अंततः मैं एक मनुष्य की तरह थोड़ा जीवन व्यतीत करता हूँ
मैं हर बार अपने हृदय की गहराई से ताड़ना महसूस करता हूँ, जब भी मैं देखता हूँ कि परमेश्वर के वचन कहते हैं कि: "क्रूर मानवजाति! साँठ-गाँठ और साज़िश, एक-दूसरे से छीनना और हथियाना, प्रसिद्धि और संपत्ति के लिए हाथापाई, आपसी कत्लेआम—यह सब कब समाप्त होगा? परमेश्वर द्वारा बोले गए लाखों वचनों के बावजूद किसी को भी होश नहीं आया है। लोग अपने परिवार और बेटे-बेटियों के वास्ते, आजीविका, भावी संभावनाओं, हैसियत, महत्वाकांक्षा और पैसों के लिए, भोजन, कपड़ों और देह-सुख के वास्ते कार्य करते हैं। पर क्या कोई ऐसा है, जिसके कार्य वास्तव में परमेश्वर के वास्ते हैं? यहाँ तक कि जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, उनमें से भी बहुत थोड़े ही हैं, जो परमेश्वर को जानते हैं। कितने लोग अपने स्वयं के हितों के लिए काम नहीं करते? कितने लोग अपनी हैसियत बचाए रखने के लिए दूसरों पर अत्याचार या उनका बहिष्कार नहीं करते? और इसलिए, परमेश्वर को असंख्य बार बलात् मृत्युदंड दिया गया है, और अनगिनत बर्बर न्यायाधीशों ने परमेश्वर की निंदा की है और एक बार फिर उसे सलीब पर चढ़ाया है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा)। मैं अतीत के बारे में सोचता हूँ कि कैसे मैं सत्य की खोज नहीं करता था, कैसे अपने कर्तव्य को पूरा करने में मैं बार-बार अपने साथ काम करने वाले सहयोगियों के साथ प्रतिस्पर्धा करता था, कैसे अपनी प्रतिष्ठा और लाभ के लिए मैं दूसरों को दबाता या अस्वीकार करता था—कैसे मैं अपने जीवन के लिए और परमेश्वर के परिवार के कार्य के लिए नुकसान का कारण बनता था। लेकिन परमेश्वर ने मुझ पर दया करना, मुझे बचाना जारी रखा, और केवल बार-बार की ताड़ना और न्याय के बाद ही, प्रतिष्ठा और हैसियत का पीछा करना छोड़कर मैं जागृत हुआ और हमें बचाने की परमेश्वर की इच्छा को मैंने समझा और मैंने थोड़ा मनुष्य की तरह व्यवहार करना शुरू किया।
सन् 1999 में, मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर का काम स्वीकार किया था। उस समय मेरा परिवार आतिथ्य का अपना कर्तव्य पूरा करता था और मैं देखता था कि कुछ भाई और बहनें कितनी अच्छी तरह से संवाद करते थे, और किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए परमेश्वर के वचन का उपयोग करने में समर्थ थे। हम सब उनके साथ जुड़ने के लिए तैयार थे, और हम किसी भी मुद्दे पर उनके साथ खुलकर संवाद करते थे। मुझे उनसे ईर्ष्या होती थी और मैं सोचता था: कितना अच्छा होता यदि मैं भाइयों और बहनों से घिरा, उनकी समस्याओं को सुलझाता हुआ एक दिन उनकी तरह बन सकता? और इस इरादे के साथ मैंने कलीसिया में अपने कर्तव्य को पूरा करना शुरू कर दिया। सन् 2007 में मुझे जिला अगुआ का कर्तव्य दिया गया। मेरे कार्य के व्यक्ति किसी असत्य अवस्था में होने पर, मेरे भाई और बहनों की स्वयं की कठिनाई होने पर, और कलीसिया के विभिन्न मुद्दों के बारे में मेरे भाई और बहनें मुझे सूचित करते थे। मुझे लगता था कि मैं चीज़ों के केंद्र में था और यह कि वर्षों का मेरा कार्य सार्थक रहा था: अब मैं कुछ सत्यों का संवाद कर सकता था और अपने भाइयों और बहनों की उनकी कठिनाइयों में सहायता कर सकता था। और यद्यपि काम का बोझ थोड़ा अधिक था, फिर भी मैं कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार था। इस पद को बनाए रखने और अपने घमंड को पूरा करने के लिए, अपने कर्तव्य को पूरा करते समय मैं एक अनुकरणीय और सकारात्मक तरीके से व्यवहार करता था। हमारा नेतृत्व हमें कोई भी कार्य क्यों न सौंपता, भले ही मेरे सहकर्मियों को लगता था कि यह मुश्किल है या वे सहयोग करने के लिए तैयार नहीं होते थे, मेरी प्रतिक्रिया हमेशा अच्छी रहती थी, और यदि मुझे मुश्किलें आतीं तो मैं चुप रहता और सक्रिय रूप से उनके साथ सहमत हो जाता था। यहाँ तक कि यदि ऐसी चीज़ें होती थीं जो मुझे समझ न आती थी तब भी अपने अगुआ की प्रशंसा प्राप्त करने के लिए मैं उनसे सहमत होता था।
