एंजल की कहानी
मैं बहन टीना से अगस्त 2020 में फेसबुक पर मिली। उसने मुझे बताया कि प्रभु यीशु लौट आया है, वह बहुत-से सत्य व्यक्त कर रहा है, और अंत के दिनों का न्याय कार्य कर रहा है। उसने मुझे उन भविष्यवाणियों के बारे में भी बताया जो न्याय का कार्य करने के लिए प्रभु यीशु के लौट आने से संबंधित थीं : “क्योंकि वह समय आ चुका है कि परमेश्वर के घर से न्याय शुरू किया जाए” (1 पतरस 4:17)। “यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। वो जो मुझे नकार देता है, और मेरे वचन नहीं स्वीकारता, उसका भी न्याय करने वाला कोई है : मैंने जो वचन बोले हैं वे ही अंत के दिन उसका न्याय करेंगे” (यूहन्ना 12:47-48)। “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा” (यूहन्ना 16:12-13)। इसे पढ़कर और टीना की संगति सुनकर, मैंने जाना कि प्रभु यीशु ने जो भी किया वह सब बस छुटकारे का कार्य था। भले ही विश्वासियों के पाप क्षमा कर दिए गए हैं, मगर हमारी पापी प्रकृतियों का समाधान नहीं हुआ है। भले ही हम कलीसिया जाकर प्रार्थना करते हैं, अपने पाप कबूल करते हैं, फिर भी झूठ बोलना और पाप करना जारी रखते हैं, पाप के बंधनों से बच नहीं पाते। हमें जरूरत है कि परमेश्वर न्याय करने और स्वच्छ बनाने का कार्य करे, ताकि हम वास्तव में इन बंधनों से छुटकारा पाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने योग्य बन सकें। टीना की संगति बहुत प्रबोधक थी, उसने मुझे वो बातें बताईं जो मैंने कलीसिया में कभी नहीं सुनी थीं। मैं खोज और जाँच-पड़ताल करना चाहती थी।
सुसमाचार के प्रसार के लिए दो भाई हमारे गाँव आए और मैंने उनकी मेजबानी की। एक बार तो उनका उपदेश सुनने के लिए बीस से ज्यादा लोग मेरे घर आ गए। उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन शानदार लगा, उन्होंने इससे काफी पोषण पाया, और वे इसकी छानबीन करते रहना चाहते थे। अगले दिन, पादरियों और एल्डरों को भाइयों और उनके सुसमाचार-प्रसार के बारे में पता चला, तो वे मुझे रोकने आए। घर के अंदर घुसते ही, पादरी टेलर ने मुझसे पूछा : “तुम्हारे घर उपदेश देने कौन आया है?” उनके कठोर हाव-भाव देखकर मैं बुरी तरह घबरा गई। मुझे चिंता थी कि अगर पादिरयों को पता चला कि दोनों भाई सुसमाचार फैलाने यहाँ आए हैं, तो उनके लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी। तो मैंने कहा : “वे मेरे दोस्त हैं जिनसे मैं ऑनलाइन मिली थी।” फिर पादरी कॉलिन ने कहा : “हमने सुना है कि वे अपना सुसमाचार फैलाने आए थे। अगली बार से तुम उनकी मेजबानी नहीं करोगी! अगर मुझे पता चला तो मैं तुम्हारे पति को बता दूँगा कि तुम यहाँ पुरुषों की मेजबानी कर रही हो!” उसकी बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने बस तब उनकी मेजबानी की थी जब वे गाँव वालों में सुसमाचार फैला रहे थे। मैंने कुछ भी शर्मनाक नहीं किया था, मगर पादरी झूठ बोलकर मुझे धमकाना चाहते थे। फिर पादरी टेलर ने कहा : “उनके सुसमाचार पर विश्वास मत करो, प्रभु यीशु ने स्पष्ट कहा है : ‘उस समय यदि कोई तुम से कहे, “देखो, मसीह यहाँ है!” या “वहाँ है!” तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें’ (मत्ती 24:23-24)। अंत के दिनों में कई झूठे मसीह सामने आएँगे। प्रभु के लौटकर आने के बारे में सभी उपदेश झूठे हैं। उनके बहकावे में मत आओ! मैं तुम्हारी सुरक्षा के लिए ही ऐसा कह रहा हूँ। मुझे डर है कि तुम बहक जाओगी।” उस समय, मुझे पादरियों की बातों की कोई समझ नहीं थी, मैंने सोचा कि वे काफी लंबे समय से विश्वासी रहे हैं, इतना सब कुछ समझते हैं, और उनकी बातें बाइबल ने अनुरूप हैं। अगर वे सही हुए और मुझे सचमुच बहकाया जा रहा हो, तो मैं क्या करूँगी? इसलिए, मैंने उन पर विश्वास किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों ने संगति के लिए मुझसे संपर्क किया, पर मैंने उन्हें मना करने के लिए बहाने बना दिए, यहाँ तक कि अपना फेसबुक अकाउंट भी बदल दिया और उनसे सभी संबंध तोड़ दिए।
मैंने लगभग दो हफ्ते सभा नहीं की। घर पर अपने दोस्तों से ऑनलाइन बातें करते हुए और वीडियो देखते हुए अपने दिन गुजारे। मैं बहुत ऊब गई थी। मैं अक्सर उन दिनों को याद करती जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों के साथ सभाएँ किया करती थी, जब मेरा दिल संतुष्ट और खुश था, पर अब मैं काफी बेचैन हो रही थी। मैंने सोचा : “यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटकर आया प्रभु यीशु है, और अगर मैंने उसे नहीं स्वीकारा तो क्या मैं उससे उद्धार पाने का मौका गँवा दूँगी? मगर पादरियों ने कहा था कि अंत के दिनों में लोगों को धोखा देने के लिए झूठे मसीह सामने आएँगे और प्रभु के लौट आने के बारे में सभी उपदेश झूठे हैं। अगर मैं धोखा खा गई तो क्या होगा?” मैं बहुत उलझन और दुविधा में थी, तो मैंने प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहा : “हे प्रभु यीशु, मेरे पास कोई विवेक नहीं है और मैं नहीं जानती कि किसकी बात सुनूँ। मुझे प्रबुद्ध बनाओ ताकि मैं तुम्हारी इच्छा समझ सकूँ और तुम्हारा उद्धार पाने का मौका न गँवाऊँ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैं सत्य खोजे बिना ऐसे ही भाग नहीं सकती, इन समस्याओं को सुलझाने के लिए मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों से मिलना होगा। मगर हैरानी की