अंधभक्ति का नतीजा

20 मार्च, 2022

सोंग यू, नीदरलैंड

2019 में, वांग के साथ काम करते हुए, मैं अगुआ पद की ट्रेनिंग ले रही थी। बातचीत के दौरान पता चला उसने चीन में कई सालों तक अगुआ का काम किया है, कई अलग-अलग प्रोजेक्ट को संभाला है। टीम से जुड़ते ही, उसे फौरन अगुआ बनाकर, कई कलीसियाओं की जिम्मेदारी दी गई। सुनकर लगा कि उसके पास अच्छी काबिलियत और सिद्धांतों की समझ होगी, वो सत्य समझता होगा। वरना, वो ऐसी अहम जिम्मेदारियां कैसे संभाल पाता? मैं भी उसकी सराहना करने लगी। मन-ही-मन कहा, मैं तो अभी काम सीख रही हूँ, बहुत से सिद्धांतों की जानकारी नहीं है। चीज़ों की गहरी समझ भी नहीं है, मुश्किल समस्याएं आने पर उलझन में पड़ सकती हूँ। सिद्धांतों की जानकारी रखने वाले व्यक्ति की साथी बनी हूँ, तो मुझे उससे सीखना चाहिए, जल्द सिद्धांत समझने चाहिए, ताकि कलीसिया का काम अच्छे से कर सकूँ।

वांग के साथ सभाओं में वक्त गुजरता गया, एक बार उसे चीन में निभाई एक जिम्मेदारी की बात करते सुना। कुछ कलीसियाएं अच्छा काम नहीं कर रही थीं, उनकी जिम्मेदारी उसे सौंपी गई। पहले, उसे लगा ये कोई मुश्किल काम होगा, वो जाना नहीं चाहता था, पर परमेश्वर के वचन खाने-पीने और प्रार्थना करने के बाद, उसने वो जिम्मेदारी स्वीकार ली। जिम्मेदारी संभालने के बाद, कई वास्तविक मुश्किलें सामने आईं, पर कुछ दिनों की कड़ी मेहनत से, कलीसिया का काम अच्छे से आगे बढ़ने लगा। उसकी बात सुनकर, लगा उसके पास काबिलियत है, उसने जिम्मेदारी लेकर परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखा, ठंडे बस्ते में पड़े प्रोजेक्ट में फिर से नई जान डाल डाली। उसके पास पवित्र आत्मा का कार्य, परमेश्वर का मार्गदर्शन और आशीष जरूर होगी, मैं उसकी और भी सराहना करने लगी। साथ में काम करते हुए मैं उसकी सहभागिता ध्यान से सुनने लगी। उसने बताया कि कर्तव्य निभाने के लिए उसने परिवार को छोड़ दिया, निजी हित किनारे कर दिए, बताया कैसे उसके परिवार ने उसे रोका, कैसे उसने शैतान की चालों से जीतकर गवाही दी, कैसे उसने मसीह-विरोधियों को पहचाना, उन्हें कलीसिया से बाहर करके भाई-बहनों की किस प्रकार से रक्षा की। यह भी बताया कि कैसे उसने काम में मुश्किलों का सामना कर रहे अगुआओं की मदद की, हाथ पकड़कर सिद्धांतों को समझने में उनकी मदद की। उसकी कहानियां सुनकर, लगा भले ही हम काम में साथी हैं, पर हम आम लोगों से उसका स्तर ऊँचा है, उसे चीज़ों की गहरी समझ है, हम तो उसके आसपास भी नहीं हैं। समय के साथ, मैं ध्यान देने लगी कि वो अपना काम कैसे करता है। सभाओं में, पहले वो इंसान के लिए परमेश्वर के प्रेम और उसकी इच्छा का ध्यान रखने से जुड़े वचनों पर सहभागिता करता, फिर बताता कैसे परमेश्वर हममें काम करता है, हमें बचाता है, कितना अनुग्रह देता है, उसके प्रेम का मूल्य कैसे चुकाना चाहिए। फिर, व्यावहारिक काम करने के तरीके बताता, और कैसे उसने चीन में खुद हर जगह जाकर वास्तविक काम कर अच्छे नतीजे हासिल किये। इन सबके बाद भी, अगर उसे कहीं किसी जगह कोई समस्या दिखती, तो वो व्यावहारिक काम नहीं करने पर अगुआओं का निपटान और विश्लेषण करता, कहता उनमें इंसानियत और विवेक की कमी है, वे गैर-जिम्मेदार हैं, परमेश्वर की इच्छा का ध्यान नहीं रखते, यही वजह थी कि उन्हें नतीजे और परमेश्वर का मार्गदर्शन नहीं मिला। फिर वो चीन में अपने काम की बात करता, कैसे परमेश्वर पर भरोसा करके पवित्र आत्मा का कार्य हासिल किया, सभी समस्याओं और मुश्किलों को हल किया। फिर वो उनसे समस्याएँ हल करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने को कहता। कुछ समय बाद, वो सभाओं में उनसे बहुत लंबे-चौड़े सवाल पूछने लगा, कुछ जगहों पर उनके सुसमाचार कार्य में अधिक सफलता दिखी। काम की ये शैली मेरे लिए बिल्कुल नई थी। हर चरण अगले चरण से जुड़ा था, काफी व्यवस्थित था। उसके बोलने और काम करने का ढंग निर्णायक और विश्वास भरा था, बहुत से भाई-बहन उसकी सराहना करते थे। मुझे लगा उसने काफी समय से अगुआ के रूप में किया है, उसके पास काफी अनुभव है, तो समस्याएं हल करने और सुधार के कदम उठाने में मुझसे बेहतर होगा। उसकी काम करने की शैली बहुत ऊँची थी, मैं सोचती उसके जैसी कब बन पाऊँगी। सोचा अगर मैं भी उसी की तरह काम करने लगूं, तो शायद मुझे भी अच्छे नतीजे मिलें, दूसरे मेरे बारे में ऊँचा सोचें।