इस तरह मेरे अगुआ मेरे बारे में अच्छा सोचते और मैं अपने सहकर्मियों के बीच अलग से दिखाई देता था, इसलिए मैंने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की तैयारी करनी शुरू कर दी: मैंने सुसमाचार के कार्य की ओर काम करने का अपना तरीका बदल दिया था, अपने भाइयों और बहनों का धैर्यपूर्वक अब और मार्गदर्शन नहीं करता था। यदि वे सुसमाचार के कार्य में किसी भी कठिनाई की सूचना देते थे, तो मैं उनकी काट-छाँट करता था या उन्हें निपटा देता। मैं परिणामों के लिए कलीसिया के नेताओं पर दबाव डालने लगा और उन्हें तंग करने लगा। जल्दी ही परिणामों में सुधार हुआ, जिससे मुझे प्रसन्नता हुई। बेहतर परिणामों का मतलब था कि मैं सबसे अच्छे सहकर्मियों में से एक था और मैं स्वयं में अनुरक्त हो गया था। कुछ दिनों बाद ही हमें एक भाई सौंपा गया। वह अच्छा दिखता था और सत्य का उसका संवाद स्पष्ट था। सभी भाई और बहनें उसकी संगति की प्रशंसा करते थे। इसने मुझे परेशान कर दिया: वे सभी उसकी संगति की प्रशंसा करते थे—जिसका अवश्य यह अर्थ था कि मेरी संगति अच्छी नहीं थी! अच्छा रहता यदि उसे यहाँ नहीं भेजा गया होता। उसके साथ स्वयं की तुलना करने पर मैंने पाया कि वह वास्तव में मुझसे बेहतर था। किन्तु मैं हारने के लिए तैयार नहीं था। उस समय मुझे प्रतिष्ठा और लाभ के बारे में चिंता थी और कलीसिया की विभिन्न समस्याओं में कोई हृदयचस्पी नहीं थी। मैंने इस बारे में चिंता करनी शुरू कर दी थी कि मैं क्या पहनता था, मैं कैसे बात करता था और कैसे व्यवहार करता था। सभाओं में मैं जानबूझकर अपनी बुद्धि का प्रदर्शन करता था, ताकि मेरे भाई और बहन मेरे बारे में अच्छा सोचें। कभी-कभी मेरे साथ काम करने के लिए सौंपे गए भाई की निंदा करता और यह देखता था कि हमारे कार्य का सहभागी मेरे बारे में क्या सोचता है। मैं एक ग़लत स्थिति में रहता था और स्वयं को बचाने में असमर्थ था। हर चीज़ में मैं स्वयं की तुलना उस भाई से करता था और मैं पवित्र आत्मा के कार्य को पूरी तरह से खो चुका था। कुछ ही समय के बाद, मुझे बदल दिया गया। जब मैंने समाचार सुना, तो ऐसा लगा कि मानो किसी ने मेरे हृदय में छूरा घोंप दिया गया हो—मेरे चेहरे, मेरी हैसियत, मेरे भविष्य का क्या होगा? परमेश्वर मुझे न्याय और ताड़ना दे रहा था, फिर भी मुझे अपनी प्रकृती के बारे में कोई समझ नहीं थी। इसके विपरीत, मैं अनुमान लगाता था कि अन्य स्थानों पर अगुआ मेरा कैसे विश्लेषण करेंगे: मैं लोगों का सामना कैसे करूँगा, जो लोग मुझे जानते थे, वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? शैतान के जाल में फँसा हुआ, मैं बड़बड़ाना शुरू कर देता था, एक अगुआ के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करने के बारे में मुझे पछतावा होने लगा, कि यदि मैंने उस भूमिका को नहीं अपनाया होता, तो ऐसा कभी नहीं होता। ...मैं जितना अधिक सोचता उतनी ही अधिक मुझे पीड़ा होती थी। मुझे लगा मैं परमेश्वर दूर होता जा रहा हूँ, इस हद ताकि कि मुझे अपना जीवन निरर्थक लगने लगा था। मैं जानता था कि इस समय मैं एक खतरनाक अवस्था में हूँ, लेकिन मैं स्वयं को मुक्त नहीं कर सकता था। फिर मैं परमेश्वर के समक्ष आया और प्रार्थना की: "हे परमेश्वर, इस समय मैं अँधेरे में जी रहा हूँ, शैतान ने मुझे मूर्ख बना दिया है और मैं बहुत अधिक कष्ट भुगत रहा हूँ। आज जो कुछ भी मेरे साथ हुआ है, मैं उसे स्वीकार नहीं करना चाहता हूँ, मैं तेरी ताड़ना और न्याय से बच निकलना चाहता हूँ, और मैंने तेरी शिकायत की है और तेरे साथ विश्वासघात किया है। हे परमेश्वर! मैं तुझसे अनुरोध करता हूँ कि मेरे हृदय की रक्षा कर, मुझे स्वयं को जाँचने और समझने में समर्थ बना, मुझ पर दया कर।" इसके बाद मैंने यह उपदेश देखा: "परमेश्वर कुछ लोगों के साथ विशेष दयालुता और उन्नयन के साथ व्यवहार करता है। उन्हें अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए प्रोन्नत किया जाता है, महत्वपूर्ण कार्य दिए जाते हैं। किन्तु ये लोग परमेश्वर के प्रेम को वापिस नहीं चुकाते हैं, वे अपनी स्वयं की देह के लिए, हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए जीवित रहते हैं, स्वयं की गवाही देने और सम्मान प्राप्त करने की तलाश में रहते हैं। क्या ये कार्यकलाप अच्छे कर्म हैं? नहीं। ये अच्छे कर्म नहीं हैं। ये लोग नहीं समझते हैं कि परमेश्वर को कैसे आश्वासन दिया जाए, वे परमेश्वर की इच्छाओं पर कोई विचार नहीं करते हैं। वे केवल स्वयं को संतुष्ट करने में लगे रहते हैं। ये वे लोग हैं जो परमेश्वर के हृदय को नुकसान पहुँचाते हैं, जो केवल दुष्टता करते हैं, जो परमेश्वर के हृदय को बहुत नुकसान, बहुत अधिक नुकसान पहूँचाते हैं। परमेश्वर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में प्रोन्नत करता है, ताकि वे सिद्ध हो जाएँ। लेकिन वे परमेश्वर की इच्छाओं के लिए कोई विचार नहीं करते हैं और वे केवल अपने लिए कार्य करते हैं। वे