ईर्ष्या के बंधनों से आज़ाद

04 फ़रवरी, 2022

जोयलिन, फ़िलीपीन्स

जनवरी 2018 में, मुझे अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किए कुछ ही दिन हुए थे। जल्दी ही, मुझे भजनों के संगीत वीडियो में प्रमुख गायिका की भूमिका दी गई। शुरुआत में, कई भाई-बहनों ने कहा कि मैं बहुत अच्छा गाती हूँ, जहां भी मैं जाती, सबमुझे पहचान लेते। इससे मुझे बड़ी खुशी हुई, लगा जैसे मैं कोई स्टार हूँ। कुछ महीने बाद, मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया। वहां कई नये सदस्यों का सिंचन करना था और सुसमाचार कार्य की प्रगति देखनी थी। नये सदस्यों की समस्या का समाधान करने, मैं अक्सर सुसमाचार फ़िल्में देखती थी, ताकि परमेश्वर के कार्य के सच को समझकर खुद को उससे लैस कर सकूँ। उनके मन की ऐसी धारणा या समस्या जो वे समझ नहीं पाते, उन्हें मैं उनके साथ सहभागिता करके हल कर देती थी। मैं हमेशा बड़ी सभाओं की मेजबानी करती थी, मेरे भाई-बहन अक्सर मेरी अच्छी काबिलियत और समझ की सराहना करते थे। अपने भाई-बहनों की मंज़ूरी पाकर मैं बहुत खुश थी। पर मैं, सुसमाचार कार्य की प्रगति अच्छे से नहीं देख पा रही थी। जब भी अगुआ कलीसियाओं के सुसमाचार कार्य की प्रभावशीलता की जांच-पड़ताल करते, मेरी कलीसिया हमेशा सबसे पीछे रहती। फिर, सुसमाचार के प्रचार के लिए बहन कैथी को हमारी कलीसिया में भेजा गया। मैंने देखा कि बहन कैथी तुरंत अपना काम समझ गई, वह सहभागिता करने और दूसरों के कामों में आई समस्याओं को हल करने में सक्षम थी। सभाओं की मेजबानी करते समय भी अच्छे से सहभागिता कर पाती थी। बहन कैथी को काम के प्रति जिम्मेदार देखकर मुझे खुश होना चाहिए था, मगर पता नहीं क्यों वो मुझे पसंद नहीं आई। जब भी बहन कैथी भाई-बहनों के साथ सहभागिता करती, मैं उसे देखना भी नहीं चाहती थी। खास तौर पर जब भाई-बहनों को यह कहते सुनती कि उन्हें वो इतनी अच्छी लगती है कि वे उसे सुसमाचार उपयाजक बनाना चाहते हैं, तो मैं और ज़्यादा परेशान हो जाती। मैंने सोचा, "तुम्हारे आने से पहले, सभी भाई-बहन मेरी अच्छी काबिलियत, समझ और सिंचन कार्य की प्रशंसा किया करते थे, सब मेरे बारे में ऊँचा सोचते थे, मगर अब सबके लिए तुम सबसे अच्छी हो और वे तुम्हारा आदर करते हैं। अब मेरे बारे में कौन ऊँचा सोचेगा?" उसी समय से, मुझे बहन कैथी से ईर्ष्या होने लगी, मुझे डर था कि वह भाई-बहनों के दिलों में मेरी जगह ले लेगी।

उसके बाद, मैंने देखा कि बहन कैथी अक्सर नए सदस्यों की स्थिति जानने के लिए उन्हें बुलाती थी, कई नए सदस्य समस्याओं के हल के लिए उसके पास जाते थे। एक बार, मेरे द्वारा सिंचित एक बहन को सुसमाचार कार्य में समस्या आई तो उसने मेरी राय माँगी। मेरी सहभागिता के बाद, वह बहन कैथी के पास गई। जब मैंने सुना कि वह बहन कैथी के पास गई है, तो मुझे बुरा लगा। मैंने सोचा, शायद वो मेरे सुझावों को गंभीरता से नहीं लेगी, उसे लगेगा कि बहन कैथी मुझसे बेहतर है, और अब मेरे बारे में ऊँचा नहीं सोचेगी। उदास मन से मैंने सोचा, "मैं सुसमाचार कार्य में बुरी हूँ, तो मुझे अपनी कमियों से उबरना होगा। फिर मैं बहन कैथी से बेहतर हो जाऊँगी, आने वाले समय में, भाई-बहन समस्या होने पर, उसके बजाय मेरे पास आएंगे।" उसके बाद के दिनों में, मैंने देखा कि बहन कैथी हर दिन रात का खाना देर से खाती और अपने काम में व्यस्त रहती, कभी-कभी