सबक जो मैंने बर्खास्त होने से सीखे
2018 में, मैं वीडियो-कार्य का प्रभारी था। कभी-कभी एक ही समय पर कई वीडियो-कार्य आ जाते और उन्हें प्रोडक्शन के लिए सही लोगों को सौंपना होता था। हर बार मैं जल्दी से सोच लेता था कि काम कैसे बाँटा जाए, पर जब भी मैं अपने साथी भाई और बहन को अपनी आवंटन-योजना के बारे में बताता, तो वे हमेशा मेरी योजना में कुछ जोड़ते और सुधार करते। कभी-कभी वे बताते कि मैं कहाँ विस्तार से नहीं सोच रहा, और जब वे मुझे बहुत सारे सुझाव देते, तो मुझे थोड़ी शर्मिंदगी महसूस होती। जिस तरह से वे मेरी समस्याएँ बताते, उससे मुझे हमेशा ऐसा लगता कि मेरी कार्य-क्षमता बहुत अच्छी नहीं है। मैं अंदाजा लगाता कि टीम-अगुआ के रूप में दूसरे मेरे बारे में क्या सोचते हैं। इसके अलावा मेरे दो साथियों में से एक में उत्कृष्ट कार्य-क्षमता थी। दूसरे के पास काफी पेशेवर अनुभव था, और उसे परमेश्वर में आस्था रखे हुए भी काफी समय हो गया था। दोनों समस्याओं पर काफी विस्तार से विचार करते थे और मुझे चमकने का मौका नहीं दे रहे थे। मैं सोचने लगा कि कुछ समय बाद शायद मेरे भाई-बहनों को लगे कि टीम-अगुआ के रूप में कुछ वीडियो बनाने के अलावा, मैं समूह के काम में ज्यादा उपयोगी नहीं हूँ। जितना मैंने इस तरह सोचा, मुझे उतना ही बुरा लगा, और मैं सोचने लगा, “अगर मैं वे चीजें, जो मेरे साथी नहीं कर सकते, थोड़ा ज्यादा और बेहतर कर पाऊँ, तो क्या मैं भीड़ से अलग नहीं दिखने में सक्षम नहीं हो जाऊँगा? मेरे पेशेवर कौशल समूह में काफी अच्छे हैं, और भाई-बहनों के मुताबिक मेरा जीवन प्रवेश अच्छा है, तो अगर मैं भाई-बहनों की हालत सुधारने में थोड़ा और समय दूँ, अपना पेशेवर ज्ञान थोड़ा और साझा करूँ, तो वे निश्चित रूप से मेरा आदर करेंगे।” इसलिए, चाहे उन्हें जरूरत होती या नहीं, समस्याएँ होतीं या नहीं, मैं हमेशा उनकी हालत के बारे में बात करने और उनके साथ संगति करने चला जाता। मैं अक्सर तकनीकी जानकारी भी खोजता और संक्षेप में उनसे पेशेवर तकनीक भी साझा करता। यहाँ तक कि इससे मेरे वीडियो-प्रोडक्शन के काम में देरी होती, तो भी मैं इन्हें करने पर जोर देता। मुझे यह कीमत चुकाना वाजिब लगता था।
चूँकि मेरे इरादे गलत थे, इसलिए मैं जरूरी काम ठीक से समझ नहीं पाया, मेरे काम की प्रभाविता काफी कम हो गई, और हमेशा समस्याएँ आने लगीं। एक बार मैंने एक ऐसी बुनियादी गलती कर दी, जो शायद कोई नौसिखिया भी नहीं करता, जिससे मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। मैंने सोचा, “टीम-अगुआ के रूप में मेरा ऐसी बुनियादी गलती करना हास्यास्पद है। अगर मैंने अपनी छवि सुधारने के लिए कुछ नहीं किया, तो मैं टीम-अगुआ के रूप में काम कैसे कर पाऊँगा?” इसके बाद, कोई मुझे नीची नजर से न देखे इसलिए मैंने खुद को अपने काम में डुबो दिया। मैं समूह में कार्य की प्रगति के बारे में बिलकुल न पूछता, और हर बार जैसे ही कोई काम मिलता, तो मैं जल्दबाजी में उसे भाई-बहनों को सौंप देता और अपना काम खत्म मान लेता। इस कारण कई बार मैं समय पर काम की प्रगति न जानने के कारण काम सौंपने में देरी कर बैठता। उस समय मैं बेहद संवेदनहीन हुआ करता था। जब ये चीजें हुईं, तो मैंने आत्मचिंतन नहीं किया। बाद में, काम की जरूरतों के अनुरूप, मैंने और मेरे साथियों ने टीम के कई नए सदस्यों को प्रशिक्षित किया। मैंने सोचा कि मेरे द्वारा प्रशिक्षित लॉरेन की नींव दूसरों से ज्यादा मजबूत है, और अगर मैं जल्दी से उसे विकसित कर पाऊँ, तो मैं साबित कर सकता हूँ कि लोगों को विकसित करने की मेरी क्षमता अच्छी है। पर उसके साथ असल में कुछ समय बिताने के बाद मैंने पाया कि उसकी क्षमता औसत है और वह काफी धीमी गति से आगे बढ़ती है। फिर मैं उसे सिखाते वक्त उतना सचेत या विचारशील न रहा। जब वह सवाल पूछती, तो मैं जैसे-तैसे जवाब दे देता। कभी-कभी, जब वह मेरे जवाब न समझ पाती, तो मुझे उसे समझाना भी परेशानी का काम लगता। नतीजतन, कुछ समय बीतने के बाद उसने न केवल प्रगति नहीं की, बल्कि