परमेश्वर की गवाही देने या कार्य करने के लिए कार्य नहीं करते हैं ताकि जिन्हें परमेश्वर ने चुना है वे जीवन में प्रवेश कर सकें। वे स्वयं की गवाही देने, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने, जिन्हें परमेश्वर ने चुना है उनके बीच हैसियत रखने के लिए कार्य करते हैं। यही हैं वे लोग जो परमेश्वर का सबसे अधिक विरोध करते हैं, जो परमेश्वर के हृदय को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। यह परमेश्वर के साथ विश्वासघात करना है। मनुष्य के शब्दों में उनके लिए जो किया जाता है यह उसकी सराहना करने में विफलता है, आध्यात्मिक शब्दों में ये लोग परमेश्वर का विरोध करने वाले दुष्ट व्यक्ति हैं" (जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति)। यह संवाद मुझे ऐसा महसूस हुआ था मानो कि मुझे गहराई तक ताड़ना में छोड़ते हुए हृदय में एक दोधारी तलवार घोंप दी गई हो। यह परमेश्वर की दयालुता और उन्नयन था जिसने मुझे एक अगुआ बनने दिया, और उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि मैं सिद्ध बन सकूँ। परंतु मैं परमेश्वर के इरादे के बारे में विचारशून्य था और उसके प्रेम को चुकाना नहीं जानता था। मैं हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए, अपने आप की गवाही देने के लिए जीता था, और इसकी प्रकृति परमेश्वर का विरोध करना और उसके साथ विश्वासघात करना थी। मैं जो कुछ करता था उससे परमेश्वर को घृणा थी और इसलिए उसने मेरी सेवा समाप्त कर दी, मुझे दिखा दिया कि परमेश्वर के परिवार में परमेश्वर और सत्य का शासन है। मैंनें वापिस उस पर विचार किया जो में खोजता था: मैं सोचता था कि अपने अगुआओं के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना यह सुनिश्चित करेगा कि मैं अपने को बनाए रखूँगा, इसलिए मैं उनके सामने झुक जाता था और उनकी चापलूसी करता था और उनके हर वचन से सहमत होता था। लेकिन अपने भाइयों और बहनों के साथ मैं कठोर और आलोचनात्मक था। यह कितना तिरस्करणीय है! मैं हैसियत के लिए कुछ भी करता था। दूसरों से अलग दिखाई देने मे मेरे उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मैं अपने भाइयों और बहनों का उपयग करने का प्रयास करता था; मैं अपने भाइयों और बहनों के जीवन के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं करता था। मैं इस हद तक उन पर दबाव डालता और उन्हें तंग करता था कि मेरे कार्य के सहभागी मुझसे डरते थे और मुझसे बचते थे, मेरे सामने स्वयं को प्रकट करने का साहस नहीं करते थे। फिर भी मैंने वापस लौटकर खुद की जाँच नहीं की। परमेश्वर ने भाई वांग को मेरे साथ काम करने को भेजा था और मैं न केवल इस सबक को सीखने में विफल रहा था, बल्कि अपनी देह का प्रदर्शन करते हुए और परमेश्वर से घृणा करवाते और पवित्र आत्मा का कार्य गँवाते हुए, मैं प्रतिष्ठा और लाभ के लिए कठिन लड़ाई लड़ता था। और मुझे बदले जाना परमेश्वर की धार्मिकता का मुझ पर आना था: मेरे बारे में सर्वोत्तम संभव न्याय, सर्वोत्तम उद्धार, परमेश्वर का महानतम प्रेम। अन्यथा मैं अनजाने में मसीह-विरोधी मार्ग पर चलता रहता। परमेश्वर ने मेरे पापी कदमों को रोक दिया। मुझे गहरा पछतावा था कि मेरी खोज का मूल इरादा गलत रहा था और मैंने उस समस्या को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया था, जिस सब का परिणाम आज की विफलता है। उस समय के दौरान, मैं जब कभी भी अनुभव का भजन, "परमेश्वर की करुणा मुझे जीवन में वापस ले आई," गाता था, तो मैं सिसकता था, और मेरे चेहरे पर आँसू बहते थे: "हालाँकि परमेश्वर ने मुझे अपने कर्तव्य निभाने के लिये बढ़ावा दिया, लेकिन मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया। मैं हमेशा रुतबे की, आशीषों की कामना करता रहा। मैं अनावश्यक माँगें करता रहा, लेकिन मैं कभी परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील नहीं रहा। मैं इस बात से अनजान रहा कि मैंने परमेश्वर की अवहेलना की है। परमेश्वर ने हमेशा मुझे पोषण दिया है, मेरी देखभाल की है, लेकिन मैंने इस चीज़ की कद्र नहीं की। मैं न्याय और ताड़ना से बचता रहा, और अड़ियलपने से परमेश्वर के ख़िलाफ़ विद्रोह करता रहा। मैंने परमेश्वर के हृदय को आहत किया। मैंने पूर्ण किए जाने के अनेक अवसर गँवाए। मैंने वाकई परमेश्वर के नेक इरादों के अनुरूप आचरण नहीं किया। अगर मैं परमेश्वर के लिए अपना जीवन भी दे देता, तो भी मैं परमेश्वर के आहत हृदय की भरपाई कैसे करता? हे