अध्याय 40. तुम्हारे स्वभाव को बदलने के बारे में तुम्हें क्या पता होना चाहिए
कुछ लोग ऐसे हैं जो वर्षों तक कार्य का अनुभव करने और उपदेश सुनने के बाद, खुद को समझते हैं और कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें अपने बारे में कोई समझ नहीं है; कुछ लोग कुछ वास्तविक चीज़ों के बारे में बात करने में समर्थ हैं, और वे स्वयं अपनी वास्तविक स्थितियों, अपनी व्यक्तिगत प्रविष्टियों, अपनी व्यक्तिगत प्रगति, अपनी कमियों, और वे किस प्रकार प्रवेश करने की योजना बनाते हैं, इत्यादि के बारे में संवाद कर सकते हैं। कुछ लोग उन चीजों के बारे में बिल्कुल भी बात करने में असमर्थ हैं, वे केवल सिद्धांतों के बारे में बात करने में सक्षम हैं, बाहरी कार्य, वर्तमान परिस्थितियों, सुसमाचार फैलाने की प्रगति जैसे बाहरी मामलों के बारे में वे बात करते हैं, लेकिन जीवन या व्यक्तिगत अनुभवों में ठोस प्रविष्टि के बारे में कुछ भी नहीं। इससे पता चलता है कि वे अभी भी जीवन में प्रवेश करने के लिए सही रास्ते पर नहीं पहुँचें हैं। स्वभाव में परिवर्तन क्रियाओं में परिवर्तन नहीं है, यह एक झूठा बाह्य परिवर्तन नहीं, यह एक अस्थायी जोशीला परिवर्तन नहीं होता, लेकिन यह स्वभाव का एक सच्चा परिवर्तन है जो क्रियाओं में बदलाव लाता है। कार्यों में इस तरह के बदलाव बाहरी व्यवहार में परिवर्तन से अलग हैं। स्वभाव के परिवर्तन का अर्थ है कि तुमने सच्चाई को समझा और अनुभव किया है, और यह सच्चाई तुम्हारा जीवन बन गई है। अतीत में, तुमने इस मामले के बारे में सच्चाई को समझा तो था, लेकिन तुम इस पर अमल करने में असमर्थ थे; सच्चाई तुम्हारे लिए एक ऐसे सिद्धांत की तरह थी जो टिकता ही नहीं है। अब, तुम्हारा स्वभाव बदल गया है, और तुम न केवल सच्चाई को समझते हो, बल्कि तुम सच्चाई के अनुसार कार्य भी करते हो। अब तुम उन चीजों से छुटकारा पाने में सक्षम हो जिनके तुम पहले शौकीन थे; तुम जो पहले करना चाहते थे, तुम्हारी निजी कल्पनाओं और तुम्हारी धारणाओं, उन सब को छोड़ने में भी तुम सक्षम हो। अब तुम उन चीजों को छोड़ देने में सक्षम हो जिन्हें तुम अतीत में नहीं छोड़ सकते थे। यह स्वभाव का एक परिवर्तन है और यह तुम्हारे स्वभाव के बदलने की प्रक्रिया है। सुनने में यह बहुत सरल लगता है, लेकिन वास्तव में, जो व्यक्ति इससे गुजर रहा होता है, उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उसे शरीर पर काबू पाना होता है और उसके स्वभाव में रही देह से संबंधित चीजों को छोड़ देना पड़ता है। उसे निपटने और छँटाई, ताड़ना और न्याय से होकर भी जाना पड़ता है, और उसे परीक्षणों का अनुभव भी करना होगा। इन सबका अनुभव करने के बाद ही कोई अपनी प्रकृति को समझ सकता है। कुछ समझ होने का अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्ति तुरंत बदल सकता है। इस प्रक्रिया में उसे कठिनाइयों को सहना ही होगा। इसी तरह, क्या किसी चीज़ को समझते ही, तुम उसे अभ्यास में डाल सकते हो? तुम इसे तुरंत अभ्यास में नहीं डाल सकते। जितना समय तुम इसे समझने में लोगे, उसके दरम्यान दूसरे लोग तुम्हारी छँटाई करेंगे और तुम्हारे साथ निपटेंगे और परिवेश तुम्हें इस तरह से और उस तरह से करने के लिए मजबूर करेगा। कभी-कभी, लोग इस माध्यम से होकर जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं, और कहते हैं, "मैं इसे उस तरह से क्यों नहीं कर सकता? क्या मुझे इसको इसी तरह से करना होगा?" दूसरों का कहना है, "तुम्हें इसे इसी तरह से करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो तुम्हें यह इस तरह से ही करना चाहिए। इसे इस तरह से करना सच्चाई के अनुसार है।" अंत में, लोग एक निश्चित बिंदु तक पहुंचेंगे, जहां वे परमेश्वर की इच्छा को समझेंगे और कुछ परीक्षणों का सामना करने के बाद कुछ सच्चाइयों को समझेंगे, और कुछ हद तक वे इसे करने के लिए खुश और तैयार होंगे। पर शुरू में लोग इसे करने के लिए अनिच्छुक होंगे। उदाहरण के लिए, भक्ति के साथ कर्तव्यों को पूरा करने की बात को लो। लोगों को अपने कर्तव्यों को पूरा करने और परमेश्वर के प्रति वफादार होने के बारे में कुछ समझ है, और वे सच्चाइयों को समझते भी हैं, लेकिन परमेश्वर के प्रति वे कब पूरी तरह से निष्ठावान होंगे? वे अपने कर्तव्यों को कब नाम से और काम में पूरा करेंगे? यह कुछ समय लेगा। इस प्रक्रिया के दौरान, तुम्हें कई कठिनाइयों को झेलना पड़ सकता है; लोग तुम्हारे साथ निपटेंगे, लोग तुम्हें काटेंगे-छाँटेंगे, लोग तुम्हें नियंत्रित करेंगे, तुम्हें विवश करेंगे और तुम्हें बाध्य करेंगे। हर व्यक्ति की आँखें तुम पर गड़ी हुई होंगी, और अंततः, तुम्हें यह एहसास होगा: कि यह समस्या मेरी अपनी है। क्या भक्ति के बिना अपने कर्तव्यों को पूरा कर लेना स्वीकार्य है? मैं बेपरवाह और अन्यमनस्क नहीं हो सकता। पवित्र आत्मा तुम्हें भीतर से प्रबोधित करता है और जब तुम भूल करते हो, तो वह तुम्हें धिक्कारेगा। इस प्रक्रिया के दौरान, तुम अपने बारे में कुछ चीजों को समझोगे और तुम जान पाओगे कि तुम बहुत अपवित्र हो, तुम्हारे पास अत्यधिक निजी इरादें हैं और अपने कर्तव्यों को पूरा करने में बहुत अधिक इच्छाएँ हैं। जब तुम इसे जान लेते हो, तो तुम धीरे-धीरे सही रास्ते पर आ सकते हो और तुम अपने कर्मों को बदलने में सक्षम होगे।
तुम्हारे कर्तव्यों को पूरा करने के सार के संबंध में बात करें तो, वास्तव में तुम अपने कर्तव्यों को कितनी अच्छी तरह से पूरा करते हो? अपने स्वभाव को बदलने के बाद, तुम सच्चाई के अनुसार अपने कर्तव्यों को कितनी अच्छी तरह पूरा करते हो? इस पर चिंतन करने से, तुम जान सकते हो कि तुम्हारा स्वभाव वास्तव में कितना परिवर्तित हुआ है। स्वभाव का परिवर्तन कोई आसान काम नहीं है। "मेरे कर्म बदले हैं, और मैं सच्चाई को समझता हूँ। मैं सच्चाई के हर पहलू पर कुछ अनुभवों के बारे में और कुछ छोटी अंतर्दृष्टियों के बारे में बात भी कर सकता हूँ। इसके अलावा, पवित्र आत्मा ने मुझे इस मामले पर धिक्कारा है और अब मैं कुछ छोड़ने में और कुछ समर्पण करने में सक्षम हूँ।" यह जीवन-स्वभाव में परिवर्तन के रूप में नहीं गिना जाता है। क्यों? तुम थोड़ा छोड़ने में सक्षम हो, लेकिन जिसका भी तुम अभ्यास कर रहे हो वह वास्तव में सच्चाई को व्यवहार में लाने के स्तर तक नहीं पहुँचा है। शायद तुम्हारा परिवेश अस्थायी रूप से उपयुक्त है और तुम्हारी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं, या तुम्हारी परिस्थितियाँ तुम्हें इस तरह से व्यवहार करने के लिए मजबूर करती हैं, या तुम्हारी मन:स्थिति स्थिर है और पवित्र आत्मा काम कर रहा है, तो तुम इसे करने में सक्षम हो। यदि तुम अय्यूब की तरह जो कि परीक्षाओं से पीड़ित था, परीक्षणों के बीच होते, या पतरस की तरह होते जिसे परमेश्वर ने मर जाने के लिए कहा था, तो क्या तुम यह कह सकोगे, "अगर तुम्हें जानने के बाद मैं मर भी जाऊं, तो यह ठीक होगा"? स्वभाव में परिवर्तन कोई रातोंरात नहीं होता है, और न ही इसका मतलब यह है कि सच्चाई को समझने के बाद तुम प्रत्येक वातावरण में सच्चाई को अभ्यास में डाल सकते हो। इसमें मनुष्य की प्रकृति जुड़ी हुई है। बाहर से ऐसा लगता है कि जैसे तुम सच्चाई को अभ्यास में डाल रहे हो, लेकिन वास्तव में, तुम्हारे कर्मों की प्रकृति को देखकर ऐसा नहीं लगता कि तुम सच्चाई को लागू कर रहे हो। कुछ बाहरी व्यवहार वाले ऐसे बहुत से लोग हैं, जो मानते हैं कि "मैं सच्चाई को अभ्यास में डाल रहा हूँ। क्या मैं अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर रहा हूँ? क्या मैंने अपने परिवार और अपनी नौकरी का त्याग नहीं किया? क्या मैं अपने कर्तव्यों को पूरा करके सच्चाई को अभ्यास में नहीं डाल रहा हूँ?" लेकिन परमेश्वर कहता है: "मैं नहीं मानता कि तुम सच्चाई को अभ्यास में डाल रहे हो।" यह क्या है? यह एक प्रकार का व्यवहार है। गंभीरता से कहें तो, तुम्हें इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता है; यह प्रशंसित नहीं होगा, इसको स्मरणीय नहीं माना जाएगा। इससे भी अधिक गंभीरता से कहें तो, इसका आगे विश्लेषण करने पर, तुम बुराई कर रहे हो, तुम्हारा व्यवहार परमेश्वर के विरोध में है। बाहर से, तुम दखल नहीं दे रहे हो, कोई परेशानी या हानि नहीं कर रहे हो, या किसी सच्चाई का उल्लंघन नहीं कर रहे हो। ऐसा लगता है कि तुम जो कर रहे हो वह तर्कसंगत और उचित है, लेकिन तुम बुरा कर रहे हो और परमेश्वर का विरोध कर रहे हो। इसलिए तुम्हें स्रोत की और देखना चाहिए जैसा कि परमेश्वर चाहता है, यह जानने के लिए कि क्या तुम्हारे स्वभाव में कोई परिवर्तन है, या क्या तुमने सच्चाई को अभ्यास में डाल रखा है। यह लोगों की कल्पनाओं और मतों के, या तुम्हारी अपनी व्यक्तिगत पसंदों के, अनुरूप चलना नहीं है। बल्कि, यह परमेश्वर है जो कहता है कि तुम उसकी इच्छा के अनुरूप चल रहे हो या नहीं; यह परमेश्वर ही है जो कहता है कि तुम्हारे कर्मों में सच्चाई है या नहीं, और वे कर्म उसके मानकों के अनुसार हैं या नहीं। परमेश्वर की अपेक्षाओं के साथ खुद को मापना ही एकमात्र सही तरीका है। स्वभाव में परिवर्तन और सच्चाई को अभ्यास में लागू करना उतना सरल और आसान नहीं है जैसा कि लोग कल्पना करते हैं। क्या तुम लोग अब समझते हो? क्या इस के साथ तुम्हारा कोई अनुभव है? यदि इसमें मुद्दों का सार शामिल हो, तो संभवतः तुम लोग इसे नहीं समझ सकोगे। तुम लोगों ने बहुत उथला प्रवेश किया है। तुम लोग पूरे दिन भागते-दौड़ते हो, सुबह से शाम तक, तुम लोग जल्दी उठते हो और देर से सोने जाते हो, लेकिन तुम लोग स्पष्टतः नहीं समझते कि स्वभाव का परिवर्तन क्या है या इसकी वास्तविक स्थिति क्या है। क्या यह उथला नहीं है? चाहे तुम पुराने या नए हो, मुमकिन है कि तुम लोग स्वभाव में परिवर्तन के सार और उसकी गहराई को महसूस न कर सको। तुम कैसे जानते हो कि परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा करता है या नहीं? कम से कम, तुम्हें अपने दिल में तुम जो कुछ भी करते हो उसके बारे में असाधारण रूप से दृढ़ लगेगा, तुम अनुभव करोगे कि जब तुम अपने कर्तव्यों को पूरा करते हो, परमेश्वर के परिवार में कोई काम करते हो तब, या सामान्य समय में भी, पवित्र आत्मा तुम्हारा मार्गदर्शन और प्रबोधन कर रहा है और तुम्हारे में काम कर रहा है; तुम्हारा आचरण परमेश्वर के वचनों के साथ हाथोंहाथ अनुरूप होगा, और जब तुम्हारे पास कुछ हद तक अनुभव हो जाता है, तो तुम महसूस करोगे कि अतीत में तुमने जो कुछ किया वह अपेक्षाकृत उपयुक्त था। यदि कुछ समय के लिए अनुभव प्राप्त करने के बाद, तुम महसूस करते हो कि अतीत में तुम्हारे द्वारा किए गए कुछ कर्म उपयुक्त नहीं थे और तुम उनसे असंतुष्ट हो, और वास्तव में तुम्हारे द्वारा किए गए कार्यों में कोई सच्चाई नहीं थी, तो यह यह साबित करता है कि तुम ने जो कुछ भी किया, वह परमेश्वर का विरोध कर रहा था। यह साबित करता है कि तुम्हारी सेवा विद्रोह, प्रतिरोध और मानवीय व्यवहार से भरपूर थी। अब यह बता देने के बाद, तुम लोगों को अपने स्वभाव को बदलने की बात को कैसे समझना चाहिए? क्या तुम समझते हो? हो सकता है तुम लोग आमतौर पर अपने स्वभाव को बदलने के बारे में चर्चा न करो, और शायद ही कभी व्यक्तिगत अनुभवों की बात करो। अधिक से अधिक, तुम कहते हो: "मैं कुछ समय पहले अच्छा नहीं था। बाद