सबक जो मैंने बर्खास्त होने से सीखे

03 अगस्त, 2022

क्षीयोवें, स्पेन

2018 में मैं वीडियो-कार्य का प्रभारी था। कभी-कभी एक ही समय कई वीडियो-कार्य आ जाते, और प्रोडक्शन के लिए सही लोगों को सौंपे जाने की जरूरत होती। हर बार मैं जल्दी से सोचता कि काम कैसे बाँटा जाए, पर जब मैं अपने साथी भाई-बहनों को अपनी आवंटन-योजना के बारे में बताता, तो वे हमेशा मेरी योजना में कुछ जोड़ते और सुधार पेश करते। कभी-कभी वे बताते कि मैं कहाँ ठीक नहीं सोच रहा, और जब वे बहुत सारे सुझाव देते, तो मुझे थोड़ी शर्मिंदगी महसूस होती। जिस तरह से वे मेरी समस्याएँ बताते, उससे मुझे हमेशा ऐसा लगता कि मेरी कार्य-क्षमता बहुत अच्छी नहीं। मैं सोचता कि टीम-अगुआ के रूप में दूसरे मेरे बारे में क्या सोचते हैं। मेरे दो साथियों में से एक में उत्कृष्ट कार्य-क्षमता थी। दूसरे के पास काफी पेशेवर अनुभव था, और उसकी लंबे समय से परमेश्वर में आस्था थी। दोनों समस्याओं पर काफी व्यापक रूप से विचार करते थे। मैं हमेशा सोचता, "भले ही मैं कुछ समस्याएँ देख पाऊँ और मेरे पास कुछ अच्छे विचार और सुझाव हों, जब करने का समय आएगा, तो हर कोई सोचेगा कि यह हम तीनों के बीच संयुक्त चर्चा का परिणाम है, और मेरा योगदान नहीं दिखेगा। जैसे-जैसे समय बीतेगा, भाई-बहनों को लग सकता है कि टीम-अगुआ के रूप में कुछ वीडियो बनाने के अलावा, समूह द्वारा किए गए काम में मेरा ज्यादा योगदान नहीं है।" जितना मैंने इस बारे में सोचा, मुझे उतना ही बुरा लगा, और मैं सोचने लगा, "अगर मैं वे चीजें, जो मेरे साथी नहीं कर सकते, थोड़ा ज्यादा और बेहतर कर पाऊँ, तो क्या मेरी भूमिका और जाहिर नहीं होगी?" मुझे पता था कि मेरे पेशेवर कौशल समूह में काफी अच्छे थे, और भाई-बहनों के मुताबिक मेरा जीवन-प्रवेश अच्छा था, तो मैंने सोचा कि अगर मैं भाई-बहनों की हालत सुधारने में थोड़ा और समय दूँ, और अपना पेशेवर ज्ञान थोड़ा और साझा करूँ, तो भाई-बहन मेरीा आदर करेंगे। इसलिए, चाहे उन्हें जरूरत होती या नहीं, समस्याएँ होतीं या नहीं, मैं हमेशा उनकी हालत के बारे में पूछने और उनके साथ संगति करने चला जाता। मैं अक्सर तकनीकी जानकारी भी खोजता और उनसे साझा करने के लिए पेशेवर कौशल को संक्षिप्त करता। यहाँ तक कि इससे मेरे वीडियो-प्रोडक्शन के काम में देरी होती, भी मैं ये चीजें करने पर जोर देता। मुझे यह कीमत चुकाना वाजिब लगता था।

चूँकि मेरे इरादे गलत थे, इसलिए मैं चीजें ठीक से सँभाल नहीं पाया। मेरे कार्य का असर तेजी से कम हुआ, और हमेशा समस्याएँ आती रहीं। एक बार मैंने एक बुनियादी गलती कर दी, जो कोई नौसिखिया भी नहीं करता, जिससे मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। मैंने सोचा, "टीम-अगुआ के रूप में मेरा ऐसी बुनियादी गलती करना हास्यास्पद है। अगर मैंने अपनी छवि बहाल करने के लिए कुछ नहीं किया, तो मैं टीम-अगुआ के रूप में कैसे चल पाऊँगा?" इसलिए उसके बाद, तौहीन से बचने के लिए, जब भी मुझे कोई कार्य मिलता, मैं उसे आनन-फानन में भाई-बहनों को सौंप देता और फिर अपने काम में डूब जाता। मैं समूह में कार्य की प्रगति के बारे में बिलकुल न पूछता, जिससे कई बार मैं समय पर काम की प्रगति न जानने के कारण काम सौंपने में देरी कर बैठता। मैं उस समय बहुत सुन्न था। जब ये चीजें हुईं, तो मैंने आत्मचिंतन करने के बारे में भी नहीं सोचा। बाद में, काम की जरूरतों के कारण, मैंने और मेरे साथियों ने टीम के कई नए सदस्यों को प्रशिक्षित किया। मैंने सोचा कि मेरे द्वारा प्रशिक्षित बहन ली की नींव दूसरों से ज्यादा मजबूत है, और अगर मैं जल्दी से उसे विकसित कर पाऊँ, तो मैं साबित कर सकता हूँ कि लोगों को विकसित करने की मेरी क्षमता अच्छी है। पर उसके साथ कुछ समय के वास्तविक संपर्क के बाद मैंने पाया कि उसकी क्षमता औसत और गति काफी धीमी है। फिर मैं उतना सचेत या विचारशील नहीं रहा, जितना उसे सिखाते