परमेश्वर, हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मैं एक नया इंसान बनकर, सब-कुछ फिर से शुरू करना चाहता हूँ। परमेश्वर के जीवन-वचन मेरे हृदय को प्रभावित करते हैं। परमेश्वर के उपदेश मुझे असीम शक्ति देते हैं, मुझे नाकामी और बर्बादी से बाहर निकलकर फिर से खड़ा होने में मेरी मदद करते हैं। अब मैं जीवन के मूल्य को जान गया हूँ, और जान गया हूँ कि मुझे क्यों बनाया गया है। परमेश्वर को मुझसे जो अपेक्षाएँ हैं, मैं उनसे दोबारा कैसे मुँह मोड़ सकता हूँ? मैं अपनी निष्ठा और आज्ञाकारिता से परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देना चाहता हूँ। मैं सत्य का अभ्यास करूँगा और परमेश्वर के वचनों के अनुसार जिऊँगा, अब मैं फिर कभी अपने कारण परमेश्वर को चिंतित नहीं करूँगा। अब चाहे मुझे आशीष मिलें या आपदाएँ आएँ, मैं केवल परमेश्वर की ही संतुष्टि की खोज करता हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं परमेश्वर को अपना सच्चा हृदय अर्पित करूँ। अगर मुझे मंज़िल न भी मिले, तो भी मैं आजीवन परमेश्वर की सेवा करूँगा। मैं अपने सारे पिछले कर्ज़ चुकाकर, परमेश्वर के हृदय को सुकून दूँगा" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। यह शुद्धिकरण मेरे साथ एक वर्ष से अधिक अवधि तक रहा और जीते जी चमड़ी उधेड़े जाने जैसी महसूस होने वाली जीवन और मृत्यु की पीड़ा के बावजूद, मैंने पाया कि हैसियत और अपेक्षाओं की मेरी इच्छाएँ कमज़ोर हो गई थीं, और मैंने देखा कि यह शुद्धिकरण कितना बहुमूल्य था।
सन् 2012 में भाई और मैं, एक स्थान पर कलीसिया के कार्य के प्रभारी थे। क्योंकि मैंने लंबे समय तक कलीसिया का काम नहीं किया था, इसलिए मुझे कुछ सिद्धांतों की कमज़ोर समझ थी। मैं महसूस करता था कि कलीसिया की कुछ समस्याएँ और मुद्दे थोड़े मुश्किल थे। लेकिन उस भाई ने निरंतर कलीसिया का काम किया था और मुझे यह दिखाते हुए कि मुझे क्या सीखना है उसने मेरी कमियों की भरपाई की थी। यह परमेश्वर का प्रेम था—उसने मुझ पर भारी बोझ नहीं डाला। उस भाई ने हमारे काम पर सूचनाएँ दीं, और उन महत्वपूर्ण मुद्दों से जुड़ी बातों में अधिकांश संवाद उसने किया। जब हम अपने कार्य के व्यक्तियों से मिलते थे, तो सबसे पहले वही संवाद करता था और समय के साथ-साथ ऐसा हो गया मानो मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं था, और मेरे अंदर का कुछ बाहर आया: जब हम मिलजुल कर काम करते हैं, तो तुम संगति में बेहतर हो, किन्तु मैं सुसमाचार के काम में बेहतर हूँ। और तुम संगति में कितने भी अच्छे क्यों न हो तुम्हें व्यावहारिक होना होगा। तुम दिखावा करते हुए, बातें और बातें और बातें ही करते हो। यदि हम अलग हो जाएँ, तो बेहतर रहेगा ताकि मैं भी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन कर सकूँ। मैं अक्षम नहीं हूँ। तुम ऐसा सोच सकते हो कि मैं संगति में बहुत अच्छा नहीं हूँ, लेकिन मैं व्यावहारिक कार्य में तुमसे बेहतर हूँ, और वैसे भी, सुसमाचार का कार्य मेरी शक्ति है। और उस समय हमें कार्य की प्रभारी बहन से एक पत्र मिला—परिचालन कारणों से हमें अलग किया जाना था, प्रत्येक एक क्षेत्र के लिए उत्तरदायी होगा। और यद्यपि जिस क्षेत्र के लिए मैं उत्तरादयी था, उसमें सभी प्रकार के कार्यों के परिणाम उतने अच्छे नहीं थे जितने मेरे भाई के क्षेत्र में थे, मैं फिर भी खुश था: अपनी प्रतिभा का उपयोग करने के लिए मेरे लिए एक जगह थी। और कोई बात नहीं कि परिणाम बहुत अच्छे नहीं थे—जब तक मैं उस पर काम न कर लूँ तब तक प्रतीक्षा करो, मैं साबित करूँगा कि मैं कितना सक्षम हूँ। एक बार जब हम अलग हो गए तो मैंने अपने आप को अपने काम में लगा दिया और चीज़ों को व्यवस्थित करना, भाइयों और बहनों के साथ काम की व्यवस्था के बारे में संवाद करना और उनसे संवाद करने के लिए परमेश्वर के वचनों की खोज करना शुरू कर दिया। और चीज़ें बेहतर होनी शुरू हो गईं। और मैं यह सोचने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी कि: मेरा भाई कैसा कर रहा है? क्या वह मुझसे बेहतर कर रहा है? और जब हम मिले और मुझे पता चला कि उस क्षेत्र केसुसमाचार काम का परिणाम जिसके लिए मैं ज़िम्मेदार था वह उसके क्षेत्र के परिणाम से बेहतर था, तो मैं अंदर ही अंदर खुश था कि: अंतकः मैं तुमसे बेहतर हूँ और गर्व महसूस कर सकता हूँ। और जैसे ही मैं खुशी महसूस कर रहा था, तभी मुझे भीतर फटकार मिली: "क्या तू परमेश्वर की महिमा की चोरी नहीं कर रहा है?" मेरा हृदय डूब