मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी है

19 जुलाई, 2022

मैथ्यू, फ्रांस (पुरुष)

मैंने करीब दो साल पहले सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारा। सच कहूँ तो इससे मैंने बहुत कुछ हासिल किया जो मैं धार्मिक समाज में विश्वासी रहकर पिछले करीब दस सालों में हासिल नहीं कर पाया था। अब मैं पहले की तरह अपनी कल्पना में बसे अज्ञात परमेश्वर पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक देहधारी परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, जो इंसानों के बीच चलता-फिरता और कार्य करता है, जो कभी भी, कहीं भी सत्य व्यक्त कर सकता है। मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी है, उसके वचनों के प्रचुर सिंचन और पोषण का आनंद उठाया है, और पवित्र आत्मा के कार्य का स्वाद चखा है।

मेरा नाम मैथ्यू है और मैं फ्रांस के लियॉन में, एक कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ। एक पारंपरिक कैथोलिक की तरह पला-बढ़ा। मेरा बपतिस्मा हुआ, मैंने धार्मिक सभाओं में हिस्सा लिया, मेरे सिर पर हाथ रखा गया और मैं लॉर्ड्स की तीर्थयात्रा पर भी गया। बड़ा होने पर, मुझे एहसास हुआ कि कैथोलिक याजक हमेशा वही पुराने सिद्धांतों का प्रचार किया करते थे, कभी कोई नई बात नहीं बताते। माहौल ठंडा पड़ा रहता था और कई विश्वासी अपनी आस्था खो चुके थे। मुझे लगा कि इस जगह पवित्र आत्मा के कार्य का अभाव है, मुझे यहाँ जीवन प्राप्त नहीं हो सकता। ये मेरे लिए हताश करने वाली बात थी। मैं पवित्र आत्मा के कार्य वाली ऐसी कलीसिया के लिए तरस रहा था जहाँ मुझे प्रभु के होने का एहसास हो। ऐसी कलीसिया ढूँढने के लिए मैंने कैथोलिक परंपरा को छोड़ने का फैसला किया। उसके बाद मैं जिनेवा चला गया, जहाँ मैंने यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की और सुसमाचार का प्रचार करने वाली एक स्थानीय ईसाई कलीसिया से जुड़ गया। मगर मुझे पता चला कि वहाँ पादरी केवल किताबी सिद्धांतों का प्रचार करते, कुछ नारे लगाते, आध्यात्मिक खूबियों और धर्मशास्त्र के सिद्धांतों की बातें करते थे जो वास्तविकता से अलग होते थे। इनसे न तो कोई मुझे प्रेरणा मिली और ना ही प्रभु को जानने में मदद मिली। सबसे हैरानी की बात तो ये थी कि वहां प्रतिमा की पूजा होती थी। मुख्य पादरी की तस्वीर उपदेश मंच के पास ही थी, जब भी कोई नया सदस्य कलीसिया में आता तो स्थानीय पादरी उससे मुख्य पादरी की तस्वीर को नमस्कार करवाते। पादरी हर दिन खुद की गई बाइबल की व्याख्याएं विश्वासियों को भेजा करते और भाई-बहन उन व्याख्याओं को अपने रोजाना के पोषण की तरह देखते थे, मानो वे परमेश्वर के वचन पढ़ रहे हों। वे उनका अभ्यास परमेश्वर के वचनों की तरह ही करते थे। इससे मुझे बहुत दुख हुआ। ये मुझे ठीक नहीं लगा। मैं समझ गया कि इस कलीसिया में प्रभु नहीं है, इसलिए मैंने वो कलीसिया भी छोड़ दी। मैंने खुद से पूछा, "आखिर परमेश्वर है कहाँ?" मुझे आध्यात्मिक खालीपन महसूस होने लगा, मैंने सोचा कहीं प्रभु ने मुझे ठुकरा तो नहीं दिया। तब से मैं घर पर रहकर खुद बाइबल पढ़ने लगा। मैंने प्रकाशित-वाक्य के तीसरे अध्याय को खूब पढ़ा, जहाँ फिलाडेल्फिया की कलीसिया की बात हुई है उस अंश का मुझ पर बहुत गहरा असर पड़ा। "तू ने मेरे धीरज के वचन को थामा है, इसलिये मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूँगा जो पृथ्वी पर रहनेवालों के परखने के लिये सारे संसार पर आनेवाला है। मैं शीघ्र ही आनेवाला हूँ; जो कुछ तेरे पास है उसे थामे रह कि कोई तेरा मुकुट छीन न ले। जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा" (प्रकाशितवाक्य 3:10-12)। इन पदों ने सच में मुझे रोमांचित कर दिया क्योंकि ये रहस्य और वादों से भरे हुए थे। मैंने पाया कि प्रभु साफ-साफ कहता है कि वह केवल एक कलीसिया को मान्यता देगा और वह फिलाडेल्फिया की कलीसिया है। मुझे लगा मानो प्रभु कह रहा हो, "मैं इस कलीसिया में हूँ।" इससे मेरे मन में यह सवाल आया : ये कलीसिया कहाँ है? आगे पढ़ने पर, मैंने ये देखा : "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। इसे पढ़कर मैं और भी रोमांचित हो गया, प्रभु ने साफ-साफ कहा है कि वह दरवाज़े पर दस्तक देगा। मैं सोचने लगा कि वह ऐसा कैसे करेगा, इसका मतलब ये तो नहीं कि प्रभु जल्द वापस आने वाला है। इससे मुझे काफी प्रबोधन मिला, सत्य खोजने की मेरी इच्छा और बढ़ गई।

