त्रित्व की पहेली का हल
20 वर्ष पहले एक एल्डर ने मेरा धर्म-परिवर्तन कर मुझे ईसाई बना दिया था। उन्होंने मुझे बताया कि ब्रह्मांड की हर चीज़ में, केवल एक सच्चा परमेश्वर है, जिसने इंसान, स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों का सृजन किया। यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। उन्होंने बाद में मुझे बताया कि प्रभु यीशु, परमेश्वर का पुत्र है और हम उसमें आस्था रखने से बचाये जा सकते हैं। इस मोड़ पर मैं थोड़ा उलझ गया। परमेश्वर तो सिर्फ एक ही है न? उसका पुत्र कैसे हो सकता है? मैं नहीं समझ पाया कि वास्तव में परमेश्वर कितने हैं। उसके बाद, जब कभी मैं अपने पादरी को किसी को बपतिस्मा देते देखता, तो उन्हें ये कहते सुनता, "पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से आपको बपतिस्मा दिया जाता है।" चकराकर मैंने उनसे पूछा, "भला कितने परमेश्वर हैं? आप हमेशा लोगों को परमेश्वर के इतने सारे नामों से बपतिस्मा क्यों देते हैं?" उनका जवाब था, "परमेश्वर बस एक ही है, मगर त्रित्व भी है, जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा से बना है। वे अलग-अलग व्यक्ति हैं, मगर उनका अस्तित्व एक ही सत्व में है।" यह देखकर कि मैं नहीं समझा, वे आगे बोले, "इसे समझने के लिए आपको थोड़ी गहराई से सोच-विचार करना होगा। अगर आप अभी इसे न समझ पाएँ तो कोई बात नहीं। इन सभी को आप परमेश्वर मान कर चलें। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सभी एक साथ कार्य करते हैं।" उनके समझाने के बाद भी मैं पशोपेश में ही रहा। अगर परमेश्वर एक ही है, तो व्यक्ति तीन कैसे हो सकते हैं? फिर मुझे लगा कि यह गलत नहीं हो सकता क्योंकि यह ईसाईं धर्म का मौलिक सूत्र है, हो सकता है यह परमेश्वर का गूढ़ रहस्य हो।
बाद में मैं डिविनिटी स्कूल चला गया ताकि मैं परमेश्वर की बेहतर सेवा कर सकूं। वहां रहते समय भी मैंने त्रित्व के अर्थ पर बहुत सोच-विचार किया। अपनी उलझन दूर करने की कोशिश में, मैं बहुत सारी सामग्री, और धर्मग्रंथ पढ़ने लगा और कुछ पादरियों से पूछा, मगर मुझे कभी भी समाधान नहीं मिल पाया। पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद, मैंने कलीसिया में संडे स्कूल के लिए स्वयंसेवी के रूप में काम शुरू किया। कुछ भाई-बहनों ने मुझसे त्रित्व के बारे में समझाने को कहा। मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूं, इसलिए मैंने उन्हें पादरी की कही हुई बात बता कर टाल दिया। उन्हें अभी भी उलझन में देखकर, मुझे बहुत बुरा लगा। मैं जानता था कि मुझे प्रभु की सेवा करनी चाहिए, इसलिए मैंने बड़ी शर्मिंदगी महसूस की कि मैं ईसाई धर्म की ऐसी मूलभूत बात समझा नहीं सका।
2007 में, मैंने विश्व चीनी पादरी और एल्डर प्रशिक्षण सम्मलेन में भाग लिया। दुनिया भर से आये प्रसिद्ध पादरियों और प्रचारकों को वहां एक साथ देखना मेरे लिए बहुत रोमांचक था। अपने दिल की उलझन को सुलझाने के लिए मैं इस मौके का लाभ उठाना चाहता था। सम्मलेन के बाद मैंने एक प्रख्यात पादरी से इस बारे में पूछा। मैंने उनसे पूछा कि वे त्रित्व के बारे में क्या समझते हैं; उन्होंने मुझे बताया, "पिता हर चीज़ निर्धारित करता है, पुत्र पिता की योजना क्रियान्वित करता है, और पवित्र आत्मा योजना का परिचालन करता है।" मैंने उनसे और विस्तार से समझाने को कहा, मगर उन्होंने बड़ी सफाई से सवाल को टाल दिया। मैंने एक और पादरी से इस बारे में पूछा, वे बोले, "यहोवा परमेश्वर है, प्रभु यीशु परमेश्वर है, पवित्र आत्मा परमेश्वर है। वे सभी परमेश्वर हैं। आप जिस किसी से भी चाहें, प्रार्थना करें। मगर, मेरा सुझाव है कि आप प्रभु यीशु से प्रार्थना करें, क्योंकि वह मनुष्य का पुत्र है। उसमें सामान्य इंसानी भावनाएं हैं और वह इंसानी दिल के भीतर देख सकता है। उसने बहुत-से चमत्कार भी किए हैं। यहोवा एक आत्मा है, वैसे ही पवित्र आत्मा भी आत्मा है। उन्हें देखा या छुआ नहीं जा सकता। इसीलिए बेहतर है हम लौकिक परमेश्वर से संवाद करें।" इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा उलझा दिया, मैंने सोचा, "तीनों में से कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है, इसलिए किसी एक से प्रार्थना करना बेहतर कैसे हो सकता है? क्या यहोवा परमेश्वर भी हमारे दिलों में देखकर हर प्रकार के चमत्कार नहीं कर सकता?" मेरी उलझन देखकर, उन्होंने एक और बात कही, "परमेश्वर एक आत्मा है, वह अथाह है। धर्मग्रंथों की व्याख्या करने के दसियों साल के अनुभव वाले बहुत-से पादरी अभी भी इसे पूरी तरह से नहीं समझा सकते, मैं भी अभी तक इसकी खोज में लगा हुआ हूँ।" इसके बाद मेरे पास और कुछ पूछने को नहीं बचा। जिस तरह से पादरी ने प्रार्थना का महत्त्व बताया उस बारे में सोचकर मैं पशोपेश में पड़ गया। मुझे लगा कि यह परमेश्वर के प्रति आदरभाव वाला दृष्टिकोण नहीं है, लेकिन मैं नहीं जानता था कि इसे कैसे समझूं। मैंने उलझन के बावजूद त्रित्व में अपनी आस्था बनाये रखी। संडे स्कूल की कक्षाओं में जब भी त्रित्व की बात होती, मैं उस पर ज़्यादा नहीं बोलता, कि कहीं गड़बड़ करके परमेश्वर का अपमान न कर दूं, लेकिन मैं कभी भी अपने दिल में इसे उतार नहीं पाया।
