वे चौदह दिन मैं कभी नहीं भूलूंगी

21 अप्रैल, 2023

2020 में, मैं कलीसिया में लेखन कार्य करती थी। 10 नवंबर को सुबह 9 बजे, मुझे और बहन सू जिन को अचानक बड़े अगुआ का एक पत्र मिला जिसमें लिखा था कि उस रात करीब दो बजे मशीनगनों से लैस दो हजार पुलिसवालों ने पूरे प्रांत मुख्यालय में गिरफ्तारी अभियान चलाया। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ हमारी कलीसिया के कुछ भाई-बहनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। हमसे केवल 300 मीटर की दूरी पर तीन मेजबान घरों के भाई-बहन भी गिरफ्तार कर लिए गए, जिनमें से एक घर वह भी था जहाँ मैं कुछ महीने पहले रहती थी। पत्र पढ़ते ही, मेरी सांस और दिल की धड़कनें तेज हो गईं—अगर हमने वह जगह छोड़ी न होती, तो मुझे भी गिरफ्तार कर लिया जाता। गिरफ्तार लोगों की सूची देखी तो पता चला कि मैं उनमें से बहुतों के निकट संपर्क में थी। हर जगह निगरानी कैमरे लगे थे, अगर पुलिस ने फुटेज देख ली, तो मैं तो उनके आसान निशाने पर थी! मुझे लगा कि मैं भयंकर खतरे में हूँ और किसी भी पल मुझे गिरफ्तार किया जा सकता है, मैं मन ही मन परमेश्वर को पुकारती रही : “हे परमेश्वर! मेरी रक्षा कर और मेरे मन में विश्वास बनाए रख ताकि मैं इस मुश्किल घड़ी में अपने कर्तव्य पर अडिग रह सकूं।” प्रार्थना के बाद, मन को थोड़ी शांति मिली। मुझे याद आया कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और अपने को मेरे द्वारा दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर सभी चीजों पर शासन करता है और वही मेरी ढाल है। जब तक परमेश्वर न चाहे, शैतान मुझे कोई हानि नहीं पहुँचा सकता। इसका एहसास होते ही मैं विश्वास और शक्ति से भर गई और मेरा डर जाता रहा। उसके बाद, मैं और सू जिन तुरंत कुछ दूर चले गए लेकिन अपना कर्तव्य निभाते रहे।

उस समय, कई भाई-बहन प्रांत मुख्यालय में काम कर रहे थे और गिरफ्तारियों के बाद उनसे हमारा संपर्क टूट गया था। अगुआ ने कहा कि हम स्थानीय सदस्यों से संपर्क करें और जो गिरफ्तार नहीं हुए हैं उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाएँ। इसलिए, मैंने स्थानीय भाई-बहनों को उस इलाके के परिचित आठ मेजबान घरों के पते दिए और उनसे संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन पांच दिन बाद भी हमें गिने-चुने ही जवाब मिले। हमारे लिए एक गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई थी। मैंने सोचा : “अकेली मैं ही हूँ जो इन मेजबान घरों से परिचित है। सू जिन स्थानीय न होने से इस इलाके को अच्छे से नहीं जानती। क्या मैं उसे बता दूँ कि मैं खुद जाकर जाँच-पड़ताल कर सकती हूँ?” लेकिन फिर मुझे फौरन ख्याल आया कि है। प्रांत मुख्यालय जाना इस समय खतरे से खाली नहीं हर जगह पुलिस की निगाहें थीं और चेहरे पहचानने के लिए पावरफुल कैमरे लगे थे। पुलिसवाले पहले भी मेरी आस्था को लेकर पूछताछ करने मेरे घर आ चुके थे। इसके अलावा, गिरफ्तार लोगों में से कई मेरे परिचित थे। उनमें से एक बहन के साथ तो मैं तीन साल काम कर चुकी थी। अगर जाँच-पड़ताल के दौरान उन्हें मेरी मौजूदगी का पता चल गया, तो क्या मेरी गिरफ्तारी नहीं हो जाएगी? अगर पुलिस की मार से मेरी जान चली गई या मैं यातना नहीं सह पाई और यहूदा बन गई, तो क्या बरसों की मेरी आस्था व्यर्थ नहीं हो जाएगी? किसी भी हालत में मेरा जाना ठीक नहीं, मुझे इंतजार करके देखना होगा। लेकिन इन विचारों से मेरे मन में ग्लानि हुई, मैंने मन ही मन प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! मुझे प्रांत मुख्यालय जाकर हालात का जायजा लेना चाहिए, लेकिन मुझे अपनी गिरफ्तारी का डर है। मेरा मार्गदर्शन करो ताकि खुद को बेहतर ढंग से समझ सकूँ।”

