क्या तुम मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम जानते हो?

अंत के दिनों में, मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम उसके प्रकटन और कार्य में कहाँ अभिव्यक्त होता है? तुम सब इस कार्य के हर चरण का अनुभव कर इसे देख सकते हो। अपने कार्य के प्रत्येक चरण में परमेश्वर कुछ विशेष विधियों से बोलता है, कुछ विशेष भविष्यवाणियाँ करता है, अपने कुछ विशेष सत्य और स्वभाव व्यक्त करता है, और लोग इन सब पर प्रतिक्रिया देते हैं। लोगों की प्रतिक्रियाएँ क्या होती हैं? कोई भी व्यक्ति परमेश्वर का आज्ञाकारी नहीं होता, कोई भी सत्य का सक्रिय अनुसरण करने या उसके कार्य को स्वेच्छा से स्वीकारने में मन नहीं लगाता। वे सभी नकारात्मक और प्रतिरोधी होते हैं, विरोधी, ठुकराने वाले और स्वीकार न करने वाले होते हैं। फिर भी, परमेश्वर ने सदा अपना कार्य जारी रखा है, और लोगों के प्रति उसका प्रेम नहीं बदलता। लोगों का रवैया जैसा भी हो, वे इनकार करें, या अनमने ढंग से स्वीकार करें या थोड़ा-बहुत बदलें, परमेश्वर का प्रेम नहीं बदलता, उसके कार्य के चरण कभी बाधित नहीं होते। यह लोगों के प्रति परमेश्वर के प्रेम का प्रकटन है। साथ ही, हर बार जब परमेश्वर कार्य का एक चरण पूरा करता है, लोग जैसा भी बर्ताव करें, उनके प्रति उसका प्रेम नहीं बदलता; वह अभी भी अपना कार्य कर रहा है, और लोगों को बचा रहा है। भविष्य में कार्य के प्रत्येक चरण में, लोगों का न्याय कर उनका खुलासा करने वाले परमेश्वर के वचन ज्यादा गहरे और ज्यादा भीतर तक पहुँचने वाले और मौजूदा हालत के लिए ज्यादा सटीक होंगे। वह ऐसी बातें कहेगा जिनसे लोग उसे बेहतर ढंग से समझ सकें और जान सकें, उसकी इच्छा को बेहतर ढंग से समझ कर उसे आत्मसात कर सकें, और लोग यह देख सकेंगे कि वह अब भी मनुष्यजाति से प्रेम करता है। हालाँकि लोगों ने हमेशा नकारात्मक या प्रतिरोधी प्रतिक्रिया दिखाई है, उन्होंने कार्य के हर चरण में ऐसी ही प्रतिक्रिया दिखाई है, लेकिन परमेश्वर हमेशा बोलता और कार्य करता रहा है, और आज भी लोगों के प्रति उसके प्रेम में कोई बदलाव नहीं आया है। इसलिए मनुष्यजाति के लिए परमेश्वर का सारा कार्य प्रेम है और यह सुनिश्चित है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर यह सारा प्रेम ही है, तो परमेश्वर लोगों को परख कर उन्हें ताड़ना क्यों देता है मानो वह उनसे घृणा करता हो? वह लोगों को मृत्यु के परीक्षण से कैसे गुजरने दे सकता है?” यह सही है, मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर के पास केवल प्रेम ही है! लोगों की अवज्ञा पर परमेश्वर द्वारा उनकी ताड़ना और न्याय लोगों को सत्य समझाने के लिए होते हैं, प्रायश्चित्त कर सुधारने के लिए होते हैं, और इसलिए होते हैं ताकि वे परमेश्वर का स्वभाव जानें, उससे डरें और उसकी आज्ञा मानें। हालाँकि कुछ लोगों के मन में अभी भी थोड़ा प्रतिरोध है, फिर भी परमेश्वर ने लोगों को बचाने के अपने प्रयासों में जरा भी ढील नहीं दी है, न ही उसने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया है। यही है परमेश्वर का महान प्रेम।

