मौलिक दिखने के प्रयास के पीछे क्या राज़ है

03 अगस्त, 2022

ली झी, चीन

2019 में, मैं कलीसिया में वीडियो बनाया करता था। यह काम लंबे समय से करने के कारण मेरे पास अनुभव और हुनर दोनों थे, और मैं असरदार काम कर रहा था। भाई-बहन मेरा बहुत मान करते थे, दूसरे ग्रुप के भाई-बहनों को कोई समस्या आती तो वे भी मेरे पास आते, और कभी-कभी तो निरीक्षक भी मुझसे कोई तकनीकी सवाल पूछ लेते। यह सब मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं सोचता था कि भले ही मैं इस काम का विशेषज्ञ नहीं हूँ, पर भाई-बहनों के अपने ग्रुप में मैं पेशेवर हुनर के मामले में सबसे अच्छा हूँ, और मुझे लगता था कि मैं बहुत मूल्यवान हूँ।

एक दिन दो नई चुनी गई निरीक्षक हमारे काम की जानकारी लेने आईं, जब मुझे पता चला कि इन दो बहनों के पेशेवर हुनर उतने अच्छे नहीं हैं, तो अनायास ही मुझमें श्रेष्ठता की भावना आ गई। पर एकाएक, वे हमारा काम देखने के बाद कुछ गलतियाँ बताने लगीं। मैं सकपका गया, और बहुत अटपटा महसूस करने लगा। मुझे उनकी सलाह की कोई जरूरत नहीं थी। मैंने सोचा, "क्या तुम्हारे पास मुझसे ज्यादा हुनर है? तुम मेरी गलतियाँ बताओगी तो भाई-बहन क्या सोचेंगे? क्या वे यह नहीं कहेंगे कि ग्रुप का वरिष्ठ सदस्य कुछ भी नहीं जानता? यह नहीं चलेगा। मैं यह सलाह नहीं मान सकता, मुझे इसे ठुकराना होगा।" इसलिए, मैंने कुछ पेशेवर जानकारी ढूंढकर सबके सामने निरीक्षकों की राय को पूरी तरह झुठला दिया। इस पर वे दोनों बोलीं, "अगर हमारी राय सही नहीं है तो फिलहाल हम तुम्हारे सुझाव से चलेंगे।" यह सुनकर मैं फूलकर कुप्पा हो गया, और मुझे लगा मैंने अपनी छवि बचा ली है। बाद में, एक सभा में निरीक्षकों ने अपनी दशा के बारे में बताया और कहा कि हमारे ग्रुप में उन्होंने दबा-दबा-सा महसूस किया। अगर उन्हें कोई समस्या दिखाई दी तो भी मेरे न मानने के डर से उन्होंने कुछ नहीं कहा। उस समय, मुझे हल्का-सा अहसास हुआ कि मैं थोड़ा अहंकारी हूँ, पर मैंने ईमानदारी से इस पर आत्म-चिंतन नहीं किया। बाद में, हमारे काम का जायजा लेने के लिए एक नई निरीक्षक, बहन जियांग, नियुक्त की गई। वह बहुत काबिल और हुनरमंद थी, और कुछ भी झटपट सीख लेती थी। मुझे याद है, एक बार एक नए सदस्य भाई वांग को एक वीडियो बनाने में कुछ मुश्किलें आ रही थीं, हम सबने इस पर चर्चा की पर कोई हल नहीं निकला, तो किसी ने कहा कि हमें बहन जियांग की राय लेनी चाहिए। मुझे बड़ी हैरानी हुई जब बहन जियांग ने झट से असली गलती पकड़ ली। मैं दंग रह गया और सोचने लगा, "जो मैं नहीं भाँप सका वह तुमने भाँप लिया, तो अब भाई वांग मेरे बारे में क्या सोचेगा?" मैं इस घटना को लेकर थोड़ा नाखुश था, पर फिर बहन जियांग ने इस समस्या के बारे में मेरी राय जाननी चाहिए। अपनी छवि बचाने के लिए मैंने झूठ बोला, "तुम ठीक कहती हो, मैं भी बिल्कुल यही सोच रहा था।" फिर बहन जियांग ने झट से एक हल भी सुझा दिया। मुझे यह बहुत बढ़िया लगा, पर मैं अभी भी इसे लेकर नाखुश था। मैंने सोचा, "तुमने समस्या तो समझ ही ली और अब संशोधन भी सुझा दिया है। क्या इससे मैं तुमसे कमतर नहीं लगूँगा? भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? इसके बाद मेरी इज्जत कैसे बच पाएगी? यह नहीं चलेगा। मुझे और भी बेहतर हल सोचना होगा। मैं भाई-बहनों की नजरों में नहीं गिर सकता।" इसलिए मैंने बहन जियांग की योजना की ध्यान से जांच की और पाया कि अच्छी होने के बावजूद इसमें कुछ कमियाँ थीं। इसलिए मैंने कहा, "बहन, मैंने तुम्हारे सुझाव के बारे में सोचा। इसमें नया कुछ नहीं है, और इसमें बहुत-से बदलाव करने पड़ेंगे ..." जल्दी ही, मैंने बहन जियांग के सुझाव को पूरी तरह खारिज कर दिया। उस वक्त बहन जियांग को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है, इसलिए उसने उलझन भरे लहजे में पूछा, "मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम मेरे सुझाव हमेशा ठुकरा देते हो, बजाय समस्या को हल करने के?" मैंने झट से अपनी सफाई देने की कोशिश की। मैंने कहा, "मैं ऐसा नहीं करता। मुझे बस यह लगा कि तुम्हारी योजना में कुछ गड़बड़ है। मैं तुम्हारी सलाह को ठुकरा नहीं रहा हूँ।" इसके बाद मैंने एक नया हल सुझाया। भाई वांग को लगा मेरी योजना अच्छी है, और उसने आखिर उसी पर अमल किया। यह देखकर मैं इतना खुश हुआ जैसे मैंने युद्ध में कोई मोर्चा जीत लिया हो। मुझे लगा कि अब भाई-बहनों को पता चल गया होगा कि मैं निरीक्षक से बेहतर हूँ। अगले दिन बहन जियांग ने अपनी दशा के बारे में खुलकर बात की। उसने कहा कि काम मुश्किल था