चमकती पूर्वी बिजली क्या है? मत्ती 24:27 के रहस्यों से परदा उठ गया है
हाल के वर्षों में, चमकती पूर्वी बिजली स्पष्ट तौर पर गवाही देती रही है कि अंत के दिनों में प्रभु यीशु देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आए हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचनों को व्यक्त किया है और वे परमेश्वर के घर से आरंभ होने वाला न्याय का कार्य कर रहे हैं। चमकती पूर्वी बिजली के प्रकटन ने पूरे धार्मिक जगत को हिला दिया है और परमेश्वर के प्रकटन के लिए तरस रहे बहुत से लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथनों को सुना है और उन्हें परमेश्वर की वाणी माना है। उन्हें यकीन हो गया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आये प्रभु यीशु हैं और वे एक-एक कर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामने आए हैं। चमकती पूर्वी बिजली के प्रकटन ने बाइबल के इस पद की भविष्यवाणी को पूरा किया है: "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। "बिजली" सत्य है, परमेश्वर का वचन है; "पूर्व से निकल कर आती है" का अर्थ है कि सत्य चीन से बाहर आ गया है, और "पश्चिम तक चमकती है" का अर्थ है कि यह पश्चिम तक पहुंच गया है; "मनुष्य के पुत्र का आना" देहधारी परमेश्वर के प्रकटन और पूर्व अर्थात् चीन में कार्य कर रहे होने को दर्शाता है और अंततः वह पश्चिम में अपने कार्य का विस्तार कर रहा है। ये वचन अब पूरे हो चुके हैं। हालांकि, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में सीसीपी के झूठ और पादरियों और एल्डरों की निंदा पर विश्वास करने के कारण, कई भाई-बहन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जांच-पड़ताल करने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं। वे सोचते हैं, अगर चमकती पूर्वी बिजली सच्चा मार्ग और परमेश्वर का प्रकटन और कार्य होती, तो चीनी सरकार और कलीसिया के पादरी और एल्डर इसकी निंदा क्यों करते? क्या चमकती पूर्वी बिजली सचमुच लौटकर आये प्रभु यीशु का प्रकटन और कार्य है? हम अगली सहभागिता में इस विषय पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
प्राचीन काल से ही सच्चे मार्ग को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है
एक बार प्रभु यीशु ने कहा था, "इस युग के लोग बुरे हैं" (लूका 11:29)। "और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए" (यूहन्ना 3:19-20)। प्रभु यीशु एक सर्जन की निपुणता के साथ, इस दुनिया की बुराई और अंधकार को उजागर करते हैं, यह दर्शाते हैं कि सभी मानव शैतान के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत रहते हैं और परमेश्वर के अस्तित्व को सहन करने में असमर्थ हैं। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु व्यक्तिगत रूप से देहधारी बने और मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए पृथ्वी पर कार्य करने आए, लेकिन यहूदी धर्मगुरुओं ने रोमन अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ करके उन्हें सलीब पर चढ़ा दिया। स्पष्ट है कि मानवजाति इतनी भ्रष्ट और दुराचारी हो चुकी थी कि उन्होंने खुले तौर पर परमेश्वर को नकारा और उसका विरोध किया। