जब माँ ने जेल की सजा काटी

24 जनवरी, 2022

झोऊ जिए, चीन

जब माँ और मैं घर से भागे, उस वक्त मैं 15 साल की थी। मुझे याद है हम 2002 में एक रात घर से निकले थे। मेरी माँ ने अचानक मेरे कान में फुसफुसाकर कहा कि पुलिस उसे गिरफ्तार करने आ रही है, इसलिए हम घर में नहीं रुक सकते और हमें फौरन निकलना होगा। हमने हड़बड़ी में थोड़ा-सा सामान बांधा और फिर झट-से घर से निकल पड़े। तब से माँ और मैं कभी दोबारा अपने घर नहीं लौटे। इसीलिए मेरी माँ मुझे अपने साथ नहीं ले गई, वह मुझे एक रिश्तेदार के पास छोड़कर दूसरे शहर में छिप गई। जब मेरी माँ बिज़नेस करती थी तो उन रिश्तेदारों की खूब मदद किया करती थी, अब हम मुसीबत में थे, पर उन्हें अपनी चिंता लगी हुई थी, वे इस मामले में नहीं पड़ना चाहते थे। वे मुझे साथ रखना नहीं चाहते थे और मेरी माँ को ताना देते हुए कहा कि परमेश्वर में उसके विश्वास ने उसे बेघर कर दिया, वह अपने बच्चे का ख्याल तक नहीं रख पा रही। वे चाहते थे कि मेरी माँ मुझे ले जाए। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि वे लोग मेरी माँ को कितना गलत समझ रहे हैं। यह सब पुलिस की वजह से हो रहा था, और इसमें मेरी माँ की कोई गलती नहीं थी। मैं उसी समय वहाँ से चली जाना चाहती थी। एक मिनट भी रुकना नहीं चाहती थी। बस यही चाहती थी कि माँ वापस आकर जल्दी से मुझे ले जाए। माँ का यूँ जाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। लगता था कि मेरे पास कोई सहारा नहीं है। मैंने बहुत कुछ झेला। परिवार के नाम पर मेरे पास बस माँ है, जब मैं तीन साल की थी तभी मेरे माता-पिता का तलाक हो गया था। मैं और माँ हमेशा साथ रहे, कभी जुदा नहीं हुए। यह सोचकर कि मेरी माँ अब कभी भी मेरी देखभाल नहीं कर पाएगी, मैं रो पड़ती। उदास और लाचार महसूस करने पर मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती। कहती : "प्यारे परमेश्वर! अब मेरी माँ मेरी देखभाल नहीं कर सकती। मुझे शक्ति देने की कृपा करो।" प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला, जिसमें कहा गया था : "डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। "बहादुरी से आगे बढ़ो; मैं तुम्हारी शक्ति की चट्टान हूँ, इसलिए मुझ पर भरोसा रखो!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने सब बातों को साफ कर दिया। मेरी माँ अब मेरे साथ नहीं थी, पर परमेश्वर मेरे साथ था और मैं उस पर भरोसा कर सकती थी। मैं इन मुसीबतों को अपने ऊपर हावी होने नहीं दे सकती थी, न ही अपनी माँ पर निर्भर रह सकती थी, मुझे मजबूत बनना सीखना था—चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और कष्ट आएँ, मुझे परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए डटे रहना था। बाद में, मैं बहन झांग के परिवार के साथ रहने लगी। उनके परिवार के तीनों लोग विश्वासी हैं। हमारा खून का रिश्ता नहीं था, पर फिर भी वे मेरा बहुत ख्याल रखते थे। बहन झांग की बेटी अक्सर मुझे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाती और मेरे साथ सत्य पर संगति करती थी। मेरी माँ भले ही मेरे साथ नहीं थी, पर मैं अकेला महसूस नहीं करती थी। मुझे अपने भाई-बहनों के साथ रहना सचमुच अच्छा लगता था।