वक्त था। जब वह सवाल पूछती, तो जैसे-तैसे जवाब दे देता। कभी-कभी, जब वह मेरे जवाब न समझ पाती, तो उसे समझाने में भी बहुत परेशानी होती। कुछ समय बीतने के बाद उसने न केवल प्रगति नहीं की, बल्कि प्रोडक्शन-कार्य और मुश्किल हो गया। बाद में, मेरी साथी ने बहन ली को मेरे साथ प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया, और मैंने सोचा, "अब तुम बस मेरी छवि पर हमला कर रही हो। मैं टीम-अगुआ हूँ। क्या बहन ली को विकसित करने के लिए मुझे तुम्हारी मदद चाहिए? इससे मैं पूरी तरह से अक्षम दिखूँगा, है न?" पर मुझे यह भी पता था कि मेरा प्रशिक्षण बेअसर है, तो मैं उसे एकदम नकार नहीं सका। मुझे अनिच्छा से सहमत होना पड़ा। अपनी छवि बचाने के लिए मैं खुद को साबित करने के और मौके चाहता था। एक बार, दूसरे समूह ने कुछ पेशेवर कठिनाइयों को लेकर मुझसे मदद माँगी। मैंने सोचा, "बड़ी मुश्किल से मौका मिला है। अगर मैं यह समस्या सुलझा पाया, तो भाई-बहन निश्चित रूप से मेरा आदर करेंगे, और मेरी प्रतिष्ठा अन्य समूहों में भी फैल सकती है।" लेकिन जब मैंने वास्तव में स्थिति पर गौर किया, तो मुझे पता चला कि समस्या से निपटने में बहुत समय और प्रयास लगेगा। उस समय, मेरे अपने काम के दायरे में पहले ही बहुत सारी समस्याएँ थीं, जिन्हें तत्काल हल करना जरूरी था, और दूसरे समूह की समस्या इतनी जरूरी नहीं थी। मैंने सोचा, मैं उनकी समस्या फिलहाल अलग रख देता हूँ। लेकिन मुझे लगा कि यह मेरे लिए अपनी छवि बहाल करने का अच्छा मौका है, मैं इसे गँवा नहीं सकता। इसके अलावा, मेरे साथी हमारे समूह में काम सँभाल सकते हैं। इस बार वे मेरे बिना कर सकते हैं। यह सोचकर मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ा।

मैंने अपना सारा समय यह सोचने में बिताया कि दूसरों से अपना आदर कैसे करवाऊँ, इसलिए समूह के काम पर मेरा बिलकुल भी ध्यान नहीं था, इस कारण वीडियो-निर्माण का काम बहुत धीमा हो गया था। साथ ही, चूँकि मैंने कार्य गलत तरीके से बाँटा था और कामों का ढेर लगा था, तो कार्य के प्रभाव में तेजी से गिरावट आई। एक निरीक्षक के रूप में मुझे नहीं पता था कि ये समस्याएँ कैसे हल करूँ, और मेरी हालत बद से बदतर होती गई। हालाँकि काम पूरे करने के लिए मैंने रोज ज्यादा समय तक काम किया, फिर भी मैंने अच्छे नतीजे नहीं दिए। पता चलने पर मेरा अगुआ यह कहते हुए मुझसे निपटा कि मैं अपने कर्तव्य में प्रसिद्धि और हैसियत के पीछे दौड़ रहा हूँ और अपने कार्य में विशिष्ट समस्याओं का समाधान नहीं कर रहा। इसके बाद, हालाँकि मैंने कुछ बाहरी बदलाव किए, लेकिन कभी खुद को जानने की कोशिश नहीं की, और जब चीजें हुईं, तो मैंने हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत की रक्षा करने की कोशिश की। बाद में, बहन ली का तबादला कर दिया गया, क्योंकि वह स्वतंत्र रूप से वीडियो नहीं बना पाती थी। जाने से पहले उसने कार्य-सारांश में अपने विचार लिखे, और जिक्र किया कि जब मैंने उसे पेशेवर कौशल सिखाए थे, तो उसे कई कठिनाइयाँ हुईं, जिन्हें वह हल नहीं कर पाई, और उसके पेशेवर कौशल तभी सुधरे, जब बहन लियू ने उसे सिखाना शुरू किया। यह पढ़कर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने सोचा, "मेरे अगुआ और साथी उसे यह कहते देखेंगे, तो क्या सोचेंगे? क्या वे नहीं सोचेंगे कि मैं कुछ नहीं कर सकता?" अपनी हैसियत और छवि बचाने के उपाय के रूप में, मैं बहन ली की समस्याएँ बताने अपने अगुआ और साथियों के पास गया, जानबूझकर उसकी क्षमता कम आँकी, बढ़ा-चढ़ाकर बताया कि कैसे उसने अपने काम जैसे-तैसे निपटाए और अक्सर बहस की, और उसकी मानवता की कमियों पर भरपूर जोर दिया। मुझे आश्चर्य हुआ जब मेरे अगुआ ने कहा, "अगर यह सच है, तो वह अपने वर्तमान सिंचन-कार्य के लिए सही नहीं हो सकती।" जब मैंने यह सुना तो मैं सन्न रह गया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे शब्दों का नतीजा यह हो सकता था। अगर मेरे कहने के कारण बहन ली ने वाकई अपना काम गँवा दिया, तो मैं बुराई कर रहा हूँगा। मैं अपने अगुआ को समझाना तो चाहता था, पर मुझे याद आया कि पहले ही सबके मन में मेरी बुरी छवि थी। अगर मैं इस बारे में ईमानदारी बरतता, तो मैं अपने काम में बेकार तो दिखता ही, दूसरे लोग सोचते कि मेरी मानवता खराब है। तो, मैंने अगुआ से गोलमोल कह दिया, "आपको इसकी जाँच करनी चाहिए।" बाद में, चीजों की जाँच और पुष्टि करने के बाद, मेरे अगुआ ने पाया कि बहन ली की समस्याएँ उतनी गंभीर नहीं थीं, जितनी मैंने बताई थीं, और उसका तबादला नहीं किया।

इस बीच, चूँकि मैं प्रसिद्धि और हैसियत के पीछे अड़ा था और भाई-बहनों के मूल्यांकन के आधार पर बदलने से इनकार कर दिया, मेरे अगुआ ने कहा कि मैं अपने काम में गैरजिम्मेदार हूँ, व्यावहारिक काम नहीं करता, और केवल खुद को अच्छा दिखाने के लिए चीजें करता हूँ, और इसलिए मुझे बरखास्त कर दिया। मुझे इसका पता नहीं चला। मैं अपने काम में रोज इतना व्यस्त रहा, और इसका नतीजा ऐसा रहा। मैंने सोचा, अगर भाई-बहनों को मेरी बरखास्तगी का कारण पता चला, तो वे निश्चित रूप से कहेंगे कि मुझमें खराब मानवता है और मैं सत्य का अनुसरण नहीं करता। मैं भविष्य में उन सबका सामना कैसे करूँगा? यह सोचकर मुझे एक अकथनीय दुख महसूस हुआ, पर मुझे पता था कि चाहे जो हो, सबसे पहले मुझे आज्ञापालन करना था। मैंने खुद यह रास्ता अपनाया था, और मैं किसी और को दोष नहीं दे सकता था। उस दौरान, मैं अपनी समस्याओं पर चिंतन करना चाहता था, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर अपनी समस्याएँ समझने में राह दिखाने को कहा।

बाद में, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन खाए-पिए और ऐसा अंश पाया, जो मेरी हालत बखूबी बताता था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मसीह-विरोधी रोज केवल प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए जीते हैं, वे केवल हैसियत के जाल में मौज-मस्ती करने के लिए जीते हैं, वे बस इसी बारे में सोचते हैं। यहाँ तक कि जब वे कभी-कभी कोई छोटा-मोटा कष्ट उठाते हैं या कोई मामूली कीमत चुकाते हैं, तो वह भी हैसियत और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए होता है। हैसियत के पीछे दौड़ना, सत्ता धारण करना और एक आसान जीवन जीना वे प्रमुख चीजें हैं, जिनके लिए मसीह-विरोधी परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद हमेशा योजना बनाते हैं, और तब तक हार नहीं मानते, जब तक कि वे अपने लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। अगर कभी उनके दुष्कर्म उजागर हो जाते हैं, तो वे घबरा जाते हैं, मानो उन पर आकाश गिरने वाला हो। वे न तो खा पाते हैं, न सो पाते हैं, और बेहोशी की-सी हालत में प्रतीत होते हैं, मानो अवसाद से ग्रस्त हों। जब लोग उनसे पूछते हैं कि क्या समस्या है, तो वे झूठ बोलते हुए कहते हैं, 'कल मैं इतना व्यस्त रहा कि पूरी रात सो नहीं पाया, इसलिए बहुत थक गया हूँ।' लेकिन वास्तव में, इसमें से कुछ भी सच नहीं होता। वे ऐसा इसलिए महसूस करते हैं, क्योंकि वे लगातार सोच रहे होते हैं, 'मेरे द्वारा किए गए बुरे काम उजागर हो गए हैं, तो मैं अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत कैसे बहाल कर सकता हूँ?' वे लंबे समय तक समझ नहीं पाते कि क्या करें, इसलिए निराश रहते हैं। कभी-कभी सूनी निगाहों से एक तरफ ताकते रहते हैं, और कोई नहीं जानता कि वे क्या देख रहे हैं। यह समस्या उन्हें अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने पर मजबूर कर देती है, वे हर तरह का विचार मन में लाते हैं, न खाने की इच्छा होती है, न पीने की। इसके बावजूद, वे अभी भी कलीसिया के कार्य की परवाह करने का दिखावा करते हैं, और लोगों से पूछते हैं, 'सुसमाचार का कार्य कैसा चल रहा है? इस