मेरा फ़ैसला

01 नवम्बर, 2020

मार्च 2012 में, मेरी माँ ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। मैंने परमेश्वर के वचनों को हर दिन पढ़ना शुरू कर दिया, मैं अक्सर सभाओं में जाने लगी और परमेश्वर के वचनों पर दूसरों से सहभागिता करने लगी। एक दिन मुझे धार्मिक कार्य में पढ़ा हुआ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मानवजाति के एक सदस्य और एक सच्चे ईसाई होने के नाते अपने मन और शरीर परमेश्वर के आदेश की पूर्ति करने के लिए समर्पित करना हम सभी का उत्तरदायित्व और कर्तव्य है, क्योंकि हमारा संपूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और वह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश और मानवजाति के धार्मिक कार्य के लिए नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के योग्य नहीं होंगी, जो परमेश्वर के आदेश के लिए शहीद हुए थे, और परमेश्वर के लिए तो और भी अधिक अयोग्य होंगी, जिसने हमें सब-कुछ प्रदान किया है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। मैंने परमेश्वर के वचनों से देखा कि परमेश्वर ने मानवजाति की रचना की है और मेरे पास जो कुछ है वह सब उसका दिया हुआ है। मुझे उसके प्यार का ऋण चुकाना चाहिए और एक सृजित प्राणी होने का कर्तव्य निभाना चाहिए। तो, मैंने अपनी जान-पहचान के लोगों को सुसमाचार सुनाना करना शुरू कर दिया।

दिसम्बर 2012 में एक दिन, सुसमाचार का प्रचार करने के लिए पुलिस ने मुझे गैर-कानूनी रूप से हिरासत में ले लिया और "सामाजिक व्यवस्था को भंग करने" के आरोप में 14 दिनों के लिए बंदी बनाकर रखा। सातवें दिन मेरे माता-पिता और पति मुझसे मिलने बंदीगृह आए। जब मैं मुलाकाती कक्ष में दाखिल हुई मैंने देखा कि मेरे माता-पिता वहाँ खड़े इंतज़ार कर रहे थे और मेरे पति ने हमारे 1 साल के बेटे को गोद में उठाया हुआ था। उन सबको वहाँ देखकर मेरी आँखों में आँसू भर आए। मैंने चुपचाप अपने माता-पिता को प्रणाम किया, फिर अपने पति की ओर भागी और उनकी गोद से अपने बच्चे को ले लिया। उस पल मुझे बहुत दुख हुआ। हम सब परिवार की तरह इकट्ठे रहते थे, फिर अचानक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने आस्था रखने और सुसमाचार साझा करने के आरोप में मुझे गैर-कानूनी रूप से हिरासत में ले लिया। और अब मेरा परिवार बंदीगृह में खड़ा था। मेरे पति बोले, "तुम्हारी गिरफ़्तारी की खबर मिलने पर मैंने अपने सैन्यदल के लीडर को बताया, तो उन्होंने कहा कि तुम्हें अपनी आस्था छोड़ देनी चाहिए। तुम कॉलेज स्नातक हो, पढ़ी लिखी हो। यदि परमेश्वर में विश्वास रखना बंद न किया तो तुम्हारा भविष्य बर्बाद हो जाएगा! उन्होंने यह भी कहा कि यदि तुम अपनी आस्था नहीं छोड़ोगी, तो मुझे पार्टी और सेना से बाहर कर दिया जाएगा। मुझे अगले साल अपना नौकरी न बदलने का बोनस भी नहीं मिलेगा! मैं वह सब भूल सकता हूँ, पर तुम्हें अपने बेटे और परिवार के बारे में सोचना होगा। फिर से गिरफ़्तार हुई तो हालात ऐसे नहीं होंगे। तुम्हें जेल की सज़ा हो जाएगी, और फिर हमारे बेटे का क्या होगा? उसे कभी भी यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिलेगा, न ही कोई नौकरी मिलेगी, वह कभी सेना में भी भर्ती नहीं हो सकेगा। फिर वह कैसे समाज में कोई स्थान बना पाएगा? क्या उसे ज़िल्लत की ज़िंदगी जीनी पड़ेगी?" उनकी ऐसी बातें सुनकर मैं और भी दुखी हो गई। अपने बेटे को सीने से लगाए मैं खून के आँसू रो रही थी, मैंने सोचा, "अगर सच में मुझे किसी दिन जेल हो गई, तो क्या इतनी छोटी उम्र में माँ की देखभाल के बिना मेरा बेटा ठीक से बड़ा हो पाएगा? क्या