हमारे परिवार को किसने तोड़ा?

05 फ़रवरी, 2023

मेरे पति और मैं एक ही गाँव में बड़े हुए, बचपन से ही हमें अपने माता-पिता के साथ प्रभु यीशु में विश्वास था। शादी के बाद, मैंने एक दवाखाना खोला, और वे एक टीवी रिपोर्टर का काम करने लगे। हमारे दो प्यारे-प्यारे बच्चे थे, हमारा जीवन खुशहाल और सुकून-भरा था। 2008 के आखिरी महीनों में, मेरी सासू माँ और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा। मेरे पति ने ऐसा नहीं किया—वे अपने करियर में व्यस्त थे। मगर वे मेरी आस्था का समर्थन करते थे। सभाएँ करके और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैं जान गई कि करीब बीस वर्ष पूर्व हमारा उद्धारकर्ता हमारे बीच आया, और वह मनुष्यजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता रहा। परमेश्वर का कार्य खत्म होने को है, और हमारे लिए बचाए जाने का बस यही एक मौका है। यह मौका अनमोल और क्षणिक है। चूक गई, तो सदा के लिए पछताना पड़ेगा। इसलिए अपनी आस्था पर अमल करने और कर्तव्य निभाने के लिए, मैंने दवाखाना बंद कर दिया और दूसरे भाई-बहनों के साथ सुसमाचार फैलाना शुरू कर दिया।

2010 में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने धार्मिक आस्थाओं को दबाने और मिटाने, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम और कलंकित करने के लिए, टीवी, रेडियो, अखबारों और दूसरे मीडिया का इस्तेमाल किया। उन्होंने ईसाइयों को गिरफ्तार कर सताया। मेरे कारण फँस जाने के डर से मेरे पति मेरी आस्था में आड़े आने लगे। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा, "पार्टी धर्म की इजाजत नहीं देती, कहती है कि विश्वासी अपने परिवार को छोड़ देते हैं। तुम अपनी आस्था छोड़ दो। अगर इस कारण तुम गिरफ्तार हो गई, तो हमारा परिवार बिखर जाएगा। हम पहले की तरह कलीसिया जाते रहें, तो वैसा ही रहेगा न?" मैंने उनसे कहा, "आस्था के इतने वर्षों में क्या आपने मुझे अपना परिवार त्यागते देखा है? ये सारी बातें झूठी हैं, जो पार्टी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के दमन के लिए बनाई हैं। आप उनके झूठ पर कैसे यकीन कर सकते हैं? परमेश्वर लौट आया है, नया कार्य कर रहा है। जो लोग उन पुरानी कलीसियाओं में जाते हैं, वे अंत तक अनुसरण करके भी सत्य या जीवन हासिल नहीं कर पाएँगे। मुझे यकीन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है और मैं परमेश्वर के पदचिन्हों पर चल रही हूँ। मैं सच्चा मार्ग नहीं छोडूँगी।" मुझे इतना दृढ़ पाकर उन्होंने मुझे चेतावनी दी, "कुछ भी हो, तुम आस्था नहीं रख सकती, सभाओं में नहीं जा सकती!" इसके बाद, मैं बस सुबह जल्दी उठकर रसोई में छिपकर परमेश्वर के वचन पढ़ पाती थी, और उनकी पीठ पीछे परिवार और मित्रों के साथ सुसमाचार साझा करती थी।

2012 में एक शाम, एक सभा के बाद, मैंने अपने पति को नीचे के स्टोररूम के दरवाजे पर बैठा देखा। मुझे आते देख, उन्होंने मुझ पर लात-घूंसे बरसाए और जमीन पर गिरा दिया। मैं पूरी ताकत से खुद को छुड़ाकर ऊपरी मंजिल की सीढियों पर दौड़ पड़ी, मगर मेरे पीछे दौड़कर उन्होंने मेरे चेहरे पर तमाचे जड़ दिए, फिर क्रूरता से बोले, "अब तुम और अधिक सभाओं में भाग नहीं ले सकती!" मुझे दिन में तारे नजर आ रहे थे, मुँह के सिरों से खून रिस रहा था। शादी के दस साल में पहली बार उन्होंने मुझ पर हाथ उठाया था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी आस्था के कारण वे मुझे इतनी बेरहमी से पीटेंगे। तब मैंने थोड़ा कमजोर और भयभीत महसूस किया। मैंने सोचा, अगर वे मुझे दोबारा पीटें, तो क्या मुझे थोड़े समय के लिए सभाएँ करना और कर्तव्य निभाना छोड़ देना चाहिए? जानती थी कि मैं सही हालत में नहीं थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से फौरन प्रार्थना कर, आस्था और शक्ति देने की विनती की। फिर मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : "तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी नेक इच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। हाँ, सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है। परमेश्वर की अनुमति के बिना, मेरे पति मेरे साथ कुछ नहीं कर सकते थे। उस दिन परमेश्वर ने मेरे साथ ऐसा होने दिया था। अगर मैं पिटने या पति के चिल्लाने के डर से अपना कर्तव्य निभाने की हिम्मत न करूँ, तो क्या यह गवाही खोना नहीं होगा? मेरे पति चाहे जैसा दमन करें, मुझे अपनी गवाही में अडिग रहना होगा। मैं हमेशा की तरह सभाओं में जाकर अपना कर्तव्य निभाती रही।

2012 के आखिरी महीनों में, कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के दमन का पागलपन और बढ़ गया। वे बड़े पैमाने पर कार्रवाई कर परमेश्वर के चुने हुए लोगों की गिरफ्तारी कर रहे थे। एक दिन, एक सभा में कुछ और लोगों के साथ मुझे भी गिरफ्तार कर लिया गया। सामाजिक व्यवस्था को बाधित करने के आरोप में उन्होंने मुझे दस दिन हिरासत में रखा। रिहा होने के बाद जब मैं घर गई, तो मेरे पति आगबबूला थे : "क्या तुम्हें कोई अंदाजा भी है? मेरे सभी अधिकारियों और सहयोगियों ने आस्था के कारण तुम्हारी गिरफ्तारी के बारे में पूछा है। मैं वहाँ अपना सिर नहीं उठा सकता। यह बहुत अपमानजनक है!" मैंने उनसे कहा, "आस्था रखना सही और स्वाभाविक है। सभाएँ कर सुसमाचार साझा करना सम्मानजनक काम है। पार्टी ही बुरी है, जो ईसाइयों को गिरफ्तार कर सताने पर तुली हुई है। युग-युग से सच्चे मार्ग को उत्पीड़ित किया गया है। इस मार्ग पर चल रहे लोगों को शैतान की ताकतें सताती हैं। क्या अनेक युगों में संतों को सुसमाचार साझा करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया था?" उन्होंने आँखें लाल कर जवाब दिया, "एक बात साफ कर दूँ। अगर तुम आस्था न रखने का वादा करो, तो हम खुशहाल जीवन जी सकते हैं। अगर तुमने आस्था रखी, तो हम तलाक लेंगे! तुम्हें जो चुनना हो चुनो, मैं आड़े नहीं आऊँगा!" मुझसे आस्था छुड़वाने के लिए तलाक की धमकी मुझे गुस्सा दिलाने वाली और डरावनी थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि दस साल लंबी शादी को, कम्युनिस्ट पार्टी के दमन के कारण वे यूँ ही तोड़ देंगे। अगर हमने तलाक ले लिया, तो इससे हमारे बच्चों को यकीनन तकलीफ होगी। मैं तलाक नहीं लेना चाहती थी, मगर इससे भी ज्यादा मैं परमेश्वर को धोखा देकर उसका अनुसरण करने और बचाए जाने का मौका नहीं खोना चाहती थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इन हालात से कैसे उबरूं। मैंने रास्ता दिखाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। उसके वचनों का यह अंश मेरे मन में कौंध गया : "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर मैं समझ गई कि भले ही यह मेरे पति का दमन लगता था, मगर इसके पीछे शैतान था जो मुझे रोकने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहा था, ताकि मैं परमेश्वर को धोखा देकर, अपने उद्धार का मौका खो दूं। मैं शैतान को इस चाल में जीतने नहीं दे सकती थी। मेरे पति मेरी राह का रोड़ा इसलिए बने क्योंकि उन्होंने सीसीपी की अफवाहों पर यकीन किया। अगर मैंने उनके सामने सीसीपी के झूठ उजागर कर दिए और उन्हें विवेक हासिल हो गया, तो शायद वे मेरा दमन करना बंद कर दें। इसलिए मैंने उन्हें बताया, "पार्टी द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का तिरस्कार और उस पर लगाए गए कलंक सिर्फ उनकी बनाई अफवाहें हैं। इतने वर्षों से रिपोर्टर होकर क्या आप पार्टी की नकली खबरों की असली कहानी सबसे बेहतर नहीं जानते? क्या आप हमेशा नहीं कहते कि पार्टी पर विश्वास नहीं किया जा सकता? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कितने ऐसे विश्वासियों ने अपना परिवार छोड़ा है जिन्हें हम जानते हैं? कई वर्षों से मैंने आस्था रखी है। क्या मैं हमारे माता-पिता और बच्चों की अच्छी देखभाल नहीं कर रही हूँ?" मेरी बात काटने को उनके पास कुछ नहीं था, तो वे बस पारा चढ़ाकर बोले, "मैं देख सकता हूँ तुम टस से मस नहीं होने वाली। ठीक है, जाओ अपने परमेश्वर में विश्वास रखो!" फिर दरवाजा धड़ाम से बंद कर वे चले गए।

इसके बाद, मुझे हैरत हुई कि उन्होंने अदालत जाकर तलाक के दस्तावेज पेश कर दिए। न्यायाधीश ने हमसे मध्यस्थता करवाने को कहा। उन्होंने मेरा वेतन कार्ड और मेरे बैंक कार्ड ले लिए, और मुझ पर नजर रखने के लिए अपना काम छोड़ हमेशा घर पर रहने लगे, जिससे मैं न सभाओं में जा सकी और न ही कर्तव्य निभा सकी। एक दिन हमारे ग्राम मुखिया ने फोन कर कहा कि पुलिस ने ग्राम समिति को सूचित कर यह पक्का करने को कहा है कि मैं आस्था का पालन न करूँ या सुसमाचार न फैलाऊँ, और मेरे पति मुझ पर पैनी नजर रखें। वरना, मेरे गिरफ्तार होने पर उन्हें भी फँसाया जाएगा। यह सुनकर मेरे पति मुझसे और भी सख्ती करने लगे। एक बार, मैं और मेरी सासू माँ बेडरूम में शांति से परमेश्वर के वचनों पर संगति कर रही थीं, लेकिन मेरे पति ने सुन लिया, वे दौड़कर आए और चिल्लाने लगे, "तुम अब भी विश्वास रखती हो! तुम्हें सिर्फ अपनी पड़ी है, तुम्हें मेरी या बच्चों की कोई फिक्र नहीं। अगर तुम गिरफ्तार हो गई, तो हम फँस जाएँगे!" यह कहकर वे मुझे मारने लगे। बच्चे इतना डर गए कि वे अपने बेडरूम में छुप गए, बाहर आने की हिम्मत नहीं कर पाए, और मेरी सासू माँ बड़े दुख से रोती रहीं। उस वक्त मुझे बहुत गुस्सा आया। सिर्फ मेरी आस्था के कारण, कम्युनिस्ट पार्टी मेरे परिवार को मेरे आड़े आने के लिए डरा-धमका रही थी, जो मेरी 80 साल की सासू माँ और मेरे बच्चों के लिए बहुत डरावना था। एक बढ़िया खुशहाल परिवार को यूँ दुख में धकेल दिया था। मैं बहुत दुखी और वीरान महसूस करने लगी। मेरे पति मुझसे लड़ते रहने के लिए हमेशा मेरी आस्था का इस्तेमाल करते थे। मैं न सभा कर पा रही थी, न ही कर्तव्य। वे जब घर पर न होते, तभी मैं परमेश्वर के वचन पढ़ पाती। मुझे वे दिन बहुत याद आ गये जब मैं भाई-बहनों के साथ सभा करती, अपना कर्तव्य निभाती, लेकिन अब मेरा घर एक पिंजड़ा बन गया था। दो महीनों से मैं हर दिन अपने पति की बेरुखी और डांट-डपट बर्दाश्त कर रही थी। मैं बहुत दुखी और उदास हो गई। पता नहीं था यह कब खत्म होगा। जब मेरा दुख एक खास मुकाम पर पहुँच गया, तो मैंने प्रार्थना की, "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं बहुत पीड़ा और दुख में हूँ। नहीं जानती कि इस स्थिति से कैसे उबरूं। मुझे प्रबुद्ध करो ताकि मैं तुम्हारी इच्छा को समझ सकूँ।" प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "हजारों सालों से यह भूमि मलिन रही है। यह गंदी और दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हजारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीकी से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्कट इच्छा को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि कम्युनिस्ट पार्टी शैतान का प्रतिरूप है, धरती पर आई हुई राक्षसी है। बाहरी दुनिया को बताती है कि यह धर्म की आजादी देती है, लेकिन इसके पीछे यह परमेश्वर का विरोध कर उसके चुने हुए लोगों से बर्बरता करती है। अंत के दिनों में, देहधारी परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। पार्टी को डर है कि अगर लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ेंगे, तो वे सत्य समझ जाएँगे, इसका राक्षसी रूप देख लेंगे, और फिर उसे ठुकराकर त्याग देंगे। तब सदा के लिए लोगों पर काबू करने की उसकी जुनूनी आकांक्षा चूर-चूर हो जाएगी। इसीलिए वह इतनी नाराज है, और मसीह के पीछे पड़कर, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गिरफ्तार कर सता रही है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को फँसाने और बदनाम करने के लिए तरह-तरह की झूठी बातें बना रही है, सच न जानने वाले ढेरों लोगों को गुमराह कर रही है, ताकि वे सच्चे मार्ग को स्वीकारने की हिम्मत न करें। बहुत-से ईसाई परिवारों के लोग उनके झूठ को सच मानते हैं, और फिर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सताने में उनका साथ देते हैं। अंत में, परमेश्वर के खिलाफ जाने के कारण वे नरक भी जाएँगे। मैंने जितना सोचा उतना ही समझा कि कम्युनिस्ट पार्टी सच में एक राक्षसी है, जो परमेश्वर से घृणा कर लोगों को तबाह करती है। यह परमेश्वर की कट्टर दुश्मन है, और मैं उससे अपने दिल की गहराई से घृणा करने लगी। मैंने कसम भी खाई कि उसे ठुकराकर छोड़ दूँगी और बिल्कुल अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी।

परमेश्वर के वचनों में मैंने कुछ और पढ़ा। "बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है...। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि पार्टी परमेश्वर के खिलाफ काम करती है, उसकी दुश्मन है, इसलिए चीन के हम विश्वासी जबरदस्त दमन और मुश्किलें झेलने को बाध्य होंगे। यह परमेश्वर द्वारा पहले से तय है। परमेश्वर ऐसे मुश्किल माहौल का इस्तेमाल इसलिए करता है, ताकि हमारी आस्था पूर्ण हो सके, हम बड़े लाल अजगर को जान-समझ सकें, हम उससे घृणा कर उसे ठुकरा सकें, और उससे कभी गुमराह या आहत न हों। लेकिन मैं परमेश्वर की इच्छा नहीं जानती थी। मैं निराश थी, शारीरिक कष्ट की शिकायत करती थी, और मैंने सत्य नहीं खोजा, सबक नहीं सीखा। मैं बड़ी विद्रोही थी। परमेश्वर सर्वोच्च है, लेकिन बस मानवजाति को बचाने के लिए वह ऐसी पीड़ा और अपमान सहता है। वह दुष्ट कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा निरंतर पीछा किये जाने, उत्पीड़न और धार्मिक दुनिया की निंदा सहते हुए, देहधारी होकर हमारे बीच वचन बोलने और कार्य करने आया है। लेकिन परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने का काम कभी नहीं छोड़ा। उसने सत्य व्यक्त करने, हमारा सिंचन और पोषण करने का काम जारी रखा है। परमेश्वर ने हमारे उद्धार के लिए यह सारा अपमान और पीड़ा सही है। अब जबकि मैं परमेश्वर का अनुसरण कर उद्धार पाने के प्रयास में थोड़ा कष्ट सह रही थी, तो मेरे दिल में परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था और आज्ञाकारिता नहीं थी। मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा था। मैं बहुत पछतावे और अपराध-बोध से भर गई, मैंने ठान ली कि मेरे पति मुझसे जैसे भी पेश आएँ, मैं शारीरिक कमजोरियों के आगे नहीं झुकूँगी, बल्कि दृढ़ रहने के लिए परमेश्वर का सहारा लूँगी, शैतान को कभी रास्ता नहीं दूँगी। इसके बाद, भले ही मेरे पति मेरा दमन कर रहे थे, मेरे आड़े आ रहे थे, फिर भी मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर उसका सहारा लिया, और परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण मुझे उतनी पीड़ा नहीं हुई।

