इस मार्ग पर मैं अडिग हूँ
कुछ साल पहले, पुलिस ने मुझे सुसमाचार का प्रचार करने के लिए गिरफ़्तार कर लिया था। कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे “क़ानून-व्यवस्था को कमज़ोर करने के लिए एक पंथिक संस्था बना कर उसका इस्तेमाल करने” के आरोप में तीन साल की सज़ा दी थी। जेल से छूटने के बाद, मैंने सोचा कि आखिरकार मैं दोबारा सभाओं में भाग ले सकूंगी और अपना काम फिर से शुरू कर सकूंगी, लेकिन मैंने यह कल्पना भी नहीं की थी कि पुलिस मुझ पर नज़र बनायए रखेगी, मेरी आज़ादी को सीमित कर देगी। जब मेरे माता-पिता रिहायशी रजिस्ट्रेशन के लिए मुझे पुलिस थाने ले गये, तो मेरी निगरानी करने वाले अधिकारी ने मुझ पर गुर्राते हुए कहा, “अगर तुम इस इलाके से बाहर जाना चाहो, तो तुम्हें इसकी सूचना मुझे देनी होगी, तुम्हारे इस शहर से बाहर जाने या विदेश जाने पर पांच साल की पाबंदी है। तुम अपनी आस्था का भी पालन नहीं कर सकती और सभाओं में नहीं जा सकती। अगर मुझे पता चला कि तुम धार्मिक सभाओं में गयी हो, तो मैं तुम्हें उसी वक्त जेल में बंद कर दूंगा। और फिर छूटने के बारे में सोचना भी मत!” मेरे फिर से गिरफ़्तार हो जाने के डर से मेरे माता-पिता ने मेरी बड़ी बहन को मुझ पर नज़र रखने को कहा, जिससे कि मैं परमेश्वर के वचन न पढ़ूँ या किसी भी भाई-बहन से संपर्क न करूं। मेरी बहन ने मुझे एक सेल्स क्लर्क की नौकरी दिलवायी, अगर कभी मैं देर से घर लौटती तो वह मुझे फोन करके पूछती, “तू कहाँ है? क्या कर रही है?” एक बार जब मैं अपने टैबलेट पर परमेश्वर के वचन पढ़ रही थी, तो मेरी बहन ने देख लिया और मुझसे जोर देकर पूछने लगी कि क्या मैं परमेश्वर के वचन पढ़ रही हूँ, यहाँ तक कि उसने मुझसे टैबलेट छीनने की भी कोशिश की। मैं जल्दी से बोल पड़ी कि मैं एक उपन्यास पढ़ रही हूँ, तब उसने मुझे अकेला छोड़ा। उसके बाद से, उसके सो जाने के बाद ही मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए अपने कंबल के भीतर छिपना पड़ता था।
एक दिन, मेरे नक़ल उतारे हुए परमेश्वर के कुछ वचन मेरी बहन के हाथ लग गये और उसने पूछा, “तू अब भी आस्था रखती है, सभाओं में भाग लेती है, है न?” मैंने गुस्से से जवाब दिया, “आस्था रखना और परमेश्वर की आराधना करना सही और बिलकुल ठीक है। मुझे छोड़ दो!” फिर उसने भागकर हमारी सबसे बड़ी बहन को बुला लिया। उसने दरवाज़े से अंदर घुसते ही, मेरे चेहरे पर एक थप्पड़ जड़ दिया, और मुझ पर चीख पड़ी, “तू अब भी विश्वास रखने की हिमाकत कैसे कर रही है? जिस दिन से तू जेल में बंद थी मॉम की हर रोज़ रो-रो कर आँखें सूज जाती थीं। वह रोते-रोते लगभग अंधी ही गई थी। अगर तुझे फिर वहां भेज दिया गया, तो सोच, मॉम का क्या हाल होगा! क्या तू इस परमेश्वर को छोड़ नहीं सकती, मॉम को थोड़ी राहत नहीं दे सकती?” उसे ऐसा कहते सुनना मेरे बस के बाहर की बात थी, मेरी आँखों से आंसुओं की धार बहने लगी, बचपन से ही मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती थी, अब बड़ी होने की बाद, मैं उसकी फ़िक्र का कारण बन गयी हूँ। अगर मुझे दोबारा गिरफ़्तार कर लिया गया, तो क्या वह खुद को संभाल पायेगी? मैं थोड़ी कमज़ोरी महसूस कर रही थी, इसलिए मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरे दिल को बचाने की विनती की। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह अंश देखा : “परमेश्वर ने इस संसार की रचना की और इसमें एक जीवित प्राणी, मनुष्य को लेकर आया, जिसे उसने जीवन प्रदान किया। इसके बाद, मनुष्य के माता-पिता और परिजन हुए, और वह अकेला नहीं रहा। जब से मनुष्य ने पहली बार इस भौतिक दुनिया पर नजरें डालीं, तब से वह परमेश्वर के विधान के भीतर विद्यमान रहने के लिए नियत था। परमेश्वर की दी हुई जीवन की साँस हर एक प्राणी को उसके वयस्कता में विकसित होने में सहयोग देती है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। मेरी हर साँस परमेश्वर से आती है। जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई, वह मेरी देखभाल करता रहा और मुझे बचाता रहा। जो भी मुझ पर दया दिखाता था या मेरी मदद करता था, उन सबकी व्यवस्था परमेश्वर ने ही की थी। मेरा जिस परिवार में जन्म हुआ था और मुझे जिस तरह के माता-पिता मिले थे, उसकी व्यवस्था भी परमेश्वर ने ही की थी। मुझे परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, उसके प्रेम का प्रतिफल देना चाहिए। मैं जिस तरह बिना किसी दुर्घटना के बड़ी हुई थी और जिस तरह मैं आज का दिन देखने के लिए भी जिंदा थी, उसे देखते हुए अपने परिवार की भावनाओं की खातिर परमेश्वर को नकारना या धोखा देना बहुत ग़लत और अनैतिक होगा। मेरी माँ को मेरी चिंता थी और उसकी सेहत ख़राब हो रही थी। क्या यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के कारण नहीं हुआ? अगर उन्होंने मुझे गिरफ़्तार कर सताया नहीं होता, तो मेरे माता-पिता को डरना नहीं पड़ता। कम्युनिस्ट पार्टी मुझे सता रही थी और मेरे प्रिय जनों को दुखी कर रही थी क्योंकि वह चाहती थी कि मैं परमेश्वर को धोखा दूं। मैं उसकी चालों को कामयाब नहीं होने दूंगी। इस विचार के आते ही मेरा संकल्प फिर से लौट आया : मेरा परिवार चाहे मेरा जितना भी रास्ता रोके, मुझे परमेश्वर में विश्वास रखके उसका अनुसरण करना है। उसके बाद, मैं काम करने के साथ-साथ सभाओं में भाग लेने लगी और सुसमाचार साझा करने लगी।
फरवरी 2017 में, एक सुबह मैं काम पर जाने को तैयार हो रही थी कि मुझे किसी का फोन आया। फोन करने वाले का नाम चेन था और वह राजनीतिक और कानूनी मामलों के आयोग का प्रमुख था। उसने मुझसे कहा, “अगले दो दिन के अंदर आकर एक बयान पर दस्तख़त कर दो कि तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती। गिरफ़्तार होने के बाद छोड़ दिये गये बाकी सभी स्थानीय विश्वासियों ने दस्तख़त कर दिये हैं, बस, तुम ही बची हो।” यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। सभाओं में भाग लेना और परमेश्वर के वचन पढ़ना मेरी आस्था के अंश हैं, लेकिन उन्होंने इसी के लिए मुझे जेल में बंद कर दिया, और मुझे यातना देकर और ज़ोर-जबर्दस्ती से मेरा मन बदलने की कोशिश की। अब मैं छूट चुकी हूँ, फिर भी वे मुझ पर नज़र रखे हुए हैं, मुझे मजबूर करने की भी कोशिश कर रहे हैं कि मैं अपनी आस्था छोड़ देने वाले बयान पर दस्तख़त कर दूं। वे मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए मजबूर करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वे सचमुच बहुत नीच और दुष्ट हैं! मैं शैतान की चाल को सफल होने नहीं दे सकती। लेकिन फिर मैंने सोचा : “अगर मैंने उससे कहा कि दस्तख़त नहीं करूंगी, तो क्या राजनीतिक और कानूनी मामलों का आयोग मुझे वापस जेल ले भेज देगा? मैं वापस जेल जाकर वैसी अमानवीय ज़िंदगी नहीं जीना चाहती थी।” इसलिए मैंने उनसे कहा : “अगले दो दिन मैं काम में व्यस्त हूँ, मेरे पास वक्त नहीं है। मैं कुछ दिन बाद आऊँगी।” अगली सुबह मुझे यह देखकर अचरज हुआ कि चीफ चेन ने मुझे एक संदेश भेज दिया : “तुम्हारा स्वास्थ्य बीमा कार्ड आ गया है। आज आकर ले जाओ।” मैंने मन-ही-मन सोचा : “मैंने कभी स्वास्थ्य बीमा कार्ड के लिए आवेदन नहीं किया था। क्या यह शैतान की कोई चाल है?” मैंने परमेश्वर के एक वचन को याद किया : “तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और हर समय प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। परमेश्वर के वचन मुझे याद दिलाते हैं कि शैतान के पास बहुत-सी चालें हैं। यह कहकर कि मेरे सिवाय गिरफ़्तार होने के बाद छोड़ दिये गये बाकी सभी स्थानीय विश्वासी दस्तख़त कर चुके हैं, चीफ चेन मुझे वहां बुलाने के लिए चाल चलने की कोशिश कर रहा था। वह चाल नाकामयाब हो गयी, तो अब वह स्वास्थ्य बीमा कार्ड का लालच दे रहा था। वह वाकई बड़ा चालबाज़ है। यह सब सोचकर मैंने वहां न जाने का फैसला किया।
फिर अगली सुबह मेरे पिताजी भागे-भागे मेरे दफ़्तर आये। वे बहुत परेशान लग रहे थे और मुझसे बोले, “कल, चीफ चेन ने मुझे सुबह-सुबह अपने दफ़्तर बुलाया। उन्होंने कहा कि शहर में विशेष जांच-पड़ताल की जा रही है कि तुम अभी भी आस्था पर अमल कर रही हो या नहीं। अगर तुमने उस बयान पर दस्तख़त कर दिये कि तुम आस्था नहीं रखती, तो सबकी तरह तुम भी सामान्य जीवन जी सकती हो, फिर कोई भी तुम्हारी निगरानी नहीं करेगा, न ही तुम्हारी खोज-खबर लेगा। लेकिन अगर तुम दस्तख़त नहीं करोगी, तो तुम्हें जेल भेजकर सुधारा जाएगा। मेरी बात सुनो—पनी आस्था छोड़ दो, बस जाकर दस्तख़त कर दो।” यह सुनकर मैं बहुत गुस्सा हो गयी, चिढ़ गयी। मैंने अपने डैड से कहा, “डैड, आप जानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना ही सही मार्ग है। तो मैं सताए जाने के डर से अपनी आस्था कैसे छोड़ सकती हूँ? अब विपत्तियाँ गंभीर होती जा रही हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, उद्धारकर्ता, लोगों को पाप और विपत्तियों से बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है। हमारे लिए बचाव का यह इकलौता मौका है। विश्वास न करके हम निश्चित रूप से तबाहियों से नष्ट हो जाएंगे। कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासियों की अंधाधुंध गिरफ़्तारी और उत्पीड़न कर रही है, उन्हें परमेश्वर को धोखा देने पर मजबूर कर रही है, ताकि वे भी उसके साथ नरक में जाकर दंड भुगतें। मेरे दस्तख़त करने का मतलब है परमेश्वर को धोखा देना, आखिर में मैं तबाह हो जाऊंगी! मैं दस्तख़त नहीं कर सकती।” मेरे पिता डरते और घबराते हुए बोले, “अगर तुम दस्तख़त नहीं करोगी, तो पुलिस इसी वक्त तुम्हें जेल में डाल देगी। क्या तुम सच में दोबारा वहां तकलीफ झेलना चाहती हो? अपने बारे में नहीं तो अपनी छोटी बहन के बारे में ही सोचो। कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासी के पूरे परिवार को अपना निशाना बनाती है। अपनी बड़ी बहन को देखो। उसने एक शिक्षक कॉलेज से डिग्री हासिल की, लेकिन तुम्हारी आस्था के कारण वह राजनीतिक जांच में फेल हो गयी और एक प्रमुख आरंभिक स्कूल में नौकरी नहीं पा सकी। तुम्हारी छोटी बहन भी इस साल शिक्षक कॉलेज से डिग्री हासिल करने वाली है, फिर वह नौकरी ढूंढ़ेगी, अगर तुमने दस्तख़त नहीं किये, तो वह राजनीतिक जाँच में पास नहीं होगी और यकीनन उसे भी अच्छी नौकरी नहीं मिल पायेगी। क्या तुम उसका भविष्य बरबाद नहीं कर रही हो? मेरी बात सुनो, बस दांत भींचकर दस्तख़त कर दो। क्या तुम गुप्त रूप से आस्था नहीं रख सकती? इतनी ज़्यादा जिद क्यों करती हो?” अपने पिता का थका हुआ चेहरा, आँखों में आंसू, चिंता से होंठों पर जमी पपड़ी और उनकी बेचैनी देखकर, मैं बहुत परेशान हो गई और उलझन में पड़ गयी : “अगर मैं दस्तख़त करती हूँ तो परमेश्वर को धोखा दूंगी, मुझे जानवर का दर्जा दे दिया जाएगा; यह परमेश्वर का अनादर करना होगा, और वह मुझे स्वीकार नहीं करेगा। लेकिन अगर मैंने दस्तख़त नहीं किये, तो मेरी बहन राजनीतिक जाँच