देखते-देखते दस साल बीत गये। बहन सू से मेरी मुलाक़ात 2017 में हुई। बाइबल के बारे में उनकी संगति वाकई प्रबुद्ध करने वाली थी, उन्हें सच में इस बारे में गहरी समझ थी। मुझे इससे बहुत-कुछ हासिल हुआ। उन्होंने बाद में मुझे छोटी ऑनलाइन सभाओं में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। ऐसी ही एक सभा में, भाई ली ने परमेश्वर में सच्ची आस्था और बाइबल के पीछे की कहानी के बारे में संगति की। यह आँखें खोल देने वाली थी। उन्होंने प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणियों के बारे में बताया और कहा, "इंसान को बचाने का परमेश्वर का कार्य तीन युगों में होता है। पुराना नियम व्यवस्था का युग था, नया नियम अनुग्रह का युग था, और प्रकाशितवाक्य अंत के दिनों के कार्य की भविष्यवाणी करता है। परमेश्वर प्रत्येक युग में एक नया नाम धारण कर अलग कार्य करता है। पुराने नियम में, व्यवस्था के युग के दौरान परमेश्वर का नाम यहोवा था, उसने मूसा के द्वारा व्यवस्थाएं और आदेश जारी किए और लोगों को पाप क्या है, ये सिखाया, पृथ्वी पर आरंभिक मनुष्य को जीने का रास्ता दिखाया। व्यवस्था के युग में बहुत बाद में, कोई भी व्यक्ति व्यवस्था का पालन नहीं कर रहा था, बल्कि ज़्यादा-से-ज़्यादा पाप कर रहा था। व्यवस्था के तहत सभी को सज़ा और मौत का सामना करना था। परमेश्वर लोगों को सज़ा से बचाने के लिए प्रभु यीशु के रूप में देहधारी हुआ। हमें हमारे पापों से छुटकारा दिलाने के लिए उसे सूली पर चढ़ा दिया गया। अगर हम प्रभु यीशु को स्वीकार कर उसके सामने अपने पाप स्वीकार कर प्रायश्चित करें, तो हमारे पापों को माफ़ किया जा सकता है। लेकिन हमारी प्रकृति अभी भी पापमय है, इसलिए हम पाप करते और उन्हें स्वीकार करते रहते हैं। हम पाप के बंधनों से शुद्ध होकर उनसे आज़ाद नहीं हो पाये हैं। इस प्रकार से हम स्वर्ग के राज्य के लायक नहीं हैं। अंत के दिनों में, परमेश्वर मनुष्य की ज़रूरतों के अनुसार सत्य व्यक्त करता है। वह मनुष्य के साथ न्याय कर उसे शुद्ध करने, हमारी पापी प्रकृति को सुधारने, हमें शैतान के अधिकार-क्षेत्र से पूरी तरह से बचाने के लिए कार्य करता है। मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर के कार्य के ये तीन चरण हैं। उसके कार्य का प्रत्येक चरण मनुष्य की ज़रूरतों पर आधारित है। कार्य के इन तीन चरणों के जरिये, हम क्रम से पाप को जानते, पाप से छुटकारा पाते, और पाप से आज़ाद होते हैं। पाप से आज़ाद होने के लिए परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करना ही पूरी तरह से बचाए जाने और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का एकमात्र रास्ता है।"
भाई ली ने संगति में कहा कि परमेश्वर के कार्य के तीनों चरण आपस में मजबूती से जुड़े हुए हैं, उन्होंने इसे बाइबल से जोड़ा। इस बात ने मुझे आकर्षित किया। मैंने बाइबल कई बार पढ़ी थी और मैंने बहुत से धर्मोपदेश सुने थे, लेकिन मैंने परमेश्वर के कार्य पर किसी को इतनी स्पष्टता से संगति करते नहीं सुना था। भाई ली ने बाद में एक अंश भेजा। "यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं। अब तुम्हारे लिए यह समझना उचित है कि प्रथम चरण से लेकर आज तक का समस्त कार्य एक ही परमेश्वर का कार्य है, एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, भाई ली ने संगति की, "परमेश्वर एक ही है। परमेश्वर ने पूरी मनुष्य जाति का सृजन किया, स्वयं परमेश्वर मनुष्य का प्रबंध कर उसे बचा रहा है। संसार के सृजन से अब तक, वह मनुष्य को बचाने के लिए कार्य करता रहा है, हालांकि कार्य के प्रत्येक चरण में उसके नाम अलग हैं, उसका कार्य, काल और स्थान अलग हैं, परंतु ये सभी एक ही परमेश्वर द्वारा किए गये हैं। कार्य का प्रत्येक चरण पिछले चरण पर बना है, प्रत्येक चरण के साथ और ऊंचा और गूढ़ है।" मुझे यह सुनकर अचरज हुआ, मैंने सोचा, "ये कहते हैं कि कार्य