स्वयं को सच में समझना आसान नहीं है
परमेश्वर के वचनों में मैंने देखा कि परमेश्वर को ईमानदार लोग पसंद हैं और वह धोखेबाज लोगों से घृणा करता है और केवल ईमानदार लोगों को ही उसकी प्रशंसा हासिल होगी। तो, मैं एक ईमानदार व्यक्ति बनने, होशहवास में सच कहने का अभ्यास करने, निष्पक्ष और व्यावहारिक बनने, और मामलों की जानकारी देते समय तथ्यों में से सत्य खोजने का प्रयास करने लगा। मेरे कार्य में, चाहे यह त्रुटि हो या चूक, मैं इसके बारे में अगुआ को विस्तार से बताता। मैं होशहवास में अपनी स्वयं की भ्रष्टता का भी विश्लेषण करता और उसे उजागर करता था। हर बार जब मैं इसे अभ्यास में लाता, तो मैं महसूस करता था कि मुझमें कुछ बदलाव आए हैं और मैंने ईमानदार व्यक्ति होने थोड़ी-सी सदृश्ता पा ली।
हाल ही में सहकर्मियों की एक सभा में की गई संगति में, इस बारे में बात करते हुए कि परमेश्वर के प्रति अपनी सेवा में विभिन्न प्रकार के लोगों के बीच अंतर करना हमें क्यों जरूर सीखना चाहिए, अगुआ ने मुझसे पूछा: "XX, तुम्हें क्या लगता है कि तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो?" मैंने स्वयं के बारे में सोचा: हाल ही में, मुझमें कुछ बदलाव आए हैं, इसलिए मैं एक अपेक्षाकृत रूप से सरल, स्पष्ट व्यक्ति के रूप में समझता हूँ। जहाँ तक बुरी प्रकृति की बात है, तो मुझे लगता है कि मैं इतना बुरा नहीं हूँ। जहाँ तक अच्छी प्रकृति की बात है, तो मुझमें अच्छाई की हर अभिव्यक्ति नहीं है, लेकिन कम से कम मैं महसूस करता हूँ कि मैं सरल, ईमानदार हूँ, और मेरा दिल दुर्भावनापूर्ण नहीं है। तो, मैंने उत्तर दिया कि: "अपेक्षाकृत बात करें तो, मैं खुद को अच्छी प्रकृति वाला एक सरल, ईमानदार व्यक्ति मानता हूँ।" अगुआ ने कहा: "तुम्हें लगता है कि तुम अच्छी प्रकृति वाले हो, कि तुम अपेक्षाकृत रूप से सरल और ईमानदार हो। तो क्या तुम वाकई खुलकर बात करने और अपने बारे में सब कुछ उजागर करने की हिम्मत करोगे? परमेश्वर की ओर किसी भी संदेह से तुम वाकई 100% मुक्त हो? क्या तुम में वाकई यह स्वीकार करने की हिम्मत है कि तुम्हारे वचनों और कार्यों में किन्हीं व्यक्तिगत प्रयोजनों का कोई लक्ष्य नहीं है?" यह सुनने के बाद, मैंने अवज्ञापूर्ण महसूस किया और रक्षात्मक ढंग से समझाया कि: "क्या ऊपर वाले ने यह नहीं कहा कि अच्छे लोगों के अभी भी भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, कि वे हर प्रकार की भ्रष्टता प्रदर्शित कर सकते हैं—क्या यह सापेक्ष नहीं है?" मैं अपनी स्वयं की राय को त्यागने का इच्छुक बिल्कुल भी नहीं था।
