सच्चे मसीह को झूठे मसीहों से पहचानना
आज मैं सच्चे मसीह को झूठे मसीहों से पहचानने पर बात करूँगा। शायद कुछ लोग पूछें, परमेश्वर में हमारी आस्था से इसका क्या सरोकार है। बहुत कुछ। क्या सभी लोग जानते हैं कि मसीह कौन है? अगर आप यह जानते हैं कि मसीह पृथ्वी पर आया हुआ उद्धारकर्ता है, तो अब जब विपत्तियाँ आ रही हैं, अंत के दिन हमारे करीब हैं, तो क्या आपको लगता है कि आपको एक उद्धारकर्ता की जरूरत है? अगर आपको उद्धारकर्ता चाहिए, तो क्या आप जानते हैं कि आपको बचाने के लिए आपको कौन चाहिए? क्या आप उद्धारकर्ता के स्वागत का तरीका जानते हैं? क्या आप सोचते हैं, यह आपके लिए महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है? उदाहरण के रूप में, 2,000 साल पहले, हमारा उद्धारकर्ता यीशु मनुष्य को छुटकारा दिलाने आया और उसने अनेक सत्य व्यक्त किए। उस वक्त यहूदी लोग जानते थे कि उसके वचन अधिकारपूर्ण, सामर्थ्यवान और पूरे सत्य थे। लेकिन चूंकि उसका नाम मसीहा नहीं था, और उसने उन्हें रोमन शासन से नहीं बचाया, जैसा उन्होंने सोचा था, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु को मसीह नहीं माना। उन्होंने उसे लोगों को धोखा देने वाला कहकर उसकी निंदा की, तिरस्कार किया, और अंत में उसे जिंदा सूली पर चढ़वा दिया। इसके परिणाम क्या थे? क्या यहूदी लोगों द्वारा देहधारी परमेश्वर का सूली पर चढ़ाया जाना एक छोटा मामला था? परमेश्वर ने इसे निश्चित रूप से शाप दिया। हम जानते हैं कि 60 साल बाद, इस्राएली राष्ट्र का रोम के तीतुस ने सफाया कर दिया। इस्राएल राष्ट्र कितने समय तक ध्वस्त रहा? करीब 2,000 साल तक! उद्धारकर्ता को सूली पर चढ़ाने के कारण, इस्राएलियों ने बड़ी भारी कीमत चुकाई। तो फिर क्या उद्धारकर्ता का स्वागत करना अहम है? पृथ्वी पर उद्धारकर्ता का अपमान करना भला कौन सह सकता है? अगर आप उसे जानते या स्वीकार नहीं करते, बल्कि उसका विरोध कर उसकी निंदा करते हैं, तो आपका काम तमाम है—पूरी तरह तमाम, आपका नष्ट होना निश्चित है। अगर आप चाहते हैं कि आप बचाए जाएं और विपत्तियों से जिंदा बच निकलें, तो आपको उद्धारकर्ता को स्वीकार करना होगा! अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहाँ है, वह नीचे उतरा उद्धारकर्ता है, वह मनुष्य को पाप और विपत्तियों से बचाने के लिए, सत्य व्यक्त करके अंत के दिनों का न्याय-कार्य कर रहा है। लेकिन क्या आप उसे पहचान सकेंगे? क्या आप उसे स्वीकार करेंगे? हालांकि बहुत-से लोग मानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सामर्थ्यवान और अधिकारपूर्ण हैं, मगर जब वे देखते हैं कि वह एक बादल पर सवार होकर नहीं आया और उसे प्रभु यीशु नहीं कहा जाता, तो वे दृढ़ता से सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने से मना करते हैं। वे धार्मिक संसार के साथ मिलकर उसकी निंदा और तिरस्कार करते हैं, कहते हैं कि जो प्रभु देहधारी होकर आता है एक झूठा मसीह है, यह एक धोखा है। धार्मिक मसीह-विरोधी ताकतें कम्युनिस्ट पार्टी के दानवों के सुर में सुर मिलाती हैं, मसीह को नष्ट करने की कोशिश में पागलों की तरह उसका पीछा कर रही हैं। वे परमेश्वर का राज्य सुसमाचार साझा करने वालों को सताते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को पूरी तरह से नष्ट करने और इंसानों के बीच से परमेश्वर को भगाने के लिए मरे जा रहे हैं। यह परमेश्वर को फिर से सूली पर चढ़ाने का महापाप करना है, और वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित होंगे। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, “धिक्कार है उन लोगों को, जो परमेश्वर को सलीब पर चढ़ाते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा)। “जहाँ कहीं भी देहधारण प्रकट होता है, उस जगह से दुश्मन पूर्णतया विनष्ट किया जाता है। सबसे पहले चीन का सर्वनाश होगा; यह परमेश्वर के हाथों बर्बाद कर दिया जाएगा। परमेश्वर वहाँ कोई भी दया बिलकुल नहीं दिखाएगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 10)। तो उद्धारकर्ता के प्रति लोगों का रवैया यह तय करता है कि वे जिंदा रहेंगे या नष्ट हो जाएंगे।