गया। हाँ, सुसमाचार को फैलाना परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से प्रत्येक का कर्तव्य और उत्तरदायित्व है। और यह परमेश्वर के आशीष के कारण था कि हमारा सुसमाचार कार्य आराम से हो गया। मुझे किस चीज़ के बारे में डींगें हाँकनी चाहिए थी? मैं इस बारे में सोचकर शर्म से लाल हो गया। मैं कितना तिरस्करणीय था। परमेश्वर की पवित्रता मुझे ऐसी चरित्रहीनता को धारण करने की अनुमति नहीं दी थी, और जब मुझे अपनी परिस्थितियों का एहसास हुआ तो मुझे वापस मेरे विवेक में लाने के लिए मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया। मैं प्रतिष्ठा और हैसियत की तलाश अब और नहीं करता था। आने वाले दिनों में मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर ध्यान केंद्रित किया, जब मैं परिस्थितयों का सामना करता था, तो मैं इन्हें परमेश्वर के द्वारा भेजी गई के रूप में स्वीकार करता था, और धीरे-धीरे मेरी प्रतिष्ठा और हैसियत की इच्छा कम हो गई। मैं केवले परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की तुलना अपने सहकर्मियों के प्रेम के साथ करता था, और एक-दूसरे की शक्तियों से लाभ उठाता था और एक-दूसरे की कमज़ोरियों की भरपाई करता था। कुछ ही समय बाद, मुझे एक और कर्तव्य पूरा करने के लिए प्रोन्नत किया गया। मैं बहुत आश्चर्यचकित था और जानता था कि यह परमेश्वर द्वारा मेरा उन्नयन है। मैं उसे संतुष्ट करने के लिए अपनी सामर्थ्य के अंदर हर संभव चीज़ को करने की इच्छा रखते हुए उस कर्तव्य को बहुमूल्य समझता था।
अगस्त 2012 में, हमारे काम की प्रभारी बहन ने मुझे एक अन्य स्थान पर अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए निर्दिष्ट किया। उस समय मैं उत्सुकता से सहमत हो गया, लेकिन इससे पहले कि मैं वहाँ से बाहर निकलता, उसने कहा: "उस भाई को तुम्हारे साथ काम करने के लिए भेजना बेहतर है, यह परमेश्वर के परिवार के काम के लिए बेहतर रहेगा...।" उसने मेरी राय पूछी, और मैंने कहा: "ठीक है, मैं उसके साथ काम करने को तैयार हूँ।" और जब हमने एक दूसरे को एक सभा में देखा, तो उसने मेरे साथ खुलकर बात की: "मैं सहमत नहीं था कि उन्होंने तुम्हें चुना, तुम्हारी संगति मेरे जैसी अच्छी नहीं है!" उस एक शिष्टाचार-रहित वक्तव्य से मुझमें बहुत खलबली मचा दी। मैंने सोचा था कि मैंने अपने भाई के विरुद्ध अपने पूर्वग्रह को पीछे छोड़ दिया था, किन्तु यह सुनकर मेरे अंदर फिर से कुछ प्रकट हो गया था: यह वास्तव में शर्मनाक है, मुझे उसके साथ जाने के लिए सहमत नहीं होना चाहिए था। वह मेरी सारी असफलताओं को जानता है। मैंने सोचा था कि अपने नए पद पर आने पर मुझे एक नवागंतुक के रूप में अधिक सराहना मिलेगी! लेकिन अब कुछ भी नहीं किया जा सकता है। मैं अपने चेहरे पर ज़बरदस्ती एक मुस्कुराहट लाया और यह सोचते हुए ऐसे बर्ताव किया जैसे कि इसमें कुछ गलत नहीं था: मैं संगति में अच्छा नहीं हूँ, लेकिन मुझे पहले इसलिए चुना गया क्योंकि मैं तुमसे बेहतर हूँ। यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो रुको और देखो! हमने अपने कार्य की नई जगह के लिए यात्रा की और अपने कर्तव्य को पूरा करने में स्वयं को झोंक दिया। शुरू में, हमारे काम के व्यक्तियों से संवाद करते समय, एक सामंजस्यपूर्ण साझेदारी के लिए स्वयं पर संयम रखने के लिए मैं देह को त्यागने में समर्थ होने की प्रार्थना करता था। मैं ध्यान से सुनता था कि वह हमारे कार्य के व्यक्तियों से उनकी अवस्था के बारे में कैसे बात करता था और उसके लिए प्रार्थना करता था, जबकि सुसमाचार के कार्य के लिए मैं उनसे संवाद करता था। कुछ समय के बाद, मैंने देखा कि कैसे उसका संवाद मेरे संवाद से अधिक स्पष्ट था। हमारे कार्य के व्यक्तियों के साथ सभाओं के दौरान मैं संगति पर एक वचन भी नहीं कहना चाहता था। मैं कामना करता था कि वे सभाएँ जल्दी समाप्त हो जाएँ और मैं वहाँ से निकल जाना चाहता था। तब हम एक बड़े क्षेत्र के लिए उत्तरदायी थे, और मुझे एक विचार आया: यदि हमने अलग-अलग काम किया होता, तो मैं इतना अधिक नहीं भुगतता। जब मैंने अपने भाई को यह समझाया तो वह सहमत हो गया: "क्षेत्र का आकार काम को कठिन बनाता है, विभाजित करना ठीक रहेगा।" जब मैं अपने कार्य के व्यक्तियों से अपने आप मिला, तो मैं उनके साथ संवाद करते हुए और उन्हें व्यवस्थित करते हुए, उनके लिए एक बड़ी "ज़िम्मेदारी" लेते हुए, विस्तार से बोलने में समर्थ था। जल्द ही, मैंने अपने काम के सभी पहलुओं में