परमेश्वर अंत के दिनों का अपना न्याय-कार्य करने के लिए देहधारण क्यों करता है?

12 जून, 2023

हम अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय-कार्य के बारे में पहले भी बात कर चुके हैं। आज हम यह देखना चाहेंगे कि यह न्याय-कार्य कौन करता है। सभी विश्वासी जानते हैं कि परमेश्वर अंत के दिनों में मनुष्यों के बीच न्याय करेगा, सृष्टिकर्ता मनुष्यों के सामने प्रकट होकर स्वयं अपने कथन व्यक्त करेगा। तो परमेश्वर यह न्याय कैसे करता है? क्या उसका आत्मा आकाश में प्रकट होकर हमसे बात करता है? यह संभव नहीं है। प्रभु यीशु ने स्वयं हमें बताया था : “पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है(यूहन्ना 5:22)। “वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है(यूहन्ना 5:27)। इससे हम समझ सकते हैं कि न्याय-कार्य “पुत्र” द्वारा किया जाता है। हमें पता होना चाहिए कि “मनुष्य के पुत्र” का हर उल्लेख देहधारी परमेश्वर के लिए है, अर्थात वह अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए देह में आता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है! तो क्या आप जानते हैं कि अंत के दिनों का न्याय-कार्य क्या है? उसे करने के लिए परमेश्वर देहधारी क्यों बनेगा? सरल शब्दों में, यह उद्धारकर्ता का मनुष्य को बचाने के लिए आना है। परमेश्वर का देहधारी होकर पृथ्वी पर आना उद्धारकर्ता का अवतरण है। वह मनुष्यों को हमेशा के लिए पाप से बचाने हेतु स्वयं न्याय का कार्य करता है। उसका न्याय स्वीकार कर तुम पापमुक्त होकर शुद्ध हो सकते हो और बचाए जा सकते हो। तब तुम आपदाओं से बचे रहोगे और अंततः स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करोगे। तो उद्धारकर्ता के न्याय-कार्य को स्वीकार करना व्यक्ति के परिणाम और गंतव्य से संबंध रखता है—क्या तुम इसे महत्वपूर्ण नहीं कहोगे? कई विश्वासी पूछ सकते हैं कि अंत के दिनों में अपने न्याय के लिए परमेश्वर को देहधारी क्यों बनना पड़ा। वे सोचते हैं कि प्रभु यीशु आत्मा के रूप में एक बादल पर आएगा, परमेश्वर एक हाथ बढ़ाकर हम सभी को सीधे राज्य में उठा ले जाएगा—क्या यह अद्भुत नहीं होगा? इस तरह की सोच अत्यधिक सरल ही नहीं, अवास्तविक भी है। तुम्हें पता होना चाहिए, परमेश्वर का स्वभाव पवित्र, धार्मिक है। क्या वह पापियों को अपने राज्य में ले जाएगा? हम सभी बाइबल के इस पद से परिचित हैं, “पवित्रता के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा(इब्रानियों 12:14)। हर कोई पापी है और लगातार पाप कर रहा है। परमेश्वर मनुष्य को सीधे राज्य में नहीं ले जाएगा—वह हमें ऐसे नहीं बचाता। परमेश्वर पापियों से घृणा करता है, वे उसे देखने के योग्य नहीं हैं। इसमें कोई शक नहीं है। तो फिर अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने उद्धारकर्ता कैसे आता है? पहले वह हमारी भ्रष्टता दूर करने के लिए अपना न्याय करता है, हमें पाप और शैतान की ताकतों से बचाता है, फिर वह हमें राज्य में ले जाएगा। तुम्हारे पाप दूर न हुए, तो परमेश्वर तुम्हें आपदाओं से नहीं बचाएगा, तुम्हें राज्य में तो बिलकुल नहीं ले जाएगा। आपदाएँ शुरू हो चुकी हैं और सभी को लग रहा है कि दुनिया खत्म हो रही है, जैसे मौत आ रही हो। हर कोई उद्धारकर्ता के आकर मनुष्य को बचाने की प्रतीक्षा कर रहा है, इसलिए उसे और अंत के दिनों के उसके न्याय-कार्य को स्वीकारना अत्यंत महत्वपूर्ण है! विश्वासियों को बचाया और स्वर्ग के राज्य में ले जाया जाएगा या नहीं, इसकी कुंजी यहीं है।