एक बार जब मेरे पति को पता चला कि मैंने एक पुरानी सहपाठी से सुसमाचार साझा किया था, तो उन्होंने घर आकर मुझे डांटा, "पार्टी कहती है कि तुम्हारा प्रचार लोगों के परिवार नष्ट कर रहा है। मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ, बेहतर होगा तुम अपने सहपाठियों और मित्रों को सुसमाचार का प्रचार न करो, वरना मैं मुँह नहीं दिखा पाऊँगा।" उन्होंने परमेश्वर के तिरस्कार में भी कुछ बातें कहीं। परमेश्वर के प्रति घृणा का उनका खूंख्वार रूप देखकर मुझे गुस्सा आया। हम सुसमाचार इसलिए साझा करते हैं ताकि लोग आस्था रख सकें और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार कर सकें, मगर पार्टी चीजों को उलट-पलट देती है। वे हर किस्म का झूठ बनाते हैं, और कहते हैं कि हम लोगों के परिवार तोड़ रहे हैं। यह दुष्टता और बेशर्मी है! कम्युनिस्ट पार्टी वर्षों से परमेश्वर के खिलाफ काम करते हुए विश्वासियों को गिरफ्तार करती आई है, जिससे अनेकानेक ईसाई गिरफ्तार होकर जेलों में बंद हो चुके हैं। बहुत सारे ईसाई गिरफ्तारी से बचने के लिए भगोड़े बन गए हैं, वे घर वापस नहीं जा सकते। बहुत-से परिवार टूट गए हैं, माता-पिता बच्चों से अलग हो गए हैं। इन तमाम ईसाई परिवारों के नष्ट होने के लिए पार्टी ही दोषी है। अपने पति के पार्टी के झूठ के फेर में आने, सच और झूठ में भेद न कर पाने, परमेश्वर और आस्थावानों से इतनी घृणा करने को देखकर मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : "जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है और इसके अलावा, वे नष्ट किए जाएँगे। ... शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे नहीं, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। "पति अपनी पत्नी से क्यों प्रेम करता है? पत्नी अपने पति से क्यों प्रेम करती है? बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार की इच्छाएँ पालते हैं? क्या उनकी मंशा उनकी खुद की योजनाओं और स्वार्थी आकांक्षाओं को पूरा करने की नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों में मुझे अपने पति की परमेश्वर-विरोधी प्रकृति और सार दिखाई दिया। मैं आस्था रखती थी, सुसमाचार साझा करती थी, तो उन्होंने मुझे दबाने, रोकने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए, और परमेश्वर के तिरस्कार में तमाम बातें कहीं। ऊपर से लगता था कि निशाना मैं थी, मगर दरअसल वे सत्य और परमेश्वर से घृणा करते थे। मैंने पहले अपने पति का सार नहीं देखा था। शादी के इतने सालों में वे मेरी परवाह करते, मेरा कहा सुनते, और हर चीज में मेरा साथ देते थे, तो मुझे लगता था कि मेरे साथ उनका बर्ताव अच्छा था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि जैसे ही वे पार्टी को मेरी आस्था का दमन करते देखेंगे और समझ लेंगे कि इससे उनकी शोहरत और भविष्य पर असर पड़ेगा, वे एक बिल्कुल अलग इंसान बन जाएँगे—मुझे पीटने लगेंगे, आस्था से दूर रखने के लिए तमाम हथकंडे अपनाएँगे और परमेश्वर का तिरस्कार करेंगे। यह दानव का रूप था। शुरू-शुरू में मुझे भ्रम हुआ कि वे बस कम्युनिस्ट पार्टी के झूठ से गुमराह हो गए थे, और अगर वे इस झूठ को समझ लेंगे, तो शायद इतने दमनकारी नहीं होंगे। अब मैं जान गई थी कि मैं गलत थी। मेरे पति एक रिपोर्टर थे, इसलिए उन्हें पार्टी की नकली खबरें बनाने की अंदरूनी कहानी मालूम थी, फिर भी उन्होंने उनके झूठ पर यकीन कर मेरी आस्था को उत्पीड़ित किया। सार रूप में, वे परमेश्वर से घृणा करने वाले दानव थे। मैंने यह भी स्पष्ट देखा कि पहले वे मेरे साथ ठीक से पेश आते थे, क्योंकि वे बच्चे पैदा करने और परिवार के बच्चों और बड़ों की देखभाल के लिए मेरा पूरा इस्तेमाल करना चाहते थे। यह सच्चा प्रेम था ही नहीं। इससे मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : "विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मैं एक विश्वासी थी—परमेश्वर और सत्य का अनुसरण करती थी, और सही मार्ग पर थी। मेरे पति कम्युनिस्ट पार्टी का पालन करते थे, परमेश्वर-विरोधी मार्ग पर थे। हम दोनों का मार्ग एक नहीं था। हम बिना तालमेल के साथ रहते थे—जो सहज रूप से दर्दनाक है। यह स्पष्ट हो जाने के बाद, मैंने उनके बारे में अपने तमाम भ्रम छोड़ दिए। तब परमेश्वर के वचन पढ़ने की मेरी क्षमता सीमित थी, कर्तव्य निभाना तो दूर, मैं सभाओं में भी नहीं जा पा रही थी। बेहद दुखी थी। वे कुछ दिन मैं परमेश्वर से शीघ्र प्रार्थना कर इससे उबरने का रास्ता दिखाने की विनती करती रही।