महीने तुमने कितने लोग प्राप्त किए हैं? क्या हाल ही में भाई-बहनों ने कोई जीवन-प्रवेश प्राप्त किया है? क्या किसी ने कोई व्यवधान या गड़बड़ी पैदा की है?' कभी-कभी वे जानबूझकर कलीसिया के मामलों के बारे में पूछते हैं, लेकिन वे केवल दूसरों के सामने दिखावा कर रहे होते हैं। असल में तो वे यह सोच रहे होते हैं, 'मेरे बुरे काम उजागर हो गए हैं, मुझे क्या करना चाहिए? इसके परिणाम क्या होंगे? मैं यह स्थिति कैसे सुधार सकता हूँ?' वे कुछ नहीं कर सकते, मसीह-विरोधियों के जीवन में आने वाली यह सबसे बड़ी समस्या होती है। ... जहाँ भी मसीह-विरोधी मौजूद होते हैं, चाहे उनके प्रभाव का दायरा कुछ भी हो, चाहे वह कोई समूह हो या कोई कलीसिया, जब तक वे सत्ता में रहते हैं, परमेश्वर का कार्य और परमेश्वर की इच्छा वहाँ बाधित रहती है। परमेश्वर के घर की कार्यव्यवस्थाएँ क्यों नहीं लागू की जा सकतीं? यह तथ्य कि ऐसा होता है, यह साबित करता है कि मसीह-विरोधी कभी खुद को परमेश्वर के घर के कार्य में व्यस्त नहीं रखते, और वे कभी परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू नहीं करते। तो, मसीह-विरोधी पूरे दिन क्या करते हैं? वे प्रदर्शन और दिखावा करने में व्यस्त रहते हैं। वे केवल अपनी प्रसिद्धि, हितों और हैसियत से जुड़े काम करते हैं। वे दूसरों को धोखा देने, लोगों को अपनी ओर खींचने, एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए अपनी शक्ति सुदृढ़ करने में व्यस्त रहते हैं। वे केवल इस बात से चिंतित रहते हैं कि एक स्वतंत्र राज्य बनाने का उनका प्रयास सफल होता है या नहीं और वे पूरी शक्ति प्राप्त कर परमेश्वर के चुने हुए और ज्यादा लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं या नहीं। वे किसी और चीज की जरा भी परवाह नहीं करते। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश से सरोकार नहीं रखते, इस बात की परवाह तो बिलकुल नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा पूरी होती है या नहीं। वे केवल इस बात की चिंता करते हैं कि कब वे स्वतंत्र रूप से सत्ता धारण कर सकते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं, और परमेश्वर के साथ बराबरी पर खड़े हो सकते हैं। मसीह-विरोधियों की इच्छाएँ और महत्त्वाकांक्षाएँ वास्तव में बहुत बड़ी होती हैं! मसीह-विरोधी कितने भी मेहनती दिखाई पड़ते हों, वे मनमाफिक कार्य करते हुए केवल अपने ही उद्यमों में, और अपनी प्रसिद्धि, हितों और हैसियत से संबंधित चीजों में व्यस्त रहते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी जिम्मेदारियों या उस कर्तव्य के बारे में भी नहीं सोचते, जो उन्हें निभाना चाहिए, और एक भी ठीक काम नहीं करते। मसीह-विरोधी ठीक ऐसे ही होते हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दो)')। परमेश्वर के वचनों ने प्रकट किया कि मसीह-विरोधी सिर्फ प्रसिद्धि और हैसियत पर जीते हैं, व्यावहारिक कार्य नहीं करते। खासकर दूसरे उन्हें पहचानकर उनकी असलियत न जान पाएँ, इसके लिए वे अपनी हैसियत बनाए रखने के तरीके खोजने में दिमाग दौड़ाते हैं, और इसके लिए परमेश्वर के घर के काम में बाधा डालकर खुश होते हैं। मैंने टीम-अगुआ बनने के बाद से अपने क्रियाकलापों पर विचार किया, और देखा कि मैंने मसीह-विरोधी जैसा ही बरताव किया था। जब मैंने देखा कि मेरे साथी मुद्दों को ज्यादा व्यापक रूप से देखते हैं, और हमेशा मेरे काम में कमियों की ओर इशारा करते हैं, तो मैं डर गया कि भाई-बहन सोचेंगे कि मेरी क्षमता खराब है और मैं अपने काम में अक्षम हूँ, इसलिए मैंने इज्जत बचाने के लिए हर उपलब्ध मौका पाने की कोशिश की। मैंने जानकारी व्यवस्थित करने में समय लगाया, ताकि हर कोई देख सके कि मैं दायित्व उठाता हूँ और पेशेवर कौशल समझता हूँ। मैंने अपने समूह में आवश्यक समस्याएँ भी अलग रख दीं, जिन्हें हल करना जरूरी था, और