लेकिन पहले आइए, जानें कि अंत के दिनों का न्याय-कार्य है क्या। धार्मिक लोग अंत के दिनों के न्याय को बहुत ही सरल समझते हैं, और “न्याय” के हर उल्लेख पर वे निश्चित महसूस करते हैं कि यह प्रभु यीशु द्वारा आत्मा के रूप में किया जाएगा, कि प्रभु आकर हमसे मिलेगा और हमें राज्य में ले जाएगा, फिर अविश्वासियों को दंडित और नष्ट किया जाएगा। वास्तव में, यह बहुत बड़ी भूल है। उनसे कहाँ गलती हुई है? हर बार जब परमेश्वर मनुष्य को बचाने के लिए कार्य करने आता है, तो यह बहुत व्यावहारिक, यथार्थपरक होता है, अलौकिक नहीं। वे प्रभु के आने के बारे में बाइबल की सबसे महत्वपूर्ण भविष्यवाणियाँ भी नजरअंदाज करते हैं—न्याय-कार्य करने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में परमेश्वर के देहधारण की भविष्यवाणियाँ। प्रभु यीशु ने बहुत स्पष्ट कहा था : “क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा(मत्ती 24:27)। “पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है(यूहन्ना 5:22)। “जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा(यूहन्ना 12:48)। “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा(यूहन्ना 16:12-13)। और 1 पतरस 4:17 में लिखा है : “क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए।” क्या ये भविष्यवाणियाँ बिल्कुल स्पष्ट नहीं हैं? प्रभु अंत के दिनों में मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण कर सत्य व्यक्त करता और न्याय-कार्य करता है। इसमें कोई शक नहीं है। न्याय-कार्य वैसा नहीं है, जैसा लोग कल्पना करते हैं, कि परमेश्वर विश्वासियों को सीधे स्वर्ग में ले जाएगा, फिर अविश्वासियों को दंडित और नष्ट कर देगा, बस। यह इतना आसान नहीं है। अंत के दिनों का न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है और सबसे पहले उनके बीच किया जाता है, जो अंत के दिनों का परमेश्वर का न्याय स्वीकारते हैं। अर्थात्, मनुष्य का पुत्र देह में पृथ्वी पर आता है, मनुष्य को शुद्ध कर बचाने के लिए कई सत्य व्यक्त करता है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सभी सत्यों में प्रवेश करने की राह दिखाता है। यह अंत के दिनों में उद्धारकर्ता का कार्य है, परमेश्वर ने इसकी योजना बहुत पहले बना ली थी। जहाँ तक अविश्वासियों का सवाल है, वे सीधे तौर पर दंडित किए और आपदाओं द्वारा हटा दिए जाएंगे। उद्धारकर्ता पहले ही देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में आ चुका है, मनुष्य को शुद्ध कर बचाने के लिए जरूरी सत्य व्यक्त कर रहा है, परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय-कार्य कर रहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त इन सत्यों ने पूरी दुनिया हिला दी है, प्रत्येक राष्ट्र के लगभग सभी लोगों ने उनके बारे में सुना है। हम देख सकते हैं कि प्रभु की वापसी के बारे में बाइबल की भविष्यवाणियाँ पूरी हो चुकी हैं। दुर्भाग्य से, अभी भी कई लोग हैं जो अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय-कार्य को नहीं समझते बस कुछ अलौकिक देखने की आशा करते रहते हैं : परमेश्वर के आकाश से प्रकट होकर बोलने की आशा। यह बहुत अमूर्त है। परमेश्वर न्याय कैसे करता है, इसे समझने के लिए आइए देखें, सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्या कहता है।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “न्याय का कार्य परमेश्वर का अपना कार्य है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इसे परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता। चूँकि न्याय सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना है, इसलिए परमेश्वर निःसंदेह अभी भी मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होगा। अर्थात्, अंत के दिनों का मसीह दुनिया भर के लोगों को सिखाने के लिए और उन्हें सभी सच्चाइयों का ज्ञान कराने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

