क्या त्रित्व का विचार तर्कसंगत है?

02 अक्टूबर, 2021

जबसे देहधारी प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग का कार्य किया, तबसे 2000 साल तक, ईसाइयत ने एक सच्चे परमेश्वर को “त्रित्व” के रूप में परिभाषित किया है। बाइबल में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का जिक्र है, इसलिए उन्होंने अनुमान लगा लिया कि परमेश्वर ज़रूर त्रित्व होगा। थोड़ा मतभेद है, मगर अधिकतर लोगों ने बिना किसी फेरबदल के त्रित्व का विचार मान लिया है। कुछ लोग कहते हैं “त्रित्व,” और कुछ कहते हैं “एक में तीन,” दोनों दरअसल एक ही हैं, जिनका अर्थ भी वही है। चाहे “त्रित्व” कहें या “एक में तीन,” हम यही कहते हैं कि परमेश्वर तीन अंशों से बना है, जो एक साथ होने पर परमेश्वर होते हैं, और एक भी अंश न हो, तो वे एक सच्चे परमेश्वर नहीं होते। एक साथ होने पर ही वे एक सच्चा परमेश्वर हो सकते हैं। ऐसा कहना सरासर बेतुका है। क्या आप सच में कह सकते हैं कि यहोवा परमेश्वर एक सच्चा परमेश्वर नहीं है? या प्रभु यीशु एक सच्चा परमेश्वर नहीं है? क्या पवित्र आत्मा एक सच्चा परमेश्वर नहीं है? क्या त्रित्व की यह परिकल्पना एक सच्चे परमेश्वर को नकारने और गलत ठहराने का एक तरीका नहीं है? क्या यह सच्चे परमेश्वर को बांटना और उसका तिरस्कार करना नहीं है? हम देख सकते हैं कि त्रित्व का यह विचार कितना ज्यादा बेतुका है। यानी, धार्मिक संसार ने बस यूं ही एकमात्र सच्चे परमेश्वर को त्रित्व के रूप में परिभाषित करते हुए उसे टुकड़ों में बाँट दिया है। यह परमेश्वर के लिए बहुत दुखदाई है। धार्मिक संसार अड़ियल बनकर इसके साथ चिपका हुआ है, और बदलने से लगातार इनकार करता रहा है। अब अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर समस्त सत्य व्यक्त करके मनुष्य को बचाने के लिए न्याय कार्य करने आया है। उसने ईसाई धर्म की सबसे बड़ी भ्रांति—त्रित्व को उजागर कर दिया है। इससे हमारी आँखें खुल गई हैं, हम मार्ग, सत्य और जीवन के रूप में, मसीह का दिल से गुणगान कर रहे हैं, परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और सर्वशक्तिमत्ता की प्रशंसा कर रहे हैं। अगर परमेश्वर ने सीधे इस भ्रांति का पर्दाफाश नहीं किया होता, तो हम त्रित्व के विचार के बेतुकेपन को खोज नहीं पाते। आइए, परमेश्वर के कुछ वचनों को ध्यान से पढ़ें।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “यदि तुम लोगों में से कोई भी कहता है कि त्रित्व वास्तव में है, तो समझाओ कि तीन व्यक्तियों में यह एक परमेश्वर क्या है। पवित्र पिता क्या है? पुत्र क्या है? पवित्र आत्मा क्या है? क्या यहोवा पवित्र पिता है? क्या यीशु पुत्र है? फिर पवित्र आत्मा का क्या? क्या पिता एक आत्मा नहीं है? पुत्र का सार भी क्या एक आत्मा नहीं है? क्या यीशु का कार्य पवित्र आत्मा का कार्य नहीं था? एक समय आत्मा द्वारा क्रियान्वित यहोवा का कार्य क्या यीशु के कार्य के समान नहीं था? परमेश्वर में कितने आत्माएं हो सकते हैं? तुम्हारे स्पष्टीकरण के अनुसार, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के तीन व्यक्ति एक हैं; यदि ऐसा है, तो तीन आत्माएं हैं, लेकिन तीन आत्माओं का अर्थ है कि तीन परमेश्वर हैं। इसका मतलब है कि कोई भी एक सच्चा परमेश्वर नहीं है; इस प्रकार के परमेश्वर में अभी भी परमेश्वर का निहित सार कैसे हो सकता है? यदि तुम मानते हो कि केवल एक ही परमेश्वर है, तो उसका एक पुत्र कैसे हो सकता है और वह पिता कैसे हो सकता है? क्या ये सब केवल तुम्हारी धारणाएं नहीं हैं? केवल एक परमेश्वर है, इस परमेश्वर में केवल एक ही व्यक्ति है, और परमेश्वर का केवल एक आत्मा है, वैसा ही जैसा बाइबल में लिखा गया है कि ‘केवल एक पवित्र आत्मा और केवल एक परमेश्वर है।’ जिस पिता और पुत्र के बारे में तुम बोलते हो, वे चाहे अस्तित्व में हों, कुल मिलाकर परमेश्वर एक ही है और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का सार, जिसे तुम लोग मानते हो, पवित्र आत्मा का सार है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर एक आत्मा है लेकिन वह देहधारण करने और मनुष्यों के बीच रहने के साथ-साथ सभी चीजों से ऊँचा होने में सक्षम है। उसका आत्मा समस्त-समावेशी और सर्वव्यापी है। वह एक ही समय पर देह में हो सकता है और पूरे विश्व में और उसके ऊपर हो सकता है। चूंकि सभी लोग कहते हैं कि परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, फिर एक ही परमेश्वर है, जो किसी की इच्छा से विभाजित नहीं होता! परमेश्वर केवल एक आत्मा है और केवल एक ही व्यक्ति है; और वह परमेश्वर का आत्मा है। ... पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करती है और प्रत्येक को एक ओहदा और आत्मा देकर उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करती है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है? मुझे बताओ कि क्या स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ें पिता, पुत्र या पवित्र आत्मा द्वारा बनाई गई थीं? कुछ कहते हैं कि उन्होंने यह सब मिलकर बनाया। फिर किसने मानवजाति को छुटकारा दिलाया? क्या यह पवित्र आत्मा था, पुत्र था या पिता? कुछ कहते हैं कि वह पुत्र था, जिसने मानवजाति को छुटकारा दिलाया था। तो फिर सार में पुत्र कौन है? क्या वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण नहीं है? एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से देहधारी स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाता है। क्या तुम्हें पता नहीं कि यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के गर्भधारण से हुआ था? उसके भीतर पवित्र आत्मा है; तुम कुछ भी कहो, वह अभी भी स्वर्ग में परमेश्वर के साथ एकसार है, क्योंकि वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण है। पुत्र का यह विचार केवल असत्य है। यह एक आत्मा है जो सभी कार्य क्रियान्वित करता है; केवल परमेश्वर स्वयं, यानी परमेश्वर का आत्मा अपना कार्य क्रियान्वित करता है। परमेश्वर का आत्मा कौन है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है, जो यीशु में कार्य करता है? यदि कार्य पवित्र आत्मा (अर्थात, परमेश्वर का आत्मा) द्वारा क्रियान्वित नहीं किया गया था, तो क्या उसका कार्य स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता था?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)परमेश्वर के वचन स्पष्ट और तीखे हैं। परमेश्वर एक सच्चा परमेश्वर है, परमेश्वर का सिर्फ एक आत्मा है, और इस परमेश्वर में एक ही व्यक्ति है। इसमें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के तीन व्यक्ति बिल्कुल नहीं हैं। परमेश्वर के प्रभु यीशु के रूप में देहधारी होने से पहले, पुत्र का कोई जिक्र नहीं था। सिर्फ परमेश्वर का आत्मा था, जोकि पवित्र आत्मा है। जब परमेश्वर ने स्वर्ग, पृथ्वी, और सभी चीजों को बनाया, तो उसके आत्मा के वचनों से इन सबका सृजन हुआ, इसलिए क्या परमेश्वर का आत्मा ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर नहीं है? जब परमेश्वर ने व्यवस्था के युग का कार्य किया, तो यह सीधे इंसानों के जरिए हुआ। उस वक्त कोई तथाकथित “पुत्र” नहीं था, बल्कि परमेश्वर बस एक परमेश्वर था, सृजनकर्ता। किसी ने कभी भी नहीं कहा कि परमेश्वर त्रित्व है, और पवित्र आत्मा ने कभी भी त्रित्व की गवाही नहीं दी। तो जब