उसके लिए अपना कर्तव्य निभाना भी मुश्किल हो गया। बाद में, मेरी साथी ने सुझाव दिया कि वह मेरे साथ मिलकर लॉरेन को प्रशिक्षित करे, तो मैंने सोचा, “अब तुम मेरी छवि पर हमला कर रही हो। चाहे जो हो, टीम-अगुआ मैं हूँ। क्या लॉरेन को सिखाने के लिए मुझे तुम्हारी मदद चाहिए? इससे मैं पूरी तरह से अक्षम दिखूँगा, है न?” पर मुझे एहसास हुआ कि मेरा प्रशिक्षण बहुत प्रभावी नहीं है, तो मैं उसे एकदम नकार नहीं सका। मुझे अनिच्छा से सहमत होना पड़ा। अपनी गरिमा दोबारा पाने के लिए मैं खुद को साबित करने के और मौके चाहता था। एक बार, दूसरे समूह ने कुछ पेशेवर कठिनाइयों को लेकर मुझसे मदद माँगी। मैंने सोचा, “यह एक दुर्लभ मौका है। अगर मैं यह समस्या ठीक से सुलझा पाया, तो भाई-बहन निश्चित रूप से मेरा आदर करेंगे, और मेरी प्रतिष्ठा अन्य समूहों में भी फैल सकती है।” लेकिन जब मैंने असल में स्थिति पर गौर किया, तो मुझे पता चला कि समस्या से निपटने में बहुत समय और प्रयास लगेगा। उस समय, मेरे अपने काम में पहले ही बहुत सारी समस्याएँ थीं, जिन्हें तत्काल हल करना जरूरी था, और दूसरे समूह की समस्या इतनी जरूरी नहीं थी। मैंने सोचा, मैं उनकी समस्या फिलहाल अलग रख देता हूँ। लेकिन मुझे लगा कि यह मेरे लिए अपनी छवि बहाल करने का अच्छा मौका है, मैं इसे गँवा नहीं सकता। इसके अलावा, मेरे साथी हमारे समूह में काम सँभाल सकते हैं। इस बार वे मेरे बिना काम कर सकते हैं। यह सब सोचकर मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ा।
मैं अपना सारा समय यह सोचने में बिताता था कि दूसरों से अपना आदर कैसे करवाऊँ, इसलिए समूह के काम पर मेरा बिलकुल भी ध्यान नहीं था, इस कारण वीडियो-निर्माण का काम बहुत धीमा हो गया। साथ ही, चूँकि मैंने अपना काम छोड़ दिया था तो कामों का ढेर लग गया था, तो काम की प्रभावशीलता काफी ज्यादा गिरावट आ गई थी। मैं मुख्य निरीक्षकों में से एक था, फिर भी नहीं जानता था कि ये समस्याएँ कैसे हल करूँ, और मेरी हालत बद से बदतर होती गई। हालाँकि मैं हर दिन व्यस्त रहता था, फिर भी मैंने अच्छे नतीजे नहीं दिए। स्थिति का पता चलने पर मेरे अगुआ ने यह कहते हुए मेरी काट-छाँट की कि मैं अपने कर्तव्य में प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे दौड़ रहा हूँ और अपने काम में विशिष्ट समस्याओं का समाधान नहीं कर रहा। इसके बाद, मैंने कुछ बाहरी बदलाव तो किए, लेकिन असल में कभी खुद को जानने की कोशिश नहीं की, और जब कुछ होता, तो मैं हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत की रक्षा करने की कोशिश करता था। बाद में, लॉरेन को दूसरा कर्तव्य सौंप दिया गया, क्योंकि वह स्वतंत्र रूप से वीडियो नहीं बना पाती थी। जाने से पहले उसने संक्षेप में अपने विचार लिखे, और बताया कि इस कर्तव्य में उसे क्या कठिनाइयाँ हुई थीं। उसने लिखा था कि जब मैं उसे पेशेवर कौशल सिखा रहा था तो उसे कई ऐसी कठिनाइयाँ थीं जिन्हें वह हल नहीं कर पाती थी, और उसके पेशेवर कौशल तभी सुधरे, जब दूसरी बहन ने उसे सिखाना शुरू किया। उसने जो लिखा था वह पढ़कर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने सोचा, “अगर मेरे अगुआ या सह-कार्यकर्ताओं ने यह सब पढ़ा, तो वे क्या सोचेंगे? वे जरूर यही सोचेंगे कि मैं कुछ नहीं कर सकता।” अपनी हैसियत और छवि बचाने के लिए मैंने अगुआ से जाकर लॉरेन की समस्याओं की रिपोर्ट की, जानबूझकर उसकी क्षमता कम बताई, बढ़ा-चढ़ाकर बताया कि कैसे वह अपने कर्तव्य जैसे-तैसे निपटाती और अक्सर बहस करती थी, और उसकी मानवता की कमियों पर भरपूर जोर दिया। मुझे आश्चर्य हुआ जब मेरे अगुआ ने कहा, “अगर यह सच है, तो उसे नए सदस्यों सिंचन-कार्य करने देना सही नहीं होगा।” मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे शब्दों का नतीजा यह हो सकता था। अगर मैंने जो कहा उस कारण लॉरेन नए सदस्यों का सिंचन न कर पाई, तो यह सच में बुराई करना होगा। मैं अपने अगुआ को समझाना तो चाहता था, पर मैंने सोचा कि पहले ही सबके मन में मेरी छवि अच्छी नहीं है। अगर मैं इस बारे में ईमानदारी बरती, तो मैं अपने काम में बेकार तो दिखूंगा ही, ऊपर से लोग यह भी सोचेंगे कि मेरी मानवता खराब है। तो, मैंने अगुआ को गोलमोल जवाब दिया, “आपको इसकी जाँच करनी चाहिए।” बाद में, चीजों की जाँच और पुष्टि करने के बाद, मेरे अगुआ ने पाया कि लॉरेन की समस्याएँ उतनी गंभीर नहीं थीं, जितनी मैंने बताई थीं, और उसका तबादला नहीं किया।