सेवाकर्मियों के परीक्षण के दौरान, बहुत-से लोग इतने ज्यादा नकारात्मक और रुष्ट हो गए कि उन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को पुकार लगाई, विरोध में चीखे-चिल्लाए, यह सोचकर कि “इतने वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखने और इतने कष्ट सहने के बाद भी मैं सेवाकर्मी कैसे बनकर रह गया? मुझे यह नहीं चाहिए था!” लोग असंतुष्ट थे, समझ नहीं पाए थे, लेकिन परमेश्वर ने उन्हें समझा, क्या यह प्रेम नहीं था? परमेश्वर के प्रेम में शामिल है लोगों की समझ, उनके सार में पैनी अंतर्दृष्टि, और उनके बारे में गहरी समझ। वह बिना पशोपेश, दिखावे या झूठ के प्रेम करता है। उसका प्रेम सच्चा और सत्य है। जहाँ कहीं तुममें कमियाँ हों, ज्ञान या समझ की कमी हो, वहां तुम्हारे लिए उसके पास दया है, वह तुमसे प्रेम करता है, और सदा तुम्हें प्रेरित करता है। सेवाकर्मियों के रूप में लोग जितने भी अनिच्छुक या असंतुष्ट रहे हों, परमेश्वर ने कभी भी लोगों को उनकी भ्रष्टता या अवज्ञा के कारण नहीं छोड़ा। उसने हमेशा बातें कीं, लोगों को चीजें मुहैया कराईं, उन्हें सहारा दिया, और शुद्धिकरण के कुछ महीनों के जरिए, उनकी भ्रष्टता का खुलासा कर उनकी दुर्दशा के बारे में उन्हें चेताया। इन तीन महीनों में क्या लोगों के प्रति परमेश्वर के मन में प्रेम था? अगर प्रेम न होता, तो उसने तुम पर कभी ध्यान नहीं दिया होता। सेवाकर्मियों के परीक्षण के दौरान कुछ लोग त्याग दिए गए थे, और वे लोग सचमुच गैर-विश्वासी थे। यह सुनते ही कि वे सेवाकर्मी हैं, वे नकारात्मक हो गए, और कुछ महीने बाद वे यह झेल नहीं पाए। तुम एक सेवाकर्मी बनने के इच्छुक नहीं थे, परमेश्वर के अनुसरण में कष्ट झेलने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन जब तुम्हें बताया गया कि आशीष उपलब्ध हैं, तो तुम खुश हो गए, उल्लास में सराबोर हो गए। अगर परमेश्वर प्रेम न कर केवल घृणा करता और लोगों में ऐसी भ्रष्टता देखता, तो उन्हें दूर हटा देना चाहिए था। तीन महीनों का शुद्धिकरण बिल्कुल लंबा नहीं है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह बिल्कुल लंबा नहीं है। इसलिए कि लोगों में इतने ही समय का सब्र होता है। अगर यह जरा भी ज्यादा होता, तो लोग झेल नहीं पाते। हालाँकि लोग हमेशा भजन गाते रहते थे, सभाओं में जाते थे, संगति करते थे, मगर वे केवल इन चीजों का आनंद लेकर यकीनन अडिग नहीं रह सकते थे। इसीलिए परमेश्वर ने जल्द लोगों को अपना बना लिया और इसमें उसका प्रेम भी शामिल है। परमेश्वर लोगों को प्रभावित कर उन्हें बांधे रखने के लिए अपने दिल और प्रेम का प्रयोग करता है, और यह भी प्रेम की अभिव्यक्ति है। इस समय निर्धारण में भी हम परमेश्वर का प्रेम देख सकते हैं। वह एक दिन की भी देर नहीं करता, उसके बोलने का समय आते ही वह तुरंत बोलता है। अगर वह कुछ महीनों की देर करे, तो कुछ लोग धीरे-धीरे बाहर चले जाएँगे। यह उसका लोगों की असली दशा के अनुसार काम करना है, बिना किसी देर या रुकावट के। परमेश्वर हर किसी पर विशेष ध्यान देता है, और लोगों को बचाते समय वह अंत तक अपनी जिम्मेदारी निभाता है। लेकिन कुछ लोग दृढ़ या संकल्पवान नहीं थे, और अपने-आप बाहर हो गए। उनके जाने से पहले, पवित्र आत्मा ने कुछ लोगों को प्रेरित किया उनसे टिके रहने का आग्रह किया, और उन्हें तभी जाने दिया, जब उन्हें रोका नहीं जा सकता था। परमेश्वर ने लोगों से इतना प्रेम किया, लेकिन लोग उसके प्रेम के लायक नहीं थे। कुछ लोग जो बाहर हो गए थे, जिनसे वह अब प्रेम नहीं कर सकता था, उनके प्रति परमेश्वर का प्रेम घृणा में बदल गया और अब ऐसे लोगों के साथ उसका कोई सरोकार नहीं रहा। परमेश्वर के कार्य के