परमेश्वर के वचन पढ़कर, मुझे अपनी उस समय की स्थिति की थोड़ी समझ हासिल हुई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। उनका परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं होता, परमेश्वर के प्रति भक्ति-भाव तो बिलकुल भी नहीं होता; जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो वे केवल अपनी रक्षा और बचाव करते हैं। उनके लिए अपनी सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं होता। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि कलीसिया के कार्य को कितना नुकसान हुआ है—वे अब भी जीवित हैं और गिरफ्तार नहीं किए गए हैं, उनके लिए बस यही मायने रखता है। ये लोग बेहद स्वार्थी होते हैं, वे भाई-बहनों या कलीसिया के बारे में बिलकुल नहीं सोचते, वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। ... जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं, और निकलने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में, कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य निभाने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है, और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, व्यक्ति को कर्तव्य निभाने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन व्यक्ति को अपनी सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर की इच्छा पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, और वह पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसीदूसरे के साथ कुछ होता है, तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधी के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधी की प्रकृति और सार से निर्धारित होता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों का प्रकाशन पढ़कर, मुझे ग्लानि और शर्म महसूस हुई। मैंने जाना कि मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं—खतरनाक हालात में वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, उन्हें कलीसिया के नुकसान की फिक्र नहीं होती, फिर भाई-बहनों की जान की तो बात ही छोड़ दें। परमेश्वर के वचनों के अनुसार अपने व्यवहार की तुलना करने पर मैंने देखा कि मैं बिल्कुल मसीह-विरोधियों जैसी हूँ : मुझे अच्छी तरह पता था अगर गिरफ्तारी से बचे लोगों को फौरन कहीं और नहीं भेजा गया, तो उन्हें किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है। कलीसिया के काम को भी नुकसान होगा और रुकावट आएगी। चूँकि उन मेजबान घरों से अकेली मैं ही परिचित थी, इसलिए मेरा कर्तव्य था कि मैं इसका ध्यान रखूं। लेकिन उन अहम पलों में मैंने केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा। चूँकि मुझे अपनी गिरफ्तारी और यातना का डर था, मुझे कलीसिया के हितों और दूसरों की सुरक्षा की नहीं पड़ी थी। मैं बहुत ही स्वार्थी थी और मुझमें मानवता की कमी थी! फिर मैंने परमेश्वर के ये वचन देखे। “मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर सनक के आधार पर किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता’। जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि अगर हम सीसीपी की नास्तिक धरती पर ईश्वरीय कार्य करेंगे, तो हमें खतरों और मुश्किलों का सामना तो करना ही पड़ेगा। परमेश्वर चाहता है कि हम इन अग्नि-परीक्षाओं से गुजरें ताकि हमारे विश्वास की परीक्षा हो और हमारा प्रेम पूर्णता को प्राप्त हो। जो लोग सच में परमेश्वर में विश्वास रखकर उसकी इच्छा पर ध्यान देते हैं, वही लोग कलीसिया के कार्य पर खतरा मंडराने पर सीधे तौर पर चुनौतियों का सामना कर पाते