चूँकि मैं प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे पड़ा था और मैंने बदलने से इनकार कर दिया था, तो भाई-बहनों के मूल्यांकन के आधार पर मेरे अगुआ ने कहा कि मैं अपने कर्तव्य में गैरजिम्मेदार हूँ, व्यावहारिक काम नहीं करता, और केवल खुद को अच्छा दिखाने के लिए चीजें करता हूँ, और इसलिए मुझे बरखास्त कर दिया। मैं इसे समझ नहीं पाया। मैं अपने कर्तव्य में रोज इतना व्यस्त रहता था, और इसका नतीजा ऐसा रहा। अगर भाई-बहनों को मेरी बरखास्तगी का कारण पता चला, तो वे निश्चित रूप से कहेंगे कि मुझमें खराब मानवता है और मैं सत्य का अनुसरण नहीं करता। मैं भविष्य में उन सबका सामना कैसे करूँगा? यह सोचकर मुझे इतना दुख महसूस हुआ कि बता नहीं सकता, पर मुझे पता था कि चाहे जो हो, सबसे पहले मुझे आज्ञापालन करना था। मैंने खुद यह रास्ता अपनाया था, और मैं किसी और को दोष नहीं दे सकता था। उस दौरान, मैं अपनी समस्याओं पर चिंतन करना चाहता था, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर उसे राह दिखाने को कहा ताकि मैं खुद को जान सकूँ।
बाद में, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े और एक अंश पाया, जो मेरी हालत बखूबी बयां करता था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “मसीह-विरोधी रोज केवल प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए जीते हैं, वे केवल हैसियत के जाल में मौज-मस्ती करने के लिए जीते हैं, वे बस इसी बारे में सोचते हैं। यहाँ तक कि जब वे कभी-कभी कोई छोटा-मोटा कष्ट उठाते हैं या कोई मामूली कीमत चुकाते हैं, तो वह भी हैसियत और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए होता है। हैसियत के पीछे दौड़ना, सत्ता धारण करना और एक आसान जीवन जीना वे प्रमुख चीजें हैं, जिनके लिए मसीह-विरोधी परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद हमेशा योजना बनाते हैं, और तब तक हार नहीं मानते, जब तक कि वे अपने लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। अगर कभी उनके दुष्कर्म उजागर हो जाते हैं, तो वे घबरा जाते हैं, मानो उन पर आकाश गिरने वाला हो। वे न तो खा पाते हैं, न सो पाते हैं, और बेहोशी की-सी हालत में प्रतीत होते हैं, मानो अवसाद से ग्रस्त हों। जब लोग उनसे पूछते हैं कि क्या समस्या है, तो वे झूठ बोलते हुए कहते हैं, ‘कल मैं इतना व्यस्त रहा कि पूरी रात सो नहीं पाया, इसलिए बहुत थक गया हूँ।’ लेकिन वास्तव में, इसमें से कुछ भी सच नहीं होता, यह सब धोखा होता है। वे ऐसा इसलिए महसूस करते हैं, क्योंकि वे लगातार सोच रहे होते हैं, ‘मेरे द्वारा किए गए बुरे काम उजागर हो गए हैं, तो मैं अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत कैसे बहाल कर सकता हूँ? मैं खुद को छुड़ाने के लिए किन साधनों का उपयोग कर सकता हूँ? इसे समझाने के लिए मैं सभी लोगों के साथ किस लहजे का उपयोग कर सकता हूँ? मैं लोगों को अपनी असलियत जानने से रोकने के लिए क्या कह सकता हूँ?’ काफी समय तक उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें, इसलिए वे खिन्न रहते हैं। कभी-कभी उनकी आँखें एक ही स्थान पर शून्य में ताकती रहती हैं, और कोई नहीं जानता कि वे क्या देख रहे हैं। यह मुद्दा उन्हें सिर खपाने पर मजबूर कर देता है, वे जितना सोच सकते हैं उतना सोचते हैं और उनकी खाने-पीने की इच्छा नहीं होती। इसके बावजूद, वे अभी भी कलीसिया के काम की परवाह करने का दिखावा करते हैं और लोगों से पूछते हैं, ‘सुसमाचार का काम कैसा चल रहा है? उसे कितने प्रभावी ढंग से प्रचारित किया जा रहा है? क्या भाई-बहनों ने हाल ही में कोई जीवन प्रवेश प्राप्त किया है? क्या कोई विघ्न-बाधा डाल रहा है?’ कलीसिया के काम के बारे में उनकी यह पूछताछ दूसरों को दिखाने के लिए होती है। अगर उन्हें समस्याओं के बारे में पता चल भी जाता, तो भी उनके पास उन्हें हल करने का कोई उपाय न होता, इसलिए उनके प्रश्न महज औपचारिकता होते हैं, जिन्हें दूसरे लोग कलीसिया के काम की परवाह के रूप में देख सकते हैं। अगर कोई कलीसिया की समस्याओं की रिपोर्ट बनाए जिनका उन्हें समाधान करना हो, तो वे बस इनकार में अपना सिर हिला देंगे। कोई भी योजना उनके काम नहीं आएगी, और हालाँकि वे खुद को छिपाना चाहेंगे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाएँगे, और उनके उजागर और प्रकट होने का खतरा होगा। यह सबसे बड़ी समस्या है, जिसका सामना मसीह-विरोधियों को अपने पूरे जीवन में करना पड़ता है। ... जहाँ कहीं भी मसीह-विरोधी सत्ता में हैं, तो चाहे उनके प्रभाव का दायरा कुछ भी हो, चाहे वह सिर्फ एक समूह ही हो, वे परमेश्वर के घर के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कुछ के जीवन-प्रवेश को प्रभावित करेंगे। अगर किसी कलीसिया में उनके पास सत्ता है, तो वहाँ कलीसिया का काम और परमेश्वर की इच्छा बाधित होती है। कुछ कलीसियाओं में परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू क्यों नहीं की जा सकतीं? इसलिए, कि उन कलीसियाओं में सता मसीह-विरोधियों के पास होती है। जो कोई भी मसीह-विरोधी है, वह परमेश्वर के लिए ईमानदारी से नहीं खपेगा, उसके कर्तव्यों का निर्वाह सिर्फ औपचारिकताओं और बेमन से काम करने का मामला होगा। वे वास्तविक कार्य नहीं करेंगे, भले ही वे अगुआ या कार्यकर्ता हों, और कलीसिया के काम की रक्षा बिल्कुल न करते हुए वे सिर्फ अपने नाम, लाभ और हैसियत के लिए बोलेंगे और कार्य करेंगे। तो, मसीह-विरोधी पूरे दिन क्या करते हैं? वे प्रदर्शन और दिखावा करने में व्यस्त रहते हैं। वे सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे से जुड़े काम करते हैं। वे दूसरों को धोखा देने, लोगों को फुसलाने में व्यस्त रहते हैं, और जब वे अपनी ताकत इकट्ठी कर लेते हैं, तो वे और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करने में लग जाते हैं। वे सिर्फ राजा की तरह राज करना चाहते हैं और कलीसिया को अपने स्वतंत्र राज्य में बदलना चाहते हैं। वे सिर्फ महान अगुआ बनना चाहते हैं, पूर्ण, एकतरफा अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करना चाहते हैं। वे किसी और चीज की जरा भी परवाह नहीं करते। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश से सरोकार नहीं रखते, इस बात की परवाह तो बिल्कुल नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा पूरी होती है या नहीं। वे केवल इस बात की चिंता करते हैं कि कब वे स्वतंत्र रूप से सत्ता धारण कर सकते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं, और परमेश्वर के साथ बराबरी पर खड़े हो सकते हैं। मसीह-विरोधियों की इच्छाएँ और महत्त्वाकांक्षाएँ वास्तव में बहुत बड़ी होती हैं! मसीह-विरोधी कितने भी मेहनती दिखाई पड़ते हों, वे मनमाफिक कार्य करते हुए केवल अपने ही उद्यमों में, और अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत से संबंधित चीजों में व्यस्त रहते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी जिम्मेदारियों या उस कर्तव्य के बारे में भी नहीं सोचते, जो उन्हें निभाना चाहिए, और एक भी ठीक काम नहीं करते। मसीह-विरोधी इसी तरह की चीज हैं—वे दानव शैतान हैं जो परमेश्वर के कार्य को अस्त-व्यस्त करते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों ने प्रकट किया कि मसीह-विरोधी सिर्फ प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए जीते हैं, और कोई व्यावहारिक कार्य नहीं करते। दूसरे उन्हें पहचानकर उनकी असलियत न जान पाएँ, इसके लिए वे अपनी हैसियत