बात है कि दो सभाओं के बाद ही पादरियों को पता चल गया। उन्होंने हममें से कुछ भाई-बहनों को जो पहले सभा में गए थे, उसी शाम एक बैठक के लिए पादरी टेलर के घर बुलाया। मैं काफी घबराई हुई थी। मुझे नहीं पता था कि पादरी क्या करने वाले हैं। उस शाम, हम पादरी टेलर के घर गए। कुछ अन्य पादरी और एल्डर भी वहाँ थे। पादरी टेलर ने कहा : “मैंने सुना है कि तुम लोग हाल के दिनों में ऑनलाइन उपदेशों में भाग लेते रहे हो। तुम हमारे बजाय सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के उपदेश क्यों सुन रहे हो? अगर तुम कलीसिया आते रहोगे, हमारे उपदेश सुनोगे, और प्रभु से प्रार्थना करके अपने पाप कबूल करोगे, तो जब प्रभु लौटकर आएगा, तो वह तुम्हें स्वर्ग में जरूर लेकर जाएगा।” मैंने सोचा : “परमेश्वर के विश्वासियों को उसके वचन सुनने चाहिए। पादरी और एल्डर हमेशा हमें अपनी बातें सुनाते रहते हैं—क्या वे परमेश्वर के बजाय लोगों को अपने सामने नहीं ला रहे हैं?” मैं पादरी की बात से सहमत नहीं थी, पर मैंने उसका खंडन करने की हिम्मत नहीं की। फिर पादरी टेलर ने हमें एक नोटबुक दी और चिल्लाया : “क्या तुम दूसरे परमेश्वरों में विश्वास करते रहोगे? अभी फैसला करो! इसमें तुम्हारे नाम लिखे हैं, फटाफट साइन करो! अगर तुम विश्वास नहीं करना चाहते, तो सही का निशान लगाओ, और अगर करना चाहते हो, तो काटने का निशान लगाओ। अगर तुम दूसरे परमेश्वरों में विश्वास करते रहे तो तुम्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा! हम शादी, अंतिम संस्कार, बच्चे के जन्म या घर बनाने जैसी चीजों में तुम्हारे परिवारों की मदद नहीं करेंगे।” मैं जहाँ रहती हूँ, हम इन रिवाजों को बहुत महत्व देते हैं, और पादरियों के समर्थन के बिना, गाँव वाले भी हमारी मदद नहीं करेंगे। तब, मैं थोड़ी कमजोर पड़ गई थी। मैंने सोचा : “मेरा परिवार एक घर बनाने की सोच रहा है। गाँव के रिवाजों के हिसाब से, इसकी अगुआई पादरियों और एल्डरों द्वारा की जानी चाहिए। अगर वे इसका जिम्मा नहीं संभालेंगे तो कोई मदद के लिए आगे नहीं आएगा। अगर मैं ऑनलाइन सभाओं में भाग लेती रही, और घर पर कुछ हुआ तो बड़ी मुश्किल होगी। मगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है और वे प्रभु की वाणी जैसे लगते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर शायद लौटकर आया प्रभु यीशु है। अगर मैंने पादरियों की बात मानकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को त्याग दिया, तो क्या मैं प्रभु का विरोध नहीं करूँगी?” यह सोचकर, मैंने नोटबुक में काटने का निशान लगा दिया। दूसरों ने भी एक-एक करके काटने का निशान लगाया। सिर्फ एक व्यक्ति ने सही का निशान लगाया था। पादरी ने गुस्से में कहा : “जब भविष्य में तुम्हें कोई समस्या होगी, तो गाँव वाले तुम्हारी मदद के लिए आगे नहीं आएँगे। हम भी तुम्हारे लिए प्रार्थना नहीं करेंगे। आज से हमारे रास्ते अलग हैं।”
मैं गुस्से में थी, लेकिन मेरे मन में उलझन भी थी। उन झूठे मसीहों का क्या जिनके बारे में पादरियों ने बताया था? मैंने उन दो बहनों को ढूँढा जिनके साथ मैंने सभा की थी। उनमें से एक ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़कर सुनाए : “देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसके कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से सँभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। मसीह का भेस धारण करने वाले लोगों का देर-सबेर पतन हो जाएगा, क्योंकि हालाँकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उत्तर और निर्णय स्वयं परमेश्वर द्वारा ही दिया-लिया जाता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। इसके बाद, उसने संगति की : “हम असली मसीह और झूठे मसीह में अंतर कैसे कर सकते हैं? मसीह परमेश्वर का आत्मा है जिसने देहधारण किया है, मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर आया है। वह सत्य का प्रतिरूप है, उद्धारकर्ता का आगमन है। मसीह सत्य व्यक्त कर सकता है और रहस्यों से पर्दा उठा सकता है। वह मनुष्य को स्वच्छ करके बचा सकता है और स्वयं परमेश्वर का कार्य कर सकता है। झूठे मसीह सार रूप में राक्षस होते हैं। चाहे वे किसी भी तरह से परमेश्वर होने का दावा करें, वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते और न ही मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य कर सकते हैं। वे बस बाइबल के कुछ शब्दों पर उपदेश दे सकते हैं या परमेश्वर की नकल कर सकते हैं, लोगों को लुभाने के लिए कुछ चमत्कार दिखा सकते हैं।” फिर उसने मुझे एक उपमा दी। अगर सफेद कोट पहने दस लोग स्टेथोस्कोप लिए खड़े हैं, जो सभी डॉक्टर होने का दावा करते हैं, पर उनमें से एक ही असली डॉक्टर है, तो हम असली और नकली डॉक्टर में अंतर कैसे कर सकते हैं? हम सिर्फ उनके कपड़ों या व्यवहार को नहीं देख सकते, मुख्य बात यह देखना है कि क्या वे बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो वे डॉक्टर हैं। इसी तरह मसीह को पहचानने में हम सिर्फ उसके बाहरी स्वरूप को नहीं देख सकते। हमें उसके कार्य, बातों और स्वभाव के आधार पर तय करना होगा। अगर वह सत्य व्यक्त कर सकता है और मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है, तो वह मसीह है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ते समय हम