यह पहचानना कि एक परमेश्वर तीन चरणों का कार्य कैसे करता है

02 जनवरी, 2022

आज, हमारी संगति का विषय है “यह पहचानना कि एक परमेश्वर तीन चरणों का कार्य कैसे करता है।” यह एक अहम विषय है, और हमारे अंत और गंतव्य से सीधे जुड़ा है। यह इससे भी सीधे जुड़ा है कि हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं या नहीं। अगर हम परमेश्वर को मानते हैं लेकिन परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते, तो यह खतरनाक हो सकता है। हम परमेश्वर का उद्धार खो सकते हैं, जिससे तबाही होती है। भला हम ऐसा क्यों कहते हैं? हम जानते हैं कि दो हजार साल पहले प्रभु यीशु मनुष्य को छुटकारा दिलाने आया था, उसने कहा था, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है(मत्ती 4:17)। प्रभु यीशु ने अनेक सत्य व्यक्त किए और बहुत-से चमत्कार किए, जिनसे साबित होता है कि प्रभु यीशु मसीहा था। लेकिन यहूदी धर्म के लिए प्रभु यीशु का नाम मसीहा नहीं था, न वह किसी राजमहल में पैदा हुआ था, न ही वह उन्हें रोमन शासन से बाहर ले गया था, इसलिए वह निश्चित रूप से मसीहा नहीं था। इसलिए प्रभु यीशु ने चाहे जितने भी सत्य व्यक्त किए, जितने भी चमत्कार किए, किसी ने भी नहीं माना कि प्रभु यीशु परमेश्वर है, और सभी ने उसे सूली पर चढ़ाने में यहूदी धर्म के अगुआओं का साथ दिया। परिणाम क्या हुआ? इस्राएल करीब दो हजार साल के लिए मिटा दिया गया। यह दर्दनाक सबक कैसे मिला? लोगों ने परमेश्वर के कार्य को जानने की कोशिश नहीं की, वे अपनी धारणाओं पर कायम रहे, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध और निंदा की। अब प्रभु यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। उसने सत्य के लाखों वचन व्यक्त किए हैं, और अब अंत के दिनों में मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध करके बचाने के लिए न्याय-कार्य कर रहा है, लेकिन धार्मिक संसार का क्या? जब वे देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम यीशु नहीं है, न ही वह बादलों पर आया है, तो वे नहीं मानते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रतिरोध और निंदा करने में पादरियों और एल्डरों का अनुसरण करते हैं, जो परमेश्वर को फिर से सूली पर चढ़ाने के समान है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “जब भी परमेश्वर कार्य करके मनुष्य को बचाने के लिए प्रकट होता है, तो उसके प्रकटन की प्रतीक्षा करने वाले विश्वासी हमेशा उसकी निंदा कर उसे ठुकराते क्यों हैं?” इसलिए कि लोग शैतान द्वारा गहराई तक भ्रष्ट किए जा चुके हैं, वे सत्य से घृणा करते हैं और उनकी प्रकृति परमेश्वर के प्रतिरोध की होती है। दूसरा कारण यह है कि लोग परमेश्वर का कार्य नहीं जानते, और वे परमेश्वर के कार्य को लेकर धारणाओं से भरे हैं। देखिए, जब परमेश्वर ने व्यवस्था के युग में अपना कार्य समाप्त किया, तो यहूदी धर्म के लोगों ने मान लिया कि परमेश्वर का कार्य पूरा हो चुका है, और वह आगे कोई कार्य नहीं करेगा। उन्होंने उस मसीहा की प्रतीक्षा की, जो उन्हें रोमन शासन से बचाकर बाहर निकाल लेता, लेकिन उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य को स्वीकार नहीं किया, नतीजतन, उन्होंने प्रभु का उद्धार खो दिया। जब परमेश्वर ने अनुग्रह के युग का कार्य पूरा कर लिया, तो सभी विश्वासियों ने सोचा कि चूँकि प्रभु यीशु मनुष्य को छुटकारा दिला चुका है, इसलिए मनुष्य को बचाने का कार्य पूरा हो चुका है, और कोई नया कार्य नहीं किया जाएगा, और जब प्रभु वापस आएगा, तो वह हमें सीधे स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा। आज, भारी आपदाएँ आने पर भी, बहुत-से लोग प्रभु के बादलों पर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय-कार्य को स्वीकार नहीं करते, नतीजतन, वे उद्धारकर्ता का स्वागत नहीं करते और आपदाओं