दिखावे के लिए अपना समय दूसरे समूह की समस्या हल करने में लगाया। जब मैंने अपनी वीडियो में कोई गलती की, तो मुझे डर लगा कि भाई-बहन कहेंगे कि मेरे कौशल खराब हैं, तो मैंने समूह का काम एक तरफ रख दिया और अपने प्रोडक्शन-कार्यों में डूब गया, और अपनी योग्यता साबित करने के लिए उन्हें अच्छी तरह करने की उम्मीद की। मैंने खुद को साबित करने के लिए दूसरों को विकसित करने का भी इस्तेमाल किया, और जब पाया कि बहन ली इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही कि मैं अपनी क्षमताएँ दिखा सकूँ, तो मैं उसके प्रति उदासीन और लापरवाह हो गया, जिससे उसके लिए कौशलों में महारत पाना असंभव हो गया। मैंने सिर्फ प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे दौड़ना की चिंता की और वास्तविक कार्य न कर वो किया, जिससे मुझे फायदा हो। मैंने परमेश्वर के घर के कार्य में देरी की और उसे हानि पहुँचाई। क्या मेरा बर्ताव बिलकुल मसीह-विरोधी जैसा नहीं था? बहन ली को उसके काम से हटाए जाने के बाद भी मुझे कोई अपराध-बोध नहीं हुआ, और चूँकि उसने मेरी कमियाँ और त्रुटियाँ बताई थीं, इसलिए अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बचाने के लिए, उसका महत्व घटाकर और न्याय करके, लगभग उसका काम छुड़वाकर खुद को सही ठहराने और बचाने की कोशिश की। इस समय, मुझे आखिर एहसास हुआ कि मेरी प्रकृति बहुत शातिर, स्वार्थी और नीच है! परमेश्वर के घर के काम और बहन ली को हुए सभी नुकसानों के बारे में सोचकर, मैंने खास तौर से दुखी महसूस किया। इन क्रियाकलापों ने परमेश्वर में मेरे विश्वास का मार्ग कलंकित कर दिया! बाद में, अपराध कबूलने और पश्चात्ताप के लिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की।

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि रुतबे और प्रतिष्ठा के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं, वे भाई-बहनों का जीवन में प्रवेश बाधित करते हैं, यहाँ तक कि उनका दूसरों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाने-पीने और सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ता है। इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि जब लोग अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो इस तरह के व्यवहार और कार्यों को परमेश्वर के कार्य की सामान्य प्रगति को हद दर्जे तक नुकसान पहुँचाने और बाधित करने, और उसके चुने हुए लोगों के बीच परमेश्वर की इच्छा को सामान्य रूप से पूरा होने से रोकने के लिए शैतान के साथ सहयोग करने के रूप में वर्णित किया जा सकता है। वे जानबूझकर परमेश्वर का विरोध और उसके निर्णयों पर विवाद खड़ा करते हैं। यह लोगों के हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग प्रतिष्ठा और हैसियत जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक वाहक बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव परेशान करने और बिगाड़ने वाला होता है; उनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक)')परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे आखिर कि जब मैं हैसियत के पीछे दौड़ा, अपने निजी हितों की रक्षा की, और परमेश्वर के घर के कार्य की बिलकुल भी रक्षा नहीं की, तो सार में, मैं शैतान के सेवक के रूप में परमेश्वर के घर का कार्य बाधित कर रहा था, जिससे परमेश्वर घृणा कर शाप देता है। मुझे पता था कि मेरी कार्य-क्षमता और पेशेवर कौशल मेरे साथियों जितने अच्छे नहीं हैं। अगर मैं अपनी प्रतिष्ठा छोड़कर विनम्रतापूर्वक उनसे सीख पाता, और उनके साथ सामंजस्यपूर्वक सहयोग कर पाता, तो मैं अपने कौशल में कुछ प्रगति करता, और सत्य के कुछ सिद्धांत समझ पाता। यह मेरे लिए अच्छी बात होती। लेकिन मैंने इस अवसर को नहीं पहचाना। "टीम-अगुआ" के पद ने मेरा दिमाग पूरी तरह खराब कर दिया था। मैंने अपना समय वास्तविक