बनाए रखने के तरीके खोजने में दिमाग दौड़ाते हैं, और इसके लिए सहर्ष कलीसिया के काम में देरी करते हैं। मैंने टीम-अगुआ बनने के बाद से अपने सभी क्रियाकलापों और व्यवहार पर विचार किया, और देखा कि मैंने मसीह-विरोधी जैसा ही बरताव किया था। जब मैंने देखा कि मेरे साथी मुद्दों को ज्यादा विस्तार से देखते हैं, और जब उन्होंने हमेशा मेरे काम में कमियाँ बताईं, तो मैं डर गया कि भाई-बहन सोचेंगे कि मेरी क्षमता खराब है और मैं अपने काम में अक्षम हूँ, इसलिए मैंने अपनी गरिमा वापस पाने के लिए हर उपलब्ध मौका पाने की कोशिश की। मैंने पेशेवर कौशल पर जानकारी व्यवस्थित करने में समय लगाया, ताकि हर कोई देख सके कि मैं बोझ उठाता हूँ और ये चीजें समझता हूँ। मैंने अपने समूह की वे जरूरी समस्याएँ भी अलग रख दीं और उन्हें अनदेखा किया, जिन्हें हल करना जरूरी था, और दिखावे के लिए अपना समय दूसरे समूह की समस्या हल करने में लगाया। अपने वीडियो में गलती करने के बाद, मुझे डर लगा कि भाई-बहन कहेंगे कि मेरे कौशल खराब हैं, तो मैंने समूह का काम एक तरफ रख दिया और अपने प्रोडक्शन-कार्यों में डूब गया, और अपनी योग्यता साबित करने के लिए उन्हें अच्छी तरह करने की उम्मीद की। मैंने खुद को साबित करने के लिए दूसरों को विकसित करने का भी इस्तेमाल किया, और जब पाया कि लॉरेन इतनी तेजी से प्रगति नहीं कर रही कि मैं अपनी क्षमताएँ दिखा सकूँ, तो मैं उसके प्रति उदासीन और लापरवाह ढंग से पेश आने लगा, जिससे उसके लिए कौशलों में महारत पाना असंभव हो गया। मुझे सिर्फ प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे दौड़ने की चिंता थी और वास्तविक कार्य न करके वो काम किया, जिससे मुझे फायदा हो। मैंने कलीसिया के कार्य में देरी की और उसे हानि पहुँचाई। क्या मेरा बर्ताव बिलकुल मसीह-विरोधी जैसा नहीं था? लॉरेन के उसके कर्तव्य में तबादले के बावजूद मुझे कोई अपराध-बोध नहीं हुआ, और चूँकि उसने मेरी कमियाँ और त्रुटियाँ बताई थीं, इसलिए अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बचाने के लिए मैंने खुद को सही साबित करने और बचाने की कोशिश की, उसे छोटा दिखाया और उसकी आलोचना की, इस कारण उसका फिर से तबादला होने वाला था। मैं बहुत ही शातिर, स्वार्थी और नीच था! कलीसिया के काम और लॉरेन को हुए सभी नुकसानों के बारे में सोचकर, मुझे बहुत दुख हुआ। इन क्रियाकलापों ने परमेश्वर में मेरे विश्वास का मार्ग कलंकित कर दिया! बाद में, अपराध कबूलने और पश्चात्ताप के लिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की।
एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को अस्त-व्यस्त कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका दूसरों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। जब लोग अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो यह निश्चित है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे और ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं निभाएँगे। वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर ही बोलेंगे और कार्य करेंगे, और वे जो भी काम करते हैं, वह बिना किसी अपवाद के इन्हीं चीजों के लिए होता है। इस तरह से व्यवहार और कार्य करना, बिना किसी संदेह के, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना है; यह परमेश्वर के कार्य में विघ्न-बाधा डालना है, और इसके सभी विभिन्न परिणाम राज्य के सुसमाचार के प्रसार और कलीसिया के भीतर परमेश्वर की इच्छा के मुक्त प्रवाह में बाधा डालना है। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने वालों द्वारा अपनाया जाने वाला मार्ग परमेश्वर के प्रतिरोध का मार्ग है। यह उसका जानबूझकर किया जाने वाला प्रतिरोध है, उसे नकारना है—यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके विरोध में खड़े होने में शैतान के साथ सहयोग करना है। यह लोगों की हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग प्रतिष्ठा और हैसियत जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक वाहक बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव बाधा डालने और काम बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे आखिर एहसास हुआ कि जब मैं हैसियत के पीछे दौड़ता था, और अपने निजी हितों की रक्षा करता था, तो सार में, मैं शैतान के सेवक के रूप में कलीसिया का कार्य बाधित कर रहा था। मुझे पता था कि मेरी कार्य-क्षमता और पेशेवर कौशल मेरे साथियों जितने अच्छे नहीं हैं। अगर मैं विनम्रतापूर्वक उनसे सीख पाता, और उनके साथ सामंजस्यपूर्वक सहयोग कर पाता, तो न केवल मैं अपने कौशल में कुछ प्रगति करता, बल्कि कुछ सत्य सिद्धांत भी समझ पाता। यह मेरे लिए अच्छी बात होती। लेकिन मुझे यह तक नहीं पता था कि मेरे लिए क्या अच्छा है। “टीम-अगुआ” की उपाधि ने मेरा दिमाग पूरी तरह खराब कर दिया था। मैंने अपना समय वास्तविक कर्तव्य निभाने या अपने मुख्य कार्य में खपने में नहीं लगाया। इसके बजाय, मैंने दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए स्वांग रचने और दिखावा करने के तरीके सोचे। मैंने वास्तव में व्यावहारिक काम किए बिना टीम-अगुआ के पद पर कब्जा कर लिया, और हमारे काम की प्रगति में बाधा डाली और देरी की। परमेश्वर उन चीजों से घृणा करता है, जो मैंने कीं। मेरी बरखास्तगी परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और मेरे लिए परमेश्वर की सुरक्षा को दिखाता है। कलीसिया के काम को पहुँचे नुकसान की सोचकर मुझे विशेषकर अपराध-बोध हुआ। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरी हैसियत पाने की इच्छा बहुत मजबूत है! इस प्रकाशन के बिना मैं नहीं जानता कि मैं कब तक सुन्न रहता। मैं इस नाकामी का उपयोग करके ठीक से आत्मचिंतन करना और अपनी समस्या सुलझाना चाहता हूँ।”
बाद में, अभ्यास का मार्ग खोजते हुए मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन मेंतुम अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम निष्ठावान रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्हें इन चीज़ों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “यदि लोग केवल प्रतिष्ठा, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, यदि वे केवल अपने हितों के पीछे भागते हैं, तो वे कभी भी सत्य और जीवन प्राप्त नहीं कर पाएँगे और अंततः वे ही नुकसान उठाएँगे। परमेश्वर सत्य का अनुसरण करने वालों को ही बचाता है। यदि तुम सत्य स्वीकार नहीं करते, यदि तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव पर आत्मचिंतन करने और उसे जानने में असमर्थ रहते हो, तो तुम सच्चा पश्चात्ताप नहीं करोगे और तुम जीवन-प्रवेश नहीं कर पाओगे। सत्य को स्वीकारना और स्वयं को जानना तुम्हारे जीवन के विकास और उद्धार का मार्ग है, यह तुम्हारे लिए अवसर है कि तुम परमेश्वर के सामने आकर उसकी जाँच को स्वीकार करो, उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकार करो और जीवन और सत्य को प्राप्त करो। यदि तुम रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए, अपने हितों के लिए सत्य का अनुसरण करना छोड़ देते हो, तो यह परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को प्राप्त करने और उद्धार पाने का अवसर छोड़ने के समान है। तुम रुतबा, प्रतिष्ठा और अपने हित चुनते हो, लेकिन तुम सत्य का त्याग कर देते हो, जीवन खो देते हो और बचाए जाने का मौका गँवा देते हो। किसमें अधिक सार्थकता है? यदि तुम अपने हित चुनकर सत्य को त्याग देते हो, तो क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? आम बोलचाल की भाषा में कहें तो यह एक छोटे से फायदे के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना है। प्रतिष्ठा, लाभ, रुतबा, धन और हित सब अस्थायी हैं, ये सब अल्पकालिक हैं, जबकि सत्य और जीवन शाश्वत और अपरिवर्तनीय हैं। यदि लोग प्रतिष्ठा, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ाने