इस मार्ग पर मैं अडिग हूँ

24 जनवरी, 2022

है छें, चीन

कुछ साल पहले, मुझे सुसमाचार का प्रचार करने के कारण गिरफ़्तार कर लिया गया था। कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे "क़ानून-व्यवस्था लागू करने की कोशिश को कमज़ोर करने के लिए एक शी जियाओ संस्था बना कर उसका इस्तेमाल करने" के आरोप में तीन साल की सज़ा दी थी। जेल से छूटने के बाद, मैंने सोचा कि आखिरकार मैं दोबारा सभाओं में भाग ले सकूंगी और अपना काम फिर से शुरू कर सकूंगी, लेकिन मैंने नहीं सोचा था कि पुलिस मुझ पर नज़र बनाये रखेगी, मेरी आज़ादी को सीमित कर देगी। जब मेरे माता-पिता रिहायशी रजिस्ट्रेशन के लिए मुझे पुलिस थाने ले गये, तो मेरे प्रभारी अधिकारी ने मुझसे बहुत गुस्से में कहा, "अगर तुम इस इलाके से बाहर जाना चाहो, तो तुम्हें इसकी सूचना मुझे देनी होगी, तुम्हारे इस शहर से बाहर जाने या विदेश जाने पर पांच साल की पाबंदी है। तुम अपनी आस्था का भी पालन नहीं कर सकती। अगर मुझे पता चला कि तुम धार्मिक सभाओं में गयी हो, तो मैं तुम्हें उसी वक्त जेल में बंद कर दूंगा। उसके बाद छूटने के बारे में सोचना भी मत!" यह सुनकर, मेरे फिर से गिरफ़्तार हो जाने के डर से मेरे माता-पिता ने मेरी बड़ी बहन को मुझ पर नज़र रखने को कहा, जिससे कि मैं परमेश्वर के वचन न पढ़ूँ या किसी भी भाई-बहन से संपर्क न करूं। मेरी बहन ने मुझे एक सेल्स क्लर्क की नौकरी दिलवायी, अगर कभी मैं देर तक बाहर रहती तो वह मुझे फोन करके पूछती, "तू कहाँ है? क्या कर रही है?" एक बार जब मैं अपने टैबलेट पर परमेश्वर के वचन पढ़ रही थी, तो मेरी बहन ने देख लिया और मुझसे जोर देकर पूछने लगी कि क्या मैं परमेश्वर के वचन पढ़ रही हूँ, यहाँ तक कि उसने मुझसे टैबलेट छीनने की भी कोशिश की। मैं जल्दी से बोल पड़ी कि मैं एक उपन्यास पढ़ रही हूँ, तब उसने मुझे अकेला छोड़ा। उसके बाद से, उसके सो जाने के बाद ही मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए अपने कंबल के भीतर छिपना पड़ता था, काम के बाद चोरी-छिपे सभाओं में जाना पड़ता था।

एक दिन, मेरे नक़ल उतारे हुए परमेश्वर के कुछ वचन मेरी बहन के हाथ लग गये और उसने पूछा, "तू अब भी आस्था रखती है, सभाओं में भाग लेती है, है न?" मैंने गुस्से से जवाब दिया, "आस्था रखना और परमेश्वर की आराधना करना सही और स्वाभाविक है। मुझे छोड़ दो!" फिर उसने भागकर हमारी सबसे बड़ी बहन को बुला लिया। वह गाड़ी चलाकर आयी और दरवाज़े से अंदर घुसते ही, उसने मेरे चेहरे पर एक थप्पड़ जड़ दिया, और मुझ पर चीख पड़ी, "तू अब भी विश्वास रखने की हिमाकत कैसे कर रही है? तेरी आस्था ने तुझे जेल में बंद किया, जिससे हर रोज़ रो-रो कर मॉम की आँखें सूज जाती थीं। अगर तुझे फिर वहां भेज दिया गया, तो सोच, मॉम का क्या होगा! क्या तू इस परमेश्वर को छोड़ नहीं सकती, मॉम को थोड़ी राहत नहीं दे सकती?" उसे ऐसा कहते सुनना मेरे बस के बाहर की बात थी, मेरी आँखों से आंसुओं की धार बहने लगी, बचपन से ही मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती थी, अब बड़ी होने की बाद, मैं उसकी फ़िक्र का कारण बन गयी हूँ। अगर मुझे दोबारा गिरफ़्तार कर लिया गया, तो क्या वह खुद को संभाल पायेगी? मैं थोड़ी कमज़ोरी महसूस कर रही थी, इसलिए मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरे दिल को बचाने की विनती की। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह अंश देखा : "परमेश्वर ने इस संसार की रचना की और इसमें एक जीवित प्राणी, मनुष्य को लेकर आया, जिसे उसने जीवन प्रदान किया। इसके बाद, मनुष्य के माता-पिता और परिजन हुए, और वह अकेला नहीं रहा। जब से मनुष्य ने पहली बार इस भौतिक दुनिया पर नजरें डालीं, तब से वह परमेश्वर के विधान के भीतर विद्यमान रहने के लिए नियत था। परमेश्वर की दी हुई जीवन की साँस हर एक प्राणी को उसके वयस्कता में विकसित होने में सहयोग देती है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। हाँ, मेरी हर साँस परमेश्वर से आती है। जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई, वह मेरी देखभाल कर मुझे बचाता रहा। तरह-तरह के मददगार लोगों, खास तौर पर मेरे माता-पिता का प्यार और देखरेख, सबकी व्यवस्था परमेश्वर ने ही तो की थी। मुझे परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, उसके प्रेम की कीमत चुकानी चाहिए। परमेश्वर को नकारना या धोखा देना बहुत ग़लत होगा। मैंने फिर से सोचा कि परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मुझे किस तरह जेल में बंद कर दिया गया था, मेरी माँ ने तनाव से परेशान होकर अपनी सेहत ख़राब कर ली थी। क्या यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के कारण नहीं हुआ? अगर उन्होंने मुझे गिरफ़्तार कर सताया नहीं होता, तो मेरे माता-पिता को डरना नहीं पड़ता। कम्युनिस्ट पार्टी चाहती है कि मैं परमेश्वर को धोखा दूं। मैं उसकी चालों को कामयाब नहीं होने दूंगी। इस विचार के आते ही मेरा संकल्प फिर से लौट आया, मैं जानती थी कि मेरा परिवार मेरा रास्ता जितना भी रोके, मुझे परमेश्वर में विश्वास रख के उसका अनुसरण करना है। उसके बाद, मैं काम करने के साथ-साथ सभाओं में भाग लेती रही, सुसमाचार साझा करती रही।

फरवरी 2017 में, एक सुबह मैं काम पर जाने को तैयार हो रही थी कि एक अनजान नंबर से मुझे फोन आया। फोन करने वाले ने कहा, "मैं राजनीतिक और कानूनी मामला आयोग से चीफ चेन बोल रहा हूँ। अगले दो दिन के अंदर आकर एक बयान पर दस्तख़त कर दो कि तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती। गिरफ़्तार होने के बाद छोड़ दिये गये बाकी सभी स्थानीय विश्वासियों ने दस्तख़त कर दिये हैं, बस, तुम ही बची हो।" यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। सभाओं में भाग लेना और परमेश्वर के वचन पढ़ना मेरी आस्था के अंश हैं, लेकिन उन्होंने इसी के लिए मुझे जेल में बंद कर दिया, यातना देकर मेरा मन बदलने की कोशिश की। अब मैं छूट चुकी हूँ, फिर भी वे मुझ पर नज़र रखे हुए हैं, मुझे अपनी आस्था का अभ्यास करने या सभा में जाने नहीं दे रहे, मुझे मजबूर करने की भी कोशिश कर रहे हैं कि मैं अपनी आस्था छोड़ देने वाले किसी बयान पर दस्तख़त कर दूं। वे सचमुच बहुत नीच और दुष्ट हैं! लेकिन फिर मैंने सोचा, अगर मैंने उससे कहा कि दस्तख़त नहीं करूंगी, तो क्या वे मेरे दफ़्तर आकर मुझे वापस जेल ले जाएंगे? मैं वापस जेल जाकर वैसी अमानवीय ज़िंदगी नहीं जीना चाहती थी। इसलिए मैंने उनसे कहा : "अगले दो दिन मैं काम में व्यस्त हूँ, मेरे पास वक्त नहीं है। मैं कुछ दिन बाद आऊँगी।" मुझे यह देख अचरज हुआ कि अगली सुबह चीफ चेन ने मुझे एक संदेश भेज दिया : "तुम्हारा स्वास्थ्य बीमा कार्ड आ गया है। आज आकर ले जाओ।" मैंने संदेश देखकर मन-ही-मन सोचा : "मैंने कभी स्वास्थ्य बीमा कार्ड के लिए आवेदन नहीं किया था। क्या यह शैतान