आधुनिक युग का फरीसी होना
मैंने 1989 में प्रभु यीशु का अनुसरण करना शुरू किया। सेवा कार्य में हिस्सा लेकर और बाइबल पढ़कर, मैंने जाना कि धरती, स्वर्ग और सभी चीज़ें परमेश्वर ने बनाई हैं, इंसान को शैतान के चंगुल से बचाने के लिए प्रभु यीशु ने खुद देहधारण किया और क्रूस पर खुद को कुर्बान कर अपनी जान दे दी, वो हमारे लिए असाधारण अनुग्रह, शांति और खुशी लेकर आया। मैंने प्रभु का बहुत आभार माना। उसके बाद, मैं नौकरी के साथ-साथ सुसमाचार साझा करने लगी, कलीसिया जाना और बाइबल पढ़ना तो जैसे मेरा जीवन बन गया। कुछ सालों तक, सुसमाचार काफी तेज़ी से फैला, जल्दी ही हमने कई नई कलीसियाओं की स्थापना कर ली। मुझे अगुआ पद के लिए चुना गया, दो प्रांतों की जिम्मेदारी दी गई। आखिर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी, अपना पूरा ध्यान कलीसिया के काम पर लगाया। हर दिन संतोषजनक महसूस होता।
फिर 1997 से, तमाम समस्याएं आने लगीं, जिन्हें मैं हल नहीं कर पा रही थी। सुसमाचार फैलाने का काम अच्छे से नहीं चल रहा था, प्रार्थना से बीमारियाँ ठीक नहीं हो रही थीं, हम दुष्टात्माओं को नहीं निकाल पा रहे थे। ये बहुत स्पष्ट था कि मेरे उपदेशों में कोई प्रेरणा, कोई अंतर्दृष्टि नहीं थी। कुछ सहकर्मी भी पूछते थे कि उन्हें क्या उपदेश देना चाहिए, मैं कहती, "अगर कहीं अटक जाते हो, तो बस बाइबल पढ़ो।" मैं जानती थी ये कोई हल नहीं है, लोग खुद भी बाइबल पढ़ सकते हैं, हमें उनके लिए बाइबल पढ़ने की ज़रूरत नहीं है। कलीसिया के सदस्य कमज़ोर महसूस करते थे, उन्हें कोई आध्यात्मिक पोषण नहीं मिल रहा था। हमें नये सदस्य नहीं मिल रहे थे, मौजूदा सदस्य भी कलीसिया छोड़कर जा रहे थे। कुछ लोगों ने अपनी आस्था छोड़ दी, कुछ सहकर्मी तो सांसारिक जीवन में वापस चले गए। मैं और मेरे सहकर्मी निरंतर उपवास और प्रार्थना करते, प्रभु को पुकारते, हम हेनान प्रांत के याजक-वर्ग के पास भी गए। सारी कोशिशों के बावजूद, हम कलीसिया की वीरानी दूर नहीं कर पाये। मैं बुरी तरह घबराई हुई थी, खाना या सोना भी दूभर हो गया था। सोच रही थी, अगर ऐसे ही चलता रहा, तो जिन कलीसियाओं की स्थापना में हमने इतनी मेहनत की थी, वे ऐसे ही बिखर जाएंगी? फिर प्रभु के वापस आने पर मैं उसे क्या दिखाऊँगी? क्या ये मुझे पापी नहीं बनाता? तब एहसास हुआ कि मुझे दूसरी कलीसियाओं में जाकर देखना होगा।
पहले मैं एल्डर वू से मिली, जो हमारे इलाके के सबसे प्रतिष्ठित एल्डर थे, पर वे उन्हीं घिसी-पिटी चीज़ों के बारे में उपदेश देने लगे। फिर मैं एल्डर वू की सिफ़ारिश पर, एल्डर युआन से मिलने बीजिंग गई। वे भी एक जाने-माने एल्डर थे। लगा उनके पास कोई प्रबोधक बात ज़रूर होगी जिससे कलीसिया पुनर्जीवित हो जाएगी, पर तीन दिन से अधिक सहभागिता करने पर भी, उन्होंने सिर्फ अपने जीवन से जुड़ी बातें की, कैसे उन्होंने प्रभु के लिए त्याग किये, कैसे कम्युनिस्ट पार्टी ने उनका उत्पीड़न किया। इसमें कुछ भी प्रबोधक नहीं था। बीजिंग की यात्रा बेकार साबित हुई। बाद में, एक बहन ने दक्षिण कोरिया के दो सुसमाचार प्रचारकों से मिलवाया। मुझे लगा चूंकि चीन में सुसमाचार बाद में आया था, तो शायद वे कोई उत्कृष्ट बात साझा कर पाएँ, वे कलीसियाओं के लिए उम्मीद की किरण थीं। वही पुरानी घिसी-पिटी चीज़ें, कुछ भी प्रबोधक नहीं था। तब मुझे बेहद निराशा महसूस हुई। मैंने प्रभु को पुकारा, "हे प्रभु, मैं क्या करूं? मैंने हर मुमकिन कोशिश कर ली, जिन्हें भी खोज सकती थी खोज लिया। कुछ समझ नहीं आ रहा—पता नहीं यहां से कहां जाऊं।"
1998 के आखिर में। जब हेनान के एक बड़े अगुआ उपदेश दे रहे थे, उन्होंने चमकती पूर्वी बिजली की कलीसिया का जिक्र किया, जो कहती है कि प्रभु लौट आया है। यह सुनकर मैं हैरान भी हुई और उत्साहित भी। मैं कई सालों से प्रभु की वापसी की उम्मीद कर रही थी, आखिर वो दिन आ ही गया! मैं खुश हो ही रही थी कि उन्होंने आगे कहा, "चमकती पूर्वी बिजली कहती है प्रभु लौट आया है, वो नया कार्य कर रहा है और नए वचन बोल रहा है। वे बाइबल भी नहीं पढ़ते, कहते हैं कि प्रभु एक महिला के रूप में लौट आया है।" उनके मुँह से ऐसी बातें सुनते ही सभी के बीच चर्चा का बाज़ार गर्म हो गया। कुछ ने कहा, "क्या? प्रभु लौट आया है? हमें कैसे पता नहीं चला? वो एक महिला के रूप में कैसे आ सकता है? प्रभु यीशु एक पुरुष था, उसे पुरुष के रूप में ही वापस आना चाहिए!" कुछ और ने कहा, "बाइबल में कहीं नहीं लिखा कि प्रभु लौटने पर नए वचन बोलेगा और नया कार्य करेगा। चमकती पूर्वी बिजली जो कहती है वो मुमकिन नहीं है।" सोचने लगी यह दावा कि प्रभु लौट आया है और नया कार्य कर रहा है, और उसने महिला के रूप में देहधारण किया है, इसका बाइबल में तो कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है। बाइबल के आधार के बिना, यह परमेश्वर का कार्य नहीं हो सकता। विश्वासियों के नाते, हमें बाइबल का अनुसरण करना चाहिए, जो इससे भटकता है वो ईसाई नहीं है। प्रभु की प्रार्थना में कहा गया है, "हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है" (मत्ती 6:9)। क्या "पिता" का मतलब पुरुष नहीं है? परमेश्वर महिला के रूप में देहधारण कैसे कर सकता है? इन बातों पर विचार कर ही रही थी कि बड़े अगुआ को चिल्लाते हुए सुना, "चमकती पूर्वी बिजली में बिल्कुल भी विश्वास मत करो! वे जो कहते हैं बाइबल के अनुरूप नहीं है। हमें हर वक्त सचेत रहना होगा, ताकि हम भटक न जाएं। आपको अभी से सचेत रहना होगा और इन बातों को याद रखना होगा: सुनना नहीं, पढ़ना नहीं, मेजबानी नहीं। हम उन्हें अपनी भेड़ें चुराने नहीं दे सकते।" उस बैठक के बाद, मैंने कुछ समय तक उन अगुआ से बात की। उन्होंने कहा कि बहुत से पुराने विश्वासी और सहकर्मी जो अच्छे खोजकर्ता थे, चमकती पूर्वी बिजली को पहले ही स्वीकार चुके हैं। मैं उलझन में पड़ गई, फिर उनसे पूछा, जो बाइबल का अच्छा ज्ञान रखते थे, जिनकी आस्था मजबूत थी, उन्होंने चमकती पूर्वी बिजली को क्यों चुना। वे ऐसा क्या सिखा रहे थे? कुछ स्पष्ट जवाब नहीं दिया। उन्हें बस यही कहा कि ये बाइबल के अनुरूप नहीं है, प्रभु में आस्था बाइबल में आस्था है, जिस बात का आधार बाइबल में नहीं है, हम उसे नहीं मान सकते। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "आप कलीसिया अगुआ हैं, भाई-बहनों का जीवन आपके हाथों में है। आप उलझन में नहीं पड़ सकतीं, आपको बाइबल पर टिके रहना होगा। प्रभु ने आपको अपनी भेड़ सौंपी है, आपको उनकी रक्षा करनी होगी। अगर आपने उन्हें एक भी भेड़ चुराने दी, तो प्रभु के सामने उसका जवाब नहीं पाएंगी।"
उनके जाने के बाद, मैंने उनकी कही हर बात अन्य भाई-बहनों के साथ साझा की, उनसे कहा कि वे किसी अजनबी की मेजबानी न करें या अनुमति के बिना किसी रिश्तेदार को कलीसिया न लाएँ। किसी विशेष परिस्थिति में मेरी मंज़ूरी लेनी ज़रूरी होगा। इसमें कोई अपवाद नहीं है, जो इसका पालन नहीं करेगा उसे निकाल दिया जाएगा। मैंने उन्हें बताया यह उनके अपने भले के लिए है, क्योंकि वे जीवन में परिपक्व नहीं हैं, समझ की कमी है, तो उन्हें आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है। उसके बाद, लोगों को डराकर चमकती पूर्वी बिजली से दूर करने के लिए, मैंने कुछ अफवाहें फैलाई, जैसा कि अगुआ ने कहा था। भाई-बहनों को परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की छानबीन करने से रोकने की कोशिश में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी। पर मुझे हैरानी हुई, कि इन सबके बावजूद बहुत से लोग चमकती पूर्वी बिजली से जुड़ गए। मैं और ज़्यादा सतर्क हो गई, कोई अजनबी आस्था से जुड़ी कोई भी बात करता, तो यही शक होता कि वो चमकती पूर्वी बिजली से आया है। उस दौरान मैं बहुत संवेदनशील बन गई, लगता था कोई भी चमकती पूर्वी बिजली का उपदेशक हो सकता है।