उसके बाद भाई-बहनों के साथ सभाओं में, मैं परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान देने वाले अंश से शुरु करती, सहभागिता में बताती कैसे परमेश्वर हममें काम करता है, हमें बचाता है, कैसे उसके प्रेम का मूल्य चुकाना चाहिए, कैसे काम में दिल लगाना और व्यावहारिक काम करना चाहिए। जब सुसमाचार टीम को अच्छे नतीजे नहीं मिले, तो मैंने वांग की तरह बोलते हुए काट-छाँट और निपटान किया, कहा कि उन्हें अच्छे नतीजे इसलिए नहीं मिले क्योंकि वे अपने काम का दायित्व नहीं उठाते, उन जैसे लोगों के पास विवेक या इंसानियत नहीं है, वे बस सेवा-कर्मी हैं। हर सभा में, मैं उनके सुसमाचार कार्य के नतीजों के बारे में लंबे-चौड़े सवाल पूछती। चीज़ें अच्छी नहीं दिखतीं तो उनकी कड़ी निंदा करती थी, ये सोचकर कि इतनी अधिक सहभागिता के बाद भी उन्हें अच्छे नतीजे नहीं मिले, यानी वे कड़ी मेहनत नहीं कर रहे हैं। उसके बाद, मैंने व्यावहारिक काम करने, उसमें दिल लगाने और लापरवाह न होने के बारे में सहभागिता की। अपनी सहभागिता में उनकी काट-छाँट और निपटान किया। इन सबके बावजूद, उनके प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं हुआ। मैं बहुत उलझन में पड़ गई—मैंने वांग की कार्य-शैली अपनाई, तो फिर नतीजे क्यों नहीं दिख रहे? बाद में, एक बहन की किसी बात पर मैंने आत्मचिंतन किया। हम अपने काम में हमारे अनुभव और सामने आई चुनौतियों के बारे में बात कर रहे थे, तब उसने खुलकर बताया, मेरे साथ काम करने से उसे दबाव और बेबसी का अनुभव होता था, मैं हर सभा में घमंडी रवैया अपनाकर उसे फटकारती रहती थी, इन सबके बाद, मन कड़ा करके हर चीज़ बिना मन लगाए करने लगी। अच्छा काम नहीं करने पर उसे निपटाये जाने का डर सताता था, इतना दबाव था कि वो अब मेरे साथ सभा नहीं करना चाहती थी। उसने ये भी कहा कि मैं अपनी भ्रष्टता और कमियों के बजाय सिर्फ दूसरों की समस्याओं के बारे में बात करती थी, ताकि लोग मेरे दिल में न झाँक सकें और मुझसे दूरी महसूस करें। ये कहते हुए वो रोये जा रही थी। यह सब सुनकर मैं परेशान हो गई—लगा मैंने वाकई उसके साथ गलत किया है। मैं नहीं जानती थी ऐसे काम करने से दूसरों को इतना दुख पहुंचेगा। मैं बस अच्छे से काम करके नतीजों में सुधार लाना चाहती थी। पर मैं तो अपना काम ही ठीक से नहीं कर रही थी, भाई-बहनों को भी बेबस महसूस करा रही थी। मैं कहां गलती कर रही थी? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए, समस्या को समझने में मार्गदर्शन माँगा।

धार्मिक कार्यों में, परमेश्वर के वचनों का ये अंश दिखा : "अगर कलीसिया के एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने और परमेश्वर की उचित गवाही देने में अगुआई करनी है, तो सबसे महत्वपूर्ण बात लोगों का परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और सत्य की संगति करने में अधिक समय व्यतीत करने में मार्गदर्शन करना है, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग मनुष्य को बचाने में परमेश्वर के उद्देश्यों और परमेश्वर के कार्य के प्रयोजन का गहरा ज्ञान प्राप्त कर सकें, और परमेश्वर की इच्छा और मनुष्य के लिए उसकी विभिन्न आवश्यकताएँ समझ सकें, और इस प्रकार उन्हें सत्य को समझने दें। ... अगर तुम केवल लोगों से निपटते हो और उन्हें व्याख्यान देते हो, तो क्या तुम उन्हें सत्य समझा सकते हो और उसकी वास्तविकता में प्रवेश करा सकते हो? जिस सत्य की तुम संगति करते हो, अगर वह वास्तविक नहीं है, अगर वह सिद्धांत के शब्दों के अलावा कुछ नहीं है, तो तुम कितना भी उनसे निपटो और उन्हें व्याख्यान दो, उसका कोई लाभ नहीं होगा। क्या तुम्हें लगता है कि लोगों का तुमसे डरना और जो तुम उनसे कहते हो वह करना, और विरोध करने की हिम्मत न करना, उनके सत्य को समझने और आज्ञाकारी होने के समान है? यह एक बड़ी गलती है; जीवन में प्रवेश इतना आसान नहीं है। कुछ अगुआ एक मजबूत छाप छोड़ने की कोशिश करने वाले एक नए प्रबंधक की तरह होते हैं, वे अपने नए प्राप्त अधिकार को परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर थोपने की कोशिश करते हैं ताकि हर व्यक्ति उनके अधीन हो जाए, उन्हें लगता है कि इससे उनका काम आसान हो जाएगा। अगर तुममें सत्य की वास्तविकता का अभाव है, तो तुम्हारे असली रंग जल्दी ही सामने आ जाएँगे, तुम्हारा असली अध्यात्मिक कद उजागर हो जाएगा, और तुम्हें हटाया भी जा सकता है। कुछ प्रशासनिक कार्यों में थोड़ा निपटान, काट-छाँट और अनुशासन स्वीकार्य है। लेकिन अगर तुम सत्य प्रदान करने में असमर्थ हो—अगर तुम केवल लोगों को व्याख्यान देने में सक्षम हो, और बस अचानक आगबबूला हो जाते हो—तो यह तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव है जो प्रकट हो रहा है, और तुमने अपनी भ्रष्टता का बदसूरत चेहरा दिखा दिया है। जैसे-जैसे समय बीतेगा, परमेश्वर के चुने हुए लोग तुमसे जीवन का प्रावधान प्राप्त करने में असमर्थ हो जाएँगे, वे कुछ भी वास्तविक हासिल नहीं करेंगे, और इसलिए तुमसे घृणा करेंगे और तुम्हें ठुकरा देंगे, और तुमसे दूर चले जाएँगे। ... कुछ अगुवे और कर्मी समस्याओं के समाधान के लिए सत्य का संचार करने में बिलकुल असमर्थ होते हैं। इसके बजाय, वे बस आँख मूंदकर दूसरों को निपटारा करते हैं और अपनी शक्ति का दिखावा करते है जिससे दूसरे उनसे डरने लगें और उनका कहा मानें—झूठे अगुवाओं और मसीह-विरोधियों के स्वाभाविक तरीके ऐसे होते हैं। तथ्य यह साबित करते हैं कि जिन लोगों के स्वभाव नहीं बदले हैं, वे अगुआ और कर्मी बनने के योग्य नहीं हैं, परमेश्वर की सेवा करने और उसकी गवाही देने के तो और भी योग्य नहीं हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'केवल वे ही अगुआई कर सकते हैं जिनके पास सत्य वास्तविकता है')। परमेश्वर ने जो भी कहा, वो सब मुझ पर पूरी तरह फिट बैठता था। सभाओं में जब पता चला कि भाई-बहनों को अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे, तो मैंने उनकी असली परेशानियों या अच्छे से सुसमाचार न फैलाने के कारण जानने की कोशिश नहीं की, न ही उनकी समस्याओं को हल करने में मदद के लिए सत्य पर सहभागिता की। मैंने बस उनकी काट-छाँट और निपटान किया, अहंकार से उन्हें डांटा, दायित्व नहीं उठाने या इंसानियत नहीं होने के लिए उनकी आलोचना की। इससे भाई-बहन मुझसे बेबस होकर डर ने लगे, उन्होंने मुझसे दूरी बना ली। उनकी मदद के लिए सत्य पर सहभागिता करने के बजाय मैंने अहंकार से उन्हें फटकारा, दबाव बनाया, अपने रुतबे का गलत इस्तेमाल किया। ऐसे ही चलता रहा तो मैं झूठी अगुआ या मसीह-विरोधी बन सकती थी। समस्या की गंभीरता देखकर मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की : "परमेश्वर, मैंने अपने रुतबे का गलत इस्तेमाल कर, बिना सोचे-समझे लोगों का निपटान किया। अपना काम अच्छे से नहीं किया, और भाई बहनों को दुख पहुंचाया। अब मैं पश्चाताप करना चाहती हूँ। मुझे राह दिखाओ।" उसके बाद, परमेश्वर के वचनों में मुझे अभ्यास का मार्ग मिला। तब से, पहले मैं भाई-बहनों से उनकी परेशानियों के बारे में पूछती, फिर समस्या पर अपनी समझ बताकर परमेश्वर के वचनों के आधार पर सहभागिता करती। इस तरह, दूसरे बेबस महसूस नहीं करते, उन्हें कुछ मदद भी मिलती। कुछ दिन ऐसे काम करके मुझे बेहतर महसूस हुआ।

लगा मैंने यह सबक अच्छी तरह सीख लिया है, फिर परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिससे यह समझने में मदद मिली कि क्यों मैं वांग की नकल कर रही थी, और परमेश्वर में आस्था के किस मार्ग पर चल रही थी। परमेश्वर के वचन कहते हैं : "कलीसिया के भीतर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का स्तर जो भी हो, अगर तुम लोग हमेशा उनकी आराधना करते हो, अगर तुम्हारी आँखें हमेशा उन पर टिकी रहती हैं, और तुम उन्हें पूजते हो, और हर चीज के लिए उन पर निर्भर रहते हो, और आशा करते हो कि इससे तुम्हें उद्धार मिलेगा, तो यह सब व्यर्थ हो जाएगा, क्योंकि यह प्रेरणा अपने आप में गलत है; जब लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो वे केवल परमेश्वर की ही आराधना और उसका ही अनुसरण कर सकते हैं। अगुआओं में उनका स्तर चाहे जो हो, अगुआ आम इंसान ही होते हैं। अगर तुम उन्हें अपना आसन्न वरिष्ठ समझते हो, अगर तुम्हें लगता है कि वे तुमसे श्रेष्ठ हैं, तुमसे ज़्यादा योग्य हैं, वे तुम्हारी अगुवाई करें, वे उस वर्ग में सर्वश्रेष्ठ हैं, तो फिर यह ग़लत है—यह तुम्हारा भ्रम है। और इस भ्रम का नतीजा क्या होता है? यह भ्रम और यह त्रुटिपूर्ण समझ तुम्हें अनजाने में अपने अगुआओं से ऐसी अपेक्षाएं करने की ओर ले जाएंगे जो वास्तविकता के अनुरूप नहीं हैं; साथ ही, तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम उनके हुनर, खूबियों और प्रतिभाओं की ओर गहराई से आकर्षित होने लगोगे, इस हद तक कि तुम्हें पता भी न चलेगा और तुम उनकी आराधना कर रहे होगे, और वे तुम्हारे परमेश्वर बन चुके होंगे। जब वे तुम्हारे आदर्श और तुम्हारी आराधना के लक्ष्य बनना शुरू हो जाते हैं, तो यह पथ, उस क्षण से लेकर उस पल तक जब तुम उनके अनुयायियों में से एक बन जाते हो, तुम्हें अनजाने में परमेश्वर से दूर ले जाएगा। धीरे-धीरे परमेश्वर से दूर जाते हुए भी, तुम्हें ऐसा लगेगा कि तुम परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हो, तुम परमेश्वर के घर में हो, तुम परमेश्वर की उपस्थिति में हो। लेकिन वास्तव में, तुम्हें किसी ऐसे ने लुभा लिया है जो शैतान का है, या मसीह विरोधी है, और तुम्हें इसका पता भी नहीं चलेगा—जो कि बहुत ख़तरनाक स्थिति है। इस समस्या को हल करने के लिए, तुम्हें मसीह विरोधियों के अलग-अलग स्वभाव और उनके काम करने के तरीकों को ठीक ढंग से समझना और पहचानना चाहिए। साथ ही, तुम्हें उनके कार्यों की प्रकृति और उनकी प्रणालियों और चालों को भी समझ लेना चाहिए जिनका उपयोग करना वे पसंद करते हैं; तुम्हें अपने आप पर भी काम करने की शुरुआत करनी चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए मनुष्य की आराधना करना सही रास्ता नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं: 'हाँ, मैं अगुआओं की आराधना करता हूँ लेकिन ऐसा करने के मेरे अपने कारण हैं—जिनकी मैं आराधना करता हूँ वे मेरी धारणाओं के अनुरूप हैं।' तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हुए भी मनुष्य की आराधना करने पर क्यों तुले हुए हो? ये सब कुछ हो जाने के बाद, तुम्हें कौन बचाएगा? कौन है जो सचमुच तुम से प्रेम करता है और तुम्हारी रक्षा करता है—क्या तुम सचमुच नहीं देख पाते? तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो और उसके वचन को सुनते हो, और अगर कोई सही तरीके से बोलता है और कार्य करता है, और यह सत्य के सिद्धांतों के अनुरूप है, तो क्या सत्य का पालन करना सही नहीं है? तुम इतने नीच क्यों हो? अनुसरण के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश करने की ज़िद पर क्यों अड़े रहते हो जिसकी तुम आराधना करते हो? तुम शैतान के गुलाम क्यों बनना चाहते हो? इसके बजाय, तुम सत्य के सेवक क्यों नहीं बनते? यह दिखाता है कि किसी व्यक्ति में समझदारी और गरिमा है या नहीं। तुम्हें ख़ुद पर काम करना शुरू करना चाहिए, अपने आप को उन सत्यों से युक्त करो जो विभिन्न लोगों और घटनाओं में फ़र्क बताते हैं, उन तमाम मामलों और लोगों में प्रकट की गई तमाम बातों में भेद करना सीखो, यह जानो कि उनका सार क्या है और कौन-से स्वभाव उजागर होते हैं; तुम्हें यह भी समझना चाहिए कि तुम किस तरह के व्यक्ति हो, तुम्हारे आसपास के लोग किस तरह के हैं और किस तरह के लोग तुम्हारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। उन्हें सही ढंग से देखने में तुम्हें सक्षम होना चाहिए। ... अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, और हमेशा एक खास तरह की कल्पनाओं के बीच जीते हो, और हमेशा दूसरे लोगों पर आँखें मूँदकर निर्भर रहते हो, उन्हें पूजते और उनकी चापलूसी करते हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर नहीं चलते, तो अंतिम परिणाम क्या होगा? सभी तुम्हें धोखा देने में सक्षम हैं। तुम किसी की भी असलियत नहीं देख पाते—सबसे कट्टर मसीह-विरोधियों की भी नहीं, जो अपने हथकंडों से तुम्हें उलझा देते हैं; फिर भी तुम उनकी योग्यताओं की प्रशंसा करते हो, हर दिन उनकी धुन पर नाचते हो। क्या यह कोई ऐसा व्यक्ति है, जो परमेश्वर का अनुसरण और उसका आज्ञापालन करता है?" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अजीब और रहस्यमय तरीके से व्यवहार करते हैं, वे स्वेच्छाचारी और तानाशाह होते हैं, वे कभी दूसरों के साथ संगति नहीं करते, और वे दूसरों को अपने आज्ञापालन के लिए मजबूर करते हैं')। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैंने जाना कि मैं आस्था रखकर भी इंसान की पूजा और अनुसरण करती थी। वांग से बात करके मालूम हुआ कि वो कई सालों से अगुआ था, मुझे वो सत्य खोजने वाला लगा तो मैं उसे सराहने लगी। उस पर कई कलीसियाओं के काम का भार था, वो बिगड़ी बात भी बना देता था, ये जानकर मैंने उसकी और भी प्रशंसा की। लगा कि वो इतने काम करता है तो उसके पास पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और परमेश्वर की आशीष जरूर होगी, परमेश्वर उससे प्रेम करता होगा। उसे यह कहते सुनकर कि कैसे वो परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखता था, और उसके काम करने के तरीकों और नतीजों से लगा जैसे सभी अगुआओं में, वांग के पास सबसे अच्छी काबिलियत और क्षमताएं हैं, उसका आध्यात्मिक कद बड़ा है। अनजाने ही, मेरे मन में उसकी शानदार छवि बन गई थी। मैं उसकी पूजा करने लगी। सोचा कि एक योग्य अगुआ बनने के लिए, मुझे उसकी कार्यशैली से सीखना चाहिए। सभाओं में, मैं दूसरे लोगों की बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देती थी। लगता उनकी सहभागिता से मुझे कोई लेना-देना नहीं है, पर वांग के बोलने की बारी आते ही, मैं पूरे ध्यान से उसे सुनने लगती। कभी-कभी इस डर से उसकी कही मुख्य बातों को नोट कर लेती कि कहीं कोई ज़रूरी बात छूट न जाये। इस दौरान, मैं प्रार्थना करने और सत्य खोजने परमेश्वर के पास नहीं आती थी, अगुआओं के काम के ढंग के बारे में परमेश्वर के वचनों में सिद्धांत नहीं खोजे। मैं बस वांग की बातें और कार्यशैली ऐसे अपना रही थी, मानो वे ही सत्य हों। मैं उसके हाव-भाव, उपदेश देने और काम करने के तरीके की भी नकल करती। मेरे दिल में उसकी जगह बहुत ऊँची थी। मेरे काम करने और कर्तव्य निभाने के तौर-तरीकों पर उसका असर था। वो मेरा आदर्श बन गया था। कहने को तो मैं परमेश्वर की अनुयायी थी, पर वास्तव में, मैं वांग की बातों पर चल रही थी, मेरे दिल में परमेश्वर की जगह नहीं थी। मैं इंसान की भक्ति और अनुसरण कर रही थी, जो असल में शैतान का अनुसरण करना था, मैं परमेश्वर से दूर जाकर उसे धोखा दे रही थी। प्रभु यीशु ने कहा था, "तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर" (मत्ती 4:10)। परमेश्वर एक ईर्ष्यालु परमेश्वर है, वो अपने विश्वासियों को इंसान की पूजा करने की अनुमति नहीं देता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "चूँकि तुम पहले ही मेरी सेवा करने का संकल्प ले चुके हो, इसलिए मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा। मैं ईर्ष्यालु परमेश्वर हूँ, और मैं वह परमेश्वर हूँ, जो मनुष्य के प्रति शंकालु है। चूँकि तुमने पहले ही अपने शब्दों को वेदी पर रख दिया है, इसलिए मैं यह बरदाश्त नहीं करूँगा कि तुम मेरी ही आँखों के सामने से भाग जाओ, न ही मैं यह बरदाश्त करूँगा कि तुम दो स्वामियों की सेवा करो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!)। परमेश्वर का स्वभाव कोई अपमान नहीं सहता। उसे ऐसे लोग नापसंद हैं जिनकी आस्था नाम की है, उनके दिलों में उसकी जगह नहीं होती, वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, पर इंसान का अनुसरण करते हैं। परमेश्वर को उनसे घृणा है—उनसे नफरत है। यह जानकर कि मैं एक इंसान का अनुसरण करने के गलत मार्ग पर थी, मुझे बहुत डर लगा। मैंने परमेश्वर के मार्गदर्शन का आभार माना, उसने मेरी इतनी गंभीर समस्या मुझे दिखाई। अब मैं वांग की भक्ति नहीं करना चाहती थी।