चरणों और समय की बात करें, तो हर चरण में कितना समय लगता है, हर चरण में कितने वचन कहे जाते हैं, हर चरण में कैसा लहजा और तरीका इस्तेमाल होता है, और लोगों को समझाने के लिए कौन-से सत्य प्रयोग किए जाते हैं, इन सबमें परमेश्वर के नेक इरादे और मेहनती प्रयास शामिल होते हैं, और ये सब उसकी सटीक व्यवस्थाएँ और योजनाएँ होती हैं। परमेश्वर मनुष्यजाति का मार्गदर्शन और उसकी अगुआई करने, लोगों का पोषण कर उनकी सेवा करने, लोगों में थोड़ी-थोड़ी समझ पैदा करने और आज तक उनका हाथ थामकर आगे बढ़ाने के लिए अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करते हुए हमेशा सत्य व्यक्त करता रहा है। जिस किसी ने भी यह अनुभव किया होगा, उसे अब इसकी थोड़ी जानकारी होगी और वह अपने अनुभव की गवाही दे सकेगा। उनकी स्मृति में यह चरण-दर-चरण प्रक्रिया अब भी ताजा है, और इसमें निहित प्रेम को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। लोगों के प्रति परमेश्वर का प्रेम इतना गहरा है कि लोग कभी भी उसे पूरी तरह नहीं समझ सकते और न ही शब्दों में स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं। परमेश्वर के कार्य के समय-निर्धारण से हम देख सकते हैं कि लोगों के प्रति उसका प्रेम कितना गहरा है। वह हर काम को बारीकी से करता है, शुद्धिकरण में ज्यादा समय नहीं लगने देता, इस डर से कि ज्यादा समय लगने पर लोग उसे छोड़कर चले जाएँगे। उसका प्रेम लोगों को मजबूती से बांधे रखता है, और उसमें जरा भी ढील नहीं देता। साथ ही, परमेश्वर ने ताड़ना और न्याय कार्य के चरणों पर सटीक नियंत्रण रखा है। अगर उसने एक भी विधि और जोड़ दी होती, तो लोगों को लगता कि वह उनके साथ धोखा कर चालें चल रहा है, और अपना आध्यात्मिक कद पर्याप्त न होने पर शायद वे बाहर हो जाते। इसलिए तीन महीने के शुद्धिकरण के बाद, परमेश्वर ने सेवाकर्मियों को अपने लोगों में बदलने के लिए फिर से वचन कहे, और सभी लोग खुश हो गए। वे इतने भावुक हो गए कि परमेश्वर को इतना बुद्धिमान और नेक देखकर उनकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। कई महीनों के शुद्धिकरण के बाद, लोगों को सचमुच यकीन हो गया कि वे सेवाकर्मी हैं। उन्होंने सोचा, “हमारी कोई अच्छी मंजिल नहीं है। परमेश्वर अब हमें नहीं चाहता। हम बिल्कुल बेकार हैं।” उस समय ऐसे माहौल में, अगर मैं कहता कि मैं लोगों को मरने नहीं दूँगा, तो कोई मुझ पर यकीन नहीं करता। उन्हें लगा कि अगर परमेश्वर पहले ही कह चुका है, तो यह सच ही होगा। मगर, तीन महीने बाद मैंने एक और वार्ता दी और सेवाकर्मियों के रूप में उनका परीक्षण समाप्त किया। हालाँकि मानव प्रकृति को शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है, फिर भी लोग कभी-कभी बच्चों जैसे मासूम होते हैं। ऐसा क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर के सामने लोग हमेशा बच्चों जैसे होते हैं? लोगों को लगता है कि सभी लोग भ्रष्ट और पतनशील होते हैं, मगर परमेश्वर की दृष्टि में लोग हमेशा बच्चे रहे हैं, और वे सभी नादान और मासूम हैं। इसलिए परमेश्वर लोगों से शत्रुओं जैसा व्यवहार नहीं करता, बल्कि उन्हें उसके उद्धार और प्रेम के पात्र के रूप में देखता है।