1 मई, 2018 की शाम को मैंने फिर से मन लगाकर परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मुझे प्रबुद्ध करो। मैं जानता हूँ तुम जल्द आ रहे हो। मेरी मदद करो ताकि मैं तुम्हारी इच्छा समझ सकूँ।" अगले दिन, मैं हमेशा की तरह काम पर निकल गया। दोपहर के खाने के समय, मैं लेक जिनेवा के किनारे जाकर एक बेंच पर बैठ गया। वहाँ थोड़ी दूर मुझे कोई दिखाई दिया, तो मैं सुसमाचार साझा करने के इरादे से सीधा उसके पास चला गया। मुझे हैरानी हुई जब उसने मुझसे कहा, "भाई, पता है? प्रभु लौट आया है और उसने लाखों वचन व्यक्त किए हैं।" ये सुनकर मैं चौंक गया और सोचने लगा, "ये भाई ऐसा क्यों कह रहा है? क्या प्रभु वाकई लौट आया है?" जैसे-जैसे हमारी संगति बढ़ती गई, एक के बाद एक सवाल उठने लगे : "क्या प्रभु लौट आया है? प्रभु कैसे वापस आया?" उसने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट का पता दिया और कहा, "तुम इस बारे में यहाँ और पढ़ सकते हो।"