फिर एक शाम मेरे पति ने कहा, "आज मैं एक ज्योतिषी के पास गया था, अपने करियर के बारे में पूछने और यह जानने कि कब चीजें मेरे पक्ष में हो जाएँगी।" कुछ सोचे बिना, मैंने कहा, "आप कैसे विश्वासी हैं—ऐसा बुरा कूड़ा-करकट पसंद करते हैं?" मैं भौंचक रह गई जब उनका हाव-भाव बदल गया और उन्होंने झट से मेरे पेट में घूँसा मार दिया। वे पागलों की तरह चिल्लाए, "अगर तुम अपनी आस्था पर अड़ी रहती हो, तो निकल जाओ इस घर से!" तब मुझे बहुत दर्द हुआ, लगा कि मेरे भीतर के सभी अंग खिसक गए थे। मैं फर्श पर पड़ी रही, दर्द के मारे पेट दबाए रही। सोच रही थी कि उस घर में मेरे पति दिन-रात मेरा दमन कर रहे थे। मैं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पा रही थी, सभाओं में जाना या कर्तव्य निभाना भी मुमकिन नहीं था। यूँ ही चलता रहा, तो मेरे लिए सत्य का अनुसरण करना मुश्किल हो जाएगा, मैं बर्बाद हो जाऊँगी। अब वे मेरे साथ हिंसा पर उतर आए थे, घर से बाहर निकाल देने की धमकी दे रहे थे। यह पीड़ा, यह यातना सहते रहना अब मुश्किल था। मैंने उन्हें छोड़ देने, घर नाम की उस जेल से खुद को आजाद करने और उस नारकीय जीवन से आजाद होने का फैसला लिया। उस रात, मैं बिस्तर पर पड़ी रोती-बिलखती रही। जिस घर को हमने मेहनत से बनाया था, उसे देखते हुए, सोचती रही कि दस साल से ज्यादा की हमारी शादी टूटने के कगार पर थी, कम्युनिस्ट पार्टी ने एक अच्छे-भले परिवार को नष्ट कर दिया था, मैं कमजोरी में डूब गई, ख़ास तौर पर इस ख्याल से कि हमारे बच्चे क्या करेंगे—हमारी बड़ी बेटी अपनी देखभाल कर लेगी, लेकिन सबसे छोटी सिर्फ 4 साल की थी और उसकी सेहत ठीक नहीं थी। मैं इतने वर्षों से दिल से उसकी देखभाल करती थी। वह कभी भी मुझसे दूर नहीं रही थी। मेरी सासू माँ भी बुजुर्ग हो रही थी। हमने तलाक ले लिया तो बच्चों को कौन सँभालेगा? यह विचार दिल को निचोड़ रहा था। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर मुझे प्रबुद्ध करने और उसकी इच्छा जानने में मदद करने की विनती की। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर ने इस संसार की रचना की और इसमें एक जीवित प्राणी, मनुष्य को लेकर आया, जिसे उसने जीवन प्रदान किया। इसके बाद, मनुष्य के माता-पिता और परिजन हुए, और वह अकेला नहीं रहा। जब से मनुष्य ने पहली बार इस भौतिक दुनिया पर नजरें डालीं, तब से वह परमेश्वर के विधान के भीतर विद्यमान रहने के लिए नियत था। परमेश्वर की दी हुई जीवन की साँस हर एक प्राणी को उसके वयस्कता में विकसित होने में सहयोग देती है। इस प्रक्रिया के दौरान किसी को भी महसूस नहीं होता कि मनुष्य परमेश्वर की देखरेख में बड़ा हो रहा है, बल्कि वे यह मानते हैं कि मनुष्य अपने माता-पिता की प्रेमपूर्ण देखभाल में बड़ा हो रहा है, और यह उसकी अपनी जीवन-प्रवृत्ति है, जो उसके बढ़ने की प्रक्रिया को निर्देशित करती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य नहीं जानता कि उसे जीवन किसने प्रदान किया है या यह कहाँ से आया है, और यह तो वह बिलकुल भी नहीं जानता कि जीवन की प्रवृत्ति किस तरह से चमत्कार करती है। वह केवल इतना ही जानता है कि भोजन ही वह आधार है जिस पर उसका जीवन चलता रहता है, अध्यवसाय ही उसके अस्तित्व का स्रोत है, और उसके मन का विश्वास वह पूँजी है जिस पर उसका अस्तित्व निर्भर करता है। परमेश्वर के अनुग्रह और भरण-पोषण से मनुष्य पूरी तरह से बेखबर है, और इस तरह वह परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया जीवन गँवा देता है...। जिस मानवजाति की परमेश्वर दिन-रात परवाह करता है, उसका एक भी व्यक्ति परमेश्वर की आराधना करने की पहल नहीं करता। परमेश्वर ही अपनी बनाई योजना के अनुसार, मनुष्य पर कार्य करता रहता है, जिससे वह कोई अपेक्षाएँ नहीं करता। वह इस आशा में ऐसा करता है कि एक दिन मनुष्य अपने सपने से जागेगा और अचानक जीवन के मूल्य और अर्थ को समझेगा, परमेश्वर ने उसे जो कुछ दिया है, उसके लिए परमेश्वर द्वारा चुकाई गई कीमत और परमेश्वर की उस उत्सुक व्यग्रता को समझेगा, जिसके साथ परमेश्वर मनुष्य के वापस अपनी ओर मुड़ने की प्रतीक्षा करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। "तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तुम हमेशा अपने दैहिक परिवार के बारे में चिंतित क्यों रहते हो? तुम हमेशा अपने प्रियजनों के लिए विलाप करते रहते हो! क्या तुम्हारे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि वही मानव जीवन का स्रोत है, वही हमारे भाग्य पर शासन करता है। मेरे बच्चे सुरक्षित और स्वस्थ बड़े होंगे या नहीं, इस पर माता-पिता के रूप में हमारा नियंत्रण नहीं होता, बल्कि यह सब परमेश्वर तय करता है। मेरी सबसे छोटी बेटी की सेहत, जीवन के उसके उतार-चढ़ाव और उसका भाग्य कैसा है, यह सब परमेश्वर ने पहले से तय कर रखा है। परमेश्वर जो भी व्यवस्था करेगा वह सबसे बढ़िया और अनुकूल होगा। लेकिन परमेश्वर में मेरी आस्था कम थी। मैं हमेशा सोचती थी कि स्वस्थ बड़े होने के लिए मेरे बच्चों को मेरी नजदीकी, मेरी देखभाल की जरूरत थी। मैं उन्हें परमेश्वर के हाथों में नहीं सौंप रही थी। मैं घमंडी और अज्ञानी थी। एक माँ के रूप में, अपनी बेटी के साथ रहकर मैं उसे खुश और खाता-पीता रख सकती हूँ, मगर मैं उसके भाग्य पर नियंत्रण नहीं कर सकती। अब मुझे परमेश्वर के शासन और व्यवस्था के आगे समर्पण करना होगा, और उसे परमेश्वर को सौंपना होगा, अपनी सारी चिंताएं छोड़नी होंगी, सुसमाचार साझा कर अपना कर्तव्य निभाना होगा। परमेश्वर की इच्छा को समझ लेने पर मुझे आजादी का एहसास हुआ।

अगले दिन मेरे पति और मैंने तलाक की कार्रवाई पूरी की। जब अधिकारी को पता चला कि यह सब मेरे विश्वासी होने के कारण था, तो उसने मुझे सलाह दी, "यह धर्म को लेकर है, इसलिए दस्तखत करने के बाद आपके पति, बच्चे और घर आपसे छूट जाएँगे। बेहतर होगा आप इरादा पक्का कर लें।" यह सुनकर मुझे थोड़ी झिझक हुई। भले ही मैंने अपने पति का परमेश्वर-विरोधी सार देखा था, और मैं अपने बच्चों को परमेश्वर के हाथों सौंपने को तैयार थी, मगर यह सोचकर कि मेरे दस्तखत करने का अर्थ मेरा घर, बच्चे और सारा कुछ छूट जाना होगा, मैं थोड़ा झिझक गई। यह जानकर कि मैं सही हालत में नहीं थी, मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की, फिर मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : "तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। ... तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के वचन फौरन प्रबुद्ध करने वाले थे। यह सच है—मैं एक सृजित प्राणी हूँ, परमेश्वर की आराधना मेरा परम कर्तव्य है। परमेश्वर, सत्य और जीवन के अनुसरण के लिए सब-कुछ छोड़ देना जीवन का सही मार्ग है। यही सबसे मूल्यवान और सबसे सार्थक जीवन है। परमेश्वर प्रकट होकर अंत के दिनों में मानवजाति को बचने का कार्य कर रहा है, जो कि एक अनमोल अवसर है। परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने और उसके वचनों का