हैं, अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए कलीसिया के कार्य की रक्षा करते हैं, परमेश्वर पर भरोसा करते हैं और परिणामों से निपटने के लिए अपने विवेक का उपयोग करते हैं। उस दिन मेरे सामने जो कर्तव्य था, वह परमेश्वर द्वारा मेरा इम्तहान था, वह देखना चाहता था कि क्या मुझमें उसके प्रति आस्था और निष्ठा है और कलीसिया के काम के लिए जिम्मेदारी का भाव है। केवल अपने हितों की सोचते हुए मुझे स्वार्थ और नीचता को छोड़ना था। क्योंकि ऐसा व्यवहार परमेश्वर को आहत और निराश करता है। परमेश्वर की इच्छा समझ लेने पर मेरा डर जाता रहा और मैं प्रांत मुख्यालय के हालात देखने और स्थिति संभालने के लिए तैयार हो गई।

यांग ली और मैं वहाँ जाकर उसके अविश्वासी रिश्तेदारों के यहाँ ठहर गए। मैं पहले मेजबान के घर गई, तो देखा दरवाजा बंद है, दीवार पर एक बैनर टंगा है जिसमें कलीसिया की निंदा और बदनामी की गई है। एक बुजुर्ग पड़ोसी ने बताया कि पुलिस ने कुछ दिन पहले सभी निवासियों को गिरफ्तार कर लिया। तो मैं फौरन दूसरे घर के लिए रवाना हुई, वहाँ भी दरवाजा बंद था और दीवार पर वही बैनर लगा हुआ था। मैं समझ गई कि वहाँ के घरवालों को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। मैं चलती रही, जब चौराहे पर पहुँची, तो वहाँ मैंने पुलिसवालों से भरी एक गाड़ी को सड़क के किनारे खड़े देखा, गाड़ी की बत्तियाँ चमचमा रही थीं। आसपास बहुत कम राहगीर थे। मुझे फिर थोड़ा डर लगा, मैं सोच रही थी : “मेरे अगुआ, ली जुआन को नजदीक के इलाके से ही गिरफ्तार किया गया था, मैं उस घर में करीब दो साल रही थी। तीन महीने पहले तक मेरा वहाँ रोज आना-जाना लगा रहता था। अगर पुलिस ने मुझे पहचान लिया, तो क्या मैं गिरफ्तार नहीं हो जाऊँगी?” मैं एकदम बेचैन हो गई और निरंतर परमेश्वर से हौसला माँगती रही। चूँकि मैं ठीक पुलिस की गाड़ी के पास थी, इसलिए घूमकर दूसरे रास्ते से नहीं जा सकती थी, तो मुझे बिना डरे चलते जाना था। जब मैं वहाँ से गुजर गई, तभी जाकर मुझे थोड़ा चैन मिला। मैंने चारों ओर देखा, और जब निश्चिंत हो गई कि कोई पीछा नहीं कर रहा, तो मैं अगले घर की ओर बढ़ी। पिछले दो घरों की तरह, यहाँ भी दरवाजा बंद था और वैसा ही अपमानजनक बैनर लगा था। लगा जैसे मेरे शरीर से सारी शक्ति निकल गई हो। मैंने देख लिया था कि तीन घरों के भाई-बहन गिरफ्तार कर लिए गए हैं, अब यह पता नहीं था कि बाकी घरों के भाई-बहनों के साथ क्या हुआ। लेकिन अपमानजनक बैनर हर गली और चौराहे की दीवारों पर टंगे थे, हर गली-नुक्कड़ पर गश्ती दल, पुलिस की गाड़ियाँ और सादी वर्दी में पुलिस तैनात थी और हर जगह निगरानी कैमरे लगे थे। अगर मैंने बाकी घरों का जायजा लिया तो क्या पुलिस की नजर मुझ पर पड़ेगी? लेकिन बाकी घरों में जाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, बड़े ही भारी मन से मैं यांग ली के रिश्तेदारों के घर वापस जा पाई, मेरी आँखें डबडबा रही थीं। बड़े दुखी मन से मैंने यांग ली से कहा : “उन तीनों घरों पर छापा मारा गया है। अब क्या करें?” उसने कहा : “अब बुद्धिमानी इसी में है कि परमेश्वर से प्रार्थना की जाए और उस पर भरोसा किया जाए।” हम दोनों ने बैठकर प्रार्थना की कि वह हमें हौसला दे जिससे कि हम इस तबाही से निपट सकें। रात के खाने के बाद हम चौथे घर में गए। बहन मेंग फान हमें देखकर चौंकी और फौरन हमें अंदर खींच लिया। उसने बताया कि उसके घर में जो तीन बहनें थीं, उन्हें उसने सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया है। 