तो वह सारी रात काम करती रहती। इसलिए मैंने भी अपने काम के लिए देर तक रुके रहने की कोशिश की। तब, भाई-बहनों को लगेगा कि मैं भी जिम्मेदार हूँ और उसके जितनी ही अच्छीहूँ। फिर, कलीसिया ने सुसमाचार उपयाजक के लिए चुनाव कराया। दरअसल, हर मामले में बहन कैथी इस काम के लिए सबसे अच्छी थी, मगर मैं उसे नहीं चुनना चाहती थी। मैंने सोचा कि अगर उसे कलीसिया में कोई पद मिल गया, तो हर किसी का ध्यान धीरे-धीरे उसकी ओर चला जाएगा लोगों को लगेगा कि वह मुझसे अधिक काबिल है, मगर कलीसिया अगुआ सारा काम अकेले नहीं कर सकते और मदद के लिए उपयाजकों की ज़रूरत होगी, मैं सोचने लगी कि बहन कैथी को चुनना चाहिए या नहीं। अगर मैंने उसे चुना, तो भाई-बहन पक्के तौर पर मुझे छोड़कर उसके पास चले जाएंगे। मगर ये तो मानना पड़ेगा कि बहन कैथी में बहुत अच्छी काबिलियत है, वह सुसमाचार उपयाजक की जिम्मेदारियां संभाल सकती है। मैंने काफी देर विचार करने के बाद, न चाहकर भी उसे चुन लिया।

एक बार, कलीसिया को एमवी ग्रुप में रिकॉर्ड करने के लिए ऐसे भाई या बहन की खोज थी, जिसे अच्छी फिलिपीनो और अंग्रेज़ी आती हो। बहन कैथी की फिलिपीनो और अंग्रेज़ी, दोनों अच्छी थी, तो आखिर में भाई-बहनों ने उसे ही चुन लिया। मुझे बहुत निराशा हुई, मैंने सोचा, "मेरी फिलिपीनो और अंग्रेज़ी भी तो अच्छी है, फिर उन्होंने मुझे न चुनकर उसे क्यों चुना?" मुझे उससे जलने लगी, उसके लिए दिल में थोड़ी नफ़रत भी पैदा हो गई। उस समय, क्योंकि बहन कैथी का स्वभाव थोड़ा अहंकारी था, हमारे अगुआ जाँच कर रहे थे कि वह जिम्मेदारी कैसे निभाती है, उन्होंने मुझे उसका मूल्यांकन लिखने को कहा। मैं बहुत खुश हुई, मैं उसकी अधिक से अधिक कमियां निकालना चाहती थी, ताकि हमारे अगुआ उसे कोई और काम सौंप दें और मुझे उसके आस-पास न रहना पड़े। मगर मैं यह भी जानती थी कि ऐसा सोचना गलत है, मुझे उसके साथ सही तरीके से पेश आना चाहिए। हमारे अगुआ ने हमसे सहभागिता करते हुए यह भी कहा कि भले ही बहन कैथी में भ्रष्ट स्वभाव है, फिर भी हमें सिद्धांतों के अनुसार अच्छा बर्ताव करना चाहिए। मगर दिल से, मैं चाहती थी वो चली जाए, ताकि मुझे यह चिंता न रहे कि भाई-बहन उसके बारे में ऊँचा सोचेंगे। मैंने सोचा, "तुम्हारे आने से पहले सभी भाई-बहन सवालों के जवाब पाने मेरे पास आते थे। मगर अब तुम्हारे यहां होने से, वे मेरे बजाय तुमसे जवाब चाहते हैं।" इस बारे में सोचकर मुझे बहुत पीड़ा हुई और बुरा भी लगा। उसके साथ मिलकर काम करते हुए भी, मैं उसे देखना नहीं चाहती थी। उस समय ईर्ष्या ने मेरे दिल में घर बना लिया था।

फिर, मुझ पर कलीसिया के काम की प्रगति जानने का दबाव काफी बढ़ गया, मुझे कुछ समस्याएं भी थीं, मगर मैं परमेश्वर की इच्छा नहीं महसूस कर पाई, और मुझे नहीं पता था कि इन्हें हल कैसे करूं। मैं बहुत थक गई थी। मुझे पवित्र आत्मा का कार्य और मार्गदर्शन नहीं महसूस हुआ, अपने काम में बिल्कुल प्रभावहीन थी। मुझे बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ कि मेरी नकारात्मक स्थिति पहले से मेरे कामों पर असर डाल रही थी, फिर मैंने एक सभा में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा, "कलीसिया का अगुआ होने के लिए, न केवल यह जानना जरूरी है कि समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य का इस्तेमाल कैसे करें, बल्कि यह भी