अब सभी लोग जानते हैं कि उद्धारकर्ता का स्वागत करने योग्य होने का संबंध किसी का आस्था में सफल या विफल होने से, और उनके अंतिम परिणाम और गंतव्य से होता है! इसलिए, आगे बढ़कर आइए हम बात करें कि उद्धारकर्ता अंत के दिनों में वापस कैसे आता है। धार्मिक दुनिया की पारंपरिक धारणाओं के आधार पर, प्रभु निश्चित रूप से एक बादल पर सवार होकर आएगा, और विश्वासियों को उससे मिलने के लिए आकाश में ले जाएगा। यह बिल्कुल गलत सोच है। बस एक इंसानी धारणा है, दूर-दूर तक प्रभु के वचनों के अनुरूप नहीं है। प्रभु यीशु ने खुद भविष्यवाणी की थी, “मनुष्य के पुत्र का आना,” “मनुष्य का पुत्र प्रगट हुआ,” “मनुष्य का पुत्र आ जाएगा,” और “मनुष्य का पुत्र अपने दिन में प्रगट होगा।” उसने बार-बार “मनुष्य का पुत्र” पर जोर दिया, जो यह दर्शाता है कि वापस आते समय, प्रभु फिर से मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी होता है, और यह मसीह का मनुष्य के सामने प्रकटन है। इसके दो तरीके नहीं है। शायद कुछ लोग पूछें, “अगर वह देहधारी मनुष्य का पुत्र है, तो क्या वह प्रभु यीशु ही नहीं है? उसे एक आम इंसान जैसा दिखना चाहिए। पूरी दुनिया में बहुत-से ऐसे लोग हैं, जो वापस आया हुआ मसीह होने का दावा करते हैं। कुछ लोग किसी एक व्यक्ति को मसीह कहते हैं, कुछ किसी दूसरे को। तो फिर कौन सच्चा है, और कौन झूठा? हम उद्धारकर्ता का स्वागत कैसे करें?” सच्चे मार्ग की पड़ताल करते समय ज्यादातर लोग यहीं अटक जाते हैं। दरअसल, यह कोई मुश्किल सवाल नहीं है। अगर हम प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों पर ईमानदारी से सोचें, तो हमें मार्ग मिल जाएगा। प्रभु यीशु ने कहा था, “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा” (यूहन्ना 16:12-13)। “आधी रात को धूम मची : ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो’” (मत्ती 25:6)। “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं” (यूहन्ना 10:27)। “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ” (प्रकाशितवाक्य 3:20)। “उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है!’ या ‘वहाँ है!’ तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें” (मत्ती 24:23-24)। प्रभु की बातें बहुत स्पष्ट हैं। प्रभु यीशु, अंत के दिनों में वापस आने पर, और भी अनेक वचन बोलेगा, सभी सत्यों को समझने और उनमें प्रवेश करने में इंसान का मार्गदर्शन करेगा। इसलिए उसने लोगों को बार-बार याद दिलाया कि प्रभु के स्वागत की कुंजी परमेश्वर की वाणी को सुनना है। अगर हम किसी को यह गवाही देते सुनें कि “दूल्हा आ रहा है,” तो हमें बुद्धिमान कुआँरियाँ बनकर परमेश्वर की वाणी को खोजना और सुनना होगा। प्रभु का अभिनंदन करने का यही एकमात्र मार्ग है। उसकी वापसी का स्वागत करने का यही एकमात्र मार्ग है। अंत के दिनों में मसीह आ गया है, तो जाहिर है वह मनुष्य के उद्धार के लिए और ज्यादा सत्य व्यक्त कर रहा है, लेकिन झूठे मसीह लोगों को गुमराह करने के लिए बस थोड़े-से चिन्ह और चमत्कार दिखाने पर भरोसा करते हैं। यह एक मुख्य सिद्धांत है, जो प्रभु यीशु ने हमें सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच भेद करने के लिए बताया। इस सिद्धांत के