतरस की गवाही भी दी। प्रभु यीशु ने पतरस से कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है? ... मेरी भेड़ों को चरा” (यूहन्ना 21:17)। “और मैं भी तुझ से कहता हूँ कि तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा : और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा” (मत्ती 16:18-19)। परमेश्वर प्रत्येक युग में जिनका उपयोग करता है, उन्हें स्वयं नियुक्ति करता और उनके प्रति साक्ष्य देता है, और इसे पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा सत्यापित किया जाता है। व्यवस्था और अनुग्रह के युगों में परमेश्वर ने जिनका उपयोग किया, उन्हें कभी तो उसने स्वयं नियुक्त किया और उनकी गवाही दी, कभी उसने अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया। स्वयं सीधी नियुक्ति न करने पर वह इसे नबियों के जरिये प्रकट करता था, या पवित्र आत्मा के कार्य का सबूत होता था। इसे नकारा नहीं जा सकता। आज के धार्मिक जगत में पोप, बिशपों, याजकों, पादरियों और एल्डरों को उनके पद किसने दिए? क्या परमेश्वर के वचनों या पवित्र आत्मा के कार्य का प्रमाण है? क्या आत्मा ने उनकी गवाही दी है? शायद नही! वास्तव में, कलीसियाओं के वे सभी धार्मिक अगुआ ज्यादातर सेमीनरी और धार्मिक विद्यालयों से स्नातक हैं और उन्हें धर्मशास्त्र में डिग्री प्राप्त है। डिप्लोमा मिलने पर उन्हें विश्वासियों की अगुआई के लिए कलीसियाओं में नियुक्त कर दिया जाता है। कुछ प्रतिभाशाली और वाक्पटु होते हैं और अपना काम अच्छी तरह सीख जाते हैं, इसलिए उन्हें उच्च अगुआओं द्वारा नियुक्त या अनुशंसित किया जाता है और वे पदोन्नत हो जाते हैं। धार्मिक संसार के लगभग सभी पादरी इसी तरह अपने पद प्राप्त करते हैं, लेकिन अधिकतर में पवित्र आत्मा का कार्य नहीं होता। उनमें से कुछ के पास आत्मा का कुछ कार्य हो सकता है, लेकिन उनके पास उसकी गवाही नहीं होती। इसलिए हम पक्के से कह सकते हैं कि वे ऐसे लोग नहीं हैं जिनकी परमेश्वर गवाही देता या उपयोग करता है। वे बहुत स्पष्ट रूप से अन्य लोगों द्वारा पोषित किए और चुने जाते हैं, तो फिर वे क्यों कहते हैं कि उन्हें परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया जाता है? क्या यह तथ्यों के खिलाफ जाना नहीं है? क्या यह बेशर्मी से झूठ बोलना और खुद की गवाही देना नहीं है? इसके क्या परिणाम होते हैं? क्या यह विश्वासियों को धोखा देना और नुकसान पहुँचाना नहीं है? कुछ धार्मिक अगुआ प्रभु यीशु के पतरस को संबोधित वचनों तक को उद्धृत कर बेशर्मी से दावा करते हैं कि प्रभु यीशु ने पतरस को जो अधिकार दिया था, वह पोप को सौंप दिया गया है, इसलिए पोप परमेश्वर द्वारा अधिकृत है और प्रभु यीशु का प्रतिनिधित्व कर सकता है, और चूँकि याजक पोप का अनुसरण करते हैं, इसलिए वे भी परमेश्वर द्वारा अधिकृत हैं, इसलिए वे पाप क्षमा कर सकें। क्या यह हास्यास्पद नहीं है? क्या प्रभु यीशु ने कभी पतरस से कहा था कि जो अधिकार उसे दिया गया है, उसे वह पादरियों की पीढ़ियों को सौंप दे? प्रभु यीशु ने ऐसा कभी नहीं कहा! क्या पतरस ने कभी ऐसी बातें कहीं? बिलकुल नहीं! बाइबल में ऐसी कोई बात नहीं लिखी है। यह भी एक तथ्य है कि उस समय न कोई पोप था, न याजक। इसलिए वे धार्मिक अगुआ, जो घोषणा करते हैं कि वे परमेश्वर द्वारा अधिकृत हैं और प्रभु यीशु का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं परमेश्वर होने का दिखावा कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं, है ना? क्या उनकी आज्ञा मानने और उनके सामने झुकने वाले मूर्ति-पूजा नहीं कर रहे? क्या यह परमेश्वर के खिलाफ काम करना नहीं है? बहुत-से लोग इसे नहीं समझते, और वे आँख मूँदकर अपने अगुआओं की आराधना करते रहते हैं, और सोचते हैं कि उन्हें परमेश्वर ने नियुक्त किया है। क्या आप देख सकते हैं कि यह कितनी मूर्खता और नादानी है? यह मूर्ति-पूजा करने वाले अविश्वासियों से किस तरह अलग है? अगर आप विश्वासी हैं लेकिन परमेश्वर के वचन का पालन नहीं करते, दूसरे मनुष्यों की पूजा करते हैं और अपने पाप स्वीकार करने के लिए उनके सामने घुटने टेकते हैं मानो वे परमेश्वर हों, तो क्या आप परमेश्वर का अनादर और निंदा नहीं करते? क्या जो मूर्खतावश ऐसा करते हैं, वे परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं? शायद नहीं। जो लोग मूर्खतावश ऐसा करते हैं, वे परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं कर सकते।