यह 2003 की बात है। मेरी माँ किसी दूसरे शहर में सुसमाचार का प्रचार कर रही थी। एक दिन, उसने चिट्ठी भेजकर मुझसे मिलने की इच्छा जताई, उसने मुझे मिलने की जगह और समय भी बताया था। चिट्ठी पाकर मैं खुशी और उमंग से झूम उठी और उस रात मुश्किल से ही सो पाई। मुलाकात के दिन मैं ठीक समय पर हमारी मुलाकात की जगह पर पहुँच गई, पर एक घंटे तक इंतजार करने पर भी उसका कोई अता-पता नहीं था। मैंने उसके बीपर पर संदेश भेजे, पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैं दोपहर से रात के आठ बजे तक इंतजार करती रही, पर वह नहीं आई। मैं बहुत निराश हो गई, लगने लगा कि कुछ तो बुरा हुआ है। अगले दिन मेरे अगुआ ने मुझे बताया कि पिछले दिन 8 भाई-बहनों को सुसमाचार का प्रचार करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था, और उनमें से एक मेरी माँ भी थी। उन्होंने मुझसे कहा कि जिस बीपर से मैंने अपनी माँ से संपर्क किया था उसे नष्ट कर दूँ। यह खबर सुनते ही मैं चिंता में डूब गई। मैं बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, उससे अपनी माँ की रक्षा करने और गवाही देने में उसकी मदद करने की विनती की। उन दिनों, माँ के बारे में सोचते ही मेरी आँखों में आँसू आ जाते। चिंता होती कि उसे मारा-पीटा या सताया जा रहा होगा। उसे जेल में बहुत कष्ट झेलने पड़ रहे होंगे। उसे कब रिहा किया जाएगा? मैं इतनी ज्यादा चिंतित रहने लगी कि एक दिन मैं अचानक बेहोश हो गई। जब मुझे होश आया तो मैं धीरे-धीरे लड़खड़ाती हुई दीवार का सहारा लेकर अपने कमरे तक पहुंची। फिर बिस्तर में लेटकर रोने लगी, सोचने लगी कि मैं कितनी अकेली और लाचार हूँ। इस दुख की घड़ी में परमेश्वर ने मुझे रास्ता दिखाया। मुझे एक भजन याद आया : "मेरे शुद्धिकरण के दौरान, तेरा दिल मेरे लिए दुखी होता है। तेरे वचन मेरे अंदर की कमी को पूरा करते हैं, जब मैं उदास होती हूँ, तो तेरे वचन मुझे सुकून देते हैं। ..." ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'परमेश्वर के प्रेम ने मेरे दिल को पिघला दिया है')। मुझे साफ दिखा कि यह परमेश्वर का मार्गदर्शन है। मुझे फौरन ही यह एहसास हुआ कि मैं अकेली नहीं हूँ—परमेश्वर मेरे साथ है। बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न के कारण मेरी माँ मेरे साथ नहीं थी। देखभाल और दिलासा देने के लिए वह साथ नहीं थी, पर परमेश्वर मेरे साथ था। मेरी सबसे अंधेरी घड़ी में परमेश्वर मुझे दिलासा देने के लिए मौजूद था। मुझे लगा जैसे वह मेरे बहुत नजदीक हो, और मुझे यह एहसास हुआ कि एक वही है जिस पर मैं सचमुच भरोसा कर सकती हूँ। मैंने मन-ही-मन सोचा, "अगर परमेश्वर इस तरह मेरा मार्गदर्शन कर सकता है, तो यकीनन वह मुश्किलों में मेरी माँ की भी मदद कर सकता है।" जब मुझे यह एहसास हुआ तो मेरा मनोबल थोड़ा बढ़ गया और अपनी माँ के हालात को लेकर मेरी चिंता और उदासी कुछ कम हो गई। बाद में, मैं अपनी माँ को देख भी पाई। वह चार महीनों तक जेल में रही और अपने एक संपर्क का इस्तेमाल करके ही रिहा हो पाई। हम जब मिले तो वह मुझे लेकर बहुत चिंतित थी और मुझे ढेर सारी सलाह देती रही। हमने एक-दूसरे के साथ संगति की और हौसला बढ़ाया फिर हमने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, हम हमेशा परमेश्वर का अनुसरण करेंगे और अपने कर्तव्य करेंगे।