में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, 'हे परमेश्वर, मुझे प्रबुद्ध और रोशन करो।' और, परमेश्वर ने मुझे प्रबुद्ध कर दिया, 'जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उनके लिए परीक्षण से गुजरना ज़रूरी है।' जब मैंने इस पर विचार किया, तो मुझे लगा कि यह सही था, इसलिए मैं भी सहन कर लूँ। अंत में मेरी ताकत बढ़ गई, तथा मैं अब और नकारात्मक नहीं रहा था। आखिरकार, मैंने अपने कर्तव्यों को भक्ति से पूरा नहीं किया था।" जब तुम इन स्थितियों के बारे में बातचीत करते हो, तो अन्य लोग कहते हैं: "हम सब लगभग समान हैं, हम काले कौवे के समान काले हैं।" इन चीज़ों के बारे में हमेशा बात करते रहना मुश्किल है। यदि गहरी चीजें समझी नहीं जा सकती हैं, तो अंत में, स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
स्वभाव में परिवर्तन मुख्य रूप से तुम्हारी प्रकृति में परिवर्तन से सम्बंधित है। प्रकृति कुछ ऐसी चीज़ नहीं है जिसे तुम बाहर के व्यवहारों से देख सको; प्रकृति में लोगों के अस्तित्व का मूल्य और महत्व सीधे ही शामिल हैं। इसमें प्रत्यक्षतः मानव जीवन के मूल्य, आत्मा के भीतर गहराई में रही चीज़ें, और लोगों का सार शामिल हैं। अगर लोग सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाते, तो इन पहलुओं में उनमें कोई परिवर्तन नहीं होगा। केवल यदि लोगों ने परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है और पूरी तरह से सच्चाई में प्रवेश किया है, यदि उन्होंने अस्तित्व और जीवन पर अपने मूल्यों और दृष्टिकोणों को बदला है, यदि चीजों को वैसे ही देखा है जैसे परमेश्वर देखता है, और यदि वे पूरी तरह से अपने को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत और समर्पित करने में सक्षम हो गए हैं, तभी कहा जा सकता है कि उनके स्वभाव बदल गए हैं। ऐसा लग सकता है कि तुम कुछ प्रयास कर रहे हो, तुम कठिनाइयों के सामने लचकदार हो सकते हो, तुम ऊपर से मिली कार्य व्यवस्था को पूरा करने में सक्षम हो सकते हो, या तुम्हें जहाँ भी जाने के लिए कहा जाए तुम वहाँ जा सकते हो, लेकिन ये तुम्हारे कर्मों में केवल छोटे परिवर्तन हैं, और तुम्हारे स्वभाव में परिवर्तन बन जाने के लिए ये पर्याप्त नहीं हैं। तुम कई रास्तों पर जाने में सक्षम हो सकते हो, और तुम कई कठिनाइयों का सामना कर सकते हो तथा घोर अपमान को सहन करने में सक्षम हो सकते हो; तुम महसूस कर सकते हो कि तुम परमेश्वर के बहुत करीब हो और पवित्र आत्मा तुम्हारे में काम कर रहा है, लेकिन जब परमेश्वर तुम से कुछ ऐसा करने के लिए अनुरोध करता है जो तुम्हारे विचारों के अनुरूप नहीं है, तो तुम अभी भी नहीं झुकते हो, तुम बहाने ढूँढते हो, और तुम परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह और विरोध करते हो, इस हद तक कि तुम परमेश्वर को दोष देते हो और उसके सामने प्रतिवाद करते हो। यह एक गंभीर समस्या है! यह साबित करता है कि तुम्हारे में अभी भी परमेश्वर का विरोध करने की प्रकृति है और तुम ज़रा भी परिवर्तित नहीं हुए हो। कुछ लोग तो परमेश्वर का न्याय करते हुए कहते हैं कि परमेश्वर धर्मी नहीं हैं। वे परमेश्वर के बारे में धारणाएँ रखते हैं, और वे अभी भी तर्क कर सकते हैं या परमेश्वर से अनुरोध कर सकते हैं: "परमेश्वर को इस बात को खुले रूप से करना चाहिए ताकि हर कोई इस पर चर्चा करे।" ऐसे कर्मों से यह साबित होता है कि वे दुष्ट राक्षस हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। उनकी प्रकृतियाँ कभी भी परिवर्तित नहीं होंगी। इस तरह के व्यक्ति को छोड़ देना चाहिए। केवल वे लोग अपने स्वभाव में परिवर्तन प्राप्त करने की आशा कर सकते हैं जो सच्चाई को स्वीकार कर सकते हैं, जो जब कभी भी वे परमेश्वर के कार्य को समझ न पाएँ तब सच्चाई को प्राप्त करने की खोज और जाँच करते हैं। तुम्हारे अनुभव में, कुछ सामान्य स्थितियाँ हैं जिन्हें विशिष्ट रूप से समझना चाहिए। शायद जब तुम प्रार्थना करते हो तब तुम फूट-फूट कर रोते हो, या शायद तुम अपने दिल में परमेश्वर के लिए बहुत प्रेम महसूस करते हो और तुम परमेश्वर के करीब महसूस करते हो। यह केवल वह स्थिति है जब पवित्र आत्मा तुम में कार्य करता है, लेकिन तुम अभी भी परमेश्वर से प्रेम नहीं करते हो, अभी भी तुम्हारे पास सच्चाई नहीं है, और यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि तुम्हारा स्वभाव बदल गया है।
अपने स्वभाव को बदलने में तुम शुरूआत कहाँ से करते हो? क्या तुम लोग जानते हो? यह शुरूआत तुम्हारी अपनी प्रकृति को समझने से होती है। यही कुँजी है। तो तुम इसे कैसे समझ पाओगे? कुछ लोग कहते हैं, "भ्रष्टता की अपनी अभिव्यक्ति की खोज करो।" जब तुम खोज कर चुके हो तो तुम स्वयं को कैसे जाँचते हो? तुम इसे जान सकते हो जब तुम अपने कर्तव्यों को पूरा कर रहे हो। यदि तुम अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर रहे हो तो क्या होगा? क्या तुम इसे ढूँढ सकते हो? क्या तुम इसे अपने परिवार के साथ रहते समय या लोगों के साथ जुड़ते समय पा सकते हो? तुम इसे कैसे खोजते हो? कुछ कहते हैं, "तुम्हें इसे हर समय ढूँढना चाहिए!" तुम दिग्गज लोग इस तरह कई सालों से अभ्यास करते रहे हो; क्या तुम्हें अभी भी अपनी प्रकृति की समझ है? तुम्हें अब भी एक लंबा रास्ता तय करना है! तुम कहते हो कि तुम्हें हर दिन, हर समय इसे खोजना चाहिए; भोजन और नींद के समय के अलावा, तुम्हें हमेशा खोज करनी होगी। तुम कहाँ ढूँढ रहे हो? तुम किन चीज़ों में ढूँढ रहे हो? यह तुम्हें कैसे मिलेगा? इसका परिणाम क्या होगा? कुछ कहते हैं, "अपनी प्रकृति को समझना।" जब तुम अपनी प्रकृति को समझ लेते हो, तो तुम बदल सकते हो। किसी के लिए भी यह कहना आसान है। लेकिन तुम खोज कैसे करते हो? तुम इसे कैसे समझते हो? कोई रास्ता अवश्य होना चाहिए। तुम खाली चीज़ों के बारे में बात नहीं कर सकते। यदि कोई रास्ता है, तो तुम्हें पता होगा कि कैसे अनुभव करें। तो बिना किसी रास्ते के, तुम केवल नारे लगा रहे हो, "हम सभी को अपनी प्रकृतियों को समझना चाहिए। हमारी प्रकृतियाँ कोई अच्छी नहीं हैं। जब हम अपनी प्रकृतियों को समझ लेते हैं, तो हम अपने स्वभाव को बदल सकते हैं।" जब तुम इस तरह नारे लगा चुके हो, तो यह गर्म हवा उड़ाने से ज्यादा कुछ नहीं है, और कोई भी अपनी प्रकृतियों को नहीं समझता है। इसे बिना किसी रास्ते के सिद्धांतों की बात करना कहा जाता है। क्या इस तरह से काम करना चीजों को बर्बाद करना नहीं है? इस तरह से काम करने का नतीजा क्या होगा? तुम लोग अमूमन नारे लगाते हो, "हम हमारी प्रकृतियों को समझें! हम सभी को परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए! हम सभी को परमेश्वर के सामने अवश्य समर्पण करना होगा! हम सभी को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत होना और घुटने टेकना चाहिए! हम सभी को परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए! जो कोई भी परमेश्वर से प्यार नहीं करता है, वह अस्वीकार्य है!" इन सिद्धांतों के बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं है और इससे समस्याएँ हल नहीं होती हैं। तुम लोगों ने इस मुद्दे के बारे में नहीं सोचा है। तो तुम कैसे समझ सकते हो? अपनी प्रकृति को समझना वास्तव में आत्मा की गहराई का विश्लेषण करना है; यही वो है जो तुम्हारे जीवन में है। तुम मूल रूप से शैतान के तर्क और शैतान के कई दृष्टिकोणों से जी रहे थे, अर्थात तुम शैतान के जीवन के अनुसार जी रहे थे। केवल अपने आत्मा की गहरी चीजों को उजागर करके तुम अपनी प्रकृति को समझ सकते हो। तुम उन्हें कैसे उजागर करते हो? बहुत से लोग केवल चीज़ों को करने के द्वारा उन्हें उजागर या विश्लेषित नहीं कर पाएँगे। अक्सर, जब तुम कुछ काम कर चुके हो, तुम एक समझ तक नहीं पहुँच पाते हो। शायद तीन या पांच साल बाद तुम्हारे पास एक जागृति होगी, और कुछ समझ होगी।