हमें स्पष्ट होना जरूरी है कि परमेश्वर द्वारा किसी को नियुक्त करना आकस्मिक या मनमाना नहीं है। उसका सबूत होना चाहिए। परमेश्वर द्वारा मूसा को नियुक्त किए जाने का सबूत था, और कम से कम इस्राएली यह जानते थे। प्रभु यीशु द्वारा पतरस की नियुक्ति भी वास्तविक थी, जिसे प्रेरित जानते थे। इसलिए परमेश्वर द्वारा किसी की नियुक्ति के दावे के लिए कोई तथ्यात्मक आधार जरूरी है। कोई मनुष्य मनमाने ढंग से इसका दावा नहीं कर सकता। हम यह भी देख सकते हैं कि परमेश्वर द्वारा नियुक्त व्यक्ति में पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और पवित्र आत्मा से सत्यापन होगा। उनका कार्य परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकता है और वह बहुत स्पष्ट परिणाम प्राप्त करेगा। वे परमेश्वर की आज्ञा पूरी कर सकते हैं। आइए देखें, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का क्या कहना है। “परमेश्वर द्वारा प्रयुक्त व्यक्ति अपने कार्य के सार और अपने उपयोग की पृष्ठभूमि के संबंध में, परमेश्वर द्वारा तैयार किया जाता है, उसे परमेश्वर के कार्य के लिए परमेश्वर ही तैयार करता है, और वह स्वयं परमेश्वर के कार्य में सहयोग करता है। कोई भी व्यक्ति उसकी जगह उसका कार्य नहीं कर सकता—दिव्य कार्य के साथ मनुष्य का सहयोग अपरिहार्य होता है। इस दौरान, दूसरे कर्मियों या प्रेरितों द्वारा किया गया कार्य हर अवधि में कलीसियाओं के लिए व्यवस्थाओं के कई पहलुओं का वहन और कार्यान्वयन है, या फिर कलीसियाई जीवन को बनाए रखने के लिए जीवन के सरल प्रावधान का कार्य करना है। इन कर्मियों और प्रेरितों को परमेश्वर नियुक्त नहीं करता, न ही यह कहा जा सकता है कि वे पवित्र आत्मा द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। वे कलीसिया में से ही चुने जाते हैं और कुछ समय तक प्रशिक्षण एवं तौर-तरीके सिखाने के बाद, जो उपयुक्त होते हैं उन्हें रख लिया जाता है, और जो उपयुक्त नहीं होते, उन्हें वहीं वापस भेज दिया जाता है जहाँ से वे आए थे। चूँकि ये लोग कलीसियाओं में से ही चुने जाते हैं, कुछ लोग अगुवा बनने के बाद अपना असली रंग दिखाते हैं, और कुछ लोग बुरे काम करने पर निकाल दिए जाते हैं। दूसरी ओर, परमेश्वर द्वारा प्रयुक्त लोग परमेश्वर द्वारा तैयार किए जाते हैं, उनमें एक विशिष्ट योग्यता और मानवता होती है। ऐसे व्यक्ति को पहले ही पवित्र आत्मा द्वारा तैयार और पूर्ण कर दिया जाता है और पूर्णरूप से पवित्र आत्मा द्वारा मार्गदर्शन दिया जाता है, विशेषकर जब उसके कार्य की बात आती है, तो उसे पवित्र आत्मा द्वारा निर्देश और आदेश दिए जाते हैं—परिणामस्वरुप परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई के मार्ग में कोई भटकाव नही आता, क्योंकि परमेश्वर निश्चित रूप से अपने कार्य का उत्तरदायित्व लेता है और हर समय कार्य करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा मनुष्य को इस्तेमाल करने के विषय में)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें दिखाते हैं कि परमेश्वर उन्हें बहुत पहले से तैयार करता है, जिन्हें वह नियुक्त कर अपने कार्य के लिए इस्तेमाल करता है, वे वही होते हैं जिन्हें परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों की अगुआई करने के लिए उन्नत करता है। उनका कार्य और उपदेश पूरी तरह से पवित्र आत्मा के पोषण और मार्गदर्शन के जरिये होते हैं, और परमेश्वर जिसे स्वयं नियुक्त नहीं करता वह उनकी जगह कभी नहीं ले सकता। व्यवस्था के युग में मूसा और अनुग्रह के युग में पतरस ने परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करने के लिए उसके वचनों और अपेक्षाओं का सख्ती से पालन किया, और परमेश्वर हमेशा उनके साथ था, हर मोड़ पर उनका मार्गदर्शन करता था। परमेश्वर कभी किसी गलत या अपने विरुद्ध कार्य करने वाले का उपयोग नहीं करता। वह हमेशा अपने काम के लिए खुद जिम्मेदार होता है। जिनका परमेश्वर उपयोग करता है, वे अपने कार्य और वचनों में लगातार पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध किए जाते हैं और वे परमेश्वर के वचनों की शुद्ध समझ साझा कर सकते हैं, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोगों की उसके कथनों, इच्छा और अपेक्षाओं को समझने में मदद कर सकें। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके वचनों की वास्तविकता और विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने में उनके व्यावहारिक संघर्षों में मदद करने के लिए हमेशा सत्य का उपयोग कर सकते हैं। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग उसके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वालों की चरवाही स्वीकारते और उनके प्रति समर्पित होते हैं, तो वे अपने जीवन के लिए सच्चा सहारा प्राप्त कर धीरे-धीरे सत्य की अधिक समझ प्राप्त कर सकते हैं, परमेश्वर के कार्य और स्वभाव को बेहतर जान सकते हैं, और परमेश्वर के लिए अपने विश्वास और प्रेम का विस्तार कर सकते हैं। इसीलिए उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों का समर्थन प्राप्त होता है, जो अपने दिलों में जानते हैं कि वे लोग परमेश्वर द्वारा नियुक्त किए गए हैं और उसके हृदय के अनुरूप हैं। जब हम उनकी अगुआई स्वीकारते और उसके प्रति समर्पित होते हैं, तो यह परमेश्वर का अनुसरण और उसके प्रति समर्पण होता है और यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है। परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले इसलिए नियुक्त किए जाते हैं ताकि वे परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने और उसका अनुसरण करने में उसके चुने लोगों की अगुवाई कर सकें, और उनका कार्य और उपदेश पूरी तरह से पवित्र आत्मा की अगुआई और प्रबुद्धता से आते हैं। उनकी अगुआई स्वीकारना और उसके प्रति समर्पण करना वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पण करना है। उनका प्रतिरोध करना परमेश्वर का प्रतिरोध करना है, जिसका परिणाम परमेश्वर द्वारा उजागर किया जाना और हटाया जाना होगा, या उन्हें शापित और दंडित भी किया जा सकता है। ठीक जैसे जब मूसा इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले गया, तब उससे लड़ने वाले कोरह और दातान के दल को परमेश्वर ने दंडित किया था। यह एक स्पष्ट तथ्य है।
आइए, आज के धार्मिक अगुआओं, पोप, कैथोलिक धर्म के बिशपों और पादरियों, और ईसाई धर्म के पादरियों, एल्डरों और अन्य धर्म-गुरुओं पर एक नजर डालें। क्या उन्हें परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया गया है? क्या वह उनके समर्थन में बोला है? क्या उनके पास पवित्र आत्मा के कार्य का सबूत है? क्या उनके पास अपने काम के परिणामों का सबूत है? उनके पास इसमें से कुछ नहीं है। यह साबित करता है कि उन्हें मनुष्यों ने चुना है, परमेश्वर ने नियुक्त नहीं किया। चूँकि हमने देख लिया है कि वे सेमीनरी द्वारा पोषित और आधिकारिक धार्मिक संस्थानों द्वारा नियुक्त किए गए थे, इसलिए हमें बहुत सतर्क रहना है। उनमें से ज्यादातर सत्य में विश्वास या परमेश्वर में सच्ची आस्था नही रखते। वे धर्मशास्त्र में, अपने पद और उपाधि में, उससे कमाई जीविका में विश्वास करते हैं। उनका बाइबल का ज्ञान कितना भी ऊँचा हो या उनके उपदेश कितने भी अच्छे हों, उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य और मार्गदर्शन या आत्मा का ज्ञान नहीं होता। यह हमें दिखाता है कि वे झूठे चरवाहे, गैर-विश्वासी हैं और परमेश्वर उन्हें स्वीकार नहीं करता। तो क्या उनकी आराधना और अनुसरण अत्यधिक मूर्खता नहीं है? सबसे बढ़कर, उनमें परमेश्वर के वचनों की गवाही और पवित्र आत्मा से सबूत की कमी एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है, जो हमें उनकी असलियत देखने में मदद कर सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत सारे सत्य व्यक्त किए हैं, खुले तौर पर लोगों के असली रंग प्रकट किए हैं, कि वे सत्य से प्रेम करते हैं या नहीं, वे सत्य को मानते हैं या नहीं, वे सत्य को स्वीकार करते हैं या नहीं, और वे सत्य से घृणा और उससे इनकार तो नहीं करते। यह सब प्रकट हो गया है। जो मानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, और वह देहधारी परमेश्वर है, वे सत्य से प्रेम करते हैं और उन्हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त है। वे बुद्धिमान कुँआरियाँ हैं, जो परमेश्वर की वाणी सुनती और उसके सिंहासन के सामने स्वर्गारोहित की जाती हैं। अगर कोई देखता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने इतने सारे सत्य व्यक्त किए हैं, लेकिन परमेश्वर के प्रकटन और कार्य का विरोध, निंदा करता और उसे नकारता रहता है, तो इसका अर्थ है कि वे सत्य से घृणा करते हैं, और वे मसीह-विरोधी हैं जो परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं। वे पहले ही आपदाओं में गिर चुके हैं और उनका परमेश्वर द्वारा दंडित होना तय है। ये केवल कैथोलिक और ईसाई अगुआ ही नहीं हैं, बल्कि सभी संप्रदायों के अगुआ और व्यक्ति हैं, जो बिना किसी अपवाद के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के खिलाफ काम कर रहे हैं। धार्मिक जगत इस मसीह-विरोधी गिरोह के चंगुल में है। यह एक सर्वविदित तथ्य है, जिसे कोई नकार नहीं सकता। इसलिए यदि हम जानते हैं कि ये बिशप, याजक, पादरी और एल्डर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का विरोध और निंदा करने वाले मसीह-विरोधी हैं, तो हमें उनके साथ कैसे पेश आना चाहिए? हमें उन्हें नकारना और शाप देना चाहिए, और खुद को उनकी पकड़ से छुड़ा लेना चाहिए। यही बुद्धिमान होना है। यदि हम सच्चे मार्ग के लिए उनकी ओर देखते रहे, उनसे यह बताने की अपेक्षा करते रहे कि क्या सही है और क्या गलत, तो यह अत्यधिक मूर्खता है, और यह अंधा और अज्ञानी होना है! अंधों द्वारा अंधों की अगुआई का अंत बरबादी ही होगी। यह बाइबल के इन पदों की पूर्ति करता है : “मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं” (नीतिवचन 10:21)। “मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्ट हो गई” (होशे 4:6)।
यह बिलकुल स्पष्ट है कि कैथोलिक और ईसाई अगुआ अन्य सभी संप्रदायों के अगुआओं के साथ खुले तौर पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा कर रहे हैं। अपनी हैसियत और तनख्वाह बनाए रखने के लिए वे विश्वासियों को मजबूती से अपनी मुट्ठी में रखते हैं, उनका धन लेते हैं, विश्वासियों पर परजीवियों की तरह जीते हैं, जैसे दानव उनकी लाशों पर दावत कर रहे हों। इन मसीह-विरोधियों ने अपने पद और आजीविका बनाए रखने के लिए हर तरह के बुरे झूठ फैलाए हैं, उन्होंने कहा कि प्रभु के आने की खबर झूठी है, कि प्रभु यीशु को निश्चित रूप से एक बादल पर आना है, प्रभु के दूसरे देहधारण को स्वीकार करना एक झूठे मसीह को स्वीकार करना है। वे लोगों को गुमराह करने के लिए झूठ बोलते हैं, विश्वासियों को सच्चे मार्ग की पड़ताल करने से रोकने का हरसंभव प्रयास करते हैं। वे राज्य का सुसमाचार साझा करने वालों को गिरफ्तार करने और सताने के लिए सीसीपी के साथ गठजोड़ तक कर लेते हैं। ये धार्मिक अगुआ उन फरीसियों से कैसे अलग हैं, जिन्होंने प्रभु यीशु के दिनों में उसका विरोध किया था? क्या ये सब वही लोग नहीं हैं, जो परमेश्वर को सूली पर चढ़ाते हैं? क्या ये सब झूठे चरवाहे और मसीह-विरोधी नहीं हैं, जो लोगों को भटकाकर बरबाद कर देते हैं? प्रभु यीशु द्वारा फरीसियों की निंदा में कहे इन वचनों के बारे में सोचें : “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो” (मत्ती 23:13)। “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो” (मत्ती 23:15)। हम देख सकते हैं कि ज्यादातर धार्मिक अगुआ आज उन फरीसियों से अलग नहीं हैं, जिन्होंने उन्मादपूर्वक प्रभु यीशु का विरोध किया और विश्वासियों के रास्ते में खड़े हो गए। वे सभी परमेश्वर से घृणा करते हैं और उसके विरुद्ध कार्य करते हैं, और वे अंत के दिनों के मसीह-विरोधी दानव हैं।