मुझे याद है कि वह सितंबर का महीना था, मेरी माँ तब किसी दूसरे शहर में सुसमाचार का प्रचार कर रही थी। मैंने सुना बहुत महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रही कोई बहन गिरफ्तार हो गई है, उसके संपर्क में आए बहुत-से लोग खतरे में थे और उन्हें अपनी जगह बदलनी पड़ रही थी। मैं सोचने लगी, यह बहन कौन हो सकती है? तब मेरे अगुआ ने आकर मुझसे कहा कि मैं अपना वह सिम कार्ड नष्ट कर दूँ जिससे मैं अपनी माँ से संपर्क कर रही थी। मैं फौरन समझ गई कि गिरफ्तार हुई बहन मेरी माँ ही थी। मैं जानती थी कि इस बार उसे परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें छापने के लिए गिरफ्तार किया गया था इसलिए शायद उसे बर्बर मारपीट और यातना झेलनी पड़े। अगले कुछ दिनों तक मैं इतनी चिंतित रही कि सो नहीं पाई। बाद में मुझे पता चला कि बीस से भी ज्यादा भाई-बहनों को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका था और उन सभी को यातनाएँ दी गई थीं। जब मैंने यह सुना तो मुझे और भी चिंता होने लगी। क्या इस समय भी मेरी माँ यातनाएँ झेल रही होगी? वह जिंदा है या नहीं? मेरी माँ बहुत बड़े खतरे में थी, पर मैं चिंता करने और घबराने के अलावा उसके लिए कुछ नहीं कर पा रही थी। मेरी हालत बहुत बुरी थी। मैं यह सोचने से खुद को नहीं रोक पाई कि अगर मेरी माँ इतना खतरनाक कर्तव्य स्वीकार न करती तो शायद उसे गिरफ्तारी और यातनाओं न झेलनी पड़ती। चीन में परमेश्वर में विश्वास करना कितना मुश्किल और खतरनाक है। उन दिनों मैं बहुत कमजोर पड़ गई थी। मैं गुमसुम और खोई-खोई सी रहती थी, किसी काम में मन नहीं लगता था। मेरे अंदर न ऊर्जा थी, न कर्तव्य के लिए प्रेरणा। हर दिन, मैं बस परमेश्वर से प्रार्थना कर उसे माँ की रक्षा करने के लिए कहती।

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : "जब अय्यूब ने अपने पशुओं को जो पहाड़ों में भरे रहते थे और सम्पदा के गिने ना जा सकने वाले ढेरों को खो दिया, और उसका शरीर पीड़ादायक फोड़ों से भर गया, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब वह मुझ यहोवा की आवाज़ को सुन सका, और मुझ यहोवा की महिमा को देख सका, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। पतरस अपने विश्वास के कारण ही यीशु मसीह का अनुसरण कर सका था। उसे मेरे वास्ते सलीब पर चढ़ाया जा सका था और वह महिमामयी गवाही दे सका था, तो यह भी उसके विश्वास के कारण ही था। ... लोग अपने विश्वास के कारण बहुत कुछ पा चुके हैं और वो हमेशा आशीष नहीं होता। उन्हें शायद उस तरह की प्रसन्नता और आनन्द का अनुभव न हो, जो दाऊद ने अनुभव किया था, या यहोवा के द्वारा प्रदान किया गया वैसा जल प्राप्त न हो, जैसा मूसा ने प्राप्त किया था। उदाहरण के लिए, अय्यूब को उसके विश्वास की वजह से यहोवा द्वारा आशीष प्रदान किया गया था, लेकिन वह विपत्ति से भी पीड़ित हुआ। चाहे तुम्हें आशीष प्राप्त हो, या तुम किसी आपदा से पीड़ित हो, दोनों ही आशीषित घटनाएँ हैं। विश्वास के बिना, तुम यह विजय-कार्य प्राप्त नहीं कर सकते, आज अपनी आँखों से यहोवा के कार्य को देख पाना तो दूर की बात है। तुम देख भी नहीं पाओगे, प्राप्त करना तो दूर की बात है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई(1)')। मैं सोचने लगी : "सही बात है, हम आशीष पाएं या विपदाओं का सामना करें, सब कुछ परमेश्वर के हाथ में ही होता है। आस्था में जो कष्ट और परीक्षण आते हैं, वे परमेश्वर के हमें ऊंचा उठाने और परीक्षा लेने के तरीके होते हैं।" बिल्कुल अय्यूब की तरह—शैतान ने परमेश्वर से शर्त लगाई कि वह अय्यूब से उसके बच्चे और मवेशी छीनकर, उसके शरीर में फोड़े और घाव पैदा कर उसे प्रलोभित कर सकता है, ताकि वह परमेश्वर को नकार कर उसे छोड़ दे। परमेश्वर ने भी अय्यूब को परखने और उसकी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए इस कड़ी परीक्षा का इस्तेमाल किया। अय्यूब ने परमेश्वर को दोष नहीं दिया, और उसकी प्रशंसा करते हुए कहा : "क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें?" (अय्यूब 2:10)। "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है" (अय्यूब 1:21)। अय्यूब ने परमेश्वर की गवाही देकर उसकी प्रशंसा पाई, उसने एक बवंडर में परमेश्वर की आवाज भी सुनी। फलस्वरूप, उसने परमेश्वर में और भी सच्ची आस्था पा ली, यह उसके लिए और भी बड़ा आशीष था। मैंने सोचा कि ऊपर से ऐसा लगता है कि बड़े लाल अजगर का मेरी माँ को नुकसान पहुंचाना बहुत दुखद है, पर दरअसल इसके द्वारा परमेश्वर हमारी आस्था को परख और पूर्ण कर रहा था। यह परमेश्वर द्वारा ऊंचा उठाया जाना था। मुझे अचानक एहसास हुआ कि शैतान मुझे देख रहा था और परमेश्वर मेरे रुख स्पष्ट करने की प्रतीक्षा में था। वे देखना चाहते थे कि क्या मैं परमेश्वर में अपनी आस्था खो दूँगी, उसे नकार कर विश्वासघात करूंगी, क्योंकि मेरी माँ गिरफ्तार हो गई है। जब मुझे समझ आया, तो मैं परमेश्वर के पक्ष में खड़े होकर, उसे दोष या धोखा न देने के लिए तैयार हो गई, मैं उसे संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य निभाना चाहती थी। परमेश्वर का इरादा समझने के बाद, मैंने अपनी माँ को लेकर चिंतित और परेशान रहना छोड़ दिया, मैं परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण के लिए तैयार थी।