उसका मज़ाक उड़ाया जाएगा और उसके साथ भेदभाव किया जाएगा? अगर मेरे पति को पार्टी और सेना से निकाल दिया गया तो उनका भविष्य तो खत्म ही हो जाएगा।" इस बारे में और ज़्यादा सोचना असहनीय हो गया। मैंने अपने आँसुओं को पी लिया और मुख से एक लफ़्ज़ नहीं निकाला। मुझे चुप देखकर मेरे पति गुस्से से बोले, "हमारे अगुआ ने कहा है, अगर तुम अपनी आस्था छोड़ने का वादा न करो तो मुझे तुम्हें तलाक दे देना चाहिए। तुम्हें फ़ैसला करना होगा!" मैं तब भी चुप रही, तो मेरे पति ने बेटे को मेरी गोद से लिया और दनदनाते हुए बाहर निकल गए। मुझे लगा मानो किसी ने मेरे सीने में खंजर घोंप दिया हो और मैं फूट-फूटकर रोने लगी। अपनी कोठरी की ओर लौटते समय, मैं उलझन में थी। मेरे पति को मेरी गिरफ़्तारी के बारे में अपने अगुआ को फ़ौरन बताने की क्या ज़रूरत थी? वह जानते थे कि उससे हमें कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। उन्होंने सब कुछ खोलकर क्यों बताया? मैंने थोड़ा सोच-विचार किया और महसूस किया, वह अपने आपको बचाने में लगे हैं। इस बात का एहसास होने पर, मेरे मन ने उसे मानने से इंकार कर दिया। मैं सच में तकलीफ़ में थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि परमेश्वर में आस्था होना सही और स्वाभाविक है, इसमें कुछ भी आपराधिक नहीं है। जब विश्वासी इकट्ठे होते हैं, तो हम बस परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, अपना कर्तव्य निभाते हैं, सुसमाचार सुनाते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं। इसके अलावा, क्या राष्ट्रीय संविधान स्पष्ट रूप से आस्था की स्वतंत्रता की अनुमति नहीं देता है? तो कम्युनिस्ट पार्टी हमारा इतना दमन क्यों करेगी और मुझे तलाक देने के लिए मेरे पति पर इतना दबाव क्यों डालेगी? यह बात मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही थी।

जब मैं वापस अपनी कोठरी में पहुँची, मैंने कलीसिया की एक बहन को अपनी उलझन बताई। वह बिना कुछ कहे मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर सुनाने लगी। "ऐसा है यह शैतानों का राजा! इसके अस्तित्व को कैसे बरदाश्त किया जा सकता है? यह तब तक चैन से नहीं बैठेगा, जब तक परमेश्वर के काम को ख़राब नहीं कर देता और उसे पूरा खंडहर[1] नहीं बना देता, मानो वह अंत तक परमेश्वर का विरोध करना चाहता हो, जब तक कि या तो मछली न मर जाए या जाल न टूट जाए। वह जानबूझकर खुद को परमेश्वर के ख़िलाफ़ खड़ा कर लेता है और उसके करीब आता जाता है। इसका घिनौना चेहरा बहुत पहले से पूरी तरह से बेनक़ाब हो गया है, जो अब आहत और क्षत-विक्षत[2] है और एक खेदजनक स्थिति में है, फिर भी वह परमेश्वर से नफ़रत करने से बाज़ नहीं आएगा, मानो परमेश्वर को एक कौर में निगलकर ही वह अपने दिल में बसी घृणा से मुक्ति पा सकेगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7))। "धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। फिर उसने यह सहभागिता की : "अंत के दिनों में, परमेश्वर देहधारी हुआ, वह वचन बोलने और कार्य करने के लिए पृथ्वी पर आया है। वह मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने वाला सत्य व्यक्त करता है, जिनके पास हृदय और आत्मा है वे लोग परमेश्वर की वाणी सुनते हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर झुकते हैं। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी एक नास्तिक पार्टी है। यह परमेश्वर और सत्य से बहुत नफ़रत करती है, इसे डर है कि सब लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से सत्य को जान जाएँगे, फिर वे मसीह के अनुयायी और गवाह बन जाएँगे, और पार्टी को ठुकराकर छोड़ देंगे। फिर लोग इसका समर्थन करना बंद कर देंगे, फिर चीनी लोगों को हमेशा के लिए काबू में रखने और नियंत्रित करने की इसकी खयाली महत्वाकांक्षा खत्म हो जाएगी। इसीलिए यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर लांछन लगाकर बदनाम करने के लिए हर तरह की अफ़वाहें और झूठ गढ़ने में जी जान से लगी रहती है और पूरे राष्ट्र की शक्ति को मसीह का पीछा करके ईसाइयों को सताने में लगाए रखती है। अपनी नास्तिक तानाशाही को बचाने के लिए पृथ्वी पर से परमेश्वर के कार्य का नामोनिशान मिटा देना चाहती है। बहन ने यह भी कहा, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी धार्मिक आस्था पर अत्याचार करने के अपने ज़ुल्मों पर पर्दा डालने के लिए धर्म की स्वतंत्रता देने का दावा करती है और इस तरकीब से वह दुनिया को मूर्ख बनाती है। चीन में न तो धर्म की स्वतंत्रता है, न ही कोई मानव अधिकार हैं। चीन में किसी आस्था को मानने का मतलब है कम्युनिस्ट पार्टी के शैतानी शासन के अत्याचारों का सामना करना। यह सच है।" बहन की इस सहभागिता के बाद, मुझे कम्युनिस्ट पार्टी की परमेश्वर से घृणा करने की बुरी प्रकृति और सत्य अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगे, मुझे महसूस होने लगा कि यह कितनी दुष्ट है। इसकी नास्तिक शिक्षा की विषैली घुट्टी मुझे बचपन में ही पिला दी गई थी। मैंने हमेशा पार्टी को लोगों का "महान रक्षक" समझा और इसे दिल से सराहा। मैंने इसकी बातों पर विश्वास किया और बिना किसी शंका के इसके कहे अनुसार चली। अब समझ आ रहा था कि मैं कितनी बड़ी बेवकूफ़ थी! मुझे अपनी पति की वह बात भी याद आई जो उन्होंने मुझसे तब कही थी जब मैंने उन्हें सुसमाचार सुनाया था। उन्होंने कहा था, "केंद्रीय समिति ने आदेश दिया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को मिटा दिया जाए और हमारी सैन्य टुकड़ी में लड़ाकू तत्परता का स्तर बढ़ाकर तीन कर दिया गया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वाले को दुश्मन माना जाता है। अब पार्टी की कक्षाओं में साप्ताहिक राजनीतिक पाठ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में होते हैं। हालांकि मुझे पता है तुम्हारी आस्था अच्छी है, मगर कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में है, और ताकतवर के आगे दुर्बल को घुटने टेकने ही पड़ते हैं। इसलिए उसकी आज्ञा मानने के सिवा और चारा ही क्या है?" उनकी कही बातों को याद करके मुझे गुस्सा आने लगा! कम्युनिस्ट पार्टी स्वर्ग से खिलाफ़त कर रही है। अपनी सारी शक्ति परमेश्वर के खिलाफ़ लगाना चाहती है, वो न केवल विश्वासियों से राष्ट्रीय अपराधियों जैसा बर्ताव करती है, उन पर दोष लगाकर दमन करती है, बल्कि जनता को भी डरा-धमकाकर अपना समर्थन करने के लिए उकसाती है। मेरे पति को भी डरा-धमकाकर गुमराह किया गया था। सही गलत की कोई पहचान न होने के बावजूद वह मेरी आस्था का दमन कर रहे थे। कम्युनिस्ट पार्टी चाहती है केवल उस पर विश्वास किया जाए और उसका ही अनुपालन हो, कोई भी परमेश्वर का अनुसरण न करे और सही रास्ता न अपनाए। यह बुरी, घृणित और निर्लज्जता की बात है! दिल की गहराई से नफ़रत करते हुए मैंने उन कम्युनिस्ट राक्षसों को शाप दिया! वे मुझे मेरे बेटे और पति का भविष्य खराब करने की धमकी दे रहे थे ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ। जानती थी कि मैं उनके झांसे में नहीं आने वाली। मेरे पति चाहे मुझ पर कितना ही दबाव डालें, भले ही मुझे जेल की सज़ा हो जाए, मैं परमेश्वर का अनुसरण करती रहूँगी!