फिर मैंने एक और अंश पढ़ा : "तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो, जो संसार के कीचड़ में लोटते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, लेकिन उन मुरदों की तारीफ करते हो, जो चढ़ावे हड़प लेते हैं और ऐयाशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, लेकिन खुद को उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से फेंक देते हो, जबकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा, उनकी हैसियत, उनके प्रभाव की ओर ही मुड़ता है। अभी भी तुम ऐसा रवैया बनाए रखते हो, जिससे तुम मसीह के कार्य को गले से उतारना तुम्हारे लिए कठिन हो जाता है और तुम उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने की आस्था की कमी है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ इसलिए किया है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं था। बुलंद छवियों की एक शृंखला हमेशा तुम्हारे हृदय में बसी रहती है; तुम उनके किसी शब्द और कर्म को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को भूल सकते हो। वे तुम लोगों के हृदय में हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक रहते हैं। लेकिन आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा श्रद्धा के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह ऊँचा तो बिल्कुल भी नहीं है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि क्यों मैं इंसान का अनुसरण कर रही थी। मैंने रुतबे और सत्ता की भक्ति की, मेरी प्रकृति ही इन चीजों को पसंद करने की थी। जब पता चला कि वांग बहुत समय से अगुआ है, उसने बहुत से प्रोजेक्ट पूरे किये हैं, मैं उसके बारे में ऊँचा सोचने लगी। जब मैंने उसे अपने कामों और उपलब्धियों का बखान करते सुना, तो मैं उसकी भक्ति करने लगी, एक दिन उसके जैसी बनना चाहती थी। उसके बोलने और काम करने के तरीके से मन में उसकी मजबूत छवि बन गई। मैंने उसकी शानदार सहभागिता और अधिकारपूर्ण तरीके से काम करने की तारीफ की। लगा एक अगुआ ऐसा ही होना चाहिए। मैं मसीह की विनम्रता, अप्रत्यक्षता, मनोहरता और महानता का आदर नहीं करती थी। मैंने सोचा कैसे परमेश्वर ने आदम और हव्वा के लिये कपड़े बनाये। वो सृष्टिकर्ता है, अत्यंत गौरवशाली है, पर वो खुद को उस तरह पेश नहीं कर रहा था। उसने शैतान द्वारा भ्रष्ट किये अज्ञानी लोगों के लिये खुद कपड़े बनाये। जब प्रभु यीशु लोगों के बीच काम करने के लिए घूम रहा था, उसने कभी अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं की, अपने शिष्यों के पैर तक धोये। और अब, परमेश्वर इंसान को बचाने के लिए साधारण देह को धारण किए धरती पर आया है, वो चुपचाप सत्य व्यक्त कर इंसान को पोषण दे रहा है, वो दिखावा नहीं करता। परमेश्वर की विनम्रता और अप्रत्यक्षता हमारे प्रेम के योग्य है। लेकिन इसमें मुझे परमेश्वर की पवित्रता, महानता और गरिमा नहीं दिखी। जिसके पास रुतबा देखा, जिसने दिखावा किया, मैंने उसी को ऊंचा समझकर उसका अनुसरण किया। मैं कितनी अंधी और अज्ञानी थी। फिर मैंने कसम खाई कि मैं परमेश्वर की सच्ची अनुयायी बनूंगी, उसके वचनों के अनुसार अपना काम करूंगी, दूसरों की बातों को ठीक से समझने की कोशिश करूंगी। उनका नज़रिया सत्य के सिद्धांतों के अनुरूप हुआ, तो उसका अनुसरण कर सकती हूँ, क्यों यह तो सत्य का अनुसरण करना है। अगर चीज़ें परमेश्वर के वचनों और सत्य के विरुद्ध हुईं, अगर ये सिर्फ किसी की मर्ज़ी हुई या निजी अनुभव हुआ, अगर काम की सारी उपलब्धियां दूसरों की प्रशंसा पाने या लोगों से नियम मनवाने और उनसे घिरे रहने के लिये हुईं, तो आँखें मूंदकर स्वीकार नहीं करूंगी।