मुझे याद है, एक सहकर्मी सभा में चमकती पूर्वी बिजली के उपदेशक से मिली। उसने दिन भर उसकी बातें सुनीं, उसे वो बातें काफी पसंद भी आईं, फिर अचानक उसे मेरी बात याद आई कि जो भी चमकती पूर्वी बिजली के संपर्क में होगा उसे हटा दिया जाएगा। वो इतनी डरी हुई थी कि उपदेश छोड़कर फौरन मुझे रिपोर्ट करने आ गई। कहा, उसने दिन भर वो बातें सुनीं, जो उसे काफी पसंद आईं, पर निकाले जाने के डर से स्वीकारने की हिम्मत नहीं की। यह सुनकर मैंने उसे गुस्से से घूरा, उसकी आलोचना करते हुए कहा, "मैंने तुम्हें बार-बार बताया था कि उनके साथ संपर्क मत रखो, फिर ऐसा क्यों किया? हम जानते हैं प्रभु यीशु पुरुष था, पर उनका कहना है प्रभु यीशु महिला बनकर लौटा है। बात साफ है, ये सही नहीं हो सकता! फिर भी तुम सुनती रही, डर नहीं लगा कि मैं तुम्हें निकाल दूँगी?" उसने अपनी बात समझाने की कोशिश की, पर मैंने कुछ नहीं सुना। मैंने कहा, अब उसे उन सभाओं में भाग नहीं लेना चाहिए, मैं खुद जाकर देखूंगी। बाद में, उस जगह पर मेरा सामना चमकती पूर्वी बिजली के लोगों से हुआ। उन्होंने परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही साझा की। मैं सोच रही थी हम इस पर बहस कर सकते हैं, पर फिर हेनान के याजक-वर्ग की बात याद आई, चमकती पूर्वी बिजली से आया कोई भी अच्छा इंसान नहीं हो सकता, तो मैं वहां से निकलने लगी। आयोजक बहन ने मुझे रुककर उनकी बात सुनने को कहा, पर मैं इतनी परेशान थी कि उसे भी झिड़क दिया। वापस लौटकर मैंने अन्य सहकर्मियों को बताया कि उस सभा के कुछ लोग चमकती पूर्वी बिजली से जुड़ गए हैं, ऐसे लोगों को बाहर निकालना होगा। मैंने अपने सहकर्मियों को ये भी कहा कि अगर उन्हें नहीं निकाला और उन्होंने दूसरों का भी मत-परिवर्तन कर दिया, तो हमारा पाप और बड़ा हो जाएगा, हम कभी प्रभु के सामने कोई सफाई नहीं दे पाएंगे।
फिर मार्च 1999 में एक दिन, मेरी एक दोस्त, एक साथी विश्वासी मेरे घर आई, उसने बताया कि उनकी कलीसिया में सब बहुत अच्छा चल रहा है। इस बात का क्या मतलब था? हमारी कलीसिया की हालत इतनी बुरी थी कि यहाँ बिल्कुल वीरानी थी, पर उनकी कलीसिया में सब अच्छा था। क्या वे भी चमकती पूर्वी बिजली से थे? इसका पता लगाने के लिए, मैंने उनकी कलीसिया की अगुआ, बहन ज़िंग को कॉल किया। बहन ज़िंग ने कहा कि अब वे बाइबल नहीं बस प्रकाशितवाक्य में बताये सूचीपत्र को पढ़ते हैं। उसकी ये बात सुनकर मेरा दिल डूब गया। मैं समझ गई, वो भी चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास करती है। वो एक नेक इंसान है, उसे बाइबल का अच्छा ज्ञान है, विश्वासियों के बीच रुतबा है। अगर वो चमकती पूर्वी बिजली से जुड़ गई, तो दूसरे भी उसका अनुसरण करेंगे। मैं उस आस्था में दूसरों को उसके पीछे जाते नहीं देख सकती थी। अगले ही दिन मैं ट्रेन पकड़कर शहर से निकल गई। वहां पहुंचकर समझ आया उसके साथ 20 से ज़्यादा भाई-बहनों ने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार लिया था। मैंने उसे वापस लौट आने को कहा, पर मेरी हर बात अनसुनी कर वो अपनी आस्था पर डटी रही। शहर वापस लौटकर, मैंने सभी कलीसियाओं को बताया कि बहन ज़िंग और दूसरों ने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार लिया है। कुछ भाई-बहन मजबूत विचारों वाली, ऐसी उत्साही खोजकर्ता को उनके साथ जाते देखकर, चमकती पूर्वी बिजली से उतने उखड़े नहीं रहे, उन्हें भी लगने लगा शायद ये सच्चा मार्ग था। कुछ लोगों ने तो चुपके से चमकती पूर्वी बिजली की मेजबानी भी शुरू कर दी थी। मैंने शैंदोंग की एक कलीसिया के बारे में भी सुना जहां 100 से ज़्यादा लोग इसमें शामिल हो गये, जिनमें से कुछ समर्पित सहकर्मियों को मैं भी जानती थी।
मैंने उसे कामयाब होते और निरंतर आगे बढ़ते देखा, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्यों इतने सारे लोग इसे स्वीकार रहे थे, बहुत से सहकर्मी बाइबल अच्छे से जानते थे, समर्पित खोजकर्ता थे। कुछ भाई-बहन और अन्य सहकर्मी पूछ रहे थे कि क्यों इतने लोग उसके साथ जुड़ रहे हैं, और लौटने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं, जबकि मैंने उन्हें इसकी छानबीन भी नहीं करने दी। उनके सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। आखिर चमकती पूर्वी बिजली क्या उपदेश देती थी, इतने लोगों को कैसे अपनी ओर खींच रही थी? क्या ये सही है कि प्रभु लौट आया है? मगर फिर मैंने सोचा, प्रभु महिला बनकर नहीं लौट सकता, आस्था रखना पर बाइबल न पढ़ना सही नहीं हो सकता! उनकी कलीसिया की ऐसी कामयाबी शायद कुछ दिनों की है—ये ज़्यादा नहीं टिकने वाली। मैं न तो उसकी छानबीन करना और न ही कलीसिया के अन्य सदस्यों को उसे स्वीकारने देना चाहती थी। उसके बाद मैं कलीसिया पर नज़रें गड़ाये रखने लगी, मैं भाई-बहनों को चमकती पूर्वी बिजली से दूर रखने पर अड़ी हुई थी।
फिर अचानक, जुलाई महीने में, मेरा पूरा शरीर सूजने लगा। हालत बुरी हो गई, उकडू बैठती तो सीधी खड़ी नहीं हो पाती थी। कलीसिया के सदस्यों ने मेरे लिए उपवास और प्रार्थना की, पर कोई सुधार नहीं हुआ। एक डॉक्टर ने बताया, मेरे गर्भाशय में एक अंडे जितना बड़ा ट्यूमर था। ये सुनकर मैं हैरान रह गई, अपने आँसू रोकते हुए जैसे-तैसे घर लौटी। फिर मैं आत्मचिंतन करने लगी। क्या ऐसी गंभीर बीमारी का मतलब, परमेश्वर मुझे दंड दे रहा था? मैंने इस पद पर भी विचार किया : "अतिथि-सत्कार करना न भूलना, क्योंकि इसके द्वारा कुछ लोगों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का आदर-सत्कार किया है" (इब्रानियों 13:2)। पर मैं तो लगातार कलीसिया के दरवाज़े बंद किए हुए थी, चमकती पूर्वी बिजली के लोगों को आने नहीं दिया, उन्होंने प्रभु की वापसी के बारे में चाहे जो भी कहा हो, मैंने उनकी बात सुनने या उनके संपर्क में रहने से या कलीसिया के सदस्यों को उनकी बात सुनने से मना कर दिया। इस तरह के बर्ताव से, मैं साफ तौर पर बाइबल के ख़िलाफ़ जा रही थी। मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था चमकती पूर्वी बिजली क्या उपदेश देती है, फिर भी उसमें आस्था रखने वाले लोगों से सतर्क रहती थी। शायद मैं ज़्यादा ही जल्दबाज़ी कर रही थी। मैं इतनी बीमार थी कि चमकती पूर्वी बिजली के ख़िलाफ़ लड़ते रहने की न तो इच्छा रही और न ही हिम्मत। कुछ समय तक, मैंने खुद को अकेली, बेबस, और परमेश्वर से दूर महसूस किया, मैंने रोते हुए प्रभु से प्रार्थना की, "प्रभु, अभी मैं बेहद कमज़ोर महसूस कर रही हूँ। क्या तुम वाकई मुझे त्याग रहे हो? प्रभु, मैं चीज़ों को पहले जैसा कैसे करूँ, जब तुम मेरे साथ हुआ करते थे? प्रभु, तुम कहां हो? कृपा करके मेरे सामने आओ, मुझे बचाओ!"