दफ़्तर में वापस आते ही मैंने सबसे पहले सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट खोली। वेबसाइट खुलते ही मैंने देखा कि "अंतिम दिनों का मसीह चीन में प्रकट हुआ है।" इस खबर ने मुझे चौंका दिया, इससे भी बड़ी हैरानी की बात ये थी कि वेबसाइट पर सभी तरह की किताबें मौजूद थीं, इनमें वो दो किताबें भी थीं, जिनका मुझ पर असर पड़ा था : वचन देह में प्रकट होता है और अंत के दिनों के मसीह के कथन। मैं इनके बारे में सब कुछ समझना चाहता था, तो मैंने वचन देह में प्रकट होता है पर क्लिक करके उसका एक अंश पढ़ा : "मेरे सभी लोगों को जो मेरे सम्मुख सेवा करते हैं, अतीत के बारे में सोचना चाहिए कि क्या मेरे लिए तुम्हारे प्रेम में अशुद्धता थी? क्या मेरे प्रति तुम्हारी निष्ठा शुद्ध और सम्पूर्ण थी? क्या मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान सच्चा था? तुम लोगों के हृदय में मेरा स्थान कितना था? क्या मैंने तुम्हारे हृदय को पूरी तरह से भर दिया? मेरे वचनों ने तुम लोगों के भीतर कितना कार्य किया? मुझे मूर्ख न समझो! मैं ये सब बातें अच्छी तरह समझता हूँ! आज, जब मैंने उद्धार की वाणी बोली है, तो क्या मेरे प्रति तुम लोगों के प्रेम में कुछ वृद्धि हुई है? क्या मेरे प्रति तुम लोगों की निष्ठा का कुछ भाग शुद्ध हुआ है? क्या मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान अधिक गहरा हुआ है? क्या अतीत की प्रशंसा ने तुम लोगों के आज के ज्ञान की एक मजबूत नींव डाली है? तुम लोगों के अंतःकरण का कितना भाग मेरी आत्मा से भरा हुआ है? तुम लोगों के भीतर मेरी छवि को कितना स्थान दिया गया है? क्या मेरे कथनों ने तुम लोगों के मर्मस्थल पर चोट की है? क्या तुम लोग सचमुच महसूस करते हो कि अपनी लज्जा को छिपाने के लिए तुम लोगों के पास कोई स्थान नहीं है? क्या तुम्हें सचमुच लगता है कि तुम मेरे जन होने के योग्य नहीं हो? यदि तुम उपरोक्त प्रश्नों के प्रति पूर्णतः अनजान हो, तो यह दिखाता है कि तुम मुसीबत में हो, तुम केवल संख्या बढ़ाने के लिए हो, मेरे द्वारा पूर्वनियत समय पर, तुम्हें निश्चित रूप से हटा दिया जाएगा और दूसरी बार अथाह कुंड में डाल दिया जाएगा। ये मेरे चेतावनी भरे वचन हैं, और जो कोई भी इन्हें हल्के में लेगा, उस पर मेरे न्याय की चोट पड़ेगी, और, नियत समय पर उस पर आपदा टूट पड़ेगी। क्या ऐसा ही नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 4)। ये वचन मुझे काफी अधिकारपूर्ण लगे, मानो खुद परमेश्वर मेरे सामने आकर बात कर रहा हो, मुझसे पूछ रहा हो : "क्या तुम मुझसे सच्चा प्रेम करते हो? क्या मेरे प्रति तुम्हारा समर्पण सच्चा है?" मैं थोड़ा घबरा गया, क्योंकि मैं परमेश्वर की सेवा प्रेम से नहीं, बल्कि उसे अपना काम समझकर कर रहा था। अपनी प्रार्थनाओं में, मैं लगातार प्रभु के सामने अपनी मांगें रखता था, "हे परमेश्वर, मुझे ऐसी गाड़ी चाहिए, मुझे ऐसा घर चाहिए, मुझे ऐसी नौकरी चाहिए, मुझे ऐसी पत्नी चाहिए...।" मुझे एहसास हुआ कि ये सब बेकार की चीजें थीं। अगर प्रभु मेरी इन अनावश्यक मांगों को पूरा नहीं करता, तो मैं उसे दोष देने लगता। इस तरह उजागर किए जाने पर मैं बहुत शर्मिंदा हुआ, इतना कि मैं कहीं जाकर छिप जाना चाहता था, उस बच्चे की तरह जो बुरे बर्ताव के कारण अपने माँ-बाप की डांट खाने से छिपता फिरता है। लेकिन मैं बहुत खुश भी था, क्योंकि मुझे लगा मानो परमेश्वर खुद सामने आकर मुझसे बात कर रहा हो। मैंने महसूस किया कि यह परमेश्वर की वाणी है, क्योंकि परमेश्वर ही इंसान के दिलों में झाँक सकता है। ये वचन मेरी असली हालत को उजागर कर रहे थे, मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं बस पढ़ता चला गया। मैंने परमेश्वर के वचन के बहुत-से अंश पढ़े। उनमें से एक अंश ये था जिसका मुझ पर वास्तव में गहरा असर पड़ा। "मैं ऊपर से सारी चीज़ों को देखता हूँ, और ऊपर से सभी चीज़ों पर अपने प्रभुत्व का प्रयोग करता हूँ। इसी तरह से, मैंने अपने उद्धार को पृथ्वी के ऊपर यथोचित स्थान पर रखा है। ऐसा एक भी क्षण नहीं होता है जब मैं अपने गुप्त स्थान से, इंसान की हर गतिविधि और सब कुछ जो वे कहते और करते हैं उस पर नज़र नहीं रखता हूँ। इंसान मेरे लिए एक खुली किताब है : मैं उन सभी को देखता और जानता हूँ। गुप्त स्थान मेरा निवास है, और स्वर्ग का संपूर्ण विस्तार मेरा बिछौना है जिस पर मैं लेटता हूँ। शैतान की ताक़तें मुझ तक नहीं पहुँच सकती हैं, क्योंकि मैं प्रताप, धार्मिकता, और न्याय से लबालब भरा हुआ हूँ" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 5)। मुझे लगा मानो ये वचन परमेश्वर के अधिकार से परिपूर्ण थे। परमेश्वर के सिवाय और कौन हमारे दिलों में झाँक सकता है? परमेश्वर के सिवाय कौन इतने अधिकार और सामर्थ्य के साथ हमसे सीधे बात कर सकता है? परमेश्वर ने इंसान को बनाया, और केवल परमेश्वर ही हमारे दिलों की गहराई में छिपी बातों को जान सकता है। मुझे यकीन था कि ये परमेश्वर के वचन हैं और मैं इससे बहुत रोमांचित था। मैंने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था। उस दिन मैंने बहुत-से वचन पढ़े और सामान्य से तीन घंटे देरी से घर पहुंचा। मुझे लगा ये वचन बहुत खास थे। घर लौटते वक्त, मैं बार-बार यही कह रहा था, "परमेश्वर, तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद! मैं तुम्हारी वाणी पहचान गया हूँ, मैं जानता हूँ तुम लौट आए हो। मैंने तुम्हारे अधिकार को देखा है। तुम्हारी महिमा बनी रहे!" मैं बहुत उत्साहित था। मैं उस प्रार्थना के बारे में सोचने लगा जो मैंने पिछली रात परमेश्वर से की थी, कि अपने लौटकर आने पर वह अपनी इच्छा को समझने में मेरी मदद करे। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली थी और उसका जवाब दिया था। ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी! लेकिन साथ ही मन में कई सवाल भी उठ रहे थे, जैसे : प्रभु कैसे वापस आया? वह क्या कार्य कर रहा है? अपने सवालों के जवाब ढूँढने के लिए, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों से संपर्क किया।