समस्या बेहतर ढंग से समझने के बाद, इस पर सोचा कि कैसे मैंने दूसरों को फटकार लगाई और उन्हें बेबस महसूस कराया। वांग का तरीका यही था। शायद कुछ भाई-बहन उसके सामने भी बेबस महसूस करते होंगे। कुछ अन्य लोगों ने कहा था कि वांग अक्सर सभाओं में लोगों की आलोचना करता था, जो परेशानी की बात थी, मैंने उसे बताया कि वो अपने पद का इस्तेमाल करके लोगों को फटकारता है, इससे दूसरे बेबस महसूस करते हैं। उसने जवाब दिया, "मुझे पता है मैं पद का इस्तेमाल करता हूँ, पर ऐसे ही नतीजे मिलते हैं। अगर उनका विश्लेषण करके निपटान नहीं किया, तो उनका प्रदर्शन ठीक नहीं होगा।" ये सुनकर मैं हैरान रह गई। उसे पता था उसका नज़रिया ठीक नहीं है, पर उसने गलत तरीके से काम करना जारी रखा। उसने सत्य नहीं स्वीकारा, उस पर अमल नहीं किया। उसने लोगों को फटकारने के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया, ताकि काम में बेहतर नतीजे मिलें, उसकी मंशाएं गलत थीं। वो नाम और रुतबे के लिये ऐसा कर रहा था। क्या परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखने की उसकी सहभागिता खोखली और सिर्फ सिद्धांत की बातें नहीं थीं? यह सोचकर, मेरे मन में शक आ गया, आखिर वांग किस तरह का इंसान था, मैं उसके काम के ढंग पर ज़्यादा ध्यान देने लगी। मैं उसके काम से पता लगाना चाहती थी कि वो असल में कैसा इंसान है।