परिणाम देखे, जबकि मेरा भाई विशेषरूप से अच्छा नहीं कर रहा था। मैंने इस बारे में कुछ नहीं किया, मानो कि इससे मेरा कोई लेना-देना न हो। एक सभा में हमारे अगुआ को पता चला कि हम अलग-अलग कार्य कर रहे हैं और उसने हमारे कार्य के उत्तरदायित्वों और सामंजस्यपूर्ण साझेदारी के सत्य के बारे में हमसे संवाद किया। मैं इसे स्वीकार करने के लिए और उससे पृथक रूप से अब और काम नहीं करने के लिए तैयार था। किन्तु इस बहाने का उपयोग करते हुए कि हम दोनों अपने-अपने कार्य को बेहतर ढंग से जानते हैं, हमने अलग-अलग कार्य करना जारी रखा। इस डर से कि मेरा अगुआ मेरी आलोचना करेगा मैं अपने भाई के क्षेत्र में उसके कार्य के व्यक्तियों के साथ संवाद करने तो जाता था, लेकिन मुझे लगता था कि मैं अपने क्षेत्र से बाहर हूँ। यदि मैं अच्छी तरह से संवाद करता, तो ऐसा लगता था कि जैसे मेरे भाई को श्रेय मिल जाएगा। तो मैं बस औपचारिकता के लिए काम करता था और यह कहते हुए बहाना बना देता था कि मुझे कुछ महत्वपूर्ण कार्य करना है, और वहाँ से तुरंत चला जाता था। मेरे भाई को कोई परिणाम नहीं मिल रहे थे, फिर भी मैं स्वयं को दोषी नहीं ठहराता था या डरता नहीं था—मुझे परमेश्वर से कोई भय नहीं था, और यहाँ तक कि मैं हमारे अगुआओं के कई संवादों को भी नज़रअंदाज़ कर देता था। यह तब तक जारी रहा जब हम अपने काम की सूचना देने के लिए नहीं पहुँचे, और मैं अवाक रह गया: यद्यपि मेरे क्षेत्र में बहुत लोग थे, जब हमारे दोनों क्षेत्रों को जोड़ा गया, तो संख्या कम थी। केवल तभी मुझे डर लगा था। मैंने स्वयं को साबित करने का, यह दिखाने के अपने इरादे को पूरा करने का प्रयास किया था कि मैं कितनी अच्छी तरह कार्य कर सकता हूँ, कि मैं सुसमाचार के कार्य में उससे बेहतर हूँ। किन्तु उसके क्षेत्र में सुसमाचार का कार्य लगभग रुक गया था। मैं परमेश्वर की इच्छा पूरी किए जाने के मार्ग में बाधा बन गया था। इन परिस्थितियों के मूल कारण को समझने के लिए मेरे पास परमेश्वर के वचन को देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मैंने निम्नलिखित पर ध्यान दिया: "तुम में से हर व्यक्ति, परमेश्वर की सेवा करने वाले के तौर पर सिर्फ़ अपने हितों के बारे में सोचने के बजाय, अपने हर काम में कलीसिया के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिये। हमेशा एक दूसरे को कमतर दिखाने की कोशिश करते हुए, अकेले काम करना अस्वीकार्य है। इस तरह का व्यवहार करने वाले लोग परमेश्वर की सेवा करने के योग्य नहीं हैं! ऐसे लोगों का स्वभाव बहुत बुरा होता है; उनमें ज़रा सी भी मानवता नहीं बची है। वे सौ फीसदी शैतान हैं! वे जंगली जानवर हैं! अब भी, इस तरह की चीज़ें तुम लोगों के बीच होती हैं; तुम लोग तो सहभागिता के दौरान एक दूसरे पर हमला करने की हद तक चले जाते हो, जान-बूझकर कपट करना चाहते हो और किसी छोटी सी बात पर बहस करते हुए भी गुस्से से तमतमा उठते हो, तुम में से कोई भी पीछे हटने के लिये तैयार नहीं होता। हर व्यक्ति अपने अंदरूनी विचारों को एक दूसरे से छिपा रहा होता है, दूसरे पक्ष को गलत इरादे से देखता है और हमेशा सतर्क रहता है। क्या इस तरह का स्वभाव परमेश्वर की सेवा करने के लिये उपयुक्त है? क्या तुम्हारा इस तरह का कार्य तुम्हारे भाई-बहनों को कुछ भी दे सकता है? तुम न केवल लोगों को जीवन के सही मार्ग पर ले जाने में असमर्थ हो, बल्कि वास्तव में तुम अपने भ्रष्ट स्वभावों को अपने भाई-बहनों में डालते हो। क्या तुम दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हो? तुम्हारा ज़मीर बहुत बुरा है और यह पूरी तरह से सड़ चुका है! तुम वास्तविकता में प्रवेश नहीं करते हो, तुम सत्य का अभ्यास भी नहीं करते हो। इसके अतिरिक्त, तुम बेशर्मी से दूसरों के सामने अपनी शैतानी प्रकृति को उजागर करते हो। तुम्हें कोई शर्म है ही नहीं! इन भाई-बहनों की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपी गई है, फिर भी तुम उन्हें नरक की ओर ले जा रहे हो। क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जिसका ज़मीर सड़ चुका है? तुम्हें बिलकुल भी शर्म नहीं है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, इस्राएलियों की तरह सेवा करो)। परमेश्वर के कठोर वचनों ने मेरी वास्तविक प्रकृति को उजागर कर दिया और मुझे शर्मिंदा कर दिया। परमेश्वर द्वारा उन्नयन और दया के कारण ही मैं उस कर्तव्य को पूरा कर सका था, परमेश्वर ने मुझे अपने भाइयों और बहनों को उसके पास लाने की