उसे श्रम के माध्यम से पुनर्शिक्षण की दो साल की सजा सुनाई गई। मुझे पता चला तो मैं सन्न रह गई। दो साल काफी लंबा समय होता है। जेल का जीवन और खानपान बहुत खराब है और हर रोज काम करना पड़ता है। मेरी माँ नरक जैसे हालात और क्रूर दुर्व्यवहार कैसे झेल पाएगी? उसकी उम्र 50 साल से ज़्यादा थी—क्या उसका शरीर ऐसी यातना और झेल पाएगा? एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचनों का ये अंश देखा : "जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो, उसी पल से तुम अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान के लिए तुम अपनी भूमिका निभाते हो और तुम अपनी जीवन-यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि जीवन में सभी की एक भूमिका और उद्देश्य होता है, जीवन किस ओर जाएगा ये परमेश्वर ने बहुत पहले निर्धारित कर दिया था। मेरी माँ को एक भूमिका निभानी और एक मिशन पूरा करना था। जेल में दो साल बहुत लंबा वक्त था, पर यह उसे भुगतना था। यह सब परमेश्वर पर था कि माँ का शरीर कैसा रहेगा और उसे कितनी तकलीफ झेलनी होगी। परमेश्वर ने अनुमति दी थी कि बड़ा लाल अजगर माँ को सताए और गिरफ्तार करके जेल में डाले दे ताकि उसे परखा जा सके। परमेश्वर उसे गवाही देने का अवसर दे रहा था। मुझे इस बात पर गर्व होना चाहिए। इस हालात से मुझे भी कुछ सबक सीखने थे। मुझे सीखना था कि मुश्किलों के सामने कैसे परमेश्वर की शिकायत करने या उसे दोष देने से बचना चाहिए, और कैसे समर्पित होकर कर्तव्य निभाना चाहिए। परमेश्वर के इरादों को समझने के बाद मैंने उससे प्रार्थना की, और कहा कि मेरी माँ उसके हाथों में है, वह जेल में उसकी रक्षा करे ताकि वह उसकी गवाही दे सके।