अब हमें समझना चाहिए कि परमेश्वर अपना अंत के दिनों का न्याय कैसे करता है। यह मुख्य रूप से सत्य व्यक्त करके और मनुष्य का न्याय करने, उसे शुद्ध करने और बचाने के लिए उनका इस्तेमाल करके किया जाता है। अर्थात्, अंत के दिनों में परमेश्वर इस न्याय-कार्य का उपयोग मनुष्य की भ्रष्टता दूर करने, लोगों के एक समूह को बचाने और पूर्ण करने के लिए करता है, और दिलो-दिमाग से अपने अनुरूप लोगों के एक समूह को पूरा करता है। यह परमेश्वर की 6,000-वर्षीय प्रबंधन-योजना का फल है, और यह अंत के दिनों के न्याय-कार्य का निचोड़ है। इसीलिए उद्धारकर्ता, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, इतने सारे सत्य व्यक्त कर रहा है, मनुष्य के सभी भ्रष्ट स्वभाव उजागर कर उनका न्याय कर रहा है, व्यवहार, काट-छाँट, परीक्षणों और शोधन द्वारा लोगों को शुद्ध कर बदल रहा है, मनुष्य की पापमयता को जड़ से मिटा रहा है, ताकि हम पाप और शैतान की ताकतों से पूरी तरह बचकर परमेश्वर के प्रति समर्पण और श्रद्धा विकसित करें। यह कुछ लोगों के लिए थोड़ा भ्रमित करने वाला हो सकता है। प्रभु यीशु ने मनुष्य को छुड़ाया, तो अंत के दिनों में मनुष्य का न्याय करने के लिए परमेश्वर को सत्य व्यक्त करने की जरूरत क्यों होगी? वे नहीं देख पाते कि शैतान ने मनुष्य को कितनी गहराई से भ्रष्ट कर दिया है। परमेश्वर अंत के दिनों में हमारे भ्रष्ट स्वभाव मिटाकर हमें बचाता है। यह कोई साधारण बात नहीं है। यह केवल अपने पाप प्रभु के सामने स्वीकारना और पश्चात्ताप करना नहीं है। भ्रष्ट स्वभाव पापमयता से भिन्न होते हैं। वे पापपूर्ण व्यवहार नहीं हैं, बल्कि वे ऐसी चीज हैं जो हमारे मन और आत्मा में रहती है। वे हमारे भीतर गहराई तक समाए हुए स्वभाव हैं, जैसे कि अहंकार, धूर्तता, बुराई, और सत्य से घृणा। ये भ्रष्ट स्वभाव लोगों के दिलों में गहरे छिपे होते हैं और हमारे लिए उन्हें खोजना बहुत कठिन है। कभी-कभी प्रत्यक्ष पाप नहीं होता और व्यक्ति अच्छी लगने वाली बातें कहता है, लेकिन उसके दिल में शातिर और घिनौने इरादे होते हैं, जो दूसरों को धोखा देते और गुमराह करते हैं। यह उसके स्वभाव की समस्या है। परमेश्वर के दीर्घकालिक न्याय और प्रकाशनों के साथ-साथ व्यवहार, काट-छाँट और परीक्षणों के बिना लोग इसे नहीं देख पाएँगे, बदलने की तो बात ही छोड़ो। प्रभु में विश्वास करने वालों में से कौन जीवन-भर अपने पाप स्वीकारने के बाद भी पाप से बच पाया है? कोई भी नहीं। और इसलिए, अंत के दिनों के न्याय के बिना केवल प्रभु के छुटकारे के अनुभव से लोग केवल अपने पापी व्यवहार पहचान सकते हैं, लेकिन अपनी पापी प्रकृति, अपने पाप की जड़—अर्थात्, अपने भीतर गहरे समाए भ्रष्ट स्वभाव—नहीं देखते, उसे ठीक तो बिलकुल नहीं करते। इसे कोई नकार नहीं सकता! इसलिए, केवल परमेश्वर द्वारा स्वयं देहधारण कर अंत के दिनों में न्याय करके बड़ी संख्या में सत्य व्यक्त करने और अपने दीर्घकालिक प्रकाशन और न्याय द्वारा ही लोग स्पष्टता से अपनी भ्रष्टता का सत्य देख सकते हैं, अपना सार जान सकते हैं, और इस न्याय के द्वारा ही वे परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्रता को जान पाते हैं, परमेश्वर के प्रति उनके हृदय में श्रद्धा आती है। भ्रष्टता दूर करने और सच्चे इंसान की तरह जीने का यही एकमात्र तरीका है। इसलिए, अंत के दिनों में न्याय करने के लिए परमेश्वर के देहधारण कर सत्य व्यक्त करने से ही ये नतीजे पाए जा सकते हैं। कुछ लोग पूछ सकते हैं : स्वयं परमेश्वर को देह में ये क्यों करना पड़ता है? वह इसे आत्मा रूप में क्यों नहीं कर सकता? आइए, परमेश्वर के वचनों का एक वीडियो-पाठ देखें, ताकि सभी इसे बेहतर ढंग से समझ सकें।