मेरा हर दिन बेहद तकलीफ में बीत रहा था, जबकि चमकती पूर्वी बिजली के सदस्य आस्था से परिपूर्ण दिखते थे, वे आध्यात्मिक रूप से काफी खुश थे। मुझे याद है, एक सहकर्मी की माँ बेहद निराश और कमज़ोर हो गई थी, आस्था छोड़ना चाहती थी, पर चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकारने के बाद, लगा जैसे वो मरकर ज़िंदा हो गई—उसका उत्साह काफी बढ़ गया था। वो हर दिन सबेरे 5 बजे उठ जाती, 7 बजे से सुसमाचार साझा करने निकलती तो शाम तक घर नहीं आती। उसकी आस्था बेहद मजबूत थी। वो एक अलग ही इंसान बन गई थी। हमारी कलीसिया के सदस्यों की बात करें, तो हममें से कुछ लोग बीमार थे, कुछ टूट गए थे। सब वीरान और सूना पड़ा था, जीवन का नामोनिशान नहीं था।
मुझे कुछ समझ नहीं आया। हमारे याजक वर्ग ने चमकती पूर्वी बिजली को बुरा कहा, कहा ये परमेश्वर से नहीं, इंसान से आई है, टिकेगी नहीं। इसके बजाय, ये तो लगातार फल-फूल रही थी। फिर मैंने बाइबल के इन पदों पर विचार किया : "क्योंकि यदि यह धर्म या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा; परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे। कहीं ऐसा न हो कि तुम परमेश्वर से भी लड़नेवाले ठहरो" (प्रेरितों 5:38-39)। अगर उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं था, तो केवल इंसानी प्रयास से इतनी आस्था पैदा कर इतनी कामयाबी कैसे मिली? क्या ये वाकई परमेश्वर से आई है? ऐसा है, तो चमकती पूर्वी बिजली से लड़कर, मैं परमेश्वर से लड़ रही थी।
कुछ सहकर्मियों ने मुझसे किसी ऐसे को ढूंढने को कहा जो हमें आध्यात्मिक रूप से जागृत करने वाला उपदेश सुनाए। ये सुनकर मैं बेहद परेशान हो गई। मैं बरसों से विश्वासी रही, खुद को एक समर्पित खोजकर्ता माना। मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि मैं लोगों को ऐसी बंद गली में ले आऊंगी। मैं प्रभु को क्या जवाब दूँगी? कभी-कभी तो मैं सचमुच चमकती पूर्वी बिजली के लोगों से बात करना चाहती थी, ताकि जान सकूं वे क्या उपदेश देते हैं, क्यों उनकी कलीसिया के लोग इतने ऊर्जावान हैं।
अगस्त में एक दिन, बहन शू दो भाइयों को मेरे घर लेकर आई, मैंने पूरे जोश से उनका स्वागत किया। बातचीत के दौरान, भाई वांग ने पूछा कि मेरे हिसाब से, लोग परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हैं। मैंने बताया, "स्वर्ग जाने के लिए, अनंत जीवन पाने के लिए।" फिर उन्होंने पूछा, "अगर वे स्वर्ग नहीं जा सकते, तो क्या लगता है उन्हें आस्था जारी रखनी चाहिए?" "तब कौन आस्था रखेगा?" ये बात अचानक ही मुँह से निकल गई। उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "ये उचित है कि हम सृजित प्राणियों के रूप में सृष्टिकर्ता की आराधना करें। हमें परमेश्वर में विश्वास और उससे प्रेम करना चाहिए, पर स्वर्ग जाने के लिए नहीं।" ये छोटे-छोटे वाक्य सीधे मेरे दिल पर जा लगे, मैंने उत्साह से सहमति में सिर हिलाया। इतने बरसों की अपनी आस्था में, मैंने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं सुना। कलीसिया अगुआओं, दूसरे संप्रदायों के सहकर्मियों या दूसरे देशों के उपदेशकों से भी नहीं। वे कहते थे कि अनुसरण इसलिए करना चाहिए कि हमें आशीष मिले, हम स्वर्ग में जा सकें, आस्था के बारे में किसी ने कभी ऐसी ऊँची बातें नहीं कीं, ये तो एकदम शुद्ध समझ है। अचानक लगा मुझे उम्मीद की किरण दिख गई है। मैंने उनसे फौरन पूछा कि कलीसिया की वीरानी कैसे दूर की जाये।
भाई वांग ने पहले मुझे बताया कि व्यवस्था के युग के आखिर में मंदिर इतने सूने क्यों पड़ गये थे। उन्होंने कहा कि व्यवस्था के युग की शुरुआत में, वे यहोवा की महिमा से भरे थे, कोई भी वहाँ जो जी में आए वो नहीं करता था। पर व्यवस्था के युग का अंत आते-आते, यह पैसों का लेनदेन करने, पशुधन बेचने का अड्डा बन गया। काफी समय तक ये परमेश्वर की महिमा से वंचित रहे, चोरों का अड्डा और बंजर भूमि बन गये। फ़रीसियों को फटकारते प्रभु यीशु के वचनों से हम समझ सकते हैं कि मंदिर में सेवा करने वाले मुख्य याजक, शास्त्री और फ़रीसी बस लोगों से नियम का पालन करवाते थे, खुद परमेश्वर के वचनों पर अमल नहीं करते थे। वे परमेश्वर के मार्ग से भटक गये थे। यही वजह थी कि जब प्रभु यीशु लौटा, उसने मंदिर में कार्य नहीं किया, बल्कि मंदिर के बाहर नया कार्य किया। जिन लोगों ने मंदिर छोड़कर प्रभु के नये कार्य का अनुसरण किया, उन्हें जीवन में पोषण और पवित्र आत्मा का कार्य हासिल हुआ। प्रभु का अनुग्रह उनके साथ रहा। जो लोग व्यवस्था से चिपके रहे, जिन्होंने प्रभु के नए कार्य को नहीं स्वीकारा, वे अंधकार में पड़कर भ्रष्ट होते चले गये। जैसा कि बाइबल कहती है, "परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, 'देखो, ऐसे दिन आते हैं, जब मैं इस देश में महँगी करूँगा; उस में न तो अन्न की भूख और न पानी की प्यास होगी, परन्तु यहोवा के वचनों के सुनने ही की भूख प्यास होगी'" (आमोस 8:11)। फिर उन्होंने आगे कहा आज धार्मिक जगत की हालत वैसी हो गई है जैसी व्यवस्था के युग के आखिर के मंदिरों की थी। ये वीरान, अँधकारमय और बेहद अस्त-व्यस्त हो गया है। विश्वासी आस्था खो रहे हैं, उनमें प्रेम नहीं है, क्योंकि उनका अगुआ याजक-वर्ग प्रभु के वचनों पर अमल नहीं करता, परमेश्वर का कार्य एक कदम आगे बढ़ गया है, पवित्र आत्मा का कार्य दूसरी जगह चला गया है। रास्ता निकालने के लिए हमें परमेश्वर के नए कार्य को खोजना होगा! भाई वांग की सहभागिता से मैंने समझा कि कलीसिया के सूनेपन की वजह प्रभु का हमें छोड़ना नहीं है, बल्कि ये है कि हम उसके द्वारा किए जा रहे नए कार्य का अनुसरण नहीं कर रहे। हमें बस उसके नये कार्य को खोजकर परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलना है, ताकि प्रभु की मौजूदगी और पवित्र आत्मा का कार्य हासिल कर सकें। यह देखकर कि मैं चीज़ों को समझने लगी हूँ, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश सुनाये। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर इस तथ्य को पूर्ण करेगा : वह संपूर्ण ब्रह्मांड के लोगों को अपने सामने आने के लिए बाध्य करेगा, और पृथ्वी पर परमेश्वर की आराधना करवाएगा, और अन्य स्थानों पर उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, और लोगों को सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर किया जाएगा। यह यूसुफ की तरह होगा : हर कोई भोजन के लिए उसके पास आया, और उसके सामने झुका, क्योंकि उसके पास खाने की चीज़ें थीं। अकाल से बचने के लिए लोग सच्चा मार्ग तलाशने के लिए बाध्य होंगे। संपूर्ण धार्मिक समुदाय गंभीर अकाल से ग्रस्त होगा, और केवल आज का परमेश्वर ही मनुष्य के आनंद के लिए हमेशा बहने वाले स्रोत से युक्त, जीवन के जल का स्रोत है, और लोग आकर उस पर निर्भर हो जाएँगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सहस्राब्दि राज्य आ चुका है)। "किसी को भी यह विश्वास नहीं कि वह मेरी महिमा देख पाएगा, और मैं उन्हें मजबूर नहीं करता, बल्कि मैं मानवजाति के बीच से अपनी महिमा हटा लूँगा और उसे दूसरी दुनिया में ले जाऊँगा। जब मनुष्य एक बार फिर पश्चात्ताप करेगा, तब मैं अपनी महिमा आस्था रखने वाले और अधिक लोगों को दिखाऊँगा। यही वह सिद्धांत है, जिसके अनुसार मैं कार्य करता हूँ। क्योंकि एक समय ऐसा आएगा, जब मेरी महिमा कनान को छोड़ देगी, और ऐसा समय भी आएगा, जब मेरी महिमा चुने हुए लोगों को भी छोड़ देगी। इतना ही नहीं, एक समय ऐसा आएगा जब मेरी महिमा पूरी पृथ्वी को छोड़ देगी, जिससे यह धुँधली पड़कर अंधकार में डूब जाएगी। यहाँ तक कि कनान की धरती भी सूरज की रोशनी नहीं देखेगी; सभी लोग अपनी आस्था खो देंगे, लेकिन कोई भी कनान की धरती की सुगंध छोडना सहन नहीं कर पाएगा। जब मैं नए स्वर्ग और पृथ्वी में प्रवेश करूँगा, सिर्फ तभी मैं अपनी महिमा का दूसरा भाग लेकर