जंग में शैतान को हराना

14 सितम्बर, 2019

चैंग मोयांग ज़ेंगज़ो सिटी, हेनान प्रदेश

परमेश्वर के वचन कहते हैं: "जब तुम देह के विरुद्ध विद्रोह करते हो, तो तुम्हारे भीतर अपरिहार्य रूप से एक संघर्ष होगा। शैतान लोगों से अपना अनुसरण करवाने की कोशिश करेगा, उनसे देह की धारणाओं का अनुसरण करवाने की कोशिश करेगा और देह के हितों को बनाए रखेगा—किंतु परमेश्वर के वचन भीतर से लोगों को प्रबुद्ध करेंगे और उन्हें रोशनी प्रदान करेंगे, और उस समय यह तुम पर निर्भर करेगा कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो या शैतान का। परमेश्वर लोगों से मुख्य रूप से उनके भीतर की चीज़ों से, उनके उन विचारों और धारणाओं से, जो परमेश्वर के मनोनुकूल नहीं हैं, निपटने के लिए सत्य को अभ्यास में लाने के लिए कहता है। पवित्र आत्मा लोगों के हृदय में स्पर्श करता है और उन्हें प्रबुद्ध और रोशन करता है। इसलिए जो कुछ होता है, उस सब के पीछे एक संघर्ष होता है : हर बार जब लोग सत्य को अभ्यास में लाते हैं या परमेश्वर के लिए प्रेम को अभ्यास में लाते हैं, तो एक बड़ा संघर्ष होता है, और यद्यपि अपने देह से सभी अच्छे दिखाई दे सकते हैं, किंतु वास्तव में, उनके हृदय की गहराई में जीवन और मृत्यु का संघर्ष चल रहा होता है—और केवल इस घमासान संघर्ष के बाद ही, अत्यधिक चिंतन के बाद ही, जीत या हार तय की जा सकती है। कोई यह नहीं जानता कि रोया जाए या हँसा जाए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। हर बार जब मैं परमेश्वर के वचनों से इस अंश को सुना करती थी, तो मैं इस बात का चिंतन करने लगती थी: क्या सत्य का अभ्यास करना वाकई इतना कठिन है? जब लोग सत्य को न समझते हों, तो वे इसका अभ्यास नहीं कर सकते हैं। एक बार वे इसे समझ जाएं, तो क्या परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप काम करना ही पर्याप्त न होगा? क्या यह "उनके हृदय की गहराई में जीवन और मृत्यु का संघर्ष चल रहा होता है" की भांति गंभीर हो सकता है? यह तब तक नहीं था जब तक कि, अपने वास्तविक अनुभव के माध्यम से, मैंने यह नहीं जाना कि सत्य का अभ्यास करना असल में आसान काम नहीं है। परमेश्वर ने जो भी कहा वह पूरी तरह से सत्य से जुड़ा हुआ है; इसमें थोड़ी सी भी अतिशयोक्ति नहीं है।