लोगों के प्रति परमेश्वर का प्रेम उनकी कल्पना के अनुसार केवल उन पर कृपा बरसाते रहने, आशीष वचन कहते रहने या उनकी पसंद की बातें कहते रहने के लिए नहीं है। यह सत्य व्यक्त करने, लोगों की भ्रष्टता शुद्ध करने, शैतान के प्रभाव से उन्हें बचाने और उन्हें उसके आशीष और वादे पाने लायक बनाने के लिए है। यही परमेश्वर का सच्चा प्रेम है। परमेश्वर लोगों की भ्रष्टता उजागर कर, उनका न्याय कर सचमुच अप्रिय वचनों से उनकी निंदा करता है। ये वचन उनके दिलों को चीर कर उन्हें दुख भी पहुँचाते हैं। न्याय के कुछ वचन लोगों की निंदा करते-से या शाप देते-से लगते हैं, मानो परमेश्वर उनसे सचमुच घृणा करता है, मगर इसका कोई-न-कोई वास्तविक संदर्भ होता है। यह पूरी तरह तथ्य के अनुरूप होता है, अतिशयोक्ति नहीं होता। परमेश्वर लोगों के भ्रष्ट सार के आधार पर बोलता है, और यह जानने के लिए लोगों को कुछ समय तक इसका अनुभव करना होता है। ये बातें कहने के पीछे परमेश्वर का उद्देश्य लोगों को बदलना और उन्हें बचाना होता है। परमेश्वर इस प्रकार बोलकर ही उत्तम परिणाम प्राप्त कर सकता है। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर की मेहनतकश कोशिशें लोगों को बचाने के लिए हैं और इन सबमें उसका प्रेम निहित है। तुम परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता, या कार्य के चरणों, विधियों और उसकी समयावधि को देखो, या उसकी सटीक व्यवस्थाओं और योजनाओं को, सबमें उसका प्रेम समाहित है। यह रहा एक उदाहरण। सभी माता-पिता अपने बच्चों से प्रेम करते हैं, और वे सब उन्हें सही राह पर चलते देखने के बहुत प्रयास करते हैं। अपने बच्चों में खामियाँ नजर आने पर उन्हें चिंता होती है कि बहुत मीठे ढंग से बोलने पर वे नहीं सुनेंगे या नहीं बदलेंगे, लेकिन उन्हें यह भी फिक्र होती है कि सख्त बोलने से उनके स्वाभिमान को ठेस पहुँचेगी और वे इसे सह नहीं पाएँगे। उनका इस बारे में बच्चों की दृष्टि से विचार करना प्रेम से निर्धारित होता है, और वे इस पर कड़ी मेहनत करते हैं। जो भी अभी बच्चे हैं, उन सभी ने अपने माता-पिता का प्रेम अनुभव किया होगा। प्रेम सिर्फ सौम्यता और विचारशीलता नहीं बल्कि सख्त ताड़ना भी होता है। परमेश्वर द्वारा मनुष्य को बचाया जाना और अधिक प्रेम से शासित और प्रेम के अधीन होता है, इसीलिए वह भ्रष्ट मनुष्यजाति को बचाने के भरसक कार्य करता है। वह सिर्फ काम पूरा करने के कार्य ही नहीं करता बल्कि सटीक योजनाएँ बनाता है, चरण-दर-चरण बोलता और कार्य करता है। उसके समय और स्थान में, उसके बोलने के लहजे और ढंग में..., आप कह सकते हैं कि इनमें से प्रत्येक में उसका प्रेम झलकता है, और प्रत्येक प्रचुर रूप से दर्शाता है कि मनुष्यजाति के प्रति उसका प्रेम अनंत और अथाह है। सेवाकर्मियों के परीक्षण में कई लोगों ने विद्रोही बातें कहीं या कुछ शिकायतें कीं, मगर परमेश्वर ने किसी को दंडित करना तो दूर, इन बातों के लिए अपने दिल में लोगों से वैर भी नहीं रखा। लोगों से प्रेम करने के कारण वह सभी बातों में सहिष्णु है। अगर परमेश्वर के मन में प्रेम न होता, केवल घृणा होती, तो वह बहुत पहले ही सबकी निंदा कर चुका होता। प्रेम होने के कारण परमेश्वर चीजों को ज्यादा देर तक मन में नहीं रखता, वह लोगों के प्रति सहिष्णु है, उनकी कठिनाइयाँ समझ सकता है, और उसका किया हर कार्य प्रेम से शासित होता है। केवल परमेश्वर ही लोगों को समझता है, तुम भी खुद को नहीं समझते। सावधानी से अतीत में झांको, क्या यह सच नहीं है? कुछ लोग इस बारे में और परीक्षण का सामना होने पर शिकायत करते हैं। लोग मामूली बातों से परेशान हो जाते