रात में बिस्तर पर लेटे हुए, मैं अपने बेटे के साथ बिताए मधुर पलों के बारे में सोचती रही। वह अभी बहुत छोटा है और अभी उसे लंबा फ़ासला तय करना है। सोचने लगी कि क्या मेरी आस्था का उसके भविष्य पर कोई बुरा प्रभाव पड़ेगा? इस खयाल से मैं कमज़ोर पड़ने लगी, मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि मेरे हृदय को सबल बनाए। प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों के ये अंश याद आए। "संसार में घटित होने वाली समस्त चीज़ों में से ऐसी कोई चीज़ नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज़ है, जो मेरे हाथ में न हो? जो कुछ मैं कहता हूँ, वही होता है, और मनुष्यों के बीच कौन है, जो मेरे मन को बदल सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। मैंने सोचा, "यह सही है। सब पर परमेश्वर का शासन है, और मेरे बेटे का भाग्य भी उसके हाथों में है। अंतिम फैसला परमेश्वर का होगा, न कि किसी इंसान का। फिर चिंता करने से क्या लाभ?" तो मैंने अपने बच्चे को परमेश्वर को सौंपते हुए प्रार्थना की। मन को सुकून मिला और चिंता दूर हुई। इस तरह परमेश्वर द्वारा दी गई आस्था और शक्ति के दम पर मैंने हवालात में 14 दिन काटे। जब मैं रिहा हुई, तो मेरे पिता मुझे घर लिवाने के लिए गाड़ी में आए, मेरे पति पिछली सीट पर बैठे थे। रोने से उनकी आँखें लाल थीं, वह बोले, "मेरे अगुआ इस दौरान मुझ पर वैचारिक कार्य करते रहे हैं। मुझे तुम्हारे बारे में रिपोर्ट करनी पड़ी। उनका कहना है अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करती रही, और मैंने तुम्हें तलाक नहीं दिया तो मुझे बरखास्त कर दिया जाएगा। इस बात से मेरा दिमाग खराब हो रहा है! मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँयह सब छोड़ दो। पकड़ी गई तो तुम्हें जेल की सज़ा होगी, हमारा परिवार बिखर जाएगा!" मैंने देखा कि बोलते हुए उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे, मेरे दिल में हूक सी उठी। मैंने दृढ़ता प्रदान करने के लिए जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की। तभी मुझे परमेश्वर के वचनों के ये अंश याद आए। "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। मुझे एहसास हुआ कि यह शैतान की चाल थी। शैतान मेरे पति की तलाक की धमकी का इस्तेमाल कर मुझ पर दबाव डालना चाहता था कि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ। मैं इस झांसे में नहीं आ सकती थी! मैंने अपने पति से कहा : "मैं परिवार को तोड़ना नहीं चाहती। आपने देखा होगा कि विश्वासी बनने के बाद मुझ में कितना परिवर्तन आया है। हमारे झगड़े कम होते हैं और हमारे परिवार में आपसी प्रेम बढ़ रहा है। आपने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और भाई-बहनों की गवाहियाँ सुनी हैं। आप जानते हैं कि आस्था का होना अच्छी बात है। सीसीपी मुझ पर दोष लगाकर मुझे गिरफ़्तार करना चाहती है, आपको बरखास्त करके सेना से निकालना चाहती है और आपसे मुझे तलाक दिलवाना चाहती है। तो हकीकत में इस परिवार को तोड़ने की कोशिश कौन कर रहा है? सीसीपी से नफ़रत करने के बजाय, आप मेरी आस्था को दबाने में उसका साथ दे रहे हैं। आप सही-गलत की पहचान भूल चुके हैं? आप जानते हैं कम्युनिस्ट पार्टी किस तरह की पार्टी है। यह परमेश्वर और सत्य से घृणा करती है, परमेश्वर की कट्टर शत्रु है। इसने इतने ईसाइयों को गिरफ़्तार करके सताया है, इतने बुरे कर्म किए हैं। क्या परमेश्वर इसे दण्ड नहीं देगा? परमेश्वर ने बहुत पहले