कि प्रतिभा का पता लगाकर उसे बढ़ावा कैसे दें, प्रतिभाशाली लोगों को न तो दबाएँ और न ही उनसे ईर्ष्या करें। कर्तव्य का ऐसा निर्वहन मानक के अनुसार होता है, ऐसा करने वाले अगुआ और कर्मी मानक के अनुरूप होते हैं। यदि तुम हर चीज में सिद्धांतों के अनुसार काम कर सको, तो तुम अपनी निष्ठा के अनुरूप जी रहे होगे। कुछ लोग हमेशा इस बात डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊँचे हैं, दूसरों का सम्मान होगा और उनको अनदेखा कर दिया जाएगा। इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह अपने से ज़्यादा सक्षम लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या ऐसा व्यवहार स्वार्थी और घिनौना नहीं है? यह किस तरह का स्वभाव है? यह दुर्भावनापूर्ण है! केवल अपने हितों के बारे में सोचना, सिर्फ़ अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करना, दूसरों के कर्तव्यों पर कोई ध्यान नहीं देना, या परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचना—इस तरह के लोग बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर के पास उनके लिये कोई प्रेम नहीं है। अगर तुम वाकई परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखने में सक्षम हो, तो तुम दूसरे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार कर पाने में सक्षम होगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति के पक्ष में दलील देते हो और उसे योग्य बनाते हो, उसके बाद परमेश्वर के घर में एक और प्रतिभाशाली व्यक्ति होगा, तब क्या तुम्हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या इस कर्तव्य के निर्वहन में तुमने अपनी निष्ठा के अनुरूप काम नहीं किया होगा? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; कम से कम एक अगुआ में इतना विवेक और सूझ-बूझ तो होनी ही चाहिए" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो')परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, समझा कि मैंने सिर्फ़ इज़्ज़त और रुतबे के लिए काम किया था, ताकि लोग मेरे बारे में ऊँचा सोचें। जब बहन कैथी कलीसिया में आई, मैंने देखा कि वह सत्य पर सहभागिता करके समस्या हल कर सकती है, जब दूसरे लोग सहभागिता के लिए मेरे बजाय उसे खोजने लगे, तो मुझे डर लगा वो मेरी जगह ले लेगी, तो मुझे ईर्ष्या हुई और मैंने हर मोड़ पर उसके साथ होड़ की। मैं दिखाना चाहती थी कि मुझे सत्य की समझ है और मैं सहभागिता करके समस्याएं हल कर सकती हूँ, ताकि भाई-बहन मेरे बारे में ऊँचा सोचें। जब कलीसिया ने उसे सुसमाचार उपयाजक चुना, तो मैं जानती थी कि बहन कैथी इस काम के काबिल है, मगर मैं उसे इसलिए नहीं चुनना चाहती थी कि वो मेरी चमक चुरा लेगी, मन-ही-मन मैं उससे नफ़रत करने लगी। मेरे मन में बुरी मंशाएं भी थीं, मैंने उसकी कमियां ढूंढने की कोशिश की। उसे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते देख मुझे बड़ी खुश हुई, मैं मूल्यांकन में कुछ बुरी बातें लिखना चाहती थी, ताकि उसे दूर भेज सकूँ, मेरे भाई-बहन मेरी खूबियों को जान सकें। फिर परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे एहसास हुआ कि मुझे उसकी काबिलियत से ईर्ष्या थी और मैं उसे खुद से बेहतर होते नहीं देख सकती थी, इस तरह मैंने एक कपटी स्वभाव दिखाया। बाहर से तो मैं अच्छी तरह अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी, मगर दिल से मैंने परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में नहीं सोचा। बहन कैथी ने परमेश्वर के घर के कार्य में मदद की और सुसमाचार कार्य को अधिक प्रभावशाली बनाया। हालांकि, मैंने सिर्फ उससे बेहतर होने के बारे में सोचा। परमेश्वर हमारे दिलों और कर्तव्यों के प्रति रवैये की जांच करता है। मैंने परमेश्वर का भय माने बिना अपना कर्तव्य निभाया, सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे की परवाह की। इस तरह के बर्ताव से परमेश्वर को नफ़रत है।

फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों का अंश पढ़ा। "तुम्हारे दिमाग में जो धारणाएँ, कल्पनाएँ, ज्ञान, और निजी इरादे व इच्छाएँ भरी हुई हैं, वे अपने मूल स्वरूप से बदली नहीं हैं। तो, यदि तुम सुनते हो कि परमेश्वर का घर विविध प्रतिभाओं को विकसित करेगा, जैसे ही पद, प्रतिष्ठा या रुतबे की बात आती है, हर किसी का दिल प्रत्याशा में उछलने लगता है, तुममें से हर कोई हमेशा दूसरों से अलग दिखना, मशहूर होना, और अपनी पहचान बनाना चाहता है। हर कोई झुकने को अनिच्छुक रहता है, इसके बजाय हमेशा विरोध करना चाहता है—इसके बावजूद कि विरोध करना शर्मनाक है और परमेश्वर के घर में इसकी अनुमति नहीं है। हालांकि, वाद-विवाद के बिना, तुम अब भी संतुष्ट नहीं होते हो। जब तुम किसी को दूसरों से विशिष्ट देखते हो, तो तुम्हें ईर्ष्या और नफ़रत महसूस होती है, तुम्हें लगता है कि यह अनुचित है। 'मैं दूसरों से विशिष्ट क्यों नहीं हो सकता? हमेशा वही व्यक्ति दूसरों से अलग क्यों दिखता है, और मेरी बारी कभी क्यों नहीं आती है?' फिर तुम्हें कुछ नाराज़गी महसूस होती है। तुम इसे दबाने की कोशिश करते हो, लेकिन तुम ऐसा नहीं कर पाते, तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो। और कुछ समय के लिए बेहतर महसूस करते हो, लेकिन जब फिर से तुम्हारा सामना इसी तरह के मामले से होता है, तो तुम इससे जीत नहीं पाते हो। क्या यह एक अपरिपक्व कद नहीं दिखाता है? क्या किसी व्यक्ति का इस तरह की स्थिति में गिर जाना एक फंदा नहीं है? ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन हैं जो इंसानों को बाँध देते हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो')। परमेश्वर के वचनों ने मेरी हालत का खुलासा कर दिया। मैं अपनी बहन से ईर्ष्या करती थी क्योंकि मुझमें शोहरत और रुतबे की तीव्र इच्छा थी, मैं दूसरों से अलग दिखकर लोगों के दिलों में जगह बनाना चाहती थी। मुझे याद है, कॉलेज के दिनों में, दूसरी की शाबाशी और प्रशंसा पाने के लिए, मैं अपने सहपाठियों से होड़ करती थी, खुद को बेहतर दिखाने में, हमें एक दूसरे को चोट पहुँचाने की भी परवाह नहीं थी। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, उसके घर में भी मैंने वैसा ही व्यवहार किया। बहन कैथी को खुद से बेहतर देखकर, मैंउससे आगे निकलना चाहती थी, उससे नफ़रत भी करती थी, क्योंकि मैं ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की मंज़ूरी चाहती थी, मेरी महत्वाकांक्षा थी कि लोग मेरी प्रशंसा करें, मेरी पूजा करें, जिससे पता चला मैं कितनी अहंकारी थी। मैंने यह भी देखा कि मैं इज़्ज़त और रुतबे के पीछे भाग रही थी, इसी वजह से अपना काम भी अच्छे से नहीं कर पा रही थी, मैं पवित्र आत्मा का कार्य भी हासिल नहीं कर पाई और मेरी सोच का दायरा भी छोटा होता गया। जैसा कि परमेश्वर के वचन खुलासा करते हैं, "ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन हैं जो इंसानों को बाँध देते हैं।" मैंने बाइबल की इस बात को याद किया, "मन के जलने से हड्डियाँ भी जल जाती हैं" (नीतिवचन 14:30)। सही बात है। ईर्ष्या एक शैतानी स्वभाव की अभिव्यक्ति है; यह लोगों से नफ़रत और बेतुके काम भी करवा सकती है।

फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश देखा, जिससे मुझे इज़्ज़त और रुतबे के पीछे भागने के सार और नतीजों को समझने में मदद मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यदि तू हमेशा देह के अनुसार जीता है, हमेशा अपनी स्वार्थी इच्छाओं को संतुष्ट करता है, तो ऐसे व्यक्ति में सत्य की वास्तविकता नहीं होती; यह परमेश्वर को लज्जित करने का चिह्न है। तुम कहते हो, 'मैंने कुछ नहीं किया; मैंने परमेश्वर को कैसे लज्जित किया है?' तुम्हारे दिमाग में केवल दुष्टता भरी है; तुम शैतान के हो। तुम्हारे कार्यों के पीछे के इरादों, लक्ष्यों और मंशाओं में, और तुमने जो किया है उनके परिणामों में—हर तरीके से तुम शैतान को संतुष्ट कर रहे हो, उसके उपहास के पात्र बनकर उसे अपनी गुप्त बातें बता रहे हो जिसका वो तुम्हारे विरुद्ध इस्तेमाल कर सकता है। एक ईसाई के तौर पर तुम्हारे पास जो गवाही होनी चाहिए, वो दूर-दूर तक भी नहीं है। तुम सभी चीज़ों में परमेश्वर का नाम बदनाम करते हो और तुम्हारे पास सच्ची गवाही नहीं है। क्या परमेश्वर तुम्हारे द्वारा किए गए कृत्यों को याद रखेगा? अंत में, परमेश्वर तुम्हारे कृत्यों और कर्तव्य के बारे में क्या निष्कर्ष निकालेगा? क्या उसका कोई नतीजा नहीं निकलना चाहिए, किसी प्रकार का कोई वक्तव्य नहीं आना चाहिए? बाइबल में, प्रभु यीशु कहता है, 'उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, "हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?" तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, "मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ"' (मत्ती 7:22–23)। प्रभु यीशु ने ऐसा क्यों कहा? जो लोग बीमारों को चंगा करते हैं और परमेश्वर के नाम पर दुष्टात्माओं को निकालते हैं, जो परमेश्वर के नाम पर उपदेश देने के लिए यात्रा करते हैं, वे कुकर्मी क्यों हो गए हैं? ये कुकर्मी कौन हैं? क्या ये वो लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते? वे सभी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। वे परमेश्वर के लिए चीजों का त्याग भी करते हैं, स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाकर कर्तव्य निभाते हैं। लेकिन अपना कर्तव्य निभाते समय उनमें भक्ति और गवाही का अभाव होता है, इसलिए यह दुष्टता करना बन गया है। इसलिए प्रभु यीशु कहता है, 'हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो')। वचनों के इस अंश को पढ़ने के बाद, मैंने खुद को आँका और शर्मिंदा भी हुई। मैंने देखा कि मेरी सोच, विचार, मंशाएं और प्रेरणाएं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए नहीं थीं, बल्कि दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए थीं। जब मैंने अपने भाई-बहनों को मेरी जगह बहन कैथी पर अधिक ध्यान देते पाया, तो मुझे ईर्ष्या महसूस