उसे सबसे पहले कनान की धरती पर प्रकट करूँगा, जिससे रात के गहरे अंधकार में डूबी पूरी पृथ्वी पर रोशनी की चमक फ़ैल जाएगी, ताकि पूरी पृथ्वी प्रकाशमान हो जाए; ताकि इस प्रकाश के सामर्थ्य से पूरी पृथ्वी के मनुष्य शक्ति प्राप्त करें, जिससे मेरी महिमा बढ़ सके और हर देश में नए सिरे से प्रकट हो सके; और सभी मनुष्यों को यह एहसास हो सके कि मैं बहुत पहले मानव-संसार में आ चुका हूँ और बहुत पहले अपनी महिमा इस्राएल से पूरब में ला चुका हूँ; क्योंकि मेरी महिमा पूरब से चमकती है और वह अनुग्रह के युग से आज के दिन तक लाई गई है। लेकिन वह इस्राएल ही था जहाँ से मैं गया था और वहीं से मैं पूरब में पहुँचा था। जब पूरब का प्रकाश धीरे-धीरे सफेद रोशनी में तब्दील होगा, तभी पूरी धरती का अंधकार प्रकाश में बदलना शुरू होगा, और तभी मनुष्य को यह पता चलेगा कि मैं बहुत पहले इस्राएल से जा चुका हूँ और नए सिरे से पूरब में उभर रहा हूँ। एक बार इस्राएल में अवतरित होने और फिर वहाँ से चले जाने के बाद मैं दोबारा इस्राएल में पैदा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा कार्य पूरे ब्रह्मांड की अगुआई करता है, और यही नहीं, रोशनी सीधे पूरब से पश्चिम की ओर चमकती है। यही कारण है कि मैं पूरब में अवतरित हुआ हूँ और कनान को पूरब के लोगों तक लाया हूँ। मैं पूरी पृथ्वी के लोगों को कनान की धरती पर लाऊँगा, इसलिए मैं पूरे ब्रह्मांड को नियंत्रित करने के लिए कनान की धरती से लगातार अपने कथन जारी कर रहा हूँ। इस समय, कनान को छोड़कर पूरी पृथ्वी पर प्रकाश नहीं है, और सभी लोग भूख और ठंड के कारण संकट में हैं। मैंने अपनी महिमा इस्राएल को दी और फिर उसे हटा लिया, और इस प्रकार इस्राएलियों और सभी मनुष्यों को पूरब में ले आया। मैं उन सभी को प्रकाश में ले आया हूँ, ताकि वे इसके साथ फिर से जुड़ सकें और इससे जुड़े रह सकें, और उन्हें इसकी खोज न करनी पड़े। जो लोग प्रकाश की खोज कर रहे हैं, उन्हें मैं फिर से प्रकाश देखने दूँगा और उस महिमा को देखने दूँगा जो मेरे पास इस्राएल में थी; मैं उन्हें यह देखने दूँगा कि मैं बहुत पहले एक सफेद बादल पर सवार होकर मनुष्यों के बीच आ चुका हूँ, मैं उन्हें असंख्य सफेद बादल और प्रचुर मात्रा में फलों के गुच्छे देखने दूँगा, और यही नहीं, मैं उन्हें इस्राएल के यहोवा परमेश्वर को भी देखने दूँगा। मैं उन्हें यहूदियों के गुरु, इच्छित मसीहा को देखने दूँगा, और अपना पूर्ण प्रकटन देखने दूँगा, जिन्हें युगों-युगों से राजाओं द्वारा सताया गया है। मैं संपूर्ण ब्रह्मांड पर कार्य करूँगा और मैं महान कार्य करूँगा, और अंत के दिनों में मनुष्य के सामने अपनी पूरी महिमा और अपने सभी कर्म प्रकट कर दूँगा। मैं अपना महिमामय मुखमंडल उसकी पूर्णता में उन लोगों को, जिन्होंने कई वर्षों से मेरी प्रतीक्षा की है और जो मुझे सफेद बादल पर सवार होकर आते हुए देखने के लिए लालायित रहे हैं, और उस इस्राएल को, जिसने मेरे एक बार फिर प्रकट होने की लालसा की है, और उस पूरी मनष्यजाति को दिखाऊँगा, जो मुझे कष्ट पहुँचाती हैं, ताकि सभी यह जान सकें कि मैंने बहुत पहले ही अपनी महिमा हटा ली है और उसे पूरब में ले आया हूँ, और वह अब यहूदिया में नहीं है। कारण, अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। यह सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई। ये बेहद अधिकारपूर्ण थी। मैं जान गई कि ये किसी इंसान से नहीं आए। फिर उन्होंने सहभागिता आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रभु लौट आया है, वो नया कार्य कर रहा है, अपनी महिमा को इस्राएल से पूरब की ओर ला रहा है। यानी पवित्र आत्मा का कार्य आगे बढ़ रहा है, जो लोग परमेश्वर के नये कार्य के साथ चलेंगे, उसके मौजूदा वचनों को स्वीकारेंगे, वे ही पवित्र आत्मा का कार्य और जीवन के पोषण का अनंत सोता हासिल करेंगे।
जब भाई वांग ने कहा कि प्रभु लौट आया है, मुझे लगा इस पूरे धार्मिक जगत में, केवल चमकती पूर्वी बिजली ही इसकी गवाही दे रही है, तो ये ज़रूर उससे ही जुड़े हैं। मैं उधेड़बुन में थी। मुझे याजक वर्ग की बात याद आई कि चमकती पूर्वी बिजली के लोग अच्छे नहीं हैं, पर जहां तक मैंने देखा, दोनों भाई बेहद गरिमापूर्ण और सच्चे थे, उनका रवैया गर्मजोशी भरा था। उनका संदेश नया और व्यावहारिक था—साफ तौर पर उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य था। उन्होंने कलीसिया के वीरानी की वजह भी बताई, जिसने मुझे बरसों से उलझन में डाल रखा था। मुझे पूरा यकीन हो गया। मैंने सोचा, प्रभु की कल्याणकारी इच्छा से ही मैं उस दिन उनसे मिली। मैंने तय किया, मैं भी उनकी बात सुनूंगी, उनसे सवाल पूछूंगी, ताकि जान सकूँ चमकती पूर्वी बिजली के लोग आस्था से भरे क्यों हैं, क्यों इसे स्वीकारने के बाद पीछे नहीं मुड़ते। फिर मैंने फौरन उनसे पूछ लिया, "मैं जानती हूँ आप चमकती पूर्वी बिजली से आये हैं। क्या इस दावे का बाइबल में कोई आधार है कि प्रभु लौट आया है और नया कार्य कर रहा है? परमेश्वर का कार्य और उसके सभी वचन बाइबल में दर्ज हैं, आस्था में हमें बाइबल का अनुसरण करना है। आप जो कह रहे हैं बाइबल से बाहर की बात है, तो मैं इसे नहीं मान सकती।" भाई वांग ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपका कहती हैं आस्था में बाइबल का अनुसरण जरूरी है। यानी आप कह रही हैं कि प्रभु ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकता जिसका बाइबल में कोई आधार न हो?" मैंने पूरे विश्वास से कहा, "बिल्कुल सही।" फिर उन्होंने पूछा, "आपके हिसाब से पहले क्या आया : परमेश्वर या बाइबल?" इस सवाल पर मैं चौंक गई। मैं बरसों से विश्वासी रही, पर कभी इस बारे में नहीं सोचा। थोड़ा सोचने के बाद मैंने कहा, बेशक परमेश्वर पहले आया। भाई वांग ने कहा, "हाँ। बाइबल परमेश्वर के कार्य का अभिलेख है। व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में उसके द्वारा किए कार्य की गवाही है। पुराने नियम में इस्राएल में परमेश्वर द्वारा किए कार्य दर्ज हैं, नए नियम में अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु के कार्य का रिकॉर्ड है। इसलिए, परमेश्वर का कार्य पहले आया, बाइबल बाद में आई। परमेश्वर का कार्य बाइबल पर नहीं, उसकी प्रबंधन योजना पर आधारित है।"
फिर उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का अंश सुनाया। "यीशु के समय में, यीशु ने अपने भीतर पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार यहूदियों की और उन सबकी अगुआई की थी, जिन्होंने उस समय उसका अनुसरण किया था। उसने जो कुछ किया, उसमें उसने बाइबल को आधार नहीं बनाया, बल्कि वह अपने कार्य के अनुसार बोला; उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया कि बाइबल क्या कहती है, और न ही उसने अपने अनुयायियों की अगुआई करने के लिए बाइबल में कोई मार्ग ढूँढ़ा। ठीक अपना कार्य आरंभ करने के समय से ही उसने पश्चात्ताप के मार्ग को फैलाया—एक ऐसा मार्ग, जिसका पुराने विधान की भविष्यवाणियों में बिलकुल भी उल्लेख नहीं किया गया था। उसने न केवल बाइबल के अनुसार कार्य नहीं किया, बल्कि एक नए मार्ग की अगुआई भी की, और नया कार्य किया। उपदेश देते समय उसने कभी बाइबल का उल्लेख नहीं किया। व्यवस्था के युग के दौरान, बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने के उसके चमत्कार करने में कभी कोई सक्षम नहीं हो पाया था। इसी तरह उसका कार्य, उसकी शिक्षाएँ, उसका अधिकार और उसके वचनों का सामर्थ्य भी व्यवस्था के युग में किसी भी मनुष्य से परे था। यीशु ने मात्र अपना नया काम किया, और भले ही बहुत-से लोगों ने बाइबल का उपयोग करते हुए उसकी निंदा की—और यहाँ तक कि उसे सलीब पर चढ़ाने के लिए पुराने विधान का उपयोग किया—फिर भी उसका कार्य पुराने विधान से आगे निकल गया; यदि ऐसा न होता, तो लोग उसे सलीब पर क्यों