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ और अंश प्रस्तुत हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “प्रत्येक पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और बाइबल की उनकी व्याख्या में संदर्भ का अभाव है और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे उपदेश देने में पूरी तरह अक्षम होते, तो क्या लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें। इनके माध्यम से वे लोगों को धोखा देते हैं और अपने सामने ले आते हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। जब वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, ‘हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।’ देखो परमेश्वर में विश्वास करते और नया मार्ग स्वीकारते समय कैसे लोगों को अभी भी दूसरों की सहमति और मंजूरी की जरूरत होती है—क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)।
“ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे ‘मज़बूत देह’ वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)।
“सबसे अधिक विद्रोही वे लोग होते हैं जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना और उसका विरोध करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु और मसीह विरोधी हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। ऐसे लोग दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो ‘खज़ाना’ होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में इस तरह के कुछ ऐसे लोग हैं। ये कहा जा सकता है कि वे ‘अदम्य नायक’ हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने ‘पवित्र और अलंघनीय’ कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में ‘राजा’ बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे)।
अब मुझे यकीन है कि हम सभी स्पष्ट हैं कि ज्यादातर धार्मिक अगुआ मसीह-विरोधी हैं जो सत्य और परमेश्वर से घृणा करते हैं, वे दुष्ट सेवक और झूठे चरवाहे हैं जो लोगों को भटकाते हैं। उन्हें सुनना और उनके प्रति समर्पण करना परमेश्वर के प्रति समर्पण करना नहीं है, और यह परमेश्वर का अनुसरण करना नहीं है। यह शैतान का अनुसरण करना और परमेश्वर का विरोध करना है, शैतान का साथी बनना है, जिससे परमेश्वर घृणा करता है और शाप देता है। इसलिए विश्वासियों के नाते हमें जागरूक होना होगा कि हमें परमेश्वर की बड़ाई करनी है, उसका भय मानना है, उसके और सत्य के प्रति समर्पित होना है। हम कभी भी मनुष्यों की आराधना या अनुसरण नहीं कर सकते। जैसा प्रभु यीशु ने कहा, “तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर” (मत्ती 4:10)। यदि कोई धार्मिक अगुआ ऐसा है जो सत्य से प्रेम करता है, यदि उनके वचन प्रभु के अनुरूप हैं और वे हमें परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की ओर ले जाते हैं, तो सत्य के अनुरूप वचनों का अनुसरण करना और उनके प्रति समर्पण करना परमेश्वर के प्रति समर्पण करना है। यदि उनके वचन सत्य के अनुरूप नहीं हैं, यदि वे प्रभु के वचनों के विरुद्ध हैं, तो हमें उन्हें अस्वीकार करना होगा। यदि हम उनका अनुसरण करते रहे, तो वह किसी व्यक्ति और शैतान का अनुसरण करना है। यदि कोई धार्मिक अगुआ सत्य को नकारता और तिरस्कृत करता है, दूसरों को सच्चे मार्ग की पड़ताल करने से रोकता है, तो वह मसीह-विरोधी है हमें उसे उजागर और अस्वीकार करते हुए परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना चाहिए, “नहीं” कहने का साहस करना चाहिए, उनके नियंत्रण से बचना, सच्चे मार्ग को खोजना और स्वीकार करना चाहिए, परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलना चाहिए। यही सच्चा विश्वास है, सच में परमेश्वर का अनुसरण करना है, और उसकी इच्छा के अनुरूप है। जैसा कि पतरस ने तब कहा था जब उसे महायाजकों और फरीसियों ने पकड़ लिया था : “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है” (प्रेरितों 5:29)।
आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर का एक और अंश पढ़ें। “परमेश्वर का अनुसरण करने में प्रमुख महत्व इस बात का है कि हर चीज़ आज परमेश्वर के वचनों के अनुसार होनी चाहिए : चाहे तुम जीवन प्रवेश का अनुसरण कर रहे हो या परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति, सब कुछ आज परमेश्वर के वचनों के आसपास ही केंद्रित होना चाहिए। यदि जो तुम संवाद और अनुसरण करते हो, वह आज परमेश्वर के वचनों के आसपास केंद्रित नहीं है, तो तुम परमेश्वर के वचनों के लिए एक अजनबी हो और पवित्र आत्मा के कार्य से पूरी तरह से परे हो। परमेश्वर ऐसे लोग चाहता है जो उसके पदचिह्नों का अनुसरण करें। भले ही जो तुमने पहले समझा था वह कितना ही अद्भुत और शुद्ध क्यों न हो, परमेश्वर उसे नहीं चाहता और यदि तुम ऐसी चीजों को दूर नहीं कर सकते, तो वो भविष्य में तुम्हारे प्रवेश के लिए एक भयंकर बाधा होंगी। वो सभी धन्य हैं, जो पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करने में सक्षम हैं। पिछले युगों के लोग भी परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलते थे, फिर भी वो आज तक इसका अनुसरण नहीं कर सके; यह आखिरी दिनों के लोगों के लिए आशीर्वाद है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण कर सकते हैं और जो परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में सक्षम हैं, इस तरह कि चाहे परमेश्वर उन्हें जहाँ भी ले जाए वो उसका अनुसरण करते हैं—ये वो लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है और चाहे वो कितना भी काम करें या उनकी पीड़ा जितनी भी ज़्यादा हो या वो कितनी ही भागदौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। ... ‘पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण’ करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन करने में सक्षम होना और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल यही ऐसा है, जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा के प्रवाह में है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने में सक्षम हैं बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं और परमेश्वर के नवीनतम कार्य से मनुष्य की अवधारणाओं और अवज्ञा को, मनुष्य की प्रकृति और सार को जान सकते हैं; इसके अलावा, वो अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं, जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं और जो सचमुच में सच्चा मार्ग पा चुके हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)।
अब मुझे यकीन है कि हम और स्पष्ट हैं कि विश्वास करना और परमेश्वर का अनुसरण करना सत्य के प्रति समर्पण करना और उसे स्वीकार करना, परमेश्वर के वर्तमान कार्य और वचनों को स्वीकार करना, और उसके पदचिह्नों पर चलना है। परमेश्वर का कार्य लोगों की धारणाओं से चाहे जितना भी दूर हो या चाहे जितने भी लोग उसका विरोध और निंदा करें, अगर वह सत्य और परमेश्वर का कार्य है, तो हमें उसे स्वीकारना और समर्पण करना होगा। केवल यही परमेश्वर पर विश्वास करना और उसका अनुसरण करना है। जैसा कि प्रकाशितवाक्य में कहा गया है : “ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं” (प्रकाशितवाक्य 14:4)। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कार्य कर रहा है और उसने कई सत्य व्यक्त किए हैं। वह मानव-जाति को पूरी तरह से शुद्ध करने और बचाने के लिए परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य करता है और हमें बुराई और शैतान की ताकतों से बचाता है। इस अवसर को चूकना नहीं चाहिए, ये बचाए जाने और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। अब दुनिया भर में परमेश्वर के प्रकटन की लालसा रखने वाले अधिक से अधिक लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की ऑनलाइन जांच कर रहे हैं। उन्होंने देखा है कि उसके सभी वचन सत्य हैं, वे परमेश्वर की वाणी हैं। वे खुद को धार्मिक अगुआओं के बंधनों से मुक्त