पोषण पाने का सौभाग्य पाना परमेश्वर का अनुग्रह और कृपा है। परमेश्वर का कार्य अब खत्म होने को है। मुझे सब-कुछ किनारे रखकर खुद को परमेश्वर के लिए खपाना चाहिए, और अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। वरना मैं उद्धार का मौका गँवा दूँगी, जिससे जीवन-भर पछतावा होगा। लेकिन मेरे पति कम्युनिस्ट पार्टी के साथ चल पड़े थे, मुझे रोकने और दबाने के लिए सब-कुछ कर रहे थे, मुझसे दुश्मन जैसे पेश आ रहे थे। "परमेश्वर" का नाम लेते ही वे मुझे पीटने लगते। उस घर में मैं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ सकती थी, बाहर सभाओं में नहीं जा सकती थी या अपना कर्तव्य नहीं निभा सकती थी। तलाक लेना ही परमेश्वर में विश्वास रखने और उसका अनुसरण करने का एकमात्र रास्ता था। इस तरह जीते हुए क्या मैं खोखला डिब्बा नहीं रह जाऊँगी? मैं शैतान के साथ दंडित होकर बस नरक पहुँच जाऊँगी। तथ्यों का सामना होने से यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि मेरे पति और मेरा घर मेरे आधार स्तंभ नहीं थे। वे मुझे आहत कर बर्बाद करने के लिए शैतान द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले औजार और बेड़ियाँ थे। सिर्फ परमेश्वर ही मेरा स्तंभ है, एकमात्र परमेश्वर ही मेरे जीवन का सहारा है। परमेश्वर का अनुसरण करना और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना ही परमेश्वर से बचाए जाने और एक अच्छा भाग्य और मंजिल पाने का एकमात्र मार्ग है। मैंने पतरस के बारे में सोचा, जो आस्था रखने, सत्य और जीवन पाने के लिए अपने माता-पिता के बंधनों से आजाद हो गया। उसने प्रभु यीशु के अनुसरण के लिए सब-कुछ छोड़ दिया। मुझे अपने दानवी पति की बेड़ियों से आजाद होने, और पूरी लगन से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए पतरस की मिसाल पर चलना चाहिए, इसलिए मैंने तलाक के कागजात पर बिना किसी झिझक के दस्तखत कर दिए।

जब मैं घर पहुँची तो मेरी बड़ी बेटी ने कहा, "मॉम, परमेश्वर में विश्वास रखना सही चीज है, मगर डैड को आपसे उस तरह पेश आते देख, मैं नहीं चाहती थी कि आप इस तरह कष्ट झेलें। मैं तलाक में आपका साथ देती हूँ।" उसकी इस बात से मुझे बहुत बढ़ावा मिला। जब मेरे मित्रों को मेरे तलाक का पता चला, तो करीब बीस मित्रों ने साथ मिलकर मुझसे अपनी आस्था छोड़ देने पर जोर दिया। मैंने उनसे दृढ़ता और विश्वास के साथ कहा, "परमेश्वर में आस्था ही सही मार्ग है। मैंने अपने माता-पिता और बच्चों की बहुत देखभाल की, लेकिन मेरे पति ने पार्टी के झूठ पर यकीन किया और मेरी आस्था में आड़े आए। उन्होंने मुझे पीटा, मुझ पर चिल्लाए, और मुझे तलाक लेने पर मजबूर किया। मैं ईमानदारी और मर्यादा के बिना जीती रही। मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी ने ही हमारे परिवार को नष्ट किया है!" उनके पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं था।

इसके बाद, मैं घर छोड़कर अपना कर्तव्य निभाने वालों में शामिल हो गई। मैंने भाई-बहनों के साथ सुसमाचार फैलाना, हर दिन परमेश्वर के वचन पढ़ना, सत्य पर संगति करना और परमेश्वर के वचनों के पोषण का आनंद उठाना शुरू कर दिया। इससे मुझे शांति और सुकून मिला। कम्युनिस्ट पार्टी के उत्पीड़न और अपने पति के दमन के बाद, मैं परमेश्वर से घृणा करने और लोगों को तबाह करने के पार्टी के दुष्ट चेहरे को पूरी तरह पढ़ पाई। यह सचमुच शैतान का प्रतिरूप है, परमेश्वर की कट्टर दुश्मन। मैंने तहे दिल से उससे घृणा की, उसे ठुकरा दिया। मैंने अपने पति के असली परमेश्वर-विरोधी सार की समझ भी हासिल की, और उस घर के पिंजड़े से छूट कर आजाद हो गई। यह परमेश्वर का पूरा उद्धार था।

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