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आए हैं और उन्होंने उन सभी सत्यों को व्यक्त किया है जो मनुष्य को पूर्ण उद्धार प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं, लेकिन उन्होंने धार्मिक जगत और चीनी सरकार की ज़बरदस्त निंदा और अवज्ञा भी झेली है और इस पीढ़ी ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है। यह वास्तव में प्रभु यीशु के इन वचनों को पूरा करता है: "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। चीनी सरकार एक नास्तिक सरकार है, इसका सार ही परमेश्वर का विरोध करना है, इसलिए इसके द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा करना हैरानी की बात नहीं है। हालाँकि, आज के धार्मिक जगत के पादरी और एल्डर सभी परमेश्वर के लौटकर आने का इंतजार कर रहे हैं, तो फिर वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की खोज या जांच-पड़ताल क्यों नहीं करते? इसके विपरीत वे उसका ज़बरदस्त विरोध करते हैं और उसकी निंदा करते हैं। इस बात पर सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है। वास्तव में, ऐसे अनेक पादरी और एल्डर हैं जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों और कार्यों में अधिकार और सामर्थ्य को देखा है। हालाँकि, जब वे देखते हैं कि परमेश्वर के प्रकटन के लिए तरस रहे इतने सारे लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से यह पहचानते हैं कि वे वास्तव में लौटकर आये प्रभु यीशु हैं और फिर एक-एक करके सर्वशक्तिमान परमेश्वर के समक्ष आते हैं, तो धार्मिक जगत के इन पादरियों और एल्डरों को यह भय सताने लगता है कि सभी विश्वासी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने लगेंगे और इसके बाद कोई भी उनका अनुसरण या पूजा नहीं करेगा। अपने पदों और आजीविका को बनाए रखने के लिए, वे "सच्चे मार्ग और लोगों की रक्षा करने" का दिखावा करते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की कड़ी निंदा करते हैं और सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल कर रहे विश्वासियों के काम में बाधा खड़ी करते हैं। इस तथ्य से हम यह देख सकते हैं कि धार्मिक जगत द्वारा परमेश्वर के दोनों देहधारणों के प्रकटन और कार्य की घोर निंदा की गई है, यह इतना अंधा और बुरा हो गया है कि परमेश्वर के ख़िलाफ़ अपने को खड़ा करने की हद तक जा सकता है। इसलिए, जब परमेश्वर अपने कार्यों को करने के लिए इस दुराचारी संसार में आता है, तो यह अवश्यंभावी है कि शैतानी शक्तियों द्वारा उसकी निंदा की जाएगी और उसे उत्पीड़ित किया जाएगा।
जब हम सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल करते हैं, उस समय धार्मिक जगत के अगुआओं द्वारा निंदा और अवहेलना किए जाने पर हमें किस तरह का रवैया अपनाना चाहिए? अगर हम शुरुआती दिनों में पतरस, यूहन्ना और अन्य शिष्यों के बारे में सोचते हैं, तो पाते हैं कि उन्होंने प्रभु यीशु की निंदा करनेवाले धार्मिक अगुआओं पर अंधविश्वास नहीं किया, बल्कि उन्होंने विनम्रतापूर्वक प्रभु की बातों को सुनना चाहा। जब उन्होंने प्रभु यीशु के वचनों को सत्य और परमेश्वर की वाणी माना, तब वे अपनी धारणाओं को त्यागने और प्रभु का अनुसरण करने में सक्षम हुए, अंततः उन्होंने प्रभु का उद्धार प्राप्त किया। यह ठीक वैसा ही है जैसा प्रभु यीशु ने कहा था, "माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा" (मत्ती 7:7)। अगर हम यह जानना चाहते हैं कि क्या चमकती पूर्वी बिजली सच्चा मार्ग है, तो हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को देखना चाहिए और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों को पढ़ना चाहिए। इस मामले की सच्चाई को जानने का यही एकमात्र तरीका है। अगर हम पादरियों और एल्डरों की कही हुई बात पर आँख मूंदकर विश्वास करते हैं, तो हमारे यीशु के युग के सामान्य यहूदियों के नक्शेकदम पर चलने की संभावना रहेगी, जो फरीसियों के साथ जा रहे थे, प्रभु यीशु का विरोध कर रहे थे, उन्हें नकार रहे थे। इस तरह हम सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल करने का अवसर चूक जाएंगे और प्रभु की वापसी का स्वागत करने में हमेशा असमर्थ रहेंगे।
हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि चमकती पूर्वी बिजली सच्चा मार्ग है?
हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि चमकती पूर्वी बिजली ही सच्चा मार्ग है? आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "सच्चे मार्ग की खोज करने में सबसे बुनियादी सिद्धांत क्या है? तुम्हें देखना होगा कि इस मार्ग में पवित्र आत्मा का कार्य है या नहीं, ये वचन सत्य की अभिव्यक्ति हैं या नहीं, किसके लिए गवाही देनी है, और यह तुम्हारे लिए क्या ला सकता है। सच्चे मार्ग और झूठे मार्ग के बीच अंतर करने के लिए बुनियादी ज्ञान के कई पहलू आवश्यक हैं, जिनमें सबसे मूलभूत है यह बताना कि इसमें पवित्र आत्मा का कार्य मौजूद है या नहीं। क्योंकि परमेश्वर पर लोगों के विश्वास का सार परमेश्वर के आत्मा पर विश्वास है, और यहाँ तक कि देहधारी परमेश्वर पर उनका विश्वास इसलिए है, क्योंकि यह देह परमेश्वर के आत्मा का मूर्त रूप है, जिसका अर्थ यह है कि ऐसा विश्वास अभी भी पवित्र आत्मा पर विश्वास है। आत्मा और देह के मध्य अंतर हैं, परंतु चूँकि यह देह पवित्रात्मा से आता है और वचन देह बनता है, इसलिए मनुष्य जिसमें विश्वास करता है, वह अभी भी परमेश्वर का अंतर्निहित सार है। अत:, यह पहचानने के लिए कि यह सच्चा मार्ग है या नहीं, सर्वोपरि तुम्हें यह देखना चाहिए कि इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है या नहीं, जिसके बाद तुम्हें यह देखना चाहिए कि इस मार्ग में सत्य है या नहीं। सत्य सामान्य मानवता का जीवन-स्वभाव है, अर्थात्, वह जो मनुष्य से तब अपेक्षित था, जब परमेश्वर ने आरंभ में उसका सृजन किया था, यानी, अपनी समग्रता में सामान्य मानवता (मानवीय भावना, अंतर्दृष्टि, बुद्धि और मनुष्य होने के बुनियादी ज्ञान सहित) है। अर्थात्, तुम्हें यह देखने की आवश्यकता है कि यह मार्ग लोगों को एक सामान्य मानवता के जीवन में ले जा सकता है या नहीं, बोला गया सत्य सामान्य मानवता की आवश्यकता के अनुसार अपेक्षित है या नहीं, यह सत्य व्यावहारिक और वास्तविक है या नहीं, और यह सबसे सामयिक है या नहीं। यदि इसमें सत्य है, तो यह लोगों को सामान्य और वास्तविक अनुभवों में ले जाने में सक्षम है; इसके अलावा, लोग हमेशा से अधिक सामान्य बन जाते हैं, उनका मानवीय बोध हमेशा से अधिक पूरा बन जाता है, उनका दैहिक और आध्यात्मिक जीवन हमेशा से अधिक व्यवस्थित हो जाता है, और उनकी भावनाएँ हमेशा से और अधिक सामान्य हो जाती हैं। यह दूसरा सिद्धांत है। एक अन्य सिद्धांत है, जो यह है कि लोगों के पास परमेश्वर का बढ़ता हुआ ज्ञान है या नहीं, और इस प्रकार के कार्य और सत्य का अनुभव करना उनमें परमेश्वर के लिए प्रेम को प्रेरित कर सकता है या नहीं और उन्हें परमेश्वर के हमेशा से अधिक निकट ला सकता है या नहीं। इसमें यह मापा जा सकता है कि यह सही मार्ग है अथवा नहीं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं)।
परमेश्वर के वचन अत्यंत स्पष्ट रूप से बताते हैं कि सच्चे मार्ग और झूठे मार्ग के अंतर को पहचानने के तीन मुख्य सिद्धांत हैं। पहला, देखें कि क्या इस मार्ग में पवित्र आत्मा का कार्य है। परमेश्वर आत्मा है और भले ही परमेश्वर देहधारण कर अपने कार्य करते हैं, लेकिन उनका सार उनके आत्मा के रूप में ही रहता है, इसलिए परमेश्वर का कार्य पवित्र आत्मा के कार्य के साथ-साथ चलना चाहिए। दूसरा, यह देखें कि क्या इस मार्ग में सत्य है। हम सभी जानते हैं कि केवल परमेश्वर का वचन ही सत्य है; सत्य हमारा जीवन बन सकता है, यही वह सिद्धांत है जो हमारे व्यवहार, हमारे आचरण और परमेश्वर की हमारी आराधना को नियंत्रित करता है, यह हमें सच्ची मानवता को वापस पाने में सक्षम बना सकता है। तीसरा, देखें कि क्या यह मार्ग लोगों को, परमेश्वर के बारे में अपने ज्ञान को निरंतर बढ़ाने में सक्षम बना सकता है। परमेश्वर का कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा किया जाता है, क्योंकि वह जो है उसी को प्रकट करता है, परमेश्वर हर बार जब मनुष्य को बचाने के लिए प्रकट होता है और कार्य करता है, तो वह मनुष्य को अपनी इच्छा और अपनी अपेक्षाओं के बारे में बताता है; हम परमेश्वर के वचनों को जितना अधिक पढ़ते हैं, हम उसके कार्य का जितना अधिक अनुभव करते हैं, परमेश्वर में हमारा विश्वास उतना ही अधिक बढ़ता है और परमेश्वर के संबंध में हमारा ज्ञान उतना ही बढ़ता जाता है।