चढ़ाते? क्या यह इसलिए नहीं था, क्योंकि पुराने विधान में उसकी शिक्षाओं, और बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने की उसकी योग्यता के बारे में कुछ नहीं कहा गया था? उसका कार्य एक नए मार्ग की अगुआई करने के लिए था, वह जानबूझकर बाइबल के विरुद्ध लड़ाई करने या जानबूझकर पुराने विधान को अनावश्यक बना देने के लिए नहीं था। वह केवल अपनी सेवकाई करने और उन लोगों के लिए नया कार्य लाने के लिए आया था, जो उसके लिए लालायित थे और उसे खोजते थे। वह पुराने विधान की व्याख्या करने या उसके कार्य का समर्थन करने के लिए नहीं आया था। उसका कार्य व्यवस्था के युग को विकसित होने देने के लिए नहीं था, क्योंकि उसके कार्य ने इस बात पर कोई विचार नहीं किया कि बाइबल उसका आधार थी या नहीं; यीशु केवल वह कार्य करने के लिए आया था, जो उसके लिए करना आवश्यक था। इसलिए, उसने पुराने विधान की भविष्यवाणियों की व्याख्या नहीं की, न ही उसने पुराने विधान के व्यवस्था के युग के वचनों के अनुसार कार्य किया। उसने इस बात को नज़रअंदाज़ किया कि पुराने विधान में क्या कहा गया है, उसने इस बात की परवाह नहीं की कि पुराना विधान उसके कार्य से सहमत है या नहीं, और उसने इस बात की परवाह नहीं की कि लोग उसके कार्य के बारे में क्या जानते हैं या कैसे उसकी निंदा करते हैं। वह बस वह कार्य करता रहा जो उसे करना चाहिए था, भले ही बहुत-से लोगों ने उसकी निंदा करने के लिए पुराने विधान के नबियों के पूर्वकथनों का उपयोग किया। लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो उसके कार्य का कोई आधार नहीं था, और उसमें बहुत-कुछ ऐसा था, जो पुराने विधान के अभिलेखों से मेल नहीं खाता था। क्या यह मनुष्य की ग़लती नहीं थी? क्या परमेश्वर के कार्य पर सिद्धांत लागू किए जाने आवश्यक हैं? और क्या परमेश्वर के कार्य का नबियों के पूर्वकथनों के अनुसार होना आवश्यक है? आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चाहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। इसे पढ़ने के बाद, भाई वांग ने सहभागिता की, "जब प्रभु यीशु कार्य करने आया, तो उसने पुराने नियम की व्यवस्था से परे जाकर अनुग्रह के युग का कार्य किया। इंसान के लिए उसकी अपेक्षाएं और प्रथाएं नई थीं, जैसे सब्त का पालन न करना, लोगों को सत्तर गुणा 7 बार माफ करना। लोगों ने इसे पुराने नियम के अनुरूप नहीं माना, यह शास्त्र से बिल्कुल अलग था। इससे पता चलता है परमेश्वर के कार्य को पवित्र शास्त्र नहीं रोक सकता। जब प्रभु यीशु के शिष्यों ने देखा उसके कार्य और वचनों में कितना अधिकार और सामर्थ्य है, कोई इंसान इसे नहीं पा सकता, ये परमेश्वर से ही आया होगा, तो उन्होंने प्रभु का अनुसरण किया। शास्त्र के शाब्दिक अर्थ उन्हें नहीं रोक पाये, वे पवित्र आत्मा का कार्य खोजकर परमेश्वर के पदचिह्नों पर चले। आस्था में, हम परमेश्वर के कार्य को शास्त्र के आधार पर नहीं आंक सकते, हमें परमेश्वर को उसके वचनों और कार्य से जानना होगा।"
उनकी सहभागिता सुनकर समझ आया, बाइबल परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक रिकॉर्ड है, उसका आधार नहीं। मैं इतने सालों से एक उपदेशक थी, फिर मैंने परमेश्वर और बाइबल के बीच के संबंध को क्यों नहीं समझा? उपदेश सुनने के लिए भी मैं हर जगह गई, पर कभी किसी को ऐसा कुछ कहते नहीं सुना। मैंने हमेशा सोचा परमेश्वर के वचन और कार्य बाइबल में हैं, उससे भटकना मतलब आस्था नहीं रखना है। ये कितनी बड़ी बेवकूफी थी। फिर भाई शी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ और वचन पढ़े। "बहुत सालों से, लोगों के विश्वास (दुनिया के तीन मुख्य धर्मों में से एक, मसीहियत) का परंपरागत साधन बाइबल पढ़ना ही रहा है; बाइबल से दूर जाना प्रभु में विश्वास करना नहीं है, बाइबल से दूर जाना एक पाखंड और विधर्म है, और यहाँ तक कि जब लोग अन्य पुस्तकें पढ़ते हैं, तो उन पुस्तकों की बुनियाद भी बाइबल की व्याख्या ही होनी चाहिए। कहने का अर्थ है कि, यदि तुम प्रभु में विश्वास करते हो तो तुम्हें बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए, और बाइबल के अलावा तुम्हें ऐसी किसी अन्य पुस्तक की आराधना नहीं करनी चाहिए, जिसमें बाइबल शामिल न हो। यदि तुम करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो। बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। "वे मेरा अस्तित्व मात्र बाइबल के दायरे में ही सीमित मानते हैं, और वे मेरी बराबरी बाइबल से करते हैं; बाइबल के बिना मैं नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापों पर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत से लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, इस हद तक कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूँ, वे उसे मापने और मेरी निंदा करने के लिए बाइबल के छंदों का उपयोग करते हैं। वे मेरे साथ अनुकूलता का मार्ग या सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग नहीं खोजते, बल्कि बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजते हैं, और विश्वास करते हैं कि कोई भी चीज़ जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यपरायण वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के साथ अनुकूल होने की कोशिश नहीं की, बल्कि कर्मठतापूर्वक व्यवस्था का इस हद तक अक्षरशः पालन किया कि—यीशु पर पुराने विधान की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए—निर्दोष यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उनका सार क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के साथ अनुकूलता के मार्ग की खोज नहीं की?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए)। भाई शी ने सहभागिता की, "बहुत से लोग दृढ़ता से कहते हैं वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, पर असल में वे बाइबल में विश्वास करते हैं। वे परमेश्वर को बाइबल के दायरे में बांध देते हैं, उसके कार्य का मिलान बाइबल के शब्दों से करते हैं। जो भी इसके अनुरूप नहीं होता, उसे ठुकराकर उसकी निंदा करते हैं। वे फरीसियों से अलग कहां हैं? फरीसियों ने प्रभु यीशु के कार्य का मिलान पुराने नियम से किया, उसके कार्य को इससे बाहर जाते देख, प्रभु की निंदा की, अंत में उसे सलीब पर लटका दिया। कितना पीड़ादायक सबक है। आस्था में, हमें सत्य खोजकर परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलना चाहिए। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने न्याय का कार्य करने, हमें पाप से पूरी तरह स्वच्छ करके स्वर्ग के राज्य में लाने के लिए बहुत से सत्य व्यक्त किये। कार्य का यह चरण प्रभु के छुटकारे के कार्य के मुकाबले अधिक गहरा और ऊँचा है, यह बाइबल के दायरे से बिल्कुल बाहर है। अगर हम इसे बाइबल के शब्दों से आंकें, तो परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को सीमा में बाँधें, तो क्या ये फरीसियों वाली गलती दोहराना नहीं?"
मैंने हमेशा सोचा परमेश्वर का कार्य बाइबल से बाहर नहीं जा सकता, जो बाइबल में दर्ज नहीं है वो परमेश्वर का कार्य नहीं हो सकता। इतने बरसों की आस्था के बाद, मैं परमेश्वर को बाइबल तक सीमित कैसे कर सकती हूँ? मुझे कभी एहसास नहीं हुआ कि ये सही आस्था नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन कहते हैं : "वे मेरी बराबरी बाइबल से करते हैं; बाइबल के बिना मैं नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापों पर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत से लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए)। हर एक शब्द मेरे दिल को चीर गया। मैं बाइबल को स्वयं परमेश्वर कैसे मान सकती थी? क्या ये परमेश्वर को पहले रखना था? मैं परमेश्वर की नहीं, बाइबल की परवाह करती थी!