कर रहे हैं, उनकी कलीसियाओं के नियंत्रण से बाहर आ रहे हैं और मेमने के विवाह-भोज में शामिल होने परमेश्वर के सिंहासन के सामने आ रहे हैं। लेकिन धार्मिक दुनिया में अभी भी कई लोग पादरियों का आँख मूँदकर अनुसरण और आराधना करते हैं, और मसीह-विरोधी ताकतों द्वारा विवश किए और ठगे जाते हैं। वे बंजर भूमि के भीतर कसकर बांधे गए हैं, प्रभु के बादल पर आने की व्यर्थ प्रतीक्षा करते हैं, बहुत पहले परमेश्वर द्वारा अस्वीकृत किए और हटाए जा चुके हैं, आपदाओं में पड़े रो रहे हैं और अपने दाँत पीस रहे हैं। यह प्रभु यीशु के इन वचनों की पूर्ति है “और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड़हे में गिर पड़ेंगे” (मत्ती 15:14)। वे परमेश्वर में विश्वास करने का दावा करते हैं, लेकिन वास्तव में वे परमेश्वर के खिलाफ जाते हैं और लोगों का अनुसरण करते हैं। परमेश्वर उन्हें गैर-विश्वासी मानता है। परमेश्वर एक पवित्र परमेश्वर है, जो बुराई से घृणा करता है और उसकी धार्मिकता का अपमान नहीं किया जा सकता। वह उन्हें कभी नहीं बचाएगा जो मनुष्यों की चापलूसी करते हैं, जो मसीह-विरोधियों के साथ परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं। परमेश्वर उसे कभी नहीं बचाएगा, जो सत्य से प्रेम नहीं करता या उसे स्वीकार नहीं करता, बल्कि आँख मूँदकर बाइबल से चिपका रहता है। परमेश्वर की इच्छा लोगों को धार्मिक बेबीलोन से मुक्त करने की है, इसलिए हम अब धार्मिक दुनिया की मसीह-विरोधी ताकतों के प्रतिबंधों से विवश नहीं हैं, और हम सत्य और परमेश्वर के कार्य की खोज करने के लिए धर्म से बाहर आ सकते हैं, ताकि हमारे पास परमेश्वर के प्रकटन और कार्य का स्वागत करने की आशा रहे।
आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचनों को देखें। “तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो, जो संसार के कीचड़ में लोटते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, लेकिन उन मुरदों की तारीफ करते हो, जो चढ़ावे हड़प लेते हैं और ऐयाशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, लेकिन खुद को उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से फेंक देते हो, जबकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा, उनकी हैसियत, उनके प्रभाव की ओर ही मुड़ता है। अभी भी तुम ऐसा रवैया बनाए रखते हो, जिससे मसीह के कार्य को गले से उतारना तुम्हारे लिए कठिन हो जाता है और तुम उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने की आस्था की कमी है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ इसलिए किया है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं था। बुलंद छवियों की एक शृंखला हमेशा तुम्हारे हृदय में बसी रहती है; तुम उनके किसी शब्द और कर्म को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को भूल सकते हो। वे तुम लोगों के हृदय में हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक रहते हैं। लेकिन आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा श्रद्धा के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह ऊँचा तो बिल्कुल भी नहीं है।
“बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य को महत्व नहीं देते, वे सभी गैर-विश्वासी और सत्य के प्रति गद्दार हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। क्या अब तुमने पहचान लिया है कि तुम्हारे भीतर कितना अविश्वास है, और तुममें मसीह के प्रति कितना विश्वासघात है? मैं तुमसे यह आग्रह करता हूँ : चूँकि तुमने सत्य का मार्ग चुना है, इसलिए तुम्हें खुद को संपूर्ण हृदय से समर्पित करना चाहिए; दुविधाग्रस्त या अनमने न बनो। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर इस संसार का या किसी एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि उन सबका है जो उस पर सचमुच विश्वास करते हैं, जो उसकी आराधना करते हैं, और जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?)।
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