की कोई चाल है?" मैंने परमेश्वर के एक वचन को याद किया : "तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और हर समय प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। परमेश्वर के वचन मुझे याद दिलाते हैं कि शैतान के पास बहुत-सी चालें हैं। यह कहकर कि मेरे सिवाय गिरफ़्तार होने के बाद छोड़ दिये गये बाकी सभी स्थानीय विश्वासी दस्तख़त कर चुके हैं, चीफ चेन मुझे वहां बुलाने के लिए चाल चलने की कोशिश कर रहे थे। वह चाल नाकामयाब हो गयी, तो वे स्वास्थ्य बीमा कार्ड का लालच दे रहे हैं। वाकई बड़े चालबाज़ लोग हैं। यह सब सोचकर मैंने वहां न जाने का फैसला किया।

फिर अगली सुबह मेरे पिताजी भागे-भागे मेरे दफ़्तर आ गये, वे बहुत परेशान थे, मुझसे बोले, "कल, चीफ चेन ने मुझे सुबह-सुबह अपने दफ़्तर बुलाया। उन्होंने कहा कि शहर में विशेष जांच-पड़ताल की जा रही है कि तुम अभी भी आस्था पर अमल कर रही हो या नहीं, अगर तुमने उस बयान पर दस्तख़त कर दिये कि तुम आस्था नहीं रखती, तो सबकी तरह तुम भी सामान्य जीवन जी सकती हो, फिर कोई भी तुम्हारी निगरानी नहीं करेगा, न ही तुम्हारी खोज-खबर लेगा। लेकिन अगर तुम दस्तख़त नहीं करोगी, तो तुम्हें गिरफ़्तार कर जेल में सुधारा जाएगा। मेरी बात सुनो—अपनी आस्था छोड़ दो, बस जाकर दस्तख़त कर दो।" यह सुनकर मैं बहुत गुस्सा हो गयी, चिढ़ गयी। मैंने अपने डैड से कहा, "डैड, आप जानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना ही सही मार्ग है। अब विपत्तियाँ गंभीर होती जा रही हैं। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर लोगों को शुद्ध करने, भ्रष्टता और विपत्तियों से बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है। मगर, कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासियों की अंधाधुंध गिरफ़्तारी और उत्पीड़न कर रही है, उन्हें परमेश्वर को धोखा देने पर मजबूर कर रही है, ताकि वे भी उसके साथ नरक पहुँच जाएं। मेरे दस्तख़त करने का मतलब है परमेश्वर को धोखा देना, आखिर में मैं तबाह हो जाऊंगी! मैं दस्तख़त नहीं कर सकती।" मेरे पिता घबराकर बोले, "अगर तुम दस्तख़त नहीं करोगी, तो पुलिस इसी वक्त तुम्हें जेल में डाल देगी। क्या तुम सच में दोबारा वहां तकलीफ झेलना चाहती हो? खुद के बारे में भले न सोचो, तुम्हारी छोटी बहन का क्या होगा? कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासी के पूरे परिवार के पीछे पड़ जाती है। अपनी बड़ी बहन को देखो। उसने एक सामान्य यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल की, एक अच्छे प्राथमिक स्कूल में उसे नौकरी मिलनी चाहिए थी, लेकिन तुम्हारी आस्था के चक्कर में वह राजनीतिक जांच में फेल हो गयी। एक साधारण से स्कूल में नौकरी के लिए तुम्हारे चचेरे भाई को जुगाड़ भिड़ाना पड़ा, बहुत पैसा खर्च करना पड़ा। सिविल सर्विस परीक्षा पास करने के बावजूद तुम्हारा चचेरा भाई भी तुम्हारी दादी के विश्वासी होने के कारण राजनीतिक जांच में फेल हो गया। तुम्हारी छोटी बहन इस साल सामान्य यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल करने वाली है, फिर वह नौकरी ढूंढ़ेगी, अगर तुमने दस्तख़त नहीं किये, तो वह राजनीतिक जाँच में पास नहीं होगी और यकीनन उसे भी अच्छी नौकरी नहीं मिल पायेगी। क्या तुम उसका भविष्य बरबाद नहीं कर रही हो? मेरी बात सुनो, बस दांत भींचकर दस्तख़त कर दो। क्या तुम गुप्त रूप से आस्था नहीं रख