कुछ समय पहले, मुझे ऐसा लगा कि मेरे साथ काम करने वाली एक बहन काफी अहंकारी थी और मुझे नीचा दिखाया करती थी; मैं एक असहज स्थिति में फंसने के स्थान पर और कुछ नहीं कर सकती थी। उसकी वजह से मैं अपने आप प्रतिबंध लगाने लगी। मैं अपने काम में इसे अलग नही कर सकी; मैं अपनी बातों में वशवर्ती होती थी और अपने बर्तावों में इस हद तक सावधान रहती थी कि मैं कुछ बोलने या कुछ काम करने के कुछ देर के बाद उसके भाव देखती, और मैं अपने काम के बोझ का दायित्व नहीं उठा रही थी। मैं पूरी तरह से अंधकारपूर्ण जिंदगी जी रही थी। भले ही मैं यह जानती थी कि मैं मेरी परिस्थिति खतरनाक है लेकिन मैं खुद को इस स्थिति से नहीं निकाल पाती थी। इस यातना के बीच में, मैं बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करती थी, फिर मैंने सोचा: अपनी बहन के साथ दिल से दिल की बात करते हुए, रोशनी के मार्ग को खोजो। लेकिन जब मैं अपने बहन के दरवाजे पर पहुंची, तो मुझे कुछ एक अलग विचार आया: जब मैं इस बारे में बात करूंगी तो मेरी बहन क्या सोचेगी? क्या वह ऐसा कहेगी कि कि मेरे दिमाग में बहुत छोटी-छोटी बातें हैं, मैं बहुत बड़ी परेशानी हूं, मुझसे निपटना बहुत कठिन है? जैसे ही मेरे मन में ये विचार आए, मानो मैंने उसकी आंखों में वह मजाकिया तिरस्कार देख लिया, वह घृणित बर्ताव। अचानक ही, मेरा साहस बिल्कुल गायब हो गया और मैं बिल्कुल निस्तेज हो गई, मानों मेरा पूरा शरीर जकड़ गया हो। एक बार फिर, परमेश्वर के वचनों ने मेरी अंदरूनी प्रबुद्धता को जगाया: "यदि तुम्हारे पास ऐसी बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ)। मैं चुपचाप खुद को प्रोत्साहित किया: बहादुर बनो, सरल और स्पष्ट बनो। सत्य का अभ्यास करने में शर्म करने जैसी कोई बात नहीं! लेकिन उसी पल, एक विपरीत आभास ने मुझे झटका दिया: कुछ भी मत कहो— अन्य लोग संभवत: यह सोचते हैं कि तुम ठीक हो। अगर तुम इसके बारे में बात करोगी तो वे लोग सोचेंगे कि तुम्हारे दिमाग में बहुत सी छोटी-छोटी बातें चलती रहती हैं और फिर वे तुम्हें पसंद नहीं करेंगे। ओह! फिर तो बेहतर है कि कुछ न कहा जाए! चूंकि मैं फिर से हिचकिचाई, मैंने सोचा: ईमानदार व्यक्ति होने का अर्थ है कि तुम शर्मीले व भयभीत नहीं हो सकते हो! लेकिन जैसे ही मुझे थोड़ी सी ताकत मिली, शैतान के विचार फिर से उमड़ना शुरू हो गए: अगर तुमने इसके बारे में बात की तो दूसरे लोग तुम्हारा असली रंग जान जाएंगे, और तुम निंदनीय हो जाओगी! मेरा दिल अचानक भींच गया। मेरा दिल अच्छाई व बुराई, अंधेरे व प्रकाश के बीच जंग में इसी तरह आगे-पीछे होता रहा। मैं साफ तौर पर जानती थी: बात न करने की मेरी चाहत घमंड के कारण मेरे खुद के चेहरे की सुरक्षा करने की इच्छा थी। लेकिन इस तरह से, मेरी परिस्थिति का हल नहीं निकलेगा और इससे मेरे काम में कोई फायदा नहीं मिलना था। इस समस्या को हल करने के लिए संवाद करना ही मेरे काम के लिए फायदेमंद होगा और यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होगा। लेकिन जिस पल मेरे मन में यह विचार आया कि जैसे ही उसे यह पता चलेगा, तो हो सकता है कि वह मेरा सम्मान करे, वैसे ही मैंने सत्य का अभ्यास करने का अपना साहस खो दिया। मुझे अहसास हुआ कि अगर मैंने अपनी खुद की बुराई के बारे में बात की, तो ऐसा लगता था कि मैं अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं हो पाउंगी। एक पल के लिए मैं बहुत ही ज्यादा परेशान हो गई थी, और मेरे दिल में बहुत दर्द था मानो कि वह आग से जल रहा हो। न चाहते हुए भी मेरी आंखों से आंसू निकलने लगे, और निस्सहाय होकर अपने दिल में परमेश्वर की दोहाई देने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया जा सकता था। ऐसे गंभीर क्षण में, परमेश्वर के वचनों ने एक बार फिर मेरे दिमाग में आशा की किरण जगाई: "युवाओं को सत्य से रहित नहीं होना चाहिए, न ही उन्हें ढोंग और अधर्म को छिपाना चाहिए...। युवा लोगों में अँधेरे की शक्तियों के दमन के सामने समर्पण न करने और अपने अस्तित्व के महत्व को रूपांतरित करने का साहस होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे बेचैन दिल को अंतत: शांत कर दिया: चाहे जो भी हो जाए, लेकिन अब मैं और शैतान की हंसी का पात्र नहीं बन सकती! मैं परमेश्वर के विरुद्ध और विद्रोह नहीं कर सकती; मुझे खुद को त्यागना होगा और सत्य का अभ्यास करना होगा। एक बार जब मैंने अपनी बहन को खोजने का संकल्प ले लिया और उसके साथ दिल से दिल का संवाद कर लिया, तो इसके नतीजे मेरी सोच से भी अच्छे निकले। न केवल मेरी बहन ने मुझे नीची दृष्टि से नहीं देखा, बल्कि उसने अपनी भ्रष्टता स्वीकारी, अपनी कमियों पर विचार किया और उन्हें पहचाना, और मुझसे यह कहते हुए माफ़ी मांगी कि भविष्य में कोई समस्या आने पर हमें एक दूसरे के साथ सत्य पर संगति करनी चाहिए ताकि हम पारस्परिक समझ पा सकें, सत्य को सिद्धांत के रूप में देख सकें, एक दूसरे की ताकतों से अपनी कमियों को पूरा कर सकें, कलीसिया का कार्य एक साथ अच्छे से कर सकें। इस तरह से बिना हथियार की जंग खत्म होगी। मेरी समस्या का समाधान हो गया, और मेरा दिल भी हल्का हो गया। जब मैंने अपने दिल में उस समय की अंदरूनी जंग के बारे में वापस सोचा तभी मुझे यह अहसास हुआ कि अपनी इज्जत बचाने को लेकर मेरी व्यर्थ चिंता कितनी गंभीर थी। यह मेरी उस हद तक मेरी जिंदगी का हिस्सा था कि मैं अंधकार में जी रही थी, परमेश्वर के आह्वान का बार-बार सामना कर रही थी लेकिन मैं इससे स्वतंत्र होने में सक्षम नहीं थी। मैं सत्य को समझ गई थी लेकिन इसका अभ्यास नहीं कर पाई थी; मैं अंतर्मन से वाकई शैतान द्वारा बहुत भ्रष्ट हो गई थी! मैंने वाकई यह भी अनुभव किया कि सत्य का अभ्यास करना और ईमानदार व्यक्ति बनना आसान काम नहीं है।