में डूब जाते हैं। उन्हें लगता है कि प्रभु यीशु द्वारा अपना कार्य पूरा करने से परमेश्वर का मनुष्य को बचाने का कार्य पूरा हो गया, और अब आगे कोई कार्य नहीं होगा। तो, आइए, इस बारे में सोचें। क्या मनुष्य को बचाने का कार्य सच में उतना आसान है, जितना लोग समझते हैं? अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के कार्य का रहस्य प्रकट किया है। हम सबने देखा है कि मनुष्य को शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद परमेश्वर ने तीन चरणों की एक योजना शुरू की। सबसे पहले उसने यहोवा के नाम से व्यवस्था के युग का कार्य किया, फिर वह प्रभु यीशु के रूप में देहधारी होकर आया और उसने अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य किया, और अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से राज्य के युग में न्याय-कार्य करने के लिए परमेश्वर फिर देहधारी होकर आया है। कार्य के ये तीन चरण मनुष्य को बचाने की परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन-योजना हैं। हालाँकि यहोवा, प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम और हर युग में उनके द्वारा किया गया कार्य अलग है, ये तीनों चरण एकदम जुड़े हैं और हर चरण पिछले चरण की नींव पर बना है, और ये अंतत: मनुष्य को पूरी तरह से बचाकर उसे एक नए युग में ले जाते हैं। यह इसका सबूत है कि एक ही परमेश्वर हर युग में अलग-अलग कार्य करता है। तो हम यह कैसे पहचानें कि कार्य के ये तीनों चरण एक ही परमेश्वर द्वारा किए गए हैं? सत्य के इस पहलू को समझना उद्धार पाने और राज्य में प्रवेश करने की कुंजी है। आइए, अब इस विषय पर परमेश्वर के वचनों के आधार पर संगति करें।

पहले मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ती हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “मेरी संपूर्ण प्रबंधन योजना, छह-हज़ार-वर्षीय प्रबंधन योजना, के तीन चरण या तीन युग हैं : आरंभ में व्यवस्था का युग; अनुग्रह का युग (जो छुटकारे का युग भी है); और अंत के दिनों का राज्य का युग। इन तीनों युगों में मेरे कार्य की विषयवस्तु प्रत्येक युग के स्वरूप के अनुसार अलग-अलग है, परंतु प्रत्येक चरण में यह कार्य मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है—या, ज्यादा सटीक रूप में, यह शैतान द्वारा उस युद्ध में चली जाने वाली चालों के अनुसार किया जाता है, जो मैं उससे लड़ रहा हूँ। मेरे कार्य का उद्देश्य शैतान को हराना, अपनी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता व्यक्त करना, शैतान की सभी चालों को उजागर करना और परिणामस्वरूप समस्त मानवजाति को बचाना है, जो शैतान के अधिकार-क्षेत्र के अधीन रहती है। यह मेरी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता दिखाने के लिए और शैतान की असहनीय विकरालता प्रकट करने के लिए है; इससे भी अधिक, यह सृजित प्राणियों को अच्छे और बुरे के बीच अंतर करने देने के लिए है, यह जानने देने के लिए कि मैं सभी चीज़ों का शासक हूँ, यह देखने देने के लिए कि शैतान मानवजाति का शत्रु है, अधम है, दुष्ट है; और उन्हें पूरी निश्चितता के साथ अच्छे और बुरे, सत्य और झूठ, पवित्रता और मलिनता के बीच का अंतर बताने देने के लिए है, और यह भी कि क्या महान है और क्या हेय है। इस तरह, अज्ञानी मानवजाति मेरी गवाही देने में समर्थ हो जाएगी कि वह मैं नहीं हूँ जो मानवजाति को भ्रष्ट करता है, और केवल मैं—सृष्टिकर्ता—ही मानवजाति को बचा सकता हूँ, लोगों को उनके आनंद की वस्तुएँ प्रदान कर सकता हूँ; और उन्हें पता चल जाएगा कि मैं सभी चीज़ों का शासक हूँ और शैतान मात्र उन प्राणियों में से एक है, जिनका मैंने सृजन किया है, और जो बाद में मेरे विरुद्ध हो गया। मेरी छह-हज़ार-वर्षीय प्रबंधन योजना तीन चरणों में विभाजित है, और मैं इस तरह इसलिए कार्य करता हूँ, ताकि सृजित