परमेश्वर देहधारी होकर प्रभु यीशु के रूप में आया तो लोगों ने उसे त्रित्व कहकर परिभाषित करना क्यों शुरू कर दिया? प्रभु यीशु देह का चोला पहने परमेश्वर का आत्मा था, उसका पूरा कार्य परमेश्वर के आत्मा से शासित था और सीधे व्यक्त होता था। प्रभु यीशु के भीतर का आत्मा यहोवा का आत्मा है—यानी पवित्र आत्मा। तो क्या प्रभु यीशु एकमात्र सच्चा परमेश्वर है? हाँ, वह है। इसलिए, ऐसा नहीं है कि परमेश्वर देहधारी हुआ इसलिए तीन अंशों में बंट गया—पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, लेकिन लोगों ने परमेश्वर को विभाजित करने पर जोर दिया, क्योंकि वे देहधारण का सार नहीं समझते। यह इंसानी त्रुटि है, और इसलिए है क्योंकि इंसान की समझने की क्षमता सीमित है। परमेश्वर एक ही सच्चा परमेश्वर है। परमेश्वर केवल एक है और उसका एक आत्मा है। देहधारणों से पहले वह एकमात्र सच्चा परमेश्वर था, और देहधारण के बाद भी वह एकमात्र सच्चा परमेश्वर ही है। लोगों ने परमेश्वर को तीन अंशों में, तीन व्यक्तियों में बाँट दिया, क्योंकि वह देहधारी हुआ, जो अनिवार्य रूप से परमेश्वर को तोड़कर, एकमात्र सच्चे परमेश्वर को नकारना है। क्या यह बेवकूफी नहीं है? क्या ऐसा हो सकता है कि जब उसने संसार का सृजन किया तब वह एकमात्र परमेश्वर नहीं था? या व्यवस्था के युग में वह एकमात्र सच्चा परमेश्वर नहीं था? अनुग्रह के युग में देहधारी रूप में प्रकट होकर कार्य करने के बाद, एकमात्र सच्चा परमेश्वर त्रित्व का परमेश्वर क्यों बनेगा? क्या यह इंसानी बेतुकेपन और बकवास से उपजी गलती नहीं है? अगर त्रित्व का विचार सही है, तो संसार की रचना करते समय परमेश्वर ने अपने तीन व्यक्तियों की गवाही क्यों नहीं दी? और व्यवस्था के युग में किसी ने भी इसकी गवाही क्यों नहीं दी? प्रकाशितवाक्यों में पवित्र आत्मा के द्वारा त्रित्व के बारे में कोई गवाही क्यों नहीं है? इस प्रकार हम आश्वस्त हो सकते हैं कि परमेश्वर के आत्मा, पवित्र आत्मा, पिता और पुत्र ने कभी ऐसी गवाही नहीं दी कि परमेश्वर एक त्रित्व है। भ्रष्ट इंसानों, और धार्मिक संसार ने देहधारी प्रभु यीशु के कार्य के सदियों बाद, इस बेतुके सिद्धांत को तैयार किया। यह स्पष्ट है कि त्रित्व के विचार में दम नहीं है, और यह इंसानी धारणा और कल्पना के सिवाय कुछ नहीं है। 2,000 साल से भी ज्यादा समय से यह धार्मिक संसार की सबसे बड़ी भ्रांति है, जिसने अनगिनत लोगों को गुमराह कर नुकसान पहुँचाया है।

इस मुकाम पर, आप सोच रहे होंगे कि पवित्र आत्मा ने यह गवाही क्यों दी कि प्रभु यीशु “प्रिय पुत्र” था, और प्रभु यीशु ने अपनी प्रार्थनाओं में स्वर्ग के परमेश्वर को “पिता” क्यों कहा? इसका अर्थ क्या है? आइए, इस बारे में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन पर गौर करें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “अन्य लोग हैं, जो कहते हैं, ‘क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?’ यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है—यह निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को गवाही देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के वचन, ‘मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है,’ क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। “जब प्रार्थना करते हुए यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया, तो यह केवल एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से किया गया था, केवल इसलिए कि परमेश्वर के आत्मा ने एक सामान्य और साधारण देह का चोला धारण किया था और उसका वाह्य आवरण एक सृजित प्राणी का था। भले ही उसके भीतर परमेश्वर का