उदाहरण के लिए, जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए आए थे, तब उन्होंने मनुष्य पर अत्यधिक अनुग्रह किया, उन्होंने बीमारों को चंगा किया और राक्षसों को बाहर निकाला और मानवता के लिए पश्चाताप का मार्ग बताया। उन्होंने मनुष्य को अपराध स्वीकार करना और पश्चाताप करना सिखाया, अपने पड़ोसियों से उसी तरह प्रेम करना सिखाया जिस तरह वह खुद से प्रेम करता है, अपने सलीब के कष्ट को सहना, धैर्यवान और सहनशील बनना, दूसरों को सत्तर गुणा सात बार क्षमा करना, अपने पूरे हृदय और मस्तिष्क से परमेश्वर को प्रेम करना और ऐसी ही बहुत सी बातें सिखाईं। प्रभु यीशु के ये उपदेश ऐसे वचन थे जिन्हें कोई भी मनुष्य नहीं कह सकता था। प्रभु यीशु के आने और सत्य व्यक्त करने से पहले, जो लोग नियमों के अधीन रहते थे, वे केवल जीना जानते थे; दूसरों से प्रेम करने और माफ करने से संबंधित सत्य की उन्हें कोई समझ नहीं थी। लेकिन प्रभु का अनुसरण करने और उनकी शिक्षाओं का अभ्यास करने पर, उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु का वचन सत्य था और यह उस समय के लोगों को अभ्यास का मार्ग दिखा सकता था। प्रभु यीशु के कार्यों के माध्यम से लोगों ने यह भी समझा कि परमेश्वर का स्वभाव दया और प्रेमपूर्ण करुणा से परिपूर्ण है और वे प्रभु का अनुसरण करने के लिए तैयार हो गए। उस समय प्रभु यीशु के कार्य की लगातार निंदा, अवहेलना किए जाने और मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों के हाथों उत्पीड़ित होने के बावजूद प्रभु यीशु के अनुयायियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई। अंततः, इन धार्मिक अगुआओं ने रोमन अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ करके प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ा दिया, उनका मानना था कि ऐसा करके वे प्रभु यीशु के कार्य को समाप्त कर देंगे। हालांकि, जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते थे, उन्होंने उनके कार्यों और वचनों से यह जाना कि उनका कार्य परमेश्वर का कार्य था, इसलिए उन्होंने विश्वास भरे हृदय से उनका अनुसरण किया और उस समय के रोमन अधिकारियों और धार्मिक जगत द्वारा बुरी तरह सताये जाने के बावजूद प्रभु के सुसमाचार को फैलाया। प्रभु यीशु का सुसमाचार अब ब्रह्मांड और दुनिया के हर कोने तक पहुँच गया है, और कोई भी ताकत इसे रोक नहीं सकती। हम प्रभु यीशु के वचनों और कार्यों के फल से देख सकते हैं कि उनका कार्य परमेश्वर से आया है और यही सच्चा मार्ग है।
इसी प्रकार, अगर हम इस बात की पुष्टि करना चाहते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य सच्चा मार्ग है या नहीं, तो हमें यह देखना चाहिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य में सत्य व्यक्त किया गया है, क्या इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है और क्या यह लोगों को परमेश्वर के संबंध में अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने देता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आये हैं और प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर, उन्होंने वे सभी सत्य व्यक्त किए हैं जो मनुष्य को शुद्धि और पूर्ण उद्धार प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं; वे