हैं, वे आशीषमय जीवन जीते हैं, मगर यह जानते तक नहीं। कोई नहीं जान सकता कि स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर परमेश्वर को कितने अधिक कष्ट झेलने पड़े। परमेश्वर बहुत महान है; इंसान बनने, इतना तुच्छ और विनम्र इंसान बनने, ऐसा अपमानित व्यक्ति बनने के लिए उसे कितना कुछ सहना पड़ा होगा! दुनिया में से पेश है एक उदाहरण। एक अच्छा सम्राट अपनी प्रजा से वैसा ही प्रेम करता है जैसा वह अपने बच्चों से करता है। आम जनता का दुख-दर्द दूर करने के इरादे से, वह उनकी तकलीफें देखने-समझने के लिए एक साधारण व्यक्ति के रूप में सादे कपड़े पहनकर उनके बीच जाता है। उसका रुतबा देखते हुए, एक आम इंसान के स्तर तक झुका दिया जाना अपने-आप में अपमानजनक है। उसे एक साधारण इंसान जैसा जीना होगा, और जो लोग उसके सम्राट होने की बात नहीं जानते, वे उससे एक साधारण इंसान जैसे पेश आएँगे। लोगों के बीच बहुत-से खतरे होते हैं, कोई नहीं जानता कितने लोग सम्राट की हत्या करने या सत्ता हथियाना का मौका ढूँढ़ रहे हैं, इसलिए लोगों की हालत जानने के लिए उनके बीच जाते समय उसे ज्यादा ही सतर्क रहना होगा। अपने रुतबे और ओहदे के अनुसार उसे इस तरह सचमुच कष्ट नहीं सहने चाहिए, फिर वह यह कैसे कर लेता है? वह बस एक अच्छा सम्राट बनाना चाहता है और आम लोगों के लिए सचमुच कुछ करना चाहता है। अंत के दिनों में, परमेश्वर मनुष्यजाति को पूरी तरह से बचाना चाहता है, और आज उसका इस प्रकार मनुष्यजाति का खुलासा कर न्याय करना वह सीमा है जहाँ तक उसकी प्रबंधन योजना पहुँच चुकी है। परमेश्वर मनुष्यजाति को बचाता है क्योंकि वह मनुष्यजाति से प्रेम करता है। मनुष्यजाति से प्रेम करने और प्रेम से चालित और प्रेरित होने के कारण वह देहधारी होकर मनुष्यजाति को बचाने के लिए शेर की मांद में स्वयं घुस जाता है। मनुष्यजाति से प्रेम करने के कारण वह ऐसा कर पाता है। भ्रष्ट मनुष्यजाति को बचाने के लिए देहधारी बनने में परमेश्वर का अत्यधिक अपमान सहना वह ठोस सबूत है कि उसका प्रेम महान है। परमेश्वर के वचनों की पंक्तियों के बीच आग्रह, आराम, प्रोत्साहन, सहिष्णुता और धैर्य के साथ-साथ और अधिक न्याय, ताड़ना, शाप, सार्वजनिक खुलासे, और अद्भुत वादे भी हैं। विधि जो भी हो, यह प्रेम से शासित है, और यही उसके कार्य का सार है। तुम सबको आज उसके प्रेम का थोड़ा ज्ञान है, लेकिन यह ज्यादा गहरा नहीं है। इस ज्ञान में इंसानी कल्पना मिली हुई है, और तुम उसके प्रेम का जो अनुभव कर सकते हो, वह सीमित है। कुछ वर्ष गुजार लेने के बाद तुम सबको आभास होगा कि उसका प्रेम कितना गहरा और महान है, कैसे इसे इंसानी भाषा में बयान नहीं किया जा सकता। जब लोग परमेश्वर के प्रेम को जान पाते हैं, तब उनके दिल प्रेमपूर्ण हो जाते हैं। अगर लोगों के दिलों में परमेश्वर के प्रति प्रेम नहीं होगा, तो वे उसे कैसे चुकता कर पाएँगे? तुम अपने जीवन का चढ़ावा भी दे दो, तो भी परमेश्वर का प्रेम चुका नहीं पाओगे। कुछ और वर्ष गुजारने के बाद तुम सब जान जाओगे कि परमेश्वर का प्रेम क्या है। फिर जब तुम अपनी दशा और तुममें हुई अभिव्यक्तियों को पीछे मुड़कर देखोगे, तब तुम्हें बड़ा खेद होगा, और तुम परमेश्वर के सामने गिर पड़ोगे। ज्यादातर लोग आज इतने उतावले होकर परमेश्वर का इतना करीब से अनुसरण क्यों करते हैं? इसलिए कि वे परमेश्वर के प्रेम को जानते हैं और समझते हैं कि परमेश्वर का कार्य मनुष्यजाति