अनुसार, इस आधार पर कि कोई सत्य व्यक्त करता है या नहीं, हम यह जान सकते हैं कि वह सच्चा मसीह है या झूठा। अगर वह सत्य व्यक्त कर सकता है, तो वह मसीह ही होगा। जो लोग सत्य व्यक्त नहीं कर सकते, वे झूठे मसीह ही होंगे। अगर कोई मसीह होने का दावा करता है, मगर कोई सत्य व्यक्त नहीं कर सकता, और इसके बजाय चिन्हों और चमत्कारों के भरोसे रहता है, तो वह बेशक एक दुष्टात्मा का मुखौटा है, लोगों को गुमराह करने के लिए आया हुआ झूठा मसीह है। सच्चे और झूठे मसीह को अलग पहचानने के लिए प्रभु यीशु के वचनों पर चलने से ये बहुत आसान हो जाता है, है न? लेकिन दुर्भाग्य से, धर्म से चिपके हुए लोग, प्रभु के वचनों के अनुसार, न सत्य खोजते हैं, न ही परमेश्वर की वाणी। झूठे मसीह द्वारा गुमराह होने के डर से वे प्रभु के प्रकटन और कार्य को भी नहीं खोजते। क्या यह बदला लेते वक्त खुद की हानि करना नहीं है, सोने के सिक्के लुटाना और कोयले पर मुहर लगाना नहीं है? प्रभु के बादल पर आने को लेकर वे आँखें बंद कर धर्मग्रंथ से चिपके रहते हैं, और मसीह के अंत के दिनों के कार्य की निंदा कर उसे ठुकराते हैं। नतीजा यह होता है कि वे उद्धारकर्ता के स्वागत का अपना मौका गँवाकर विपत्तियों में डूब जाते हैं। क्या यह उनकी बेवकूफी और अज्ञानता का नतीजा नहीं है? इससे बाइबल के ये पद साकार हो जाते हैं : “मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं” (नीतिवचन 10:21)। “मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्ट हो गई” (होशे 4:6)।
जहां तक सच्चे मसीह को झूठे से पहचानने की बात है, आइए, इस विषय को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के अनुसार विस्तार से समझें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है और मसीह परमेश्वर के आत्मा द्वारा धारण की गई देह है। यह देह किसी भी मनुष्य की देह से भिन्न है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि मसीह मांस तथा खून से बना हुआ नहीं है; वह आत्मा का देहधारण है। उसके पास सामान्य मानवता तथा पूर्ण दिव्यता दोनों हैं। उसकी दिव्यता किसी भी मनुष्य द्वारा धारण नहीं की जाती। उसकी सामान्य मानवता देह में उसकी समस्त सामान्य गतिविधियां बनाए रखती है, जबकि उसकी दिव्यता स्वयं परमेश्वर के कार्य अभ्यास में लाती है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है)।
“देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसके कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से सँभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। मसीह का भेस धारण करने वाले लोगों का देर-सबेर पतन हो जाएगा, क्योंकि हालाँकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उत्तर और निर्णय स्वयं परमेश्वर द्वारा ही दिया-लिया जाता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)।
“जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)।
“कुछ ऐसे लोग हैं, जो दुष्टात्माओं से ग्रस्त हैं और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते रहते हैं, ‘मैं परमेश्वर हूँ!’ लेकिन अंत में, उनका भेद खुल जाता है, क्योंकि वे गलत चीज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे शैतान का प्रतिनिधित्व करते हैं, और पवित्र आत्मा उन पर कोई ध्यान नहीं देता। तुम अपने आपको कितना भी बड़ा ठहराओ या तुम कितना भी जोर से चिल्लाओ, तुम फिर भी एक सृजित प्राणी ही रहते हो और एक ऐसा प्राणी, जो शैतान से संबंधित है। ... तुम नए मार्ग लाने या पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो। तुम पवित्र आत्मा के कार्य को या उसके द्वारा बोले जाने वाले वचनों को व्यक्त नहीं कर