उन्होंने मुझे बताया कि प्रभु ने मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण किया है, वह गुप्त रूप से आया है। उन्होंने बताया कि उसने सत्य व्यक्त किये हैं और नया कार्य कर रहा है। यह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला अंत के दिनों का न्याय है जिसकी भविष्यवाणी बाइबल में है, यानी मानवजाति को पूरी तरह स्वच्छ करके बचाने का कार्य। उन्होंने बाइबल के कुछ पदों पर मेरे साथ संगति भी की, जो मेरे लिए बहुत प्रबोधक थे, जैसे प्रकाशितवाक्य 16:15, "देख, मैं चोर के समान आता हूँ।" मत्ती 24:44 भी, "तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।" "मनुष्य का पुत्र" का मतलब साफ तौर पर परमेश्वर का आत्मा या उसकी आध्यात्मिक देह नहीं है, बल्कि इसका मतलब है मनुष्य से पैदा हुआ, जिसमें सामान्य इंसानियत और परमेश्वर का सार है। यह वैसा ही है जैसा दो हजार साल पहले प्रभु यीशु के साथ था। वह आम इंसान जैसा दिखता था, पर उसमें परमेश्वर का सार था। उसके बाद, उन्होंने प्रकाशित वाक्य 3:20 पर भी संगति की, जिसमें प्रभु के दरवाजे पर दस्तक देने का जिक्र है। मैंने जाना कि "दस्तक देने" का मतलब प्रभु का लोगों के दिलों के दरवाजों पर दस्तक देने के लिए अंत के दिनों में नए वचन व्यक्त करना है। जब सच्चे विश्वासी प्रभु के वचन सुनते हैं, तो वे उसे परमेश्वर की वाणी के रूप में पहचान पाते हैं, वे परमेश्वर के सामने लाई गई बुद्धिमान कुंवारियां हैं, जो प्रभु की वापसी का स्वागत करते हैं। इससे प्रभु यीशु की यह भविष्यवाणी पूरी होती है : "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)