कर्तव्य निभाने या अपने मुख्य कार्य में खपने में नहीं लगाया। इसके बजाय, मैंने दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए स्वांग रचने और दिखावा करने के तरीके ईजाद किए। मैंने वास्तव में काम किए बिना टीम-अगुआ के पद पर कब्जा कर लिया, और अपनी प्रगति में बाधा डाली और देरी की। परमेश्वर उन चीजों से घृणा करता है, जो मैंने कीं। मेरी बरखास्तगी परमेश्वर की धार्मिकता और मेरे लिए परमेश्वर की सुरक्षा थी। परमेश्वर के घर के काम को पहुँचे नुकसान की सोचकर मुझे विशेषकर अपराध-बोध हुआ। परमेश्वर ने मेरा उत्कर्ष किया, पर मैंने उसे नीचा दिखाया, और भाई-बहनों का भरोसा तोड़ा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर, मेरी हैसियत की इच्छा बहुत मजबूत है! इस प्रकाशन के बिना मैं नहीं जानता कि मैं कब तक सुन्न रहता। मैं इस नाकामी का उपयोग आत्मचिंतन के लिए करना चाहूँगा।"

बाद में, जब मैंने इस क्षेत्र में अभ्यास का मार्ग खोजा, तो मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े। "हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा या हैसियत पर विचार मत कर। तुझे सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उसे अपनी पहली प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुझे परमेश्वर की इच्छा की परवाह करनी चाहिए, इस पर चिंतन करने के द्वारा आरंभ कर कि तू अपने कर्तव्य को पूरा करने में अशुद्ध रहा है या नहीं, तू वफादार रहा है या नहीं, तूने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही क्या तूने अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार किया है। तुझे इन चीज़ों के बारे में विचार करने की आवश्यकता है। इन पर बार-बार विचार कर और इनका पता लगा, और तू आसानी से अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभा पाएगा" (अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन)। "यदि लोग केवल रुतबे और प्रतिष्ठा के पीछे भागते हैं, यदि वे केवल अपने हितों के पीछे भागते हैं, तो वे कभी भी सत्य और जीवन प्राप्त नहीं कर पाएँगे और अंतत: नुकसान उठाएँगे। परमेश्वर सत्य का अनुसरण करने वालों को ही बचाता है। यदि तुम सत्य स्वीकार नहीं करते, यदि तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव पर आत्मचिंतन करने और उसे जानने में असमर्थ रहते हो, तो तुम सच्चा पश्चात्ताप नहीं करोगे और तुम जीवन में प्रवेश नहीं कर पाओगे। सत्य को स्वीकारना और स्वयं को जानना तुम्हारे जीवन के विकास और उद्धार का मार्ग है, यह तुम्हारे लिए अवसर है कि तुम परमेश्वर के सामने आकर उसकी जाँच को स्वीकार करो, उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकार करो और जीवन और सत्य को प्राप्त करो। यदि तुम रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए, अपने हितों के लिए सत्य का अनुसरण करना छोड़ देते हो, तो यह परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को प्राप्त करने और उद्धार पाने का अवसर छोड़ने के समान है। तुम रुतबा, प्रतिष्ठा और अपने हित चुनते हो, लेकिन तुम सत्य का त्याग कर देते हो, जीवन खो देते हो और बचाए जाने का मौका गँवा देते हो। किसमें अधिक सार्थकता है? यदि तुम अपने हित चुनकर सत्य छोड़ देते हो, तो क्या तुम मूर्ख नहीं हो? सीधे शब्दों में कहें तो यह एक छोटे से फायदे के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। प्रतिष्ठा, रुतबा, धन और हित सब अस्थायी हैं, ये सब अल्पकालिक हैं, जबकि सत्य और जीवन शाश्वत और अपरिवर्तनीय हैं। यदि लोग रुतबे और प्रतिष्ठा के पीछे दौड़ाने वाला अपना भ्रष्ट स्वभाव दूर कर लें, तो वे उद्धार पाने की आशा कर सकते हैं। इसके अलावा, लोगों द्वारा प्राप्त सत्य शाश्वत होता है; शैतान उनसे यह छीन नहीं सकता, न ही कोई और उनसे यह छीन सकता है। तुमने अपने हितों का त्याग कर दिया, लेकिन तुमने सत्य और उद्धार प्राप्त कर लिया; ये तुम्हारे अपने परिणाम हैं। इन्हें तुमने अपने लिए प्राप्त किया है। अगर लोग सत्‍य पर अमल करने का चुनाव करते हैं, तो वे अपने हितों को गँवा देने के बावजूद परमेश्‍वर का उद्धार और शाश्‍वत जीवन हासिल कर रहे होते हैं। वे सबसे ज्‍़यादा बुद्धिमान लोग हैं। अगर लोग सत्‍य की क़ीमत पर लाभान्‍वित होते हैं, तो वे जीवन और परमेश्‍वर के उद्धार को गँवा देते हैं; वे सबसे ज्‍़यादा बेवकूफ़ लोग हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि अपने कर्तव्य में हमें अपने गलत इरादे छोड़ देने चाहिए। अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के बजाय हमें हर चीज में परमेश्वर के घर के हित पहले रखने चाहिए। केवल ऐसा अभ्यास ही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है, और जमीर और तर्क वाले व्यक्ति को यही करना चाहिए। इसे पहचानकर, मैंने सजगतापूर्वक अपना देह-सुख त्याग दिया, प्रतिष्ठा और हैसियत पर ध्यान देना बंद कर अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित किया। अपने प्रोडक्शन-कार्य पूरे करने के अलावा, मैंने अपने और दूसरों के काम में बार-बार होने वाली समस्याएँ और भटकाव भी लिखे, और चर्चा और समाधान के लिए उन्हें टीम के अगुआओं और भाई-बहनों के सामने रखा। ऐसे अभ्यास से सभी को लाभ हुआ, और मैं अपने पेशेवर कौशलों में प्रगति कर पाया। यह नतीजा देख मैं परमेश्वर का बहुत आभारी था। यह सभी का एक दिल और एक दिमाग से अपने कर्तव्य निभाने का नतीजा था। अतीत में, मैंने हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बचाने की कोशिश की। मैंने हमेशा अपनी छवि सुधारने और कर्तव्य में दिखावा करने के लिए चीजें कीं, मैंने कोई व्यावहारिक समस्या हल नहीं की, और अपने पीछे सिर्फ अपराध ही छोड़े। लेकिन जब मैंने अपनी प्रतिष्ठा के बारे में सोचना बंद कर दिया, और इसके बजाय जब मैंने काम में कमियाँ और गलतियाँ खोजने की पहल की, तो भाई-बहनों ने न केवल मेरा अनादर नहीं किया, बल्कि उन्होंने मेरे साथ चर्चा की और समन्वय किया, और हमेंअपना कर्तव्य निभाने का बेहतर तरीका मिला। केवल तभी मैंने देखा, स्वांग रचकर और दिखावा करके मैंने कितनी मूर्खता की थी। अगर मैंने पहले इस तरह अभ्यास किया होता, तो मैंने परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा न डाली होती।

बाद में, मेरे अगुआ ने मेरे लिए नए लोगों के सिंचन के अंशकालिक कार्य की व्यवस्था की। मेरे अगुआ ने कहा कि चूँकि कुछ नए लोगों में परमेश्वर में विश्वास की कोई बुनियाद नहीं है, इसलिए वे निष्क्रिय और कमजोर हो गए, और कठिनाइयाँ होने या पादरियों के तंग करने से सभाओं में आना बंद कर दिया, इसलिए उन्हें सिंचन के जरिए तत्काल सहायता की जरूरत है। हालाँकि मैं जानता था कि यह काम बहुत महत्वपूर्ण है, फिर भी मैं थोड़ा अनिच्छुक था। ज्यादातर यह कि यह अंशकालिक काम था, तो मैं कितना भी अच्छा करूँ, हमारे समूह में किसी को पता नहीं चलेगा। मैंने सोचा कि मैं अपने काम में ज्यादा समय दे सकता हूँ। मैं अपना खाली समय अपनी पेशेवर तकनीकें सुधारने में लगा सकता था। अगर मैं अपने मुख्य कार्य में ज्यादा कारगर हो जाता, तो भाई-बहन मेरा आदर करते। इसलिए मैं नए लोगों के सिंचन पर ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहता था। लेकिन अगले कुछ दिनों में मुझे लगा कि मेरी अवस्था थोड़ी खराब है, इसलिए मैंने खुलकर भाई-बहनों के साथ संगति की, और तब मुझे लगा कि मैं अभी भी प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे दौड़ रहा हूँ। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा, "हालाँकि ज्यादातर लोग कहते हैं कि वे स्वेच्छा से सत्य का अनुसरण करते हैं, लेकिन जब उसे अमल में लाने या उसके लिए कीमत चुकाने की बात आती है, तो कुछ लोग बस हार मान लेते हैं। यह सार में विश्वासघात करना है। कोई क्षण जितना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, उतनी ही ज्यादा तुम्हें दैहिक रुचियाँ छोड़ने और घमंड और अभिमान त्यागने की आवश्यकता होती है; अगर तुम ऐसा करने में असमर्थ हो, तो तुम सत्य प्राप्त नहीं कर सकते, और यह दर्शाता है कि तुम परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी नहीं हो। कोई पल जितना ज्यादा संकटकालीन हो, अगर उसी के अनुसार लोग समर्पण करने में सक्षम हों और अपने स्वार्थ, मिथ्याभिमान और दंभ को त्याग सकें, तथा अपने कर्तव्यों को उचित रूप से पूरा कर सकें, केवल तभी वे परमेश्वर द्वारा याद किए जाएँगे। वे सभी अच्छे कर्म हैं! चाहे लोग कोई भी कर्तव्य निभाएँ या कुछ भी करें, ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है—उनका मिथ्याभिमान और दंभ, या परमेश्वर की महिमा? लोगों को किसे चुनना चाहिए? (परमेश्वर की महिमा।) क्या ज्यादा महत्वपूर्ण हैं—तुम्हारे दायित्व, या तुम्हारे स्वार्थ? तुम्हारे दायित्वों को पूरा करना ज्यादा महत्वपूर्ण है, और तुम उनके प्रति कर्तव्यबद्ध हो" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'परमेश्‍वर और सत्‍य को प्राप्‍त करना सबसे बड़ा सुख है')। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि चाहे मेरा आदर किया जाए या नहीं, यह मेरा कर्तव्य है, यानी यह मेरी जिम्मेदारी और परमेश्वर की ओर से आदेश है। मुझे इसे स्वीकार करना था और ईमानदारी से लेना था। मैं अब अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत का हिसाब-किताब नहीं रख सकता था। सिंचन के काम के लिए कर्मियों की जरूरत थी, और अगर मैं यह कर्तव्य इसलिए नहीं करना चाहता कि इसमें दिखावे का मौका नहीं है, तो यह अनैतिक और अनुचित होगा। उस शाम मैंने परमेश्वर के वचनों का एक भजन सुना। इसके बोल थे, "परमेश्वर हर मनुष्य के प्रेम को सँजोता है। उन सभी पर तो उसके आशीष और भी घनीभूत हो जाते हैं, जो उससे प्रेम करते हैं, क्योंकि मनुष्य का प्रेम पाना बहुत कठिन है, वह बहुत थोड़ा" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में ' क्या तुम अपने दिल का प्रेम दोगे परमेश्वर को?')। उस समय मैं बहुत द्रवित हुआ। जितनी ज्यादा परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा की जरूरत है, उतना ही ज्यादा मुझे अपना कर्तव्य और जिम्मेदारी निभानी चाहिए। मैं फिर परमेश्वर को निराश नहीं कर सकता। फिर, मैं सिंचन की प्रभारी बहन के पास गया और बोला, "मैं यह काम स्वीकारने के लिए तैयार हूँ।" हालाँकि नए लोगों का सिंचन करते हुए मुझमें कई कमियाँ थीं और मैंने कई कठिनाइयों का सामना किया, पर जब मैंने अपने उद्देश्य ठीक किए और परमेश्वर पर भरोसा किया, तो मुझे परमेश्वर का मार्गदर्शन और आशीष दिखाई दिए, और कुछ नए लोगों को सामान्य रूप से सभाओं में शामिल होने में देर नहीं लगी।

जल्दी ही कलीसिया ने मुझे दूसरे काम का प्रभारी बना दिया। मैंने सोचा, "इस बार मैं अपने प्रोडक्शन-कार्यों में कितना भी व्यस्त रहूँ, मैं समूह की प्रगति पर नजर रखूँगा और समयबद्ध तरीके से काम सौंपूँगा।" मैं भाई-बहनों के काम में आने वाली कठिनाइयाँ हल करने के लिए उनके काम की जाँच-पड़ताल भी करता, और जो चीजें मैं न समझ पाता, उनके हल में मदद के लिए अच्छे कौशल वाले लोग ढूँढ़ता। धीरे-धीरे मेरे नतीजों में काफी सुधार हुआ। मैंने जाना कि यह सब परमेश्वर के मार्गदर्शन और आशीषों की बदौलत था। अतीत में, मैं केवल प्रतिष्ठा और हैसियत की परवाह करता था। अब मैं हैसियत की दौड़ छोड़ सकता हूँ, सजग होकर परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा कर सकता हूँ, और सरलता से अपना कर्तव्य निभा सकता हूँ। ये परमेश्वर के कार्य द्वारा प्राप्त नतीजे हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!

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