अब, अपनी प्रकृति को समझने के लिए, तुम्हें कई पहलुओं को शामिल करना होगा: सबसे पहले, तुम्हें अपने दिल में क्या पसंद है, यह स्पष्ट होना चाहिए। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि तुम क्या खाना या पहनना पसंद करते हो, बल्कि इसका मतलब है कि तुम्हें किस तरह की चीज़ें अच्छी लगती हैं, किन चीज़ों से तुम ईर्ष्या करते हो, किन चीज़ों की तुम आराधना करते हो, किन चीज़ों की तुम्हें तलाश है, और किन चीज़ों की ओर तुम ध्यान देते हो। क्या तुम लोग इस बात पर स्पष्ट हो? क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी पसंद की चीज़ों में किस प्रकार की वस्तुएँ शामिल हैं? ये वो चीज़ें हैं जिन पर तुम आम तौर पर ध्यान देते हो, वे चीजें जिनकी तुम आराधना करते हो, उस तरह के लोग जिनके साथ तुम संपर्क में आना चाहते हो, वे चीज़ें जिन्हें तुम करना पसंद करते हो, और उस प्रकार के लोग जिन्हें तुम अपने मन में आदर्श मानते हो। उदाहरण के लिए: ज्यादातर लोग महान व्यक्तियों को पसंद करते हैं, कुछ ऐसे व्यक्ति जो अपनी बोल-चाल में शानदार हों, या जो मज़ाकिया ढंग से कुछ छिपाकर बोलते हों; कुछ लोग ऐसे व्यक्तियों को पसंद करते हैं जो एक ढोंग कर सकते हैं। यह पहलू उन लोगों से संबंधित है जिनके साथ वे जुड़ना चाहते हैं। जहाँ तक वे किन चीज़ों को पसंद करते हैं उस पहलू का प्रश्न है, इसमें उन चीजों को करने के लिए तैयार होना शामिल होता है जिन्हें करना आसान होता है, वो करना पसंद करना जिन्हें दूसरे अच्छा मानते हैं, और वे चीज़ें जिन्हें देख कर लोगों की प्रशंसा, तालियाँ और सराहना मिलती हैं। लोग अपनी प्रकृति में किन चीज़ों को पसंद करते हैं, इसकी मोटे तौर पर एक विशिष्टता है। अर्थात, वे उन चीज़ों और लोगों को पसंद करते हैं जिनके बाहरी दिखावे की वजह से अन्य लोग ईर्ष्या करते हैं, वे उन चीजों और लोगों को पसंद करते हैं जो सुंदर और शानदार दिखते हैं, और जिनकी बाहरी दिखावट के कारण अन्य लोग आराधना करते हैं। जिन चीज़ों को लोग अत्यधिक पसंद करते हैं वे बढ़िया, चमकदार, भव्य और आलिशान होती हैं। सभी लोग इन चीजों की आराधना करते हैं, और यह देखा जा सकता है कि लोगों में कोई सच्चाई नहीं है, और एक वास्तविक मानव की सदृशता नहीं है। इन बातों की आराधना करने में लेशमात्र अर्थ भी नहीं है, लेकिन लोग इन चीजों को पसंद करते हैं। जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं उनकी नज़रों में, ये चीज़ें जो अन्य लोग पसंद करते हैं, खासकर अच्छी होती हैं, और वे विशेष रूप से उनका अनुसरण करने के लिए तैयार होते हैं। एक सरल उदाहरण के लिए: लोग विशेष रूप से अभिनेताओं, मशहूर हस्तियों या गायकों की पूजा करते हैं। अविश्वासियों के अपने समूह होते हैं। वे मशहूर हस्तियों के पीछे भागते हैं, उनके हस्ताक्षर और संदेश चाहते हैं, या उनसे हाथ मिलाते और उनके गले लगते हैं। क्या ये बातें विश्वासियों के दिलों में मौजूद होती हैं? क्या तुम कभी-कभी उन मशहूर हस्तियों के गाने गाते हो जिनकी तुम आराधना करते हो? या क्या तुम कभी-कभी उनका अनुकरण करते हो और अपने दिल की पसंदीदा शैलियों में तैयार होते हो? तुम इन हस्तियों और मशहूर लोगों को तुम्हारी आराधना के पात्र और तुम्हारी आराधना के आदर्श बनाते हो। ये आम चीजें हैं जिनके लोग अंदर से शौकीन होते हैं। क्या विश्वासी लोग वास्तव में उन बातों की आराधना नहीं करते हैं जिनकी अविश्वासी लोग आराधना करते हैं? दिल की गहराई में, अधिकांश लोगों को अब भी उनकी आराधना करने की इच्छा है। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, और ऐसा लगता है कि तुम स्पष्ट रूप से उन चीजों का पीछा नहीं कर रहे हो। हालांकि, अपने दिल में तुम अभी भी उन चीजों की ईर्ष्या करते हो, और तुम अभी भी उन चीजों के शौकीन हो। कभी-कभी तुम्हें लगता है कि: "मैं अभी भी उनके संगीत को सुनना चाहता हूँ, और मैं अब भी उन टीवी कार्यक्रमों को देखना चाहता हूँ जिनमें वे काम कर रहे हों। वे कैसे रहते हैं? वे इस समय कहाँ हैं? अगर मैं उन्हें देख सकता और उनसे हाथ मिला सकता, तो यह बढ़िया होता, और अगर मैं मर भी जाऊं तो भी यह इसके योग्य होगा।" चाहे वे जिनकी भी आराधना करें, सभी लोग इन चीज़ों को पसंद करते हैं। शायद तुम्हें ऐसा मौका नहीं मिलता है या तुम्हारे पास इन लोगों, चीजों या विषयों से मिलने के लिए सही परिस्थिति नहीं है; फिर भी, ये चीजें तुम्हारे दिल में हैं। इन चीजों के लिए लालायित होना संसार के लोगों के साथ कीचड़ में लोटना है; यह वो है जिससे परमेश्वर घृणा करता है, इसमें सत्य का अभाव है, इसमें मानवता की कमी है, और यह शैतान की सदृशता में है। यह एक सरल उदाहरण है, यह वो है जिसके लोग अंदर से शौकीन होते हैं। तुम अपनी प्रकृति को उन चीजों से उजागर कर सकते हो जिनके तुम शौकीन हो।
लोग किन चीज़ों के शौकीन हैं यह उनके पोशाक पहनने के तरीके से देखा जा सकता है। कुछ लोग अजीब कपड़े पहनने को तैयार हैं, ऐसे कपड़े जो दूसरों का ध्यान आकर्षित करते हैं, रंग-बिरंगे कपड़े या विचित्र कपड़े। वे अपने साथ उन चीज़ों को ले जाने के लिए तैयार होते हैं जो लोग सामान्य रूप से नहीं ले जाते, और वे उन चीज़ों से प्यार करते हैं जो विपरीत लिंग को आकर्षित कर सकें। वे इन चीजों को साथ लेते हैं और इन कपड़ों को पहनते हैं, जो यह दर्शाता है कि ये चीजें कैसे उनके जीवन में मौजूद हैं और उनके दिलों में गहरी पैठी हुई हैं। ये चीज़ें जिन्हें वे पसंद करते हैं प्रतिष्ठित और खरी नहीं हैं, वे एक सच्चे व्यक्ति की चीजें नहीं हैं। जो चीज़ें वे पसंद करते हैं वे उचित नहीं हैं और उनके विचार दुनिया के लोगों की तरह हैं। मैंने कुछ ऐसे लोगों से मुलाकात की है जिनके कपड़े, उपसाधन और दृष्टिकोण दुनिया के लोगों जैसे ही थे। मैं उनमें कोई सच्चाई नहीं देख सका। इसलिए, तुम क्या पसंद करते हो, तुम किस पर ध्यान केंद्रित करते हो, तुम किसकी आराधना करते हो, तुम किसकी ईर्ष्या करते हो, और रोज तुम अपने दिल में क्या सोचते हो, ये सब तुम्हारी अपनी प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह इसे साबित करने के लिए पर्याप्त है कि तुम्हारी प्रकृति अधार्मिकता की शौकीन है, और गंभीर परिस्थितियों में, तुम्हारी प्रकृति बुरी और असाध्य है। तुम्हें इस तरह अपनी प्रकृति का विश्लेषण करना चाहिए, अर्थात्, यह देखो कि तुम क्या पसंद करते हो और तुम अपने जीवन में क्या त्यागते हो। शायद तुम कुछ समय के लिए किसी के प्रति अच्छे हो, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि तुम उसके चाहने वाले हो। जिसके तुम वाकई शौकीन हो, वह ठीक वो है जो तुम्हारी प्रकृति में है; भले ही तुम्हारी हड्डियाँ टूट गयी हों, तुम फिर भी उसे पसंद करोगे और कभी भी इसे त्याग नहीं पाओगे। इसे बदलना आसान नहीं है। उदाहरण के लिए एक साथी को ढूँढने की बात लो। समान प्रवृत्ति के व्यक्ति इकट्ठे रहते हैं। यदि एक महिला को वास्तव में एक व्यक्ति पसंद आया, तो अन्य लोग इसे रोक नहीं पाएँगे। यहाँ तक कि अगर उसके माता पिता ने उसकी टांग भी तोड़ दी, तब भी वह उसके साथ भाग जाएगी; अगर उसे मरना भी पड़े तो वह उसके साथ विवाह करना चाहेगी। यह कैसे हो सकता है? इसका कारण यह है कि कोई भी