सुसमाचार प्रचार की मेरी पथरीली राह

16 जुलाई, 2023

ऐना, म्यांमार

मैं म्यांमार से हूँ। मैंने 2019 में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि इंसान को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह बचाने और हमें एक सुंदर मंजिल पर पहुँचाने के लिए परमेश्वर अंत के दिनों में अपना न्याय कार्य करता है। परमेश्वर से उद्धार पाने के लिए मैं बहुत आभारी हूँ। तब से, मैं लगातार कलीसिया में सुसमाचार प्रचार कर रही हूँ। एक सभा में, हमने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “मेरा अंतिम कार्य केवल मनुष्यों को दंड देने के लिए ही नहीं है, बल्कि मनुष्य की मंजिल की व्यवस्था करने के लिए भी है। इससे भी अधिक, यह इसलिए है कि सभी लोग मेरे कर्म और कार्य स्वीकार करें। मैं चाहता हूँ कि हर एक मनुष्य देखे कि जो कुछ मैंने किया है, वह सही है, और जो कुछ मैंने किया है, वह मेरे स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह मनुष्य का कार्य नहीं है, और उसकी प्रकृति तो बिलकुल भी नहीं है, जिसने मानवजाति की रचना की है, यह तो मैं हूँ जो सृष्टि में हर जीव का पोषण करता है। मेरे अस्तित्व के बिना मानवजाति केवल नष्ट होगी और आपदा का दंड भोगेगी। कोई भी मानव फिर कभी सुंदर सूर्य और चंद्रमा या हरे-भरे संसार को नहीं देखेगा; मानवजाति केवल शीत रात्रि और मृत्यु की छाया की निर्मम घाटी देखेगी। मैं ही मानवजाति का एकमात्र उद्धार हूँ। मैं ही मानवजाति की एकमात्र आशा हूँ, और इससे भी बढ़कर, मैं ही वह हूँ जिस पर संपूर्ण मानवजाति का अस्तित्व निर्भर करता है। मेरे बिना मानवजाति तुरंत अवरुद्ध हो जाएगी। मेरे बिना मानवजाति तबाही झेलेगी और सभी प्रकार के भूतों द्वारा कुचली जाएगी, इसके बावजूद कोई मुझ पर ध्यान नहीं देता। मैंने वह काम किया है जो किसी दूसरे के द्वारा नहीं किया जा सकता, और मैं केवल यह आशा करता हूँ कि मनुष्य कुछ अच्छे कर्मों से मुझे प्रतिफल दे सके। यद्यपि कुछ ही लोग मुझे प्रतिफल दे पाए हैं, फिर भी मैं मनुष्यों के संसार में अपनी यात्रा पूरी करूँगा और प्रकटन के अपने कार्य का अगला कदम आरंभ करूँगा, क्योंकि इन अनेक वर्षों में मनुष्यों के बीच मेरे आने-जाने की सारी भागदौड़ फलदायक रही है, और मैं अति प्रसन्न हूँ। मैं जिस चीज की परवाह करता हूँ, वह मनुष्यों की संख्या नहीं, बल्कि उनके अच्छे कर्म हैं। किसी भी स्थिति में, मैं आशा करता हूँ कि तुम लोग अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करोगे। तब मुझे संतुष्टि होगी; अन्यथा तुम लोगों में से कोई भी उस आपदा से नहीं बचेगा, जो तुम लोगों पर पड़ेगी। आपदा मेरे साथ उत्पन्न होती है और निश्चित रूप से मेरे द्वारा ही आयोजित की जाती है। यदि तुम लोग मेरी नजरों में अच्छे दिखाई नहीं दे सकते, तो तुम लोग आपदा भुगतने से नहीं बच सकते(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला। आपदाएँ बढ़ती ही जा रही हैं, परमेश्वर के प्रकट होने के लिए तरस रहे बहुत-से लोगों ने या तो उसकी वाणी नहीं सुनी है, या फिर उसका अंत के दिनों का उद्धार नहीं स्वीकारा है, इसलिए वक्त का तकाजा समझते हुए मैं चिंतित थी। इसलिए मैंने प्रार्थना की और परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार प्रचार करने के लिए उससे मार्गदर्शन माँगा।