मुझे बड़ा दिलचस्प लगा। मैंने सोचा कैसे दूसरी बार परमेश्वर देहधारण कर इस धरती पर कार्य करने आया है, वह भी तब, जब मैं दुनिया में जीवित हूँ, इसी हवा में साँस ले रहा हूँ, वह ठीक किसी आम इंसान जैसा दिखता है। मैं अवाक रह गया, ये अद्भुत था! क्योंकि मैंने हमेशा यही सोचा था कि परमेश्वर आकाश में आएगा, मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि अंत के दिनों में, परमेश्वर वचन बोलने और कार्य करने के लिए इस धरती पर देहधारण करेगा। फिर भाई-बहनों ने परमेश्वर के देहधारण से जुड़े उसके वचनों के कुछ अंश मुझे पढ़कर सुनाए : "'देहधारण' परमेश्वर का देह में प्रकट होना है; परमेश्वर सृष्टि के मनुष्यों के मध्य देह की छवि में कार्य करता है। इसलिए, परमेश्वर को देहधारी होने के लिए, सबसे पहले देह बनना होता है, सामान्य मानवता वाला देह; यह सबसे मौलिक आवश्यकता है। वास्तव में, परमेश्वर के देहधारण का निहितार्थ यह है कि परमेश्वर देह में रह कर कार्य करता है, परमेश्वर अपने वास्तविक सार में देहधारी बन जाता है, वह मनुष्य बन जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार)। "देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है और मसीह परमेश्वर के आत्मा द्वारा धारण की गई देह है। यह देह किसी भी मनुष्य की देह से भिन्न है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि मसीह मांस तथा खून से बना हुआ नहीं है; वह आत्मा का देहधारण है। उसके पास सामान्य मानवता तथा पूर्ण दिव्यता दोनों हैं। उसकी दिव्यता किसी भी मनुष्य द्वारा धारण नहीं की जाती। उसकी सामान्य मानवता देह में उसकी समस्त सामान्य गतिविधियां बनाए रखती है, जबकि उसकी दिव्यता स्वयं परमेश्वर के कार्य अभ्यास में लाती है। चाहे यह उसकी मानवता हो या दिव्यता, दोनों स्वर्गिक परमपिता की इच्छा को समर्पित हैं। मसीह का सार पवित्र आत्मा, यानी दिव्यता है। इसलिए, उसका सार स्वयं परमेश्वर का है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है)। परमेश्वर के वचनों के इन अंशों से, मैंने जाना कि देहधारी परमेश्वर वास्तव में परमेश्वर का आत्मा है जो देहधारण कर वचन बोलने और कार्य करने धरती पर आया है ताकि मानवजाति को बचा सके। मसीह एक आम इंसान जैसा दिखता है, इंसान की तरह खाना खाता, कपड़े पहनता और सोता है, पर उसमें दिव्य सार है। वह स्वयं परमेश्वर के रूप में सारी मानवता से बात कर सकता है, वह ऐसे सत्य व्यक्त कर सकता है जो कोई इंसान कभी नहीं कर सकता। वह स्वयं परमेश्वर का कार्य कर सकता है और परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकता है। बाहर से तो हम नहीं कह सकते कि वो परमेश्वर है, पर उसकी वाणी सुनकर हमें पता चलता है कि उसके वचन इस दुनिया के नहीं हैं। वह ऐसे सत्य और रहस्य समझा सकता है जो किसी ने कभी देखे या सुने नहीं। वह मानवजाति की आंतरिक भ्रष्टता को उजागर कर सकता है। वह वही व्यक्त करता है जो स्वयं परमेश्वर कहता है। इसी वजह से हमें यकीन है कि वह परमेश्वर है। उसी तरह जैसे प्रभु यीशु ने अपने समय में कार्य किया था, वह बाहर से एक आम इंसान जैसा दिखता था, पर वह पूरी मानवजाति के लिए पाप बलि बनने में सक्षम था, ताकि हमारे पापों को क्षमा कर सके। वह हमें शांति और खुशी के साथ ही भरपूर अनुग्रह दे सकता था। उसके अलावा कोई और ऐसा कार्य नहीं कर सकता था, क्योंकि इंसान तो इंसान ही है, उसमें परमेश्वर का सार नहीं है।