एक दिन, वो कुछ टीम अगुआओं के साथ सभा कर रहा था, मैंने देखा वो उन्हें बेपरवाह होने और जिम्मेदार न होने पर फटकार लगा रहा था। उसने कहा, "तुम लोगों में कोई इंसानियत या या कोई जिम्मेदारी है? तुम लोगों ने कितने वास्तविक काम किये हैं?" वो बस लोगों को उजागर करके उनकी आलोचना कर रहा था, पर उसने काम की व्यावहारिक समस्याएं हल करने के तरीके पर बात नहीं की। जब भी हम काम का सार पेश करते, वो टीम अगुआओं या अधिक अनुभवी भाई-बहनों से अनुभव साझा करने को कहता, पर उसने कभी खुद समस्या का हल या अभ्यास का मार्ग नहीं बताया। वो कभी अपनी भ्रष्टता या निजी कमियों के बारे में भी बात नहीं करता था। हमेशा अहंकार में लोगों को फटकारता रहता था। फिर देखा वो किसी काम की खोज-खबर भी नहीं लेता था, बस आदेश जारी कर देता था। अपने प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी उसने दूसरों के कंधों पर डाल दी और उन्हें रिपोर्ट करने को कहा। अधिक महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी भरे काम में, वो परमेश्वर के घर के काम पर विचार किये बिना, हमेशा अपने हितों की रक्षा करता था। उसके ऐसे बर्ताव को देखते हुए, मैं और मेरी साथी चर्चा करके इस नतीजे पर पहुँची कि वो एक झूठा अगुआ है, फिर हमने इस बारे में बड़े अगुआ को बताया। जब अगुआ ने उसे अक्सर ये कहते सुना कि, "तुम लोग ऐसे हो, वैसे हो," उन्होंने कहा कि वांग का बर्ताव ऐसा था मानो वो भ्रष्ट इंसानों से अलग श्रेणी का हो, मानो परमेश्वर ने उसे पूर्ण कर उसका इस्तेमाल कर हो। वो अब किसी के सामने झुकना नहीं, बल्कि परमेश्वर के बराबर होना चाहता था। ये तो एक मसीह-विरोधी, शैतान का सार है। अगुआ के मुँह से मसीह-विरोधी, शैतान की बात सुनकर, मैं बिल्कुल हैरान हो गई। मैं बस इतना जानती थी कि वो समस्याएं हल करने के लिए सत्य पर सहभागिता न करने, लोगों को फटकारने, वाला एक झूठा अगुआ है, पर मैंने ये नहीं देखा कि वो एक मसीह-विरोधी है।