हुई, मैं होड़ करके आगे निकलना चाहती थी, मैंने यह भी चाहा की कि उसे दूसरी कलीसिया में ट्रांसफर कर दिया जाए। मैंने देखा, एक कलीसिया अगुआ के रूप में, मैंने कलीसिया के काम के हिसाब से लोगों के पोषण पर ध्यान नहीं देती थी, मैं कर्तव्य को अनदेखा कर गलत मार्ग पर चल रही थी, काबिलियत से जलती थी, शोहरत और रुतबे के पीछे भागने की हालत में जी रही थी। मैं उन कुकर्मियों जैसी ही थी जिनकी प्रभु यीशु निंदा करता है। भले ही उन्होंने तकलीफ़ उठाई और मेहनत की, मगर वे परमेश्वर के प्रति वफ़ादार नहीं थे, उन्होंने कोई गवाही नहीं दी, वे अपनी इज़्ज़त और रुतबे को बनाये रखने और दूसरों की नज़रों में ऊँचा दिखने में लगे थे। मैं भी वैसी ही थी। मैंने अपने भाई-बहनों की प्रशंसा पाने के साथ अपनी इज़्ज़त और रुतबे को बनाये रखने के लिए तकलीफ़ उठाई और खुद को खपाया। जब मैं दिखावा करने में व्यस्त थी, तो अपने कर्तव्य को लेकर मेरी मंशाएं ठीक नहीं थीं, जिससे पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करना नामुमकिन हो गया। मेरी सहभागिता में कोई रोशनी नहीं थी, मैं नये सदस्यों की समस्याएं हल नहीं कर पा रही थी। ईर्ष्यालु होना सचमुच बुरी बात है और परमेश्वर को इससे नफ़रत है। प्रभु यीशु ने कहा था, "उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:22-23)। परमेश्वर उन लोगों से बहुत नफ़रत करता है जो बाहर से तो तकलीफ उठाते दिखते हैं, मगर वे सिर्फ अपनी मंशाओं और इरादों को पूरा करने के लिए काम करते हैं। वे सिर्फ अपने फायदे के लिए काम करते हैं। परमेश्वर को संतुष्ट करने या गवाही देने के लिए कुछ भी नहीं करते। यही वजह है कि इतना सारा काम करने के बाद भी, परमेश्वर इसकी मंज़ूरी नहीं देते। मैं भी यही कर रही थी। कहने को तो मैं अपना कर्तव्य निभा रही थी, मगर मैंने सत्य की खोज करने या आत्मचिंतन करके खुद को जानने की कोशिश नहीं की, मैंने अपनी पार्ट्नर की खूबियों से सीखने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, मैं इज़्ज़त और रुतबे के पीछे भागने के गलत मार्ग पर चल पड़ी, मैं उन कुकर्मियों से बिल्कुल भी अलग नहीं थी। सत्य खोजने के बजाय शोहरत और रुतबे के लिए परमेश्वर में विश्वास, परमेश्वर के विरोध का मार्ग है। बाहर से हम चाहे त्याग करें या खुद को खपाएं, इसे परमेश्वर मंज़ूर नहीं करेगा। मैंने सोचा कि कैसे पौलुस ने सिर्फ ताज पाने, दूसरों नज़रों में ऊँचा दिखने और अपनी पूजा करवाने के लिये खुद को इतना अधिक खपाया। उसने कभी अपने भ्रष्ट स्वभाव को बदलने की कोशिश नहीं की, उसका हर काम परमेश्वर की नहीं, खुद की गवाही देने के लिए था। अंत में, परमेश्वर ने उसे दंड दिया। अगर मैं स्वार्थी इच्छाओं के साथ अपना कर्तव्य निभाती रही, तो मैं परमेश्वर के घर के कार्य में रुकावट डालकर उसे बिगाड़ दूँगी, अनजाने में पौलुस की तरह कुकर्मी बन जाऊँगी, और वो मुझे ठुकराकर हटा देगा। इस बात का एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने इज़्ज़त और रुतबे के पीछे भागने की हालत में जी रही हूँ, अपनी बहन से ईर्ष्या करती हूँ, मैं उससे खुद की तुलना करके होड़ करती हूँ। परमेश्वर, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव को कर्तव्य में रोड़ा नहीं बनने देना चाहती, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव को ठीक करके अपनी बहन के साथ कर्तव्य निभाना चाहती हूँ। परमेश्वर, मुझे राह दिखाओ ताकि मैं इस समस्या को हल कर सकूँ।"