कहा था, 'जहाँ कहीं भी देहधारण प्रकट होता है, उस जगह से दुश्मन पूर्णतया विनष्ट किया जाता है। सबसे पहले चीन का सर्वनाश होगा; यह परमेश्वर के हाथों बर्बाद कर दिया जाएगा। परमेश्वर वहाँ कोई भी दया बिलकुल नहीं दिखाएगा' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 10)। आपदाएँ लगातार बढ़ रही हैं। जब घोर आपदाएँ आएँगी, तो परमेश्वर सबसे पहले कम्युनिस्ट पार्टी को नष्ट करेगा, जब ऐसा होगा, इसका अनुसरण और परमेश्वर का विरोध करने वाले तबाह हो जाएँगे। उन्हें एक पल भी चैन नहीं मिलेगा। मुझे अपनी आस्था को छोड़ने के लिए दोबारा मत कहिएगा। मैं कभी परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं छोड़ूँगी!" जब उन्होंने देखा कि मैं हार नहीं मानूँगी, तो उन्होंने गुस्से में मेरे मुँह पर ज़ोर का तमाचा जड़ दिया। मुझे दिख रहा था कि कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें मेरे साथ उस तरह का व्यवहार करने के लिए उकसाया था। यह मेरे लिए बहुत दर्दनाक था, पार्टी के प्रति मेरी नफ़रत और भी बढ़ गई। मैंने सोचा, "तुम जितना मुझे दबाओगे, मेरी आस्था उतनी ही दृढ़ होती जाएगी!"

उधर घर पर, मेरे पति ने नाक में दम कर रखा था। "करना ही है, तो घर पर ही अपनी आस्था का अभ्यास करो। मैं तुम्हारे बारे में अगुआ को रिपोर्ट नहीं करूँगा, ठीक है?" मैंने सोचा, "मैंने परमेश्वर के अनुग्रह, आशीष और सत्य के अवलंब का इतना आनंद लिया है। सुसमाचार साझा किए बिना या अपने कर्तव्य का निर्वहन किए बगैर, कैसी आस्था? इसके अलावा, सभाओं में शामिल हुए बिना या परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता किये बगैर घर पर ही बैठे रहने से, मेरे जीवन का विकास बहुत धीमा होगा।" जानती थी कि मैं अपने पति की बात नहीं मान सकती। तब मेरे पति ने चाशनी में घुली बातें करनी शुरू कर दी : "मैंने तुम्हारा अच्छे से ध्यान नहीं रखा। मैंने तुम्हारे साथ सही बर्ताव नहीं किया। मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले लेता हूँ। तुम्हारे और बेटे के साथ घर पर वक्त बिताऊँगा। जहाँ कहोगी वहीं तुम्हारे साथ चलूँगा, जो कहोगी वही खरीदकर दूँगा। बस तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ!" उनकी चिकनी चुपड़ी बातें सुनकर मैं थोड़ा सा डगमगाई, पर जल्दी ही एहसास हो गया कि यह शैतान की एक और चाल है। मैंने मन ही मन में प्रार्थना की कि चाहे जो हो जाए, मैं अपनी आस्था से नहीं डिगूँगी और अपने कर्तव्य का निर्वहन करूँगी। उसके बाद, मेरे पति ने दुमछल्ले की तरह हर जगह मेरे साथ जाना शुरू कर दिया। मुझे डर था अगर उन्होंने मेरी रिपोर्ट कर दी तो बाकी लोग खतरे में पड़ जाएँगे, इसलिए मैंने भाई-बहनों से मिलने की हिम्मत नहीं की। मैं गिरफ़्तारी से पहले वाले जीवन को तरस रही थी। उन पलों को याद करती, जब सभाओं में जाया करती थी, भाई-बहनों के साथ संगति करती थी और अपना कर्तव्य निभाया करती थी। और अब, मैं सभाओं में नहीं जा सकती थी, पग-पग पर पहरे लगे थे। अपनी आस्था को अभ्यास में नहीं ला सकती, न ही सामान्य जीवन जी सकती थी। सरकार के खौफ़ से त्रस्त मेरे पति, मुझ से मेरी आस्था छुड़वाने पर आमादा थे, वरना उन्हें मुझे तलाक देना होगा। मेरे सामने जो विकल्प था उसके खयाल से ही मुझे तकलीफ़ होती थी। सच तो यह है, मैं आशा कर रही थी कि मेरे पति मेरी आस्था में मेरे साथ जुड़ जाएँगे और हमें अलग नहीं होना पड़ेगा। उस दौरान, दिन भी बरस के समान लगता था। आँखों में आँसू लिए, मैंने परमेश्वर के आगे