सकते। तुम स्वयं परमेश्वर का या पवित्रात्मा का कार्य करने में असमर्थ हो। परमेश्वर की बुद्धि, चमत्कार और अगाधता, और उसके स्वभाव की समग्रता, जिसके द्वारा परमेश्वर मनुष्य को ताड़ना देता है—इन सबको व्यक्त करना तुम्हारी क्षमता के बाहर है। इसलिए परमेश्वर होने का दावा करने की कोशिश करना व्यर्थ होगा; तुम्हारे पास सिर्फ़ नाम होगा और कोई सार नहीं होगा। स्वयं परमेश्वर आ गया है, किंतु कोई उसे नहीं पहचानता, फिर भी वह अपना काम जारी रखता है और ऐसा वह पवित्रात्मा के प्रतिनिधित्व में करता है। चाहे तुम उसे मनुष्य कहो या परमेश्वर, प्रभु कहो या मसीह, या उसे बहन कहो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। परंतु जो कार्य वह करता है, वह पवित्रात्मा का है और वह स्वयं परमेश्वर के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि मनुष्य उसे किस नाम से पुकारता है। क्या वह नाम उसके काम का निर्धारण कर सकता है? चाहे तुम उसे कुछ भी कहकर पुकारो, जहाँ तक परमेश्वर का संबंध है, वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारी स्वरूप है; वह पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करता है और उसके द्वारा अनुमोदित है। यदि तुम एक नए युग के लिए मार्ग नहीं बना सकते, या पुराने युग का समापन नहीं कर सकते, या एक नए युग का सूत्रपात या नया कार्य नहीं कर सकते, तो तुम्हें परमेश्वर नहीं कहा जा सकता!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1))।
“यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। परमेश्वर का कार्य मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता; उदाहरण के लिए, पुराने नियम ने मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी की, और इस भविष्यवाणी का परिणाम यीशु का आगमन था। चूँकि यह पहले ही घटित हो चुका है, इसलिए एक और मसीहा का पुनः आना ग़लत होगा। यीशु एक बार पहले ही आ चुका है, और यदि यीशु को इस समय फिर आना पड़ा, तो यह गलत होगा। प्रत्येक युग के लिए एक नाम है, और प्रत्येक नाम में उस युग का चरित्र-चित्रण होता है। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)।
इसे पढ़ने के बाद, क्या सभी को थोड़ी स्पष्टता नहीं मिली कि मसीह क्या है, और सच्चे मसीह को झूठे से अलग कैसे पहचानें? मसीह देहधारी परमेश्वर है, मनुष्य के पुत्र के रूप में देह का आवरण लिए परमेश्वर का आत्मा। बाहर से, मसीह बस एक आम, सामान्य इंसान है। लेकिन उसका सार एक आम इंसान से पूरी तरह से अलग है। मसीह में परमेश्वर का आत्मा है, वह परमेश्वर के आत्मा का मूर्तरूप है, इसलिए उसका सार दिव्य है। अनिवार्य रूप से, मसीह ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, सृजन का प्रभु है! मसीह कहीं भी, किसी भी समय सत्य, परमेश्वर के स्वभाव और स्वरूप को व्यक्त कर सकता है। वह मनुष्य के छुटकारे का कार्य के साथ उसके न्याय और शुद्धिकरण का कार्य कर सकता है। मसीह के अलावा, कोई भी सृजित मनुष्य, दूत, या शैतानी दुष्टात्मा मनुष्य को बचाना तो दूर रहा, सत्य भी व्यक्त नहीं कर सकता। इस बारे में कोई शक नहीं है। इसलिए, सच्चे और झूठे मसीहों में भेद करने की कुंजी है यह देखना कि क्या वह सत्य व्यक्त करता है, क्या वह मनुष्य के उद्धार का कार्य कर सकता है। यही है सबसे अहम और बुनियादी सिद्धांत। हम सभी जानते हैं कि प्रभु यीशु ने अनेक सत्य व्यक्त किए, प्रायश्चित के मार्ग का प्रचार किया, और मनुष्य को छुटकारा दिलाने का कार्य पूरा करते हुए, उसने बहुत-से चिन्ह दिखाए और चमत्कार किए। उसने अनुग्रह के युग का आरंभ और व्यवस्था के युग का समापन किया। प्रभु के वचनों में बहुत सामर्थ्य और अधिकार था, और वे परमेश्वर