जुलाई 2022 की शुरुआत में मैं कुछ भाई-बहनों के साथ एक गाँव में सुसमाचार प्रचार करने गई। वहाँ प्रचार के कारण एक भाई की रिपोर्ट किये जाने के बाद उसे गिरफ्तार किया जा चुका था, और इसलिए गाँव का मुखिया हर बार जब काउंटी सरकार की बैठक से लौटकर आता तो लोगों को यही कहता कि उन्हें धार्मिक होने की अनुमति नहीं है। अगर कोई विश्वासी मिल जाता तो उस पर भारी जुर्माना लगता या उसे गिरफ्तार कर लिया जाता था। इसलिए हम क्या प्रचार कर रहे हैं, किसी ने यह सुनने की हिम्मत ही नहीं की। वे चाहते थे कि उन्हें इस मामले पर गौर करने के लिए कहने से पहले हम गाँव के मुखिया से बात करें। मैं बाहरी थी। मेरे साथ सुसमाचार प्रचार करने वाले सभी लोग पड़ोसी गाँवों से थे और हम मुखिया को नहीं जानते थे। स्थानीय लोग भी हमें उससे मिलवाने नहीं ले जाते थे। मैं नहीं जानती थी कि इन मुश्किलों को कैसे हल करूँ, कभी भी हमारी रिपोर्ट होने और गिरफ्तारी का खतरा था। मैंने प्रार्थना करके परमेश्वर से रास्ता दिखाने को कहा। हमने एक सभा में परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “तुम्हें विश्वास होना चाहिए कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और लोग बस सहयोग कर रहे हैं। यदि तुम ईमानदार हो, तो परमेश्वर जान जाएगा, और वह हर हालात में तुम्हारे लिए रास्ता खोलेगा। किसी भी कठिनाई को पार करना मुश्किल नहीं है; तुम्हें यह विश्वास होना चाहिए। इसलिए, अपने कर्तव्य निभाते हुए, तुम लोगों को कोई आशंका नहीं होनी चाहिए। यदि तुम इसमें अपना सब कुछ लगाकर पूरे दिल से काम करोगे, तो परमेश्वर तुम्हें कठिनाइयाँ नहीं देगा, और न ही वह तुम्हें तुम्हारी क्षमता से अधिक कोई जिम्मेदारी देगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर पर विश्वास करने में सबसे महत्वपूर्ण उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव करना है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे विश्वास और शक्ति मिली। मैं गाँव के मुखिया से मिल पाऊँगी या नहीं, मेरी रिपोर्ट की जाएगी और गिरफ्तारी होगी या नहीं, यह सब परमेश्वर के हाथ में था। सुसमाचार फैलाना ही परमेश्वर का आदेश है, जिसे परमेश्वर पूरा होते देखना चाहता है। भले ही सरकार सताए और मुखिया रोड़े अटकाए, वे परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार फैलने से रोक नहीं सकते। परमेश्वर की भेड़ों को उसके पास लौटने से रोक नहीं सकते। जानती थी, जब तक हम अपना सब कुछ अपने काम में झोंकते रहेंगे, परमेश्वर राह दिखाता रहेगा और हमारे लिए रास्ता खोलेगा। परमेश्वर की इच्छा समझते ही, हममें सुसमाचार प्रचार की हिम्मत आ गई। पता चला कि पड़ोसी गाँव का एक भाई मुखिया का रिश्तेदार है। उसने कहा कि वह अगले दिन हमें मुखिया से मिलवाने ले चलेगा। उस शाम हम गाँव वापस लौटे और अच्छी मानवता वाले कुछ स्थानीय लोगों को सुसमाचार सुनाने गए। जब हम संगति कर रहे थे, गाँव का उप-मुखिया, दस्ते का लीडर, और खजांची अचानक आ पहुँचे, फिर थोड़ी-सी बात सुनकर लौट गए। एक निवासी ने कहा, “वे यह देखने आए थे कि क्या तुम लोग सुसमाचार प्रचार कर रहे हो। हमें और नहीं सुनना चाहिए। पहले मुखिया से बात करो, वह मान जाए तो हम और भी सुनेंगे।” हमारे पास चले जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था। घर लौटकर मैं काफी उदास थी। उप-मुखिया को पता था कि हम सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं। अगर वह हमारे आड़े आ गया तो गाँव के लोग सच्चा रास्ता देखने से रहे। यही नहीं, पहले उस भाई को खजांची की रिपोर्ट पर ही गिरफ्तार किया गया था। अब अपनी भी गिरफ्तारी के डर से मैं नहीं चाहती थी कि गाँव के मुखिया के पास जाकर बात करूँ। सुपरवाइजर ने मेरी दशा देखकर मेरे साथ संगति की, “इस तरह की स्थिति आने पर, हम पीछे नहीं हट सकते। हमें इस मौके का फायदा उठाकर गाँव के मुखिया से बात करनी चाहिए और उन्हें सुसमाचार सुनाना चाहिए। जब तक हम अपनी जिम्मेदारियाँ निभाते रहेंगे, हमारी अंतरात्मा बेदाग रहेगी, फिर चाहे वे सुसमाचार स्वीकारें या नहीं।” ठीक तभी, मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा : “सुसमाचार फैलाने में, लोगों को उनकी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और हर संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता के साथ ईमानदारी से पेश आना चाहिए। परमेश्वर यथासंभव मनुष्य को बचाता है, और लोगों को परमेश्वर की इच्छा के प्रति सजग रहना चाहिए, उन्हें ऐसे किसी भी व्यक्ति को लापरवाही से अनदेखा नहीं करना चाहिए जो सच्चे मार्ग की खोज और जाँच-पड़ताल कर रहा हो। ... अगर वह सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने के लिए तैयार और सत्य की खोज करने में सक्षम हो, तो उसे परमेश्वर के और ज्यादा वचन पढ़कर सुनाने और उसके साथ और ज्यादा सत्य की संगति करने, परमेश्वर के कार्य की गवाही देने और उसकी धारणाओं और प्रश्नों का समाधान करने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए, ताकि तुम उसे जीत कर परमेश्वर के सामने ला सको। यही सुसमाचार फैलाने के सिद्धांतों के अनुरूप है। तो उन्हें कैसे जीता जा सकता है? अगर बातचीत के दौरान तुम सुनिश्चित कर लेते हो कि उस व्यक्ति में अच्छी-खासी काबिलियत और अच्छी मानवता है, तो अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए तुम्हें जो बन पड़े करना चाहिए; तुम्हें एक खास कीमत चुकानी चाहिए, खास तरीकों और साधनों का उपयोग करना चाहिए, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम उस व्यक्ति को जीतने के लिए किन तरीकों और साधनों का उपयोग कर सकते हो। संक्षेप में, उसे जीतने के लिए, तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए, प्रेम का उपयोग करना चाहिए और तुम्हारी क्षमता में जो भी संभव है वह सब करना चाहिए। जो भी सत्य तुम समझते हो, उन सभी पर संगति करो और जो भी तुम्हें करना चाहिए वह सब करो। अगर उस व्यक्ति को जीत न भी पाओ, तो भी तुम्हारी अंतरात्मा साफ होगी। तुमने वह सब कर लिया होगा जो तुम कर सकते हो(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचन बताते हैं कि प्रचार करते हुए हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी ताकि हमारी अंतरात्मा साफ रहे। अगर सुसमाचार सुनने वाला व्यक्ति सिद्धांतों पर खरा उतरता है, तो हमें हर संभव तरीके से उसे सुसमाचार सुनाना चाहिए। सच्चे मार्ग को जाँचने-परखने में गाँव के लोगों की रुचि थी। सरकारी उत्पीड़न के कारण ही वे जुर्माना भरने या गिरफ्तार होने के डर से ही हमारी बात सुन नहीं रहे थे। मुझे अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए, परमेश्वर के वचनों के बारे में ज्यादा संगति करनी चाहिए, उनकी समस्याओं और दिक्कतों का हल निकालना चाहिए। अगर गाँव का मुखिया अच्छा व्यक्ति है, परमेश्वर के वचन सुनने को तैयार है, तो उसे सुसमाचार सुनाने के लिए मुझे हर चीज आजमानी चाहिए। इसे ही सच्चे ढंग से अपनी जिम्मेदारी निभाना कहेंगे। अगर मैंने रिपोर्ट किये जाने और गिरफ्तारी के डर से सुसमाचार का प्रचार नहीं किया, तो मैं परमेश्वर की कर्जदार बन जाऊँगी। परमेश्वर की इच्छा समझते ही, मुझमें मुखिया से बात करने और गाँव वालों को सुसमाचार सुनाने की हिम्मत आ गई।