व्यक्ति उसे नहीं बदल सकता जो उसके अंदर गहराई से है। यहाँ तक कि अगर तुम उसका दिल भी बाहर खींच निकालो और वह मर भी जाए, तो भी उसकी आत्मा को बस वही पसंद होगा। ये चीजें मानव प्रकृति की हैं, और वे किसी व्यक्ति के सार का प्रतिनिधित्व करती हैं। जिन चीज़ों को लोग पसंद करते हैं उनमें कुछ अधार्मिकता होती है, कुछ स्पष्ट होती हैं और कुछ नहीं; कुछ उग्र होती हैं और कुछ नहीं; कुछ लोगों के पास आत्म-नियंत्रण होता है, और कुछ स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं; कुछ लोग अनैतिकता की चीजों में डूब सकते हैं, और यह साबित करता है कि उनके पास जीवन का थोड़ा-सा भी अंश नहीं है। यदि लोग उन चीजों के द्वारा अधिकृत और नियंत्रित न होने के लिए समर्थ होते, तो यह साबित होगा कि उनके स्वभाव में थोड़ा बदलाव आया है और उनके पास थोड़ा कद है। कुछ लोग कुछ सच्चाइयों को समझते हैं और महसूस करते हैं कि उनके पास जीवन है और वे परमेश्वर से प्यार करते हैं। वास्तव में, यह अभी भी बहुत जल्दी है, अपने स्वभाव को बदलना कोई आसान बात नहीं है। क्या प्रकृति को समझना आसान है? अगर तुम इसे थोड़ा समझ भी गए, तो भी इसे बदलना आसान नहीं होगा। यह लोगों के लिए एक कठिनाई का क्षेत्र है। तुम्हारे इर्द-गिर्द चाहे लोग, मामले, या चीजें कैसे भी बदलें, और चाहे दुनिया कैसे भी उलट-पुलट हो जाए, अगर तुम अपने अंदर सच्चाई के द्वारा निर्देशित होते हो, सत्य ने तुम्हारे भीतर जड़ें बनाई हैं, और परमेश्वर के वचन तुम्हारे जीवन का, तुम्हारी पसंद का, और तुम्हारे अनुभव और अस्तित्व का मार्गदर्शन करते हैं, तो तुम वास्तव में बदल गए होगे। अब यह तथाकथित परिवर्तन केवल लोगों में थोड़ा सहयोग, थोड़ा उत्साह और विश्वास का होना है, लेकिन यह एक परिवर्तन नहीं माना जा सकता है और यह साबित नहीं करता कि लोगों के पास जीवन है; यह सिर्फ लोगों की पसंदों के कारण है। उन चीजों को उजागर करने के अलावा जो लोग अपनी प्रकृतियों में पसंद करते हैं, उनकी प्रकृतियों से संबंधित अन्य पहलुओं को भी उघाड़ देना होगा; उदाहरण के लिए, चीज़ों पर लोगों के दृष्टिकोण, लोगों के तरीके और जीवन के लक्ष्य, लोगों के जीवन के मूल्य और जीवन पर दृष्टिकोण, साथ ही सच्चाई से संबंधित सभी चीजों पर उनकी राय। ये सभी वो चीजें हैं जो लोगों की आत्माओं के भीतर गहरी हैं और स्वभाव में परिवर्तन के साथ उनका एक सीधा संबंध है।
आओ, देखें कि जीवन के बारे में एक भ्रष्ट प्रकृति के व्यक्ति के क्या विचार हैं। तुम कह सकते हो कि उनका मानना है कि "हर कोई बस अपनी चिंता करे, और जो पीछे रह गए, उन्हें भले शैतान ले जाए।" लोग खुद के लिए जीते हैं, और सीधे से कहें तो, वे सूअरों और कुत्तों की तरह हैं; वे केवल भोजन, कपड़े और खाने की परवाह करते हैं। उनके जीवन का अन्य कोई उद्देश्य नहीं है और इसमें महत्व या मूल्य का कोई लेश मात्र अंश भी नहीं है। जीवन के विचार वो हैं जिन पर तुम बचे रहने और जीवित रहने के लिए भरोसा करते हो; वे वो हैं जिनके लिए तुम जीते हो, और जिस तरह से तुम जीते हो। ये सभी मानव प्रकृति के सार हैं। लोगों की प्रकृतियों का विश्लेषण करने के द्वारा, तुम देखोगे कि सभी लोग परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं। वे सभी शैतान हैं और कोई यथार्थ में अच्छा व्यक्ति नहीं है। केवल लोगों की प्रकृतियों का विश्लेषण करके तुम वास्तव में मनुष्य के सार और उसकी भ्रष्टता को जान सकते हो और समझ सकते हो कि लोग वास्तव में किसके हैं, लोगों में वास्तव में क्या कमी है, उन्हें किस चीज़ से लैस होना चाहिए, और उन्हें मानवीय सदृशता को कैसे जीना चाहिए। लोगों की प्रकृतियों का वास्तव में विश्लेषण करने में सक्षम होना आसान नहीं है। यह सच्चाई और अनुभव के बिना नहीं होगा।