के स्वभाव और स्वरूप से भरे हुए थे। हमारा दिल जानता है कि प्रभु यीशु देहधारी मसीह था, परमेश्वर का प्रकटन था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों में आया है, सत्य के करोड़ों वचन व्यक्त कर रहा है, और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय-कार्य कर रहा है। उसके वचनों ने न सिर्फ बाइबल के भीतर के रहस्यों पर से, बल्कि परमेश्वर की 6,000 साल पुरानी प्रबंधन योजना पर से भी परदा उठाया है। इसमें शामिल हैं, परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लक्ष्य, उसके कार्य के तीन चरणों का अंदरूनी सत्य, शैतान मनुष्य को कैसे भ्रष्ट करता है, परमेश्वर मनुष्य को बचाने के लिए कदम-दर-कदम कैसे कार्य करता है, देहधारण के रहस्य, बाइबल का अंदरूनी रहस्य, हर किस्म के इंसान के परिणाम, मसीह का राज्य पृथ्वी पर कैसे साकार होता है, और भी बहुत-कुछ। इन सभी रहस्यों का ताला खुल गया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य का न्याय कर उसकी पापी, परमेश्वर-विरोधी प्रकृति और भ्रष्ट स्वभाव को भी उजागर करता है। वह भ्रष्टता को त्यागने, शुद्ध होने इत्यादि का रास्ता दिखाता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत समृद्ध हैं, और इनमें ऐसे रहस्य और सत्य हैं, जिन्हें लोगों ने पहले कभी नहीं सुना। ये आँखें खोलने वाले और तृप्ति देने वाले हैं, और जो भी इंसान इन्हें पढ़ता है, उसे यह मानना पड़ता है कि ये वास्तव में सत्य हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोग उसके वचनों के न्याय से गुजर कर बहुत-से सत्य समझ लेते हैं; धीरे-धीरे उनकी भ्रष्टता दूर हो जाती है, और वे पाप को छोड़कर शैतान पर विजय पाने की जबरदस्त गवाही देते हैं। इससे प्रभु यीशु की भविष्यवाणी पूरी होती है : “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा” (यूहन्ना 16:12-13)। इससे साबित होता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही, “सत्य का आत्मा” है। वह अंत के दिनों के मसीह का प्रकटन है, पृथ्वी पर आया उद्धारकर्ता है।
अब मुझे लगता है कि सबने यह स्पष्ट समझ लिया होगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मसीह है, उद्धारकर्ता है। ये सिर्फ बातें नहीं हैं, बल्कि उसके द्वारा व्यक्त सत्य और उसके द्वारा किए गए कार्य के आधार पर यह साबित हो जाता है। झूठे मसीहों का क्या? वे हमेशा चिल्लाते रहते हैं, “मैं मसीह हूँ।” आप उनसे पूछ सकते हैं, “क्या तुम सत्य व्यक्त कर सकते हो? क्या तुम मनुष्य की भ्रष्टता के सत्य को प्रकाशित कर सकते हो? क्या तुम मनुष्य को पाप करने से बचा सकते हो?” वे इनमें से कुछ भी नहीं कर सकते। इन सवालों के आगे वे भौंचक्के हो जाते हैं। झूठे मसीह और कुछ नहीं, बल्कि शैतान या दुष्टात्माओं के प्रतिरूप हैं, जिनमें परमेश्वर का जीवन और सार है ही नहीं। इसलिए वे कभी भी सत्य व्यक्त नहीं कर सकते, या मनुष्य को शुध्द करने और बचाने का काम नहीं कर सकते। वे बस सच्चे दिखने वाले झूठे सिद्धांत फैला सकते हैं, या लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए कुछ चिन्ह और चमत्कार दिखा सकते हैं। कुछ झूठे मसीहों में कुछ गुण होते हैं, और वे शायद अपनी किताबें लिख सकते हैं, और बाइबल के गूढ़ ज्ञान का बखान कर सकते हैं। लेकिन वे जो भी चीजें साझा करते हैं, वे सब इंसानी विचार और सिद्धांत होते हैं, और वे मनुष्य को जितने भी अच्छे लगें, सत्य नहीं हैं। ये मनुष्य के जीवन को कभी भी पोषण नहीं दे सकते और परमेश्वर और सत्य को जानने में लोगों की मदद नहीं कर सकते, वे ख़ास तौर पर हमें पाप से नहीं बचा सकते ताकि हम शुद्ध हो जाएँ। यह एक स्पष्ट तथ्य है। एक झूठे मसीह में