और उसे समझ नहीं आया कि क्या करना चाहिए। उसने मुझसे भी कहा, "मैं जबसे तुम्हारे साथ काम कर रही हूँ, मुझे लगता है मुझे कोई काम आता ही नहीं है, और मुझे लगता है मैं तुम्हारे ग्रुप की कोई पेशेवर मदद नहीं कर पा रही, मैं जब तुम्हारे साथ होती हूँ तो मुझे लगता है मैं किसी काम की नहीं हूँ। दूसरे भाई-बहनों के साथ मुझे ऐसा नहीं लगता।" उसने मेरी समस्या पर भी उंगली उठाते हुए कहा, "तुम्हारे संपर्क में आने के बाद मैंने पाया है कि तुम हर काम में दिखावा करते हो। तुम दूसरों के विचारों को निखारने या उनमें कुछ जोड़ने की कोशिश नहीं करते, और तुम सिद्धांतों में प्रवेश करने के लिए लोगों की ईमानदारी से मदद नहीं करना चाहते, इसकी बजाय तुम दूसरों को नकारकर दिखावा करते हो, मानो दूसरे बेकार हों और तुमसे कमतर हों। इससे दूसरे दबा-दबा महसूस करते हैं, मानो वे जो भी करेंगे वह गलत होगा। अगर इसी तरह चलता रहा तो ग्रुप की सारी सत्ता तुम अपने हाथ में ले लोगे। तुम मसीह-विरोधी के रास्ते पर चल रहे हो!" उस समय, एक दूसरी बहन ने भी कहा कि मुझमें ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं। पर उस समय कोई भी बात मेरे गले नहीं उतरी। मैंने अपना बचाव तो नहीं किया, पर अंदर-ही-अंदर मुझे गहरा झटका लगा। मैंने सोचा, "मैं मसीह-विरोधी के रास्ते पर चल रहा हूँ? भाई-बहनों पर दबदबा बना रहा हूँ? क्या तुम मुझे निशाना नहीं बना रही हो? भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे?" इसके बाद, मेरी योजना के अनुसार पूरा किया गया भाई वांग का वीडियो उपयोग के लिए चुन लिया गया, तो मैं और भी उपेक्षापूर्ण तेवर अपनाते हुए सोचने लगा, "क्या तुम्हें अब भी लगता है मैं मसीह-विरोधी के रास्ते पर चल रहा हूँ और लोगों पर अंकुश लगाता हूँ? अगर यह सच होता तो क्या मैं इतने वीडियो बना पाता?" क्योंकि मैं हमेशा उसकी सलाह ठुकरा देता था, तो बहन जियांग ने इसके बाद शायद ही कभी सलाह दी।

कुछ ही दिन बाद, भाई वांग ने एक प्रस्ताव बनाया, जो मुझे काफी ठीक लगा, हालांकि इसमें कुछ दिक्कतें भी थीं। मैंने सोचा, अगर हम इसकी योजना के अनुसार काम करेंगे, जो इसमें काफी बदलाव और जोड़-तोड़ करने पड़ेंगे। इससे मैं नाकाबिल लगूँगा। यह नहीं चलेगा। मुझे एक बेहतर और अभिनव प्रस्ताव बनाना पड़ेगा, ताकि वह मेरी काबिलियत देख सके। जब हम यह निरीक्षक को दिखाएंगे तो मेरी बहुत अच्छी छाप पड़ेगी। मैंने भाई वांग के प्रस्ताव को एक तरफ रखकर एक नई योजना बनाई। जब भाई वांग ने यह सब सुना तो वह कुछ समझ नहीं पाया। मैंने उससे कहा, "अगर हम तुम्हारे प्रस्ताव के हिसाब से काम करेंगे तो बहुत-सी दिक्कतें आएंगी ..." अपने प्रस्ताव में इतनी सारी दिक्कतें देखकर भाई वांग चकरा-सा गया। उसे लगा उसे यह काम नहीं आता और वह नकारात्मक बातें सोचने लगा। उस समय मैंने सोचा, "क्योंकि तुम मेरी सलाह नहीं लेते हो, तो तुम अपनी समस्याओं को अपने ढंग से हल करो।" इसके बाद मैं अपने कामों पर ध्यान देने लगा। पर इस दौरान, मुझे लगा कि मेरी विचार शृंखला ज्यादा स्पष्ट नहीं है, और मैं अपने काम में भी बहुत असरदार नहीं हूँ। काफी समय तक हमारा ग्रुप एक भी वीडियो पूरा नहीं कर सका। बहन जियांग हमारी समस्याओं और गड़बड़ियों की छानबीन करने आई। भाई वांग ने कहा, "मैंने एक प्रस्ताव बनाया था, पर भाई ली ने कहा कि इस पर काम करने में बहुत सारी दिक्कतें हैं, तो मैंने इसे छोड़ दिया। बाद में भाई ली ने मुझे एक प्रस्ताव दिया, लेकिन इसकी कुछ सामग्री मुझे नहीं मिल रही, और मेरे गिने-चुने हुनर इस काम के लायक नहीं हैं।" फिर बहन जियांग ने भाई वांग से पूछा कि क्या वह मेरे सामने दबा-दबा महसूस करता है। जब मैंने बहन जियांग को यह सवाल करते सुना तो मैंने सोचा, "अगर यह कोई वीडियो पूरा नहीं कर पाया तो इससे मेरा क्या लेना-देना है? मैंने उसे बताया था, पर वह नहीं कर सका। क्या यह मेरी समस्या है? तुम मुझे क्यों निशाना बना रही हो? कुछ दिन पहले तुमने कहा था कि मेरा बर्ताव मसीह-विरोधी है। अब अगर भाई वांग अपना काम नहीं कर पा रहा तो तुम इसे भी मेरी समस्या बता रही हो। इसलिए न क्योंकि तुम मुझे पसंद नहीं करती? अगर काम बेअसर है तो क्या यह मेरी जिम्मेदारी है? मैं यह सब नहीं चलने दे सकता। मुझे तुम्हारी समस्याओं की भी बात करनी पड़ेगी। तब शायद तुम मुझ पर दोष लगाना और मुझे शर्मिंदा करना बंद कर दो।" बहन जियांग के जाने के बाद मैंने भाई वांग से कहा, "मैंने हाल ही में देखा है कि बहन जियांग व्यवहारिक काम नहीं करती। वह कोई उपयोगी पेशेवर सुझाव भी नहीं देती। हमें उसे याद