का प्रत्येक चरण एक ही आत्मा द्वारा किया गया है, तो यहोवा और प्रभु यीशु एक ही आत्मा हैं। परमेश्वर केवल एक है, तीन आत्माएं नहीं! भाई ली की संगति बिल्कुल अर्थपूर्ण है, इसमें मुझे शक करने या काटने जैसी कोई बात नहीं लगती। मगर उनकी बात के आधार पर, क्या ऐसा नहीं कि जिस त्रित्व में हम विश्वास करते रहे हैं, वह सही नहीं है? हालांकि धार्मिक संसार में परमेश्वर के एक या अनेक होने के बारे में मतभेद रहा है, ज़्यादातर लोग त्रित्व में विश्वास रखते हैं। वे सब गलत नहीं हो सकते। मैंने पहले कभी इस प्रकार की संगति नहीं सुनी। क्या धार्मिक समुदाय में कोई नई समझ पनपी है?" भावनाओं के अशांत होने के कारण मैं जल्दी चला गया ताकि इस पर थोड़ा सोच सकूं।
थोड़ी स्पष्टता पाने की कोशिश में मैं फिर से बाइबल के पन्ने पलटने लगा, बहुत-सी प्रचार-सामग्री भी देखी। मैं कई दिन तक खोज में जुटा रहा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब मैं बेचैनी महसूस करने लगा, मैंने मन-ही-मन सोचा, "भाई ली की संगति धार्मिक संसार की कही हुई बातों से अलग है, मगर वह अनूठी और बाइबल के आधार पर सही है। क्या मुझे अगली सभा में भाग लेना चाहिए? अगर मैं जाता रहूँ, और त्रित्व के विचार को ठुकरा दूं, तो यह तय है कि धार्मिक समुदाय मुझे बाहर निकाल देगा। मगर, फिर देखूं तो मुझे उनकी संगति से ऐसी प्रबुद्धता मिली है जैसी इस कलीसिया में नहीं मिल सकती। पर मुझे यहाँ से जाना भी अच्छा नहीं लगेगा।" मैं अपना मन नहीं बना पाया, इसलिए मैंने भाई ली द्वारा सभा में भेजे गये परमेश्वर के वचनों का अंश खोजा। उसे पढ़ते हुए मैंने विचार किया, मैंने जितना सोचा, उतना ही मुझे लगा कि कोई भी साधारण आदमी ऐसी बात नहीं कह सकता। कोई भी आध्यात्मिक व्यक्ति परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के बारे में इस लहजे में बात करने की हिम्मत नहीं कर सकता। क्या ये सच में परमेश्वर के वचन हैं? बहुत सोच-विचार के बाद मैंने फैसला किया कि धार्मिक संसार चाहे जो सोचे, मुझे भाई ली की संगति को सुनना है, देखना है कि क्या उससे मेरी उलझन दूर होती है।
अगली सभा में, मैंने त्रित्व के बारे में अपनी असमंजस बतायी, इस पर उनकी संगति यह थी : "बहुत-से धार्मिक लोग त्रित्व के विचार से चिपके रहते हैं। वे सोचते हैं कि परमेश्वर एक है मगर व्यक्ति तीन हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, जो परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के अलग-अलग हिस्सों को संभालते हैं। लेकिन क्या हमने कभी भी यह सोचा है कि यह विचार कहाँ से उपजा है? क्या परमेश्वर ने कभी भी त्रित्व के बारे में कुछ कहा है? क्या पवित्र आत्मा ने इसकी गवाही दी? क्या नबियों ने इसका ज़िक्र किया? बिल्कुल नहीं! दरअसल, त्रित्व का विचार प्रभु के समय के लगभग तीन सौ साल बाद, सबसे पहले नाइसिया परिषद में उठा था, और धार्मिक अगुआओं के बीच भीषण वाद-विवाद के बाद इसे स्थापित किया गया था। उसके बाद से, ज़्यादातर धार्मिक लोग यह मानने लगे कि सभी चीज़ों का सृजन करने वाला हमारा एकमात्र परमेश्वर त्रित्व है। वे सोचते हैं कि प्रभु यीशु के अलावा, स्वर्ग में पिता और पवित्र आत्मा भी हैं, वे तीन परमेश्वर हैं, तीन आत्मा हैं। अगर हम उनके तर्क का पालन करें, तो फिर क्या परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर होगा? वे चारों तरफ चिल्लाते फिरते हैं कि परमेश्वर केवल एक है, मगर वे त्रित्व में विश्वास रखते हैं। क्या यह बात परस्पर-विरोधी नहीं है? क्या यह बेतुका नहीं है? पुराने नियम में किसी भी त्रित्व के बारे में कुछ भी नहीं लिखा था, प्रभु यीशु के पृथ्वी पर कार्य करने के साढ़े तीन वर्ष में, उसने कभी भी त्रित्व के होने के बारे में कुछ भी नहीं कहा। वह विचार प्रभु यीशु के कार्य पूरा कर लेने के बाद भला क्यों प्रकट होगा? ऐसा इसलिए क्योंकि लोग देहधारण के सार को नहीं समझ सके। पवित्र आत्मा ने गवाही दी कि प्रभु यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र था, उन्होंने उसे स्वर्ग में अपने पिता से प्रार्थना करते हुए देखा, इसलिए उन्होंने परमेश्वर के बारे में धारणाएं बना लीं। उन्होंने सोचा कि परमेश्वर तीन हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। उन्होंने अपनी कल्पना के अनुसार जोड़-तोड़ बिठाया और परमेश्वर को सीमा में बांधने की कोशिश की। उदाहरण के लिए फिलिप्पुस को ही लें। उसे नहीं मालूम था कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर है, इसलिए उसने प्रभु से पिता को दिखाने की मांग की। प्रभु यीशु ने साफ़ तौर पर जवाब दिया, 'हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? क्या तू विश्वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है' (यूहन्ना 14:9-10)। प्रभु यीशु ने यह भी कहा, 'मैं और पिता एक हैं' (यूहन्ना 10:30)। प्रभु यीशु इस बारे में स्पष्ट था कि वे एक हैं, एक ही परमेश्वर और एक ही आत्मा।"