भाई-बहनों ने संगति करते हुए यह भी कहा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ठीक प्रभु यीशु जैसा है। वह बाहर से एक आम इंसान दिखता है, पर उसमें परमेश्वर का सार है। वह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय कार्य कर रहा है, वह सभी सत्य व्यक्त कर रहा है जो मानवजाति को स्वच्छ करके बचाते हैं, वह ऐसे रहस्य खोल रहा है जिसे कोई इंसान कभी नहीं खोल सकता। खास तौर पर परमेश्वर की छह-हजार साल की प्रबंधन योजना के रहस्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के रहस्य, कैसे शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर चरण-दर-चरण मानवजाति को बचाता है, किसे बचाया जाएगा और कौन स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा, किसे बहिष्कृत करके दंड दिया जाएगा, और उसके द्वारा लोगों की शैतानी प्रकृति का खुलासा करना—परमेश्वर के सिवाय कोई और ये सत्य नहीं व्यक्त कर सकता। कोई इंसान ऐसा नहीं कर सकता। इससे साबित होता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में दिव्य सार है, वही अंत के दिनों का मसीह है। यह सब सुनकर मुझे देहधारण के कुछ सत्य समझने में मदद मिली, मैंने जाना कि मसीह में सामान्य मानवता और दिव्य सार, दोनों है। परमेश्वर के बारे में मेरी कुछ धुंधली कल्पनाएँ और धारणाएं बिल्कुल साफ हो गईं। देहधारी परमेश्वर को देखा और छुआ जा सकता है, वह लोगों से आमने-सामने बात कर सकता है। अंत के दिनों में परमेश्वर के देहधारी होने और पूरी मानवता को बचाने के लिए उसके खुद वचन व्यक्त करने के बारे में सोचकर मेरा उत्साह काफी बढ़ गया और मुझे प्रेरणा मिली। मगर जब मैंने सुना कि परमेश्वर ने न्याय का कार्य करने के लिए दूसरी बार देहधारण किया है, तो मुझे थोड़ी चिंता हुई, थोड़ा डर लगा। क्योंकि मैं पाप में जी रहा था, मैंने सोचा कि जब प्रभु मानवजाति का न्याय करने लौटेगा, तो कहीं वह मेरी निंदा कर दंड तो नहीं देगा। हालांकि, भाई-बहनों के साथ संगति करने के बाद, मैंने जाना कि परमेश्वर का न्याय कार्य हमारी निंदा कर हमें दंड देने के लिए नहीं, बल्कि हमें स्वच्छ करके बचाने के लिए है। वास्तव में, प्रभु यीशु ने उद्धार के कार्य का सिर्फ एक हिस्सा पूरा किया था। उसने केवल हमारे पापों को क्षमा किया था। मगर हमारी पापी प्रकृति अभी भी मौजूद है। भले ही हम परमेश्वर के लिए खुद को खपा सकते हैं, प्रत्यक्ष रूप से कुछ अच्छे काम कर सकते हैं, फिर भी हमारी प्रकृति अहंकार, छल-कपट और दुराग्रह जैसे शैतानी स्वभाव से भरी है। हम अक्सर दूसरों से ईर्ष्या करते हैं, सब कुछ सिर्फ अपने लिए करते हैं। हम बेहद स्वार्थी हैं। हम पूरी तरह अपने शैतानी स्वभाव के काबू में और उससे बंधे होते हैं, हमें पाप के बंधनों से बच निकलने का कोई अंदाजा नहीं होता। यह ऐसा तथ्य है जो हम हर दिन देख सकते हैं। परमेश्वर ने कहा, "तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:45)। इस पद से साफ पता चलता है कि हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने लायक नहीं हैं। यही कारण है कि परमेश्वर अंत के दिनों में हमें स्वच्छ करके बचाने के लिए न्याय कार्य करता है, ताकि हम पाप के बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो सकें और ऐसे इंसान बन सकें जो परमेश्वर का भय मानकर उसके प्रति समर्पित हों, जो और पाप न करें और परमेश्वर का विरोध न करें। यही परमेश्वर के न्याय कार्य का लक्ष्य है, जो प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को पूरा करता है : "सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर : तेरा वचन सत्य है" (यूहन्ना 17:17)। "तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा" (यूहन्ना 8:32)

फिर हमने कुछ और वचन पढ़े। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। "अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