आत्मा था, उसका बाहरी प्रकटन अभी भी एक सामान्य व्यक्ति का था; दूसरे शब्दों में, वह ‘मनुष्य का पुत्र’ बन गया था, जिसके बारे में स्वयं यीशु समेत सभी मनुष्यों ने बात की थी। यह देखते हुए कि वह मनुष्य का पुत्र कहलाता है, वह एक व्यक्ति है (चाहे पुरुष हो या महिला, किसी भी हाल में एक इंसान के बाहरी चोले के साथ) जो सामान्य लोगों के साधारण परिवार में पैदा हुआ। इसलिए, यीशु का स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना, वैसा ही था जैसे तुम लोगों ने पहले उसे पिता कहा था; उसने सृष्टि के एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से ऐसा किया। ... परमेश्वर (अर्थात स्वर्ग में आत्मा) को उसका इस प्रकार संबोधन करना हालांकि यह साबित नहीं करता कि वह स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मा का पुत्र है। बल्कि, यह केवल यही है कि उसका दृष्टिकोण अलग था, न कि वह एक अलग व्यक्ति था। अलग व्यक्तियों का अस्तित्व एक मिथ्या है!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। परमेश्वर के वचनों से हम समझ सकते हैं कि पवित्र आत्मा का प्रभु यीशु को प्रिय पुत्र कहना, परमेश्वर का आत्मा के नजरिए से अपने देहधारण की गवाही देना था। अगर पवित्र आत्मा ने ऐसा न किया होता, तो कोई भी प्रभु यीशु की सच्ची पहचान नहीं जान पाता। इसलिए इस खुली गवाही से लोग जान पाए कि प्रभु यीशु परमेश्वर का देहधारण है। प्रार्थना करते समय प्रभु यीशु ने परमेश्वर को पिता इसलिए कहा क्योंकि देह रूप में वह अलौकिक नहीं था, बल्कि सामान्य इंसानियत के साथ जी रहा था, वह आम इंसान जैसा महसूस करता था। इसीलिए उसने एक सृजित प्राणी के स्थान पर खड़े होकर, स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मा को पिता कहा। मसीह का ऐसे प्रार्थना करना उसकी विनम्रता और आज्ञाकारिता को मूर्त रूप देना है। लेकिन पिता से प्रभु यीशु की प्रार्थनाओं के आधार पर, धार्मिक संसार ने, यह कहकर परमेश्वर को दो अंशों में विभाजित कर दिया कि मसीह और यहोवा के बीच पिता-पुत्र का संबंध है, प्रभु यीशु के शिष्य फिलिप्पुस ने उससे इस बारे में पूछा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिये बहुत है” (यूहन्ना 14:8)। उसका क्या जवाब था? प्रभु ने कहा, “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? क्या तू विश्‍वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है?(यूहन्ना 14:9-10)। उसने यह भी कहा, “मैं और पिता एक हैं(यूहन्ना 10:30)। साफ तौर पर पिता और पुत्र एक ही परमेश्वर हैं, और उनका सबंध पिता-पुत्र का नहीं है जैसा कि लोग सोचते हैं। पिता और पुत्र का यह विचार सिर्फ इसलिए आया क्योंकि परमेश्वर ने देहधारण किया, यह उसके देहधारी रूप में कार्य करने के समय के लिए ही लागू है। परमेश्वर का देहधारी रूप में कार्य जैसे ही बंद हुआ, उसने अपना मूल रूप धारण कर लिया, और फिर पिता-पुत्र जैसी कोई चीज नहीं रही।

आइए, परमेश्वर के कुछ और वचनों पर नजर डालें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “यीशु के भीतर का आत्मा, स्वर्ग में आत्मा और यहोवा का आत्मा सब एक हैं। इसे पवित्र आत्मा, परमेश्वर का आत्मा, सात गुना सशक्त आत्मा और सर्वसमावेशी आत्मा कहा जाता है। परमेश्वर का आत्मा बहुत से कार्य क्रियान्वित कर सकता है। वह दुनिया को बनाने और पृथ्वी को बाढ़ द्वारा नष्ट करने में सक्षम है; वह सारी मानव जाति को छुटकारा दिला सकता है और इसके अलावा वह सारी मानवजाति को जीत और नष्ट कर सकता है। यह सारा कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा क्रियान्वित किया गया है और उसके स्थान पर परमेश्वर के किसी अन्य व्यक्तित्व