फिर भाई ली ने परमेश्वर के कुछ वचनों के पाठ का वीडियो चलाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यदि तुम लोगों में से कोई भी कहता है कि त्रित्व वास्तव में है, तो समझाओ कि तीन व्यक्तियों में यह एक परमेश्वर क्या है। पवित्र पिता क्या है? पुत्र क्या है? पवित्र आत्मा क्या है? क्या यहोवा पवित्र पिता है? क्या यीशु पुत्र है? फिर पवित्र आत्मा का क्या? क्या पिता एक आत्मा नहीं है? पुत्र का सार भी क्या एक आत्मा नहीं है? क्या यीशु का कार्य पवित्र आत्मा का कार्य नहीं था? एक समय आत्मा द्वारा क्रियान्वित यहोवा का कार्य क्या यीशु के कार्य के समान नहीं था? परमेश्वर में कितने आत्माएं हो सकते हैं? तुम्हारे स्पष्टीकरण के अनुसार, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के तीन व्यक्ति एक हैं; यदि ऐसा है, तो तीन आत्माएं हैं, लेकिन तीन आत्माओं का अर्थ है कि तीन परमेश्वर हैं। इसका मतलब है कि कोई भी एक सच्चा परमेश्वर नहीं है; इस प्रकार के परमेश्वर में अभी भी परमेश्वर का निहित सार कैसे हो सकता है? यदि तुम मानते हो कि केवल एक ही परमेश्वर है, तो उसका एक पुत्र कैसे हो सकता है और वह पिता कैसे हो सकता है? क्या ये सब केवल तुम्हारी धारणाएं नहीं हैं? केवल एक परमेश्वर है, इस परमेश्वर में केवल एक ही व्यक्ति है, और परमेश्वर का केवल एक आत्मा है, वैसा ही जैसा बाइबल में लिखा गया है कि 'केवल एक पवित्र आत्मा और केवल एक परमेश्वर है।' जिस पिता और पुत्र के बारे में तुम बोलते हो, वे चाहे अस्तित्व में हों, कुल मिलाकर परमेश्वर एक ही है और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का सार, जिसे तुम लोग मानते हो, पवित्र आत्मा का सार है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर एक आत्मा है लेकिन वह देहधारण करने और मनुष्यों के बीच रहने के साथ-साथ सभी चीजों से ऊँचा होने में सक्षम है। उसका आत्मा समस्त-समावेशी और सर्वव्यापी है। वह एक ही समय पर देह में हो सकता है और पूरे विश्व में और उसके ऊपर हो सकता है। चूंकि सभी लोग कहते हैं कि परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, फिर एक ही परमेश्वर है, जो किसी की इच्छा से विभाजित नहीं होता! परमेश्वर केवल एक आत्मा है और केवल एक ही व्यक्ति है; और वह परमेश्वर का आत्मा है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। "फिर भी कुछ कह सकते हैं: 'पिता पिता है; पुत्र पुत्र है; पवित्र आत्मा पवित्र आत्मा है और अंत में वे एक बनेंगे।' तो तुम उन्हें एक कैसे बना सकते हो? पिता और पवित्र आत्मा को एक कैसे बनाया जा सकता है? यदि वे मूल रूप से दो थे, तो चाहे वे एक साथ कैसे भी जोड़ें जाएं, क्या वे दो हिस्से नहीं बने रहेंगे? जब तुम उन्हें एक बनाने को कहते हो, तो क्या यह बस दो अलग हिस्सों को जोड़कर एक बनाना नहीं है? लेकिन क्या पूरे किए जाने से पहले वे दो भाग नहीं थे? प्रत्येक आत्मा का एक विशिष्ट सार होता है और दो आत्माएं एक नहीं बन सकतीं। आत्मा कोई भौतिक वस्तु नहीं है और भौतिक दुनिया की किसी भी अन्य वस्तु के समान नहीं है। जैसे मनुष्य इसे देखता है, पिता एक आत्मा है, बेटा दूसरा, और पवित्र आत्मा एक और, फिर तीन आत्माएं एक साथ पूरे तीन गिलास पानी की तरह मिलकर पूरा एक बनते हैं। क्या यह तीन को एक बनाना नहीं है? यह एक शुद्ध रूप से गलत और बेतुकी व्याख्या है! क्या यह परमेश्वर को विभाजित करना नहीं है? पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सभी को एक कैसे बनाया जा सकता है? क्या वे भिन्न प्रकृति वाले तीन भाग नहीं हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। फिर उन्होंने संगति की, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पूरी तरह स्पष्ट रूप से त्रित्व की भ्रांति का विश्लेषण करते हैं। हम देख सकते हैं कि परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, और वही पवित्र आत्मा है, जो केवल एक है, बस उसके नाम अलग-अलग हैं। देहधारी परमेश्वर देह धारण किया हुआ पवित्र आत्मा है, उसके देह का सार है पवित्र आत्मा। प्रार्थना में हम उसे जिस भी नाम से पुकारें, परमेश्वर, पवित्र आत्मा और