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “परमेश्वर द्वारा मनुष्य को सीधे पवित्रात्मा की पद्धति और पवित्रात्मा की पहचान का उपयोग करके नहीं बचाया जाता, क्योंकि उसके पवित्रात्मा को मनुष्य द्वारा न तो छुआ जा सकता है, न ही देखा जा सकता है, और न ही मनुष्य उसके निकट जा सकता है। यदि उसने पवित्रात्मा के दृष्टिकोण के उपयोग द्वारा सीधे तौर पर मनुष्य को बचाने का प्रयास किया होता, तो मनुष्य उसके उद्धार को प्राप्त करने में असमर्थ होता। यदि परमेश्वर एक सृजित मनुष्य का बाहरी रूप धारण न करता, तो मनुष्य के लिए इस उद्धार को प्राप्त करने का कोई उपाय न होता। क्योंकि मनुष्य के पास उस तक पहुँचने का कोई तरीका नहीं है, बहुत हद तक वैसे ही जैसे कोई मनुष्य यहोवा के बादल के पास नहीं जा सकता था। केवल एक सृजित मनुष्य बनकर, अर्थात् अपने वचन को उस देह में, जो वह बनने वाला है, रखकर ही वह व्यक्तिगत रूप से वचन को उन सभी लोगों में ढाल सकता है, जो उसका अनुसरण करते हैं। केवल तभी मनुष्य व्यक्तिगत रूप से उसके वचन को देख और सुन सकता है, और इससे भी बढ़कर, उसके वचन को ग्रहण कर सकता है, और इसके माध्यम से पूरी तरह से बचाया जा सकता है। यदि परमेश्वर देह नहीं बना होता, तो कोई भी देह और रक्त से युक्त मनुष्य ऐसे बड़े उद्धार को प्राप्त न कर पाता, न ही एक भी मनुष्य बचाया गया होता। यदि परमेश्वर का आत्मा मनुष्यों के बीच सीधे तौर पर काम करता, तो पूरी मानवजाति खत्म हो जाती या फिर परमेश्वर के संपर्क में आने का कोई उपाय न होने के कारण शैतान द्वारा पूरी तरह से बंदी बनाकर ले जाई गई होती(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))

मनुष्य की देह की भ्रष्टता का न्याय करने के लिए देह में प्रकट परमेश्वर से अधिक उपयुक्त और कोई योग्य नहीं है। यदि न्याय सीधे तौर पर परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया जाए, तो यह सर्वव्यापी नहीं होता। इसके अतिरिक्त, ऐसे कार्य को स्वीकार करना मनुष्य के लिए कठिन होता है, क्योंकि पवित्रात्मा मनुष्य के रूबरू आने में असमर्थ है, और इस वजह से, प्रभाव तत्काल नहीं होते, और मनुष्य परमेश्वर के अपमान न किए जाने योग्य स्वभाव को साफ-साफ देखने में बिलकुल भी सक्षम नहीं होता। यदि देह में प्रकट परमेश्वर मनुष्यजाति की भ्रष्टता का न्याय करे तभी शैतान को पूरी तरह से हराया जा सकता है। मनुष्य के समान सामान्य मानवता धारण करने वाला बन कर ही, देह में प्रकट परमेश्वर सीधे तौर पर मनुष्य की अधार्मिकता का न्याय कर सकता है; यही उसकी जन्मजात पवित्रता, और उसकी असाधारणता का चिन्ह है। केवल परमेश्वर ही मनुष्य का न्याय करने के योग्य है, और उसका न्याय करने की स्थिति में है, क्योंकि वह सत्य और धार्मिकता को धारण किए हुए है, और इस प्रकार वह मनुष्य का न्याय करने में समर्थ है। जो सत्य और धार्मिकता से रहित हैं वे दूसरों का न्याय करने लायक नहीं हैं। यदि इस कार्य को परमेश्वर के आत्मा द्वारा किया जाता, तो इसका अर्थ शैतान पर विजय नहीं होता। पवित्रात्मा अंतर्निहित रूप से ही नश्वर प्राणियों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट है, और परमेश्वर का आत्मा अंतर्निहित रूप से पवित्र है, और देह पर विजय प्राप्त किए हुए है। यदि पवित्रात्मा ने इस कार्य को सीधे तौर पर किया होता, तो वह मनुष्य की समस्त अवज्ञा का न्याय नहीं कर