प्राणियों को मेरी गवाही देने, मेरी इच्छा समझ पाने, और मैं ही सत्य हूँ यह जान पाने के योग्य बनाने का प्रभाव प्राप्त कर सकूँ(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, छुटकारे के युग के कार्य के पीछे की सच्ची कहानी)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से हम देखते हैं कि परमेश्वर का मनुष्य को बचाने का कार्य तीन चरणों में बँटा हुआ है। पहला है 3,000 साल से भी पहले यहोवा परमेश्वर द्वारा किया गया व्यवस्था के युग का कार्य, दूसरा है दो हजार साल पहले प्रभु यीशु द्वारा अनुग्रह के युग में किया गया कार्य, और तीसरा चरण अब है—अंत के दिनों के अंत में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा किया गया राज्य के युग का न्याय-कार्य। हालाँकि इन तीन चरणों के कार्य की विषय-वस्तु अलग-अलग है, फिर भी हर चरण पिछले चरण से आगे बढ़ता है और कार्य को गहराता है। ये चरण बहुत घनिष्ठता से जुड़े हैं, और आखिरकार मनुष्य का संपूर्ण उद्धार हासिल करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य अनुग्रह के युग को समाप्त कर राज्य का युग शुरू करता है, और कार्य का यह चरण मनुष्य का भाग्य तय करता है। अगर हम परमेश्वर के कार्य को नहीं समझते, तो परमेश्वर द्वारा बचाए और पूर्ण किए जाने का आखिरी मौका खो सकते हैं, जो जिंदगी भर का पछतावा बन सकता है।

अत: यह स्पष्ट करना और भी जरूरी है कि कार्य के ये तीन चरण आखिर क्या हैं। आइए, गौर करें, “मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का पहला कदम व्यवस्था जारी करने का कार्य क्यों था?” इसलिए कि पहले मनुष्य शिशु जैसा था। वह नहीं जानता था कि परमेश्वर की आराधना कैसे करे, जिंदगी कैसे जिये, उसे बुनियादी नैतिक सिद्धांतों की भी समझ नहीं थी, जैसे कि हत्या और चोरी पाप हैं। यहोवा परमेश्वर ने लोगों को पृथ्वी पर जीना सिखाने के लिए व्यवस्थाएँ और आदेश जारी किए, और लोगों को बताया कि हत्या, चोरी, व्यभिचार वगैरह न करें, ताकि लोग पाप की बुनियादी संकल्पना समझ सकें, जान लें कि क्या करना है और क्या नहीं, जान लें कि व्यवस्था और सब्त का पालन करना है। व्यवस्था का पालन करने वालों को परमेश्वर ने आशीष दिया, और उसका उल्लंघन करने वाले निंदित हुए और प्रायश्चितस्वरूप उन्हें पाप-बलि चढ़ानी पड़ी। जब लोगों ने कुछ खास व्यवस्थाओं और विनियमों का उल्लंघन किया, तो उन्हें यहोवा का क्रोध और दंड झेलना पड़ा, उन पर पत्थर बरसे या वे स्वर्ग से आई आग में जला दिए गए। इस्राएल के लोगों ने परमेश्वर के प्रताप और कोप के साथ-साथ उसकी देखभाल और दया भी चखी, और वे मान गए कि यहोवा परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी बनाई। इसलिए उन सबने यहोवा का भय माना और उसकी व्यवस्था का पालन किया, उन्होंने सामान्य जीवन जिया और परमेश्वर की आराधना की, और वे परमेश्वर की मौजूदगी में जी पाए। व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य का यह परिणाम हुआ। तो, क्या व्यवस्था के युग में परमेश्वर का कार्य खत्म होने का यह अर्थ था कि मनुष्य को बचाने का कार्य पूरा हो गया? बिलकुल नहीं। हालाँकि व्यवस्था के युग में लोग जानते थे कि पाप क्या होते हैं, और बलि देकर प्रायश्चित और परमेश्वर की आराधना कैसे करें, शैतान द्वारा भ्रष्टता के कारण लोगों ने अकसर व्यवस्था का पालन नहीं किया। खासकर व्यवस्था के युग के दूसरे भाग में लोग अकसर ज्यादा से ज्यादा पाप करने लगे, और प्रायश्चित के लिए उनके पास पर्याप्त पाप-बलि नहीं थी। अगर परमेश्वर का कार्य व्यवस्था के युग में रुक जाता, तो लोगों को उनके पापों के लिए व्यवस्था निंदा और मृत्युदंड देती, और मनुष्य मिट गया होता। इसलिए यहोवा परमेश्वर ने नबियों के जरिये इस्राएलियों को बताया कि मनुष्य को छुटकारा दिलाने के लिए पाप-बलि के रूप में मसीहा आएगा। भविष्यवाणियों में कहा