देहधारी परमेश्वर सब एक ही हैं, एक ही आत्मा। कोई भी इस सच्चाई को नकार नहीं सकता। परमेश्वर ब्रह्मांड की सभी चीज़ों का कर्ता-धर्ता है। वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी, सर्वसमावेशी, आत्मा है। वह सर्वव्यापी और परम शक्तिशाली है। वह स्वर्ग, पृथ्वी, और सभी चीज़ों की रचना कर सकता है, वह पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन कर सकता है। वह लोगों की ज़रूरत के अनुसार उन्हें छुटकारा दिलाकर बचाने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी भी हो सकता है। परमेश्वर के आत्मा का ब्रह्मांड की सभी चीज़ों पर नियंत्रण है। अगर हम धार्मिक संसार की बातों के अनुसार चलें, कि यहोवा परमेश्वर पिता है जिसने ब्रह्मांड की रचना की, वह प्रबंधन और नियोजन करते हुए स्वर्ग में है, जबकि प्रभु यीशु मनुष्य को छुटकारा दिलाने के लिए पिता द्वारा भेजा गया पुत्र है, तो फिर पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बाद प्रभु यीशु के पास करने को और कुछ नहीं रह जाएगा। उसे पवित्र आत्मा के भरोसे रहना होगा। त्रित्व के व्यक्तियों में से प्रत्येक की अपनी भूमिका है। स्वर्ग और पृथ्वी की और मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य की जिम्मेदारियां हैं। क्या यह परमेश्वर को तीन भागों में तोड़ना नहीं है? फिर क्या परमेश्वर तब भी सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी, परम शक्तिशाली, एकमात्र परमेश्वर बना रहेगा? क्या यह परस्पर-विरोधी बात नहीं है? परमेश्वर केवल एक है, मनुष्य का प्रबंधन और बचाव वह स्वयं कर रहा है। उसे तीन भागों में तोड़ देना उसे खंडित कर देना है। यह परमेश्वर का प्रतिरोध कर उसका तिरस्कार करना है!"
परमेश्वर के वचन सच में मेरे लिए प्रेरक थे। मैं समझ गया कि वर्षों से मेरे दिल में बसे त्रित्व का अस्तित्व ही नहीं है! हमने वर्षों से प्रभु में विश्वास रखा, हमेशा अड़े रहे कि परमेश्वर केवल एक ही है, लेकिन हमने उसे तीन व्यक्तियों में बाँट दिया, फिर हमें समझ नहीं आया कि इन तीन परमेश्वरों को फिर से एक कैसे बनायें। क्या यह बेवकूफी नहीं थी? मैंने त्रित्व के बारे में परस्पर-विरोधी व्याख्या देने वाले उन प्रसिद्ध पादरियों के बारे में सोचा। जब वे स्पष्ट नहीं कर पाते, तो कहते हैं कि परमेश्वर अथाह और रहस्यमय है। वे हमारी आँखों में धूल झोंक रहे हैं। मैं समझ गया कि परमेश्वर को जाने बिना उसमें विश्वास रखना, और उसे बाँट देना सच में परमेश्वर का प्रतिरोध कर उसका निरादर करना है। यह सोचकर, मुझे लगा कि मैं परमेश्वर का ऋणी हूँ। मगर मैं अभी भी पशोपेश में था, क्योंकि बाइबल में कहा गया है, "और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और देखो, उसके लिए आकाश खुल गया, और उसने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा। और देखो, यह आकाशवाणी हुई : 'यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ'" (मत्ती 3:16-17)। परमेश्वर एक आत्मा है, एक परमेश्वर है। प्रभु यीशु को यर्दन नदी में बपतिस्मा दिया गया था और पवित्र आत्मा ने गवाही दी कि वह परमेश्वर का पुत्र है, और कई बार प्रभु यीशु ने स्वर्ग में अपने पिता से प्रार्थना की। हम इसको कैसे समझें? मैं इसे सच में समझना चाहता था, इसलिए मैंने भाई ली से पूछा।
उन्होंने कहा, "हाँ, प्रभु यीशु ने परमेश्वर से प्रार्थना की और उसे अपना पिता कहा जो स्वर्ग में है। इसके भीतर एक रहस्य छुपा हुआ है। अपना सेवाकार्य शुरू करने से पहले, प्रभु यीशु को मालूम नहीं था कि वह देहधारी परमेश्वर है, क्योंकि आत्मा जब देह में कार्य करता है तो वह सामान्य होता है, अलौकिक नहीं। वह एक आम व्यक्ति जैसा होता है। तो जाहिर है वह अपने पिता से प्रार्थना करेगा जो स्वर्ग में है। यहाँ प्रभु यीशु एक इंसान के रूप में परमेश्वर के आत्मा से प्रार्थना कर रहा था। यह पूरी तरह से स्वाभाविक है। जब प्रभु यीशु ने अपना सेवाकार्य शुरू किया, तो पवित्र आत्मा बोला, यह गवाही दी कि वह देहधारी परमेश्वर है। इसके बाद ही उसे अपनी सही पहचान मालूम हुई। लेकिन फिर भी उसने पिता से प्रार्थना की, जो दर्शाता है कि मसीह विनम्र है, छिपा हुआ है, और उसका सार पूरी तरह से परमेश्वर का आज्ञाकारी है।" आइए देखें, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के पाठ का एक वीडियो, जो इसे स्पष्ट करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जब प्रार्थना करते हुए यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया, तो यह केवल एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से किया गया था, केवल इसलिए कि परमेश्वर के आत्मा ने एक सामान्य और साधारण देह का चोला धारण किया था और उसका वाह्य आवरण एक सृजित प्राणी का था। भले ही उसके भीतर परमेश्वर का आत्मा था, उसका बाहरी प्रकटन अभी भी एक सामान्य व्यक्ति का था; दूसरे शब्दों में, वह 'मनुष्य का पुत्र' बन गया था, जिसके बारे में स्वयं यीशु समेत सभी मनुष्यों ने बात की थी। यह देखते हुए कि वह मनुष्य का पुत्र कहलाता है, वह एक व्यक्ति है (चाहे पुरुष हो या महिला, किसी भी हाल में एक इंसान के बाहरी चोले के साथ) जो सामान्य लोगों के साधारण परिवार में पैदा हुआ। इसलिए, यीशु का स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना, वैसा ही था जैसे तुम लोगों ने पहले उसे पिता कहा था; उसने सृष्टि के एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से ऐसा किया। क्या तुम लोगों को अभी भी प्रभु की प्रार्थना याद है, जो यीशु ने तुम लोगों को याद करने के लिए सिखाई थी? 'स्वर्ग में हमारे पिता...' उसने सभी मनुष्यों से स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाने को कहा। और चूँकि वह भी उसे पिता कहता था, उसने ऐसा उस व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से किया, जो तुम सभी के साथ समान स्तर पर खड़ा था। चूंकि तुम लोगों ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया था, यीशु ने स्वयं को तुम सबके साथ समान स्तर पर देखा और पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा चुने गए व्यक्ति (अर्थात परमेश्वर के पुत्र) के रूप में देखा। यदि तुम लोग परमेश्वर को पिता कहते हो, तो क्या यह इसलिए नहीं कि तुम सब सृजित प्राणी हो? पृथ्वी पर यीशु का अधिकार चाहे जितना अधिक हो, क्रूस पर चढ़ने से पहले, वह मात्र मनुष्य का पुत्र था, पवित्र आत्मा (यानी परमेश्वर) द्वारा नियंत्रित था और पृथ्वी के सृजित प्राणियों में से एक था क्योंकि उसे अभी भी अपना कार्य पूरा करना था। इसलिए, स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना पूरी तरह से उसकी विनम्रता और आज्ञाकारिता थी। परमेश्वर (अर्थात स्वर्ग में आत्मा) को उसका इस प्रकार संबोधन करना हालांकि यह साबित नहीं करता कि वह स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मा का पुत्र है। बल्कि, यह केवल यही है कि उसका दृष्टिकोण अलग था, न कि वह एक अलग व्यक्ति था। अलग व्यक्तियों का अस्तित्व एक मिथ्या है! क्रूस पर चढ़ने से पहले, यीशु मनुष्य का पुत्र था, जो देह की सीमाओं से बंधा था और उसमें पूरी तरह आत्मा का अधिकार नहीं था। यही कारण है कि वह केवल एक सृजित प्राणी के परिप्रेक्ष्य से परमपिता परमेश्वर की इच्छा तलाश सकता था। यह वैसा ही है जैसा गतसमनी में उसने तीन बार प्रार्थना की थी: 'जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।' क्रूस पर रखे जाने से पहले, वह बस यहूदियों का राजा था; वह मसीह मनुष्य का पुत्र था और महिमा का शरीर नहीं था। यही कारण है कि एक सृजित प्राणी के दृष्टिकोण से, उसने परमेश्वर को पिता बुलाया" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। "अन्य लोग हैं, जो कहते हैं, 'क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?' यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है—यह निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को गवाही देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के वचन, 'मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है,' क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है। युग में परिवर्तन, कार्य की आवश्यकताओं और उसकी प्रबंधन योजना के विभिन्न चरणों के कारण, जिस नाम से मनुष्य उसे बुलाता है, वह भी अलग हो जाता है। जब वह कार्य के पहले चरण को क्रियान्वित करने आया था, तो उसे केवल यहोवा कहा जा सकता था, जो इस्राएलियों का चरवाहा है। दूसरे चरण में, देहधारी परमेश्वर को केवल प्रभु और मसीह कहा जा सकता था। परंतु उस समय, स्वर्ग में आत्मा ने केवल यह बताया था कि वह परमेश्वर का प्यारा पुत्र है और उसके परमेश्वर का एकमात्र पुत्र होने का कोई उल्लेख नहीं किया था। ऐसा हुआ ही नहीं था। परमेश्वर की एकमात्र संतान कैसे हो सकती है? तब क्या परमेश्वर मनुष्य नहीं बन जाता? क्योंकि वह देहधारी था, उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा गया और इससे पिता और पुत्र के बीच का संबंध आया। यह बस स्वर्ग और पृथ्वी के बीच जो विभाजन है, उसके कारण हुआ। यीशु ने