पाता, और उसकी सारी अधार्मिकता को प्रकट नहीं कर पाता। क्योंकि न्याय के कार्य को परमेश्वर के बारे में मनुष्य की धारणाओं के माध्यम से भी कार्यान्वित किया जाता है, और मनुष्य के अंदर कभी भी पवित्रात्मा के बारे में कोई धारणाएँ नहीं रही हैं, इसलिए पवित्रात्मा मनुष्य की अधार्मिकता को बेहतर तरीके से प्रकट करने में असमर्थ है, वह ऐसी अधार्मिकता को पूरी तरह से उजागर करने में तो बिल्कुल भी समर्थ नहीं है। देहधारी परमेश्वर उन सब लोगों का शत्रु है जो उसे नहीं जानते। अपने प्रति मनुष्य की धारणाओं और विरोध का न्याय करके, वह मनुष्यजाति की सारी अवज्ञा का खुलासा करता है। देह में उसके कार्य के प्रभाव पवित्रात्मा के कार्य की तुलना में अधिक स्पष्ट होते हैं। इसलिए, संपूर्ण मनुष्यजाति के न्याय को पवित्रात्मा के द्वारा सीधे तौर पर सम्पन्न नहीं किया जाता, बल्कि यह देहधारी परमेश्वर का कार्य है। देहधारी परमेश्वर को मनुष्य देख और छू सकता है, और देहधारी परमेश्वर मनुष्य पर पूरी तरह से विजय पा सकता है। देहधारी परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में, मनुष्य विरोध से आज्ञाकारिता की ओर, उत्पीड़न से स्वीकृति की ओर, धारणा से ज्ञान की ओर, और तिरस्कार से प्रेम की ओर प्रगति करता है—ये हैं देहधारी परमेश्वर के कार्य के प्रभाव(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है)

अब मुझे लगता है कि हम सब थोड़ा बेहतर समझते हैं कि परमेश्वर स्वयं देह में न्याय का कार्य क्यों करता है। परमेश्वर का देह बनना ही उसके लिए लोगों के साथ व्यावहारिक रूप से बातचीत करने, कहीं भी और कभी भी हमारे साथ बात करने और सत्य पर संगति करने, हमारी भ्रष्टता के अनुसार हमें उजागर कर हमारा न्याय करने, और हमारी जरूरतों के अनुसार हमारे सिंचन, चरवाही और समर्थन का एकमात्र तरीका है। यही एकमात्र तरीका है, जिससे वह परमेश्वर की इच्छा और अपेक्षाएँ स्पष्ट बता सकता है। क्या परमेश्वर के मार्ग के बारे में स्वयं सुनना और उसके द्वारा व्यक्त सत्यों को समझना हमारे द्वारा सत्य और उद्धार की प्राप्ति के लिए सबसे लाभकारी नहीं? इसके अलावा, जब परमेश्वर एक आम आदमी के रूप में देहधारण करता है, तो आप क्या कहेंगे, क्या लोग धारणाएँ रख सकते हैं या विद्रोही हो सकते हैं? बिल्कुल हो सकते हैं। जिस क्षण लोग मसीह का अति सामान्य बाहरी स्वरूप देखते हैं, उनमें धारणाएँ, विद्रोह और प्रतिरोध पैदा होता है, और भले ही वे कुछ न कहें या इसे दिखने न दें, चाहे वे कितना भी दिखावा करें, परमेश्वर देख रहा है, इसे छिपाने का कोई प्रयास सफल नहीं हो सकता। परमेश्वर लोगों के भीतर छिपी हर चीज ठीक उसी रूप में प्रकट कर देता है। इसलिए, केवल देहधारी परमेश्वर ही लोगों का विद्रोह और प्रतिरोध उजागर कर उन्हें सबसे अच्छे ढंग से उजागर कर सकता है। यह न्याय-कार्य के लिए सबसे अधिक लाभकारी है। क्या होता, अगर परमेश्वर सीधे आत्मा के द्वारा वचन कहता? लोग उसके आत्मा को देख, छू या उसके निकट नहीं जा सकते, और उसके आत्मा के बोलने से वे डर जाते। फिर वे परमेश्वर के सामने अपने हृदय कैसे खोल पाते, या सत्य कैसे समझ पाते? और आत्मा के सामने आने पर कौन धारणाएँ रखने का साहस करता? कौन भ्रष्टता प्रकट करने या विद्रोही या प्रतिरोधी होने की हिम्मत करता? कोई न करता। हर कोई डर से काँप रहा होता, दंडवत् करता, डर से पीला पड़ जाता। ऐसी भयभीत अवस्था में लोगों का सत्य कैसे उजागर हो पाता? उनकी कोई धारणा या विद्रोह प्रदर्शित न होता, तो न्याय कैसे किया जा होता? क्या सबूत होते? इसीलिए परमेश्वर के आत्मा का कार्य लोगों के असली व्यवहारों का पता लगाकर उन्हें उजागर न कर पाता, और परमेश्वर का न्याय-कार्य पूरा न हो पाता। न्याय-कार्य के लिए परमेश्वर का देहधारण उसके आत्मा की तुलना में अधिक प्रभावी है। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर को मनुष्यों के बीच जीते, सुबह से रात तक हमारे साथ रहते देख सकते हैं। परमेश्वर हमारा हर कदम, हर विचार, हमारी हर तरह की भ्रष्टता देखता और पूरी तरह से समझता है। वह किसी भी समय और स्थान पर हमें उजागर कर हमारा न्याय करने के लिए सत्य व्यक्त कर सकता है, हमारी भ्रष्टताओं, परमेश्वर के बारे में हमारी धारणाओं और कल्पनाओं के साथ उसका विरोध और धोखा देने की हमारी अंतर्निहित प्रकृति प्रकाश में ला सकता है। जब हम परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, तो लगता है मानो आमने-सामने हमारा न्याय किया जा रहा हो। यह बहुत मार्मिक और शर्मनाक होता है, हम उसके वचनों में अपनी भ्रष्टता का सत्य एकदम स्पष्ट देखते हैं। हम खुद से दिल से नफरत करते और पछताते हैं और खुद को परमेश्वर के सामने जीने लायक नहीं समझते। परमेश्वर के न्याय द्वारा हम यह भी देखते हैं कि वह कितना धार्मिक और पवित्र है, वह वास्तव में हमारे दिलो-दिमाग में देखता है। हमारे दिलों में गहरे दबे भ्रष्ट विचार और भाव, जिन्हें हमने पहचाना भी नहीं है, परमेश्वर एक-एक करके उन्हें उजागर कर न्याय करता है। कभी-कभी यह कठोर निंदा और शाप के माध्यम से होता है, जो हमें परमेश्वर का अपमानित न किया जा सकने वाला स्वभाव दिखाता है, फिर अंतत: हम परमेश्वर का भय मानने लगते हैं। परमेश्वर के न्याय से गुजरे बिना कोई भी परमेश्वर की धार्मिकता या पवित्रता को नहीं जान पाएगा, न ही देख पाएगा है कि शैतानी प्रकृति के अनुसार जीते लोग, परमेश्वर का विरोध करते हैं और उसके धिक्कार और दंड के पात्र होते हैं। परमेश्वर के न्याय, ताड़ना और परीक्षणों के परिणामस्वरूप हम वास्तव में पश्चात्ताप कर सकते हैं, अंतत: भ्रष्टता दूर कर शुद्ध और परिवर्तित हो सकते हैं। आज तक मसीह का अनुसरण करके हम देख सकते हैं कि देहधारी परमेश्वर हम भ्रष्ट मनुष्यों को पूरी तरह बचाने के लिए ईमानदारी और धैर्य से इतने सत्य व्यक्त करता हुआ हमारे बीच विनम्र और छिपा रहता है। अगर देहधारी परमेश्वर स्वयं हमारा न्याय कर हमें शुद्ध करने के लिए न आता, हमें सभी सत्य प्रदान न करता, तो हम जैसे विद्रोही और भ्रष्ट लोग निश्चित रूप से हटा दिए और दंडित किए जाते। फिर हम कैसे बच पाते? मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत ज्यादा है, परमेश्वर बहुत प्यारा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारे बीच सत्य व्यक्त करता है, व्यावहारिक तरीकों से मनुष्य का मार्गदर्शन, समर्थन, साथ देता है। परमेश्वर की वाणी सुनने, उसका चेहरा देखने, उसके द्वारा न्याय और शुद्धिकरण से गुजरने, अनेक सत्य जानने और प्राप्त करने और एक सच्चे इंसान की तरह जीने का यह हमारा एकमात्र मौका है। अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर के कार्य से सबसे अधिक लाभ प्राप्त करने वाला हमारा यह समूह है, जो मसीह का अनुसरण करता है। हम परमेश्वर से जो पाते हैं, वह वास्तव में अपरिमित है। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कहते हैं, “देह में उसके कार्य के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन लोगों के लिए सटीक वचन, उपदेश और मनुष्यजाति के लिए अपनी विशिष्ट इच्छा को उन लोगों के लिए छोड़ सकता है जो उसका अनुसरण करते हैं, ताकि बाद में उसके अनुयायी देह में किए गए उसके समस्त कार्य और संपूर्ण मनुष्यजाति के लिए उसकी इच्छा को अत्यधिक सटीकता से, ठोस तरीके से उन लोगों तक पहुँचा सकें जो इस मार्ग को स्वीकार करते हैं। मनुष्यों के बीच केवल देहधारी परमेश्वर का कार्य ही सही अर्थों में परमेश्वर के मनुष्य के साथ रहने और उसके साथ जीने के सच को पूरा करता है। केवल यही कार्य परमेश्वर के चेहरे को देखने, परमेश्वर के कार्य की गवाही देने, और परमेश्वर के व्यक्तिगत वचन को सुनने की मनुष्य की इच्छा को पूरा करता है। देहधारी परमेश्वर उस युग का अंत करता है जब सिर्फ यहोवा की पीठ ही मनुष्यजाति को दिखाई देती थी, और साथ ही वह अज्ञात परमेश्वर में मनुष्यजाति के विश्वास करने के युग को भी समाप्त करता है। विशेष रूप से, अंतिम देहधारी परमेश्वर का कार्य संपूर्ण मनुष्यजाति को एक ऐसे युग में लाता है जो अधिक वास्तविक, अधिक व्यावहारिक, और अधिक सुंदर है। वह केवल व्यवस्था और सिद्धान्त के युग का ही अंत नहीं करता; बल्कि अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह मनुष्यजाति पर ऐसे परमेश्वर को प्रकट करता है जो वास्तविक और सामान्य है, जो धार्मिक और पवित्र है, जो प्रबंधन योजना के कार्य का खुलासा करता है और मनुष्यजाति के रहस्यों और मंज़िल को प्रदर्शित करता है, जिसने मनुष्यजाति का सृजन किया और प्रबंधन कार्य को अंजाम तक पहुँचाता है, और जिसने हज़ारों वर्षों तक खुद को छिपा कर रखा है। वह अस्पष्टता के युग का पूर्णतः अंत करता है, वह उस युग का समापन करता है जिसमें संपूर्ण मनुष्यजाति परमेश्वर का चेहरा खोजना तो चाहती थी मगर खोज नहीं पायी, वह उस युग का अंत करता है जिसमें संपूर्ण मनुष्यजाति शैतान की सेवा करती थी, और एक पूर्णतया नए युग में संपूर्ण मनुष्यजाति की अगुवाई करता है। यह सब परमेश्वर के आत्मा के बजाए देह में प्रकट परमेश्वर के कार्य का परिणाम है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर तीन दशकों से सत्य व्यक्त कर रहा है और अंत के दिनों का अपना न्याय-कार्य कर रहा है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने उसके वचनों के न्याय द्वारा अपने भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध कर लिए हैं, और परमेश्वर ने आपदाओं से पहले विजेताओं का एक समूह पूरा किया है—वे प्रथम फल हैं। वे बड़े लाल अजगर के उन्मादी उत्पीड़न के दौरान भी मसीह का अनुसरण करते और उसकी गवाही देते रहे हैं। उन्होंने शैतान को हरा दिया है और परमेश्वर की जबरदस्त गवाहियाँ दी हैं। यह प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी पूरी करता है : “ये वे हैं, जो उस महाक्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपने–अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धोकर श्‍वेत किए हैं(प्रकाशितवाक्य 7:14)। जब देहधारी परमेश्वर सत्य व्यक्त कर रहा था, तब हर संप्रदाय के छोटे-बड़े अगुआ और मसीह-विरोधी पूरी तरह से उजागर हो गए। वे देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक आम आदमी लगता है, वह आत्मा नहीं है, इसलिए वे उसका निर्दयतापूर्वक विरोध और निंदा करते हैं। अपनी हैसियत और आजीविका बनाए रखने के लिए वे पागल होकर विश्वासियों को परमेश्वर की वाणी सुनने और सच्चे मार्ग की पड़ताल करने से रोकते हैं। इन लोगों के सत्य से घृणा करने वाले असली चेहरे उजागर हो गए हैं, और उन्हें निंदित कर हटा दिया गया है। परमेश्वर के देह बने बिना वे कलीसियाओं में छिपे रहते, अभी भी विश्वासियों का खून चूसते, परमेश्वर की भेंटें निगलते, बहुत लोगों को गुमराह और बरबाद करते रहते। चूँकि परमेश्वर देह में अपना न्याय करता है, अत: सभी मसीह-विरोधी और गैर-विश्‍वासी, जो सत्य से प्रेम करते हैं या नहीं करते, जो सत्य से घृणा या उसका तिरस्कार करते हैं, उजागर