गया, “क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके काँधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्‍ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्‍वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा(यशायाह 9:6)। “और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया(यशायाह 53:6)। “वह अपना प्राण दोषबलि करे(यशायाह 53:10)। इसके बाद वादे के अनुसार परमेश्वर मनुष्य के छुटकारे का कार्य करने के लिए प्रभु यीशु के रूप में देहधारी होकर आया। लोगों के बीच रहते हुए प्रभु यीशु ने अनेक सत्य व्यक्त किए, और लोगों को अपने पाप स्वीकार कर प्रायश्चित करना, अपने दिल, दिमाग और आत्मा से प्रभु से प्रेम करना, पड़ोसियों से अपने जैसा प्रेम करना, ईमानदारी से परमेश्वर की आराधना करना वगैरह सिखाया। इन सत्यों ने व्यवस्था को पूरी तरह से पूर्ण किया और लोगों को अभ्यास का नया मार्ग दिया। उसने रोगियों का इलाज भी किया, दानवों को दूर भगाया, लोगों के पाप माफ किए, उन्हें आशीष और अनुग्रह दिया, और अंतत: पापरहित देह के रूप में सूली पर चढ़ा दिया गया। उसने सबके पाप अपने ऊपर लेकर मनुष्य को छुटकारा दिला दिया। इसके बाद लोगों को पाप करने पर पाप-बलियाँ देने की जरूरत नहीं रही। अगर वे प्रार्थना और पाप-स्वीकार कर लेते, तो उन्हें माफी दे दी जाती, और वे परमेश्वर के आशीष और अनुग्रह पाते। लोगों ने परमेश्वर के दयालु और स्नेही स्वभाव का अनुभव किया, और लोगों और परमेश्वर के बीच का रिश्ता अधिक घनिष्ठ हो गया। स्पष्ट है कि प्रभु यीशु के कार्य ने पुराने नियम की भविष्यवाणियाँ पूरी तरह से साकार कीं। उसने लोगों को व्यवस्था की बेड़ियों से बचाया, व्यवस्था का युग समाप्त किया, और मनुष्य को अनुग्रह के युग में ले गया। इससे साबित होता है कि प्रभु यीशु उद्धारकर्ता था, मसीहा का आगमन था। प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त सत्य और उसका छुटकारे का कार्य परमेश्वर के स्वभाव और उसके स्वरूप की अभिव्यक्ति है, और वह परमेश्वर का अद्वितीय अधिकार और सामर्थ्य प्रकट करता है, जो यह साबित करता है कि प्रभु यीशु ही देहधारी परमेश्वर है, और प्रभु यीशु और यहोवा एक ही आत्मा और एक ही परमेश्वर हैं। प्रभु यीशु ने ऐसा ही कहा था, “मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है(यूहन्ना 14:10)। “मैं और पिता एक हैं(यूहन्ना 10:30)। छुटकारे का कार्य और व्यवस्था के युग का कार्य एक ही परमेश्वर द्वारा भिन्न युगों में किए गए कार्य के दो भिन्न चरण हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में कहा गया है : “जो कार्य यीशु ने किया, उसने यीशु के नाम का प्रतिनिधित्व किया, और उसने अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व किया; जहाँ तक यहोवा द्वारा किए गए कार्य की बात है, उसने यहोवा का प्रतिनिधित्व किया, और उसने व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व किया। उनका कार्य दो भिन्न-भिन्न युगों में एक ही पवित्रात्मा का कार्य था। ... ठीक इसलिए, क्योंकि यीशु आया और उसने यहोवा के कार्य का समापन किया, यहोवा के कार्य को जारी रखा और, इसके अलावा, उसने अपना स्वयं का कार्य, एक नया कार्य किया, इससे साबित होता है कि यह एक नया युग था, और कि यीशु स्वयं परमेश्वर था। उन्होंने कार्य के स्पष्ट रूप से भिन्न दो चरण पूरे किए। एक चरण मंदिर में कार्यान्वित किया गया, और दूसरा मंदिर के बाहर संचालित किया गया। एक चरण व्यवस्था के अनुसार मनुष्य के जीवन की अगुआई करना था, और दूसरा, पापबलि चढ़ना था। कार्य के ये दो चरण स्पष्ट रूप से भिन्न थे; यह नए युग को पुराने से विभाजित करता है, और यह कहना पूर्णतः सही है कि ये दो भिन्न युग हैं! उनके कार्य का स्थान भिन्न था, उनके कार्य की विषय-वस्तु भिन्न थी, और उनके कार्य का उद्देश्य भिन्न था। इस तरह उन्हें दो