दिलाना होगा ताकि वह थोड़ा सोच-विचार करे। वरना हमारे काम को नुकसान हो सकता है।" यह सुनकर भाई वांग में भी बहन जियांग के प्रति पूर्वाग्रह पैदा हो गया। फिर एक दूसरी निरीक्षक, बहन झेंग हमारे ग्रुप में आई, तो मैंने उसे बहन जियांग के बारे में अपने विचार बताए। मैंने कहा कि बहन जियांग अपने काम को लेकर गंभीर नहीं थी, काफी समय से ग्रुप कोई वीडियो पूरा नहीं कर सका, पर वह व्यवहारिक समस्याएँ सुलझाती ही नहीं थी, वगैरह-वगैरह। बहन झेंग ने यह सब सुनकर मुझसे पूछा कि क्या बहन जियांग के बारे में मेरी कोई राय है। मैंने झट से एक होशयारी भरा जवाब दिया, "नहीं, मेरी कोई खास राय नहीं है।" पर यह कहने के बाद, मैं अचानक सिहर-सा गया और आध्यात्मिक तौर पर अंधकार और हताशा में घिर गया। उस रात मैं ठीक से सो नहीं सका। मुझे लगा मैंने दुष्टता की थी और मैंने परमेश्वर को छोड़ दिया था। मैं अपराध-बोध की भावना से भर गया। मेरे मन में बहन जियांग के लिए पूर्वाग्रह था, पर मैंने बिल्कुल उल्टी बात कही थी। क्या यह झूठ नहीं था? काम की हालत के लिए भी मैं ही जिम्मेदार था, पर मैंने जान-बूझकर भाई वांग को बहन जियांग को दोषी मानने के लिए उकसाया था, और उसकी बेसिरपैर की आलोचना की थी। क्या मैं बदला लेने के लिए उस पर वार नहीं कर रहा था? मैं सचमुच दुष्टता कर रहा था।

इसके बाद, हमारे अगुआ ने देखा कि मैंने भाई वांग और निरीक्षकों पर वार किया था, जिससे वे नकारात्मक हो गए थे, इससे वीडियो के काम पर गंभीर असर पड़ा था, मैंने कभी भी कोई मदद स्वीकार नहीं की थी, और बहन जियांग से उलझ पड़ा था। मेरे बर्ताव को देखते हुए मुझे बर्खास्त कर दिया गया। बर्खास्तगी के बाद मैं परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस न कर पाया और अंधकार में घिर गया। मैंने कई बार परमेश्वर से प्रार्थना की, और कहा, "परमेश्वर! मसीह-विरोधी रास्ते पर चलने के लिए भाई-बहनों ने मुझे उजागर कर दिया है, पर मुझे अब भी अपने बारे में कुछ पता नहीं है। पता नहीं मुझसे कहाँ गलती हो गई। परमेश्वर, मुझे प्रबुद्ध करो और राह दिखाओ, ताकि मैं अपने बारे में जान सकूँ।" प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला, जिसमें मसीह-विरोधियों का खुलासा किया गया था। परमेश्वर ने कहा है, "मसीह-विरोधी जब कुछ करते हैं तो उनके तरीके गैर-परंपरागत और आडंबरी होते हैं। दूसरों का सुझाव कितना भी सही क्यों न हो, वे उसे हमेशा अस्वीकार कर देते हैं। भले ही उस व्यक्ति का सुझाव उनके विचारों के अनुरूप हो, यदि मसीह विरोधी ने पहले उसे प्रस्तावित नहीं किया है, तो वे निश्चित रूप से उसे स्वीकार या लागू नहीं करेंगे। मसीह-विरोधी तब तक सुझाव को तुच्छ बताने, उसे अस्वीकार करने और उसकी निंदा करने का भरसक प्रयास करेगा, जब तक कि जिस व्यक्ति ने उसे प्रस्तुत किया है, वह यह मानकर अपने ही विचार को अस्वीकार न कर दे कि वह गलत है। तब कहीं जाकर मसीह विरोधी को चैन मिलता है। मसीह-विरोधी खुद को ऊँचा उठाना और दूसरों को नीचा दिखाना पसंद करते हैं ताकि लोग उनकी पूजा करें और उन्हें चीजों के केंद्र में रखें। मसीह-विरोधी केवल खुद को आगे बढ़ाते हैं और दूसरों को अपने पीछे रखते हैं ताकि वे स्वयं दूसरों से अलग दिखाई दें। मसीह-विरोधी मानते हैं कि वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह सही है और बाकी लोग जो कुछ कहते और करते हैं, वह गलत है। वे अक्सर अन्य लोगों के विचारों और अभ्यासों को नकारने के लिए नए दृष्टिकोण पेश करते हैं, दूसरों की राय में मीनमेख निकालकर समस्याएँ ढूँढ़ते हैं और लोगों की योजनाओं को बाधित करते या नकारते हैं, ताकि हर कोई उनकी बात सुने और उनके तरीकों के अनुसार कार्य करे। वे इन तरीकों और साधनों का उपयोग तुम्हें लगातार नकारने, तुम पर हमला करने और तुम्हें यह महसूस कराने के लिए करते हैं कि तुम अच्छे नहीं हो, ताकि तुम उनके अधीन होते चले जाओ, उनका सम्मान और उनकी प्रशंसा करो, जब तक कि तुम पूरी तरह से उनके नियंत्रण में नहीं हो जाते। यही वह प्रक्रिया है जिससे मसीह-विरोधी लोगों को अपने वश में और उन्हें नियंत्रित करते हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे लोगों को भ्रमित करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं')। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मसीह-विरोधी हमेशा दूसरों से अलग चलते हैं, दिखावा करते हैं, हमेशा दूसरों को नकारते और नीचा दिखाते हैं, ताकि वे भीड़ से अलग दिखने और लोगों का मान पाने के अपने मकसद को पूरा कर सकें। समय के साथ, उनसे सहयोग करने वाले लोग नकारात्मक दशा के शिकार हो जाते हैं, खुद को मसीह-विरोधी से छोटा समझने लगते हैं, उन्हीं की सुनते हैं और उनकी जकड़ में आ जाते हैं। क्या मेरा बर्ताव भी मसीह-विरोधी जैसा नहीं था? मैं पिछले दो निरीक्षकों से बेहद घृणा करता था और उन्हें नीचा समझता था। जब उन्होंने मेरे बनाए वीडियो में कुछ समस्याएँ देखीं, तो मुझे लगा मैं दूसरों की नजरों में गिर जाऊंगा, तो मैंने उनके सुझाव ठुकराने के बहाने सोचने लगा। नतीजतन निरीक्षक मेरे सामने बेबस महसूस करने लगी। पेशेवर हुनर में माहिर बहन जियांग ने भी जब हमारे काम में कुछ बड़ी समस्याएँ भाँपने के बाद हमें काफी अच्छी सलाह दी, तो मैंने उसे स्वीकार नहीं किया। मुझे लगा कि उसका कहना मानने से दूसरे मुझे भाव नहीं देंगे, मेरा मान नहीं करेंगे, इसलिए मैंने जानबूझकर उसकी योजना में कुछ कमियाँ ढूंढ निकालीं, ताकि उसे दूसरों की नजरों में गिरा सकूँ। फिर मैंने अपना "शानदार आइडिया" पेश किया और मेरे हिसाब से ही काम हुआ। ऊपर-ऊपर से मैं यह दिखाता था कि काम में सुधार किया जा रहा है, पर मेरा असली मकसद खुद को निरीक्षक से बेहतर दिखाना था, ताकि दूसरे मेरा मान करें। भाई वांग के साथ उसके प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए, मैंने यह जताने का नाटक किया कि यह बिल्कुल बेकार है, यह सुनकर वह पस्त पड़ गया और कोई भी वीडियो पूरा नहीं कर पाया। कलीसिया ने व्यवस्था यह की थी कि मैं अपने काम में भाई-बहनों से सहयोग करूँ, ताकि हम एक-दूसरे की खूबियों से सीख सकें, अगर किसी का प्रस्ताव अच्छा और तर्कसंगत था, तो हमें इसमें और सुधार करने के सुझाव देने चाहिए थे, ताकि हर कोई अपना पूरा हुनर दिखा सके और अपने तरीके से सफल हो सके, यह वीडियो के कामकाज के लिए बहुत लाभदायक होता। पर लोगों की तारीफ और समर्थन पाने के लिए, मैं हमेशा लीक से अलग हटकर सुझाव देता था, दिखावा करता था, दूसरों को नकारता और नीचा दिखाता था, और दूसरों को कोई भूमिका नहीं निभाने देता था, जिससे मेरा साथी और निरीक्षक यह महसूस करने लगे कि वे किसी काम के नहीं हैं, और नकारात्मकता के शिकार होकर अपना काम पूरा नहीं कर पाए। मैं जो कुछ कर रहा था, क्या उसका सार जानबूझकर लोगों को दबाना नहीं था? मैं हमेशा दिखावा करके दूसरों को दबाता था, उन्हें यह महसूस करवाता था कि मेरे बिना उनका काम नहीं चल सकता, इसलिए मेरी बात सुननी पड़ेगी, ताकि मेरा साथी और निरीक्षक ग्रुप के काम में दखल न दें। क्या यह खुद का राज कायम करने वाली बात नहीं थी? बर्खास्त हुए बिना, मुझे भी अपनी समस्या का एहसास न हो पाता। मैं सच में जड़बुद्धि था!

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। "अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा के प्रति मसीह-विरोधियों का चाव सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा होता है, और यह एक ऐसी चीज है जो उनके स्वभाव और सार के भीतर होती है; यह कोई अस्थायी रुचि या उनके परिवेश का क्षणिक प्रभाव नहीं होता—यह उनके जीवन, उनकी हड्डियों में समायी हुई चीज है, और इसलिए यह उनका सार है। कहने का तात्पर्य यह है कि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करता है, उसमें उनका पहला विचार अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा का होता है, और कुछ नहीं। मसीह-विरोधी के लिए हैसियत और प्रतिष्ठा उनका जीवन और उनके जीवन भर का लक्ष्य होती हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार यही होता है : 'मेरी हैसियत का क्या होगा? और मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? क्या ऐसा करने से मुझे प्रतिष्ठा मिलेगी? क्या इससे लोगों के मन में मेरी हैसियत बढ़ेगी?' यही वह पहली चीज है जिसके बारे में वे सोचते हैं, जो इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि उनमें मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है; वे अन्यथा इन समस्याओं पर विचार नहीं करेंगे। ... वे अक्सर अपने दिलों में ऐसी बातों पर सोच-विचार करते हैं, वे सोचते हैं कि कैसे वे परमेश्वर के घर में अपने लिए जगह बना सकते हैं, कैसे वे कलीसिया में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं, ताकि जब वे बात करें तो लोग उन्हें सुनें, और जब वे कार्य करें तो लोग उनका समर्थन करें, और जहाँ कहीं वे जाएँ, लोग उनका अनुसरण करें; ताकि कलीसिया में उनके पास शक्ति हो, प्रतिष्ठा हो, ताकि वे लाभ और हैसियत प्राप्त कर सकें—वे अक्सर ऐसी चीजों पर विचार करते हैं। ऐसे लोग