डेढ़ साल बाद, मैंने सुना कि मेरी माँ जेल से जल्दी रिहा हो गई है, इसलिए मैंने उससे संपर्क किया। पुलिस पीछा और निगरानी न कर सके इसलिए हमने एक सॉना में मिलने का फैसला किया। उस दिन मैं एक घंटा पहले ही पहुँच गई। मेरा दिल खुशी के मारे तेजी से धड़क रहा था : मैं माँ को देखने के लिए बड़ी उत्साहित थी। मेरी नजरें दरवाजे पर अटकी हुई थीं, और फिर खिड़की से मुझे मध्य उम्र की एक दुबली-पतली औरत दिखी। अंदर आकर उसने एक कर्मचारी से कहा कि उसकी बेटी अंदर उसका इंतजार कर रही है। उसकी आवाज सुनकर सोचा, "क्या यह मेरी माँ की आवाज नहीं है?" समझने में मुझे एक पल लगा। उसकी आवाज न सुनती तो मैं बिल्कुल नहीं पहचान पाती। मेरी माँ लंबी, सीधे तने शरीर वाली सुंदर महिला थी, पर उसका वजन बहुत घट गया था और शरीर झुक गया था। वह पहले जैसी नहीं थी। मैं उसकी तरफ दौड़ पड़ी और चिल्लाई : "माँ!" मेरी माँ ने घूमकर मेरी तरफ देखा तो उसका दुर्बल चेहरा मैं पहचान ही नहीं पाई। उसका रंग फीका पड़ गया था, वह बहुत कमजोर और मुरझाई-सी लग रही थी। उसकी आँखें भी बेजान-सी थीं जैसे किसी को बहुत ज्यादा उत्तेजना से गुजरना पड़ा हो। उसे इस हालत में देखकर मैं मुश्किल से अपनी रुलाई रोक पाई। मैं कल्पना नहीं कर सकती थी कि जेल में उसने क्या झेला होगा—सोचने की भी हिम्मत नहीं थी। मेरी आँखों से आँसू छलकने लगे। मेरे पास बैठी माँ ने मेरे हाथ जोर से भींचकर पूछा कि इन बीते सालों में मैं कैसी रही। उसने कहा कि जेल में उसे सबसे ज्यादा चिंता मेरी ही थी और वह अक्सर मेरे लिए प्रार्थना करती थी। उसे डर था कि मैं इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी और परमेश्वर से मुंह मोड़ लूँगी। यह सुनकर कि मैं अब भी विश्वास करती हूँ और कर्तव्य निभा रही हूँ, वह बहुत खुश हो गई। ड्रेसिंग रूम में अपनी माँ के हड्डियों का ढांचा बन चुके शरीर को देखकर मेरा दिल तड़प उठा। वह पलटी तो मुझे उसके बाएँ कंधे पर जख्म का निशान दिखाई दिया। निशान काले रंग का था और हड्डी बीच से सिकुड़ी हुई थी, जैसे कि टूट चुकी हो। मैं उसे ऐसी हालत में देख नहीं पा रही थी। मैंने अपने आंसुओं को रोकते हुए उससे पूछा, "यह निशान कैसे पड़ा? क्या पुलिस ने तुम्हें मारा? क्या यह अब भी दुखता है?" मेरी माँ को डर था कि मैं चिंता करने लगूँगी, इसलिए उसने कहा कि अब जख्म भर चुका है। बहुत सालों बाद मुझे पता चला कि गिरफ्तारी के बाद माँ को क्रूर यातनाएँ दी गई थीं, और एक पेशेवर प्रशिक्षित अधिकारी ने उसके कंधे पर 30 घूंसे जमाए थे, जिससे कई हड्डियाँ टूट या चटक गई थीं, कंधा भी अपनी जगह से हिल गया था, और रीढ़ की कई हड्डियां सरक गई थीं। खुशकिस्मती से परमेश्वर की सुरक्षा के कारण मेरी माँ चमत्कारी ढंग से बिल्कुल भली-चंगी हो गई और उसकी हड्डियों की सारी टूट-फूट भी पूरी तरह ठीक हो गई। जेल के डॉक्टर भी यह देखकर हैरान थे कि वह कितनी जल्दी ठीक हो गई।