अगले ही दिन वह भाई हमें मुखिया के घर ले गया। उप-मुखिया और खजांची भी वहीं थे। मानवजाति को बचाने का अपना तीन चरणों का कार्य परमेश्वर कैसे करता है, इस बारे में हमने संगति की, और उन्हें बताया कि हम अब अंत के दिनों में हैं, और यह कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही उद्धारक का आगमन है। वह सत्य व्यक्त कर रहा है और इंसान को शुद्ध कर बचाने के लिए न्याय का कार्य कर रहा है। हमें उसके न्याय और स्वच्छता को स्वीकारना होगा ताकि परमेश्वर हमें आपदाओं से बचा ले और हम उसके राज्य में प्रवेश कर लें। गाँव के मुखिया का कौतूहल बढ़ गया और उसने जाँच-पड़ताल करनी चाही। लेकिन, उप-मुखिया और खजांची, दोनों का ही रवैया खराब था। उन्होंने कहा, “हम सरकार की सुनते हैं। वह धार्मिक मान्यताओं की इजाजत नहीं देती, इसलिए हम विश्वास नहीं कर सकते। वरना, हमें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।” उनका पक्का रुख देखकर मैंने उन्हें परमेश्वर को सौंपा और प्रार्थना कर उससे मार्गदर्शन माँगा। फिर मैंने उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश सुनाया : “शायद तुम्हारा देश वर्तमान में समृद्ध हो रहा हो, किंतु यदि तुम लोगों को परमेश्वर से भटकने देते हो, तो वह स्वयं को उत्तरोत्तर परमेश्वर के आशीषों से वंचित होता हुआ पाएगा। तुम्हारे देश की सभ्यता उत्तरोत्तर पैरों तले रौंदी जाएगी, और जल्दी ही लोग परमेश्वर के विरुद्ध उठ खड़े होंगे और स्वर्ग को कोसने लगेंगे। और इसलिए, मनुष्य के बिना जाने ही देश का भाग्य नष्ट हो जाएगा। परमेश्वर शक्तिशाली देशों को उन देशों का मुकाबला करने के लिए ऊपर उठाएगा, जिन्हें परमेश्वर द्वारा श्राप दिया गया है, यहाँ तक कि वह पृथ्वी से उनका अस्तित्व भी मिटा सकता है। किसी देश का उत्थान और पतन इस बात पर आधारित होता है कि क्या उसके शासक परमेश्वर की आराधना करते हैं, और क्या वे अपने लोगों को परमेश्वर के निकट लाने और उसकी आराधना करने में उनकी अगुआई करते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। फिर मैंने संगति की, “सरकार अब आस्था की इजाजत नहीं देती है, परमेश्वर का विरोध भी करती है। आप उसकी सुनते हैं, परमेश्वर पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं कर रहे हैं। लोगों को वाकई बचा कौन सकता है—सरकार या परमेश्वर? महामारी इन दिनों बद से बदतर होती जा रही है। इंसान चाहे अमीर हो या गरीब, ऊँचे तबके का हो या निचले तबके का, आपदाओं के सामने कुछ भी नहीं है। कोई भी इंसान हमें न तो शैतानी शक्ति से बचा सकता है, न ही आपदाओं में सुरक्षित रख सकता है। हमें केवल परमेश्वर बचा सकता है! अंत के दिनों में परमेश्वर देहधारण कर चुका है और सत्य व्यक्त करते हुए इंसान को बचाने का काम कर रहा है। यह पूरे जीवनकाल में एक बार मिलने वाला अवसर है। आप सब इस गाँव के प्रभारी हैं। अगर आप गाँव वालों को परमेश्वर की आराधना की राह नहीं दिखाते, बल्कि उसका विरोध करते हैं, तो आप लोग हर व्यक्ति के भाग्य को बर्बाद कर देंगे।” उसके बाद गाँव के मुखिया ने कहा, “मैं मानता हूँ कि लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथ में है, और लोगों को परमेश्वर पर विश्वास की राह पर ले जाना चाहता हूँ।” खजांची ने कहा, “मैं जानता हूँ कि विश्वास रखना अच्छा है, लेकिन सरकार की बात न मानी तो हमें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। हमारे हाथ बँधे हुए हैं।” फिर मैंने उन्हें परमेश्वर के वचनों का एक और अंश सुनाया : “हमें विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ प्राप्त करना चाहता है, उसके मार्ग में कोई भी देश या शक्ति ठहर नहीं सकती। जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, परमेश्वर के वचन का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ते हैं, अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे। जो परमेश्वर के कार्य की अवहेलना करता है, उसे नरक भेजा जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य का विरोध करता है, उसे नष्ट कर दिया जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है, उसे इस पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा, और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मैं सभी राष्ट्रों, सभी देशों, और यहाँ तक कि सभी उद्योगों के लोगों से विनती करता हूँ कि परमेश्वर की वाणी को सुनें, परमेश्वर के कार्य को देखें, और मानवजाति के भाग्य पर ध्यान दें, ताकि परमेश्वर को सर्वाधिक पवित्र, सर्वाधिक सम्माननीय, मानवजाति के बीच आराधना का सर्वोच्च और एकमात्र लक्ष्य बनाएँ, और संपूर्ण मानवजाति को परमेश्वर के आशीष के अधीन जीने की अनुमति दें, ठीक उसी तरह से, जैसे अब्राहम के वंशज यहोवा की प्रतिज्ञाओं के अधीन रहे थे और ठीक उसी तरह से, जैसे आदम और हव्वा, जिन्हें परमेश्वर ने सबसे पहले बनाया था, अदन के बगीचे में रहे थे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। मैंने संगति की, “परमेश्वर का स्वभाव किसी भी मानव अपराध को नहीं सहता। वह अपने कार्य के खिलाफ जाने वाले सभी लोगों को सजा देगा। यही परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है, इससे कोई नहीं बच सकता। आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं। इनके जरिए परमेश्वर मानवजाति को याद दिलाता रहता है तो चेतावनी और दंड भी देता है। एक उदाहरण देता हूँ, म्यांमार के वा प्रांत के दक्षिणी हिस्से की सरकार बार-बार विश्वासियों को गिरफ्तार करती है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकारने की अनुमति नहीं देती है। यह परमेश्वर के खिलाफ गंभीर प्रतिरोध है। इस साल जून में वहाँ बाढ़ आई, बहुत-से मकान बह गए। दूसरों को नाराज करने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन परमेश्वर के विरोध के नतीजे गंभीर होंगे। हम सबने पहले भी परमेश्वर विरोधी काम किए हैं, लेकिन अगर हम परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप करेंगे और लोगों को सच्चा मार्ग जाँचने-परखने और परमेश्वर की ओर रुख करने की राह दिखाते रहेंगे, तो परमेश्वर रहम दिखाकर हमें माफ करेगा।” मेरी संगति के बाद, खजांची के तेवर उतने सख्त नहीं लगे। मुखिया और दूसरे सभी लोग मान गए और उन्होंने हमें गाँव वालों को सुसमाचार सुनाने दिया। अगली सुबह हमने गाँव वालों को इकट्ठा कर उन्हें अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की गवाही दी। दस दिन से ज्यादा की संगति के बाद गाँव के मुखिया और उप-मुखिया समेत 40 से ज्यादा लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया। वे परमेश्वर के वचन सुनने के लिए लालायित रहते, सभाओं में उत्साह पूर्वक भाग लेते, और उपदेश सुनने के लिए लोगों को इकट्ठा करते थे। बाद में, भाई-बहनों की साझा कोशिशों और कड़ी मेहनत के कारण कई गाँवों के लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया।

जैसे-जैसे अधिक से अधिक लोगों ने अंत के दिनों का परमेश्वर का सुसमाचार स्वीकारा, सरकार का उत्पीड़न और अधिक गंभीर होता गया। सुसमाचार प्रचार के कारण कई बार मेरी रिपोर्ट की गई थी। मेरे कस्बे के ज्यादातर लोग जानते थे कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करती हूँ, इसलिए पुलिस मुझे हर जगह खोज रही थी। मैं घर पर नहीं थी, तो वह मेरे माता-पिता के घर गई और मेरी अविश्वासी माँ को गिरफ्तार कर हिरासत में डाल दिया। मुझे बहुत गुस्सा आया। मेरी आस्था सही थी और उचित भी, सुसमाचार प्रचार करना भी सही काम था। सरकार ने मेरी आस्था और सुसमाचार प्रचार के कारण हर जगह मेरी खोज कराई और ऐलान किया कि जब तक मैं हाथ नहीं आती, मेरी माँ को नहीं छोड़ा जाएगा। यह बेहद दुष्ट रवैया है! मेरे परिवार ने मुझे नहीं समझा, कहा कि मेरी माँ की गिरफ्तारी के लिए मेरी आस्था जिम्मेदार है। उन्होंने मुझ पर निर्दयी होने का आरोप लगाया। मेरे भाई-बहन ने यहाँ तक कह दिया कि मुझे समर्पण कर देना चाहिए। मेरी दयनीय हालत थी, मैं वाकई परेशान थी कि मेरी माँ को कष्ट भोगने पड़ेंगे। मैं सुसमाचार का प्रचार करती रही मगर पहले जैसी सक्रिय होकर नहीं। दर्द के बीच मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। मेरी माँ गिरफ्तार कर ली गई और मेरा मुझे परिवार समझता नहीं है—मैं बहुत दुखी हूँ। मुझे आस्था दो ताकि मैं मजबूती से खड़ी रहूँ।” प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “तुम लोगों के बीच एक भी व्यक्ति नहीं है जो व्यवस्था द्वारा सुरक्षित है—इसके बजाय, तुम व्यवस्था द्वारा दण्ड के भागी ठहराए जाते हो। इससे भी अधिक समस्यात्मक यह है कि लोग, तुम लोगों को समझते नहीं हैं : चाहे वे तुम्हारे रिश्तेदार हों, तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारे मित्र, या तुम्हारे सहकर्मी हों, उनमें से कोई भी तुम लोगों को समझता नहीं है। जब परमेश्वर द्वारा तुम लोगों को त्याग दिया जाता है, तब तुम लोगों के लिए पृथ्वी पर और रह पाना असंभव हो जाता है, किंतु फिर भी, लोग परमेश्वर से दूर होना सहन नहीं कर सकते हैं, जो परमेश्वर द्वारा लोगों पर विजय प्राप्त करने का महत्व है, और यही परमेश्वर की महिमा है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल के तार झनझना दिए। विश्वासी के रूप में सुसमाचार साझा करना और जीवन में सही रास्ता पकड़ना इस संसार की सबसे धार्मिक चीज है। लेकिन परमेश्वर-विरोधी देशों में विश्वासियों को कानूनी सुरक्षा तो मिलती नहीं है, उलटे उनकी निंदा और गिरफ्तारी की जाती है और उनके परिवार वालों को भी फंसाया जाता है। सरकारी अधिकारी कहते हैं, नशा तस्करों और हत्यारों को माफी दी जा सकती है, मगर विश्वासियों को कभी नहीं। यही नहीं, अगर कोई विश्वासी पकड़ लिया जाए, तो उसे जुर्माना भरना, जेल में बंद होना या किसी अफसर की मजदूरी करनी पड़ती है। विश्वासियों से इंसानों की तरह व्यवहार नहीं किया जाता। यह ऐसा बुरा और दुष्ट देश है। यह आज का परमेश्वर विरोधी सदोम है। आज विश्वासी होने, परमेश्वर का अनुसरण करने का मतलब है सताया जाना, लेकिन परमेश्वर के वचनों से मैं उसकी इच्छा समझती थी। परमेश्वर इन कठिनाइयों के जरिए हमारी आस्था को पूर्ण कर रहा था, तो सरकार का परमेश्वर विरोधी दुष्ट सार समझने का विवेक भी दे रहा था, ताकि मैं शैतान को नकार कर छोड़ सकूँ और सच्चे मन से परमेश्वर की ओर मुड़ सकूँ। परमेश्वर की इच्छा समझने के बाद मुझे उतना डर नहीं लगा। लगा कि मैं परमेश्वर पर आश्रित रहने और सुसमाचार साझा करने को तैयार हूँ।