इन्हीं चीजों के पीछे दौड़ते हैं। वे हमेशा ऐसी बातों के बारे में ही क्यों सोचते रहते हैं? परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, प्रवचन सुनने के बाद, क्या वे वाकई यह सब नहीं समझते, क्या वे वाकई यह सब नहीं जान पाते? क्या परमेश्वर के वचन और सत्य वास्तव में उनकी धारणाएँ, विचार और मत बदलने में सक्षम नहीं हैं? मामला ऐसा बिलकुल नहीं है। समस्या उनके साथ शुरू होती है, यह पूरी तरह से इसलिए है क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते, क्योंकि अपने दिल में वे सत्य से ऊब चुके होते हैं, और परिणामस्वरूप, वे सत्य के प्रति बिल्कुल भी ग्रहणशील नहीं होते—जो उनके स्वभाव और सार से निर्धारित होता है" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन)')। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मसीह-विरोधियों को अपने नाम और रुतबे से खास लगाव होता है। उन्हें तारीफ, वाह-वाही और दूसरों के दिलों में जगह बनाने की चाह होती है। जब भी कुछ होता है, उन्हें सबसे पहले अपने नाम और रुतबे का ख्याल आता है। उन्हें परमेश्वर के घर के काम का या भाई-बहनों की भावनाओं का ख्याल नहीं आता, वे यह भी नहीं सोचते कि परमेश्वर उन्हें किस तरह देखता है और उनके आचरण के क्या परिणाम होंगे। मसीह-विरोधियों के व्यवहार को देखकर मुझे खतरे का एहसास हुआ। मैं लंबे समय से वीडियो बना रहा था, मेरे पास कुछ अनुभव था, कुछ उपलब्धियां थीं, भाई-बहन और निरीक्षक सभी मुझे सराहते थे, इसलिए मैं दूसरों से श्रेष्ठ महसूस करता था, और लोगों के मान और समर्थन से बहुत खुश होता था। जब निरीक्षकों ने हमारे काम की समस्याएँ बताईं, या एक अच्छा प्रस्ताव दिया, तो मुझे संकट महसूस हुआ। मुझे लगा मैं दूसरों की सराहना और ग्रुप में अपनी अहमियत खो बैठूँगा, इसलिए अपना नाम और रुतबा बचाने के लिए, मैंने भाई-बहनों को नीचा दिखाया और उनके सुझावों और प्रस्तावों को ठुकराया, और फिर अपना "शानदार आइडिया" पेश करने का दिखावा किया। मैंने भाई-बहनों की भावनाओं का ख्याल नहीं किया, लोगों को विकसित करने या कलीसिया के काम की भलाई का ख्याल नहीं किया। मेरे लिए तो बस अपनी प्रतिभा का दिखावा करना ही महत्वपूर्ण था। बहन जियांग ने देख लिया था कि मैं गलत रास्ते पर चल रहा हूँ, तो उसने समस्या की ओर इशारा करते हुए मेरी मदद करनी चाही थी, पर मैंने न सिर्फ आत्म-चिंतन से मना कर दिया था, बल्कि मुझे लगा मेरे नाम और रुतबे को भारी झटका लगा है, मैंने बहन जियांग के प्रति दुश्मनी और नफरत का रवैया अपना लिया था। अपने नाम और रुतबे को बचाने के लिए, मैं बहन जियांग की खामियाँ ढूँढ़ने और पीठ पीछे उसकी बुराई करने में लगा था। मैंने भाई वांग को भी धोखा देकर बेवकूफ बनाया था, ताकि वह भी बहन जियांग के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाए। बहन जियांग की मदद के नाम पर भी मैं उसकी आलोचना और हमला करता रहा था। मैंने देखा कि अपना नाम और रुतबा बचाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था। मैं कितना घिनौना और कुटिल था! यह मसीह-विरोधी रास्ता था! अगर यह जारी रहा और कुछ समय के लिए मैंने भाई-बहनों की तारीफ हासिल भी कर ली तो इससे मेरा क्या भला होगा? मैं परमेश्वर के सामने बुराई-पे-बुराई करता रहूँ, और सत्य पाने और बचाए जाने का अवसर गँवा दूँ, तो आखिर में, परमेश्वर मेरी निंदा और मुझे दंडित ही करेगा। मैं बिल्कुल पौलुस की तरह था। वह हमेशा मान और प्रशंसा की ताक में रहता था, ऊंची-ऊंची और खोखली बातें करता था और सिद्धांत बघारता था। अपने पत्रों में उसने पतरस को नीचे गिराया और खुद को ऊंचा उठाया, हर किसी को अपने सामने ले आया, और बेशर्मी से यह कहता रहा कि वह यीशु की तरह जिया है, जिससे लोग उसे परमेश्वर समझने लगे। आखिर में, उसने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान कर दिया और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किया गया। क्या मैं पौलुस के गलत रास्ते पर नहीं चल रहा था? जब मुझे इसका एहसास हुआ तो मैं बहुत डर गया। मुझे याद आया कि अपना नाम और रुतबा बचाने के लिए मैंने कितनी दुष्टता की थी। बहन जियांग की आलोचना और बुराई के लिए एक गुट बनाने के बाद, मैं अंधकार और बेचैनी में घिर गया, और हमेशा किसी अनहोनी को लेकर डरता रहता। मैंने जो कुछ किया था, क्या वह परमेश्वर के स्वभाव का अपमान नहीं था? अगर मैंने अब भी प्रायश्चित न किया तो परमेश्वर मुझे ठुकराकर बाहर कर देगा। उसी घड़ी मुझे यह अहसास हुआ कि नाम और रुतबे के पीछे जाना कितना हानिकारक है!

इसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा, "यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि प्रतिष्ठा और हैसियत प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। जो लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य निभा रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को बाधित करता है, अस्त-व्यस्त करता है और बिगाड़ता है। उनके हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, यह उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह विघटन, रुकावट और हानि है। यह लोगों के प्रसिद्धि और हैसियत के पीछे भागने का परिणाम है। जब वे इस तरह से अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो क्या इसे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना नहीं कहा जा सकता? जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि रुतबे और प्रतिष्ठा के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं, वे भाई-बहनों का जीवन में प्रवेश बाधित करते हैं, यहाँ तक कि उनका दूसरों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाने-पीने और सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ता है। इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि जब लोग अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो इस तरह के व्यवहार और कार्यों को परमेश्वर के कार्य की सामान्य प्रगति को हद दर्जे तक नुकसान पहुँचाने और बाधित करने, और उसके चुने हुए लोगों के बीच परमेश्वर की इच्छा को सामान्य रूप से पूरा होने से रोकने के लिए शैतान के साथ सहयोग करने के रूप में वर्णित किया जा सकता है। वे जानबूझकर परमेश्वर का विरोध और उसके निर्णयों पर विवाद खड़ा करते हैं। यह लोगों के हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग प्रतिष्ठा और हैसियत जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक वाहक बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव परेशान करने और बिगाड़ने वाला होता है; उनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक)')। परमेश्वर के वचनों से मैंने साफ देखा कि नाम, रुतबे और प्रशंसा के पीछे जाना दुष्टता के रास्ते पर चलना है। शुरू-शुरू में, निरीक्षकों को बहुत-से ग्रुपों के काम का जायजा लेना होता है, और बहुत-से कार्यों के सिद्धांत और कौशल सीखने-साधने पड़ते हैं। इन मुश्किलों को देखते हुए, वे अच्छी तरह अध्ययन कर सकते हैं, समस्या को समझकर सुझाव दे सकते हैं, जो एक अच्छी बात है और कलीसिया के काम के लिए लाभदायक है। अपना नाम और रुतबा बचाने के लिए, मैंने न सिर्फ उनके साथ सहयोग नहीं किया, ताकि हम साथ मिलकर सत्य को खोज सकें और अपना काम अच्छी तरह कर सकें, बल्कि मैंने जानबूझकर उनके सुझावों को नकारा और उन्हें नीचा दिखाया, उन पर हमला किया, जिससे वे नकारात्मक होकर पीछे हट गईं और सुझाव देने से कतराने लगीं, यहाँ तक सोचने लगीं कि वे अपने काम के योग्य ही नहीं हैं। भाई वांग ने अभी-अभी अपना काम शुरू किया था, उसे मदद और सहयोग की जरूरत थी, पर अपना दिखावा करने के लिए, मैंने उसके प्रस्ताव में कुछ सुधार करके उसकी मदद नहीं की। बल्कि, मैंने उसकी योजना को बेकार कहकर ठुकरा दिया, जिससे वह दबा-दबा, नकारात्मक और भ्रमित महसूस करने लगा। मैंने देखा कि मैं विध्वंस और बर्बादी का काम कर रहा था। मैंने हमले कर-करके दूसरों को नकारात्मक बना दिया, और परमेश्वर के घर के काम के साथ कोई सहयोग नहीं किया, जिससे कलीसिया का काम आगे बढ़ना नामुमकिन हो गया। क्या शैतान बिल्कुल यही नहीं चाहता है? तब जाकर मेरी समझ में आया कि नाम और रुतबे के पीछे जाने का मेरा लक्ष्य परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना था।

उस अवधि के दौरान, आध्यात्मिक चिंतन के माध्यम से, मैंने देखा कि नाम और रुतबे का मेरा मोह किस तरह कलीसिया के काम को सिर्फ नुकसान पहुंचा रहा था, भाई-बहनों का भी नुकसान कर रहा था। मैं यह सोचकर बहुत बुरा महसूस कर रहा था। "मैंने मसीह-विरोधी स्वभाव उजागर किया है, तो क्या मैं एक पक्का मसीह-विरोधी नहीं हूँ? मैं इतना भ्रष्ट हूँ कि मुझे बचाया नहीं जा सकता। क्या परमेश्वर में मेरा विश्वास अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचा है?" अपनी इस व्यथा में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर! लोगों का मान हासिल करने के लिए मैंने बुरे काम किए और परमेश्वर के घर के काम में विघ्न डाला। मैं जान गया हूँ कि मैं गलत रास्ते पर था, मैं बहुत नकारात्मक महसूस कर रहा हूँ, मुझे लगता है मुझे बचाया नहीं जा सकता। परमेश्वर! मुझे राह दिखाने की कृपा करो, ताकि मैं नकारात्मक दशा से उबर सकूँ।" प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। परमेश्वर कहते हैं, "तुम्हें मसीह-विरोधियों को स्पष्ट रूप से समझने और पहचानने में सक्षम होना चाहिए। तुम्हें उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ पहचानने में सक्षम होना चाहिए, और इन चीजों को पहचानने के साथ ही तुम्हें यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि तुम्हारी प्रकृति और सार में क्या-क्या मसीह-विरोधियों के समान हैं, क्योंकि तुम दोनों ही प्रकार के लोग शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हो; लेकिन जहाँ मसीह-विरोधियों को शैतान अपनी पोशाक की तरह पहनता है, और वे शैतान के लिए निर्गम द्वार बन गए हैं, तुम उस प्रकार के व्यक्ति हो जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट तो किया गया है, लेकिन अभी भी जिसके उद्धार