द्वारा नहीं किया जा सकता है। उसके आत्मा को यहोवा और यीशु के नाम से, साथ ही सर्वशक्तिमान के नाम से भी बुलाया जा सकता है। वह प्रभु और मसीह है। वह मनुष्य का पुत्र भी बन सकता है। वह स्वर्ग में भी है और पृथ्वी पर भी है; वह ब्रह्मांडों के ऊपर और बहुलता के बीच में है। वह स्वर्ग और पृथ्वी का एकमात्र स्वामी है! सृष्टि के समय से अब तक, यह कार्य स्वयं परमेश्वर के आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया गया है। यह कार्य स्वर्ग में हो या देह में, सब कुछ उसकी आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। सभी प्राणी, चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर, उसकी सर्वशक्तिमान हथेली में हैं; यह सब स्वयं परमेश्वर का कार्य है और उसके स्थान पर किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता। स्वर्ग में वह आत्मा है, लेकिन स्वयं परमेश्वर भी है; मनुष्यों के बीच वह देह है, पर स्वयं परमेश्वर बना रहता है। यद्यपि उसे सैकड़ों-हज़ारों नामों से बुलाया जा सकता है, तो भी वह स्वयं है, आत्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है। उसके क्रूसीकरण के माध्यम से सारी मानव जाति का छुटकारा उसके आत्मा का प्रत्यक्ष कार्य था और वैसे ही अंत के दिनों के दौरान सभी देशों और सभी भूभागों के लिए उसकी घोषणा भी। हर समय, परमेश्वर को केवल सर्वशक्तिमान और एक सच्चा परमेश्वर, सभी समावेशी स्वयं परमेश्वर कहा जा सकता है। अलग-अलग व्यक्ति अस्तित्व में नहीं हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का यह विचार तो बिल्कुल नहीं है! स्वर्ग में और पृथ्वी पर केवल एक ही परमेश्वर है!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर एक आत्मा है, जोकि पवित्र आत्मा है। वह सर्वशक्तिमान है; उसने स्वर्ग, पृथ्वी, और सभी चीजों का सृजन किया और सब पर शासन करता है। वह अपने कार्य के लिए देहधारी बन सकता है, इंसानों के बीच व्यावहारिक ढंग से जी सकता है। बाहर से देखने में वह एक आम इंसान लगता है, लेकिन उसका पूरा कार्य पवित्र आत्मा द्वारा संचालित होता है। जब देहधारी रूप में उसका कार्य ख़त्म हो जाता है, तो परमेश्वर फिर से अपना मूल रूप धारण कर लेता है। देहधारी रूप परमेश्वर का वह रूप है जिसमें कार्य के एक चरण के दौरान वह इंसान के सामने प्रकट होता है। इसलिए, परमेश्वर अपना कार्य सीधे आत्मा से करे या देहधारी होकर, उसे यहोवा कहा जाए या यीशु या सर्वशक्तिमान परमेश्वर, वह वही आत्मा है। वह स्वयं परमेश्वर है, वह स्वयं-विद्यमान है, अनंत है, और वह सभी चीजों का सृजन कर उन पर शासन करता है। हमारी संगति के इस मुकाम पर, मेरे विचार से सबने समझ लिया होगा कि परमेश्वर सिर्फ एक है, एकमात्र सच्चा परमेश्वर। इसमें ज़रा भी शक नहीं है। ईसाई धर्म इस बात पर कायम है कि एकमात्र सच्चा परमेश्वर त्रित्व है, वह परमेश्वर को तीन अंशों में विभाजित करने पर अड़ा हुआ है, यह मत फैला रहा है कि तीनों के एकसाथ मिलने से ही एक सच्चा परमेश्वर बनता है, अलग-अलग, वे एकमात्र सच्चा परमेश्वर नहीं हैं। क्या यह वास्तव में परमेश्वर को नकारना नहीं है? इंसानों की परमेश्वर के बारे में ऐसी भयंकर गलतफहमी यह साबित करती है कि उन्हें बाइबल की जरा-भी समझ नहीं है, वे परमेश्वर का सार नहीं जानते, और बाइबल की शाब्दिक सामग्री की समझ को लेकर वे बहुत ज्यादा घमंडी हैं, वे इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर को सीमित और विभाजित करते हैं। यह दरअसल परमेश्वर का प्रतिरोध करना और उसका तिरस्कार करना है।