सकती? इतनी ज़्यादा जिद क्यों करती हो?" अपने पिता का थका हुआ चेहरा, आँखों में आंसू, पीले पड़े चेहरे और उनकी बेचैनी देखकर, मैं बहुत परेशान हो गई और उलझन में पड़ गयी। अगर मैं दस्तख़त करती हूँ तो परमेश्वर को धोखा दूंगी, मुझे जानवर का दर्जा दे दिया जाएगा; मुझे शैतान पूरी तरह से अपने काबू में कर लेगा, उद्धार की कोई आशा नहीं बचेगी। लेकिन अगर मैंने दस्तख़त नहीं किये, तो मुझे गिरफ़्तार करके वापस जेल भेज दिया जाएगा जहां मुझे यातना दी जाएगी। शारीरिक तकलीफ की न भी सोचूँ, लेकिन मुझे पीट-पीट कर मार डाला गया तो? मेरी बहन अगर राजनीतिक जाँच में फेल हो गयी और उसका भविष्य चौपट हो गया, तो मेरा पूरा परिवार ज़िंदगी भर मुझसे नफ़रत करेगा। इन सबके बारे में सोचना सीने में छुरी चलने जैसा था। मैं नहीं समझ पायी कि क्या करूं। मैंने अपने डैड से कहा, "मुझे ज़रा सोचने दीजिए।" उनके जाने के बाद, मैंने आंसू बहाते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मुझे डर है, पुलिस मुझे पकड़कर जेल में डाल देगी और यातना देगी, मुझे फ़िक्र है कि मेरे परिवार को भी घसीटा जाएगा। मैं कमज़ोर महसूस कर रही हूँ। हे परमेश्वर, मुझे विश्वास और शक्ति दो, अपनी गवाही में अडिग बने रहने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।"

प्रार्थना के बाद, मेरी नज़र परमेश्वर के कुछ वचनों पर पड़ी। "अभी जब लोगों को बचाया नहीं गया है, तब शैतान के द्वारा उनके जीवन में प्रायः हस्तक्षेप, और यहाँ तक कि उन्हें नियंत्रित भी किया जाता है। दूसरे शब्दों में, वे लोग जिन्हें बचाया नहीं गया है शैतान के क़ैदी होते हैं, उन्हें कोई स्वतंत्रता नहीं होती, उन्हें शैतान द्वारा छोड़ा नहीं गया है, वे परमेश्वर की आराधना करने के योग्य या पात्र नहीं हैं, शैतान द्वारा उनका क़रीब से पीछा और उन पर क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया जाता है। ऐसे लोगों के पास कहने को भी कोई खुशी नहीं होती है, उनके पास कहने को भी सामान्य अस्तित्व का अधिकार नहीं होता, और इतना ही नहीं, उनके पास कहने को भी कोई गरिमा नहीं होती है। यदि तुम डटकर खड़े हो जाते हो और शैतान के साथ संग्राम करते हो, शैतान के साथ जीवन और मरण की लड़ाई लड़ने के लिए शस्त्रास्त्र के रूप में परमेश्वर में अपने विश्वास और अपनी आज्ञाकारिता, और परमेश्वर के भय का उपयोग करते हो, ऐसे कि तुम शैतान को पूरी तरह परास्त कर देते हो और उसे तुम्हें देखते ही दुम दबाने और भीतकातर बन जाने को मज़बूर कर देते हो, ताकि वह तुम्हारे विरुद्ध अपने आक्रमणों और आरोपों को पूरी तरह छोड़ दे—केवल तभी तुम बचाए जाओगे और स्वतंत्र हो पाओगे। यदि तुमने शैतान के साथ पूरी तरह नाता तोड़ने का ठान लिया है, किंतु यदि तुम शैतान को पराजित करने में तुम्हारी सहायता करने वाले शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित नहीं हो, तो तुम अब भी खतरे में होगे; समय बीतने के साथ, जब तुम शैतान द्वारा इतना प्रताड़ित कर दिए जाते हो कि तुममें रत्ती भर भी ताक़त नहीं बची है, तब भी तुम गवाही देने में असमर्थ हो, तुमने अब भी स्वयं को अपने विरुद्ध शैतान के आरोपों और हमलों से पूरी तरह मुक्त नहीं किया है, तो तुम्हारे उद्धार की कम ही कोई आशा होगी। अंत में, जब परमेश्वर के कार्य के समापन की घोषणा की जाती है, तब भी तुम शैतान के शिकंजे में होगे, अपने आपको मुक्त करने में असमर्थ, और इस प्रकार तुम्हारे