की आशा है। ... तो तुम्हें किस मानसिकता से ये तथ्य और अभिव्यक्तियाँ स्वीकार करनी चाहिए? तुम्हें इन्हें अपने ऊपर लागू करना चाहिए, और यह स्वीकार करना चाहिए कि तुम्हारी प्रकृति और सार मसीह-विरोधी का है, और फिर तुम्हें इस पर विचार करना चाहिए कि जो कुछ तुममें अभिव्यक्त और प्रकट होता है, वह उससे अलग नहीं है जो मसीह-विरोधियों में अभिव्यक्त और प्रकट होता है। पहले ये तथ्य स्वीकारो; कोई दिखावा या दुराव-छिपाव करने की कोशिश न करो। जिस मार्ग पर तुम चलते हो, वह मसीह-विरोधियों का मार्ग है। यह कहना तथ्यों के विपरीत नहीं होगा कि तुम एक मसीह-विरोधी हो; बात बस इतनी है कि परमेश्वर के घर ने अभी तक तुम्हें मसीह-विरोधी कहा नहीं है, और वह तुम्हें पश्चात्ताप करने का मौका देता है। क्या तुम समझ रहे हो? पहले स्वीकार करो और मानो, और फिर परमेश्वर के सामने आओ और अनुशासित और बाध्य रहो; परमेश्वर की उपस्थिति की रोशनी और उसकी सुरक्षा मत छोड़ो। इस तरह, जब तुम कार्य करते हो, तो एक ओर तो तुम अंतःकरण और समझ से बँधे होंगे, और साथ ही परमेश्वर के वचनों से रोशन और उसकी अगुआई में होगे, और वह भी तुम्हें बाँधेगी; दूसरी ओर, पवित्र आत्मा भी तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, और तुम्हारे आस-पास के लोगों, मामलों और वस्तुओं द्वारा तुम्हें प्रेरित और अनुशासित करने की व्यवस्था करेगा। परमेश्वर तुम्हें प्रेरित कैसे करेगा? परमेश्वर अनेक प्रकार से कार्य करता है। कभी-कभी परमेश्वर तुम्हारे दिल में एक स्पष्ट भावना जगाता है, और तुम स्पष्ट रूप से समझ जाते हो कि तुम्हें प्रतिबंध स्वीकार करना चाहिए, स्वच्छंद नहीं होना चाहिए, कि जब तुम गलतियाँ करते हो, तो तुम परमेश्वर को शर्मसार करते हो, और दूसरों के सामने शर्मिंदगी उठाते हो, और इसलिए तुम खुद पर लगाम लगाते हो। और क्या यह तुम्हारी रक्षा नहीं करता? यह परमेश्वर के कार्य करने के तरीकों में से एक है। कभी-कभी परमेश्वर तुम्हें भीतर से फटकारेगा : वह तुमसे स्पष्ट वचन कहेगा, तुम्हें बताया जाएगा कि इस प्रकार कार्य करना परमेश्वर के लिए शर्मनाक और घृणित है, और यह शाप और नरकवास लाएगा; तुम्हें स्पष्ट वचनों से फटकारा जाएगा, तुम जान जाओगे कि वे तुम पर लागू होते हैं। और तुम्हें इस तरह से फटकारने का क्या उद्देश्य है? तुम्हारे अंतःकरण में एक भावना जगाना : जब तुम्हारे भीतर यह भावना होगी, तो तुम प्रभाव, परिणामों और अपनी शर्मिंदगी के प्रति सचेत हो जाओगे, और अपने क्रियाकलापों और बरताव पर लगाम लगाओगे। इस तरह से बहुत अनुभव करने के बाद तुम पाओगे कि हालाँकि ये भ्रष्ट स्वभाव लोगों के भीतर निहित हो सकते हैं, लेकिन जब लोग सत्य को स्वीकार कर पाते हैं और भ्रष्ट स्वभाव जस का तस देख पाते हैं, तब वे सचेत रूप से देह-सुख त्याग सकते हैं। जब लोग सत्य को अमल में ला सकते हैं, तो उनके शैतानी स्वभाव शुद्ध और परिवर्तित किए जा सकते हैं। मनुष्य का शैतानी स्वभाव अविनाशी या अपरिवर्तनीय नहीं है; जब तुम सत्य स्वीकार लेते हो और उसे अमल में ला पाते हो, तो तुम्हारा शैतानी स्वभाव स्वाभाविक रूप से टूट जाएगा और बदल दिया जाएगा" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना उन्नयन करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं')। परमेश्वर के वचनों से मुझे बहुत शांति मिली, और मैं भाव-विभोर हो गया। मैंने सोचा था, मैं इतना भ्रष्ट हूँ कि परमेश्वर मुझसे घृणा करेगा, और मुझे नहीं बचाएगा, पर परमेश्वर के वचनों से मुझे उसकी समझ और दया का पता चला। मैं यह भी समझ गया कि जिनमें सचमुच मसीह-विरोधी सार होता है वे कभी ईमानदारी से प्रायश्चित नहीं करते। अगर तुम्हें अहसास हो जाए कि तुम मसीह-विरोधी रास्ते पर चल रहे हो, और तुम सच्चा प्रायश्चित करो तो तुम्हें बचाया जा सकता है। मैंने यह भी जाना कि किसी इंसान का बचाया जाना उसके मार्ग पर निर्भर करता है। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिखाया। अगर हम अपनी भ्रष्टता को स्वीकार कर लेते हैं, दिखावा नहीं करते या खुद को छिपाते नहीं हैं, सचेत मन से भाई-बहनों के सामने खुद को खोलकर रख देते हैं, परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, नाम और रुतबे की चाह जागने पर आत्म-त्याग कर सकते हैं, तो परमेश्वर हमें रास्ता दिखाकर हमारे भ्रष्ट स्वभाव को दूर कर देगा। परमेश्वर के वचनों में मुझे अपना स्वभाव बदलने की उम्मीद नजर आई। मैं अब भी बदल सकता था! मुझे परमेश्वर में अपनी आस्था लौटती हुई महसूस हुई। मुझे व्यवहारिक तौर पर भी परमेश्वर का प्रेम महसूस हुआ; जब मैंने अपना नाम और रुतबा बचाने के लिए बुरे काम किए, तो परमेश्वर ने व्यवस्था करके भाई-बहनों से मेरी काट-छांट और निपटान करवाया, और अपने वचनों से मुझे खुद को जानने की राह दिखाई, मुझे मेरे कुकर्म और वह गलत रास्ता भी दिखाया जिस पर मैं चल रहा था, ताकि मैं प्रायश्चित कर सकूँ। यह सब परमेश्वर का प्रेम और उद्धार था। मुझे लगा जैसे परमेश्वर मुझे रूबरू सिखा रहा है, जैसे कठोर पिता या ममतामयी माँ सिखाती है, परमेश्वर का उद्धार कितना सच्चा है! परमेश्वर की इच्छा समझ में आ जाने के बाद मुझे नाम और रुतबे की चाह नहीं रही। मुझे बस अपने स्वभाव में बदलाव की चाह थी, ताकि मैं परमेश्वर की उम्मीदों पर खरा उतर सकूँ। इसके बाद, मैंने बहन जियांग को एक पत्र लिखा, जिसमें मैंने उस समय की अपनी मंशाओं को उजागर करते हुए उससे माफी मांगी। फिर, जब निरीक्षक ने देखा कि मैंने आत्म-चिंतन और खुद में बदलाव किया है, तो मुझे वीडियो बनाने का काम जारी रखने के लिए कहा गया।