और अब, अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर आया है, अपना कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है, और धार्मिक संसार की सबसे बड़ी भ्रांतित्रित्व को उजागर कर रहा है। अब हम आश्वस्त हैं कि परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। उसका आत्मा ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, पवित्र आत्मा ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, और उसके देहधारी रूप ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर हैं। अपने आत्मा के रूप में, पवित्र आत्मा के रूप में, और अपने देहधारी रूप में, वही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है और वही एक मात्र परमेश्वर है। उसे विभाजित नहीं किया जा सकता। अगर लोग इन सत्यों को स्वीकार नहीं कर सकते, अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहते हैं, त्रित्व में विश्वास रखने पर अड़े रहते हैं, और एकमात्र सच्चे परमेश्वर को तीन परमेश्वरों के रूप में देखते हैं, तो यह परमेश्वर की निंदा और उसके तिरस्कार का पाप है। परमेश्वर के आत्मा का तिरस्कार करना पवित्र आत्मा का तिरस्कार करना है, और कोई भी इसके परिणामों को सह नहीं पाएगा। बुद्धिमान लोगों के पास एक मौक़ा है कि वे बिना देर किए जाग्रत हों, और परमेश्वर के खिलाफ जाने की गलती करने से बचने के लिए इस गलत नजरिए से चिपके न रहें। प्रभु यीशु ने कहा था, “मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, परन्तु पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न परलोक में क्षमा किया जाएगा(मत्ती 12:31-32)। धार्मिक संसार अभी भी जिद पकड़कर त्रित्व की इस भ्रांति पर अड़ा हुआ है। वह कब तक परमेश्वर का प्रतिरोध करता रहेगा? अब जागने का समय है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “इतने सालों में, तुम लोगों के द्वारा परमेश्वर इस प्रकार विभाजित किया गया है, हर पीढ़ी द्वारा इसे इतना बारीक़ी से विभाजित किया गया है कि एक परमेश्वर को खुलकर तीन हिस्सों में बांट दिया गया है। और अब मनुष्य के लिए यह पूरी तरह असंभव है कि इन तीनों को फिर से एक परमेश्वर बना पाए, क्योंकि तुम लोगों ने उसे बहुत ही सूक्ष्मता से बांटा है! यदि मेरा कार्य सही समय पर शुरू न हुआ होता तो कहना कठिन है कि तुम लोग कब तक इसी तरह ढिठाई करते रहते! इस प्रकार से परमेश्वर को विभाजित करना जारी रखने से, वह अब तक तुम्हारा परमेश्वर कैसे रह सकता है? क्या तुम लोग अब भी परमेश्वर को पहचान सकते हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। “क्या तुम्हारा तर्क परमेश्वर के कार्य का पूरी तरह से विश्लेषण कर सकता है? क्या तुम यहोवा के सभी कार्यों की अंतर्दृष्टि पा सकते हो? क्या यह तुम एक मानव होकर सब कुछ देख सकते हो या स्वयं परमेश्वर ही अनंत से अनंत तक देखने में सक्षम है? क्या तुम बीते अनंत काल से आने वाले अनंत काल तक देख सकते हो या यह परमेश्वर है, जो ऐसा कर सकता है? तुम्हारा क्या कहना है? परमेश्वर की व्याख्या करने के लिए तुम कैसे योग्य हो? तुम्हारे स्पष्टीकरण का आधार क्या है? क्या तुम परमेश्वर हो? स्वर्ग और पृथ्वी, और सभी चीज़ें स्वयं परमेश्वर द्वारा बनाई गई थीं। यह तुम नहीं थे जिसने यह किया था, तो तुम गलत व्याख्याएं क्यों दे रहे हो? अब, क्या तुम त्रयात्मक परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखे हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस तरह यह बहुत बोझिल है? तुम्हारे लिए सबसे अच्छा होगा कि तुम एक परमेश्वर में विश्वास करो, न कि तीन में। हल्का होना सबसे अच्छा है क्योंकि प्रभु का भार हल्का है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)

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