फिर मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। "उनके बोलने का ढंग चाहे जो भी हो, यह हमेशा इसलिए होता है कि लोग उनके बारे में ऊँचा सोचें और उनकी आराधना करें, यह उनके दिलों में एक निश्चित स्थान प्राप्त करने, यहाँ तक कि वहाँ परमेश्वर का स्थान लेने के लिए होता है—ये सभी वे लक्ष्य हैं, जो मसीह-विरोधी अपनी गवाही देकर प्राप्त करना चाहते हैं। जो कुछ भी वे कहते हैं, जिसका भी प्रचार और संगति करते हैं, उसके पीछे की प्रेरणा यह होती है कि लोग उनके बारे में ऊँचा सोचें और उन्हें पूजें; इस तरह का व्यवहार खुद को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और अपनी गवाही देना है, ताकि दूसरों के दिलों में एक स्थान हथिया सकें। हालाँकि इन लोगों के बोलने का तरीका पूरी तरह से एक-जैसा नहीं होता, लेकिन कमोबेश इसका प्रभाव अपनी गवाही देने और लोगों से अपनी पूजा करवाने का होता है; और कमोबेश ऐसे व्यवहार लगभग सभी काम करने वालों में मौजूद होते हैं। अगर वे इस हद तक पहुँच जाते हैं, जहाँ वे खुद को रोक नहीं पाते, या उन्हें काबू में रखना मुश्किल हो जाता है, और उनमें लोगों को उनके साथ ऐसा व्यवहार करने पर बाध्य करने का एक विशेष रूप से मजबूत और स्पष्ट इरादा और लक्ष्य होता है, मानो वे परमेश्वर या कोई आराध्य व्यक्ति हों, और फिर वे लोगों को नियंत्रित करने और विवश करने का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, और उनसे समर्पण करवाने की हद तक पहुँच सकते हैं; इस सब की प्रकृति अपनी बड़ाई करने और गवाही देने की है; यह सब मसीह-विरोधी की प्रकृति का हिस्सा है। लोग अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के लिए आम तौर पर किन साधनों का उपयोग करते हैं? (वे पूंजी की बात करते हैं।) पूंजी की बात करने में क्या शामिल है? इस बारे में बात करना कि उन्होंने कब से परमेश्वर से विश्वास किया है, कितना कष्ट सहा है, कितनी कीमत चुकाई है, कितना काम किया है, कितनी दूर तक यात्रा की है, सुसमाचार फैलाने के माध्यम से उन्होंने कितने लोगों को प्राप्त किया, और उन्हें कितना अपमान सहना पड़ा है। कुछ लोग तो अक्सर इस बारे में भी बात करते हैं कि कितनी बार वे जेल में रहे हैं लेकिन कलीसिया या भाई-बहनों को धोखा नहीं दिया, या अपनी गवाही में अडिग रहने में असफल नहीं हुए, आदि-आदि; ये सब अपनी पूंजी के बारे में बात करने के उदाहरण हैं। अगुआओं के कर्तव्य पूरे करने की आड़ में वे अपने ही काम करते हैं, लोगों के दिलों में अच्छी छाप छोड़ते हुए अपनी स्थिति मजबूत करते हैं। साथ ही, वे लोगों को जीतने के लिए हर तरह के तरीके और तरकीबें इस्तेमाल करते हैं, यहाँ तक कि अपने से भिन्न मत और विचार रखने पर हमला कर उन्हें अलग-थलग कर देते हैं, खासकर उन्हें जो सत्य का अनुसरण करते हैं। मूर्ख, अज्ञानी और विश्वास में भ्रमित लोगों, और साथ ही जो केवल थोड़े समय के लिए ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं, या छोटे आध्यात्मिक कद के होते हैं, उनके लिए वे किन तरीकों का उपयोग करते हैं? वे उन्हें धोखा देते हैं, उन्हें फुसलाते हैं, यहाँ तक कि उन्हें धमकाते भी हैं और अपनी स्थिति मजबूत करने का अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इन रणनीतियों का उपयोग करते हैं। ये सभी मसीह-विरोधियों की चालें हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे लोगों का दिल जीतना चाहते हैं')। "मैंने पाया है कि कई अगुआ केवल लोगों को व्याख्यान देने में सक्षम होते हैं, वे केवल उच्च स्थान से लोगों को उपदेश देने में सक्षम होते हैं, और उनके साथ समान स्तर पर संवाद नहीं कर सकते; वे लोगों के साथ सामान्य रूप से बातचीत नहीं कर पाते। जब कुछ लोग बात करते हैं, तो हमेशा ऐसा लगता है मानो वे भाषण दे रहे हों या रिपोर्ट कर रहे हों; उनके शब्द हमेशा केवल अन्य लोगों की अवस्थाओं पर निर्देशित होते हैं, और वे अपने बारे में कभी खुलकर नहीं बताते, वे कभी अपने भ्रष्ट स्वभावों का विश्लेषण नहीं करते, केवल अन्य लोगों के मुद्दों का विश्लेषण करते हैं, ताकि दूसरे लोग जान सकें। और वे ऐसा क्यों करते हैं? उनके द्वारा ऐसे उपदेश दिए जाने, ऐसी बातें कहे जाने की संभावना क्यों होती है? यह इस बात का प्रमाण है कि उन्हें आत्मज्ञान नहीं होता, उनमें समझ की बहुत कमी होती है, वे बहुत अहंकारी और दंभी होते हैं। उन्हें लगता है कि अन्य लोगों के भ्रष्ट स्वभावों को पहचानने की उनकी क्षमता साबित करती है कि वे अन्य लोगों से ऊपर हैं, कि वे लोगों और चीजों को दूसरों से बेहतर पहचानते हैं, कि वे अन्य लोगों की तुलना में कम भ्रष्ट हैं। दूसरों का विश्लेषण करने और उन्हें व्याख्यान देने में सक्षम होना, लेकिन खुद को उजागर करने में अक्षम होना, अपने भ्रष्ट स्वभाव को उजागर या विश्लेषित न करना, अपना असली चेहरा न दिखाना, अपनी प्रेरणाओं के बारे में कुछ न कहना, गलत काम करने पर केवल अन्य लोगों को व्याख्यान देना—यह है अपने को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और खुद को ऊँचा उठाना। ... जब वे लोगों की अगुआई करते हैं, तो वे उन्हें सत्य का अभ्यास करने को नहीं कहते, बल्कि अपनी बात सुनने और अपने तौर-तरीकों का अनुसरण करने को कहते हैं—क्या यह लोगों से यह कहना नहीं है कि वे उन्हें परमेश्वर समझें, परमेश्वर की तरह उनका आज्ञापालन करें? क्या उनके पास सत्य है? वे सत्य से रहित होते हैं, और शैतान के स्वभाव से लबालब भरे होते हैं, वे राक्षसों जैसे होते हैं—तो वे लोगों से अपनी आज्ञा का पालन करने के लिए क्यों कहते हैं? क्या ऐसा व्यक्ति खुद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं करता? क्या वह खुद को ऊँचा नहीं दिखाता? क्या ऐसे व्यक्ति लोगों को परमेश्वर के सामने ला सकते हैं? क्या वे लोगों से परमेश्वर की आराधना करवा सकते हैं? वे ऐसे लोग हैं, जो चाहते हैं कि लोग उनकी आज्ञा का पालन करें, और जब वे इस तरह काम करते हैं, तो क्या वे वास्तव में लोगों को सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने की ओर ले जा रहे हैं? क्या वे वास्तव में परमेश्वर द्वारा सौंपा गया कार्य कर रहे हैं? नहीं, वे अपना ही राज्य स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, वे परमेश्वर बनना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि लोग उनके साथ ऐसा व्यवहार करें जैसे वे परमेश्वर हों, और परमेश्वर मानकर उनकी आज्ञा का पालन करें। क्या वे मसीह-विरोधी नहीं हैं? मसीह-विरोधी अपना काम हमेशा इस तरह करते हैं कि चाहे वे परमेश्वर के घर के काम में कितनी भी देरी करें, परमेश्वर के चुने हुए लोगों का कितना भी नुकसान करें, लोग उनकी बात अवश्य सुनें और मानें। क्या यह राक्षसों की प्रकृति नहीं है? क्या यह शैतान का स्वभाव नहीं है? इस तरह के लोग इंसानी वेश में जीवित राक्षस होते हैं; उनके चेहरे भले ही इंसानी हों, लेकिन उनके अंदर सब-कुछ राक्षसी होता है। वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह राक्षसी होता है। उनका कोई भी काम सत्य के अनुरूप नहीं होता, उसमें से कुछ भी ऐसा नहीं होता जो कोई समझदार व्यक्ति करता हो—इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि ये राक्षसों, शैतान और मसीह-विरोधियों के कार्य हैं। तुम लोगों को इसे स्पष्ट रूप से पहचानना चाहिए" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'राज्य के युग में परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं के बारे में वार्ता')। वचनों से मुझे वांग के बर्ताव के सार की थोड़ी समझ मिली। उसने सभाओं में अपनी भ्रष्टता, कमज़ोरी या कमियों के बारे में कभी बात नहीं की, काम की समस्याओं या गलतियों का विश्लेषण भी नहीं किया। वो हमेशा अपने कर्तव्यों और उसके द्वारा किए गए व्यावहारिक काम के बारे में बात करता था, कि कितनी कलीसियाओं की मदद की, कितने अगुआओं को प्रशिक्षित किया, कितने मसीह-विरोधियों का पता लगाया, कितने त्याग किये, कितनी पीड़ा सही, कितनी कीमत चुकाई, कितनी मुश्किलों से पार पाया, कैसे हर तरह की तकलीफ सहकर परमेश्वर की इच्छा को पूरा किया। इस तरह वो खुद को ऊँचा उठाते हुए खुद की गवाही दे रहा था, ताकि भाई-बहनों के बीच रुतबा बना सके, दूसरे उसके बारे में ऊँचा सोचें। उन अनुभवों की बात करते हुए, वो उन्हें परमेश्वर के वचनों से जोड़ देता। लगता था जैसे वो परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ और अपने असली अनुभवों पर सहभागिता कर रहा था, पर यह सब सिर्फ दिखावा था, अपनी उपलब्धियों की डींगें हांकना था। उसकी सहभागिता से लोगों को परमेश्वर या उसके वचनों की समझ नहीं मिलती थी, उन्हें बस उसके अनुभव याद रहते और वे उसकी सराहना करते। वो परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता की आड़ में दिखावा कर रहा था, ताकि लोगों के दिलों में जगह बनाकर वो उन्हें गुमराह कर सके। वो अक्सर पद का गलत इस्तेमाल करके दूसरों की कमियों का विश्लेषण करता था, इंसानियत, विवेक और जिम्मेदारी न होने की बात कहकर उन्हें फटकारता था। वो हमेशा कहता, "तुम लोग...।" ये बात साफ थी कि वो खुद को दूसरों के बराबर नहीं मानता था, वो खुद को सृजित प्राणी, या शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया एक इंसान नहीं मानता था। उसके पास भी वही भ्रष्टताएं और कमियां थीं, जो हम सबमें थीं, लेकिन ऐसे पेश आता था मानो वो कोई खास हो, मानो दूसरे लोग भ्रष्ट और शैतान के साथी हैं, पर वो हमारे जैसा नहीं है, वो भ्रष्टता और गंदगी से बच गया है। जब भाई-बहन अपना काम अच्छे से नहीं करते थे, तो उसने सत्य पर सहभागिता नहीं की, बस उन्हें फटकार लगाई, व्यावहारिक काम न करने पर वो लोगों को हमेशा बर्खास्त करने की धमकी देता। लोग उससे डरने लगे, हर कोई उसके चंगुल में आकर, उसके आगे दबने लगा। मैंने देखा उसने अपने रुतबे का ही गलत इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि हर तरह की चालें आज़माई, ताकि लोग उसकी पूजा करें, उसके बारे में ऊँचा सोचें, उसकी बात सुनें। वो एक मसीह-विरोधी की प्रकृति और सार के साथ मसीह-विरोध के मार्ग पर चल रहा था।