इस झटके के अनुभव के बाद, मैं खुद को अक्सर याद दिलाता रहता कि मुझे पहले की तरह नहीं करना है, मुझे नाम और रुतबे के मोह या दिखावे का शिकार होने का और अपनी दुष्टता से विघ्न पैदा करने का डर लगा रहता। पर जब सचमुच कुछ घट जाता, तो मुझे अपने हितों का त्याग करना मुश्किल लगता, मुझे इसके लिए खुद से संघर्ष करना पड़ रहा था। एक बार भाई वांग ने एक वीडियो बनाया। मुझे उसका प्रस्ताव ठीक लगा, पर फिर भी कुछ समस्याएँ थीं। मैं यह सोचने लगा कि "अगर मैं एक बेहतर प्रस्ताव पेश करूँ तो पूरा होने के बाद ज्यादातर श्रेय मुझे मिलेगा, और निरीक्षक को पता चलेगा कि मेरे पास अच्छे आइडिया हैं।" मैंने वांग के प्रस्ताव को सीधे खारिज कर दिया और एक नया आइडिया सामने रखा। जब भाई वांग को इसका पता चला तो उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करे। उसमें अपने प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं थी, पर उसे मेरे प्रस्ताव पर भी भरोसा नहीं था, इसलिए वह बीच में अटक गया। मुझे बहुत खीज हुई। मैंने सोचा, "मैं ग्रुप अगुआ हूँ। तुम मेरी बात क्यों नहीं मानते?" मैं उसके प्रस्ताव को ठुकराने के और भी कारण गिनाना चाहता था। पर उस समय मुझे कुछ बेचैनी-सी होने लगी। क्या मैं वही पुरानी गलती नहीं दोहरा रहा था? मैंने पहले बिल्कुल ऐसा ही किया था। दिखावा करने के लिए, मैं दूसरों की बात ठुकरा देता था, जिससे कलीसिया के काम में विघ्न पड़ता था। मुझे लगा कि परमेश्वर मुझे देख रहा है, और जानता था कि परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का अपमान नहीं होना चाहिए। मुझे थोड़ा डर लगा, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वो मुझे धिक्कारे। मैंने कहा, "परमेश्वर! मेरा स्वभाव बहुत ज्यादा भ्रष्ट है। मैं अनजाने में दूसरों को नकारता और अपना दिखावा करता रहता हूँ। परमेश्वर! मेरे भ्रष्ट स्वभाव को धिक्कारो, और मुझे सत्य के अनुसरण का रास्ता दिखाओ।" प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। परमेश्वर कहते हैं, "अगर तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने पर जोर देते हो, और अंत तक उस पर चलते रहते हो, फिर भी इसे एक समस्या नहीं समझते, और पश्चात्ताप करने के लिए तैयार नहीं होते, और हठपूर्वक उसी तरह काम करते रहते हो, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करते हो, चाहे तुम किसी के भी साथ हो, तुम बाकी सबसे ज्यादा असाधारण, बाकी सबसे अलग, बाकी सबसे बेहतर होने की कोशिश करते हो, तो यह परेशानी है : अगर तुम हठपूर्वक प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे दौड़ते हो, और पश्चात्ताप करने से इनकार करते हो, तुम एक मसीह-विरोधी हो, और तुम्हारा दंडित किया जाना नियत है। परमेश्वर के वचन, सत्य, अंतःकरण और समझ—अगर इनमें से कोई भी चीज तुममें कुछ नहीं करती, तो तुम्हारा भी मसीह-विरोधी जैसा ही हश्र होगा, तुम उद्धार से परे हो, छुटकारे से परे हो! लोगों को बचाया जा सकता है या नहीं, और वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर चल सकते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि स्वयं को जान लेने के बाद उनमें सच्चा पश्चात्ताप अभिव्यक्त होता है या नहीं, सत्य के प्रति उनका दृष्टिकोण क्या है, और आखिर वे कौन-सा रास्ता चुनते हैं। अगर तुम मसीह-विरोधियों का मार्ग नहीं छोड़ते, बल्कि अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करना चुनते हो, और खुले तौर पर सत्य की अवहेलना और परमेश्वर का विरोध करते हो, तो तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना उन्नयन करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं')। परमेश्वर के वचन बिल्कुल साफ हैं। परमेश्वर तुम्हें बचाएगा या नहीं, इस बात पर निर्भर है कि तुम खुद को जानकर सच्चा प्रायश्चित करते हो या नहीं। मेरी भ्रष्टता गहरी थी और मैं हर समय अपना शैतानी स्वभाव उजागर करता रहता था, तो यह इस पर निर्भर था कि मैं अपने गलत इरादे त्यागकर सत्य का अनुसरण करता हूँ या नहीं। मुझे लगा, "अब मेरी कथनी-करनी में मेरा भ्रष्ट स्वभाव आड़े नहीं आएगा। इससे उलट, अब मुझे अपनी छवि और रुतबे का मोह छोड़कर विनम्रता से अपना कर्तव्य निभाना है। चूँकि भाई वांग का प्रस्ताव ठीक था, मुझे उसे सिरे से नामंजूर नहीं करना चाहिए था। मुझे उसमें सुधार और संशोधन का सुझाव देकर उस वीडियो को पूरे मनोयोग से अंतिम रूप देना चाहिए था। मुझे इस समझदारी से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए था। परमेश्वर भी यही देखना चाहता था।" इस एहसास के बाद, मैंने भाई वांग के प्रस्ताव को नामंजूर नहीं किया। इसकी बजाय मैंने प्रस्ताव की समस्याओं पर उसका ध्यान दिलाया, और कहा मेरे सुझाव मददगार होंगे। मुझसे बातचीत के बाद उसे एक रास्ता मिल गया, और उसने खुशी-खुशी मेरे सुझाव मानकर उन पर अमल किया। इस तरह अभ्यास के बाद, मुझे बहुत शांति और सुरक्षा महसूस हुई। इसके बाद, ऐसी घटनाएँ होने पर अगर ये चीजें उजागर भी होतीं, तो मैं सचेत होकर परमेश्वर से प्रार्थना करके इस मोह को त्याग देता था, और भाई-बहनों की सही सलाह को ध्यान से सुनता था। धीरे-धीरे मुझे यह एहसास हुआ कि हर भाई-बहन में कुछ खूबियाँ हैं। मुझे दूसरों के प्रस्तावों में भी अच्छी बातें दिखाई देने लगीं, अब मैं उन प्रस्तावों के आधार पर सुधार के लिए अपने सुझाव देता हूँ। मैं भाई-बहनों को अपने तरीके से काम करने के लिए प्रोत्साहन देता हूँ। इस तरह के सहयोग से भाई-बहन ज्यादा राहत और शांति महसूस करते हैं, और मैं भी कहीं ज्यादा सुरक्षित महसूस करता हूँ। परमेश्वर का धन्यवाद!

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