ज़िम्मेदारी दी थी। लेकिन मैंने वास्तविकता में प्रवेश नहीं किया, मैंने सत्य का अभ्यास नहीं किया, और प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए मैंने परमेश्वर के परिवार के हितों की उपेक्षा की। मैं अपने भाई के साथ खुलेआम और गुप्त तरीके से लड़ाई करता था, अकेले काम करता था। अब सुसमाचार फैलाने का समय है, और परमेश्वर आशा करता है कि जो लोग वास्तव में तलाश करते हैं, वे शीघ्र ही परमेश्वर के परिवार में लौट आएँगे। लेकिन मैंने अपनी ज़िम्मेदारियों को टाल दिया और परमेश्वर से प्रेम नहीं किया, मैंने उसकी सबसे प्रिय इच्छा पर विचार नहीं दिया और जो लोग सच्चे मार्ग की तलाश में थे उन्हें परमेश्वर के पास लेकर नहीं आया। दूसरों की सहायता करने के बजाय, स्वयं को साबित करने के लिए, मैं प्रतिष्ठा और हैसियत जैसी बेकार चीज़ों के पीछे लगा रहा। यह आशा करते हुए कि मेरा भाई मेरे से पीछे रह जाएगा, मैं अपने कार्य की समस्याओं के बारे में संवाद नहीं करता था। मुझे कार्य के उन पहलुओं से ईर्ष्या होती थी जिन में मेरा भाई अधिक मज़बूत था, यहाँ तक कि मैं उन्हें नज़रअंदाज़ कर देता था। मैं किसी भी मानवता से रहित बहुत दुष्ट था। परमेश्वर ऐसे लोगों से घृणा करता है, और यदि मैं नहीं बदला, तो मैं उसकी सेवा कैसे कर सकता था? यदि मैंने वास्तविकता में प्रवेश नहीं किया, तो मैं अपने भाइयों और बहनों को परमेश्वर के पास कैसे ला सकता था? आँसूओं के साथ, मैं परमेश्वर के पास आया और प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! मैं ग़लत था, यह सब मेरी विद्रोहशीलता थी। मैं तेरी इच्छाओं पर विचार करने में विफल रहा, और स्वयं को साबित करने के लिए कि मैं अपने भाई से लड़ा, उसे हराने के लिए मैंने अपने अंतःकरण की उपेक्षा की और अपने उत्तरदायित्वों को पूरा नहीं किया। और अब सुसमाचार के काम को नुकसान पहूँचा है और मैंने तेरे सामने अपराध किया है। किन्तु मैं पश्चाताप करना और बदलना, अपने भाई के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य करना और सुसमाचार के कार्य को और अधिक सक्रिय बनाना चाहता हूँ। यदि मैं फिर से हैसियत प्राप्त करने का प्रयास करूँ, तो, परमेश्वर, मुझे सज़ा दे, मैं तेरे द्वारा निगरानी किया जाना चाहता हूँ, आमीन!" प्रार्थना करने के बाद मैंने अपने भाई से मिलने के लिए बस पकड़ी और उसके साथ खुल कर संवाद किया, और स्वीकार किया कि कैसे मैंने परमेश्वर के सामने विद्रोही तरीके से कार्य किया था और कैसे मैंने सुधरने की योजना बनाई। हमने अपने बारे में अपनी समझ के बारे में एक दूसरे से संवाद किया। इसके बाद, अपनी चूकों और त्रुटियों की तलाश करते हुए, उन सफल अनुभवों का मूल्यांकन करते हुए जो मुझे हुए थे, और सख्ती से कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य करते हुए, हमने एकजुट होकर परमेश्वर के साथ कार्य किया और अपने कार्य की असफलताओं में सुधार करना आरंभ कर दिया। हमारे सुसमाचार के कार्य में शीघ्र ही सुधार हुआ। इससे मैंने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को देखा। परमेश्वर की पवित्रता मेरे भीतर गंदगी या भ्रष्टता होने की अनुमति नहीं देती है, और जब मैं शैतानी स्वभाव द्वारा नियंत्रित था और मैं अपने आप को बचा नहीं सकता था, तो यह परमेश्वर था जिसने उद्धार का हाथ बढ़ाया और मुझे मौत के कगार से वापस खींच लिया, मुझे शैतान के प्रभाव से मुक्त कर दिया और मुझे बदलने दिया। मैं सत्य की तलाश करने तथा अब और विद्रोहशील नहीं होने, तथा उस सब में पूरी तरह से वफ़ादार होने के लिए तैयार हूँ जो परमेश्वर ने मुझे सौंपा है।
मैंने देखा कि परमेश्वर का वचन कहता है कि: "जब तुम लोग साथ मिलकर समन्वय करते हो, तो तुम्हें सत्य खोजना सीखना चाहिए। तुम कह सकते हो, 'मुझे सत्य के इस पहलू की स्पष्ट समझ नहीं है। तुम्हें इसके साथ क्या अनुभव हुआ है?' या तुम लोग शायद कहो, 'इस पहलू के संबंध में तेरा अनुभव मुझसे अधिक है; क्या तू कृपा करके मुझे कुछ मार्गदर्शन दे सकता है?' क्या यह एक अच्छा तरीका नहीं होगा? तुम लोगों ने ढेर सारे उपदेश सुने होंगे, और सेवा करने के बारे में तुम सबको कुछ अनुभव होगा। अगर कलीसियाओं में काम करते समय तुम लोग एक दूसरे से नहीं सीखते, एक दूसरे की मदद नहीं करते या एक दूसरे की कमियों को दूर नहीं करते हो, तो तुम कैसे कोई सबक सीख पाओगे? जब भी किसी चीज़ से तुम्हारा सामना होता है, तुम लोगों को एक दूसरे से सहभागिता करनी चाहिये ताकि तुम्हारे जीवन को लाभ मिल सके। इसके अलावा, तुम लोगों को किसी भी चीज़ के बारे में कोई भी निर्णय लेने से पहले, उसके बारे में ध्यान से सहभागिता करनी चाहिये। सिर्फ़ ऐसा करके ही तुम लापरवाही से काम करने के बजाय कलीसिया की जिम्मेदारी उठा सकते हो। सभी कलीसियाओं में जाने के बाद, तुम्हें एक साथ इकट्ठा होकर उन सभी मुद्दों और समस्याओं के बारे में सहभागिता करनी चाहिये जो अपने काम के दौरान तुम्हें पता चली हैं; फिर तुम्हें उस प्रबुद्धता और रोशनी के बारे में बात करनी चाहिये जो तुम्हें प्राप्त हुई हैं—यह सेवा का एक अनिवार्य अभ्यास है। परमेश्वर के कार्य के प्रयोजन के लिए, कलीसिया के फ़ायदे के लिये और अपने भाई-बहनों को आगे बढ़ाने के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिये, तुम लोगों को सद्भावपूर्ण सहयोग करना होगा। तुम्हें एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिये, एक दूसरे में सुधार करके कार्य का बेहतर परिणाम हासिल करना चाहिये, ताकि परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखा जा सके। सच्चे सहयोग का यही मतलब है और जो लोग ऐसा करेंगे सिर्फ़ वही सच्चा प्रवेश हासिल कर पाएंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, इस्राएलियों की तरह सेवा करो)। परमेश्वर के वचनों में मैंने प्रवेश करने का एक तरीका देखा और जाना कि दूसरों के साथ-साथ कैसे सेवा करनी है। मैंने परमेश्वर की इच्छाओं को समझा: हर किसी की अपनी शक्तियाँ हैं, और परमेश्वर चाहता है कि हर कोई परमेश्वर के परिवार के कार्य में उन शक्तियों का उपयोग करे, और ऐसा करने से हर किसी की कमज़ोरियों की भरपाई हो जाएगी। उस भाई के साथ कार्य करना ही बस मेरी आवश्यकता थी। मैं सत्य का संवाद करने में कमज़ोर था, और परमेश्वर के प्रेम के कारण मुझे उसका साथी बनाया गया था, जिससे उसकी शक्तियाँ मेरी कमज़ोरियों की क्षतिपूर्ति कर सकती थी। किन्तु मैंने यह नहीं देखा, और जब मैं अपने भाई के साथ था, तो यदि मुझे कुछ समझ नहीं आता था, तो मैं उसकी सहायता माँगने में असफल रहता था। कभी-कभी जब वह मेरे साथ संवाद करता था, तो मैं सुनने का अनिच्छुक रहता था। मैं पद के लिए उसके साथ धोखेबाजी करता था, और अपने जीवन और सुसमाचार के काम दोनों को भी नुकसान पहुँचा रहा था। बाद के दिनों में, मैं सत्य के इस पहलू में प्रवेश का अभ्यास करता था, अपने भाई से उन चीज़ों पर परामर्श करता था जो मुझे समझ में नहीं आती थीं या जिन्हें मैं स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता था: मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ सत्य के इस पहलू पर संवाद करो, क्योंकि मैं स्पष्ट नहीं हूँ। मैं अपने काम की कठिनाइयों पर भी उससे परामर्श करता था: यह बहुत अच्छी तरह से मेरी समझ में नहीं आता है, क्या तुम मुझे समझा सकते हो? तब से, हम एक-दूसरे से सीखते थे और जब हम कलीसिया में जाते तो एक दूसरे के पूरक बनते थे, और जब हम किसी समस्या का सामना करते, तो हम एक-दूसरे के साथ संवाद करते थे, साथ मिलकर कलीसिया की समस्याओं को हल करने के लिए परमेश्वर के वचनों को ढूँढते थे। हम एक दूसरे को स्वीकार करते हुए, एक दूसरे का ख्याल रखते हुए, एक दूसरे को समझते हुए, आत्मा में भागीदार बन गए। कभी-कभी हमारे विचार भिन्न होते थे, किन्तु जब तक वे हमारे भाइयों और बहनों के जीवन और परमेश्वर के परिवार के कार्यों को लाभान्वित करते थे, हम सहमत हो सकते थे। भले ही हम थोड़ा-बहुत अपमानित भी होते थे, तब भी हम अपनी इच्छाओं को एक ओर रख सकते थे। हमने एक साथ खुशी से काम किया, और हमारे काम के हर पहलू में सुधार हुआ।
मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मुझे अपने न्याय और ताड़ना के माध्यम से बदल दिया, कि उसने मुझे दिखाया कि कैसे शैतान शोहरत, लाभ और हैसियत से मुझे नुकसान पहुंचाता है। अब जो उचित है मैं उसकी खोज करता हूँ, और एक मनुष्य की तरह जीता हूँ। यद्यपि अभी भी मेरे भीतर बहुत भ्रष्टता है जिसे अवश्य शुद्ध किया जाना चाहिए तथा मुझे अवश्य और अधिक न्याय और ताड़ना से गुज़रना चाहिए, मैंने देखा है कि परमेश्वर का न्याय और ताड़ना मनुष्य का सर्वोत्तम उद्धार, परमेश्वर का सबसे सच्चा प्यार है। मैं इसे और अधिक अनुभव करना चाहता हूँ, मैं चाहता हूँ कि जैसे-जैसे मैं प्रगति करूँ परमेश्वर का न्याय और ताड़ना मेरे साथ रहे, जब तक कि मैं अंततः परमेश्वर का सेवक होने के योग्य न हो जाऊँ।
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