में पास नहीं हो पाएगी और उसका भविष्य चौपट हो जाएगा। फिर मेरा पूरा परिवार ज़िंदगी भर मुझसे नफ़रत करेगा। और अगर मेरे दस्तखत न करने पर मुझे वापस जेल में डाल दिया गया और यातनाएँ दी गयीं तो? अगर उन्होंने मुझे पीट-पीटकर मार डाला तो?” इन सबके बारे में सोचना इतना दर्दनाक था जैसे मेरे सीने में कोई छुरी चल रही हो। मैं नहीं समझ पायी कि क्या करूं। मैंने अपने डैड से कहा, “मुझे ज़रा सोचने दीजिए।” उनके जाने के बाद, मैंने आंसू बहाते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, मेरा दिल बहुत कमजोर है। मुझे आस्था और शक्ति दो, अपनी गवाही में अडिग बने रहने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।”
प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अभी जब लोगों को बचाया नहीं गया है, तब शैतान के द्वारा उनके जीवन में प्रायः विघ्न डाला, और यहाँ तक कि उन्हें नियंत्रित भी किया जाता है। दूसरे शब्दों में, वे लोग जिन्हें बचाया नहीं गया है शैतान के क़ैदी होते हैं, उन्हें कोई स्वतंत्रता नहीं होती, उन्हें शैतान द्वारा छोड़ा नहीं गया है, वे परमेश्वर की आराधना करने के योग्य या पात्र नहीं हैं, शैतान द्वारा उनका क़रीब से पीछा और उन पर क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया जाता है। ऐसे लोगों के पास कहने को भी कोई खुशी नहीं होती है, उनके पास कहने को भी सामान्य अस्तित्व का अधिकार नहीं होता, और इतना ही नहीं, उनके पास कहने को भी कोई गरिमा नहीं होती है। यदि तुम डटकर खड़े हो जाते हो और शैतान के साथ संग्राम करते हो, शैतान के साथ जीवन और मरण की लड़ाई लड़ने के लिए शस्त्रास्त्र के रूप में परमेश्वर में अपने विश्वास और अपनी आज्ञाकारिता, और परमेश्वर के भय का उपयोग करते हो, ऐसे कि तुम शैतान को पूरी तरह परास्त कर देते हो और उसे तुम्हें देखते ही दुम दबाने और भीतकातर बन जाने को मजबूर कर देते हो, ताकि वह तुम्हारे विरुद्ध अपने आक्रमणों और आरोपों को पूरी तरह छोड़ दे—केवल तभी तुम बचाए जाओगे और स्वतंत्र हो पाओगे। यदि तुमने शैतान के साथ पूरी तरह नाता तोड़ने का ठान लिया है, किंतु यदि तुम शैतान को पराजित करने में तुम्हारी सहायता करने वाले शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित नहीं हो, तो तुम अब भी खतरे में होगे। समय बीतने के साथ, जब तुम शैतान द्वारा इतना प्रताड़ित कर दिए जाते हो कि तुममें रत्ती भर भी ताक़त नहीं बची है, तब भी तुम गवाही देने में असमर्थ हो, तुमने अब भी स्वयं को अपने विरुद्ध शैतान के आरोपों और हमलों से पूरी तरह मुक्त नहीं किया है, तो तुम्हारे उद्धार की कम ही कोई आशा होगी। अंत में, जब परमेश्वर के कार्य के समापन की घोषणा की जाती है, तब भी तुम शैतान के शिकंजे में होगे, अपने आपको मुक्त करने में असमर्थ, और इस प्रकार तुम्हारे पास कभी कोई अवसर या आशा नहीं होगी। तो, निहितार्थ यह है कि ऐसे लोग पूरी तरह शैतान की दासता में होंगे” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II)। परमेश्वर के वचनों पर गौर करके मैंने महसूस किया कि कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न और मेरे परिवार की दखलंदाज़ी शैतान के प्रलोभन और हमले हैं। मैंने उस वक्त के बारे में सोचा जब शैतान ने अय्यूब को ललचाया था। उसकी हर चीज़ को चुरा लिया गया, उसने अपने बच्चों तक को भी खो दिया, उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गये, उसकी पत्नी ने उस पर हमला किया और उससे परमेश्वर को छोड़कर मर जाने को कहा, लेकिन अय्यूब ने कभी परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं की, उसे