उसके बाद एक भाई ने संगति की, "अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति का न्याय कर उसे स्वच्छ करने के लिए सत्य व्यक्त करता है। परमेश्वर के वचन हमारी शैतानी प्रकृति और हमारी भ्रष्टता के सत्य को प्रकट कर हमारा न्याय करते हैं, परीक्षणों और शोधन के जरिये हमारे भ्रष्ट स्वभावों और पापी प्रकृति को ठीक करते हैं, ताकि हम समझ सकें कि शैतान ने मानवजाति को कितनी गहराई तक भ्रष्ट किया है, साथ ही, हम अपनी प्रकृति में निहित अहंकार, धूर्तता और कपट को जान सकें। सबसे बड़ी चिंता की बात है, हम यह भी समझ सकते हैं कि भले ही हम परमेश्वर में विश्वास करें, उसके लिए खुद को खपाएं, प्रत्यक्ष रूप से कुछ अच्छे काम करें, फिर भी ये सारे काम परमेश्वर के प्रति प्रेम या समर्पण के भाव से नहीं, बल्कि केवल आशीष और इनाम पाने के लिए या परमेश्वर से लेनदेन करने के लिए किए जाते हैं। जैसे ही परमेश्वर का कार्य हमारे विचारों और धारणाओं के अनुरूप नहीं होता, हम परमेश्वर को ठुकरा देते हैं, जैसा फरीसियों ने किया था। परीक्षणों और विपत्ति के सामने हम परमेश्वर को दोष देते हैं, यह दिखाता है कि हम अभी भी भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के साथ जी रहे हैं, और हम अभी भी शैतान से जुड़े हैं। ऐसा इंसान स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकता है? परमेश्वर के वचनों का न्याय और प्रकाशन ही हमें हमारी भ्रष्टता की सच्चाई से अवगत कराता है, यह दिखाता है कि हम परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में असमर्थ हैं, हमारा कोई भी कर्म या कार्रवाई उसे संतुष्ट नहीं कर पाता। फिर हम पछतावे से भरकर, परमेश्वर के सामने पश्चाताप करते हैं, और परमेश्वर के वचन के अनुसार काम करने को तैयार होते हैं। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से गुजरकर, हम देखते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव केवल प्रेम और दया से नहीं बना है, बल्कि उसमें धार्मिकता, प्रताप, क्रोध और अभिशाप भी निहित है। हम परमेश्वर का भय मानने लगते हैं, समझदारी से दैहिक इच्छाओं का त्याग और परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कर पाते हैं। हमारे अंदर परमेश्वर के प्रति थोड़ी आज्ञाकारिता आती है, हमारा जीवन स्वभाव बदलने लगता है। तब हम सचमुच अनुभव कर पाते हैं कि परमेश्वर का न्याय, ताड़ना, परीक्षण और शोधन, हमारे लिए उसका सबसे बड़ा उद्धार और सबसे बड़ा प्रेम है।"

भाई की बातें सुनकर, मैं समझ पाया कि अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय कार्य कितना गहरा है। अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का अनुभव किये बिना, आप अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को कभी नहीं समझ सकते या सच्चा पश्चाताप नहीं कर सकते। जैसे कि मैंने किया, मैं हर दिन प्रभु से प्रार्थना करके अपना अपराध कबूल करता, उसके बाद जानबूझकर फिर से वही पाप करता रहा। मैं पूरी तरह से अपनी भ्रष्ट प्रकृति के काबू में था, ऐसी हालत में, मैं कैसे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता था, कैसे परमेश्वर की मंजूरी पा सकता था? पहले, मैं हमेशा यही सोचता था कि अच्छे बर्ताव का दिखावा करूं, तो परमेश्वर मुझे जरूर स्वीकारेगा। मगर अब एहसास हुआ कि परमेश्वर हमारे अंदर की शैतानी चीजों में बदलाव चाहता है। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि न्याय का कार्य हमारे लिए कितना अहम है, कार्य के इस चरण के बिना, कोई भी नहीं बचाया जा सकता। अंत के दिनों में परमेश्वर हमारे भ्रष्ट स्वभाव को स्वच्छ करने के लिए सत्य व्यक्त करता है और न्याय का कार्य करता है ताकि हम परमेश्वर के अनुरूप बन सकें और उसके राज्य में प्रवेश कर सकें। परमेश्वर का प्रेम कितना सच्चा, कितना व्यावहारिक है!

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बचन पढ़कर, मुझे पूरा यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। वही अंत के दिनों का मसीह है। इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। तब से, मैं कलीसिया जीवन में हिस्सा लेने लगा, हर दिन भाई-बहनों के साथ संगति करके परमेश्वर को जानना सीखने लगा। अब मैं पहले की तरह अपनी कल्पना में बसे अज्ञात परमेश्वर पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक देहधारी परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, जो इंसानों के बीच चलता-फिरता और कार्य करता है, जो कभी भी, कहीं भी सत्य व्यक्त कर सकता है। मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी है, उसके वचनों के प्रचुर सिंचन और पोषण का आनंद उठाया है, और पवित्र आत्मा के कार्य का स्वाद चखा है। मैं सचमुच प्रभु की ओर आ गया हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार का धन्यवाद! यह मेरे लिए सबसे बड़ी आशीष है!

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