मनुष्यों का न्याय करने और उनकी शुद्धि के कार्य के चरण को पूरा करते हैं, वे हमें पाप करने और उसे कबूल करने के चक्र में फंसकर कष्ट उठाने वाले जीवन से बचाते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "वर्तमान देहधारण में परमेश्वर का कार्य मुख्य रूप से ताड़ना और न्याय के द्वारा अपने स्वभाव को व्यक्त करना है। इस नींव पर निर्माण करते हुए वह मनुष्य तक अधिक सत्य पहुँचाता है और उसे अभ्यास करने के और अधिक तरीके बताता है और ऐसा करके मनुष्य को जीतने और उसे उसके भ्रष्ट स्वभाव से बचाने का अपना उद्देश्य हासिल करता है। यही वह चीज़ है, जो राज्य के युग में परमेश्वर के कार्य के पीछे निहित है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। "न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें परमेश्वर की छह-हज़ार साल की प्रबंधन योजना के रहस्य, परमेश्वर के देहधारणों के रहस्य, मानवजाति के भविष्य के परिणाम और मंजिल के रहस्य, स्वर्गारोहित होने के अर्थ, झूठे मसीहों के बीच से सच्चे मसीह को पहचानने के तरीके, शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की सच्चाई, पापों की बेड़ियों को उखाड़ फेंकने के तरीके और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के तरीकों के बारे में बताते हैं। इन सभी सत्यों को, परमेश्वर द्वारा हमारी आवश्यकताओं के आधार पर व्यक्त किया गया है, ये सत्य, अनुग्रह से युग के सत्यों से अधिक उच्च हैं। ये हमें केवल परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के रहस्यों के बारे में ही नहीं बताते, बल्कि अहंकार, दुर्भावना, स्वार्थ, छल, और क्रूरता जैसे हमारे शैतानी स्वभावों को भी उजागर करते हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना के दौर से गुजरते हुए, हम देखते हैं कि परमेश्वर कैसे मनुष्य की भ्रष्टता से नफ़रत करता है, हम परमेश्वर के धार्मिक और पवित्र स्वभाव का अनुभव करते हैं जो किसी अपराध को बर्दाश्त नहीं करता है, और हमारे भीतर परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय उत्पन्न होता है। इसके बाद हम आसानी से पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाते, हम अपने देह-सुख को त्यागने और सत्य का अभ्यास करने के लिए तैयार हो जाते हैं, और धीरे-धीरे हम मानवता के कुछ अंशों के अनुरूप जीने लगते हैं। हम वास्तव में इस बात की सराहना करने के लिए भी तैयार होते हैं कि परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के बिना, हम कभी भी उन शैतानी स्वभावों को नहीं जान पाएंगे जो हमारे भीतर गहराई में निहित हैं; हम केवल उन लोगों जैसे हो सकते हैं, जो सदा धर्म में पाप करने और उसे स्वीकारने के चक्र में फंसे रहते हैं। अगर हम अंत तक परमेश्वर में विश्वास करते रहे, तब भी हम परमेश्वर से पूर्ण उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते थे। अंत के दिनों में, परमेश्वर के न्याय के कार्य का अनुभव करके, हम देखते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव केवल दयालु और प्रेमपूर्ण ही नहीं है, बल्कि इससे अधिक यह, धार्मिक और प्रतापी है और किसी भी अपराध को सहन नहीं करता। परमेश्वर का स्वभाव चाहे दयालु और प्रेमपूर्ण हो या धार्मिक और प्रतापी हो, इसमें हमेशा मनुष्य के लिए परमेश्वर का महान उद्धार शामिल होता है।