कुछ ही समय बाद हमें जुदा होना पड़ा क्योंकि मेरी माँ हाल ही में रिहा की गई थी, इसलिए पुलिस शायद अब भी उसकी निगरानी कर रही थी। मेरी सुरक्षा के लिए, हमें कुछ वक्त और जुदा रहना पड़ा। इस बार मेरे लिए यह बहुत मुश्किल रहा। मैं उसके साथ रहना और उसकी देखभाल करना चाहती थी। लेकिन बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न के कारण मैं एक बेटी का कर्तव्य भी नहीं निभा पा रही थी। मैं बहुत खराब महसूस कर रही थी। घर जाते हुए रास्ते में, अपनी माँ की कमजोर काया और उसके कंधे के घाव के निशान बार-बार मेरे दिमाग में कौंधते रहे। हर छवि मन में तड़प और टीस की एक नई लहर पैदा करती। ये मेरी कल्पना के परे था कि उन अधिकारियों ने उसे कैसे यातना और बर्बरता का शिकार बनाया होगा। मैं बहुत गुस्से में थी। बड़ा लाल अजगर कितना घिनौना और दुष्ट है! फिर मुझे परमेश्वर के वचनों के एक अंश का ख्याल आया : "फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, ये लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार करते रहे हैं, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़ को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। मुझे बड़े लाल अजगर का क्रूर, परमेश्वर-प्रतिरोधी और शैतानी सार साफ-साफ दिखाई देने लगा। इन अधिकारियों ने सिर्फ इसलिए एक मध्य उम्र की औरत पर बर्बर प्रहार किए क्योंकि वह परमेश्वर में विश्वास करती थी, उन्हें उसके जीने-मरने की परवाह नहीं थी। मैं गुस्से से भड़क उठी। परमेश्वर ने मानवजाति बनाई, तो हमें उसमें विश्वास और उसकी आराधना करनी ही चाहिए, लेकिन लोगों पर यातना और बर्बरता बरसाने में बड़े लाल अजगर के कदम बिल्कुल भी नहीं रुकते, ताकि वे परमेश्वर को नकारें और धोखा दें। वे इतने घृणित, दुष्ट और क्रूर हैं! मैं सोचती थी कि सरकारी अधिकारी और पुलिस वाले सभी बड़े अच्छे लोग होते हैं। लेकिन बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न के बाद ही मुझे यह एहसास हुआ कि उनके ये दावे कि नागरिकों के पास कानूनी अधिकार है और उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता है, सिर्फ छलावा और झूठ हैं। वे पागलों की तरह विश्वासियों को गिरफ्तार करके उत्पीड़न, यातना देते हुए मारपीट करते हैं वे उनकी हत्या करने को बेताब हैं। वे बस परमेश्वर-प्रतिरोधी राक्षसों का एक झुंड हैं। मैं अपने दिल की गहराइयों से उन सबसे घृणा करती हूँ। मैं अपना दिल परमेश्वर को सौंप देना चाहती हूँ, उसका अनुसरण कर अपना कर्तव्य निभाना चाहती हूँ।

2013 में मेरी माँ को एक बार फिर गिरफ्तार हुई। शुरू में मैं थोड़ी चिंतित हुई। सोचने लगी, "क्या माँ को फिर से यातनाएँ दी जाएंगी? क्या उसे इस बार जेल की सजा सुनाई जाएगी? क्या उसका शरीर जेल की एक और सजा झेल पाएगा?" मैं यह सब सोच ही रही थी कि मुझे यह एहसास हुआ कि माँ को परमेश्वर की अनुमति से ही गिरफ्तार किया गया था, मुझे समर्पण करके परमेश्वर के इरादे को जानना चाहिए। मुझे परमेश्वर के इन वचनों का ख्याल आया : "क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19)। इन वचनों से मुझे समझ आया कि इस बार मेरी माँ परमेश्वर की अनुमति से गिरफ्तार हुई। परमेश्वर बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का इस्तेमाल करके हमारी आस्था को पूर्ण बनाता है, हमें सत्य प्रदान करता है, और हमें परमेश्वर के लिए गवाही देने का अवसर देता है। मैंने अपने भाई-बहनों की संगति भी सुनी, जो कई बार गिरफ्तार हुए विश्वासियों के बारे में थी, आखिर में जब उन्होंने सीसीपी द्वारा जेल की सजा का सामना किया, तो उन पर अब शैतान के काले प्रभाव का अंकुश नहीं रहा। कितनी ही बार गिरफ्तार होकर भी वे परमेश्वर में विश्वास करते रहे और रिहा होने पर अपने कर्तव्यों का पालन कर, मुक्त और स्वतंत्र महसूस करते रहे। यह परमेश्वर का उद्धार था। परमेश्वर का इरादा समझने के बाद, मैं कहीं बेहतर और शांत महसूस करने लगी। मैंने माँ के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे विनती की कि वह बड़े लाल अजगर के प्रभाव से न डरने में, और शानदार गवाही देने में माँ की मदद करे। मैं नहीं जानती थी कि इस बार मुझे कितने समय तक माँ से जुदा रहना होगा, लेकिन मेरे दिल में शांति थी। कुछ ही दिनों बाद, मैं अपने कर्तव्य पालन में जुट गई।