10 नवंबर की सुबह 5 बजे जब तीनों बहनें सो रही थीं, तो तीन पुलिसवाले घर की तलाशी लेने आए। उनके पास तीनों बहनों की आईडी की प्रतियां भी थीं और कहा कि वे ऑनलाइन धोखेबाज हैं। उन्होंने मेंग फान और उसके पति से पूछा कि क्या वे उन बहनों को पहचानते हैं, उसके पति ने कहा कि शायद वे ऊपर की तरफ सड़क के उस पार रहती हैं। उसके बाद ही पुलिस निकली। जब मेंग फान दरवाजा बंद करने गई, तो उसने देखा कि ऊपरी घरों की तरफ 60-70 पुलिसवालों का झुंड है। इस तरह तीनों गिरफ्तारी से बच गईं। जब मैंने सुना कि उन सभी को सुरक्षित जगह पहुँचा दिया गया है, तो मेरी आँखों से खुशी के आंसू छलक पड़े और मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया। जब मैंने देखा कि मेंग फान ने उस मुश्किल घड़ी में बहनों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास किया, जबकि मैं स्वार्थी और नीच बनकर केवल खुद को बचाती रही, तो मुझे बेहद शर्मिंदगी हुई। घर जाते वक्त मैंने विचार किया कि कैसे तीनों बहनें पुलिस का सामना करने से साफ बच निकली थीं और यह सब परमेश्वर के अधिकार और संप्रभुता के कारण संभव हुआ था। परमेश्वर ने उन पुलिसवालों को जैसे अंधा कर दिया था और वे उन तीन बहनों को गिरफ्तार नहीं कर पाए और वे सुरक्षित जगह पहुँच गईं। मैंने देखा कि सभी चीजें परमेश्वर के शासन के अधीन हैं। अगर परमेश्वर न चाहे, तो शैतान कितना भी शातिर क्यों न हो, वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मैं जितना सोचती, उतना ही एहसास होता कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान और बुद्धिमान है, मेरी आस्था और भी प्रबल होती जाती।

अगली सुबह, मैं दो और घरों में जाँच के लिए गई तो पता चला कि वहाँ के सभी भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया है, मैं फौरन अपने ठिकाने पर लौट आई। यांग ली ने बताया कि उसके रिश्तेदार और पड़ोसी पूछ रहे थे कि क्या हम विश्वासी हैं, मुझे हैरानी हुई। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले ही बड़ी तादाद में पुलिस प्रांत मुख्यालय आई और कई विश्वासियों को गिरफ्तार कर ले गई। वहाँ के लोग हम पर शक कर रहे थे। यह सुनकर लगा कि अब हमारा वहाँ रहना सुरक्षित नहीं है। मैंने पहाड़ी इलाके में अपने घर लौटने का फैसला कर लिया। प्रांत मुख्यालय में रहते हुए मुझे जो जानकारी मिली, वह मैंने सू जिन को दे दी। यह सुनकर उसने कहा : “अभी भी कुछ लोगों का पता नहीं चला पाया है। क्या वे भी गिरफ्तार हो चुके होंगे? हमें जाँच-पड़ताल के लिए वापस प्रांत मुख्यालय जाना चाहिए।” फिर से प्रांत मुख्यालय जाने की बात सुनकर मैंने हामी तो भर दी लेकिन अंदर ही अंदर, मैं वहाँ वापस जाने को तैयार नहीं थी। मैंने सोचा : “अगर तुम जाना चाहो, तो जरूर जाओ, लेकिन मैं बिल्कुल नहीं जाने वाली। एक बार जाना काफी था! अगर मैं दोबारा गई और पुलिस ने पहचान लिया तो क्या होगा? अगर मैं गिरफ्तार हो गई, तो मुझे यातना देकर बुरी तरह तोड़ा जाएगा!” लेकिन मुझे लगा मेरा ऐसा सोचना स्वार्थ और नीचता है। मुझे अच्छी तरह पता था कि बहन सू जिन स्थानीय न होने के कारण अकेली नहीं जा सकती थी। इतने खतरनाक काम के लिए मैं उसे अकेले भेजने जैसी मूर्खता कैसे कर सकती हूँ? जब मैं प्रांत मुख्यालय गई, तो मैंने परमेश्वर की बुद्धिमता और सर्वशक्तिमत्ता देखी और उसकी सुरक्षा का प्रत्यक्ष अनुभव किया। मैंने तो परमेश्वर के आगे भी कहा कि मैं इसके परिणाम से निपटने के लिए काम करूँगी। तो फिर अब मैं पीछे क्यों हट रही थी? बाद में, मैंने सोचा कि इसका क्या कारण हो सकता है। तब मुझे परमेश्वर के ये वचन मिले। “सभी भ्रष्ट लोग स्वयं के लिए जीते हैं। हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये—यह मानव प्रकृति का निचोड़ है। लोग अपनी ख़ातिर परमेश्वर पर विश्वास करते हैं; जब वे चीजें त्यागते हैं और परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते हैं, तो यह धन्य होने के लिए होता है, और जब वे परमेश्वर के प्रति वफादार रहते हैं, तो यह पुरस्कार पाने के लिए होता है। संक्षेप में, यह सब धन्य होने, पुरस्कार पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के उद्देश्य से किया जाता है। समाज में लोग अपने लाभ के लिए काम करते हैं, और परमेश्वर के घर में वे धन्य होने के लिए कोई कर्तव्य निभाते हैं। आशीष प्राप्त करने के लिए ही लोग सब-कुछ छोड़ते हैं दुःख का भी सामना कर सकते हैं : मनुष्य की शैतानी प्रकृति का इससे बेहतर प्रमाण नहीं है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ, मैं भले ही कलीसिया के काम की रक्षा करना चाहती थी, लेकिन जब खतरा सामने देखा तो अनजाने में ही अपने कर्तव्य से मुँह मोड़कर अपने हितों की रक्षा में पड़ गई। मैं “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये” जैसे जहरीले शैतानी विचारों से ग्रसित थी। मैं इन्हीं जहरीले शैतानी विचारों में जीते हुए बेहद स्वार्थी और नीच बन चुकी थी। मुझे केवल अपनी सुरक्षा की पड़ी थी, मुझे न तो कलीसिया के काम की और न ही भाई-बहनों की सुरक्षा की कोई चिंता थी। मुझे अच्छी तरह पता था कि हमें अभी भी कुछ घरों की जाँच-पड़ताल करनी है, हम यह नहीं जानते थे कि वहाँ के भाई-बहन कहीं गिरफ्तार तो नहीं हो गए हैं, लेकिन चूँकि मुझे अपनी गिरफ्तारी और यातना का डर था, मैं प्रांत मुख्यालय जाने को तैयार नहीं थी। मैंने परमेश्वर की इच्छा का कोई ख्याल नहीं किया। मुझे यह भी अच्छी तरह पता था कि सू जिन स्थानीय नहीं है और उस प्रांत मुख्यालय से पूरी तरह वाकिफ नहीं है, लेकिन अपनी हिफाजत की खातिर, मैंने सोचा उसे इस खतरनाक काम में धकेल दूँ और मैं खुद दूर बैठकर कायरों की तरह तमाशा देखूँ। मैं कितनी स्वार्थी और नीच थी! इस बात का एहसास होने पर मुझे खुद से घिन आने लगी और ऐसा घिनौना और नीच जीवन जीने की इच्छा नहीं रही।

दो अंशों का मुझ पर विशेष रूप से गहरा प्रभाव पड़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “संपूर्ण मानवजाति में कौन है जिसकी सर्वशक्तिमान की नज़रों में देखभाल नहीं की जाती? कौन सर्वशक्तिमान द्वारा तय प्रारब्ध के बीच नहीं रहता? क्या मनुष्य का जीवन और मृत्यु उसका अपना चुनाव है? क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है? बहुत से लोग मृत्यु की कामना करते हैं, फिर भी वह उनसे काफी दूर रहती है; बहुत से लोग जीवन में मज़बूत होना चाहते हैं और मृत्यु से डरते हैं, फिर भी उनकी जानकारी के बिना, उनकी मृत्यु का दिन निकट आ जाता है, उन्हें मृत्यु की खाई में डुबा देता है ...(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 11)। “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उनकी भर्त्सना की गई, पीटा गया, डाँटा-फटकारा गया और मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था और उन्हें इस संसार के लोगों ने ठुकरा दिया था—इस तरह वे शहीद हुए। ... वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का माध्यम चाहे जैसा रहा हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उनके जीवन को, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। ... परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; अंतर्मन की एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षण का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपने उत्तरदायित्व से हाथ पीछे नहीं खींचे। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे नैतिक कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। इन वचनों से मुझे एहसास हुआ कि इंसान की नियति परमेश्वर की मुट्ठी में है। हर इंसान का जीवन और मृत्यु वही पूर्वनियत और नियंत्रित करता है। प्रांत मुख्यालय में मेरी गिरफ्तारी और यातना सब-कुछ परमेश्वर पर निर्भर था। मुझे अनुग्रह के युग के उन प्रेरितों का ख्याल आया जिन्होंने प्रभु यीशु के लिए आत्म-बलिदान किया था : परमेश्वर-प्रेम के कारण उन्हें पत्थर मारकर, घोड़ों से घसीटकर और सूली पर उल्टा टाँगकर मार डाला गया। मौत सामने देखकर भी वे दुष्ट ताकतों के आगे झुके नहीं और अंत तक परमेश्वर की गवाही पर अडिग रहे। उन्होंने अपना बहुमूल्य जीवन, परमेश्वर को अर्पित कर दिया। जीवन के अंतिम पलों में भी वे परमेश्वर का नाम ही जपते रहे और दुष्ट मानवता के सामने परमेश्वर की गवाही दी। इस तरह अपने जीवन का लक्ष्य हासिल किया और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाया। परमेश्वर ने भी उनके इस सार्थक कर्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उस वक्त भाई-बहन खतरे में थे, और अगर उन महत्वपूर्ण पलों में, मैं अपने हितों की खातिर अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहती और इस कारण भाई-बहन गिरफ्तार हो जाते और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचता, तो परमेश्वर के सामने यह मेरा अपराध होता। एक विश्वासी के रूप में यह मुझ पर एक कलंक होता और जीवन भर मुझे इस बात का पछतावा रहता। मुझे अपनी हिफाजत की सोच छोड़कर फौरन यह पता लगाना था कि उन भाई-बहनों का क्या हुआ। इस प्रयास में अगर मैं गिरफ्तार भी हो गई, यातना देकर मार डाली गई, तो मेरी मृत्यु सार्थक होगी, परमेश्वर उसकी सराहना करेगा और याद रखेगा। यह सोचकर मेरा मन शांत और सहज हो गया।

उस समय, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला जिसका मुझ पर गहरा और प्रेरक प्रभाव पड़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “मुख्य भूमि चीन में परमेश्वर में विश्वास करने और उसका अनुसरण करने में हर दिन खतरा है। यह उसके लिए असाधारण रूप से कठोर वातावरण है, जिसमें किसी को भी कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। तुम सभी ने पीछा किए जाने के माहौल का अनुभव किया है—और क्या मैंने भी नहीं किया है? तुम और मैं एक ही माहौल में रहते थे, इसलिए तुम जानते हो कि उस माहौल में मुझे अक्सर खुद को छिपाना पड़ता था। कई बार मुझे दिन में दो-तीन बार स्थान बदलना पड़ता था; कई बार ऐसा भी होता था, जब मुझे किसी ऐसी जगह जाना पड़ता था, जहाँ जाने का मैंने सपना तक नहीं देखा था। सबसे कठिन समय वह था जब मेरे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं थी—मैं दिन में सभा आयोजित करता था, फिर रात में, मुझे पता नहीं रहता था कि सुरक्षा कहाँ है। कभी-कभी, कोई जगह खोजने के लिए कड़ा संघर्ष करने के बाद मुझे अगले ही दिन निकलना पड़ता था, क्योंकि बड़ा लाल अजगर बढ़ा चला आता था। ऐसा दृश्य देखकर सच्ची आस्था वाले लोग क्या सोचते हैं? ‘परमेश्वर का मनुष्य को बचाने के लिए देहधारी होकर पृथ्वी पर आना ही वह कीमत है, जो उसने चुकाई है। यह उन कष्टों में से एक है, जो उसने सहे हैं, और यह उसके इन वचनों को पूरी तरह से साकार करता है, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर धरने की भी जगह नहीं।” चीजें वास्तव में ऐसी ही हैं—और देहधारी मसीह व्यक्तिगत रूप से इस तरह के कष्ट झेलता है, वैसे ही जैसे मनुष्य झेलता है।’ जो लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे सभी देख सकते हैं कि मनुष्य को बचाने का उसका कार्य कितना कठिन है, और इसके लिए वे परमेश्वर से प्रेम करेंगे और उस कीमत के लिए उसका धन्यवाद करेंगे, जो वह मानवजाति के लिए चुकाता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग तीन))। मैं परमेश्वर के वचनों से बहुत प्रभावित हुई। परमेश्वर अपने ऊँचे आसन से उतरकर दीन मनुष्य बना है, उसने मानवजाति को बचाने का कार्य करने के लिए परमेश्वर-विरोधी देश चीन में देहधारण किया है। सीसीपी ने उसे पकड़ने के लिए जी-जान लगा दी, धार्मिक दुनिया ने निंदा करके उसे नकार दिया, लेकिन परमेश्वर ने कभी अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं की, वह निरंतर हमारे सिंचन और पोषण के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है, उसे उम्मीद है कि हम सत्य समझकर अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त होंगे और इंसान की तरह जिएँगे। जैसे ही मैंने मानवजाति के लिए परमेश्वर के निःस्वार्थ प्रेम और हमें बचाने के उसके गंभीर प्रयासों को समझा, तो मुझे बहुत शर्मिंदगी और ग्लानि महसूस हुई, विवेक और मानवताशून्य होने पर मुझे खुद से घृणा हो गई। मैंने बरसों परमेश्वर के वचनों का आनंद लिया है। लेकिन जब सक्रिय होकर कलीसिया के काम की रक्षा करने का समय आया, तो त्याग करने के बजाय मैंने अपने आपको बचाया। मैं परमेश्वर के उद्धार के योग्य नहीं थी, मुझमें लेशमात्र भी मानवता नहीं थी। मैं अब एक नीच और निरर्थक जीवन नहीं जीना चाहती थी, देह-सुख त्यागकर और सू जिन के साथ मिलकर बिगड़े हालात सुधारना चाहती थी।

हम 24 नवंबर की दोपहर को उस इलाके में पहुंचे। एक बहन की मदद से हमें पता चला कि उन तीन बहनों को छोड़कर बाकी सभी भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया था। यह सुनकर मैं बहुत बेचैन हो गई और रातभर बिस्तर पर करवटें बदलती रही। इतने सारे भाई-बहनों को गिरफ्तार करने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर लामबंदी की थी, बहुत-से भाई-बहनों को तो गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने घरों से भागना पड़ा था। सीसीपी वाकई दुष्ट है! यह बिल्कुल परमेश्वर के प्रकाशन जैसा था। “हजारों सालों से यह भूमि मलिन रही है। यह गंदी और दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हजारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीकी से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्कट इच्छा को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। इस अनुभव से, मैं अच्छी तरह जान गई कि सीसीपी का राक्षसी सार परमेश्वर-विरोधी है, उसे सत्य से घृणा है और वह दुष्ट प्रकृति की है। अपनी ताकत और अधिकार मजबूत करने के लिए सीसीपी पूजा की स्वतंत्रता का समर्थन करने का दावा करके लोगों को धोखा देती है जबकि सच्चाई यह है कि वह बेरहमी से ईसाइयों को गिरफ्तार कर उन पर अत्याचार करती है, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को पूरी तरह दबाने की कोशिश करती है। सीसीपी परमेश्वर का तिरस्कार और उसका विरोध करने वाले राक्षसों का गिरोह है। वह परमेश्वर की शत्रु है। मैं उस बूढ़े राक्षस सीसीपी से भयंकर नफरत करती हूँ। जितना अधिक यह हम पर अत्याचार करती है, उतना ही अधिक मैं अपना कर्तव्य निभाने और शैतान को शर्मिंदा के लिए प्रतिबद्ध महसूस करती हूँ।

उसके बाद दूसरे भाई-बहन कलीसिया के काम में लग गए और कलीसियाई जीवन धीरे-धीरे सामान्य हो गया। महज 10 दिनों में ही मुझे अपने वास्तविक आध्यात्मिक कद और अपने स्वार्थी, घिनौने, भ्रष्ट स्वभाव का ज्ञान हो गया। मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमान संप्रभुता भी देखी जिससे मेरी आस्था में वृद्धि हुई। सुखद और सुरक्षित वातावरण में मैं इनमें से कुछ भी हासिल नहीं कर पाती।

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