इसके अतिरिक्त, अगर यह परमेश्वर का कार्य या सच्चा मार्ग है, तो इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है और इसे पवित्र आत्मा द्वारा कायम रखा जाता है, कोई भी शत्रु शक्ति, परमेश्वर के कार्य के रास्ते में बाधा नहीं बन सकती है। जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट हुए और 1991 से चीन में काम करना शुरू किया है, तब से चीनी सरकार और धार्मिक जगत ने कभी भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का विरोध और उत्पीड़न करना बंद नहीं किया। फिर भी, इन शत्रु शक्तियों द्वारा परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को किसी भी तरह से बाधित नहीं किया जा सका है और करीब बीस वर्षों की छोटी सी अवधि में, यह चीनी की पूरी मुख्य भूमि के साथ-साथ दुनिया भर के कई अन्य देशों में भी फैल गया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की पुस्तक, वचन देह में प्रकट होता है, काफी समय से ऑनलाइन उपलब्ध है और बीस से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है, इसे पूरी मानवजाति के लिए खुले तौर पर प्रचारित किया जा रहा है और इसकी गवाही दी जा रही है। फ़िल्में, नृत्य प्रदर्शन, लघु-नाटक और हास्य संवादों आदि को ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है जो अंत के दिनों दिनों में परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के साथ ही उन भाई-बहनों के अनुभव की गवाही भी देते हैं, जिन्होंने परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार किया है और अपने भ्रष्ट स्वभावों के शुद्धिकरण और परिवर्तन का अनुभव किया है। परमेश्वर के प्रकटन के लिए लंबे समय से तरसते बहुत से सच्चे विश्वासियों ने परमेश्वर की वाणी सुनी है और इन अनुभव जन्य गवाहियों को देखा है—इस तरह, उनके जीवन में प्रकाश का प्रवेश हुआ है। उन्हें यकीन हो गया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन कलीसियों से कहे गये पवित्र आत्मा के कथन हैं और यह कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आये प्रभु यीशु हैं और चमकती पूर्वी बिजली ही सच्चा मार्ग है। वे एक-एक करके सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शरण में आए हैं। अब दुनिया भर के कई देशों में सीएजी की कलीसियाएं स्थापित हो चुकी हैं, और यह प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है: "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)।
भाइयों और बहनों, अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के फल से, हम निश्चित हो सकते हैं कि चमकती पूर्वी बिजली में पवित्र आत्मा का कार्य और सत्य की अभिव्यक्ति है, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके, परमेश्वर के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता रहेगा। चमकती पूर्वी बिजली लौटकर आये प्रभु यीशु का प्रकटन और कार्य है, यही सच्चा मार्ग है। हम मेमने के पदचिन्हों पर चल पाएंगे या नहीं और परमेश्वर का आशीर्वाद हमें मिलेगा या नहीं, यह हमारे व्यक्तिगत चयनों पर निर्भर होगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर का कार्य एक ज़बरदस्त लहर के समान उमड़ता है। उसे कोई नहीं रोक सकता, और कोई भी उसके प्रयाण को बाधित नहीं कर सकता। केवल वे लोग ही उसके पदचिह्नों का अनुसरण कर सकते हैं और उसकी प्रतिज्ञा प्राप्त कर सकते हैं, जो उसके वचन सावधानीपूर्वक सुनते हैं, और उसकी खोज करते हैं और उसके लिए प्यासे हैं। जो ऐसा नहीं करते, वे ज़बरदस्त आपदा और उचित दंड के भागी होंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। "तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख बंदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम धोखे से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दंडित किए जाओगे और आशीष के बिना होगे। यदि तुम ऐसा सत्य, जो इतने सादे और स्पष्ट ढंग से कहा गया है, स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में सोचो! उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास को खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)।
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