इस बात का अनुभव करने के बाद ही मैं परमेश्वर के इन वचनों को समझ पाई: "हर बार जब लोग सत्य को अभ्यास में लाते हैं या परमेश्वर के लिए प्रेम को अभ्यास में लाते हैं, तो एक बड़ा संघर्ष होता है, और यद्यपि अपने देह से सभी अच्छे दिखाई दे सकते हैं, किंतु वास्तव में, उनके हृदय की गहराई में जीवन और मृत्यु का संघर्ष चल रहा होता है" ये वचन मानवता की भ्रष्ट प्रकृति के बारे में कहे गए थे क्योंकि लोगों की शैतानी प्रकृति ने शरीर में बहुत गहराई तक जड़ जमा ली है। मनुष्य इसकी गिरफ्त में है और इससे बंधा हुआ है, और यह हमारी जिंदगी बन गया है। जब हम सत्य का अभ्यास करते हैं, जब हम अपनी खुद की शारीरिक जिंदगियों को त्याग देते हैं, तो यह प्रक्रिया फिर से जन्म लेने, मरने और पुन:जीवित होने के समान है। यह जीवन व मृत्यु के लिए वाकई एक प्रतियोगिता और लड़ाई है, और यह काफी दर्दनाक प्रक्रिया है। जब हम अपनी खुद की प्रकृति को सच में नहीं जानते हैं और जब हम में पीड़ा सहने या कीमत चुकाने की इच्छा नहीं होती है, तो हम सत्य का अभ्यास बिल्कुल भी नहीं कर सकते हैं। पूर्व में, मैं सोचती थी कि सत्य का अभ्यास करना आसान है, ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे अपनी खुद की भ्रष्ट प्रकृति की समझ नहीं थी और मैं नहीं जानती थी कि मेरा भ्रष्टाचार कितना गहरा है। भविष्य में, मैं अनुभव के माध्यम से खुद को और भी गहराई से जानने, सभी चीजों में सत्य का अभ्यास करने की कोशिश करने, और खुद को त्यागने की इच्छा रखती हूं!

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