देह के परिप्रेक्ष्य से प्रार्थना की। चूंकि उसने इस तरह की सामान्य मानवता की देह को धारण किया था, यह उस देह के परिप्रेक्ष्य से है, जो उसने कहा: 'मेरा बाहरी आवरण एक सृजित प्राणी का है। चूंकि मैंने इस धरती पर आने के लिए देहधारण किया है, अब मैं स्वर्ग से बहुत दूर हूँ।' इस कारण से, वह केवल परमपिता परमेश्वर से देह के परिप्रेक्ष्य से ही प्रार्थना कर सकता था। यह उसका कर्तव्य था और यह वह था, जो परमेश्वर के देहधारी आत्मा में होना चाहिए। यह नहीं कहा जा सकता कि वह परमेश्वर नहीं था क्योंकि वह देह के दृष्टिकोण से पिता से प्रार्थना करता था। यद्यपि उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा जाता था, वह अभी भी परमेश्वर था क्योंकि वह आत्मा का देहधारण था और उसका सार अब भी आत्मा का था" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)।
भाई ली ने अपनी संगति जारी रखी, "प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर था। वह मानव-पुत्र के शरीर में परमेश्वर का आत्मा था, जिसके पास सामान्य मानवता थी। वह साधारण से थोड़ा-भी अलग नहीं लगता था, लेकिन उसमें परमेश्वर का अपना सार था। बपतिस्मा होने के बाद जब उसने अपना सेवाकार्य शुरू किया, तब परमेश्वर ने गवाही दी कि प्रभु यीशु उसका प्रिय पुत्र है। यह परमेश्वर का देहधारी के लिए आत्मा के परिप्रेक्ष्य से गवाही देना था, ताकि लोग प्रभु यीशु का अनुसरण कर उसमें विश्वास रखें और जानें कि वह परमेश्वर से आया है। अगर पवित्र आत्मा ने सीधे गवाही दी होती कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर है, तो लोगों के लिए यह स्वीकार करना बड़ा मुश्किल होता, क्योंकि उन्हें परमेश्वर के देहधारण के बारे में कुछ भी नहीं पता था। देहधारण उनके लिए नई बात थी और उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं मालूम था। उन्होंने कभी भी कल्पना नहीं की थी कि मानव-पुत्र, यह आम इंसान, देह में परमेश्वर के आत्मा का मूर्त रूप है। अपने कार्य में, प्रभु यीशु ने अनेक वचन व्यक्त किये, प्रायश्चित का मार्ग बताया, चिह्न और चमत्कार दिखाये, और पूरी तरह से परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य को प्रकट किया। मगर लोग उसके कार्य और वचनों से यह नहीं समझ पाए कि प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर है, परमेश्वर का प्रकटन है। उस समय के लोगों के आध्यात्मिक कद के आधार पर, परमेश्वर ने गवाही दी कि प्रभु यीशु उसका प्रिय पुत्र है, उसने अस्थाई रूप से प्रभु यीशु को उसका पुत्र मानने की अनुमति दी। यह बात लोगों की धारणाओं से मेल खाती थी और इसे स्वीकार करना उनके लिए आसान था। प्रभु यीशु बस छुटकारे का कार्य कर रहा था, इसलिए लोग उसे कुछ भी कहकर पुकारें, ज़रूरत बस ये थी कि वे उसे अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लें, अपने पापों की माफी पाएँ, और परमेश्वर का अनुग्रह पाने की योग्यता हासिल कर लें। स्वर्ग में परमेश्वर से अपने पिता की तरह प्रार्थना करके, प्रभु यीशु एक सृजित प्राणी के नज़रिये से परमेश्वर को पुकार रहा था। इससे पता चला कि परमेश्वर कितना विनम्र और छिपा हुआ है। प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर था, लेकिन उसने स्वयं को परमेश्वर की तरह पेश नहीं किया। इसके बजाय, उसने लोगों को प्रार्थना करना सिखाया, परमेश्वर को जानने में उनका मार्गदर्शन किया, और यह सब उसने एक सृजित प्राणी के परिप्रेक्ष्य से किया। इस तरह लोगों को नहीं लगेगा कि परमेश्वर बहुत ऊंचा और पहुँच से बाहर है, बल्कि यह मनुष्य और परमेश्वर को करीब ले आएगा। यह परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता थी। इंसान के तौर पर हमें यही चाहिए था और यही परमेश्वर के उद्धार कार्य को चाहिए था।"
इससे मुझे काफी प्रबुद्धता मिली। मैंने समझ लिया कि इस ग्रंथ के पीछे परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता है, इंसानियत के लिए उसका प्रेम है। लेकिन समझ की कमी के कारण, हम बाइबल में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का उल्लेख देख, अपनी धारणाओं के आधार पर परमेश्वर को तीन व्यक्तियों, तीन परमेश्वर में बाँट देते हैं। यह सच में परमेश्वर का तिरस्कार है! एक ही पल में मेरे मन की परमेश्वर के त्रित्व होने की भ्रांति चकनाचूर हो गयी। मैं मुक्त हो गया था। परमेश्वर के वचन कहते है, "यीशु के भीतर का आत्मा, स्वर्ग में आत्मा और यहोवा का आत्मा सब एक हैं। इसे पवित्र आत्मा, परमेश्वर का आत्मा, सात गुना सशक्त आत्मा और