प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, इस फ़ैसले को लेकर मैं बहुत आहत और कमज़ोर महसूस कर रही हूँ। मुझे नहीं पता क्या करना चाहिए। मेरा मार्गदर्शन करो!" फिर मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : "विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। "जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है और इसके अलावा, वे नष्ट किए जाएँगे। ... यदि कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है! शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे नहीं, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। वचन पढ़ने के बाद, मैंने अतीत में लौटकर, अपनी गिरफ़्तारी के बाद अपने पति के व्यवहार के बारे में सोचा। उन्होंने बार-बार मुझ पर दबाव डाला कि मैं अपनी आस्था छोड़ दूँ, मुझे प्यार से लुभाने की कोशिश की, तलाक का दबाव डाला, यहाँ तक कि मुझ पर हाथ भी उठाया। क्या इन सबके पीछे उनकी एक ही मंशा नहीं थी कि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ? क्या वह उनमें से एक नहीं थे जिनके बारे में परमेश्वर ने कहा है "परमेश्वर में विश्वास न करने वाले प्रतिरोधी"? मेरी गिरफ़्तारी की खबर मिलने पर सबसे पहले उन्होंने अपने सैन्य दल के अगुआ को बताया। मेरी परवाह न करते हुए, क्या उन्होंने वैसा अपने आप को बचाने के लिए नहीं किया था? उनके लिए उनका भविष्य मुझसे ज़्यादा अहम था। उनकी मीठी-मीठी बातें ढोंग थीं! उन्होंने सीसीपी को चुना और मैंने परमेश्वर को। हमारे रास्ते बिलकुल अलग थे। हमें एक साथ असली खुशी नहीं मिली। इस मनन से मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपनी आस्था और परिवार में से किसी एक को ही चुनना होगा। जब मैंने अपने पति के साथ बिताए वर्षों के बारे में सोचा, तो मुझे बहुत दुख हुआ, मैं बेहद उदास हो गयी। एक बार फिर मैंने परमेश्वर से मेरी सुरक्षा की प्रार्थना की। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा : "तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक घिनौना जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास की राह दिखाई और मेरा विश्वास बहाल किया। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। "हे परमेश्वर! भले ही मेरा तलाक हो जाए, मैं तेरा अनुसरण करूँगी! मुझे दृढ़ता और आस्था दे ताकि मैं तेरी गवाह बन सकूँ।"

एक दिन मैं अपने पति को चकमा देकर कुछ भाई-बहनों से मिलने चली गई। जब घर वापस पहुँची तो देखा मेरे पति परिवार के कुछ सदस्यों के साथ खड़े थे। उनकी आँखें लाल थीं और वह बहुत दुखी लग रहे थे। हमारे कुछ रिश्तेदार उदास और निराश से थे, बाकी बहुत गुस्से में लग रहे थे। मुझे एहसास हो गया कि शैतान फिर से अपना जाल बिछा रहा है, इस बार उसने मेरे परिवार को मोहरा बनाया है। मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने उसके वचनों में से इसका स्मरण किया : "जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर "विजेताओं" के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाह बनने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाह बनते हो, और इसी को परमेश्वर 'विजेता' होने के रूप में संदर्भित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए)। परमेश्वर के वचनों से मुझे आस्था और शक्ति मिली, मैंने अपने हृदय में संकल्प लिया मेरे परिवार के लोग चाहे जो करें, मैं परमेश्वर को कभी धोखा नहीं दूँगी। मैं उसकी गवाह बनकर रहूँगी!