सच्चाई नहीं होती, बल्कि उनमें पुरजोर महत्वाकांक्षा होती है, वे चाहते हैं कि लोग उनकी परमेश्वर जैसी आराधना करें। तो फिर वे क्या करते हैं? वे परमेश्वर के पिछले कार्य की नक़ल करते हैं, मसीह होने का नाटक करने के लिए कुछ चिन्ह और चमत्कार दिखाते हैं, और छोटे-छोटे फायदे करवाकर वे लोगों को गुमराह करते हैं। अगर कोई विश्वासी सत्य से प्रेम नहीं करता, बल्कि भरपूर खान-पान कर अनुग्रह का आनंद उठाना चाहता है, तो उसके लिए कोई परमेश्वर है या नहीं, यह तय करने का एकमात्र मानक चिन्ह और चमत्कार है, उसके लिए गुमराह होना बहुत आसान है। दरअसल, झूठे मसीहों की चालें सिर्फ मंदबुद्धि लोगों और मूर्खों को ही बेवकूफ बना सकती हैं। परमेश्वर की भेड़ों, बुद्धिमान कुआँरियों को झूठे मसीह कभी भी अपनी तरफ नहीं कर सकते, क्योंकि वे सत्य से प्रेम करते हैं, और परमेश्वर की वाणी सुनते हैं। जब वे परमेश्वर की वाणी सुनते हैं, तो वे उसे स्वीकार कर उसका अनुसरण करते हैं। परमेश्वर ने पहले ही यह तय कर दिया था। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा, “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं” (यूहन्ना 10:27)। “मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझ को दिया है, सबसे बड़ा है और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता” (यूहन्ना 10:29)।
अब मुझे लगता है कि हम सभी स्पष्ट हैं कि सच्चे मसीह को झूठे मसीह से कैसे पहचानें। मसीह देहधारी परमेश्वर है, सत्य, मार्ग और जीवन है। मसीह का दिव्य सार, मुख्य रूप से, सत्य व्यक्त करने और स्वयं परमेश्वर का कार्य करने की उसकी क्षमता में अभिव्यक्त होता है। वह देखने में कितना भी साधारण क्यों न लगे, उसमें सामर्थ्य और रुतबे की कितनी भी कमी क्यों न हो, उसे इंसानों द्वारा अपनाया जाए या ठुकराया जाए, अगर वह सत्य, परमेश्वर के स्वभाव और स्वरूप को व्यक्त कर सकता हो, वह उद्धार कार्य कर सकता हो, तो वह परमेश्वर का प्रकटन है। इसमें कोई शक नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य, मनुष्य के न्याय और शुद्धिकरण का कार्य पूरी तरह से साबित करते हैं कि वह देहधारी परमेश्वर है, और वह मसीह का प्रकटन है। हमें अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर उसका अनुसरण करना है, ताकि हम सत्य हासिल कर सकें, पूरी तरह से बचाए जा सकें, और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकें। लेकिन अब बहुत-से लोग, धार्मिक पादरियों, अगुआओं और कम्युनिस्ट पार्टी के शैतानी शासन को, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का पागलों जैसा विरोध और निंदा करते हुए देखते हैं, तो वे सोचते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य सच्चा मार्ग नहीं है, उनका तर्क है : अगर यह परमेश्वर का कार्य है, तो सब-कुछ बहुत आसान होगा, और सभी लोग आश्वस्त हो जाएंगे। इस तरह सोचना निहायत बेवकूफी है! यह देख न पाना है कि मनुष्य, परमेश्वर का दुश्मन बन जाने की हद तक, गहराई से भ्रष्ट हो चुका है, और उसके दिल में परमेश्वर की कोई जगह नहीं है। क्या प्रभु यीशु के आने पर लोगों ने उसका स्वागत किया? यहूदी लोगों ने उसे सूली पर चढ़ाने के लिए रोमन सरकार की ताकतों के साथ गठजोड़ किया था न? क्या आप कहेंगे कि प्रभु यीशु का कार्य सच्चा मार्ग नहीं था? और अब जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों में आया है, तो लोग उससे कैसा बर्ताव कर रहे हैं? धार्मिक संसार की मसीह-विरोधी ताकतें उसका प्रतिरोध कर उसकी निंदा करने की भरसक कोशिश कर रही हैं, सीसीपी का शैतानी शासन पागलों की तरह उसके पीछे लगा हुआ है, परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को