युगों में विभाजित किया जा सकता है : नए और पुराने विधानों में, अर्थात् नए और पुराने युगों में। ... यद्यपि उन्हें दो भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया गया, फिर भी यह एक ही पवित्रात्मा था, जिसने कार्य के दोनों चरण संपन्न किए, और जो कार्य किया जाना था, वह सतत था। चूँकि नाम भिन्न था, और कार्य की विषय-वस्तु भिन्न थी, इसलिए युग भिन्न था। जब यहोवा आया, तो वह यहोवा का युग था, और जब यीशु आया, तो वह यीशु का युग था। और इसलिए, हर आगमन के साथ परमेश्वर को एक नाम से बुलाया जाता है, वह एक युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह एक नए मार्ग का सूत्रपात करता है; और हर नए मार्ग पर वह एक नया नाम अपनाता है, जो दर्शाता है कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता, और कि उसका कार्य आगे की दिशा में प्रगति करने से कभी नहीं रुकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। अनुग्रह का युग दो हजार साल चला, और लगभग सभी विश्वासियों ने सोचा कि जब प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया गया, तो मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का कार्य पूरा हो गया था, और जब प्रभु अंत के दिनों में वापस आएगा, तो वह वफादारों को सीधे स्वर्ग में उठा लेगा। तो, क्या वास्तव में ऐसा है? यह सच है कि विश्वासियों के पाप माफ हो गए हैं, लेकिन लोगों की पापी प्रकृति अभी भी नहीं सुधरी। हम अभी भी अपनी पापी प्रकृति से नियंत्रित हैं, अनचाहे ही झूठ बोलते और पाप करते रहते हैं, हम शोहरत और लाभ के लिए लड़ते हैं, ईर्ष्यालु, अहंकारी, दंभी और उद्दंड हैं, हम सहनशील नहीं हो सकते, हम अपने पड़ोसियों से खुद जैसा प्रेम नहीं कर सकते, प्रभु से प्रेम करना, उसकी आज्ञा मानना तो और भी मुश्किल है। दो हजार साल तक सभी विश्वासी दिन में पाप करने और रात में उसे स्वीकार लेने के कुचक्र में फँसे जीते रहे हैं, और हम पाप में जीने की पीड़ा और कष्ट का गहराई से अनुभव करते हैं। यह एक अकाट्य तथ्य है। क्या पाप में जीने वाले ऐसे लोग बचाए जाते हैं? क्या वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? प्रभु यीशु ने कहा था, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है(यूहन्ना 8:34-35)। “इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ(लैव्यव्यवस्था 11:45)। “पवित्रता के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा(इब्रानियों 12:14)। परमेश्वर धार्मिक और पवित्र है। वह अकसर पाप और अपना प्रतिरोध करने वालों को अपने राज्य में कैसे प्रवेश करने दे सकता है? इसलिए जब प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य पूरा किया, तो उसने मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध करके बचाने और राज्य में लाने की खातिर अंत के दिनों में न्याय-कार्य करने के लिए दोबारा आने की बात कही। प्रभु यीशु ने यही भविष्यवाणी की थी, “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा(यूहन्ना 16:12-13)। “सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर : तेरा वचन सत्य है(यूहन्ना 17:17)। “जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा(यूहन्ना 12:48)। अंत के दिनों में प्रभु यीशु अपने वायदे के अनुसार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में देहधारी होकर लौटा, ताकि मनुष्य को शुद्ध करके बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर सके, और परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय-कार्य कर सके, जिससे लोगों की पापी प्रकृति पूरी तरह से सुधर सके और वे परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से बचाए जा सकें। यह हमें दिखाता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर “सत्य का आत्मा” है, और वही प्रभु यीशु है, जो अंत के दिनों में प्रकट होकर कार्य कर रहा है।