बाद में, मैंने नए विश्वासियों को इकट्ठा कर उनके साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति की ताकि वे परमेश्वर के कार्य को जानकर उसकी इच्छा समझ सकें। हमने परमेश्वर के वचनों का यह भजन साथ-साथ सुना, “समय जो गँवा दिया कभी वापस न आएगा” : “जागो, भाइयो! जागो, बहनो! मेरे दिन में देरी नहीं होगी; समय जीवन है, और समय को थाम लेना जीवन बचाना है! वह समय बहुत दूर नहीं है! यदि तुम लोग महाविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते, तो तुम पढ़ाई कर सकते हो और जितनी बार चाहो फिर से परीक्षा दे सकते हो। लेकिन, मेरा दिन अब और देरी बर्दाश्त नहीं करेगा। याद रखो! याद रखो! मैं इन अच्छे वचनों के साथ तुमसे आग्रह करता हूँ। दुनिया का अंत खुद तुम्हारी आँखों के सामने प्रकट हो रहा है, और बड़ी-बड़ी आपदाएँ तेज़ी से निकट आ रही हैं। क्या अधिक महत्वपूर्ण है : तुम लोगों का जीवन या तुम्हारा सोना, खाना-पीना और पहनना-ओढ़ना? समय आ गया है कि तुम इन चीज़ों पर विचार करो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 30)। भजन सुनने के बाद मैंने संगति की, “कुछ लोग कहते हैं कि वे तब विश्वास करेंगे जब शैतान की ताकतें हार जाएँगी और कोई अत्याचार नहीं होगा, लेकिन तब तक मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का काम पूरा हो चुका होगा, और हम परमेश्वर से उद्धार पाने का मौका पूरी तरह गँवा चुके होंगे। अगर हमें सरकार रोक लेती है और उसके कहने पर हम आस्था रखने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं, तो क्या सरकार हमें बचा सकती है? बिल्कुल नहीं। सिर्फ परमेश्वर हमें बचा सकता है। अगर हम सरकार की सुनें और परमेश्वर पर विश्वास न करें तो हम अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार खो बैठेंगे। जब परमेश्वर का कार्य खत्म होगा, शैतान के साथ हम भी नष्ट हो जाएँगे। हमने अपनी आस्था के कारण सरकारी उत्पीड़न और गिरफ्तारियाँ सही हैं, लेकिन इन कष्टों का मूल्य है। अगर हम परमेश्वर से उद्धार पाना चाहते हैं तो हमें कीमत चुकानी होगी। परमेश्वर तो हर चीज पर राज करता है, हमारा गिरफ्तार होना या न होना भी पूरी तरह उसके हाथ में है। अगर हम गिरफ्तार होते हैं तो यह परमेश्वर की अनुमति से होगा। हमें उसके प्रति समर्पित होकर अपना सबक सीखना होगा।” फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन पढ़े : “जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर ‘विजेताओं’ के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाह बनने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाह बनते हो, और इसी को परमेश्वर ‘विजेता’ होने के रूप में संदर्भित करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए)। “अब तुम्हें यह देखना चाहिए कि मनुष्य के उद्धार के समय परमेश्वर द्वारा शैतान को नष्ट न किए जाने का कारण यह है कि मनुष्य स्पष्ट रूप से देख सकें कि शैतान ने उन्हें कैसे और किस हद तक भ्रष्ट किया है, और परमेश्वर कैसे उन्हें शुद्ध करके बचाता है। अंततः, जब लोग सत्य समझ लेंगे और शैतान का घिनौना चेहरा स्पष्ट रूप से देख लेंगे, और शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का राक्षसी पाप देख लेंगे, तो परमेश्वर उन्हें अपनी धार्मिकता दिखाते हुए शैतान को नष्ट कर देगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। मैंने संगति की, “परमेश्वर सरकार को उत्पीड़न और गिरफ्तारियाँ करने देता है। वह परखता है कि हम सचमुच परमेश्वर पर विश्वास करते हैं या नहीं, हममें आस्था है या नहीं। इस तरह के उत्पीड़न और कष्टों के बीच, क्या हम अपनी आस्था कायम रख पाते हैं, नकारात्मक होकर पीछे हटने या परमेश्वर को धोखा देने के बजाय, परमेश्वर का अनुसरण जारी रखते हुए सभाएँ और सुसमाचार प्रचार करते रहते हैं, तो इसे गवाही देना कहते हैं और तब शैतान शर्मसार होकर धूल चाटेगा। उस कष्ट का मूल्य है। परमेश्वर शैतान को तुरंत नष्ट क्यों नहीं कर देता? क्योंकि शैतान का इस्तेमाल करना विजेताओं के समूह को पूर्ण बनाने का एक तरीका है, जो हमें अच्छाई-बुराई का भेद भी सिखाता है। हम समझ सकते हैं कि लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर कैसे काम करता है और शैतान कैसे उन्हें भ्रष्ट और आहत करता है। फिर एक दिन जब परमेश्वर शैतान को नष्ट करेगा, हम देखेंगे कि परमेश्वर कितना धार्मिक है। अगर परमेश्वर शैतान को सीधे मिटा दे, तो हमें शैतान की समझ नहीं होगी, और हम न तो इससे नफरत करेंगे, न ही इसे छोड़ेंगे। शैतान की परमेश्वर-विरोधी हुकूमतों, और सरकार चलाने वाले उन शैतानों की तरह—वे स्वांग रचने और धोखा देने में उस्ताद हैं। अगर वे कुछ अच्छे काम करती दिखती हैं, तो सिर्फ इसलिए ताकि लोग उनकी सराहना करें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट हो चुका है और अंत के दिनों में मानवजाति को बचाने का काम कर रहा है। उसने उन हुकूमतों का परमेश्वर विरोधी सार उजागर कर दिया। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नकारती हैं, उसकी निंदा करती हैं और उसके विश्वासियों को गिरफ्तार कर जुर्माना लगाती हैं या सजा देकर जेल में बंद कर देती हैं। वे बिल्कुल दुष्ट शैतान की तरह हैं, जो लोगों से अपनी पूजा कराता है और उन्हें परमेश्वर पर विश्वास और उसका अनुसरण नहीं करने देता। आखिरकार वे सभी नरक में जाएँगे और शैतान के साथ ही सजा भुगतेंगे।” संगति के बाद, नए सदस्यों को अच्छे-बुरे का भेद पता चला और विश्वास मिला, उन सबने सभा में सक्रिय होकर भाग लिया। मैं वाकई खुश थी।