सभी देख सकते हैं कि उसके वचन सत्य हैं, उनमें सामर्थ्य और अधिकार है। वह परमेश्वर की छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना, उसके कार्य के तीन चरणों, उसके देहधारण, और उसके नामों के साथ-साथ बाइबल की अंदरूनी कहानी के रहस्यों को उजागर करता है। वह शैतान द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता के सत्य और सार का खुलासा करता है, और परमेश्वर के प्रति मनुष्य के विद्रोह और प्रतिरोध के स्रोत को भी उजागर करता है, जिससे लोगों को अपने भ्रष्ट स्वभावों को जानने में मदद मिलती है। वह हमें बताता है कि उसे किस प्रकार के लोग पसंद हैं, कैसे लोगों से उसे घृणा है, किस प्रकार के लोग परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं, और किन लोगों को दंडित किया जाएगा। वह हमें अपना धार्मिक स्वभाव भी दिखाता है जिसका अपमान नहीं किया जा सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने उन सभी सत्यों को व्यक्त किया है जिनकी भ्रष्ट मानवजाति को बचाए जाने के लिए जरूरत है और वह अंत के दिनों का न्याय कार्य कर रहा है। इससे, हम यकीन से कह सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही देहधारी परमेश्वर और अंत के दिनों का मसीह है। झूठे मसीह सत्य व्यक्त नहीं कर सकते या मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करना तो दूर की बात है। वे खुद को कितना भी परमेश्वर कहें, पर वे झूठे हैं और दुष्ट आत्माएँ हैं, और उनका पतन निश्चित है। बहन की संगति के बाद मेरा दिल काफी रोशन हो गया। मैं समझ गई कि सच्चे मसीह को पहचानने के लिए मैं पादरियों या एल्डरों की बातों पर भरोसा नहीं कर सकती, मुख्य बात यह देखना है कि क्या वह सत्य व्यक्त कर सकता और मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत-से सत्य व्यक्त किए हैं, बाइबल के कई रहस्यों को उजागर किया है, और मनुष्य का न्याय करने और स्वच्छ बनाने का कार्य किया है। ऐसी चीजें कोई इंसान नहीं कर सकता। मुझे पूरा यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। इसके बाद, मैं अक्सर अपने गाँव के भाई-बहनों के साथ सभाएँ करने लगी।
अप्रैल 2021 में, मेरे पति की पुरानी बीमारी वापस आ गई और वे गुजर गए। मेरे रिश्तेदार चाहते थे कि पादरी आकर प्रार्थना करें और समारोहों की व्यवस्था करने में मदद करें, मगर पादरियों और एल्डरों ने मेरा मजाक उड़ाया और मौका पाकर मुझे अपनी आस्था त्यागने के लिए मजबूर किया। ग्राम स्तर के नेता ने भी उनका साथ दिया और उन्होंने मुझे उनकी बात न मानने के लिए डांटा, और गाँव वालों को मेरी मदद करने से मना किया। फिर उसने कहा : “अगर तुम सबके सामने अपना अपराध कबूल कर लो, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को त्यागने का वादा करो, और कलीसिया की सभाओं में भाग लो, तो हम तुम्हारे पति को दफनाने में तुम्हारी मदद करेंगे।” मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे मुझे अपनी आस्था त्यागने पर मजबूर करने के लिए मेरे पति को दफनाने के मौके उपयोग करेंगे। यह बहुत घृणित व्यवहार था। मेरे पास उनके सामने कबूल करने का कोई कारण नहीं था। मैं अपने पाँच महीने के बेटे को गोद में लिए रोए जा रही थी। जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने मेरे परिवार को उकसाया कि वे मुझे यह स्वीकारने के लिए धमकाएँ कि मैं गलत थी। वहाँ मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं था। बुरी तरह से काँपते हुए, मैंने बहुत अकेला महसूस किया। मैंने सोचा : “अगर मैंने यह नहीं कहा कि मैं गलत थी, तो कोई भी मेरे पति को दफनाने में मेरी मदद नहीं करेगा, लेकिन अगर मैंने खुद को गलत बताया, तो यह परमेश्वर को ठुकराकर उसे धोखा देना होगा। मैं क्या करूँ?” अपनी पीड़ा में, मैंने परमेश्वर को पुकारा : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मेरा मानना है कि तुम ही स्वयं परमेश्वर हो, सभी के अनन्य सृष्टिकर्ता हो, तुम सभी के सर्वशक्तिमान परमेश्वर हो, और सब कुछ तुम्हारे हाथों में है। मैं तुम्हारी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने को तैयार हूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचन का वह अंश याद आया जो मैंने पढ़ा था : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का विघ्न था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है। ... जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में संघर्ष करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए, और किस प्रकार उसकी गवाही में अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है, वह एक महान परीक्षण है और ऐसा समय है, जब परमेश्वर चाहता है कि तुम उसके लिए गवाही दो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। मैं समझ गई कि भले ही ऐसा लग रहा था जैसे पादरी और ग्राम स्तर के नेता मुझे सता रहे थे और मेरा रास्ता रोक रहे थे, पर वास्तव में, यह सब शैतान का धोखा और व्यवधान था। भले ही उन्होंने कहा कि यह मेरे भले के लिए है, लेकिन वे वास्तव में अंतिम संस्कार, शादी, बच्चे के जन्म और घर बनाने जैसी चीजों के संबंध में गाँव के रिवाजों का उपयोग कर रहे थे, ताकि गाँव वाले मुझे त्याग दें, और मैं परमेश्वर को ठुकराने और उसे धोखा देने के लिए मजबूर हो जाऊँ। वे मुझे अपने धर्म में वापस