गुस्से से तमतमाये चेहरे के साथ मेरी चाची ने मुझसे पूछा, "तुम सभा में गई थी? तुम्हें इस परिवार से कोई लगाव है या नहीं?" फिर मेरे चाचा चिल्लाते हुए बोले, "परमेश्वर! कोई परमेश्वर नहीं है! चीन एक नास्तिक देश है और यहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का राज है। विश्वास करना ही है तो पार्टी में विश्वास करो!" फिर अपने फ़ोन पर कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ झूठ निकालकर बोले, "देखो! ये है वो सर्वशक्तिमान परमेश्वर जिस पर तुम विश्वास करती हो। ये एक बड़ा राष्ट्रीय अपराधी है। विश्वासी अपने साथ पूरे परिवार को ले डूबते हैं! अपने नहीं तो कम से कम अपने बच्चे के बारे में तो सोचो!" फिर दूसरी चाची दहाड़ी, "तुम दोनों की शादी हुए ज़्यादा अरसा नहीं हुआ, तुमने बहुत कठिनाइयाँ झेली हैं। ऐसी किसी चीज़ के कारण अपने परिवार को बिखरने नहीं दे सकती! परमेश्वर पर विश्वास न किया होता तो क्या आज परिवार की यह दुर्दशा होती?" सब उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगे। उनकी बातें सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। तब मैंने सख्ती से जायज़ बात कही, "कौन इस परिवार को तोड़ना चाहता है? क्या सही रास्ता अपनाना गलत है? कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासियों पर दोष लगाकर उन्हें गिरफ़्तार करती है और मुझे जेल में डालना चाहती है। आप सबको भी धमकाया है और मेरे पति पर मुझे तलाक देने के लिए दबाव डाला है। यह सब कम्युनिस्ट पार्टी ने किया है! आप लोग कम्युनिस्ट पार्टी से नफ़रत करने के बजाय मेरे खिलाफ़ उसका साथ दे रहे हैं और परमेश्वर को धोखा देने के लिए मुझे मजबूर कर रहे हैं। क्या इसमें मेरी और मेरे परिवार की भलाई है?" मेरी बात सुनकर, एक ताऊ बोले, "यह सच है कि पार्टी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन यह अभी सत्ता में है। तुम परमेश्वर पर विश्वास करती रही तो यह तुम पर कोई दया नहीं करेगी। तुम्हें जेल भेज देगी। हम साधारण लोग हैं। पार्टी के खिलाफ़ कैसे खड़े हो सकते हैं? मेरी सलाह मानो। अपना विश्वास त्याग दो। अपने परिवार को एकजुट रखना ज़्यादा महत्वपूर्ण है!" मैंने उनसे कहा, "अब आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं। जब घोर आपदाएँ आएँगी, तो परमेश्वर का विरोध करने वाले को दण्ड मिलेगा, परमेश्वर के समक्ष पश्चाताप करने वाले आस्थावान को ही उसकी सुरक्षा मिलेगी। केवल सच्चे विश्वासियों का ही अच्छा भविष्य और भाग्य होगा। आस्था के बगैर कैसा भविष्य? आप सब मेरे प्रियजन हैं। आशा करती हूँ कि परमेश्वर आपको बचाए और आप आपदाओं की बलि न चढ़ें, इसलिए मैं आपसे सुसमाचार साझा करती रही हूँ। यह जानते हुए भी कि यह सही