मुझे पता नहीं था कि चमकती पूर्वी बिजली का उपदेश इतना शानदार है, पर मन में अब भी बहुत से सवाल घूम रहे थे। मैंने सोचा, जब उनकी बातें सुन ही रही हूँ, तो कुछ सवालों के जवाब भी पा लूँ। अपनी आस्था में मैं इतनी अव्यवस्थित नहीं रह सकती। मैं आस्था पर दोनों भाइयों के अन्य विचार भी सुनना चाहती थी। तो मैंने उनसे प्रकाशितवाक्य 22:18 के बारे में पूछा : "मैं हर एक को, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें सुनता है, गवाही देता हूँ : यदि कोई मनुष्य इन बातों में कुछ बढ़ाए तो परमेश्वर उन विपत्तियों को, जो इस पुस्तक में लिखी हैं, उस पर बढ़ाएगा।" उन्होंने कहा कि परमेश्वर ने आकर नए वचन बोले हैं, नए कार्य किये हैं, फिर इस पद को कैसे समझा जाये? भाई वांग ने कहा, "उस पद में 'बढ़ाने' का मतलब प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी में कुछ बढ़ाना नहीं है, ऐसा नहीं है कि अंत के दिनों में परमेश्वर लौटकर नए वचन नहीं बोलेगा। अगर हम ये मानें कि अंत के दिनों में परमेश्वर नहीं लौटेगा, नए वचन नहीं बोलेगा, तो प्रभु की इस बात पर सोचें, 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। ये भविष्यवाणी कैसे पूरी होगी? प्रकाशितवाक्य में सात बार कहा गया है, 'जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है' (प्रकाशितवाक्य अध्याय 2, 3)। इसे कैसे समझाएंगे? आप अंत के दिनों में कलीसियाओं से कहे पवित्र आत्मा के वचनों, उसके द्वारा व्यक्त किये सत्य को ठुकराकर उसकी निंदा नहीं कर रहीं? हम सब जानते हैं परमेश्वर जीवन का स्रोत है, जीवन के सजीव जल का निरंतर बहता झरना है। तो परमेश्वर के कार्य और वचनों को बाइबल तक सीमित करना, ये कहना होगा कि परमेश्वर सिर्फ वही कहेगा जो बाइबल में दर्ज है, वही करेगा जो पहले किया था। क्या ये परमेश्वर का अपमान कर, उसे सीमांकित करना नहीं है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन बोले हैं, वह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय कार्य कर रहा है। यह प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है, 'जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:48)। 1 पतरस में भी कहा गया है, 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)। अंत के दिनों में परमेश्वर के सत्य और उसके वचनों के न्याय को स्वीकार करके ही हम अपने पाप की जड़ को समझ सकते हैं, भ्रष्टता की बेड़ियों से मुक्त होकर पाप और परमेश्वर का विरोध करना छोड़ सकते हैं। तभी हम उसका आज्ञापालन और उसकी आराधना कर पाएंगे, अंत में वह हमें अपने राज्य में ले जाएगा और हम सुंदर मंज़िल पाएंगे।" यह सुनकर एहसास हुआ, अंत के दिनों में प्रभु के नए वचन बोलने और नए कार्य करने की भविष्यवाणी सचमुच बाइबल में है। पहले, मुझे लगता था मैं बाइबल को बहुत अच्छे से जानती हूँ, पर देखा मैं इसकी अंदरूनी कहानी बिल्कुल नहीं समझती थी, बाइबल के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाना नहीं आता था।
उसके बाद दोनों भाइयों ने बाइबल के प्रति सही सोच को लेकर और भी बहुत सी सहभागिता साझा की। मेरे मन में कोई संदेह नहीं रहा। पर मैं इस बात से बहुत परेशान भी थी। पता नहीं इतने बरसों की आस्था के बाद भी मैं इतनी गुमराह क्यों थी। मैंने हमेशा सोचा परमेश्वर में आस्था बाइबल में आस्था है, इससे अलग कुछ भी परमेश्वर में आस्था नहीं है। मैं सोचती थी परमेश्वर के कार्य और वचन बाइबल तक सीमित हैं, मैंने बाइबल को परमेश्वर से भी बड़ा माना। परमेश्वर के नया कार्य करने और नए वचन बोलने का दावा करने वालों का विरोध किया और निंदा की, मुझमें खोजने की इच्छा नहीं थी। मैं बस अपनी धारणाओं पर मजबूती से अड़ी रही, भाई-बहनों को यही बातें बताकर उन्हें भी गुमराह किया। मुझे लगा इतने बरसों का मेरा प्रचार कलीसिया के लोगों को धोखा देने, नुकसान पहुँचाने का तरीका था। फिर मैंने जाना कि मैं तो बस एक अज्ञानी, मूर्ख प्रचारक थी। पहले मैं बहुत से प्रचारकों के संपर्क में थी, उनके साथ बाइबल पर चर्चा करती थी, पर उन दोनों भाइयों की सहभागिता सबसे स्पष्ट थी। मैं ऐसी अहंकारी हूँ जो आसानी से नहीं मानती, पर इस बार, मुझे कोई संदेह नहीं!
मैं बेसब्र हो रही थी कि वे मुझे सब कुछ समझाएं, मेरी सारी उलझन दूर करें। मैंने कहा, "मैं आपकी सहभागिता समझती हूँ, पर एक अहम सवाल अब भी मेरे मन में है। आपने कहा प्रभु एक स्त्री की देह में लौटा है, मैं ये बात स्वीकार नहीं सकती। प्रभु यीशु आदमी था, उसे आदमी बनकर ही लौटना चाहिए!" भाई वांग ने कहा, "परमेश्वर एक आत्मा है, आत्मा जिसका कोई शरीर या लिंग नहीं होता है। वो सिर्फ अपने कार्य की ज़रूरत के कारण देह में कार्य करने आया है, यही वजह है कि उसने लिंग धारण किया। वो चाहे पुरुष हो या स्त्री, वो परमेश्वर का कार्य कर सकता है। अनुग्रह के युग में, देहधारी परमेश्वर को क्रूस पर चढ़ाया गया, वो इंसान की पाप बलि बना। प्रभु यीशु एक पुरुष था, वो क्रूस पर चढ़कर इंसान को छुटकारा दे सकता था। अगर प्रभु यीशु स्त्री बनकर आता, उसे भी इसी तरह क्रूस पर चढ़ाया जाता। देह में अपना कार्य पूरा करके, परमेश्वर आध्यात्मिक रूप धारण करेगा, फिर वो न पुरुष होगा, न स्त्री। बाइबल कहती है, 'तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की' (उत्पत्ति 1:27)। बाइबल का ये पद हमें बताता है कि परमेश्वर ने अपनी छवि में पुरुष और स्त्री को बनाया। पुरुष रूप में देहधारण परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता है, तो क्या स्त्री रूप में देहधारण ऐसा नहीं कर सकता? पुरुष हो या स्त्री, ये परमेश्वर के आत्मा का देह को धारण करना है, दोनों ही मामलों में, परमेश्वर अपना कार्य कर रहा है। हमें ये सच पहले नहीं पता था, पुरुष के रूप में परमेश्वर के पहले देहधारण से ही, लोगों ने उसे सीमा में बांध दिया, ये सोचकर कि देहधारी परमेश्वर केवल पुरुष होगा, स्त्री नहीं।" फिर भाई वांग ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन सुनाये। "परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के प्रत्येक चरण के अपने व्यवहारिक मायने हैं। जब यीशु का आगमन हुआ, तो वह पुरुष रूप में आया, लेकिन इस बार के आगमन में परमेश्वर, स्त्री रूप में आता है। इससे तुम देख सकते हो कि परमेश्वर द्वारा पुरुष और स्त्री, दोनों का ही सृजन उसके काम के लिए उपयोगी हो सकता है, वह कोई लिंग-भेद नहीं करता। जब उसका आत्मा आता है, तो वह इच्छानुसार किसी भी देह को धारण कर सकता है और वही देह उसका प्रतिनिधित्व करता है; चाहे पुरुष हो या स्त्री, दोनों ही परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, यदि यह उसका देहधारी शरीर है। यदि यीशु स्त्री के रूप में आ जाता, यानी अगर पवित्र आत्मा ने लड़के के बजाय लड़की के रूप में गर्भधारण किया होता, तब भी कार्य का वह चरण उसी तरह से पूरा किया गया होता। और यदि ऐसा होता, तो कार्य का वर्तमान चरण पुरुष के द्वारा पूरा किया जाता और कार्य उसी तरह से पूरा किया जाता। प्रत्येक चरण में किए गए कार्य का अपना महत्व है; कार्य का कोई भी चरण दोहराया नहीं जाता है या एक-दूसरे का विरोध नहीं करता है। उस समय जब यीशु कार्य कर रहा था, तो उसे इकलौता पुत्र कहा गया, और 'पुत्र' का अर्थ है पुरुष लिंग। तो फिर इस चरण में इकलौते पुत्र का उल्लेख क्यों नहीं किया जाता है? क्योंकि कार्य की आवश्यकताओं ने लिंग में बदलाव को आवश्यक बना दिया जो यीशु के लिंग से भिन्न हो। परमेश्वर लिंग के बारे में कोई भेदभाव नहीं करता। वह अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करता है, और अपने कार्य को करते समय उस पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होता, वह स्वतंत्र होता है, परन्तु कार्य के प्रत्येक चरण के अपने ही व्यवहारिक मायने होते हैं। परमेश्वर ने दो बार देहधारण किया, और यह स्वत: प्रमाणित है कि अंत के दिनों में उसका देहधारण अंतिम है। वह अपने सभी कर्मों को प्रकट करने के लिए आया है। यदि इस चरण में वह व्यक्तिगत रूप से कार्य करने के लिए देहधारण नहीं करता जिसे मनुष्य देख सके, तो मनुष्य हमेशा के लिए यही धारणा बनाए रखता कि परमेश्वर सिर्फ पुरुष है, स्त्री नहीं।" "यदि कार्य का यह चरण अंत के युग में न किया गया होता, तो जब परमेश्वर की बात आती तो समस्त मानवजाति एक काली परछाईं में ढकी होती। यदि ऐसा होता, तो पुरुष अपने आपको स्त्री से श्रेष्ठ समझता, और स्त्रियाँ कभी अपना सिर ऊँचा नहीं उठा पातीं, और तब एक भी स्त्री को बचाना संभव न होता। लोग हमेशा यही मानते हैं कि परमेश्वर पुरुष है, वह हमेशा से स्त्री से घृणा करता रहा है और कभी उसका उद्धार नहीं करेगा। यदि ऐसा होता, तो क्या यह सच नहीं है कि यहोवा द्वारा रची गयी सभी स्त्रियाँ, जो भ्रष्ट भी की जा चुकी हैं, उन्हें कभी भी बचाए जाने का अवसर न