इसे स्पष्ट रूप से समझने के लिए आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचनों पर गौर करें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “यह देहधारण परमेश्वर का दूसरा देहधारण है, जो यीशु का कार्य पूरा होने के बाद हुआ है। निस्संदेह, यह देहधारण स्वतंत्र रूप से घटित नहीं होता; व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के बाद यह कार्य का तीसरा चरण है। हर बार जब परमेश्वर कार्य का नया चरण आरंभ करता है, तो हमेशा एक नई शुरुआत होती है और वह हमेशा एक नया युग लाता है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव, उसके कार्य करने के तरीके, उसके कार्य के स्थल, और उसके नाम में भी परिवर्तन होते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के लिए नए युग में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना कठिन होता है। परंतु इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य द्वारा उसका कितना विरोध किया जाता है, परमेश्वर सदैव अपना कार्य करता रहता है, और सदैव समस्त मानवजाति का प्रगति के पथ पर मार्गदर्शन करता रहता है। जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)

न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है। वास्तव में यह चरण विजय का और साथ ही उद्धार के कार्य का दूसरा चरण है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))

आज के कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबंधन योजना का कार्य आगे बढ़ा है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? क्योंकि आज का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए गए कार्य की प्रगति है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं और श्रृंखला की हर कड़ी निकटता से अगली कड़ी से जुड़ी है। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? मान लो, यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूस पर चढ़ाए जाने का कार्य फिर से करना होता, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को फिर से करना पड़ता। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि युग आगे बढ़ गया है, और कार्य के स्तर को पहले से अधिक ऊँचा कर दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। परमेश्वर का कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण कोई नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबंधन योजना माना जा सकता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य ने सिर्फ लोगों के पाप माफ किए, लेकिन उससे लोगों की पापी प्रकृति नहीं मिटी, लोग पाप से पूरी तरह नहीं बच पाए, इसलिए मनुष्य को बचाने का कार्य पूरा नहीं हुआ है। प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य ने अंत के दिनों में न्याय-कार्य का मार्ग प्रशस्त किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला न्याय, शुद्धिकरण और मनुष्य को बचाने का कार्य परमेश्वर की प्रबंधन-योजना का अंतिम चरण है, और यह सबसे अहम चरण भी है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर बहुत सत्य व्यक्त करता है, जिससे बाइबल के सभी रहस्यों के साथ-साथ परमेश्वर की प्रबंधन-योजना के सभी रहस्य प्रकट होते हैं, जैसे कि परमेश्वर की प्रबंधन-योजना का उद्देश्य, कार्य के तीनों चरणों का अंदरूनी सत्य, देहधारण का रहस्य, लोगों को शुद्ध करके बचाने के लिए परमेश्वर के न्याय-कार्य का तरीका, सभी किस्म के लोगों का अंत और गंतव्य, मसीह का राज्य पृथ्वी पर कैसे साकार होगा, वगैरह-वगैरह। सर्वशक्तिमान परमेश्वर लोगों के पाप और परमेश्वर का प्रतिरोध करने का मूल कारण भी प्रकट कर न्याय करता है, जो कि लोगों की शैतानी प्रकृति और शैतानी स्वभाव है। वह सत्य