को बचाने के लिए है। इस बारे में सोचो, परमेश्वर का कार्य अपने समय-निर्धारण में बेहद सटीक है, बिना देर किए एक चरण से दूसरे चरण में जाता है। वह देर क्यों नहीं करता? यह मनुष्यजाति को बचाने के लिए है। जितना हो सके, उतने ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को वह बचाना चाहता है, और बचाए जा सकनेवाले किसी भी व्यक्ति को खोना नहीं चाहता, जबकि लोगों को खुद अपनी नियति की परवाह नहीं है। इसलिए लोग यह भी नहीं जानते कि दुनिया में उन्हें सबसे अधिक प्रेम कौन करता है। तुम खुद से प्रेम नहीं करते, तुम अपने जीवन को सँभालना और संजोना नहीं जानते, केवल परमेश्वर ही लोगों से सबसे ज्यादा प्रेम करता है। थोड़े-से लोग ही परमेश्वर के प्रेम का अनुभव कर पाते हैं, और ज्यादातर लोगों को अभी अनुभव होना बाकी है। वे मानते हैं कि खुद से प्रेम करना ज्यादा विश्वसनीय है, लेकिन उन्हें यह साफ समझ होनी चाहिए कि उन्हें अपने लिए किस प्रकार का प्रेम है। क्या लोग खुद से प्रेम कर खुद को बचा सकते हैं? केवल परमेश्वर का प्रेम ही लोगों को बचा सकता है, सिर्फ वही सच्चा प्रेम है, और तुम बाद में धीरे-धीरे अनुभव कर सकोगे कि सच्चा प्रेम क्या है। अगर परमेश्वर कार्य करने, लोगों के सामने आकर रास्ता दिखाने, दिन-रात उनसे संवाद करने और उनके साथ रहने के लिए देहधारी न हुआ होता, तो उन लोगों के लिए परमेश्वर के प्रेम को सचमुच जानना आसान बात नहीं होती। अगर परमेश्वर ने देहधारी होकर इतने सत्य व्यक्त न किए होते, तो लोग उन्हें कभी न जान पाते, और कोई भी उसके प्रेम को जान नहीं पाता।

परमेश्वर और इंसान एक जैसे नहीं हैं और दो अलग आयामों में रहते हैं। इंसान परमेश्वर के विचारों को जानना तो दूर, उसकी भाषा भी नहीं समझ पाते। केवल परमेश्वर ही इंसान को समझता है, और लोग उसे समझने में असमर्थ हैं। केवल देहधारी होकर, इंसान जैसा रूप धर कर और लोगों को बचाने के लिए भयंकर अपमान और कष्ट सहकर ही परमेश्वर उन्हें समझ देकर अपना कार्य जानने योग्य बना सकता है। परमेश्वर कभी भी लोगों को बचाना क्यों नहीं छोड़ता? क्या इसलिए नहीं कि वह लोगों से प्रेम करता है? वह मनुष्यजाति को शैतान के हाथो भ्रष्ट होते देखता है, और उन्हें जाने नहीं दे पाता या उन्हें त्याग नहीं सकता। इसीलिए उसकी एक प्रबंधन योजना है। अगर लोग जैसा सोचते हैं वैसे परमेश्वर नाराज होते ही मनुष्यजाति को नष्ट करने की सोचता, तो जैसा आज की तरह उसे ऐसे कष्ट और दुख सहने की जरूरत नहीं पड़ती। देहधारी होने के बाद परमेश्वर के कष्ट ही उसके प्रेम का खुलासा करते हैं। तभी मानवजाति धीरे-धीरे उसके प्रेम को खोज पाती है, और सभी लोग उसे जान पाते हैं। अगर ऐसा कार्य आज अस्तित्व में नहीं होता, तो लोग सिर्फ यही जान पाते कि स्वर्ग में एक परमेश्वर है और मनुष्यजाति के प्रति उसे प्रेम है। यह केवल धर्मसिद्धांत होता, और लोग कभी भी परमेश्वर के सच्चे प्रेम का अनुभव नहीं कर पाते। परमेश्वर द्वारा देहधारी होकर किए गए कार्य के जरिए ही लोग उसकी सच्ची समझ हासिल कर सकते हैं। यह समझ अस्पष्ट या खाली नहीं या महज वचनों का धर्मसिद्धांत नहीं, बल्कि ठोस और वास्तविक है, क्योंकि परमेश्वर द्वारा लोगों को दिया गया प्रेम लाभकारी होता है। यह कार्य वह देहधारी होकर ही कर सकता है, यह आत्मा द्वारा नहीं किया जा सकता। यीशु ने लोगों को जो प्रेम दिया वह कितना महान था? मनुष्यजाति को बचाने