सिद्धांतों के अनुसार, हमने वांग को बर्खास्त कर दिया। फिर, सुना कि उसके बर्खास्त होने से कुछ लोग इतने निराश हो गये, कि अपना काम नहीं करना चाहते थे। उन्हें लगा उसमें बहुत काबिलियत थी, फिर भी बर्खास्त कर दिया गया, वे कभी उसकी बराबरी नहीं कर सकते, तो ये पक्का है कि वे व्यावहारिक काम नहीं कर सकते, ऐसे में किसी दिन उन्हें भी निकाल दिया जाएगा। मुझे एहसास हुआ ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन्हें वांग ने गुमराह किया होगा, जिनमें समझ नहीं होगी। मैंने और मेरी साथी ने उसके साथ काम कर चुके सभी अगुआओं और कर्मियों से संगति की, परमेश्वर के वचनों के आधार पर बर्खास्तगी की वजहों और उसके बर्ताव की प्रकृति के बारे में बताया। कुछ लोगों ने बताया कैसे वे उसके बारे में ऊँचा सोचते थे, लगता था उसमें काबिलियत, कौशल और खूबियाँ हैं, वो एक अच्छा वक्ता है। लोगों ने उसकी बातों को सोने जैसा खरा समझा, उसके वचनों को सत्य माना, अब एहसास हो रहा है कि उन्हें गुमराह किया गया था। कुछ लोगों ने कहा कि वे वांग से डरते थे, जब भी वो उनके काम की जांच करता था, वे आलोचना के डर से घबरा जाते थे, फिर निराश हो जाते थे। लगता था उनमें काबिलियत नहीं है, वे कुछ भी ठीक नहीं कर सकते, वे अगुआ की भूमिका नहीं निभा सकते, उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करने के बाद ही वे मिली हुई आज्ञा का मान रख पाए। सबकी सहभागिता से, मुझे समय आया कैसे वांग के बर्ताव ने सभी पर बुरा असर डाला था, उसकी बर्खास्तगी बेशक परमेश्वर की धार्मिकता थी। अगर वो अगुआ बना रहता, तो दूसरों को नुकसान पहुँचाता।

कुछ समय बाद, हमें चीन से एक पत्र मिला, जिसमें वांग के समय में वहां किये गए काम की रिपोर्ट थी। उसके द्वारा नियुक्त कई अगुआ काम के लिए ठीक नहीं थे। कुछ अगुआओं को मसीह-विरोधी बताकर निकाल दिया गया, कुछ अगुआ गिरफ्तार होने के बाद, यातना सहने के बजाय कलीसिया को धोखा देकर यहूदा बन गये। गलत लोगों को नियुक्त करने से परमेश्वर के घर के काम का बहुत नुकसान होता है। उन्होंने ये भी कहा कि लोगों को गुमराह करने के लिए वांग हमेशा अपनी काबिलियत और खूबियों का दिखावा करता था, ताकि सब सोचें कि वो हर मुश्किल समस्या हल कर सकता है, सिर्फ थोड़ी सहभागिता करके वो जड़ तक पहुँचकर मुद्दे का हल निकाल सकता है, और जहां भी सहभागिता करता है, वहाँ भाई-बहन अपने काम को लेकर बेहतर महसूस करते हैं। सभी को लगता था उसमें सत्य की वास्तविकता है, उसके सभी सहकर्मी उसकी प्रशंसा करते थे। जो लोग उससे कभी नहीं मिले, वे भी उसका नाम सुनकर उसकी प्रशंसा करते, उसे एक मानक समझते। उनको लगता अगर वे उसकी तरह काम कर पाये, तो उन्हें भी बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। वांग के बारे में इन रिपोर्ट को देखकर, उसका असली चेहरा और साफ हो गया। उसका बर्ताव वैसा ही था जैसा खुद की गवाही देने और बड़ाई करने वाले मसीह-विरोधियों के बारे में परमेश्वर कहता है। चीन में हो या विदेश में, वांग के जीवन स्वभाव में ज़रा भी बदलाव नहीं आया। वो एक मसीह-विरोधी था। मैंने परमेश्वर की धार्मिकता का भी आभार माना। परमेश्वर की जांच से कोई नहीं बच सकता, देर-सवेर वो ऐसे हर इंसान को हटा देगा जो सत्य का अनुसरण नहीं करता, जो सही मार्ग पर नहीं चलता।

इस अनुभव से पता चला कि विश्वासियों के रूप में हमें हर चीज़ और इंसान को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखना चाहिए, लोगों के बर्ताव और काम करने के तरीके से, जानना चाहिए कि वो कैसे हैं, किस मार्ग पर चलते हैं। हमें उन लोगों के करीब जाना चाहिए जो सत्य का अनुसरण करते हैं, उनसे सीखकर लाभ लेना चाहिए। कुछ समय की भ्रष्टता या कमजोरी दिखाने पर लोगों से सही तरीके से पेश आना चाहिए, स्नेह के साथ सत्य पर सहभागिता करके उनकी मदद करनी चाहिए। हमें उन गैर-विश्वासियों को ठुकरा देना चाहिए जो कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते, अगर हम किसी को गलत दिशा में जाते, बुरा काम करते देखें, किसी झूठे अगुआ, मसीह-विरोधी या कुकर्मी को देखें, तो उसे रोकना और उसकी रिपोर्ट करना ज़रूरी है। हमें उनकी नाकामियों से भी सीखना चाहिए, सोचना चाहिए कि हम कब उनके जैसा बर्ताव करते हैं, उनकी नाकामियों को हमारे लिए चेतावनी मानना चाहिए। इस तरह हम जीवन में तेज़ी से बढ़ सकते हैं। अगर हमने आस्था में सत्य खोजने या परमेश्वर के वचनों के आधार पर दूसरों को देखने के बजाय, उनकी काबिलियत और खूबियों को देखा, तो हम दूसरों की भक्ति और उनका अनुसरण कर सकते हैं। फिर हम परमेश्वर के विरोध के मार्ग पर चलने लगेंगे और हटा दिये जाएंगे। इससे पता चलता है आस्था में सत्य का अनुसरण करना कितना अहम है।

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