खींचना चाहते थे, ताकि मैं उनका अनुसरण और आज्ञापालन करती रहूँ। परमेश्वर ने बहुत पहले ही अंत के दिनों का न्याय-कार्य करने के लिए अनुग्रह के युग की कलीसियाओं को छोड़ दिया है। अगर मैं पादरियों और ग्राम स्तर के नेता की बात मानकर उनके साथ कलीसिया लौट आती हूँ, तो मैं परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका खो दूँगी, और मुझे नरक भेज दिया जाएगा और उनके साथ मुझे भी दंडित किया जाएगा। वह शैतान का भयावह इरादा था। चाहे वे मेरे रास्ते में कैसे भी खड़े हों, मैं उनकी बात नहीं सुन सकती। मुझे प्रार्थना करके परमेश्वर पर भरोसा करना था, अपनी गवाही पर दृढ़ रहना था और शैतान को शर्मिंदा करना था। मगर मुझे अभी भी अपने पति के अंतिम संस्कार के मामलों में मदद चाहिए थी, जो एक व्यावहारिक समस्या थी। गाँव वाले, मेरे रिश्तेदार और दोस्त सभी ग्राम स्तर के नेता और पादरियों की बात मानकर मेरी मदद नहीं कर रहे थे, तो मुझे क्या करना चाहिए? मैं परमेश्वर को पुकारती रही : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मेरे पति को दफनाने में कोई मेरी मदद करने के लिए आगे आएगा या नहीं, यह सब पूरी तरह तुम्हारे हाथों में है। मैं इन मामलों को तुम्हें सौंपती हूँ। चाहे कुछ भी हो, मैं तुम्हारे प्रति समर्पित रहूँगी और तुम्हें कभी धोखा नहीं दूँगी।” प्रार्थना करने के बाद मैंने थोड़ा शांत महसूस किया और पीड़ा भी कम हुई। तभी, मैंने बाहर अपने अंकल को यह कहते हुए सुना : “मैं आपसे विनती करता हूँ, उसकी मदद कीजिए, मैं उसकी ओर से माफी माँगता हूँ।” ग्राम स्तर के नेता ने कहा : “उसे खुद माफी माँगनी होगी।” मैंने सोचा : “ये पादरी और एल्डर बहुत अमानवीय हैं। वे एक अच्छे अविश्वासी से भी बदतर हैं! वे मुझे परमेश्वर को धोखा देने पर मजबूर करने के लिए कुछ भी करेंगे, पर जितना ज्यादा वे कोशिश करेंगे, उतना ही ज्यादा मुझे अपनी गवाही में दृढ़ रहना होगा, ताकि शैतान को शर्मिंदा कर सकूँ।” करीब दस मिनट बाद अचानक मेरी माँ का फोन आया। उसने कहा : “निराश मत हो, तुम्हारे पति के कुछ आर्मी वाले दोस्त उसे दफनाने में तुम्हारी मदद करेंगे, वे निकल चुके हैं।” उस समय, मैंने बहुत द्रवित महसूस किया। परमेश्वर ने उस संकट से निकलने में मेरी मदद करने के लिए लोगों को भेजा था जब मैं सबसे असहाय हालत में थी। मुझे परमेश्वर के वचन का एक अंश याद आया : “तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और मेरे द्वारा तुम्हें दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। मैंने देखा कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। अगर हम वास्तव में परमेश्वर पर भरोसा रखेंगे, वह हमें कोई न कोई रास्ता जरूर दिखाएगा। भले ही मुझे अभी भी सताया जा रहा था, पर मुझे परमेश्वर का मार्गदर्शन दिखा, मेरा दिल झुकने को तैयार नहीं था, और अब मैं नकारात्मक या कमजोर नहीं थी।
मेरे पति के अंतिम संस्कार की व्यवस्था हो जाने के बाद, उसकी माँ अक्सर मुझे डांटती और कहती कि गाँव वाले हमसे इसलिए दूर रहते हैं क्योंकि मैंने प्रभु यीशु को धोखा दिया है और गलत परमेश्वर में विश्वास किया है। मेरे रिश्तेदारों ने भी उन्हीं बातों के आधार पर मुझ पर लांछन लगाए। यहाँ तक कि मेरी माँ के परिवार वालों ने भी मेरे पास आने की हिम्मत नहीं की। सिर्फ मेरी माँ ही मुझसे मिलने आती थी, लेकिन वह मुझसे यही कहती रहती थी : “तुम पादरियों, ग्राम स्तर के नेता या ग्राम प्रधान की बात क्यों नहीं सुनती? खुद को देखो, अब तुम्हारा पति नहीं है, अगर तुम इन लोगों या अपने ससुराल वालों पर भरोसा नहीं करोगी, तो फिर कहाँ जाओगी? तुम्हारा बेटा अभी भी बहुत छोटा है। तुम्हें अपना पाप कबूल करके सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना बंद कर देना चाहिए!” मैं जहाँ भी जाती, गाँव वाले मेरी पीठ पीछे मेरे बारे में बातें करते और मेरे मामले उनकी गपशप का विषय थे। पहले दूसरे ग्रामीणों और पड़ोसियों से मेरी अच्छी बनती थी, पर अब वे बस मेरी आस्था के कारण मुझे सताने और बहिष्कृत करने लगे थे। इससे मुझे सचमुच दुख पहुँचा और मैं निराशा में डूब गई। तब म्यांमार में इंटरनेट काट दिया गया था। तो मैं सभा में भाग नहीं ले पाती थी या ऑनलाइन उपदेश नहीं सुन पाती थी, और अन्य सदस्यों ने मेरे घर आकर परमेश्वर के वचन पर संगति करने और मेरी मदद करने की हिम्मत तक नहीं की। ऐसा लगा जैसे मैं अंधेरे में गिर गई हूँ और रोशनी नहीं देख पा रही। मैं बस हर दिन परमेश्वर से प्रार्थना करती और उससे उन अंधेरे दिनों से बाहर निकलने के लिए मार्गदर्शन मांगती थी। एक दिन, मुझे परमेश्वर के वचन का एक पाठ मिला : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? बेवकूफ़ बच्चे! तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। इसे पढ़कर मैं बहुत भावुक हो गई। यह ऐसा था जैसे किसी बीमार व्यक्ति को अचानक कोई शक्तिशाली दवा दी गई हो और मुझमें भरपूर आस्था और शक्ति का संचार हुआ। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके, मुझे समझ आया कि परमेश्वर का अनुसरण करना आसान नहीं है, सभी को पीड़ा और कष्ट से गुजरना पड़ता है। भले ही मेरा शरीर कष्ट झेल रहा था, पर यह मुझे अक्सर प्रार्थना करने और परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए प्रेरित करता था। और मैं जितना अधिक कष्ट सहती, सत्य खोजने के लिए उतनी ही प्रेरित होती थी। मुझे पता भी नहीं चला और मैं परमेश्वर की संप्रभुता के बारे में थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर चुकी थी, परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता गहरा हो गया था, और मैं उसका अनुसरण करने के लिए पहले से अधिक दृढ़ थी। मैं बचपन से ही प्रभु में विश्वास करती थी, पर तब मैं बस उससे मिले अनुग्रह, आशीष, शांति और खुशी का आनंद लेना जानती थी। मैं कभी किसी पीड़ा या परीक्षण से नहीं गुजरी थी। मैंने प्रभु के बारे में कुछ भी नहीं जाना था, फिर लोगों को पहचानना तो दूर की बात थी। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर की विश्वासी होने के नाते, इन उत्पीड़नों और कठिनाइयों का सामना करते हुए मुझे थोड़ा कष्ट हुआ, लेकिन मैंने लोगों को पहचानना सीख लिया, मैं पादरियों और एल्डरों के कुरूप, भ्रामक, परमेश्वर-विरोधी चेहरे साफ तौर पर देख सकी। पहले, मैंने देखा था कि पादरी बाइबल समझा सकते थे और हमारे लिए प्रार्थना कर सकते थे, इसलिए मैं सोचती थी कि वे हमारी परवाह करते हैं, बाइबल समझते हैं और परमेश्वर को जानते हैं। मगर जब उन्होंने सुना कि प्रभु यीशु लौट आया है, तो वे खोजने या जाँच-पड़ताल करने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने विश्वासियों को भी परमेश्वर के कार्य की जाँच-पड़ताल करने से रोका, गाँव के रिवाजों का उपयोग करके मुझे धमकाया और गाँव वालों को मुझ पर लांछन लगाने के लिए उकसाया और मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को त्यागने के लिए मजबूर किया। मैंने देख लिया कि वे पाखंडी फरीसी थे और मैंने उन्हें पूरी तरह से ठुकरा दिया। पीड़ा और अवसाद के उन दिनों को याद करूँ, तो लगता है कि परमेश्वर के वचन के मार्गदर्शन के बिना, वो राक्षस तो मुझे पागल ही कर देते। परमेश्वर के वचन के कारण ही मैं इन सभी कठिनाइयों को पार कर सकी। मैं सचमुच सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आभारी हूँ! कुछ समय बाद म्यांमार में इंटरनेट दोबारा चालू हो गया। मैंने कुछ अन्य सदस्यों से संपर्क करके उनके उनके साथ सभा की। मगर पादरियों और ग्राम स्तर के नेता का उत्पीड़न पहले से भी बदतर हो गया।
जनवरी 2022 में एक दिन, उन्होंने गाँव में एक बैठक बुलाई। करीब तीन सौ लोग शामिल हुए। उन्होंने हम चौदह विश्वासियों को बाहर तेज धूप में उकडूं होकर बैठने को मजबूर किया। ग्राम स्तर के नेता ने कहा : “इस गाँव में दो तरह की आस्था वाले लोग नहीं रह सकते। मैंने यह बैठक इसलिए बुलाई है ताकि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अनुयायी अपना फैसला कर सको। पूरे गाँव की ओर से, मैं तुम सबसे पूछता हूँ, क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखोगे या फिर कलीसिया वापस लौटोगे?” उन्होंने हमें मनाने की कोशिश में एक-एक करके हमारे रिश्तेदारों को बुलाया। भाई रॉबर्ट के पिता एक ग्राम प्रधान थे और उन्होंने उसे घुटने टेककर गलती कबूल करने के लिए मजबूर किया। रॉबर्ट ने कहा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना गलत नहीं है और घुटने टेकने से इनकार कर दिया। फिर उसके पिता ने गुस्से में कहा : “तुम्हें उसी पर विश्वास करना चाहिए जिसमें तुम्हारे माता-पिता विश्वास करते हैं। क्या तुम हमारी बात न मानकर और सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करके हमें त्याग नहीं रहे हो?” रॉबर्ट ने जवाब दिया : “मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, मैंने आप दोनों को त्यागने की बात कब की? मैं अपने माता-पिता से प्यार करता हूँ, पर मैं परमेश्वर, हमारे सृष्टिकर्ता से ज्यादा प्यार करता हूँ।” उसके पिता पहले से भी ज्यादा गुस्से में चिल्लाए : “तुम मेरे बेटे हो! तुम्हारा सब कुछ मेरे हाथों में है! मैं तुम्हें मुझसे इस तरह बात नहीं करने दूँगा!” यह देख कर इन लोगों का अहंकार मुझे और भी स्पष्ट हो गया। भले ही वे प्रभु में विश्वास करते थे, मगर उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं था, और न ही वे उसकी महिमा गाते थे। फिर एक सरकारी अधिकारी ने कहा : “चीन लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं देता, और ऐसा करने वालों को गिरफ्तार कर लेता है। हम यहाँ अपनी छानबीन करने की सोच रहे हैं। तुम्हें इस आस्था में कौन लेकर आया? तुम्हारा अगुआ कौन है?” हम सभी ने बताया कि हमारा कोई अगुआ नहीं है। इसके बाद दूसरा अधिकारी जवाब देने के लिए हम पर दबाव डालता रहा, पर हम उससे यही कहते रहे कि हमारा कोई अगुआ नहीं है। तब एक जिला स्तरीय सरकारी अधिकारी ने हमसे पूछा : “‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर’ से तुम्हारा क्या मतलब है?” मैंने कहा : “आप नहीं जानते? सर्वशक्तिमान परमेश्वर सृष्टि का प्रभु है, वही प्रभु जिसने आपको बनाया है।” यह सुनकर उसे गुस्सा आ गया और उसने हमें अपना आखिरी फैसला बताने को कहा। जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखना चाहते थे उन्हें कहना था “जारी रखेंगे” और जो इसे छोड़ना चाहते थे उन्हें कहना था “छोड़ देंगे।” अगर हमने “जारी रखेंगे” चुना, तो हमारी सूचना उच्च-अधिकारियों को दे दी जाएगी। ग्राम स्तर के नेता ने यह भी कहा कि जिन लोगों ने “जारी रखेंगे” चुना है, उन्हें गाँव छोड़कर जाना होगा, पर जिन्होंने “छोड़ देंगे” चुना