के वे पहलू भी व्यक्त करता है, जिनमें लोगों को विश्वास के दौरान अभ्यास करके प्रवेश करना चाहिए, जैसे कि विश्वास के दौरान रखा जाने वाला उचित नजरिया, परमेश्वर से सामान्य रिश्ता कैसे रखें, ईमानदार इंसान कैसे बनें, परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर कैसे रहें, परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी कैसे बनें, उससे प्रेम कैसे करें, वगैरह। भ्रष्टता दूर करने और पूरी तरह बचाए जाने के लिए लोगों को इन सभी सत्यों की वास्तविकताओं में प्रवेश करना चाहिए। परमेश्वर के वचन में व्यक्त न्याय, ताड़ना, काँट-छाँट, निपटान, परीक्षणों और शोधन ने परमेश्वर के चुने हुए अनेक लोगों को धीरे-धीरे अपना शैतानी स्वभाव और प्रकृति समझकर उससे घृणा करने और यह जानने में सक्षम बनाया है कि परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और धार्मिक है जिसका अपमान नहीं किया जा सकता, ताकि उनके दिलों में परमेश्वर का भय और सच्चा पछतावा पैदा हो, उनका भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध होकर बदल सके, वे परमेश्वर के प्रति सच्ची आज्ञाकारिता हासिल कर सकें। चाहे किसी भी उत्पीड़न, मुसीबत, परीक्षण या शोधन से उनका सामना हो, वे दृढ़ता से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण और उसके राज्य का सुसमाचार फैलाकर गवाही दे सकते हैं, और शैतान पर विजय की बहुत-सी गवाहियाँ प्रस्तुत कर सकते हैं। उनकी अनुभवजन्य गवाहियाँ ऑनलाइन प्रकाशित होती हैं, और पूरी दुनिया को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की गवाही देती हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर बड़ी आपदा से पहले विजेताओं के रूप में पूरा करता है, और वे वह प्रथम फल हैं, जो प्रकाशितवाक्य में की गई यह भविष्यवाणी पूरी करते हैं, “ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं(प्रकाशितवाक्य 14:4)। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इस कथन जैसा भी है। “जब कार्य के तीन चरण समाप्ति पर पहुँचेंगे, तो ऐसे लोगों का एक समूह बनाया जाएगा जो परमेश्वर की गवाही देंगे, ऐसे लोगों का समूह जो परमेश्वर को जानते हैं। ये सभी लोग परमेश्वर को जानेंगे और सत्य को व्यवहार में लाने में समर्थ होंगे। उनमें मानवता और समझ होगी और उन्हें परमेश्वर के उद्धार के कार्य के तीनों चरणों का ज्ञान होगा। यही कार्य अंत में निष्पादित होगा, और यही लोग 6,000 साल के प्रबंधन के कार्य का सघनित रूप हैं, और शैतान की अंतिम पराजय की सबसे शक्तिशाली गवाही हैं। जो परमेश्वर की गवाही दे सकते है वे ही परमेश्वर की प्रतिज्ञा और आशीष को प्राप्त करने में समर्थ होंगे, और ऐसा समूह होंगे जो बिल्कुल अंत तक बना रहेगा, वह समूह जो परमेश्वर के अधिकार को धारण करेगा और परमेश्वर की गवाही देगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत सत्य व्यक्त किया है और इतना माहान कार्य संपन्न किया है, जो परमेश्वर का अद्वितीय अधिकार और सामर्थ्य प्रकट करता है, और साबित करता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु यीशु है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक आत्मा और एक परमेश्वर हैं। तो, इस मुकाम पर, आइए हम रुककर विचार करें : परमेश्वर के सिवाय कौन इतने सारे सत्य व्यक्त कर सकता है और उसकी प्रबंधन-योजना के रहस्य प्रकट कर सकता है? कौन लोगों के पाप और प्रतिरोध का मूल कारण उजागर कर सकता है? परमेश्वर के सिवाय कौन लोगों की भ्रष्टता का न्याय कर सकता है, और मनुष्य को पाप से पूरी तरह बचा सकता है? कौन उसके पवित्र और धार्मिक स्वभाव को व्यक्त कर सकता है, जो अपमान नहीं सह सकता? तथ्य साबित करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर व्यावहारिक देहधारी परमेश्वर है, एकमात्र सच्चा परमेश्वर, जो सभी चीजों का आदि और अंत है!