फिर, मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े। "हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, और अपनी स्वयं की हैसियत, प्रतिष्ठा और साख पर विचार मत कर। इंसान के हितों पर गौर मत कर। तुझे सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उसे अपनी पहली प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुझे परमेश्वर की इच्छा की परवाह करनी चाहिए, इस पर चिंतन करने के द्वारा आरंभ कर कि तू अपने कर्तव्य को पूरा करने में अशुद्ध रहा है या नहीं, क्या तूने वफादार होने के लिए अपना अधिकतम किया है, क्या अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास किया है और अपना सर्वस्व दिया है, साथ ही क्या तूने अपने कर्तव्य, और परमेश्वर के घर के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार किया है। तुझे इन चीज़ों के बारे में विचार करने की आवश्यकता है। इन चीज़ों पर बार-बार विचार कर, और तू आसानी से अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभा पाएगा। जब तेरी क्षमता कमज़ोर होती है, तेरा अनुभव उथला होता है, या जब तू अपने पेशे में दक्ष नहीं होता है, तब सारी ताकत लगा देने के बावजूद तेरे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, और परिणाम बहुत अच्छे नहीं हो सकते हैं। जब तू कार्यों को करते हुए अपनी स्वयं की स्वार्थी इच्छाओं या अपने स्वयं के हितों के बारे में विचार नहीं करता है, और इसके बजाय हर समय परमेश्वर के घर के कार्य पर विचार करता है, परमेश्वर के घर के हितों के बारे में लगातार सोचता रहता है, और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाते हो, तब तुम परमेश्वर के समक्ष अच्छे कर्मों का संचय करोगे। जो लोग ये अच्छे कर्म करते हैं, ये वे लोग हैं जिनमें सत्य की वास्तविकता होती है; इन्होंने गवाही दी है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो')। परमेश्वर के वचनों से मुझे अभ्यास का मार्ग मिला। हमें दूसरों के सामने शाबाशी और प्रशंसा के लिए काम नहीं करना चाहिए। हमें अपने रुतबे को किनारे करके परमेश्वर के घर के हितों के बारे में सोचना चाहिए, अपने कर्तव्य को सबसे आगे रखना चाहिए। यही परमेश्वर की इच्छा है। बहन कैथी सुसमाचार कार्य अच्छे से करती थी और जिम्मेदार भी थी। मुझे उससे ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए थी। मुझे उसकी खूबियों से सीखकर अपनी कमियों की भरपाई करनी चाहिए थी, उसके साथ मिल-जुलकर अपना कर्तव्य निभाना था।

एक बार, मैं अपने चचेरे भाई को सुसमाचार सुनाना चाहती थी, मगर उसके मन में गहरी धार्मिक धारणाएं थीं, उसे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही कैसे दूँ, समझ नहीं पाई यह डर भी था कि मेरी सहभागिता स्पष्ट नहीं होगी, तो मैं चाहती थी कि कोई बहन मेरे साथ चले, मैंने बहन कैथी के बारे में सोचा, मगर मुझे संकोच हुआ। मैंने सोचा, "उसे अपने साथ ले गई, तो क्या मैं कमतर नहीं लगूँगी? ऐसा नहीं लगेगा कि मैं परमेश्वर के कार्य की गवाही नहीं दे सकती या धार्मिक धारणाएं नहीं मिटा सकती? मेरे भाई-बहनों को पता चला, तो क्या वे मेरे बारे में नीचा सोचेंगे? अगर बहन कैथी ने मेरे चचेरे भाई की धार्मिक धारणाओं को