उसके बाद वे नए सदस्य अपने कुछ प्रियजनों को उपदेश सुनाने लाए। कुछ ही दिनों में उस गाँव के 80 से अधिक लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया। मैंने देखा कि शैतान की चालबाजी भाँपकर ही परमेश्वर की बुद्धि ने काम किया। शैतान ने सुसमाचार कार्य रोकने, हमें हताश और निराश करने के लिए सभी तरह की चालें चलीं, लेकिन परमेश्वर के वचनों ने हमें आस्था और शक्ति दी। सुसमाचार सुनाने के लिए हमने अपना सब कुछ झोंक दिया, और परमेश्वर के मार्गदर्शन देखा। मैं वाकई परमेश्वर की आभारी थी। मैं समझ गई कि परमेश्वर जिस काम को पूरा करना चाहता है, उसे कोई इंसान नहीं रोक सकता, सुसमाचार साझा करने के लिए मेरी आस्था और बढ़ गई।

सितंबर 2022 में, एक नई विश्वासी सुसमाचार फैलाने के लिए हमें अपने माता-पिता के गाँव ले गई, जहाँ करीब 40 लोग सच्चे मार्ग को जानना चाहते थे। मैं बहुत खुश थी, मैं उन्हें परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देने लगी। फिर मुझे यह खबर मिली कि क्षेत्रीय सरकार के अधिकारियों ने अपनी बैठक में मेरी फोटो दिखाकर मुझे वांछित अपराधी बताया था, लोगों से मुझे सुसमाचार फैलाते देख रिपोर्ट करने को कहा। पुलिस जगह-जगह गाड़ियों को रोककर मेरी तलाश कर रही थी। मैंने सोचा, पुलिस हर जगह मुझे तलाश रही है, अगर मैं कभी उनके हाथ लगी, तो शायद वह मुझे मार ही डाले। क्या मुझे सुसमाचार फैलाते रहना चाहिए? अगर मैं रुक गई, तो परमेश्वर के कार्य की जाँच कर रहे उन गाँव वालों का क्या होगा? वे परमेश्वर की वाणी सुनकर उसका नया कार्य स्वीकार नहीं कर पाएँगे। यह अपनी जिम्मेदारी निभाना नहीं होगा। भाई-बहन मेरी सुरक्षा की खातिर मुझे दूर भेज देना चाहते थे। मैं डरी हुई थी, इसलिए उनकी बात मान ली और चली गई। इसके बाद मुझे बहुत ग्लानि हुई। मैं वापस जाकर उन गाँव वालों को सुसमाचार सुनाती रहना चाहती थी। इसलिए मैंने प्रार्थना की, “परमेश्वर, पुलिस हर जगह मेरी तलाश कर रही है, मुझे डर लग रहा है। मगर मैं जानती हूँ कि मेरा गिरफ्तार होना या न होना, सब तुम्हारे हाथों में है। मैं सब कुछ तुम पर छोड़ देना चाहती हूँ। मुझे रास्ता दिखाओ ताकि मुझे प्रचार करते रहने और तुम्हारे लिए गवाही देने की आस्था मिले।” बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों में कुछ पढ़ा : “क्या तू अपने कधों के बोझ, अपने आदेश और अपने उत्तरदायित्व से अवगत है? ऐतिहासिक मिशन का तेरा बोध कहाँ है? तू अगले युग में प्रधान के रूप में सही ढंग से काम कैसे करेगा? क्या तुझमें प्रधानता का प्रबल बोध है? तू समस्त पृथ्वी के प्रधान का वर्णन कैसे करेगा? क्या वास्तव में संसार के समस्त सजीव प्राणियों और सभी भौतिक वस्तुओं का कोई प्रधान है? कार्य के अगले चरण के विकास हेतु तेरे पास क्या योजनाएं हैं? तुझे चरवाहे के रूप में पाने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, भ्रमित, अंधकार में विलाप कर रहे हैं—मार्ग कहाँ है? उनमें टूटते तारे जैसी रोशनी के लिए कितनी ललक है जो अचानक नीचे आकर उन अंधकार की शक्तियों को तितर-बितर कर दे, जिन्होंने वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे किस हद तक उत्सुकतापूर्वक आस लगाए बैठे हैं और कैसे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? उस दिन भी जब रोशनी चमकती है, भयंकर कष्ट सहते, रिहाई से नाउम्मीद ये लोग, अंधकार में कैद रहते हैं; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएँ बेहद बदकिस्मत हैं, जिन्हें कभी विश्राम नहीं मिला है। सदियों से ये इसी स्थिति में क्रूर बधंनों और अवरुद्ध इतिहास में जकड़े हुए हैं। उनकी कराहने की आवाज किसने सुनी है? किसने उनकी दयनीय दशा को देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिस मानवजाति को उसने अपने हाथों से रचा, उस निर्दोष मानवजाति को ऐसी पीड़ा में दुःख उठाते देखना वह कैसे सह सकता है? आखिरकार मानवजाति को विष देकर पीड़ित किया गया है। यद्यपि मनुष्य आज तक जीवित है, लेकिन कौन यह जान सकता था कि उसे लंबे समय से दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि शिकार हुए लोगों में से तू भी एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की खातिर, क्या तू उन जीवित बचे लोगों को बचाने का इच्छुक नहीं है? क्या तू उस परमेश्वर को प्रतिफल देने के लिए अपना सारा ज़ोर लगाने को तैयार नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है? सभी बातों को नज़र में रखते हुए, तू एक असाधारण जीवन व्यतीत करने के लिए परमेश्वर द्वारा प्रयोग में लाए जाने की व्याख्या कैसे करेगा? क्या सच में तुझमें एक धर्म-परायण, परमेश्वर-सेवी जैसा अर्थपूर्ण जीवन जीने का संकल्प और विश्वास है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन पर कैसे ध्यान देना चाहिए?)। परमेश्वर के वचनों से मुझे प्रेरणा मिली, पर खुद को दोषी भी महसूस किया। बहुत-से लोगों ने अब तक अंत के दिनों का परमेश्वर का उद्धार नहीं स्वीकारा है, वे शैतान की सत्ता में जी रहे हैं। वे लाचार और पीड़ा में हैं। परमेश्वर उनके लिए दुखी है और तुरंत कुछ करना चाहता है। उनमें से कई लोग पैसा कमाने के लिए बहुत काम करते हैं, मुश्किल और थकाऊ जीवन जीते हैं, कुछ लोग पैसा पा लेने के बाद भी अंदर से खाली और दुखी महसूस करते हैं। उन्हें मानव जीवन का मूल्य नहीं पता और उनके जीवन में कोई दिशा नहीं है। कुछ लोग सच्चा मार्ग खोजना चाहते हैं, पर वे सरकार के उत्पीड़न और गिरफ्तारियों से बहुत डरते हैं। हमें उनके साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति करनी होगी, उसके कार्य की गवाही देनी होगी, और उसके वचनों से उनकी समस्याएँ हल करनी होंगी, ताकि वे परमेश्वर के वचनों में सत्य, रोशनी और उम्मीद की किरण देखकर उसका उद्धार स्वीकार पाएँ। इन दिनों आपदाएँ बद-से-बदतर होती जा रही हैं, बहुत-से लोगों ने अब तक परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी है। उनके पास आपदा में बचाव के लिए कुछ भी नहीं है। इन लोगों को सुसमाचार सुनाना मेरी जिम्मेदारी थी। परमेश्वर नहीं चाहता कि जिन्हें वह बचाना चाहता है उनमें से कोई भी आपदाओं में घिर जाए। अगर मैंने अपनी सुरक्षा की खातिर सुसमाचार फैलाना बंद कर दिया, तो मैं अपना कर्तव्य नहीं कर रही होऊँगी। फिर मुझ पर परमेश्वर का बहुत कर्ज होगा, और मैं उसके परिवार का हिस्सा कहलाने लायक नहीं रहूँगी। मैंने याद किया कि मैं भी कभी इन्हीं गाँव वालों की तरह थी, शैतान के वश में जीती थी, कोई लक्ष्य या उम्मीद नहीं थी। परमेश्वर भाई-बहनों को मुझे सुसमाचार सुनाने के लिए बार-बार प्रेरित करता रहा, जब तक मैंने परमेश्वर की वाणी सुनकर अंत के दिनों का उसका उद्धार नहीं पा लिया। यह मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम और दया थी। मुझे परमेश्वर की इच्छा का ख्याल रखकर, उसके कार्य की गवाही देने और उसका प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करनी थी। अगले दिन, मैं सुसमाचार फैलाना जारी रखने के लिए वापस उसी गाँव में गई। पर कुछ ही दिनों बाद, जो नई विश्वासी हमें वहाँ लेकर गई थी वह किसी जरूरी काम से दूसरी जगह चली गई। मैं थोड़ी चिंता में पड़ गई। किसी स्थानीय व्यक्ति की सुरक्षा न होने पर क्या मैं गिरफ्तार हो जाऊँगी? लेकिन अगर मैंने सुसमाचार फैलाना बंद कर दिया, तो सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने वालों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकारने में देरी हो जाएगी। पिछले कुछ दिनों से, वे लोग हमारे उपदेश सुनने के लिए पहाड़ों में छिप-छिपाकर आते थे ताकि सत्य की खोज और जांच-पड़ताल कर सकें। वे सत्य के लिए तड़प रहे थे। अगर मैं गिरफ्तारी के डर से भाग गई, प्रचार करना जारी नहीं रखा, तो मैं उनकी ऋणी बनकर परमेश्वर को दुख पहुँचाऊँगी। मैं एक-एक करके सच्चे मार्ग की जाँच करने वालों से मिली, उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सुनाये। अंत में, उन सबने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया। उसके बाद, वे दूसरों को हमारे उपदेश सुनाने लाये। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सुनकर ज्यादा-से-ज्यादा लोग परमेश्वर का नया कार्य स्वीकारने लगे। परमेश्वर का मार्गदर्शन देखकर, मैं उसकी बहुत आभारी हो गई। गाँव का गश्ती दल अक्सर शाम में गश्त लगाता था, इसलिए हमारी सभाएँ सीमित थीं। मैंने नए विश्वासियों से परमेश्वर के वचनों पर संगति की ताकि वे शैतान की चालों को समझें और गुप्त रूप से सभा करना सीखें। इस बारे में जानने के बाद, उन पर सरकार का ज्यादा डर नहीं रहा। वे सभी रात में सभा करने के लिए पहाड़ियों या खेतों के रास्ते चले आते। यह देखकर प्रचार करने का मेरा उत्साह और बढ़ गया।