तो, क्या अब सभी लोग इसे स्पष्ट रूप से समझ गए हैं? व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग में किया गया तीन चरणों का कार्य मनुष्य को बचाने के लिए विभिन्न युगों में किए गए परमेश्वर के कार्य के तीन विभिन्न चरण हैं। व्यवस्था के कार्य ने मनुष्य को सिखाया कि पाप क्या है, छुटकारे के कार्य ने उसे पापों से छुटकारा दिलाया और न्याय-कार्य उसे पाप मिटाने देता है। कार्य के ये तीनों चरण घनिष्ठता से जुड़े हैं, हरेक चरण पिछले चरण पर बना है, और अंत में, लोग शैतान के प्रभाव से पूरी तरह बचाए जाकर परमेश्वर के राज्य में ले जाए जाते हैं। यह है वह पूरी प्रक्रिया, जिससे परमेश्वर मनुष्य का प्रबंधन कर उसे बचाता है। शुरू से अंत तक यह एक ही परमेश्वर द्वारा किया जाता है। हालाँकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम अलग है, उसके तरीके और कार्य अलग हैं, लेकिन परमेश्वर का सार, स्वरूप और स्वभाव एक हैं, वे कभी भी नहीं बदलते। अगर हम व्यवस्था के युग में यहोवा परमेश्वर द्वारा, अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा, और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों पर गौर करें, तो ये सभी वचन सत्य हैं। ये परमेश्वर के स्वभाव और स्वरूप की अभिव्यक्ति और प्रकाशन हैं, ये एक ही स्रोत से आते हैं, और ये एक ही आत्मा की वाणी और वचन हैं। यह सबूत है कि कार्य के ये तीनों चरण एक ही परमेश्वर द्वारा किए गए हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में ऐसा ही कहा गया है। “यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं। अब तुम्हारे लिए यह समझना उचित है कि प्रथम चरण से लेकर आज तक का समस्त कार्य एक ही परमेश्वर का कार्य है, एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। “वह दया और प्रेममयी करुणा से भरा हुआ परमेश्वर है; वह मनुष्य के लिए पापबलि है और उसकी चरवाही करने वाला है, लेकिन वह मनुष्य का न्याय, ताड़ना, और श्राप भी है। उसने पृथ्वी पर दो हजार साल तक जीवन-यापन करने में मनुष्य की अगुआई की और भ्रष्ट मानवजाति को पाप से छुटकारा भी दिला पाया। आज, वह मानवजाति को जीतने में भी सक्षम है जो उससे अनजान है और उसे अपने अधीन दंडवत कराने में सक्षम है, ताकि हर कोई उसके आगे पूरी तरह से समर्पित हो जाए। अंत में, वह समस्त विश्व में मनुष्यों के अंदर जो कुछ भी अशुद्ध और अधार्मिक है उसे जला कर भस्म कर देगा, ताकि उन्हें यह दिखाए कि वह न सिर्फ करुणामय और प्रेमपूर्ण परमेश्वर है, न सिर्फ बुद्धि और चमत्कार का परमेश्वर है, न सिर्फ पवित्र परमेश्वर है, बल्कि वह मनुष्य का न्याय करने वाला परमेश्वर भी है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)

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