पास कभी कोई अवसर या आशा नहीं होगी। तो, निहितार्थ यह है कि ऐसे लोग पूरी तरह शैतान की दासता में होंगे" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II)। परमेश्वर के वचनों पर गौर करके मैंने महसूस किया कि कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न और मेरे परिवार की दखलंदाज़ी, ये सब शैतान के प्रलोभन और हमले हैं। मैंने उस वक्त के बारे में सोचा जब शैतान ने अय्यूब को ललचाया था। उसकी हर चीज़ को चुरा लिया गया, उसने अपने बच्चों को भी खो दिया, उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गये, उसकी पत्नी ने उस पर हमला किया और उससे परमेश्वर को छोड़कर मर जाने को कहा, लेकिन अय्यूब ने अपनी आस्था और परमेश्वर के प्रति श्रद्धा के भरोसे डटकर गवाही दी, उसने कभी परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं की, उसे कभी नहीं नकारा, यह कहते हुए उसकी प्रशंसा भी की : "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" (अय्यूब 1:21)। अय्यूब ने शैतान के प्रलोभनों पर विजय पाकर, परमेश्वर की ज़बरदस्त गवाही दी। शैतान को शर्मसार कर, उसे हराकर, अय्यूब एक आज़ाद इंसान बन गया। जेल से मेरे छूटने के बाद, कम्युनिस्ट पार्टी ने मेरी आस्था बंद कर देने के बयान पर मुझे दस्तख़त करने को मजबूर करने के लिए मेरे परिवार का इस्तेमाल किया। हर बार यह शैतान का एक प्रलोभन और हमला था। मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने के लिए शैतान अपने परिवार के प्रति मेरे प्रेम और मेरी बहन के भविष्य की चिंता का इस्तेमाल कर रहा था। अगर मैं परमेश्वर को धोखा देकर अपने परिवार और अपने देह-सुख की परवाह करती, तो क्या मैं शैतान के चंगुल में फंसी न रहती? मैं जानती थी कि मुझे शैतान की चालों में नहीं फंसना है, बल्कि अय्यूब के नक़्शे-कदमों पर चल कर परमेश्वर की गवाही देनी है और शैतान को नीचा दिखाना है।

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक वीडियो पाठ देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "इसके बावजूद कि शैतान कितना 'सामर्थी' है, इसके बावजूद कि वह कितना ढीठ और महत्वाकांक्षी है, इसके बावजूद कि नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता कितनी बड़ी है, इसके बावजूद कि उसकी तकनीक का दायरा कितना व्यापक है जिससे वह मनुष्य को भ्रष्ट करता और लुभाता है, इसके बावजूद कि उसके छल और प्रपंच कितने चतुर हैं जिससे वह मनुष्य को डराता है, इसके बावजूद कि वह रूप जिसमें वह अस्तित्व में रहता है कितना परिवर्तनशील है, वह एक भी जीवित प्राणी को बनाने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, सभी चीजो के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाओं और नियमों को निर्धारित करने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु पर शासन और नियन्त्रण करने में कभी सक्षम नहीं हुआ है। ब्रह्मांड और नभमंडल के भीतर, एक भी व्यक्ति या वस्तु नहीं है जो उससे उत्पन्न हुआ हो या उसके द्वारा अस्तित्व में बना हुआ हो; एक भी व्यक्ति या वस्तु नहीं है जिस पर उसके द्वारा शासन किया जाता हो या उसके द्वारा नियन्त्रण किया जाता हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन जीना है, बल्कि, उसे परमेश्वर के सारे आदेशों और आज्ञाओं को भी मानना होगा। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए भूमि की सतह पर पानी की एक बूँद या रेत के एक कण को भी छूना कठिन है; परमेश्वर की अनुमति के बिना, शैतान के पास इतनी भी आजादी नहीं है कि वह भूमि की सतह पर से एक चींटी को हटा सके, परमेश्वर द्वारा सृजित इंसान को हटाने की तो बात ही क्या है। परमेश्वर की नजरों में शैतान पहाड़ों के सोसन फूलों, हवा में उड़ते हुए पक्षियों, समुद्र की मछलियों और पृथ्वी के कीड़े-मकौड़ों से भी कमतर है। सभी चीज़ों के बीच में उसकी भूमिका यह है कि वह सभी चीजो की सेवा करे, मानवजाति के लिए कार्य करे, परमेश्वर और उसकी प्रबंधकीय योजना के कार्य करे। इसके बावजूद कि उसका स्वभाव कितना ईर्ष्यालु है, उसका सार कितना बुरा है, एकमात्र कार्य जो वो कर सकता है वह है आज्ञाकारिता से अपने कार्यों को करना : परमेश्वर की सेवा के योग्य होना, परमेश्वर के कार्यों में पूरक होना। शैतान का सार-तत्व और हैसियत ऐसे ही हैं। उसका सार जीवन से जुड़ा हुआ नहीं है, सामर्थ्‍य से जुड़ा हुआ नहीं है, अधिकार से जुड़ा हुआ नहीं है; वह परमेश्वर के हाथों में मात्र एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में लगा मात्र एक मशीन है!" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। इसे देखकर मैं परमेश्वर के अधिकार और संप्रभुता के बारे में गहराई से जान सकी। शैतान चाहे जितना बर्बर क्यों न हो, वह परमेश्वर के हाथों का एक मोहरा भर है, उसकी सेवा करनेवाला एक औजार। कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा मेरी गिरफ़्तारी और यातना के बारे में सोचने पर लगता है कि मेरे तन की कमज़ोरी के वक्त परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को मज़बूती दी, हरेक मुश्किल से मुझे उबारा। जेल से छूटने के बाद, कम्युनिस्ट पार्टी मेरी और मेरे परिवार की निगरानी करती रही, अपनी अफवाहों के फेर में उसने मुझ पर भी नज़र रखी। लेकिन परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से मैं सत्य को कुछ हद तक समझ पायी, एक के बाद एक कई प्रलोभनों पर विजय पा सकी, और परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा संकल्प मज़बूत हो गया। इन सबसे गुज़रकर मैं समझ पायी कि शैतान परमेश्वर के लिए उसके चुने हुए लोगों को पूर्ण करने का सिर्फ एक औज़ार है। मुझे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। परमेश्वर हर चीज़ पर शासन करता है—वह हर किसी के भाग्य का नियंता है। मेरी जिंदगी और मौत परमेश्वर के हाथ में हैं, दूसरा कोई इनके बारे में फैसला नहीं कर सकता। मेरी बहन को नौकरी मिलेगी या नहीं, उसका भविष्य कैसा होगा—ये बातें परमेश्वर ही निर्धारित करता है। कम्युनिस्ट पार्टी खुद अपने भाग्य को भी काबू में नहीं कर सकती, फिर वो मेरे जीवन-मृत्यु और मेरी बहन के भविष्य पर कैसे नियंत्रण कर सकती है? अगर किसी दिन पुलिस मुझे गिरफ़्तार करके यातना भी देने लगी, तो वह इसलिए होगा क्योंकि परमेश्वर ऐसा होने देगा। मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना होगा, गवाही देनी होगी। अगर मैं अपने जीवन को संजोऊँगी, अपने परिवार के हितों को लेकर खीझती रहूँगी, परमेश्वर को धोखा देने वाले बयान पर दस्तख़त करूंगी, तो यह शर्मिंदगी की निशानी होगी। ज़िंदा रहकर भी मैं सिर्फ एक चलती हुई लाश बनी रहूँगी। इस विचार के साथ, मैंने शैतान के प्रलोभनों और हमलों का प्रतिरोध करने और अपनी गवाही में डटे रहकर शैतान को नीचा दिखाने के लिए खुद को फौलादी बना लिया!