मिलता? तो क्या यहोवा के लिए स्त्री यानी हव्वा की रचना करना व्यर्थ नहीं हो गया होता? और क्या स्त्री अनंतकाल के लिए नष्ट नहीं हो जाती? इसलिए, अंत के दिनों में कार्य का यह चरण समस्त मानवजाति को बचाने के लिए किया जाता है, न कि सिर्फ स्त्री को। यदि कोई यह सोचता है कि अगर परमेश्वर ने स्त्री के रूप में देहधारण किया, और वह मात्र स्त्रियों को बचाने के लिये होगा, तो वह व्यक्ति सचमुच बेवकूफ़ है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)। फिर उन्होंने कहा, "परमेश्वर के पुरुष या स्त्री बनकर देहधारण करने के पीछे भी अर्थ छिपा है, इसमें सत्य है जिसे हमें खोजना चाहिए। अगर परमेश्वर दोनों बार पुरुष के रूप में देहधारण करता, तो लोग सोचते परमेश्वर केवल पुरुष होगा, स्त्री नहीं। क्या ये परमेश्वर को सीमांकित करना नहीं होगा? अंत के दिनों में स्त्री के रूप में परमेश्वर का देहधारण हमें बताता है कि वो चाहे पुरुष बने या स्त्री, उसका सार कभी नहीं बदलता—वो स्वयं परमेश्वर है, वो हमेशा सत्य व्यक्त करेगा, परमेश्वर का कार्य करेगा। इससे हमें परमेश्वर की और सटीक समझ मिलती है। परमेश्वर के देहधारण से हम ये भी जान पाते हैं कि वो केवल पुरुषों का नहीं, महिलाओं का भी परमेश्वर है। अंत के दिनों में अगर वह फिर से पुरुष रूप में आता, तो हमेशा स्त्री के ख़िलाफ़ पक्षपात होता, लोग सोचते कि परमेश्वर स्त्रियों से नफ़रत करता है, उन्हें बचाया नहीं जा सकता। क्या ये गलतफहमी नहीं होती? अंत के दिनों में स्त्री के रूप में परमेश्वर का देहधारण लोगों की धारणाओं के अनुरूप नहीं है, पर ये सार्थक है, लोगों के उद्धार और परमेश्वर के बारे में समझ के लिए फायदेमंद है। इसमें परमेश्वर का प्रेम है।"
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन से मेरी धारणाएं उजागर हो गईं। मैं बस ऊपरी मन से मानती थी कि परमेश्वर ने पुरुष और स्त्री दोनों को बनाया। आखिर मुझे ऐसा क्यों लगा कि वो स्त्री का रूप नहीं ले सकता। मैं इतनी अज्ञानी कैसे थी? फिर भाई वांग ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन सुनाये। "परमेश्वर केवल पवित्र आत्मा, पवित्रात्मा, सात गुना तीव्र पवित्रात्मा या सर्व-व्यापी पवित्रात्मा ही नहीं है, बल्कि एक मनुष्य भी है—एक साधारण मनुष्य, एक अत्यधिक सामान्य मनुष्य। वह नर ही नहीं, नारी भी है। वे इस बात में एक-समान हैं कि वे दोनों ही मनुष्यों से जन्मे हैं, और इस बात में असमान हैं कि एक पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया और दूसरा मनुष्य से जन्मा किंतु सीधे पवित्रात्मा से उत्पन्न है। वे इस बात में एक-समान हैं कि परमेश्वर द्वारा धारित दोनों देह परमपिता परमेश्वर का कार्य करते हैं, और असमान इस बात में हैं कि एक ने छुटकारे का कार्य किया, जबकि दूसरा विजय का कार्य करता है। दोनों परमपिता परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन एक प्रेममय-करुणा और दयालुता से भरा मुक्तिदाता है और दूसरा कोप और न्याय से भरा धार्मिकता का परमेश्वर है। एक सर्वोच्च सेनापति है जिसने छुटकारे का कार्य आरंभ किया, जबकि दूसरा धार्मिक परमेश्वर है जो विजय का कार्य संपन्न करता है। एक आरंभ है, दूसरा अंत। एक निष्पाप देह है, दूसरा वह देह जो छुटकारे को पूरा करता है, कार्य जारी रखता है और कभी भी पापी नहीं है। दोनों एक ही पवित्रात्मा हैं, लेकिन वे भिन्न-भिन्न देहों में वास करते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों पर पैदा हुए थे और उनके बीच कई हजार वर्षों का अंतर है। फिर भी उनका संपूर्ण कार्य एक-दूसरे का पूरक है, कभी परस्पर-विरोधी नहीं है, और एक-दूसरे के तुल्य है। दोनों ही मनुष्य हैं, लेकिन एक बालक था और दूसरी बालिका। इन तमाम वर्षों में लोगों ने न सिर्फ पवित्रात्मा को और न सिर्फ एक मनुष्य, एक नर को देखा है, बल्कि कई ऐसी चीजें भी देखी हैं, जो मानव-धारणाओं से मेल नहीं खातीं; इसलिए मनुष्य मुझे कभी पूरी तरह नहीं समझ पाते। वे मुझ पर आधा विश्वास और आधा संदेह करते रहते हैं—मानो मेरा अस्तित्व भी हो, लेकिन मैं एक मायावी सपना भी हूँ—यही कारण है कि आज तक भी लोग नहीं जानते कि परमेश्वर क्या है। क्या तुम वास्तव में मुझे एक सरल वाक्य में समेट सकते हो? क्या तुम सचमुच यह कहने का साहस करते हो, 'यीशु और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर है, और परमेश्वर और कोई नहीं बल्कि यीशु है'? क्या तुम सचमुच इतने निर्भीक हो कि यह कह सको, 'परमेश्वर और कोई नहीं बल्कि पवित्रात्मा है, और पवित्रात्मा और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर है'? क्या तुम सहजता से कह सकते हो, 'परमेश्वर केवल देहधारी मनुष्य है'? क्या तुममें सचमुच दृढ़तापूर्वक यह कहने का साहस है, 'यीशु की छवि परमेश्वर की महान छवि है'? क्या तुम अपनी वाक्पटुता का उपयोग करके परमेश्वर के स्वभाव और छवि को पूर्ण रूप से समझाने में सक्षम हो? क्या तुम वास्तव में यह कहने की हिम्मत करते हो, 'परमेश्वर ने अपनी छवि के अनुरूप सिर्फ नरों की रचना की, नारियों की नहीं'? अगर तुम ऐसा कहते हो, तो फिर मेरे चुने हुए लोगों के बीच कोई नारी नहीं होगी, नारियाँ मानवजाति का एक वर्ग तो बिलकुल भी नहीं होंगी। क्या अब तुम वास्तव में जानते हो कि परमेश्वर क्या है? क्या परमेश्वर मनुष्य है? क्या परमेश्वर पवित्रात्मा है? क्या परमेश्वर वास्तव में नर है? क्या जो कार्य मुझे करना है, वह केवल यीशु ही पूरा कर सकता है? अगर तुम मेरा सार प्रस्तुत करने के लिए उपर्युक्त में से केवल एक को ही चुनते हो, तो फिर तुम एक अत्यंत अज्ञानी निष्ठावान विश्वासी हो। अगर मैं एक बार, और केवल एक बार, देहधारी के रूप में कार्य करता, तो क्या तुम लोग मेरा सीमांकन करते? क्या तुम सचमुच एक झलक में मुझे पूरी तरह समझ सकते हो? क्या तुम वास्तव में मुझे अपने जीवनकाल के दौरान अनुभव की गई चीजों के आधार पर पूरी तरह से समेट सकते हो? अगर मैं अपने दोनों देहधारणों में एक-जैसा कार्य करता, तो तुम मुझे किस तरह देखते? क्या तुम मुझे हमेशा के लिए सलीब पर कीलों से जड़ा छोड़ दोगे? क्या परमेश्वर उतना सरल हो सकता है, जितना तुम दावा करते हो?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?)। इन वचनों को सुनते ही मेरा दिल भर आया। मैंने हमेशा कहती थी परमेश्वर आत्मा है, सभी चीज़ों में रहता है, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान है, फिर मैं उसे सीमित कैसे कर सकती थी? उसने पहली बार पुरुष के रूप में देहधारण किया, तो क्या इस बार स्त्री के रूप में आना बिल्कुल सामान्य नहीं है? पुरुष के रूप में देहधारण हो या स्त्री रूप में, वो परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है—सत्य व्यक्त कर इंसान को बचा सकता है। ये बात कितनी सरल है, फिर मैंने इसे कोई बड़ा रहस्य क्यों माना? इस बारे में जितना सोचा उतना ही खुद को गलत पाया। मैं परमेश्वर को नहीं जानती थी, पर हमेशा उसे सीमाओं और दायरों में बांधती थी। कितनी विवेकहीन बात है।
फिर भाई शी ने सहभागिता की, "परमेश्वर ने देहधारण किया है या नहीं, ये तय करने के लिए ये जानना ज़रूरी है कि क्या उसके पास दिव्य सार है, क्या वो सत्य व्यक्त कर सकता है, लिंग या बाहरी स्वरूप इसका आधार नहीं हो सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, 'जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है' ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। जो सत्य व्यक्त करता है, मार्ग दिखाता है, जीवन देता है, वही देहधारी परमेश्वर है। जब प्रभु यीशु देह में कार्य करने आया, वो साधारण इंसान जैसा दिखता था—वो एक बढ़ई का बेटा था। इसी वजह से बहुत से लोग नहीं मान पाये कि वो परमेश्वर था। फिर इतने सारे लोगों ने प्रभु यीशु का अनुसरण क्यों किया? क्योंकि उसके कार्य और वचन किसी इंसान के नहीं हो सकते थे। वो सत्य व्यक्त कर सकता था, पश्चाताप का मार्ग दे सकता था। वो इंसान के लिए प्रेम, दया और छुटकारा था। किसी इंसान में ऐसी चीज़ें नहीं थीं, कोई ये नहीं कर सकता था। इसलिए, प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर था। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर आया है, वो भी देखने में एक साधारण इंसान लगता है, पर उसने बहुत से सत्य व्यक्त किये और अंत के दिनों का न्याय कार्य कर रहा है। वो पहले ही इंसान को जीतकर विजेताओं का समूह बना चुका है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने ऐसा महान कार्य करके पूरी दुनिया को हैरान किया है, वो इंसान को परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव दिखा रहा है, हमें अनंत जीवन का मार्ग दे रहा है। ऐसे काम कोई इंसान नहीं कर सकता। अगर हम परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को न देखकर केवल उसके स्त्री रूप में देहधारण पर विचार करें, तो ये बेहद मूर्खता होगी, ये वही गलती है जो परमेश्वर का विरोध करके फरीसियों ने की थी।"