मार्ग है, आप लोग गिरफ़्तारी के डर से विश्वास करने की हिम्मत नहीं कर रहे हैं। अब आप लोग मेरा रास्ता रोके मुझ पर परमेश्वर को धोखा देने के लिए दबाव डाल रहे हैं। क्या आपको डर नहीं लगता कि आपदा आने पर कम्युनिस्ट पार्टी के साथ आपको भी दण्ड मिलेगा?" मेरी यह बात सुनकर, पहले चाचा जी का मुँह गुस्से से तमतमाने लगा और क्रोधावेश में मुझे धमकाने लगे : "तुमने आस्था न छोड़ी तो मैं तुम्हारी खाल उधेड़ दूँगा! पुलिस के हवाले कर दूँगा, जेल की चक्की पीसोगी!" ऐसा कहकर उन्होंने फ़ोन निकाला और नंबर मिलाना शुरू कर दिया। मेरी चाची ने भागकर उनके हाथ से फ़ोन छीन लिया। अपने चाचा की इस हरकत से मुझे बहुत निराशा हुई। यह कैसा परिवार है? ये तो राक्षस का काम है! मैंने उनसे कहा, "आप मेरे बुजुर्ग हैं, मैं आपका आदर करती हूँ, लेकिन जहाँ तक आस्था का मार्ग चुनने की बात है, मैं कभी किसी की नहीं सुनूँगी कि मुझे क्या करना चाहिए! मैं हरगिज़ अपनी आस्था का त्याग नहीं करूँगी, न ही परमेश्वर को धोखा देकर सीसीपी का अनुसरण करूँगी जैसा कि आप चाहते हैं!" मेरे पति ने मुझे इतनी ज़ोर का थप्पड़ मारा कि मैं औंधे मुँह फ़र्श पर गिर गई। मेरा चश्मा कमरे के कोने में दूर जा गिरा। मेरी ओर इशारा करके चिल्लाए, "तुम्हें परमेश्वर चाहिए या यह परिवार? विश्वास करती रही तो मैं तुम्हें इसी वक्त तलाक दे दूँगा!" मैंने देखा कि अपने भविष्य की सुरक्षा की खातिर मेरे पति मुझे तलाक देने को तैयार थे। मुझे बहुत ठेस पहुँची और मेरा मन कम्युनिस्ट पार्टी के लिए नफ़रत से भर उठा। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, "मैं परमेश्वर को संतुष्ट करूँगी, भले ही मुझे अपने प्रिय जीवनसाथी को खोना पड़े!" कुछ महीनों बाद, तलाक का दिन आया। मेरे पति ने मुझे फ़ोन करके कहा, "कल तलाक की कार्रवाई पूरी करवाने के लिए सैन्य दल के अगुआ हमारे साथ सिविल अफ़ेयर्स ब्यूरो जाएँगे।" उनकी बात सुनकर मेरे मन में खयाल आया चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने हँसते-खेलते परिवार को अलग कर दिया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इतनी बुरी, इतनी घृणित है! अगले दिन, सैन्य दल के अगुआ की कड़ी निगरानी में हमारा तलाक हो गया। मैं और मेरे पति अपनी अलग-अलग राहों पर चल पड़े। मैं अपने कर्तव्य को निभाती हुई परमेश्वर का अनुसरण करती रही और सुसमाचार साझा करती रही। यह मेरा फ़ैसला है, मुझे इस पर कभी भी पछतावा नहीं होगा! परमेश्वर का धन्यवाद!

फुटनोट :

1. "पूरा खंडहर" बताता है कि कैसे उस शैतान का हिंसक व्यवहार देखने में असहनीय है।

2. "आहत और क्षत-विक्षत" शैतानों के राजा के बदसूरत चेहरे के बारे में बताता है।

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