वाले भ्रष्ट स्वभाव दूर कर लें, तो वे उद्धार पाने की आशा कर सकते हैं। इसके अलावा, लोगों द्वारा प्राप्त सत्य शाश्वत होते हैं; शैतान लोगों से ये सत्य छीन नहीं सकता, न ही कोई और उनसे यह छीन सकता है। तुमने अपने हित त्याग देते हो, लेकिन तुम्हें सत्य और उद्धार प्राप्त हो जाते हैं; ये तुम्हारे अपने परिणाम हैं और इन्हें तुम डकौल प्राप्त करते हो। अगर लोग सत्य का अभ्यास करने का चुनाव करते हैं, तो वे अपने हितों को गँवा देने के बावजूद परमेश्वर का उद्धार और शाश्वत जीवन हासिल कर रहे होते हैं। वे सबसे ज़्यादा बुद्धिमान लोग हैं। अगर लोग अपने हितों के लिए सत्य को त्याग देते हैं, तो वे जीवन और परमेश्वर के उद्धार को गँवा देते हैं; वे लोग सबसे ज्यादा बेवकूफ होते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि अपने कर्तव्य में हमें अपने गलत इरादे और लालसाएँ छोड़ देनी चाहिए। अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के बजाय, हमें हर चीज में कलीसिया के हित पहले रखने चाहिए। केवल ऐसा अभ्यास ही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है, जमीर और विवेक वाले व्यक्ति को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए। ये चीजें पहचानकर, मैंने सजगतापूर्वक अपना देह-सुख त्याग दिया, प्रतिष्ठा और हैसियत पर ध्यान देना बंद कर अपने कर्तव्य के उचित निर्वहन पर ध्यान केंद्रित किया। अपने प्रोडक्शन-कार्य पूरे करने के अलावा, मैंने अपने और दूसरों के काम में बार-बार होने वाली समस्याएँ और भटकाव भी लिखे, और चर्चा और समाधान के लिए उन्हें टीम के अगुआओं और भाई-बहनों के सामने रखा। ऐसे अभ्यास से सभी को लाभ हुआ, और हम अपने पेशेवर कौशलों में प्रगति कर पाए। यह नतीजा देख मैं परमेश्वर का बहुत आभारी था। यह सभी का एक दिल और एक दिमाग से अपने कर्तव्य निभाने का नतीजा था। अतीत में, मैंने हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बचाने की कोशिश की थी। मैंने हमेशा अपनी छवि सुधारने और कर्तव्य में दिखावा करने के लिए चीजें कीं, मैंने कोई व्यावहारिक समस्या हल नहीं की, और मेरे पीछे रह गए तो सिर्फ अपराध। लेकिन जब मैंने अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के बारे में सोचना बंद कर दिया, और इसके बजाय जब मैंने काम में कमियाँ और गलतियाँ उजागर करने की पहल की, तो भाई-बहनों ने न केवल मेरा अनादर नहीं किया, बल्कि उन्होंने मेरे साथ चर्चा की और समन्वय किया, और हमें अपना कर्तव्य निभाने का बेहतर तरीका मिला। तब जाकर मैंने देखा, स्वांग रचकर और दिखावा करके मैंने कितनी मूर्खता की थी। अगर मैंने पहले इस तरह अभ्यास किया होता, तो मैंने कलीसिया के कार्य में देरी न की होती।
इसके कुछ समय बाद, मेरे अगुआ ने मेरे लिए नए लोगों के सिंचन के अंशकालिक कार्य की व्यवस्था की। उन्होंने कहा कि चूँकि कुछ नए सदस्य अब तक सच्चे मार्ग पर अपनी नींव नहीं नहीं रख पाए थे, इसलिए वे निष्क्रिय और कमजोर हो रहे थे, और कठिनाइयाँ होने या पादरियों के तंग करने पर सभाओं में आना बंद कर देते थे, इसलिए उन्हें सिंचन के जरिये तत्काल सहायता की जरूरत थी। हालाँकि मैं जानता था कि यह कर्तव्य बहुत महत्वपूर्ण है, फिर भी मैं थोड़ा अनिच्छुक था। मुख्य कारण यह था कि यह अंशकालिक काम था, तो मैं कितना भी अच्छा करूँ, हमारे समूह में किसी को पता नहीं चलेगा। मैंने सोचा कि मैं अपने मुख्य काम में ज्यादा समय दे सकता हूँ। मैं अपना खाली समय अपनी पेशेवर तकनीकें सुधारने में लगा सकता हूँ। अगर मैं अपने मुख्य कार्य में ज्यादा कारगर हो गया, तो भाई-बहन मेरा आदर करेंगे। इस कारण से मैं नए लोगों के सिंचन पर ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहता था। लेकिन अगले कुछ दिनों में मुझे लगा कि मेरी अवस्था थोड़ी खराब है, इसलिए मैंने खुलकर भाई-बहनों के साथ संगति की, और तब मुझे लगा कि मैं अभी भी प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे दौड़ रहा