मिटा देने की हर चाल चल रहा है। इससे प्रभु यीशु की यह भविष्यवाणी पूरी होती है : “क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ” (लूका 17:24-25)। इसके क्या मायने हैं? सच्चे मार्ग का हमेशा से दमन किया गया है! मसीह मनुष्य को बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है, तो शैतान की दुष्ट ताकतों द्वारा उसका विरोध, निंदा और पीछा किया जाना अपरिहार्य है। अगर यह दावा होता है कि कोई व्यक्ति मसीह है, मगर वह सत्य व्यक्त नहीं करता और वह इस पीढ़ी द्वारा ठुकराया नहीं जाता, अगर शैतान की ताकतें पागलों की तरह निंदा कर उस पर हमला नहीं करतीं, तो इससे साबित होता है कि वह मसीह नहीं है। इन सबसे बढ़कर, शैतान, परमेश्वर के प्रकटन और कार्य से और उद्धारकर्ता के आने से घृणा करता है। शैतान जानता है कि उद्धारकर्ता के आने से, लोगों को उद्धार पाने, सत्य को समझने और शैतान की चालों को पहचानने का मौक़ा मिलेगा। फिर वे विवेक हासिल कर सकेंगे, उसे ठुकरा सकेंगे, परमेश्वर की ओर मुड़कर उसे हासिल हो सकेंगे। फिर शैतान पूरी तरह से हार जाता है, उसका अंतिम दिन उसके सामने होता है। क्या आपको लगता है कि शैतान यूँ ही हार मान जाएगा? इस बात को समझे बिना, अपनी ही धारणाओं से चिपके रहकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जांच-पड़ताल न करने, या धार्मिक संसार की मसीह-विरोधी ताकतों के साथ मिलकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और प्रतिरोध करने के भी बहुत भयंकर परिणाम होंगे। आइए देखें, सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्या कहता है। “जो लोग मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि जो लोग अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते, उनसे परमेश्वर हमेशा घृणा करेगा। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम केवल आशीष प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते। मसीह अंत के दिनों में इसलिए आया है, ताकि उन सबको जीवन प्रदान कर सके, जो उसमें सच्चा विश्वास रखते हैं। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है, जिसे नए युग में प्रवेश करने वाले सभी लोगों को अपनाना चाहिए। यदि तुम उसे स्वीकारने में असमर्थ हो, और इसके बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, यहाँ तक कि उसका उत्पीड़न करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते, जो अंत के दिनों के मसीह द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिफल भोगना होगा, वह सभी के लिए स्वतः स्पष्ट है। मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का प्रतिरोध करोगे, यदि तुम अंत के दिनों के मसीह को ठुकराओगे, तो तुम्हारी ओर से परिणाम भुगतने वाला कोई अन्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, आज के बाद तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का दूसरा अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम प्रायश्चित करने का प्रयास भी करते हो, तब भी तुम दोबारा कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देखोगे। क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा। और इसलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने जहरीले दाँत मत दिखाओ, या छिछोरी आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुम्हें जीवन दिला सकता है, और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें पुनः जन्म लेने या दोबारा परमेश्वर का चेहरा देखने नहीं दे सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)।
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