ऐसा होने के बाद, मैंने ध्यानपूर्वक उस अगुआ की कही गई बातों पर चिंतन किया: क्या मैं वाकई अपने बारे में सब कुछ उजागर करने की हिम्मत कर पाऊँगा? मैं नहीं कर पाऊँगा। वे बातें जिनके बारे में मैंने खुलकर बात की थी, वे तो बस मामूली मुद्दे थे जो मेरी प्रतिष्ठा या स्वार्थ पर असर नहीं डालते थे। वह वैयक्तिक भ्रष्टता जिसके बारे में मैं खुल कर बोला था, वह उस सामान्य भ्रष्टता की अभिव्यक्ति थी जो सब में होती है, लेकिन मैंने कभी भी अपने दिल की गहराई में मौजूद कुत्सित, कुरूप चीजों को सामने लाने और उजागर करने की हिम्मत नहीं की थी। क्या मैं वाकई परमेश्वर की ओर संदेहों से 100% मुक्त था? मैं नहीं था। जब मेरे कार्य का परिणाम नहीं मिलता था, जब मैं नकारात्मक और कमज़ोर होता था, तो मैं परमेश्वर को ग़लत समझता था और यह मानता था कि मैंने यूँ ही सेवा प्रस्तुत की, और इस तलाश को जारी रखना अनुपयोगी है। और मैं परमेश्वर के वचनों में, परमेश्वर के स्वभाव में 100% विश्वास नहीं करता था। मैं विश्वास नहीं करता था कि परमेश्वर अपने वचनों के अनुसार लोगों को पुरस्कृत या दंडित करेगा, इसलिए मैं अक्सर ही उसके स्वभाव की परीक्षा लेता था। जब मैं बाहर दौड़-भाग करता और कुछ काम करता था, तो यह सब बस परमेश्वर के साथ एक लेन—देन आयोजित करना होता था ताकि भविष्य में मैं धन्य हो सकूँ और आपदा से बच सकूँ; यह उस कर्तव्य को पूरा करने के लिए नहीं था जिसे हर प्राणी को पूरा करना चाहिए। यद्यपि इसमें अच्छे व्यवहार का बाहरी प्रदर्शन था, किन्तु यह अन्य लोगों को दिखाने, उन पर अच्छा असर डालने के लिए था। ... इसने जो प्रकट किया उस पर विचार करते हुए, क्या यह सब एक धोखेबाज प्रदर्शन नहीं था? हालाँकि, मुझे नहीं लगता था कि मैं अपेक्षाकृत रूप से एक सरल और ईमानदार व्यक्ति हूँ—क्या यह वाकई में स्वयं को नहीं पहचानना नहीं है? परमेश्वर के कहे वचनों पर विचार करें: "लोगों की अपनी प्रकृति के बारे में जो समझ है वह बहुत ही सतही है, और इसके तथा परमेश्वर के न्याय और प्रकाशन के वचनों के बीच बहुत बड़ा अंतर है। परमेश्वर जो प्रकट करता है उसमें कोई ग़लती नहीं है, बल्कि मानवजाति की अपनी स्वयं की प्रकृति की समझ की भारी कमी है। लोगों को स्वयं की मौलिक या ठोस समझ नहीं है, इसके बजाय, वे अपनी ऊर्जा को अपने कार्यों और बाहरी अभिव्यक्तियों पर केंद्रित और समर्पित करते हैं। भले ही किसी ने कभी कभार स्वयं को समझने के बारे में कुछ कहा हो, यह बहुत अधिक गहरा नहीं होगा। किसी ने कभी भी नहीं सोचा है कि इस प्रकार की चीज़ के होने के कारण या कुछ प्रकट करने के कारण वह इस तरह का व्यक्ति है या उसकी इस प्रकार की प्रकृति है। परमेश्वर ने मनुष्य की प्रकृति और सार को प्रकट किया है, परंतु मनुष्य समझते हैं कि उनका चीज़ों को करने का तरीका और बोलने का तरीका दोषपूर्ण और ख़राब है; इसलिए लोगों के लिए सत्य को अभ्यास में लाना बहुत श्रमसाध्य कार्य होता है। लोग सोचते हैं कि उनकी गलतियाँ बस क्षणिक अभिव्यक्तियाँ हैं, जो उनकी प्रकृति के प्रकटन होने की बजाय लापरवाही से प्रकट हो जाती हैं। ... इसलिए, सत्य को अभ्यास में लाते समय, वे केवल लापरवाही से नियमों का पालन करते हैं। लोग अपनी स्वयं की प्रकृतियों को अत्यधिक भ्रष्ट के रूप में नहीं देखते हैं, और मानते हैं कि वे इतने बुरे नहीं है...; वास्तव में, वे मानकों के आसपास भी नहीं हैं, क्योंकि