हूँ। मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा : “हालाँकि ज्यादातर लोग कहते हैं कि वे स्वेच्छा से सत्य का अनुसरण करते हैं, लेकिन जब उसे अमल में लाने या उसके लिए कीमत चुकाने की बात आती है, तो कुछ लोग बस हार मान लेते हैं। यह सार में विश्वासघात करना है। कोई क्षण जितना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, उतनी ही ज्यादा तुम्हें दैहिक रुचियाँ छोड़ने और घमंड और अभिमान त्यागने की आवश्यकता होती है; अगर तुम ऐसा करने में असमर्थ हो, तो तुम सत्य प्राप्त नहीं कर सकते, और यह दर्शाता है कि तुम परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी नहीं हो। कोई पल जितना ज्यादा संकटकालीन हो, अगर उसी के अनुसार लोग समर्पण करने में सक्षम हों और अपने स्वार्थ, मिथ्याभिमान और दंभ को त्याग सकें, तथा अपने कर्तव्यों को उचित रूप से पूरा कर सकें, केवल तभी वे परमेश्वर द्वारा याद किए जाएँगे। वे सभी अच्छे कर्म हैं! चाहे लोग कोई भी कर्तव्य निभाएँ या कुछ भी करें, ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है—उनका मिथ्याभिमान और दंभ, या परमेश्वर की महिमा? लोगों को किसे चुनना चाहिए? (परमेश्वर की महिमा।) क्या ज्यादा महत्वपूर्ण हैं—तुम्हारे दायित्व, या तुम्हारे स्वार्थ? तुम्हारे दायित्वों को पूरा करना ज्यादा महत्वपूर्ण है, और तुम उनके प्रति कर्तव्यबद्ध हो” (परमेश्वर की संगति)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि चाहे मेरा आदर किया जाए या नहीं, यह मेरा कर्तव्य है, यानी यह मेरी जिम्मेदारी और परमेश्वर की ओर से आदेश है। मुझे इसे स्वीकार करना चाहिए और इससे ईमानदारी से पेश आना चाहिए। मैं अब अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत का हिसाब-किताब करता नहीं रह सकता। सिंचन के काम के लिए कर्मियों की जरूरत थी, और अगर मैं यह कर्तव्य सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहता कि इसमें दिखावे का मौका नहीं है, तो क्या यह अनैतिक और अनुचित होना नहीं होगा? उस शाम मैंने परमेश्वर के वचनों का एक भजन सुना जिसका शीर्षक था “क्या तुम अपने दिल का प्रेम दोगे परमेश्वर को?” इसके बोल थे : “परमेश्वर हर मनुष्य के प्रेम को सँजोता है। उन सभी पर तो उसके आशीष और भी घनीभूत हो जाते हैं, जो उससे प्रेम करते हैं, क्योंकि मनुष्य का प्रेम पाना बहुत कठिन है, वह बहुत थोड़ा है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (3))। मैं बहुत द्रवित हुआ। जितनी ज्यादा कलीसिया के कार्य की रक्षा की जरूरत है, उतना ही ज्यादा मुझे अपना कर्तव्य और जिम्मेदारी निभानी चाहिए। मैं फिर परमेश्वर को निराश नहीं कर सकता। हालाँकि नए लोगों का सिंचन करते हुए मुझमें कई कमियाँ थीं और मैंने कई कठिनाइयों का सामना किया, पर जब मैंने अपने उद्देश्य ठीक किए और परमेश्वर पर भरोसा किया, तो मुझे परमेश्वर का मार्गदर्शन दिखा, और जल्द ही कुछ नए सदस्य जिनका मैं सिंचन कर रहा था, सामान्य रूप से सभाओं में शामिल होने लगे।
जल्दी ही, कलीसिया ने मुझे दूसरे काम का प्रभारी बना दिया। इस बार मैं अपने कार्यों में कितना भी व्यस्त क्यों न रहता, मैं समूह की प्रगति पर नजर रखता था और समयबद्ध तरीके से काम सौंपता था। मैं भाई-बहनों की कठिनाइयाँ हल करने के लिए उनके साथ काम पर चर्चा भी करता, और जो चीजें मैं न समझ पाता, उनके हल में मदद के लिए अच्छे कौशल वाले लोग ढूँढ़ता। धीरे-धीरे, मेरे काम के नतीजों में काफी सुधार हुआ। मैंने जानता था कि यह सब परमेश्वर के मार्गदर्शन और आशीषों की बदौलत था। अतीत में, मैं केवल प्रतिष्ठा और हैसियत की परवाह करता था। अब मैं हैसियत के पीछे दौड़ने से खुद को थोड़ा रोक सकता हूँ, सजग होकर कलीसिया के कार्य की रक्षा कर सकता हूँ, और व्यावहारिक ढंग से अपना कर्तव्य निभा सकता हूँ। ये परमेश्वर के वचनों द्वारा प्राप्त नतीजे हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!
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