कभी नहीं नकारा, बल्कि यह कहते हुए उसकी प्रशंसा की कि : “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21)। अय्यूब ने अपनी आस्था और परमेश्वर के डर की मदद से शैतान के प्रलोभनों पर विजय पायी। परमेश्वर की ज़बरदस्त गवाही देकर उसने शैतान को शर्मसार किया और उसे हराया। जेल से मेरे छूटने के बाद, कम्युनिस्ट पार्टी ने मेरी आस्था बंद कर देने के बयान पर मुझे दस्तख़त करने को मजबूर करने के लिए मेरे परिवार का इस्तेमाल किया। यह शैतान का एक प्रलोभन और हमला था। मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने के लिए शैतान अपने परिवार के प्रति मेरे प्रेम और मेरी बहन के भविष्य की चिंता का इस्तेमाल कर रहा था। अगर मैं परमेश्वर को धोखा देकर अपने परिवार और अपने देह-सुख की परवाह करती, तो क्या मैं शैतान के चंगुल में फंसी न रहती? मैं जानती थी कि मुझे शैतान की चालों में नहीं फंसना है, बल्कि अय्यूब के नक़्शे-कदमों पर चल कर परमेश्वर की गवाही देनी है और शैतान को नीचा दिखाना है।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “शैतान चाहे जितना भी ‘सामर्थ्यवान’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं का पालन करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति के लिए कार्य करना, और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना के काम आना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। इसे पढ़कर मैं परमेश्वर के अधिकार और संप्रभुता के बारे में गहराई से जान सकी। शैतान चाहे जितना बर्बर क्यों न हो, वह परमेश्वर के हाथों का एक मोहरा भर है, उसकी सेवा करनेवाला एक औजार। मैंने कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा मेरी गिरफ़्तारी और यातना के बारे में सोचा। मेरे तन की कमज़ोरी के वक्त परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को मज़बूती दी, हरेक मुश्किल से मुझे उबारा। जेल से छूटने के बाद, कम्युनिस्ट पार्टी मेरी निगरानी करती रही, और मेरे परिवार ने भी उनके झूठ के बहकावे में आकर मुझ पर नज़र रखी और मेरी आस्था में रुकावट डाली। लेकिन परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से मैं सत्य को कुछ हद तक समझ पायी, एक के बाद एक कई प्रलोभनों पर विजय पा सकी, और परमेश्वर का अनुसरण करने का मेरा संकल्प मज़बूत हो गया। इन सबसे गुज़रकर मैं समझ पायी कि शैतान परमेश्वर के लिए उसके चुने हुए लोगों को पूर्ण करने का सिर्फ एक औज़ार है। मुझे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। परमेश्वर हर चीज़ पर शासन करता है—वह हर किसी के भाग्य का नियंता है। मेरी जिंदगी और मौत परमेश्वर के हाथ में हैं। मेरी बहन को नौकरी मिलेगी या नहीं, उसका भविष्य कैसा होगा—ये बातें परमेश्वर ही निर्धारित करता है। कम्युनिस्ट पार्टी खुद अपने भाग्य को भी काबू में नहीं कर सकती, फिर वो मेरे जीवन-मृत्यु और मेरी बहन के भविष्य पर कैसे नियंत्रण कर सकती है? अगर किसी दिन पुलिस मुझे गिरफ़्तार करके यातना भी देने लगी, तो वह इसलिए होगा क्योंकि परमेश्वर ऐसा होने देगा। मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना होगा, गवाही देनी होगी। अगर मैं अपने जीवन को संजोऊँगी, अपने परिवार के हितों को लेकर खीझती रहूँगी, परमेश्वर को धोखा देने वाले बयान पर दस्तख़त करूंगी, तो यह शर्मिंदगी की निशानी होगी। ज़िंदा रहकर भी मैं सिर्फ एक चलती हुई लाश बनी रहूँगी। इस विचार के साथ, मैंने शैतान के प्रलोभनों और हमलों का प्रतिरोध करने और अपनी गवाही में डटे रहकर शैतान को नीचा दिखाने के लिए खुद को फौलादी बना लिया!