बाद में मेरी माँ ने मुझे बताया कि जब पुलिस अधिकारी उसके पिछले अपराध जानने के लिए उसकी फाइल देखने गए तो हैरानी की बात थी कि रेकॉर्ड में कुछ भी मौजूद नहीं था। माँ ने मुझे बताया कि अपनी पिछली दो गिरफ्तारियों के दौरान उसने व्यक्तिगत रूप से यह महसूस किया था कि परमेश्वर कैसे कष्टों में उसका मार्गदर्शन करता और चमत्कारी कार्य करता है। वह परमेश्वर की सर्वशक्तिमान संप्रभुता को बेहतर समझ पाई और परमेश्वर में उसकी आस्था और भी मजबूत हो गई। जब अधिकारी ने उससे पूछा कि वे सुसमाचार कैसे फैलाते थे, तो मेरी माँ ने खुलकर परमेश्वर के काम की गवाही दी। अपनी माँ के अनुभव से मैंने देखा कि परमेश्वर कितना बुद्धिमान है, वह बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का इस्तेमाल करके हमें साहस, बुद्धि और आस्था प्रदान करता है, ताकि हमारी सोचने-समझने की क्षमता बढ़ सके और हम बड़े लाल अजगर के राक्षसी सार को देख सकें और उससे घृणा करके उसका पूरी तरह से त्याग कर सकें। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के हाथ का एक प्यादा भर है। यह परमेश्वर के कार्य को भंग और बाधित करने के लिए हर संभव तरीका आजमाता है, पर इसके प्रयास सिर्फ परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने के काम आते हैं। यह सिर्फ एक कागजी शेर है! परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि देखने के बाद मैं परमेश्वर का अनुसरण करने और उसके कार्य के अनुभव को लेकर और ज्यादा आश्वस्त हो गई हूँ। इससे मुझे परमेश्वर के इन वचनों का ख्याल आया : "जब मैं औपचारिक रूप से अपना कार्य शुरू करता हूँ, तो सभी लोग वैसे ही चलते हैं जैसे मैं चलता हूँ, इस तरह कि समस्त संसार के लोग मेरे साथ कदम मिलाते हुए चलने लगते हैं, संसार भर में 'उल्लास' होता है, और मनुष्य को मेरे द्वारा आगे की ओर प्रेरित किया जाता है। परिणामस्वरूप, स्वयं बड़ा लाल अजगर मेरे द्वारा उन्माद और व्याकुलता की स्थिति में डाल दिया जाता है, और वह मेरा कार्य करता है और अनिच्छुक होने के बावजूद अपनी स्वयं की इच्छाओं का अनुसरण करने में समर्थ नहीं होता, और उसके पास मेरे नियंत्रण में समर्पित होने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। मेरी सभी योजनाओं में बड़ा लाल अजगर मेरी विषमता, मेरा शत्रु, और साथ ही मेरा सेवक भी है; उस हैसियत से मैंने उससे अपनी 'अपेक्षाओं' को कभी भी शिथिल नहीं किया है। इसलिए, मेरे देहधारण के काम का अंतिम चरण उसके घराने में पूरा होता है। इस तरह से बड़ा लाल अजगर मेरी उचित तरीके से सेवा करने में अधिक समर्थ है, जिसके माध्यम से मैं उस पर विजय पाऊँगा और अपनी योजना पूरी करूँगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 29)

बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न के कारण भले ही मुझे दूसरे बच्चों से ज्यादा तकलीफें झेलनी पड़ी हों, लेकिन इन तकलीफों और कमजोरी के क्षणों के बावजूद मैं ज्यादा मजबूत हुई हूँ। ये अनुभव मेरे लिए बहुत मूल्यवान रहे हैं। इन्होंने मुझे यह गहरा विश्वास दिया है कि मेरी मदद करने और मुझे सच्चा सहारा देने के लिए सिर्फ परमेश्वर ही हमेशा मौजूद रहता है। अगर हम परमेश्वर में अपनी आस्था नहीं खोते हैं तो, वह मुश्किलों में हमारा मार्गदर्शन करता है, और हम उसके कार्य देख सकते हैं। मैं परमेश्वर पर भरोसा करने और दृढ़ता से उसका अनुसरण करने, अपना कर्तव्य निभाने और उसके प्रेम का प्रतिफल देने के लिए तैयार हूँ!

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