के लिए उसे सूली पर चढ़ा दिया गया, वह उनके लिए पाप का अनंत चढ़ावा बन गया। वह मनुष्यजाति के लिए छुटकारे का कार्य करने आया और सूली पर चढ़ाए जाते तक करता रहा। यह प्रेम बड़ा महान है। परमेश्वर का कार्य बहुत अर्थपूर्ण है। बहुत-से लोगों के मन में परमेश्वर के देहधारी होने को लेकर हमेशा कुछ अपनी धारणाएँ होती हैं, और यह उनकी गलती है। तुम हमेशा ऐसी धारणाएँ क्यों पाले रहते हो? परमेश्वर के देहधारी हुए बिना परमेश्वर में लोगों का विश्वास खाली शब्द होते, खोखले और अवास्तविक, और अपनी आस्था के बावजूद अंत में वे नष्ट कर दिए गए होते! मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम मुख्य रूप से उसके देहधारी होकर किए गए कार्य में, खुद लोगों को बचाने, लोगों से आमने-सामने बात करने और उनके साथ आमने-सामने रहने में अभिव्यक्त होता है। जरा-सी भी दूरी नहीं, जरा भी दिखावा नहीं; यह वास्तविक है। मनुष्यजाति के प्रति प्रेम और दया के कारण ही वह देहधारी होकर दुनिया में इंसानों के साथ दुखदाई वर्ष बिता कर भी मनुष्यजाति का उद्धार कर सका। मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम बिना किसी शर्त के है और यह कुछ नहीं माँगता। वह उन लोगों से बदले में क्या पा सकता है? लोग परमेश्वर के प्रति ठंडे हैं। परमेश्वर से परमेश्वर जैसा बर्ताव कौन कर सकता है? लोग परमेश्वर को जरा-सा आराम भी नहीं पहुँचाते, और आज तक मनुष्यजाति से उसे सच्चा प्रेम नहीं मिला। परमेश्वर नि:स्वार्थ भाव से देता है, मुहैया करता है, फिर भी लोग संतुष्ट नहीं हैं, और उससे लगातार आशीष और कृपा माँगते रहते हैं। लोग कितने टेढ़े और दुखदाई हैं! फिर भी, देर-सवेर वह दिन आएगा जब परमेश्वर के कार्य के परिणाम मिलेंगे, और परमेश्वर के चुने हुए ज्यादातर लोग तहे-दिल से उन्हें सच्चा धन्यवाद कहेंगे। लंबे समय से इसका अनुभव किए हुए लोग इसको महसूस कर सकते हैं। लोग सुन्न हो सकते हैं, फिर भी वे लोग हैं, निर्जीव चीजें नहीं। जिन लोगों ने परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं किया है, वे इन बातों को शायद समझ न पाएँ। वे सिर्फ यह मान लेते हैं कि परमेश्वर द्वारा व्यक्त ये सत्य सही हैं, मगर उन्हें इसकी गहरी समझ नहीं है क्योंकि उन्हें बिल्कुल अनुभव नहीं है।

परमेश्वर ने देहधारण कर अनेक वर्ष कार्य किया है और अनगिनत बातें कही हैं। परमेश्वर ने लोगों को सेवाकर्मियों का परीक्षण देकर शुरुआत की और फिर भविष्यवाणियाँ कीं, और न्याय और ताड़ना का कार्य शुरू किया, फिर लोगों के शुद्धिकरण के लिए मृत्यु के परीक्षण का प्रयोग किया। फिर उसने लोगों को उसकी आस्था के सही मार्ग पर आगे बढ़ाया। परमेश्वर लोगों को सभी सत्य बताकर पोषित करता है, इंसानी धारणाओं के विरुद्ध लड़ाई छेड़ता है। फिर वह लोगों को थोड़ी आशा बंधाता है ताकि वे समझ सकें कि अभी आगे उम्मीद है, जब वे परमेश्वर के साथ एक सुंदर मंजिल में प्रवेश कर सकेंगे। हालाँकि यह कार्य परमेश्वर की योजना के अनुसार होता है, फिर भी यह सारा-कुछ मनुष्यजाति की जरूरतों के अनुसार किया जाता है। इसे यूँ ही नहीं किया जाता; यह सारा कार्य करने के लिए परमेश्वर अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करता है। प्रेममय होने के कारण ही वह इन भ्रष्ट लोगों का इस प्रकार ईमानदारी से इलाज करने के लिए अपनी बुद्धि का प्रयोग कर सकता है। किसी भी स्थिति में वह लोगों से खिलवाड़ नहीं करता। परमेश्वर का लहजा और वचन देखें, तो कभी-कभी वह लोगों का न्याय कर उनकी ताड़ना करता है, या परीक्षा लेता है, कभी-कभी कुछ खास वचनों से लोगों को परीक्षणों और यातनाओं से गुजारता है, और कभी-कभी वह लोगों को ऐसे चुने हुए वचन देता है जो उन्हें आजादी और आराम देते हैं। वह सचमुच लोगों के लिए बहुत सोच-विचार करता है। हालाँकि लोग परमेश्वर का सृजन हैं, सबने शैतान से भ्रष्टता का अनुभव किया है, हालाँकि लोग बेकार हैं, कूड़ा-करकट के सिवाय कुछ नहीं हैं, उनकी प्रकृति ऐसी ही है, फिर भी वह लोगों से उनके सार के अनुसार पेश नहीं आता और उन्हें जो पलटवार मिलना चाहिए उस तरह व्यवहार नहीं करता। उसकी वाणी सख्त हो सकती है, मगर वह हमेशा लोगों से धैर्य, सहिष्णुता और करुणा के साथ पेश आता है। लोगों को इस पर धीरे और सावधानी से विचार करना चाहिए! अगर परमेश्वर लोगों के साथ सहिष्णुता, करुणा और अनुग्रह के साथ पेश न आया होता, तो क्या वह उन्हें बचाने के लिए ये सारी बातें कह पाता? वह आसानी से उनकी निंदा क्यों न करता? इसके बावजूद लोग परमेश्वर का प्रेम नहीं जानते। वे इतने मूर्ख और अज्ञानी हैं! लोगों के सार में प्रेम नहीं है। वे नहीं जानते कि प्रेम क्या है, और वे नहीं जानते कि परमेश्वर ऐसा क्यों करता है। जब लोग परमेश्वर के प्रेम का अनुभव नहीं करते, तो वे सिर्फ महसूस करते हैं कि परमेश्वर का यह कार्य बहुत अच्छा है, लोगों के लिए लाभकारी है, लोगों को बदल सकता है, लेकिन एक भी व्यक्ति नहीं सोचता कि “परमेश्वर का कार्य बहुत अच्छा है, उसका कार्य बहुत अर्थपूर्ण है! लोगों के प्रति परमेश्वर का प्रेम बेहद गहरा है। वह सच में लोगों से कूड़ा-करकट की तरह पेश नहीं आया!” लोग परमेश्वर से परमेश्वर की तरह पेश नहीं आए, मगर परमेश्वर लोगों से लोगों की तरह पेश आया है। क्या ऐसा नहीं है? परमेश्वर तुम्हें जानवर कहता है, मगर वह तुमसे जानवरों की तरह बिल्कुल पेश नहीं आया। अगर परमेश्वर ने तुमसे जानवरों जैसा बर्ताव किया होता, तब भी क्या वह तुम्हें सत्य मुहैया करता? क्या तुम्हें बचाने के लिए वह तब भी इतने कष्ट सहता? कुछ लोग महसूस करते हैं कि उनके साथ बहुत बुरा हुआ और कहते हैं, “परमेश्वर कहता है मैं बेकार हूँ। मैं इतना ज्यादा शर्मिंदा हूँ कि जी नहीं सकता।” लोग दरअसल परमेश्वर की इच्छा नहीं समझते। कहा जा सकता है कि शायद तुम जीवन भर परमेश्वर के कार्य के पीछे की बुद्धिमत्ता और मेहनतकश प्रयास का अनुभव न कर सको। लेकिन तुम्हारा अनुभव जितना भी गहरा या उथला क्यों न हो, अगर तुम आखिरकार उसे समझ लेते हो और थोड़ा ज्ञान पा लेते हो, तो काफी है। परमेश्वर अभी भी लोगों से सत्य समझने, अपना स्वभाव बदलने पर ध्यान देने को कहता है, और उनके दिलों में परमेश्वर के प्रति वफादारी, आज्ञाकारिता और प्रेम के बारे में सत्य की समझ को धीरे-धीरे गहरा बनाने का प्रयास करता है। थोड़ा-सा भी खपने या कष्ट सहने पर लोगों को लग सकता है कि उन्होंने बहुत बड़ा योगदान किया है और परमेश्वर के सामने उनकी योग्यता बहुत ऊंची है, और इस बात का जिक्र किए बिना वे भीतर से असुरक्षित और रोषपूर्ण महसूस करते हैं। लोगों में प्रेम कैसे होता है? लोगों में कैसा प्रेम होता है? क्या परमेश्वर को मनुष्यजाति से सच्चा प्रेम मिल पाया है? क्या वह मनुष्यजाति के प्रेम के लायक नहीं है?

शरद ऋतु, 1999

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