मुझे याद है, एक बहन ने मुझसे कहा था कि मैंने जिन लोगों को सुसमाचार सुनाया था उनमें से कुछ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। उनका अविश्वासी परिवार मेरे तक घर गया और कहा कि वे मुझे मार डालेंगे। मेरी बहन ने मुझे सावधान रहने को कहा। मैं बहुत डर गई। अगर तब मैं घर पर होती, तो न जाने वे मेरे साथ क्या करते। अगर मैं वहाँ सुसमाचार फैलाती रही, और उन्होंने मुझे पकड़ लिया, तो बेशक मुझे आसानी से जाने नहीं देंगे। मैं वहाँ सुसमाचार फैलाना बंद करके उस जगह से चली जाना चाहती थी। मगर जाने की बात सोचकर मैं बहुत परेशान हो गई। फिर मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आये : “तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और मेरे द्वारा तुम्हें दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि मेरे साथ यह सब परमेश्वर की अनुमति से हो रहा था। मैं सुसमाचार का प्रचार कर, परमेश्वर के कार्य की गवाही दे रही थी, तो मेरी मनोदशा बिगाड़ने के लिए शैतान का मेरे रास्ते में आना तय ही था, ताकि मैं डरकर सुसमाचार फैलाना बंद कर दूं। यह शैतान का दुष्ट इरादा था। अगर मैंने खतरनाक हालात से डरकर सुसमाचार फैलाना बंद कर दिया, तो क्या मैं शैतान की चालों में नहीं फँस जाऊँगी? मेरा गिरफ्तार होना न होना, मरना-जीना, सब परमेश्वर के हाथों में था। जब शैतान अय्यूब की परीक्षा ले रहा था, उसने काफी कुछ सहा। उसने अपने बच्चे खो दिए, सारा धन खो दिया, और उसके पूरे शरीर पर फोड़े निकल आये। मगर परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब का जीवन नहीं छीनने दिया। शैतान की परमेश्वर के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं थी—उसने अय्यूब के जीवन को नुकसान नहीं पहुँचाया। अब अगर परमेश्वर उन लोगों को मुझे नुकसान पहुँचाने न दे, तो वे मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएँगे। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में था—मेरी जिंदगी और मौत का फैसला वे नहीं कर सकते। अगर गिरफ्तार हुई भी तो इसमें परमेश्वर की नेक इच्छा होगी, और मुझे उसे स्वीकारना चाहिए। मैंने मन में सोचा, इस गाँव में चीजें बिगड़ गई हैं, तो दूसरे गाँव में जाकर प्रचार कर सकती हूँ। अगर मैं बुद्धिमानी से काम लेकर सावधान रही तो सब सही रहेगा। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा : “जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो दूसरे को भाग जाना(मत्ती 10:23)। फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन पढ़े : “परमेश्वर के पास उसके प्रत्येक अनुयायी के लिए एक योजना है। उनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए परमेश्वर द्वारा बनाया गया एक परिवेश है, जिसमें वह अपना कर्तव्य निभा सकता है, और उसके पास परमेश्वर का अनुग्रह और कृपा है जो मनुष्य के आनंद लेने के लिए है। उसके पास विशेष परिस्थितियाँ भी होती हैं, जिन्हें परमेश्वर मनुष्य के लिए निर्धारित करता है, और बहुत सारी पीड़ा है जो उसे सहनी होगी—सहज जीवन जैसा कुछ नहीं होता, जैसी कि मनुष्य कल्पना करता है। इसके अलावा, यदि तुम यह स्वीकारते हो कि तुम सृजित प्राणी हो, तो तुम्हें सुसमाचार फैलाने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करने और अपना कर्तव्य समुचित रूप से निभाने की खातिर कष्ट भुगतने और कीमत चुकाने के लिए स्वयं को तैयार करना होगा। यह कीमत कोई शारीरिक बीमारी या कठिनाई या बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न या सांसारिक लोगों की गलतफहमियाँ, और साथ ही वे क्लेश सहना भी हो सकती है जिनसे सुसमाचार फैलाते समय व्यक्ति गुजरता है : जैसे विश्वासघात किया जाना, पिटाई और डाँट-फटकार किया जाना; निंदा किया जाना—यहाँ तक कि घेरकर हमला किया जाना और मृत्यु के खतरे में डाल दिया जाना। सुसमाचार फैलाने के दौरान, यह संभव है कि परमेश्वर का कार्य पूरा होने से पहले ही तुम्हारी मृत्यु हो जाए, और तुम परमेश्वर की महिमा का दिन देखने के लिए जीवित न बचो। तुम्हें इसके लिए तैयार रहना चाहिए। इसका उद्देश्य तुम लोगों को भयभीत करना नहीं है; यह सच्चाई है। ... प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उनकी भर्त्सना की गई, पीटा गया, डाँटा-फटकारा गया और मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था और उन्हें इस संसार के लोगों ने ठुकरा दिया था—इस तरह वे शहीद हुए। ... उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उनके जीवन को, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि समस्त मानवजाति के लिए उसने जो छुटकारे का कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे अपने बाध्यकारी कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि प्रभु यीशु के शिष्यों को सुसमाचार फैलाने की खातिर काफी निंदा झेलनी पड़ी, उन्हें जेल में डाल दिया गया, और उन्होंने सभी तरह के अत्याचार सहे। उनमें से कई तो शहीद हो गए। उनका अंत चाहे जैसे भी हुआ हो, वे अपना मूल्यवान जीवन त्याग सके और मौत आने पर भी परमेश्वर को नहीं ठुकराया। उन्होंने परमेश्वर के लिए गवाही दी और अपना जीवन देकर उसे महिमा दी। यह सबसे शानदार गवाही और कर्तव्य निभाने का बेहतरीन तरीका है। पर जहाँ तक मेरी बात है, जब सरकार ने मेरा पीछा किया और दुष्ट लोगों ने धमकी दी, तो मैंने अपने जीवन के लालची में गाँव से भागना चाहा, नए विश्वासियों के बीच प्रचार और सिंचन करना नहीं चाहा। मेरी गवाही कहाँ थी? मैंने विचार किया : जीने-मरने के हालात का सामना करते हुए हर बार मैं आखिर इतना डर क्यों जाती थी? क्योंकि मुझे अपना जीवन बहुत प्यारा था, मैं जीवन-मरण को समझ नहीं पाई थी। सच तो यह है कि परमेश्वर पहले ही हमारा जीवन-मरण तय कर चुका है। परमेश्वर के लिए शहीद होने से शरीर भले नष्ट हो जाए, यह असल में मौत नहीं होती है। इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हें अच्छा परिणाम या मंजिल नहीं मिलेगी। प्रभु यीशु ने कहा था : “जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा(मत्ती 16:25)। अगर मैंने अपना कर्तव्य नहीं निभाया और जीवन बचाने के लिए परमेश्वर को धोखा दिया, तो मेरे शरीर को भले ही कष्ट न हो, पर परमेश्वर मुझे घृणा से निकाल देगा और मेरी आत्मा को दंड मिलेगा। अगर मैंने परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपना जीवन त्याग दिया, उसे धोखा देने के बजाय मौत को चुना, तो इससे शैतान शर्मिंदा होगा, और यह सार्थक होगा। इसका एहसास होने पर, मेरे मन से जीवन का डर खत्म हो गया और मैंने प्रण लिया : जब तक मुझे जेल नहीं होगी, जब तक मेरी साँसें चलती रहेंगी, मैं सुसमाचार फैलाऊँगी, शैतान को शर्मिंदा करने को परमेश्वर की गवाही दूँगी। इसके बाद मैंने सुसमाचार फैलाना जारी रखा। जल्दी ही, गाँव में ज्यादातर लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया।