है, वे यहीं रहकर कलीसिया में लौट सकते हैं। फिर उन्होंने हमसे एक-एक करके अपने फैसले बताने को कहा। मेरे सामने खड़ी तीन बहनों ने उत्पीड़न के डर से “छोड़ देंने” चुना। जब मेरी बारी आई, तो मेरी माँ, मेरे बेटे को अपनी पीठ पर लेकर, मुझसे कहा कि मैं “छोड़ देंगे” चुनूँ और विश्वास करना बंद कर दूँ। उस वक्त अपनी माँ और बेटे की ओर देखना बहुत कष्टदायी था। अगर मैं गिरफ्तार हो गई तो उनका क्या होगा? माँ के लिए मेरे बेटे की देखभाल करना बहुत मुश्किल होगा। तो मैंने प्रार्थना की, परमेश्वर से मुझे आस्था देने के लिए कहा। मैंने प्रभु यीशु के वचनों को याद किया : “जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो बेटा या बेटी को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं” (मत्ती 10:37-38)। “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है” (मत्ती 5:10)। और सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, “परमेश्वर का यह कहने का क्या अर्थ है, ‘परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है’? इसका अर्थ हर व्यक्ति को यह एहसास कराना है : हमारा जीवन और हमारे प्राण परमेश्वर ने रचे हैं, ये हमें उसी से मिले हैं—अपने माता-पिता से नहीं, प्रकृति से तो बिल्कुल भी नहीं, ये चीजें हमें परमेश्वर ही देता है। हमारे माता-पिता से सिर्फ हमारी देह उत्पन्न हुई है, जैसे कि हमारे बच्चे हमसे उत्पन्न होते हैं, लेकिन उनकी किस्मत पूरी तरह परमेश्वर के हाथ में होती है। हम परमेश्वर पर विश्वास कर सकते हैं, यह भी परमेश्वर का दिया हुआ अवसर है; यह उसने निर्धारित किया है और उसका अनुग्रह है। इसलिए तुम्हें किसी दूसरे के प्रति दायित्व या जिम्मेदारी निभाने की जरूरत नहीं है; तुम्हें सृजित प्राणी के रूप में सिर्फ परमेश्वर के प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। लोगों को सबसे पहले यही करना चाहिए, यही व्यक्ति के जीवन का प्राथमिक कार्य है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पथभ्रष्ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है)। मैं समझ गई कि हमारा भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। हम कहाँ पैदा होंगे, हमारे माता-पिता कौन होंगे, हमें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा—ये सभी चीजें बहुत पहले ही परमेश्वर द्वारा पूर्व-निर्धारित की गई हैं। भले ही मैंने अपने बेटे को जन्म दिया है, पर मैं उसके लिए बस एक माँ के रूप में अपना कर्तव्य निभा सकती हूँ, यानी उसकी देखभाल कर सकती हूँ। मगर उसका भाग्य या उसके साथ जो कुछ होगा उसे बदल नहीं सकती। कुछ बच्चे बचपन में ही अनाथ हो जाते हैं, मगर वे भी तो बड़े होते ही हैं। ठीक वैसे ही, जब मैं छोटी थी तब मेरे माता-पिता का तलाक हो गया था, मेरे पास दूसरे बच्चों की तरह मेरी देखभाल करने के लिए पिता नहीं थे, फिर भी मैं दूसरों की तरह ही एक स्वस्थ व्यस्क बनी। मेरे बेटे का भविष्य परमेश्वर निर्धारित करता है। मेरी माँ अभी भी जवान थी। अगर मैं अपने बेटे के साथ नहीं हुई तो भी वह उसकी देखभाल कर सकती थी। मुझे बस उसे परमेश्वर को सौंपकर उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना था। मैं अधिक से अधिक यही महसूस कर रही थी कि परमेश्वर की गवाही में दृढ़ रहने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए मुझे परमेश्वर में विश्वास और उसके अनुसरण का फैसला करना चाहिए। तो मैंने खड़े होकर कहा : “मैं जारी रखूँगी!” इस पर ग्राम स्तर के नेता ने कहा : “जिन लोगों ने जारी रखने का फैसला किया है वे गलती कर रहे हैं।” मैंने जवाब दिया : “मैं परमेश्वर में विश्वास और उसका अनुसरण करती हूँ। मैं बस उसके वचन सुनती हूँ। इसमें कुछ भी गलत नहीं है!” अधिकारी ने गुस्से में मुझे स्वधर्म-त्यागी और प्रभु की गद्दार कहते हुए फटकार लगाई। मगर मेरा दिल जानता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत-से सत्य व्यक्त किए हैं और अंत के दिनों का न्याय कार्य किया है, और वही लौटकर आया प्रभु यीशु है। मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी और प्रभु के उद्धार को स्वीकार किया। मैं मेमने के नक्शेकदम पर चल रही थी, यह प्रभु के साथ विश्वासघात कैसे हुआ? मैं दिल से उनकी बात का खंडन करना चाहती थी, पर उनके इतने शोर-शराबे के कारण मुझे ऐसा करने का मौका नहीं मिला। एल्डर लेस्टर ने मुझे एक एहसान फरामोश बदमाश कहकर कोसा और मुझे पीटने के लिए डंडा उठा लिया। मैं बहुत डर गई और मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी। मुझे हैरानी हुई जब मेरी सास अचानक उसे रोकने के लिए आगे आई। मेरी सुरक्षा करने के लिए मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया। इसके बाद और पाँच लोगों ने “जारी रखेंगे” चुना। यह देखते हुए कि हम समझौता नहीं कर रहे हैं, वे हमसे पूछते रहे कि हमारा अगुआ कौन है। किसी ने जवाब नहीं दिया। हम सुबह साढ़े नौ बजे से लेकर शाम पाँच बजे तक करीब पूरे सात घंटे धूप में उकडूं होकर बैठे रहे। क्योंकि काफी समय हो गया था और हमने कुछ खाया-पीया भी नहीं था, तो कम ब्लड प्रेशर वाला एक कमजोर भाई बेहोश हो गया। उसका परिवार उसकी मदद के लिए आया, पर ग्राम स्तर के नेता ने उन्हें उसकी मदद नहीं करने दी। उसने कहा : “अगर तुम्हारा परमेश्वर वास्तविक परमेश्वर है, तो वह बेहोश क्यों