मैंने सोचा कैसे कई कलीसियाएं बरसों से झूठे मसीहों से बचने की बातें कर रही थीं, पर कोई ये नहीं समझा पाया कि किसी के देहधारी परमेश्वर होने की पहचान कैसे करें। केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य के इस पहलू को समझाया। मैं पूरी तरह आश्वस्त हो गई। खुद को दोषी भी महसूस किया। मैं इतने बरसों से विश्वासी रही, इतना अधिक बाइबल पढ़ा, पर ये भी नहीं जान पाई कि प्रभु को कैसे पहचानें। धर्मनिरपेक्ष इंसान की तरह बाहरी स्वरूप से भीतर का अंदाज़ा लगा रही थी, मानती थी कि देहधारी परमेश्वर स्त्री नहीं हो सकता। अनुग्रह के युग में पैदा हुई होती तो मैंने भी फ़रीसियों की तरह प्रभु यीशु की निंदा की होती। उसके बाद हमने बहुत सी बातों पर सहभागिता की, जैसे परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्य, उसके कार्य के तीन चरण, वो इंसान को शुद्ध करके बचाने के लिए अंत के दिनों में अपना न्याय कार्य कैसे करता है वगैरह। मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, वो लौटकर आया प्रभु यीशु है। परमेश्वर के सिवा कोई सत्य के इन रहस्यों को नहीं खोल सकता। कोई लोगों को स्वच्छ करके बचा नहीं सकता, कोई भी उनका परिणाम और मंज़िल तय नहीं कर सकता। इससे सचमुच मेरी आँखें खुल गईं। तभी चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकारने के बाद वे भाई-बहन वापस नहीं आये। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में उन्हें सत्य मिल गया, उन्होंने परमेश्वर की वाणी सुनी। प्रभु की वापसी का स्वागत किया। परमेश्वर के पदचिह्न पाने और मेमने के विवाह भोज में शामिल होने के बाद कौन वापस आना चाहेगा? ये तो बेवकूफी होगी। इतने बरस बीत गये। अगर मैंने पहले इसकी छानबीन की होती, चमकती पूर्वी बिजली की बात सुनी होती, तो पहले ही पीड़ा से मुक्त होकर, जीवन के सजीव जल का आनंद ले पाती। मैं बेहद अंधी और मूर्ख थी, बिना सोचे-समझे याजक-वर्ग की बेकार बातें सुनती रही। मैं बहुत अहंकारी थी, अड़ियल बनकर बाइबल से चिपकी रही, अपनी गलत धारणाएं भाई-बहनों पर थोपती रही, परमेश्वर के नए कार्य को ठुकराने, उसकी निंदा करने पर मजबूर किया। दूसरों को प्रभु की वापसी का स्वागत करने रोकती रही। इससे मुझे याद आया फ़रीसियों को फटकारते हुए प्रभु यीशु ने कहा था : "तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। मैं बिल्कुल फरीसियों जैसा काम कर रही थी, स्वर्ग के राज्य का द्वार बंद करके उसमें न खुद गई, न दूसरों को जाने दिया। मैंने भाई-बहनों का नुकसान किया, ये बहुत बड़ी दुष्टता थी।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ख़िलाफ़ किये सभी भयानक कर्मों के बारे में सोचकर मुझे खुद से बहुत घृणा हो गई, मैं सीधा रसोई की ओर भागी और फूट-फूट कर रोने लगी। फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। "चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के सभी वचनों और कार्यों में विश्वास रखना चाहिए। अर्थात्, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें उसका आज्ञापालन करना चाहिए। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाते हो, तो यह मायने नहीं रखता कि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो या नहीं। यदि तुमने वर्षों परमेश्वर में विश्वास रखा है, फिर भी न तो कभी उसका आज्ञापालन किया है, न ही उसके वचनों की समग्रता को स्वीकार किया है, बल्कि तुमने परमेश्वर को अपने आगे समर्पण करने और तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सबसे अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और गैर-विश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के कार्य और वचनों का पालन कैसे कर सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं है? सबसे अधिक विद्रोही वे लोग होते हैं जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना और उसका विरोध करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु और मसीह विरोधी हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। ऐसे लोग दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो 'खज़ाना' होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में इस तरह के कुछ ऐसे लोग हैं। ये कहा जा सकता है कि वे 'अदम्य नायक' हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने 'पवित्र और अलंघनीय' कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में 'राजा' बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ? यहाँ तक कि आधा-अधूरा आज्ञापालन करने वाले लोग भी अंत तक नहीं चल सकते, फिर इन आततायियों की तो बात ही क्या है जिनके हृदय में थोड़ी-सी भी आज्ञाकारिता नहीं है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे)। परमेश्वर के कठोर वचन मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभ गए। लगा जैसे हर एक वचन मेरा न्याय कर रहा हो। इतने बरसों में, मुझे लगता था कलीसिया में मेरी ही आस्था सबसे अधिक है, मैं सबसे समर्पित विश्वासी हूँ। मैंने अपने त्यागों को अपनी निजी पूँजी मान लिया, मानो कलीसिया में मुझे राजा का अधिकार हो। हर छोटी-बड़ी बात पर मेरा फैसला आखिरी होता। भाई-बहन प्रभु में विश्वास करते और बाइबल पढ़ते, पर वे मेरी बात ही सुनते थे। प्रभु का स्वागत करने से जुड़ी धारणाओं को लेकर मैं बहुत अड़ियल थी, इसकी छानबीन करने से रोकने के लिए मैंने भाई-बहनों को धमकाया। मैंने कलीसिया को सील कर दिया। कलीसिया के सदस्य चमकती पूर्वी बिजली के लोगों का स्वागत करने से डरते थे, उनकी बात नहीं सुन सकते थे। कुछ लोगों को उनकी बात पसंद आई, पर इस डर से उनकी पूरी बात नहीं सुनी कि मैं उन्हें निकाल दूँगी। मैंने देखा मैं एक दुष्ट सेवक थी जो लोगों को प्रभु का स्वागत करने से रोक रही थी। मैं आधुनिक युग की फ़रीसी थी! मैंने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया, तो उसने मुझे अनुशासित किया, मैं बीमार पड़ गई। फिर भी पीछे नहीं मुड़ी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की छानबीन करने का प्रयास करने के बजाय अपनी ही धारणाओं पर अड़ी रही, मानो वे ही सत्य हों। मैं कितनी अहंकारी थी! मैंने कलीसिया में सभी को मेरी बात सुनने, मेरे विचारों को सत्य मानने पर मजबूर किया। मैं परमेश्वर की जगह लेना चाहती थी। क्या ये मसीह-विरोधी होना, महादूत होना नहीं है? इतने बरसों तक विश्वासी होने के बाद भी, मैंने परमेश्वर को नहीं जाना, उसके ख़िलाफ़ लड़ती रही। फिर भी सीधे दंड देने के बजाय, उसने मुझे सेहत की समस्या देकर बुराई के मार्ग पर जाने से रोका, उसके बाद दोनों भाइयों को मेरे साथ सुसमाचार साझा करने भेजा। मैं सचमुच परमेश्वर की दया और उद्धार के लायक नहीं थी। ये एहसास होने पर मैंने परमेश्वर का आभार माना, खुद को उसका ऋणी पाया। परमेश्वर के सामने दंडवत होकर रोने लगी, प्रार्थना करने लगी, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मेरे कर्म वाकई तुम्हारे दंड, तुम्हारे शाप के लायक हैं। मैं इस दुनिया में जीने लायक नहीं। अपनी वाणी सुनाकर तुमने मुझे बचाया, मुझ पर कृपा की। परमेश्वर, मैंने बहुत से बुरे कर्म किये, मैं तुम्हारी दया मांगने के काबिल नहीं। मैं बस तुमसे अपने पापों का प्रायश्चित करने, अपराधों के दाग धोने का एक मौका पाना चाहती हूँ। मैं सुसमाचार साझा करके, तुम्हारी खोई हुई भेड़ों को तुम्हारे घर वापस लाने और तुम्हारा उद्धार पाने में मदद करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हूँ।"
कुछ दिन, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को एक भूखे इंसान की तरह खाया, बहुत से सत्य सीखे जो पहले नहीं जानती थी, जैसे देहधारण क्या है, परमेश्वर में आस्था क्या है, परमेश्वर की सच्ची सेवा का अर्थ क्या है, स्वभावगत बदलाव के बारे में भी जाना, और जाना कि परमेश्वर से प्रेम कर उसे कैसे संतुष्ट करें, आदि। फिर लगा मैंने परमेश्वर के वचनों के सिंचन और पोषण से बहुत कुछ हासिल किया है। मैं सचमुच मेमने के विवाह भोज में हिस्सा ले रही थी। मुझे यकीन हो गया यही परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है, वो मार्ग जो वह हमें खुद दिखा रहा है। मेरी सेहत की समस्या भी गायब हो गई, कोई निशान तक न रहा। भाई-बहनों के साथ काम करके, मैं अपने नौ मुख्य सहकर्मियों और 30 से अधिक टीम अगुआओं को परमेश्वर के सामने ला पायी। फिर सुसमाचार साझा करने और अपना कर्तव्य निभाने लगी, ताकि और भी सच्चे विश्वासी अंत के दिनों के परमेश्वर का उद्धार पा सकें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!
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