इसके बाद मैं सुसमाचार फैलाने के लिए दूसरे गाँव चली गई। पहले-पहल एक दर्जन से ज्यादा लोग आये, पर जब हम एक पति-पत्नी को सुसमाचार सुना रहे थे, तभी कस्बे की सरकार ने हमें ढूँढ निकाला। कस्बे का मुखिया, उप-मुखिया, खजांची और गश्ती दल के कुछ सदस्य—कुल मिलाकर करीब दर्जन भर लोग—तेजी से कमरे में घुस आये और हमें उनके साथ चलने को कहा। मैं तब बहुत घबरा गई थी। क्या वे मुझे गिरफ्तार करके जेल भेज देंगे? सरकार मेरे पीछे पड़ी थी। उन्होंने घर-घर जाकर कहा था कि मुझे सुसमाचार फैलाते देखकर मेरी रिपोर्ट करें। अगर मैं पहचान ली गई तो वे मुझे आसानी से नहीं छोड़ेंगे। और उन नए विश्वासियों पर इसका असर पड़ेगा—उसका क्या? मैं बिना रुके प्रार्थना करती रही, परमेश्वर से मुझे आस्था देने को कहा ताकि मैं डटकर गवाही दे सकूँ। जल्दी ही, उस गाँव में सुसमाचार फैलाने गए एक भाई-बहन को गिरफ्तार कर लिया गया। वे हमें कस्बे की सरकार के पास लेकर आये और हमारे फोन छीन लिए। फिर कस्बे का मुखिया हमसे पूछताछ करने लगा : “कौन हो तुम लोग? क्या तुम यहाँ सुसमाचार फैलाने आये हो?” हमने जवाब नहीं दिया। तो उन्होंने हमें एक अँधेरे कमरे में डाल दिया और गश्ती दल के पांच-छह सदस्यों को हम पर नजर रखने को कहा। मुझे डर था कि वे मुझे पहचान लेंगे। अगर मुझे अपने गाँव भेज दिया गया, तो मेरा जेल जाना, यातना झेलना और उनका बुरा बर्ताव सहना तय था। क्षेत्रीय सरकार के मुखिया ने कहा, मुझे पकड़ने के बाद वे मेरे बाल काट डालेंगे, गले में तख्ती डालकर चारो तरफ घुमाया जाएगा। उस वक्त, मैं प्रार्थना करती जा रही थी, “हे परमेश्वर, मुझे मेरी गिरफ्तारी मंजूर है, पर मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है। मुझे आस्था दो और मेरा ख्याल रखो ताकि मैं अडिग रह सकूँ।” प्रार्थना के बाद, मैंने पहले देखे एक गवाही वीडियो को याद किया। कुछ भाई-बहनों को चीनी पुलिस ने जेल में पीट-पीटकर मार डाला था, उन्होंने मौत के सामने भी परमेश्वर को नकारा या धोखा नहीं दिया। कई अन्य लोगों को बेरहमी से यातना दी गई, सजा देकर जेल में डाल दिया गया, पर परमेश्वर से प्रार्थना और उस पर भरोसा करके, परमेश्वर के वचनों से उनके मन में सच्ची आस्था जगी। उन्होंने अंतिम सांस तक उसे धोखा न देने की कसम खाई, चाहे उम्रकैद ही क्यों न हो जाए। उन्होंने मजबूत और शानदार गवाही दी। मुझे इससे खूब प्रेरणा मिली। मुझे परमेश्वर के वचन याद आये : “कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि अंत के दिनों का उसका कार्य वचनों से हमारी आस्था और प्रेम को पूर्ण करना है, ताकि हम उत्पीड़न और मुश्किलों में उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव कर सकें, और उसके वचन हमारा जीवन बन जाएँ। मैंने सोचा कि सरकार ने किस तरह मुझे सताया और मेरा पीछा किया। जब मैं बुजदिल और डरपोक थी, तब परमेश्वर के वचनों ने ही मुझे रास्ता दिखाया था, सुसमाचार फैलाते रहने की आस्था दी। अब जब पकड़े जाने पर, अडिग रहने के लिए मुझमें आस्था होनी चाहिए। चाहे मुझे जेल में रहना पड़े, बुरा बर्ताव सहना पड़े, या मेरी मौत भी हो जाए, मैं समर्पण के लिए तैयार थी। फिर मुझे कलीसिया का एक भजन “जीवन की गवाही” याद आई : “परमेश्वर की गवाही देने के कारण मुझे ले लिया जाएगा हिरासत में एक दिन और यातना दी जाएगी। यह पीड़ा है धार्मिकता के लिए, जो मैं जानता हूँ अपने दिल में। अगर मेरी ज़िंदगी पलक झपकते ही गुज़र जाती है, मुझे फिर भी है फ़ख्र मसीह के पीछे चलने का इस जीवन में उसकी गवाही देने का। अगर मैं राज्य के सुसमाचार के विस्तार की महान घटना न देख पाऊँ, मैं फिर भी सबसे ख़ूबसूरत कामनाएं अर्पित करूंगा। अगर मैं उस दिन को नहीं देख पाया जब राज्य असलियत बनता है, फिर भी आज मैं शैतान को शर्मिंदा कर सकता हूं। फिर, खुशी और शांति से भर जाएगा मेरा दिल। ... परमेश्वर के वचन पूरी दुनिया में फैले हैं, प्रकाश प्रकट हुआ है इंसान के बीच। मसीह का राज्य खड़ा हो रहा है, विपत्ति के बीच स्थापित हो रहा है। अंधेरा गुज़रने वाला है, एक धार्मिक सुबह आ चुकी है। समय और वास्तविकता ने परमेश्वर की गवाही दी है” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। इस भजन से मुझे बहुत प्रेरणा मिली। मैंने समझा, अगर मुझे सुसमाचार फैलाने के कारण गिरफ्तार किया जाता है, तो यह धार्मिकता की खातिर होगा। अब पकड़े जाने के बाद शायद मुझे जेल ही होगी, मैं सुसमाचार प्रचार नहीं कर पाऊँगी। मगर गिरफ्तारी और अत्याचार सहकर भी, मेरे पास परमेश्वर के लिए शानदार गवाही देकर शैतान को शर्मिंदा करने का मौका था। मुझे बहुत गर्व हुआ। इससे मुझे आस्था मिली। सुबह होने के बाद, उन्होंने दोबारा हमसे सवाल किये। कोई जवाब न मिलने पर उन्होंने हमसे जुर्माने के तौर पर 3,000 क्यात मांगे और हमें जाने दिया। उन्होंने हमें सुसमाचार न फैलाने की चेतावनी दी, और परमेश्वर के लिए बहुत-सी निंदनीय बातें भी कहीं। मुझे उन राक्षसों से और भी घृणा हो गई।