हो गए हैं। जो लोग सत्य से प्रेम करते और उसे समझते हैं, उन्होंने शैतान का भद्दा चेहरा स्पष्ट देखा है कि कैसे वह परमेश्वर के विरुद्ध कार्य करता और मनुष्य को गुमराह करता है। उन्होंने शैतान को पूरी तरह से नकार और त्याग दिया है और परमेश्वर की ओर मुड़ गए हैं। परमेश्वर अंततः अच्छे को पुरस्कृत और बुरे को दंडित करता है, बड़ी आपदाओं का उपयोग करके अपने खिलाफ काम करने वाली सभी बुरी ताकतों को मिटा देता है, अंतत: शैतान की सत्ता वाले इस पुराने युग को समाप्त कर देता है, फिर अपने न्याय द्वारा शुद्ध किए गए लोगों को एक सुंदर मंजिल पर ले जाता है। यह प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणियाँ पूरी करता है : “जो अन्याय करता है, वह अन्याय ही करता रहे; और जो मलिन है, वह मलिन बना रहे; और जो धर्मी है, वह धर्मी बना रहे; और जो पवित्र है; वह पवित्र बना रहे(प्रकाशितवाक्य 22:11)। “देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है(प्रकाशितवाक्य 22:12)

आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंश से समाप्त करें। “कई लोगों में परमेश्वर के दूसरे देहधारण के बारे में बुरी भावना है, क्योंकि लोगों को यह बात मानने में कठिनाई होती है कि परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए देह धारण करेगा। फिर भी, मुझे तुम्हें यह अवश्य बताना होगा कि प्रायः परमेश्वर का कार्य मनुष्य की अपेक्षाओं से बहुत आगे तक जाता है, और मनुष्य के मन के लिए इसे स्वीकार करना कठिन होता है। क्योंकि लोग पृथ्वी पर मात्र कीड़े-मकौड़े हैं, जबकि परमेश्वर सर्वोच्च है जो ब्रह्मांड में समाया हुआ है; मनुष्य का मन गंदे पानी से भरे हुए एक गड्ढे के सदृश है, जो केवल कीड़े-मकोड़ों को ही उत्पन्न करता है, जबकि परमेश्वर के विचारों द्वारा निर्देशित कार्य का प्रत्येक चरण परमेश्वर की बुद्धि का परिणाम है। लोग हमेशा परमेश्वर के साथ संघर्ष करने की कोशिश करते हैं, जिसके बारे में मैं कहता हूँ कि यह स्वतः स्पष्ट है कि अंत में कौन हारेगा। मैं तुम सबको समझा रहा हूँ कि अपने आपको स्वर्ण से अधिक मूल्यवान मत समझो। जब दूसरे लोग परमेश्वर का न्याय स्वीकार कर सकते हैं, तो तुम क्यों नहीं? तुम दूसरों से कितने ऊँचे हो? अगर दूसरे लोग सत्य के आगे सिर झुका सकते हैं, तो तुम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? परमेश्वर के कार्य का वेग अबाध है। वह सिर्फ़ तुम्हारे द्वारा दिए गए ‘सहयोग’ के कारण न्याय के कार्य को फिर से नहीं दोहराएगा, और तुम इतने अच्छे अवसर के हाथ से निकल जाने पर पछतावे से भर जाओगे। अगर तुम्हें मेरे वचनों पर विश्वास नहीं है, तो फिर आकाश में स्थित उस महान श्वेत सिंहासन द्वारा खुद पर ‘न्याय पारित किए जाने’ की प्रतीक्षा करो! तुम्हें अवश्य पता होना चाहिए कि सभी इजराइलियों ने यीशु को ठुकराया और अस्वीकार किया था, और फिर भी यीशु द्वारा मानवजाति के छुटकारे का तथ्य पूरे ब्रह्मांड और पृथ्वी के छोरों तक फैल गया। क्या यह परमेश्वर द्वारा बहुत पहले बनाई गई वास्तविकता नहीं है? अगर तुम अभी भी यीशु द्वारा स्वयं को स्वर्ग में ले जाए जाने का इंतज़ार कर रहे हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निर्जीव काठ के बेकार टुकड़े हो। यीशु तुम जैसे किसी भी झूठे विश्वासी को स्वीकार नहीं करेगा, जो सत्य के प्रति निष्ठाहीन है और केवल आशीष चाहता है। इसके विपरीत, वह तुम्हें हज़ारों वर्षों तक जलने देने के लिए आग की झील में फेंकने में कोई दया नहीं दिखाएगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

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