हुआ?” इसके बाद, यह देखकर कि हम अभी भी हार नहीं मान रहे हैं, ग्राम स्तर के नेता ने हमें अपना परिवार, पशुधन और अपनी सारी चीजें लेकर उसी दिन शाम को गाँव छोड़कर चले जाने को कहा। उसने यह भी कहा कि हमारे जाने के बाद वे हमारे घरों को जला देंगे। जिला स्तरीय सरकारी अधिकारी ने कहा : “समय बर्बाद मत करो, ये लोग अपने अगुआ का नाम बताने से बेहतर मरना पसंद करेंगे। पहले इन्हें घर भेजो। मैं कल इनकी रिपोर्ट सरकार को भेजूँगा और उच्च अधिकारी ही इस बारे में फैसला लेंगे। इससे वे जरूर डरेंगे।” मगर मैं इतनी डरी हुई नहीं थी। मैं जानती थी कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और उच्च अधिकारी आकर हमें गिरफ्तार करेंगे या नहीं, यह सब परमेश्वर के हाथों में था और परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित किया गया था।
तीसरे दिन की सुबह, सरकार ने ग्राम स्तर की एक बैठक बुलाई। 400 से ज्यादा लोग उसमें आए। मुझे चिंता थी कि वे हमें परमेश्वर का तिरस्कार करने और धर्मत्याग के शपथपत्र पर दस्तखत करने के लिए मजबूर करेंगे, तो मैंने प्रार्थना की, परमेश्वर से हमारी रक्षा करने को कहा ताकि हम अपनी गवाही में दृढ़ रह सकें। बैठक में, जिला स्तरीय सरकार के प्रमुख ने हमसे कहा : “तुम सब अभी युवा हो और कुछ भी नहीं समझते। आज मैं तुम्हें जिम्मेदार ठहराने के लिए नहीं आया हूँ, पर अब से, तुम्हें अपने माता-पिता की आज्ञा माननी होगी, कड़ी मेहनत करनी होगी, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सुनना और उसका सुसमाचार फैलाना बंद करना होगा, वरना ग्राम स्तर के नेता गिरफ्तार करके तुम्हें सरकार को सौंप देंगे।” प्रशासनिक परिषद के एक अधिकारी ने सभी से कहा : “हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने वालों के साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा सीसीपी करती है। सीसीपी विश्वासियों का पता लगाकर उन्हें गिरफ्तार करती है और पीट-पीट कर मार भी सकती है। हम वा प्रांत में भी यही करेंगे। इन सभी विश्वासियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा, चाहे उन्होंने कुछ भी गलत किया हो या नहीं, और फिर उन्हें पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया जाएगा। कोई यह नहीं कह सकता कि ‘उन विश्वासियों ने कुछ भी गलत नहीं किया।’ ये सरकार के आदेश हैं। प्रतिरोध मत करना, और अगर तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वाले दिखें, तो उनकी रिपोर्ट कर देना।” फिर उसने हम विश्वासियों की ओर इशारा करते हुए कहा : “उनके चेहरे याद कर लो, तुम्हें उन्हें पहचानना होगा। ये लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं। अगर ये तुम्हें सभा या सुसमाचार प्रचार करते हुए दिखें, तो इनकी रिपोर्ट करना!” फिर उसने एक जिला स्तरीय क्लर्क से सभी को परमेश्वर का तिरस्कार करने वाली सामग्री पढ़कर सुनाने को कहा। लोग सरकार की बातों में आ गए और उनमें से कुछ लोग हमें घृणा की दृष्टि से देखने लगे। उनकी बातें सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं जानती थी कि सरकार हम विश्वासियों को इसलिए सता रही थी ताकि हमें अपनी आस्था त्यागने पर मजबूर कर सके और लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जाँच-पड़ताल करने से घबराएँ और डरें, जिससे वे परमेश्वर के उद्धार का मौका गँवा दें। इससे मुझे उन शैतानों से और अधिक नफरत हो गई। फिर सरकार ने हमें घर जाने दिया।
घर पहुँचकर, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा : “शैतान चाहे जितना भी ‘सामर्थ्यवान’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं का पालन करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति के लिए कार्य करना, और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना के काम आना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे आस्था मिली। पादरी और एल्डर हम लोगों पर दबाव डाल सकते थे, सरकार हमें गिरफ्तार करके सता सकती थी, और हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर को त्यागने पर मजबूर करने के लिए हमारे परिवारों का इस्तेमाल कर सकती थी, मगर वे चाहे जो भी कहें या करें, परमेश्वर की अनुमति के बिना वे हमारे साथ कुछ भी नहीं कर सकते थे। जैसे जब एल्डर लेस्टर ने मुझे डंडे से पीटने की कोशिश की, तो मेरी सास, जो मुझसे नफरत करती थी, अचानक मेरे लिए खड़ी हो गई और उसे रोक दिया। यह सब परमेश्वर के हाथों में था। मैंने सभी चीजों पर परमेश्वर की सामर्थ्य और संप्रभुता को महसूस किया, और मुझे लगा कि वह मुझ पर नजर रख रहा है। मैं जानती थी कि परमेश्वर ने मेरे आध्यात्मिक कद के हिसाब से ही हालात बनाए हैं और वह मुझ पर बहुत अधिक बोझ नहीं डाल रहा है। इन अनुभवों से, परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ गई और मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर जो भी करता है सब अच्छा ही होता है। मैं परमेश्वर की बड़ी आभारी हूँ! इस अनुभव से मैं पादरियों और एल्डरों के परमेश्वर से नफरत करने वाली, परमेश्वर-विरोधी प्रकृति भी स्पष्ट रूप से देख पाई। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे ‘मज़बूत देह’ वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। पादरी और एल्डर बाइबल को बिल्कुल भी नहीं समझते थे। वे बस बाइबल के शब्दों और सिद्धांतों के बारे में सिखाते थे, और प्रभु का स्वागत बिल्कुल नहीं करते थे, और सत्य तो बिलकुल ही नहीं खोजते थे। अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य का सामना होने पर, उन्होंने सत्य की खोज या जाँच-पड़ताल नहीं की, उन्होंने प्रभु के वचन की गलत व्याख्या की, और विश्वासियों को गुमराह करने के लिए धारणाएँ फैलाईं। यह कहकर कि प्रभु के लौटकर आने के बारे में कोई भी प्रचार झूठा है, उन्होंने विश्वासियों को परमेश्वर की वाणी सुनने और प्रभु का स्वागत करने से रोका। उन्होंने तो यह भी कहा कि यह सब विश्वासियों की सुरक्षा के लिए था, पर वास्तव में उन्हें डर था कि अगर हर कोई सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करेगा तो कोई उनकी बात नहीं सुनेगा, और इससे उनके रुतबे और आजीविका को खतरा होगा। इसीलिए उन्होंने हमें परमेश्वर को त्यागने के लिए मजबूर करने की कोशिश की। यहाँ तक कि उन्होंने मुझे धमकाने और धर्मत्याग के शपथपत्र पर दस्तखत करने पर मजबूर करने के लिए अंतिम संस्कार, शादी, बच्चे के जन्म और घर बनाने से जुड़े रिवाज जैसी चीजों का इस्तेमाल किया। उन्होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को त्यागने के लिए मजबूर करने में मेरे पति के अंतिम संस्कार तक का इस्तेमाल किया। जब मैंने उनकी एक नहीं सुनी, तो उन्होंने सरकार के साथ मिलकर एक बैठक आयोजित की, और मुझे परमेश्वर को धोखा देने को बहकाने के लिए मेरे परिवार का इस्तेमाल किया। वे हमें गाँव से निकालकर हमारे घरों को जला देना देना चाहते थे और हमें उच्च अधिकारियों को सौंप देना चाहते थे। उन्होंने हमें सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, ताकि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धोखा देकर बचाए जाने और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का अपना मौका गँवा दें। वे पादरी सचमुच बुरे और दुष्ट थे! मुझे प्रभु यीशु द्वारा फरीसियों की निंदा याद आई। प्रभु यीशु ने कहा था : “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो। ... हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो” (मत्ती 23:13, 15)। झुंड की सुरक्षा की आड़ में, पादरियों और एल्डरों ने लोगों को अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने से रोकते थे। वे लोगों को परमेश्वर का विरोध करने के लिए गुमराह करते थे और इस तरह वे अंत में उन्हें नरक में ले जाएँगे। वे जीते-जागते शैतान हैं जो लोगों को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने से रोकते हैं। वे राक्षस और मसीह-विरोधी हैं जो परमेश्वर का विरोध करते और लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। मैंने उनके उस सार को स्पष्टता से देखा जो सत्य और परमेश्वर से नफरत करता है, और मैं परमेश्वर का अनुसरण करने की अपनी आस्था में और अधिक दृढ़ हो गई। वे मुझे चाहे जैसे भी गुमराह करने या बाधित करने की कोशिश करें, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नहीं त्यागूँगी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाऊँ और ऐसे अधिक से अधिक लोगों को उसके समक्ष लेकर आऊँ जो उसके लिए तरसते हैं, ताकि वे उसका उद्धार स्वीकार कर सकें।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमारी सभाएँ और सुसमाचार कार्य प्रतिबंधित ही रहे। हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने और ऑनलाइन सभा करने से रोकने के लिए, ग्राम स्तर के नेता ने अधिकारियों से हर तीन दिन में हमारे फोन की जाँच करने और हमारे फोन में फेसबुक देखते ही उसे हटा देने को कहा। उनकी और सरकार की नजरों से बचने के लिए, हम अपने खेती करने के औजार पहाड़ों पर लेकरे जाते और काम करने का नाटक करते थे ताकि गुप्त रूप से सभा कर सकें। हम आम तौर पर गाँव में अपनी आस्था के बारे में खुलकर बात करने की हिम्मत नहीं करते थे। मगर चाहे वे हमें कितना भी सताते, हम परमेश्वर पर भरोसा करके दूसरे गाँवों में सुसमाचार फैलाते रहे। समय के साथ, और अधिक लोगों ने सुसमाचार को स्वीकार किया। लेकिन ग्राम प्रधान को पता चल गया कि मैं सुसमाचार फैला रही हूँ, तो उसने मुझ पर दूसरों का नाम बताने और यह कबूल करने का दबाव डाला कि मैंने अब तक किन लोगों में सुसमाचार प्रचार किया है। जब मैंने कुछ नहीं कहा, तो उसने मुझे धमकाते हुए कोशिश की कि मैं अपनी आस्था त्याग दूँ और धर्म-सभा में वापस आ जाऊँ, वरना वह मुझे गिरफ्तार करवा देगा। सामान्य रूप से सभा करने और सुसमाचार फैलाने के साथ ही उत्पीड़न और गिरफ्तारी से बचने के लिए, मैं म्यांमार से भागकर दूसरे देश में चली आई। अब मैं कुछ अन्य भाई-बहनों के साथ रहती हूँ। हम संगति करते हैं, सुसमाचार फैलाते हैं, और परमेश्वर के कार्य की गवाही देते हैं। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। इन सबमें मैंने बहुत कष्ट और उत्पीड़न सहा, मगर अब मुझे पादरियों और एल्डरों की थोड़ी पहचान है, मैं सरकार की दुष्टता को अधिक स्पष्ट रूप से देख सकती हूँ, और अब मैं उनके आगे बेबस नहीं हूँ। मैंने परमेश्वर की संप्रभुता के बारे में भी कुछ ज्ञान प्राप्त किया है और उस पर मेरा विश्वास बढ़ गया है। ये ऐसी चीजें हैं जो मैं आरामदायक माहौल में रहकर कभी भी हासिल नहीं कर पाती।
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