मिटा दिया तो मेरे भाई-बहन पक्के तौर पर उसके बारे में ऊँचा सोचेंगे।" यह विचार मन में आने पर, मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से इज़्ज़त और शोहरत के लिए होड़ कर रही हूँ, तो मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की। फिर, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े, "तुम्हें इन चीज़ों को छोड़ देने और अलग कर देने का तरीका सीखना चाहिये। तुम्हें दूसरों की अनुशंसा करना, और उन्हें दूसरों से विशिष्ट बनने देना सीखना चाहिए। संघर्ष मत करो या जैसे ही दूसरों से अलग बनने या कीर्ति हासिल करने का अवसर मिले, तुम ज़ल्दबाजी में उसका फ़ायदा उठाने के लिये मत दौड़ पड़ो। तुम्हें पीछे रहने का कौशल सीखना चाहिये, लेकिन तुम्हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो वफ़ादारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुम जितना अधिक अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को छोड़ते हो, और जितना अधिक अपने हितों को अलग रखते हो, तुम उतने ही शांतचित्त बनोगे, तुम्हारे हृदय में उतनी ही ज़्यादा जगह खुलेगी और तुम्हारी अवस्था में उतना ही अधिक सुधार होगा। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धा करोगे, तुम्हारी अवस्था उतनी ही अंधेरी होती जाएगी। अगर तुम्हें इस बात पर विश्वास नहीं है, तो इसे आज़माकर देखो!" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया। मुझे अपने अहंकार को किनारे कर उसके साथ सहयोग करना था। इस तरह अभ्यास करने से मेरे कर्तव्य में मदद मिलेगी। अगर मैं उससे ईर्ष्या करती रही, इज़्ज़त और शोहरत के लिए उससे होड़ करती रही, तो मेरी हालत अधिक नकारात्मक और अंधकारमय हो जाएगी, क्योंकि शोहरत और रुतबे के पीछे भागना शैतान का मार्ग है। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं जानती हूँ कि मेरा स्वभाव अब भी भ्रष्ट है। मैं अपनी बहन से ईर्ष्या करती हूँ, इज़्ज़त और शोहरत के लिए उससे होड़ करती हूँ, मगर मुझे इज़्ज़त और रुतबे की चाह को किनारे रखना चाहिए। मुझे राह दिखाओ ताकि मैं दैहिक इच्छाओं को त्यागकर सत्य पर अमल कर सकूँ, तुम्हें संतुष्ट कर सकूं।" प्रार्थना करके मुझे काफी सुकून मिला, मैंने बहन कैथी को अपनी स्थिति के बारे में बताया। वह फौरन तैयार हो गई, उसने इस पर मेरे साथ चर्चा भी की। यह देखकर मेरा दिल भर आया। मैंने सोचा कि कैसे मैं हमेशा अपनी इज़्ज़त के लिए जी रही थी और बहन कैथी के साथ सामंजस्य का दिखावा कर रही थी, मगर उसे कभी मेरी असली सोच का पता नहीं चला। इसलिए, मैंने तय किया कि मैं उसे सब खुलकर बता दूँगी।

रात के खाने के बाद, मैंने उससे बात की, मैंने अपनी सारी भ्रष्टता उसके सामने उजागर कर दी। यह सब सुनकर उसने कहा, "कोई बात नहीं। इस मामले में तो मैं आपसे भी ज़्यादा भ्रष्ट हूँ। इस तरह की सहभागिता बहुत अच्छी है।" सब खुलकर बताने परमुझे राहत महसूस हुई, और उसके प्रति अपनी ईर्ष्या का त्याग कर पाई। अब मैं बहन कैथी के साथ मिलकर कर्तव्य निभा सकती हूँ, मुझे इसमें काफी सुरक्षा और सुकून का एहसास होता है। यह सब परमेश्वर के वचनों के न्याय का प्रभाव था। सत्य पर अमल करने से हमें शांति और सुकून महसूस होता है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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