उस रात घर पहुँचने के बाद, मेरी बड़ी बहन मुझ पर चिल्ला पड़ी : "राजनीतिक और कानूनी मामला आयोग ने तुझे तीन दिन दिये थे। कल आख़िरी दिन है। तू दस्तख़त करेगी या नहीं? मॉम और डैड बूढ़े होते जा रहे हैं, वे तेरे बारे में लगातार फ़िक्र करते रहते हैं। तीन साल जब तू जेल में थी तो उन्होंने बड़ी मुश्किल से खाना खाया, उनकी नींद गायब रही। अब तू बाहर आने पर भी विश्वासी बनी हुई है, इसलिए वे अभी भी सांसत में जी रहे हैं। क्या उन्हें इस तरह निराश करके तू खुश है? क्या तेरा कोई ज़मीर भी है? बयान पर दस्तख़त करने से क्या तेरी जान चली जाएगी?" मैंने महसूस किया कि शैतान फिर से मेरे परिवार के जरिये मुझ पर हमला कर रहा है। मैंने परमेश्वर के वचनों पर गौर किया : "तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शान्ति और आनंद प्रदान करूँगा। दूसरों के सामने एक विशेष तरह का होने का प्रयास मत करो; क्या मुझे संतुष्ट करना अधिक मूल्य और महत्व नहीं रखता? मुझे संतुष्ट करने से क्या तुम और भी अनंत और जीवनपर्यंत शान्ति या आनंद से नहीं भर जाओगे?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। मैं जानती थी कि परमेश्वर में मेरी आस्था ही सही मार्ग है, कुछ भी हो जाए, मुझे उसके प्रति वफादार रहना होगा। कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे अपनी आस्था से दूर रखने के लिए मेरे परिवार को गुमराह कर उन पर दबाव डाला। इससे मैं साफ़ तौर पर समझ गयी कि कम्युनिस्ट पार्टी का दानवी सार सत्य से घृणा करने और परमेश्वर का दुश्मन होने का है। मैंने उसे अपने दिल से घृणा कर ठुकरा दिया। परमेश्वर इन हालात में उसके प्रति मेरी आस्था और भक्ति का परीक्षण भी कर रहा था। दूसरों से किसी समझ और सहारे के बिना भी, मुझे गवाही देनी थी और शैतान को नीचा दिखाना था। यह विचार आने पर, मैंने अपनी बहन से कहा : "मॉम और डैड का खाना न खा पाना, सो न पाना, लगातार फ़िक्र में डूबे रहना किसका दोष है? क्या यह सब कम्युनिस्ट पार्टी का दोष नहीं है। परमेश्वर में विश्वास रखना सही और स्वाभाविक है, अच्छी इंसान बनो और सही मार्ग पर चलो। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने न सिर्फ मुझे गिरफ़्तार किया, उसने बिना कोई रास्ता छोड़े हमारे पूरे परिवार को इसमें घसीट लिया, कम्युनिस्ट पार्टी ही दोषी है!" उस मौके पर, मेरी बड़ी बहन ने फोन करके मुझसे जवाब माँगा : "कल तू दस्तख़त करेगी या नहीं? तेरे पास सिर्फ दो विकल्प हैं। या तो तू उस बयान पर दस्तख़त कर दे कि तू परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती और काम पर जा, पैसा कमा और अच्छी ज़िंदगी जी ले, या फिर तू दस्तख़त मत कर और जेल में डाले जाने का इंतज़ार कर!" मैंने दृढ़ता से जवाब दिया : "भले ही मुझे जेल वापस जाना पड़े, मैं उस बयान पर दस्तखत नहीं करूंगी!" उसने गुस्से से फोन काट दिया, मेरी दूसरी बहन ने मुझसे आँखें फेर ली।

बाद में, काम के लिए शहर से बाहर मेरा तबादला कर दिया गया। मैंने शैतान के बंधनों से खुद को छुड़ा लिया, परमेश्वर के लिए शरीर और आत्मा दोनों से खुद को खपाया। यह करीब तीन साल पहले की बात है। जब उस पूरे अनुभव के बारे में सोचती हूँ, तो दिल में सुकून महसूस करती हूँ। मुझे लगता है कि यह मेरा किया हुआ सबसे अच्छा फैसला था, मैं इस पर कभी नहीं पछताऊँगी।

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