जेल से छूटने के बाद भी मैंने सुसमाचार फैलाना जारी रखा। एक दिन, एक भाई ने मुझे कॉल करके बताया, “कस्बे के अधिकारियों को पता चल गया है कि आप बाहर से सुसमाचार फैलाने आई हैं। उन्होंने मुझे और दो नए विश्वासियों को गिरफ्तार किया था, ताकि हम आपका पता बता दें। मगर जब हमने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने जुर्माना लेकर हमें जाने दिया। उन्होंने यह भी कहा कि अगर आप दोबारा उन्हें कहीं सुसमाचार फैलाते दिखीं तो वहीं आपका बलात्कार करेंगे। उन्हें हर जगह आपकी तलाश है, जल्दी करिए और भाग जाइए...।” मुझे इस भाई की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था। यह सुनकर कि अगर उन्होंने मुझे दोबारा सुसमाचार फैलाते देखा तो मेरा बलात्कार करेंगे, मैं आग-बबूला हो गई। वे लोग वाकई राक्षस थे, उनमें कोई मानवता नहीं थी! मैं बस सुसमाचार फैलाने वाली एक विश्वासी थी, पर उनके मन में इतनी नफरत थी। वे हमें आस्था नहीं रखने देंगे, वे चाहते हैं कि हमें गिरफ्तार करके सताएँ, जुर्माना लगाएं, मेरा बलात्कार कर मर्यादा भंग करें। वे वाकई परमेश्वर-विरोधी राक्षस थे। वे मेरा जितना उत्पीड़न करते, मैं उतना ही सुसमाचार फैलाना और गवाही देना चाहती थी।

फिर अक्टूबर में, हम सुसमाचार फैलाने के लिए दूसरे गाँव में गए। भाई-बहन वहाँ पहले भी सुसमाचार प्रचार कर चुके थे, पर वहाँ के पादरी ने विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जाँच से दूर रखने के लिए अफवाहें फैलाईं और सरकार विश्वासियों की गिरफ्तारी करने लगी। अफवाहों से गुमराह हुए गाँव वालों ने गिरफ्तारी के डर से सच्चे मार्ग की जाँच बंद कर दी। वहाँ सुसमाचार फैलाना हमारे लिए मुश्किल होगा। मैंने प्रार्थना करके परमेश्वर से मार्गदर्शन माँगा। फिर, मैंने सत्य की अच्छी समझ रखने वाले चार लोगों को खोजा और उनके साथ सच्चे मार्ग, और झूठे मार्ग पर संगति की, बताया कि कैसे परमेश्वर अंत के दिनों में शैतान के उत्पीड़न और बाधाओं द्वारा लोगों को उजागर और पूर्ण करता है, गेहूं को घासफूस से और बुद्धिमान कुंवारियों को बेवकूफों से अलग करता है। बेवकूफ लोग सिर्फ इंसानों की यानी शैतान की सुनते हैं। प्रभु वापस आ चुका है और उसने वचन बोले हैं, यह सुनकर भी वे खोज या जाँच नहीं करते, इसलिए वे दूल्हे का स्वागत नहीं कर सकते। जो परमेश्वर की वाणी सुनना चाहते हैं, उसका अनुसरण करने में जिनकी आस्था अडिग है, वे ही बुद्धिमान कुंवारियाँ हैं। सिर्फ वे ही प्रभु के साथ विवाह भोज का आनंद उठा सकते हैं। संगति के बाद, वे चारो जाँच-पड़ताल जारी रखना चाहते थे। अगले कुछ दिनों तक, मैंने उनके लिए सभाएं आयोजित की और परमेश्वर के वचनों पर संगति की। उनमें से एक ने कहा, “पहले मैंने पादरी और गाँव के मुखिया की बात मान ली थी। उनके कहने पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं सुने। मैंने तो प्रभु के आगमन के स्वागत का मौका गँवा ही दिया था। अब से मैं लोगों की बात नहीं सुनूँगा। बस परमेश्वर की सुनूँगा।” दूसरे ने कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे यकीन हो गया कि वह लौटकर आया प्रभु यीशु है। चाहे रास्ते में कोई आये, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करूँगा।” उनकी ऐसी बातें सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। फिर, वे उपदेश सुनने के लिए अपने कुछ रिश्तेदारों को लाए, जल्दी ही, 20 से ज्यादा लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया। इन नए विश्वासियों का सच्चे मार्ग को खोज पाना और अफवाहों के बीच डटे रहना मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक था। यह सब परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण हुआ। दिसंबर में मेरी माँ को छोड़ दिया गया। जब तक वह जेल में रही, महीनों तक हर दिन कड़ी मेहनत की। सरकारी कर्मचारियों का कहना था वे मुझे जरूर पकड़ेंगे और जेल में डाल देंगे। मैंने माँ की रिहाई के पहले की बात याद की, पुलिस वाले अक्सर बंदूकें और डंडे लेकर मुझे गिरफ्तार करने मेरे घर चले आते थे, कहते कि जब तक मैं घर नहीं लौटती वे मेरी माँ को नहीं छोड़ेंगे। मगर अब उन्होंने मुझे पकड़े बिना मेरी माँ को छोड़ दिया है। मुझे अनुभव हो गया कि हर चीज पर परमेश्वर की सत्ता है, मेरा गिरफ्तार होना, न होना उसके हाथों में ही है। मैं बेबस नहीं हूँ—मैं सुसमाचार फैलाती और परमेश्वर के लिए गवाही देती हूँ।

सुसमाचार फैलाते हुए, मैंने बहुत-सी दिक्कतों का सामना किया है, हताश और कमजोर भी महसूस किया है। पर हर बार परमेश्वर के वचनों ने मुझे रास्ता दिखाया, मुझे निराशा और कमजोरी में दृढ़ रहने की हिम्मत मिली, परमेश्वर का प्रचार करने और गवाही देने की आस्था मिली। मैंने वास्तव में यह अनुभव किया कि परमेश्वर इन मुश्किलों के जरिये मेरी आस्था को पूर्ण कर रहा है। मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ। मैं अपनी जिम्मेदारी निभाऊँगी, ज्यादा लोगों को अंत के दिनों का परमेश्वर का सुसमाचार सुनाकर उसके प्रेम का कर्ज चुकाऊँगी।

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