उस रात घर पहुँचने के बाद, मेरी बड़ी बहन मुझ पर चिल्ला पड़ी : “राजनीतिक और कानूनी मामला आयोग ने तुझे तीन दिन दिये थे। कल आख़िरी दिन है। तू कागजों पर दस्तख़त करेगी या नहीं? मॉम और डैड बूढ़े होते जा रहे हैं, वे तेरे बारे में लगातार फ़िक्र करते रहते हैं। तीन साल जब तू जेल में थी तो वे बड़ी मुश्किल से कुछ खाते थे, उनकी नींद भी गायब हो गई थी। अब तू बाहर आ चुकी है, पर वे अभी भी सांसत में जी रहे हैं। क्या उन्हें इस तरह निराश करके तू खुश है? क्या तेरा कोई ज़मीर भी है? बयान पर दस्तख़त करने से क्या तेरी जान चली जाएगी?” मैंने महसूस किया कि शैतान फिर से मेरे परिवार के जरिये मुझ पर हमला कर रहा है। मैंने परमेश्वर के वचनों पर गौर किया : “तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शान्ति और आनंद प्रदान करूँगा। दूसरों के सामने एक विशेष तरह का होने का प्रयास मत करो; क्या मुझे संतुष्ट करना अधिक मूल्य और महत्व नहीं रखता? मुझे संतुष्ट करने से क्या तुम और भी अनंत और जीवनपर्यंत शान्ति या आनंद से नहीं भर जाओगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों से मुझे बल मिला। परमेश्वर में आस्था ही सही मार्ग है, और चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी होगी और उसका अनुसरण करना होगा। कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे अपनी आस्था से दूर रखने के लिए मेरे परिवार को गुमराह कर उन पर दबाव डाला। इससे मैं और भी साफ़ तौर पर समझ गयी कि कम्युनिस्ट पार्टी का दानवी सार सत्य से घृणा और परमेश्वर से शत्रुता है। मैंने उसे अपने दिल से घृणा कर ठुकरा दिया। अपने परिवार से किसी समझ और सहारे के बिना भी, मुझे गवाही देनी थी और शैतान को नीचा दिखाना था। यह विचार आने पर, मैंने अपनी बहन से कहा : “मॉम और डैड का खाना न खा पाना, सो न पाना, लगातार फ़िक्र में डूबे रहना, क्या यह सब कम्युनिस्ट पार्टी का दोष नहीं है। परमेश्वर में विश्वास रखना सही और उचित है, अच्छी इंसान बनना और सही मार्ग पर चलना। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने न सिर्फ मुझे गिरफ़्तार किया, उसने हमारे लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा। कम्युनिस्ट पार्टी ही दोषी है!” उस मौके पर, मेरी बड़ी बहन ने फोन करके मुझसे जवाब माँगा : “कल तू दस्तख़त करेगी या नहीं? तेरे पास सिर्फ दो विकल्प हैं। या तो तू उस बयान पर दस्तख़त कर दे कि तू परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती और काम पर जा, पैसा कमा और अच्छी ज़िंदगी जी ले, या फिर तू दस्तख़त मत कर और जेल में डाले जाने का इंतज़ार कर!” मैंने दृढ़ता से जवाब दिया : “भले ही मुझे जेल वापस जाना पड़े, मैं उस बयान पर दस्तखत नहीं करूंगी!” उसने गुस्से से फोन काट दिया, मेरी दूसरी बहन ने मुझसे आँखें फेर ली।
बाद में, अपने काम के लिए मैं शहर से बाहर चली गयी। जब भी मैं उस पूरे अनुभव के बारे में सोचती हूँ, तो दिल में एक दृढ़ता महसूस करती हूँ। मुझे लगता है कि यह मेरा किया हुआ सबसे अच्छा फैसला था, मैं इस पर कभी नहीं पछताऊँगी।
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