सर्वसमावेशी आत्मा कहा जाता है। परमेश्वर का आत्मा बहुत से कार्य क्रियान्वित कर सकता है। वह दुनिया को बनाने और पृथ्वी को बाढ़ द्वारा नष्ट करने में सक्षम है; वह सारी मानव जाति को छुटकारा दिला सकता है और इसके अलावा वह सारी मानवजाति को जीत और नष्ट कर सकता है। यह सारा कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा क्रियान्वित किया गया है और उसके स्थान पर परमेश्वर के किसी अन्य व्यक्तित्व द्वारा नहीं किया जा सकता है। उसके आत्मा को यहोवा और यीशु के नाम से, साथ ही सर्वशक्तिमान के नाम से भी बुलाया जा सकता है। वह प्रभु और मसीह है। वह मनुष्य का पुत्र भी बन सकता है। वह स्वर्ग में भी है और पृथ्वी पर भी है; वह ब्रह्मांडों के ऊपर और बहुलता के बीच में है। वह स्वर्ग और पृथ्वी का एकमात्र स्वामी है! सृष्टि के समय से अब तक, यह कार्य स्वयं परमेश्वर के आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया गया है। यह कार्य स्वर्ग में हो या देह में, सब कुछ उसकी आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। सभी प्राणी, चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर, उसकी सर्वशक्तिमान हथेली में हैं; यह सब स्वयं परमेश्वर का कार्य है और उसके स्थान पर किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता। स्वर्ग में वह आत्मा है, लेकिन स्वयं परमेश्वर भी है; मनुष्यों के बीच वह देह है, पर स्वयं परमेश्वर बना रहता है। यद्यपि उसे सैकड़ों-हज़ारों नामों से बुलाया जा सकता है, तो भी वह स्वयं है, आत्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है। उसके क्रूसीकरण के माध्यम से सारी मानव जाति का छुटकारा उसके आत्मा का प्रत्यक्ष कार्य था और वैसे ही अंत के दिनों के दौरान सभी देशों और सभी भूभागों के लिए उसकी घोषणा भी। हर समय, परमेश्वर को केवल सर्वशक्तिमान और एक सच्चा परमेश्वर, सभी समावेशी स्वयं परमेश्वर कहा जा सकता है। अलग-अलग व्यक्ति अस्तित्व में नहीं हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का यह विचार तो बिल्कुल नहीं है! स्वर्ग में और पृथ्वी पर केवल एक ही परमेश्वर है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)। भाई ली ने इस अंश को पढ़ने के बाद, संगति की, "परमेश्वर ही सृजनकर्ता है, जिसने मनुष्य का सृजन किया। वह यहोवा परमेश्वर है जिसने मनुष्य के लिए व्यवस्थाएं और आदेश जारी किए, जिससे पृथ्वी पर उसके जीवन को रास्ता दिखाए। वह हमारा उद्धारकर्ता, प्रभु यीशु भी है, जिसने पाप से हमें छुटकारा दिलाया। यही नहीं, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, जो पूरी मनुष्य जाति के साथ न्याय करने के लिए अंत के दिनों में वापस लौट आया है। जिस प्रभु यीशु के लिए हम तरस रहे थे वह लौट आया है। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। वह दो दशकों से भी अधिक समय से पृथ्वी पर कार्य कर रहा है, सत्य व्यक्त करते हुए और अंत के दिनों का न्याय-कार्य कर रहा है। उसने क़िताब खोल दी है। उसने हमें शुद्ध करने और पूरी तरह से बचाने के लिए सारा सत्य व्यक्त किया है। यह प्रभु की भविष्यवाणियों को पूरा करता है : 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। 'यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:47-48)।"
इसे सुनना मेरे लिए बहुत रोमांचकारी था। प्रभु यीशु लौट आया है और उसने अंत के दिनों में न्याय-कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त किया है। कोइ आश्चर्य नहीं कि मुझे वे वचन बहुत ज़्यादा शक्तिशाली और अधिकारपूर्ण लगे, मानो वे परमेश्वर की वाणी हों। ये वाकई परमेश्वर के वचन थे! मैंने उत्साह के साथ भाई ली से कहा, "अब मैं समझ पाया हूँ। चाहे परमेश्वर का आत्मा हो या उसका देहधारी रूप, वह स्वयं परमेश्वर ही है। कोई त्रित्व नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य के बिना, कोई भी व्यक्ति करीब दो हज़ार साल से बहस का मुद्दा बनी भ्रांति का पूरी तरह से खंडन कर उसे उजागर नहीं कर सकता। स्वयं परमेश्वर ही इस सत्य को प्रकट कर सकता है। मुझे यकीन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर की वाणी हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस आया हुआ प्रभु यीशु है! अब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ! मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मेरी उस उलझन को पूरी तरह सुलझा दिया जो 20 साल से मुझे परेशान किये हुए थी!"
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