लोगों के केवल कुछ कृत्य होते हैं जो बाहर से सत्य का उल्लंघन नहीं करते हैं, जब वे सत्य को वास्तव में अभ्यास में नहीं ला रहे होते हैं" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'अपनी प्रकृति को समझना और सत्य को व्यवहार में लाना')। परमेश्वर के वचनों से प्रबुद्धता के माध्यम से, मैंने केवल तभी यह देखा कि स्वयं के बारे में मेरा ज्ञान बहुत उथला था—मैं अपने आप को अपनी धारणाओं और अपनी स्वयं की सोच के अंदर से जानने की कोशिश कर रहा था, जिसमें परमेश्वर के वचनों के अंदर से मेरी स्वयं की झूठ बोलने, धोखा देने और कपट करने में समर्थ होने की भ्रष्ट प्रकृति को जानने के लिए उसके वचनों के साथ कोई तुलना नहीं थी। मैं मानता था कि मैं सरल, ईमानदार हूँ और अच्छी प्रकृति वाला हूँ; लेकिन यह मात्र बाह्य रूप से देखना ही था, मैंने परमेश्वर के स्वभाव को गंभीर रूप से अपमानित करने के लिए कुछ भी नहीं किया था। एक ईमानदार व्यक्ति बनने में, मैंने बस बाहरी निरूपण को बंद कर दिया था और मैं सोचता था कि थोड़ा सा सत्य बोलना और दो-चार वास्तविक चीजें करना, एक ईमानदार व्यक्ति होने के मानकों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा। मैं वाकई बहुत अहंकारी था; मैं वाकई खुद को नहीं जानता था! मैं बस थोड़ा सा जानता था कि मुझमें एक ईमानदार व्यक्ति का सार बिल्कुल भी नहीं है, और मैं परमेश्वर के मानकों से बहुत दूर था। उस समय मैं पतरस के स्वयं को परमेश्वर के वचनों के अंदर पहचानने के बारे में सोचता था। वह हमेशा ही सख्ती के साथ परमेश्वर के उन वचनों से स्वयं की तुलना करता था, जिसमें वह लोगों को उजागर करता था, इसलिए सभी लोगों के बीच, पतरस किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में अपनी भ्रष्टता को बेहतर जानता था और वह अपने अनुभवों में सबसे अधिक सफल था। मैंने कई सालों से परमेश्वर का पालन किया है और मैं अभी भी स्वयं को नहीं जानता हूँ। प्रवेश करने की मेरी क्षमता में अब भी बहुत कमी है; मैं वाकई एक शर्मिंदगी हूँ।
मैं परमेश्वर की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन को धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे मेरी स्वयं की गरीबी और दयनीयता दिखाई है, और मुझे यह भी समझाया है कि सच में स्वयं को समझना आसान बात नहीं है। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से स्वयं को जानना ही एकमात्र वस्तुनिष्ठ वास्तविकता है। इस दिन के बाद से, मैं परमेश्वर के वचनों के माध्यम से स्वयं को जानने का इच्छुक हूँ, और जब कभी भी परमेश्वर के वचन लोगों की भ्रष्ट प्रकृति को उजाकर करेंगे तो मैं उस से स्वयं को सख्ती से मापने के लिए इच्छुक रहूँगा। मैं अपने स्वयं के दृष्टिकोण से स्वयं को अब और नहीं मापूँगा, मैं स्वभाव में परिवर्तन की खोज करूँगा, और मैं सच में एक ईमानदार व्यक्ति बनकर परमेश्वर के दिल को सान्त्वना पहुँचाऊँगा।
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